Hanuman Janam Katha in Hindi
विवाह के बहुत दिनों के बाद भी जब माता अंजना को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ तब उन्होंने निश्चय करके अत्यंत कठोर तप किया | उन्हें तप करता देख महामुनि मतंग ने उनसे उनके उस तप का कारण पूछा | तब माता अंजना ने कहा, “हे मुनिश्रेष्ठ! केसरी नामक वानरश्रेष्ठ ने मुझे मेरे पिता मांगकर मेरा वरण किया| मैंने अपने पति के संग में सभी सुखों व वैभवों का भोग किया परन्तु संतान सुख से अभी तक वंचित हूँ | मैंने बहुत से व्रत और उपवास भी किये परन्तु संतान की प्राप्ति नहीं हुई | इसीलिए अब मैं कठोर तप कर रही हूँ | मुनिवर! कृपा करके मुझे पुत्र प्राप्ति का कोई उपाय बताएं |”
महामुनि मतंग ने उन्हें वृषभाचल भगवान वेंकटेश्वर के चरणों में प्रणाम कर के आकाश गंगा नामक तीर्थ में स्नान कर, जल ग्रहण करके वायुदेव को प्रसन्न करने को कहा |
माता अंजना ने मतंग ऋषि द्वारा बताई गयी विधि के अनुसार वायु देव को प्रसन्न करने के लिए संयम, धैर्य, श्रद्धा व विशवास के साथ तप आरम्भ किया| उनके तप से प्रसन्न होकर वायुदेव ने मेष राशि सूर्य की स्थिति के समय चित्र नक्षत्र युक्त पूर्णिमा के दिन उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा | तब माता अंजना ने उत्तम पुत्र का वरदान माँगा | वायुदेव ने वरदान देते हुए माता अंजना को उनके पिछले जन्म का स्मरण कराते हुए कहा, “हे अंजना! तुम्हारे गर्भ से एक अत्यंत बलशाली एवं तेजस्वी पुत्र जन्म लेगा, अपितु स्वयं भगवान शंकर ही ग्यारहवें रुद्र के रूप में तुम्हारे गर्भ से अवतरित होंगे| पिछले जन्म में तुम पुन्जिकस्थला नामक अप्सरा थी और मैं तुम्हारा पति था परन्तु ऋषि श्राप के कारण हमें वियोग सहना पड़ा और तुम इस जनम में अंजना के रूप में इस धरती पर आई हो, इस नाते मैं तुम्हारे होने वाले पुत्र का धर्म-पिता कहलाऊंगा तथा तुम्हारा वो पुत्र पवनपुत्र नाम से भी तीनो लोकों में जाना जाएगा|”