दक्षिण के काकतीय वंश के तीसरे शासक गणपति देव ने साल 1199 ईस्वी में गद्दी संभाली और उनके नेतृत्व में अगले 6 दशक तक काकतीय वंश एक मजबूत ताकत के तौर पर उभरा। लेकिन गणपति देव को हमेशा एक चिंता सताती रही कि उनके बाद गद्दी कौन संभालेगा। गणपति देव को रानी सोमलादेवी से दो संतानें हुईं, दोनों बेटियां। बड़ी बेटी का नाम रखा गणपमा देवी और छोटी का रूद्रमा देवी।
रानी रुद्रमा को बेटे की तरह पाला
राजा गणपति देव ने अपनी बड़ी बेटी गणपमा देवी की शादी काकतीय वंश के अधीन आने वाले कोटा वंश के बेतदेव से कर दी। उधर, छोटी बेटी रुद्रमा देवी (Rani Rudramadevi) को अपना उत्तराधिकारी चुन लिया। लेखक-इतिहासकार विक्रम संपत हिंद पॉकेट बुक्स (पेंगुइन) से प्रकाशित अपनी किताब ”शौर्यगाथाएं: भारतीय इतिहास के अविस्मरणीय योद्धा” में लिखते हैं कि गणपति देव ने अपनी छोटी बेटी के जवान होने तक उसके लड़की होने का राज छुपाए रखा। रुद्रमा देवी के वयस्क होने तक किसी को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि वह पुरुष नहीं बल्कि महिला हैं।
क्यों छिपाया राज?
गणपति देव के तमाम दुश्मन थे, जिनमें उनके सौतेले भाई भी शामिल थे। आसपास के कई राजवंशों से भी उनकी ठनी थी और तमाम लोगों की निगाहें गणपति देव की गद्दी पर थीं। यदि यह राज खुल जाता कि उन्हें कोई बेटा नहीं है, तो बगावत का डर था। इसी डर से यह जाहिर नहीं होने दिया और रुद्रमा देवी को बेटे के जैसे पाला।
पुरुषों की तरह हुई रुद्रमा देवी की ट्रेनिंग
गणपति देव ने बेटी रुद्रमा देवी को लोगों की नजरों से दूर एक मजबूत सैनिक के तौर पर तैयार किया है। उन्हें पुरुष सैनिकों की तरह ट्रेनिंग दी गई। रुद्रमा को हमेशा पुरुष परिधान में देखा जाता था और वह अपना नाम रुद्रदेव बताती थीं। पुरुष सैनिकों जैसे हथियार लेकर चला करती थीं। विक्रम संपत लिखते हैं कि रुद्रमा देवी वह पहली महारानी थीं, जिन्हें महाराजा की उपाधि मिली। वह पुरुषों की तरह घुड़सवारी करती थीं और पुरुष वेशभूषा में सार्वजनिक समारोह में नजर आती थीं। 1240 ईस्वी के आसपास उनकी शादी राजकुमार वीरभद्र के साथ हुई।
गणपति देव ने अपने जिंदा रहते ही 1259 ईस्वी में रुद्रमा को प्रशासक बना दिया। 3 साल बाद 1262 खुद गद्दी से हट गए और बेटी को स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया। 1269 में गणपति देव के निधन के बाद रुद्रमा देवी ने पूरी तरह गद्दी संभाल ली।
मार्को पोलो ने भी किया है जिक्र
रानी रूद्रमा देवी का जिक्र वेनिस के मशहूर व्यापारी और ट्रैवलर मार्को पोलो भी करते हैं। साल 1271 से 1295 के बीच सिल्क रूट पर यात्रा के दौरान मार्को पोलो भारत के दक्षिण के राज्यों से भी गुजरे। जहां उनकी रानी रूद्रमा से भेंट हुई। मार्को पोलो लिखते हैं कि ‘यहां एक रानी का राज है, जो बेहद समझदार महिला हैं’। विक्रम संपत लिखते हैं कि रानी रूद्रमा देवी एकमात्र स्वतंत्र महिला शासक थीं, जिनका उल्लेख मार्को पोलो ने अपनी दुनियाभर की यात्राओं में किया है।