अकार्बनिक रसायन
प्रांगार को छोड़कर शेष सभी तत्वों और उनके योगिकों की मीमांसा करना अकार्बनिक रसायन (Inorganic chemistry) का क्षेत्र है। बोरॉन, सिलिकन, जर्मेनियम आदि तत्त्व भी लगभग उसी प्रकार के विविध यौगिक बनाते हैं, जैसे कार्बन। पर इस पार्थिव सृष्टि में उनका उतना महत्त्व नहीं है जितना कार्बन यौगिकों का, इसलिए कार्बनिक रसायन का अन्य तत्वों से पृथक् रासायनिक क्षेत्र मान लिया गया है। मनुष्य एवं वनस्पतियों का जीवन कार्बन यौगिकों के चक्र पर निर्भर है, अत: कार्बनिक यौगिकों को एक अलग उपांग में रखना कुछ अनुचित नहीं है। यह कार्बन ही है जो पृथ्वी पर पाए जानेवाले सामान्य ताप (०° से ४०°) पर अनेक स्थायी समावयवी यौगिक दे सकता है। hjbhhffhuhjiyv
अधातु एवं धातु
[संपादित करें]अकार्बनिक रसायन में जिन तत्वों का उल्लेख है, उनमें से कुछ धातु हैं और कुछ अधातु। अधातु तत्वों में कुछ मुख्य ये हैं :
गैस - हाइड्रोजन, हीलियम, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फ्लुओरीन निऑन, क्लोरीन, आर्गन, क्रिप्टॉन, तथा ज़ीनॉन।
ठोस - बोरॉन, कार्बन, सिलिकन, फास्फोरस, गंधक, जर्मेनियम, आर्सेनिक, मोलिब्डेनम, टेल्यूरियम तथा आयोडीन।
द्रव - ब्रोमीन
धातुओं में केवल पारद ऐसा है जो साधारण ताप पर द्रव है। प्राचीन ज्ञात धातुएँ सोना, चाँदी, लोहा, ताँबा, वंग या राँगा, सीसा, जस्ता और पारा हैं। लगभग सभी सभ्य देशों का इन धातुओं से पुराना परिचय है। सोना और चाँदी स्वतंत्र रूप में प्रकृति में पाए जाते हैं। शेष धातुएँ प्रकृति में सल्फाइड, सल्फेट, या ऑक्साइड के रूप में मिलती हैं। इनसे शुद्ध धातुएँ प्राप्त करना सरल था। धातुओं के उन यौगिकों को जिनमें से धातुएँ आसानी से अलग की जा सकती थीं, हम अयस्क कहेंगे। इन अयस्कों को बहुधा कोयले के साथ तपा लेने पर ही धातु शुद्ध रूप में मुक्त हो जाती है।
माइकल फैराडे और डेवी के समय से विद्युत्धारा का उपयोग बढ़ा और जैसे-जैसे डायनेमो की बिजली अधिक सस्ती प्राप्त होने लगी, उसका उपयोग विद्युद्विश्लेषण में बढ़ने लगा। उसकी सहायता से लवणों में से (उनके विलयनों के विद्युद्विश्लेषण से अथवा ऊँचे ताप पर गलित लवणों के विद्युद्विश्लेषण से) अनेक धातुएँ पृथक् की जा सकीं। ताँबे का एक यौगिक तूतिया (कॉपर सल्फेट) है। पानी में बने इसे विलयन में से विद्युत् धारा द्वारा ताँबा पृथक् किया जा सकता है। विद्युत्धारा के प्रयोग से मैग्नीशियम, सोडियम, लिथियम, पोटैशियम, कैल्सियम, बेरियम आदि धातुएँ, उनके लवण को गलाकर, पृथक् की गई।
अकार्बनिक रसायन के प्रारंभिक युग में धातुओं के जिन यौगिकों को बनाने का विशेष प्रयास किया जाता था, वे ये थे : ऑक्साइड, हाइड्रॉक्साइड, फ्लुओराइड, क्लोराइड, ब्रोमाइड, आयोडाइड, सल्फाइड, सल्फाइट, सल्फेट, थायोसल्फेट, ऐसीटेट, ऑक्सलेट, नाइट्राइड, नाइट्रेट, सावनाइड, कार्बाइड, कार्बोनेट, बाइकार्बोनेट, फॉस्फेट, आर्सिनेट, टंग्स्टेट, मालिब्डेट, यूरेनेट। इन यौगिकों का तैयार करना साधारणतया सरल है। ऑक्साइड या कार्बोनेटों पर उपयुक्त अम्लों की अभिक्रिया से वे बनाए जा सकते हैं। विलेय लवणों के विलयनों में ऋण आयन (ऐनायन) मिलाकर इनमें से कुछ के अवक्षेप लाए जा सकते हैं, यदि ये अवक्षेप्य लवण पानी में अविलेय हों।
अभिक्रियाएँ
[संपादित करें]अकार्बनिक रसायन की अनेक अभिक्रियाएँ चार वर्गो में विभाजित की जाती हैं :
- (१) शिथिलीकरण या उदासीनीकरण अभिक्रिया,
- (२) अवक्षेपण अभिक्रिया,
- (३) अपचयन या अवकरण अभिक्रिया और
- (४) उपचयन या ऑक्सीकरण अभिक्रिया।
अंतिम दो का एक संयुक्त नाम अपचयोपचय या रिडॉक्स (redox) अभिक्रिया भी दिया गया है।
संकुल, या संकीर्ण लवण
[संपादित करें]कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि अवक्षेपक की अधिक मात्रा छोड़ने पर अवक्षेप घुल जाता है। यह विलेय वस्तुत: संकुल आयन बनने के कारण होता है। रजत नाइट्रेट के विलयन में पोटैशियम साइआनाइड का विलयन छोड़ने पर रजत साइआनाइड का अवक्षेप आता है, पर यह अवक्षेप पोटैशियम साइआनाइड और मिलाने पर घुल जाता है।
ताम्र सल्फेट के विलयन में अमोनिया छोड़ने पर पहले तो ताम्र हाइड्रॉक्साइड का अवक्षेप आवेगा, जो अमोनिया के अधिक्य में घुलकर चटक नीला विलयन देगा। इसमें [Cu (N H3)4]++ संकुल आयन बनता है।
कीलेट, या प्रखर यौगिक
[संपादित करें]बहुत से धात्विक आयन कार्बनिक अभिकर्मकों के साथ विचित्र यौगिक बनाते हैं, जिनमें संयोजकताएँ नखर, या चील के पंजों, के समान अणुओं को थामे रहती हैं। इन्हें कीलेट (Chelate) या नखर यौगिक कहते हैं।
अकार्बनिक पदार्थों के औद्योगिक उपयोग
[संपादित करें]कुछ अकार्बनिक यौगिक इतनी अधिक व्यापारिक मात्रा में तैयार किए जाते हैं कि इनका नाम हैवी केमिकल्स पड़ गया है। सलफ्यूरिक अम्ल, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल, कॉस्टिक सोडा, सोडियम कार्बोनेट, अमोनियम लवण आदि की गिनती इस वर्ग में है।
हवा के नाइट्रोजन का उपयोग नाइट्रोजन यौगिकों के बनाने में होता है। नाइट्रोजन को ऑक्सीजन के साथ संयुक्त कराके नाइट्रिक ऑक्साइड बनाते हैं, पर अमोनिया के आक्सीकरण द्वारा नाइट्रिक ऑक्साइड बनाना अच्छी विधि है। ऑस्टवाल्ड (Ostwald) ने यह बताया कि प्लैटिनम जाली के पृष्ठ पर, ८००° पर अमोनिया का ऑक्सीकरण होता है। इस नाइट्रिक ऑक्साइड से नाइट्रोजन परॉक्साइड और नाइट्रिक अम्ल एवं नाइट्रेट तैयार कर लेते हैं। यह सफल व्यावसायिक विधि है।
हावर (Haber) ने हवा के नाइट्रोजन से अमोनिया तैयार करने की व्यापारिक विधि १९१३ ई में प्रथ यूरोपीय महायुद्ध के समय निकाली। २५० वायुमंडल दाब पर और ५००°-५५०° ताप पर लाह धातु से उत्प्रेरित होकर, लगभग १०% अभिक्रिया नाइट्रोजन और हाइड्रोजन के संयोग की होती है। अब तो लगभग सभी देशों में अमोनिया और अमोनिया लवण इस विधि से तैयार किए जाते हैं, जिनका विशेष उपयोग खाद के रूप में होता है। नाइट्रोजन का व्यावसायिक उपयोग विस्फोटकों में भी होता है।
सल्फ्यूरिक अम्ल का व्यवसाय संसार के प्रमुखतम व्यवसायों में माना जाता है।
सलफ्यूरिक आदि अम्लों के समान ही क्षारों के निर्माण की भी उपयोगिता है।
अकार्बनिक व्यवसायों में विरंजक चूर्ण का व्यवसाय भी बड़े महत्त्व का है।
सिलिकेटों का उपयोग अब बढ़ता जा रहा है। काच का व्यवसाय तो प्रसिद्ध ही है। सिलिकन और कार्बनिक यौगिकों से बने कुछ यौगिकों का नाम सिलिकोन है। ये मोम से मिलकर बहुत अच्छा स्नेहक (lubricant) और पॉलिश बनाते हैं। ये सूत के धागों को अच्छी चमक देते हैं। इनसे बने रेज़िन विद्युत् अवरोधक होते हैं। सिलिकोन से रबर के समान लचीले पदार्थ भी बनते हैं। अभ्रक नामक प्राकृतिक सिलिकेट अपने विविध गुणों के लिए प्रसिद्ध है।