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- The Temperature Here Goes Up To Minus 28 Degrees Celsius, But Life Continues Normally Here.
लेह से रिपोर्ट:माइनस 28 डिग्री पहुंचा तापमान; बर्फ से जम गईं नदियां, लोग चादर ट्रैकिंग और बटर चाय का उठा रहे आनंद
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हजारों फीट की ऊंचाई वाले पर्वतों के बीच बेहद खूबसूरत घाटियां, कल-कल बहते पहाड़ी झरने। किसी रेगिस्तान की तरह बिछी रेत, पठार और उस पठार में खूबसूरत झील।… कुछ ऐसा है सिंधु नदी के किनारे बसा लेह-लद्दाख। सर्दियों में भारी बर्फबारी की वजह से छह महीने के लिए देश का बाकी हिस्सा यहां के सड़क मार्ग से कटा रहता है। लद्दाख को जोड़ने वाला 434 किलोमीटर लंबा श्रीनगर-लेह हाईवे और शिमला-लेह हाईवे बंद रहता है। ऐसे में ईंधन, खाने-पीने की चीजें, दवाइयां और राशन यहां सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही लाया जाता है और सर्दियों के लिए स्टोर करके रखा जाता है।
इस मौसम में लद्दाख सिर्फ हवाई मार्ग से ही पहुंचा जा सकता है। अभी यहां हाड़ कंपा देने वाली ठंड पड़ रही है। तीन दिन पहले यहां का तापमान माइनस 28 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। इस कड़ाके की सर्दी में भी लोग यहां सामान्य जीवन जीते हैं।
सर्दी से जमी जंस्कार नदी पर देश-विदेश के लोग करते हैं चादर ट्रैक
यहां की जंस्कार नदी सर्दियों में जम जाती है। देश-विदेश से पर्यटक इस पर ट्रैकिंग करने के लिए लद्दाख पहुंचते हैं। रोमांच की तलाश में आने वाले लोगों के लिए जंस्कार नदी पर चलना और ट्रैकिंग करना कभी ना भूलने वाला अनुभव होता है। इस ट्रैक का पारंपरिक नाम चादर ट्रैक है। सर्दियों के मौसम में जंस्कार घाटी में सब कुछ जम जाता है। भारी बर्फबारी की वजह से घाटी से बाहर आने-जाने के रास्ते बंद हो जाते हैं। यहां रहने वाले लोगों के लिए बर्फ से जमी हुई नदी से होकर गुजरना ही एकमात्र रास्ता होता है। यहां के लोग सदियों से इसी रास्ते से ही व्यापार भी करते रहे हैं।
इस मौसम में यहां तालाब और झीलें जम जाती हैं। ऐसे में स्थानीय बच्चे इसे आइस स्केटिंग और आइस हॉकी खेलते दिखते हैं। इसी दौरान लद्दाख में राष्ट्रीय स्तर पर आइस हॉकी टूर्नामेंट भी आयोजित होता है।
कड़ाके की सर्दी से बचाता है बुखारी ठंड से बचने के लिए लद्दाख के सभी घरों में बुखारी का इस्तेमाल किया जाता है। ये सिलेंडर जैसा होता है, जो ऊपर की तरफ पतला होता जाता है। इसके निचले हिस्से में कंडे, लकड़ी डालकर आग लगाई जाती है और ऊपर का पतला हिस्सा चिमनी की तरह काम करता है। इससे निकलने वाली ऊष्मा घर को गर्म रखती है। सर्दियों के मौसम में यहां के लोग छोटे कमरों में ही बंद रहना पसंद करते हैं। खिड़कियों और दरवाजों को प्लास्टिक की शीट से ढंक दिया जाता है ताकि कमरे में हवा न पहुंच सके।
याक के दूध से बनी बटर चाय और थुपका होता है खास जाड़े के मौसम में यहां के लोग याक के दूध से बनी बटर चाय पीते हैं, इसमें नमक भी डाला जाता है। इसके अलावा ढेर सारे पकवान बनाए जाते हैं। इसमें पारंपरिक लद्दाखी खाना थुपका भी शामिल है। ये आमतौर पर सर्दियों में ही बनाया जाता है। थुपका पास्ता जैसा ही होता है। सर्दियों के मौसम में लद्दाख में कामकाज कुछ खास नहीं होता है लिहाजा मर्द और औरतें सभी घरों में ही रहते हैं और अधिकतर समय बुनाई करने में बिताते हैं।
फरवरी में मनाया जाता है लेह डोश्मेशे इस मौसम में लद्दाख के धर्मस्थलों में कई तरह के त्योहार मनाए जाते हैं। बौद्ध भिक्षु रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर और मास्क से चेहरा ढंककर मंत्रमुग्ध कर देने वाला नृत्य करते हैं। इसे स्पितुक मोनेस्ट्री फेस्टिवल भी कहा जाता है। सर्दियों में यहां स्पितुक गुस्टोर और लेह डोश्मेशे जैसे चर्चित त्योहार मनाए जाते हैं। जिसमें दूर दराज के इलाकों से लोग कड़ाके की सर्दी का सामना करते हुए आते हैं और त्योहार में शामिल होते हैं। स्थानीय मान्यताओं के मुताबिक फरवरी में मनाया जाने वाला लेह डोश्मेशे त्योहार एक तरह से सर्दियों के अंत का जश्न होता है।
पेंगॉन्ग झील भी इस मौसम में जम जाती है
यहां की पेंगॉन्ग झील हर मौसम में आने वाले पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। यह एक चर्चित पर्यटन स्थल है। हाल ही में भारत और चीन के बीच हुए तनाव के बाद इसे फिर से पर्यटकों के लिए खोला गया है। लेह शहर से 180 किमी दूर ये झील सर्दियों में जम जाती है। यहां सर्दियों में आने वाले लोग जमी हुई झील पर स्केटिंग का मजा लेते हैं। लेह के पर्यटन विभाग के सहायक निदेशक जिग्मे नामग्याल के मुताबिक, अब तक चादर ट्रैक करने के लिए 900 पर्यटक पहुंच चुके हैं। पर्यटन विभाग को इसके लिए जबरदस्त रिस्पांस मिल रहा है।
चादर ट्रैक पर आने वाले पर्यटकों को चौबीस घंटे आराम करना जरूरी नामग्याल के मुताबिक, चादर ट्रैक के लिए अलग से नियम बनाए गए हैं। यहां आने वाले लोगों के लिए पहले चौबीस घंटे आराम करना अनिवार्य किया गया है ताकि उनका शरीर स्थानीय मौसम के हिसाब से ढल सके। इसके बाद तीसरे दिन और फिर उसके बाद हर दिन मेडिकल चेक-अप भी किया जाता है। रोजाना 40-50 पर्यटकों को ही ट्रैक पर जाने दिया जाता है। किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए हेलीकॉप्टर के साथ बचाव दल को भी तैनात किया गया है, ताकि मेडिकल इमरजेंसी या किसी और इमरजेंसी से निपटा जा सके। नामग्याल के मुताबिक, बीते साल चादर ट्रैक पर दो हजार पर्यटक आए थे जिनमें से अधिकतर भारतीय थे। इस साल ये संख्या बढ़ने की उम्मीद है।
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