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मंगल ग्रह

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(मंगल देवता से अनुप्रेषित)
मंगल  ♂
वास्तविक आंकड़ो पर आधारित मंगल की कंप्यूटर-जनित तस्वीर
उपनाम
विशेषण स्थलीय ग्रह
युग J2000
उपसौर२४,९२,०९,३०० कि॰मी॰
(१.६६५८६१ ख॰इ॰)
अपसौर २०,६६,६९,००० कि॰मी॰
(१.३८१४९७ ख॰इ॰)
अर्ध मुख्य अक्ष २२,७९,३९,१०० कि॰मी॰
(१.५२३६७९ ख॰इ॰)
विकेन्द्रता ०.०९३३१५
परिक्रमण काल ६८६.९७१ दिन
१.८८०८ जूलीयन वर्ष
६६८.५९९१ मंगल सौर दिवस[3]
संयुति काल ७७९.९६ दिन
२.१३५ जूलीयन वर्ष
औसत परिक्रमण गति २४.०७७ कि॰मी॰/से॰
औसत अनियमितता १९.३५६४°
झुकाव १.८५०° क्रान्तिवृत्तसे
५.६५° सूर्यकी भूमध्यरेखा से
१.६७° अविकारी सतह से[4]
आरोही ताख का रेखांश ४९.५६२°
उपमन्द कोणांक २८६.५३७°
उपग्रह
भौतिक विशेषताएँ
विषुवतीय त्रिज्या ३,३९६.२ ± ०.१ कि॰मी॰[5]
०.५३३ पृथ्वियां
ध्रुवीय त्रिज्या ३,३७६.२ ± ०.१ कि॰मी॰
०.५३१ पृथ्वियां
सपाटता ०.००५८९ ± ०.०००१५
तल-क्षेत्रफल १४,४७,९८,५०० कि॰मी॰
०.२८४ पृथ्वियां
आयतन १.६३१८×१०११ ;कि॰मी॰
०.१५१ पृथ्वियां
द्रव्यमान ६.४१८५×१०२३ कि.ग्रा.
०.१०७ पृथ्वियां
माध्य घनत्व ३.९३३५ ± ०.०००४ ग्राम/से.मी.
विषुवतीय सतह गुरुत्वाकर्षण३.७११ मीटर/सेकण्ड
०.३७६ ग्राम
पलायन वेग५.०२७ कि॰मी॰/सेकण्ड
नाक्षत्र घूर्णन
काल
१.०२५९५७ दिन
२४.६२२९ घन्टे
विषुवतीय घूर्णन वेग ८६८.२२ कि॰मी॰/घंटा
(२४१.१७ मी./सेकण्ड)
अक्षीय नमन २५.१९°
उत्तरी ध्रुव दायां अधिरोहण ३१७.६८१४३°
२१ घंटा १० मीनट४४ सेकण्ड
उत्तरी ध्रुवअवनमन ५२.८८६ ५०°
अल्बेडो०.२५ (Bond)
०.१७० (geom.)
सतह का तापमान
   कैल्विन
   सेल्सियस
न्यूनमाध्यअधि
१८६ के.२१० के.२९३ के.
−८७°से.−६३°से.२०°से.
सापेक्ष कांतिमान +१.६ से -३.३
कोणीय व्यास ३.५" — २५.१"
वायु-मंडल
सतह पर दाब ०.६३६ (०.४–०.८७)किलो पास्कल
संघटन
(मोलभिन्न)
९५.३२%कार्बन डाईऑक्साइड
२.७%नाइट्रोजन
१.६%ऑर्गन
०.१३%ऑक्सीजन
०.०८%कार्बन मोनोऑक्साइड
२१० पीपीएम जल वाष्प
१०० पीपीएमनाइट्रिक ऑक्साइड
१५ पीपीएम आणविक हाइड्रोजन
२.५ पीपीएम नियॉन
८५० पीपीबीभारी जल
३०० पीपीबी क्रेप्टोंन
१३० पीपीबीफोर्मेल्डेहाईड
८० पीपीबीज़ेनान
३० पीपीबीओजोन
१८ पीपीबी हाइड्रोजन पराक्साईड
१० पीपीबीमीथेन

मंगल गृह (प्रतीक: ♂) सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। इसके तल की आभा रक्तिम है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनका तल आभासीय होता है और "गैसीय ग्रह" जो अधिकतर गैस से निर्मित हैं। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। सौरमंडल का सबसे अधिक ऊँचा पर्वत, ओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है। साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस भी यहीं पर स्थित है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र पृथ्वी के समान हैं। इस ग्रह पर जीवन होने की संभावना को हमेशा से परिकल्पित किया गया है।

1965 में मेरिनर ४ के द्वारा की पहली मंगल उडान से पहले तक यह माना जाता था कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था में जल हो सकता है। यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आवर्तिक सूचनाओं पर आधारित था विशेष तौर पर, ध्रुवीय अक्षांशों, जो लंबे होने पर समुद्र और महाद्वीपों की तरह दिखते हैं, काले striations की व्याख्या कुछ प्रेक्षकों द्वारा पानी की सिंचाई नहरों के रूप में की गयी है। इन् सीधी रेखाओं की मौजूदगी बाद में सिद्ध नहीं हो पायी और ये माना गया कि ये रेखायें मात्र प्रकाशीय भ्रम के अलावा कुछ और नहीं हैं। फिर भी, सौर मंडल के सभी ग्रहों में पृथ्वी के अलावा, मंगल को जीवन विस्तार का महत्वपूर्ण विकल्प माना जाता है।


वर्तमान में मंगल ग्रह की परिक्रमा तीन कार्यशील अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और टोही मार्स ओर्बिटर है, यह सौर मंडल में पृथ्वी को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। मंगल पर दो अन्वेषण रोवर्स (स्पिरिट और् ओप्रुच्युनिटी), लैंडर फ़ीनिक्स, के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर हैं जो या तो असफल हो गये हैं या उनका अभियान पूरा हो गया है। इनके या इनके पूर्ववर्ती अभियानो द्वारा जुटाये गये भूवैज्ञानिक सबूत इस ओर इंगित करते हैं कि कभी मंगल ग्रह पर बडे़ पैमाने पर पानी की उपस्थिति थी साथ ही इन्होने ये संकेत भी दिये हैं कि हाल के वर्षों में छोटे गर्म पानी के फव्वारे यहाँ फूटे हैं। नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर की खोजों द्वारा इस बात के प्रमाण मिले हैं कि दक्षिणी ध्रुवीय बर्फीली चोटियाँ घट रही हैं। नासा ने २०२० में में परसेवरेंस रोवर मंगल पर भेजा है जिसके साथ इनसाइट लघु वायूविमान की प्रथम परग्रही उड़ान के लिए तत्पर है, इसके शुरुआती २०२१ में मंगल पर पहुंचने की संभावना है।

मंगल के दो चन्द्रमा, फो़बोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के समान, क्षुद्रग्रह है जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहाँ फंस गये होंगे। मंगल को पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है। इसका आभासी परिमाण -2.9 तक पहुँच सकता है और यह् चमक सिर्फ शुक्र, चन्द्रमा और सूर्य के द्वारा ही पार की जा सकती है, यद्यपि अधिकांश समय बृहस्पति, मंगल की तुलना में नंगी आँखों को अधिक उज्जवल दिखाई देता है।

भौतिक विशेषताएं

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पृथ्वी की मंगल से तुलना
मंगल-चलचित्र (00:40)

मंगल, पृथ्वी के व्यास का लगभग आधा है। यह पृथ्वी से कम घना है, इसके पास पृथ्वी का १५ % आयतन और ११ % द्रव्यमान है। इसका सतही क्षेत्रफल, पृथ्वी की कुल शुष्क भूमि से केवल थोड़ा सा कम है।[6] हालांकि मंगल, बुध से बड़ा और अधिक भारी है पर बुध की सघनता ज्यादा है। फलस्वरूप दोनों ग्रहों का सतही गुरुत्वीय खिंचाव लगभग एक समान है। मंगल ग्रह की सतह का लाल- नारंगी रंग लौह आक्साइड (फेरिक आक्साइड) के कारण है, जिसे सामान्यतः हैमेटाईट या जंग के रूप में जाना जाता है।[7] यह बटरस्कॉच भी दिख सकता है,[8] तथा अन्य आम सतह रंग, भूरा, सुनहरा और हरे शामिल करते है जो कि खनिजों पर आधारित होता है।[8]

भूविज्ञान

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मंगल एक स्थलीय ग्रह है जो सिलिकॉन और ऑक्सीजन युक्त खनिज, धातु और अन्य तत्वों को शामिल करता है जो आम तौर पर उपरी चट्टान बनाते है। मंगल ग्रह की सतह मुख्यतः थोलेईटिक बेसाल्ट की बनी है, हालांकि यह हिस्से प्रारूपिक बेसाल्ट से अधिक सिलिका-संपन्न हैं और पृथ्वी पर मौजूद एन्डेसिटीक चट्टानों या सिलिका ग्लास(कांच) के समान हो सकते है। निम्न एल्बिडो के क्षेत्र प्लेजिओक्लेस स्फतीय का सांद्रण दर्शाते है, उत्तरी निम्न एल्बिडो क्षेत्रों के साथ परतदार सिलिकेट और उच्च सिलिकॉन ग्लास, सामान्य की तुलना में अधिक सांद्रता प्रदर्शित करते है। दक्षिणी उच्चभूमि के हिस्से पता लगाने योग्य मात्रा में उच्च- कैल्शियम पायरोक्सिन शामिल करते है। हेमेटाईट और ओलीविन की स्थानीयकृत सांद्रता भी पायी गई है।[9] अधिकतर सतह लौह ऑक्साइड धूल के बारीक कणों द्वारा गहराई तक ढंकी हुई है।[10][11]

पृथ्वी की तरह, यह ग्रह भी भिन्नता (planetary differentiation) से गुजरा है, परिणामस्वरूप सघनता में, धातु कोर क्षेत्र, कम घने पदार्थों द्वारा लदा रहता है।[12] ग्रह के भीतर के मौजूदा मॉडल, लगभग १७९४ ± ६५ कि॰मी॰ त्रिज्या में एक कोर क्षेत्र दर्शातें है, जो मुख्य रूप से लौह और १६-१७ % सल्फर युक्त निकल से बना है।[13] यह लौह सल्फाइड कोर आंशिक रूप से तरल पदार्थ है और इसके हल्के तत्वों का सांद्रण पृथ्वी के कोर पर मौजूद तत्वों से दुगुना है। कोर एक सिलिकेट मेंटल से घिरा हुआ है,जिसने ग्रह पर कई विवर्तनिक और ज्वालामुखीय आकृतियों को रचा है, लेकिन अब निष्क्रिय हो गया लगता है। सिलिकॉन और ऑक्सीजन के अलावा, मंगल की पर्पटी में बहुतायत में पाए जाने वाले तत्व लोहा, मैग्नेशियम, एल्युमिनियम, कैल्सियम और पोटेशियम है। १२५ कि॰मी॰ की अधिकतम मोटाई के साथ, ग्रह की पर्पटी की औसत मोटाई लगभग ५० कि॰मी॰ है।[14] दोनों ग्रहों के आकार के सापेक्ष, पृथ्वी पर्पटी का औसत ४० कि॰मी॰ है, जो मंगल पर्पटी की मोटाई का केवल एक तिहाई है।

यद्यपि मंगल ग्रह पर वर्तमान ढांचागत वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र के कोई सबूत नहीं है,[15] अवलोकन दर्शाते है कि ग्रह के भूपटल के कुछ हिस्से चुम्बकित किये गए है और इसके द्विध्रुव क्षेत्र का यह क्रमिक ध्रुवीकरण उलटाव अतीत में पाया गया है। चुम्बकीय अध्ययन से प्राप्त चुंबकीयकृत अतिसंवेदनशील खनिजों के गुण, काफी हद तक पृथ्वी के समुद्र तल पर पाए जाने वाली क्रमिक पट्टियों के समान है। एक सिद्धांत, १९९९ में प्रकाशित हुआ और अक्टूबर २००५ में फिर से जांचा गया (मार्स ग्लोबल सर्वेयर की मदद के साथ), वह यह है कि यह पट्टियां चार अरब वर्षों पहले के मंगल ग्रह पर प्लेट विवर्तनिकी प्रदर्शित करती है, इससे पहले ग्रहीय चुम्बकीय तंत्र ने कार्य करना बंद कर दिया और इस ग्रह का चुम्बकीय क्षेत्र मुरझा गया।[16]

सौर प्रणाली निर्माण के दौरान, मंगल की रचना एक प्रसंभाव्य प्रक्रिया के परिणामस्वरूप हुई थी। सौर प्रणाली में अपनी स्थिति की वजह से मंगल की कई विशिष्ट रासायनिक विशेषताएं है। अपेक्षाकृत निम्न क्वथनांक बिन्दुओं के साथ के तत्व, जैसे क्लोरीन, फास्फोरस और सल्फर, मंगल ग्रह पर पृथ्वी की तुलना में अधिक आम हैं; यह तत्व संभाव्यतया नवीकृत तारों की उर्जायुक्त सौर वायु द्वारा सूर्य के नजदीकी क्षेत्रों से हटा दिए गए थे।[17]

ग्रहों के गठन के बाद, सभी तथाकथित ' 'आदि भीषण बमबारी' ' (LHB) के अधीन रहे थे। मंगल की लगभग ६०% सतह उस युग से आघातों का एक रिकार्ड दर्शाता है,[18][19][20] जबकि शेष सतह का ज्यादातर हिस्सा शायद उन घटनाओं की वजह से बनी अत्याघात घाटियों द्वारा नीचे कर दिया गया है। मंगल के उत्तरी गोलार्द्ध में एक भारी संघात घाटी का प्रमाण है, जो १०,६०० कि॰मी॰ गुणा ८,५०० कि॰मी॰ में फैली, या करीबन चंद्रमा की दक्षिण ध्रुव—ऐटकेन घाटी से चार गुना बड़ी, अब तक की खोजी गई सबसे बड़ी संघात घाटी है।[21][22] यह सिद्धांत सुझाव देता है कि लगभग चार अरब वर्ष पहले मंगल ग्रह प्लूटो आकार के पिंड द्वारा मारा गया था। यह घटना, मंगल का अर्धगोलार्ध विरोधाभास, का कारण मानी जाती है, जिसने सपाट बोरेलिस घाटी रची जो कि ग्रह का ४०% हिस्सा समाविष्ट करती है।[23][24]

मंगल ग्रह के भूवैज्ञानिक इतिहास को कई अवधियों में विभाजित किया जा सकता है, लेकिन निम्नलिखित तीन प्राथमिक अवधियां हैं:[25][26]

मंगल ग्रह की यह चट्टान मार्स साइंस लेबोरेटरी के लिए अपना नीला-भूरा आंतरिक ढांचा उजागर करता हुआI[27]
  • नोएचियन काल (नोएचिस टेरा पर से नामित), आज से ४.५ अरब वर्ष पूर्व से लेकर ३.५ अरब वर्ष पूर्व तक की एक अवधि है, इसके दरम्यान मंगल ग्रह के सबसे पुराने मौजूदा सतहों का गठन हुआ था। नोएचियन आयु की सतहें कई बड़े संघात क्रेटरों द्वारा दिए जख्मों से दागदार है। थर्सिस उभार, एक ज्वालामुखीय उच्चभूमि है, जो तरल पानी द्वारा व्यापक बाढ़ के साथ, इस काल के दौरान बनी गई समझी जाती है।
  • हेस्पेरियन काल (हेस्पेरिया प्लैनम पर से नामित), ३.५ अरब वर्ष पूर्व से लेकर २.९—३.३ अरब वर्ष पूर्व तक की अवधि है, यह काल व्यापक लावा मैदानों के गठन द्वारा चिह्नित है।
  • अमेजोनियन काल (अमेजोनिस प्लेनिसिया पर से नामित), २.९—३.३ अरब वर्ष पूर्व से वर्तमान तक की अवधि है, अमेजोनियन क्षेत्रों के कुछ उल्का संघात क्रेटर है, लेकिन अन्यथा काफी विविध है। ओलम्पस मोन्स इसी अवधि के दौरान बना था।

कुछ भूवैज्ञानिक गतिविधि अभी भी मंगल पर जारी है, अथाबास्का वैलेस पत्तर-सदृश्य लावा प्रवाहों के लिए लगभग २ अरब वर्ष पूर्व तक का बसेरा है।[28] १९ फ़रवरी २००८ की मंगल टोही परिक्रमा यान की तस्वीरें ७०० मीटर ऊंची चट्टान से एक हिमस्खलन का प्रमाण दर्शाती है।[29]

Annotated image of Tharsis Tholus dark streak, as seen by Hirise. It is located in the middle left of this picture. Tharsis Tholus is just off to the right.

फीनिक्स लैंडर के वापसी आंकड़े मंगल की मिट्टी को थोड़ा क्षारीय होना दर्शा रही है तथा मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम और क्लोराइड जैसे तत्वों को सम्मिलित करती है। यह पोषक तत्व पृथ्वी पर हरियाली में पाए जाते हैं एवं पौधों के विकास के लिए आवश्यक हैं।[30] लैंडर द्वारा प्रदर्शित प्रयोगों ने दर्शाया है कि मंगल की मिट्टी की एक ८.३ की क्षारीय pH है तथा लवण परक्लोरेट के अंश सम्मिलित कर सकते है।[31][32]

धारियाँ मंगल ग्रह भर में आम हैं एवं मांदों, घाटियों और क्रेटरों की खड़ी ढलानों पर अनेकों नई अक्सर दिखाई देती हैं। यह धारियाँ पहले स्याह होती है और उम्र के साथ हल्की होती जाती है। कभी कभी धारियाँ एक छोटे से क्षेत्र में शुरू होती हैं जो फिर सैकड़ों मीटरों तक बाहर फैलती जाती है। वे पत्थरों के किनारों और अपने रास्ते में अन्य बाधाओं का अनुसरण करते भी देखी गई है। सामान्य रूप से स्वीकार किये सिद्धांत इन बातों को शामिल करते है कि वे मिटटी की सतहों में गहरी अंतर्निहित रही है जो उज्ज्वल धूल के भूस्खलनों के बाद प्रकट हुई।[33] कई स्पष्टीकरण सामने रख दिए गए, जिनमें से कुछ पानी या जीवों की वृद्धि भी शामिल करते है।[34][35]

जलविज्ञान

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ओपोर्च्युनिटी रोवर द्वारा ली गई एक सूक्ष्मदर्शी तस्वीर, तरल जल की पूर्व मौजूदगी के संकेत युक्त एक धूसर हैमेटाईट पथरी दिखा रहा है

निम्न वायुमंडलीय दाब के कारण मंगल की सतह पर तरल जल मौजूद नहीं है,निम्न उच्चतांशों पर अल्प काल के आलावा।[36][37] दो ध्रुवीय बर्फीली चोटियां मोटे तौर पर जल से बनी हुई नजर आती हैं। दक्षिण ध्रुवीय बर्फीली चोटी में जलीय बर्फ की मात्रा, अगर पिघल जाये, तो इतनी पर्याप्त है कि समूची ग्रहीय सतह को ११ मीटर गहरे तक ढँक देगा।[38]

जलीय बर्फ की विशाल मात्रा मंगल के मोटे क्रायोस्फेयर के नीचे फंसी हुई होना मानी गयी हैं। मार्स एक्सप्रेस और मंगल टोही परिक्रमा यान से प्रेषित रडार आंकड़े दोनों ध्रुवों (जुलाई 2005)[39][40] और मध्य अक्षांशों (नवंबर 2008) पर जलीय बर्फ की बड़ी मात्रा दर्शाते है।[41] ३१ जुलाई २००८ को फीनिक्स लैंडर ने मंगल की उथली मिट्टी में जलीय बर्फ की सीधी जांच की।[42]

मंगल की दृश्य भूरचनाएँ दृढ़ता से बताती है कि इस ग्रह की सतह पर कम से कम किसी समय तरल जल विद्यमान रहा है।

ध्रुवीय टोपियां

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१९९९ में मंगल की उत्तरी बर्फ टोपी I
२००० में मंगल की दक्षिण ध्रुवीय टोपी I

मंगल की दो स्थायी ध्रुवीय बर्फ टोपियां है। ध्रुव की सर्दियों के दौरान, यह लगातार अंधेरे में रहती है, सतह को जमा देती है और CO2 बर्फ (शुष्क बर्फ) की परतों में से वायुमंडल के २५-३० % के निक्षेपण का कारण होती है।[43] जब ध्रुव फिर से सूर्य प्रकाश से उजागर होते है, जमी हुई CO2 का उर्ध्वपातन होता है, जबरदस्त हवाओं का निर्माण होता है जो ध्रुवों को ४०० कि॰मी॰/घंटे की रफ़्तार से झाड़ देती है। ये मौसमी कार्रवाईयां बड़ी मात्रा में धूल और जल वाष्प का परिवहन करती है, जो पृथ्वी की तरह तुषार और बड़े बादलों को जन्म देती है। २००४ में ओपोर्च्युनिटी द्वारा जल-बर्फ के बादलों का छायांकन किया गया था। [44]

दोनों ध्रुवों पर ध्रुवीय टोपियां मुख्यतः जल-बर्फ की बनी है। जमी हुई कार्बन डाइऑक्साइड केवल उत्तरी सर्दियों में उत्तर टोपी पर लगभग एक मीटर की एक अपेक्षाकृत मोटी परत के रूप में इकट्ठी होती है, जबकि दक्षिण टोपी लगभग आठ मीटर की मोटी शुष्क बर्फ से स्थायी रूप से ढंकी होती है।[45] मंगल की उत्तरी गर्मियों के दौरान उत्तरी ध्रुवीय टोपी का व्यास १.००० कि॰मी॰ के करीब होता है,[46] और लगभग १६ लाख घन कि॰मी॰ की बर्फ शामिल करती है, जो अगर टोपी पर समान रूप से फैल जाए तो २ कि॰मी॰ की मोटी होगी[47] (यह ग्रीनलैंड बर्फ चादर की २८.५ लाख घन कि॰मी॰ की मात्रा के तुल्य है), दक्षिणी ध्रुवीय टोपी का व्यास ३५० कि॰मी॰ और मोटाई ३ कि॰मी॰ है।[48] दक्षिण ध्रुवीय टोपी और समीपवर्ती स्तरित निक्षेपों में बर्फ की कुल मात्रा का अनुमान १६ लाख घन कि॰मी॰ का लगाया गया है।[49] दोनों ध्रुवीय टोपियां सर्पिल गर्ते प्रदर्शित करती हैं, जिसे हाल के बर्फ भेदन रडार शरद (मंगल का उथला रडार ध्वनी यंत्र (SHARAD)) के विश्लेषण ने दिखाया है, यह अधोगामी हवाओं का एक परिणाम हैं और कोरिओलिस प्रभाव (Coriolis Effect) के कारण सर्पिल हैं।[50][51]

दक्षिणी बर्फ टोपी के पास के कुछ इलाकों के मौसमी तुषाराच्छादन का परिणाम, जमीन के ऊपर शुष्क बर्फ की १ मीटर मोटी पारदर्शी परत के निर्माण के रूप में होता है। बसंत के आगमन के साथ, धूप उपसतह को तप्त के देती है और वाष्पीकृत CO2 परत के नीचे से दबाव बनाती है, ऊपर उठती है और अंततः इसको तोड़ देती है। यह प्रक्रिया काली बेसाल्टी रेत या धूल के साथ मिश्रित CO2 के गीजर-सदृश्य विष्फोट का नेतृत्व करती है। यह प्रक्रिया तेज होती है, कुछ दिनों, सप्ताहों या महीनों के लिए अंतरिक्ष में घटित होते देखी गई है, बल्कि भूविज्ञान में असामान्य परिवर्तन की एक दर है—विशेष रूप से मंगल के लिए। गीजर के स्थान पर परत के नीचे की गैस तेजी से दौड़ती है जो बर्फ के अन्दर त्रिज्यीय वाहिकाओं की एक मकड़ी जैसी आकृति को तराशती है।[52][53][54][55] नासा ने खोज द्वारा में पाया की मंगल ग्रह पर पानी पाया जाता है।[उद्धरण चाहिए]

मंगल के स्थलाकृतिक नक्शे पर हावी, ज्वालामुखी पठार (लाल) और आघात घाटियां (नीली)

हालांकि जोहान हेनरिच मैडलर और विलहेम बियर को चंद्रमा के मानचित्रण के लिए बेहतर ढंग से याद किया जाता है, जो कि पहले "हवाई फोटोग्राफर" थे। मंगल की अधिकतर सतही आकृतियां स्थायी थी, उन्होंने इसकी नींव रखना शुरू किया और ग्रह की घूर्णन अवधि का और बारीकी से निर्धारण किया। १८४० में, मैडलर ने दस वर्षों के संयुक्त अवलोकनों के बाद मंगल का पहला नक्शा खींचा। मैडलर और बियर ने विभिन्न स्थलाकृतियों को नाम देने की बजाय उन्हें सरलता से अक्षरों के साथ निर्दिष्ट किया; इस प्रकार मेरिडियन खाड़ी (सिनस मेरिडियन) थी आकृति "a"।[56]

आज, मंगल की आकृतियों के नाम विविध स्रोतों पर से रखे गए है। एल्बिडो आकृतियां शास्त्रीय पौराणिक कथाओं पर से नामित है। ६० कि॰मी॰ (३७ मिल) से बड़े क्रेटर, दिवंगत वैज्ञानिकों या लेखकों या अन्य जिन्होंने मंगल के अध्ययन के लिए योगदान दिया है, पर से नामित है। ६० कि॰मी॰ से छोटे क्रेटरों के नाम विश्व के उन शहरों और गाँवों पर से है जिनकी आबादी एक लाख से कम है। बड़ी घाटियों के नाम विभिन्न भाषाओं में सितारों के नाम पर से और इसी तरह छोटी घाटियों के नाम नदियों पर से है।[57]

बड़ी एल्बिडो आकृतियों को अनेक पुराने नामों पर ही रहने दिया गया है, लेकिन प्रायः आकृतियों की प्रकृति की नई जानकारी के हिसाब से इन्हें हटाकर इनका नवीकरण कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, निक्स ओलाम्पिका ("ओलम्पस की बर्फ") हो गया ओलम्पस मोन्स (माउंट ओलम्पस)।[58] मंगल की सतह को भिन्न एल्बिडो के साथ दो प्रकार के क्षेत्रों में विभाजित किया गया है (जिस रूप में इसे पृथ्वी से देखा गया)। रक्तिम लौह आक्साइड से समृद्ध बालू और धूल से आच्छादित मैदानों को अरेबिया टेरा (अरब की भूमि) या अमेज़ोनिस प्लेनेसिया (अमेज़न का मैदान) नाम दिया गया। इन मैदानों को कभी मंगल के 'महाद्वीपों' के जैसा समझा जाता था। श्याम आकृतियों को समुद्र होना समझा जाता था, इसलिए उनके नाम मेयर एरीथ्रेयम, मेयर सिरेनम और औरोरा सिनस है। पृथ्वी पर से देखी गई सबसे बड़ी श्याम आकृति सायर्टिस मेजर प्लैनम है।[59] स्थायी उत्तरी ध्रुवीय बर्फ टोपी प्लैनम बोरेयम के नाम पर है, जबकि दक्षिणी टोपी को प्लैनम ऑस्ट्राले कहा जाता है।

मंगल का विषुववृत्त इसके घूर्णन द्वारा परिभाषित है, लेकिन इसकी प्रमुख मध्याह्न रेखा को एक मनमाने बिंदु के चुनाव द्वारा निर्धारित किया गया था, ठीक उसी तरह जैसे पृथ्वी का ग्रीनविच; मैडलर और बियर ने १८३० में मंगल के अपने पहले नक्शे के लिए एक रेखा का चयन किया था। १९७२ में अंतरिक्ष यान मेरिनर ९ की पहुँच ने मंगल के व्यापक चित्रण प्रदान किये, उसके बाद सिनस मेरिडियन ("मध्य खाड़ी" या "मेरिडियन खाड़ी") में स्थित एक छोटे से क्रेटर (अब आइरी-शून्य कहा जाता है) को मूल चुनाव के साथ मेल के लिए ०.०° देशांतर की परिभाषा के लिए चुना गया था।[60]

चूँकि मंगल पर महासागर नहीं है, इसलिए कोई 'समुद्र स्तर' भी नहीं है और एक शून्य-उन्नतांश सतह को संदर्भ के स्तर के रूप में भी चयनित किया जाना था; इसे मंगल का एरोइड (areoid) भी कहा जाता है,[61] ठीक स्थलीय जियोइड (Geoid) के अनुरूप। शून्य उच्चतांश को उस उंचाई द्वारा परिभाषित किया गया है जहां पर ६१०.५ पास्कल (६.१०५ मिलीबार) का वायुमंडलीय दबाव है।[62] यह दबाव जल के त्रिक बिन्दु से मेल खाता है और पृथ्वी पर समुद्र स्तर के सतही दबाव (०.००६ एटीएम) का लगभग ०.६% है।[63] अभ्यास में, आज इस सतह को सीधे उपग्रह गुरुत्वाकर्षण मापों से परिभाषित किया गया है।

मंगल अन्वेषण रोवर ओपोर्च्युनिटी से ली गई एक लगभग शुद्ध-रंग छवि, केप वेर्ड़े से विक्टोरिया क्रेटर का दृश्य दिखाते हुए, यह तीन हफ़्तों से ज्यादा की अवधि में खिंची गई थी, १६ अक्टूबर से ६ नवम्बर २००६.

चतुष्कोणों का नक्शा

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मंगल ग्रह की तस्वीरों के निम्न नक्शे संयुक्त राज्य भूगर्भ सर्वेक्षण द्वारा परिभाषित 30 चतुष्कोणों में विभाजित है।[64][65] यह चतुष्कोण "मंगल ग्रह चार्ट" के लिए उपसर्ग "MC" के साथ क्रमांकित हैं।[66] चतुष्कोण पर क्लिक करें और आप इसी लेख के पृष्ठों पर ले जाए जाएंगे। उत्तर दिशा शीर्ष पर है,0°N 180°W / 0°N 180°W / 0; -180 भूमध्य रेखा के एकदम बांये है। नक्शों की तस्वीरें मार्स ग्लोबल सर्वेयर द्वारा ली गई थी।



आघात स्थलाकृति

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मंगल ग्रह की द्विभाजन स्थलाकृति असाधारण है: उत्तरी मैदान लावा प्रवाहों द्वारा चपटे है, इसके विपरीत दक्षिणी उच्चभूमि, गड्ढों और प्राचीन आघातों द्वारा दागदार है। २००८ के अनुसंधान ने १९८० की अभिधारणा में प्रस्तावित एक सिद्धांत कि, चार अरब वर्ष पहले, चन्द्रमा के आकार के एक-दहाई से दो-तिहाई की एक चीज ने मंगल ग्रह के उत्तरी गोलार्द्ध को दे मारा था, के सम्बन्ध में साक्ष्य प्रस्तुत किया। यदि मान्य है, इसने मंगल के उत्तरी गोलार्द्ध को बनाया होगा, यह स्थल एक अघात से बना १०,६०० कि॰मी॰ लंबा और ८,५०० कि॰मी॰ चौड़ा गड्ढा है, जो मोटे तौर पर यूरोप, एशिया और आस्र्टेलिया के संयुक्त क्षेत्रफल जितना है, आश्चर्यजनक रूप से दक्षिण ध्रुव-ऐटकेन घाटी आघात गढ्ढे के रूप में सौरमंडल में सबसे बड़ी है।[21][22]

मंगल अनेक संख्या के आघात गड्ढो के जख्मों से अटा पड़ा है, ५ कि॰मी॰ या इससे अधिक व्यास के कुल ४३,००० गड्ढे पाए गए है।[67] निश्चित ही इनमे से सबसे बड़ा है हेलास आघात घाटी, एक फीकी धवल आकृति जो पृथ्वी से नजर आती है।[68] मंगल के अपेक्षाकृत छोटे द्रव्यमान के कारण इस ग्रह के साथ किसी वस्तु के टकराने की संभावना पृथ्वी की तुलना में आधी है। मंगल की स्थिति क्षुद्रग्रह पट्टे के करीब है, इसीलिए उस स्रोत से मलबे द्वारा प्रहार होने की संभावना की वृद्धि हुई है। मंगल पर इसी तरह के प्रहार होने की संभावना उन लघु-अवधि धूमकेतुओं के द्वारा और अधिक है, जो कि बृहस्पति की कक्षा के भीतर मौजूद है।[69] इन सबके बावजूद, मंगल पर अब तक चंद्रमा की तुलना में कम गड्ढे हैं क्योंकि मंगल का वायुमंडल छोटी उल्काओं के प्रहार खिलाफ ग्रह को संरक्षण प्रदान करता है। कुछ गड्ढो की आकारिकी ऐसी है कि वह उल्का प्रहार हो जाने के बाद जमीन में नमी होने का सुझाव देती है।[70]

विवर्तनिक स्थल

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शीर्ष से ओलम्पस मोन्स के शिखर का दृश्य, सौरमंडल में ज्ञात सर्वोच्च पर्वत.

ओलम्पस मोन्स (ओलम्पस पर्वत), एक २७ कि॰मी॰ का ढाल ज्वालामुखी है जो सौरमंडल में सबसे बड़ा ज्ञात पर्वत है।[71] यह विशाल उच्चभूमि क्षेत्र थर्सिस (Tharsis) में एक विलुप्त ज्वालामुखी है, जो अन्य कई बड़े जवालामुखीयों को शामिल करता है। ओलम्पस मोन्स, ८.८ कि॰मी॰ ऊँचे माउंट एवरेस्ट से तीन गुना से भी ज्यादा उंचा है।[72]

एक बड़ी घाटी, वैल्स मेरिनेरिस की लम्बाई ४,००० कि॰मी॰ और गहराई ७ कि॰मी॰ तक है। वैल्स मेरिनेरिस की लंबाई यूरोप की लंबाई के बराबर है तथा यह आरपार मंगल की परिधि के पांचवें भाग जितना फैला हुआ है। तुलना के लिए, पृथ्वी पर ग्रांड घाटी मात्र ४४६ कि॰मी॰ लम्बी और करीबन २ कि॰मी॰ गहरी है। वैल्स मेरिनेरिस, थर्सिस क्षेत्र के फुलाव की वजह से बना था जो वाल्लेस मेरिनेरिस के क्षेत्र में पर्पटी के पतन का कारण है। एक और बड़ी घाटी मा'अडिम वैलिस (हिब्रू में मंगल ग्रह के लिए मा'अडिम शब्द है) है। यह ७०० किमी लंबी और फिर से कुछ स्थानों में २० किमी की चौड़ाई और २ किमी की गहराई के साथ ग्रांड घाटी से बहुत बड़ी है। इसकी संभावना है कि मा'अडिम वैलिस पूर्व में तरल पानी से जलमग्न थी।[73]

मंगल की गुफा के प्रवेश द्वार की थीमिस छवि के संभावित अनौपचारिक नाम है: (A) डेना, (B) क्लोए, (C) वेन्डी, (D) एनी, (E) ऐबी (बाएं) और निक्की और (F) जेंने.

नासा के मार्स ओडिसी यान ने अपने तापीय उत्सर्जन छविअंकन प्रणाली (THEMIS) से प्राप्त छवियों की सहायता से अर्सिया मॉन्स ज्वालामुखी के किनारे पर गुफा के सात संभावित प्रवेश द्वारों का पता लगाया है।[74] इन गुफाओं के नाम उनके खोजकर्ता के प्रियजनों पर रखे गए है, सामूहिक तौर पर इन्हें ' 'सात बहनों' ' के रूप में जाना जाता है।[75] गुफा के मुहाने की चौड़ाई १०० मीटर से २५२ मीटर तक मापी गई है और इसकी गहराई ७३ मीटर से ९६ मीटर तक होना मानी गयी है। चूँकि अधिकाँश गुफाओं की फर्श तक रोशनी पहुँच नहीं पाती है, यह संभावना है कि वे इन कम अनुमान की तुलना से विस्तार में कहीं ज्यादा गहरी और सतह के नीचे चौड़ी हो। ' ' डेना' ' एकमात्र अपवाद है, इसका तल दृश्यमान है और गहराई १३० मीटर मापी गई थी। इन कंदराओं के भीतरी भाग, सूक्ष्म उल्कापात, पराबैगनी विकिरण, सौर ज्वालाओं और उच्च ऊर्जा कणों से संरक्षित रहे हो सकते है जो ग्रह की सतह पर बमबारी करते है।[76]

वायुमंडल

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निम्न-कक्षा छवि में मंगल का कमजोर वातावरण क्षितिज पर दिखाई पड़ रहा है

मंगल ने अपना मेग्नेटोस्फेयर ४ अरब वर्ष पहले खो दिया है,[77] इसीलिए सौर वायु मंगल के आयनमंडल के साथ सीधे संपर्क करती है, जिससे उपरी परत से परमाणुओं के बिखरकर दूर होने से वायुमंडलीय सघनता कम हो रही है। मार्स ग्लोबल सर्वेयर और मार्स एक्सप्रेस दोनों ने इस आयानित वायुमंडलीय कणों का पता लगाया है जो अंतरिक्ष में मंगल के पीछे फ़ैल रहे हैं।[77][78] पृथ्वी की तुलना में, मंगल ग्रह का वातावरण काफी विरल है। सतही स्तर पर ६०० Pa (०.६० kPa) के औसत दबाव के साथ, सतह पर वायुमंडलीय दाब का विस्तार, ओलम्पस मोन्स पर ३० Pa (०.०३० kPa) निम्न से हेल्लास प्लेनिसिया में १,१५५ Pa (१ .१५५ kPa) के ऊपर तक है।[79] अपने सबसे मोटाई पर मंगल का सतही दबाव, पृथ्वी की सतह से ३५ कि॰मी॰ ऊपर पाए जाने वाले दबाव के बराबर है।[80] यह पृथ्वी के सतही दबाव से १% कम है (१०१.३ kPa)। वायुमंडल का स्केल हाईट लगभग १०.८ कि॰मी॰ है,[81] जो कि पृथ्वी पर से (६ कि॰मी॰) उंचा है क्योंकि मंगल का सतही गुरुत्व पृथ्वी के सतही गुरुत्व से केवल ३८% है, इस प्रभाव की भरपाई मंगल के वातावरण के ५०% से अधिक औसत आणविक भार और कम तापमान द्वारा की जाती है।

मंगल का वायुमंडल ९५% कार्बन डाइऑक्साइड, ३% नाइट्रोजन, १.६% आर्गन से बना हैं और ऑक्सीजन और पानी के निशान शामिल हैं।[6] वातावरण काफी धूल युक्त है, जो मंगल के आसमान को एक गहरा पीला रंग देता है जैसा सतह से देखा गया।[82]

मीथेन का नक्शा

मंगल के वातावरण में मीथेन का पता ३० पीपीबी की मोल भिन्नता के साथ लगाया गया है;[83][84] यह विस्तारित पंखों में पाई जाती है और रूपरेखा बताती है कि मीथेन असतत क्षेत्रों से जारी की गई थी। उत्तरी मध्य ग्रीष्म में, प्रधान पंख १९,००० मीट्रिक टन मीथेन शामिल करती है, ०.६ किलोग्राम प्रति सेकंड की एक शक्तिशाली स्रोत के साथ।[85][86] रूपरेखा सुझाव देती है कि वहां दो स्थानीय स्रोत क्षेत्र हो सकते है, पहला ३०° उत्तर,२६०° पश्चिम के नजदीकी केंद्र और दूसरा ०°, ३१०° पश्चिम के नजदीक।[85] यह अनुमान है कि मंगल २७० टन / वर्ष मीथेन उत्पादित करता है।[85][87]

गर्भित मीथेन के विनाश का जीवनकाल लम्बे से लंबा ४ पृथ्वी वर्ष और छोटे से छोटा ०.६ पृथ्वी वर्ष हो सकता है।[85][88] ज्वालामुखी गतिविधि, धूमकेतु संघातों और मीथेन पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवी जीवन रूपों की उपस्थिति, संभव स्रोतों के बीच हैं। मीथेन एक गैर-जैविक प्रक्रिया द्वारा भी पैदा हो सकी है जिसे सर्पेंटाइनीजेसन कहा जाता है, जो पानी, कार्बन डाईआक्साइड और उस ओलिविन खनिज को शामिल करता है, जिसे मंगल पर आम होना माना जाता है।[89]

मंगल ग्रह हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी से २८ अक्टूबर २००५, दृश्य धूल तूफान के साथ

सौरमंडल के सभी ग्रहों में, समान घूर्णन अक्षीय झुकाव के कारण मंगल और पृथ्वी पर ऋतुएँ ज्यादातर एक जैसी है। मंगल के ऋतुओं की लम्बाइयां पृथ्वी की अपेक्षा लगभग दोगुनी है, सूर्य से अपेक्षाकृत अधिक से अधिक दूर होने से मंगल के वर्ष, लगभग दो पृथ्वी-वर्ष लम्बाई जितने आगे हैं। मंगल सतह का तापमान भी विविधतापूर्ण है, ध्रुवीय सर्दियों के दौरान तापमान लगभग −८७° से. (−१२५° फे.) नीचे से लेकर गर्मियों में −५° से. (२३° फे.) ऊँचे तक रहता है।[36] व्यापक तापमान विस्तार, निम्न वायुमंडलीय दाब, निम्न तापीय जड़त्व और पतले वायुमंडल, जो ज्यादा सौर ताप संग्रहित नहीं कर सकता, के कारण है। यह ग्रह पृथ्वी की तुलना में सूर्य से १.५२ गुना अधिक दूर भी है, परिणामस्वरूप मात्र ४३% सूर्य प्रकाश की मात्रा ही पहुँच पाती है।[90]

यदि मंगल की एक पृथ्वी-सदृश्य कक्षा थी, तो उसकी ऋतुएँ भी पृथ्वी-सदृश्य रही होगी क्योंकि दोनों ग्रहों का अक्षीय झुकाव लगभग समान है। तुलनात्मक रूप से मंगल की बड़ी कक्षीय विकेन्द्रता एक महत्वपूर्ण प्रभाव रखती है। मंगल उपसौर के नजदीक होता है तब दक्षिणी गोलार्द्ध में गर्मी और उत्तर में सर्दी होती है और अपसौर के नजदीक होता है तब दक्षिणी गोलार्द्ध में सर्दी और उत्तर में गर्मी होती है। परिणामस्वरूप, दक्षिणी गोलार्द्ध में मौसम अधिक चरम और उत्तरी गोलार्द्ध में मौसम मामूली होता है अन्यथा मामला कुछ अलग ही होता। दक्षिण में ग्रीष्म तापमान ३०° से. (८६° फे.) तक पहुँच सकता है जो उत्तर में समतुल्य ग्रीष्म तापमान से ज्यादा तप्त होता है।[91]

मंगल पर हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा धूल तूफ़ान है। यह विविधता लिए हो सकता है, छोटे हिस्से पर से लेकर इतना विशाल तूफ़ान कि समूचे ग्रह को ढँक दे। वें तब प्रवृत्त पाए जाते है जब सूर्य के समीप होते है और वैश्विक तापमान के लिए वृद्धि दर्शा गए है।[92]

मंगल ग्रह पर पृथ्वी की अपेक्षा गुरुत्वाकर्षण (Gravity) कम है इसे 1/6 मानी जाती है ।

परिक्रमा एवं घूर्णन

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मंगल की सूर्य से औसत दूरी लगभग २३ करोड़ कि॰मी॰ (१.५ ख॰इ॰) और कक्षीय अवधि ६८७ (पृथ्वी) दिवस लाल निशान के रूप में, पृथ्वी की कक्षा (नीली) के साथ दर्शाई गई है।

मंगल की सूर्य से औसत दूरी लगभग २३ करोड़ कि॰मी॰ (१.५ ख॰इ॰) और कक्षीय अवधि ६८७ (पृथ्वी) दिवस है। मंगल पर सौर दिवस एक पृथ्वी दिवस से मात्र थोड़ा सा लंबा है : २४ घंटे, ३९ मिनट और ३५.२४४ सेकण्ड। एक मंगल वर्ष १.८८०९ पृथ्वी वर्ष के बराबर या १ वर्ष, ३२० दिन और १८.२ घंटे है।[6]

मंगल का अक्षीय झुकाव २५.१९ डिग्री है, जो कि पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के बराबर है।[6] परिणामस्वरूप, मंगल की ऋतुएँ पृथ्वी के जैसी है, हालांकि मंगल पर ये ऋतुएँ पृथ्वी पर से दोगुनी लम्बी है। वर्त्तमान में मंगल के उत्तरी ध्रुव की स्थिति ड़ेनेब तारे के करीब है। [93] मंगल अपने अपसौर से मार्च २०१० में गुजरा[94] और अपने उपसौर से मार्च २०११ में।[95] अगला अपसौर फरवरी २०१२ में[95] और अगला उपसौर जनवरी २०१३ में होगा।[95]

मंगल ग्रह की ०.०९ की एक अपेक्षाकृत स्पष्ट कक्षीय विकेन्द्रता है, सौर प्रणाली के सात अन्य ग्रहों में केवल बुध, अधिक से अधिक विकेन्द्रता दर्शाता है। यह ज्ञात है कि पूर्व में मंगल की कक्षा वर्त्तमान की अपेक्षा अधिक वृत्ताकार थी। १३.५ लाख पृथ्वी वर्ष पहले के एक बिंदु पर मंगल की विकेन्द्रता लगभग ०.००२ थी, जो आज की पृथ्वी से बहुत कम है।[96] मंगल की विकेन्द्रता का चक्र, पृथ्वी के १,००,००० वर्षीय चक्र की तुलना में ९६,००० पृथ्वी वर्ष है।[97] मंगल के विकेन्द्रता का चक्र २२ लाख पृथ्वी वर्ष के साथ बहुत लंबा भी है और यह विकेन्द्रता ग्राफ में ९६,००० वर्षीय चक्र को ढँक देता है। अंतिम ३५,००० वर्षों के लिए मंगल की कक्षा, दूसरे ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण थोड़ी सी और अधिक विकेन्द्रता पाती रही है। पृथ्वी और मंगल ग्रह के बीच की निकटतम दूरी, मामूली घटाव के साथ अगले २५,००० वर्षों के लिए जारी रहेगी।[98]

छवियां मंगल की कक्षा की तुलना सेरेस,क्षुद्रग्रह पट्टे में एक वामन ग्रह, के साथ करती हुई। बाईं छवि को उत्तरी क्रांतिवृत्त ध्रुव से जबकि दाईं को आरोही पात से दिखाया गया है। कक्षा का क्रांतिवृत्त के दक्षिण का खंड गहरे रंग में अंकित है। perihelia (q) और aphelia (Q) निकटतम गमन की दिनांक के साथ वर्गीकृत हैं। मंगल की कक्षा लाल जबकि सेरेस की पीली है।

चन्द्रमा

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मंगल के दो अपेक्षाकृत छोटे प्राकृतिक चन्द्रमा है, फोबोस और डिमोज़, जिसकी कक्षा ग्रह के करीब है। क्षुद्रग्रह पर कब्जा एक ज्यादा समर्थित सिद्धांत है लेकिन इसकी उत्पत्ति अनिश्चित बनी हुई है।[99] दोनों उपग्रह असाफ हाल द्वारा १८७७ में खोजे गए थे और उनके नाम पात्र फोबोस (आतंक / डर) और डिमोज़ (आतंक / भय) पर रखे गए जो, ग्रीक पौराणिक कथाओं में लड़ाई में, उनके पिता युद्ध के देवता एरीस के साथ थे। एरीस रोम के लोगों के लिए मंगल ग्रह के रूप में जाना जाता था।[100][101]

मंगल ग्रह की सतह से, फोबोस और डिमोज़ की गतियां हमारे अपने चाँद की अपेक्षा काफी अलग दिखाई देती हैं। फोबोस पश्चिम में उदय होता है, पूर्व में अस्त होता है और मात्र ११ घंटे बाद फिर से उदित होता है। डिमोज़ की बिलकुल थोड़ी सी बाहर समकालिक कक्षा है, अर्थात उसकी कक्षीय अवधि उसकी घूर्णन अवधि से मेल खाती है, आशानुरूप यह पूर्व में उदित होता है लेकिन बहुत धीरे धीरे। डिमोज़ की ३० घंटे की कक्षा के बावजूद, यह पश्चिम में अस्त होने के लिए २.७ दिन लेता है क्योंकि यह मंगल ग्रह की घूर्णन दिशा में साथ साथ घूमते हुए धीरे से डूबता है, उदय के लिए फिर से इसी तरह लंबा समय लेता है।[102]

चूँकि फोबोस की कक्षा तुल्यकालिक ऊंचाई से नीचे है, मंगल ग्रह से ज्वारीय बल उसकी कक्षा को धीरे-धीरे छोटी कर रहा हैं (वर्तमान दर : लगभग १.८ मीटर प्रति सदीं)। लगभग ५ करोड़ वर्ष में यह या तो मंगल की सतह में दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगा या ग्रह के चारों ओर छल्ले के रूप में टूटकर बिखर जाएगा।[102]

दोनों चन्द्रमाओं की उत्पत्ति की अच्छी तरह से समझ नहीं है, निम्न एल्बिडो और कार्बनयुक्त कोंड्राईट संरचना के कारण इसे क्षुद्रग्रह के समान माना जा रहा है, जो हथियाने के सिद्धांत का समर्थन करता है। फोबोस की अस्थिर कक्षा एक अपेक्षाकृत हाल ही में हथियाने की प्रवृत्ति की ओर इंगित प्रतीत होती है। लेकिन दोनों की कक्षाएं वृत्ताकार है, भूमध्य रेखा के बहुत निकट है, जो जबरन छीन लिए गए निकायों के लिए बहुत ही असामान्य है और आवश्यक अधिग्रहण गतिशीलता भी जटिल कर रही हैं।

जीवन के लिए खोज

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वाइकिंग २ अवतरण स्थल, मई १९७९
वाइकिंग १ अवतरण स्थल, फरवरी १९७८

हाल की ग्रहीय वासयोग्यता की हमारी समझ उन ग्रहों के पक्ष में है जिनके पास अपनी सतह पर तरल पानी है। ग्रहीय वासयोग्यता, दुनिया को विकसित करने और जीवन को बनाए रखने के लिए ग्रह की एक क्षमता है। प्रायः इसकी मुख्य मांग है कि ग्रह की कक्षा वासयोग्य क्षेत्र के भीतर स्थित हो, जिसके लिए सूर्य वर्तमान में इस दायरे को शुक्र से थोड़े से परे से लेकर लगभग मंगल के अर्ध्य-मुख्य अक्ष तक विस्तारित करता है।[103] सूर्य से निकटता के दौरान मंगल इस क्षेत्र के अन्दर डुबकी लगाता है, परन्तु ग्रह का पतला (निम्न-दाब) वायुमंडल, इन विस्तारित अवधियों से बड़े क्षेत्रों पर विद्यमान तरल पानी की रक्षा करता है। तरल पानी के पूर्व प्रवाह वासयोग्यता के लिए ग्रह की क्षमता को दर्शाता है। हाल के कुछ प्रमाण ने संकेत दिया है कि नियमित स्थलीय जीवन को आधार हेतू मंगल की सतह पर किंचित पानी बहुत ज्यादा लवणीय औए अम्लीय रहा हो सकता है।[104]

चुम्बकीय क्षेत्र की कमी और मंगल का अत्यंत पतला वायुमंडल एक चुनौती है: इस ग्रह के पास, अपनी सतह के आरपार मामूली ताप संचरण, सौर वायु के हमले के खिलाफ कमजोर अवरोधक और पानी को तरल रूप में बनाए रखने के लिए अपर्याप्त वायु मंडलीय दाब है। मंगल भी करीब करीब, या शायद पूरी तरह से, भूवैज्ञानिक रूप से मृत है; ज्वालामुखी गतिविधि के अंत ने उपरी तौर पर ग्रह के भीतर और सतह के बीच में रसायनों और खनिजों के पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) को बंद कर दिया है।[105]

प्रमाण सुझाव देते है कि यह ग्रह जैसा कि आज है कि तुलना में एक समय काफी अधिक रहने योग्य था, परन्तु चाहे जो हो वहां कभी रहे जीवों की मौजूदगी अनजान बनी हुई है। मध्य १९७० के वाइकिंग यान ने अपने संबंधित अवतरण स्थलों पर मंगल की मिट्टी में सूक्ष्मजीवों का पता लगाने के लिए जान-बूज कर परीक्षण किये और परिणाम सकारात्मक रहा, जिसमे पानी और पोषक तत्वों पर से अनावरित CO2 के उत्पादन की एक अस्थायी वृद्धि भी शामिल है। जीवन का यह चिन्ह बाद में कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा विवादित रहा था, जिसका परिणाम निरंतर बहस के रूप में हुआ, नासा के वैज्ञानिक गिल्बर्ट लेविन ने जोर देते हुए कहा कि वाइकिंग ने जीवन पाया हो सकता है। आधुनिक ज्ञान के प्रकाश में, जीवन के चरमपसंदी रूपों के वाइकिंग आंकड़ो के एक पुनः विश्लेषण ने सुझाव दिया है कि जीवन के इन रूपों का पता लगाने के लिए वाइकिंग के परीक्षण पर्याप्त परिष्कृत नहीं थे। इस परीक्षण ने एक जीवन रूप (कल्पित) को भी मार डाला है।[106] फीनिक्स मार्स लैंडर द्वारा किए गए परीक्षणों से पता चला है कि मिट्टी की एक बहुत क्षारीय pH है और यह मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम और क्लोराइड शामिल करता है।[107] मिट्टी के पोषक तत्व जीवन को आधार देने के लिए समर्थ हो सकते है लेकिन जीवन को अभी भी गहन पराबैंगनी प्रकाश से परिरक्षित करना होगा।[108]

जॉनसन स्पेस सेंटर प्रयोगशाला में, उल्का ALH84001 में कुछ आकर्षक आकार पाए गए है, जो मंगल ग्रह से उत्पन्न हुए माने गए है। कुछ वैज्ञानिकों का प्रस्ताव है कि मंगल पर विद्यमान यह ज्यामितीय आकृतियां अश्मिभूत रोगाणुओं की हो सकती है, इससे पहले एक उल्का टक्कर ने इस उल्कापिंड को अंतरिक्ष में विष्फोटित कर दिया था और इसे एक १.५ करोड़-वर्षीय यात्रा पर पृथ्वी के लिए भेज दिया।[109]

हाल ही में मार्स ऑर्बिटरों द्वारा मीथेन और फोर्मेल्ड़ेहाईड की छोटी मात्रा का पता लगाया गया और दोनों ने जीवन के लिए संकेत के होने का दावा किया है, उनके अनुसार ये रासायनिक यौगिक मंगल के माहौल में जल्दी से टूट जाएंगे।[110][111] यह दूर से संभव है कि इन यौगिकों के स्थान की भरपाई ज्वालामुखी या भूगर्भीय माध्यम से हो सकती है अर्थात् जैसे कि सर्पेंटाइनीजेसन[89]

अन्वेषण अभियान

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एंडेवर क्रेटर का पश्चिमी किनारा

मंगल ग्रह को पृथ्वी से देखा जा सकता है, पर नवीनतम विस्तृत जानकारी तो अपनी-अपनी कक्षाओं में उसके इर्दगिर्द मंडरा रहे चार सक्रिय यानों से आती है: मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस, मंगल टोही परिक्रमा यान और ओपोर्च्युनिटी रोवर। लोग हाईवीश कार्यक्रम के साथ मंगल के सतह की २५ से.मी. पिक्सेल की तस्वीरों के लिए अनुरोध कर सकते है जो मंगल की कक्षा में एक ५० से.मी. व्यास की दूरबीन का उपयोग करता है।

मंगल के लिए पूर्व में दर्जनों अंतरिक्ष यान, जिसमें ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल है, ग्रह के सतह, जलवायु और भूविज्ञान के अध्ययन के लिए सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और जापान द्वारा भेजे गए है। २००८ में, पृथ्वी की सतह से मंगल की धरती तक का सामग्री परिवहन मूल्य लगभग ३,०९,००० अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम है।[112]

वर्तमान अभियान

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नासा के मार्स ओडिसी यान ने २००१ में मंगल की कक्षा में प्रवेश किया।[113] ओडिसी के गामा रे स्पेक्ट्रोमीटर ने मंगल के उपरी मीटर में महत्वपूर्ण मात्रा की हाइड्रोजन का पता लगाया। ऐसा लगता है कि यह हाइड्रोजन, जल बर्फ के विशाल भंडार में निहित है।[114]

यूरोपीय अंतरिक्ष अभिकरण (इसा) का अभियान, मार्स एक्सप्रेस, २००३ में मंगल पर पहुंचा। इसने बीगल २ लैंडर को ढोया, जो अवतरण के दौरान विफल रहा और फरवरी २००४ में इसे लापता घोषित किया गया।[115] २००४ की शुरुआत में प्लेनेटरी फूरियर स्पेक्ट्रोमीटर टीम ने घोषणा की कि इस यान ने मंगल के वायुमंडल में मीथेन का पता लगाया था। इसा ने जून २००६ में औरोरा के खोज की घोषणा की।[116]

जनवरी २००४ में, नासा के जुड़वा मंगल अन्वेषण रोवर, स्पिरिट (एमइआर-ए) और ओपोर्च्युनिटी (एमइआर-बी) मंगल की धरती पर उतरे। दोनों को अपने सभी लक्ष्यों से अधिक मिला। अनेकों अति महत्वपूर्ण वैज्ञानिक वापसीयों के बीच यह एक निर्णायक सबूत रहे हैं कि दोनों अवतरण स्थलों पर पूर्व में कुछ समय के लिए तरल पानी मौजूद था। मंगल के धूल बवंडर और हवाई तूफानों ने कई अवसरों पर दोनों रोवरों के सौर पैनलों को साफ किया है और इस प्रकार उनके जीवन काल में वृद्धि हुई है।[117] स्पिरिट रोवर (एमइआर-ए) २०१० तक सक्रिय रहा था, जब तक कि इसने आंकड़े भेजना बंद नहीं कर दिया।

१० मार्च २००६ को नासा का मंगल टोही परिक्रमा यान (एमआरओ), एक दो-वर्षीय विज्ञान सर्वेक्षण चलाने के लिए कक्षा में पहुंचा। इस यान ने आगामी लैंडर अभियान के लिए उपयुक्त अवतरण स्थलों को खोजने के लिए मंगल के इलाकों और मौसम का मानचित्रण शुरू किया। ३ मार्च २००८ को वैज्ञानिकों ने बताया, एमआरओ ने ग्रह के उत्तरी ध्रुव के पास एक सक्रिय हिमस्खलन श्रृंखला की पहली छवि बिगाड़ दी।[118]

क्युरीआसिटी नामक, मंगल विज्ञान प्रयोगशाला को २६ नवम्बर २०११ को प्रक्षेपित किया और अगस्त २०१२ में मंगल तक पहुंचने की उम्मीद है। ९० मीटर/घंटे के विस्थापन दर के साथ, यह मार्स एक्सप्लोरेशन रोवर्स से बड़ा और अधिक उन्नत है। इसका परिक्षण, रसायन नमूना जांचने वाला एक लेजर शामिल करता है, जो कि १३ मीटर की दूरी पर से चट्टानों की रूपरेखा निकाल लेता है।[119]

भूतपूर्व अभियान

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मंगल अभियान के प्रयास
दशक
१९६० वां ————————————— १३
१९७० वां ——————————— ११
१९८० वां ——
१९९० वां ————————
२००० वां ————————
२०१० वां ——
सोवियत डाक टिकट पर मार्स ३ लैंडर .

मंगल ग्रह की पहली सफल उड़ान १४-१५ जुलाई १९६५ को नासा द्वारा भेजी गई मेरिनर ४ थी। १४ नवम्बर १९७१ को मेरिनर ९, पहला अंतरिक्ष यान बना जिसने किसी अन्य ग्रह की परिक्रमा के लिए मंगल के चारों ओर की कक्षा में प्रवेश किया।[120] दो सोवियत यान, २७ नवम्बर १९७१ को मार्स २ और ३ दिसम्बर को मार्स ३, सतह पर सफलतापूर्वक कदम रखने वाली पहली वस्तुएं थी, परन्तु उतरने के चंद सेकंडों के भीतर ही दोनों का संचार बंद हो गया। १९७५ में नासा ने वाइकिंग कार्यक्रम की शुरूआत की, जिसमें दो कक्षीय यान शामिल थे, प्रत्येक में एक एक लैंडर थे और दोनों लैंडर १९७६ में सफलतापूर्वक नीचे उतरे थे। वाइकिंग १ छः वर्ष के लिए और वाइकिंग २ तीन वर्ष के लिए परिचालक बने रहे। वाइकिंग लैंडरों ने मंगल के जीवंत परिदृश्य प्रसारित किये,[121] और इस यान ने सतह को इतनी अच्छी तरह से प्रतिचित्रित किया है कि यह छवियाँ प्रयोग में बनी रहती है।

मंगल और उसके चंद्रमाओं के अध्ययन के लिए १९८८ में सोवियत यान फ़ोबस १ और २ मंगल को भेजे गए। फ़ोबस १ ने मंगल के रास्ते पर ही संपर्क खो दिया। जबकि फ़ोबस २ ने सफलतापूर्वक मंगल और फ़ोबस की तस्वीरें खिंची, विफल होने के ठीक पहले इसे फ़ोबस की धरती पर दो लैंडर छोड़ने के लिए तैयार किया गया था।[122]

मंगल की ओर रवाना सभी अंतरिक्ष यानों के लगभग दो-तिहाई, अभियान पूरा होने या यहाँ तक कि अपने अभियान के शुरुआत के पहले ही किसी ना किसी तरीके से विफल हो गए। अभियान विफलता के लिए आमतौर पर तकनीकी समस्याओं को जिम्मेदार माना जाता है और योजनाकार प्रौद्योगिकी और अभियान लक्ष्यों का संतुलन करते है।[123] १९९५ के बाद से विफलताओं में शामिल है : मार्स ९६ (१९९६), मार्स क्लाइमेट ऑर्बिटर (१९९९), मार्स पोलार लैंडर (१९९९), डीप स्पेस २ (१९९९), नोजोमी (२००३) और फोबोस-ग्रंट (२०११)।

मार्स ऑब्सर्वर यान की १९९२ की विफलता के बाद, १९९७ में नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर ने मंगल ग्रह की कक्षा हासिल की। यह अभियान एक पूर्ण सफलता थी, २००१ के शुरू में इसने अपना प्राथमिक मानचित्रण मिशन समाप्त कर दिया। अपने तीसरे विस्तारित कार्यक्रम के दौरान नवंबर २००६ में इस यान के साथ संपर्क टूट गया, इसने अंतरिक्ष में ठीक १० परिचालन वर्ष खर्च किये।

नासा का मार्स पाथफाइंडर, एक रोबोटिक अन्वेषण वाहन सोजौर्नर ले गया, १९९७ की गर्मियों में यह मंगल पर एरेस वालिस में उतरा और अनेक छवियाँ वापस लाया।[124]

मंगल पर स्पिरिट लैंडर,२००४
फोनिक्स लैंडर से नजारा,२००८

नासा का फीनिक्स मार्स लैंडर मंगल के उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र पर २५ मई २००८ को पहुंचा।[125] मंगल की मिटटी में खुदाई के लिए इसकी रोबोटिक भुजा का इस्तेमाल किया गया था और २० जून को जल बर्फ की उपस्थिति की पुष्टि की गई।[126][127][127] संपर्क टूटने के पश्चात १० नवम्बर २००८ को इस अभियान का निष्कर्ष निकाला गया।[128]

डान अंतरिक्ष यान ने अपने पथ पर वेस्टा और फिर सेरेस की छानबीन के लिए, गुरुत्वाकर्षण की सहायता से फरवरी २००९ में मंगल के लिए उड़ान भरी।[129]

भविष्य के अभियान

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने कहा है कि भारत २०१३ तक मंगल के लिए एक अभियान शुरू करेगा। इसरो ने मंगल पर अंतरिक्ष यान भेजने के लिए तैयारी शुरू कर दी है।[130] इस यान को लाल ग्रह के वातावरण के अध्ययन के लिए मंगल की कक्षा में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) की सहायता से भेजा जाएगा। मंगल परिक्रमा यान ग्रह के चारों ओर ५०० x ८०,००० कि॰मी॰ की कक्षा में रखा जाएगा और करीबन २५ किलो के वैज्ञानिक पेलोड को ले जाने का एक प्रावधान होगा।[131]

सन् २००८ में नासा ने मंगल के वायुमंडल के बारे में सूचना प्रदान करने के लिए २०१३ के एक रोबोटिक अभियान मावेन की घोषणा की।[132] इसा ने २०१८ में मंगल के लिए अपने पहले रोवर प्रक्षेपण की योजना बनाई, यह एक्सोमार्स रोवर मिट्टी के अन्दर कार्बनिक अणुओं की तलाश में २ मीटर की खुदाई करने में सक्षम होगा।[133]

फिनिश-रूसी मेटनेट, एक मिशन अवधारणा है जो मंगल ग्रह पर कई छोटे वाहनों का एक व्यापक अवलोकन नेटवर्क स्थापित करने के लिए ग्रह की वायुमंडलीय संरचना, भौतिकी और मौसम विज्ञान की जांच करेगा।[134] मेटनेट प्रक्षेपण हेतू, पीठ पर सवारी के लिए एक रूसी फोबोस-ग्रन्ट मिशन का विचार किया गया, लेकिन इसे नहीं चुना गया।[135] यह मंगल के एक भविष्य के नेट-मिशन के लिए शामिल किया जा सकता है।[136] मार्स-ग्रन्ट एक अन्य रूसी अभियान अवधारणा है, यह एक मंगल नमूना वापसी अभियान है।[136]

इनसाइट (औपचारिक नाम GEMS), मंगल की भीतरी बनावट के अध्ययन और आंतरिक सौर प्रणाली के चट्टानी ग्रहों को आकार देने की प्रक्रियाओं को समझने के लिए, मंगल पर एक भूभौतिकीय लैंडर स्थापना हेतू, नासा के डिस्कवरी कार्यक्रम अंतर्गत प्रस्तावित एक मार्स लैंडर मिशन है।[137]

मानव मिशन लक्ष्य

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इसा को २०३० और २०३५ के बीच मंगल ग्रह पर मानव के कदम पड़ने की उम्मीद है।[138] एक्सोमार्स यान के प्रक्षेपण और नासा-इसा के संयुक्त मंगल नमूना वापसी अभियान के साथ, यह क्रमिक बड़े यानों द्वारा पहले ही हो जाएगा।[139]

संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा मानवयुक्त अन्वेषण की पहचान एक अंतरिक्ष अन्वेषण स्वप्न में दीर्घकालिक लक्ष्य के रूप में की गई थी जिसकी घोषणा तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा २००४ में की गई थी।[140] ओरियन अंतरिक्ष यान योजना का उपयोग २०२० तक एक मानव अभियान दल भेजने के लिए किया जाएगा जिसमें मंगल अभियान के लिए हमारे चाँद का इस्तेमाल एक कदम रखने के पत्थर के रूप में होगा। २८ सितंबर २००७ को नासा के प्रशासक माइकल डी. ग्रिफिन ने कहा कि नासा का लक्ष्य २०३७ तक मंगल पर मानव को रखना है।[141]

फोबोस द्वारा सूर्य पारगमन (transit), जैसा कि मार्स रोवर ओपोर्च्युनिटी द्वारा १० मार्च २००४ को देखा गया।

मार्स डाइरेक्ट, मंगल सोसायटी के संस्थापक रॉबर्ट ज़ुब्रिन द्वारा प्रस्तावित एक कम-लागत का मानव मिशन है, जिसमे कक्षीय निर्माण, मिलन स्थल और चंद्र ईंधन डिपो को छोड़ने के लिए स्पेस X, फाल्कन X या एरेस V जैसे हेवी लिफ्ट सेटर्न V राकेटों का इस्तेमाल होगा। एक संशोधित प्रस्ताव, अगर कभी हुआ तो, जिसे ' मार्स टू स्टे' कहा जाता है, यह तुरंत वापसी नहीं करने वाले पहले आप्रवासी खोजकर्ता शामिल करता है (देखें: मंगल का उपनिवेशण)।[142]

मंगल पर खगोलविज्ञान

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विभिन्न यानों, लैंडरों और रोवरों की मौजूदगी के साथ, मंगल के आसमान से खगोलविज्ञान का अध्ययन अब संभव है। मंगल का चन्द्रमा फोबोस, जैसा कि पृथ्वी से नजर आता है, पूर्ण चंद्र के कोणीय व्यास का लगभग एक तिहाई दिखाई देता है, जबकि डीमोस इससे और अधिक कम तारों जैसा छोटा दिखाई देता है और पृथ्वी से यह शुक्र से केवल थोड़ा सा ज्यादा उज्जवल दिखाई देता है।[143]

पृथ्वी पर अच्छी तरह से जाने जानी वाली अनेकों घटनाएं, जैसे कि उल्कापात और औरोरा इत्यादि, मंगल पर देखी गई है।[116] एक पृथ्वी पारगमन जैसा कि मंगल से नजर आयेगा, १० नवम्बर २०८४ को घटित होगा।[144] मंगल की ओर से बुध पारगमन और शुक्र पारगमन भी होता है, फोबोस और डिमोज चन्द्रमा के छोटे कोणीय व्यास इतने पर्याप्त है कि उनके द्वारा सूर्य का आंशिक ग्रहण एक श्रेष्ठ पारगमन माना गया है।[145][146]

प्रदर्शन

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मंगल की स्पष्ट प्रतिगामी गति का एनीमेशन, जैसा कि २००३ में पृथ्वी से देखा गया।

चूँकि मंगल की कक्षा उत्केंद्रित है, सूर्य से विमुखता पर इसका आभासी परिमाण -३.० से -१.४ तक के परास का हो सकता है। जब यह ग्रह सूर्य के साथ समीपता में होता है इसकी न्यूनतम चमक +१.६ परिमाण की होती है।[147] मंगल आमतौर पर एक विशिष्ट पीला, नारंगी या लाल रंग प्रकट करता है, मंगल का वास्तविक रंग बादामी के करीब है और दिखाई देने वाली लालिमा ग्रह के वायुमंडल में सिर्फ एक धूल है; ऐसा नासा के स्पिरिट रोवर से, नीले-धूसर चट्टानों के साथ हरे-भूरे, मटमैले भूदृश्यों और हल्के लाल रेत के भूखंडों, की ली गई तस्वीरों को देखते हुए माना जाता है।[148] जब यह पृथ्वी से सबसे दूरतम होता है, तो यह पहले से सात गुने से ज्यादा जितना दूर हो जाता है और इतना ही जब सबसे नजदीक होता है। जब न्यूनतम अनुकूल अवस्थिति पर होता है, यह एक समय पर सूर्य की चमक में महीनों के लिए गायब हो सकता है। इसी तरह अधिकतम अनुकूल समयों पर—१५ या १७-वर्षीय अंतराल पर और हमेशा जुलाई के अंत और सितम्बर के अंत के मध्य—मंगल एक दूरबीन से ही विस्तृत सतही समृद्धि प्रदर्शित करता है। विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है, ध्रुवीय बर्फ टोपियां, यहाँ तक कि निम्न आवर्धन पर भी।[149]

जैसे ही मंगल विमुखता पर पहुंचता है इसकी प्रतिगामी गति की एक अवधि प्रारंभ होती है, इसका अर्थ है, पृष्ठभूमि सितारों के सापेक्ष एक पश्चगामी गति में यह पीछे की ओर खिसकता हुआ नजर आएगा। इस प्रतिगामी गति की अवधि लगभग ७२ दिनों तक के लिए रहती है और मंगल इस अवधि के मध्य में अपनी चमक के शिखर तक पहुँच जाता है।[150]

निकटतम पहुँच

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सापेक्ष

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भूकेन्द्रीय देशांतर पर मंगल और सूर्य के बिन्दुओं के बीच का १८०° का अंतर, विमुखता के रूप में जाना जाता है, जो पृथ्वी से निकटतम पहुँच के समय से नजदीक है। निकटतम पहुँच से परे विमुखता का समय अधिक से अधिक ८.५ दिन मिल सकता है। दीर्घवृत्तीय कक्षाओं के कारण निकटतम पहुँच से दूरी, लगभग ५.४ करोड़ कि॰मी॰ और लगभग १०.३ करोड़ कि॰मी॰ के बीच विविध हो सकती है, जो कोणीय आकार में तुलनात्मक अंतर के कारण बनती है।[151] अंतिम मंगल विमुखता लगभग १० करोड़ किलोमीटर की दूरी पर ३ मार्च २०१२ को हुई।[152] मंगल की क्रमिक विमुखता के बीच का औसत समय, ७८० दिन, उसका संयुति काल है लेकिन क्रमिक विमुखताओं के दिनांकों के बीच के दिनों की संख्या ७६४ से ८१२ तक के विस्तार की हो सकती है।[153]

जैसे ही मंगल विमुखता पर पहुचता है इसकी प्रतिगामी गति की एक अवधि शुरू हो जाती है, जो उसे पृष्ठभूमि सितारों के सापेक्ष एक पश्चगामी गति में पीछे की ओर खिसकता हुआ दिखाई देता है। इस प्रतिगामी गति की समयावधि लगभग ७२ घंटे है।

निरपेक्ष, वर्तमान समय के आसपास

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मंगल विमुखता २००३-२०१८, केन्द्रित पृथ्वी के साथ क्रांतिवृत्त के ऊपर से देखा गया।

मंगल ने नजदीकी ६०,००० वर्षों में, पृथ्वी से अपनी निकटतम पहुँच और अधिकतम स्पष्ट उज्जवलता, क्रमशः ५५,७५८ कि॰मी॰ (०.३७२७१९ ख॰इ॰), -२.८८ परिमाण, २७ अगस्त २००३ को ९:५१:१३ बजे (UT) बनाई है। यह तब पायी जब मंगल वियुति से एक दिन और अपने उपसौर से तीन दिन दूर था, जो मंगल को विशेषरूप से पृथ्वी से आसानी से देखने लायक बनाता है। पिछली बार यह इतना पास अनुमानतः १२ सितंबर ५७,६१७ ई.पू. को आया था और अगली बार २२८७ में होगा।[154] यह रिकॉर्ड पहुँच हाल की अन्य नजदीकी पहुँचों से केवल थोड़ी बहुत करीब थी। उदाहरण के लिए, २२ अगस्त १९२४ को न्यूनतम दूरी ०.३७२८५ ख॰इ॰ थी और २४ अगस्त,२२०८ को न्यूनतम दूरी ०.३७२७९ ख॰इ॰ होगी।[97]

ऐतिहासिक अवलोकन

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मंगल के अवलोकनों का इतिहास मंगल की विमुखता के द्वारा चिह्नित है, तब यह ग्रह पृथ्वी से सबसे करीब होता है और इसलिए बहुत ही आसानी से दिखाई देता है, यह स्थिति प्रत्येक दो वर्षों में पायी जाती है। इससे भी अधिक उल्लेखनीय मंगल की भू-समीपक विमुखता, प्रत्येक १५ या १७ वर्षों में पाई जाती है, जो प्रतिष्ठित हो गई क्योंकि तब मंगल सूर्य-समीपक से करीब होता है, जो उसे पृथ्वी से और भी करीब बनाता है।

प्राचीन और मध्ययुगीन अवलोकन

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रात्रि आकाश में एक घुमक्कड़ निकाय के रूप में मंगल की मौजूदगी प्राचीन मिस्र के खगोलविदों द्वारा दर्ज की गई थी। वें १५३४ ईपू से ही ग्रह की प्रतिगामी गति से परिचित थे।[155] नव बेबीलोन साम्राज्य के समय से बेबीलोन खगोलविद ग्रहों की स्थितियों का नियमित दस्तावेज बनाते रहे तथा उनके व्यवहार का व्यवस्थित अवलोकन करते थे। मंगल के लिए वें जानते थे कि इस ग्रह ने प्रत्येक ७९ वर्षों में ३७ संयुति काल या राशि चक्र के ४२ परिपथ बनाएं। उन्होंने ग्रहों की स्थिति के पूर्वानुमानों के लिए मामूली सुधार करने हेतू गणित के तरीकों का भी आविष्कार किया।[156][157]

चौथी शताब्दी ईपू में अरस्तू ने गौर किया कि एक ग्रहण के दौरान मंगल ग्रह चंद्रमा के पीछे विस्मृत हो गया है। जो ग्रह के दूर उस पार होने का संकेत था।[158] टॉलेमी, सिकन्दरिया में रहने वाले एक यूनानी,[159] ने मंगल की कक्षीय गति की समस्या का समाधान करने का प्रयास किया। टॉलेमी के मॉडल और खगोल विज्ञान पर उनके सामूहिक कार्य बहु-खंड संग्रह अल्मागेस्ट में प्रस्तुत किये गए थे। जो अगले चौदह शताब्दियों तक के लिए पश्चिमी खगोल विज्ञान पर एक प्रामाणिक ग्रंथ बना रहा।[160] प्राचीन चीन का साहित्य पुष्टि करता है कि चीनी खगोलविदों ने ईपू चौथी शताब्दी से ही मंगल को जान लिया था।[161] पांचवीं शताब्दी में भारतीय खगोलीय ग्रन्थ सूर्य सिद्धांत ने मंगल के व्यास का अनुमान लगाया था।[162]

सत्रहवीं सदी के दरम्यान टाइको ब्राहे ने मंगल के दैनिक लंबन की गणना की जिसे योहानेस केप्लर ने ग्रह की सापेक्ष दूरी के प्रारंभिक आकलन के लिए प्रयुक्त किया।[163] जब दूरबीन उपलब्ध बना, मंगल के दैनिक लंबन को सूर्य-पृथ्वी की दूरी निर्धारण के एक प्रयास में एक बार फिर से मापा गया। यह पहली बार १६७२ में गिओवान्नी डोमेनिको कैसिनी द्वारा प्रदर्शित किया गया था। इससे पहले के लंबन माप उपकरणों की गुणवत्ता के द्वारा अवरुद्ध हो गए थे।[164] शुक्र द्वारा मंगल के जिस एक मात्र ग्रहण को अवलोकित किया गया वह १३ अक्टूबर १५९० का था, इसे माइकल माएस्टलिन द्वारा हीडलबर्ग में देखा गया था।[165] १६१० में गैलीलियो गैलीली द्वारा मंगल को देखा गया जो दूरबीन के माध्यम से इसे देखने वाले सर्वप्रथम व्यक्ति थे।[166] प्रथम व्यक्ति जिन्होंने मंगल का एक नक्शा बनाया जो किसी भी भूभाग की विशेषताओं को प्रदर्शित करता था, वह थे डच खगोलशास्त्री क्रिश्चियान हायगेन्स[167]

भारतीय दर्शन

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मंगल देव, चार शस्त्र,- एक त्रिशूल, एक गदा, एक पद्म या कमल और एक शूल हाथों में थामे हुए, भेड़ पर सवारी के साथ.

भारतीय ज्योतिष में, मंगल (देवनागरी: मंगला, लुआ त्रुटि मॉड्यूल:Lang में पंक्ति 1670 पर: attempt to index field 'engvar_sel_t' (a nil value)।), एक लाल ग्रह अर्थात मंगल ग्रह के लिए नाम है। संस्कृत में मंगल को अंगारका ('जो लाल रंग का हो')[168] या भौम ('भूमि पुत्र') भी कहा जाता है। वह युद्ध के देवता है और अविवाहित है। उन्हें पृथ्वी या भूमि का पुत्र माना जाता है। वह मेष और वृश्चिक राशियों के स्वामी और मनोगत विज्ञान (रुचका महापुरुष योग) के गुरु है।

वह लाल या लौ रंग से चित्रांकित है, वें हाथो में चार शस्त्र, एक त्रिशूल, एक गदा, एक पद्म या कमल और एक शूल थामे हुए हैं। उनका वाहन एक भेड़ है। वें 'मंगला-वरम' (मंगलवार) के अधिष्ठाता है।[169]

वैश्विक संस्कृति में

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♂ मंगल का नाम युद्ध के रोमन देवता पर है। विभिन्न संस्कृतियों में, मंगल वास्तव में मर्दानगी और युवाओं का प्रतिनिधित्व करता है। इसके प्रतीक, एक तीर एक चक्र के साथ ऊपरी दाएँ से बाहर की ओर इशारा करते हुए, का उपयोग पुरुष लिंग के लिए भी एक चिन्ह के रूप में हुआ।

मंगल को विज्ञान कथा संचार माध्यम में चित्रित किया गया है और एक विषय है बुद्धिमान "मंगल वासी", जो ग्रह पर कौतूहलपूर्ण " चैनलों "और " चेहरों" के लिए जिम्मेदार है। एक अन्य विषय है, मंगल, पृथ्वी की भविष्य की एक बस्ती होगा, या एक मानव अभियान के लिए लक्ष्य होगा।

मंगल अन्वेषण यान में अनेक विफलताओं का नतीजा एक व्यंगपूर्ण मुठभेड़-संस्कृति में हुआ, इन विफलताओं का दोष पृथ्वी-मंगल के "बरमूडा त्रिभुज", एक "मंगल अभिशाप", या एक "महान गांगेय पिशाच" पर लगाया जाता है जो मंगल अंतरिक्ष यान को निगल जाता है।[123]

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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मंगल ग्रह
मंगल ग्रह पर सूर्यास्त का दृश्य


सन्दर्भ

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  169. Mythology of the Hindus, Charles Coleman, p. 132
सन्दर्भ त्रुटि: <references> में "science324_5928_736" नाम के साथ परिभाषित <ref> टैग उससे पहले के पाठ में प्रयुक्त नहीं है।
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सौर मण्डल
सूर्यबुधशुक्रचन्द्रमापृथ्वीPhobos and Deimosमंगलसीरिस)क्षुद्रग्रहबृहस्पतिबृहस्पति के उपग्रहशनिशनि के उपग्रहअरुणअरुण के उपग्रहवरुण के उपग्रहनेप्चूनCharon, Nix, and Hydraप्लूटो ग्रहकाइपर घेराDysnomiaएरिसबिखरा चक्रऔर्ट बादल
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