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दिसम्बर की निर्वाचित पुस्तक
"इस सृष्टि की रचना जल से हुई है और मनुष्य ही नहीं; समूची सृष्टि को निर्मित करने वाले क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर नामक पंचभूतों में एक जल भी है। मानव जाति का इतिहास भी जल से जुड़ा हुआ है। आदमी की आदि प्रजाति अमीबा की उत्पत्ति जल के बिना संभव ही नहीं थी। अधिकांश सभ्यताओं का विकास भी नदियों के किनारे हुआ है। आज भी महत्वपूर्ण नगर किसी न किसी नदी के किनारे ही अवस्थित हैं। गांवों के भी आस-पास छोटी-बड़ी नदी बहती रही है और पहले तालाबों और बग़ीचों से तो गांव घिरा ही रहता था। तब खेती के लिए किसानों को किसी कीटनाशक या रासायनिक खाद का उपयोग करने की कोई ज़रूरत नहीं होती थी। पेड़-पत्तों और घर के कूड़े से बनी जैविक खाद ही ज़मीन की उर्वरता को लगातार बढ़ाती जाती थी।" ...(पूरा पढ़ें)
सप्ताह की पुस्तक
चन्द्रकांता सन्तति २ बाबू देवकीनन्दन खत्री का द्वारा रचित उपन्यास है जिसका प्रकाशन सन् १८९६ ई॰ में दिल्ली के भारती भाषा प्रकाशन द्वारा किया गया था।
"बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपति ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लोगों ने सबसे पहले किशोरी को चिता पर से खींच लिया और इसके बाद धनपति के साथियों को पकड़ने लगे।
पाठक समझते होंगे कि ऐसे समय में इन लोगों के आ पहुँचने और जान बचने से किशोरी खुश हुई होगी और इन्द्रजीतसिंह से मिलने की कुछ उम्मीद भी उसे हो गई होगी। मगर नहीं, अपने बचानेवालों को देखते ही किशोरी चिल्ला उठी और उसके दिल का दर्द पहले से भी ज्यादा बढ़ गया। किशोरी ने आसमान की तरफ देखकर कहा, "मुझे तो विश्वास हो गया था कि इस चिता में जलकर ठंडे-ठंडे वैकुण्ठ चली जाऊँगी, क्योंकि इसकी आँच कुँअर इन्द्रजीतसिंह की जुदाई की आँच से ज्यादा गर्म न होगी, मगर हाय, इस बात का गुमान भी न था कि यह दुष्ट आ पहुँचेगा और मैं एक सचमुच की तपती हुई भट्ठी में झोंक दी जाऊँगी। मौत, तू कहाँ है? तू कोई वस्तु है भी या नहीं, मुझे तो इसी में शक है!"..."(पूरा पढ़ें)
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पूर्ण पुस्तक
हीराबाई किशोरीलाल गोस्वामी द्वारा रचित उपन्यास है। "दिल्ली का ज़ालिम बादशाह अलाउद्दीन ख़िलजी जो अपने बूढे़ और नेक चचा जलालुद्दीन फ़ीरोज़ ख़िलजी को धोखा दे और उसे अपनी आंखों के सामने मरवाकर [सन् १२९५ ईस्वी] आप दिल्ली का बादशाह बन बैठा था, बहुत ही संगदिल, खुदग़रज़, ऐय्याश, नफ़्सपरस्त और ज़ालिम था। उसने तख़्त पर बैठते ही जलालुद्दीन के दो नौजवान लड़कों को क़तल करडाला और गुजरात" (हीराबाई पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- संपादनोत्सव- विकिस्रोत:सामग्री संवर्द्धन संपादनोत्सव/सितंबर २०२४
- संपादनोत्सव- विकिस्रोत:सामग्री संवर्द्धन संपादनोत्सव/जुलाई 2024
- शोधित की जा रही पुस्तक:
- Kabir Granthavali.pdf [९२१ पृष्ठ]
- जायसी ग्रंथावली.djvu [४९८ पृष्ठ]
- रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf [४७१ पृष्ठ]
रचनाकार
अनुपम मिश्र (1948 — 19 दिसम्बर 2016), लेखक, पत्रकार और पर्यावरणविद् थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ :
- राजस्थान की रजत बूँदें (1995)
- आज भी खरे हैं तालाब (2004)
- साफ़ माथे का समाज (2006)
आज का पाठ
"पं॰ चंद्रधर गुलेरी का जन्म जयपुर में एक विख्यात पंडित् घराने में २५ आषाढ़ संवत् १९४० में हुआ था। इनके पूर्वज काँगड़े के गुलेर नामक स्थान से जयपुर आए थे। पं॰ चंद्रधरजी संस्कृत के प्रकांड विद्वान् और अँगरेजी की उच्च शिक्षा से संपन्न व्यक्ति थे। जीवन के अंतिम वर्षों के पहले ये बराबर अजमेर के मेयो कालेज में अध्यापक रहे। पीछे काशी हिंदू-विश्वविद्यालय के ओरियंटल कालेज के प्रिंसिपल होकर आए। पर हिंदी के दुर्भाग्य से थोड़े ही दिनों में सं॰ १९७७ में इनका, परलोकवास हो गया। ये जैसे धुरंधर पंडित थे वैसे ही सरल और विनोदशील प्रकृति के थे।..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र, विधि
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- विविध — ग्रंथावली, संघ लोक सेवा आयोग प्रश्न पत्र, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रश्न पत्र
- सभी विषय देखें
आंकड़े
- कुल पुस्तकें = ५०४
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,६४,९९६
- प्रमाणित पृष्ठ = १२,६०३, शोधित पृष्ठ = ७२,१२३
- समस्याकारक = १०, अशोधित = ९०,१०७, रिक्त = २,७५६
- सामग्री पृष्ठ = ५,८४९, परापूर्ण पृष्ठ = ४३१७
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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