बिहार के सरकारी स्कूलों में बच्चों का नामांकन घटा, विभाग ने दिए नामांकन बढ़ाने के निर्देश

ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो बढ़ाने के लिए शिक्षा विभाग ने एक सप्ताह तक सभी विद्यालयों में ‘प्रवेश उत्सव’ चलाने का निर्देश दिया है. प्रत्येक विद्यालय से संबद्ध शिक्षा सेवक एवं लाल देवी मरकज 6 से 14 वर्ष के बच्चों का नामांकन विद्यालय में सुनिश्चित करेंगे.

New Update
school ke baache

बिहारी समाज में एक आम धारणा बहुत गहराई में बैठ चुकी है कि सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं होती है, जिसका जिम्मेदार स्वयं शिक्षा विभाग है. विभाग की विफलताओं के कारण सरकारी स्कूल कि शिक्षा बदत्तर होती चली गयी. आये दिन इंटरनेट पर ऐसे वीडियों सामने आते थे जिसमें सरकारी स्कूल के शिक्षक सामान्य से प्रश्नों का भी उत्तर नहीं दे पा रहे थे.

हाल यह हुआ कि सरकारी स्कूलों में केवल वही बच्चे पढ़ने आते जिनके माता-पिता प्राइवेट स्कूल की मंहगी फीस नहीं भर सकते थे. राज्य में साक्षरता दर को बढ़ाने और बच्चों को स्कूलों तक लाने के लिए बिहार सरकार ने मुफ्त किताब, पोशाक, लड़कियों के लिए साईकिल, सैनिटरी पैड के लिए राशि और छात्रवृत्ति जैसी कई योजनाये शुरू की. जिसके लिए बिहार सरकार ने शिक्षा का बजट भी बढ़ा दिया.

इसके अलावे प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में केंद्र द्वारा संचालित ‘मिड-डे-मिल योजना’ तो लम्बे समय से चल ही रही थी.

इन योजनाओं का असर भी नामांकन और उपस्थिति पर भी दिखना शुरू हो गया. बच्चे ने स्कूलों में दाखिला लेना शुरू कर दिया. लेकिन जिस सेवा के लिए स्कूल बनाये गये यानि ‘अच्छी शिक्षा’ अब भी राज्य के सरकारी विद्यालयों के लिए दूर की कौड़ी बने हुए थे.

शिक्षा का माहौल नहीं

बीते वर्ष बिहार सरकार ने इसमें भी सुधार करने का मन बनाया. बिहार सरकार ने बीपीएससी परीक्षा के माध्यम से शिक्षकों की बहाली शुरू की. सरकार ने तर्क दिया इससे युवाओं को रोजगार और सरकारी स्कूलों को अच्छे शिक्षक मिलेंगे. 

वहीं उसी वर्ष शिक्षा विभाग को नए अपर मुख्य सचिव केके पाठक भी मिले. केके पाठक की छवि ऐसे अफसर के रूप में सामने आई जो बिहार के सरकारी स्कूलों की कायापलट कर देंगे. स्कूलों में शिक्षकों की नियमित और समय से पहले उपस्थिति, स्कूल में बच्चों के लिए बेंच–डेस्क, शौचालय, पीने का पानी आदि की व्यवस्था सुनिश्चित करने जैसे कई सुधारात्मक निर्देश उन्होंने दिए. इसी के साथ उन्होंने बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए भी आदेश जारी कर दिया.

सभी जिलों को भेजे गये आदेश में कहा गया जो छात्र तीन दिनों तक लगातार बिना किसी उचित कारण के अनुपस्थित रहता है, उसका नाम काट दिया जाए. इस दौरान विभिन्न जिलों से लाखों बच्चों के नाम काटे गये थे. इनमें दसवीं- बारहवीं के छात्र भी शामिल थे. पाठक के इस आदेश पर विरोध प्रदर्शन भी हुए, जिसमें स्कूली छात्रों ने स्कूल में व्याप्त अव्यवस्था को स्कूल ना आने का कारण बताया. 

लखीसराय जिले के दुर्गा बालिका उच्च विद्यालय की छात्राएं तो नाम कटने पर सड़कों पर आकर आन्दोलन करने को मजबूर हो गईं. दुर्गा बालिका उच्च विद्यालय की छात्राओं ने सड़क को जाम कर स्कूल प्रशासन पर आरोप लगाया कि स्कूल में व्यवस्था ठीक नहीं है. यह सभी कक्षा 11वीं और 12वीं की छात्राएं थीं जिनकी परीक्षाएं होने वाली थी. 

विभिन्न जिलों में इस तरह के प्रदर्शन हुए जिसमें छात्रों ने आरोप लगाया कि स्कूल में बैठने के लिए बेंच-डेस्क नहीं है. इसलिए वे लोग स्कूल नहीं आते हैं. समाजसेवी और पटना यूनिवर्सिटी के गेस्ट फैकल्टी प्रभाकर कुमार बच्चों के ड्रापआउट के लिए स्कूल में व्याप्त असुविधा और माता-पिता के रोजगार की तलाश में माइग्रेशट करने को इसका जिम्मेदार ठहराते हैं. साथ ही नाम काटने के आदेश को गलत बताते हैं.

वे कहते हैं, राइट टू एजुकेशन में नियम है कि जो बच्चा लगातार 40 दिनों तक स्कूल नहीं आता हैं उसका नाम हटाया जाए. अगर वह 39वें दिन भी स्कूल आ गया है तो उसका नाम नहीं काटा जाएगा. ऐसे में इस तरह का आदेश देना गलत है.

 padhaai karte hue baache

प्रभाकर कहते हैं “स्कूल नहीं आने वाले बच्चों में दो तरह के बच्चे होते हैं- एक तो वे जो यहां नहीं आ रहे और प्राइवेट स्कूल जा रहे हैं. दूसरा वे हैं जिनके माता-पिता रोजगार के लिए इधर-उधर जाते हैं तो बच्चा भी उनके साथ चला जाता है. इसके कारण बच्चा ड्रापआउट हो जाता है. तीसरा- कई बार माता-पिता भी बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं और चौथा सबसे महत्वपूर्ण कारण है, स्कूल में क्वालिटी एजुकेशन का नहीं होना.”

स्कूल में व्याप्त असुविधाओं कि बात करते हुए प्रभाकर कहते हैं “इस भीषण गर्मी में भी कई स्कूलों में पंखा नहीं है. स्कूल में गर्मी से बचाव का कोई साधन नहीं है. इसके अलावा अगर स्कूल में पढ़ाई नहीं हो रहा है, बैठने की सुविधा नहीं है, कोई मोटिवेशन नहीं है और एमडीएम में खाना भी अच्छा ना मिले तो बच्चे कैसे आयेंगे स्कूल?”

प्रभाकर का कहना है, स्कूल में उपस्थिति बढ़ाने के लिए शिक्षकों को बच्चों के माता-पिता से बात करनी चाहिए. शिक्षक पता लगाएं कि बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे और उनको वापस लाने का प्रयास करें.

नामांकन घटा

राज्य के सरकारी स्कूलों में ड्रापआउट रेट पहले भी समस्या रही है. यू-डाइस के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014-15 से लेकर 2016-17 के बीच सबसे ज़्यादा बच्चों ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी थी. साल 2014-15 में माध्यमिक स्तर पर कुल बच्चों का 25.33%, वर्ष 2015-16 में 25.90% और 2016-17 में 39.73% बच्चों ने स्कूल छोड़ा था. हालांकि साल 2019-20 में ड्रापआउट दर में थोड़ा सुधार देखा गया. इस वर्ष 21.4% बच्चों ने बीच में पढ़ाई छोड़ी.

ऐसे में जिस राज्य में बच्चे पहले ही विभिन्न कारणों से पढ़ाई छोड़ रहे हों, तीन दिन या 15 दिन स्कूल नहीं आने पर नामांकन काट देना सही निर्णय नहीं हो सकता था. बाद में आदेश को वापस ले लिया गया. लेकिन ऐसे कठोर नियमों का प्रभाव विद्यालयों में होने वाले सकल नामांकन पर दिख रहा है.

वर्ष 2024-25 सत्र में राज्य के सरकारी विद्यालयों में नामांकन पिछले तीन वर्षों के मुकाबले कम हो गया है. विभागीय आंकड़ों के अनुसार पटना जिले में जहां सत्र 2022-23 में कक्षा एक से लेकर 12वीं तक 7,56,011 बच्चों का नामांकन हुआ था. वहीं सत्र 2023-24 में यह संख्या घटकर 6,24,481 हो हो गयी.  वहीं सत्र 2024-25 में अबतक 5,76,000 बच्चों का ही नामांकन हो सका है.

samsatipur school ke baache

यह स्थिति सिर्फ पटना जिले की नहीं है. बल्कि राज्य भर में यही स्थिति बनी हुई है. इसके कारण राज्य के सकल नामांकन अनुपात पर भी प्रभाव पड़ा है. वहीं केके पाठक के आदेश के आदेश के बाद लाखों बच्चों के नामांकन काटने पर शिक्षा विभाग का तर्क है कि इसमें वैसे बच्चों की संख्या ज्यादा है जो सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए यहां नामांकन कराए हुए थे, और  निजी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे थे.

विभाग के इस तर्क पर प्रभाकर कहते हैं “हमारा विश्वास नहीं है, गवरमेंट सिस्टम पर और ना ही उसके एजुकेशन सिस्टम पर. इसलिए जैसे ही हमारे पास थोड़ा भी पैसा आता है हम अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के लिए भेज देते हैं. दूसरा, हमारे पास मोटिवेशनल फैक्टर (प्रेरक कारक) भी नहीं है कि हम अपने बच्चे को वहां भेजे. क्योंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के भी बच्चे उस स्कूल में नहीं पढ़ते हैं."

इसलिए जबतक इन सब चीजों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा कि जो सरकारी कर्मचारी है उनके बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ें. और जब ऐसा होगा तब जाकर एक मोटिवेशनल फैक्टर और विश्वास बनेगा कि सरकारी स्कूल में अपने बच्चे को भेजना चाहिए.

नामांकन बढ़ाने का निर्देश

केके पाठक के तबादले के बाद नये अपर मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ ने किसी भी कारण तीन दिन या उससे अधिक दिनों तक स्कूल नहीं आने पर नामांकन काटने के फैसले को रद्द कर दिया है. विभाग के नये आदेश में निर्देश दिया गया है कि बच्चों की उपस्थिति कम रहने पर प्रधानाध्यापक अपने विद्यालय से संबद्ध शिक्षा सेवक की मदद लें.

वहीं ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो बढ़ाने के लिए शिक्षा विभाग ने एक सप्ताह तक सभी विद्यालयों में ‘प्रवेश उत्सव’ चलाने का निर्देश दिया है. इसके तहत विशेष नामांकन अभियान चलाया जाएगा. प्रत्येक विद्यालय से संबद्ध शिक्षा सेवक एवं लाल देवी मरकज संबंधित टोला के महादलित, दलित अल्पसंख्यक, अति पिछड़ा, पिछड़ा वर्ग के 6 से 14 वर्ष के बच्चों का नामांकन विद्यालय में सुनिश्चित करेंगे.

इसके अलावा बच्चों का नामांकन बढ़ाने के लिए प्रधानाध्यापकों को पोषक क्षेत्र में अवस्थित आंगनबाड़ी की सेविका, जीविका दीदी, विकास मित्र, मुखिया, वार्ड पार्षद, सरपंच एवं पंच का भी सहयोग लेने का निर्देश दिया गया है.

भारती मध्य विद्यालय, कंकड़बाग, पटना के शिक्षक सुनील कुमार बताते हैं उनके स्कूल में इस दौरान 10 से 12 बच्चों का नामांकन हुआ है. वहीं बच्चों के ड्रापआउट पर उनका कहना है कि कठोर नियम बनाने से बच्चे विद्यालय आने को मजबूर नहीं होंगे बल्कि स्कूल आने से उनकों क्या लाभ मिलेगा इसकी जानकारी बच्चे और उनके माता-पिता को देनी होगी.

सुनील कुमार कहते हैं “सरकारी विद्यालयों के सिलेबस में नैतिक विज्ञान (मोरल साइंस) विषय नहीं है. फिर भी हम बच्चों को उदहारण के माध्यम से यह समझाते हैं कि शिक्षा का क्या महत्व है, उसके क्या लाभ हैं. आज हमारे विद्यल में 90 फीसदी बच्चों की उपस्थिति रहती है.”

padhaai karte baache

शिक्षकों के दायित्व पर सुनील कुमार कहते हैं “सरकारी विद्यालयों में पढ़ा रहे शिक्षक को यह समझना होगा कि आपके ऊपर समाज के भविष्य की जिम्मेदारी है. कल इसी विद्यालय से पढ़ने वाला कोई बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर या बहुत कुछ अच्छा कर सकता है. इसलिए शिक्षकों को ईमानदारी से अपना सौ प्रतिशत देना चाहिए.” 

आधार कार्ड अनिवार्य

सरकारी विद्यालयों में इस वर्ष सत्र 2024-25 से आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया गया है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि बच्चों का नामांकन किसी अन्य विद्यालय में तो नहीं है. यह नियम नए बच्चों के साथ-साथ पुराने बच्चों पर भी लागू किया गया है.उन्हें भी अपना आधार कार्ड जमा करना होगा.

वही वैसे बच्चे जिनका आधार कार्ड नहीं बना हुआ है उनका कार्ड विद्यालय में कैंप लगाकर बनवाया जा रहा है. इसके अलावा सभी निजी एवं सरकारी विद्यालयों और कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई कर रहे बच्चों की जानकारी शिक्षा कोष पर देने का निर्देश दिया गया है.

Bihar NEWS bihar education department Bihar Education Departmnet Bihar education department ACS Bihar education system