लाखा बंजारा
बुंदेलखंड और खासतौर से सागर की जनता इस नाम को अच्छे से जानती है। क्षेत्रीयता और स्थानीय परंपराओं में विश्वास करने वालों ने लाखा बंजारा के नाम पर ही सागर झील का नाम लाखा बंजारा झील रखा है। लेकिन आश्चर्य नहीं कि लाखा बंजारा का नाम ढूंढने पर भी किसी सरकारी अभिलेख में नहीं मिलता है। लाखा बंजारा को आज इस क्षेत्र में एक महानायक के रूप में जाना जाता है। लाखा बंजारा यह महान दानशूर एवं शूरवीर थे। राजा के रुप में माने जाते थे। लोककल्याण लिये के उन्होंने देशभर में शेकडो झिल , तालाब और बावडीयॉ बनाई है जो लाखा झिल, बंजारा बावडी , लाखा सरोवर के नाम से प्रचलित है।
सागर झील की उत्पत्ति के बारे में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। इस क्षेत्र में प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार कहा जाता है कि झील खोदी गई लेकिन उसमें पानी नहीं आया। तो राजा ने घोषणा की कि जो भी झील में पानी लाने का उपाय बताएगा उसे पुरस्कार दिया जाएगा. किसी ने बताया कि यदि झील के बीचों-बीच किसी नवविवाहित दंपति को झूले में बैठा कर झुलाया जाए, तो झील लबालब हो जाएगी लेकिन सबसे कठोर तथ्य यह था कि उस दंपति को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता.
यह सुनकर सब दुखी हो गए कि अब झील में पानी नहीं आ सकेगा। किसी की हिम्मत नहीं थी कि अपनी जान देकर झील में पानी ला सके। इतनी कठोर शर्त सुनने के बाद जब सब निराश हो चुके थे, तो लाखा बंजारे ने अपनी बहू और बेटे को तालाब के बीचों-बीच झूले में बैठाकर झुलाने का फैसला लिया। लाखा के इस फैसले के बारे में जानकर लोग आश्चर्यचकित रह गए।
इसके बाद निर्धारित दिन समारोहपूर्वक नवविवाहित युगल को स्वर्णनिर्मित रत्नों से जड़े झूले में बैठाकर झुलाया गया। जैसी कि आशा थी झील में पानी तो आ गया लेकिन लाखा बंजारा के बहू-बेटे उस में डूब गए। इसे लाखा का क्षेत्र के लिए बहुत बड़ा बलिदान माना जाता है। इसी बलिदान के कारण आज बुंदेलखंड में और खास तौर से सागर में लाखा बंजारा एक लोकनायक के रूप में जाना जाता है।