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- शान्तिपर्व भोजन, नींद, डर और वासना, पशु और आदमी दोनों में सामान्य है। आदमी का विशेष गुण धर्म है; धर्म के बिना वह एक पशु के समान है। अर्थातुराणां न सुहृन्न...५ KB (३०७ शब्द) - २२:५८, २६ अक्टूबर २०२२
- प्राप्त होती है। -- GaryLFrancione मैं यह महसूस करने के बाद शाकाहारी हो गया कि पशु भी हमारी तरह भय, ठंड, भूख और उदासी को महसूस करते हैं। -- सीज़र शावेज़ (१९२७-१९९३)...८ KB (६४४ शब्द) - ११:१५, १० जून २०२४
- मोहनदास करमचंद गांधी (अनुभाग आहार)रहेगा न घाट का। आहार संतुलित और विवेकपूर्ण हो तो शरीर में कोई रोग हो ही नहीं सकता है। आहार शरीर के लिए है न कि शरीर आहार के लिए। पशु-पक्षी स्वाद के लिए...८२ KB (६,२८८ शब्द) - २०:४६, २३ सितम्बर २०२३
- मूल्य से जितना दूध और घी आदि पदार्थ तथा बैल आदि पशु सात सौ वर्ष पूर्व मिलते थे, उतना घी दूध और बैल आदि पशु इस समय दशगुणे मूल्य से भी नहीं मिल सकते। हे मांसाहारियों...१८ KB (१,३५१ शब्द) - ०८:०५, ३१ अक्टूबर २०२४
- सुखपूर्वक पचाकर आहार-रस को शीघ्र ही सम्पूर्ण शरीर में फैलने योग्य बनाता हैं। उचित रूप से अनुपान लेने पर मनुष्य तृप्त हो जाता हैं तथा आहार को विना कष्ट के...६० KB (३,७७० शब्द) - १७:२१, १३ जुलाई २०२४
- आप्लावित न कर सके। संयमेन विना प्राणि पशुरेव न संशयः। संयम सदाचार बिना मनुष्य पशु समान है। करणेन विना ज्ञानं संयमेन विना तपः। सम्यक्त्वेन विना लिग क्रियमाणमनर्थकम्...१० KB (७८४ शब्द) - २१:३५, २० मार्च २०२२
- के पीछे जाता है । आहार निद्रा भय मैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेष: धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥ आहार, निद्रा, भय और मैथुन...३३ KB (२,१८२ शब्द) - १३:४४, २१ अगस्त २०२४
- लोभ ही बिछौना होता है (अर्थात् लोभही से सदा घिरे हुए रहते हैं)। वे पशुओं के समान आहार और मैथुन के ही परायण होते हैं। उन्हें यम लोक का भय नहीं लगता। यदि...१५ KB (१,०९२ शब्द) - १३:५३, ८ जुलाई २०२४
- की जाती है यदि ऐसा नहीं है तो सीधे अपनी राह नापिये। आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते अर्थ : आहार मनुष्यों के जन्म के साथ ही पैदा हो जाता हैं। ओदकान्तं...८२ KB (५,३२२ शब्द) - १२:५७, १८ फ़रवरी २०२४
- अन्धविश्वास का निरन्तर वृध्दिगत कूडा-कर्कट भरे बैठे, सैकडों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करनेवाले, युगों के सामाजिक...१०१ KB (७,९३३ शब्द) - १८:२१, ४ जुलाई २०२४
- हितोपदेश संस्कृत का एक कथा ग्रन्थ है जिसमें पशु-पक्षियों को पात्र बनाकर कथाएँ रची गयीं है जो लोगों को नीति-निपुण बनाने में सक्षम हैं। सिद्धिः साध्ये सतामस्तु...७०७ KB (६५,५९६ शब्द) - ११:१५, १९ जून २०२४
- तक श्रेष्ठ है , जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है । बतौर पशु , मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। — रवीन्द्र नाथ टैगोर आदर्श के दीपक को , पीछे रखने...२८१ KB (१९,७५२ शब्द) - १४:५५, ११ जनवरी २०२३
- पानी ढालिले बृक्षर कोनो अंशइ निटिके। सकलो अंग सतेज स्बस्थ्यबान करिबलै ह’ले आहार ग्रहण करि स्बास्थ्यबान है थकिब लागिब, किन्तु सकलो अंगत अलंकार परिधान करिलेओ...३९ KB (२,२७४ शब्द) - २३:००, ३१ अगस्त २०२३
- तक श्रेष्ठ है , जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है । बतौर पशु , मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। — रवीन्द्र नाथ टैगोर आदर्श के दीपक को , पीछे रखने...३०४ KB (२१,२०६ शब्द) - २१:०८, ३ फ़रवरी २०२२
- तक श्रेष्ठ है , जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है । बतौर पशु , मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। — रवीन्द्र नाथ टैगोर आदर्श के दीपक को , पीछे रखने...२५७ KB (१९,१५७ शब्द) - १०:१८, ८ मार्च २०२२
- निंद्रा मोड़ौ, सिव सकती ले करि जोड़ौ।२। महायोगी गोरख कहते है की आहार बैरी है क्योंकि अति आहार से कई खराबियाँ है, जिनमें से नींद का जोर करना एक है। निद्रा...४८५ KB (३९,२९५ शब्द) - १६:१३, १९ फ़रवरी २०२३
- पूर्ण व्यवहार, ईमानदारी की कमाई, अनैतिकता से घृणा, प्रसन्नतापूर्ण मुखाकृति, आहार और विहार का संयम, समूह के हित में स्वार्थ का परित्याग, न्याय और विवेक का...१२२ KB (९,०९० शब्द) - २२:२०, १८ मई २०२४
- में की जाती है यदि ऐसा नहीं है तो सीधे अपनी राह नापिये। आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते आहार मनुष्यों के जन्म के साथ ही पैदा हो जाता हैं। उत्तिष्ठत...७५ KB (० शब्द) - ०७:३८, २५ अगस्त २०२२