Political Science

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ु े साभान्म ऻान के 100 प्रश्न उत्तय

विऻान से जड
(Political Science 100 GK Questions Answers In Hindi)
प्रश्न 1. उस व्मक्तत का नाभ फताइए क्जसने दार्शननक याजा का ससद्ाॊत प्रनतऩाददत ककमा था ?
उत्तय- प्रेटों ने।
प्रश्न 2. ितशभान भहासचचि सॊमत
ु त याष्ट्र सॊघ के भहासचचि कौन हैं ?
उत्तय- एॊटोननमो गुटेयेस।
प्रश्न 3. सभाजिाद का सॊफध
ॊ ककस दे र् के श्रेणी से हैं।
उत्तय- ब्रिटे न।
प्रश्न 4. उस व्मक्तत का नाभ फताइए क्जसने याज्म की उत्ऩक्त्त का दै िीम ससद्ाॊत प्रनतऩाददत ककमा था ?
उत्तय- जेम्स प्रथभ ने।
प्रश्न 5. कौन भख्
ु म सतकशता आमत
ु त की ननमक्ु तत कयता है ?
उत्तय- याष्ट्रऩनत।
प्रश्न 6. ककसी बी प्रत्मार्ी को अगय सॊसद का चन
ु ाि रडना है तो उसकी न्मन
ू तभ आमु ककतनी होनी चादहए ?
उत्तय- 25 सार।
प्रश्न 7. ककस सॊर्ोधन द्िाया बायतीम सॊविधान भें प्रस्तािना के दो र्ब्द सभाजिादी औय धभशननयऩेऺ को जोडा गमा है ?
उत्तय- 42वें।
प्रश्न 8. बायतीम सॊविधान के ककस बाग भें नीनत ननदे र्क तत्िों का िणशन ककमा गमा है ?
उत्तय- चतुथथ बाग।
प्रश्न 9. जज (जक्स्िस) र्ब्द ककस बाषा से सरमा गमा है ?
उत्तय- रैटटन।
प्रश्न 10. ककस ससभनत के द्िाया ऩॊचामत ससभनत का गठन ककमा जाता है ?
उत्तय- खॊड स्तय ऩय।
प्रश्न 11. “भेये ऩास खून , ऩसीना औय आॊसू के अरािा औय कुछ दे ने के सरए नहीॊ है ” मह फात ककस व्मक्तत ने कही थी
नाभ फताइए ?
उत्तय- चर्चथर ने।
प्रश्न 12. ककस जगह ऩय मन
ू ेस्को का भख्
ु मारम क्स्थत है ?
उत्तय- जेनेवा भें।
प्रश्न 13. सॊमत
ु त याष्ट्र ददिस कफ भनामा जाता है ?
उत्तय- 24 अक्टूफय।
प्रश्न 14. प्रभख
ु विचध अचधकायी बायत सयकाय का कौन होता है ?
उत्तय- बायत के भहान्मामवादी।
प्रश्न 15. कौन सा व्मक्तत मोजना आमोग का अध्मऺ होता है ?
उत्तय- प्रधानभॊत्री।
प्रश्न 16. ककस सन ् भें बायत छोडो आॊदोरन की र्रु
ु आत की गई थी ?
उत्तय- 1942 भें।
प्रश्न 17. बायतीम सॊविधान के ककस बाग भें भौसरक अचधकायों का उल्रेख ककमा गमा है ?
उत्तय- बाग -3 भें।
प्रश्न 18. ककस व्मक्तत ने स्ियाज भेया जन्भससद् अचधकाय है कहा था ?
उत्तय- रोकभान्म नतरक।
प्रश्न 19. सयु ऺा ऩरयषद सॊमत
ु त याष्ट्र सॊघ के सदस्मों की सॊख्मा ककतनी है ?
उत्तय- 15
प्रश्न 20. ककसे बायतीम सॊविधान का असबबािक कहा जाता है ?
उत्तय- सवोच्च न्मामारम।
प्रश्न 21. ककस व्मक्तत के ऩास सॊसद को बॊग कयने का अचधकाय है ?
उत्तय- याष्ट्रऩनत।
प्रश्न 22. गाॊधी जी ने ककसान आॊदोरन स्ितॊत्रता सॊग्राभ का प्रायॊ ब ककस जगह से र्रू
ु ककमा था ?
उत्तय- चॊऩायण से।
प्रश्न 23. दस
ू ये ककस नाभ से सन ् 1909 एति को जाना जाता है ?
उत्तय- भारो मभॊटो सुधाय।
प्रश्न 24. सॊविधाननक अध्मऺ बायत सयकाय का कौन है ?
उत्तय- याष्ट्रऩनत।
प्रश्न 25. ककस अनच्
ु छे द भें 42िें सॊर्ोधन के द्िाया भौसरक कतशव्मों को जोडा गमा है ?
उत्तय- अनुच्छे द-51A भें।
प्रश्न 26. ककसके द्िाया बायत की सॊविधान सबा को गदठत ककमा गमा था ?
उत्तय- कैब्रफनेट मभशन मोजना।
प्रश्न 27. उस व्मक्तत का नाभ फताइए क्जसने अनतरयतत भल्ू म का ससद्ाॊत प्रनतऩाददत ककमा था ?
उत्तय- कारथ भाक्सथ ने।
प्रश्न 28. ककस सन ् भें यॉरेि एति ऩारयत हुआ था ?
उत्तय- 1919 भें।
प्रश्न 29. सॊविधान सबा का ऩहरा अचधिेर्न ककस जगह हुआ था ?
उत्तय- टदल्री भें।
प्रश्न 30. बायतीम सॊविधान के ितशभान सभम भें कुर ककतने बाग हैं ?
उत्तय- 22।
प्रश्न 31. असहमोग आॊदोरन ककस काॊड के कायण फॊद कयना ऩडा था नाभ फताइए ?
उत्तय- चौयी-चौया काॊड।
प्रश्न 32. बायत भें कफ तक स्थामी सॊसद अक्स्तत्ि भें यही है ?
उत्तय- 17 अप्रैर, 1952
प्रश्न 33. मोजना आमोग का प्रनतस्थाऩना ककस से हुआ है ?
उत्तय- नीनत आमोग।
प्रश्न 34. उऩयाष्ट्रऩनत को उसके कामशकार की सभाक्तत से ऩहरे ऩद से हिाने का अचधकाय ककसको ददमा गमा है ?
उत्तय- सॊसद।
प्रश्न 35. उस ऩहरी भदहरा का नाभ फताएॊ जो सफसे ऩहरे बायतीम याष्ट्रीम काॊग्रेस की अध्मऺ थीॊ ?
उत्तय- एनी फीसेंट।
प्रश्न 36. चॊऩायण सत्माग्रह भहात्भा गाॊधी के द्िाया कफ र्रू
ु ककमा गमा था ?
उत्तय- 1917 भें।
प्रश्न 37. उस व्मक्तत का नाभ फताइए क्जसने सॊऩक्त्त सॊफध
ॊ ी “रीिसर्ऩ” का ससद्ाॊत प्रनतऩादन ककमा था ?
उत्तय- भहात्भा गाॊधी ने।
प्रश्न 38. जम्भ-ू कश्भीय के भख्
ु मभॊत्री के कामश कयने की अिचध ककतनी होती है ?
उत्तय- 6 सार।
प्रश्न 39. ककस सन ् भें आजाद दहॊद पौज सकिम हुआ था ?
उत्तय- 1942
प्रश्न 40. ककस सन ् भें बायतीम रोक प्रर्ासन सॊस्थान की स्थाऩना की गई थी ?
उत्तय- 1954, भाचथ को।
प्रश्न 41. न्मानमक ऩन
ु यािरोकन का ससद्ाॊत बायत ने ककस दे र् के सॊविधान से सरमा है उस दे र् का नाभ फताइए ?
उत्तय- सॊमुक्त याज्म अभेरयका।
प्रश्न 42. 1947 भें बायत की स्ितॊत्रता के सभम बायत का गिनशय जनयर कौन था ?
उत्तय- रॉडथ भाउॊ टफेटन।
प्रश्न 43. उस व्मक्तत का नाभ फताइए क्जसने गि
ु ननयऩेऺ फैदेसर्क नीनत के ससद्ाॊत का प्रनतऩादन ककमा था ?
उत्तय- जवाहयरार नेहरू ने।
प्रश्न44. आभतौय ऩय ककस सदस्म के रोगों को बायत के प्रधानभॊत्री के सरए चन
ु ा जाता है ?
उत्तय- रोकसबा का सदस्म।
प्रश्न 45. ककस अनच्ु छे द के द्िाया सॊविधान के सॊर्ोधन की प्रकिमा का उल्रेख ककमा गमा है ?
उत्तय- अनुच्छे द 368
प्रश्न 46. ककस सन ् भें बायत के गणतॊत्र ददिस को फनामा गमा था ?
उत्तय- 26 जनवयी, 1950
प्रश्न 47. याज्म रोक सेिा आमोग के सदस्मों की ननमक्ु तत कौन कयता है ?
उत्तय- याज्मऩार।
प्रश्न 48. विधान ऩरयषद के ककतने सदस्म प्रत्मेक दस
ू ये सार भें अिकार् रे सकते हैं ?
उत्तय- 1/3
प्रश्न 49. प्राकृनतक अिस्था भें भानि जीिन सन
ू ा , ननफशर , ननकृष्ट्ि औय अल्ऩजीिी था मे कथन ककसका है ?
उत्तय- हाब्स का।
प्रश्न 50. सभाजिाद का सॊफध
ॊ ककससे है ?
उत्तय- श्रमभक।
प्रश्न 51. सफसे ऩहरे सॊविधान सबा के गठन की भाॊग ककस व्मक्तत ने की थी ?
उत्तय- फार गॊगाधय नतरक।
प्रश्न 52. ककस सन ् भें आभ आदभी ऩािी की स्थाऩना की गई थी ?
उत्तय- 26 नवॊफय, 2012
प्रश्न 53. „गयीफी हिाओ ‟ का नाया ककसने ददमा था ?
उत्तय- इन्न्दया गाॊधी।
प्रश्न 54. रोकसबा भें 543 सीिों भें से अनस
ु चू चत जानत के रोगों के सरए ककतनी सीिें उऩरब्ध हैं ?
उत्तय- 84
प्रश्न 55. ककस सन ् भें बायत छोडो आॊदोरन की र्रु
ु आत हुई थी ?
उत्तय- 1942
प्रश्न 56. ककस अनच्ु छे द के द्िाया भॊत्रत्रभॊडर की सराह भानने के सरए बायत के याष्ट्रऩनत फाध्म हैं ?
उत्तय- 74वें।
प्रश्न 57. बायतीम सॊविधान सबा के प्रथभ अध्मऺ कौन थे नाभ फताइए ?
उत्तय- डॉक्टय याजेंद्र प्रसाद।
प्रश्न 58. बायत भें ककतने उच्च न्मामारम हैं ?
उत्तय- 24
प्रश्न 59. भॊत्रीऩरयषद भें ककतने स्तय के भॊत्री होते हैं ?
उत्तय- 3
प्रश्न 60. ककस ददन विश्ि ऩमाशियण ददिस को भनामा जाता है ?
उत्तय- 5 जून।
प्रश्न 61. बायत का याष्ट्रऩनत अऩना त्मागऩत्र ककसे दे ता है ?
उत्तय- उऩयाष्ट्रऩनत।
प्रश्न 62. ककसकी स्िीकृनत के द्िाया सयकायी ऩैसे का खचाश नहीॊ ककमा जाता है ?
उत्तय- सॊसद।
प्रश्न 63. ककस सॊर्ोधन के द्िाया बायत भें नागरयकों के भौसरक कतशव्म को जोडा गमा है ?
उत्तय- 1976 के 42 वें सॊववधान सॊशोधन।
प्रश्न 64. बायत के सॊविधान भें अनच्
ु छे दों की सॊख्मा फताएॊ ?
उत्तय- 445
प्रश्न 65. बायतीम सॊविधान के ककस बाग भें भर
ू अचधकाय के फाये भें विस्ताय से फतामा गमा है ?
उत्तय- बाग 3
प्रश्न 66. उस याज्म का नाभ फताइए जहाॊ ऩय साझा उच्च न्मामारम है ?
उत्तय- गोवा औय भहायाष्ट्र।
प्रश्न 67. ककसको मोजना आमोग के अध्मऺ के सरए चुना गमा है ?
उत्तय- प्रधानभॊत्री।
प्रश्न 68. ककसी बी वित्तीम त्रफर को प्रस्तावित कयने के सरए ककसे चन
ु ा गमा है ?
उत्तय – केवर रोकसबा को
प्रश्न 69. ककस िषश के फच्चों को सर्ऺा का अचधकाय प्रातत है ?
उत्तय- भूर अर्धकाय, 6 से 14 सार के फच्चों को।
प्रश्न 70. ककस व्मक्तत को बायत का ग्रैंड ओल्ड भैन कहा जाता है ?
उत्तय- दादाबाई नौयोजी।
प्रश्न 71. असहमोग आॊदोरन के दौयान ककस व्मक्तत ने अऩनी िकारत को छोड ददमा था ?
उत्तय- भोतीरार नेहरू।
प्रश्न 72. ककस बाग भें भौसरक अचधकाय को िर्णशत ककमा गमा है ?
उत्तय- बाग ।।।
प्रश्न 73. उस व्मक्तत का नाभ फताइए जो काॊग्रेस के सॊस्थाऩक थे ?
उत्तय- डॉक्टय एस. याधाकृष्ट्णना।
प्रश्न 74. सफसे ऩहरी फैठक बायतीम सॊविधान ननभाशत्री ऩरयषद की कफ हुई थी ?
उत्तय- 9 टदसॊफय, 1946 को।
प्रश्न 75. बायतीम याष्ट्रीम काॊग्रेस का प्रथभ अध्मऺ कौन था ?
उत्तय- डब्ल्मू. सी. फनजी।
प्रश्न 76. ककस अनच्
ु छे द भें बायतीम सॊविधान स्ितॊत्रता के अचधकाय का िणशन ककमा गमा है ?
उत्तय- अनुच्छे द-19
प्रश्न 77. सिोच्च सेनाऩनत बायतीम सेनाओॊ का कौन होता है ?
उत्तय- याष्ट्रऩनत।
प्रश्न 78. ककस व्मक्तत को सीभाॊत गाॊधी के नाभ से जाना जाता है ?
उत्तय- ऽान अब्दर
ु गफ्पाय ऽान।
प्रश्न 79. विश्ि का सफसे फडा सरर्खत एिॊ सिाशचधक व्माऩक सॊविधान ककस दे र् का है नाभ फताइए ?
उत्तय- बायत।
प्रश्न 80. बायत का सॊविधान फनने भें ककतना सभम रगा था ?
उत्तय- 2 सार 11 भाह 18 टदन।
प्रश्न 81. ककस दे र् के सॊविधान के द्िाया याज्म के नीनत ननदे र्क तत्ि को फनामा गमा है ?
उत्तय- आमयरैंड।
प्रश्न 82. „र्न्ू मकार‟ याजनीनतक र्ब्दािरी भें अथश तमा होता है ?
उत्तय- प्रश्न उत्तय सत्र।
प्रश्न 83. याज्म सबा की फैठकों का सबाऩनत कौन होता है ?
उत्तय- उऩयाष्ट्रऩनत।
प्रश्न 84. सॊघीम कामशऩासरका का उत्तयदाई कौन होता है ?
उत्तय- रोकसबा के प्रनत।
प्रश्न 85. न्मामाधीर्ों की ननमक्ु तत कौन कयता है ?
उत्तय- याष्ट्रऩनत।
प्रश्न 86. कोई बी याष्ट्रऩनत ककसकी सराह से ककसी याज्म के याज्मऩार की ननमक्ु तत कयता है ?
उत्तय- प्रधानभॊत्री।
प्रश्न 87. ककस व्मक्तत ने “जॊहा कानन
ू नहीॊ िहाॊ स्ितॊत्रता बी नहीॊ होती ” कहा था ?
उत्तय- रॉक ने।
प्रश्न 88. ककस जगह ऩय अॊतययाष्ट्रीम न्मामारम क्स्थत है ?
उत्तय- हे ग भें।
प्रश्न 89. ककस सॊिध
ै ाननक सॊर्ोधन अचधननमभ के द्िाया गोिा को याज्म का दजाश सभरा है ?
उत्तय- 56वें।
प्रश्न 90. ककस व्मक्तत ने “पूि डारो औय याज कयो ” की नीनत अऩनाई थी उसका नाभ फताइए ?
उत्तय- रॉडथ कजथन।
प्रश्न 91. ककस सन ् भें रोकसबा के सरए ऩहरा आभ चुनाि हुआ था ?
उत्तय- 1952
प्रश्न 92. ककस सबा के द्िाया फजि को ऩारयत ककमा जाता है ?
उत्तय – रोकसबा।
प्रश्न 93. ककसके द्िाया अस्थाई रोकसबा अध्मऺ को ननमत
ु त ककमा जाता है ?
उत्तय- याष्ट्रऩनत।
प्रश्न 94. ककस सदन भें अविश्िास प्रस्ताि रामा जाता है ?
उत्तय- रोकसबा।
प्रश्न 95. एक व्मक्तत ककतनी फाय याष्ट्रऩनत फन सकता है ?
उत्तय- कई फाय।
प्रश्न 96. बायत के याष्ट्रऩनत के ऩास कौन सी िोि र्क्तत होती है नाभ फताएॊ ?
उत्तय- ऩुणे ननषेध।
प्रश्न 97. बायत सयकाय का सॊिध
ै ाननक अध्मऺ कौन है ?
उत्तय- भहान्मवादी।
प्रश्न 98. याष्ट्रऩनत के चुनाि भें अगय वििाद उत्ऩन्न हो , तो ककसकी सराह री जाती है ?
उत्तय- सुप्रीभ कोटथ ।
प्रश्न 99. ककसकी ननमक्ु तत बायत का याष्ट्रऩनत नहीॊ कय सकता ?
उत्तय- भुख्म ननवाथचन आमुक्त।
प्रश्न 100. याज्मों भें रोक सर्कामत औय भ्रष्ट्िाचाय ऩय कामश ककसके द्िाया ककमा जाता है ?
उत्तय- रोकमक्
ु त।

Environment science

प्रश्न 1. उस प्रदे र् का नाभ फताइए जहाॊ ऩय बायत भें सफसे अचधक िन ऩाए जाते हैं ?
उत्तय- भध्म प्रदे श।

प्रश्न 2. ऩमाशियण ककसे कहते हैं ?


उत्तय- ऩमाथवयण की उत्ऩन्त्त सॊस्कृत बाषा से हुई है , जो दो शब्दों से मभरकय फना है ऩरय+आवयण न्जसका
अथथ होता है चायों ओय से घेये हुए। ऩमाथवयण को अॊग्रेजी भें Environment कहा जाता है ।

प्रश्न 3. काफशन डाई ऑतसाइड , भोनो ऑतसाइड , सल्पय डाइऑतसाइड भें कौन सा प्रदषू ण होता है ?
उत्तय- वामु प्रदष
ू ण।

प्रश्न 4. ककस प्रदष


ू ण को भाऩने के सरए फामोकेसभकर ऑतसीजन डडभाॊड ऩयीऺा की जाती है ?
उत्तय- जर प्रदष
ू ण।

प्रश्न 5. PAN तमा है ?


उत्तय- वामु प्रदष
ू ण।

प्रश्न 6. ककस जगह ऩय याष्ट्रीम ऩमाशियण अनस


ु ध
ॊ ान केंद्र क्स्थत है ?
उत्तय- नागऩयु (भहायाष्ट्र)।

प्रश्न 7. िामभ
ु ड
ॊ र भें ओजोन ऩयत से हभायी यऺा ककन ककयणों से होती है ?
उत्तय- ऩयाफैंगन ककयणों से।
प्रश्न 8. उस गैस का नाभ फताइए जो सफसे ज्मादा िामभ
ु ड
ॊ र भें ऩाई जाती है ?
उत्तय- नाइरोजन।

प्रश्न 9. ककस कायण की िजह से आकार् नीरा ददखाई ऩडता है ?


उत्तय- प्रकीणथन के कायण।

प्रश्न 10. ककस ददन विश्ि ऩमाशियण ददिस भनामा जाता है ?


उत्तय- 5 जून।

प्रश्न 11. ऩथ्


ृ िी का ताऩभान ग्रीन हाउस के प्रबाि से फढ़ता है मा घिता है ?
उत्तय- फढ़ता है ।

प्रश्न 12. ककस िऺ


ृ को „ऩमाशियण का दश्ु भन ‟ कहा जाता है ?
उत्तय- सपेदा।

प्रश्न 13. ककतने प्रनतर्त ब-ू बाग ऩय याष्ट्रीम िन नीनत के अनस


ु ाय िन होना अननिामश है ?
उत्तय- 33 प्रनतशत ब-ू बाग ऩय।

प्रश्न 14. „ग्रीन ऩीस ‟ तमा होता है नाभ फताइए ?


उत्तय- ऩमाथवयण मोजना।

प्रश्न 15. चचऩको आॊदोरन ककस उद्देश्म के सरए फनामा गमा था ?


उत्तय- वनों की सयु ऺा के मरए।

प्रश्न 16. ऩमाशियण विबाग की स्थाऩना बायत सयकाय के द्िाया ककस िषश की गई थी ?
उत्तय- 1980 भें।

प्रश्न 17. UNEP का भख्


ु मारम ककस जगह ऩय क्स्थत है ?
उत्तय- नैयोफी भें।

प्रश्न 18. उस गैस का नाभ फताइए जो पोिो कॉऩी भर्ीन भें उत्ऩाददत होती है ?
उत्तय- ओजोन।

प्रश्न 19. उस ऩर्ु का नाभ फताइए क्जसे विश्ि िन्म जीि कोष द्िाया प्रतीक के रूऩ भें सरमा गमा है ?
उत्तय- ऩाॊडा।

प्रश्न 20. उस याज्म का नाभ फताइए क्जसे „िाइगय याज्म ‟ के नाभ से जाना जाता है ?
उत्तय- भध्म प्रदे श।

प्रश्न 21. उस व्मक्तत का नाभ फताइए क्जसने िन भहोत्सि का आयॊ ब ककमा था ?


उत्तय- के. एभ. भॊश
ु ी।
प्रश्न 22. उस जगह का नाभ फताइए जहाॊ ऩय विश्ि िन जीि सॊयऺण कोष क्स्थत है ?
उत्तय- न्स्वट्जयरैंड।

प्रश्न 23. उस पर िऺ
ृ का नाभ फताएॊ जो सफसे ऩहरे प्राचीन कार से उगामा जाता है ?
उत्तय- खजूय।

प्रश्न 24. सपोकेर्न तमा होता है ?


उत्तय- ऑक्सीजन की कभी का जीवन ऩय प्रबाव।

प्रश्न25. उस गैस का नाभ फताइए जो जरिामु ऩरयितशन भें सफसे अचधक भहत्िऩण
ू श बसू भका ननबाती है ?
उत्तय- ग्रीन हाउस गैस।

प्रश्न 26. उस गैस का नाभ फताइए जो सफसे ज्मादा ओजोन ऺमकायी भानी जाती है ?
उत्तय- क्रोयोफ्रोयोकाफथन (CFC)।

प्रश्न 27. ककन गैसों का सॊमत


ु त रूऩ तरोयोफ्रोयोकाफशन है ?
उत्तय- एक काफथननक मौर्गक है जो केवर काफथन , क्रोयीन, हाइड्रोजन औय फ्रोयीन ऩयभाणुओॊ से फनता है ।

प्रश्न 28. तरोयोफ्रोयोकाफशन का प्रमोग बत


ू र ऩय कहाॊ ककमा जाता है ?
उत्तय- ये किजयें ट, प्रणोदक (एमयोसोर अनुप्रमोगों भें ) औय ववरामक के तौय ऩय व्माऩक रूऩ से होता है ।

प्रश्न 29. प्रत्मऺ ऩरयणाभ ग्रीन हाउस का प्रबाि तमा होगा ?


उत्तय- ग्रेमशमय वऩघरने रगें गे।

प्रश्न 30. „िऺ


ृ ों का आदभी ‟ बायत भें ककसे कहा जाता है नाभ फताइए ?
उत्तय- सुॊदयरार फहुगुणा को।

प्रश्न 31. ककस स्थान ऩय सफसे अचधक जैि विविधता ऩाई जाती है ?
उत्तय- उष्ट्ण कटटफॊधीम वषाथ वन भें (रॉवऩकर ये न पॉये स्ट)।

प्रश्न 32. उस जगह का नाभ फताइए जहाॊ ऩय फामोिे तनोरॉजी ऩाकश क्स्थत है ?
उत्तय- रखनऊ।

प्रश्न 33. ककस ददन भनामा जाता है ऩथ्


ृ िी ददिस ?
उत्तय- 22 अप्रैर।

प्रश्न 34. बविष्ट्म का ईंधन ककसे कहा जाता है ?


उत्तय- हाइड्रोजन।

प्रश्न 35. यऺा किच ऩमाशियण का ककसे कहा जाता है नाभ फताइए ?
उत्तय- ओजोन ऩयत।
प्रश्न 36. ककससे सॊफचॊ धत है ये ड डािा फक
ु नाभ फताइए ?
उत्तय- ववरुप्त के सॊकट से ग्रस्त जीवों से।

प्रश्न 37. सफसे प्रदवू षत नगय विश्ि का कौन सा है ?


उत्तय- भैन्क्सको मसटी।

प्रश्न 38. उस जगह का नाभ फताइए जहाॊ ऩय एनिामयभेंि एजुकेर्न पॉय ककडस मए
ू सए क्स्थत है ?
उत्तय- ववस्कोमसन।

प्रश्न 39. सीएनजी का ऩयू ा नाभ फताइए ?


उत्तय- सॊऩीडडत प्राकृनतक गैस।

प्रश्न 40. ध्िनन प्रदष


ू ण ककतने डेससफर से भाना जाता है ?
उत्तय- 65 डेमसफर।

प्रश्न 41. कौन सा ऩयीऺण ककमा जाता है जर प्रदष


ू ण को भाऩने के सरए नाभ फताइए ?
उत्तय- फामोकेमभकर ऑक्सीजन डडभाॊड।

प्रश्न 42. ताजभहर के ऺयण होने औय उसके ऩीरे ऩडने का भख्


ु म कायण फताइए ?
उत्तय- अम्रीम वषाथ।

प्रश्न 43. भानि ननसभशत द्िाया उऩग्रह कहाॊ ऩय स्थावऩत ककमा गमा है नाभ फताइए ?
उत्तय- िह्भा वामभ
ु ॊडर भें।

प्रश्न 44. उस जगह का नाभ फताइए जहाॊ ऩय दे र् का ऩरयक्स्थनतकी अनस


ु ध
ॊ ान एिॊ प्रसर्ऺण केंद्र क्स्थत है ?
उत्तय- फॊगरौय (कनाथटक)

प्रश्न 45. उस जगह का नाभ फताइए जहाॊ ऩय बायत का ऩमाशियण सर्ऺा केंद्र क्स्थत है ?
उत्तय- अहभदाफाद (गुजयात)।

प्रश्न 46. उस जगह का नाभ फताइए जहाॊ ऩय इॊददया गाॊधी िाननकी अकादभी क्स्थत है ?
उत्तय- दे हयादन
ू ।

प्रश्न 47. कफ भनामा जाता है विश्ि िाननकी ददिस ?


उत्तय- 21 भाचथ।

प्रश्न 48. उस जगह का नाभ फताइए जहाॊ ऩय बायतीम िन सिेऺण का भख्


ु मारम क्स्थत है ?
उत्तय- दे हयादन
ू भें।

प्रश्न 49. उस जगह का नाभ फताइए जहाॊ ऩय बायतीम िन प्रफॊध सॊस्थान क्स्थत है ?
उत्तय- बोऩार।
प्रश्न 50. बायत का कौन सा स्थान है ऩमाशियण सॊयऺण की दृक्ष्ट्ि से विश्ि भें?

उत्तय- 101 वाॊ।

प्रश्न 51. बायत की कुर बसू भ का ककतना दहस्सा ऩमाशियण सभस्मा के कायण फेकाय ऩडा हुआ है ?
उत्तय- रगबग एक नतहाई।

प्रश्न 52. प्रकृनतक सॊसाधनों को ककतने िगों भें फाॊिा जा सकता है ?


उत्तय- जर सॊसाधन, वन सॊसाधन, बमू भ सॊसाधन, ऊजाथ सॊसाधन, खननज सॊसाधन व खाद्म सॊसाधन भें फाॊटा
जा सकता है ।

प्रश्न 53. उस दे र् का नाभ फताइए क्जसने सफसे ऩहरे अऩने सॊविधान भें ऩमाशियण सॊयऺण एिॊ सॊिधशन विषम को स्थान
ददमा?
उत्तय- बायत।

प्रश्न 54. ऩहरा ऩथ्


ृ िी सम्भेरन ककस जगह ऩय हुआ था ?
उत्तय- प्रथभ अॊतययाष्ट्रीम ऩथ्
ृ वी सम्भरेन रयमो डी जेनेयो भें 3 से 14 जून 1992 भें हुआ था।

प्रश्न 55. ऩमाशियण सॊयऺण की र्रु


ु आत ककस सन ् भें हुई थी ?
उत्तय- 1948।

प्रश्न 56. उस जगह का नाभ फताइए जहाॊ ऩय अॊतययाष्ट्रीम ऩमाशियण सच


ू ना केंद्र क्स्थत है ?
उत्तय- न्मम
ू ाकथ भें।

प्रश्न 57. इको तरफ तमा है औय इसके उद्देश्म के फाये भें विस्ताय से फताइमे ?
उत्तय- ववद्मारमों भें ऩढ़ने वारे छात्रों भें ऩमाथवयण सॊयऺण के अनुकूर आदतें डारने के मरए केंद्र सयकाय
ने इको क्रफ मोजना की शरु
ु आत की है न्जनभें ववमबन्न भाध्मभों से छात्रों को ऩमाथवयण के प्रनत जागरूक
ककमा जाता है ।

प्रश्न 58. प्रकृनतक सॊसाधन ककसे कहते हैं ?


उत्तय- जो सॊसाधन हभें सीधे तौय ऩय प्रकृनत से मभरते हैं उन्हें प्राकृनतक सॊसाधन कहते हैं।

प्रश्न 59. UNEP तमा है ?


उत्तय- सॊमुक्त याष्ट्र ऩमाथवयण कामथक्रभ (मूनाइटे ड नेशनर एनवामयभेंट प्रोग्राभ)।

प्रश्न 60. सॊमत


ु त याष्ट्र ऩमाशियण कामशिभ का भख्
ु मारम ककस जगह ऩय क्स्थत है ?
उत्तय- नैयोफी भें।

प्रश्न 61. उन दे र्ों का नाभ फताइए जो तमोिो प्रोिोकॉर को नहीॊ भानते हैं ?
उत्तय- अभेरयका औय ऑस्रे मरमा।
प्रश्न 62. ऩथ्
ृ िी के चाय ऩरयभॊडर का नाभ फताइए ?
उत्तय- स्थर भॊडर, वामु भॊडर, जर भॊडर औय जैव भॊडर।

प्रश्न 63. उस व्मक्तत का नाभ फताइए क्जसे ग्रीन जज के नाभ से जाना जाता है ?
उत्तय- जन्स्टस कुरदीऩ मसॊह।

प्रश्न 64. ऩरयक्स्थनतकी विऻान तमा है ?


उत्तय- जीवववऻान व बूगोर की एक शाखा है न्जसभें जीव सभुदामों का उसके वातावयण के साथ
ऩायस्ऩरयक सॊफॊधों का अध्ममन कयते हैं।

प्रश्न 65. ऩहरा विश्ि ऩमाशियण सम्भेरन कहाॊ हुआ था ?


उत्तय- स्वीडन भें।

प्रश्न 66. उस व्मक्तत का नाभ फताएॊ क्जसने विद्मारम औय अन्म सर्ऺा सॊस्थान भें ऩमाशियण सर्ऺा का प्रािधान कयामा है ?
उत्तय- श्री एभ. सी. भेहता।

प्रश्न 67. ककस जगह ऩय ऩमाशियण अध्ममन केंद्र क्स्थत है ?


उत्तय- चेन्नई भें।

प्रश्न 68. ककस तयह की बायत की जरिामु है ?


उत्तय- उष्ट्णकटटफॊधीम जरवामु।

प्रश्न 69. ऩथ्


ृ िी के ताऩ को कौन फनाए यखता है ?
उत्तय- CO2 एवॊ जर वाष्ट्ऩ।

प्रश्न 70. उस जगह का नाभ फताइए जहाॊ ऩय केंद्रीम ऩमाशियण असबमॊत्रण सॊस्थान क्स्थत है ?
उत्तय- नागऩयु ।

प्रश्न 71. सफसे ज्मादा रिणता ककस झीर की है नाभ फताइए ?


उत्तय- वान झीर, तुकी, 330%

प्रश्न 72. ग्रेनाइि औय फेसाल्ि तमा है ?


उत्तय- आग्नेम चट्टान।

प्रश्न 73. जरिाष्ट्ऩ की भात्रा िामभ


ु ड
ॊ र भें ककतनी होती है ?
उत्तय- 0 से 4%

प्रश्न 74. सफसे अचधक िषाश बायत भें कहाॊ होती है ?


उत्तय- भामसनयाभ, भेघारम।
प्रश्न 75. स्रेि औय सॊगभयभय तमा है नाभ फताइए ?
उत्तय- रूऩाॊतरयत चट्टान।

प्रश्न 76. जर का ककतना बाग स्िच्छ है ?


उत्तय- 2.5 प्रनतशत।

प्रश्न 77. ओजोन ऩयत के भाऩने की इकाई को तमा कहते हैं ?


उत्तय- डोफसन।

प्रश्न 78. ऩथ्


ृ िी के चायों तयप गैसीम आियण को तमा कहा जाता है नाभ फताइए ?
उत्तय- वामु भॊडर।

प्रश्न 79. एस आई भात्रक िामभ


ु ड
ॊ रीम दाफ ककतना होता है ?
उत्तय- फाय।

प्रश्न 80. ग्रीन हाउस गैस कौन सी होती है ?


उत्तय- CO2, NO2, CH4, CFC

प्रश्न 81. िामभ


ु ड
ॊ र की सफसे ननचरी ऩयत का नाभ फताइए ?
उत्तय- ऺोबभॊडर।

प्रश्न 82. सभद्र


ु ी जर भें तमा ऩामा जाता है ?
उत्तय- सोडडमभ क्रोयाइड।

प्रश्न 83. भहासागयों की औसत गहयाई ककतनी होगी ?


उत्तय- 4000 भीटय।

प्रश्न 84. उस व्मक्तत का नाभ फताइए क्जसने सफसे ऩहरे बायत के भानसन
ू का िणशन ककमा था ?
उत्तय- अरभसुदी अयफ ववद्वान।

प्रश्न 85. ऩछुिा हिा को तमा कहा जाता है नाभ फताइए ?


उत्तय- गयजता चारीसा।

प्रश्न 86. न्मन


ू तभ िषाश कहाॊ होती है ?
उत्तय- ध्रुवीम ऺेत्रों भें।

प्रश्न 87. सक्ष्


ू भजीिों के अिर्ेष कहाॊ ऩाए जाते हैं ?
उत्तय- अवसादी चट्टानों भें।

प्रश्न 88. जीिभॊडर औय िाताियण के फीच के सॊफध


ॊ को तमा कहा जाता है ?
उत्तय- ऩरयन्स्थनतकी।
प्रश्न 89. ऩछुिा हिा ककस िजह से चरती है ?
उत्तय- चक्रवती वषाथ के कायण।

प्रश्न 90. उस जगह का नाभ फताइए जहाॊ ऩय जाडे के ददनों भें िषाश होती है ?
उत्तय- तमभरनाडु के तटों ऩय।

प्रश्न 91. बू उत्तय भॊडर के ककतने प्रनतर्त बाग ऩय जर है ?


उत्तय- 71 प्रनतशत बाग ऩय

प्रश्न 92. उस गैस का नाभ फताइए जो ओजोन ऩयत को नष्ट्ि कयती है ?


उत्तय- CFC

प्रश्न 93. िामभ


ु ड
ॊ र की सफसे ऊऩयी ऩयत को तमा कहा जाता है नाभ फताइए ?
उत्तय- फटहभॊडर।

प्रश्न 94. िामभ


ु ड
ॊ र भें विद्मभान अकिम गैस का नाभ फताइए ?
उत्तय- आगनथ गैस।

प्रश्न 95. उस व्मक्तत का नाभ फताएॊ क्जसने ग्रीनहाउस गैस की सॊकल्ऩना की थी ?


उत्तय- जोसेप िारयमय।

प्रश्न 96. िामभ


ु ड
ॊ रीम दाफ को ककस मॊत्र के द्िाया भाऩा जाता है नाभ फताइए ?
उत्तय- फैयोभीटय के द्वाया।

प्रश्न 97. उस याज्म का नाभ फताइए जहाॊ ऩय सफसे ऩहरे भानसन


ू आता है ?
उत्तय- केयर भें।

प्रश्न 98. जीिभॊडर ऩय ऊजाश का भर


ू स्रोत तमा है ?
उत्तय- सूम।थ

प्रश्न 99. ऩमाशियण अध्ममन को तमा कहा जाता है नाभ फताइए ?


उत्तय- इकोरॉजी।

प्रश्न 100. पेयर का ननमभ ककससे सॊफचॊ धत है नाभ फताइए ?


उत्तय- ऩवनों की टदशा से।

प्रश्न 1.
सॊघीम भॊब्रत्र-ऩरयषद् के सदस्म साभूटहक रूऩ से ककसके प्रनत उत्तयदामी है ।
(क) याज्मसबा
(ख) रोकसबा
(ग) रोकसबा व याज्मसबा दोनों
(घ) रोकसबा, याज्मसबा तथा याष्ट्रऩनत
उत्तय :
(ख) रोकसबा।
प्रश्न 2.
भॊब्रत्रऩरयषद का कामथकार ककतना है ?
(क) ऩाॉच वषथ
(ख) चाय वषथ
(ग) अननन्श्चत
(घ) दो वषथ
उत्तय :
(ग) अननक्श्चत।
प्रश्न 3.
प्रधानभॊत्री ककसके प्रनत उत्तयदामी है ?
(क) याष्ट्रऩनत
(ख) रोकसबा
(ग) याज्मसबा
(घ) उच्चतभ न्मामारम
उत्तय :
(ख) रोकसबा।
प्रश्न 4.
बायत भें केंद्रीम भॊब्रत्रऩरयषद् का कामथकार है –
(क) 5 वषथ
(ख) 4 वषथ
(ग) अननन्श्चत
(घ) 2 वषथ
उत्तय :
(क) 5 िषश।
प्रश्न 5.
भॊब्रत्रऩरयषद् का अध्मऺ होता है –
(क) याष्ट्रऩनत
(ख) प्रधानभॊत्री
(ग) उऩयाष्ट्रऩनत
(घ) रोकसबा अध्मऺ
उत्तय :
(ख) प्रधानभॊत्री।
प्रश्न 6.
बायत भें ककस प्रकाय की कामथऩामरका है ।
(क) सॊसदीम
(ख) अध्मऺात्भक
(ग) अर्द्थ-अध्मऺात्भक
(घ) याजतन्त्रात्भक
उत्तय :
(क) सॊसदीम।
प्रश्न 7.
जभथनी भें सयकाय का प्रधान कौन होता है ?
(क) याष्ट्रऩनत
(ख) प्रधानभॊत्री
(ग) चाॊसरय
(घ) उऩयाष्ट्रऩनत
उत्तय :
(ग) चाॊसरय।
प्रश्न 8.
ननम्नमरखखत भें से कौन बायत के याष्ट्रऩनत का चुनाव कयता है ?
(क) रोकसबा के सदस्म
(ख) रोकसबा एवॊ याज्मसबा के सदस्म
(ग) रोकसबा एवॊ ववधानसबा के सदस्म
(घ) रोकसबा, याज्मसबा एवॊ ववधानसबा के ननवाथर्चत सदस्म
उत्तय :
(घ) रोकसबा, याज्मसबा एिॊ विधानसबा के ननिाशचचत सदस्म।
प्रश्न 9.
याष्ट्रऩनत द्वाया याज्मसबा के ककतने सदस्मों को भनोनीत ककमा जाता है ?
(क) 14
(ख) 2
(ग) 15
(घ) 12
उत्तय :
(घ) 12
प्रश्न 10.
याष्ट्रऩनत शासन की अवर्ध ककतनी होती है ?
(क) छ: भाह
(ख) एक वषथ
(ग) दो वषथ
(घ) ननन्श्चत नहीॊ
उत्तय :
(क) छ: भाह।
प्रश्न 11.
बायतीम सैन्म फर का प्रधान कौन होता है ?
(क) प्रधानभॊत्री
(ख) थर सेना का अध्मऺ
(ग) याष्ट्रऩनत
(घ) उऩयाष्ट्रऩनत
उत्तय :
(ग) याष्ट्रऩनत।
प्रश्न 12.
याज्मसबा का सबावऩत कौन होता है ?
(क) याष्ट्रऩनत
(ख) उऩयाष्ट्रऩनत
(ग) प्रधानभॊत्री
(घ) स्ऩीकय
उत्तय :
(ख) उऩयाष्ट्रऩनत।
प्रश्न 13.
याष्ट्रऩनत को भहामबमोग की प्रकक्रमा द्वाया कौन हटा सकता है ?
(क) सॊसद
(ख) भॊब्रत्रऩरयषद्
(ग) उऩयाष्ट्रऩनत
(घ) रोकसबा
उत्तय :
(क) सॊसद।
प्रश्न 14.
भॊब्रत्रऩरयषद् की सदस्म सॊख्मा
(क) सॊववधान भें सॊववधान सॊशोधन अर्धननमभ द्वाया ननधाथरयत की गई है ।
(ख) प्रधानभॊत्री ननधाथरयत कयता है ।
(ग) रोकसबा अध्मऺ ननधाथरयत कयता है ।
(घ) याष्ट्रऩनत ननधाथरयत कयता है ।
उत्तय :
(क) सॊविधान भें सॊविधान सॊर्ोधन अचधननमभ द्िाया ननधाशरयत की गई है।
प्रश्न 15.
ववदे श नीनत का भुख्म ननभाथता कौन होता है ?
(क) ववदे शभॊत्री
(ख) याष्ट्रऩनत
(ग) प्रधानभॊत्री
(घ) याजदत

उत्तय :
(ग) प्रधानभॊत्री।
प्रश्न 16.
सॊसदीम शासन भें वास्तववक शन्क्त ननटहत होती है –
(क) याष्ट्रऩनत एवॊ सॊसद भें
(ख) सॊसद एवॊ प्रधानभॊत्री भें
(ग) भॊब्रत्रऩरयषद् एवॊ प्रधानभॊत्री भें
(घ) याष्ट्रऩनत एवॊ प्रधानभॊत्री भें।
उत्तय :
(ग) भॊत्रत्रऩरयषद् एिॊ प्रधानभॊत्री भें।
प्रश्न 17.
बायतीम कामथऩामरका का ‗ऩॉकेट वीटों ककसके ऩास होता है ?
(क) प्रधानभॊत्री
(ख) याष्ट्रऩनत
(ग) उऩयाष्ट्रऩनत
(घ) उऩप्रधानभॊत्री
उत्तय :
(ख) याष्ट्रऩनत।
प्रश्न 18.
सयकाय के स्थामी कभथचायी ककस सेवा के अन्तगथत आते हैं ?
(क) ववधानसबा
(ख) नागरयक सेवा
(ग) सॊसदीम स्टाप
(घ) प्रशासननक स्टाप
उत्तय :
(ख) नागरयक सेिा।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
कामथऩामरका से आऩ क्मा सभझते हैं ?
उत्तय :
कामथऩामरका सयकाय का वह अॊग है जो ववधानमका द्वाया स्वीकृत नीनतमों औय कानूनों को रागू कयने के
मरए न्जम्भेदाय है ।
प्रश्न 2.
कामथऩामरका के दो प्रभुख कामथ फताइए।
उत्तय :
1. कामथऩामरका व्मवस्थावऩका द्वाया ननमभथत कानूनों को कामाथन्न्वत कयती है तथा
2. ववदे श नीनत का सॊचारन कयती है ।
प्रश्न 3.
कामथऩामरका की ननमुन्क्त की दो ववर्धमाॉ फताइए।
उत्तय :
1. ननवाथचन ऩर्द्नत तथा
2. वॊशानुगत ऩर्द्नत।
प्रश्न 4.
ककन दे शों भें व्मवस्थावऩका के दोनों सदनों द्वाया कामथऩामरका के अध्मऺ मा समभनत का चुनाव होता है ?
उत्तय :
न्स्वट्जयरैण्ड, मूगोस्राववमा औय तुकी। प्रश्न 5. ककन दे शों भें कामथऩामरका के अध्मऺ का ननवाथचन प्रत्मऺ
रूऩ से भतदाताओॊ के भतों द्वाया होता है ? उत्तय-िाॊस, िाजीर, र्चरी, ऩेरू, भैन्क्सको, घाना आटद।
प्रश्न 6.
कामथऩामरका को एक न्मानमक कामथ फताइए।
उत्तय :
प्रशासननक ववबाग द्वाया अथथदण्ड दे ना, कामथऩामरका का एक न्मानमक कामथ है ।
प्रश्न 7.
नाभभात्र की कामथऩामरका का एक उदाहयण दीन्जए।
उत्तय :
बायत का याष्ट्रऩनत व ब्रिटे न की सम्राऻी नाभभात्र की कामथऩामरका के उदाहयण हैं।
प्रश्न 8.
फहुर कामथऩामरका का एक रऺण फताइए।
उत्तय :
इस व्मवस्था भें कामथकारयणी सम्फन्धी शन्क्तमाॉ एक व्मन्क्त के हाथों भें ननटहत न होकय अनेक व्मन्क्तमों
की एक ऩरयषद् अथवा अनेक अर्धकारयमों के सभह
ू भें ननटहत होती हैं।
प्रश्न 9.
कामथऩामरका के ककन्हीॊ दो रूऩों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
1. एकर कामथऩामरका तथा
2. फहुर कामथऩामरका।
प्रश्न 10.
बायत भें कामथऩामरका का औऩचारयक प्रधान कौन है ?
उत्तय :
बायत भें कामथऩामरका का औऩचारयक प्रधान याष्ट्रऩनत होता है ।
प्रश्न 11.
याजनीनतक कामथऩामरका ककसे कहते हैं ?
उत्तय :
सयकाय के प्रधान औय उनके भॊब्रत्रमों को याजनीनतक कामथऩामरका कहते हैं।
प्रश्न 12.
स्थामी कामथऩामरका ककसे कहते हैं ?
उत्तय :
जो रोग प्रनतटदन के प्रशासन के मरए उत्तयदामी होते हैं , वे स्थामी कामथऩामरका कहराते हैं।
प्रश्न 13.
अभेरयका भें ककस प्रकाय की कामथऩामरका है ?
उत्तय :
अभेरयका भें अध्मऺात्भक व्मवस्था है । कामथकायी शन्क्तमाॉ याष्ट्रऩनत के ऩास हैं।
प्रश्न 14.
सॊसदीम व्मवस्था भें सयकाय का प्रधान कौन होता है ?
उत्तय :
सॊसदीम व्मवस्था भें सयकाय का प्रधान प्रधानभॊत्री होता है ।
प्रश्न 15.
बायत के याष्ट्रऩनत का ननवाथचन ककस प्रकाय होता है ?
उत्तय :
बायत के याष्ट्रऩनत का ननवाथचन एक ननवाथचक-भण्डर द्वाया अप्रत्मऺ रूऩ से आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व
प्रणारी के अन्तगथत एकर सॊक्रभणीम ऩर्द्नत के आधाय ऩय होता है ।
प्रश्न 16.
बायत के याष्ट्रऩनत का कामथकार ककतने वषथ का है ?
उत्तय :
बायत के याष्ट्रऩनत का कामथकार 5 वषथ का है ।
प्रश्न 17.
याष्ट्रऩनत याज्मसबा भें ककतने सदस्मों को भनोनीत कयता है ?
उत्तय :
याष्ट्रऩनत याज्मसबा भें 12 सदस्मों को भनोनीत कयता है ।
प्रश्न 18.
याष्ट्रऩनत को उसके ऩद से ककस प्रकाय हटामा जा सकता है ?
उत्तय :
भहामबमोग प्रस्ताव ऩारयत कयके ही याष्ट्रऩनत को उसके ऩद से हटामा जा सकता है ।
प्रश्न 19.
बायत का प्रथभ नागरयक कौन है ?
उत्तय :
बायत का प्रथभ नागरयक याष्ट्रऩनत है ।
प्रश्न 20.
याष्ट्रऩनत के ननवाथचक-भण्डर भें कौन-कौन सदस्म होते हैं।
उत्तय :
याष्ट्रऩनत के ननवाथचक-भण्डर भें ननम्नमरखखत सदस्म होते हैं –
1. सॊसद के दोनों सदनों के ननवाथर्चत सदस्म
2. सबी याज्मों की ववधानसबाओॊ के ननवाथर्चत सदस्म।
प्रश्न 21.
बायत के याष्ट्रऩनत ऩद ऩय कोई व्मन्क्त ककतनी फाय ननवाथर्चत हो सकता है ?
उत्तय :
बायत के याष्ट्रऩनत ऩद ऩय कोई व्मन्क्त अनेक फाय ननवाथर्चत हो सकता है ।
प्रश्न 22.
सॊववधान भें उन्ल्रखखत ववर्ध के सभऺ सभता से बायत भें कौन व्मन्क्त उन्भुक्त है ?
उत्तय :
बायत का याष्ट्रऩनत उन्भक्
ु त है ।
प्रश्न 23.
ककसी एक ऩरयन्स्थनत का उल्रेख कीन्जए, न्जसके अन्तगथत याष्ट्रऩनत सॊकटकार की घोषणा कय सकता है ।
उत्तय :
मटद दे श ऩय मुर्द् मा फाहयी शन्क्त का आक्रभण हो जाए मा सशस्त्र ववद्रोह की अवस्था ववद्मभान हो जाए
तो उस ऩरयन्स्थनत भें याष्ट्रऩनत सॊकटकार की घोषणा कय सकता है ।
प्रश्न 24.
बायत भें भॊब्रत्रऩरयषद् का प्रधान कौन होता है ।
उत्तय :
बायत भें भॊब्रत्रऩरयषद् का प्रधान प्रधानभॊत्री होता है ।
प्रश्न 25.
भॊब्रत्रऩरयषद् ककसके प्रनत साभटू हक रूऩ से उत्तयदामी है ?
उत्तय :
भॊब्रत्रऩरयषद् रोकसबा के प्रनत साभटू हक रूऩ से उत्तयदामी है ।
प्रश्न 26.
बायतीम नौकयशाही भें कौन-कौन सन्म्भमरत हैं ?
उत्तय :
बायतीम नौकयशाही भें अखखर बायतीम सेवाएॉ , प्रान्तीम सेवाएॉ , स्थानीम सयकाय के कभथचायी औय रोक
उऩक्रभों के तकनीकी तथा प्रफन्धकीम अर्धकायी सन्म्भमरत हैं।
प्रश्न 27.
केंद्रीम भॊब्रत्रऩरयषद् की अध्मऺता कौन कयता है ?
उत्तय :
केंद्रीम भॊब्रत्रऩरयषद् की अध्मऺता प्रधानभॊत्री कयता है ।
प्रश्न 28.
सॊववधान के अनुसाय भॊब्रत्रऩरयषद् का क्मा कामथ है ?
उत्तय :
सॊववधान के अनच्
ु छे द 74 के अनस
ु ाय भॊब्रत्रऩरयषद् का भख्
ु म कामथ याष्ट्रऩनत को सहामता व सराह दे ना है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
कामथऩामरका की शन्क्तमों भें ववृ र्द् के चाय कायण दीन्जए।
मा
आधुननक रोकतॊत्र भें कामथऩामरका के फढ़ते हुए प्रबाव के चाय कायण मरखखए।
उत्तय :
कामथऩामरका की शन्क्त भें ववृ र्द् के प्रभुख कायण ननम्नमरखखत हैं –
1. साधायण मोग्मता के व्मक्ततमों का चुनाि – व्मवस्थावऩका के सदस्म प्रत्मऺ ननवाथचन के आधाय ऩय चुने जाते
हैं औय अर्धक मोग्मता वारे व्मन्क्त चुनाव के ऩचडे भें ऩडना नहीॊ चाहते। अत् फहुत कभ मोग्मता वारे
व्मन्क्त औय ऩेशेवय याजनीनतऻ व्मवस्थावऩका भें चुनकय आ जाते हैं। मे कभ मोग्म व्मन्क्त अऩने कामों व
आचयण से व्मवस्थावऩका की गरयभा को कभ कयते हैं।
2. जनकल्माणकायी याज्म की धायणा – वतथभान सभम भें जनकल्माणकायी याज्म की धायणा के कायण याज्म के
कामथ फहुत अर्धक फढ़ गमे हैं औय इन फढ़े हुए कामों को कामथऩामरका द्वाया ही ककमा जा सकता है । अत्
व्मवस्थावऩका की शन्क्तमों भें ननयन्तय कभी औय कामथऩामरका की शन्क्तमों भें ववृ र्द् होती जा यही है ।
3. दरीम ऩद्नत – दरीम ऩर्द्नत के ववकास ने बी व्मवस्थावऩका की शन्क्त भें कभी औय | कामथऩामरका की
शन्क्त भें ववृ र्द् कय दी है । सॊसदात्भक रोकतॊत्र भें फहुभत दर के सभथथन ऩय टटकी हुई कामथऩामरका फहुत
अर्धक शन्क्तमाॉ प्राप्त कय रेती है ।
4. प्रदत्त व्मिस्थाऩन – वतथभान सभम भें कानून ननभाथण का कामथ फहुत अर्धक फढ़ जाने औय इस कामथ के
जटटर हो जाने के कायण व्मवस्थावऩका के द्वाया अऩनी ही इच्छा से कानन ू ननभाथण की शन्क्त
कामथऩामरका के ववमबन्न ववबागों को सौंऩ दी जाती है । इसे ही प्रदत्त व्मवस्थाऩन कहते हैं। औय इसके
कायण व्मवस्थावऩका की शन्क्तमों भें कभी तथा कामथऩामरका की शन्क्त भें ववृ र्द् हो गमी है ।
प्रश्न 2.
कामथऩामरका के ववमबन्न प्रकायों का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
उत्तय :
कामशऩासरका के विसबन्न प्रकाय
कामथऩामरका के ववमबन्न प्रकाय ननम्नमरखखत हैं –

1. नाभभात्र की कामशऩासरका – वह व्मन्क्त जो सैर्द्ान्न्तक रूऩ से शासन का प्रधान है तथा न्जसके नाभ से
शासन के सभस्त कामथ ककए जाते हैं एवॊ स्वमॊ ककसी बी अर्धकाय का प्रमोग नहीॊ कयता , नाभभात्र का
कामथऩारक प्रधान होता है औय इस प्रकाय की कामथऩामरका नाभभात्र की कामथऩामरका होती है । उदाहयणाथथ ,
इॊग्रैण्ड का सम्राट तथा बायत का याष्ट्रऩनत नाभभात्र की कामथऩामरका हैं। नाभभात्र की कामथऩामरका के
अर्धकायों के प्रमोग भॊब्रत्रऩरयषद् कयती है तथा वास्तववक कामथकारयणी की शन्क्तमाॉ भॊब्रत्रऩरयषद् भें ननटहत
होती है ।
2. िास्तविक कामशऩासरका – वास्तववक कामथऩामरका उसे कहते हैं , जो वास्तव भें कामथकारयणी की शन्क्तमों का
प्रमोग कयती है । इॊग्रैण्ड, िाॊस तथा बायत की भॊब्रत्रऩरयषद् वास्तववक कामथऩामरका का उदाहयण हैं।
3. एकर कामशऩासरका – एकर कामथऩामरका उसे कहते हैं , न्जसभें कामथऩामरका की सम्ऩण
ू थ शन्क्तमाॉ एक
व्मन्क्त के अर्धकाय भें होती हैं। अभेरयका का याष्ट्रऩनत एकर कामथऩामरका का ही उदाहयण है ।
4. फहुर कामशऩासरका – इस प्रकाय की कामथऩामरका भें कामथकारयणी शन्क्त ककसी एक व्मन्क्त भें ननटहत न
होकय अनेक अर्धकारयमों के सभूह भें ननटहत होती है । इस प्रकाय की कामथऩामरका न्स्वट्जयरैण्ड भें है । वहाॉ
कामथऩामरका-सत्ता सात सदस्मों की एक ऩरयषद् भें ननटहत होती है ।
प्रश्न 3.
वतथभान भें कामथऩामरका की ननमन्ु क्त के सम्फन्ध भें प्रचमरत ववमबन्न ऩर्द्नतमों को उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
कामथऩामरका की ननमन्ु क्त से सम्फन्न्धत ववमबन्न ऩर्द्नतमाॉ ननम्नमरखखत हैं –
1. वॊशानुगत ऩर्द्नत (ग्रेट ब्रिटे न –याजा)
2. जनता द्वाया अप्रत्मऺ ननवाथचन जो वतथभान भें याजनीनतक दरों के कायण प्रत्मऺ हो गमा है ।
(सॊमुक्त याज्म अभेरयका–याष्ट्रऩनत)।
3. जनता द्वाया प्रत्मऺ ननवाथचन (िाॊस-याष्ट्रऩनत)।
4. व्मवस्थावऩका द्वाया ननवाथचन (न्स्वट्जयरैण्ड-फहुर कामथऩामरका)।
5. ब्रिटे न के याजा द्वाया याष्ट्रभण्डरीम दे शों के कामथऩामरका प्रभख
ु का भनोनमन (जैसे-कनाडा का
गवनथय जनयर)।
प्रश्न 4.
कामथऩामरका के प्रधान के चमन की ववर्धमाॉ फताइए।
उत्तय :
कामथऩामरका के प्रधान के चमन की ववर्धमाॉ ननम्नमरखखत हैं –
ु त कामशऩासरका – मह ऩर्द्नत इॊग्रैण्ड, जाऩान तथा फेन्ल्जमभ आटद दे शों भें है । इन दे शों भें याजतन्त्र
1. िॊर्ानग
अबी तक जीववत है । याजा को ऩद वॊशानुगत होता है तथा उसका ज्मेष्ट्ठ ऩुत्र शासन का उत्तयार्धकायी
होता है ।
2. जनता द्िाया ननिाशचन – मह ऩर्द्नत र्चरी, घाना तथा दक्षऺण अभेरयका के याज्मों भें है । महाॉ जनता
याष्ट्रऩनत का प्रत्मऺ ननवाथचन कयती है ।
3. अप्रत्मऺ ननिाशचन – मह ऩर्द्नत सॊमुक्त याज्म अभेरयका, अजेण्टीना तथा स्ऩेन भें है । इसभें जनता ननवाथचक
भण्डर चुनती है औय ननवाथचक भण्डर सवोच्च कामथऩामरका का चुनाव कयता
4. व्मिस्थावऩका द्िाया ननिाशचन – न्स्वट्जयरैण्ड तथा बायत भें मही ऩर्द्नत है । इसभें सॊघ औय याज्मों की
व्मवस्थावऩकाएॉ मभरकय याष्ट्रऩनत मा सॊघीम कामथकारयणी ऩरयषद् का ननवाथचन कयती।
5. भनोनमन – कामथऩामरका को भनोनमन बी होता है । स्वतॊत्रता से ऩव
ू थ बायत भें गवनथय जनयर तथा
गवनथयों की ननमुन्क्त इॊग्रैण्ड के सम्राट द्वाया होती थी। कनाडा तथा ऑस्रे मरमा भें वतथभान भें बी गवनथय
जनयर का ऩद ववद्मभान है ।
प्रश्न 5.
व्मवस्थावऩका ककन दो तयीकों से कामथऩामरका ऩय ननमन्त्रण स्थावऩत कयती है ?
उत्तय :
सैर्द्ान्न्तक दृन्ष्ट्ट से व्मवस्थावऩका सवोच्च है औय कामथऩामरका उसके अधीन होती है । सॊसदीम शासन भें
कामथऩामरका व्मवस्थावऩका के प्रनत उत्तयदामी है तथा अध्मऺात्भक प्रणारी भें वह ऩथ
ृ क् यहकय
व्मवस्थावऩका के कानन
ू ों को रागू कयती है । ऩयन्तु आधनु नक मग
ु भें कामथऩामरका के अर्धकायों भें ननयन्तय
ववृ र्द् हो यही है औय आज वह ववश्व के अनेक दे शों भें व्मवस्थावऩका ऩय हावी होती जा यही है । इॊग्रैण्ड भें
तो कहा जाता है कक आज भॊब्रत्रभण्डर ऩय जो ननमन्त्रण कयती है वह सॊसद नहीॊ वयन ् भॊब्रत्रभण्डर है । यै म्जे
म्मोय जैसे रेखक कैब्रफनेट की तानाशाही‘ की मशकामत कयते हैं। उन्हीॊ के शब्दों भें , ―भॊब्रत्रभण्डर की
तानाशाही ने सॊसद की शन्क्त तथा सम्भान को फहुत कभ कय टदमा है । ‖
प्रश्न 6.
याष्ट्रऩनत की ऩदच्मनु त (भहामबमोग) ऩय टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान के अनच्
ु छे द 61 भें मह प्रावधान ककमा गमा है कक सॊववधान का अनतक्रभण कयने ऩय
याष्ट्रऩनत को 5 वषथ के ननधाथरयत कामथकार से ऩूवथ बी ‗भहामबमोग‘ की प्रणारी द्वाया ऩदच्मुत ककमा जा
सकता है । भहामबमोग द्वाया हटामे जाने की प्रणारी ननम्नमरखखत है –
(1) सॊसद के ककसी बी एक सदन (उच्च एवॊ ननम्न) के कभ-से-कभ एक-चौथाई सदस्म उक्त आशम के
प्रस्ताव की मरखखत सच
ू ना दे ने के 14 टदन ऩश्चात ् याष्ट्रऩनत ऩय भहामबमोग रगाने का प्रस्ताव कयें गे।
(2) उक्त भहामबमोग प्रस्ताव सम्फन्न्धत सदन के दो-नतहाई फहुभत से ऩारयत होना चाटहए , तबी वह आगे
जाॉच के मरए दसू ये सदन भें बेजा जाएगा।
(3) दस
ू या सदन जफ आगाभी जाॉच-ऩडतार कये गा तो याष्ट्रऩनत स्वमॊ वहाॉ स्ऩष्ट्टीकयण दे ने के मरए
उऩन्स्थत हो सकता है , अथवा इस कामथ हे तु वह अऩने ककसी प्रनतननर्ध को बेज सकता है ।
(4) मटद दस ू या सदन बी जाॉच-ऩडतार के ऩश्चात ् कुर सदस्मों के दो-नतहाई फहुभत से उक्त भहामबमोग के
प्रस्ताव को ऩारयत कय दे ता है तो उसी टदन से याष्ट्रऩनत का ऩद रयक्त सभझा जाएगा।
प्रश्न 7.
सॊघीम भॊब्रत्रऩरयषद् के भहत्व को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान के अनच्
ु छे द 74 के अनस
ु ाय, ―याष्ट्रऩनत को उसके कामों के सम्ऩादन भें सहामता एवॊ
ऩयाभशथ दे ने के मरए एक भॊब्रत्रऩरयषद् होगी, न्जसका प्रधान, प्रधानभॊत्री होगा।‖ इस प्रकाय सॊववधान की दृन्ष्ट्ट
से याष्ट्रऩनत याज्म को प्रभुख है , ऩयन्तु वास्तववक कामथऩामरका भॊब्रत्रऩरयषद् है । बायतीम सॊववधान ने दे श भें
सॊसदात्भक शासन व्मवस्था की स्थाऩना की है सॊसदात्भक शासन का सफसे भहत्त्वऩूणथ एवॊ प्रभुख अॊग
भॊब्रत्रऩरयषद् ही है । सॊसदात्भक शासन व्मवस्था भें भॊब्रत्रऩरयषद् शासन का आधाय-स्तम्ब होता है । फेजहॉट ने
भॊब्रत्रऩरयषद् को कामथऩामरका तथा ववधानमका को जोडने वारा कब्जा कहा है । मद्मवऩ वैधाननक रूऩ से सॊघ
की कामथऩामरका का सवेसवाथ याष्ट्रऩनत होता है , ककन्तु वास्तववक शन्क्त भॊब्रत्रऩरयषद् भें केन्न्द्रत होती है ।
इसमरए भॊब्रत्रऩरयषद् का अर्धक भहत्त्वऩण
ू थ होना स्वाबाववक ही है ।
प्रश्न 8.
भॊब्रत्रऩरयषद् भें कामथयत भॊब्रत्रमों की ववमबन्न श्रेखणमों की वववेचना कीन्जए।
मा
भॊब्रत्रऩरयषद् भें सन्म्भमरत भॊब्रत्रमों की कौन-कौन सी श्रेखणमाॉ होती हैं ?
उत्तय :
भॊब्रत्रऩरयषद् भें तीन प्रकाय के भॊत्री होते हैं –

1. कैत्रफनेि भॊत्री – प्रथभ श्रेणी भें उन भॊब्रत्रमों को मरमा जाता है , जो अनुबवी, प्रबावशारी एवॊ अर्धक
ववश्वसनीम होते हैं। मे कैब्रफनेट की प्रत्मेक फैठक भें बाग रेते हैं औय एक मा अर्धक ववबागों के प्रबायी
होते हैं।
2. याज्मभॊत्री – इसभें याज्मभॊब्रत्रमों को सन्म्भमरत ककमा जाता है । इसभें दो प्रकाय के भॊत्री होते हैं – (क)
याज्मभॊत्री, (ख) याज्मभॊत्री (स्वतॊत्र प्रबाय)। स्वतॊत्र प्रबाय वारे याज्मभॊत्री भॊब्रत्रभण्डर के सदस्म होते हैं।
3. उऩभॊत्री – इसके अन्तगथत उऩभॊत्री आते हैं। मे ककसी कैब्रफनेट भॊत्री मा याज्मभॊत्री (स्वतॊत्र प्रबाय) के
अधीनस्थ कामथ कयते हैं। मे कैब्रफनेट के सदस्म नहीॊ होते हैं।
प्रश्न 9.
भॊब्रत्रऩरयषद् तथा याष्ट्रऩनत के सम्फन्ध को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय :
बायत भें कामथऩामरका का अध्मऺ याष्ट्रऩनत होता है । सैर्द्ान्न्तक दृन्ष्ट्ट से भॊब्रत्रऩरयषद् का गठन उसे ऩयाभशथ
दे ने के मरए ककमा जाता है ; ककन्तु वास्तववक न्स्थनत इसके ववऩयीत है । भॊब्रत्रऩरयषद् के ननणथम एवॊ ऩयाभशथ
याष्ट्रऩनत को भानने ऩडते हैं। मद्मवऩ याष्ट्रऩनत इनके सम्फन्ध भें अऩनी व्मन्क्तगत असहभनत प्रकट कय
सकता है ; ककन्तु वह भॊब्रत्रऩरयषद् के ननणथमों को भानने के मरए फाध्म होता है । बायतीम सॊववधान भें ककए
गए 42वें तथा 44वें सॊशोधन के अनुसाय, याष्ट्रऩनत भॊब्रत्रऩरयषद् का ऩयाभशथ कानूनी दृन्ष्ट्टकोण से भानने के
मरए फाध्म है । वह केवर भॊब्रत्रभण्डर से ऩन
ु ववथचाय के मरए आग्रह ही कय सकता है । वह भॊब्रत्रऩरयषद् की
नीनतमों को ककस रूऩ भें प्रबाववत कयता है , मह उसके व्मन्क्तत्व ऩय ननबथय है । भॊब्रत्रऩरयषद् भें मरए गए
सभस्त ननणथमों से याष्ट्रऩनत को अवगत कयामा जाता है तथा याष्ट्रऩनत भॊब्रत्रभण्डर से ककसी बी प्रकाय की
सूचना भाॉग सकता है । याष्ट्रऩनत ही भॊब्रत्रभण्डर का गठन कयता है । तथा उसे शऩथ ग्रहण कयाता है ।
प्रधानभॊत्री के ऩयाभशथ ऩय वह ककसी बी भॊत्री को ऩदच्मुत कय सकता
प्रश्न 10.
प्रधानभॊत्री तथा याष्ट्रऩनत के ऩायस्ऩरयक सम्फन्धों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
सैर्द्ान्न्तक दृन्ष्ट्टकोण से याष्ट्रऩनत प्रधानभॊत्री की ननमन्ु क्त कयता है औय भॊब्रत्रभण्डर याष्ट्रऩनत को सहामता
एवॊ ऩयाभशथ दे ने वारी समभनत है । याष्ट्रऩनत रोकसबा भें फहुभत दर के नेता को प्रधानभॊत्री ननमुक्त कयता
है । वह स्व-वववेकानुसाय आचयण उसी सभम कय सकता है , जफ रोकसबा भें ककसी दर का स्ऩष्ट्ट फहुभत
न हो। ऩयन्तु व्मावहारयक न्स्थनत मह है कक याष्ट्रऩनत को प्रधानभॊत्री औय भॊब्रत्रभण्डर का ऩयाभशथ भानना
होता है ; क्मोंकक बायत भें सॊसदात्भक शासन व्मवस्था है तथा भॊब्रत्रभण्डर सॊसद (रोकसबा) के प्रनत
उत्तयदामी है । 42वें 44वें सॊवैधाननक सॊशोधनों द्वाया अफ याष्ट्रऩनत को प्रधानभॊत्री एवॊ भॊब्रत्रभण्डर का
ऩयाभशथ भानना आवश्मक हो गमा है । इस प्रकाये याष्ट्रऩनत केवर कामथऩामरका का वैधाननक अध्मऺ तथा
प्रधानभॊत्री वास्तववक अध्मऺ है । वह याष्ट्रऩनत औय भॊब्रत्रभण्डर के भध्म एक कडी के रूऩ भें कामथ कयता
है ।
प्रश्न 11.
भॊब्रत्रमों के साभूटहक उत्तयदानमत्व का अमबप्राम सभझाइए। एक उदाहयण बी दीन्जए।
उत्तय :
भॊब्रत्रभण्डरीम कामथप्रणारी का एक अत्मन्त भहत्त्वऩूणथ मसर्द्ान्त है –साभूटहक उत्तयदानमत्व। भॊब्रत्रगण
व्मन्क्तगत रूऩ से तो सॊसद के प्रनत उत्तयदामी होते ही हैं , इसके अनतरयक्त साभूटहक रूऩ से प्रशासननक
नीनत औय सभस्त प्रशासननक कामों के मरए सॊसद के प्रनत उत्तयदामी होते हैं। इस मसर्द्ान्त के अनुसाय
सम्ऩण
ू थ भॊब्रत्रभण्डर एक इकाई के रूऩ भें कामथ कयता है औय सबी भॊत्री एक-दस
ू ये के ननणथम तथा कामथ के
मरए उत्तयदामी हैं। मटद रोकसबा ककसी एक भॊत्री के ववरुर्द् अववश्वास का प्रस्ताव ऩारयत कये अथवा उस
ववबाग से सम्फन्न्धत ववधेमक यद्द कय दे तो सभस्त भॊब्रत्रभण्डर को त्माग-ऩत्र दे ना होता है ।
प्रश्न 12.
ककन ऩरयन्स्थनतमों भें याष्ट्रऩनत प्रधानभॊत्री की ननमन्ु क्त भें अऩने वववेक का प्रमोग कयता है ?
उत्तय :
ननम्नमरखखत ऩरयन्स्थनतमों भें याष्ट्रऩनत प्रधानभॊत्री की ननमुन्क्त भें अऩने वववेक का प्रमोग कय सकता है –
1. मटद रोकसबा भें ककसी बी दर को स्ऩष्ट्ट फहुभत प्राप्त न हो।
2. प्रधानभॊत्री का आकन्स्भक ननधन हो जाए अथवा प्रधानभॊत्री त्माग-ऩत्र दे दे ।
3. याष्ट्रऩनत रोकसबा बॊग कयके कुछ सभम के मरए ककसी को बी प्रधानभॊत्री ननमुक्त कय सकता है ।
प्रश्न 13.
भॊब्रत्रऩरयषद् का सदस्म फनने के मरए कौन-कौन सी मोग्मताएॉ होनी चाटहए ?
उत्तय :
भॊब्रत्रऩरयषद् का सदस्म फनने के मरए ननम्नमरखखत मोग्मताएॉ होनी चाटहए –
1. वह बायत का नागरयक हो।
2. वह उन सभस्त मोग्मताओॊ को ऩण
ू थ कयता हो जो कक केंद्रीम सॊसद के ककसी बी सदन का सदस्म
फनने के मरए आवश्मक हैं।
3. वह केंद्रीम सॊसद के ककसी बी सदन का सदस्म अवश्म होना चाटहए। मटद वह सॊसद के ककसी बी
सदन का सदस्म नहीॊ है तो भॊत्री फनने के 6 भाह के बीतय उसे सॊसद के ककसी बी सदन का
सदस्म फनना आवश्मक होगा।
प्रश्न 14.
बायत भें सॊसदीम प्रणारी को क्मों अऩनामा गमा है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें इस फात के मरए रम्फी फहस चरी कक सॊसदीम प्रणारी को अऩनामा जाए मा
अध्मऺात्भक प्रणारी को। कुछ सदस्म सॊसदात्भक प्रणारी के ऩऺ भें थे तथा कुछ सदस्म न्स्थयता के
कायण अध्मऺात्भक प्रणारी की इच्छा यखते थे। ऩयन्तु अन्त भें सॊसदीम प्रणारी को अऩनाने का ननणथम
मरमा गमा। इसके ननम्नमरखखत कायण थे –
1. सॊसदीम प्रणारी बायत की ऩरयन्स्थनतमों के अर्धक अनुकूर है ।
2. सॊसदीम प्रणारी से बायतीम प्रशासक अर्धक ऩरयर्चत थे।
3. सॊसदीम सयकाय अर्धक उत्तयदामी सयकाय है ।
4. इसभें शासन व जनता के फीच अर्धक ननकटता है । सॊसदीम प्रणारी भें जनता व जनता के
प्रनतननर्ध अर्धक प्रबावकायी तयीके से कामथऩामरका ऩय ननमन्त्रण यखते हैं।
प्रश्न 15.
याष्ट्रऩनत के ववधामी कामथ मरखखए।
उत्तय :
याष्ट्रऩनत बायत सॊसद का अमबन्न अॊग है । सॊसद भें याष्ट्रऩनत, रोकसबा व याज्मसबा शामभर होते हैं।
याष्ट्रऩनत ववधामी ऺेत्र भें ननम्नमरखखत कामथ कयता है –
1. याष्ट्रऩनत सॊसद का अर्धवेशन आमोन्जत कयता है , स्थर्गत कयता है व रोकसबा को बॊग कयता
2. याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत के फाद रोकसबा व याज्मसबा द्वाया ऩास ककमा गमा ब्रफर कानन
ू फनता
3. याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत के ऩश्चात ् फजट व धन ब्रफर सॊसद भें ऩाए ककए जा सकते हैं। उसकी
स्वीकृनत के फाद वे रागू होते हैं।
4. याष्ट्रऩनत 2 सदस्म रोकसबा भें व 12 सदस्म याज्मसबा भें भनोनीत कय सकता है ।
5. याष्ट्रऩनत सॊसद के मरए कोई बी सन्दे श बेज सकता है ।
6. जफ रोकसबा व याज्मसबा का अर्धवेशन नहीॊ चर यहा हो तो कानून की आवश्मकता ऩडने ऩय
याष्ट्रऩनत अध्मादे श जायी कय सकता है न्जसभें कानन
ू का प्रबाव होता है ।
प्रश्न 16.
एक रोकसेवक की ननमन्ु क्त ककस प्रकाय होती है ? स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय :
रोकसेवक स्थामी कामथऩामरका के अन्तगथत आते हैं जो याजनीनतक कामथऩामरका की नीनतमों , आदे शों तथा
कानूनों को कक्रमान्वमन कयते हैं। ऩदार्धकायी की ननमुन्क्त मोग्मता के आधाय ऩय की जाती है । उसकी
ननमन्ु क्त की प्रकक्रमा ननम्नानस
ु ाय है –
सॊघीम ऩदार्धकायी की ननमुन्क्त के मरए सॊघ रोकसेवा आमोग तथा याज्म के ऩदार्धकायी की ननमुन्क्त के
मरए याज्म रोकसेवा आमोग कामथयत है । सवथप्रथभ ऩदों के मरए सावथजननक सच
ू ना द्वाया मोग्मता यखने
वारे उम्भीदवायों से प्राथथना-ऩत्र भाॉगे जाते हैं। मटद आवेदकों की सॊख्मा ऩदों की सॊख्मा से फहुत अर्धक हो
तो एक मरखखत ऩयीऺा का आमोजन ककमा जाता है । मरखखत ऩयीऺा के आधाय ऩय एक मोग्मता सूची
तैमाय की जाती है औय उसी के अनुसाय एक ननन्श्चत सॊख्मा भें उम्भीदवायों को साऺात्काय के मरए फुरामा
जाता है । साऺात्काय भें उम्भीदवाय की साभान्म ऻान , सूझ-फूझ, सतकथता तथा व्मन्क्तत्व का ऩयीऺण ककमा
जाता है औय कपय अन्न्तभ रूऩ से मोग्मता सूची तैमाय की जाती है । इस सूची के अनुसाय ही ऩदार्धकायी
को ननमुक्त ककमा जाता है औय फहुत-से ऩदों के मरए ननमुन्क्त से ऩहरे प्रमशऺण बी टदमा जाता है ।

दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न


प्रश्न 1.
कामथऩामरका के चाय कामों का वणथन कीन्जए।
मा
आधनु नक याज्मों भें कामथऩामरका के ककन्हीॊ चाय कामों का सभर्ु चत उदाहयण सटहत उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
कामशऩासरका के कामश
कामथऩामरका के चाय कामथ ननम्नवत ् हैं –

1. आन्तरयक र्ासन सम्फन्धी कामश – प्रत्मेक याज्म, याजनीनतक रूऩ भें सॊगटठत सभाज है औय इस सॊगटठत
सभाज की सवथप्रथभ आवश्मकता शान्न्त औय व्मवस्था फनामे यखना होता है तथा मह कामथ कामथऩामरका के
द्वाया ही ककमा जाता है । इसके अनतरयक्त व्माऩाय औय मातामात, मशऺा औय स्वास्थ्म से सम्फन्न्धत
सवु वधाओॊ की व्मवस्था औय कृवष ऩय ननमन्त्रण आटद कामथ बी कामथऩामरका द्वाया ही ककमे जाते हैं।
2. सैननक कामश – साभान्मतमा याज्म की कामथऩामरका का प्रधान सेनाओॊ के सबी अॊगों (स्थर , जर औय वामु)
के प्रधान के रूऩ भें कामथ कयता है औय ववदे शी आक्रभण से दे श की यऺा कयना . कामथऩामरका का
भहत्त्वऩूणथ कामथ होता है । अऩने इस कामथ के अन्तगथत कामथऩामरका आवश्मकतानुसाय मुर्द् अथवा शान्न्त
की घोषणा कय सकती है ।
3. विचध-ननभाशण सम्फन्धी कामश – कामथऩामरका के ववर्ध-ननभाथण सम्फन्धी कामथ फहुत कुछ सीभा तक शासन-
व्मवस्था के स्वरूऩ ऩय ननबथय कयते हैं। सबी प्रकाय की शासन-व्मवस्थाओॊ भें कामथऩामरका को
ववधानभण्डर को अर्धवेशन फुराने औय स्थर्गत कयने का अर्धकाय होता है । सॊसदात्भक शासन भें तो
कामथऩामरका ववर्ध-ननभाथण के ऺेत्र भें व्मवस्थावऩका का नेतत्ृ व कयती है औय ववशेष ऩरयन्स्थनतमों भें
रोकवप्रम सदन को बॊग कयते हुए नव-ननवाथचन का आदे श दे । सॊकती है । वतथभान सभम भें तो महाॉ तक
कहा जा सकता है कक कामथऩामरका ही व्मवस्थावऩका की स्वीकृनत से कानूनों का ननभाथण कयती है ।
4. वित्तीम कामश – मद्मवऩ वावषथक फजट स्वीकृत कयने का कामथ व्मवस्थावऩका द्वाया ककमा जाता है , ककन्तु
इस फजट का प्रारूऩ तैमाय कयने का कामथ कामथऩामरका ही कय सकती है । कामथऩामरका का ववत्त ववबाग
आम के ववमबन्न साधनों द्वाया प्राप्त आम के उऩबोग ऩय ववचाय कयता है ।
प्रश्न 2.
रोकतॊत्र भें न्मामऩामरका की स्वतॊत्रता का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
मा
न्मामऩामरका की स्वतॊत्रता को सुननन्श्चत कयने के दो उऩामों का उल्रेख कीन्जए।
मा
न्मामऩामरका की स्वतॊत्रता औय ननष्ट्ऩऺता सुननन्श्चत कयने के दो उऩाम मरखखए।
उत्तय :
न्मामऩासरका की स्ितॊत्रता
न्मामऩामरका का कामथऺेत्र अत्मन्त ववस्तत
ृ है औय उसके द्वाया ववववध प्रकाय के कामथ ककमे जाते हैं ,
रेककन न्मामऩामरका इस प्रकाय के कामों को उसी सभम कुशरताऩूवक
थ सम्ऩन्न कय सकती है जफकक
न्मामऩामरका स्वतॊत्र हो। न्मामऩामरका की स्वतॊत्रता से हभाया आशम मह है कक न्मामऩामरका को कानूनों
की व्माख्मा कयने औय न्माम प्रदान कयने के सम्फन्ध भें स्वतॊत्र रूऩ से अऩने वववेक का प्रमोग कयना
चाटहए औय उन्हें कतथव्मऩारन भें ककसी से अनर्ु चत तौय ऩय प्रबाववत नहीॊ होना चाटहए। सीधे-सादे शब्दों
भें इसका आशम मह है कक न्मामऩामरका, व्मवस्थावऩका औय कामथऩामरका ककसी याजनीनतक दर, ककसी वगथ
ववशेष औय अन्म सबी दफावों से भक्
ु त यहते हुए अऩने कतथव्मों का ऩारन कये ।

न्मामऩामरका की स्वतॊत्रता सनु नन्श्चत कयने के दो उऩाम ननम्नमरखखत हैं

1. न्मामाधीर् की मोग्मता – न्मामाधीशों का ऩद केवर ऐसे ही व्मन्क्तमों को टदमा जाए न्जनकी व्मावसानमक
कुशरता औय ननष्ट्ऩऺता सवथभान्म हो। याज्म-व्मवस्था के सॊचारन भें न्मामार्धकायी वगथ का फहुत अर्धक
भहत्त्व होता है औय अमोग्म न्मामाधीश इस भहत्त्व को नष्ट्ट कय दें गे।
ृ तकयण – न्मामऩामरका की स्वतॊत्रता के मरए आवश्मक है कक
2. कामशऩासरका औय न्मामऩासरका का ऩथ
कामथऩामरका औय न्मामऩामरका को एक-दस
ू ये से ऩथ
ृ क् यखा जाना चाटहए। एक ही व्मन्क्त के सत्ता
अमबमोक्ता औय साथ-ही-साथ न्मामाधीश होने ऩय स्वतॊत्र न्माम की आशा नहीॊ की जा सकती है ।
प्रश्न 3.
न्मामऩामरका के दो कामों का उल्रेख कीन्जए तथा स्वतॊत्र न्मामऩामरका के ऩऺ भें दो तकथ प्रस्तुत
कीन्जए।
मा
रोकतॊत्रात्भक शासन भें स्वतॊत्र न्मामऩामरका की आवश्मकता एवॊ भहत्ता ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
ककसी रोकतॊत्रात्भक शासन भें एक स्वतॊत्र एवॊ ननष्ट्ऩऺ न्मामऩामरका सवथथा अननवामथ है । इसे आधनु नक
औय प्रगनतशीर सॊववधानों एवॊ शासन-व्मवस्था का प्रभुख रऺण भाना जाता है । न्मामऩामरका की स्वतॊत्रता
के भहत्त्व को ननम्नमरखखत रूऩों भें प्रकट ककमा जा सकता है –
1. रोकतॊत्र की यऺा हेतु – रोकतॊत्र के अननवामथ तत्त्व स्वतॊत्रता औय सभानता हैं। नागरयकों की स्वतॊत्रता औय
कानून की दृन्ष्ट्ट से व्मन्क्तमों की सभानता -इन दो उद्देश्मों की प्रान्प्त स्वतॊत्र न्मामऩामरका द्वाया ही
सम्बव है । इस दृन्ष्ट्ट से स्वतॊत्र न्मामऩामरका को ‗रोकतॊत्र का प्राण‘ कहा जाता है ।
2. सॊविधान की यऺा हेतु – आधुननक मुग के याज्मों भें सॊववधान की सवोच्चता का ववचाय प्रचमरत है ।
सॊववधान की यऺा का दानमत्व न्मामऩामरका का होता है । न्मामऩामरका द्वाया इस दानमत्व का बरी-बाॉनत
ननवाथह उस सभम ही सम्बव है , जफ न्मामऩामरका स्वतॊत्र औय ननष्ट्ऩऺ हो। स्वतॊत्र न्मामऩामरका सॊववधान
की धायाओॊ की स्ऩष्ट्ट व्माख्मा कयती है तथा व्मवस्थावऩका एवॊ कामथऩामरका के उन कामों को जो सॊववधान
के ववरुर्द् होते हैं , अवैध घोवषत कय दे ती है । इस प्रकाय स्वतॊत्र न्मामऩामरका सॊववधान की यऺा कयती है ।
3. न्माम की यऺा हेतु – न्मामऩामरका का प्रथभ औय सवाथर्धक भहत्त्वऩूणथ कामथ न्माम कयना है । न्मामऩामरका
मह कामथ तबी ठीक प्रकाय से कय सकती है , जफकक वह ननष्ट्ऩऺ औय स्वतॊत्र हो तथा व्मवस्थावऩका औय
कामथऩामरका के प्रबाव से ऩूणथ रूऩ से भुक्त हो।
4. नागरयक अचधकायों की यऺा हेतु – न्मामऩामरका की स्वतॊत्रता का भहत्त्व अन्म कायणों की अऩेऺा नागरयक
अर्धकायों की यऺा की दृन्ष्ट्ट से अर्धक है । इसके मरए न्मामऩामरका का स्वतॊत्र औय ननष्ट्ऩऺ होना अत्मन्त
आवश्मक है ।
न्मामऩासरका के दो कामश – न्मामऩामरका के दो कामथ ननम्नमरखखत हैं

ू ों की व्माख्मा कयना – कानूनों की बाषा सदै व स्ऩष्ट्ट नहीॊ होती है औय अनेक फाय कानूनों की बाषा के
1. कानन
सम्फन्ध भें अनेक प्रकाय के वववाद उत्ऩन्न हो जाते हैं। इस प्रकाय की प्रत्मेक ऩरयन्स्थनत भें कानन
ू ों की
अर्धकायऩूणथ व्माख्मा कयने का कामथ न्मामऩामरका ही कयती है । न्मामारमों द्वाया की गमी इस प्रकाय की
व्माख्माओॊ की न्स्थनत कानन
ू के सभान ही होती है ।
2. रेख जायी कयना – साभान्म नागरयकों मा सयकायी अर्धकारयमों के द्वाया जफ अनुर्चत मा अऩने अर्धकाय-
ऺेत्र के फाहय कोई कामथ ककमा जाता है तो न्मामारम उन्हें ऐसा कयने से योकने के मरए ववववध प्रकाय के
रेख जायी कयता है । इस प्रकाय के रेखों भें फन्दी प्रत्मऺीकयण , ऩयभादे श औय प्रनतषेध आटद रेख प्रभुख हैं।
प्रश्न 4.
भॊब्रत्रऩरयषद् तथा भॊब्रत्रभण्डर भें क्मा अन्तय है ?
उत्तय :
भॊत्रत्रऩरयषद् तथा भॊत्रत्रभण्डर भें अन्तय
भॊब्रत्रऩरयषद् औय भॊब्रत्रभण्डर का प्राम् रोग एक ही अथथ भें प्रमोग कयते हैं , जफ कक इनभें अन्तय हैं। महाॉ
मह उल्रेखनीम है कक बायत के सॊववधान भें भात्र भॊब्रत्रऩरयषद् का उल्रेख है । भॊब्रत्रऩरयषद् तथा भॊब्रत्रभण्डर
के अन्तय को ननम्नमरखखत रूऩ भें स्ऩष्ट्ट ककमा जा सकता है

(1) आकाय भें अन्तय – भॊब्रत्रऩरयषद् भें रगबग 60 भॊत्री होते हैं, जफ कक भॊब्रत्रभण्डर भें प्राम् 15 से 20 भॊत्री
होते हैं।
(2) भॊत्रत्रभण्डर, भॊत्रत्रऩरयषद का बाग – भॊब्रत्रभॊण्डर, भॊब्रत्रऩरयषद् का टहस्सा होता है । इसी कायण अनेक ववद्वानों
ने इसे ‗फडे घेये भें छोटे घेये ‘ की सॊऻा दी है ।
(3) प्रबाि भें अन्तय – भॊब्रत्रभण्डर के सदस्मों का नीनत-ननधाथयण ऩय ऩण
ू थ ननमन्त्रण होता है तथा सभस्त
भहत्त्वऩूणथ ननणथम भॊब्रत्रभण्डर द्वाया ही मरमे जाते हैं। भॊब्रत्रऩरयषद् नीनत-ननधाथयण भें टहस्सा नहीॊ रेती।
(4) भॊत्रत्रभण्डर की फैठकें रगाताय होती यहती हैं – भॊब्रत्रभण्डर की फैठकें साधायणत: सप्ताह भें एक फाय तथा कई
फाय बी होती हैं, जफ कक भॊब्रत्रऩरयषद् की फैठकें कबी नहीॊ होती हैं।
(5) सबी भॊत्री भॊत्रत्रऩरयषद के सदस्म होते हैं – जफ कक भॊब्रत्रभण्डर के सदस्म भात्र कैब्रफनेट भॊत्री ही होते हैं।
(6) िेतन एिॊ बत्तों भें अन्तय – कैब्रफनेट भॊब्रत्रमों को अन्म भॊब्रत्रमों की तुरना भें अर्धक वेतन एवॊ बत्ते प्राप्त
होते हैं।
प्रश्न 5.
नौकयशाही की प्रभुख ववशेषताओॊ का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
नौकयर्ाही की विर्ेषताएॉ
1. ननक्श्चत कामशऺेत्र – नौकयशाही प्रणारी द्वाया प्रशासननक उद्देश्मों की ऩूनतथ के मरए न्जन ननमत कक्रमाओॊ की
आवश्मकता होती है उनको सनु नन्श्चत क्रभ के आधाय ऩय सयकायी कामों के रूऩ भें ववबान्जत कय टदमा
जाता है । इस प्रकाय नौकयशाही ऩर्द्नत भें ऩदार्धकारयमों का कामथऺेत्र सुननन्श्चत कय टदमा जाता है ।
2. आदे र्ों का स्ऩष्ट्िीकयण – इस व्मवस्था भें ववमबन्न ऩदार्धकारयमों के आदे शों के अर्धकाय-ऺेत्र को बी स्ऩष्ट्ट
कय टदमा जाता है ।
3. ननमभों के प्रनत आस्था – मे आदे श ऐसे ननमभों की सीभा से फॉधे होते हैं जो अर्धकारयमों को कामथ ऩूणथ
कयने, चाहे फरऩूवक
थ ही हो, के मरए प्राप्त होते हैं।
4. मोग्म व्मक्ततमों की ननमक्ु तत – इन दानमत्वों की ननममभत एवॊ सवथदा ऩूनतथ के मरए तथा सम्फन्न्धत
अर्धकायों के कक्रमान्वमन हे तु वैधाननक व्मवस्था की जाती है । दानमत्वों की ऩनू तथ के मरए केवर मोग्म
व्मन्क्तमों की व्मवस्था की जाती है ।
5. ऩद-सोऩान ऩद्नत ऩय आधारयत – नौकयशाही ऩद-सोऩान ऩर्द्नत ऩय आधारयत होती है । इसभें उच्च ऩदार्धकायी
अऩने अधीनस्थ ऩदार्धकारयमों को आदे श तथा ननदे श प्रदान कयते हैं।
6. ऩद के सरए ननक्श्चत मोग्मताएॉ – इस ऩर्द्नत भें प्रत्मेक ऩद के मरए मोग्मताएॉ ननधाथरयत कय दी जाती हैं।
7. विसर्ष्ट्ि िगश – इस व्मवस्था भें ऩदार्धकारयमों का एक ववमशष्ट्ट वगथ फन जाता है ।
8. ननमभों के प्रनत आस्था – इसभें अर्धकायी औय कभथचायी ननमभों तथा अमबरेखों के प्रनत अत्मर्धक आस्था
यखते हैं। वे ननमभों के रकीय के पकीय फन जाते हैं।
ु ासन तथा ननमन्त्रण – नौकयशाही सॊगठन भें ऩदार्धकायी ननमन्त्रण एवॊ अनुशासन भें
9. कठोय एिॊ व्मिक्स्थत अनर्
यहकय अऩने कामों का सम्ऩादन कयते हैं।
प्रश्न 6.
भॊब्रत्रऩरयषद् की स्वेच्छाचारयता ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
भॊत्रत्रऩरयषद् की स्िेच्छाचारयता
सॊववधान के अनस
ु ाय, भन्न्त्रऩरयषद् के कामों ऩय सॊसद का ननमन्त्रण होता है । मटद रोकसबा भन्न्त्रऩरयषद् के
ववरुर्द् अववश्वास प्रस्ताव ऩारयत कय दे तो उसे त्माग-ऩत्र दे ना ऩडता है । मह वैधाननक न्स्थनत है ; ऩयन्तु
वास्तववक न्स्थनत इससे मबन्न है । बायत भें भन्न्त्रऩरयषद् का ऩण
ू थ ननमन्त्रण है । सॊसद भें वाद-वववाद होते हैं
औय भतदान द्वाया ववधेमकों ऩय ननणथम मरए जाते हैं ,ऩयन्तु अन्त भें सम्ऩूणथ शन्क्त सत्ताधायी दर की ही
होती है । भन्न्त्रऩरयषद् सत्ताधायी दर की शन्क्त का केन्द्र है औय सॊसद उसके ननणथमों को अस्वीकाय कयने
भें असभथथ है ; क्मोंकक भन्न्त्रऩरयषद् का सदन भें फहुभत होता है तथा फहुभत प्राप्त दर के नेता दरीम
अनुशासन के कायण भन्न्त्रभण्डर द्वाया प्रस्तुत ववधेमकों का सभथथन कयते हैं। ऩाटी न्ह्वऩ (आदे श) जायी
कय टदमा जाता है , तफ प्रत्मेक सदस्म को दर के ननदे शों के अनुसाय कामथ कयना ऩडता है । इस प्रकाय
बायतीम शासन भें भन्न्त्रऩरयषद् की तानाशाही प्रवन्ृ त्त फढ़ती जा यही है ।

भन्न्त्रऩरयषद् की स्वेच्छाचारयता का एक कायण मह बी है कक भन्न्त्रऩरयषद् जनता के फहुभत का


प्रनतननर्धत्व कयती है । रोकसबा के सदस्मों का ननवाथचन जनता कयती है औय भन्न्त्रऩरयषद् को रोकसबा
का फहुभत प्राप्त होता है । इसमरए ऩयोऺ रूऩ भें जनता के फहुभत का सभथथन बी भन्न्त्रऩरयषद् को प्राप्त
होता है । वह सदै व इस फात के मरए प्रमत्नशीर यहती है कक जनता का फहुत उसके अनक ु ू र यहे । इसमरए
उसकी स्वेच्छाचारयता ऩय जनता अॊकुश रगा सकती है । मटद वह जनभत की उऩेऺा कयके स्वेच्छाचारयता
की वन्ृ त्त को अऩना रे तो उसको शासन-कामथ भें सपरता प्राप्त नहीॊ होगी। अत् भन्न्त्रऩरयषद् को जनभत
के अनक
ु ू र ही शासन-कामथ कयना ऩडता है ।

प्रश्न 7.
भन्न्त्रऩरयषद् तथा रोकसबा के सॊफॊधों को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय :
भक्न्त्रऩरयषद् तथा रोकसबा का सम्फन्ध
सॊववधान के अनुसाय, भॊब्रत्रऩरयषद् तथा रोकसबा ऩयस्ऩय घननष्ट्ठ रूऩ से सम्फन्न्धत हैं। भॊब्रत्रऩरयषद् साभूटहक
रूऩ से रोकसबा के प्रनत उत्तयदामी होती है । साभूटहक उत्तयदानमत्व का तात्ऩमथ है कक एक भॊत्री की गरती
सबी भॊब्रत्रमों की गरती भानी जाती है , न्जसके ऩरयणाभस्वरूऩ जफ एक भॊत्री के त्मागऩत्र दे ने की फात
आती है तो सम्ऩूणथ भॊब्रत्रभण्डर को त्मागऩत्र दे ना ऩडता है । इस प्रकाय भॊत्री एक-दस
ू ये से ऩयस्ऩय सम्फर्द्
यहते हैं। रोकसबा; प्रश्नों, ऩयू क-प्रश्नों, काभ योको, स्थगन तथा ननन्दा-प्रस्तावों द्वाया भॊब्रत्रऩरयषद् ऩय
ननमन्त्रण यखती है तथा इन आधायों ऩय भॊब्रत्रऩरयषद् को ऩदच्मुत कय सकती है –

1. अविश्िास प्रस्ताि द्िाया – रोकसबा के सदस्म भॊब्रत्रऩरयषद् से असन्तुष्ट्ट होकय सदन के साभने अववश्वास
का प्रस्ताव ((No Confidence Motion) प्रस्तत
ु कय सकते हैं। इस प्रस्ताव के ऩारयत हो जाने ऩय
भॊब्रत्रऩरयषद् को त्मागऩत्र दे ना होता है ।
2. विधेमक की अस्िीकृनत – भॊब्रत्रऩरयषद् द्वाया प्रस्तुत ककसी ववधेमक को मटद रोकसबा स्वीकृत न कये तो
ऐसी दशा भें बी भॊब्रत्रऩरयषद् का त्मागऩत्र उसका नैनतक दानमत्व फन जाता है , क्मोंकक मह इस फात का
सूचक होता है कक सदन भें भॊब्रत्रऩरयषद् (अथाथत ् फहुभत दर) ने अऩना ववश्वास खो टदमा है ।
3. ककसी भॊत्री के प्रनत अविश्िास – मटद रोकसबा ककसी भॊत्री-ववशेष के प्रनत अववश्वास का प्रस्ताव ऩारयत कय
दे तो बी साभूटहक रूऩ से भॊब्रत्रभण्डर को त्मागऩत्र दे ने के मरए फाध्म होना ऩडेगा।
4. किौती का प्रस्ताि – न्जस सभम रोकसबा भें वावषथक फजट प्रस्तत
ु ककमा जाता है , उस सभम मटद
रोकसबा फजट भें कटौती का प्रस्ताव ऩारयत कय दे मा ककसी काॉग को. अस्वीकृत कय दे तो बी
भॊब्रत्रऩरयषद् को अऩना त्मागऩत्र दे ने के मरए वववश होना ऩडता है ।
5. गैय-सयकायी प्रस्ताि – मटद रोकसबा ककसी ऐसे गैय-सयकायी प्रस्ताव को स्वीकृत कय दे , न्जसका भॊब्रत्रभण्डर
ववयोध कय यहा हो, तो इस न्स्थनत भें भॊब्रत्रभण्डर को अऩना ऩद त्मागना होगा।
सैर्द्ान्न्तक दृन्ष्ट्ट से तो भॊब्रत्रभण्डर ऩय सॊसद द्वाया ननमन्त्रण यखा जाता है ; ककन्तु व्मवहाय भें दरीम
अनश
ु ासन के कायण भॊब्रत्रभण्डर ही सॊसद ऩय ननमन्त्रण यखता है । भॊब्रत्रभण्डर के ऩयाभशथ ऩय याष्ट्रऩनत
रोकसबा को बॊग कय सकता है ।

प्रश्न 8.
मभर्श्रत सयकायों के मग
ु भें प्रधानभॊत्री की न्स्थनत की सभीऺा कीन्जए।
उत्तय :
वतथभान बायतीम याजनीनतक ऩरयदृश्म भें मभर्श्रत सयकायों का अन्स्तत्व है । मह 1996 से आयम्ब हुआ था।
जफ रोकसबा भें ककसी बी एक दर को स्ऩष्ट्ट फहुभत प्राप्त न हो औय दो मा दो से अर्धक दर मभरकय
फहुभत का ननभाथण कयते हों तथा मभरा-जर ु ा भॊब्रत्रभण्डर फनाते हों तो उसे मभरी-जर
ु ी सयकाय कहते हैं।
दे श भें फहुदरीम व्मवस्था अन्स्तत्व भें है औय केन्द्र तथा फहुत-से याज्मों भें बी मभरे-जुरे भॊब्रत्रभण्डर हैं।
मभर-जुरे भॊब्रत्रभण्डर के वातावयण ने सॊसदीम शासन-प्रणारी की कई ववशेषताओॊ को प्रबाववत ककमा है
औय ववशेष रूऩ से प्रधानभॊत्री की न्स्थनत ऩय ववऩयीत प्रबाव डारा है । इसका एक प्रबाव मह बी दे खने भें
आ यहा है कक अफ बायत भें भॊब्रत्रभण्डर की याजनीनतक एकरूऩता बी प्रबाववत है औय सयकाय भें बागीदाय
ववमबन्न दरों के सदस्म भॊत्री एक-दस
ू ये की आरोचना बी कयते हैं औय सावथजननक रूऩ भें ककसी बी ववषम
ऩय ववयोधी ववचाय बी प्रकट कयते हैं। अफ व्मावहारयक रूऩ से भॊब्रत्रभण्डर एक इकाई के रूऩ भें कामथ नहीॊ
कय ऩाता।

प्रधानभॊत्री की क्स्थनत ऩय प्रबाि – मभरी-जुरी सयकाय का सवाथर्धक ववऩयीत प्रबाव प्रधानभॊत्री की न्स्थनत ऩय
ऩडा है । उसे अफ वह शन्क्तशारी न्स्थनत प्राप्त नहीॊ है जो एक दर की सयकाय वारे भॊब्रत्रभण्डर भें प्राप्त
थी। अफ उसका अर्धकतय सभम सहमोगी दरों की नायाजगी दयू कयने औय उन्हें अऩने साथ यखने भें
व्मतीत होता टदखाई दे ता है । प्रधानभॊत्री की न्स्थनत ऩय ववऩयीत प्रबाव दशाथने वारे ब्रफन्द ु ननम्नमरखखत हैं
1. अफ प्रधानभॊत्री भॊब्रत्रमों की ननमुन्क्त भें स्वतॊत्र नहीॊ यहा है । ऩूवथ से ही ननन्श्चत हो जाता है कक
सहमोगी दरों से ककतने सदस्म भॊब्रत्रभण्डर भें मरए जाएॉगे।
2. मभर्श्रत सयकाय के ननभाथण भें सहमोगी दरों से मरए जाने वारे भॊब्रत्रमों के ववबागों का ननणथम बी
ऩहरे से ही कय टदमा जाता है । उसे ऐसे रोगों को बी भॊत्री ननमक्
ु त कयना ऩडता है न्जनकी
आऩयार्धक ऩष्ट्ृ ठबूमभ यही हो।
3. प्रधानभॊत्री अफ चाहते हुए बी ककसी भॊत्री को अऩदस्थ नहीॊ कयवा सकता , ववशेषकय सहमोगी दरों से
मरए गए भॊब्रत्रमों को, चाहे उनकी मोग्मता औय कामथक्रभ ऩय प्रश्न-र्चह्न ही क्मों न रगा हो।
प्रश्न 9.
स्थामी कामथऩामरका नौकयशाही का क्मा अथथ है ? नौकयशाही के गुण मरखखए।
उत्तय :
नौकयशाही को अर्धकायी याज्म‘ अथवा ‗सेवकतन्त्र‘ बी कहा जाता है । मह ऩदार्धकायी ऩर्द्नतमों भें सफसे
प्राचीन, व्माऩक तथा चर्चथत है । इसका अथथ एक ऐसी शासन-व्मवस्था से है , न्जसभें कामाथरमों द्वाया शासन
सॊचामरत ककमा जाता है । नौकयशाही‘ शब्द अॊग्रेजी के ‗Bureaucracy‘ का ऩमाथमवाची है । ‗Bureaucracy िेंच
बाषा के ‗Bureau‘ तथा ग्रीक बाषा के क्रेसी (kratein) से फना है । शान्ब्दक अथथ भें मह अर्धकारयमों का
शासन है । योफटथ सी० स्टोन के अनुसाय, ―इस ऩद का शान्ब्दक अथथ कामाथरम द्वाया शासन अथवा
अर्धकारयमों द्वाया शासन है । साभान्मत् इसका प्रमोग । दोषऩूणथ प्रशासननक सॊस्थाओॊ के सन्दबथ भें ककमा
गमा है । िेंच बाषा भें ‗ब्मूयो‘ का अथथ मरखने की भेज मा डेस्क से है । इस प्रकाय नौकयशाही का अथथ उस
व्मवस्था से है न्जसभें कभथचायी केवर दफ्तय भें फैठकय कामथ कयते हैं। मह व्मवस्था अथाथत ् नौकयशाही
प्रशासन के ववकृत रूऩ को प्रकट कयती है । जफ कभथचायी वगथ अऩने कामों को केवर कानूनी व्मवस्था के
अनुसाय ही सॊचामरत कयता है औय व्मवस्था भें रारपीताशाही, अनर्धकाय हस्तऺेऩ , अऩव्मम, भ्रष्ट्टाचाय
आटद दग
ु ण
ुथ उत्ऩन्न हो जाते हैं , तो मह व्मवस्था नौकयशाही‘ के नाभ से जानी जाती है ।
नौकयर्ाही के गण

नौकयशाही भें अनेक गुण ववद्मभान हैं। इसके प्रभुख गुण ननम्नमरखखत हैं –

1. कामशकुर्रता – इस ऩर्द्नत का प्रभख


ु गण
ु मह है कक मह प्रशासन को कामथकुशरता प्रदान कयती है ।
2. प्रर्ासकीम एकता – प्रशासकीम एकता को सुदृढ़ता प्रदान कयने भें मह ऩर्द्नत ववशेष रूऩ से उऩमोग
मसर्द् हुई है ।
3. याजनीनतक तथा िैमक्ततक प्रबािों से दयू – इस व्मवस्था भें ऩदार्धकायी एवॊ कभथचायी याजनीनतक एवॊ
वैमन्क्तक प्रबावों से दयू यहकय अऩने कतथव्मों का ऩारन कयते हैं।
ू का ऩारन – इस व्मवस्था का एक प्रभुख गुण मह है कक इसभें अर्धकायी तथा कभथचायी कानूनों
4. कानन
का कठोयता से ऩारन कयते हैं। अत् ककसी के साथ ऩऺऩात नहीॊ ककमा जाता है ।
दीघश उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सॊसदात्भक कामथऩामरका से क्मा आशम है ? सॊसदात्भक कामथऩामरका के गुण औय दोषों का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
सॊसदात्भक कामशऩासरका से आर्म
सॊसदात्भक कामथऩामरका उसे कहते हैं , न्जसभें कामथऩामरका सॊसद के ननमन्त्रण भें यहती है । इस सयकाय भें
दे श के सम्ऩूणथ शासन का कामथबाय भॊब्रत्रऩरयषद् ऩय होता है औय वह अऩने कामों के मरए व्मवस्थावऩका के
प्रनत उत्तयदामी होती है । वस्तत
ु : दे श की वास्तववक कामथऩामरका भॊब्रत्रऩरयषद् ही होती है । उस ऩय सॊसद का
ननमन्त्रण अवश्म होता है । दे श का प्रधान (याष्ट्रऩनत) नाभभात्र का प्रधान होता है । उसे कामथऩामरका से
सम्फन्न्धत सभस्त अर्धकाय प्राप्त होते हैं , ककन्तु व्मावहारयक दृन्ष्ट्टकोण से मटद दे खा जाए तो वह उनका
स्वेच्छा से प्रमोग नहीॊ कय ऩाता है । बायत औय ग्रेट ब्रिटे न भें इसी प्रकाय की सयकायें ववद्मभान हैं।

सॊसदात्भक कामशऩासरका के गण

सॊसदात्भक कामथऩामरका को उत्कृष्ट्ट शासन-प्रणारी के रूऩ भें स्वीकाय ककमा जाता है । इस शासन-प्रणारी
के प्रभुख गुण ननम्नमरखखत हैं –

1. कामशऩासरका औय व्मिस्थावऩका भें सहमोग – इस शासन-प्रणारी भें कामथऩामरका एवॊ व्मवस्थावऩका भें एक-दस
ू ये
के प्रनत ऩण
ू थ सहमोग की बावना होती है ; क्मोंकक भॊब्रत्रभण्डर के ही सदस्म ववधानभण्डर के बी सदस्म होते
हैं। इसी कायण कामथऩामरका इन कानूनों को फडी सयरता से ऩारयत कयवा रेती है , न्जन्हें वह दे श के मरए
उऩमोगी सभझती है । इस प्रकाय व्मवस्थावऩका को दे श की आवश्मकतानुसाय कानून फनाने भें बी सहामता
मभरती है ।
2. कामशऩासरका ननयॊ कुर् नहीॊ हो ऩाती – सॊसदात्भक कामथऩामरका ननयॊ कुश नहीॊ हो ऩाती है , क्मोंकक उसे ककसी बी
कानून को ऩारयत कयवाने के मरए व्मवस्थावऩका ऩय आर्श्रत यहना ऩडता है । वह स्वेच्छा से ककसी बी
कानून को फनाकय तथा उसे दे श भें रागू कयके ननयॊ कुश नहीॊ फन सकती है । इसके अनतरयक्त
व्मवस्थावऩका को मह बी अर्धकाय है कक वह भॊब्रत्रभण्डर के ववरुर्द् अववश्वास का प्रस्ताव ऩारयत कयके उसे
अऩदस्थ कय दे । ववधानमका भॊब्रत्रमों से प्रश्न तथा ऩूयक प्रश्न बी ऩूछ सकती है ।
3. ऩरयितशनर्ीरता – सॊसदात्भक कामथऩामरका ऩरयवतथनशीर है । इसका तात्ऩमथ मह है कक इसभें कामथऩामरका
को फदरने भें ककसी प्रकाय की असुववधा नहीॊ होती है ; क्मोंकक कामथयत भॊब्रत्रऩरयषद् को ककसी बी सभम
ऩरयवनतथत ककमा जा सकता है ।
4. याजनीनतक सर्ऺा का साधन – सॊसदात्भक कामथऩामरका भें याजनीनतक दरों की फहुरती होती है । मे सबी
दर साभान्म जनता के सभऺ अऩने-अऩने कामथक्रभ यखकय उसभें याजनीनतक चेतना को जाग्रत कयने का
प्रमत्न कयते हैं।
5. रोकभत एिॊ रोक-कल्माण ऩय आधारयत – सॊसदात्भक कामथऩामरका प्रजातन्त्र प्रणारी का ही एक रूऩ है ,
इसमरए मह रोकभत का ध्मान यखते हुए रोक-कल्माणकायी कामथ कयने का प्रमत्न कयती है ।
6. रोकतॊत्रीम ससद्ान्तों की यऺा – रोकतॊत्रीम मसर्द्ान्तों की यऺा फहुत सीभा तक सॊसदात्भक कामथऩामरका भें ही
सम्बव है , क्मोंकक सॊसदात्भक कामथऩामरका भें जन-प्रनतननर्धमों की प्रत्मऺ जवाफदे ही जनता के प्रनत होती
है ।
सॊसदात्भक कामशऩासरका के दोष
सॊसदात्भक कामथऩामरका के प्रभुख दोषों का उल्रेख ननम्नमरखखत है –

ृ तकयण ससद्ान्त के विरुद् – सॊसदात्भक कामथऩामरका का सफसे गम्बीय दोष मह है कक मह शन्क्त-


1. र्क्तत-ऩथ
ऩथ
ृ क्कयण मसर्द्ान्त के ववरुर्द् है । इसभें भॊब्रत्रऩरयषद् व्मवस्थावऩका का ही एक अॊग होती है । इसमरए
नागरयकों को सदै व खतया फना यहता है ।
2. र्ीघश ननणशम का अबाि – ककसी असाभान्म सॊकट की न्स्थनत भें बी कोई ऩरयवतथन मा ननमभ शीघ्र रागू
कयना असम्बव होता है , क्मोंकक कामथऩामरका को व्मवस्थावऩका से कोई बी कानून रागू कयने से ऩूवथ आऻा
रेनी ऩडती है ; औय इसकी प्रकक्रमा फहुत जटटर होती है ।
3. दरीम तानार्ाही का बम – इस व्मवस्था भें न्जस याजनीनतक दर का व्मवस्थावऩका भें फहुभत होता है , उसी
दर के नेताओॊ को भॊब्रत्रऩरयषद् ननमभथत कयने का अर्धकाय होता है । ऐसी न्स्थनत भें इस फात की प्रफर
सम्बावना यहती है कक फहुभत प्राप्त सत्तारूढ़ दर स्वेच्छाचायी फन जाए औय अऩनी भनभानी कयने रगे।
4. सयकाय की अक्स्थयता – इस प्रकाय की सयकाय भें भॊब्रत्रभण्डर का कामथकार अननन्श्चत होता है ।
व्मवस्थावऩका भें भॊब्रत्रभण्डर का फहभत न यह ऩाने की न्स्थनत भें भॊब्रत्रभण्डर को शीघ्र ही त्मागऩत्र दे ना
ऩड जाता है । अत: कबी-कबी ऐसा होता है कक ऐसे अनेक भहत्त्वऩूणथ कामथ फीच भें ही छूट जाते हैं , जो
वास्तव भें दे श के मरए अत्मन्त भहत्त्वऩूणथ होते हैं। फाय-फाय सयकाय के फनने तथा ब्रफगडने से याष्ट्र के
धन का अऩव्मम होता है तथा फाय-फाय भतदान प्रकक्रमा भें बाग रेने के कायण भतदाताओॊ की उदासीनता
फढ़ जाती है ।
श – याष्ट्रीम सॊकट (आऩन्त्त) के सभम मह सयकाय अनत दफ
5. सॊकि के सभम दफु र ु र
थ अथाथत ् शन्क्तहीन मसर्द्
होती है । सॊसदात्भक कामथऩामरका भें शासन की शन्क्त ककसी एक व्मन्क्त भें न होकय भॊब्रत्रऩरयषद् के
सभस्त सदस्मों भें ननटहत होती है । इसमरए सॊकट के सभम शीघ्र ननणथम नहीॊ हो ऩाते।
6. मोग्म व्मक्ततमों की सेिाओॊ का राब न सभर ऩाना – सॊसदीम कामथऩामरका भें सयकाय फहुभत दर की ही फनती
है , इसमरए ववयोधी दर के मोग्म व्मन्क्तमों को कामथऩामरका से सम्फन्न्धत शासन कामों भें अऩनी सेवा
प्रदान कयने का अवसय नहीॊ मभरता है ।
प्रश्न 2.
कामथऩामरका से आऩ क्मा सभझते हैं। इसके ववववध रूऩों का वणथन कीन्जए।
मा
कामथऩामरका के प्रभुख कामों का वणथन कीन्जए।
मा
कामथऩामरका क्मा है ? आधुननक कार भें इसके फढ़ते हुए भहत्त्व के क्मा कयण हैं ?
मा
कामथऩामरका के ववमबन्न प्रकायों का उल्रेख कीन्जए।
मा
कामथऩामरका के प्रभुख कामों एवॊ भहत्त्व ऩय प्रकाश डामरए।
मा
कामथऩामरका से आऩ क्मा सभझते हैं ? कामथऩामरका के ववमबन्न प्रकायों का उल्रेख कीन्जए। वतथभान सभम
भें कामथऩामरका की शन्क्त भें ववृ र्द् के कायणों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
कामथऩामरका सयकाय का दस
ू या प्रभख
ु अॊग है । इतना ही नहीॊ , ‗सयकाय‘ शब्द का आशम कामथऩामरका से ही
होता है । कामथऩामरका ही व्मवस्थावऩका द्वाया फनामे गमे कानूनों को कक्रमान्न्वत कयती है औय उनके
आधाय ऩय प्रशासन का सॊचारन कयती है ।
गानथय ने कामथऩामरका का अथथ स्ऩष्ट्ट कयते हुए मरखा है - ―व्माऩक एवॊ साभूटहक अथथ भें कामथऩामरका के
अधीन वे सबी अर्धकायी, याज्म-कभथचायी तथा एजेन्न्समाॉ आ जाती हैं , न्जनका कामथ याज्म की इच्छा को,
न्जसे व्मवस्थावऩका ने व्मक्त कय कानून का रूऩ दे टदमा है , कामथरूऩ भें ऩरयणत कयना है । ‖

र्गरकक्रस्ट के अनुसाय, ―कामथऩामरका सयकाय का वह अॊग है , जो कानूनों भें ननटहत जनता की इच्छा को
रागू कयती है ।

कामशऩासरका के विविध रूऩ (प्रकाय)


कामथऩामरका के ननम्नमरखखत रूऩ होते हैं –

1. नाभभात्र की कामशऩासरका – ऐसी कामथऩामरका; न्जसके अन्तगथत एक व्मन्क्त, जो मसर्द्ान्त रूऩ से शासन का
प्रधान होता है तथा न्जसके नाभ से शासन के सभस्त कामथ ककमे जाते हैं , ऩयन्तु वह स्वमॊ ककसी बी
अर्धकाय का प्रमोग नहीॊ कयता; नाभभात्र की होती है । ब्रिटे न की सम्राऻी तथा बायत का याष्ट्रऩनत नाभभात्र
की कामथऩामरका हैं।
2. िास्तविक कामशऩासरका – वास्तववक कामथऩामरका उसे कहते हैं जो वास्तव भें कामथकारयणी की शन्क्तमों का
प्रमोग कयती है । ब्रिटे न , िाॊस तथा बायत भें भॊब्रत्र-ऩरयषद् वास्तववक कामथऩामरका के उदाहयण हैं।
3. एकर कामशऩासरका – एकर कामथऩामरका वह होती है , न्जसभें कामथऩामरका की सम्ऩण
ू थ शन्क्तमाॉ एक व्मन्क्त
के अर्धकाय भें होती हैं। अभेरयका का याष्ट्रऩनत एकर कामथऩामरका का उदाहयण है ।
4. फहुर कामशऩासरका – फहुर कामथऩामरका भें कामथकारयणी शन्क्त ककसी एक व्मन्क्त भें ननटहत न होकय
अर्धकारयमों के सभूह भें ननटहत होती है । इस प्रकाय की कामथऩामरका न्स्वट्जयरैण्ड भें है ।
ृ कामशऩासरका – ऩैतक
5. ऩैतक ृ कामथऩामरका उस कामथऩामरका को कहते हैं , न्जसके प्रधान का | ऩद ऩैतक
ृ अथवा
वॊश-ऩयम्ऩया के आधाय ऩय होता है । ऐसी कामथऩामरका ग्रेट ब्रिटे न भें है ।
6. ननिाशचचत कामशऩासरका – जहाॉ कामथऩामरका के प्रधान का ननवाथचन ककमा जाता है , वहाॉ ननवाथर्चत कामथऩामरका
होती है । ऐसी कामथऩामरका बायत तथा सॊमुक्त याज्म अभेरयका भें है ।
7. सॊसदात्भक कामशऩासरका – इसभें शासन-सम्फन्धी अर्धकाय भॊब्रत्र-ऩरयषद् के सदस्मों भें ननटहत होते हैं। वे
व्मवस्थावऩका (बायत भें सॊसद) के सदस्मों भें से ही चुने जाते हैं औय अऩनी नीनतमों के मरए व्मन्क्तगत
रूऩ से तथा साभूटहक रूऩ से उसी के प्रनत उत्तयदामी होते हैं। व्मवस्थावऩका भॊब्रत्र-ऩरयषद् के ववरुर्द्
अववश्वास का प्रस्ताव ऩारयत कयके उसे ऩदच्मुत कय सकती है । ब्रिटे न तथा बायत भें ऐसी ही कामथऩामरका
है ।
8. अध्मऺात्भक कामशऩासरका – इसभें भुख्म कामथऩामरका व्मवस्थावऩका से ऩथ
ृ क् तथा स्वतॊत्र होती है औय
उसके प्रनत उत्तयदामी नहीॊ होती। सॊमक्
ु त याज्म अभेरयका भें इसी प्रकाय की कामथऩामरका है । वहाॉ ऩय
कामथऩामरका का प्रधान याष्ट्रऩनत होता है , न्जसका ननवाथचन चाय वषथ के मरए ककमा जाता है । इस अवर्ध के
ऩूवथ भहामबमोग के अनतरयक्त अन्म ककसी बी प्रकक्रमा द्वाया उसे अऩदस्थ नहीॊ ककमा जा सकता। वह
अऩने कामथ के मरए वहाॉ की काॊग्रेस (व्मवस्थावऩका) के प्रनत उत्तयदामी नहीॊ है । वह अऩनी सहामता के
मरए भॊब्रत्रभण्डर का ननभाथण कय सकता है , ऩयन्तु उनके ककसी बी ऩयाभशथ को भानने के मरए फाध्म नहीॊ
है ।
कामशऩासरका के कामश
कामथऩामरका के कामथ वास्तव भें सयकाय के स्वरूऩ ऩय ननबथय कयते हैं। आधुननक याज्मों भें कामथऩामरका का
भहत्त्व फढ़ता जा यहा है तथा इसके भुख्म कामथ ननम्नमरखखत हैं –

ू ों को रागू कयना औय र्ाक्न्त-व्मिस्था फनामे यखना – कामथऩामरका का प्रथभ कामथ व्मवस्थावऩका द्वाया
1. कानन
फनामे गमे कानूनों को याज्म भें रागू कयना तथा दे श भें शान्न्त व्मवस्था को फनामे यखना होता है ।
कामथऩामरका का कामथ कानूनों को रागू कयना है , चाहे वह कानून अच्छा हो मा फुया। कामथऩामरका दे श भें
शान्न्त व कानन
ू -व्मवस्था फनामे यखने के मरए ऩमु रस आटद का प्रफन्ध बी कयती है ।
2. नीनत-ननधाशयण सम्फन्धी कामश – कामथऩामरका का एक भहत्त्वऩूणथ कामथ नीनत-ननधाथयण कयना है । सॊसदीम
सयकाय भें कामथऩामरका अऩनी नीनत-ननधाथरयत कयके उसे सॊसद के सभऺ प्रस्तत
ु कयती है । अध्मऺात्भक
सयकाय भें कामथऩामरका को अऩनी नीनतमों को ववधानभण्डर के सभऺ प्रस्तुत नहीॊ कयना ऩडता है । वस्तुत्
कामथऩामरका ही दे श की आन्तरयक तथा ववदे श नीनत को ननन्श्चत कयती है औय उस नीनत के आधाय ऩय
ही अऩना शासन चराती है । नीनतमों को रागू कयने के मरए शासन को कई ववबागों भें फाॉटा जाता है ।
3. ननमक्ु तत सम्फन्धी कामश – कामथऩामरका को दे श का शासन चराने के मरए अनेक कभथचारयमों की ननमुन्क्त
कयनी ऩडती है । प्रशासननक कभथचारयमों की ननमुन्क्त अर्धकतय प्रनतमोर्गता ऩयीऺाओॊ के आधाय ऩय की
जाती है । बायत भें याष्ट्रऩनत, उच्चतभ न्मामारम तथा उच्च न्मामारम के न्मामाधीशों , याजदत
ू ों, एडवोकेट
जनयर, सॊघ रोक सेवा आमोग के अध्मऺ तथा सदस्मों की ननमुन्क्त कयता है । अभेरयका भें याष्ट्रऩनत को
उच्चार्धकारयमों की ननमुन्क्त के मरए सीनेट की स्वीकृनत रेनी ऩडती है । अभेरयका का याष्ट्रऩनत उन सबी
कभथचारयमों को हटाने का अर्धकाय यखता है , न्जन्हें काॊग्रेस भहामबमोग के द्वाया नहीॊ हटा सकती।
4. िैदेसर्क कामश – दस
ू ये दे शों से सम्फन्ध स्थावऩत कयने का कामथ कामथऩामरका के द्वाया ही ककमा। जाता है ।
ववदे श नीनत को कामथऩामरका ही ननन्श्चत कयती है तथा दस
ू ये दे शों भें अऩने याजदत
ू ों को बेजती है औय
दस
ू ये दे शों के याजदत
ू ों को अऩने दे श भें यहने की स्वीकृनत प्रदान कयती है । दस
ू ये दे शों से सन्न्ध मा
सभझौते कयने के मरए कामथऩामरका को सॊसद की स्वीकृनत रेनी ऩडती है । अन्तयाथष्ट्रीम सम्भेरनों भें
कामथऩामरका का अध्मऺ मा उसका प्रनतननर्ध बाग रेता है ।
5. विचध-सम्फन्धी कामश – कामथऩामरका के ऩास ववर्ध-सम्फन्धी कुछ शन्क्तमाॉ बी होती हैं। सॊसदीम सयकाय भें
कामथऩामरका की ववर्ध-ननभाथण भें भहत्त्वऩूणथ बूमभका होती है तथा भॊब्रत्रभण्डर के सदस्म व्मवस्थावऩका के
ही सदस्म होते हैं। वे व्मवस्थावऩका की फैठकों भें बाग रेते हैं औय प्रस्ताव प्रस्तुत कयते हैं। वास्तव भें 95
प्रनतशत प्रस्ताव भॊब्रत्रमों द्वाया ही प्रस्तुत ककमे जाते हैं , क्मोंकक भॊब्रत्रभण्डर का व्मवस्थावऩका भें फहुभत
होता है , इसमरए प्रस्ताव आसानी से ऩारयत हो जाते हैं। सॊसदीम सयकाय भें भॊब्रत्रभण्डर के सभथथन के ब्रफना
कोई प्रस्ताव ऩारयत नहीॊ। हो सकता। सॊसदीम सयकाय भें कामथऩामरका को व्मवस्थावऩका का अर्धवेशन
फुराने का अर्धकाय बी होता है । जफ व्मवस्थावऩका का अर्धवेशन नहीॊ हो यहा होता है , उस सभम
कामथऩामरका को अध्मादे श जायी कयने का अर्धकाय बी प्राप्त होता है ।
6. वित्तीम कामश – याष्ट्रीम ववत्त ऩय व्मवस्थावऩका का ननमन्त्रण होता है । ववत्तीम व्मवस्था फनामे यखने भें
कामथऩामरका की भहत्त्वऩूणथ बूमभका होती है , ऩयन्तु कामथऩामरका ही फजट तैमाय कयके उसे व्मवस्थावऩका
भें प्रस्तुत कयती है । कामथऩामरका को व्मवस्थावऩका भें फहुभत का सभथथन प्राप्त होने के कायण उसे फजट
ऩारयत कयाने भें ककसी कटठनाई का साभना नहीॊ कयना ऩडता। नमे कय रगाने व ऩुयाने कय सभाप्त कयने
के प्रस्ताव बी कामथऩामरका ही व्मवस्थावऩका भें प्रस्तुत कयती है । अध्मऺात्भक सयकाय भें कामथऩामरका
स्वमॊ फजट प्रस्तुत नहीॊ कयती, अवऩतु फजट कामथऩामरका की दे ख-ये ख भें ही तैमाय ककमा जाता है । बायत
भें ववत्तभॊत्री फजट प्रस्तत
ु कयता है ।
7. न्मानमक कामश – न्माम कयना न्मामऩामरका का भुख्म कामथ है , ऩयन्तु कामथऩामरका के ऩास बी कुछ
न्मानमक शन्क्तमाॉ होती हैं। फहुत-से दे शों भें उच्चतभ न्मामारम के न्मामाधीश कामथऩामरका द्वाया ननमक्
ु त
ककमे जाते हैं। कामथऩामरका के अध्मऺ को अऩयाधी के दण्ड को ऺभा कयने अथवा कभ कयने का बी
अर्धकाय होता है । बायत औय अभेरयका भें याष्ट्रऩनत को ऺभादान का अर्धकाय प्राप्त है । ब्रिटे न भें मह
शन्क्त सम्राट के ऩास है । याजनीनतक अऩयार्धमों को ऺभा कयने का अर्धकाय बी कई दे शों भें कामथऩामरका
को ही प्राप्त है ।
8. सैननक कामश – दे श की फाह्म आक्रभणों से यऺा के मरए कामथऩामरका अध्मऺ सेना का अध्मऺ बी होता
है । बायत तथा अभेरयका भें याष्ट्रऩनत अऩनी-अऩनी सेनाओॊ के सवोच्च सेनाऩनत (कभाण्डय-इन- चीप) हैं।
सेना के सॊगठन तथा अनुशासन से सम्फन्न्धत ननमभ कामथऩामरका द्वाया ही फनामे जाते हैं। आन्तरयक
शान्न्त तथा व्मवस्था फनामे यखने के मरए बी सेना की सहामता री जा सकती है । सेना के अर्धकारयमों
की ननमुन्क्त कामथऩामरका द्वाया ही की जाती है । तथा सॊकटकारीन न्स्थनत भें कामथऩामरका सैननक कानून
रागू कय सकती है । बायत का याष्ट्रऩनत सॊकटकारीन घोषणा कय सकता है ।
9. सॊकिकारीन र्क्ततमाॉ – दे श भें आन्तरयक सॊकट अथवा ककसी ववदे शी आक्रभण की न्स्थनत भें कामथऩामरका
का अध्मऺ सॊकटकार की घोषणा कय सकता है । सॊकटकार भें कामथऩामरका फहुत शन्क्तशारी हो जाती है
औय सॊकट का साभना कयने के मरए अऩनी इच्छा से शासन चराती है ।
10. उऩाचधमाॉ तथा सम्भान प्रदान कयना – प्राम् सबी दे शों की कामथऩामरका के ऩास ववमशष्ट्ट व्मन्क्तमों को
उनकी असाधायण तथा अभल्
ू म सेवाओॊ के मरए उऩार्धमाॉ औय सम्भान प्रदान कयने का अर्धकाय होता है ।
बायत औय अभेरयका भें मह अर्धकाय याष्ट्रऩनत के ऩास है , जफ कक ब्रिटे न भें सम्राट् के ऩास।
कामशऩासरका की र्क्तत भें िवृ द् के कायण
व्मवस्थावऩका की शन्क्त के कभथ होने तथा कामथऩामरका की शन्क्त भें ववृ र्द् होने के ननम्नमरखखत कायण हैं

1. रोक-कल्माणकायी याज्म की अिधायणा – वतथभान भें सबी दे शों भें याज्म को रोक-कल्माणकायी सॊस्था भाना
जाता है । वह जनता की बराई के अनेक कामथ कयता है । मशऺा , स्वास्थ्म, सपाई, साभान्जक व आर्थथक
सध
ु ाय, वेतन-ननधाथयण आटद इसी के कामथ-ऺेत्र के अन्तगथत आते हैं। उद्मोगों का याष्ट्रीमकयण ककमा जाता
है औय जनटहत की मोजनाएॉ कक्रमान्न्वत की जाती हैं। इससे कामथऩामरका का कामथ-ऺेत्र फढ़ जाता है तथा
वह व्माऩक हो जाती है ।
2. दरीम ऩद्नत – आधुननक प्रजातन्त्र याजनीनतक दरों के आधाय ऩय सॊचामरत होता है । दरों के आधाय ऩय
ही व्मवस्थावऩका वे कामथऩामरका का सॊगठन होता है । सॊसदीम शासन भें फहुभत प्राप्त दर ही कामथऩामरका
का गठन कयता है । दरीम अनुशासन के कायण कामथऩामरका अर्धनामकवादी शन्क्तमाॉ ग्रहण कय रेती है
औय अऩने दर के फहुभत के कायण उसे व्मवस्थावऩका का बम नहीॊ यहता है । व्मवस्थावऩका के प्रनत
उत्तयदामी यहते हुए बी कामथऩामरका शन्क्तशारी होती जा यही है । ब्रिटे न भें द्ववदरीम ऩर्द्नत ने बी
कामथऩामरका की शन्क्तमों भें ववृ र्द् की है ।
3. प्रनतननधामन – व्मवस्थावऩका कामों की अर्धकता तथा व्मावहारयक कटठनाइमों के कायण कानूनों के
मसर्द्ान्त तथा रूऩये खा की यचना कय शेष ननमभ फनाने हे तु कामथऩामरका को सौंऩ दे ती है । इससे व्मवहाय
भें कानन
ू फनाने का एक व्माऩक ऺेत्र कामथऩामरका को प्राप्त हो जाता है । तथा कामथऩामरका की शन्क्तमों
भें असाधायण ववृ र्द् हो जाती है ।
4. सभस्माओॊ की जदिरता – वतथभान भें याज्म को अनेक जटटर सभस्माओॊ का साभना कयना ऩडता है , न्जसके
मरए ववशेष ऻान, अनुबव वे मोग्मता की आवश्मकता होती है व्मवस्थावऩका के साभान्म मोग्मता के
ननवाथर्चत सदस्म इन सभस्माओॊ के सभाधान भें असभथथ यहते हैं। कामथऩामरका ही इन सभस्त सभस्माओॊ
का सभाधान कयती है , इसमरए उसकी शन्क्तमों की ववृ र्द् का स्वागत ककमा जाता है ।
5. ननमोजन – आज का मग
ु ननमोजन का मग
ु है । सबी याष्ट्र अऩने ववकास के मरए ननमोजन की प्रकक्रमा को
अऩनाते हैं। मोजनाएॉ तैमाय कयना, उन्हें रागू कयना तथा उनका भूल्माॊकन कयना कामथऩामरका द्वाया ही
सम्ऩन्न होता है । इससे कामथऩामरका का व्माऩक ऺेत्र भें आर्धऩत्म हो जाता है ।
6. अन्तयाशष्ट्रीम सम्फन्ध तथा विदे र्ी व्माऩाय – आधुननक मुग भें अन्तयाथष्ट्रीम सम्फन्ध तथा मुर्द् एवॊ शान्न्त के
प्रश्न अत्मर्धक भहत्त्वऩूणथ हो गए हैं। मे कामथऩामरका द्वाया ही सम्ऩन्न होते हैं इसी प्रकाय ववदे शी
व्माऩाय, ववदे शी सहामता तथा ववदे शी ऩॉज
ू ी मा ववदे शों भें ऩॉज
ू ी से सम्फन्न्धत कामों को कामथऩामरका द्वाया
सम्ऩाटदत कयना एक साभान्म प्रकक्रमा है । इनसे कामथऩामरका का भहत्त्व सयकाय के अन्म अॊगों से अर्धक
हो गमा है । अन्तयाथष्ट्रीम ऺेत्र भें साम्मवाद के प्रचाय तथा प्रसाय को योकने के मरए अभेरयकी काॊग्रेस द्वाया
याष्ट्रऩनत को अनेक प्रकाय की शन्क्तमाॉ प्रदान की गई हैं। इससे याष्ट्रऩनत की शन्क्तमों भें अप्रत्मामशत रूऩ
से ववृ र्द् हो गई है ।
7. कामशऩासरका को व्मिस्थावऩका के विघिन का अचधकाय – वतथभान भें सॊसदीम शासन भें व्मवस्थावऩका को
ववघटटत कयने का कामथऩामरका को ऩण
ू थ अर्धकाय है । भॊब्रत्रभण्डर की इस शन्क्त के कायण कामथऩामरका की
व्मवस्थावऩका ऩय आर्धऩत्म हो गमा है । अध्मऺात्भक शासन भें कामथऩामरका व्मवस्थावऩका को ऩदच्मुत
नहीॊ कय सकती। इस कायण व्मवस्थावऩका शन्क्तशारी ही फनी यहती है ।
आधुननक मुग की प्रवन्ृ त्त कामथऩामरका शन्क्त के ननयन्तय ववस्ताय की ओय अग्रसय है । मरप्सन के शब्दों
भें, ―भतदाता द्वाया याज्म को सौंऩा गमा प्रत्मेक नमा कतथव्म औय शासन द्वाया प्राप्त की गई प्रत्मेक
अनतरयक्त शन्क्त ने कामथऩामरका की सत्ता औय भहत्त्व भें ववृ र्द् की है । ‖

कामशऩासरका का भहत्त्ि
कामथऩामरका शन्क्त का प्राथमभक अथथ है ववधानभण्डर द्वाया अर्धननमन्न्त्रत कानूनों का ऩारन कयाना।
ककन्तु आधुननक याज्म भें मह कामथ उतना साधायण नहीॊ न्जतना कक अयस्तू के मुग भें था। याज्मों के कामों
भें अनेक गुना ववस्ताय हो जाने के कायण व्मवहाय भें सबी अवमशष्ट्ट कामथ कामथऩामरका के हाथों भें ऩहुॉच
गमे हैं तथा इसकी भहत्ता टदन-ऩय-टदन फढ़ती जा यही है । आज कामथऩामरका प्रशासन की वह शन्क्त है
न्जससे याज्म के सबी कामथ सम्ऩाटदत ककमे जाते हैं।

आज कामथऩामरका का भहत्त्व इस कायण बी है कक नीनत-ननधाथयण तथा उसकी कामथ भें ऩरयणनत , व्मवस्था
फनामे यखना, साभान्जक तथा आर्थथक कल्माण का प्रोन्नमन, ववदे श नीनत का भागथदशथन , याज्म का साधायण
प्रशासन चराना आटद सबी भहत्त्वऩूणथ कामथ , कामथऩामरका ही सम्ऩाटदत कयती है ।

प्रश्न 3.
बायत भें याष्ट्रऩनत के ननवाथचन के मरए ककस प्रणारी को अऩनामा जाता है ? उनके (याष्ट्रऩनत) केंद्रीम
भॊब्रत्रऩरयषद् के साथ सम्फन्धों की ववस्तत
ृ व्माख्मा कीन्जए।
उत्तय :
याष्ट्रऩनत का ननिाशचन
बायत के याष्ट्रऩनत का ननवाथचन अप्रत्मऺ यीनत से होता है । उसके ननवाथचन के मरए एक ननवाथचक भण्डर
फनामा जाता है , न्जसभें सॊसद के ननवाथर्चत सदस्म एवॊ याज्मों की ववधानसबाओॊ के ननवाथर्चत सदस्म होते
हैं। मह ननवाथचन आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी की एकर-सॊक्रभणीम भत प्रणारी द्वाया गुप्त भतदान की
यीनत से होता है ।

बायतीम सॊसद औय याज्मों की ववधानसबाओॊ के भनोनीत सदस्मों को याष्ट्रऩनत के ननवाथचन भें बाग रेने
का अर्धकाय नहीॊ है । याष्ट्रऩनत के ननवाथचन के सम्फन्ध भें दो तथ्म ववशेष रूऩ से उल्रेखनीम हैं –

1. याष्ट्रऩनत के ननवाथचन भें याज्मों के प्रनतननर्धत्व भें एकरूऩता (Uniformity) होती है ।


2. केन्द्र औय याज्मों के प्रनतननर्धमों के सम्फन्ध भें सभान न्स्थनत को फनाए यखने का प्रमास ककमा
गमा है ।
इस प्रकाय याष्ट्रऩनत के ननवाथचन का ऩरयणाभ भतों की साधायण गणना से ननधाथरयत न होकय एक प्रकाय से
भतों के भल्
ू म के आधाय ऩय ननधाथरयत होता है । याष्ट्रऩनत के ननवाथचन के मरए ननवाथचक भण्डर के सदस्म
ककस प्रकाय औय ककतने भत दें गे , इसके मरए ननम्नमरखखत व्मवस्था अऩनाई गई है –

1. सॊसद के सदस्मों के भतों औय याज्मों की ववधानसबाओॊ के कुर सदस्मों के भतों भें सभानता
स्थावऩत कयने के मरए सॊववधान फनाने वारों ने एक अनोखा तयीका अऩनामा है ।
2. बायत सॊघ भें सन्म्भमरत याज्मों की जनसॊख्मा औय उनकी ववधानसबाओॊ के सदस्मों की सॊख्मा
एकसभान नहीॊ है औय न इन दोनों को अनऩ
ु ात ही ऩण
ू थ तथा सभान है । अत: इस फात को ध्मान भें
यखकय सॊववधान फनाने वारों ने प्रत्मेक याज्म को सभान प्रनतननर्धत्व दे ने के मरए ननम्नमरखखत
व्मवस्था की है –
याज्म की कुर जनसॊख्म को याज्म की ववधानसबा के ननवाथर्चत सदस्मों की कुर सॊख्मा से बाग दे ने ऩय
जो बागपर आए उसको 1000 से बाग टदमा जाए औय उसके ऩश्चात ् जो बागपर आए उतने ही भत
याज्म की ववधानसबा के सदस्मों को प्राप्त होंगे। सूत्र रूऩ भें –
बायतीम सॊसद के प्रत्मेक सदस्म को ककतने भत प्राप्त होंगे , उसकी व्मवस्था ननम्न प्रकाय की गई है बायत
सॊघ भें सन्म्भमरत सदस्म याज्मों की ववधानसबा के ननवाथर्चत सदस्मों के भतों के मोग को सॊसद के
ननवाथर्चत सदस्मों की सॊख्मा से बाग दे ने ऩय जो बागपर आए , उतने भत सॊसद के ननवाथर्चत सदस्म को
दे ने का अर्धकाय प्राप्त होगा। मह ननम्न प्रकाय है –

सॊसद के प्रत्मेक सदस्म के भत का भल्


ू म

याष्ट्रऩनत के ननवाथचन के मरए एकर सॊक्रभणीम भत प्रणारी का प्रमोग ककमा जाता है । इस प्रणारी भें
उम्भीदवाय को ववजमी होने के मरए ननन्श्चत भत प्राप्त कयना आवश्मक है । ननन्श्चत भत प्राप्त कयने का
सूत्र अग्रमरखखत है –

काल्ऩननक उदाहयण – मटद ककसी याज्म की कुर जनसॊख्मा 5,00,00,000 है तथा ननवाथर्चत ववधानसबा
सदस्मों की सॊख्मा 500 है , तो एक ननवाथर्चत ववधानसबा सदस्म (एभ०एर०ए०) के भत का भल्
ू म

एक सॊसद सदस्म (एभ०ऩी०) के भत का भल्


ू म–मटद याज्मों की ववधनसबाओॊ के कुर ननवाथर्चत सदस्मों के
भतों की कुर सॊख्मा 6,00,00,000 है तथा ननवाथर्चत एभ०ऩी० 500 हैं, तो एक एभ०ऩी० के भत का भूल्म

ननधाशरयत कोिा – ककसी बी प्रत्माशी को ववजमी होने के मरए स्ऩष्ट्ट फहुभत प्राप्त होना अनत आवश्मक है ।
उसे कुर वैध भतों का आधे से अर्धक बाग प्राप्त होना चाटहए। उदाहयण के मरए कुर वैध भत 5,00,000
हैं तो वह उम्भीदवाय ववजमी भान जाएगा, जो 2,50,001 मा इससे अर्धक भत प्राप्त कये गा।
भतदान प्रकिमा एिॊ भतगणना – याष्ट्रऩनत ऩद के मरए कोई बी बायतीम नागरयक, जो ननधाथरयत मोग्मताएॉ
यखता हो, चन
ु ाव रड सकता है । ककन्तु शतथ मह है कक उम्भीदवाय का नाभ 50 ननवाथर्चत सदस्मों द्वाया
प्रस्ताववत होना चाटहए औय कभ-से-कभ 50 ननवाथचकों द्वाया उसके नाभ का सभथथन होना आवश्मक है ।
नाभाॊकन के फाद ननन्श्चत नतर्थ ऩय ननधाथरयत प्रकक्रमा द्वाया सॊसद सदस्म औय ववधानभण्डरों के सदस्म
भतदान कयते हैं। प्रत्मेक ननवाथचक उम्भीदवायों के नाभों (र्चह्न सटहत) ऩय अऩनी प्राथमभकताएॉ 1, 2, 3, 4
अॊककत कयता है । इसके फाद भतगणना होती है । भतगणना के प्रथभ चक्र भें उम्भीदवायों को मभरी ऩहरी
प्राथमभकता को र्गना जाता है । मटद ककसी उम्भीदवाय को इस चक्र की गणना भें ही ननधाथरयत कोटे से
अर्धक भत मभर जाते हैं , तो उसे ववजमी घोवषत कय टदमा जाता है , अन्मथा दस
ू ये चक्र की भतगणना की
जाती है ।

इस गणना भें उम्भीदवायों की मभरी द्ववतीम प्राथमभकता को र्गना जाता है । इस गणना भें मटद ककसी
उम्भीदवाय को मभरे भत फहुत कभ सेते है औय ऐसा अनुबव ककमा जाता है कक उसके ववजमी होने की
कोई सम्बावना नहीॊ है , तो उस न्स्थनत भें उसके भतों को अन्म उम्भीदवायों के मरए हस्तान्तरयत कय टदमा
जाता है । मटद इस चक्र भें कोई उम्भीदवाय ननधाथरयत कोटे से अर्धक भत प्राप्त कय रेता है , तो उसे
ववजमी घोवषत कय टदमा जाता है । मह भतगणना तथा भतों के हस्तान्तयण का मसरमसरा उस सभम तक
चरता यहता है , जफ तक कक कोई उम्भीदवाय ननधाथरयत भत प्राप्त नहीॊ कय रेता है । अन्तत् दो उम्भीदवाय
ही शेष यह जाते हैं। इनभें से न्जसे सफसे अर्धक भत प्राप्त होते हैं , उसे फहुभत के आधाय ऩय ववजमी
घोवषत कय टदमा जाता है । याष्ट्रऩनत के ननवाथचन की व्मवस्था व सॊचारन चुनाव आमोग कयता है ।
याष्ट्रऩनत के चुनाव से सम्फन्न्धत सबी वववाद केवर उच्चतभ न्मामारम ही ननणीत कयता है ।

भॊत्रत्रऩरयषद् एिॊ याष्ट्रऩनत का सम्फन्ध


बायत भें कामथऩामरका का अध्मऺ याष्ट्रऩनत होता है । सैर्द्ान्न्तक दृन्ष्ट्ट से भॊब्रत्रऩरयषद् का गठन उसको
ऩयाभशथ दे ने के मरए ककमा जाता है , ककन्तु वास्तववक न्स्थनत इसके सवथथा ववऩयीत है । भॊब्रत्रऩरयषद् के
ननणथम एवॊ ऩयाभशथ याष्ट्रऩनत को भानने ही ऩडते हैं। मद्मवऩ याष्ट्रऩनत इनके सम्फन्ध भें अऩनी व्मन्क्तगत
असहभनत प्रकट कय सकता है , ककन्तु वह भॊब्रत्रऩरयषद् के ननणथमों को भानने के मरए फाध्म होता है ।
बायतीम सॊववधान भें ककए गए 42वें तथा 44वें सॊववधान सॊशोधन के अनुसाय याष्ट्रऩनत भॊब्रत्रऩरयषद् का
ऩयाभशथ कानूनी दृन्ष्ट्टकोण से भानने के मरए फाध्म है । वह भॊब्रत्रऩरयषद् से केवर ऩुनववथचाय के मरए आग्रह
ही कय सकता है । वह भॊब्रत्रऩरयषद् की नीनतमों को ककस रूऩ भें प्रबाववत कयता है , मह उसके व्मन्क्तत्व ऩय
ननबथय है । भॊब्रत्रऩरयषद्में मरए गए सभस्त ननणथमों से याष्ट्रऩनत को अवगत कयामा जाता है तथा याष्ट्रऩनत
भॊब्रत्रऩरयषद् से ककसी बी प्रकाय की सच
ू ना भाॉग सकता है । याष्ट्रऩनत ही भॊब्रत्रऩरयषद् का गठन कयता है तथा
उसको शऩथ ग्रहण कयाती है । प्रधानभॊत्री के ऩयाभशथ ऩय वह ककसी बी भॊत्री को ऩदच्मुत कय सकता है ।

प्रश्न 4.
बायत के याष्ट्रऩनत के सॊकटकारीन अर्धकायों की वववेचना कीन्जए व सॊववधान भें उसके भहत्त्व ऩय प्रकाश
डामरए।
मा
बायत भें आऩातकार की घोषणा ककन ऩरयन्स्थनतमों भें की जाती है ? इस घोषणा के क्मा ऩरयणाभ होते हैं।
मा
बायत के याष्ट्रऩनत की आऩातकारीन शन्क्तमाॉ फताइए। क्मा सॊकटकारीन न्स्थनतमों भें बायत का याष्ट्रऩनत
तानाशाह फन सकता है ?
मा
बायतीम सॊघ के याष्ट्रऩनत की सॊकटकारीन शन्क्तमों का वणथन कीन्जए।
मा
बायतीम याष्ट्रऩनत की शन्क्तमों एवॊ उसकी सॊवैधाननक न्स्थनत का भल्
ू माॊकन कीन्जए।
मा
अनुच्छे द 360 के ऩीछे भुख्म उद्देश्म क्मा है ? मा याष्ट्रऩनत एक शन्क्तहीन औऩचारयक अध्मऺ भात्र है । इस
कथन की सभीऺा कीन्जए।
मा
बायत के याष्ट्रऩनत की सॊवैधाननक न्स्थनत का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
याष्ट्रऩनत के सॊकिकारीन अचधकाय
साभान्म ऩरयन्स्थनतमों भें बायतीम याष्ट्रऩनत की न्स्थनत एक सॊवैधाननक अध्मऺ की होती है तथा वह अऩनी
सभस्त शन्क्तमों का प्रमोग भॊब्रत्र-ऩरयषद् के ऩयाभशथ से कयता है , ककन्तु सॊववधान ननभाथताओॊ ने सॊकटकार
का साभना कयने के मरए सॊववधान के 18वें बाग भें सॊकटकारीन धायाओॊ का वणथन ककमा है , न्जनके
अनुसाय सॊकटकार की न्स्थनत भें याष्ट्रऩनत दे श का सवेसवाथ फन जाता है । कपय बी मह अऩेऺा की जाती है
कक सॊकटकार भें याष्ट्रऩनत अऩने अर्धकायों का प्रमोग दे श के टहत को ध्मान भें यखकय ही कये गा।

सॊववधान के अनुच्छे द 352, 356 तथा 360 भें तीन प्रकाय के सॊकटों का वणथन ककमा गमा है , जो
ननम्नमरखखत हैं

1. मुर्द्, फाह्म आक्रभण तथा सशस्त्र ववद्रोह की न्स्थनत भें


2. याज्मों भें सॊवैधाननक तन्त्र की ववपरता की न्स्थनत भें।
3. दे शव्माऩी ववत्तीम सॊकट उत्ऩन्न होने ऩय।
1. मद्
ु , फाह्म आिभण तथा सर्स्त्र विद्रोह की क्स्थनत भें
अनुच्छे द 352 के अन्तगथत मटद याष्ट्रऩनत को मह अनुबव हो कक मुर्द् , फाहयी आक्रभण व आन्तरयक
अशान्न्त के कायण बायत मा उसके ककसी बाग की शान्न्त बॊग होने का बम है तो याष्ट्रऩनत को
सॊकटकारीन घोषणा कयने के अर्धकाय प्राप्त हैं। सॊववधान भें ककमे गमे 44वें सॊशोधन के द्वाया याष्ट्रऩनत
के इस अर्धकाय के सम्फन्ध भें कुछ प्रभख
ु प्रावधान ककमे गमे हैं , जो ननम्नमरखखत हैं –

(अ) 44वें सॊशोधन द्वाया की गमी व्मवस्थाओॊ के भाध्मभ से वतथभान सभम भें याष्ट्रऩनत मर्द्
ु , फाहयी
आक्रभण मा सशस्त्र ववद्रोह होने मा इसकी आशॊका होने ऩय ही आऩातकारीन घोषणा कय सकता है । अफ
याष्ट्रऩनत के द्वाया केवर आन्तरयक अशान्न्त के नाभ ऩय आऩातकार की घोषणा नहीॊ की जा सकती।
(फ) इस सॊशोधन के एक अन्म प्रावधान भें मह व्मवस्था की गमी है कक याष्ट्रऩनत द्वाया अनुच्छे द 352 के
अन्तगथत आऩातकार की घोषणा तबी की जा सकती है जफ भॊब्रत्रभण्डर मरखखत रूऩ से याष्ट्रऩनत को
ऩयाभशथ दे ।
(स) याष्ट्रऩनत द्वाया मह घोषणा कयने के 1 भाह के अन्दय सॊसद के दोनों सदनों के 2/3 फहुभत से प्रस्ताव
को अनभ
ु ोटदत होना अत्मन्त आवश्मक है । इस प्रकाय याष्ट्रऩनत शासन को 6 भाह तक रागू यखा जा
सकता है । इससे अर्धक अवर्ध के मरए रागू ककमे जाने ऩय , प्रनत 6 भाह ऩश्चात ् उसे सॊसद की ऩुन्
स्वीकृनत प्राप्त होनी अत्मन्त आवश्मक होती है ।
घोषणा के प्रबाि – याष्ट्रऩनत द्वाया अनुच्छे द 352 के अधीन की जाने वारी आऩातकारीन घोषणा के अन्तगथत
सॊववधान द्वाया नागरयकों को अनुच्छे द 19 के द्वाया दी जाने वारी स्वतॊत्रताओॊ को स्थर्गत कय टदमा जाता
है , ऩयन्तु 44वें सॊशोधन के द्वाया नागरयकों के जीवन औय दै टहक स्वतॊत्रता के अर्धकाय को सभाप्त मा
सीमभत नहीॊ ककमा जा सकेगा। इसके अनतरयक्त आऩातकारीन न्स्थनत भें हभाया सॊववधान एकात्भक शासन
का रूऩ धायण कय रेता है तथा याज्म सयकायें अऩनी शन्क्तमों का प्रमोग केंद्रीम सयकाय के ननदे शाॊनस
ु ाय
कयती हैं। इस न्स्थनत भें याष्ट्रऩनत सॊघ औय याज्मों के फीच आम के ववतयण सम्फन्धी ककसी उऩफन्ध को
सॊशोर्धत कय सकता है ।
बायत भें स्वतॊत्रता प्रान्प्त के ऩश्चात ् अफ तक मुर्द् तथा फाहयी आक्रभण के कायण 1962 ई० भें तथा 1971
ई० भें आऩातकार की घोषणा की गमी थी। 1975 ई० भें श्रीभती इन्न्दया गाॊधी के सभम आन्तरयक
अव्मवस्था उत्ऩन्न होने की आशॊका को रेकय दे श भें आऩातकार की घोषणा की गमी थी।

2. याज्मों भें सॊिध


ै ाननक तन्त्र की विपरता की क्स्थनत भें
सॊववधान के अनच्
ु छे द 356 के अनस
ु ाय, ―याज्मों भें सॊवैधाननक तन्त्र के ववपर होने ऩय याष्ट्रऩनत याज्मऩार
के प्रनतवेदन मा अन्म ककसी प्रकाय से मह ननन्श्चत होने ऩय कक याज्म भें प्रशासन सॊववधान के अनुसाय
कामथ नहीॊ कय यहा है , आऩातकार की घोषणा कय सकता है । इस घोषणा को बी याष्ट्रऩनत प्रथभ घोषणा के
सदृश ही रागू कयता है । 42वें सॊशोधन के द्वाया मद्मवऩ इस घोषणा की अवर्ध को 6 भाह से फढ़ाकय 1
वषथ ककमा गमा था, ऩयन्तु 44वें सॊशोधन के द्वाया इसे ऩुन् 6 भाह कय टदमा गमा है । बायत भें याष्ट्रऩनत
द्वाया अनुच्छे द 356 का प्रमोग अफ तक ववमबन्न याज्मों भें 115 फाय ककमा जा चुका है । न्जनभें उत्तय
प्रदे श, ब्रफहाय आटद याज्म प्रभुख हैं।

घोषणा के प्रबाि – याष्ट्रऩनत द्वाया अनुच्छे द 356 के अन्तगथत की जाने वारी घोषणा के ननम्नमरखखत प्रबाव
ऩडते हैं –
1. याष्ट्रऩनत द्वाया अनुच्छे द 356 को ककसी याज्म भें रागू कयने ऩय याज्म की सभस्त ववधानमका
शन्क्तमों का प्रमोग केन्द्र द्वाया ककमा जाता है ।
2. याष्ट्रऩनत द्वाया इस न्स्थनत भें ककसी बी याज्मार्धकायी की कामथऩामरका सम्फन्धी शन्क्तमाॉ हस्तगत
कय री जाती हैं।
3. उच्च न्मामारम की शन्क्तमों के अनतरयक्त याज्म से सम्फन्न्धत सभस्त शन्क्तमों का प्रमोग
याष्ट्रऩनत द्वाया ककमा जा सकता है ।
4. रोकसबा की फैठक न होने की न्स्थनत भें याष्ट्रऩनत याज्म की सॊर्चत ननर्ध से , ब्रफना रोकसबा की
स्वीकृनत के, व्मम की अनभ
ु नत दे सकता है ।
5. याष्ट्रऩनत द्वाया अनुच्छे द 19 द्वाया प्रदत्त नागरयकों के भौमरक अर्धकायों को बी प्रनतफन्न्धत ककमा
जा सकता है ।
3. दे र्व्माऩी वित्तीम सॊकि उत्ऩन्न होने ऩय
अनुच्छे द 360 के अनुसाय याष्ट्रऩनत को ववत्तीम आऩातकार की घोषणा कयने का अर्धकाय प्रदान ककमा है ।
इस व्मवस्था के अन्तगथत मटद याष्ट्रऩनत को मह ववश्वास हो जाए कक बायत की ववत्तीम साख को खतया
है , तो याष्ट्रऩनत याष्ट्र भें ववत्तीम आऩातकार की घोषणा कय सकता है ।

घोषणा के प्रबाि – ववत्तीम आऩात की घोषणा कयने ऩय याष्ट्रऩनत सॊघ तथा याज्मार्धकारयमों के वेतन भें
कटौती कय सकता है । वह सवोच्च न्मामारम तथा उच्च न्मामारमों के न्मामाधीशों के वेतन भें बी कटौती
कय सकता है । इसके अनतरयक्त याज्म सयकाय द्वाया प्रस्ताववत सबी ववत्त ववधेमक इस न्स्थनत भें
याष्ट्रऩनत के सभऺ प्रस्तुत ककमे जाते हैं। याष्ट्रऩनत केन्द्र व याज्म सयकायों के भध्म धन सम्फन्धी ववषमों
के ववतयण के प्रावधानों भें सॊशोधन बी कय सकता है । इस घोषणा को रागू कयने ऩय याष्ट्रऩनत द्वाया
नागरयकों के भौमरक अर्धकायों (अनुच्छे द 19) को प्रनतफन्न्धत ककमा जा सकता है । ऐसी न्स्थनत भें
याष्ट्रऩनत नागरयकों के सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकायों को बी स्थर्गत कय सकता है ।
ववत्तीम घोषणा के सम्फन्ध भें मह उल्रेखनीम है कक बायत भें अबी तक एक फाय बी ववत्तीम आऩात की
घोषणा नहीॊ की गमी है ।

याष्ट्रऩनत की िास्तविक क्स्थनत तथा भहत्त्ि


बायतीम याष्ट्रऩनत की वास्तववक न्स्थनत ऩमाथप्त वववादग्रस्त यही है । सॊसदीम शासन-प्रणारी के कायण
याष्ट्रऩनत वैधाननक प्रधान है । सॊववधान के प्रारूऩ को प्रस्तत
ु कयते हुए डॉ० अम्फेडकय ने सॊववधान सबा भें
कहा था-―याष्ट्रऩनत की वही न्स्थनत है जो इॊग्रैण्ड के सॊववधान भें वहाॉ के सम्राट् की है । वह याष्ट्र का प्रधान
है , कामथऩामरका का नहीॊ। वह प्रनतननर्धत्व कयता है , उस ऩय शासन नहीॊ कयता है । वह साधायणत् भॊब्रत्रमों
के ऩयाभशथ भानने मरए वववश होगा। वह उनके ऩयाभशथ के ववरुर्द् तथा उनके ब्रफना कुछ नहीॊ कय सकता। ‖
इस प्रकाय वास्तववक कामथऩामरका शन्क्तमाॉ भॊब्रत्रभण्डर भें ननटहत हैं। सॊववधान द्वाया जो शन्क्तमाॉ
याष्ट्रऩनत को दी गमी हैं , उनका प्रमोग व्मवहाय भें प्रधानभॊत्री व भॊब्रत्रभण्डर कयता है । याष्ट्रऩनत का ऩद
शन्क्तहीन होने के कायण कुछ रोगों का कहना है कक याष्ट्रऩनत का ऩद भहत्त्वहीन है । मह ववचाय सही
नहीॊ है । सॊसदीम प्रणारी भें याष्ट्रऩनत ऩद का ववशेष भहत्त्व है । मह ननम्नमरखखत तथ्मों से स्ऩष्ट्ट है –

1. वह याष्ट्र का प्रतीक है ।
2. वह व्मन्क्तगत रूऩ से कई कामथ कयता है ।
3. वह सॊक्रभण कार भें व्मवस्था तथा स्थानमत्व फनामे यखता है ।
4. वह सॊकटकार भें याष्ट्र का नेतत्ृ व कयता है ।
5. वह रोकतॊत्र को प्रहयी तथा यऺक है ।
6. वह अन्तयाथष्ट्रीम ऺेत्र भें याष्ट्र का प्रनतननर्धत्व कयता है ।
इस प्रकाय कहा जा सकता है कक मद्मवऩ याष्ट्रऩनत वास्तववक कामथऩामरका नहीॊ है , कपय बी वह बायतीम
शासन का भहत्त्वऩूणथ अॊश है । स्वगीम प्रधानभॊत्री श्री जवाहयरार नेहरू ने बी कहा था- ―हभने अऩने
याष्ट्रऩनत को वास्तववक शन्क्त नहीॊ दी है , वयन ् हभने उसके ऩद को सत्ता व प्रनतष्ट्ठा से ववबवू षत ककमा है ।
वह बायतीम शासन-व्मवस्था का भहत्त्वऩूणथ अॊग है । उसके ब्रफना दे श का शासन सुचारु रूऩ से नहीॊ चर
सकता। 42वें तथा 44वें सॊशोधनों द्वाया याष्ट्रऩनत के अर्धकायों से सम्फन्न्धत भहत्त्वऩूणथ सॊशोधन ककमे
गमे हैं। अफ याष्ट्रऩनत को भॊब्रत्र-ऩरयषद् के ऩयाभशाथनुसाय कामथ कयना होगा। वह भॊब्रत्र-ऩरयषद् से ऩुनववथचाय के
मरए आग्रह कय सकता है औय भॊब्रत्र-ऩरयषद् के ऩन
ु ववथचाय को भानने के मरए फाध्म है ।

तमा याष्ट्रऩनत तानार्ाह फन सकता है ?


मा याष्ट्रऩनत की सॊकिकारीन र्क्ततमों का भल्
ू माॊकन
कुछ आरोचकों का मह भानना है कक सॊकटकारीन अवस्था भें याष्ट्रऩनत को इतनी अर्धक शन्क्तमाॉ प्रदान
की गमी हैं कक वह एक ननयॊ कुश शासक अथवा तानाशाह फन सकता है ।

श्री हरयववष्ट्णु काभथ ने तो सॊववधान सबा भें इस व्मवस्था को स्वीकाय ककमे जाने वारे टदन को शभथनाक
टदन फतामा है । श्री अभयनन्दी के अनस
ु ाय, ―याष्ट्रऩनत की सॊकटकारीन शन्क्तमाॉ उसके हाथों भें बयी फन्दक

के सभान हैं न्जनका प्रमोग वह रोगों की स्वतॊत्रता की यऺा के मरए अथवा इनको ववनष्ट्ट कयने के मरए
कय सकता है । उसके अर्धकायों को दे खकय प्रमसर्द् ववद्वान ् ऐरेन ग्रेडटहर ने मरखा है - ―कुछ ववमशष्ट्ट
ऩरयन्स्थनतमों भें बायत का याष्ट्रऩनत तानाशाह फन सकता है , ऩयन्तु मटद ककॊर्चत गहनता से ववचाय ककमा
जाए तो व्मावहारयक रूऩ से मह फात उर्चत नहीॊ है । शामद ही कोई ऐसा याष्ट्रऩनत होगा जो अऩने
सॊकटकारीन अर्धकायों का वास्तववक उऩमोग कये गा। ‖ सॊकटकारीन अर्धकायों के ववषम भें डॉ० भहादे व
प्रसाद शभाथ ने मरखा है – ―याष्ट्रऩनत के अर्धकायों की सूची कागज ऩय अत्मन्त ववस्तत
ृ प्रतीत होती है औय
इसभें ककॊर्चत भात्र बी सन्दे ह नहीॊ है कक मटद याष्ट्रऩनत अऩनी इन शन्क्तमों का वास्तववक उऩमोग कय
सके तो वह सॊसाय का सफसे फडा स्वेच्छाचायी शासक होगा। ‖

उऩमुक्
थ त आरोचनौओॊ भें सत्म को कुछ अॊश अवश्म है , ऩयन्तु मे आरोचनाएॉ अनतशमोन्क्तऩूणथ बी हैं ,
क्मोंकक सॊकटकारीन अवस्था केवर कुछ ऩरयन्स्थनतमों के मरए ही होती है । इस सम्फन्ध भें टी० टी०
कृष्ट्णाभाचायी का ववचाय है - ―मटद कामथऩामरका अऩनी सॊकटकारीन शन्क्तमों का दरु
ु ऩमोग कयती है तो सॊसद
उसे सफक दे सकती है । हभ जानते हैं कक ववधानमका भें जन-प्रनतननर्ध होते हैं न्जन्हें प्रत्मेक ऩाॉच वषथ के
फाद जनता के सभऺ अऩने ऩऺ भें भतदान कयने का आग्रह कयना होता है । ऐसी न्स्थनत भें सॊकटकारीन
घोषणा भें कामथऩामरका एवॊ ववधानमका ककसी के बी ननयॊ कुश होने की आशॊका केवर नाभभात्र की होती है ।

सॊववधान के 42वें सॊशोधन के फाद तो बम अथवा आशॊका बी ऩण


ू त
थ : सभाप्त हो गमी है । इस सॊशोधन के
द्वाया मह व्मवस्था कय दी गमी है कक याष्ट्रऩनत भॊब्रत्रभण्डर के ऩयाभशथ को भानने के मरए फाध्म होगा।
सॊववधान के 44वें सॊशोधन के अनुसाय याष्ट्रऩनत अर्धक-से-अर्धक भॊब्रत्र-ऩरयषद् से ऩुनववथचाय के मरए आग्रह
कय सकता है औय अन्तत: वह भॊब्रत्रऩरयषद् के द्वाया ककमे गमे ऩुनववथचाय को भानने के मरए फाध्म है ।
इसमरए अफ मह ननन्श्चत हो गमा है कक याष्ट्रऩनत सॊकटकार भें बी तानाशाह कदावऩ नहीॊ फन सकता।
याष्ट्रऩनत तबी तानाशाह फन सकता है जफ वह भॊब्रत्र-ऩरयषद् की सराह की अवहे रना कय दे । इस न्स्थनत भें
सॊसद के द्वाया उस ऩय भहामबमोग रगामा जा सकता है । सॊववधान को ताक ऩय यखकय ही याष्ट्रऩनत
तानाशाह फन सकता है । सॊववधान के दामये भें कामथ कयते हुए उसके तानाशाह फन जाने की कोई आशॊका
नहीॊ है ।

प्रश्न 5.
बायत के याष्ट्रऩनत की शन्क्तमों का ऩयीऺण कीन्जए।
मा
याष्ट्रऩनत की ववत्तीम शन्क्तमों का वणथन कीन्जए।
मा
―बायत का याष्ट्रऩनत सॊघीम कामथऩामरका का सॊवैधाननक प्रधान है । ‖ इस कथन की सभीऺा कीन्जए।
मा
बायत के याष्ट्रऩनत के भुख्म कामों का सॊऺेऩ भें वववेचन कीन्जए।
मा
अध्मादे श क्मा है ? इसे कौन जायी कय सकता है ?
मा
बायत के याष्ट्रऩनत की कामथऩामरका औय ववधामी सम्फन्धी शन्क्तमों का वणथन कीन्जए।
मा
बायत के याष्ट्रऩनत के कामों एवॊ शन्क्तमों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
याष्ट्रऩनत के अचधकाय अथिा र्क्ततमाॉ औय कामश
बायतीम सॊववधान के अनुसाय बायत के याष्ट्रऩनत को फहुत व्माऩक अर्धकाय प्रदान ककमे गमे हैं। बायत सॊघ
की कामथऩामरका शन्क्तमाॉ सॊववधान की धाया 53 के अनुसाय याष्ट्रऩनत को प्रदान की गमी हैं , न्जनका प्रमोग
वह स्वमॊ मा अऩने अधीनस्थ अर्धकारयमों की सहामता से कय सकता है । वस्तत
ु ् सॊसदीम शासन-प्रणारी
होने के कायण वह अऩनी शन्क्तमों का प्रमोग अऩनी इच्छानुसाय न कयके भॊब्रत्रभण्डर की सहामता से
कयता है । याष्ट्रऩनत के इन अर्धकायों को भख्
ु मत: दो श्रेखणमों भें ववबान्जत ककमा जा सकता है –

(1) साभान्मकारीन शन्क्तमाॉ अथवा अर्धकाय तथा


(2) सॊकटकारीन शन्क्तमाॉ अथवा अर्धकाय।

साभान्मकारीन अर्धकायों का वणथन छ: ववबागों के अन्तगथत ककमा जा सकता है –

1. प्रशासकीम मा शासन सम्फन्धी अर्धकाय।


2. ववधानमनी अथवा कानून-ननभाथण सम्फन्धी अर्धकाय।
3. ववत्तीम अथवा अथथ सम्फन्धी अर्धकाय।
4. न्माम सम्फन्धी अर्धकाय।
5. ववशेषार्धकाय।
6. सवोच्च न्मामारम से ऩयाभशथ रेने का अर्धकाय।
(1) प्रर्ासकीम मा र्ासन-सम्फन्धी अचधकाय
बायत सॊघ का शासन-सम्फन्धी प्रत्मेक कामथ याष्ट्रऩनत के नाभ से सम्ऩन्न होता है । याष्ट्रऩनत के प्रशासकीम
अर्धकायों को कई बागों भें ववबान्जत ककमा जा सकता है , न्जनका सॊक्षऺप्त वणथन इस प्रकाय है –

(क) ऩदाचधकारयमों की ननमक्ु तत का अचधकाय – सबी भहत्त्वऩूणथ ननमुन्क्तमाॉ याष्ट्रऩनत द्वाया की जाती हैं।
सॊववधान के अनुच्छे द 75 (1) के अनुसाय वह सॊसद भें फहुभत दर के नेता की ननमुन्क्त प्रधानभॊत्री के ऩद
ऩय कयता है तथा प्रधानभॊत्री के ऩयाभशथ से अन्म भॊब्रत्रमों की ननमन्ु क्त कयता है । एटानी जनयर , भहारेखा
ऩयीऺक, सॊघीम रोक सेवा आमोग के अध्मऺ तथा दस
ू ये सदस्म, मटद याज्मों का सॊमुक्त रोक सेवा आमोग
हो तो उनका प्रधान तथा दस
ू ये सदस्म, सवोच्च न्मामारम के भख्
ु म न्मामाधीश तथा अन्म न्मामाधीशों औय
उच्च न्मामारम के भुख्म न्मामाधीश तथा अन्म न्मामाधीशों , ववदे शों को बेजे जाने वारे याजदत
ू ों, याज्मों के
याज्मऩारों तथा केंद्रीम ऺेत्रों का शासन-प्रफन्ध चराने के मरए चीप कमभश्नय तथा उऩयाज्मऩार आटद की
ननमुन्क्त याष्ट्रऩनत द्वाया की जाती है । याष्ट्रऩनत को कई प्रकाय के आमोगों ; जैसे कक बाषा-आमोग, ववत्त-
आमोग, चुनाव-आमोग तथा वऩछडे वगों के सम्फन्ध भें आमोग गटठत कयने का अर्धकाय प्राप्त है ।
(ख) याज्मों के नीनत-ननदे र्न का अचधकाय – जैसा ऩहरे फतामा जा चुका है कक याष्ट्रऩनत याज्मों के याज्मऩारों एवॊ
भुख्म आमुक्तों आटद की ननमुन्क्त कयता है औय इनके भाध्मभ से याज्मों की नीनत का ननदे शन कयता है
तथा याज्मों ऩय अऩना ननमन्त्रण यखता है । मटद याष्ट्रऩनत मह सभझता है कक ककसी प्रदे श भें सॊवैधाननक
शासन-तन्त्र असपर हो यहा है तो उस प्रदे श के सभस्त प्रशासकीम अर्धकाय अऩने ननमन्त्रण भें रे रेता
है ।
(ग) सैननक अचधकाय – याष्ट्रऩनत याष्ट्र की सशस्त्र सेनाओॊ का सवोच्च सेनाऩनत है । वह थर, जर, वामु
सेनाध्मऺों की ननमन्ु क्त कयता है । वह पील्ड भाशथर की उऩार्ध बी प्रदान कयता है । वह याष्ट्रीम यऺा
समभनत का अध्मऺ होता है । याष्ट्रऩनत को मुर्द् औय शान्न्त की घोषणा कयने का अर्धकाय है , ककन्तु वह
इन अर्धकायों का प्रमोग कानन
ू के अनस
ु ाय ही कय सकता है तथा इसके मरए उसे सॊसद की स्वीकृनत रेनी
आवश्मक है ।
(घ) अन्तयाशष्ट्रीम सम्फन्धों के अचधकाय – अन्तयाथष्ट्रीम सम्फन्ध स्थावऩत कयना बी याष्ट्रऩनत का कामथ है । वह
ववदे शों से सन्न्धमाॉ एवॊ याजनीनतक, साॊस्कृनतक तथा व्माऩारयक सभझौते सम्ऩन्न कयता है । ववदे शों से आमे
हुए याजदत
ू ों के प्रभाण-ऩत्रों की जाॉच बी याष्ट्रऩनत ही कयता है तथा ववदे शों भें अऩने दे श के याजदत
ू ों को
ननमुक्त कयता है । मद्मवऩ सभझौतों आटद की ऩहर भॊब्रत्रमों द्वाया की जाती है तथा इनकी ऩुन्ष्ट्ट सॊसद
द्वाया आवश्मक है कपय बी मे सभझौते याष्ट्रऩनत के नाभ से ही सम्ऩन्न ककमे जाते हैं।
(2) विधानमनी अथिा कानन
ू -ननभाशण सम्फन्धी अचधकाय
याष्ट्रऩनत सॊसद का अमबन्न अॊग है । सॊववधान के अनुच्छे द 58 (1) व (2) के अन्तगथत वह सॊसद को
आभॊब्रत्रत कयने, स्थर्गत कयने औय रोकसबा को बॊग कयने के अर्धकाय का प्रमोग कय सकता है । याष्ट्रऩनत
को अनेक ववधानमनी शन्क्तमाॉ बी प्राप्त हैं , न्जनका उल्रेख ननम्नवत ् है –

(क) सदस्मों को भनोनीत कयने का अचधकाय – याष्ट्रऩनत को याज्मसबा के मरए ऐसे 12 सदस्मों को भनोनीत
कयने का अर्धकाय है जो साटहत्म, करा, ववऻान अथवा ककसी अन्म ऺेत्र भें ऩायॊ गत हों। इसके अनतरयक्त
वह रोकसबा भें बी 2 आॊग्र-बायतीम सदस्मों को भनोनीत कय सकता है ।
ु ाने एिॊ सन्दे र् बेजने का अचधकाय – सॊववधान द्वाया सॊसद के दोनों सदनों को
(ख) सॊसद का अचधिेर्न फर
अर्धवेशन फुराने का अर्धकाय याष्ट्रऩनत को टदमा गमा है । याष्ट्रऩनत सॊसद के दोनों सदनों को अरग-अरग
अथवा एक साथ सम्फोर्धत कय सकता है अथवा उन्हें सन्दे श बेज सकता है ।
(ग) याज्मों के विधानभण्डरों ऩय अचधकाय – याष्ट्रऩनत का अर्धकाय याज्मों के ववधानभण्डरों ऩय बी होता है ।
याज्मों के ववधानभण्डरों के ककसी कामथ ऩय प्रनतफन्ध रगाने तथा तत्सम्फन्धी कानून फनाने के सम्फन्ध भें
याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत आवश्मक है । अनेक प्रकाय के ऐसे ववधेमक होते हैं जो याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत के
ब्रफना रागू नहीॊ ककमे जा सकते।
(घ) विधेमक ऩारयत कयने का अचधकाय – सॊसद के द्वाया ऩारयत कोई बी ववधेमक तफ तक कानून नहीॊ फन
सकता जफ तक कक याष्ट्रऩनत उस ऩय अऩनी स्वीकृनत न दे दे । मह याष्ट्रऩनत की इच्छा ऩय ननबथय कयता
है कक वह ककसी ववधेमक ऩय हस्ताऺय कये अथवा न कये । धन ववधेमक के अनतरयक्त वह ककसी बी
ववधेमक को सॊसद भें ऩुन् ववचाय के मरए वाऩस बेज सकता है । मह सॊसद की स्वेच्छा ऩय होगा कक वह
याष्ट्रऩनत द्वाया की गमी मसपारयशों को भाने अथवा न भाने। सॊसद याष्ट्रऩनत की मसपारयशों ऩय ववचाय
कयके याष्ट्रऩनत को ववधेमक ऩुन् बेजती है औय याष्ट्रऩनत को उस ऩय अऩनी स्वीकृनत दे नी ही ऩडती है ।
सबी धन ववधेमक याष्ट्रऩनत की मसपारयशों के ऩश्चात ् ही सॊसद भें प्रस्तुत ककमे जाते हैं।
(ङ) अध्मादे र् जायी कयने का अचधकाय – सॊववधान के अनुच्छे द 123 (1) के अनुसाय आवश्मकता ऩडने ऩय
याष्ट्रऩनत अध्मादे श बी जायी कय सकता है । मह कामथ वह तबी कयता है जफ सॊसद को अर्धवेशन न हो
यहा हो। याष्ट्रऩनत के द्वाया जायी ककमे गमे अध्मादे शों की शन्क्त तथा प्रबाव वैसा ही होगा जैसा कक अन्म
अर्धननमभों का होता है । सॊसद को अर्धवेशन प्रायम्ब होने ऩय इन। अध्मादे शों का अनभ
ु ोदन कयाना होता
है । सॊसद का अर्धवेशन प्रायम्ब होने की नतर्थ से 6 सप्ताह तक ही मह अध्मादे श रागू यह सकता है ,
ककन्तु मटद सॊसद चाहे तो उसके द्वाया इस अवर्ध से ऩव
ू थ बी इन अध्मादे शों को सभाप्त ककमा जा सकता
है । याष्ट्रऩनत बी ककसी अध्मादे श को ककसी बी सभम वाऩस रे सकता है । अनुसूर्चत ऺेत्रों भें शान्न्त औय
व्मवस्था फनामे यखने के मरए ननमभ फनाने का अर्धकाय बी याष्ट्रऩनत को प्राप्त है ।
(च) रोकसबा को बॊग कयने का अचधकाय – रोकसबा की अवर्ध 5 वषथ है , ऩयन्तु याष्ट्रऩनत ननन्श्चत अवर्ध से ऩूवथ
बी रोकसबा को बॊग कय सकता है । याष्ट्रऩनत अऩनी इस शन्क्त का प्रमोग प्रधानभॊत्री के ऩयाभशथ से कयता
है । बायत भें ऐसा कई फाय हो चुका है ।
(3) वित्तीम अथिा अथश सम्फन्धी अचधकाय
बायत के याष्ट्रऩनत को ववत्तीम अर्धकाय बी प्रदान ककमे गमे हैं। इन अर्धकायों का अध्ममन ननम्नमरखखत
रूऩ से ककमा जा सकता है –

(क) फजि उऩक्स्थत कयाने का अचधकाय – प्रत्मेक ववत्तीम वषथ के प्रायम्ब भें याज्म की आम-व्मम का वावषथक
फजट ववत्तभॊत्री के भाध्मभ से याष्ट्रऩनत ही सॊसद के सभऺ प्रस्तुत कयवाता है । फजट भें सयकाय की
वषथबय की आम तथा व्मम के अनुभाननत आॉकडे प्रस्तुत ककमे जाते हैं।
(ख) कय एिॊ अनदु ान सम्फन्धी अचधकाय – याष्ट्रऩनत नमे कयों को रगाने अथवा प्रचमरत कयों को सभाप्त कयने
की मसपारयश कय सकता है । ववमशष्ट्ट कामों को कयने हे तु याष्ट्रऩनत अनुदान की भाॉग बी कय सकता है ।
याष्ट्रऩनत की ऩव
ू थ स्वीकृनत के ब्रफना कोई बी ववत्त ववधेमक मा अनद
ु ान भाॉग रोकसबा भें प्रस्तत
ु नहीॊ की
जा सकती है ।
(ग) आमकय से प्रातत आम तथा ऩिसन के ननमाशत से प्रातत आम का वितयण – याष्ट्रऩनत ही आमकय से होने वारी
आम भें ववमबन्न याज्मों के बाग को ननधाथरयत कयता है तथा मह बी ननन्श्चत कयता है कक ऩटसन के
ननमाथत कय की आम भें से कुछ याज्मों को फदरे भें क्मा धनयामश मभरनी चाटहए।
(घ) वित्त आमोग की ननमक्ु तत का अचधकाय – बायतीम सॊववधान की धाया 280 के अनुसाय ववत्त से सम्फन्न्धत
सभस्माओॊ को हर कयने के मरए याष्ट्रऩनत एक ववत्त आमोग की ननमुन्क्त कय सकता है । इसकी ननमुन्क्त
प्रनत 5 वषथ ऩश्चात ् की जाती है । मह आमोग ववत्त सम्फन्धी सभस्त सभस्माओॊ ऩय ववचाय कयके उनका
सभाधान प्रस्तुत कय सकता है ।
(4) न्माम सम्फन्धी अचधकाय
याष्ट्रऩनत को न्माम सम्फन्धी बी कुछ अर्धकाय प्रदान ककमे गमे हैं। याष्ट्रऩनत ही सवोच्च एवॊ उच्च
न्मामारमों के न्मामाधीशों की ननमन्ु क्त कयता है । सॊसद के प्रस्ताव ऩय उन्हें ऩदच्मत
ु बी कय सकता है ।
याष्ट्रऩनत को ककसी बी अऩयाध को ऺभादान कयने का अर्धकाय है । भत्ृ मु-दण्ड प्राप्त ककसी बी व्मन्क्त को
वह ऺभा कयके जीवनदान दे सकता है । ककसी बी अऩयाधी के दण्ड को ऺभा कयने , कभ कयने, स्थर्गत
कयने तथा अन्म ककसी दण्ड भें फदरने का बी उसे अर्धकाय है , ऩयन्तु शतथ मह है कक मह दण्ड सैननक
न्मामारम द्वाया न टदमा गमा हो।

(5) विर्ेषाचधकाय
बायतीम सॊववधान ने याष्ट्रऩनत को कुछ ववशेषार्धकाय (Immunities) बी प्रदान ककमे हैं। मद्मवऩ बायतीम
सॊघ के सभस्त कामथ याष्ट्रऩनत के नाभ से होते हैं , ककन्तु वह अऩने शासन सम्फन्धी औय शासकीम कामों
के मरए ककसी न्मामारम के प्रनत उत्तयदामी न होगा। न तो उसके ववरुर्द् ककसी न्मामारम भें कामथवाही की
जा सकती है औय न उसकी र्गयफ्तायी के मरए कोई वायण्ट जायी ककमा जा सकता है ।

(6) सिोच्च न्मामारम से ऩयाभर्श रेने का अचधकाय


सॊववधान के अनुच्छे द 143 के अनुसाय सावथजननक भहत्त्व के ककसी प्रश्न ऩय याष्ट्रऩनत सवोच्च न्मामारम
से कानूनन ऩयाभशथ रे सकते हैं। सवोच्च न्मामारम द्वाया टदमा गमा ऩयाभशथ फाध्मकायी नहीॊ होता औय
मह याष्ट्रऩनत की इच्छा ऩय है कक वे उस ऩयाभशथ को स्वीकाय कयें अथवा नहीॊ। इस प्रकाय बायत के
याष्ट्रऩनत को शान्न्तकार भें ववस्तत
ृ शन्क्तमाॉ प्राप्त हैं। शान्न्तकार भें वह सॊवैधाननक अध्मऺ के रूऩ भें ही
कामथ कये गा। हरयववष्ट्णु काभथ ने सॊववधान ननभाथत्री सबा भें कहा था – ―हभ अऩने याष्ट्रऩनत को एक
सॊवैधाननक अध्मऺ का रूऩ दे ना चाहते हैं , हभायी मह अऩेऺा है कक वह सॊसद की सराह तथा ननदे श के
अनस
ु ाय कामथ कये गा।‖

प्रश्न 6.
उऩयाष्ट्रऩनत की ननवाथचन ऩर्द्नत, कामथकार, बत्ते एवॊ मोग्मता का उल्रेख कीन्जए तथा याज्मसबा के
सबाऩनत के रूऩ भें उनकी बमू भका का ऩयीऺण कीन्जए।
मा
उऩयाष्ट्रऩनत का ननवाथचन कैसे होता है ? उसके अर्धकाय एवॊ कामों का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान के अनुच्छे द 63 द्वाया बायतॊ सॊघ के मरए एक उऩयाष्ट्रऩनत की व्मवस्था की गमी है ।
सॊववधान भें इस प्रावधान की आवश्मकता इस हे तु अनुबव की गमी , क्मोंकक अनेक अवसय ऐसे हो सकते हैं
जफ याष्ट्रऩनत दे श भें न हो अथवा अन्म ककसी कायणवश कामथबाय ग्रहण कयने भें सऺभ न हो। ऐसी
न्स्थनत भें शासन को ठीक से चराने के मरए उऩयाष्ट्रऩनत की व्मवस्था की गमी है ।
(1) मोग्मताएॉ – उऩयाष्ट्रऩनत के ऩद के मरए प्रत्माशी भें ननम्नमरखखत मोग्मताएॉ होनी चाटहए –
(क) वह बायत का नागरयक हो।
(ख) वह 35 वषथ की आमु ऩण
ू थ कय चक
ु ा हो।
(ग) वह याज्मसबा का सदस्म ननवाथर्चत होने हे तु ननधाथरयत मोग्मताएॉ यखता हो।
(घ) वह सॊघ सयकाय अथवा याज्म सयकाय के अधीन ककसी राब के ऩद ऩय कामथ न कय यहा हो।
(2) ननिाशचन – उऩयाष्ट्रऩनत का ननवाथचन सॊसद के दोनों सदनों की सॊमुक्त फैठक भें होता है । मह ननवाथचन
आनऩ
ु ानतक प्रनतननर्धत्व ऩर्द्नत से एकर सॊक्रभणीम गप्ु त भतदान प्रणारी द्वाया होता है । ऩद ग्रहण कयने
से ऩूवथ उऩयाष्ट्रऩनत को याष्ट्रऩनत के सभऺ ननष्ट्ठा एवॊ ऩद की गोऩनीमता से सम्फर्द् शऩथ ग्रहण कयनी
होती है ।
(3) कामशकार – उऩयाष्ट्रऩनत का कामथकार 5 वषथ का होता है । वह स्वेच्छा से अवर्ध से ऩूवथ बी अऩने ऩद से
त्माग-ऩत्र दे कय ऩदभुक्त हो सकता है । उऩयाष्ट्रऩनत अऩने ऩद ऩय तफ तक फना यहता है जफ तक कक
उसका उत्तयार्धकायी ऩद ग्रहण न कय रे। उऩयाष्ट्रऩनत अस्थामी रूऩ से ही याष्ट्रऩनत ऩद धायण कय सकता
है । उऩयाष्ट्रऩनत का ऩुन् चुनाव बी हो सकता है सॊवैधाननक व्मवस्था द्वाया उऩयाष्ट्रऩनत को 14 टदन का
नोटटस दे कय याज्मसबा अऩने कुर सदस्मों के फहुभत से उसे ऩदच्मत
ु कयने का प्रस्ताव ऩारयत कय सकती
है । मह प्रस्ताव रोकसबा द्वाया अनुभोटदत होना आवश्मक है ।
(4) िेतन तथा बत्ते – उऩयाष्ट्रऩनत का वेतन ₹ 4,00,000 है । इसके अरावा उन्हें केंद्रीम भॊब्रत्रमों को मभरने
वारी अन्म सुववधाएॉ प्राप्त होती हैं।
(5) कामश तथा अचधकाय – उऩयाष्ट्रऩनत के कामथ तथा अर्धकाय ननम्नमरखखत हैं –
1. वह याज्मसबा का ऩदे न सबाऩनत होने के कायण याज्मसबा की फैठकों का सबाऩनतत्व कयता है ।
2. वह सदन भें अनश
ु ासन व्मवस्था फनामे यखता है ।
3. वह सदन द्वाया स्वीकृत ववधेमकों ऩय हस्ताऺय कयता है ।
4. याष्ट्रऩनत का ऩद रयक्त होने की न्स्थनत भें वह याष्ट्रऩनत ऩद के सभस्त कामथ कयता है । इस सभम
वह याज्मसबा का सबाऩनत नहीॊ यहता है । उऩयाष्ट्रऩनत अर्धक-से-अर्धक 6 भाह तक याष्ट्रऩनत ऩद
ऩय कामथ कय सकता है । न्जस कार भें उऩयाष्ट्रऩनत, याष्ट्रऩनत ऩद ऩय कामथ कये गा, उसे वे सफ
उऩरन्ब्धमाॉ औय बत्ते प्राप्त होंगे , न्जनका अर्धकायी याष्ट्रऩनत होता है ।
प्रश्न 7.
बायतीम शासन भें प्रधानभॊत्री की न्स्थनत तथा भहत्त्व का वणथन , ववशेष रूऩ से वतथभान सभम की न्स्थनत
के सन्दबथ भें कीन्जए।
मा
याष्ट्रऩनत औय प्रधानभॊत्री के सम्फन्धों का वववेचन कीन्जए।
मा
सॊघीम भॊब्रत्रऩरयषद् के गठन का सॊक्षऺप्त वणथन कीन्जए तथा उसभें प्रधानभॊत्री की न्स्थनत का ऩयीऺण
कीन्जए।
मा
प्रधानभॊत्री की शन्क्तमों तथा न्स्थनत की वववेचना कीन्जए।
मा
बायतीम भॊब्रत्रभण्डर की शन्क्तमों एवॊ कामों का वववेचन कीन्जए।
मा
बायतीम शासन भें प्रधानभॊत्री की बूमभका का ऩयीऺण कीन्जए।
मा
बायत के प्रधानभॊत्री की ननमुन्क्त कैसे होती है ? उसकी शन्क्तमों का वणथन कीन्जए।
मा
बायत के प्रधानभॊत्री की शन्क्तमों औय कामों का ऩयीऺण कीन्जए।
उत्तय :
सॊघीम भॊत्रत्रऩरयषद्
सैर्द्ान्न्तक रूऩ से बायतीम सॊववधान द्वाया सभस्त कामथऩामरका शन्क्त याष्ट्रऩनत भें ननटहत भानी गमी है ।
याष्ट्रऩनत को सहामता तथा ऩयाभशथ दे ने के मरए एक भॊब्रत्रऩरयषद् की व्मवस्था की गमी है । भूर सॊववधान
के अनच्
ु छे द 74 भें उऩफन्न्धत है —―याष्ट्रऩनत को उसके कामों के सम्ऩादन भें सहामता एवॊ ऩयाभशथ दे ने के
मरए एक भॊब्रत्र-ऩरयषद् होगी, न्जसका प्रभुख प्रधानभॊत्री होगा।‖

सॊवैधाननक दृन्ष्ट्ट से याष्ट्रऩनत वैधाननक प्रधान है , ऩयन्तु वास्तववक कामथऩामरका भॊब्रत्रऩरयषद् होती है ।
भॊब्रत्रऩरयषद् सॊसदात्भक शासन-प्रणारी भें शासन का आधाय-स्तम्ब होती है । मह कामथऩामरका व
व्मवस्थावऩका को जोडने वारी एक कडी है । वास्तव भें भॊब्रत्रऩरयषद् के ही चायों ओय सभस्त याजनीनतक
तन्त्र घभ
ू ता है । मह शासन रूऩी जहाज को चराने वारा ऩटहमा है । भॊब्रत्रऩरयषद् फहुत प्रबावी तथा
भहत्त्वऩूणथ सॊस्था है ।

भॊत्रत्रऩरयषद् का गठन
भॊब्रत्रऩरयषद् की यचना भें कुछ सैर्द्ान्न्तक तथा व्मावहारयक ऩऺ ननटहत हैं। भॊब्रत्रऩरयषद् की यचना इस प्रकाय
होती है –

(1) प्रधानभॊत्री की ननमक्ु तत – बायतीम सॊववधान के अनुच्छे द 75 के अनुसाय प्रधानभॊत्री की ननमुन्क्त याष्ट्रऩनत
द्वाया होगी तथा अन्म भॊब्रत्रमों की ननमुन्क्त याष्ट्रऩनत द्वाया प्रधानभॊत्री के ऩयाभशथ से होगी। सैर्द्ान्न्तक
दृन्ष्ट्ट से याष्ट्रऩनत प्रधानभॊत्री की ननमुन्क्त कयता है , ककन्तु व्मवहाय भें इस सम्फन्ध भें याष्ट्रऩनत की शन्क्त
फहुत अर्धक सीमभत होती है । रोकसबा भें फहुभत प्राप्त दर के नेता को ही प्रधानभॊत्री ऩद ऩय ननमुक्त
ककमा जाता है । ककसी बी दर का स्ऩष्ट्ट फहुभत न होने मा फहुभत वारे दर भें ननन्श्चत नेता न यहने की
न्स्थनत भें याष्ट्रऩनत स्ववववेक से ककसी बी उस व्मन्क्त को प्रधानभॊत्री ननमुक्त कय सकता है , जो रोकसबा
भें अऩना फहुभत मसर्द् कय सके। व्मवहाय भें 1979, 1984, 1990 औय 1996 ई० भें ऐसी न्स्थनत आई, जफ
याष्ट्रऩनत ने प्रधानभॊत्री की ननमन्ु क्त भें अऩने वववेक का प्रमोग ककमा।
(2) प्रधानभॊत्री द्िाया भॊत्रत्रमों का चमन – भॊब्रत्रऩरयषद् के शेष भॊब्रत्रमों की ननमन्ु क्त प्रधानभॊत्री के ऩयाभशथ ऩय
याष्ट्रऩनत द्वाया की जाती है । प्रधानभॊत्री इस सन्दबथ भें ऩूणथ स्वतॊत्र होता है । वह अऩनी रुर्च के व्मन्क्तमों
को छाॉटकय उनकी सच
ू ी याष्ट्रऩनत के सम्भख
ु प्रस्तत
ु कयता है । भॊब्रत्रमों का चमन कयते सभम वह याष्ट्र के
ववमबन्न सभुदामों, वगों औय बौगोमरक ऺेत्रों को उर्चत प्रनतननर्धत्व दे ने की चेष्ट्टा कयता है । साधायणत:
याष्ट्रऩनत इस सूची का अनुभोदन ही कयता है । तथा उक्त व्मन्क्तमों को भॊत्री-ऩद ऩय ननमुक्त कय दे ता है ।
(3) भॊत्रत्रऩरयषद् की सदस्म-सॊख्मा – सॊववधान भें भॊब्रत्रऩरयषद् के सदस्मों की सॊख्मा ननन्श्चत नहीॊ की गमी है ।
आवश्मकता ऩडने ऩय भॊब्रत्रमों की सॊख्मा फढ़ामी मा घटामी जा सकती है । व्मवहाय भें बायतीम भॊब्रत्रऩरयषद्
भें 35 से रेकय 60 तक सदस्म यहे हैं औय भॊब्रत्रभण्डर मा कैब्रफनेट भें 12 से रेकय 25 तक सदस्म यहे हैं।
(4) भॊत्रत्रमों के ऩद हेतु आिश्मक मोग्मताएॉ – सॊववधान भें भॊब्रत्रमों की मोग्मताओॊ के सम्फन्ध भें कुछ बी
उन्ल्रखखत नहीॊ है । भॊब्रत्रऩरयषद् के प्रत्मेक भॊत्री को सॊसद के ककसी सदन का सदस्म होना आवश्मक होता
है । मटद कोई व्मन्क्त भॊत्री फनते सभम सॊसद-सदस्म नहीॊ है तो उसे 6 भाह के अन्दय ककसी बी सदन की
सदस्मता प्राप्त कयनी अननवामथ होती है , अन्मथी उसे ऩदच्मत
ु कय टदमा जाता है ।
(5) भॊत्रत्रमों के कामश-विबाजन – भॊब्रत्रऩरयषद् के गठन के ऩश्चात ् प्रधानभॊत्री द्वाया उनके ववबागों का ववबाजन
ककमा जाता है । वैधाननक दृन्ष्ट्ट से इस सम्फन्ध भें प्रधानभॊत्री को ऩूणथ शन्क्त प्राप्त है । एक भॊत्री के अधीन
प्राम् एक ववबाग होता है , ककन्तु कबी-कबी एक से अर्धक ववबाग बी यहते हैं।
(6) भॊत्रत्रमों द्िाया र्ऩथ-ग्रहण – ऩद-ग्रहण कयने के ऩूवथ प्रधानभॊत्री सटहत सबी भॊब्रत्रमों को याष्ट्रऩनत के सभऺ
ऩद औय गोऩनीमता की ऩथ
ृ क् -ऩथ
ृ क् शऩथ रेनी ऩडती है ।
(7) भॊत्रत्रऩरयषद् का कामशकार – भॊब्रत्रऩरयषद् का कामथकार ननन्श्चत नहीॊ होती। भॊब्रत्रऩरयषद् तफ तक अन्स्तत्व भें
फनी यहती है जफ तक उसे सॊसद का ववश्वास प्राप्त यहता है । भॊब्रत्रऩरयषद् रोकसबा के कामथकार तक , जो
साभान्मतमा 5 वषथ होता है , अऩने ऩद ऩय फनी यहती है । व्मन्क्तगत रूऩ से ककसी बी भॊत्री का कामथकार
उसके प्रनत प्रधानभॊत्री के ववश्वास ऩय ननबथय कयता है ।
(8) भॊत्रत्रमों के स्तय – भॊब्रत्रऩरयषद् भें तीन स्तय के भॊत्री होते हैं , भॊब्रत्रभण्डर अॊथवा कैब्रफनेट स्तय के भॊत्री,
याज्म भॊत्री तथा उऩभॊत्री। कैब्रफनेट भॊत्री का स्तय सफसे ऊॉचा होता है । इसके फाद याज्म भॊत्री आते हैं जो
ववशेष ववबागों से सम्फन्न्धत तथा अऩने ववबागों के अध्मऺ बी होते हैं। याज्म भॊब्रत्रमों के फाद उऩभॊत्री
आते हैं जो अऩने से ज्मेष्ट्ठ भॊत्री के अधीन यहते हुए उसकी सहामता कयते हैं।
उऩमुक्
थ त तीनों स्तयों के भॊब्रत्रमों को साभूटहक रूऩ भें भॊब्रत्रऩरयषद् के नाभ से ऩक
ु ाया जाता है , ककन्तु
भॊब्रत्रभण्डर भॊब्रत्रऩरयषद् के अन्तगथत एक छोटा सभूह है न्जसभें केवर प्रथभ स्तय के भॊत्री ही सन्म्भमरत
यहते हैं।

(9) साभदू हक उत्तयदानमत्ि – केंद्रीम भॊब्रत्रऩरयषद् साभूटहक रूऩ से रोकसबा के प्रनत उत्तयदामी होती है ।
भॊब्रत्रगण व्मन्क्तगत रूऩ से तो सॊसद के प्रनत उत्तयदामी होते ही हैं , ककन्तु साभूटहक रूऩ से प्रशासननक
नीनत औय सभस्त प्रशासननक कामों के मरए सॊसद के प्रनत उत्तयदामी होते हैं। सम्ऩण
ू थ भॊब्रत्रऩरयषद् एक
इकाई के रूऩ भें कामथ कयती है , इससे भॊब्रत्रऩरयषद् को एक सॊगटठत शन्क्त का रूऩ मभरा है , न्जसके आधाय
ऩय उसे याष्ट्रऩनत औय सॊसद के सम्भख
ु अर्धक सदृ
ु ढ़ न्स्थनत प्राप्त हो जाती है । एक भॊत्री के ववरुर्द्
अववश्वास का भत ऩारयत होने ऩय सम्ऩूणथ भॊब्रत्रऩरयषद् को त्माग-ऩत्र दे ना ऩडता है ।
प्रधानभॊत्री के कामश औय र्क्ततमाॉ
वतथभान सभम भें प्रधानभॊत्री की शन्क्तमाॉ इतनी फढ़ गमी हैं कक कुछ रोग बायत की शासन-व्मवस्था को
सॊसदीम शासन मा भॊब्रत्रभण्डरात्भक शासन ही नहीॊ , वयन ् प्रधानभॊत्री का शासन कहते हैं। प्रधानभॊत्री के
कामथ तथा शन्क्तमों का वववयण ननम्नमरखखत है –

(1) भॊत्रत्रऩरयषद् का ननभाशण कयना – प्रधानभॊत्री अऩना ऩद-ग्रहण कयने के तुयन्त फाद भॊब्रत्रऩरयषद् का ननभाथण
कयता है । इस सम्फन्ध भें प्रधानभॊत्री को ऩमाथप्त छूट यहती है । प्रधानभॊत्री ही भॊब्रत्रऩरयषद् भें भॊब्रत्रमों की
सॊख्मा ननधाथरयत कयता है । वह चाहे तो अऩने दर औय सॊसद के फाहय के व्मन्क्तमों को बी भॊब्रत्रऩरयषद् भें
सन्म्भमरत कय सकता है , ऩयन्तु ऐसे व्मन्क्तमों के मरए 6 भाह के अन्दय ही सॊसद के ककसी बी सदन का
सदस्म होना आवश्मक है ।
(2) भॊत्रत्रमों के विबागों का फॉििाया औय ऩरयितशन – भॊब्रत्रमों के फीच शासन-सम्फन्धी ववववध बागों का फॉटवाया
प्रधानभॊत्री द्वाया ही ककमा जाता है । उसके द्वाया ककमे गमे अन्न्तभ ववबाग-ववतयण ऩय साधायणतमा कोई
आऩन्त्त नहीॊ की जाती। प्रधानभॊत्री भॊब्रत्रमों के ववबागों भें जफ चाहे ऩरयवतथन कय सकता है एवॊ ककसी बी
भॊत्री को उसके आचयण तथा अनर्ु चत कामों के कायण त्माग-ऩत्र दे ने के मरए फाध्म बी कय सकता है ।
(3) रोकसबा का नेता – सॊसद भें फहुभत प्राप्त दर का नेता होने के कायण प्रधानभॊत्री सॊसद का , भुख्मतमा
रोकसबा का, नेता होता है । ववर्ध-ननभाथण के सभस्त कामों भें प्रधानभॊत्री ही नेतत्ृ व प्रदान कयता है । वावषथक
फजट सटहत सबी सयकायी ववधेमक उसके ननदे शानुसाय ही तैमाय ककमे जाते हैं। दरीम सचेतक द्वाया वह
अऩने दर के सदस्मों को आवश्मक आदे श ननदे श दे ता है । तथा सदन भें व्मवस्था फनामे यखने भें वह
रोकसबा अध्मऺ की सहामता कयता है ।
(4) र्ासन के विसबन्न विबागों भें साभॊजस्म स्थावऩत कयना – प्रधानभॊत्री शासन के ववमबन्न ववबागों भें साभॊजस्म
स्थावऩत कयता है , न्जससे सभस्त शासन एक इकाई के रूऩ भें कामथ कयता है । इस उद्देश्म से उसके द्वाया
ववमबन्न ववबागों को ननदे श टदमे जा सकते हैं औय भॊब्रत्रमों के ववबागों तथा कामों भें हस्तऺेऩ बी ककमा जा
सकता है ।
(5) भॊत्रत्रऩरयषद् का कामश-सॊचारन – प्रधानभॊत्री भॊब्रत्रऩरयषद् की फैठकों का सबाऩनतत्व औय भॊब्रत्रभण्डर की सभस्त
कामथवाही का सॊचारन कयता है । भॊब्रत्रऩरयषद् की फैठक भें उन्हीॊ ववषमों ऩय ववचाय ककमा जाता है न्जन्हें
प्रधानभॊत्री एजेण्डा भें यखे। मद्मवऩ भॊब्रत्रऩरयषद् भें ववमबन्न ववषमों ‖ का ननणथम आऩसी सहभनत के आधाय
ऩय ककमा जाता है , ककन्तु प्रधानभॊत्री का ननणथम ही ननणाथमक होता है ।
(6) ननमक्ु तत सम्फन्धी कामश – सॊववधान द्वाया याष्ट्रऩनत को उच्च अर्धकारयमों की ननमुन्क्त का अर्धकाय प्राप्त
है , ककन्तु व्मवहाय भें उनकी ननमुन्क्त याष्ट्रऩनत प्रधानभॊत्री के ऩयाभशथ से ही कयता
(7) उऩाचधमाॉ प्रदान कयना – बायतीम सॊववधान द्वाया याष्ट्रीम सेवा के उऩरक्ष्म भें बायतयत्न, ऩद्मववबूषण, ऩद्मश्री
आटद उऩार्धमाॉ औय सम्भान की व्मवस्था की गमी है , ककन्तु व्मवहाय भें मे उऩार्धमाॉ प्रधानभॊत्री के ऩयाभशथ
ऩय ही प्रदान की जाती हैं।
(8) अन्तयाशष्ट्रीम ऺेत्र भें बायत का प्रनतननचधत्ि – बायतीम प्रधानभॊत्री का स्थान अन्तयाथष्ट्रीम ऺेत्र भें अत्मन्त
भहत्त्वऩण
ू थ है । चाहे ववदे श ववबाग प्रधानभॊत्री के हाथ भें हो मा न हो , कपय बी अन्न्तभ रूऩ से ववदे श नीनत
का ननणथम प्रधानभॊत्री ही कयता है ।
ु प्रितता – प्रधानभॊत्री दे श तथा ववदे श भें शासन की नीनत का प्रभख
(9) र्ासन का प्रभख ु तथा अर्धकृत प्रवक्ता
होता है । मटद कबी सॊसद भें ककन्हीॊ दो भॊब्रत्रमों के आऩसी ववयोधी वक्तव्मों के कायण भ्रभ औय वववाद की
न्स्थनत उत्ऩन्न हो जाए तो प्रधानभॊत्री का वक्तव्म ही इस न्स्थनत को स्ऩष्ट्ट कय सकता है ।
(10) दे र् का सिोच्च नेता तथा र्ासक – प्रधानभॊत्री दे श का सवोच्च नेता तथा शासक होता है । दे श का सभस्त
शासन उसी की इच्छानुसाय सॊचामरत होता है । वह व्मवस्थावऩका से अऩनी इच्छानुसाय कानून फनवी
सकता है औय सॊववधान भें आवश्मक सॊशोधन बी कयवा सकता है ।
(11) आभ चुनाि प्रधानभॊत्री के नाभ ऩय – दे श के साभान्म ननवाथचन प्रधानभॊत्री के नाभ ऩय ही कयामे जाते हैं।
इस प्रकाय साभान्म ननवाथचन स्वाबाववक रूऩ से प्रधानभॊत्री की प्रनतष्ट्ठा व शन्क्त भें फहुत ववृ र्द् कय दे ते हैं।
प्रधानभॊत्री का भहत्त्ि
दे श के शासन भें प्रधान के भहत्त्व को स्ऩष्ट्ट कयते हुए ये म्जे म्मोय ने मरखा है - ―प्रधानभॊत्री याज्म (शासन)
रूऩी जहाज का चारक चक्र है । ‖ प्रधानभॊत्री वास्तववक कामथऩामरका का अध्मऺ होता है जो कक उसी के
नेतत्ृ व भें शासन का सॊचारन कयती है । रॉडथ भारे के अनुसाय , ―प्रधानभॊत्री भॊब्रत्रभण्डर के वत्ृ तखण्ड का
भुख्म प्रस्तय है । इस प्रकाय दे श के शासन की फागडोय प्रधानभॊत्री के हाथ भें यहती है । उसकी शन्क्तमों की
तुरना अभेरयका के याष्ट्रऩनत की शन्क्तमों से की जा सकती है । उऩमुक्
थ त वववेचन से स्ऩष्ट्ट हो जाता है कक
बायतीम शासन-व्मवस्था भें प्रधानभॊत्री की बूमभका सवाथर्धक भहत्त्वऩूणथ होती है । शासन ऩय उसका प्रबाव
अर्धकाॊशत् उसके व्मन्क्तत्व ऩय ननबथय कयता है ।

प्रधानभॊत्री का याष्ट्रऩनत के साथ सम्फन्ध


बायतीम शासन-व्मवस्था भें प्रधानभॊत्री की न्स्थनत वही है जो ग्रेट ब्रिटे न के प्रधानभॊत्री की है । ब्रिटटश
प्रधानभॊत्री की बाॉनत बायतीम प्रधानभॊत्री का कामथ बी याज्माध्मऺ (याष्ट्रऩनत) को उसके कामों भें ‗सहमोग‘
औय ‗ऩयाभशथ दे ना है , ऩयन्तु वास्तववकता मह है कक सबी ननणथम स्वमॊ प्रधानभॊत्री द्वाया ही मरमे जाते हैं।
प्रधानभॊत्री भॊब्रत्रभण्डर का ननभाथता, सॊचारनकताथ एवॊ सॊहायकताथ है । इसीमरए बायतीम प्रधानभॊत्री को
भॊब्रत्रऩरयषद् रूऩी भेहयाफ का प्रभुख खण्ड कहा जाता है । भॊब्रत्रऩरयषद् तथा याष्ट्रऩनत के आऩसी सम्फन्धों को
दो दृन्ष्ट्टकोण से स्ऩष्ट्ट ककमा जा सकता है -सैर्द्ान्न्तक तथा व्मावहारयक।। सैर्द्ान्न्तक दृन्ष्ट्टकोण से स्ऩष्ट्ट
होता है कक भॊब्रत्रऩरयषद् याष्ट्रऩनत को सहामता औय ऩयाभशथ दे ने वारी एक समभनत है , न्जसके ऩयाभशथ को
भानना याष्ट्रऩनत की इच्छा ऩय ननबथय कयता है ।

व्मावहारयक दृन्ष्ट्ट से न्स्थनत मह है कक उसे भॊब्रत्रऩरयषद् का ऩयाभशथ भानना ही ऩडता है । व्मवहाय भें
कामथऩामरका शन्क्त का प्रमोग उन्हीॊ व्मन्क्तमों के द्वाया ककमा जा सकता है , जो व्मवस्थावऩका के प्रनत
उत्तयदामी हों। व्मवस्थावऩका के प्रनत भॊब्रत्रऩरयषद् उत्तयदामी होती है , याष्ट्रऩनत नहीॊ। व्मवहाय भें याष्ट्रऩनत
ऩयाभशथ दे ने का कामथ कयता है औय ननणथम भॊब्रत्रऩरयषद् के द्वाया मरमे जाते हैं। 44वें सॊवैधाननक सॊशोधन
(1978) द्वाया मह स्ऩष्ट्ट कय टदमा गमा है - ―याष्ट्रऩनत भॊब्रत्रऩरयषद् का ऩयाभशथ भानने के मरए फाध्म होगा।‖

प्रश्न 8.
केंद्रीम भॊब्रत्रऩरयषद् के कामों एवॊ शन्क्तमों की वववेचना कीन्जए।
मा
सॊक्षऺप्त टटप्ऩणी मरखखए-सॊघ की भॊब्रत्रऩरयषद्।
उत्तय :
सॊघीम (केंद्रीम भॊत्रत्रऩरयषद् के कामश एिॊ र्क्ततमाॉ
सॊववधान के अनुच्छे द 74 भें मह प्रावधान ककमा गमा है –‗याष्ट्रऩनत को उसके कामों के सम्ऩादन भें सहामता
एवॊ ऩयाभशथ दे ने के मरए एक भॊब्रत्रऩरयषद् होगी, न्जसका अध्मऺ प्रधानभॊत्री होगा।‖ भॊब्रत्रमों द्वाया याष्ट्रऩनत
को जो ऩयाभशथ एवॊ सहामता दी जाएगी, उसे ककसी न्मामारम के साभने वववाटदत भाभरे के रूऩ भें प्रस्तुत
न ककमा जा सकेगा। वस्तुत् भॊब्रत्रभण्डर वास्तववक कामथऩामरका होती है औय वह याष्ट्रऩनत के नाभ ऩय
दे श का शासन चराती है । याष्ट्रऩनत की न्स्थनत यफड की भुहय (Rubber Stamp) की बाॉनत होती है औय
कामथऩामरका अथाथत ् भॊब्रत्रऩरयषद् व्मावहारयक रूऩ से उसकी शन्क्तमों एवॊ अर्धकायों का उऩबोग कय दे श का
शासनतन्त्र चराती है ।

भॊत्रत्रऩरयषद् के ननम्नसरर्खत कामश हैं –


1. विचध-ननभाशण सम्फन्धी कामश – प्रत्मेक सयकायी ववधेमक सॊसद भें ककसी-न-ककसी भॊत्री द्वाया ही प्रस्तुत ककमा
जाता है । मे ववधेमक सॊसद द्वाया ऩारयत होने ऩय ही कानून का रूऩ धायण कयते हैं। क्मोंकक सॊसद भें
भॊब्रत्रऩरयषद् का फहुभत होता है , इसमरए कोई बी ववधेमक उस सभम तक ऩारयत नहीॊ होता है , जफ तक उसे
भॊब्रत्रऩरयषद् का सभथथन नहीॊ मभर जाता है । इस प्रकाय ववर्ध-ननभाथण का सभस्त कामथक्रभ भॊब्रत्रऩरयषद् ही
ननन्श्चत कयती है ।
2. ननमक्ु तत सम्फन्धी कामश – याष्ट्रऩनत उच्चतभ व उच्च न्मामारमों के न्मामाधीशों, याज्मों के याज्मऩारों, तीनों
सेनाओॊ के सेनाऩन्त्तमों एवॊ भहान्मामवादी एटनी जनयर), ननमन्त्रक एवॊ भहारेखा ऩयीऺक आटद की दे श के
उच्च ऩदों ऩय ननमुन्क्तमाॉ, भॊब्रत्रऩरयषद् के ऩयाभशथ के अनुसाय ही कयता है । इस प्रकाय अप्रत्मऺ रूऩ से
ननमुन्क्तमाॉ भॊब्रत्रऩरयषद् द्वाया ही होती है ।
3. सॊसद की व्मिस्था – सॊसद भें प्रस्तुत ककए जाने वारे सभस्त ववषमों का ननणथम भॊब्रत्रऩरयषद् ही कयती है ।
भॊब्रत्रऩरयषद् मह बी ननणथम कयती है कक उस ववषम को ककतना सभम टदमा जाना चाटहए।
4. वित्त सम्फन्धी कामश – दे श की आर्थथक नीनत ननधाथरयत कयने का उत्तयदानमत्व बी भॊब्रत्रऩरयषद् का ही होता
है । अत: वावषथक फजट तैमाय कयना, नए कय रगाना, कयों की दय ननन्श्चत कयना एवॊ अनावश्मक कयो को
सभाप्त कयना आटद कामथ भॊब्रत्रऩरयषद् ही कयती है ।
5. नीनत-ननधाशयण का कामश – सयकाय की गह
ृ एवॊ ववदे श नीनत का ननधाथयण भॊब्रत्रऩरयषद् द्वाया ही होता है ।
भॊब्रत्रऩरयषद् का प्रत्मेक भॊत्री अऩने ववबाग से सम्फन्न्धत प्रशासन सम्फन्धी ननमभों का ननधाथयण स्वमॊ
कयता है ; ककन्तु नीनत से सम्फन्न्धत सबी प्रश्न उसे भॊब्रत्रभण्डर के सभऺ प्रस्तुत कयने ऩडते हैं। इस
सन्दबथ भें भॊब्रत्रभण्डर का ननणथम अन्न्तभ भाना जाता है ।
6. याष्ट्रीम कामशऩासरका ऩय सिोच्च ननमन्त्रण – सैर्द्ान्न्तक दृन्ष्ट्ट से सॊघ सयकाय की सभस्त कामथऩामरका-शन्क्त
याष्ट्रऩनत भें ननटहत है , ऩयन्तु व्मवहाय भें इसका प्रमोग भॊब्रत्रभण्डर द्वाया ही ककमा जाता है । भॊब्रत्रभण्डर ही
आन्तरयक प्रशासन का सॊचारन कयता है औय दे श की सभस्त प्रशासननक व्मवस्था ऩय ननमन्त्रण यखता है ।
7. याज्मों से सम्फक्न्धत अचधकाय – भॊब्रत्रऩरयषद् को याज्मों से सम्फन्न्धत अर्धकाय प्राप्त होते हैं। वह याज्मों का
ननभाथण, वतथभान याज्मों की सीभा भें ऩरयवतथन एवॊ बाषा के आधाय ऩय प्रान्तों का ननभाथण कय सकती है ।
प्रश्न 9.
सॊघीम रोक सेवा आमोग के गठन औय कामों ऩय प्रकाश डामरए।
मा
सॊघ रोक सेवा आमोग के कामों ऩय प्रकाश डामरए।
मा
बायत भें सावथजननक सेवाओॊ की कामथप्रणारी का उल्रेख कीन्जए।
मा
सॊघ रोक सेवा आमोग के गठन औय कामों को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय :
सॊववधान के अनुच्छे द 315 (1) के अनुसाय, बायत भें अखखर बायतीम प्रशासननक सेवाओॊ के ऩदार्धकारयमों
की ननमन्ु क्त को व्मवन्स्थत कयने तथा तववषमक ननमन्ु क्तमों के ननमभत्त प्रनतमोर्गतात्भक ऩयीऺाओॊ को
सॊचामरत कयने हे तु सॊघ रोक सेवा आमोग की व्मवस्था की गमी है । सदस्मों की सॊख्मा एवॊ ननमुन्क्त-सॊघ
रोक सेवा आमोग, अखखर बायतीम सेवाओॊ तथा सॊघ रोक सेवाओॊ के सदस्मों की बती , ऩदोन्ननत एवॊ
अनुशासन की कामथवाही इत्माटद के सम्फन्ध भें सयकाय को ऩयाभशथ दे ता है । बायतीम सॊववधान के अनुच्छे द
315 (1) से धाया 323 तक, सॊघ रोक सेवा आमोग के सॊगठन तथा कामों इत्माटद का ववस्तत
ृ वणथन ककमा
गमा है । वतथभान भें सॊघीम रोक सेवा आमोग भें 1 अध्मऺ तथा 10 सदस्मों की व्मवस्था की गमी है ।
सदस्मों की सॊख्मा याष्ट्रऩनत की इच्छा ऩय ननबथय कयती है तथा अध्मऺ व सदस्मों की ननमुन्क्त याष्ट्रऩनत
ही कयता है ।
मोग्मताएॉ – ककसी बी मोग्म नागरयक को सॊघ रोक सेवा आमोग का सदस्म ननमुक्त ककमा जा सकता है ।
आमोग का सदस्म ननमुक्त होने के मरए साभान्म मोग्मताओॊ के अनतरयक्त ननम्नमरखखत मोग्मताएॉ होनी
आवश्मक हैं –
1. वह 65 वषथ से कभ आमु का हो।
2. टदवामरमा, ऩागर अथवा वववेकहीन न हो।
3. सॊघ रोक सेवा आमोग के सदस्मों भें से कभ-से-कभ आधे सदस्म ऐसे व्मन्क्त होने चाटहए जो कभ-
से-कभ दस वषथ तक बायत सयकाय अथवा याज्म सयकाय के अधीन ककसी ऩद ऩय कामथ कय चक
ु े हों।
सदस्मों की कामाथवर्ध – सॊघ रोक सेवा आमोग के सदस्मों की ननमुन्क्त 6 वषथ के मरए होती है । रेककन
मटद कोई सदस्म इससे ऩव
ू थ ही 65 वषथ की हो जाता है तो उसे अऩना ऩद त्मागना ऩडता है । इसके
अनतरयक्त, उच्चतभ न्मामारम के ऩयाभशथ ऩय याष्ट्रऩनत इन्हें ऩदच्मुत बी कय सकता है ।

ऩद-भुन्क्त – सॊघ रोक सेवा आमोग के सदस्मगण अऩनी इच्छानुसाय याष्ट्रऩनत को त्माग-ऩत्र दे कय अऩने
ऩद से भक्
ु त बी हो सकते हैं। इसके साथ ही बायत का याष्ट्रऩनत ननम्नमरखखत ऩरयन्स्थनतमों भें उन्हें
अऩदस्थ बी कय सकता है –

1. उन ऩय दव्ु मथवहाय का आयोऩ रगामा जाए औय वह उच्चतभ न्मामारम भें सत्म मसर्द् हो जाए।
2. मटद वे वेतन प्राप्त कयने वारी अॊन्म कोई सेवा कयने रगे।
3. मटद वे न्मामारम द्वाया टदवामरमा घोवषत कय टदमे जाएॉ।
4. मटद वे शायीरयक अथवा भानमसक रूऩ से कतथव्म-ऩारन के अमोग्म मसर्द् हो जाएॉ।
वेतन, बत्ते एवॊ सेवा-शते-आमोग के सदस्मों के वेतन, बत्ते एवॊ सेवा-शतों को ननधाथरयत कयने का अर्धकाय
याष्ट्रऩनत को प्रदान ककमा गमा है । ककसी सदस्म के वेतन, बत्ते एवॊ सेवा-शतो को उसकी ऩदावर्ध भें
ऩरयवनतथत नहीॊ ककमा जा सकता।

सॊघ रोक सेिा आमोग के कामश


डॉ० भुतामरफ ने आमोग के कामों को तीन श्रेखणमों भें ववबक्त ककमा है –

(1) कामथकायी
(2) ननमाभक तथा
(3) अर्द्थन्मानमक। ऩयीऺाओॊ के भाध्मभ से रोक भहत्त्व के ऩदों ऩय प्रत्मामशमों का चमन कयना आमोग का
कामथकायी कतथव्म है । बती की ऩर्द्नतमों तथा ननमन्ु क्त, ऩदोन्ननत एवॊ ववमबन्न सेवाओॊ भें स्थानान्तयण
आटद आमोग के ननमाभक प्रकृनत के कामथ हैं। रोक सेवाओॊ से सम्फन्न्धत अनुशासन के भाभरों ऩय सराह
दे ना आमोग का न्मानमक कामथ है । बायतीम सॊववधान के अनच्
ु छे द 320 के अनस
ु ाय रोक सेवा आमोग को
ननम्नाॊककत कामथ सौंऩे गमे हैं
1. ऩयीऺाओॊ का आमोजन – सॊघ रोक सेवा आमोग का प्रभख
ु कामथ अखखर बायतीम रोक सेवाओॊ के मरए
मोग्मतभ व्मन्क्तमों का चमन कयना है । इस उद्देश्म की ऩूनतथ हे तु मह अनेक प्रनतमोगी ऩयीऺाएॉ आमोन्जत
कयता है । इन ऩयीऺाओॊ भें जो अभ्मथी अऩनी मोग्मता से ऩमाथप्त अॊक ऩाता है , उसका चमन कय मरमा
जाता है । इसके फाद इन व्मन्क्तमों को सयकायी ऩदों ऩय ननमन्ु क्त कयने के मरए मह आमोग सयकाय से
मसपारयश कयता है । कुछ ऩदों के मरए आमोग द्वाया भौखखक ऩयीऺाओॊ की व्मवस्था बी की गमी है ।
भौखखक ऩयीऺाओॊ भें सपर होने ऩय सपर अभ्मर्थथमों को ननधाथरयत ऩदों ऩय ननमुक्त कय टदमा जाता है ।
2. याष्ट्रऩनत को प्रनतिेदन – सॊघीम रोक सेवा आमोग को अऩने कामों से सम्फन्न्धत एक वावषथक रयऩोटथ
(प्रनतवेदन) याष्ट्रऩनत के सभऺ प्रस्तुत कयनी ऩडती है । मटद सयकाय इस आमोग द्वाया प्रस्तुत की गमी
रयऩोटथ की कोई मसपारयश नहीॊ भानती है तो याष्ट्रऩनत इसका कायण रयऩोटथ भें मरख दे ता है औय इसके
उऩयान्त सॊसद इस ऩय ववचाय कयती है । इस रयऩोटथ का राब मह है कक इससे मह स्ऩष्ट्ट हो जाता है कक
ककन ववबागों भें इस आमोग ने स्वेच्छा से ककतनी ननमन्ु क्तमाॉ की हैं औय सयकाय ने कहाॉ तक आमोग के
कामों भें हस्तऺेऩ ककमा है ।
3. सॊघ सयकाय को ऩयाभर्श – सॊघ रोक सेवा आमोग अखखर बायतीम रोक सेवाओॊ के कभथचारयमों की ननमन्ु क्त
की ववर्ध, ऩदोन्ननत, स्थानान्तयण आटद के ववषम भें सॊघ सयकाय को ऩयाभशथ दे ता है । मह सयकायी
कभथचारयमों की ककसी प्रकाय की शायीरयक मा भानमसक ऺनत हो जाने ऩय सॊघ सयकाय को उनकी ऺनतऩनू तथ
का ऩयाभशथ बी दे ता है औय उससे मसपारयश बी कयता है । मद्मवऩ सयकाय आमोग के ऩयाभशथ को भानने
के मरए फाध्म नहीॊ है , ककन्तु साभान्मत् आमोग की मसपारयशों तथा उसके ऩयाभशथ को स्वीकाय कय ही
मरमा जाता है , क्मोंकक आमोग के सदस्म फहुत कुशर औय अनुबवी होते हैं।
4. विर्ेष सेिाओॊ की मोजना सम्फन्धी सहामता – उस दशा भें जफ दो मा दो से अर्धक याज्म ककन्हीॊ ववशेष
मोग्मता वारी सेवाओॊ के मरए बती की मोजना फनाने मा चराने की प्राथथना कयें तो सॊघ रोक सेवा आमोग
उन्हें ऐसा कयने भें सहामता कयता है ।

प्रश्न 1.
सॊववधान के द्वाया नागरयकों को प्रदत्त भौमरक अर्धकायों की सॊख्मा है –
(क) सात
(ख) दस
(ग) छ्
(घ) ऩाॉच
उत्तय :
(ग) छ्
प्रश्न 2.
सॊववधान के द्वाया ककसको वयीमता प्रदान की गमी है ?
(क) भौमरक अर्धकायों को
(ख) नीनत-ननदे शक तत्त्वों को
(ग) भौमरक कतथव्मों को
(घ) भौमरक अर्धकायों तथा कतथव्मों को।
उत्तय :
(क) भौसरक अचधकायों को।
प्रश्न 3.
सम्ऩन्त्त के भौमरक अर्धकाय को ककस सॊवैधाननक सॊशोधन के द्वाया सभाप्त ककमा गमा है ?
(क) 24वें
(ख) 42वें
(ग) 44वें
(घ) 73वें
उत्तय :
(ग) 44िें।
प्रश्न 4.
सम्ऩन्त्त का अर्धकाय अफ यह गमा है –
(क) सॊवैधाननक अर्धकाय
(ख) भौमरक अर्धकाय
(ग) कानूनी अर्धकाय
(घ) प्राकृनतक अर्धकाय
उत्तय :
(ग) कानन ू ी अचधकाय।
प्रश्न 5.
भौमरक अर्धकायों को स्थर्गत कयने का अर्धकाय है –
(क) याष्ट्रऩनत को
(ख) प्रधानभन्त्री को
(ग) भन्न्त्रभण्डर को।
(घ) रोकसबा के अध्मऺ को
उत्तय :
(क) याष्ट्रऩनत को।
प्रश्न 6.
आऩातकार भें अफ भौमरक अर्धकाय के ककस अनुच्छे द को स्थर्गत नहीॊ ककमा जा सकता है ?
(क) अनुच्छे द 14 को
(ख) अनुच्छे द 19 को
(ग) अनुच्छे द 32 को
(घ) अनुच्छे द 21 को
उत्तय :
(घ) अनच्ु छे द 21 को।
प्रश्न 7.
छुआछूत का अन्त सॊववधान के ककस अनच्
ु छे द के द्वाया ककमा गमा ?
(क) अनुच्छे द 14
(ख) अनच्
ु छे द 19
(ग) अनुच्छे द 21
(घ) अनुच्छे द 17
उत्तय :
(घ) अनच्ु छे द 17.
प्रश्न 8.
बायत के सॊववधान भें वखणथत भौमरक कतथव्मों को ककस सॊवैधाननक सॊशोधन के द्वाया सॊववधान के बाग 3
भें जोडा गमा ?
(क) 44वें
(ख) 42वें
(ग) 52वें
(घ) 74वें
उत्तय :
(ख) 42िें।
प्रश्न 9.
भौमरक कतथव्मों भें ककतने कतथव्मों को सन्म्भमरत ककमा गमा है ?
(क) आठ
(ख) ग्मायह
(ग) ऩाॉच
(घ) फायह
उत्तय :
(ख) ग्मायह।
प्रश्न 10.
बायतीम सॊववधान भें नीनत-ननदे शक तत्त्वों को ककस दे श के सॊववधान से मरमा गमा है ?
(क) कनाडा
(ख) आमयरैण्ड
(ग) सॊमक्
ु त याज्म अभेरयका
(घ) ब्रिटे न
उत्तय :
(ख) आमयरैण्ड।
प्रश्न 11.
बायतीम सॊववधान के ककन अनुच्छे दों भें नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों का वणथन ककमा गमा है ?
(क) 36 से 51 तक
(ख) 52 से 63 तक
(ग) 60 से 71 तक
(घ) 33 से 35 तक
उत्तय :
(क) 36 से 51 तक।
प्रश्न 12.
भोतीरार नेहरू समभनत ने सवथप्रथभ ककस वषथ ‗अर्धकायों के एक घोषणा-ऩत्र की भाॉग उठाई थी?
(क) 1928
(ख) 1936
(ग) 1931
(घ) 1937
उत्तय :
(क) 1928
प्रश्न 13.
भौमरक अर्धकायों की गायण्टी औय उनकी सुयऺा कौन कयता है ?
(क) याज्मऩार
(ख) याष्ट्रऩनत
(ग) सॊववधान
(घ) ऩुमरस
उत्तय :
(ग) सॊविधान।
प्रश्न 14.
भूर अर्धकायों का वणथन सॊववधान के ककस बाग भें है ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चाय
(घ) ऩाॉच
उत्तय :
(ख) तीन।
प्रश्न 15.
ककस वषथ बायतीम सॊववधान भें भर
ू कतथव्मों का सभावेश ककमा गमा?
(क) 1972 ई० भें
(ख) 1976 ई० भें
(ग) 1977 ई० भें
(घ) 1980 ई० भें
उत्तय :
(ख) 1976 ई० भें।
प्रश्न 16.
―नीनत-ननदे शक तत्त्व ऐसे चैक के सभान हैं , न्जसका बुगतान फैंक की ऩववत्र इच्छा ऩय ननबथय है । ‖ मह
कथन ककसका है ?
(क) के० टी० शाह
(ख) श्रीननवासन
(ग) ग्रेनववर ऑन्स्टन
(घ) जी० एन० मसॊह।
उत्तय :
(क) के० िी० र्ाह।
प्रश्न 17.
ननम्नाॊककत भें से कौन-सा नागरयकों का भर
ू अर्धकाय नहीॊ है ?
(क) स्वतन्त्रता का अर्धकाय
(ख) दान दे ने का अर्धकाय
(ग) सभानता का अर्धकाय
(घ) शोषण के ववरुर्द् अर्धकाय
उत्तय :
(ख) दान दे ने का अचधकाय।
प्रश्न 18.
ननम्नाॊककत भें कौन-सा भूर अर्धकाय सफसे भहत्त्वऩूणथ है ?
(क) सभानता का अर्धकाय
(ख) सॊवैधाननक उऩचायों का अर्धकाय
(ग) स्वतन्त्रता का अर्धकाय
(घ) शोषण के ववरुर्द् अर्धकाय
उत्तय :
(ख) सॊिध ै ाननक उऩचायों का अचधकाय।
प्रश्न 19.
―याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्व याष्ट्रीम चेतना के आधायबूत स्तय का ननभाथण कयते हैं। ‖ मह कथन ककसका
है ?
(क) दग
ु ाथदास फसु
(ख) एभ० सी० छागरा
(ग) एभ० वी० ऩामरी
(घ) ऩतॊजमर शास्त्री
उत्तय :
(ग) एभ० िी० ऩामरी।
प्रश्न 20.
―नीनत-ननदे शक तत्त्व नववषथ के फधाई सन्दे शों के अनतरयक्त कुछ नहीॊ हैं। ‖ मह कथन ककसका है ?
(क) नामसरुद्दीन
(ख) डॉ० याजेन्द्र प्रसाद
(ग) ऩॊ० नेहरू
(घ) के० टी० शाह
उत्तय :
(क) नाससरुद्दीन।
प्रश्न 21.
―भूर अर्धकायों के स्थगन की व्मवस्था अत्मन्त आवश्मक है । मही व्मवस्था सॊववधान का जीवन होगी।
इससे प्रजातन्त्र की हत्मा नहीॊ , वयन यऺा होगी।‖ मह कथन ककसका
(क) अल्राटद कृष्ट्णास्वाभी अय्मय
(ख) डॉ० अम्फेडकय
(ग) के० एभ० भुॊशी
(घ) आमॊगय
उत्तय :
(क) अल्रादद कृष्ट्णास्िाभी अय्मय।
प्रश्न 22.
―याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्व न्मामारम के मरए प्रकाश-स्तम्ब की बाॉनत हैं। ‖ मह कथन ककसका है ?
(क) ऩतॊजमर शास्त्री
(ख) एभ० सी० सीतरवाड
(ग) एभ० वी० ऩामरी
(घ) ऩॊ० नेहरू
उत्तय :
(ख) एभ० सी० सीतरिाड।
प्रश्न 23.
दक्षऺण अिीका का सॊववधान ककस वषथ रागू हुआ?
(क) सन ् 1996
(ख) सन ् 1997
(ग) सन ् 1999
(घ) सन ् 1967
उत्तय :
(क) सन ् 1996.
प्रश्न 24.
ननवायक नजयफन्दी की अर्धकतभ अवर्ध क्मा है ?
(क) 3 भहीने
(ख) 6 भहीने
(ग) 4 भहीने
(घ) 2 भहीने
उत्तय :
(क) 3 भहीने।
प्रश्न 25.
बायत के याष्ट्रीम भानवार्धकाय आमोग का गठन कफ ककमा गमा ?
(क) सन ् 1947
(ख) सन ् 2000
(ग) सन ् 2001
(घ) सन ् 2002
उत्तय :
(ख) सन ् 2000.
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
भौमरक अर्धकाय क्मा हैं ?
उत्तय :
भौमरक अर्धकाय वे सवु वधाएॉ , भाॉगें, अऩेऺाएॉ व दावे हैं न्जन्हें याज्म ने अऩने नागरयकों के ववकास के मरए
अत्मन्त आवश्मक भानकय अऩने सॊववधान भें स्थान टदमा है ।
प्रश्न 2.
भौमरक अर्धकाय आवश्मक क्मों हैं ?
उत्तय :
नागरयकों के ऩूणथ ववकास के मरए भौमरक अर्धकाय आवश्मक हैं।
प्रश्न 3.
भौमरक अर्धकायों की यऺा ककस अर्धकाय से होती है ?
उत्तय :
भौमरक अर्धकायों की यऺा सॊवैधाननक उऩचाय के अर्धकाय द्वाया होती है ।
प्रश्न 4.
बायतीम सॊववधान भें कौन-सी भर
ू अर्धकाय ननयस्त कय टदमा गमा है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें सम्ऩन्त्त का भर
ू अर्धकाय ननयस्त कय टदमा गमा है ।
प्रश्न 5.
सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकाय के अन्तगथत जायी ककमे जाने वारे दो रेखों के नाभ मरखखए।
उत्तय :
1. ऩयभादे श तथा
2. प्रनतषेध, सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकाय के अन्तगथत जायी ककमे जाने वारे रेख हैं।
प्रश्न 6.
कानूनी अर्धकाय क्मा हैं ?
उत्तय :
कानूनी अर्धकाय नागरयकों की वे सुववधाएॉ हैं न्जन्हें याज्म स्वीकृत कयता है औय न्जन्हें कानून द्वाया
ननन्श्चत ककमा जाता है ।
प्रश्न 7.
स्वतन्त्रता के अर्धकाय के अन्तगथत आने वारी दो स्वतन्त्रताओॊ का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
1. बाषण व अमबव्मन्क्त की स्वतन्त्रता तथा
2. सॊघ-ननभाथण की स्वतन्त्रता।
प्रश्न 8.
सॊववधान के ककस बाग भें भौमरक अर्धकायों का उल्रेख ककमा गमा है ?
उत्तय :
सॊववधान के बाग III भें भौमरक अर्धकायों का उल्रेख ककमा गमा है ।
प्रश्न 9.
‗बायत एक धभथननयऩेऺ याष्ट्र है । ‘ दो तकथ दीन्जए।
उत्तय :
1. सबी नागरयकों को धामभथक स्वतन्त्रता का अर्धकाय है ।
2. सयकाय द्वाया ककसी ववमशष्ट्ट धभथ को आश्रम नहीॊ टदमा जाता, वह धभथननयऩेऺ है ।
प्रश्न 10.
बायतीम सॊववधान के ककस अनच्
ु छे द भें भर
ू कत्तथव्म टदए गए हैं ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान के अनुच्छे द 51 (क) भें भूर कत्तथव्म टदए गए हैं।
प्रश्न 11.
बायतीम सॊववधान भें ककतने भौमरक कतथव्मों का उल्रेख है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें 11 भौमरक कतथव्मों का उल्रेख है ।
प्रश्न 12.
याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्वों का वणथन सॊववधान के ककस बाग भें ककमा गमा है ?
उत्तय :
याज्म के नीनत-ननदे शक तत्वों का वणथन सॊववधान के बाग IV भें ककमा गमा है ।
प्रश्न 13.
बायतीम सॊववधान के अनुसाय ककन्हीॊ दो ननदे शक मसर्द्ान्तों (तत्त्वों) को मरखखए।
उत्तय :
1. आर्थथक सुयऺा सम्फन्धी तत्त्व
2. साभान्जक प्रगनत सम्फन्धी तत्त्व।
प्रश्न 14.
याज्म के नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों की ववर्ध अथवा वैऻाननक न्स्थनत क्मा है ?
उत्तय :
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों की सुयऺा की भाॉग न्मामारम से नहीॊ की जा सकती , क्मोंकक इनके ऩीछे
फाध्मकायी कानूनी शन्क्त नहीॊ है ।
प्रश्न 15.
बायतीम सॊववधान के नीनत-ननदे शक तत्त्व ककस दे श के सॊववधान से मरमे गए हैं ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान के नीनत-ननदे शक तत्त्व आमयरैण्ड के सॊववधान से मरए गए हैं।
प्रश्न 16.
शोषण के ववरुर्द् अर्धकाय का क्मा अथथ है ?
उत्तय :
शोषण के ववरुर्द् अर्धकाय का अथथ है –
1. कोई बी व्मन्क्त ककसी से फरात ् श्रभ नहीॊ कयवा सकता।
2. न्स्त्रमों तथा फच्चों का क्रम-ववक्रम नहीॊ ककमा जा सकता।
प्रश्न 17.
सॊववधान के ककस सॊशोधन के द्वाया भर
ू कतथव्मों का प्रावधान ककमा गमा है ?
उत्तय :
सॊववधान के-42वें सॊशोधन (1976) के द्वाया भर
ू कतथव्मों का प्रावधान ककमा गमा है ।
प्रश्न 18.
सॊववधान भें वखणथत बायतीम नागरयकों का एक कतथव्म मरखखए।
उत्तय :
सॊववधान का ऩारन कयना औय उसके आदशों, सॊस्थाओॊ, याष्ट्रगान औय याष्ट्रध्वज का आदय कयना बायतीम
नागरयकों का एक कतथव्म है ।
प्रश्न 19.
सॊववधान द्वाया भर
ू अर्धकायों का सॊयऺक ककसे फनामा गमा है ?
उत्तय :
सॊववधान द्वाया भर
ू अर्धकायों का सॊयऺक सवोच्च न्मामारम को फनामा गमा है ।
प्रश्न 20.
भूर अर्धकायों का स्थगन कैसे ककमा जा सकता है ?
मा
भौमरक अर्धकाय कफ स्थर्गत ककमे जा सकते हैं ?
उत्तय :
1. सॊकटकार की घोषणा की न्स्थनत भें
2. सेना भें अनुशासन फनामे यखने के मरए तथा
3. भाशथर रॉ रागू होने ऩय भौमरक अर्धकाय स्थर्गत ककमे जा सकते हैं।
प्रश्न 21.
बायतीम नागरयकों के दो भूर कत्तथव्म मरखखए।
उत्तय :
बायतीम नागरयकों के दो भूर कतथव्म हैं –
1. सॊववधान का ऩारन कयना, याष्ट्रध्वज तथा याष्ट्रगान के प्रनत सम्भान प्रकट कयना।
2. बायत की सम्प्रबुता, एकता औय अखण्डता की यऺा कयना।
प्रश्न 22.
बायतीम सॊववधान के ककन अनुच्छे दों भें नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों का वणथन ककमा गमा है ?
उत्तय :
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों का वणथन बायतीम सॊववधान के अनुच्छे द 36 से अनुच्छे द 51 तक भें ककमा गमा
है ।
प्रश्न 23.
ककन्हीॊ दो नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
1. याज्म प्रत्मेक स्त्री औय ऩरु
ु ष को सभान रूऩ से जीववका के साधन प्रदान कयने का प्रमत्न कये गा।
2. याज्म 14 वषथ तक के फारकों के मरए नन:शुल्क औय अननवामथ मशऺा प्रदान कयने की व्मवस्था
कये गा।
प्रश्न 24.
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्त का कोई एक भहत्त्व मरखखए।
उत्तय :
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्त सत्तारूढ़ दर के मरए आचाय-सॊटहता का कामथ कयते हैं।
प्रश्न 25.
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों की आरोचना का एक प्रभुख आधाय मरखखए।
उत्तय :
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों के ऩीछे वैधाननक शन्क्त का अबाव है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
भौमरक अर्धकायों का अथथ औय ऩरयबाषा मरखखए।
उत्तय :
वे अर्धकाय, जो भानव-जीवन के मरए भौमरक तथा अऩरयहामथ होने के कायण सॊववधान द्वाया नागरयकों को
प्रदान ककए जाते हैं , ‗भौमरक अर्धकाय‘ कहराते हैं। व्मवस्थावऩका तथा कामथऩामरका द्वाया इनका उल्रॊघन
नहीॊ ककमा जा सकता है । दे श की न्मामऩामरका एक प्रहयी की बाॉनत इन अर्धकायों की सुयऺा कयती है ।
याज्म का भुख्म उद्देश्म नागरयकों का चहुॊभुखी ववकास व उनका कल्माण कयना है । इसमरए सॊववधान द्वाया
नागरयकों को भौमरक अर्धकाय प्रदान ककए जाते हैं। बायतीम सॊववधान द्वाया बी इसी उद्देश्म की ऩूनतथ के
मरए नागरयकों को भौमरक अर्धकाय प्रदान ककए गए हैं। जी० एन० जोशी का कथन है , ―भौमरक अर्धकाय
ही ऐसा साधन है , न्जसके द्वाया एक स्वतन्त्र रोकयाज्म के नागरयक अऩने साभान्जक , धामभथक तथा
नागरयक जीवन का आनन्द उठा सकते हैं। इनके ब्रफना रोकतन्त्रीम शासन सपरताऩव
ू क
थ नहीॊ चर सकता
औय फहुभत की ओय से अत्माचायों का खतया फना यहता है । ‖
प्रश्न 2.
फन्दी प्रत्मऺीकयण से क्मा अमबप्राम है ?
उत्तय :
फन्दी प्रत्मऺीकयण एक प्रकाय का न्मामारमीम आदे श होता है । न्मामारम फन्दी फनामे गमे व्मन्क्त अथवा
उसके सम्फन्धी की प्राथथना ऩय मह आदे श दे सकता है कक फन्दी व्मन्क्त को उसके साभने उऩन्स्थत ककमा
जाए। तत्ऩश्चात ् न्मामारम मह जाॉच कय सकता है कक फन्दी की र्गयफ्तायी कानून के अनुसाय वैध है
अथवा नहीॊ। मह अर्धकाय नागरयक की व्मन्क्तगत स्वतन्त्रता की यऺा कयता है ।
प्रश्न 3.
बायतीम नागरयकों के भर
ू अर्धकायों ऩय ककन ऩरयन्स्थनतमों भें प्रनतफन्ध रगामा जा सकता है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान द्वाया प्रदत्त भर
ू अर्धकाय ननयऩेऺ नहीॊ हैं। इन ऩय याष्ट्र की एकता , अखण्डता, शान्न्त
एवॊ सुयऺा तथा अन्म याष्ट्रों के साथ भैत्रीऩूणथ सम्फन्धों के आधाय ऩय प्रनतफन्ध रगामा जा सकता है ।
सॊववधान द्वाया अग्रमरखखत ऩरयन्स्थनतमों भें नागरयकों के भौमरक (भर
ू ) अर्धकायों ऩय प्रनतफन्ध रगामे
जाने की व्मवस्था की गमी है –
1. आऩातकारीन न्स्थनत भें नागरयकों के भर
ू अर्धकाय स्थर्गत ककमे जा सकते हैं।
2. सॊववधान भें सॊशोधन कयके नागरयकों के भूर अर्धकाय कभ मा सभाप्त ककमे जा सकते हैं।
3. सेना भें अनश
ु ासन फनामे यखने की दृन्ष्ट्ट से बी इन्हें सीमभत मा ननमन्न्त्रत ककमा जा सकता है ।
4. न्जन ऺेत्रों भें भाशथर रॉ (सैननक कानून) रागू होता है वहाॉ बी भूर अर्धकाय स्थर्गत हो जाते
5. नागरयकों द्वाया भूर अर्धकायों का दरु
ु ऩमोग कयने ऩय सयकाय इन्हें ननरन्म्फत कय सकती है ।
प्रश्न 4.
भौमरक अर्धकायों तथा नीनत-ननदे शक तत्त्वों भें क्मा अन्तय है ?
उत्तय :
भौमरक अर्धकायों तथा नीनत-ननदे शक तत्त्वों भें अन्तय ननम्नवत ् हैं –
1. भौमरक अर्धकाय, बायतीम सॊववधान द्वाया नागरयकों को टदमे गमे हैं। नीनत-ननदे शक तत्त्व केन्द्र
तथा याज्म सयकायों के भागथदशथन के मरए ननदे श भात्र हैं।
2. भौमरक अर्धकायों का हनन होने ऩय न्मामारम की शयण री जा सकती है । नीनत-ननदे शक तत्त्वों
की यऺा के मरए न्मामारम की शयण नहीॊ री जा सकती।
3. भौमरक अर्धकायों का उद्देश्म याजनीनतक रोकतन्त्र की स्थाऩना कयना होता है । नीनत-ननदे शक तत्त्वों
का उद्देश्म साभान्जक औय आर्थथक रोकतन्त्र की स्थाऩना कयना है ।
4. भौमरक अर्धकाय नागरयक के व्मन्क्तगत ववकास तथा स्वतन्त्रता ऩय अर्धक फर दे ते हैं। नीनत-
ननदे शक तत्त्व आर्थथक औय साभान्जक स्वतन्त्रता ऩय अर्धक फर दे ते हैं।
5. भौमरक अर्धकाय ननषेधात्भक आदे श हैं। नीनत-ननदे शक तत्त्व सकायात्भक ननदे श भात्र हैं।
6. भौमरक अर्धकायों के ऩीछे न्मानमक शन्क्त होती है । नीनत-ननदे शक तत्त्वों के ऩीछे जनभत की
शन्क्त होती है ।
प्रश्न 5.
नीनत-ननदे शक तत्त्वों को सॊववधान भें सभाववष्ट्ट कयने का क्मा उद्देश्म है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें केन्द्र तथा याज्म सयकायों के भागथदशथन के मरए कुछ मसर्द्ान्त टदमे गमे हैं , न्जन्हें
याज्म के नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्त मा तत्त्व कहा जाता है । सॊववधान भें इन तत्त्वों का सभावेश कयने का
प्रभुख उद्देश्म बायत भें वास्तववक रोकतन्त्र औय सभाजवादी एवॊ कल्माणकायी शासन की स्थाऩना कयना
है । इसके अनतरयक्त, साभान्जक ऩुनननथभाथण , आर्थथक ववकास, साॊस्कृनतक प्रगनत तथा अन्तयाथष्ट्रीम शान्न्त की
स्थाऩना बी नीनत-ननदे शक तत्त्वों के उद्देश्म हैं।
प्रश्न 6.
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों की ववशेषताओॊ ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
नीनत-ननदे शक तत्त्वों की ननम्नमरखखत ववशेषताएॉ हैं –
(1) सॊविधान का उद्देश्म – सॊववधान की प्रस्तावना भें सॊववधान का उद्देश्म रोक-कल्माणकायी याज्म की स्थाऩना
कयना फतामा गमा है । नीनत-ननदे शक तत्त्व इस उद्देश्म को साकाय रूऩ दे ते हैं। याज्म अर्धक-से-अर्धक
प्रबावी रूऩ भें , ऐसी साभान्जक व्मवस्था तथा सुयऺा द्वाया न्जसभें आर्थथक , साभान्जक तथा याजनीनतक
न्माम बी प्राप्त हो, जनता के टहत के ववकास को प्रमत्न कये गा औय याष्ट्रीम जीवन की प्रत्मेक सॊस्था को
इस सम्फन्ध भें सूर्चत कये गा। इस प्रकाय नीनत-ननदे शक तत्त्व आर्थथक तथा साभान्जक प्रजातन्त्र की
स्थाऩना कय एक सभाजवादी ऩर्द्नत के सभाज की स्थाऩना कयना चाहते हैं।
(2) अनदु े र् ऩत्र – याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्व ऐसे ननदे श हैं , न्जनका ऩारन याज्म की व्मवस्थावऩका तथा
कामथऩामरका को कयना चाटहए।
(3) िैधाननक फर का अबाि – नीनत-ननदे शक तत्त्व मद्मवऩ सॊववधान के अॊग हैं , कपय बी उन्हें 1ककसी
न्मामारम द्वाया रागू नहीॊ ककमा जा सकता।
ू ससद्ान्त – मे मसर्द्ान्त भूरबूत मसर्द्ान्त भाने जाएॉगे। याज्म का मह कत्तथव्म
(4) दे र् के र्ासन के आधायबत
होगा कक कानून का ननभाथण कयते सभम वह इन मसर्द्ान्तों को ध्मान भें यखे। प्रशासकों के मरए मे
मसर्द्ान्त एक आचयण सॊटहता हैं , न्जनका अनुऩारन वे अऩने दानमत्वों को | ननबाते सभम कयें गे। न्मामारम
बी न्माम कयते सभम इन मसर्द्ान्तों को प्राथमभकता प्रदान कयें गे।
प्रश्न 7.
नीनत-ननदे शक तत्त्वों की आरोचना का आधाय फताइए।
उत्तय :
नीनत-ननदे शक तत्त्वों की आरोचना के भख्
ु म आधाय ननम्नमरखखत हैं –
ू ी र्क्तत का अबाि – कुछ आरोचक इने तत्त्वों को ककसी बी दृन्ष्ट्ट से भहत्त्वऩूणथ नहीॊ भानते।
(1) कानन
उनका मह तकथ है कक जफ सयकाय इन्हें भानने के मरए कानन
ू ी रूऩ से फाध्म ही नहीॊ है , तो इनका कोई
भहत्त्व नहीॊ है । इन मसर्द्ान्तों ऩय व्मॊग्म कयते हुए प्रो० के० टी० शाह ने मरखा है । कक , ―मे मसर्द्ान्त उस
चेक के सभान हैं , न्जसका बग ु तान फैंक केवर सभथथ होने की न्स्थनत भें ही कय सकता है । ‖
(2) ननदे र्क तत्त्ि काल्ऩननक आदर्श भात्र – आरोचकों के अनुसाय नीनत-ननदे शक तत्त्व व्मावहारयकता से कोसों
दयू केवर एक कल्ऩना भात्र हैं। इन्हें कक्रमान्न्वत कयना फहुत दयू की फात है । एन० आय० याघवाचायी के
शब्दों भें , ―नीनत-ननदे शक तत्त्वों का उद्देश्म जनता को भूखथ फनाना वे फहकाना ही है । ‖
ै ाननक गनतयोध उत्ऩन्न होने का बम – इन मसर्द्ान्तों से सॊवैधाननक गनतयोध बी उत्ऩन्न हो सकता है ।
(3) सॊिध
याज्म जफ इन तत्त्वों के अनुरूऩ अऩनी नीनतमों का ननभाथण कये गा तो ऐसी न्स्थनत भें भौमरक अर्धकायों
के अनतक्रभण की सम्बावना फढ़ जाएगी।
ु ा सम्ऩन्न याज्म भें अस्िाबाविक – मे तत्त्व एक सम्प्रबुता सम्ऩन्न याज्म भें अस्वाबाववक तथा
(4) सम्प्रबत
अप्राकृनतक हैं। ववद्वानों ने नीनत-ननदे शक तत्त्वों की अनेक दृन्ष्ट्टकोणों के आधाय ऩय आरोचना की है ,
ऩयन्तु इन आरोचनाओॊ के द्वाया इन तत्त्वों का भहत्त्व कभ नहीॊ हो जाता। मे हभाये आर्थथक रोकतन्त्र
के आधाय-स्तम्ब हैं।
प्रश्न 8.
भौमरक अर्धकायों की सॊऺेऩ भें आरोचना कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें वखणथत भौमरक अर्धकायों की ननम्नमरखखत आधायों ऩय आरोचना की गई है –
1. इनभें मशऺा प्राप्त कयने, काभ ऩाने, आयाभ कयने तथा स्वास्थ्म सम्फन्धी अनेक भहत्त्वऩण
ू थ
अर्धकायों का अबाव दे खने को मभरता है ।
2. भौमरक अर्धकायों ऩय इतने अर्धक प्रनतफन्ध रगा टदए गए हैं कक उनके स्वतन्त्र उऩबोग ऩय
स्वमभेव प्रश्न-र्चह्न रग जाता है । अत: कुछ आरोचकों ने महाॉ तक कह टदमा है कक बाग चाय का
शीषथक नीनत-ननदे शक तत्त्वों के स्थान ऩय ‗नीनत-ननदे शक तत्त्व तथा उनके ऊऩय प्रनतफन्ध ज्मादा
उऩमुक्त प्रतीत होता है ।
3. शासन द्वाया भौमरक अर्धकायों के स्थगन की व्मवस्था दोषऩण
ू थ है ।
4. ननवायक-ननयोध द्वाया स्वतन्त्रता के अर्धकाय को सीमभत कय टदमा गमा है ।
5. सॊकटकार भें कामथऩामरका को असीमभत शन्क्तमाॉ प्राप्त हो जाती हैं।
प्रश्न 9.
भौमरक अर्धकायों के स्थगन ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
भौमरक अर्धकायों भें ववशेष ऩरयन्स्थनतमों के ननमभत्त सॊववधान भें सॊशोधन द्वाया सॊसद अर्धकाय अस्थामी
रूऩ से बी स्थर्गत ककए जा सकते हैं मा कापी सीभा तक सीमभत ककए जा सकते हैं। इसमरए आरोचकों
का ववचाय है कक सॊववधान के इस अनच्
ु छे द का राब उठाकय दे श भें कबी बी सयकाय तानाशाह फन सकती
है । ककन्तु ऐसा सोचना मा कहना गरत है ; क्मोंकक ऐसा सयकाय अऩने टहत भें नहीॊ , वयन ् रोकटहत भें
कयती है । असाधायण ऩरयन्स्थनतमों भें दे श औय याष्ट्र का टहत व्मन्क्तगत टहत से अर्धक भहत्त्वऩूणथ होता
है , इसीमरए ववशेष ऩरयन्स्थनतमों भें ही भौमरक अर्धकायों को स्थर्गत मा सीमभत ककमा जाता है । अल्राटद
कृष्ट्णास्वाभी अय्मय के शब्दों भें , ―मह व्मवस्था अत्मन्त आवश्मक है । मही व्मवस्था सॊववधान का जीवन
होगी। इससे प्रजातन्त्र की हत्मा नहीॊ , वयन ् सुयऺा होगी।‖
प्रश्न 10.
नीनत-ननदे शक तत्त्वों के दोषों का वववेचन कीन्जए।
उत्तय :
नीनत-ननदे शक तत्त्वों के ननम्नमरखखत दोष हैं –
1. इन तत्त्वों के ऩीछे कोई सॊवैधाननक शन्क्त नहीॊ है । अत् ननन्श्चत रूऩ से मह नहीॊ कहा जा सकता
कक याज्म इनका ऩारन कये गा बी मा नहीॊ औय मटद कये गा तो ककस सीभा तक।
2. मे तत्त्व काल्ऩननक आदशथ भात्र हैं। कैम्ऩसन के अनस
ु ाय , ―जो रक्ष्म ननन्श्चत ककए गए हैं , उनभें से
कुछ का तो सम्बाववत कामथक्रभ की वास्तववकता से फहुत ही थोडा सम्फन्ध है । ‖
3. नीनत-ननदे शक तत्त्व एक सम्प्रबु याज्म भें अप्राकृनतक प्रतीत होते हैं।
4. सॊवैधाननक ववर्धवेत्ताओॊ ने आशॊका व्मक्त की है कक मे तत्त्व सॊवैधाननक द्वन्द्व औय गनतयोध के
कायण बी फन सकते हैं।
5. इन तत्त्वों भें अनेक मसर्द्ान्त अस्ऩष्ट्ट तथा तकथहीन हैं। इन तत्त्वों भें एक ही फात को फाय-फाय
दोहयामा गमा है ।
6. इन तत्त्वों की व्मावहारयकता व और्चत्म को बी कुछ आरोचकों के द्वाया चन
ु ौती दी गई है ।
7. एक प्रबुतासम्ऩन्न याज्म भें इस प्रकाय के मसर्द्ान्त को ग्रहण कयना अस्वाबाववक ही प्रतीत होता है ।
ववर्ध-ववशेषऻों के दृन्ष्ट्टकोण के अनस
ु ाय एक प्रबत
ु ासम्ऩन्न याज्म के मरए इस प्रकाय के आदे शों का
कोई और्चत्म नहीॊ है ।
प्रश्न 11.
अर्धकाय-ऩत्र ककसे कहते हैं ? क्मा प्रत्मेक दे श भें अर्धकाय-ऩत्र का होना आवश्मक है ?
उत्तय :
अचधकाय-ऩत्र से आर्म
जफ ककसी दे श के नागरयकों को टदए जाने वारे अर्धकायों की सॊवैधाननक घोषणा की जाती है अथाथत ्
नागरयकों के अर्धकायों को सॊववधान भें अॊककत ककमा जाता है तो उसे ‗अर्धकाय ऩत्र‘ कहते हैं। सवथप्रथभ
अभेरयका के सॊववधान भें अर्धकाय-ऩत्र की व्मवस्था की गई थी। सॊववधान के ववमबन्न सॊशोधनों द्वाया
नागरयकों के भौमरक अर्धकायों की व्मवस्था की गई औय उन्हें अर्धकाय-ऩत्र नाभ टदमा गमा। अफ
अर्धकतय दे शों भें अर्धकाय-ऩत्र की व्मवस्था है । बायत भें नागरयकों के अर्धकायों को अर्धकाय-ऩत्र का नाभ
न दे कय भौमरक अर्धकायों का नाभ टदमा गमा है ।

प्रत्मेक दे श भें अर्धकाय-ऩत्र की व्मवस्था आवश्मक नहीॊ-मह आवश्मक नहीॊ है कक प्रत्मेक दे श भें अर्धकाय-
ऩत्र की व्मवस्था हो। इॊग्रैण्ड के सॊववधान भें अर्धकाय-ऩत्र की कोई व्मवस्था नहीॊ है । मह बी आवश्मक
नहीॊ है कक इसकी व्मवस्था रोकतान्न्त्रक दे श भें ही होती है । चीन भें अर्धकाय-ऩत्र की व्मवस्था है । वह
गणतान्न्त्रक दे श है ।

प्रश्न 12.
भौमरक अर्धकायों की ककन्हीॊ चाय ववशेषताओॊ का वणथन कीन्जए।
मा
भौमरक अर्धकायों की ववशेषताओॊ का सॊऺेऩ भें उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
भौमरक अर्धकायों की ववशेषताएॉ ननम्नमरखखत हैं –
1. भौमरक अर्धकाय दे श के सबी नागरयकों को सभान रूऩ से प्राप्त हैं।
2. इन अर्धकायों का सॊयऺक न्मामऩामरका को फनामा गमा है ।
3. याष्ट्र की सुयऺा तथा सभाज के टहत भें इन अर्धकायों ऩय प्रनतफन्ध रगामा जा सकता है ।
4. इन अर्धकायों द्वाया सयकाय की ननयॊ कुशता ऩय अॊकुश रगामा गमा है ।
5. केन्द्र सयकाय अथवा याज्म सयकाय ऐसे कानूनों का ननभाथण नहीॊ कये गी जो भौमरक अर्धकायों का
अनतक्रभण कयते हों।
6. भौमरक अर्धकाय न्माममुक्त होते हैं।
7. भौमरक अर्धकायों की प्रकृनत सकायात्भक होती है ।
प्रश्न 13.
सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकाय को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
मा
सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकाय से आऩ क्मा सभझते हैं ?
उत्तय :
भौमरक अर्धकायों की यऺा हे तु बायतीम नागरयकों को सॊवैधाननक उऩचायों का अर्धकाय प्रदान ककमा गमा
है । इस अर्धकाय का तात्ऩमथ मह है कक मटद याज्म मा केन्द्र सयकाय नागरयकों को टदमे गमे भौमरक
अर्धकायों को ककसी बी प्रकाय से ननमन्न्त्रत कयने का प्रमास कयती है मा उनका हनन कयती है , तो उसके
मरए उच्च न्मामारम मा उच्चतभ न्मामारम भें सयकाय की नीनतमों अथवा कानूनों के ववरुर्द् अऩीर की जा
सकती है ।
दीघश रनु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
भौमरक अर्धकायों का क्मा भहत्त्व है ?
उत्तय :
प्रजातन्त्र भें नागरयकों को उनके सवाांगीण ववकास के मरए कुछ भहत्त्वऩूणथ सुववधाएॉ तथा स्वतन्त्रताएॉ
प्रदान की जाती हैं। इन्हीॊ सुववधाओॊ तथा स्वतन्त्रताओॊ को भूर मा भौमरक अर्धकाय कहा जाता है । ‗भूर‘
का अथथ होता है -जड। वऺ
ृ के मरए जो भहत्त्व जड का होता है , वही भहत्त्व नागरयकों के मरए इन
अर्धकायों का है । न्जस प्रकाय जड के ब्रफना वऺ
ृ का अन्स्तत्व सम्बव नहीॊ है , उसी प्रकाय भौमरक अर्धकायों
के ब्रफना नागरयकों का शायीरयक, भानमसक, नैनतक तथा आध्मान्त्भक ववकास सम्बव नहीॊ है । प्रजातन्त्रीम
दे शों भें इनका उल्रेख सॊववधान भें कय टदमा जाता है , न्जससे सयकाय आसानी से इन्हें सॊशोर्धत मा
सभाप्त न कय सके।
बायतीम सॊववधान भें भौमरक अर्धकायों को स्ऩष्ट्ट उल्रेख ककमा गमा है न्जससे सत्तारूढ़ दर भनभानी न
कय सके। सयकाय की ननयॊ कुशता के ववरुर्द् भौमरक अर्धकाय प्रनतयोध का कामथ कयते हैं। ववधानभण्डर
द्वाया ननमभथत कोई बी कानून जो भौमरक अर्धकायों के ववरुर्द् है , न्मामारम द्वाया अवैध घोवषत ककमा जा
सकता है । बायत भें भौमरक अर्धकायों का भहत्त्व डॉ० बीभयाव अम्फेडकय ने इन शब्दों भें व्मक्त ककमा है ,
―भौमरक अर्धकायों के अनुच्छे द के ब्रफना सॊववधान अधूया यह जाएगा। मे सॊववधान की आत्भा औय रृदम
हैं।‖

प्रश्न 2.
धामभथक स्वतन्त्रता को अर्धकाय क्मा है ?
उत्तय :
सॊववधान ने प्रत्मेक नागरयक को धभथ के सन्दबथ भें ऩूणथ स्वतन्त्रता प्रदान की है । व्मन्क्त को धभथ के ऺेत्र
भें ऩण
ू थ स्वतन्त्रता इस दृन्ष्ट्ट से प्रदान की गमी है कक वह अऩनी इच्छानस
ु ाय ककसी बी धभथ को स्वीकाय
कये तथा अऩने ढॊ ग से अऩने इष्ट्ट की आयाधना कये । व्मन्क्तमों को मह बी स्वतन्त्रता है कक वह अऩनी
रुर्च के अनस
ु ाय धामभथक सॊस्थाओॊ का ननभाथण एवॊ अऩने धभथ का प्रचाय कये । इस प्रकाय सबी धामभथक
सन्दबो भें प्रत्मेक नागरयक ऩूणथ स्वतन्त्र है । ऐसा कयने भें सॊववधान का भुख्म उद्देश्म धभथ के नाभ ऩय होने
वारे वववादों का अन्त कयना था। अनच्
ु छे द 25 के अनस
ु ाय, सबी व्मन्क्तमों को, चाहे वे नागरयक हों मा
ववदे शी, अन्त:कयण की स्वतन्त्रता तथा ककसी बी धभथ को स्वीकाय कयने , आचयण कयने औय प्रचाय कयने
की स्वतन्त्रता है अनुच्छे द 26 के अनुसाय, धामभथक भाभरों के प्रफन्ध की बी स्वतन्त्रता है । अनुच्छे द 47 के
आधाय ऩय, धामभथक कामों के मरए व्मम की जाने वारी यामश को कय से भुक्त ककमा गमा है अनुच्छे द 28
के अनुसाय, याजकीम ननर्ध से चरने वारी ककसी बी मशऺण-सॊस्था भें ककसी प्रकाय की धामभथक मशऺा प्रदान
नहीॊ की जाएगी।
प्रनतफन्ध – ककन्हीॊ ववशेष कायणों मा ऩरयन्स्थनतमोंवश ककसी ववशेष धभथ के प्रचाय मा धामभथक सॊस्थान ऩय
सयकाय को प्रनतफन्ध रगाने का ऩण
ू थ अर्धकाय है ।
प्रश्न 3.
बायतीम सॊववधान भें वखणथत नागरयकों के भौमरक कतथव्म मरखखए।
उत्तय :
नागरयकों के भौसरक कतशव्म
बायतीम सॊववधान ननभाथताओॊ ने सॊववधान का ननभाथण कयते सभम भौमरक कतथव्मों को सॊववधान भें
सन्म्भमरत नहीॊ ककमा था, ऩयन्तु 42वें सॊवैधाननक सॊशोधन द्वाया भौमरक कतथव्मों को सॊववधान भें
सन्म्भमरत ककमा गमा न्जनकी सॊख्मा 10 थी, रेककन 86वें सॊववधान सॊशोधन अर्धननमभ (2002) द्वाया
इसभें एक औय ब्रफन्द ु जोडा गमा। अत् अफ इनकी सॊख्मा 11 हो गई है

1. सॊववधान, याष्ट्रीम ध्वज तथा याष्ट्रगान का सम्भान कयना।


2. याष्ट्रीम स्वतन्त्रता आन्दोरन के उद्देश्मों का आदय कयना औय उनका अनुगभन कयना।
3. बायत की प्रबस
ु त्ता, एकता औय अखण्डता का सभथथन व सयु ऺा कयना।
4. दे श की यऺा कयना तथा याष्ट्रीम सेवाओॊ भें आवश्मकता के सभम बाग रेना।
5. बायत भें सबी नागरयकों भें भ्रातत्ृ व-बावना ववकमसत कयना।
6. प्राचीन सभ्मता व सॊस्कृनत को सुयक्षऺत यखना।
7. वनों, झीरों व जॊगरी जानवयों की सयु ऺा तथा उनकी उन्ननत के मरए प्रमत्न कयना।
8. वैऻाननक तथा भानवतावादी दृन्ष्ट्टकोण को अऩनाना।
9. टहॊसा को योकना तथा सावथजननक सम्ऩन्त्त की सयु ऺा कयना।
10. व्मन्क्तगत तथा साभूटहक प्रमासों के द्वाया उच्च याष्ट्रीम रक्ष्मों की प्रान्प्त के मरए प्रमत्न
कयना।
11. 6 वषथ से 14 वषथ की आमु के फच्चे के भाता-वऩता को अऩने फच्चे को मशऺा टदराने के मरए
अवसय उऩरब्ध कयाना।
प्रश्न 4.
नीनत-ननदे शक तत्त्वों को सयकाय ने ककस सीभा तक रागू ककमा है ?
उत्तय :
सयकाय द्वाया नीनत-ननदे शक तत्त्वों को रागू कयने के फावजद
ू ववगत वषों भें रोक-कल्माणकायी याज्म की
स्थाऩना तो सम्बव नहीॊ हो सकी, ऩयन्तु इस टदशा भें प्रगनत अवश्म हुई। है । नीनत-ननदे शक तत्त्वों को
रागू कयने के मरए सयकाय द्वाया उठाए गए कदभ सयाहनीम हैं ; मथा –
(i) ऩॊचवषीम मोजनाओॊ के आधाय ऩय कृवष औय उद्मोगों की उन्ननत , मशऺा औय स्वास्थ्म की सुववधाओॊ का
प्रसाय, सयकायी सेवाओॊ ऩय आर्थथक सॊसाधनों, साधनों भें ववृ र्द्, याष्ट्रीम आम व रोगों के यहन-सहन के स्तय
को ऊॉचा उठाने के प्रमत्न ककए गए हैं।
(ii) मुवा वगथ औय फच्चों के शोषण से सुयऺा कयने के मरए अनेक कानून फनाए गए हैं। फीभायी औय
दघ
ु ट
थ ना के ववरुर्द् सुयऺा के मरए भजदयू वगथ भें फीभा मोजनाएॉ रागू की गई हैं व फेयोजगायी फीभा मोजना
को रागू कयने औय योजगाय की सुववधाएॉ फढ़ाने के प्रमत्न ककए जा यहे हैं।
(iii) ‗टहन्द ू कोड ब्रफर‘ के कई अॊशों; जैसे- ‗टहन्द ू वववाह अर्धननमभ, 1955′, ‗टहन्द ू उत्तयार्धकायी अर्धननमभ,
1956‘ आटद; को ऩारयत कयके दे श के सबी वगों के मरए सभान ववर्ध सॊटहता रागू कयने के प्रमत्न ककए
जा यहे हैं।
(iv) अस्ऩश्ृ मता ननवायण के मरए तथा अनुसूर्चत व वऩछडी जानतमों के फच्चों को उदायताऩूवक
थ छात्रवन्ृ त्त
औय अन्म सवु वधाओॊ द्वाया मशऺा प्रदान कयने के भागथ भें अबत
ू ऩव
ू थ प्रगनत हुई है ।
(v) मद्मवऩ अफ बी नन:शुल्क औय अननवामथ प्रायन्म्बक मशऺा सफके मरए ऩमाथप्त स्वास्थ्म सेवा का प्रफन्ध
अऩणू थ है , तथावऩ इन टदशाओॊ भें भहत्त्वऩण
ू थ प्रगनत हुई है । रोकतान्न्त्रक ववकेन्द्रीकयण औय साभद
ु ानमक
ववकास मोजनाओॊ द्वाया ग्राभ ऩॊचामतों औय ऩॊचामत याज को बी अर्धक सशक्त फना टदमा गमा है ।
सॊववधान के 73वें सॊशोधन के द्वाया ऩॊचामती याज व्मवस्था को सॊवैधाननक आधाय प्रदान ककमा गमा है ।
भटहराओॊ की सहबार्गता को सुननन्श्चत कयने के उद्देश्म से उनके मरए 33.33 प्रनतशत आयऺण की
ऩॊचामती याज सॊस्थाओॊ भें व्मवस्था की गई है तथा सॊसद एवॊ ववधानभण्डरों भें बी प्रावधान ऩय ववचाय
चर यहा है । ऩॊचामतों की शन्क्तमों, अर्धकायों तथा कामों भें बी ववृ र्द् की गई है ।
दीघश उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
बायतीम सॊववधान भें वखणथत नागरयकों के भौमरक अर्धकायों भें सभानता के अर्धकाय का वणथन कीन्जए।
मा
बायतीम सॊववधान द्वाया नागरयकों को टदमे गमे भर
ू अर्धकायों भें स्वतन्त्रता के अर्धकाय का सववस्ताय
वणथन कीन्जए।
मा
भौमरक अर्धकाय क्मा हैं ? बायतीम सॊववधान भें वखणथत भौमरक अर्धकायों का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
मा
सॊववधान भें वखणथत नागरयकों के भौमरक अर्धकायों भें सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकाय का वणथन कीन्जए
औय इनका भहत्त्व फताइए।
उत्तय :
वे अर्धकाय, जो भानव-जीवन के मरए आवश्मक एवॊ अऩरयहामथ हैं तथा सॊववधान द्वाया नागरयकों को प्रदान
ककमे जाते हैं , भौमरक अर्धकाय कहराते हैं। इन अर्धकायों का व्मवस्थावऩका एवॊ कामथऩामरका द्वाया बी
उल्रॊघन नहीॊ ककमा जा सकता। न्मामऩामरका ऐसे सभस्त कानन
ू ों को अवैध घोवषत कय सकती है , जो
सॊववधान के अनुच्छे दों का उल्रॊघन अथवा अनतक्रभण कयते हैं। भौमरक अर्धकाय व्मन्क्त के व्मन्क्तत्व से
सम्फर्द् यहते हैं। अत: याज्म द्वाया ननमभथत ककसी बी कानून से ऊऩय होते हैं। इनभें ककसी प्रकाय का
सॊशोधन केवर सॊववधान सॊशोधन के आधाय ऩय ही ककमा जा सकता है । बायतीम सॊववधान भें ननटहत
भौमरक अर्धकाय एक ववस्तत
ृ अर्धकाय-ऩत्र के रूऩ भें हैं। भौमरक अर्धकाय सॊववधान के बाग 3 भें वखणथत
ककमे गमे हैं। बायतीम सॊववधान के तत
ृ ीम बाग भें अनुच्छे द 12 से 35 तक भौमरक अर्धकायों का ववमशष्ट्ट
वववेचन ककमा गमा है । इसके द्वाया बायतीम नागरयकों को सात भौमरक अर्धकाय प्रदान ककमे गमे थे ,
ककन्तु 44वें सॊवैधाननक सॊशोधन (1979) द्वाया सम्ऩन्त्त के अर्धकाय को भौमरक अर्धकाय के रूऩ भें
सभाप्त कय टदमा गमा है । अफ सम्ऩन्त्त का अर्धकाय केवर एक कानूनी अर्धकाय के रूऩ भें है ।
भौसरक अचधकायों के प्रकाय
बायतीम नागरयकों को ननम्नमरखखत छ: भौमरक अर्धकाय प्राप्त हैं –

(i) सभानता का अचधकाय


सॊववधान द्वाया ननम्नमरखखत ऩाॉच प्रकाय की सभानताएॉ प्रदान की गमी हैं –
(1) कानन ु छे द 14) – सॊववधान भें , कानून के ऺेत्र भें सबी नागरयकों को सभान अर्धकाय
ू के ऺेत्र भें सभानता(अनच्
टदमे गमे हैं। कानून की दृन्ष्ट्ट भें न कोई छोटा है न फडा। वह ननधथन को हीन दृन्ष्ट्ट से नहीॊ दे खता औय
धनवान को बी ववशेष भहत्त्व नहीॊ दे ता। तात्ऩमथ मह है कक वह सबी को सभान दृन्ष्ट्ट से दे खता है । धभथ-
मरॊग के आधाय ऩय बी ककसी से ककसी प्रकाय का बेदबाव नहीॊ कयता।
(2) सािशजननक स्थानों के उऩबोग भें सभानता (अनच्ु छे द 15) – सॊववधान भें मह स्ऩष्ट्ट मरखा है कक सावथजननक
स्थानों; जैसे – ताराफों, नहयों, ऩाको आटद सबी का, सबी नागरयक ब्रफना ककसी बेदबाव के उऩबोग कयने के
सभान अर्धकायी हैं।
(3) सयकायी नौकरयमों भें सभानता (अनच्ु छे द 16) – सयकायी नौकरयमों भें ननमन्ु क्त के सभम ककसी के साथ धभथ ,
मरॊग, जानत आटद के आधाय ऩय बेदबाव नहीॊ ककमा जाएगा औय ननमुन्क्त मा ऩदोन्ननत का आधाय केवर
मोग्मता को भाना जाएगा। इस अर्धकाय का अऩवाद मह है कक अनुसूर्चत जानत- जनजानतमों के मरए
नौकरयमों भें कुछ स्थान सुयक्षऺत कय टदमे गमे हैं। याज्म वऩछडे वगों के मरए बी स्थानों का आयऺण कय
सकता है । इसके अनतरयक्त याज्म कुछ ऩदों के मरए आवास की मोग्मता बी ननधाथरयत कय सकता है ।
(4) अस्ऩश्ृ मता का अन्त (अनच्ु छे द 17) – अनुसूर्चत जानतमों के उत्थान औय उनभें स्वामबभान की बावना
जगाने तथा उनका ववकास कयने के उद्देश्म से अस्ऩश्ृ मता को अऩयाध घोवषत ककमा गमा है ।
(5) उऩाचधमों का अन्त (अनच्ु छे द 18) – व्मन्क्तमों भें ऩायस्ऩरयक बेदबाव, ऊॉच-नीच की बावना को सभाप्त कय,
सभाज भें सभानता स्थावऩत कयने के उद्देश्म से , सॊववधान ने अॊग्रेजी शासन द्वाया दी जाने वारी सबी
उऩार्धमों को ननयस्त कय टदमा है । अफ केवर शैक्षऺक औय सैननक उऩार्धमाॉ ही दी जाती हैं।
अऩिाद – उऩमक्
ुथ त ऺेत्रों भें सभानता का मसर्द्ान्त रागू ककमा गमा है , कपय बी भानव-टहतों औय उनके
उत्थान को ध्मान भें यखकय सयकाय कुछ ऺेत्रों भें इन ननमभों की अवहे रना बी कय सकती है ।
(ii) स्ितन्त्रता का अचधकाय
(1) अनच्
ु छे द 19 द्वाया इस अर्धकाय से सम्फन्न्धत ननम्नमरखखत छ् स्वतन्त्रताएॉ नागरयकों को प्राप्त हैं –
1. बाषण द्वाया ववचायामबव्मन्क्त की स्वतन्त्रता-सॊववधान ने प्रत्मेक व्मन्क्त को बाषण के रूऩ भें अऩने
ववचाय व्मक्त कयने एवॊ अऩने ववचायों को ऩत्र-ऩब्रत्रकाओॊ भें प्रकामशत कयाने की स्वतन्त्रता प्रदान की
है ।
2. सबा कयने की स्वतन्त्रता सॊववधान ने नागरयकों को शान्न्तऩूवक
थ सबा व सम्भेरन कयने की बी
स्वतन्त्रता प्रदान की है ।
3. व्मवसाम की स्वतन्त्रता–प्रत्मेक व्मन्क्त अऩनी इच्छानुसाय व्मवसाम कयने के मरए स्वतन्त्र है ।
4. सॊघ मा सभुदाम के ननभाथण की स्वतन्त्रता-नागरयकों को भानव-टहतों के मरए सभुदामों अथवा सॊघों
के ननभाथण की स्वतन्त्रता है ।
5. भ्रभण की स्वतन्त्रता-सॊववधान ने नागरयकों को दे श की सीभाओॊ के अन्दय स्वतन्त्रताऩूवक
थ एक
स्थान से दस
ू ये स्थान ऩय आने-जाने की ऩूणथ स्वतन्त्रता दी है ।
6. आवास की स्वतन्त्रता प्रत्मेक व्मन्क्त को इस फात की स्वतन्त्रता दी गमी है कक वह अऩनी न्स्थनत
के अनुसाय ककसी बी स्थान ऩय यहे ।
अऩिाद – सभाज तथा याष्ट्र के टहत भें सयकाय के द्वाया स्वतन्त्रता के अर्धकाय ऩय बी वववेकऩण
ू थ प्रनतफन्ध
रगामे जा सकते हैं।
(2) अऩयाधों की दोषससवद् के सम्फन्ध भें सॊयऺण – अनच्
ु छे द 20 के अनस
ु ाय
(क) ककसी व्मन्क्त को उस सभम तक दण्ड नहीॊ टदमा जा सकता , जफ तक कक उसने ककसी प्रचमरत कानून
को न तोडा हो तथा
(ख) उसे स्वमॊ अऩने ववरुर्द् गवाही दे ने के मरए ककसी बी प्रकाय से फाध्म नहीॊ ककमा जा सकता।
(3) जीिन औय र्यीय-यऺण का अचधकाय अनच्ु छे द 21 के अनुसाय, ककसी व्मन्क्त की प्राण अथवा दै टहक स्वतन्त्रता
को केवर ववर्ध द्वाया स्थावऩत प्रकक्रमा को छोडकय, अन्म ककसी प्रकाय से वॊर्चत नहीॊ ककमा जाएगा।
(4) फन्दीकयण के सॊयऺण की स्ितन्त्रता-अनच्ु छे द 22 के अनुसाय
(क) प्रत्मेक फन्दी को फन्दी होने का कायण जानने का अर्धकाय टदमा गमा है तथा
(ख) ककसी को फन्दी फनाने के फाद उसे 24 घण्टे के अन्दय ही ककसी न्मामाधीश के सभऺ उऩन्स्थत कयना
आवश्मक है ।
(iii) र्ोषण के विरुद् अचधकाय
सॊववधान भें अनच्
ु छे द 23 व 24 को सन्म्भमरत कयने का उद्देश्म मह था कक कोई ककसी का शोषण ने कय
सके। अत् सॊववधान द्वाया मह घोषणा की गमी है कक –

1. ककसी व्मन्क्त से फेगाय औय फरऩूवक


थ काभ नहीॊ मरमा जाएगा।
2. चौदह वषथ से कभ आमु के फारक-फामरकाओॊ से खानों , कायखानों तथा स्वास्थ्म ऩय फयु ा प्रबाव
डारने वारे स्थानों ऩय काभ नहीॊ मरमा जाएगा।
3. न्स्त्रमों व फच्चों का क्रम-ववक्रम कयना अऩयाध है । अऩवाद-याज्म सावथजननक कामों के मरए नागरयकों
की अननवामथ सेवाएॉ प्राप्त कय सकता है ।
(iv) धासभशक स्ितन्त्रता का अचधकाय
सॊववधान ने बायत भें धभथननयऩेऺ याज्म की स्थाऩना कयने के उद्देश्म से प्रत्मेक नागरयक को ऩण
ू थ धामभथक
स्वतन्त्रता प्रदान की है अथाथत ् प्रत्मेक नागरयक अऩनी अन्तयात्भा के अनुसाय कोई बी धभथ स्वीकाय कय
सकता है , अऩने धभथ की प्रथा के अनस
ु ाय आयाधना कय सकता है तथा अऩने धभथ का प्रचाय-प्रसाय कय
सकता है (अनुच्छे द 25)। सबी व्मन्क्तमों को धामभथक भाभरों एवॊ सॊस्थाओॊ का प्रफन्ध कयने की बी
स्वतन्त्रता है (अनच्
ु छे द 26)। याज्म ककसी बी धभथ के साथ ऩऺऩात नहीॊ कये गा। इसका आशम मह है कक
याज्म धामभथक भाभरों भें ऩूणरू
थ ऩ से तटस्थ है औय धभथ , व्मन्क्त का व्मन्क्तगत ववषम है । इसके अनतरयक्त,
नागरयकों ऩय ककसी प्रकाय का धामभथक कय नहीॊ रगामा जाएगा (अनुच्छे द 27)। मह बी घोषणा की गमी है
कक सयकायी अथवा सयकायी सहामता मा भान्मता प्राप्त मशऺा सॊस्था भें ककसी धभथ-ववशेष की मशऺा नहीॊ
दी जा सकती है (अनुच्छे द 28)। इसके अनतरयक्त 42वें सॊवैधाननक सॊशोधन के द्वाया सॊववधान की
प्रस्तावना भें ‗ऩन्थननयऩेऺ‘ शब्द जोडा गमा है ।

अऩिाद – अन्म अर्धकायों की बाॉनत इस अर्धकाय ऩय बी कुछ प्रनतफन्ध हैं। सयकाय ककसी बी ऐसे धामभथक
आचयण ऩय कानून फनाकय योक रगा सकती है , न्जससे साभान्जक मा याष्ट्रीम टहतों को कोई खतया ऩहुॉचता
हो।
(v) साॊस्कृनतक ि सर्ऺा-सम्फन्धी अचधकाय
1. अनुच्छे द 29 के अनुसाय प्रत्मेक बाषा-बाषी को अऩनी सॊस्कृनत, बाषा औय मरवऩ को सुयक्षऺत यखने
का अर्धकाय है ।
2. प्रत्मेक व्मन्क्त को याज्म द्वाया स्थावऩत मा याज्म द्वाया दी गमी आर्थथक सहामता से चर यहे
मशऺण सॊस्थान भें प्रवेश रेने का अर्धकाय है , चाहे वह ककसी बी धभथ, जानत मा वगथ से सम्फन्ध
यखता हो।
3. अनुच्छे द 30 के अनुसाय प्रत्मेक वगथ के व्मन्क्तमों को अऩनी इच्छानुसाय मशऺण सॊस्थाएॉ खोरने का
अर्धकाय टदमा गमा है ।
4. सॊववधान सॊशोधन, 93 (2001) के अनुसाय 6 वषथ से 14 वषथ तक के फच्चों के मरए नन:शुल्क मशऺा
का अर्धकाय टदमा गमा है ।
(vi) सॊिध
ै ाननके उऩचायों का अचधकाय
उऩमक्
ु थ त भर
ू अर्धकायों की यऺा हे तु सॊववधान भें अनच्
ु छे द 32 के अनस
ु ाय सॊवैधाननक उऩचायों का अर्धकाय
बी सन्म्भमरत ककमा गमा है । इस अर्धकाय का तात्ऩमथ मह है कक मटद याज्म मा सयकाय , नागरयक को टदमे
गमे भूर अर्धकायों ऩय ककसी प्रकाय का प्रनतफन्ध रगाती है मा उनका अनतक्रभण कयती है तो वे उसके
मरए उच्च न्मामारम अथवा सवोच्च न्मामारम की शयण रे सकते हैं। नागरयकों के भौमरक अर्धकायों की
यऺा के मरए उच्च न्मामारमों तथा सवोच्च न्मामारम द्वाया ननम्नमरखखत ऩाॉच प्रकाय के रेख जायी ककमे
जाते हैं –

1. फन्दी प्रत्मऺीकयण (Habeas Corpus)


2. ऩयभादे श (Mandamus)
3. अर्धकाय ऩच्
ृ छा (Quo-Warranto)
4. प्रनतषेध (Prohibition)
5. उत्प्रेषण रेख (Certiorari)।
अऩिाद – व्मन्क्तमों के द्वाया साधायण ऩरयन्स्थनतमों भें ही न्मामारम की शयण रेकय अऩने भौमरक
अर्धकायों की यऺा की जा सकती है । आऩातकार भें कोई व्मन्क्त अऩने भौमरक अर्धकायों की यऺा के मरए
न्मामारम भें प्राथथना नहीॊ कय सकता।
उऩमुक्
थ त वववेचन से स्ऩष्ट्ट है कक नागरयकों को सॊववधान के द्वाया प्रदत्त भौमरक अर्धकायों का ऺेत्र फहुत
व्माऩक है । भौमरक अर्धकाय व्मन्क्त-स्वातन््म तथा अर्धकायों के टहत भें याज्म की शन्क्त ऩय प्रनतफन्ध
रगाने के श्रेष्ट्ठ उऩाम हैं। बायत ही नहीॊ वयन ् ववश्व के अर्धकाॊश याष्ट्रों भें वतथभान सभम भें भौमरक
अर्धकायों की व्मवस्था ने एक सवथभान्म अवधायणा का रूऩ धायण कय मरमा है ।

भौसरक अचधकायों का भहत्त्ि


भूर अर्धकाय रोकतन्त्र के आधाय-स्तम्ब हैं। भूर ‘ का अथथ होता है -जड। वऺ
ृ के मरए जो भहत्त्व जड का
होता है , वही भहत्त्व नागरयकों के मरए इन अर्धकायों का है । न्जस प्रकाय जड के ब्रफना वऺ
ृ का अन्स्तत्व
सम्बव नहीॊ है , उसी प्रकाय भौमरक अर्धकायों के ब्रफना नागरयकों का शायीरयक , भानमसक, नैनतक तथा
आध्मान्त्भक ववकास सम्बव नहीॊ है । मे जनता के जीवन के यऺक हैं। मे फहुभत की तानाशाही ऩय अॊकुश
रगाते हैं औय भानव की स्वतन्त्रता तथा साभान्जक ननमन्त्रण भें सभन्वम स्थावऩत कयते हैं।

सॊववधान भें भौमरक अर्धकायों का फहुत भहत्त्व है , जो ननम्नमरखखत है –

(1) भौसरक अचधकाय प्रजातन्त्र के आधाय-स्तम्ब हैं – भर


ू अर्धकाय प्रजातन्त्र के मरए अननवामथ हैं। इनके द्वाया
प्रत्मेक व्मन्क्त को ऩूणथ शायीरयक, भानमसक औय नैनतक ववकास की सुयऺा प्रदान की जाती है ।
(2) फहुभत की तानार्ाही को योकते हैं – भौमरक अर्धकाय एक दे श के याजनीनतक जीवन भें एक दर ववशेष की
तानाशाही स्थावऩत होने से योकने के मरए अननवामथ हैं। भौमरक अर्धकाय शासकीम औय फहुभत वगथ के
अत्माचायों से व्मन्क्त की यऺा कयते हैं।
(3) व्मक्तत की स्ितन्त्रता औय साभाक्जक ननमन्त्रण भें सभन्िम – भौमरक अर्धकाय व्मन्क्त की स्वतन्त्रता औय
साभान्जक ननमन्त्रण के उर्चत साभॊजस्म की स्थाऩना कयते हैं।
भौमरक अर्धकायों का सॊववधान भें उल्रेख कय दे ने से उनके भहत्त्व औय सम्भान भें ववृ र्द् होती है । इससे
उन्हें साधायण कानून से अर्धक उच्च स्थान औय ऩववत्रता प्राप्त हो जाती है । इससे वे अनुल्रॊघनीम होते
हैं। व्मवस्थावऩका, कामथऩामरका व न्मामऩामरका के मरए उनका ऩारन आवश्मक हो जाता है ।

डॉ० बीभयाव अम्फेडकय ने भौमरक अर्धकायों का भहत्त्व व्मक्त कयते हुए कहा है कक , ―भौमरक अर्धकायों
के अनुच्छे द के ब्रफना सॊववधान अधूया यह जाएगा। मे सॊववधान की आत्भा औय रृदम हैं। ‖

प्रश्न 2.
दक्षऺण अिीका के सॊववधान भें अर्धकायों की घोषणा-ऩत्र ककस रूऩ भें सन्म्भमरत ककमा गमा है ?
उत्तय :
दक्षऺण अिीका के सॊववधान भें अर्धकायों की घोषणा-ऩत्र दक्षऺण अिीका का सॊववधान टदसम्फय , 1996 भें
रागू हुआ। इसे तफ फनामा औय रागू ककमा गमा जफ यॊ गबेद वारी सयकाय के हटने के फाद दक्षऺण
अिीका गह ृ मुर्द् के खतये से जूझ यहा था। दक्षऺण अिीका के सॊववधान के अनुसाय ―उसके अर्धकायों की
घोषणा-ऩत्र दक्षऺण अिीका भें प्रजातन्त्र की आधायमशरा है । ‖ मह नस्र, मरॊग, गबथधायण, वैवाटहक न्स्थनत,
जातीम मा साभान्जक भर
ू , यॊ ग, आमु, अऩॊगता, धभथ, अन्तयात्भा, आस्था, सॊस्कृनत, बाषा औय जन्भ के आधाय
ऩय बेदबाव वन्जथत कयता है । मह नागरयकों को सम्बवत् सफसे ज्मादा व्माऩक अर्धकाय दे ता है ।
सॊवैधाननक अर्धकायों को एक ववशेष सॊवैधाननक न्मामारम रागू कयता है ।
दक्षऺण अिीका के सॊववधान भें सन्म्भमरत कुछ प्रभुख अर्धकाय ननम्नमरखखत हैं –

1. गरयभा का अर्धकाय
2. ननजता का अर्धकाय
3. श्रभ-सम्फन्धी सभुर्चत व्मवहाय का अर्धकाय
4. स्वस्थ ऩमाथवयण औय ऩमाथवयण सॊयऺण का अर्धकाय
5. सभर्ु चत आवास का अर्धकाय
6. स्वास्थ्म सुववधाएॉ, बोजन, ऩानी औय साभान्जक सुयऺा का अर्धकाय
7. फार-अर्धकाय
8. फुननमादी औय उच्च मशऺा का अर्धकाय
9. साॊस्कृनतक, धामभथक औय बाषाई सभद
ु ामों का अर्धकाय
10. सूचना प्राप्त कयने का अर्धकाय।
प्रश्न 3.
बायतीम नागरयकों के भूर कतथव्मों ऩय एक रेख मरखखए।
मा
भौमरक कतथव्मों से आऩ क्मा सभझते हैं ? इनका क्मा भहत्त्व है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें भूर कतथव्मों का कोई उल्रेख नहीॊ था; अत: मह अनुबव ककमा गमा कक भूर
अर्धकायों के साथ-साथ भर
ू कतथव्मों की बी व्मवस्था आवश्मक है । इस कभी को 1976 भें सॊववधान के
42वें सॊशोधन द्वाया दयू ककमा गमा औय सॊववधान भें एक नमा अनुच्छे द 51 (क) ‗भौमरक कतथव्म‘ जोडा
गमा। सॊववधान के 86वें सॊशोधन अर्धननमभ 2002 के अन्तगथत एक कतथव्म औय जोडा गमा। नागरयकों के
ग्मायह कतथव्मों का वणथन ननम्नवत ् है –
1. सॊववधान का ऩारन कयना औय उसके आदशों, सॊस्थाओॊ, याष्ट्रगान औय याष्ट्रीम ध्वज का आदय
कयना।
2. दे श के स्वतन्त्रता सॊग्राभ भें जो उच्च आदशथ यखे गमे थे , उनका ऩारन कयना व उनके प्रनत रृदम
भें आदय फनामे यखना।
3. बायत की प्रबुसत्ता, एकता तथा अखण्डता का सभथथन औय यऺा कयना।
4. दे श की यऺा के मरए हय सभम तैमाय यहना तथा आवश्मकता ऩडने ऩय याष्ट्रीम सेवाओॊ भें बाग
रेना।
5. बायत के सबी नागरयकों भें भ्रातत्ृ व की बावना ववकमसत कयना, ववमबन्न प्रकाय की मबन्नताओॊ के
फीच एकता की स्थाऩना कयना औय न्स्त्रमों के प्रनत आदयबाव यखना।
6. हभायी प्राचीन सॊस्कृनत औय उसकी दे नों को तथा उसकी गौयवशारी ऩयम्ऩया का भहत्त्व सभझना
औय उसकी सुयऺा कयना।
7. प्राकृनतक ऩमाथवयण को दवू षत होने से फचाना एवॊ वनों, झीरों, नटदमों की यऺा औय सॊवधथन कयना
तथा वन्म प्राखणमों के प्रनत दमाबाव यखना।
8. वैऻाननक तथा भानवतावादी दृन्ष्ट्टकोण अऩनाना औय ऻानाजथन तथा सुधाय की बावना का ववकास
कयना।
9. सावथजननक सम्ऩन्त्त की यऺा कयना तथा टहॊसा को योकना।
10. व्मन्क्तगत तथा साभूटहक प्रमत्नों के द्वाया सबी ऺेत्रों भें श्रेष्ट्ठता प्राप्त कयने का प्रमास
कयना।
11. छ् से चौदह वषथ तक के फारकों को उनके भाता-वऩता मा सॊयऺक द्वाया अननवामथ मशऺा के
अवसय उऩरब्ध कयाना।
भौसरक कतशव्मों का भहत्त्ि
भौमरक कतथव्म हभाये रोकतन्त्र को सशक्त फनाने भें सहामक होंगे। इनभें कहा गमा है कक नागरयक
रोकतान्न्त्रक सॊस्थाओॊ के प्रनत आदय का बाव यखें। दे श की सम्प्रबुता , एकता एवॊ अखण्डता की यऺा कयें ।
सावथजननक सम्ऩन्त्त को अऩनी ननजी सम्ऩन्त्त सभझकय उसे नष्ट्ट होने से फचामें। इस प्रकाय का
दृन्ष्ट्टकोण रोकतन्त्र की सपरता के मरए अननवामथ है ।

इनके द्वाया ववघटनकायी शन्क्तमों ऩय योक रगेगी औय दे श भें एकता-अखण्डता की बावना का ववकास
होगा। बौनतक वातावयण दवू षत होने से फचेगा औय स्वास्थ्मवर्द्थक वातावयण का ननभाथण होगा। याष्ट्रीम
जीवन से अमोग्मता एवॊ अऺभता को दयू कयने भें सहामता प्राप्त होगी। दे श-प्रेभ की बावना फरवती होगी
औय दे श की गौयवशारी ऩयम्ऩयागत सॊस्कृनत को सयु क्षऺत यखने भें सहामता मभरेगी।

भौमरक कतथव्मों के ऩीछे कोई कानन


ू ी शन्क्त नहीॊ है । इनका स्वरूऩ नैनतक भाना जाता है औय मही ववशेष
भहत्त्व यखता है । याष्ट्र औय सभाज-ववयोधी कामथवाटहमाॉ कयने वारे व्मन्क्तमों को सॊववधान भें उन्ल्रखखत मे
कतथव्म उन्हें ऐसा न कयने के मरए नैनतक प्रेयणा दे ते हैं। वास्तव भें अर्धकायों से बी अर्धक भहत्त्व
कतथव्मों को टदमा जाना चाटहए, क्मोंकक कतथव्मऩारन से ही अर्धकाय प्राप्त हो सकते हैं।

भौसरक कतशव्मों की आरोचना


भौमरक कतथव्मों की ववमबन्न ववद्वानों ने कई प्रकाय से आरोचना की है तथा उनभें कमभमाॉ फतामी हैं जो
कक ननम्नमरखखत हैं –

(1) भूर कतथव्म आदशथवादी हैं , उन्हें रागू कयना कटठन है । इस कायण व्मावहारयक जीवन भें इनकी कोई
उऩमोर्गता नहीॊ है ; जैसे – याष्ट्रीम आन्दोरन के प्रेयक आदशों को ऩारन कयना अथवा वैऻाननक तथा
भानवतावादी दृन्ष्ट्टकोण अऩनाना।
(2) भूर कतथव्मों का उल्रॊघन ककमे जाने ऩय दण्ड की व्मवस्था नहीॊ की गमी है । ऐसी न्स्थनत भें मह कैसे
ववश्वास ककमा जा सकता है कक नागरयक इन कतथव्मों का ऩारन अवश्म ही कयें गे।
(3) कुछ भूर कतथव्मों की बाषा अस्ऩष्ट्ट है ; जैसे-भानववाद, सुधाय की बावना का ववकास औय सबी ऺेत्रों भें
उत्कृष्ट्टता के प्रमास आटद ऐसी फातें हैं न्जनकी व्माख्मा ववमबन्न व्मन्क्त अऩने अऩने दृन्ष्ट्टकोण के
अनुसाय भनभाने रूऩ से कय सकते हैं। साधायण नागरयक के मरए तो इनका सभझना कटठन है । जफ
इनका सभझना ही कटठन है तो इनका ऩारन कयना तो औय बी कटठन हो जाएगा।
ननष्ट्कषश – नन:सन्दे ह भौमरक कतथव्मों की आरोचना की गमी है , रेककन इससे इन कतथव्मों का भहत्त्व कभ
नहीॊ हो जाता। सॊववधान भें भौमरक कतथव्मों के अॊककत ककमे जाने से मे नागरयकों को सदै व माद । टदराते
यहें गे कक नागरयकों के अर्धकायों के साथ कतथव्म बी हैं। एक प्रमसर्द् ववद्वान ् का कथन है , ―अर्धकायों का
अन्स्तत्व केवर कतथव्मों के सॊसाय भें ही होता है । ‖
प्रश्न 4.
―अर्धकाय एवॊ कतथव्म एक-दस
ू ये के ऩूयक हैं। ‖ इस कथन की वववेचना कीन्जए।
मा
―अर्धकाय औय कतथव्म ऩयस्ऩय सम्फन्न्धत हैं। ‖ इस कथन को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय :
अर्धकाय औय कतथव्म एक प्राण औय दो शयीय के सभान हैं। एक के सभाप्त होते ही दस
ू या स्वमॊ ही
सभाप्त हो जाता है । एक व्मन्क्त का अर्धकाय दस
ू ये का कतथव्म फन जाता है । जहाॉ एक व्मन्क्त को
सयु क्षऺत जीवन का अर्धकाय होता है , वहीॊ दस
ू ये व्मन्क्त का कतथव्म फन जाता है कक वे उसके जीवन को
नष्ट्ट न कये ।
भहात्भा गाॊधी के अनुसाय, ―कतथव्म का ऩारन कीन्जए; अर्धकाय स्वत: ही आऩको मभर जाएॉगे। ‖

प्रो० एच० जे रॉस्की के अनुसाय, ―भेया अर्धकाय तुम्हाया कतथव्म है । अर्धकाय भें मह कतथव्म ननटहत है कक
भैं तुम्हाये अर्धकाय को स्वीकाय करूॊ। भुझे अऩने अर्धकायों का प्रमोग साभान्जक टहत भें ववृ र्द् कयने की
दृन्ष्ट्ट से कयना चाटहए, क्मोंकक याज्म भेये अर्धकायों को सुयक्षऺत यखता है ; अत: याज्म की सहामता कयना
भेया कतथव्म है ।‖

अर्धकायों औय कतथव्मों की ऩयू कता (सम्फन्ध) को ननम्नवत ् दशाथमा जा सकता है –

(1) सभाज-कल्माण तथा अचधकाय – अर्धकाय साभान्जक वस्तु है । इसका अन्स्तत्व तथा बोग सभाज भें ही
सम्बव है । इसमरए प्रत्मेक अर्धकाय के ऩीछे एक आधायबूत कतथव्म होता है कक भनुष्ट्म अऩने अर्धकायों
का बोग इस प्रकाय कये कक सभाज का अटहत न हो। सभाज व्मन्क्त को इसी ववश्वास के साथ अर्धकाय
प्रदान कयता है कक वह अऩने अर्धकायों का प्रमोग सावथजननक टहत भें कये गा।
(2) अचधकाय औय कतशव्म : जीिन के दो ऩऺ – अर्धकाय बौनतक है औय कतथव्म नैनतक। अर्धकाय बौनतक
वस्तुओॊ-बोजन, वस्त्र, बवन-की ऩूनतथ कयता है , ककन्तु कत्तथव्म से ऩयभानन्द की प्रान्प्त होती है । अत्
अर्धकाय एवॊ कतथव्म जीवन के दो ऩऺ हैं।
(3) कत्तशव्मऩारन तथा अचधकायों का उऩबोग – कतथव्मऩारन भें ही अर्धकायों के उऩबोग का यहस्म नछऩा हुआ है ;
जैसे कोई व्मन्क्त जीवन औय सम्ऩन्त्त के अर्धकाय का बोग ब्रफना फाधा के कयना चाहता है , तो इसके
मरए अननवामथ है कक वह अन्म व्मन्क्तमों के जीवन तथा सम्ऩन्त्त के सॊयऺण भें फाधक न फने। अर्धकायों
का सदऩ
ु मोग ही कतथव्म है ।
ू ये के ऩयू क-प्रो० श्रीननिास र्ास्त्री के अनुसाय, अर्धकाय औय कतथव्म दो मबन्न-
(4) अचधकाय औय कत्तशव्म : एक-दस
मबन्न दृन्ष्ट्टकोण से दे खे जाने के कायण एक ही वस्तु के दो नाभ हैं। ‖ ब्रफना कतथव्मों के अर्धकायों का
उऩमोग असम्बव है । एक के ब्रफना दस
ू ये का अन्स्तत्व नहीॊ है । दोनों की उत्ऩन्त्त एवॊ अन्त साथ-साथ होता
है ।
(5) अचधकाय तथा कत्तशव्म : एक ससतके के दो ऩहरू – व्मन्क्त के अर्धकायों को ननममभत फनाने के मरए सभाज
की स्वीकृनत आवश्मक है । मही स्वीकृनत दे ना सभाज का कतथव्म है औय सभाज के जो अर्धकाय होते हैं वे
व्मन्क्त के कतथव्म फन जाते हैं। उदाहयण के मरए, मटद भेया अर्धकाय है कक भैं स्वतन्त्रताऩूवक
थ अऩने
ववचायों को व्मक्त कय सकें तो इस अर्धकाय के कायण अन्म व्मन्क्तमों का बी मह कतथव्म है कक वे भेये
ववचायों की अमबव्मन्क्त भें फाधा न डारें। इसी प्रकाय मटद अन्म व्मन्क्तमों का मह अर्धकाय है कक वे
अऩनी इच्छानुसाय अऩने धभथ का ऩारन कयें , तो भेया मह कतथव्म हो जाता है कक भैं उनके ववश्वास भें
फाधा न डारें।
उऩमुक्
थ त वववेचन से स्ऩष्ट्ट है कक अर्धकायों औय कतथव्मों को एक-दस
ू ये से ऩथ
ृ क् कयके कल्ऩना ही नहीॊ की
जा सकती। अर्धकाय कतथव्म की तथा कतथव्म अर्धकाय की छामा भात्र होता है । एक के हट जाने से दोनों
का अन्स्तत्व नष्ट्ट हो जाता है ।

प्रश्न 5.
याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्वों से आऩ क्मा सभझते हैं ? सॊववधान भें वखणथत प्रभख
ु नीनत-ननदे शक तत्त्वों
का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
‗याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्व‘ वे मसर्द्ान्त हैं, जो याज्म की नीनत का ननदे शन कयते हैं। दस
ू ये शब्दों भें ,
याज्म न्जन मसर्द्ान्तों को अऩनी शासन-नीनत का आधाय फनाता है , वे ही याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्व मा
मसर्द्ान्त कहे जाते हैं। मे तत्त्व याज्म के प्रशासन के ऩथ-प्रदशथक हैं। याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्वों के
अन्तगथत उन आदे शों एवॊ ननदे शों का सभावेश है , जो बायतीम सॊववधान ने बायत-याज्म तथा ववमबन्न याज्मों
को अऩनी साभान्जक तथा आर्थथक नीनत का ननधाथयण कयने के मरए टदमे हैं। एर० जी० खेडक
े य के शब्दों
भें, ―याज्म के नीनत ननदे शक तत्त्व वे आदशथ हैं , सयकाय न्जनकी ऩनू तथ का प्रमत्न कये गी।‖
याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्वों के ऩीछे कोई कानूनी सत्ता नहीॊ है । मह याज्म की इच्छा ऩय ननबथय है कक
वह इनका ऩारन कये मा न कये , कपय बी इनका ऩारन कयना सयकाय का नैनतक कतथव्म है । मे नीनत-
ननदे शक तत्त्व याज्म के मरए नैनतकता के सूत्र हैं तथा दे श भें स्वस्थ एवॊ वास्तववक प्रजातन्त्र की स्थाऩना
की टदशा भें प्रेयणा दे ने वारे हैं।

प्रभख
ु नीनत-ननदे र्क तत्त्ि
बायत के सॊववधान भें याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्वों का उल्रेख ननम्नमरखखत रूऩ भें ककमा गमा है –

(i) आचथशक सयु ऺा सम्फन्धी तत्त्ि – आर्थथक सुयऺा सम्फन्धी नीनत-ननदे शक तत्त्वों के अन्तगथत याज्म इस प्रकाय
की व्मवस्था कये गा, न्जससे ननम्नमरखखत रक्ष्मों की ऩूनतथ हो सके –
1. प्रत्मेक स्त्री औय ऩुरुष को सभान रूऩ से जीववका के साधन उऩरब्ध हों।
2. धन तथा उत्ऩादन के साधन कुछ थोडे से व्मन्क्तमों के हाथों भें इकट्टे न हो जाएॉ।
3. प्रत्मेक स्त्री तथा ऩुरुष को सभान कामथ के मरए सभान वेतन प्राप्त कयने का अर्धकाय होगा। न्स्त्रमों
को प्रसूनत कार भें कुछ ववशेष सुववधाएॉ बी प्राप्त होंगी।
4. ऩुरुषों तथा न्स्त्रमों के स्वास्थ्म एवॊ शन्क्त तथा फच्चों की सुकुभाय अवस्था का दरु
ु ऩमोग न हो तथा
आवश्मकता से वववश होकय नागरयकों को ऐसा कामथ न कयना ऩडे , जो उनकी आमु-शन्क्त मा
अवस्था के प्रनतकूर हो।
5. याज्म अऩनी आर्थथक साभथ्मथ औय ववकास की सीभाओॊ के अन्तगथत काभ ऩाने के , मशऺा ऩाने के
औय फेयोजगायी, वर्द्
ृ ावस्था, फीभायी तथा अन्म कायणों से जीववका कभाने भें असभथथ व्मन्क्तमों को
आर्थथक सहामता ऩाने के अर्धकाय को प्राप्त कयाने का प्रबावी उऩफन्ध कये गा।
6. गाॉवों भें ननजी तथा सहकायी आधाय, ऩय सॊचामरत उद्मोग-धन्धों को प्रोत्साटहत ककमा जाएगा।
7. कृवष तथा उद्मोगों भें रगे श्रमभकों को उर्चत वेतन मभर सके तथा उनका जीवन-स्तय ऊॉचा हो।
8. कृवष तथा ऩशऩ
ु ारन व्मवस्था को आधनु नक एवॊ वैऻाननक ढॊ ग से सॊगटठत तथा ववकमसत ककमा जा
सके।
9. बौनतक साधनों को न्मामऩण
ू थ ववतयण हो।
10. औद्मोर्गक सॊस्थानों के प्रफन्ध भें कभथचारयमों की बी बागीदायी हो।
11. कानन
ू ी व्मवस्था का सॊचारन सभान अवसय तथा न्माम-प्रान्प्त भें सहामक है । सभाज के
कभजोय वगों के मरए नन:शुल्क कानूनी सहामता की व्मवस्था , न्जससे कोई व्मन्क्त न्माम ऩाने से
वॊर्चत न यहे ।
(ii) साभाक्जक व्मिस्था सम्फन्धी तत्ि – नागरयकों के साभान्जक उत्थान के मरए याज्म ननम्नमरखखत व्मवस्थाएॉ
कये गा –
1. सभाज के ववमबन्न वगों ववशेषकय अनुसूर्चत जानतमों, जनजानतमों तथा वऩछडी जानतमों की सुयऺा
एवॊ उत्थान के साथ-साथ साभान्जक अन्माम व इसी प्रकाय के शोषण से उनकी यऺा हो सके।
2. रोगों के जीवन-स्तय तथा स्वास्थ्म भें सुधाय हो सके। भानव-जीवन के कल्माण हे तु याज्म को
नशीरी वस्तुओॊ, भद्मऩान तथा अन्म भादक ऩदाथों ऩय योक रगानी चाटहए।
3. दे श के प्रत्मेक नागरयक को साऺय फनाने के मरए याज्म सबी फारकों को 14 वषथ की आमु ऩयू ी
कयने तक नन्शुल्क औय अननवामथ मशऺा दे ने के मरए प्रावधान कयने का प्रमास कये गा।
4. फमारीसवें सॊववधान सॊशोधन के अनस
ु ाय याज्म दे श के ऩमाथवयण के सॊयऺण तथा सॊवधथन का औय
वन तथा वन्म जीवन की यऺा का प्रमास कये गा।
5. याज्म ववमशष्ट्टतमा आम की असभानता को कभ कयने तथा ववमबन्न व्मवसामों भें रगे रोगों के
भध्म प्रनतष्ट्ठा, सुववधाओॊ की प्रान्प्त तथा अवसय की असभानताओॊ को सभाप्त कयने का प्रमास
कये गा।
(iii) साॊस्कृविक विकास सम्फन्धी तत्त्ि – साॊस्कृनतक ऺेत्र भें नागरयकों के ववकास हे तु याज्म ननम्नमरखखत
नीनतमों का ऩारन कयने का प्रमत्न कये गा
1. सॊववधान के अनुच्छे द 46 के अनुसाय दमरत वगथ का आर्थथक औय शैक्षऺक ववकास कयना याज्म का
कतथव्म होगा।
2. याष्ट्रीम भहत्त्व के स्भायकों, बवनों, स्थानों तथा वस्तुओॊ की दे खबार तथा सॊयऺण की व्मवस्था
याज्म अननवामथ रूऩ से कये गा।
(iv) न्माम सम्फन्धी तत्त्ि – न्मानमक ऺेत्र भें सध
ु ाय राने के मरए याज्म ननम्नमरखखत मसर्द्ान्तों का अनस
ु यण
कये गा –
1. याज्म दे श के सभस्त नागरयकों के मरए सभस्त याज्म-ऺेत्र भें एक सभान कानून तथा न्मामारम की
व्मवस्था कये गा।
2. दे श के सबी गाॉवों भें याज्म के द्वाया ग्राभ ऩॊचामतों की स्थाऩना की जाएगी तथा याज्म उन्हें ऐसे
अर्धकाय प्रदान कये गा, न्जससे दे श भें स्वामत्त शासन की स्थाऩना हो सके।
(v) अन्तयाशष्ट्रीम र्ाक्न्त तथा सयु ऺा सम्फन्धी तत्त्ि – इस सम्फन्ध भें याज्म ननम्नमरखखत मसर्द्ान्तों का ऩारन
कये गा –
1. अन्तयाथष्ट्रीम शान्न्त एवॊ सुयऺा के प्रमासों को प्रोत्साहन दे गा।
2. अन्तयाथष्ट्रीम वववादों को भध्मस्थता द्वाया ननऩटाने के कामथ को प्रोत्साहन दे गा।
3. ववमबन्न याष्ट्रों के फीच न्मामसॊगत एवॊ सम्भानऩण
ू थ सम्फन्धों को फनाने की टदशा भें कामथ कये गा।
4. अन्तयाथष्ट्रीम कानूनों तथा सन्न्धमों के प्रनत आदयबाव यखेगा।
ननष्ट्कषथ रूऩ भें कहा जा सकता है कक नीनत-ननदे शक तत्त्वों के भाध्मभ से बायत भें आर्थथक प्रजातन्त्र की
स्थाऩना हो सकेगी औय बायत एक कल्माणकायी याज्म फन सकेगा।

प्रश्न 6.
ननवायक ननयोध से क्मा तात्ऩमथ है ? ननवायक ननयोध का भहत्त्व मरखखए।
उत्तय :
ननिायक ननयोध
अनुच्छे द 22 के खण्ड 4 भें ननवायक ननयोध (Preventive Detention) का उल्रेख ककमा गमा है । ननवायक
ननयोध का तात्ऩमथ वास्तव भें ककसी प्रकाय का अऩयाध ककए जाने के ऩूवथ औय ब्रफना ककसी प्रकाय की
न्मानमक प्रकक्रमा के ही ककसी को नजयफन्द कयना है । ननवायक ननयोध के अन्तगथत ककसी व्मन्क्त को तीन
भाह तक नजयफन्द यखा जा सकता है । इससे अर्धक मह अवर्ध ऩयाभशथदात्री ऩरयषद् की मसपारयश ऩय
फढ़ाई जा सकती है । ननवायक ननयोध अर्धननमभ, 1947 ई० भें ऩारयत ककमा गमा था। सभम-सभम ऩय
इसकी अवर्ध फढ़ाई जाती यही औय वह 1969 ई० तक चरता यहा। 1971 ई० भें इसका स्थान ‗आन्तरयक
सुयऺा अर्धननमभ‘ (Maintenence of Internal Security Act, 1971) ने रे मरमा। इस कानून को फोरचार
की बाषा भें ‗भीसा‘ (MISA) के नाभ से जाना जाता है । इसके ऩश्चात ् 1981 ई० भें इसके स्थान ऩय याष्ट्रीम
सुयऺा कानून‘ (National Security Act) ऩारयत ककमा गमा। तत्ऩश्चात ् टाडा कानून ‘ (Terrorist and
Disruptive Activities Act) रागू ककमा गमा। वतथभान भें मह बी सभाप्त कय टदमा गमा है औय इसके
स्थान ऩय ऩोटा (Prevention of Terrorist Act) का ननभाथण ककमा गमा है । अफ इसे बी सॊशोर्धत कयने की
प्रकक्रमा चर यही है ।

ननिायक ननयोध कानन


ू की आरोचना औय उसका भहत्त्ि
स्वतन्त्रता के अर्धकाय ऩय रगे प्रनतफन्धों को दे खकय अनेक ववद्वानों ने इसकी आरोचना की है । ननवायक
ननयोध कानन
ू के ववषम भें टे कचन्द फख्शी ने कहा था कक मह दभन तथा ननयॊ कुशता का ऩत्र है । इसी
प्रकाय सोभनाथ राटहडी ने इसकी आरोचना कयते हुए कहा था , ―भूर अर्धकायों का ननभाथण ऩुमरस के
मसऩाही के दृन्ष्ट्टकोण से ककमा गमा है , स्वतन्त्रता के मरए सॊघषथ कयने वारे याष्ट्र के दृन्ष्ट्टकोण से नहीॊ। ‖
ऩयन्तु ननवायक ननयोध अथवा भीसा की आरोचना के फावजूद बी इस फात से इनकाय नहीॊ ककमा जा
सकता कक वतथभान ऩरयन्स्थनतमों भें मह व्मवस्था कुछ सीभा तक आवश्मक औय उऩमोगी है । न्मामभूनतथ
ऩतॊजमर शास्त्री के अनुसाय, ―इस बमावह उऩकयण की व्मवस्था ……………. उन सभाज-ववयोधी औय
ववध्वॊसकायी तत्त्वों के ववरुर्द् की गई है , न्जनसे नवववकमसत प्रजातन्त्र के याष्ट्रीम टहतों को खतया है । ‖
वस्तुत: ननवायक ननयोध की व्मवस्था एक ‗बयी हुई फन्दक
ू ‘ के सभान है औय उसका प्रमोग फहुत सावधानी
से तथा वववेकऩूणथ ही ककमा जाना चाटहए।

प्रश्न 7.
भानवार्धकाय आमोग के ववषम भें आऩ क्मा जानते हैं ? इसके क्मा कामथ हैं ?
उत्तय :
ककसी बी सॊववधान द्वाया प्रदान ककए गए अर्धकायों की वास्तववक ऩहचान तफ होती है जफ उन्हें रागू
ककमा जाता है । सभाज के गयीफ, अमशक्षऺत औय कभजोय वगथ के रोगों को अऩने अर्धकायों का प्रमोग कयने
की स्वतन्त्रता होनी चाटहए। ऩीऩल्स मूननमन पॉय मसववर मरफटीज (ऩी०मू०सी०एर०) मा ऩीऩल्स मूननमन
पॉय डेभोक्रेटटक याइट्स (ऩी०म०
ू डी०आय०) जैसी सॊस्थाएॉ अर्धकायों के हनन ऩय दृन्ष्ट्ट यखती हैं। इस
ऩरयप्रेक्ष्म भें वषथ 2000 भें सयकाय ने याष्ट्रीम भानवार्धकाय आमोग का गठन ककमा।
याष्ट्रीम भानवार्धकाय आमोग भें उच्चतभ न्मामारम का एक ऩूवथ न्मामाधीश , ककसी उच्च न्मामारम का
एक ऩूवथ भुख्म न्मामाधीश तथा भानवार्धकायों के सम्फन्ध भें ऻान मा व्मावहारयक अनुबव यखने वारे दो
औय सदस्म होते हैं।

भानवार्धकायों के उल्रॊघन की मशकामतें मभरने ऩय याष्ट्रीम भानवार्धकाय आमोग स्वमॊ अऩनी ऩहर ऩय मा
ककसी ऩीडडत व्मन्क्त की मार्चका ऩय जाॉच कय सकता है । जेरों भें फन्न्दमों की न्स्थनत का अध्ममन कयने
जा सकता है , भानवार्धकाय के ऺेत्र भें शोध कय सकता है मा शोध को प्रोत्साटहत कय सकता है । आमोग
को प्रनतवषथ हजायों मशकामतें प्राप्त होती हैं। इनभें से अर्धकतय टहयासत भें भत्ृ मु , टहयासत के दौयान
फरात्काय, रोगों के गामफ होने , ऩुमरस की ज्मादनतमों, कामथवाही न ककए जाने , भटहराओॊ के प्रनत दव्ु मथवहाय
आटद से सम्फन्न्धत होती हैं। भानवार्धकाय आमोग का सवाथर्धक प्रबावी हस्तऺेऩ ऩॊजाफ भें मव
ु कों के
गामफ होने तथा गुजयात-दॊ गों के भाभरे भें जाॉच के रूऩ भें यहा। आमोग को स्वमॊ भुकदभा सुनने का
अर्धकाय नहीॊ है । मह सयकाय मा न्मामारम को अऩनी जाॉच के आधाय ऩय भक
ु दभे चराने की मसपारयश
कय सकता है ।

प्रश्न 8.
याज्म के नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों के कक्रमान्वमन के ववषम भें आऩ क्मा जानते हैं। इन्हें वादमोग्म क्मों
नहीॊ फनामा गमा?
उत्तय :
बायतीम रोकतन्त्र की सपरता नीनत-ननदे शक तत्त्वों के रागू कयने भें ननटहत है । बायत सयकाय ने वऩछरे
57 वषों भें ननदे शक तत्त्वों को प्रबावी फनाने के मरए अनेक कानन
ू व मोजनाएॉ रागू की हैं। आर्थथक
ववकास के मरए ऩॊचवषीम मोजनाओॊ को अऩनामा गमा ताकक ननदे शक तत्त्वों भें ननटहत उद्देश्मों को प्राप्त
ककमा जा सके। गयीफी औय आर्थथक असभानता को दयू कयने के मरए 20-सूत्री कामथक्रभ रागू ककमा गमा।
ग्राभीण अॊचरों भें मशऺा व स्वास्थ्म का प्रसाय ककमा गमा है । ववश्व शान्न्त व अन्तयाथष्ट्रीम सहमोग को
फढ़ावा टदमा गमा है । इन सभस्त नीनतमों का उद्देश्म ननदे शक तत्त्वों द्वाया घोवषत रक्ष्म रोक-कल्माणकायी
याज्म की प्रान्प्त है ।
रेककन इन नीनतमों से ककस सीभा तक नीनत-ननदे शक तत्त्व प्राप्त हो ऩाए हैं ? मह तथ्म केवर एक ही
ओय सॊकेत कयता है कक अबी मथाथथ भें नीनत-ननदे शक तत्त्वों को प्राप्त नहीॊ ककमा जा सका है । आर्थथक
ऺेत्र भें ऩॊचवषीम मोजनाओॊ को अऩनाने के फावजूद बी बौनतक साधनों ऩय केन्द्रीकयण कभ नहीॊ हुआ। है ।
अभीय अर्धक अभीय हुआ है तथा गयीफ औय अर्धक गयीफ नन्शुल्क मशऺा , सभान आचाय सॊटहता के
ननदे शक तत्त्व भग
ृ भयीर्चका फन चुके हैं। भुफ्त कानूनी सहामता के ननदे शक तत्त्व के फावजूद न्माम-
प्रणारी फहुत भहॉगी है । कुटीय उद्मोग-धन्धों को फडे औद्मोर्गक कायखानों ने वैऻाननक प्रगनत के नाभ ऩय
ननगर मरमा है । भद्मननषेध को याजस्व-प्रान्प्त हे तु फमर का फकया फना टदमा गमा है ।

याज्म के नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों को न्माममोग्म मा वादमोग्म क्मों नहीॊ ऩामा गमा – प्रश्न मह उत्ऩन्न
होता है कक जफ याज्म-नीनत के ननदे शक मसर्द्ान्त बायतीम नागरयकों के जीवन के ववकास तथा रोकतन्त्र
की सपरता के मरए इतने भहत्त्वऩण
ू थ हैं तो इन्हें बी भौमरक अर्धकायों की तयह वादमोग्म क्मों नहीॊ
फनामा गमा? ऐसा होने ऩय कोई बी सयकाय इन्हें अनदे खा नहीॊ कय सकती थी। ऩयन्तु ऐसा कयना सम्बव
नहीॊ था क्मोंकक इन्हें रागू कयने भें धन की फडी आवश्मकता थी औय दे श जफ स्वतन्त्र हुआ तो आर्थथक
दशा अच्छी नहीॊ थी। इसमरए मह फात सयकाय ऩय ही छोड दी गई कक जैसे-जैसे सयकाय के ऩास धन तथा
दस
ू ये साधन उऩरब्ध होते जाएॉ , वह इन्हें थोडा-थोडा कयके रागू कयती जाए। भौमरक अर्धकायों की तयह
इन ननदे शक मसर्द्ान्तों को ऩूणथ रूऩ से उस सभम रागू कयना व्मावहारयक कदभ नहीॊ था।

प्रश्न 1.
बायतीम सॊववधान कफ रागू हुआ ?
मा
बायत भें गणयाज्म की स्थाऩना कफ हुई?
(क) 26 जनवयी, 1949 ई० को
(ख) 26 जनवयी, 1950 ई० को
(ग) 30 अक्टूफय, 1950 ई० को
(घ) 20 नवम्फय, 1950 ई० को
उत्तय :
(ख) 26 जनियी, 1950 ई० को।
प्रश्न 2.
बायतीम सॊववधान का स्वरूऩ है –
(क) सॊघात्भक
(ख) एकात्भक
(ग) अर्द्थ-सॊघात्भक
(घ) एकात्भक व सॊघात्भक दोनों
उत्तय :
(घ) एकात्भक ि सॊघात्भक दोनों।
प्रश्न 3.
बायतीम सॊववधान का ननभाथण ककसने ककमा?
(क) सॊववधान सबा
(ख) डॉ० फी० आय० अम्फेडकय
(ग) सी० याजगोऩाराचायी
(घ) ऩॊ० जवाहयरार नेहरू
उत्तय :
(क) सॊविधान सबा।
प्रश्न 4.
सॊववधान सबा की प्रथभ फैठक कफ आमोन्जत की गई?
(क) 9 टदसम्फय, 1946 को
(ख) 7 टदसम्फय, 1947 को
(ग) 14 अगस्त, 1947 को।
(घ) 15 अगस्त, 1947 को
उत्तय :
(क) 9 ददसम्फय, 1946 को।
प्रश्न 5.
बायत ववबाजन के ऩरयणाभस्वरूऩ सॊववधान सबा के सदस्मों की सॊख्मा घटकय ककतनी यह गई ?
(क) 260
(ख) 271
(ग) 299
(घ) 265
उत्तय :
(ग) 299.
प्रश्न 6.
सॊववधान सबा भें अनुसूर्चत वगथ के ककतने सदस्म थे ?
(क) 34
(ख) 36
(ग) 26
(घ) 42
उत्तय :
(ग) 26.
प्रश्न 7.
सॊववधान सबा भें ककस याजनीनतक दर का वचथस्व था?
(क) भुन्स्रभ रीग
(ख) टहन्द ू भहासबा
(ग) काॊग्रेस
(घ) जनसॊघ
उत्तय :
(ग) काॊग्रेस।
प्रश्न 8.
सॊववधान के ववषमों ऩय ववचाय-ववभशथ हे तु ककतनी समभनतमों का गठन ककमा गमा?
(क) 7
(ख) 6
(ग) 8
(घ) 10
उत्तय :
(ग) 8.
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सॊववधान की एक सयर ऩरयबाषा मरखखए।
उत्तय :
सॊववधान कुछ ऐसे फुननमादी मसर्द्ान्तों का सभूह है न्जसके आधाय ऩय याज्म का ननभाथण ककमा जाता है
औय उसका शासन चरामा जाता है ।
प्रश्न 2.
बायतीम सॊववधान का ननभाथण ककसके द्वाया हुआ ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान का ननभाथण सॊववधान सबा के द्वाया ककमा गमा।
प्रश्न 3.
बायतीम सॊववधान सबा का गठन कफ हुआ ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान सबा का गठन 1946 ई० भें ककमा गमा था।
प्रश्न 4.
सॊववधान सबा के अध्मऺ का नाभ मरखखए।
उत्तय :
डॉ० याजेन्द्र प्रसाद सॊववधान सबा के अध्मऺ थे।
प्रश्न 5.
प्रारूऩ समभनत के अध्मऺ कौन थे ?
उत्तय :
प्रारूऩ समभनत के अध्मऺ डॉ० बीभयाव अम्फेडकय थे।
प्रश्न 6.
बायत का सॊववधान ककतने सभम भें तैमाय हुआ ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान 2 वषथ, 11 भाह औय 18 टदन की अवर्ध भें फनकय तैमाय हुआ।
प्रश्न 7.
बायत के सॊववधान भें ककतने अनुच्छे द, अनुसूर्चमाॉ औय ऩरयमशष्ट्ट हैं ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें 395 अनच्
ु छे द, 12 अनस
ु र्ू चमाॉ औय 9 ऩरयमशष्ट्ट हैं।
प्रश्न 8.
बायतीम सॊववधान के दो प्रभुख स्रोत क्मा हैं ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान के दो प्रभुख स्रोत हैं –
1. अभेरयका का सॊववधान तथा
2. ऑस्रे मरमा का सॊववधान।
प्रश्न 9.
बायतीम सॊववधान की दो प्रभुख ववशेषताओॊ का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान की दो प्रभुख ववशेषताएॉ ननम्नमरखखत हैं –
1. बायतीम सॊववधान ववश्व का सफसे ववस्तत
ृ तथा मरखखत सॊववधान है
2. सॊववधान भें स्वतन्त्र न्मामऩामरका का प्रावधान ककमा गमा है ।
प्रश्न 10.
बायतीम सॊववधान के दो सॊघात्भक तत्त्व मरखखए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान के दो सॊघात्भक तत्त्व ननम्नमरखखत हैं –
1. सॊववधान को सवोच्चता प्रदान की गमी है ।
2. केन्द्र तथा याज्म सयकायों के फीच अर्धकायों तथा कामों को स्ऩष्ट्ट ववबाजन ककमा गमा है ।
प्रश्न 11.
बायतीम सॊववधान के दो एकात्भक तत्त्व मरखखए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान के दो एकात्भक तत्त्व ननम्नमरखखत हैं –
1. सॊववधान भें इकहयी नागरयकता का प्रावधान ककमा गमा है ।
2. सॊववधान द्वाया एक ही न्माम-व्मवस्था की स्थाऩना की गमी है ।
प्रश्न 12.
सॊववधान सबा का गठन ककस मभशन के अनुसाय ककमा गमा था ?
उत्तय :
सॊववधान सबा का गठन सन ् 1946 की कैब्रफनेट मभशन मोजना के अनुसाय ककमा गमा था।
प्रश्न 13.
सॊववधान सबा के मरए सदस्मों की सॊख्मा ककतनी ननधाथरयत की गई थी ?
उत्तय :
न्जस सभम सॊववधान सबा के गठन का कामथ हुआ उस सभम तक बायत का ववबाजन नहीॊ हुआ था ; अत्
अववबान्जत बायत के मरए सॊववधान सबा के सदस्मों की सॊख्मा 385 ननधाथरयत की गई थी।
प्रश्न 14.
अववबान्जत बायत भें सॊववधान सबा के मरए सदस्मों की सॊख्मा का चमन ककतना-ककतना ननधाथरयत ककमा
गमा था?
उत्तय :
अववबान्जत बायत भें सॊववधान सबा के सदस्मों के चमन के मरए प्रान्तों को 292 सदस्मों का चुनाव कयने
का ननदे श टदमा गमा था औय दे सी रयमासतों को 93 स्थान आवॊटटत ककए गए थे।
प्रश्न 15.
बायत के ववबाजन के ऩश्चात ् सॊववधान सबा के सदस्मों की सॊख्मा घटकय ककतनी यह गई ?
उत्तय :
बायत के ववबाजन के ऩरयणाभस्वरूऩ सॊववधान सबा के वास्तववक सदस्मों की सॊख्मा घटकय 299 यह गई।
प्रश्न 16.
सॊववधान सबा ने औऩचारयक रूऩ से बायतीम सॊववधान की यचना ककस अवर्ध भें की ?
उत्तय :
सॊववधान सबा द्वाया बायतीम सॊववधान औऩचारयक रूऩ से टदसम्फय, 1946 औय नवम्फय, 1949 के भध्म
फनामा गमा।
प्रश्न 17.
सॊववधान सबा की ऩहरी फैठक ककस नतर्थ को हुई थी?
उत्तय :
सॊववधान सबा की ऩहरी फैठक 9 टदसम्फय, 1946 को हुई थी। इस फैठक का आमोजन अववबान्जत बायत भें
ककमा गमा था।
प्रश्न 18.
ववबान्जत बायत भें सॊववधान सबा की फैठक ककस नतर्थ को हुई?
उत्तय :
14 अगस्त, 1947 को ववबान्जत बायत भें सॊववधान सबा की फैठक हुई।
प्रश्न 19.
सॊववधान सबा का चुनाव ककस प्रकाय हुआ?
उत्तय :
सन ् 1935 भें स्थावऩत प्रान्तीम ववधानसबाओॊ के सदस्मों द्वाया अप्रत्मऺ ववर्ध से सॊववधान सबा के
सदस्मों का चन
ु ाव हुआ।
प्रश्न 20.
26 नवम्फय, 1949 को सॊववधान सबा की आमोन्जत फैठक भें ककतने सदस्म थे ?
उत्तय :
26 नवम्फय, 1949 को आमोन्जत फैठक भें कुर 284 सदस्म उऩन्स्थत थे। इन सदस्मों ने ही अन्न्तभ रूऩ से
ऩारयत सॊववधान ऩय अऩने हस्ताऺय ककए।
प्रश्न 21.
सॊववधान सबा भें अनुसूर्चत वगों के ककतने सदस्म थे ?
उत्तय :
सॊववधान सबा भें अनुसूर्चत वगों के 26 सदस्म थे।
प्रश्न 22.
सॊववधान सबा ने ककतनी अवर्ध औय ककतनी फैठकों भें सॊववधान ऩारयत ककमा ?
उत्तय :
दो वषथ औय ग्मायह भाह की अवर्ध भें आमोन्जत 166 फैठकों भें सॊववधान सबा ने बायतीम सॊववधान को
अन्न्तभ रूऩ टदमा।
प्रश्न 23.
सॊववधान सबा ने सॊववधान की यचना के मरए ककतनी समभनतमों का गठन ककमा था ?
उत्तय :
सॊववधान सबा ने बायतीम सॊववधान की यचना के मरए आठ समभनतमों का गठन ककमा था।
प्रश्न 24.
सॊववधान का उद्देश्म प्रस्ताव ककस नेता द्वाया ककस सन भें प्रस्तुत ककमा गमा था ?
उत्तय :
सॊववधान का उद्देश्म प्रस्ताव सन ् 1946 भें ऩॊ० जवाहयरार नेहरू द्वाया प्रस्तुत ककमा गमा था।
प्रश्न 25.
ककस दे श का सॊववधान मरखखत दस्तावेज के रूऩ भें नहीॊ है ?
उत्तय :
इॊग्रैण्ड के ऩास ऐसा कोई मरखखत दस्तावेज नहीॊ है न्जसे सॊववधान कही जा सके। उसके ऩास दस्तावेजों
औय ननणथमों की एक सच
ू ी है न्जसे साभटू हक रूऩ से सॊववधान कहा जाता है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सॊववधान सबा की यचना ब्रिटटश भॊब्रत्रभण्डर की एक समभनत कैब्रफनेट मभशन के प्रस्तावों के अनुरूऩ हुई
थी। मे प्रस्ताव क्मा थे ? सॊऺेऩ भें वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
कैब्रफनेट मभशन के प्रस्ताव ननम्नाॊककत थे –
1. प्रत्मेक प्रान्त, दे शी रयमासत मा रयमासतों के सभूह को उनकी जनसॊख्मा के अनुऩात भें सीटें दी गई
थीॊ। साभान्म तौय ऩय दस राख की जनसॊख्मा ऩय एक सीट का अनऩ
ु ात यखा गमा था। इस
व्मवस्था के अन्तगथत ब्रिटटश सयकाय के प्रत्मऺ शासन वारे प्रान्तों को 292 सदस्म तथा दे शी
रयमासतों के न्मूनतभ 93 सीटें आवॊटटत की गई थीॊ।
2. प्रत्मेक प्रान्त की सीटों को दो प्रभुख सभुदामों-भुसरभान औय साभान्म भें उनकी जनसॊख्मा के
अनुऩात भें फाॉट टदमा गमा था। ऩॊजाफ भें मह फॉटवाया मसख, भुसरभान औय साभान्म के रूऩ भें
ककमा गमा था।
3. प्रान्तीम ववधान सभस्माओॊ भें प्रत्मेक सभुदाम के सदस्मों ने अऩने प्रनतननर्धमों को चुना औय इसके
मरए उन्होंने सभानुऩानतक प्रनतननर्धत्व औय एकर सॊक्रभण भत ऩर्द्नत का प्रमोग ककमा।
4. दे शी रयमासतों के प्रनतननर्धत्व के चुनाव का तयीका उनके ऩयाभशथ से तम ककमा गमा।
प्रश्न 2.
‗सॊववधान की प्रस्तावना‘ का क्मा अथथ है ? इसका भहत्त्व मरखखए।
उत्तय :
सॊववधान की प्रस्तावना ककसी ऩुस्तक की बूमभका की तयह है । मह सॊववधान की बावना को ऩरयरक्षऺत
कयती है । मह उस खखडकी की बॉनत है न्जसभें झाॉककय सॊववधान ननभाथताओॊ के भन्तव्म को ऩढ़ा तथा
सभझा जा सकता है । दस
ू ये शब्दों भें , प्रस्तावना भें सॊववधान के आधायबूत आदशों तथा मसर्द्ान्तों की चचाथ
की गमी है । मह उल्रेखनीम है कक प्रस्तावना सॊववधान का आयन्म्बक अॊग होते हुए बी कानूनी तौय ऩय
उसका बाग नहीॊ होती। मद्मवऩ प्रस्तावना की अवहे रना होती है तो उसकी यऺा के मरए हभ अदारत की
शयण भें नहीॊ जा सकते , तथावऩ मह फहुत भहत्त्वऩण
ू थ है , क्मोंकक –
1. मह सॊकेत कयती है कक दे श की सयकाय कैसे चरामी जाए।
2. इसभें सयकाय के सम्भख
ु नमे सभाज के ननभाथण हे तु उद्देश्मों को स्ऩष्ट्ट ककमा गमा है ।
3. इससे मह ऩता चरता है कक सॊववधान दे श भें ककस प्रकाय की शासन-व्मवस्था स्थावऩत कयना
चाहता है ।
प्रश्न 3.
सम्ऩण
ू थ प्रबत्ु वसम्ऩन्न सॊववधान से क्मा तात्ऩमथ है ?
उत्तय :
सम्ऩण
ू थ प्रबत्ु वसम्ऩन्न सॊववधान से अमबप्राम मह है कक बायत एक सम्ऩण
ू थ प्रबत्ु वसम्ऩन्न याज्म है , अथाथत ्
बायत अऩने आन्तरयक तथा फाह्म भाभरों भें स्वतन्त्र है । ककसी फाह्म सत्ता को उस ऩय कोई ननमन्त्रण
नहीॊ है तथा बायत याज्म की सबी शन्क्तमाॉ सॊघ के ऩास हैं। अन्तयाथष्ट्रीम ऺेत्र भें बायत अऩनी इच्छानस
ु ाय
आचयण कयने के मरए स्वतन्त्र है तथा वह ककसी बी ववदे शी सभझौते मा सन्न्ध को भानने के मरए फाध्म
नहीॊ है ।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
बायतीम सॊववधान के प्रभुख स्रोतों का वणथन कीन्जए।
मा
बायतीम सॊववधान के ननभाथण भें ववमबन्न स्रोतों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान का ननभाथण फहुत सोच-सभझकय औय ववचाय-ववभशथ के उऩयान्त ककमा गमा। बायतीम
सॊववधान भें ववश्व के सॊववधान भें ननटहत अनेक भहत्त्वऩण
ू थ प्रावधानों को सन्म्भमरत ककमा गमा है ।
बायतीम सॊववधान के अर्धकाॊश (रगबग 200) प्रावधान 1935 ई० के अर्धननमभ से मरमे गमे हैं। इसमरए
इसको ‗1935 ई० के अर्धननमभ की काफथन कॉऩी‘ बी कहा जाता है । बायतीम सॊववधान भें सॊसदात्भक
प्रणारी को ब्रिटे न से ; सॊववधान की प्रस्तावना, नागरयकों के भूर अर्धकाय, सवोच्च न्मामारम की स्थाऩना,
न्मानमक ऩन
ु यावरोकन आटद अभेरयका के सॊववधान से ; याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्व, याष्ट्रऩनत का ननवाथचक
भण्डर द्वाया ननवाथचन, याज्मसबा भें मोग्मतभ व्मन्क्तमों को याष्ट्रऩनत द्वाया भनोनीत कयना आटद
आमयरैण्ड के सॊववधान से ; सॊघात्भक शासन-व्मवस्था को कनाडा के सॊववधान से ; सॊववधान की प्रस्तावना की
बाषा, सभवती सूची तथा केन्द्र व याज्मों के भध्म उत्ऩन्न होने वारे वववादों को तम कयने की प्रणारी
ऑस्रे मरमा के सॊववधान से ; सॊववधान भें सॊशोधन की प्रणारी दक्षऺणी अिीका के सॊववधान से ; याष्ट्रऩनत को
प्रदत्त आऩातकारीन शन्क्तमों के कुछ प्रावधान जभथनी के सॊववधान से ; कानून द्वाया स्थावऩत प्रकक्रमा को
जाऩान के सॊववधान से तथा सॊववधान भें ननटहत भौमरक कतथव्मों को रूस के सॊववधान से मरमा गमा है ।
प्रश्न 2.
बायतीम सॊववधान भें सॊशोधन ककस प्रकाय होता है ?
उत्तय :
बायत के सॊववधान ननभाथताओॊ ने ऐसा सॊववधान फनामा है , जो दे श की फदरती हुई ऩरयन्स्थनतमों के अनस
ु ाय
ऩरयवनतथत ककमा जा सके। बायतीम सॊववधान के अनुच्छे द 368 भें सॊशोधन की प्रकक्रमा का उल्रेख ककमा
गमा है । सॊववधान के अनुच्छे दों को सॊशोधन के मरए ननम्नमरखखत तीन बागों भें ववबान्जत ककमा जा
सकता है –
(1) सॊसद के साधायण फहुभत द्िाया – सॊववधान के 22 अनुच्छे द ऐसे हैं न्जनका सॊशोधन सॊसद उसी प्रकक्रमा से
कय सकती है , न्जससे वह साधायण कानन
ू को ऩारयत कयती है । इस प्रकाय के कुछ अनच्
ु छे द हैं-नागरयक से
सम्फन्न्धत प्रावधान, नमे याज्मों की यचना तथा वतथभान याज्मों का ऩुनगथठन, याज्मों के द्ववतीम सदनों का
ननभाथण तथा उन्भूरन।
(2) सॊसद के विसर्ष्ट्ि फहुभत द्िाया – सॊववधान भें सॊशोधन के मरए ववधेमक सॊसद के ककसी बी सदन भें ऩहरे
प्रस्तुत ककमा जा सकता है औय जफ वह ववधेमक प्रत्मेक सदन के कुर सदस्मों के फहुभत से तथा सदन
भें उऩन्स्थत तथा भत दे ने वारे सदस्मों के दो-नतहाई फहुभत से ऩारयत हो जाता है तो ववधेमक याष्ट्रऩनत
के सभऺ प्रस्तुत ककमा जाता है औय याष्ट्रऩनत उस ऩय स्वीकृनत दे दे ता है ।
(3) सॊसद के विसर्ष्ट्ि फहुभत औय विधानभण्डरों की स्िीकृनत से – सॊववधान के कुछ अनच्
ु छे द ऐसे हैं न्जनभें
सॊशोधन के मरए सॊसद के ववमशष्ट्ट फहुभत तथा उऩन्स्थत औय भत दे ने वारे सदस्मों के दो-नतहाई फहुभत
से ववधेमक ऩारयत हो जाना चाटहए तथा याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत के मरए जाने से ऩव
ू थ उसे याज्मों के
ववधानभण्डरों भें से कभ-से-कभ आधे ववधानभण्डरों का सभथथन प्राप्त होना आवश्मक है । मे अनुच्छे द हैं-
याष्ट्रऩनत का चन
ु ाव, केन्द्रीम कामथऩामरका की । शन्क्तमों की सीभा, याज्म की कामथऩामरका की शन्क्तमाॉ ,
केन्द्र द्वाया शामसत ऺेत्रों भें उच्च न्मामारम की व्मवस्था औय याज्मों के उच्च न्मामारम आटद।
उऩमक्
ुथ त सॊशोधन प्रकक्रमा से मह स्ऩष्ट्ट है कक बायतीम सॊववधान भें रचीराऩन तथा कठोयता दोनों तत्त्वों
का अद्भत
ु सन्म्भश्रण है । मही कायण है कक 26 जनवयी, 1950 ई० को सॊववधान रागू ककमे जाने के सभम से
रेकय टदसम्फय, 2005 ई० तक सॊववधान भें 93 सॊशोधन हो चुके हैं।

प्रश्न 3.
―बायत का सॊववधान एक सन्तुमरत दस्तावेज है । ‖ इस कथन को सॊऺेऩ भें सभझाइए।
उत्तय :
बायत का सॊववधान एक सन्तुमरत दस्तावेज है । सयकाय के तीन भुख्म अॊग ववधानमका कामथऩामरका तथा
न्मामऩामरका सॊसद, भॊब्रत्रगण तथा सवोच्च न्मामारम औय अन्म न्मामारमों को सौंऩे गए हैं। साथ ही
केंद्रीम भॊब्रत्रऩरयषद् साभूटहक रूऩ से रोकसबा के प्रनत उत्तयदामी है । याष्ट्रऩनत साभान्मत: प्रधानभॊत्री की
सराह ऩय रोकसबा बॊग कयते हैं। बायत भें न्मामऩामरका को ववधानमता औय कामथऩामरका के ननमॊत्रण से
ऩूयी तयह भुक्त यखा गमा है । इस प्रकाय सयकाय का कोई बी अॊग मह दावा नहीॊ कय सकता कक उसके
ऩास सत्ता का असीककत अर्धकाय है ।
सॊववधान ने ववमशष्ट्ट भाभरों के सभाधान के मरए कुछ स्वतॊत्र प्रार्धकयणों की स्थाऩना बी की है । बायत
का ननमॊत्रक औय भहारेखा ऩयीऺक एक स्वतॊत्र सॊवैधाननक प्रार्धकयण है । इस प्रार्धकयण का भुख्म कामथ
केंद्र व याज्मों की आम औय व्मम की जाॉच कयना है । ननवाथचन आमोग की स्थाऩना बायत भें स्वतॊत्र औय
ननष्ट्ऩऺ चुनाव कयाने के उद्देश्म से की गई है । सॊववधान भें मह प्रावधान ककमा गमा है कक चुनाव आमोग
एक स्वतॊत्र ननकाम के रूऩ भें कामथ कये । सॊघ रोक सेवा आमोग अखखर बायतीम सेभें बती के मरए
ऩयीऺाएॉ आमोन्जत कयता है । सॊववधान द्वाया याज्मों भें ऩथ
ृ क रूऩ से रोक सेवा आमोगों की स्थाऩना की
गई है ।
उऩमुक्
थ त सॊवैधाननक प्रार्धकयण मह सुननन्श्चत कयते हैं कक शासन के ववधामी औय कामथकायी अग ऩूयी तयह
ननमॊत्रण भें यहे ताकक शन्क्त सॊतर
ु न फना यहे । इस प्रकाय सशासन की कोई एक शाखा सॊववधान के
रोकतान्न्त्रक स्वरूऩ को नष्ट्ट नहीॊ कय सकती।

दीघश उत्तयीम प्रश्न


प्रश्न 1.
सॊववधान से आऩ क्मा सभझते हैं ? ककसी दे श के मरए इसकी आवश्मकता औय भहत्त्व का वणथन कीन्जए।
मा
सॊववधान ककसे कहते हैं ? ककसी दे श के मरए मह क्मों भहत्त्वऩूणथ है ?
उत्तय :
सॊविधान शब्द अॊग्रेजी के ‗constitution‘ शब्द का ही टहन्दी रूऩ है । ‗कॉन्स्टीट्मूशन‘ का शान्ब्दक अथथ है -
‗गठन‘। दै ननक फोरचार भें ‗गठन‘ शब्द का अथथ भनुष्ट्म के शायीरयक ढाॉचे के गठन से मरमा जाता है ,
ककन्तु नागरयकशास्त्र भें कॉन्स्टीट्मूशन‘ शब्द का अथथ ‗याज्म के शायीरयक ढाॉचे के गठन‘ से मरमा जाता है ।
अन्म शब्दों भें , याज्मों की शासन-व्मवस्था के ढाॉचे का ननधाथयण कयने तथा उसके सभर्ु चत सॊचारन के मरए
प्रत्मेक याज्म भें कुछ मरखखत मा अमरखखत ननमभ होते हैं , न्जनके अनुसाय ही सयकाय दे श भें शासन का
कामथ चराती है । इन ननमभों को ही कानन
ू ी बाषा भें याज्म का सॊववधान ( Constitution) कहा जाता है ।

ऩयन्तु महाॉ मह फात ध्मान दे ने की है कक याज्म द्वाया फनामे गमे सबी ननमभों व कानन
ू ों के सभह
ू को
सॊववधान नहीॊ कहा जाता, वयन ् सॊववधान के अन्तगथत केवर वे ननमभ व कानून सन्म्भमरत होते हैं। न्जनके
द्वाया शासन के सॊगठन एवॊ उसके ढाॉचे का ननधाथयण ककमा जाता है औय शासन के ववमबन्न अॊगों के
ऩायस्ऩरयक सम्फन्धों का, उनके अर्धकायों व कतथव्मों का तथा शासन वे नागरयकों के भध्म के सम्फन्धों का
ननधाथयण ककमा जाता है ।

सॊविधान की आिश्मकता तथा भहत्त्ि आधुननक


रोकतन्त्रीम मुग भें , जफ कक शासन-व्मवस्था गाॉव के एक रेखऩार से रेकय याष्ट्रऩनत तक सैकडों सयकायी
ऩदों भें ब्रफखयी हुई है , मह अत्मन्त आवश्मक है कक शासन-कामथ को ठीक प्रकाय से चराने तथा सयकायी
ऩदार्धकारयमों एवॊ जनता के अर्धकायों का ननधाथयण कयने के मरए याज्म का एक सॊववधान हो। वतथभान
सभम भें तो ककसी बी दे श के मरए ननम्नमरखखत कायणों से सॊववधान फहुत अर्धक भहत्त्वऩूणथ हो गमा है

(1) सॊववधान के अबाव भें जनता को मह ऩता नहीॊ होगा कक सयकायी शासन के ककस-ककस अॊग के क्मा
अर्धकाय हैं औय याज्म तथा जनता के फीच क्मा सम्फन्ध है । ऐसा कयने का उद्देश्म मह होता है कक
सयकाय के ववमबन्न अॊगों की कामथप्रणारी के सम्फन्ध भें ककसी प्रकाय की भ्रान्न्त मा वववाद की सम्बावना
कभ-से-कभ हो।
(2) सॊववधान के अबाव भें दे श भें अयाजकता की न्स्थनत उत्ऩन्न हो जाएगी। ननन्श्चत ननमभों के न होने से
सयकायी कभथचायी भनभानी कयने रगें गे औय याज्म एक ननयॊ कुश तथा स्वेच्छाचायी शासन भें ऩरयवनतथत हो
जाएगा, न्जससे अववश्वास की बावना उत्ऩन्न हो जाएगी।
(3) याज्म का सॊववधान होने से शासन के प्रत्मेक अॊग को अऩने कामथ-ऺेत्र का ऻान होगा। उन्हें मह बी
ऩता होगा कक उनके क्मा-क्मा अर्धकाय हैं औय जनता के प्रनत उन्हें ककन-ककन कतथव्मों का ऩारन कयना
है ।
(4) नागरयक बी अऩनी स्वतन्त्रता तथा अऩने अर्धकायों की यऺा के मरए सॊववधान का सॊयऺण प्राप्त कय
सकते हैं।
(5) सॊववधान याज्म तथा जनता दोनों के मरए ही एक प्रकाश-स्तम्ब के रूऩ भें भागथदशथन का कामथ कयता
है । ब्रफना सॊववधान के मह ननन्श्चत है कक शासन तथा जनता दोनों ही अऩने भागथ से बटक जाएॉगे। अत्
ककसी बी याज्म के अन्स्तत्व एवॊ प्रजा के सुखभम जीवन के ननभाथण के मरए याज्म का एक सॊववधान होना
अत्मन्त आवश्मक है औय कोई बी याज्म सॊववधान के भहत्त्व की उऩेऺा कयके अऩने अन्स्तत्व को खतये
भें नहीॊ डार सकता। अत् सॊववधान याज्म की नीॊव है ।
जेसरनेक का मह कथन ठीक ही है – ―उस याज्म की कल्ऩना बी नहीॊ की जा सकती, न्जसका अऩना सॊववधान न
हो। सॊववधानववहीन याज्म भें अयाजकता की न्स्थनत होगी।‖
प्रश्न 2.
बायतीम सॊववधान का ननभाथण कफ औय कैसे हुआ ? सॊववधान की प्रस्तावना का सॊक्षऺप्त वववयण दीन्जए।
उत्तय :
बायतीमों के मरए 26 जनवयी, 1950 ई० का टदन अत्मन्त गौयवऩूणथ है , क्मोंकक इस टदन स्वतन्त्र बायत भें
स्वमॊ बायतवामसमों द्वाया ननमभथत सॊववधान रागू हुआ था औय बायतवामसमों ने ऩण
ू थ स्वतन्त्रता का अनब
ु व
ककमा। इसी टदन बायत को एक गणयाज्म बी घोवषत ककमा गमा।
सॊविधान सबा का गठन एिॊ कामश
बायत के स्वतन्त्र होने से ऩूवथ ही बायतीम नेताओॊ ने 1939 ई० भें अॊग्रेजों से सॊववधान सबा के द्वाया
सॊववधान का ननभाथण कयने की भाॉग की थी, ऩयन्तु उस सभम बायतीमों की इस भाॉग को स्वीकाय नहीॊ
ककमा गमा। कारान्तय भें ऩरयन्स्थनतमोंवश 16 भई, 1946 ई० को कैब्रफनेट मभशन की मोजना भें इस फात
ऩय अॊग्रेजों ने अवश्म ववचाय ककमा कक बायतीमों को बायतीम सॊववधान के ननभाथण की स्वतन्त्रता दी। जानी
चाटहए, क्मोंकक वे ही अऩने दे श की ऩरयन्स्थनतमों औय आवश्मकताओॊ के अनुसाय सॊववधान का ननभाथण कय
सकते हैं।

परस्वरूऩ शीघ्र ही सॊववधान सबा का गठन कयने के उद्देश्म से जनसॊख्मा के आधाय ऩय (रगबग दस
राख ऩय एक) प्रनतननर्ध ननधाथरयत ककमे गमे। चुनाव आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व की एकर भत-सॊक्रभण
प्रणारी द्वाया हुए। ननवाथचन के आधाय ऩय सॊववधान सबा के कुर 389 सदस्म चुने गमे। फाद भें
ऩाककस्तान के अरग होने ऩय 389 सदस्मों भें से 79 सदस्म अरग हो गमे। इन सदस्मों के ऩथृ क् होने के
ऩश्चात ् सॊववधान सबा भें 310 सदस्म शेष फचे। इन्हीॊ सदस्मों को सॊववधान ननभाथण का कामथ सौंऩा गमा।

सॊववधान सबा को प्रथभ अर्धवेशन 9 टदसम्फय, 1946 ई० को डॉ० सन्च्चदानन्द मसन्हा की अस्थामी
अध्मऺता भें प्रायम्ब हुआ। इसभें भुन्स्रभ रीग के सदस्मों ने बाग नहीॊ मरमा। फाद भें , 11 टदसम्फय, 1946
ई० को डॉ० याजेन्द्र प्रसाद सॊववधान सबा के स्थामी अध्मऺ चुने गमे।
सॊववधान सबा की समभनतमाॉ – सॊववधान सबा के अन्तगथत ववमबन्न समभनतमों का गठन ककमा गमा ; जैसे—
प्रकक्रमा समभनत, वाताथ समभनत, सॊचारन समभनत, कामथ समभनत, अनव
ु ाद समभनत, सराहकाय समभनत, सॊघ
समभनत, ववत्तीम भाभरों की समभनत, झण्डा समभनत, बाषा समभनत, प्रारूऩ समभनत आटद। इन समभनतमों भें
सफसे भहत्त्वऩूणथ समभनत प्रारूऩ समभनत (Draft Committee) थी न्जसने सॊववधान का प्रारूऩ तैमाय ककमा
था।

सॊववधान का प्रारूऩ तैमाय कयने के मरए न्जस प्रारूऩ समभनत (Draft Committee) का गठन ककमा गमा
उसके अध्मऺ डॉ० बीभयाव अम्फेडकय औय अन्म सदस्म श्री के० एभ० भुन्शी , श्री टी० टी० कृष्ट्णभाचायी, श्री
गोऩार स्वाभी आमॊगय, श्री अल्रादी कृष्ट्णास्वाभी अय्मय, श्री भुहम्भद सादल्
ु रा खाॉ , श्री भाधव याव औय श्री
डी० ऩी० खेतान थे। इस प्रारूऩ को तैमाय कयने भें 141 टदन का सभम रगा। प्रारूऩ समभनत ने सॊववधान
का जो प्रारूऩ फनामा, उसको कुछ सॊशोधन के साथ 26 नवम्फय, 1949 ई० को स्वीकाय कय मरमा गमा।
इसके उऩयान्त सॊववधान सबा के अध्मऺ डॉ० याजेन्द्र प्रसाद के इस ऩय हस्ताऺय हुए। इसके ननभाथण भें 2
वषथ, 11 भहीने तथा 18 टदन रगे थे औय इस ऩय १ 63,96,729 व्मम हुए। इसभें 395 अनच् ु छे द तथा 8
अनुसूर्चमाॉ थीॊ। फाद भें इसभें चाय अनुसूर्चमाॉ औय जोड दी गमीॊ ( 9वीॊ अनुसूची प्रथभ सॊवैधाननक सॊशोधन
भें सन ् 1951 ई० भें , 10वीॊ अनस
ु च
ू ी 35वें सॊवैधाननक सॊशोधन भें सन ् 1975 ई० भें , 11वीॊ अनस
ु च
ू ी 73वें
सॊवैधाननक सॊशोधन भें अप्रैर भें व 12वीॊ अनुसूची 74वें सॊवैधाननक सॊशोधनों के आधाय ऩय जून 1993 ई०
भें)। ऩश्चात्वती सॊशोधनों के फाद 2000 को मथाववद्मभान सॊववधान भें 395 अनुच्छे द औय 12 अनुसूर्चमाॉ
हैं। टदसम्फय 2014 तक सॊववधान का 99 फाय सॊशोधन हो चुका है ।

बायत के सॊववधान को 26 जनवयी, 1950 ई० को ववर्धवत ् रागू कय टदमा गमा। इसके साथ ही बायत एक
सम्ऩूणथ प्रबुत्वसम्ऩन्न गणयाज्म फन गमा। 26 जनवयी, 1950 ई० को सॊववधान रागू कयने का वास्तववक
कायण मह था कक 26 जनवयी, 1929 ई० को बायत के ननवामसमों ने यावी नदी के तट ऩय काॊग्रेस के वावषथक
अर्धवेशन भें ऩॊडडत नेहरू की अध्मऺता भें मह प्रनतऻा की थी कक वे दे श को ऩूणथ रूऩ से स्वतन्त्र कयाएॉगे।
सॊववधान के रागू होने से बायतवषथ एक सम्ऩण
ू थ प्रबत्ु वसम्ऩन्न गणयाज्म फन गमा।

सॊविधान की प्रस्तािना
सवोच्च न्मामारम ने सॊववधान की प्रस्तावना को स्ऩष्ट्ट कयते हुए एक वववाद भें कहा है कक , ‗प्रस्तावना
सॊववधान के ननभाथताओॊ के आशम को स्ऩष्ट्ट कयने वारी कॊु जी है ।

सॊववधान की प्रस्तावना भें कहा गमा है कक, ―हभ बायत के रोग, बायत को एक सम्ऩण
ू थ प्रबत्ु वसम्ऩन्न,
सभाजवादी, धभथननयऩेऺ ,रोकतन्त्रात्भक गणयाज्म फनाने के मरए औय उसके सभस्त नागरयकों को
साभान्जक, आर्थथक औय याजनीनतक न्माम, ववचायामबव्मन्क्त, ववश्वास, धभथ औय उऩासना की स्वतन्त्रता,
प्रनतष्ट्ठा व अवसय की सभता प्राप्त कयाने के मरए तथा उन सफभें व्मन्क्त की गरयभा औय याष्ट्र की एकता
तथा अखण्डता सनु नन्श्चत कयने वारी फन्धत
ु ा फढ़ाने के मरए, दृढ़ सॊकल्ऩ होकय अऩनी इस सॊववधान सबा
भें आज टदनाॊक 26 नवम्फय, 1949 ई० (मभनत भागथशीषथ शुक्र सप्तभी, सॊवत ् 2006 ववक्रभी) को एतद् द्वाया
इस सॊववधान को अॊगीकृत, अर्धननममभत औय आत्भावऩथत कयते हैं।
प्रस्तावना भें सभाजवादी‘, ‗धभथननयऩेऺ‘ व ‗अखण्डता‘ शब्द सॊववधान के 42 वें सॊशोधन द्वाया जोडे गमे हैं।

1. (स्रोत–इण्टयनेट ऩय बायत सयकाय की आर्धकारयक वेफसाइट)।

बायतीम सॊववधान की प्रस्तावना बायत के रोगों तथा महाॉ के ऩदार्धकारयमों के मरए अत्मन्त भहत्त्वऩूणथ
है । इससे सबी ऩदार्धकारयमों को सॊववधान के उद्देश्मों का ऻान प्राप्त होता है । इसमरए कहा गमा है कक
प्रस्तावना सॊववधान का भूर अॊग , उसकी कॊु जी तथा आत्भा है । डॉ० सुबाष कश्मऩ के अनुसाय , प्रस्तावना भें
ननटहत ऩावन आदशथ हभाये याष्ट्रीम रक्ष्म हैं औय जहाॉ वे एक ओय हभें अऩने गौयवभम अतीत से जोडते हैं ,
वहाॉ उस बववष्ट्म की आशॊका को बी सॉजोते हैं। ‖

प्रश्न 3.
―बायतीम सॊववधान सॊघात्भक है , ऩयन्तु उसभें एकात्भकता के रऺण बी ववद्मभान हैं। ‖ वववेचना कीन्जए।
मा
बायतीम सॊववधान की सॊघात्भक व एकात्भक ववशेषताएॉ फताइए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें सॊघात्भक औय एकात्भक दोनों प्रकाय के सॊववधानों के रऺण ऩामे जाते हैं। बायत का
सॊववधान एकात्भकता की ओय झुकता हुआ सॊघात्भक सॊववधान है । एक ववद्वान्के शब्दों भें, ―बायतीम
सॊववधान की प्रकृनत सॊघीम है , ककन्तु आत्भा एकात्भक।‖
सॊघात्भक विर्ेषताएॉ
बायतीम सॊववधान भें सॊघात्भक सॊववधान की ननम्नमरखखत ववशेषताएॉ ऩामी जाती हैं –

(1) सरर्खत तथा स्ऩष्ट्ि – बायतीम सॊववधान एक मरखखत सॊववधान है न्जसभें सयर तथा स्ऩष्ट्ट अथों वारी
शब्दावरी का प्रमोग ककमा गमा है । इसे सॊववधान सबा ने तैमाय ककमा था।
(2) सिोच्च तथा कठोय – बायतीम सॊववधान को दे श के सवोच्च कानून की न्स्थनत प्राप्त है । कोई बी सयकाय
इसका उल्रॊघन नहीॊ कय सकती। मह कठोय इसमरए है , क्मोंकक इसभें सॊशोधन की प्रकक्रमा को फहुत जटटर
यखा गमा है । याज्मों के अर्धकाय-ऺेत्र के सम्फन्ध भें तो अकेरे केन्द्रीम सॊसद कोई सॊशोधन कय ही नहीॊ
सकती।
(3) र्क्ततमों का विबाजन – बायतीम सॊववधान के अन्तगथत केन्द्र औय याज्मों के फीच शन्क्तमों का स्ऩष्ट्ट
ववबाजन ककमा गमा है तथा सबी ववषमों को तीन सर्ू चमों भें फाॉट टदमा गमा है -
1. सॊघ सुॊची
2. याज्म सच
ू ी तथा
3. सभवती सूची।
सॊघ सच
ू ी ऩय केन्द्रीम सयकाय को तथा याज्म सच
ू ी ऩय याज्मों की सयकायों को कानन
ू फनाने का अर्धकाय
प्राप्त है । सभवती सूची ऩय केन्द्र तथा याज्मों की सयकायें कानून फना सकती हैं , ककन्तु सवोच्चता केन्द्रीम
सयकाय को प्राप्त है । अवमशष्ट्ट ववषम केन्द्रीम सयकाय के अधीन हैं। सॊघ , याज्म औय सभवती सच
ू ी के
ववषमों की सॊख्मा क्रभश् 97, 66 तथा 47 है ।
(4) स्ितन्त्र न्मामऩासरका – बायतीम सॊववधान भें एक स्वतन्त्र तथा शन्क्तशारी न्मामऩामरका की व्मवस्था की
गमी है । दे श का सवोच्च न्मामारम केन्द्रीम तथा प्रान्तीम सयकायों के ननमन्त्रण से भक्
ु त है । मह सॊसद
तथा याज्म सयकायों द्वाया ननमभथत कानूनों को अवैध घोवषत कय सकता है । इसे सॊववधान की यऺा का
कामथबाय सौंऩा गमा है ।
(5) द्विसदनीम व्मिस्थावऩका – बायतीम सॊसद का उच्च सदन अथाथत ् याज्मसबा याज्मों को सदन है , जो याज्मों
का प्रनतननर्धत्व कयता है तथा ननम्न सदन अथाथत ् रोकसबा जनता का प्रनतननर्धत्व कयता है ।
(6) सॊर्ोधन प्रणारी – बायतीम सॊववधान भें सॊशोधन की प्रणारी ऩूणथ रूऩ से सॊघात्भक शासन के अनुरूऩ है ।
एकात्भक ववशेषताएॉ बायतीम सॊववधान भें एकात्भक सॊववधान की ननम्नाॊककत ववशेषताएॉ ऩामी जाती हैं –

(1) इकहयी नागरयकता – सॊववधान भें दे श के नागरयकों को केवर बायतीम नागरयकता प्रदान की गमी है ।
इसभें याज्मों की ऩथ
ृ क् नागरयकता की कोई व्मवस्था नहीॊ है ।
(2) याष्ट्रऩनत की सिोच्च र्क्ततमाॉ – सॊववधान के अनुसाय सॊकट मा आऩात्कार भें दे श की शासन सम्फन्धी
सम्ऩण
ू थ शन्क्तमाॉ याष्ट्रऩनत के हाथों भें आ जाती हैं। याज्मों की सयकायों को याष्ट्रऩनत की इच्छानस
ु ाय अऩने
याज्मों को शासन चराना ऩडता है ।
(3) सीभाओॊ भें ऩरयितशन – सॊसद को याज्मों की सीभाओॊ तथा नाभ भें ऩरयवतथन कयने का अर्धकाय है ।
(4) सेना बेजना – केन्द्रीम सयकाय प्रान्तीम सयकाय के ऩयाभशथ के ब्रफना बी याज्म भें सेना को बेज सकती है ।
(5) याज्मऩार को ऩद – याज्मऩार प्रान्तीम शासन का अध्मऺ होता है । याज्मऩार की ननमुन्क्त , स्थानान्तयण
तथा ऩदच्मुनत का अर्धकाय याष्ट्रऩनत को है । वस्तुत् याज्मऩार प्रान्तों भें केन्द्रीम सयकाय के एजेण्ट के रूऩ
भें कामथ कयती है ।
(6) वित्तीम ननबशयता – प्रान्तीम सयकायें अऩने ववकासशीर कामों हे तु केन्द्रीम अनुदानों ( Grants) तथा ऋण
ऩय ननबथय कयती हैं।
(7) याज्म सच ू – ननभाथण–बायतीम सॊववधान के अन्तगथत साभान्म तथा आऩातकारीन ऩरयन्स्थनतमों
ू ी ऩय कानन
भें सॊसद को याज्म सूची भें टदमे गमे ववषमों ऩय कानून-ननभाथण का अर्धकाय प्राप्त
(8) सभान न्माम-व्मिस्था – एकात्भक सॊववधान की एक प्रभख
ु ववशेषता मह होती है कक सम्ऩण
ू थ दे श भें सभान
न्मामव्मवस्था ऩामी जाती है । बायतीम सॊववधान भें मह ववशेषता बी ववद्मभान है । बायत के सवोच्च
न्मामारम तथा याज्मों के न्मामारमों भें दीवानी तथा पौजदायी भक
ु दभों के मरए एक जैसे कानन
ू फनामे
गमे हैं। साथ ही याज्मों के उच्च न्मामारमों को उच्चतभ (सवोच्च) न्मामारम के अधीन यखा गमा है ।

प्रश्न 10.
आऩके अनुसाय कौन-सा भौमरक अर्धकाय सफसे ज्मादा भहत्त्वऩूणथ है ? इसके प्रावधानों को सॊऺेऩ भें मरखें
औय तकथ दे कय फताएॉ कक मह क्मों भहत्त्वऩूणथ है ?
उत्तय
सॊवैधाननक उऩचायों का अर्धकाय अन्न्तभ औय सफसे भहत्त्वऩूणथ भौमरक अर्धकाय है ; क्मोंकक इसके
अन्स्तत्व ऩय ही सभस्त अर्धकायों का अन्स्तत्व आधारयत है । इस अर्धकाय द्वाया नागरयक उच्चतभ
न्मामारम से अऩने अर्धकायों की सुयऺा कया सकते हैं। सॊववधान के 32 वें अनुच्छे द की प्रशॊसा कयते हुए
डॉ फी० आय० अम्फेडकय ने सॊववधान सबा भें कहा था, ―मटद भुझसे ऩूछा जाए कक सॊववधान का सफसे
भहत्त्वऩूणथ अनुच्छे द कौन-सा है , न्जसके ब्रफना सॊववधान शून्म यह जाएगा तो भैं इस अनुच्छे द के अनतरयक्त
औय ककसी दस
ू ये अनुच्छे द की ओय सॊकेत नहीॊ करूॊगा। मह सॊववधान की आत्भा , उसका रृदम है ।‖ नागरयकों
के भौमरक अर्धकायों की सयु ऺा के मरए उच्च न्मामारमों तथा उच्चतभ न्मामारम द्वाया ननम्नमरखखत
ऩाॉच प्रकाय के रेख जायी ककए जा सकते हैं-
1. फन्दी प्रत्मऺीकयण (Habeas Corpus) – इसका अथथ फन्दी को न्मामारम के सभऺ प्रस्तुत कयना है । मह
उस व्मन्क्त की प्राथथना ऩय जायी ककमा जाता है , जो मह सभझता है कक उसे अवैधाननक रूऩ से फन्दी
फनामा गमा है । इसके द्वाया न्मामारम तुयन्त उस व्मन्क्त को अऩने सभऺ उऩन्स्थत कयने का आदे श
दे ता है औय उसे अवैधाननक रूऩ से फन्दी फनाए जाने की न्स्थनत का सही भूल्माॊकन कयता है । इसके
अनतरयक्त फन्दी फनाने के ढॊ ग का अवरोकन बी कयता है औय अवैधाननक ढॊ ग से फन्दी फनाए गए व्मन्क्त
को तयु न्त छोडने का आदे श दे ता है ।
2. ऩयभादे र् (Mandamus) – जफ कोई सॊस्था मा अर्धकायी कतथव्मों का ऩारन नहीॊ कयता है , न्जसके
परस्वरूऩ ककसी व्मन्क्त के भौमरक अर्धकायों का उल्रॊघन होता है , तफ न्मामऩामरका
‗ऩयभादे श‘ द्वाया उस सॊस्था मा अर्धकायी को कतथव्मों को ऩूया कयने का आदे श दे ती है ।
3. प्रनतषेध (Prohibition) – मह ककसी व्मन्क्त मा सॊस्था को उस कामथ से योकने के मरए जायी ककमा जाता
है , जो अर्धकाय-ऺेत्र के अन्तगथत नहीॊ है । मटद अध.नस्थ न्मामारम अथवा अर्द्थ-न्मामारम का कोई
न्मामाधीश ‗प्रनतषेध‘ रेख की उऩेऺा कयके कोई अमबमोग सन
ु ता है तो उसके ववरुर्द् भानहानन का भक
ु दभा
चरामा जा सकता है ।
4. अचधकाय-ऩच्ु छा (Quo-warranto) – मटद कोई नागरयक कोई ऩद मा अर्धकाय अवैधाननक | ढॊ ग से प्राप्त
कय रेता है तो उसकी जॉच हे तु मह अर्धकाय-ऩच्
ृ छा‘ रेख जायी ककमा जाता है ।
5. उत्प्रेषण (Certiorari) – मह रेख उच्च न्मामारमों द्वाया उस सभम जायी ककमा जाता है , जफकक
अधीनस्थ न्मामारम का न्मामाधीश ककसी ऐसे वववाद की सुनवाई कय यहा है , जो वास्तव भें उसके
अर्धकाय-ऺेत्र से फाहय है । इस रेख द्वाया उनके पैसरे को यद्द कय टदमा जाता है औय उस भुकदभे से
सम्फन्न्धत कागजात अधीनस्थ न्मामारम को उच्चतभ न्मामारम को बेजने की आऻा दी जाती है ।
ऩयीऺोऩमोगी प्रश्नोत्तय
फहुविकल्ऩीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सॊववधान के द्वाया नागरयकों को प्रदत्त भौमरक अर्धकायों की सॊख्मा है –
(क) सात
(ख) दस
(ग) छ्
(घ) ऩाॉच
उत्तय :
(ग) छ्
प्रश्न 2.
सॊववधान के द्वाया ककसको वयीमता प्रदान की गमी है ?
(क) भौमरक अर्धकायों को
(ख) नीनत-ननदे शक तत्त्वों को
(ग) भौमरक कतथव्मों को
(घ) भौमरक अर्धकायों तथा कतथव्मों को।
उत्तय :
(क) भौसरक अचधकायों को।
प्रश्न 3.
सम्ऩन्त्त के भौमरक अर्धकाय को ककस सॊवैधाननक सॊशोधन के द्वाया सभाप्त ककमा गमा है ?
(क) 24वें
(ख) 42वें
(ग) 44वें
(घ) 73वें
उत्तय :
(ग) 44िें।
प्रश्न 4.
सम्ऩन्त्त का अर्धकाय अफ यह गमा है –
(क) सॊवैधाननक अर्धकाय
(ख) भौमरक अर्धकाय
(ग) कानूनी अर्धकाय
(घ) प्राकृनतक अर्धकाय
उत्तय :
(ग) कानन ू ी अचधकाय।
प्रश्न 5.
भौमरक अर्धकायों को स्थर्गत कयने का अर्धकाय है –
(क) याष्ट्रऩनत को
(ख) प्रधानभन्त्री को
(ग) भन्न्त्रभण्डर को।
(घ) रोकसबा के अध्मऺ को
उत्तय :
(क) याष्ट्रऩनत को।
प्रश्न 6.
आऩातकार भें अफ भौमरक अर्धकाय के ककस अनुच्छे द को स्थर्गत नहीॊ ककमा जा सकता है ?
(क) अनुच्छे द 14 को
(ख) अनुच्छे द 19 को
(ग) अनुच्छे द 32 को
(घ) अनच्
ु छे द 21 को
उत्तय :
(घ) अनच्ु छे द 21 को।
प्रश्न 7.
छुआछूत का अन्त सॊववधान के ककस अनुच्छे द के द्वाया ककमा गमा ?
(क) अनच्
ु छे द 14
(ख) अनुच्छे द 19
(ग) अनुच्छे द 21
(घ) अनच्
ु छे द 17
उत्तय :
(घ) अनच्ु छे द 17.
प्रश्न 8.
बायत के सॊववधान भें वखणथत भौमरक कतथव्मों को ककस सॊवैधाननक सॊशोधन के द्वाया सॊववधान के बाग 3
भें जोडा गमा ?
(क) 44वें
(ख) 42वें
(ग) 52वें
(घ) 74वें
उत्तय :
(ख) 42िें।
प्रश्न 9.
भौमरक कतथव्मों भें ककतने कतथव्मों को सन्म्भमरत ककमा गमा है ?
(क) आठ
(ख) ग्मायह
(ग) ऩाॉच
(घ) फायह
उत्तय :
(ख) ग्मायह।
प्रश्न 10.
बायतीम सॊववधान भें नीनत-ननदे शक तत्त्वों को ककस दे श के सॊववधान से मरमा गमा है ?
(क) कनाडा
(ख) आमयरैण्ड
(ग) सॊमुक्त याज्म अभेरयका
(घ) ब्रिटे न
उत्तय :
(ख) आमयरैण्ड।
प्रश्न 11.
बायतीम सॊववधान के ककन अनुच्छे दों भें नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों का वणथन ककमा गमा है ?
(क) 36 से 51 तक
(ख) 52 से 63 तक
(ग) 60 से 71 तक
(घ) 33 से 35 तक
उत्तय :
(क) 36 से 51 तक।
प्रश्न 12.
भोतीरार नेहरू समभनत ने सवथप्रथभ ककस वषथ ‗अर्धकायों के एक घोषणा-ऩत्र की भाॉग उठाई थी?
(क) 1928
(ख) 1936
(ग) 1931
(घ) 1937
उत्तय :
(क) 1928
प्रश्न 13.
भौमरक अर्धकायों की गायण्टी औय उनकी सुयऺा कौन कयता है ?
(क) याज्मऩार
(ख) याष्ट्रऩनत
(ग) सॊववधान
(घ) ऩमु रस
उत्तय :
(ग) सॊविधान।
प्रश्न 14.
भूर अर्धकायों का वणथन सॊववधान के ककस बाग भें है ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चाय
(घ) ऩाॉच
उत्तय :
(ख) तीन।
प्रश्न 15.
ककस वषथ बायतीम सॊववधान भें भूर कतथव्मों का सभावेश ककमा गमा?
(क) 1972 ई० भें
(ख) 1976 ई० भें
(ग) 1977 ई० भें
(घ) 1980 ई० भें
उत्तय :
(ख) 1976 ई० भें।
प्रश्न 16.
―नीनत-ननदे शक तत्त्व ऐसे चैक के सभान हैं , न्जसका बुगतान फैंक की ऩववत्र इच्छा ऩय ननबथय है । ‖ मह
कथन ककसका है ?
(क) के० टी० शाह
(ख) श्रीननवासन
(ग) ग्रेनववर ऑन्स्टन
(घ) जी० एन० मसॊह।
उत्तय :
(क) के० िी० र्ाह।
प्रश्न 17.
ननम्नाॊककत भें से कौन-सा नागरयकों का भर
ू अर्धकाय नहीॊ है ?
(क) स्वतन्त्रता का अर्धकाय
(ख) दान दे ने का अर्धकाय
(ग) सभानता का अर्धकाय
(घ) शोषण के ववरुर्द् अर्धकाय
उत्तय :
(ख) दान दे ने का अचधकाय।
प्रश्न 18.
ननम्नाॊककत भें कौन-सा भूर अर्धकाय सफसे भहत्त्वऩूणथ है ?
(क) सभानता का अर्धकाय
(ख) सॊवैधाननक उऩचायों का अर्धकाय
(ग) स्वतन्त्रता का अर्धकाय
(घ) शोषण के ववरुर्द् अर्धकाय
उत्तय :
(ख) सॊिध ै ाननक उऩचायों का अचधकाय।
प्रश्न 19.
―याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्व याष्ट्रीम चेतना के आधायबूत स्तय का ननभाथण कयते हैं। ‖ मह कथन ककसका
है ?
(क) दग
ु ाथदास फसु
(ख) एभ० सी० छागरा
(ग) एभ० वी० ऩामरी
(घ) ऩतॊजमर शास्त्री
उत्तय :
(ग) एभ० िी० ऩामरी।
प्रश्न 20.
―नीनत-ननदे शक तत्त्व नववषथ के फधाई सन्दे शों के अनतरयक्त कुछ नहीॊ हैं। ‖ मह कथन ककसका है ?
(क) नामसरुद्दीन
(ख) डॉ० याजेन्द्र प्रसाद
(ग) ऩॊ० नेहरू
(घ) के० टी० शाह
उत्तय :
(क) नाससरुद्दीन।
प्रश्न 21.
―भूर अर्धकायों के स्थगन की व्मवस्था अत्मन्त आवश्मक है । मही व्मवस्था सॊववधान का जीवन होगी।
इससे प्रजातन्त्र की हत्मा नहीॊ , वयन यऺा होगी।‖ मह कथन ककसका
(क) अल्राटद कृष्ट्णास्वाभी अय्मय
(ख) डॉ० अम्फेडकय
(ग) के० एभ० भुॊशी
(घ) आमॊगय
उत्तय :
(क) अल्रादद कृष्ट्णास्िाभी अय्मय।
प्रश्न 22.
―याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्व न्मामारम के मरए प्रकाश-स्तम्ब की बाॉनत हैं। ‖ मह कथन ककसका है ?
(क) ऩतॊजमर शास्त्री
(ख) एभ० सी० सीतरवाड
(ग) एभ० वी० ऩामरी
(घ) ऩॊ० नेहरू
उत्तय :
(ख) एभ० सी० सीतरिाड।
प्रश्न 23.
दक्षऺण अिीका का सॊववधान ककस वषथ रागू हुआ?
(क) सन ् 1996
(ख) सन ् 1997
(ग) सन ् 1999
(घ) सन ् 1967
उत्तय :
(क) सन ् 1996.
प्रश्न 24.
ननवायक नजयफन्दी की अर्धकतभ अवर्ध क्मा है ?
(क) 3 भहीने
(ख) 6 भहीने
(ग) 4 भहीने
(घ) 2 भहीने
उत्तय :
(क) 3 भहीने।
प्रश्न 25.
बायत के याष्ट्रीम भानवार्धकाय आमोग का गठन कफ ककमा गमा ?
(क) सन ् 1947
(ख) सन ् 2000
(ग) सन ् 2001
(घ) सन ् 2002
उत्तय :
(ख) सन ् 2000.
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
भौमरक अर्धकाय क्मा हैं ?
उत्तय :
भौमरक अर्धकाय वे सवु वधाएॉ , भाॉगें, अऩेऺाएॉ व दावे हैं न्जन्हें याज्म ने अऩने नागरयकों के ववकास के मरए
अत्मन्त आवश्मक भानकय अऩने सॊववधान भें स्थान टदमा है ।
प्रश्न 2.
भौमरक अर्धकाय आवश्मक क्मों हैं ?
उत्तय :
नागरयकों के ऩूणथ ववकास के मरए भौमरक अर्धकाय आवश्मक हैं।
प्रश्न 3.
भौमरक अर्धकायों की यऺा ककस अर्धकाय से होती है ?
उत्तय :
भौमरक अर्धकायों की यऺा सॊवैधाननक उऩचाय के अर्धकाय द्वाया होती है ।
प्रश्न 4.
बायतीम सॊववधान भें कौन-सी भर
ू अर्धकाय ननयस्त कय टदमा गमा है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें सम्ऩन्त्त का भर
ू अर्धकाय ननयस्त कय टदमा गमा है ।
प्रश्न 5.
सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकाय के अन्तगथत जायी ककमे जाने वारे दो रेखों के नाभ मरखखए।
उत्तय :
1. ऩयभादे श तथा
2. प्रनतषेध, सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकाय के अन्तगथत जायी ककमे जाने वारे रेख हैं।
प्रश्न 6.
कानूनी अर्धकाय क्मा हैं ?
उत्तय :
कानूनी अर्धकाय नागरयकों की वे सुववधाएॉ हैं न्जन्हें याज्म स्वीकृत कयता है औय न्जन्हें कानून द्वाया
ननन्श्चत ककमा जाता है ।
प्रश्न 7.
स्वतन्त्रता के अर्धकाय के अन्तगथत आने वारी दो स्वतन्त्रताओॊ का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
1. बाषण व अमबव्मन्क्त की स्वतन्त्रता तथा
2. सॊघ-ननभाथण की स्वतन्त्रता।
प्रश्न 8.
सॊववधान के ककस बाग भें भौमरक अर्धकायों का उल्रेख ककमा गमा है ?
उत्तय :
सॊववधान के बाग III भें भौमरक अर्धकायों का उल्रेख ककमा गमा है ।
प्रश्न 9.
‗बायत एक धभथननयऩेऺ याष्ट्र है । ‘ दो तकथ दीन्जए।
उत्तय :
1. सबी नागरयकों को धामभथक स्वतन्त्रता का अर्धकाय है ।
2. सयकाय द्वाया ककसी ववमशष्ट्ट धभथ को आश्रम नहीॊ टदमा जाता, वह धभथननयऩेऺ है ।
प्रश्न 10.
बायतीम सॊववधान के ककस अनच्
ु छे द भें भर
ू कत्तथव्म टदए गए हैं ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान के अनुच्छे द 51 (क) भें भूर कत्तथव्म टदए गए हैं।
प्रश्न 11.
बायतीम सॊववधान भें ककतने भौमरक कतथव्मों का उल्रेख है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें 11 भौमरक कतथव्मों का उल्रेख है ।
प्रश्न 12.
याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्वों का वणथन सॊववधान के ककस बाग भें ककमा गमा है ?
उत्तय :
याज्म के नीनत-ननदे शक तत्वों का वणथन सॊववधान के बाग IV भें ककमा गमा है ।
प्रश्न 13.
बायतीम सॊववधान के अनुसाय ककन्हीॊ दो ननदे शक मसर्द्ान्तों (तत्त्वों) को मरखखए।
उत्तय :
1. आर्थथक सुयऺा सम्फन्धी तत्त्व
2. साभान्जक प्रगनत सम्फन्धी तत्त्व।
प्रश्न 14.
याज्म के नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों की ववर्ध अथवा वैऻाननक न्स्थनत क्मा है ?
उत्तय :
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों की सुयऺा की भाॉग न्मामारम से नहीॊ की जा सकती , क्मोंकक इनके ऩीछे
फाध्मकायी कानूनी शन्क्त नहीॊ है ।
प्रश्न 15.
बायतीम सॊववधान के नीनत-ननदे शक तत्त्व ककस दे श के सॊववधान से मरमे गए हैं ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान के नीनत-ननदे शक तत्त्व आमयरैण्ड के सॊववधान से मरए गए हैं।
प्रश्न 16.
शोषण के ववरुर्द् अर्धकाय का क्मा अथथ है ?
उत्तय :
शोषण के ववरुर्द् अर्धकाय का अथथ है –
1. कोई बी व्मन्क्त ककसी से फरात ् श्रभ नहीॊ कयवा सकता।
2. न्स्त्रमों तथा फच्चों का क्रम-ववक्रम नहीॊ ककमा जा सकता।
प्रश्न 17.
सॊववधान के ककस सॊशोधन के द्वाया भर
ू कतथव्मों का प्रावधान ककमा गमा है ?
उत्तय :
सॊववधान के-42वें सॊशोधन (1976) के द्वाया भर
ू कतथव्मों का प्रावधान ककमा गमा है ।
प्रश्न 18.
सॊववधान भें वखणथत बायतीम नागरयकों का एक कतथव्म मरखखए।
उत्तय :
सॊववधान का ऩारन कयना औय उसके आदशों, सॊस्थाओॊ, याष्ट्रगान औय याष्ट्रध्वज का आदय कयना बायतीम
नागरयकों का एक कतथव्म है ।
प्रश्न 19.
सॊववधान द्वाया भर
ू अर्धकायों का सॊयऺक ककसे फनामा गमा है ?
उत्तय :
सॊववधान द्वाया भर
ू अर्धकायों का सॊयऺक सवोच्च न्मामारम को फनामा गमा है ।
प्रश्न 20.
भूर अर्धकायों का स्थगन कैसे ककमा जा सकता है ?
मा
भौमरक अर्धकाय कफ स्थर्गत ककमे जा सकते हैं ?
उत्तय :
1. सॊकटकार की घोषणा की न्स्थनत भें
2. सेना भें अनुशासन फनामे यखने के मरए तथा
3. भाशथर रॉ रागू होने ऩय भौमरक अर्धकाय स्थर्गत ककमे जा सकते हैं।
प्रश्न 21.
बायतीम नागरयकों के दो भूर कत्तथव्म मरखखए।
उत्तय :
बायतीम नागरयकों के दो भूर कतथव्म हैं –
1. सॊववधान का ऩारन कयना, याष्ट्रध्वज तथा याष्ट्रगान के प्रनत सम्भान प्रकट कयना।
2. बायत की सम्प्रबुता, एकता औय अखण्डता की यऺा कयना।
प्रश्न 22.
बायतीम सॊववधान के ककन अनुच्छे दों भें नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों का वणथन ककमा गमा है ?
उत्तय :
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों का वणथन बायतीम सॊववधान के अनुच्छे द 36 से अनुच्छे द 51 तक भें ककमा गमा
है ।
प्रश्न 23.
ककन्हीॊ दो नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
1. याज्म प्रत्मेक स्त्री औय ऩरु
ु ष को सभान रूऩ से जीववका के साधन प्रदान कयने का प्रमत्न कये गा।
2. याज्म 14 वषथ तक के फारकों के मरए नन:शुल्क औय अननवामथ मशऺा प्रदान कयने की व्मवस्था
कये गा।
प्रश्न 24.
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्त का कोई एक भहत्त्व मरखखए।
उत्तय :
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्त सत्तारूढ़ दर के मरए आचाय-सॊटहता का कामथ कयते हैं।
प्रश्न 25.
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों की आरोचना का एक प्रभुख आधाय मरखखए।
उत्तय :
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों के ऩीछे वैधाननक शन्क्त का अबाव है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
भौमरक अर्धकायों का अथथ औय ऩरयबाषा मरखखए।
उत्तय :
वे अर्धकाय, जो भानव-जीवन के मरए भौमरक तथा अऩरयहामथ होने के कायण सॊववधान द्वाया नागरयकों को
प्रदान ककए जाते हैं , ‗भौमरक अर्धकाय‘ कहराते हैं। व्मवस्थावऩका तथा कामथऩामरका द्वाया इनका उल्रॊघन
नहीॊ ककमा जा सकता है । दे श की न्मामऩामरका एक प्रहयी की बाॉनत इन अर्धकायों की सुयऺा कयती है ।
याज्म का भुख्म उद्देश्म नागरयकों का चहुॊभुखी ववकास व उनका कल्माण कयना है । इसमरए सॊववधान द्वाया
नागरयकों को भौमरक अर्धकाय प्रदान ककए जाते हैं। बायतीम सॊववधान द्वाया बी इसी उद्देश्म की ऩूनतथ के
मरए नागरयकों को भौमरक अर्धकाय प्रदान ककए गए हैं। जी० एन० जोशी का कथन है , ―भौमरक अर्धकाय
ही ऐसा साधन है , न्जसके द्वाया एक स्वतन्त्र रोकयाज्म के नागरयक अऩने साभान्जक , धामभथक तथा
नागरयक जीवन का आनन्द उठा सकते हैं। इनके ब्रफना रोकतन्त्रीम शासन सपरताऩव
ू क
थ नहीॊ चर सकता
औय फहुभत की ओय से अत्माचायों का खतया फना यहता है । ‖
प्रश्न 2.
फन्दी प्रत्मऺीकयण से क्मा अमबप्राम है ?
उत्तय :
फन्दी प्रत्मऺीकयण एक प्रकाय का न्मामारमीम आदे श होता है । न्मामारम फन्दी फनामे गमे व्मन्क्त अथवा
उसके सम्फन्धी की प्राथथना ऩय मह आदे श दे सकता है कक फन्दी व्मन्क्त को उसके साभने उऩन्स्थत ककमा
जाए। तत्ऩश्चात ् न्मामारम मह जाॉच कय सकता है कक फन्दी की र्गयफ्तायी कानून के अनुसाय वैध है
अथवा नहीॊ। मह अर्धकाय नागरयक की व्मन्क्तगत स्वतन्त्रता की यऺा कयता है ।
प्रश्न 3.
बायतीम नागरयकों के भर
ू अर्धकायों ऩय ककन ऩरयन्स्थनतमों भें प्रनतफन्ध रगामा जा सकता है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान द्वाया प्रदत्त भर
ू अर्धकाय ननयऩेऺ नहीॊ हैं। इन ऩय याष्ट्र की एकता , अखण्डता, शान्न्त
एवॊ सुयऺा तथा अन्म याष्ट्रों के साथ भैत्रीऩूणथ सम्फन्धों के आधाय ऩय प्रनतफन्ध रगामा जा सकता है ।
सॊववधान द्वाया अग्रमरखखत ऩरयन्स्थनतमों भें नागरयकों के भौमरक (भर
ू ) अर्धकायों ऩय प्रनतफन्ध रगामे
जाने की व्मवस्था की गमी है –
1. आऩातकारीन न्स्थनत भें नागरयकों के भर
ू अर्धकाय स्थर्गत ककमे जा सकते हैं।
2. सॊववधान भें सॊशोधन कयके नागरयकों के भूर अर्धकाय कभ मा सभाप्त ककमे जा सकते हैं।
3. सेना भें अनश
ु ासन फनामे यखने की दृन्ष्ट्ट से बी इन्हें सीमभत मा ननमन्न्त्रत ककमा जा सकता है ।
4. न्जन ऺेत्रों भें भाशथर रॉ (सैननक कानून) रागू होता है वहाॉ बी भूर अर्धकाय स्थर्गत हो जाते
5. नागरयकों द्वाया भूर अर्धकायों का दरु
ु ऩमोग कयने ऩय सयकाय इन्हें ननरन्म्फत कय सकती है ।
प्रश्न 4.
भौमरक अर्धकायों तथा नीनत-ननदे शक तत्त्वों भें क्मा अन्तय है ?
उत्तय :
भौमरक अर्धकायों तथा नीनत-ननदे शक तत्त्वों भें अन्तय ननम्नवत ् हैं –
1. भौमरक अर्धकाय, बायतीम सॊववधान द्वाया नागरयकों को टदमे गमे हैं। नीनत-ननदे शक तत्त्व केन्द्र
तथा याज्म सयकायों के भागथदशथन के मरए ननदे श भात्र हैं।
2. भौमरक अर्धकायों का हनन होने ऩय न्मामारम की शयण री जा सकती है । नीनत-ननदे शक तत्त्वों
की यऺा के मरए न्मामारम की शयण नहीॊ री जा सकती।
3. भौमरक अर्धकायों का उद्देश्म याजनीनतक रोकतन्त्र की स्थाऩना कयना होता है । नीनत-ननदे शक तत्त्वों
का उद्देश्म साभान्जक औय आर्थथक रोकतन्त्र की स्थाऩना कयना है ।
4. भौमरक अर्धकाय नागरयक के व्मन्क्तगत ववकास तथा स्वतन्त्रता ऩय अर्धक फर दे ते हैं। नीनत-
ननदे शक तत्त्व आर्थथक औय साभान्जक स्वतन्त्रता ऩय अर्धक फर दे ते हैं।
5. भौमरक अर्धकाय ननषेधात्भक आदे श हैं। नीनत-ननदे शक तत्त्व सकायात्भक ननदे श भात्र हैं।
6. भौमरक अर्धकायों के ऩीछे न्मानमक शन्क्त होती है । नीनत-ननदे शक तत्त्वों के ऩीछे जनभत की
शन्क्त होती है ।
प्रश्न 5.
नीनत-ननदे शक तत्त्वों को सॊववधान भें सभाववष्ट्ट कयने का क्मा उद्देश्म है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें केन्द्र तथा याज्म सयकायों के भागथदशथन के मरए कुछ मसर्द्ान्त टदमे गमे हैं , न्जन्हें
याज्म के नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्त मा तत्त्व कहा जाता है । सॊववधान भें इन तत्त्वों का सभावेश कयने का
प्रभुख उद्देश्म बायत भें वास्तववक रोकतन्त्र औय सभाजवादी एवॊ कल्माणकायी शासन की स्थाऩना कयना
है । इसके अनतरयक्त, साभान्जक ऩुनननथभाथण , आर्थथक ववकास, साॊस्कृनतक प्रगनत तथा अन्तयाथष्ट्रीम शान्न्त की
स्थाऩना बी नीनत-ननदे शक तत्त्वों के उद्देश्म हैं।
प्रश्न 6.
नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों की ववशेषताओॊ ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
नीनत-ननदे शक तत्त्वों की ननम्नमरखखत ववशेषताएॉ हैं –
(1) सॊविधान का उद्देश्म – सॊववधान की प्रस्तावना भें सॊववधान का उद्देश्म रोक-कल्माणकायी याज्म की स्थाऩना
कयना फतामा गमा है । नीनत-ननदे शक तत्त्व इस उद्देश्म को साकाय रूऩ दे ते हैं। याज्म अर्धक-से-अर्धक
प्रबावी रूऩ भें , ऐसी साभान्जक व्मवस्था तथा सुयऺा द्वाया न्जसभें आर्थथक , साभान्जक तथा याजनीनतक
न्माम बी प्राप्त हो, जनता के टहत के ववकास को प्रमत्न कये गा औय याष्ट्रीम जीवन की प्रत्मेक सॊस्था को
इस सम्फन्ध भें सूर्चत कये गा। इस प्रकाय नीनत-ननदे शक तत्त्व आर्थथक तथा साभान्जक प्रजातन्त्र की
स्थाऩना कय एक सभाजवादी ऩर्द्नत के सभाज की स्थाऩना कयना चाहते हैं।
(2) अनदु े र् ऩत्र – याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्व ऐसे ननदे श हैं , न्जनका ऩारन याज्म की व्मवस्थावऩका तथा
कामथऩामरका को कयना चाटहए।
(3) िैधाननक फर का अबाि – नीनत-ननदे शक तत्त्व मद्मवऩ सॊववधान के अॊग हैं , कपय बी उन्हें 1ककसी
न्मामारम द्वाया रागू नहीॊ ककमा जा सकता।
ू ससद्ान्त – मे मसर्द्ान्त भूरबूत मसर्द्ान्त भाने जाएॉगे। याज्म का मह कत्तथव्म
(4) दे र् के र्ासन के आधायबत
होगा कक कानून का ननभाथण कयते सभम वह इन मसर्द्ान्तों को ध्मान भें यखे। प्रशासकों के मरए मे
मसर्द्ान्त एक आचयण सॊटहता हैं , न्जनका अनुऩारन वे अऩने दानमत्वों को | ननबाते सभम कयें गे। न्मामारम
बी न्माम कयते सभम इन मसर्द्ान्तों को प्राथमभकता प्रदान कयें गे।
प्रश्न 7.
नीनत-ननदे शक तत्त्वों की आरोचना का आधाय फताइए।
उत्तय :
नीनत-ननदे शक तत्त्वों की आरोचना के भख्
ु म आधाय ननम्नमरखखत हैं –
ू ी र्क्तत का अबाि – कुछ आरोचक इने तत्त्वों को ककसी बी दृन्ष्ट्ट से भहत्त्वऩूणथ नहीॊ भानते।
(1) कानन
उनका मह तकथ है कक जफ सयकाय इन्हें भानने के मरए कानन
ू ी रूऩ से फाध्म ही नहीॊ है , तो इनका कोई
भहत्त्व नहीॊ है । इन मसर्द्ान्तों ऩय व्मॊग्म कयते हुए प्रो० के० टी० शाह ने मरखा है । कक , ―मे मसर्द्ान्त उस
चेक के सभान हैं , न्जसका बग ु तान फैंक केवर सभथथ होने की न्स्थनत भें ही कय सकता है । ‖
(2) ननदे र्क तत्त्ि काल्ऩननक आदर्श भात्र – आरोचकों के अनुसाय नीनत-ननदे शक तत्त्व व्मावहारयकता से कोसों
दयू केवर एक कल्ऩना भात्र हैं। इन्हें कक्रमान्न्वत कयना फहुत दयू की फात है । एन० आय० याघवाचायी के
शब्दों भें , ―नीनत-ननदे शक तत्त्वों का उद्देश्म जनता को भूखथ फनाना वे फहकाना ही है । ‖
ै ाननक गनतयोध उत्ऩन्न होने का बम – इन मसर्द्ान्तों से सॊवैधाननक गनतयोध बी उत्ऩन्न हो सकता है ।
(3) सॊिध
याज्म जफ इन तत्त्वों के अनुरूऩ अऩनी नीनतमों का ननभाथण कये गा तो ऐसी न्स्थनत भें भौमरक अर्धकायों
के अनतक्रभण की सम्बावना फढ़ जाएगी।
ु ा सम्ऩन्न याज्म भें अस्िाबाविक – मे तत्त्व एक सम्प्रबुता सम्ऩन्न याज्म भें अस्वाबाववक तथा
(4) सम्प्रबत
अप्राकृनतक हैं। ववद्वानों ने नीनत-ननदे शक तत्त्वों की अनेक दृन्ष्ट्टकोणों के आधाय ऩय आरोचना की है ,
ऩयन्तु इन आरोचनाओॊ के द्वाया इन तत्त्वों का भहत्त्व कभ नहीॊ हो जाता। मे हभाये आर्थथक रोकतन्त्र
के आधाय-स्तम्ब हैं।
प्रश्न 8.
भौमरक अर्धकायों की सॊऺेऩ भें आरोचना कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें वखणथत भौमरक अर्धकायों की ननम्नमरखखत आधायों ऩय आरोचना की गई है –
1. इनभें मशऺा प्राप्त कयने, काभ ऩाने, आयाभ कयने तथा स्वास्थ्म सम्फन्धी अनेक भहत्त्वऩण
ू थ
अर्धकायों का अबाव दे खने को मभरता है ।
2. भौमरक अर्धकायों ऩय इतने अर्धक प्रनतफन्ध रगा टदए गए हैं कक उनके स्वतन्त्र उऩबोग ऩय
स्वमभेव प्रश्न-र्चह्न रग जाता है । अत: कुछ आरोचकों ने महाॉ तक कह टदमा है कक बाग चाय का
शीषथक नीनत-ननदे शक तत्त्वों के स्थान ऩय ‗नीनत-ननदे शक तत्त्व तथा उनके ऊऩय प्रनतफन्ध ज्मादा
उऩमुक्त प्रतीत होता है ।
3. शासन द्वाया भौमरक अर्धकायों के स्थगन की व्मवस्था दोषऩण
ू थ है ।
4. ननवायक-ननयोध द्वाया स्वतन्त्रता के अर्धकाय को सीमभत कय टदमा गमा है ।
5. सॊकटकार भें कामथऩामरका को असीमभत शन्क्तमाॉ प्राप्त हो जाती हैं।
प्रश्न 9.
भौमरक अर्धकायों के स्थगन ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
भौमरक अर्धकायों भें ववशेष ऩरयन्स्थनतमों के ननमभत्त सॊववधान भें सॊशोधन द्वाया सॊसद अर्धकाय अस्थामी
रूऩ से बी स्थर्गत ककए जा सकते हैं मा कापी सीभा तक सीमभत ककए जा सकते हैं। इसमरए आरोचकों
का ववचाय है कक सॊववधान के इस अनच्
ु छे द का राब उठाकय दे श भें कबी बी सयकाय तानाशाह फन सकती
है । ककन्तु ऐसा सोचना मा कहना गरत है ; क्मोंकक ऐसा सयकाय अऩने टहत भें नहीॊ , वयन ् रोकटहत भें
कयती है । असाधायण ऩरयन्स्थनतमों भें दे श औय याष्ट्र का टहत व्मन्क्तगत टहत से अर्धक भहत्त्वऩूणथ होता
है , इसीमरए ववशेष ऩरयन्स्थनतमों भें ही भौमरक अर्धकायों को स्थर्गत मा सीमभत ककमा जाता है । अल्राटद
कृष्ट्णास्वाभी अय्मय के शब्दों भें , ―मह व्मवस्था अत्मन्त आवश्मक है । मही व्मवस्था सॊववधान का जीवन
होगी। इससे प्रजातन्त्र की हत्मा नहीॊ , वयन ् सुयऺा होगी।‖
प्रश्न 10.
नीनत-ननदे शक तत्त्वों के दोषों का वववेचन कीन्जए।
उत्तय :
नीनत-ननदे शक तत्त्वों के ननम्नमरखखत दोष हैं –
1. इन तत्त्वों के ऩीछे कोई सॊवैधाननक शन्क्त नहीॊ है । अत् ननन्श्चत रूऩ से मह नहीॊ कहा जा सकता
कक याज्म इनका ऩारन कये गा बी मा नहीॊ औय मटद कये गा तो ककस सीभा तक।
2. मे तत्त्व काल्ऩननक आदशथ भात्र हैं। कैम्ऩसन के अनस
ु ाय , ―जो रक्ष्म ननन्श्चत ककए गए हैं , उनभें से
कुछ का तो सम्बाववत कामथक्रभ की वास्तववकता से फहुत ही थोडा सम्फन्ध है । ‖
3. नीनत-ननदे शक तत्त्व एक सम्प्रबु याज्म भें अप्राकृनतक प्रतीत होते हैं।
4. सॊवैधाननक ववर्धवेत्ताओॊ ने आशॊका व्मक्त की है कक मे तत्त्व सॊवैधाननक द्वन्द्व औय गनतयोध के
कायण बी फन सकते हैं।
5. इन तत्त्वों भें अनेक मसर्द्ान्त अस्ऩष्ट्ट तथा तकथहीन हैं। इन तत्त्वों भें एक ही फात को फाय-फाय
दोहयामा गमा है ।
6. इन तत्त्वों की व्मावहारयकता व और्चत्म को बी कुछ आरोचकों के द्वाया चन
ु ौती दी गई है ।
7. एक प्रबुतासम्ऩन्न याज्म भें इस प्रकाय के मसर्द्ान्त को ग्रहण कयना अस्वाबाववक ही प्रतीत होता है ।
ववर्ध-ववशेषऻों के दृन्ष्ट्टकोण के अनस
ु ाय एक प्रबत
ु ासम्ऩन्न याज्म के मरए इस प्रकाय के आदे शों का
कोई और्चत्म नहीॊ है ।
प्रश्न 11.
अर्धकाय-ऩत्र ककसे कहते हैं ? क्मा प्रत्मेक दे श भें अर्धकाय-ऩत्र का होना आवश्मक है ?
उत्तय :
अचधकाय-ऩत्र से आर्म
जफ ककसी दे श के नागरयकों को टदए जाने वारे अर्धकायों की सॊवैधाननक घोषणा की जाती है अथाथत ्
नागरयकों के अर्धकायों को सॊववधान भें अॊककत ककमा जाता है तो उसे ‗अर्धकाय ऩत्र‘ कहते हैं। सवथप्रथभ
अभेरयका के सॊववधान भें अर्धकाय-ऩत्र की व्मवस्था की गई थी। सॊववधान के ववमबन्न सॊशोधनों द्वाया
नागरयकों के भौमरक अर्धकायों की व्मवस्था की गई औय उन्हें अर्धकाय-ऩत्र नाभ टदमा गमा। अफ
अर्धकतय दे शों भें अर्धकाय-ऩत्र की व्मवस्था है । बायत भें नागरयकों के अर्धकायों को अर्धकाय-ऩत्र का नाभ
न दे कय भौमरक अर्धकायों का नाभ टदमा गमा है ।

प्रत्मेक दे श भें अर्धकाय-ऩत्र की व्मवस्था आवश्मक नहीॊ-मह आवश्मक नहीॊ है कक प्रत्मेक दे श भें अर्धकाय-
ऩत्र की व्मवस्था हो। इॊग्रैण्ड के सॊववधान भें अर्धकाय-ऩत्र की कोई व्मवस्था नहीॊ है । मह बी आवश्मक
नहीॊ है कक इसकी व्मवस्था रोकतान्न्त्रक दे श भें ही होती है । चीन भें अर्धकाय-ऩत्र की व्मवस्था है । वह
गणतान्न्त्रक दे श है ।

प्रश्न 12.
भौमरक अर्धकायों की ककन्हीॊ चाय ववशेषताओॊ का वणथन कीन्जए।
मा
भौमरक अर्धकायों की ववशेषताओॊ का सॊऺेऩ भें उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
भौमरक अर्धकायों की ववशेषताएॉ ननम्नमरखखत हैं –
1. भौमरक अर्धकाय दे श के सबी नागरयकों को सभान रूऩ से प्राप्त हैं।
2. इन अर्धकायों का सॊयऺक न्मामऩामरका को फनामा गमा है ।
3. याष्ट्र की सुयऺा तथा सभाज के टहत भें इन अर्धकायों ऩय प्रनतफन्ध रगामा जा सकता है ।
4. इन अर्धकायों द्वाया सयकाय की ननयॊ कुशता ऩय अॊकुश रगामा गमा है ।
5. केन्द्र सयकाय अथवा याज्म सयकाय ऐसे कानूनों का ननभाथण नहीॊ कये गी जो भौमरक अर्धकायों का
अनतक्रभण कयते हों।
6. भौमरक अर्धकाय न्माममुक्त होते हैं।
7. भौमरक अर्धकायों की प्रकृनत सकायात्भक होती है ।
प्रश्न 13.
सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकाय को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
मा
सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकाय से आऩ क्मा सभझते हैं ?
उत्तय :
भौमरक अर्धकायों की यऺा हे तु बायतीम नागरयकों को सॊवैधाननक उऩचायों का अर्धकाय प्रदान ककमा गमा
है । इस अर्धकाय का तात्ऩमथ मह है कक मटद याज्म मा केन्द्र सयकाय नागरयकों को टदमे गमे भौमरक
अर्धकायों को ककसी बी प्रकाय से ननमन्न्त्रत कयने का प्रमास कयती है मा उनका हनन कयती है , तो उसके
मरए उच्च न्मामारम मा उच्चतभ न्मामारम भें सयकाय की नीनतमों अथवा कानूनों के ववरुर्द् अऩीर की जा
सकती है ।
दीघश रनु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
भौमरक अर्धकायों का क्मा भहत्त्व है ?
उत्तय :
प्रजातन्त्र भें नागरयकों को उनके सवाांगीण ववकास के मरए कुछ भहत्त्वऩूणथ सुववधाएॉ तथा स्वतन्त्रताएॉ
प्रदान की जाती हैं। इन्हीॊ सुववधाओॊ तथा स्वतन्त्रताओॊ को भूर मा भौमरक अर्धकाय कहा जाता है । ‗भूर‘
का अथथ होता है -जड। वऺ
ृ के मरए जो भहत्त्व जड का होता है , वही भहत्त्व नागरयकों के मरए इन
अर्धकायों का है । न्जस प्रकाय जड के ब्रफना वऺ
ृ का अन्स्तत्व सम्बव नहीॊ है , उसी प्रकाय भौमरक अर्धकायों
के ब्रफना नागरयकों का शायीरयक, भानमसक, नैनतक तथा आध्मान्त्भक ववकास सम्बव नहीॊ है । प्रजातन्त्रीम
दे शों भें इनका उल्रेख सॊववधान भें कय टदमा जाता है , न्जससे सयकाय आसानी से इन्हें सॊशोर्धत मा
सभाप्त न कय सके।
बायतीम सॊववधान भें भौमरक अर्धकायों को स्ऩष्ट्ट उल्रेख ककमा गमा है न्जससे सत्तारूढ़ दर भनभानी न
कय सके। सयकाय की ननयॊ कुशता के ववरुर्द् भौमरक अर्धकाय प्रनतयोध का कामथ कयते हैं। ववधानभण्डर
द्वाया ननमभथत कोई बी कानून जो भौमरक अर्धकायों के ववरुर्द् है , न्मामारम द्वाया अवैध घोवषत ककमा जा
सकता है । बायत भें भौमरक अर्धकायों का भहत्त्व डॉ० बीभयाव अम्फेडकय ने इन शब्दों भें व्मक्त ककमा है ,
―भौमरक अर्धकायों के अनुच्छे द के ब्रफना सॊववधान अधूया यह जाएगा। मे सॊववधान की आत्भा औय रृदम
हैं।‖

प्रश्न 2.
धामभथक स्वतन्त्रता को अर्धकाय क्मा है ?
उत्तय :
सॊववधान ने प्रत्मेक नागरयक को धभथ के सन्दबथ भें ऩूणथ स्वतन्त्रता प्रदान की है । व्मन्क्त को धभथ के ऺेत्र
भें ऩण
ू थ स्वतन्त्रता इस दृन्ष्ट्ट से प्रदान की गमी है कक वह अऩनी इच्छानस
ु ाय ककसी बी धभथ को स्वीकाय
कये तथा अऩने ढॊ ग से अऩने इष्ट्ट की आयाधना कये । व्मन्क्तमों को मह बी स्वतन्त्रता है कक वह अऩनी
रुर्च के अनस
ु ाय धामभथक सॊस्थाओॊ का ननभाथण एवॊ अऩने धभथ का प्रचाय कये । इस प्रकाय सबी धामभथक
सन्दबो भें प्रत्मेक नागरयक ऩूणथ स्वतन्त्र है । ऐसा कयने भें सॊववधान का भुख्म उद्देश्म धभथ के नाभ ऩय होने
वारे वववादों का अन्त कयना था। अनच्
ु छे द 25 के अनस
ु ाय, सबी व्मन्क्तमों को, चाहे वे नागरयक हों मा
ववदे शी, अन्त:कयण की स्वतन्त्रता तथा ककसी बी धभथ को स्वीकाय कयने , आचयण कयने औय प्रचाय कयने
की स्वतन्त्रता है अनुच्छे द 26 के अनुसाय, धामभथक भाभरों के प्रफन्ध की बी स्वतन्त्रता है । अनुच्छे द 47 के
आधाय ऩय, धामभथक कामों के मरए व्मम की जाने वारी यामश को कय से भुक्त ककमा गमा है अनुच्छे द 28
के अनुसाय, याजकीम ननर्ध से चरने वारी ककसी बी मशऺण-सॊस्था भें ककसी प्रकाय की धामभथक मशऺा प्रदान
नहीॊ की जाएगी।
प्रनतफन्ध – ककन्हीॊ ववशेष कायणों मा ऩरयन्स्थनतमोंवश ककसी ववशेष धभथ के प्रचाय मा धामभथक सॊस्थान ऩय
सयकाय को प्रनतफन्ध रगाने का ऩण
ू थ अर्धकाय है ।
प्रश्न 3.
बायतीम सॊववधान भें वखणथत नागरयकों के भौमरक कतथव्म मरखखए।
उत्तय :
नागरयकों के भौसरक कतशव्म
बायतीम सॊववधान ननभाथताओॊ ने सॊववधान का ननभाथण कयते सभम भौमरक कतथव्मों को सॊववधान भें
सन्म्भमरत नहीॊ ककमा था, ऩयन्तु 42वें सॊवैधाननक सॊशोधन द्वाया भौमरक कतथव्मों को सॊववधान भें
सन्म्भमरत ककमा गमा न्जनकी सॊख्मा 10 थी, रेककन 86वें सॊववधान सॊशोधन अर्धननमभ (2002) द्वाया
इसभें एक औय ब्रफन्द ु जोडा गमा। अत् अफ इनकी सॊख्मा 11 हो गई है

1. सॊववधान, याष्ट्रीम ध्वज तथा याष्ट्रगान का सम्भान कयना।


2. याष्ट्रीम स्वतन्त्रता आन्दोरन के उद्देश्मों का आदय कयना औय उनका अनुगभन कयना।
3. बायत की प्रबस
ु त्ता, एकता औय अखण्डता का सभथथन व सयु ऺा कयना।
4. दे श की यऺा कयना तथा याष्ट्रीम सेवाओॊ भें आवश्मकता के सभम बाग रेना।
5. बायत भें सबी नागरयकों भें भ्रातत्ृ व-बावना ववकमसत कयना।
6. प्राचीन सभ्मता व सॊस्कृनत को सुयक्षऺत यखना।
7. वनों, झीरों व जॊगरी जानवयों की सयु ऺा तथा उनकी उन्ननत के मरए प्रमत्न कयना।
8. वैऻाननक तथा भानवतावादी दृन्ष्ट्टकोण को अऩनाना।
9. टहॊसा को योकना तथा सावथजननक सम्ऩन्त्त की सयु ऺा कयना।
10. व्मन्क्तगत तथा साभूटहक प्रमासों के द्वाया उच्च याष्ट्रीम रक्ष्मों की प्रान्प्त के मरए प्रमत्न
कयना।
11. 6 वषथ से 14 वषथ की आमु के फच्चे के भाता-वऩता को अऩने फच्चे को मशऺा टदराने के मरए
अवसय उऩरब्ध कयाना।
प्रश्न 4.
नीनत-ननदे शक तत्त्वों को सयकाय ने ककस सीभा तक रागू ककमा है ?
उत्तय :
सयकाय द्वाया नीनत-ननदे शक तत्त्वों को रागू कयने के फावजद
ू ववगत वषों भें रोक-कल्माणकायी याज्म की
स्थाऩना तो सम्बव नहीॊ हो सकी, ऩयन्तु इस टदशा भें प्रगनत अवश्म हुई। है । नीनत-ननदे शक तत्त्वों को
रागू कयने के मरए सयकाय द्वाया उठाए गए कदभ सयाहनीम हैं ; मथा –
(i) ऩॊचवषीम मोजनाओॊ के आधाय ऩय कृवष औय उद्मोगों की उन्ननत , मशऺा औय स्वास्थ्म की सुववधाओॊ का
प्रसाय, सयकायी सेवाओॊ ऩय आर्थथक सॊसाधनों, साधनों भें ववृ र्द्, याष्ट्रीम आम व रोगों के यहन-सहन के स्तय
को ऊॉचा उठाने के प्रमत्न ककए गए हैं।
(ii) मुवा वगथ औय फच्चों के शोषण से सुयऺा कयने के मरए अनेक कानून फनाए गए हैं। फीभायी औय
दघ
ु ट
थ ना के ववरुर्द् सुयऺा के मरए भजदयू वगथ भें फीभा मोजनाएॉ रागू की गई हैं व फेयोजगायी फीभा मोजना
को रागू कयने औय योजगाय की सुववधाएॉ फढ़ाने के प्रमत्न ककए जा यहे हैं।
(iii) ‗टहन्द ू कोड ब्रफर‘ के कई अॊशों; जैसे- ‗टहन्द ू वववाह अर्धननमभ, 1955′, ‗टहन्द ू उत्तयार्धकायी अर्धननमभ,
1956‘ आटद; को ऩारयत कयके दे श के सबी वगों के मरए सभान ववर्ध सॊटहता रागू कयने के प्रमत्न ककए
जा यहे हैं।
(iv) अस्ऩश्ृ मता ननवायण के मरए तथा अनुसूर्चत व वऩछडी जानतमों के फच्चों को उदायताऩूवक
थ छात्रवन्ृ त्त
औय अन्म सवु वधाओॊ द्वाया मशऺा प्रदान कयने के भागथ भें अबत
ू ऩव
ू थ प्रगनत हुई है ।
(v) मद्मवऩ अफ बी नन:शुल्क औय अननवामथ प्रायन्म्बक मशऺा सफके मरए ऩमाथप्त स्वास्थ्म सेवा का प्रफन्ध
अऩणू थ है , तथावऩ इन टदशाओॊ भें भहत्त्वऩण
ू थ प्रगनत हुई है । रोकतान्न्त्रक ववकेन्द्रीकयण औय साभद
ु ानमक
ववकास मोजनाओॊ द्वाया ग्राभ ऩॊचामतों औय ऩॊचामत याज को बी अर्धक सशक्त फना टदमा गमा है ।
सॊववधान के 73वें सॊशोधन के द्वाया ऩॊचामती याज व्मवस्था को सॊवैधाननक आधाय प्रदान ककमा गमा है ।
भटहराओॊ की सहबार्गता को सुननन्श्चत कयने के उद्देश्म से उनके मरए 33.33 प्रनतशत आयऺण की
ऩॊचामती याज सॊस्थाओॊ भें व्मवस्था की गई है तथा सॊसद एवॊ ववधानभण्डरों भें बी प्रावधान ऩय ववचाय
चर यहा है । ऩॊचामतों की शन्क्तमों, अर्धकायों तथा कामों भें बी ववृ र्द् की गई है ।
दीघश उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
बायतीम सॊववधान भें वखणथत नागरयकों के भौमरक अर्धकायों भें सभानता के अर्धकाय का वणथन कीन्जए।
मा
बायतीम सॊववधान द्वाया नागरयकों को टदमे गमे भर
ू अर्धकायों भें स्वतन्त्रता के अर्धकाय का सववस्ताय
वणथन कीन्जए।
मा
भौमरक अर्धकाय क्मा हैं ? बायतीम सॊववधान भें वखणथत भौमरक अर्धकायों का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
मा
सॊववधान भें वखणथत नागरयकों के भौमरक अर्धकायों भें सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकाय का वणथन कीन्जए
औय इनका भहत्त्व फताइए।
उत्तय :
वे अर्धकाय, जो भानव-जीवन के मरए आवश्मक एवॊ अऩरयहामथ हैं तथा सॊववधान द्वाया नागरयकों को प्रदान
ककमे जाते हैं , भौमरक अर्धकाय कहराते हैं। इन अर्धकायों का व्मवस्थावऩका एवॊ कामथऩामरका द्वाया बी
उल्रॊघन नहीॊ ककमा जा सकता। न्मामऩामरका ऐसे सभस्त कानन
ू ों को अवैध घोवषत कय सकती है , जो
सॊववधान के अनुच्छे दों का उल्रॊघन अथवा अनतक्रभण कयते हैं। भौमरक अर्धकाय व्मन्क्त के व्मन्क्तत्व से
सम्फर्द् यहते हैं। अत: याज्म द्वाया ननमभथत ककसी बी कानून से ऊऩय होते हैं। इनभें ककसी प्रकाय का
सॊशोधन केवर सॊववधान सॊशोधन के आधाय ऩय ही ककमा जा सकता है । बायतीम सॊववधान भें ननटहत
भौमरक अर्धकाय एक ववस्तत
ृ अर्धकाय-ऩत्र के रूऩ भें हैं। भौमरक अर्धकाय सॊववधान के बाग 3 भें वखणथत
ककमे गमे हैं। बायतीम सॊववधान के तत
ृ ीम बाग भें अनुच्छे द 12 से 35 तक भौमरक अर्धकायों का ववमशष्ट्ट
वववेचन ककमा गमा है । इसके द्वाया बायतीम नागरयकों को सात भौमरक अर्धकाय प्रदान ककमे गमे थे ,
ककन्तु 44वें सॊवैधाननक सॊशोधन (1979) द्वाया सम्ऩन्त्त के अर्धकाय को भौमरक अर्धकाय के रूऩ भें
सभाप्त कय टदमा गमा है । अफ सम्ऩन्त्त का अर्धकाय केवर एक कानूनी अर्धकाय के रूऩ भें है ।
भौसरक अचधकायों के प्रकाय
बायतीम नागरयकों को ननम्नमरखखत छ: भौमरक अर्धकाय प्राप्त हैं –

(i) सभानता का अचधकाय


सॊववधान द्वाया ननम्नमरखखत ऩाॉच प्रकाय की सभानताएॉ प्रदान की गमी हैं –
(1) कानन ु छे द 14) – सॊववधान भें , कानून के ऺेत्र भें सबी नागरयकों को सभान अर्धकाय
ू के ऺेत्र भें सभानता(अनच्
टदमे गमे हैं। कानून की दृन्ष्ट्ट भें न कोई छोटा है न फडा। वह ननधथन को हीन दृन्ष्ट्ट से नहीॊ दे खता औय
धनवान को बी ववशेष भहत्त्व नहीॊ दे ता। तात्ऩमथ मह है कक वह सबी को सभान दृन्ष्ट्ट से दे खता है । धभथ-
मरॊग के आधाय ऩय बी ककसी से ककसी प्रकाय का बेदबाव नहीॊ कयता।
(2) सािशजननक स्थानों के उऩबोग भें सभानता (अनच्ु छे द 15) – सॊववधान भें मह स्ऩष्ट्ट मरखा है कक सावथजननक
स्थानों; जैसे – ताराफों, नहयों, ऩाको आटद सबी का, सबी नागरयक ब्रफना ककसी बेदबाव के उऩबोग कयने के
सभान अर्धकायी हैं।
(3) सयकायी नौकरयमों भें सभानता (अनच्ु छे द 16) – सयकायी नौकरयमों भें ननमन्ु क्त के सभम ककसी के साथ धभथ ,
मरॊग, जानत आटद के आधाय ऩय बेदबाव नहीॊ ककमा जाएगा औय ननमुन्क्त मा ऩदोन्ननत का आधाय केवर
मोग्मता को भाना जाएगा। इस अर्धकाय का अऩवाद मह है कक अनुसूर्चत जानत- जनजानतमों के मरए
नौकरयमों भें कुछ स्थान सुयक्षऺत कय टदमे गमे हैं। याज्म वऩछडे वगों के मरए बी स्थानों का आयऺण कय
सकता है । इसके अनतरयक्त याज्म कुछ ऩदों के मरए आवास की मोग्मता बी ननधाथरयत कय सकता है ।
(4) अस्ऩश्ृ मता का अन्त (अनच्ु छे द 17) – अनुसूर्चत जानतमों के उत्थान औय उनभें स्वामबभान की बावना
जगाने तथा उनका ववकास कयने के उद्देश्म से अस्ऩश्ृ मता को अऩयाध घोवषत ककमा गमा है ।
(5) उऩाचधमों का अन्त (अनच्ु छे द 18) – व्मन्क्तमों भें ऩायस्ऩरयक बेदबाव, ऊॉच-नीच की बावना को सभाप्त कय,
सभाज भें सभानता स्थावऩत कयने के उद्देश्म से , सॊववधान ने अॊग्रेजी शासन द्वाया दी जाने वारी सबी
उऩार्धमों को ननयस्त कय टदमा है । अफ केवर शैक्षऺक औय सैननक उऩार्धमाॉ ही दी जाती हैं।
अऩिाद – उऩमक्
ुथ त ऺेत्रों भें सभानता का मसर्द्ान्त रागू ककमा गमा है , कपय बी भानव-टहतों औय उनके
उत्थान को ध्मान भें यखकय सयकाय कुछ ऺेत्रों भें इन ननमभों की अवहे रना बी कय सकती है ।
(ii) स्ितन्त्रता का अचधकाय
(1) अनच्
ु छे द 19 द्वाया इस अर्धकाय से सम्फन्न्धत ननम्नमरखखत छ् स्वतन्त्रताएॉ नागरयकों को प्राप्त हैं –
1. बाषण द्वाया ववचायामबव्मन्क्त की स्वतन्त्रता-सॊववधान ने प्रत्मेक व्मन्क्त को बाषण के रूऩ भें अऩने
ववचाय व्मक्त कयने एवॊ अऩने ववचायों को ऩत्र-ऩब्रत्रकाओॊ भें प्रकामशत कयाने की स्वतन्त्रता प्रदान की
है ।
2. सबा कयने की स्वतन्त्रता सॊववधान ने नागरयकों को शान्न्तऩूवक
थ सबा व सम्भेरन कयने की बी
स्वतन्त्रता प्रदान की है ।
3. व्मवसाम की स्वतन्त्रता–प्रत्मेक व्मन्क्त अऩनी इच्छानुसाय व्मवसाम कयने के मरए स्वतन्त्र है ।
4. सॊघ मा सभुदाम के ननभाथण की स्वतन्त्रता-नागरयकों को भानव-टहतों के मरए सभुदामों अथवा सॊघों
के ननभाथण की स्वतन्त्रता है ।
5. भ्रभण की स्वतन्त्रता-सॊववधान ने नागरयकों को दे श की सीभाओॊ के अन्दय स्वतन्त्रताऩूवक
थ एक
स्थान से दस
ू ये स्थान ऩय आने-जाने की ऩूणथ स्वतन्त्रता दी है ।
6. आवास की स्वतन्त्रता प्रत्मेक व्मन्क्त को इस फात की स्वतन्त्रता दी गमी है कक वह अऩनी न्स्थनत
के अनुसाय ककसी बी स्थान ऩय यहे ।
अऩिाद – सभाज तथा याष्ट्र के टहत भें सयकाय के द्वाया स्वतन्त्रता के अर्धकाय ऩय बी वववेकऩण
ू थ प्रनतफन्ध
रगामे जा सकते हैं।
(2) अऩयाधों की दोषससवद् के सम्फन्ध भें सॊयऺण – अनच्
ु छे द 20 के अनस
ु ाय
(क) ककसी व्मन्क्त को उस सभम तक दण्ड नहीॊ टदमा जा सकता , जफ तक कक उसने ककसी प्रचमरत कानून
को न तोडा हो तथा
(ख) उसे स्वमॊ अऩने ववरुर्द् गवाही दे ने के मरए ककसी बी प्रकाय से फाध्म नहीॊ ककमा जा सकता।
(3) जीिन औय र्यीय-यऺण का अचधकाय अनच्ु छे द 21 के अनुसाय, ककसी व्मन्क्त की प्राण अथवा दै टहक स्वतन्त्रता
को केवर ववर्ध द्वाया स्थावऩत प्रकक्रमा को छोडकय, अन्म ककसी प्रकाय से वॊर्चत नहीॊ ककमा जाएगा।
(4) फन्दीकयण के सॊयऺण की स्ितन्त्रता-अनच्ु छे द 22 के अनुसाय
(क) प्रत्मेक फन्दी को फन्दी होने का कायण जानने का अर्धकाय टदमा गमा है तथा
(ख) ककसी को फन्दी फनाने के फाद उसे 24 घण्टे के अन्दय ही ककसी न्मामाधीश के सभऺ उऩन्स्थत कयना
आवश्मक है ।
(iii) र्ोषण के विरुद् अचधकाय
सॊववधान भें अनच्
ु छे द 23 व 24 को सन्म्भमरत कयने का उद्देश्म मह था कक कोई ककसी का शोषण ने कय
सके। अत् सॊववधान द्वाया मह घोषणा की गमी है कक –

1. ककसी व्मन्क्त से फेगाय औय फरऩूवक


थ काभ नहीॊ मरमा जाएगा।
2. चौदह वषथ से कभ आमु के फारक-फामरकाओॊ से खानों , कायखानों तथा स्वास्थ्म ऩय फयु ा प्रबाव
डारने वारे स्थानों ऩय काभ नहीॊ मरमा जाएगा।
3. न्स्त्रमों व फच्चों का क्रम-ववक्रम कयना अऩयाध है । अऩवाद-याज्म सावथजननक कामों के मरए नागरयकों
की अननवामथ सेवाएॉ प्राप्त कय सकता है ।
(iv) धासभशक स्ितन्त्रता का अचधकाय
सॊववधान ने बायत भें धभथननयऩेऺ याज्म की स्थाऩना कयने के उद्देश्म से प्रत्मेक नागरयक को ऩण
ू थ धामभथक
स्वतन्त्रता प्रदान की है अथाथत ् प्रत्मेक नागरयक अऩनी अन्तयात्भा के अनुसाय कोई बी धभथ स्वीकाय कय
सकता है , अऩने धभथ की प्रथा के अनस
ु ाय आयाधना कय सकता है तथा अऩने धभथ का प्रचाय-प्रसाय कय
सकता है (अनुच्छे द 25)। सबी व्मन्क्तमों को धामभथक भाभरों एवॊ सॊस्थाओॊ का प्रफन्ध कयने की बी
स्वतन्त्रता है (अनच्
ु छे द 26)। याज्म ककसी बी धभथ के साथ ऩऺऩात नहीॊ कये गा। इसका आशम मह है कक
याज्म धामभथक भाभरों भें ऩूणरू
थ ऩ से तटस्थ है औय धभथ , व्मन्क्त का व्मन्क्तगत ववषम है । इसके अनतरयक्त,
नागरयकों ऩय ककसी प्रकाय का धामभथक कय नहीॊ रगामा जाएगा (अनुच्छे द 27)। मह बी घोषणा की गमी है
कक सयकायी अथवा सयकायी सहामता मा भान्मता प्राप्त मशऺा सॊस्था भें ककसी धभथ-ववशेष की मशऺा नहीॊ
दी जा सकती है (अनुच्छे द 28)। इसके अनतरयक्त 42वें सॊवैधाननक सॊशोधन के द्वाया सॊववधान की
प्रस्तावना भें ‗ऩन्थननयऩेऺ‘ शब्द जोडा गमा है ।

अऩिाद – अन्म अर्धकायों की बाॉनत इस अर्धकाय ऩय बी कुछ प्रनतफन्ध हैं। सयकाय ककसी बी ऐसे धामभथक
आचयण ऩय कानून फनाकय योक रगा सकती है , न्जससे साभान्जक मा याष्ट्रीम टहतों को कोई खतया ऩहुॉचता
हो।
(v) साॊस्कृनतक ि सर्ऺा-सम्फन्धी अचधकाय
1. अनुच्छे द 29 के अनुसाय प्रत्मेक बाषा-बाषी को अऩनी सॊस्कृनत, बाषा औय मरवऩ को सुयक्षऺत यखने
का अर्धकाय है ।
2. प्रत्मेक व्मन्क्त को याज्म द्वाया स्थावऩत मा याज्म द्वाया दी गमी आर्थथक सहामता से चर यहे
मशऺण सॊस्थान भें प्रवेश रेने का अर्धकाय है , चाहे वह ककसी बी धभथ, जानत मा वगथ से सम्फन्ध
यखता हो।
3. अनुच्छे द 30 के अनुसाय प्रत्मेक वगथ के व्मन्क्तमों को अऩनी इच्छानुसाय मशऺण सॊस्थाएॉ खोरने का
अर्धकाय टदमा गमा है ।
4. सॊववधान सॊशोधन, 93 (2001) के अनुसाय 6 वषथ से 14 वषथ तक के फच्चों के मरए नन:शुल्क मशऺा
का अर्धकाय टदमा गमा है ।
(vi) सॊिध
ै ाननके उऩचायों का अचधकाय
उऩमक्
ु थ त भर
ू अर्धकायों की यऺा हे तु सॊववधान भें अनच्
ु छे द 32 के अनस
ु ाय सॊवैधाननक उऩचायों का अर्धकाय
बी सन्म्भमरत ककमा गमा है । इस अर्धकाय का तात्ऩमथ मह है कक मटद याज्म मा सयकाय , नागरयक को टदमे
गमे भूर अर्धकायों ऩय ककसी प्रकाय का प्रनतफन्ध रगाती है मा उनका अनतक्रभण कयती है तो वे उसके
मरए उच्च न्मामारम अथवा सवोच्च न्मामारम की शयण रे सकते हैं। नागरयकों के भौमरक अर्धकायों की
यऺा के मरए उच्च न्मामारमों तथा सवोच्च न्मामारम द्वाया ननम्नमरखखत ऩाॉच प्रकाय के रेख जायी ककमे
जाते हैं –

1. फन्दी प्रत्मऺीकयण (Habeas Corpus)


2. ऩयभादे श (Mandamus)
3. अर्धकाय ऩच्
ृ छा (Quo-Warranto)
4. प्रनतषेध (Prohibition)
5. उत्प्रेषण रेख (Certiorari)।
अऩिाद – व्मन्क्तमों के द्वाया साधायण ऩरयन्स्थनतमों भें ही न्मामारम की शयण रेकय अऩने भौमरक
अर्धकायों की यऺा की जा सकती है । आऩातकार भें कोई व्मन्क्त अऩने भौमरक अर्धकायों की यऺा के मरए
न्मामारम भें प्राथथना नहीॊ कय सकता।
उऩमुक्
थ त वववेचन से स्ऩष्ट्ट है कक नागरयकों को सॊववधान के द्वाया प्रदत्त भौमरक अर्धकायों का ऺेत्र फहुत
व्माऩक है । भौमरक अर्धकाय व्मन्क्त-स्वातन््म तथा अर्धकायों के टहत भें याज्म की शन्क्त ऩय प्रनतफन्ध
रगाने के श्रेष्ट्ठ उऩाम हैं। बायत ही नहीॊ वयन ् ववश्व के अर्धकाॊश याष्ट्रों भें वतथभान सभम भें भौमरक
अर्धकायों की व्मवस्था ने एक सवथभान्म अवधायणा का रूऩ धायण कय मरमा है ।

भौसरक अचधकायों का भहत्त्ि


भूर अर्धकाय रोकतन्त्र के आधाय-स्तम्ब हैं। भूर ‘ का अथथ होता है -जड। वऺ
ृ के मरए जो भहत्त्व जड का
होता है , वही भहत्त्व नागरयकों के मरए इन अर्धकायों का है । न्जस प्रकाय जड के ब्रफना वऺ
ृ का अन्स्तत्व
सम्बव नहीॊ है , उसी प्रकाय भौमरक अर्धकायों के ब्रफना नागरयकों का शायीरयक , भानमसक, नैनतक तथा
आध्मान्त्भक ववकास सम्बव नहीॊ है । मे जनता के जीवन के यऺक हैं। मे फहुभत की तानाशाही ऩय अॊकुश
रगाते हैं औय भानव की स्वतन्त्रता तथा साभान्जक ननमन्त्रण भें सभन्वम स्थावऩत कयते हैं।

सॊववधान भें भौमरक अर्धकायों का फहुत भहत्त्व है , जो ननम्नमरखखत है –

(1) भौसरक अचधकाय प्रजातन्त्र के आधाय-स्तम्ब हैं – भर


ू अर्धकाय प्रजातन्त्र के मरए अननवामथ हैं। इनके द्वाया
प्रत्मेक व्मन्क्त को ऩूणथ शायीरयक, भानमसक औय नैनतक ववकास की सुयऺा प्रदान की जाती है ।
(2) फहुभत की तानार्ाही को योकते हैं – भौमरक अर्धकाय एक दे श के याजनीनतक जीवन भें एक दर ववशेष की
तानाशाही स्थावऩत होने से योकने के मरए अननवामथ हैं। भौमरक अर्धकाय शासकीम औय फहुभत वगथ के
अत्माचायों से व्मन्क्त की यऺा कयते हैं।
(3) व्मक्तत की स्ितन्त्रता औय साभाक्जक ननमन्त्रण भें सभन्िम – भौमरक अर्धकाय व्मन्क्त की स्वतन्त्रता औय
साभान्जक ननमन्त्रण के उर्चत साभॊजस्म की स्थाऩना कयते हैं।
भौमरक अर्धकायों का सॊववधान भें उल्रेख कय दे ने से उनके भहत्त्व औय सम्भान भें ववृ र्द् होती है । इससे
उन्हें साधायण कानून से अर्धक उच्च स्थान औय ऩववत्रता प्राप्त हो जाती है । इससे वे अनुल्रॊघनीम होते
हैं। व्मवस्थावऩका, कामथऩामरका व न्मामऩामरका के मरए उनका ऩारन आवश्मक हो जाता है ।

डॉ० बीभयाव अम्फेडकय ने भौमरक अर्धकायों का भहत्त्व व्मक्त कयते हुए कहा है कक , ―भौमरक अर्धकायों
के अनुच्छे द के ब्रफना सॊववधान अधूया यह जाएगा। मे सॊववधान की आत्भा औय रृदम हैं। ‖

प्रश्न 2.
दक्षऺण अिीका के सॊववधान भें अर्धकायों की घोषणा-ऩत्र ककस रूऩ भें सन्म्भमरत ककमा गमा है ?
उत्तय :
दक्षऺण अिीका के सॊववधान भें अर्धकायों की घोषणा-ऩत्र दक्षऺण अिीका का सॊववधान टदसम्फय , 1996 भें
रागू हुआ। इसे तफ फनामा औय रागू ककमा गमा जफ यॊ गबेद वारी सयकाय के हटने के फाद दक्षऺण
अिीका गह ृ मुर्द् के खतये से जूझ यहा था। दक्षऺण अिीका के सॊववधान के अनुसाय ―उसके अर्धकायों की
घोषणा-ऩत्र दक्षऺण अिीका भें प्रजातन्त्र की आधायमशरा है । ‖ मह नस्र, मरॊग, गबथधायण, वैवाटहक न्स्थनत,
जातीम मा साभान्जक भर
ू , यॊ ग, आमु, अऩॊगता, धभथ, अन्तयात्भा, आस्था, सॊस्कृनत, बाषा औय जन्भ के आधाय
ऩय बेदबाव वन्जथत कयता है । मह नागरयकों को सम्बवत् सफसे ज्मादा व्माऩक अर्धकाय दे ता है ।
सॊवैधाननक अर्धकायों को एक ववशेष सॊवैधाननक न्मामारम रागू कयता है ।
दक्षऺण अिीका के सॊववधान भें सन्म्भमरत कुछ प्रभुख अर्धकाय ननम्नमरखखत हैं –

1. गरयभा का अर्धकाय
2. ननजता का अर्धकाय
3. श्रभ-सम्फन्धी सभुर्चत व्मवहाय का अर्धकाय
4. स्वस्थ ऩमाथवयण औय ऩमाथवयण सॊयऺण का अर्धकाय
5. सभर्ु चत आवास का अर्धकाय
6. स्वास्थ्म सुववधाएॉ, बोजन, ऩानी औय साभान्जक सुयऺा का अर्धकाय
7. फार-अर्धकाय
8. फुननमादी औय उच्च मशऺा का अर्धकाय
9. साॊस्कृनतक, धामभथक औय बाषाई सभद
ु ामों का अर्धकाय
10. सूचना प्राप्त कयने का अर्धकाय।
प्रश्न 3.
बायतीम नागरयकों के भूर कतथव्मों ऩय एक रेख मरखखए।
मा
भौमरक कतथव्मों से आऩ क्मा सभझते हैं ? इनका क्मा भहत्त्व है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें भूर कतथव्मों का कोई उल्रेख नहीॊ था; अत: मह अनुबव ककमा गमा कक भूर
अर्धकायों के साथ-साथ भर
ू कतथव्मों की बी व्मवस्था आवश्मक है । इस कभी को 1976 भें सॊववधान के
42वें सॊशोधन द्वाया दयू ककमा गमा औय सॊववधान भें एक नमा अनुच्छे द 51 (क) ‗भौमरक कतथव्म‘ जोडा
गमा। सॊववधान के 86वें सॊशोधन अर्धननमभ 2002 के अन्तगथत एक कतथव्म औय जोडा गमा। नागरयकों के
ग्मायह कतथव्मों का वणथन ननम्नवत ् है –
1. सॊववधान का ऩारन कयना औय उसके आदशों, सॊस्थाओॊ, याष्ट्रगान औय याष्ट्रीम ध्वज का आदय
कयना।
2. दे श के स्वतन्त्रता सॊग्राभ भें जो उच्च आदशथ यखे गमे थे , उनका ऩारन कयना व उनके प्रनत रृदम
भें आदय फनामे यखना।
3. बायत की प्रबुसत्ता, एकता तथा अखण्डता का सभथथन औय यऺा कयना।
4. दे श की यऺा के मरए हय सभम तैमाय यहना तथा आवश्मकता ऩडने ऩय याष्ट्रीम सेवाओॊ भें बाग
रेना।
5. बायत के सबी नागरयकों भें भ्रातत्ृ व की बावना ववकमसत कयना, ववमबन्न प्रकाय की मबन्नताओॊ के
फीच एकता की स्थाऩना कयना औय न्स्त्रमों के प्रनत आदयबाव यखना।
6. हभायी प्राचीन सॊस्कृनत औय उसकी दे नों को तथा उसकी गौयवशारी ऩयम्ऩया का भहत्त्व सभझना
औय उसकी सुयऺा कयना।
7. प्राकृनतक ऩमाथवयण को दवू षत होने से फचाना एवॊ वनों, झीरों, नटदमों की यऺा औय सॊवधथन कयना
तथा वन्म प्राखणमों के प्रनत दमाबाव यखना।
8. वैऻाननक तथा भानवतावादी दृन्ष्ट्टकोण अऩनाना औय ऻानाजथन तथा सुधाय की बावना का ववकास
कयना।
9. सावथजननक सम्ऩन्त्त की यऺा कयना तथा टहॊसा को योकना।
10. व्मन्क्तगत तथा साभूटहक प्रमत्नों के द्वाया सबी ऺेत्रों भें श्रेष्ट्ठता प्राप्त कयने का प्रमास
कयना।
11. छ् से चौदह वषथ तक के फारकों को उनके भाता-वऩता मा सॊयऺक द्वाया अननवामथ मशऺा के
अवसय उऩरब्ध कयाना।
भौसरक कतशव्मों का भहत्त्ि
भौमरक कतथव्म हभाये रोकतन्त्र को सशक्त फनाने भें सहामक होंगे। इनभें कहा गमा है कक नागरयक
रोकतान्न्त्रक सॊस्थाओॊ के प्रनत आदय का बाव यखें। दे श की सम्प्रबुता , एकता एवॊ अखण्डता की यऺा कयें ।
सावथजननक सम्ऩन्त्त को अऩनी ननजी सम्ऩन्त्त सभझकय उसे नष्ट्ट होने से फचामें। इस प्रकाय का
दृन्ष्ट्टकोण रोकतन्त्र की सपरता के मरए अननवामथ है ।

इनके द्वाया ववघटनकायी शन्क्तमों ऩय योक रगेगी औय दे श भें एकता-अखण्डता की बावना का ववकास
होगा। बौनतक वातावयण दवू षत होने से फचेगा औय स्वास्थ्मवर्द्थक वातावयण का ननभाथण होगा। याष्ट्रीम
जीवन से अमोग्मता एवॊ अऺभता को दयू कयने भें सहामता प्राप्त होगी। दे श-प्रेभ की बावना फरवती होगी
औय दे श की गौयवशारी ऩयम्ऩयागत सॊस्कृनत को सयु क्षऺत यखने भें सहामता मभरेगी।

भौमरक कतथव्मों के ऩीछे कोई कानन


ू ी शन्क्त नहीॊ है । इनका स्वरूऩ नैनतक भाना जाता है औय मही ववशेष
भहत्त्व यखता है । याष्ट्र औय सभाज-ववयोधी कामथवाटहमाॉ कयने वारे व्मन्क्तमों को सॊववधान भें उन्ल्रखखत मे
कतथव्म उन्हें ऐसा न कयने के मरए नैनतक प्रेयणा दे ते हैं। वास्तव भें अर्धकायों से बी अर्धक भहत्त्व
कतथव्मों को टदमा जाना चाटहए, क्मोंकक कतथव्मऩारन से ही अर्धकाय प्राप्त हो सकते हैं।

भौसरक कतशव्मों की आरोचना


भौमरक कतथव्मों की ववमबन्न ववद्वानों ने कई प्रकाय से आरोचना की है तथा उनभें कमभमाॉ फतामी हैं जो
कक ननम्नमरखखत हैं –

(1) भूर कतथव्म आदशथवादी हैं , उन्हें रागू कयना कटठन है । इस कायण व्मावहारयक जीवन भें इनकी कोई
उऩमोर्गता नहीॊ है ; जैसे – याष्ट्रीम आन्दोरन के प्रेयक आदशों को ऩारन कयना अथवा वैऻाननक तथा
भानवतावादी दृन्ष्ट्टकोण अऩनाना।
(2) भूर कतथव्मों का उल्रॊघन ककमे जाने ऩय दण्ड की व्मवस्था नहीॊ की गमी है । ऐसी न्स्थनत भें मह कैसे
ववश्वास ककमा जा सकता है कक नागरयक इन कतथव्मों का ऩारन अवश्म ही कयें गे।
(3) कुछ भूर कतथव्मों की बाषा अस्ऩष्ट्ट है ; जैसे-भानववाद, सुधाय की बावना का ववकास औय सबी ऺेत्रों भें
उत्कृष्ट्टता के प्रमास आटद ऐसी फातें हैं न्जनकी व्माख्मा ववमबन्न व्मन्क्त अऩने अऩने दृन्ष्ट्टकोण के
अनुसाय भनभाने रूऩ से कय सकते हैं। साधायण नागरयक के मरए तो इनका सभझना कटठन है । जफ
इनका सभझना ही कटठन है तो इनका ऩारन कयना तो औय बी कटठन हो जाएगा।
ननष्ट्कषश – नन:सन्दे ह भौमरक कतथव्मों की आरोचना की गमी है , रेककन इससे इन कतथव्मों का भहत्त्व कभ
नहीॊ हो जाता। सॊववधान भें भौमरक कतथव्मों के अॊककत ककमे जाने से मे नागरयकों को सदै व माद । टदराते
यहें गे कक नागरयकों के अर्धकायों के साथ कतथव्म बी हैं। एक प्रमसर्द् ववद्वान ् का कथन है , ―अर्धकायों का
अन्स्तत्व केवर कतथव्मों के सॊसाय भें ही होता है । ‖
प्रश्न 4.
―अर्धकाय एवॊ कतथव्म एक-दस
ू ये के ऩूयक हैं। ‖ इस कथन की वववेचना कीन्जए।
मा
―अर्धकाय औय कतथव्म ऩयस्ऩय सम्फन्न्धत हैं। ‖ इस कथन को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय :
अर्धकाय औय कतथव्म एक प्राण औय दो शयीय के सभान हैं। एक के सभाप्त होते ही दस
ू या स्वमॊ ही
सभाप्त हो जाता है । एक व्मन्क्त का अर्धकाय दस
ू ये का कतथव्म फन जाता है । जहाॉ एक व्मन्क्त को
सयु क्षऺत जीवन का अर्धकाय होता है , वहीॊ दस
ू ये व्मन्क्त का कतथव्म फन जाता है कक वे उसके जीवन को
नष्ट्ट न कये ।
भहात्भा गाॊधी के अनुसाय, ―कतथव्म का ऩारन कीन्जए; अर्धकाय स्वत: ही आऩको मभर जाएॉगे। ‖

प्रो० एच० जे रॉस्की के अनुसाय, ―भेया अर्धकाय तुम्हाया कतथव्म है । अर्धकाय भें मह कतथव्म ननटहत है कक
भैं तुम्हाये अर्धकाय को स्वीकाय करूॊ। भुझे अऩने अर्धकायों का प्रमोग साभान्जक टहत भें ववृ र्द् कयने की
दृन्ष्ट्ट से कयना चाटहए, क्मोंकक याज्म भेये अर्धकायों को सुयक्षऺत यखता है ; अत: याज्म की सहामता कयना
भेया कतथव्म है ।‖

अर्धकायों औय कतथव्मों की ऩयू कता (सम्फन्ध) को ननम्नवत ् दशाथमा जा सकता है –

(1) सभाज-कल्माण तथा अचधकाय – अर्धकाय साभान्जक वस्तु है । इसका अन्स्तत्व तथा बोग सभाज भें ही
सम्बव है । इसमरए प्रत्मेक अर्धकाय के ऩीछे एक आधायबूत कतथव्म होता है कक भनुष्ट्म अऩने अर्धकायों
का बोग इस प्रकाय कये कक सभाज का अटहत न हो। सभाज व्मन्क्त को इसी ववश्वास के साथ अर्धकाय
प्रदान कयता है कक वह अऩने अर्धकायों का प्रमोग सावथजननक टहत भें कये गा।
(2) अचधकाय औय कतशव्म : जीिन के दो ऩऺ – अर्धकाय बौनतक है औय कतथव्म नैनतक। अर्धकाय बौनतक
वस्तुओॊ-बोजन, वस्त्र, बवन-की ऩूनतथ कयता है , ककन्तु कत्तथव्म से ऩयभानन्द की प्रान्प्त होती है । अत्
अर्धकाय एवॊ कतथव्म जीवन के दो ऩऺ हैं।
(3) कत्तशव्मऩारन तथा अचधकायों का उऩबोग – कतथव्मऩारन भें ही अर्धकायों के उऩबोग का यहस्म नछऩा हुआ है ;
जैसे कोई व्मन्क्त जीवन औय सम्ऩन्त्त के अर्धकाय का बोग ब्रफना फाधा के कयना चाहता है , तो इसके
मरए अननवामथ है कक वह अन्म व्मन्क्तमों के जीवन तथा सम्ऩन्त्त के सॊयऺण भें फाधक न फने। अर्धकायों
का सदऩ
ु मोग ही कतथव्म है ।
ू ये के ऩयू क-प्रो० श्रीननिास र्ास्त्री के अनुसाय, अर्धकाय औय कतथव्म दो मबन्न-
(4) अचधकाय औय कत्तशव्म : एक-दस
मबन्न दृन्ष्ट्टकोण से दे खे जाने के कायण एक ही वस्तु के दो नाभ हैं। ‖ ब्रफना कतथव्मों के अर्धकायों का
उऩमोग असम्बव है । एक के ब्रफना दस
ू ये का अन्स्तत्व नहीॊ है । दोनों की उत्ऩन्त्त एवॊ अन्त साथ-साथ होता
है ।
(5) अचधकाय तथा कत्तशव्म : एक ससतके के दो ऩहरू – व्मन्क्त के अर्धकायों को ननममभत फनाने के मरए सभाज
की स्वीकृनत आवश्मक है । मही स्वीकृनत दे ना सभाज का कतथव्म है औय सभाज के जो अर्धकाय होते हैं वे
व्मन्क्त के कतथव्म फन जाते हैं। उदाहयण के मरए, मटद भेया अर्धकाय है कक भैं स्वतन्त्रताऩूवक
थ अऩने
ववचायों को व्मक्त कय सकें तो इस अर्धकाय के कायण अन्म व्मन्क्तमों का बी मह कतथव्म है कक वे भेये
ववचायों की अमबव्मन्क्त भें फाधा न डारें। इसी प्रकाय मटद अन्म व्मन्क्तमों का मह अर्धकाय है कक वे
अऩनी इच्छानुसाय अऩने धभथ का ऩारन कयें , तो भेया मह कतथव्म हो जाता है कक भैं उनके ववश्वास भें
फाधा न डारें।
उऩमुक्
थ त वववेचन से स्ऩष्ट्ट है कक अर्धकायों औय कतथव्मों को एक-दस
ू ये से ऩथ
ृ क् कयके कल्ऩना ही नहीॊ की
जा सकती। अर्धकाय कतथव्म की तथा कतथव्म अर्धकाय की छामा भात्र होता है । एक के हट जाने से दोनों
का अन्स्तत्व नष्ट्ट हो जाता है ।

प्रश्न 5.
याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्वों से आऩ क्मा सभझते हैं ? सॊववधान भें वखणथत प्रभख
ु नीनत-ननदे शक तत्त्वों
का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
‗याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्व‘ वे मसर्द्ान्त हैं, जो याज्म की नीनत का ननदे शन कयते हैं। दस
ू ये शब्दों भें ,
याज्म न्जन मसर्द्ान्तों को अऩनी शासन-नीनत का आधाय फनाता है , वे ही याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्व मा
मसर्द्ान्त कहे जाते हैं। मे तत्त्व याज्म के प्रशासन के ऩथ-प्रदशथक हैं। याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्वों के
अन्तगथत उन आदे शों एवॊ ननदे शों का सभावेश है , जो बायतीम सॊववधान ने बायत-याज्म तथा ववमबन्न याज्मों
को अऩनी साभान्जक तथा आर्थथक नीनत का ननधाथयण कयने के मरए टदमे हैं। एर० जी० खेडक
े य के शब्दों
भें, ―याज्म के नीनत ननदे शक तत्त्व वे आदशथ हैं , सयकाय न्जनकी ऩनू तथ का प्रमत्न कये गी।‖
याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्वों के ऩीछे कोई कानूनी सत्ता नहीॊ है । मह याज्म की इच्छा ऩय ननबथय है कक
वह इनका ऩारन कये मा न कये , कपय बी इनका ऩारन कयना सयकाय का नैनतक कतथव्म है । मे नीनत-
ननदे शक तत्त्व याज्म के मरए नैनतकता के सूत्र हैं तथा दे श भें स्वस्थ एवॊ वास्तववक प्रजातन्त्र की स्थाऩना
की टदशा भें प्रेयणा दे ने वारे हैं।

प्रभख
ु नीनत-ननदे र्क तत्त्ि
बायत के सॊववधान भें याज्म के नीनत-ननदे शक तत्त्वों का उल्रेख ननम्नमरखखत रूऩ भें ककमा गमा है –

(i) आचथशक सयु ऺा सम्फन्धी तत्त्ि – आर्थथक सुयऺा सम्फन्धी नीनत-ननदे शक तत्त्वों के अन्तगथत याज्म इस प्रकाय
की व्मवस्था कये गा, न्जससे ननम्नमरखखत रक्ष्मों की ऩूनतथ हो सके –
1. प्रत्मेक स्त्री औय ऩुरुष को सभान रूऩ से जीववका के साधन उऩरब्ध हों।
2. धन तथा उत्ऩादन के साधन कुछ थोडे से व्मन्क्तमों के हाथों भें इकट्टे न हो जाएॉ।
3. प्रत्मेक स्त्री तथा ऩुरुष को सभान कामथ के मरए सभान वेतन प्राप्त कयने का अर्धकाय होगा। न्स्त्रमों
को प्रसूनत कार भें कुछ ववशेष सुववधाएॉ बी प्राप्त होंगी।
4. ऩुरुषों तथा न्स्त्रमों के स्वास्थ्म एवॊ शन्क्त तथा फच्चों की सुकुभाय अवस्था का दरु
ु ऩमोग न हो तथा
आवश्मकता से वववश होकय नागरयकों को ऐसा कामथ न कयना ऩडे , जो उनकी आमु-शन्क्त मा
अवस्था के प्रनतकूर हो।
5. याज्म अऩनी आर्थथक साभथ्मथ औय ववकास की सीभाओॊ के अन्तगथत काभ ऩाने के , मशऺा ऩाने के
औय फेयोजगायी, वर्द्
ृ ावस्था, फीभायी तथा अन्म कायणों से जीववका कभाने भें असभथथ व्मन्क्तमों को
आर्थथक सहामता ऩाने के अर्धकाय को प्राप्त कयाने का प्रबावी उऩफन्ध कये गा।
6. गाॉवों भें ननजी तथा सहकायी आधाय, ऩय सॊचामरत उद्मोग-धन्धों को प्रोत्साटहत ककमा जाएगा।
7. कृवष तथा उद्मोगों भें रगे श्रमभकों को उर्चत वेतन मभर सके तथा उनका जीवन-स्तय ऊॉचा हो।
8. कृवष तथा ऩशऩ
ु ारन व्मवस्था को आधनु नक एवॊ वैऻाननक ढॊ ग से सॊगटठत तथा ववकमसत ककमा जा
सके।
9. बौनतक साधनों को न्मामऩण
ू थ ववतयण हो।
10. औद्मोर्गक सॊस्थानों के प्रफन्ध भें कभथचारयमों की बी बागीदायी हो।
11. कानन
ू ी व्मवस्था का सॊचारन सभान अवसय तथा न्माम-प्रान्प्त भें सहामक है । सभाज के
कभजोय वगों के मरए नन:शुल्क कानूनी सहामता की व्मवस्था , न्जससे कोई व्मन्क्त न्माम ऩाने से
वॊर्चत न यहे ।
(ii) साभाक्जक व्मिस्था सम्फन्धी तत्ि – नागरयकों के साभान्जक उत्थान के मरए याज्म ननम्नमरखखत व्मवस्थाएॉ
कये गा –
1. सभाज के ववमबन्न वगों ववशेषकय अनुसूर्चत जानतमों, जनजानतमों तथा वऩछडी जानतमों की सुयऺा
एवॊ उत्थान के साथ-साथ साभान्जक अन्माम व इसी प्रकाय के शोषण से उनकी यऺा हो सके।
2. रोगों के जीवन-स्तय तथा स्वास्थ्म भें सुधाय हो सके। भानव-जीवन के कल्माण हे तु याज्म को
नशीरी वस्तुओॊ, भद्मऩान तथा अन्म भादक ऩदाथों ऩय योक रगानी चाटहए।
3. दे श के प्रत्मेक नागरयक को साऺय फनाने के मरए याज्म सबी फारकों को 14 वषथ की आमु ऩयू ी
कयने तक नन्शुल्क औय अननवामथ मशऺा दे ने के मरए प्रावधान कयने का प्रमास कये गा।
4. फमारीसवें सॊववधान सॊशोधन के अनस
ु ाय याज्म दे श के ऩमाथवयण के सॊयऺण तथा सॊवधथन का औय
वन तथा वन्म जीवन की यऺा का प्रमास कये गा।
5. याज्म ववमशष्ट्टतमा आम की असभानता को कभ कयने तथा ववमबन्न व्मवसामों भें रगे रोगों के
भध्म प्रनतष्ट्ठा, सुववधाओॊ की प्रान्प्त तथा अवसय की असभानताओॊ को सभाप्त कयने का प्रमास
कये गा।
(iii) साॊस्कृविक विकास सम्फन्धी तत्त्ि – साॊस्कृनतक ऺेत्र भें नागरयकों के ववकास हे तु याज्म ननम्नमरखखत
नीनतमों का ऩारन कयने का प्रमत्न कये गा
1. सॊववधान के अनुच्छे द 46 के अनुसाय दमरत वगथ का आर्थथक औय शैक्षऺक ववकास कयना याज्म का
कतथव्म होगा।
2. याष्ट्रीम भहत्त्व के स्भायकों, बवनों, स्थानों तथा वस्तुओॊ की दे खबार तथा सॊयऺण की व्मवस्था
याज्म अननवामथ रूऩ से कये गा।
(iv) न्माम सम्फन्धी तत्त्ि – न्मानमक ऺेत्र भें सध
ु ाय राने के मरए याज्म ननम्नमरखखत मसर्द्ान्तों का अनस
ु यण
कये गा –
1. याज्म दे श के सभस्त नागरयकों के मरए सभस्त याज्म-ऺेत्र भें एक सभान कानून तथा न्मामारम की
व्मवस्था कये गा।
2. दे श के सबी गाॉवों भें याज्म के द्वाया ग्राभ ऩॊचामतों की स्थाऩना की जाएगी तथा याज्म उन्हें ऐसे
अर्धकाय प्रदान कये गा, न्जससे दे श भें स्वामत्त शासन की स्थाऩना हो सके।
(v) अन्तयाशष्ट्रीम र्ाक्न्त तथा सयु ऺा सम्फन्धी तत्त्ि – इस सम्फन्ध भें याज्म ननम्नमरखखत मसर्द्ान्तों का ऩारन
कये गा –
1. अन्तयाथष्ट्रीम शान्न्त एवॊ सुयऺा के प्रमासों को प्रोत्साहन दे गा।
2. अन्तयाथष्ट्रीम वववादों को भध्मस्थता द्वाया ननऩटाने के कामथ को प्रोत्साहन दे गा।
3. ववमबन्न याष्ट्रों के फीच न्मामसॊगत एवॊ सम्भानऩण
ू थ सम्फन्धों को फनाने की टदशा भें कामथ कये गा।
4. अन्तयाथष्ट्रीम कानूनों तथा सन्न्धमों के प्रनत आदयबाव यखेगा।
ननष्ट्कषथ रूऩ भें कहा जा सकता है कक नीनत-ननदे शक तत्त्वों के भाध्मभ से बायत भें आर्थथक प्रजातन्त्र की
स्थाऩना हो सकेगी औय बायत एक कल्माणकायी याज्म फन सकेगा।

प्रश्न 6.
ननवायक ननयोध से क्मा तात्ऩमथ है ? ननवायक ननयोध का भहत्त्व मरखखए।
उत्तय :
ननिायक ननयोध
अनुच्छे द 22 के खण्ड 4 भें ननवायक ननयोध (Preventive Detention) का उल्रेख ककमा गमा है । ननवायक
ननयोध का तात्ऩमथ वास्तव भें ककसी प्रकाय का अऩयाध ककए जाने के ऩूवथ औय ब्रफना ककसी प्रकाय की
न्मानमक प्रकक्रमा के ही ककसी को नजयफन्द कयना है । ननवायक ननयोध के अन्तगथत ककसी व्मन्क्त को तीन
भाह तक नजयफन्द यखा जा सकता है । इससे अर्धक मह अवर्ध ऩयाभशथदात्री ऩरयषद् की मसपारयश ऩय
फढ़ाई जा सकती है । ननवायक ननयोध अर्धननमभ, 1947 ई० भें ऩारयत ककमा गमा था। सभम-सभम ऩय
इसकी अवर्ध फढ़ाई जाती यही औय वह 1969 ई० तक चरता यहा। 1971 ई० भें इसका स्थान ‗आन्तरयक
सुयऺा अर्धननमभ‘ (Maintenence of Internal Security Act, 1971) ने रे मरमा। इस कानून को फोरचार
की बाषा भें ‗भीसा‘ (MISA) के नाभ से जाना जाता है । इसके ऩश्चात ् 1981 ई० भें इसके स्थान ऩय याष्ट्रीम
सुयऺा कानून‘ (National Security Act) ऩारयत ककमा गमा। तत्ऩश्चात ् टाडा कानून ‘ (Terrorist and
Disruptive Activities Act) रागू ककमा गमा। वतथभान भें मह बी सभाप्त कय टदमा गमा है औय इसके
स्थान ऩय ऩोटा (Prevention of Terrorist Act) का ननभाथण ककमा गमा है । अफ इसे बी सॊशोर्धत कयने की
प्रकक्रमा चर यही है ।

ननिायक ननयोध कानन


ू की आरोचना औय उसका भहत्त्ि
स्वतन्त्रता के अर्धकाय ऩय रगे प्रनतफन्धों को दे खकय अनेक ववद्वानों ने इसकी आरोचना की है । ननवायक
ननयोध कानन
ू के ववषम भें टे कचन्द फख्शी ने कहा था कक मह दभन तथा ननयॊ कुशता का ऩत्र है । इसी
प्रकाय सोभनाथ राटहडी ने इसकी आरोचना कयते हुए कहा था , ―भूर अर्धकायों का ननभाथण ऩुमरस के
मसऩाही के दृन्ष्ट्टकोण से ककमा गमा है , स्वतन्त्रता के मरए सॊघषथ कयने वारे याष्ट्र के दृन्ष्ट्टकोण से नहीॊ। ‖
ऩयन्तु ननवायक ननयोध अथवा भीसा की आरोचना के फावजूद बी इस फात से इनकाय नहीॊ ककमा जा
सकता कक वतथभान ऩरयन्स्थनतमों भें मह व्मवस्था कुछ सीभा तक आवश्मक औय उऩमोगी है । न्मामभूनतथ
ऩतॊजमर शास्त्री के अनुसाय, ―इस बमावह उऩकयण की व्मवस्था ……………. उन सभाज-ववयोधी औय
ववध्वॊसकायी तत्त्वों के ववरुर्द् की गई है , न्जनसे नवववकमसत प्रजातन्त्र के याष्ट्रीम टहतों को खतया है । ‖
वस्तुत: ननवायक ननयोध की व्मवस्था एक ‗बयी हुई फन्दक
ू ‘ के सभान है औय उसका प्रमोग फहुत सावधानी
से तथा वववेकऩूणथ ही ककमा जाना चाटहए।

प्रश्न 7.
भानवार्धकाय आमोग के ववषम भें आऩ क्मा जानते हैं ? इसके क्मा कामथ हैं ?
उत्तय :
ककसी बी सॊववधान द्वाया प्रदान ककए गए अर्धकायों की वास्तववक ऩहचान तफ होती है जफ उन्हें रागू
ककमा जाता है । सभाज के गयीफ, अमशक्षऺत औय कभजोय वगथ के रोगों को अऩने अर्धकायों का प्रमोग कयने
की स्वतन्त्रता होनी चाटहए। ऩीऩल्स मूननमन पॉय मसववर मरफटीज (ऩी०मू०सी०एर०) मा ऩीऩल्स मूननमन
पॉय डेभोक्रेटटक याइट्स (ऩी०म०
ू डी०आय०) जैसी सॊस्थाएॉ अर्धकायों के हनन ऩय दृन्ष्ट्ट यखती हैं। इस
ऩरयप्रेक्ष्म भें वषथ 2000 भें सयकाय ने याष्ट्रीम भानवार्धकाय आमोग का गठन ककमा।
याष्ट्रीम भानवार्धकाय आमोग भें उच्चतभ न्मामारम का एक ऩूवथ न्मामाधीश , ककसी उच्च न्मामारम का
एक ऩूवथ भुख्म न्मामाधीश तथा भानवार्धकायों के सम्फन्ध भें ऻान मा व्मावहारयक अनुबव यखने वारे दो
औय सदस्म होते हैं।

भानवार्धकायों के उल्रॊघन की मशकामतें मभरने ऩय याष्ट्रीम भानवार्धकाय आमोग स्वमॊ अऩनी ऩहर ऩय मा
ककसी ऩीडडत व्मन्क्त की मार्चका ऩय जाॉच कय सकता है । जेरों भें फन्न्दमों की न्स्थनत का अध्ममन कयने
जा सकता है , भानवार्धकाय के ऺेत्र भें शोध कय सकता है मा शोध को प्रोत्साटहत कय सकता है । आमोग
को प्रनतवषथ हजायों मशकामतें प्राप्त होती हैं। इनभें से अर्धकतय टहयासत भें भत्ृ मु , टहयासत के दौयान
फरात्काय, रोगों के गामफ होने , ऩुमरस की ज्मादनतमों, कामथवाही न ककए जाने , भटहराओॊ के प्रनत दव्ु मथवहाय
आटद से सम्फन्न्धत होती हैं। भानवार्धकाय आमोग का सवाथर्धक प्रबावी हस्तऺेऩ ऩॊजाफ भें मव
ु कों के
गामफ होने तथा गुजयात-दॊ गों के भाभरे भें जाॉच के रूऩ भें यहा। आमोग को स्वमॊ भुकदभा सुनने का
अर्धकाय नहीॊ है । मह सयकाय मा न्मामारम को अऩनी जाॉच के आधाय ऩय भक
ु दभे चराने की मसपारयश
कय सकता है ।

प्रश्न 8.
याज्म के नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों के कक्रमान्वमन के ववषम भें आऩ क्मा जानते हैं। इन्हें वादमोग्म क्मों
नहीॊ फनामा गमा?
उत्तय :
बायतीम रोकतन्त्र की सपरता नीनत-ननदे शक तत्त्वों के रागू कयने भें ननटहत है । बायत सयकाय ने वऩछरे
57 वषों भें ननदे शक तत्त्वों को प्रबावी फनाने के मरए अनेक कानन
ू व मोजनाएॉ रागू की हैं। आर्थथक
ववकास के मरए ऩॊचवषीम मोजनाओॊ को अऩनामा गमा ताकक ननदे शक तत्त्वों भें ननटहत उद्देश्मों को प्राप्त
ककमा जा सके। गयीफी औय आर्थथक असभानता को दयू कयने के मरए 20-सूत्री कामथक्रभ रागू ककमा गमा।
ग्राभीण अॊचरों भें मशऺा व स्वास्थ्म का प्रसाय ककमा गमा है । ववश्व शान्न्त व अन्तयाथष्ट्रीम सहमोग को
फढ़ावा टदमा गमा है । इन सभस्त नीनतमों का उद्देश्म ननदे शक तत्त्वों द्वाया घोवषत रक्ष्म रोक-कल्माणकायी
याज्म की प्रान्प्त है ।
रेककन इन नीनतमों से ककस सीभा तक नीनत-ननदे शक तत्त्व प्राप्त हो ऩाए हैं ? मह तथ्म केवर एक ही
ओय सॊकेत कयता है कक अबी मथाथथ भें नीनत-ननदे शक तत्त्वों को प्राप्त नहीॊ ककमा जा सका है । आर्थथक
ऺेत्र भें ऩॊचवषीम मोजनाओॊ को अऩनाने के फावजूद बी बौनतक साधनों ऩय केन्द्रीकयण कभ नहीॊ हुआ। है ।
अभीय अर्धक अभीय हुआ है तथा गयीफ औय अर्धक गयीफ नन्शुल्क मशऺा , सभान आचाय सॊटहता के
ननदे शक तत्त्व भग
ृ भयीर्चका फन चुके हैं। भुफ्त कानूनी सहामता के ननदे शक तत्त्व के फावजूद न्माम-
प्रणारी फहुत भहॉगी है । कुटीय उद्मोग-धन्धों को फडे औद्मोर्गक कायखानों ने वैऻाननक प्रगनत के नाभ ऩय
ननगर मरमा है । भद्मननषेध को याजस्व-प्रान्प्त हे तु फमर का फकया फना टदमा गमा है ।

याज्म के नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों को न्माममोग्म मा वादमोग्म क्मों नहीॊ ऩामा गमा – प्रश्न मह उत्ऩन्न
होता है कक जफ याज्म-नीनत के ननदे शक मसर्द्ान्त बायतीम नागरयकों के जीवन के ववकास तथा रोकतन्त्र
की सपरता के मरए इतने भहत्त्वऩण
ू थ हैं तो इन्हें बी भौमरक अर्धकायों की तयह वादमोग्म क्मों नहीॊ
फनामा गमा? ऐसा होने ऩय कोई बी सयकाय इन्हें अनदे खा नहीॊ कय सकती थी। ऩयन्तु ऐसा कयना सम्बव
नहीॊ था क्मोंकक इन्हें रागू कयने भें धन की फडी आवश्मकता थी औय दे श जफ स्वतन्त्र हुआ तो आर्थथक
दशा अच्छी नहीॊ थी। इसमरए मह फात सयकाय ऩय ही छोड दी गई कक जैसे-जैसे सयकाय के ऩास धन तथा
दस
ू ये साधन उऩरब्ध होते जाएॉ , वह इन्हें थोडा-थोडा कयके रागू कयती जाए। भौमरक अर्धकायों की तयह
इन ननदे शक मसर्द्ान्तों को ऩूणथ रूऩ से उस सभम रागू कयना व्मावहारयक कदभ नहीॊ था।

प्रश्न 1.
ननम्नमरखखत भें कौन प्रत्मऺ रोकतॊत्र के सफसे नजदीक फैठता है ?
(क) ऩरयवाय की फैठक भें होने वारी चचाथ
(ख) कऺा-सॊचारक (क्रास-भॉनीटय) का चन
ु ाव
(ग) ककसी याजनीनतक दर द्वाया अऩने उम्भीदवाय का चमन
(घ) भीडडमा द्वाया कयवाए गए जनभत-सॊग्रह
उत्तय-
(घ) भीडडमा द्वाया कयवाए गए जनभत सॊग्रह।
प्रश्न 2.
इनभें कौन-सा कामथ चन
ु ाव आमोग नहीॊ कयता?
(क) भतदाता सूची तैमाय कयना
(ख) उम्भीदवायों का नाभाॊकन
(ग) भतदान-केन्द्रों की स्थाऩना
(घ) आचाय-सॊटहता रागू कयना।
(ङ) ऩॊचामत के चुनावों का ऩमथवेऺण
उत्तय-
(ङ) ऩॊचामत के चुनावों का ऩमथवेऺण।
प्रश्न 3.
ननम्नमरखखत भें कौन-सी याज्मसबा औय रोकसबा के सदस्मों के चुनाव की प्रणारी के सभान है ?
(क) 18 वषथ से ज्मादा की उम्र का हय नागरयक भतदान कयने के मोग्म है ।
(ख) ववमबन्न प्रत्मामशमों के फाये भें भतदाता अऩनी ऩसॊद को वयीमता क्रभ भें यख सकता है ।
(ग) प्रत्मेक भत का सभान भूल्म होता है ।
(घ) ववजमी उम्भीदवाय को आधे से अर्धक भत प्राप्त होने चाटहए।
उत्तय-
(ग) प्रत्मेक भत का सभान भल्
ू म होता है ।
प्रश्न 4.
पस्टथ ऩास्ट द ऩोस्ट प्रणारी भें वही प्रत्माशी ववजेता घोवषत ककमा जाता है जो
(क) सवाथर्धक सॊख्मा भें भत अन्जथत कयता है ।
(ख) दे श भें सवाथर्धक भत प्राप्त कयने वारे दर का सदस्म हो।
(ग) चुनाव-ऺेत्र के अन्म उम्भीदवायों से ज्मादा भत हामसर कयता है ।
(घ) 50 प्रनतशत से अर्धक भत हामसर कयके प्रथभ स्थान ऩय आता है ।
उत्तय-
(घ) 50 प्रनतशत से अर्धक भत हामसर कयके प्रथभ स्थान ऩय आता है ।
प्रश्न 5.
ऩथ
ृ क् ननवाथचन-भण्डर औय आयक्षऺत चन
ु ाव-ऺेत्र के फीच क्मा अॊतय है ? सॊववधान ननभाथताओॊ ने ऩथ
ृ क
ननवाथचन-भण्डर को क्मों स्वीकाय नहीॊ ककमा?
उत्तय-
स्वतन्त्रता से ऩूवथ अॊग्रेजों की नीनत थी-पूट डारो तथा शासन कयो। इस नीनत के अनुसाय अॊग्रेजों ने
ननवाथचन हे तु भतदाताओॊ को ववमबन्न श्रेखणमों औय वगों भें ववबान्जत कय यखा था , ककन्तु हभाये सॊववधान-
ननभाथताओॊ ने ऩथ
ृ क् ननवाथचन-भण्डर का अन्त कय टदमा क्मोंकक मह प्रणारी सभाज को फाॉटने का काभ
कयती थी। बायत के सॊववधान भें कभजोय वगों का ववधामी सॊस्थाओॊ (सॊसद व ववधान ऩामरकाएॉ) ने
प्रनतननर्धत्व को ननन्श्चत कयने के मरए आयऺण का यास्ता चुना न्जसके तहत सॊसद भें तथा याज्मों की
ववधानसबाओॊ भें इन्हें आयऺण प्रदान ककमा गमा है । बायत भें मह आयऺण 2010 तक के मरए रागू ककमा
गमा है ।
प्रश्न 6.
ननम्नमरखखत भें कौन-सा कथन गरत है ? इसकी ऩहचान कयें औय ककसी एक शब्द अथवा ऩद को
फदरकय, जोडकय अथवा नए क्रभ भें सजाकय इसे सही कयें -
(क) एक पस्टथ -ऩोस्ट-द-ऩोस्ट प्रणारी (‗सफसे आगे वारा जीते प्रणारी‘) का ऩारन बायत के हय चुनाव भें
होता है ।
(ख) चुनाव आमोग ऩॊचामत औय नगयऩामरका के चुनावों का ऩमथवेऺण नहीॊ कयता।
(ग) बायत का याष्ट्रऩनत ककसी चुनाव आमुक्त को नहीॊ हटा सकता।
(घ) चुनाव आमोग भें एक से ज्मादा चुनाव आमुक्त की ननमुन्क्त अननवामथ है ।
उत्तय-
(क) एक पस्र्ट-ऩास्ट-द-ऩोस्ट प्रणारी (सफसे आगे वारा जीते प्रणारी ‘) का ऩारन बायत के हय चुनाव भें
होता है । मह कथन गरत है । सही न्स्थनत मह है कक इस प्रणारी का प्रमोग बायत भें कुछ ऩदों के
ननवाथचन भें ही होता है । याष्ट्रऩनत, उऩयाष्ट्रऩनत व याज्मसबा के सदस्मों का चुनाव एकर सॊक्रभणीम भत
ऩर्द्नत के द्वाया इसी प्रणारी से होता है । अन्म चुनावों भें पस्टथ -ऩोस्ट-द-ऩोस्ट प्रणारी का ऩारन नहीॊ होता
है ।
(ख) मह कथन सही है ।
(ग) मह कथन सही है ।
(घ) मह कथन सही है ।
प्रश्न 7.
बायत की चुनाव-प्रणारी का रक्ष्म सभाज के कभजोय तफके की नुभाइॊदगी को सुननन्श्चत कयना है । रेककन
अबी तक हभायी ववधानमका भें भटहरा सदस्मों की सॊख्मा 10 प्रनतशत बी नहीॊ ऩहुॉचती। इस न्स्थनत भें
सुधाय के मरए आऩ क्मा उऩाम सुझाएॉगे ?
उत्तय-
सन ् 1992 भें ऩॊचामतों तथा नगयऩामरकाओॊ भें भटहराओॊ के मरए एक-नतहाई स्थान आयक्षऺत ककए जाने के
मरए प्रमास चर यहे हैं। इसके मरए ननम्नमरखखत सझ
ु ाव हैं-
1. बायत भें भतदाताओॊ का रगबग 50 प्रनतशत बाग भटहराएॉ हैं; अत् इनकी सॊख्मा फढ़ाने के मरए
इनभें जागरूकता उत्ऩन्न की जाए।
2. सॊववधान के सभऺ ऩुरुष औय स्त्री सभान हैं औय न्स्त्रमों ऩय बी सबी कानून सभान रूऩ से रागू
होते हैं। इसमरए कानून के ननभाथण भें इनकी बागीदायी ऩमाथप्त होनी चाटहए।
प्रश्न 8.
एक नए दे श के सॊववधान के फाये भें आमोन्जत ककसी सॊगोष्ट्ठी भें वक्ताओॊ ने ननम्नमरखखत आशाएॉ
जतामीॊ। प्रत्मेक कथन के फाये भें फताएॉ कक उनके मरए पस्टथ -ऩास्ट-द-ऩोस्ट (सवाथर्धक भत से जीत वारी
प्रणारी) उर्चत होगी मा सभानुऩानतक प्रनतननर्धत्व वारी प्रणारी?
(क) रोगों को इस फात की साप-साप जानकायी होनी चाटहए कक उनका प्रनतननर्ध कौन है । ताकक वे उसे
ननजी तौय ऩय न्जम्भेदाय ठहया सकें।
(ख) हभाये दे श भें बाषाई रूऩ से अल्ऩसॊख्मक छोटे -छोटे सभद
ु ाम हैं औय दे शबय भें पैरे हैं , हभें इनकी
ठीक-ठीक नुभाइॊदगी को सुननन्श्चत कयना चाटहए।
(ग) ववमबन्न दरों के फीच सीट औय वोट को रेकय कोई ववसॊगनत नहीॊ यखनी चाटहए।
(घ) रोग ककसी अच्छे प्रत्माशी को चुनने भें सभथथ होने चाटहए बरे ही वे उसके याजनीनतक दर को ऩसॊद
न कयते हों।
उत्तय-
(क) जनसाधायण की इच्छाओॊ को अर्धक प्रबावी रूऩ से व्मक्त कयने के मरए पस्टथ -ऩास्ट-द-ऩोस्ट भत
प्रणारी सवाथर्धक उऩमुक्त यहे गी क्मोंकक इसभें नागरयकों व प्रनतननर्धमों का सीधा सम्ऩकथ यहता है तथा
नागरयक अऩने प्रनतननर्धमों को सीधे ही न्जम्भेवाय ठहयाकय उन्हें आगाभी चन
ु ाव भें सत्ता से हटा सकते
हैं। इस प्रणारी भें नागरयक को अऩनी ऩसन्द का प्रनतननर्ध चुनने का भौका मभरता है ।
(ख) दे श के सबी अल्ऩसॊख्मकों को उनकी सॊख्मा के आधाय ऩय उसी अनऩ
ु ात भें उर्चत प्रनतननर्धत्व दे ने
के मरए आनुऩानतक भत प्रणारी का कोई एक तयीका प्रमोग भें राना चाटहए न्जससे सबी अल्ऩसॊख्मकों को
उर्चत प्रनतननर्धत्व प्राप्त हो सके। दे श भें अनेक धामभथक , जातीम, बाषामी व साॊस्कृनतक अल्ऩसॊख्मक ऩाए
जाते हैं, न्जनके उर्चत प्रनतननर्धत्व के मरए आनुऩानतक भत प्रणारी अर्धक उऩमुक्त है ।
(ग) इस वगथ के रोगों की इच्छा ऩूनतथ के मरए आनुऩानतक भत प्रणारी का एक प्रकाय —मरस्ट प्रणारी-
प्रमोग भें रा सकते हैं , न्जसके अनस
ु ाय याजनीनतक दरों को मभरने वारे वोटों व उनके द्वाया प्राप्त सीटों
भें एक ननन्श्चत अनुऩात ऩामा जा सकता है ।

(घ) पस्टथ -ऩास्ट-द-ऩोस्ट प्रणारी भें नागरयक अऩनी ऩसन्द का उम्भीदवाय चुन सकते हैं , बरे ही वे उस
उम्भीदवाय के याजनीनतक दर को ऩसन्द न कयते हों।

प्रश्न 9.
एक बूतऩूवथ भुख्म चुनाव आमुक्त ने एक याजनीनतक दर का सदस्म फनकय चुनाव रडा। इस भसरे ऩय
कई ववचाय साभने आए। एक ववचाय मह था कक बूतऩूवथ भुख्म चुनाव आमुक्त एक स्वतॊत्र नागरयक है । उसे
ककसी याजनीनतक दर भें होने औय चुनाव रडने का अर्धकाय है । दस
ू ये ववचाय के अनुसाय , ऐसे ववकल्ऩ की
सम्बावना कामभ यखने से चुनाव आमोग की ननष्ट्ऩऺता प्रबाववत होगी। इस कायण , बूतऩूवथ भुख्म चुनाव
आमुक्त को चुनाव रडने की अनुभनत नहीॊ दे नी चाटहए। आऩ इसभें ककस ऩऺ से सहभत हैं औय क्मों ?
उत्तय-
बायत भें भुख्म चुनाव आमुक्त सेवाननवत्ृ त होने के फाद ककसी बी दर का सदस्म फन सकता है । औय उस
दर के टटकट ऩय चुनाव बी रड सकता है । श्री टी० एन० शेषन ने सेवाननवत्ृ त होने के फाद ऐसा ककमा
था। इसभें कोई दोष नहीॊ है । ककसी याजनीनतक दर के सदस्म को भुख्म चुनाव आमुक्त ननमुक्त कयना
उर्चत नहीॊ है क्मोंकक ऐसे व्मन्क्त से ननष्ट्ऩऺता से ननणथम रेने औय कामथ कयने की आशा नहीॊ की जा
सकती। ऩयन्तु सेवाननवन्ृ त्त के फाद अऩने ववचाय प्रकट कयना, ककसी दर को अऩनाना, चन
ु ाव रडना उसका
अर्धकाय बी है औय इससे चुनावों की स्वतन्त्रता तथा ननष्ट्ऩऺता ऩय कोई आॉच नहीॊ आती। सेवाननवत्ृ त
होने के फाद बायत का भख्
ु म न्मामाधीश बी ऐसा कय सकता है ।
प्रश्न 10.
―बायत का रोकतॊत्र अफ अनगढ़ ‗पस्टथ -ऩास्ट-द-ऩोस्ट प्रणारी को छोडकय सभानऩ
ु ानतक प्रनतननध्मात्भक
प्रणारी को अऩनाने के मरए तैमाय हो चुका है ‖ क्मा आऩ इस कथन से सहभत हैं। इस कथन के ऩऺ
अथवा ववऩऺ भें तकथ दें ।
उत्तय-
ु ानतक प्रनतननध्मात्भक प्रणारी के विऩऺ भें तकश – प्राम् सबी दे शों भें सॊसद के मरए प्रत्मऺ चन
बायत भें सभानऩ ु ावों
भें पस्टथ -ऩास्ट-द-ऩोस्ट‘ प्रणारी अऩनाई गई है । आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी फडी जटटर है औय इसके
अन्तगथत दस
ू यी तीसयी ऩसन्द के अनस
ु ाय भतों का हस्तान्तयण साभान्म व्मन्क्त की सभझ भें सयरताऩव
ू क

नहीॊ आता। इसभें भतगणना भें कापी सभम रगता है । इसभें भतदाताओॊ के मरए ववमबन्न ऩसन्दों का
अॊककत कयना बी आसान काभ नहीॊ है । इसके अनतरयक्त आनऩ
ु ानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी भें भतदाता औय
प्रनतननर्ध के फीच घननष्ट्ठ सम्फन्ध स्थावऩत नहीॊ होते औय प्रनतननर्ध बी अऩने को चुनाव-ऺेत्र के मरए
उत्तयदामी नहीॊ सभझते।
ऩयीऺोऩमोगी प्रश्नोत्तय
फहुविकल्ऩीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सीमभत भतार्धकाय ववचायधाया के सभथथक हैं –
(क) फाकथय
(ख) जे० एस० मभर
(ग) डॉ० गानथय
(घ) प्रेटो
उत्तय :
(ख) जे० एस० सभर।
प्रश्न 2.
वमस्क भतार्धकाय ववचायधाया के सभथथक हैं –
(क) ब्रण्टशरी
(ख) फेन्थभ
(ग) सय हे नयीभैन
(घ) जॉन स्टुअटथ मभरे
उत्तय :
(घ) जॉन स्िुअिश सभर।
प्रश्न 3.
―वमस्क भतार्धकाय का कोई ववकल्ऩ नहीॊ है । ‖ मह ककसका कथन है ?
(क) रॉस्की
(ख) िाइस
(ग) ब्रण्टशरी
(घ) अयस्तू
उत्तय :
(क) रॉस्की।
प्रश्न 4.
ककसने कहा-―भत दे ने का अर्धकाय उन्हीॊ को प्राप्त होना चाटहए न्जनभें फौवर्द्क मोग्मता की एक सनु नन्श्चत
भात्रा ववद्मभान हो, चाहे वे स्त्री हों मा ऩुरुष।‖
(क) अिाहभ मरॊकभ।
(ख) जवाहयरार नेहरू
(ग) टी० एच० ग्रीन
(घ) जे० एस० मभर।
उत्तय :
(क) अब्राहभ सरॊकन।
प्रश्न 5.
―सवथजनीन भतार्धकाय का कोई ववकल्ऩ नहीॊ है । ‖ मह ककसका कथन है ?
(क) अयस्तू
(ख) िाइस
(ग) रॉस्की
(घ) गानथय
उत्तय :
(ग) रॉस्की
प्रश्न 6.
आनऩ
ु ानतक प्रनतननर्धत्व की ऩर्द्नत का प्रनतऩादन ककसके द्वाया ककमा गमा है ।
(क) थॉभस हे मय
(ख) जे० एस० मभर
(ग) सय हे नयी भेन
(घ) िाइस
उत्तय :
(क) थॉभस हेमय।
प्रश्न 7.
थॉभस हे मय का नाभ ककस ननवाथचन प्रणारी से सम्फन्न्धत है ?
(क) प्रत्मऺ ननवाथचन प्रणारी
(ख) अप्रत्मऺ ननवाथचन प्रणारी
(ग) सीमभत भतदान प्रणारी
(घ) आनऩ
ु ानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी
उत्तय :
(घ) आनऩ ु ानतक प्रनतननचधत्ि प्रणारी।
प्रश्न 8.
बायत भें प्रत्मऺ ननवाथचन ऩर्द्नत को सफसे ऩहरे कफ रागू ककमा गमा ?
(क) सन ् 1909
(ख) सन ् 1919
(ग) सन ् 1935
(घ) सन ् 1950
उत्तय :
(ग) सन ् 1935
प्रश्न 9.
नागरयकों द्वाया अऩने प्रनतननर्ध चुनने की प्रकक्रमा कहराती है –
(क) ननवाथचन
(ख) भनोनमन
(ग) सॊगठन
(घ) आवॊटन
उत्तय :
(क) ननिाशचन।
प्रश्न 10.
रोकसबा भें ननवाथचन भें ककस प्रणारी को अऩनामा जाता है ?
(क) फहुभत प्रणारी
(ख) द्ववतीम भतऩत्र प्रणारी
(ग) सीमभत भत प्रणारी
(घ) साम्प्रदानमक भत प्रणारी
उत्तय :
(क) फहुभत प्रणारी।
प्रश्न 11.
अप्रत्मऺ ननवाथचन प्रणारी द्वाया ककस सॊस्था का ननवाथचन होता है ?
(क) रोकसॊब
(ख) ववधानसबा
(ग) याज्मसबा
(घ) ककसी को नहीॊ
उत्तय :
(ग) याज्मसबा।
प्रश्न 12.
चुनावी दौड भें जो प्रत्माशी अन्म प्रत्मामशमों के भुकाफरे सफसे आगे ननकर जाता है । वही ववजमी होता है ।
इसे कहते हैं –
(क) पस्टथ -ऩास्ट-द-ऩोस्ट मसस्टभ
(ख) एकदरीम व्मवस्था
(ग) प्रत्मऺ व्मवस्था
(घ) इनभें से कोई नहीॊ
उत्तय :
(क) पस्िश -ऩास्ि-द-ऩोस्ि ससस्िभ।
प्रश्न 13.
वतथभान भें रोकसबा की ककतनी ननवाथर्चत सीटें हैं –
(क) 543
(ख) 545
(ग) 546
(घ) 548
उत्तय :
(क) 543.
प्रश्न 14.
रोकसबा की 543 सीटों भें से अनुसूर्चत जानत के मरए ककतनी सीटें आयक्षऺत है ?
(क) 79
(ख) 76
(ग) 73
(घ) 74
उत्तय :
(क) 79.
प्रश्न 15.
कौन-से ननवाथचन ऺेत्र आयक्षऺत होंगे , मह कौन तम कयता है ?
(क) चन
ु ाव आमोग
(ख) ऩरयसीभन आमोग
(ग) भानवार्धकाय आमोग
(घ) जनसॊख्मा आमोग
उत्तय :
(क) चुनाि आमोग।
प्रश्न 16.
भुख्म चुनाव आमुक्त की ननमुन्क्त कौन कयता है ?
(क) उऩयाष्ट्रऩनत
(ख) प्रधानभन्त्री
(ग) भुख्म न्मामाधीश
(घ) याष्ट्रऩनत
उत्तय :
(घ) याष्ट्रऩनत।
प्रश्न 17.
ननवाथचन प्रकक्रमा का सवथप्रथभ चयण कौन-सा है ?
(क) भतदाता सूची तैमाय कयना
(ख) ननवाथचन की घोषणा
(ग) प्रत्मामशमों का नाभाॊकन
(घ) ननवाथचन अर्धकायी की ननमुन्क्त
उत्तय :
(क) भतदाता सच
ू ी तैमाय कयना।
प्रश्न 18.
ननवाथचन आमोग का गठन सॊववधान की ककस धाया के अन्तगथत ककमा जाता है ?
(क) धाया 370
(ख) धाया 226
(ग) धाया 324
(घ) धाया 371
उत्तय :
(ग) धाया 324
प्रश्न 19.
चुनाव र्चह्नों का आवॊटन कयता है –
(क) याष्ट्रऩनत
(ख) प्रधानभॊत्री
(ग) ननवाथचन आमोग
(घ) उच्चतभ न्मामारम
उत्तय :
(ग) ननिाशचन आमोग।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
वमस्क भतार्धकाय के ऩऺ भें दो तकथ दीन्जए।
उत्तय :
1. अल्ऩसॊख्मकों के अर्धकायों को सुयक्षऺत होना तथा
2. रोकभत की वास्तववक अमबव्मन्क्त होना।
प्रश्न 2.
वमस्क भतार्धकाय के दो दोष मरखखए।
उत्तय :
1. शासनार्धकाय अमशक्षऺत व्मन्क्तमों के हाथ भें होना तथा
2. भ्रष्ट्टाचाय को प्रोत्साहन।
प्रश्न 3.
ननवाथचन ऩर्द्नत ककतने प्रकाय की होती है ?
मा
ननवाथचन की कोई एक प्रणारी फताइए।
उत्तय :
ननवाथचन ऩर्द्नत दो प्रकाय की होती है –
1. प्रत्मऺ ननवाथचन ऩर्द्नत तथा
2. अप्रत्मऺ ननवाथचन ऩर्द्नत।
प्रश्न 4.
अल्ऩसॊख्मकों को प्रनतननर्धत्व दे ने की दो ऩर्द्नतमों के नाभ मरखखए।
उत्तय :
1. आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व ऩर्द्नत तथा
2. सीमभत भत-प्रणारी।
प्रश्न 5.
आनऩ
ु ानतक प्रनतननर्धत्व के दो प्रकाय फताइए।
उत्तय :
1. एकर सॊक्रभणीम प्रणारी तथा
2. सूची-प्रणारी।
प्रश्न 6.
आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी के दो गुण मरखखए।
उत्तय :
1. प्रत्मेक वगथ मा दर को उर्चत प्रनतननर्धत्व तथा
2. अल्ऩसॊख्मकों के टहतों की सुयऺा।
प्रश्न 7.
वमस्क भतार्धकाय के दो‘गुण फताइए।
उत्तय :
1. याष्ट्रीम एकीकयण भें ववृ र्द् तथा
2. जनसाधायण को शासकों के चमन का अर्धकाय।
प्रश्न 8.
प्रत्मऺ ननवाथचन के दो गण
ु फताइए।
उत्तय :
1. सयरता तथा
2. रोकतान्न्त्रक धायणा के अनुकूर।
प्रश्न 9.
प्रत्मऺ ननवाथचन के दो दोष फताइए।
उत्तय :
1. अऩव्ममी व्मवस्था तथा
2. प्रनतबावान व्मन्क्तमों की ननवाथचन से दयू ी।
प्रश्न 10.
अप्रत्मऺ ननवाथचन के दो गुण फताइए।
उत्तय :
1. मोग्म व्मन्क्तमों के ननवाथचन की अर्धक सम्बाक्ना तथा
2. ऩेशेवय याजनीनतऻों का अबाव।
प्रश्न 11.
अप्रत्मऺ ननवाथचन के दो दोष फताइए।
उत्तय :
1. भ्रष्ट्टाचाय को प्रोत्साहन तथा
2. दर-प्रणारी के कुप्रबाव।
प्रश्न 12.
आदशथ ननवाथचन-प्रणारी का एक प्रभुख तत्त्व क्मा है ?
उत्तय :
गुप्त भतदान की व्मवस्था आदशथ ननवाथचन-प्रणारी का एक प्रभुख तत्त्व है ।
प्रश्न 13.
बायत भें वमस्क भतार्धकाय की न्मूनतभ आमु क्मा है ?
उत्तय :
बायत भें वमस्क भतार्धकाय की आमु 18 वषथ है ।
प्रश्न 14.
न्स्वट्जयरैण्ड भें वमस्क होने की आमु क्मा है ?
उत्तय :
न्स्वट्जयरैण्ड भें वमस्क होने की आमु 20 वषथ है ।
प्रश्न 15.
वमस्क भतार्धकाय क्मा है ?
उत्तय :
ननन्श्चत आमु प्राप्त कयने के फाद सबी वमस्क नागरयकों को ब्रफना ककसी बेदबाव के भत दे ने का अर्धकाय
प्राप्त होना ही वमस्क भतार्धकाय है ।
प्रश्न 16.
वमस्क भतार्धकाय के ववऩऺ भें कोई एक तकथ दीन्जए।
उत्तय :
वमस्क भतार्धकाय से भ्रष्ट्टाचाय भें ववृ र्द् हो जाती है ।
प्रश्न 17.
आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व का एक दोष मरखखए।
उत्तय :
मह अत्मर्धक जटटरननवाथचन प्रणारी है ।
प्रश्न 18.
एकर सॊक्रभणीम भत प्रणारी के ककसी एक गुण का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
अल्ऩसॊख्मकों को उर्चत प्रनतननर्धत्व प्राप्त हो जाता है ।
प्रश्न 19.
फहुभत प्रणारी का एक दोष मरखखए।
उत्तय :
फहुभत प्रणारी भें अल्ऩसॊख्मकों को प्रनतननर्धत्व प्राप्त नहीॊ होता है ।
प्रश्न 20.
चुनाव से आऩ क्मा सभझते हैं ?
उत्तय :
अप्रत्मऺ प्रजातन्त्र भें नागरयकों द्वाया अऩने प्रनतननर्धमों के चुनने की प्रकक्रमा को चुनाव कहते
प्रश्न 21.
चुनाव आमोग क्मा है ?
उत्तय :
चुनाव आमोग एक सॊवैधाननक सॊस्था है न्जसका कामथ चुनाव की प्रकक्रमा को ववमबन्न स्तयों ऩय शान्न्तऩूणथ
तयीके से व सुचारु रूऩ से सम्ऩन्न कयना है ।
प्रश्न 22.
बायतीम चुनाव प्रणारी के ऩाॉच दोष मरखखए।
उत्तय :
1. अल्ऩभत को फहुसॊख्मा ऩय शासन
2. याजनीनत को अऩयाधीकयण
3. भतदान केन्द्र ऩय कब्जा
4. चुनाव भें कारे धन का प्रमोग
5. एक-दस
ू ये के स्थान ऩय भत प्रमोग की प्रवन्ृ त्त।
प्रश्न 23.
चुनाव आमोग का स्वरूऩ क्मा है ?
उत्तय :
बायत का चुनाव आमोग तीन सदस्मीम है । इसभें एक भुख्म ननवाथचन आमुक्त को ऩद है औय दो अन्म
आमक् ु त हैं।
प्रश्नॊ 24.
भख्
ु म चन
ु ाव आमक्
ु त का कामथकार ककतना होता है ।
उत्तय :
सॊववधान के अनुसाय भुख्म चुनाव आमुक्त का कामथकार 6 वषथ मा 65 वषथ की आमु, जो बी प्रथभ अद्मतन
हो, होता है ।
प्रश्न 25.
चन
ु ाव आमोग के दो कामथ मरखखए।
उत्तय :
1. याष्ट्र भें ववद्मभान ननवाथचक दरों को भान्मता प्रदान कयना।
2. ननवाथचन भें प्रत्मामशमों द्वाया ककए गए व्मम की जाॉच कयना।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
वमस्क भतार्धकाय क्मा है ?
मा
सावथबौमभक भतार्धकाय ऩय सॊक्षऺप्त टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय :
िमस्क मा सािशबौसभक भताचधकाय
वमस्क भतार्धकाय से तात्ऩमथ है कक भतदान का अर्धकय एक ननन्श्चत आमु के नागरयकों को ब्रफना ककसी
बेदबाव के प्राप्त होना चाटहए। वमस्क भतार्धकाय की आमु का ननधाथयण प्रत्मेक दे श भें वहाॉ के नागरयक
के वमस्क होने की आमु ऩय ननबथय कयता है । बायत भें वमस्क होने की आमु 18 वषथ है । अत् बायत भें
भतार्धकाय की आमु बी 18 वषथ है । वमस्क भतार्धकाय से तात्ऩमथ है कक टदवामरए, ऩागर व अन्म ककसी
प्रकाय की अमोग्मता वारे नागरयकों को छोडकय अन्म सबी वमस्क नागरयकों को भतार्धकाय प्राप्त होना
चाटहए। भतार्धकाय भें सम्ऩन्त्त, मरॊग अथवा मशऺा जैसा कोई बेदबाव नहीॊ होना चाटहए। भॉण्टे स्क्मू , रूसो,
टॉभस ऩेन इत्माटद ववचायक वमस्क भतार्धकाय के सभथथक हैं। वतथभान भें ववश्व के रगबग सबी दे शों भें
वमस्क भतार्धकाय की व्मवस्था है ।

प्रश्न 2.
भटहरा.(स्त्री) भतार्धकाय ऩय सॊक्षऺप्त टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय :
स्त्री-भताचधकाय
न्स्त्रमों के मरए भतार्धकाय प्राप्त कयने की भाॉग प्रजातन्त्र के ववकास तथा ववस्ताय के साथ ही प्रायम्ब हुई।
मटद भतार्धकाय प्रत्मेक व्मन्क्त का प्राकृनतक अर्धकाय है , तो न्स्त्रमों को बी मह अर्धकाय प्राप्त होना
चाटहए। 19वीॊ शताब्दी भें फेन्थभ, डेववड हे मय, मसजववक, ऐस्भीन तथा जे०एस० मभर ने स्त्री भतार्धकाय का
सभथथन ककमा। इॊग्रैण्ड भें 1918 ई० भें सावथबौमभक भतार्धकाय अर्धननमभ ऩारयत कयके 30 वषथ की आमु
वारी न्स्त्रमों को भतार्धकाय प्रदान ककमा गमा। 10 वषथ फाद मह आमु-सीभा घटाकय 21 वषथ कय दी गई।
सन ् 1920 भें सॊमुक्त याज्म अभेरयका भें ऩुरुषों के सभान न्स्त्रमों को बी सभान अर्धकाय प्रदान ककमा गमा।
बायतीम सॊववधान भें प्रायम्ब से ही न्स्त्रमों को ऩुरुषों के सभान भतार्धकाय टदमा गमा है ।

प्रश्न 3.
भतार्धकाय का भहत्त्व फताते हुए दो तकथ दीन्जए।
उत्तय :
भतार्धकाय का भहत्त्व फताते हुए दो तकथ ननम्नवत ् हैं –
ू श – याज्म के कानूनों औय कामों का प्रबाव सभाज के केवर कुछ ही व्मन्क्तमों ऩय नहीॊ ,
1. ननतान्त औचचत्मऩण
वयन ् सफ व्मन्क्तमों ऩय ऩडता है ; अत् प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩना भत दे ने औय शासन की नीनत का
ननश्चम कयने का अर्धकाय होना चाटहए। जॉन स्टुअटथ मभर ने इसी आधाय ऩय वमस्क भतार्धकाय को
ननतान्त और्चत्मऩूणथ फतामा है ।
2. रोकसत्ता की िास्तविक असबव्मक्तत – रोकसत्ता फीसवीॊ सदी का सफसे भहत्त्वऩूणथ ववचाय है औय आधुननक
प्रजातन्त्रवाटदमों का कथन है कक अन्न्तभ सत्ता जनता भें ही ननटहत है । डॉ० गानथय के शब्दों भें , ―ऐसी
सत्ता की सवथश्रेष्ट्ठ अमबव्मन्क्त सावथजननक भतार्धकाय भें ही हो सकती है । ‖
प्रश्न 4.
चुनाव से आऩ क्मा सभझते हैं ? चुनाव की आवश्मकताएॉ क्मा हैं ?
उत्तय :
ज़नसाभान्म द्वाया ननन्श्चत अवर्ध ऩय अऩने प्रनतननर्धमों को चुनने की प्रकक्रमा को चुनाव कहते हैं। एक
रोकतान्न्त्रक दे श भें कोई बी ननणथम रेने भें सबी नागरयक प्रत्मऺ रूऩ से बाग नहीॊ रे सकते। अत् रोग
अऩने प्रनतननर्धमों को चुनते हैं। इसमरए चुनाव की आवश्मकता ऩडती है ।
प्रश्न 5.
बायत भें चुनाव रडने की क्मा मोग्मताएॉ हैं।
उत्तय :
बायत भें ववमबन्न प्रनतननर्ध सबाओॊ के चुनाव रडने के मरए बी मोग्मताएॉ ननन्श्चत हैं जो ननम्नमरखखत हैं

1. वह बायत का नागरयक हो।
2. वह 25 वषथ की आमु ऩयू ी कय चक
ु ा हो। याज्मसबा तथा याज्म ववधानऩरयषद् के मरए मह आमु 30
वषथ ननन्श्चत है जफकक याष्ट्रऩनत औय उऩयाष्ट्रऩनत के मरए 35 वषथ है ।
3. वह ऩागर तथा टदवामरमा न हो।
4. वह ककसी न्मामारम द्वाया ककसी गम्बीय अऩयाध के कायण चुनाव रडने के अमोग्म घोवषत न
ककमा गमा हो।
5. वह सॊसद द्वाया ननधाथरयत अन्म मोग्मताएॉ यखता हो।
प्रश्न 6.
बायत भें ननवाथचन कयाने के मरए सवोच्च अर्धकाय ककसके ऩास हैं ? स्वतन्त्र औय ननष्ट्ऩऺ ननवाथचन
रोकतन्त्र के मरए क्मों आवश्मक है ? इसे सनु नन्श्चत कयने के ककन्हीॊ तीन उऩामों का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
बायत भें ननवाथचन कयाने सम्फन्धी सवोच्च अर्धकाय ननवाथचन आमोग के ऩास है । इस आमोग भें एक
भुख्म ननवाथचन आमुक्त तथा दो आमुक्त होते हैं। आमोग के कामों भें सहामता दे ने के मरए याष्ट्रऩनत
प्रादे मशक आमक्
ु तों को ननमक्
ु त कयता है । दे श भें ननष्ट्ऩऺ ननवाथचन कयाना ननवाथचन आमोग का दानमत्व है ।
स्वतन्त्र औय ननष्ट्ऩऺ ननवाथचन ही रोकतन्त्र को सुयक्षऺत यख सकते हैं। इसके अबाव भें रोकतन्त्र की
कल्ऩना नहीॊ की जा सकती है । रेककन दे श की वतथभान ऩरयन्स्थनतमों भें स्वतन्त्र औय ननष्ट्ऩऺ ननवाथचन
कयाना ननवाथचन आमोग के सभऺ सफसे फडी चुनौती है ।

स्वतन्त्र औय ननष्ट्ऩऺ ननवाथचन कयाने के मरए ननम्नमरखखत तीन उऩाम प्रबावकायी हो सकते हैं –
1. भतदाताओॊ के मरए ऩरयचम-ऩत्र यखना अननवामथ कय टदमा जाए न्जससे गरत भतदान ऩय योक रग
सके।
2. ननवाथचन को आऩयार्धक तत्त्वों के प्रबाव से ब्रफल्कुर ऩथ
ृ क् यखा जाए , न्जससे चुनाव प्रकक्रमा
शान्न्तऩूवक
थ औय ब्रफना ककसी ऩऺऩात के सम्ऩन्न हो सके।
3. ननवाथचन आमोग द्वाया प्रत्मेक ननवाथचन भें ऩमथवेऺकों की ननमुन्क्त की जाती है जो चुनाव से
सम्फन्न्धत सबी प्रकाय की जानकारयमों की रयऩोटथ ननवाथचन आमोग को दे ते हैं।
प्रश्न 7.
याजनीनतक दरों को चुनाव र्चह्न आवॊटटत ककए जाने का क्मा भहत्त्व है ? इन र्चह्नों का आवॊटन कौन
कयता है ?
उत्तय :
ककसी बी दे श की जनता, ऩूणत
थ मा साऺय न होने ऩय भतऩत्र ऩय अॊककत प्रत्मामशमों के नाभ नहीॊ ऩढ़
सकती है ; अत: चुनाव र्चह्नों के भाध्मभ से वही अऩनी रुर्च के प्रत्माशी को भतदान दे ती है । इसका बेद
महीॊ से स्ऩष्ट्ट हो जाता है कक स्नातकीम ननवाथचन ऺेत्र (ववधानऩरयषद्) भें भतदाता ऩढ़े -मरखे होते हैं ; अत:
वहाॉ चुनाव र्चह्नों की व्मवस्था नहीॊ होती। ननवाथचन के सभम प्रत्मेक भतदाता के मरए एक चुनाव र्चह्न
की आवश्मकता होती है । ननवाथचन आमोग याजनीनतक दरों को चुनाव र्चह्न आवॊटटत कयता है । चुनाव
र्चह्न से याजनीनतक दर की ऩहचान होती है तथा भतदाता चुनाव र्चह्न के आधाय ऩय ही उस
याजनीनतक दर के उम्भीदवाय को अऩना भत प्रदान कयते हैं। याजनीनतक दर इस प्रकाय के चन
ु ाव र्चह्नों
को रेना ऩसन्द कयते हैं , जो भतदाताओॊ को भनोवैऻाननक तथा भानमसक रूऩ से प्रबाववत कय सकें। चुनाव
र्चह्नों को आवॊटटत कयने अथवा उनके फाये भें वववादों को ननऩटाने की शन्क्त ननवाथचन आमोग , को प्राप्त
है । ननवाथचन प्रकक्रमा के दौयान चुनाव र्चह्न इतने प्रचमरत हो जाते हैं कक भतदाता इनको दे खकय ही
सम्फन्न्धत दर अथवा उससे सम्फन्न्धत प्रत्मामशमों को ऩहचान रेते हैं।
प्रश्न 8.
ननष्ट्ऩऺ ननवाथचन कयाने के मरए सॊववधान भें उन्ल्रखखत ककन्हीॊ दो प्रावधानों का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
ननष्ट्ऩऺ ननवाथचन कयाने के मरए सॊववधान भें ननम्नमरखखत दो प्रावधान ककए गए हैं –
1. स्ितन्त्र तथा ननष्ट्ऩऺ ननिाशचन प्रणारी की व्मिस्था – सॊववधान द्वाया सम्ऩूणथ बायतवषथ भें ननष्ट्ऩऺ ननवाथचन
कयाने के मरए ननवाथचन आमोग की स्थाऩना की गई है । ननवाथचन आमोग के सदस्मों को स्वतन्त्र एवॊ
ननष्ट्ऩऺ रूऩ से कामथ कयाने के मरए इनकी सेवा-शतों को ननन्श्चत ककमा गमा है तथा उनको उऩदस्थ कयने
के मरए एक ववशेष प्रकाय की प्रकक्रमा को अऩनाना आवश्मक फनामा गमा है ।
ू ों ऩय ऩमाशतत सयु ऺा-व्मिस्था – भतदाता स्वतन्त्र रूऩ से अऩने भत का प्रमोग कय सकें , इसके
2. ननिाशचन फथ
मरए ननवाथचन फथ
ू ों ऩय ऩमाथप्त सयु ऺा व्मवस्था की जाती है । इस दृन्ष्ट्ट से ऩमु रस की सभर्ु चत व्मवस्था की
जाती है । भतदान के सभम भतदाताओॊ की अॊगुमरमों ऩय ननशान फनामा जाता है । शान्न्त व्मवस्था फनाए
यखने के मरए ननवाथचन ऺेत्रों भें चुनाव प्रायम्ब होने से ऩूवथ ही धाया 144 रगा दी जाती है । असाभान्जक
अथवा अऩयाधी प्रकृनत के व्मन्क्तमों ऩय प्रशासन कडी नजय यखता है ।
प्रश्न 9.
दे श भें चुनावों भें सीटों का आयऺण क्मों आवश्मक है ?
उत्तय :
बायतीम सभाज दीघथकार से साभान्जक व आर्थथक असभानताओॊ औय ववषभताओॊ का मशकाय है । सभाज के
कई वगथ-ववशेष रूऩ से अनस
ु र्ू चत जानत, अनस
ु र्ू चत जनजानत के रोग औय भटहराएॉ साभान्जक, आर्थथक
वयाजनीनतक रूऩ से उऩेक्षऺत यहे हैं। स्वतन्त्रता के ऩश्चात ् सॊववधान के फनाने वारों ने इन वगों के
याजनीनतक ववकास के उद्देश्म से अनुसूर्चत जानत व अनुसूर्चत जनजानत के मरए सॊसद व याज्मों की
ववधानसबाओॊ भें ननन्श्चत सीटों का आयऺण ककमा ताकक याजनीनतक सॊस्थाओॊ औय ननणथम प्रणारी भें
इनकी बागीदायी को ननन्श्चत ककमा जा सके अन्मथा मह कटठन कामथ था। सबी वगों को याष्ट्र की भुख्म
धाया भें राने के मरए वऩछडे वगों व भटहराओॊ के मरए आयऺण आवश्मक है ।
प्रश्न 10.
चुनाव के सम्फन्ध भें कानून फनाने का अर्धकाय ककसे है ?
उत्तय :
सॊववधान के अनुसाय ननवाथचन सम्फन्धी कानून फनाने का अर्धकाय सॊसद को प्राप्त है । सॊसद ववधानभण्डरों
के ननवाथचन के मरए भतदाताओॊ की सूर्चमाॉ तैमाय कयने , ननवाथचन ऺेत्रों का ऩरयसीभन तथा अन्म सभस्त
सभस्माओॊ से सम्फन्न्धत कानून फना सकती है । इस अर्धकाय के अन्तगथत ननवाथचन की व्माख्मा के मरए
सॊसद ने दो भुख्म अर्धननमभ फनाए हैं –
(1) जन प्रनतननर्धत्व अर्धननमभ 1950
(2) जन प्रनतननर्धत्व अर्धननमभ 1951। प्रथभ अर्धननमभ द्वाया ननवाथचन ऺेत्र का ऩरयसीभन कयने की
ववर्ध, सॊसद के ववमबन्न याज्मों के स्थानों की सॊख्मा तथा प्रत्मेक याज्म के ववधानभण्डर भें सदस्मों की
सॊख्मा ननन्श्चत की गई है । दस
ू ये अर्धननमभ द्वाया ननवाथचनों का सॊचारन तथा प्रफन्ध कयने की
प्रशासननक व्मवस्था, भतदान, उऩ-ननवाथचन आटद ववषमों का सभर्ु चत प्रफन्ध ककमा गमा है । इन अर्धननमभों
भें सभम-सभम ऩय ऩरयवतथन ककए जा चुके हैं।
प्रश्न 11.
चुनाव सुधाय हे तु प्रभुख सुझाव क्मा हैं ?
उत्तय :
चुनाव सुधाय हे तु प्रभुख सुझाव ननम्नमरखखत हैं –
1. दे श की चन
ु ाव व्मवस्था को सवाथर्धक भत से जीत वारी प्रणारी के स्थान ऩय ककसी प्रकाय की
सभानुऩानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी को रागू कयना चाटहए। इससे याजनीनतक दरों को उसी अनुऩात
भें सीटें मभरेंगी न्जस अनऩ
ु ात भें उन्हें वोट मभरेंगे।
2. सॊसद औय ववधानसबाओॊ भें एक-नतहाई सीटों ऩय भटहराओॊ को चुनने के मरए ववशेष प्रावधान फनाए
जाएॉ।
3. चुनावी याजनीनत भें धन भें प्रबाव को ननमन्न्त्रत कयने के मरए औय अर्धक कठोय प्रावधान होने
चाटहए।
4. न्जस उम्भीदवाय के ववरुर्द् पौजदायी का भुकदभा हो उसे चुनाव रडने से योक टदमा जाना चाटहए ,
बरे ही उसने इसके ववरुर्द् न्मामारम भें अऩीर कय यखी हो।
5. चुनाव प्रचाय भें जानत औय धभथ के आधाय ऩय की जाने वारी ककसी बी अऩीर को ऩूयी तयह से
प्रनतफन्न्धत कय दे ना चाटहए।
6. याजनीनतक दरों की कामथप्रणारी को ननमन्न्त्रत कयने के मरए तथा उनकी कामथववर्ध को औय अर्धक
ऩायदशी तथा रोकतान्न्त्रक फनाने के मरए एक कानून होना चाटहए।
प्रश्न 12.
ननवाथचन आमोग के सॊगठन का वणथन कीन्जए।
मा
―ननवाथचन आमोग एक स्वतन्त्र सॊवैधाननक ननकाम है । ‖ इस कथन को सभझाइए।
उत्तय :
सॊववधान-ननभाथताओॊ ने सॊववधान की धाया (अनु०) 324(2) के अन्तगथत प्रावधान ककमा है कक सभम की भाॉग
के अनुरूऩ ननवाथचन आमोग एक-सदस्मीम अथवा फहुसदस्मीम ननकाम हो सकता है । बायत भें केन्द्र तथा
याज्मों के मरए एक ही ननवाथचन आमोग है ।
1. भख् ु त कामशकार – सॊववधान के अनुसाय भुख्म ननवाथचन आमुक्त का कामथकार 6 वषथ मा
ु म ननिाशचन आमत
65 वषथ की आमु, जो बी प्रथभ अद्मतन हो, होता है ।
2. ऩद की क्स्थनत – भुख्म ननवाथचन आमुक्त एक साॊववधाननक ऩद है । मह ऩद उच्चतभ न्मामारम के
न्मामाधीश के सभकऺ है । भख्
ु म ननवाथचन आमक्
ु त को सॊसद के प्रत्मेक सदन द्वाया ववशेष फहुभत
से औय साब्रफत कदाचाय मा असभथथता के आधाय ऩय ही हटामा जा सकता है ।
ु तों की क्स्थनत – अन्म आमक्
3. अन्म आमत ु तों को याष्ट्रऩनत भख्
ु म ननवाथचन आमक्
ु त की मसपारयश ऩय ही
हटा सकता है ।
4. ननिाशचन की सेिा-र्ते – ननवाथचन आमोग की सेवा की शते औय ऩदावर्ध वह होगी जो सॊसद ववर्ध
द्वाया भान्म होगी।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
गप्ु त भतदान तथा द्ववतीम भत-प्रणारी ऩय सॊक्षऺप्त टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय :
गतु त भतदान
1. गतु त भतदान – जफ भतदाता इस प्रकाय गोऩनीम ववर्ध से भत दे ता है कक उसे कोई अन्म व्मन्क्त नहीॊ
जान सके कक उसने ककसे भत टदमा है तो इसे गप्ु त भतदान कहते हैं। इस प्रकाय भतदाता स्वतन्त्रताऩव
ू क

अऩने भतदान का प्रमोग कय सकते हैं औय उन ऩय ककसी के दफाव की आशॊका नहीॊ यहती। हे रयॊग्टन तथा
काउण्ट अण्डये सी ने गप्ु त भतदान का प्रफर सभथथन ककमा है । आजकर ववश्व के सबी रोकतान्न्त्रक दे शों
भें गुप्त भतदान-प्रणारी द्वाया ही चुनाव होते हैं। आदशथ रूऩ भें प्रकट भतदान की प्रणारी अच्छी हो
सकती है , ककन्तु व्मवहाय भें गप्ु त भतदान की प्रणारी ही सवथश्रेष्ट्ठ है ।
2. द्वितीम भत-प्रणारी – भतदाताओॊ के व्माऩक प्रनतननर्धत्व के मरए द्ववतीम भतदान-प्रणारी अऩनामी जाती
है । इस प्रणारी भें प्रत्माशी को ववजमी होने के मरए डारे गमे भतों का 50 प्रनतशत से अर्धक बागे प्राप्त
होना आवश्मक होता है । जफ एक ही स्थान के मरए दो से अर्धक प्रत्माशी चुनाव रडते हैं औय ककसी बी
प्रत्माशी को भतदान भें ऩूणथ फहुभत प्राप्त नहीॊ। होता तो अर्धक भत प्राप्त कयने वारे दो प्रत्मामशमों के
फीच दफ ु ाया भतदान होता है औय न्जस प्रत्माशी को ननयऩेऺ फहुभत प्राप्त हो जाता है वह ववजमी घोवषत
कय टदमा जाता है । िाॊस के याष्ट्रऩनत के ननवाथचन भें इस प्रणारी को अऩनामा जाता है ।
प्रश्न 2.
रोकतन्त्र भें चुनावों का क्मा भहत्त्व है ?
उत्तय :
रोकतन्त्र भें चन
ु ावों का फडा भहत्त्वऩण
ू थ स्थान है । आज का रोकतन्त्र अप्रत्मऺ मा प्रनतननध्मात्भक
रोकतन्त्र है औय जनता अऩने ननवाथर्चत प्रनतननर्धमों द्वाया ही शासन भें बाग रेती है तथा अऩनी
प्रबस
ु त्ता का उऩमोग कयती है । आज के याष्ट्र-याज्मों भें ननवाथचनों के अनतरयक्त औय कोई उऩाम नहीॊ है
न्जसके भाध्मभ से जनता शासन भें बाग रे सके। चुनावों से रोगों को याजनीनतक मशऺा बी मभरती यहती
है औय इन्हें दे श के साभने आने वारी तात्कामरक सभस्माओॊ तथा ववमबन्न याजनीनतक दरों की नीनतमों
तथा कामथक्रभों का ननयन्तय ब्मौया प्राप्त होता यहता है । चुनावों के कायण जनता के प्रनतननर्ध बी अऩने
उत्तयदानमत्व को अनुबव कयते हैं औय कोई कामथ जनभत के ववरुर्द् कयने की टहम्भत नहीॊ कय सकते ,
क्मोंकक उन्हें शीघ्र ही चुनावों के टदनों भें जनता के साभने वोट भाॉगने जानी ऩडता है । उन्हें मह बम फना
यहता है कक मटद उन्होंने जनभत की अवहे रना की तो उन्हें दफ
ु ाया चुने जाने की उम्भीद नहीॊ यखनी
चाटहए। इस प्रकाय प्रनतननर्ध उत्तयदामी फने यहते हैं औय भनभानी नहीॊ कय सकते। इन सबी तथ्मों से
स्ऩष्ट्ट है कक रोकतन्त्र भें चुनावों का अत्मर्धक भहत्त्व है । हभ चुनाव के ब्रफना रोकतन्त्र की कल्ऩना बी
नहीॊ कय सकते।
प्रश्न 3.
साधायण फहुभत तथा ऩूणथ फहुभत भें क्मा अन्तय है ?
उत्तय :
साधायण फहुभत तथा ऩण
ू श फहुभत भें अन्तय
चुनावों भें ककसी उम्भीदवाय के चुने जाने के मरए प्राम् साधायण फहुभत का तयीका अऩनामा जाता है ।
इसभें सबी उम्भीदवायों को प्राप्त भतों की गणना एक साथ की जाती है तथा सवाथर्धक भत प्राप्त
उम्भीदवाय को ववजमी घोवषत ककमा जाता है ; जैसे—रोकसबा, ववधानसबा, नगयऩामरका व ऩॊचामतों के
चुनावों भें। ऩयन्तु ननवाथचन के मरए ऩूणथ फहुभत अथवा स्ऩष्ट्ट फहुभत का तयीका बी अऩनामा जा सकता
है । इसभें कुर डारे गए भतों को 50% +1 भत को प्राप्त कयना अननवामथ होता है ; जैसे–बायत के याष्ट्रऩनत
व उऩयाष्ट्रऩनत के चन
ु ाव भें इस प्रणारी को अऩनामा जाता है । दोनों प्रकाय के फहुभत भें । ननम्नमरखखत
अन्तय हैं –

(1) साधायण फहुभत भें सबी उम्भीदवायों भें सवाथर्धक भत प्राप्त कयने वारे को ननवाथर्चत घोवषत कय टदमा
जाता है । ऩयन्तु ऩण
ू थ फहुभत भें ऐसा नहीॊ होता। ऩण
ू थ फहुभत प्रणारी के अन्तगथत ननवाथर्चत होने के मरए
उम्भीदवायों को कुर डारे गए भतों का स्ऩष्ट्ट फहुभत अथाथत ् उन भतों के 50 प्रनतशत से एक भत अर्धक
(50% + 1) प्राप्त कयना आवश्मक है ।
(2) साधायण फहुभत के अन्तगथत ननवाथर्चत प्रनतननर्ध कुर भतों का थोडा-सा प्रनतशत जैसे कक 20% भत
रेकय बी चुना जा सकता है । मटद उम्भीदवायों की सॊख्मा 18 है औय एक को 20% भत मभरे औय अन्म
को इससे बी कभ तो 20% भत प्राप्त कयने वारा उम्भीदवाय चुना जा सकता है । ऩयन्तु ऩूणथ फहुभत के
अन्तगथत ऐसा नहीॊ हो सकता।
(3) साधायण फहुभत का तयीका सयर है । इसभें केवर एक ही फाय चुनाव तथा वोटों की र्गनती | होती है ।
ऩयन्तु ऩूणथ फहुभत के अन्तगथत , ककसी बी उम्भीदवाय द्वाया ऩूणथ फहुभत प्राप्त न कयने ऩय ऩन
ु ् चुनाव
कयवामा जाता है मा एकर सॊक्रभणीम भत प्रणारी को अऩनामा जाता है ।
(4) ऩूणथ फहुभत का तयीका जटटर है औय इसे सॊसद अथवा ववधानसबा के चुनावों भें प्राम् नहीॊ अऩनामा
जाता। उच्च ऩदों के मरए प्राम् ऩण
ू थ फहुभत का तयीका अऩनामा जाता है ।
प्रश्न 4.
ननवाथचन सम्फन्धी व्ममों को कभ कयने की आवश्मकता क्मों है ?
उत्तय :
वतथभान भें ननवाथचनों ऩय अत्मर्धक धन व्मम ककमा जाता है । ऐसी न्स्थनत भें गयीफ ऩयन्तु प्रनतबावान ्
व्मन्क्त ननवाथचन भें खडा होने का ववचाय भन भें नहीॊ रा सकता है । ननवाथचनों भें भ्रष्ट्टाचाय का प्रभुख
कायण, अत्मर्धक धनयामश को खचथ कयना है । अत: मह आवश्मक ही नहीॊ , वयन ् अऩरयहामथ है कक कानन

द्वाया धन ननधाथरयत सीभा का कठोयता से ऩारन ककमा जाए तथा जो व्मन्क्त इस कानून का उल्रॊघन
कयता है , उसे कडी-से-कडी सजा मभरनी चाटहए। याजनीनतक दरों तथा सॊस्थाओॊ द्वाया चन
ु ाव-प्रचाय ऩय
ककए गए व्मम का टहसाफ यखने तथा उसे ननवाथचन आमोग के सभऺ प्रस्तुत कयने का बी प्रावधान होना
चाटहए। सयकाय को इस ववषम ऩय बी कानन
ू का ननभाथण कयना चाटहए कक याजनीनतक दर व्मन्क्तमों तथा
सॊस्थाओॊ से चन्दे से ककतनी धनयामश प्राप्त कये ।
27 नवम्फय, 1974 ई० को काॉग्रेस सॊसदीम दर की फैठक भें ननवाथचन ऩय व्मम की जाने वारी धनयामश को
कभ कयने के सम्फन्ध भें ननम्नमरखखत सुझाव टदए गए –

1. सयकाय को धन से उम्भीदवायों की सहामता कयनी चाटहए।


2. सयकाय की तयप से उम्भीदवायों को भतदाता सूची प्राप्त होनी चाटहए।
3. सयकाय सावथजननक फैठक के मरए एक स्थान ननन्श्चत कये तथा सबी उम्भीदवाय उसी प्रेटपाभथ से
बाषण दें ।
4. चन
ु ाव अमबमान का सभम कभ ककमा जाए।
इस सम्फन्ध भें ननवाथचन आमोग ने व्मवस्था दी है कक ननवाथचन के सम्ऩन्न हो जाने के ऩश्चात ् चुनाव
व्मम का गरत ब्मौया दे ने वारे उम्भीदवाय को जभ
ु ाथने के साथ 6 भहीने से 1 वषथ का ‖ कायावास टदमा
जाना चाटहए। साथ ही प्रत्मेक चुनाव के प्रत्माशी हे तु खचथ की सीभा बी तम कय दी गई है ।

प्रश्न 5.
भतार्धकाय सम्फन्धी मसर्द्ान्तों को सभझाइए।
उत्तय :
भताचधकाय सम्फन्धी ससद्ान्त
भतार्धकाय टदए जाने के सम्फन्ध भें ववमबन्न मसर्द्ान्तों का प्रनतऩादन ककमा गमा है । इससे सम्फन्न्धत
कुछ प्रभुख मसर्द्ान्त ननम्नमरखखत हैं –

1. प्राकृनतक अचधकायों का ससद्ान्त – इस मसर्द्ान्त के अनुसाय भतार्धकाय एक प्राकृनतक अर्धकाय है तथा सबी
व्मन्क्तमों को सभान रूऩ से इसे प्रमोग कयने का अर्धकाय प्राप्त है इस मसर्द्ान्त के अनुसाय भत दे ने का
अर्धकाय स्वाबाववक है औय मह अर्धकाय भनष्ट्ु म को प्राकृनतक रूऩ से प्राप्त होता है । इस मसर्द्ान्त के
प्रभुख सभथथक भॉण्टे स्क्मू, टाभस ऩेन तथा रूसो हैं।
ू ी ससद्ान्त – इस मसर्द्ान्त के अनस
2. िैधाननक अथिा कानन ु ाय भतार्धकाय प्राकृनतक अर्धकाय नहीॊ है , फन्ल्क मह
याज्म द्वाया प्रदान ककमा गमा अर्धकाय है । कानूनी मसर्द्ान्त के अन्तगथत नागरयक द्वाया भतार्धकाय का
दावा नहीॊ ककमा जा सकता है ।
3. नैनतक ससद्ान्त – इस मसर्द्ान्त के अनुसाय भतार्धकाय नैनतक भान्मताओॊ ऩय आधारयत होता है । मह
याजनीनतक भाभरों भें व्मन्क्त द्वाया अऩने ववचायों को अमबव्मन्क्त कयने का एक भाध्मभ भात्र है ।
भतार्धकाय व्मन्क्त का नैनतक औय आध्मान्त्भक ववकास कयता है तथा मह भानव के व्मन्क्तत्व ववकास के
मरए आवश्मक है ।
4. साभदु ानमक ससद्ान्त – इस मसर्द्ान्त के अनुसाय भतार्धकाय साभुदानमक जीवन का एक प्रभुख अॊग है ,
इसमरए सीमभत ऺेत्र भें भतार्धकाय मभरना चाटहए। मह मसर्द्ान्त इटरी औय जभथनी की दे न है ।
5. साभन्तिादी ससद्ान्त – मह मसर्द्ान्त भध्म मुग भें प्रचमरत हुआ। इस मसर्द्ान्त के अनुसाय भतार्धकाय
केवर उन्हीॊ व्मन्क्तमों को प्राप्त होना चाटहए, न्जनका सभाज भें उच्च स्तय हो तथा जो सम्ऩन्त्त के स्वाभी
हों।
6. सािशजननक कतशव्म का ससद्ान्त – इस मसर्द्ान्त के अनुसाय भतदान एक सावथजननक कतथव्म है । अत: भतदान
अननवामथ होना चाटहए। फेन्ल्जमभ, नीदयरैण््स, चेक गणयाज्म व स्रोवाककमा दे शों भें भतदान अननवामथ है ।
इन दे शों भें भतार्धकाय का प्रमोग न कयना। दण्डनीम भाना गमा है ।
प्रश्न 6.
प्रत्मऺ एवॊ अप्रत्मऺ ननवाथचन-प्रणामरमों के फाये भें फताइए।
उत्तय :
साभान्मतमा ननवाथचन की दो प्रणामरमाॉ हैं-प्रत्मऺ ननवाथचन औय अप्रत्मऺ ननवाथचन।
प्रत्मऺ ननिाशचन – प्रत्मऺ ननवाथचन-प्रणारी से तात्ऩमथ ऐसी ननवाथचन प्रणारी से है न्जसभें भतदाता स्वमॊ अऩने
प्रनतननर्ध चुनते हैं। प्रत्मऺ ननवाथचन भें जनता द्वाया चुने हुए प्रनतननर्ध ही व्मवस्थावऩका के सदस्म औय
भख्ु म कामथऩामरका के अॊग फनते हैं। मह फहुत सयर ववर्ध है । इसके अन्तगथत प्रत्मेक भतदाता भतदान-
केन्द्र ऩय ववमबन्न प्रत्मामशमों भें से ककसी एक प्रत्माशी के ऩऺ भें भतदान कयता है औय न्जस प्रत्माशी को
सवाथर्धक भत प्राप्त होते हैं उसे ननवाथर्चत घोवषत कय टदमा जाता है । मह प्रणारी सवाथर्धक रोकवप्रम
प्रणारी है । साभान्मत: ववश्व के प्रत्मेक प्रजातान्न्त्रक दे श भें व्मवस्थावऩका के ननम्न सदन के सदस्म
प्रत्मऺ ननवाथचन द्वाया ही चन
ु े जाते हैं।
अप्रत्मऺ ननिाशचन – इस प्रणारी के अन्तगथत भतदाता सीधे अऩने प्रनतननर्ध नहीॊ चुनते हैं वयन ् वे ऩहरे एक
ननवाथचक-भण्डर को चुनते हैं। मह ननवाथचक-भण्डर फाद भें अन्म प्रनतननर्धमों को चुनते हैं। इस प्रकाय
जनता प्रत्मऺ रूऩ से प्रनतननर्धमों का ननवाथचन नहीॊ कयती है ; अत् इसे अप्रत्मऺ ननवाथचन प्रणारी कहा
जाता है । बायत के याष्ट्रऩनत तथा सॊमुक्त याज्म अभेरयका के याष्ट्रऩनत दोनों का ननवाथचन अप्रत्मऺ रूऩ से
होता है । बायत, िाॊस आटद दे शों भें व्मवस्थावऩका के द्ववतीम सदन का ननवाथचन बी अप्रत्मऺ ननवाथचन
प्रणारी द्वाया ककमा जाता है ।
प्रश्न 7.
आदशथ प्रनतननर्धत्व प्रणारी की ववशेषताएॉ फताइए।
मा
आदशथ ननवाथचन-प्रणारी के चाय प्रभुख तत्वों को फताइए।
उत्तय :
आदशथ ननवाथचन-प्रणारी के मरए अनेक फातें आवश्मक हैं , न्जनभें से ननम्न चाय प्रभख
ु हैं –
1. प्रनतननचध के कामशकार का उचचत ननधाशयण – आदशथ ननवाथचन-प्रणारी भें प्रनतननर्धमों का कामथकार न फहुत
अर्धक औय न फहुत कभ होना चाटहए। 3 से 5 वषथ तक के कामथकार को प्राम् उर्चत कहा जा सकता है ।
2. अल्ऩसॊख्मकों के प्रनतननचधत्ि की उचचत व्मिस्था – अल्ऩसॊख्मकों के प्रनतननर्धत्व की उर्चत व्मवस्था होनी
चाटहए, क्मोंकक ऐसा न होने से अल्ऩसॊख्मक वगों के व्मन्क्तमों की ननष्ट्ठा दे श के प्रनत नहीॊ होगी तथा
उनके टहतों को बी उर्चत प्रनतननर्धत्व नहीॊ मभरेगा। इस सम्फन्ध भें अल्ऩसॊख्मक वगों के मरए सीटों के
आयऺण की व्मवस्था को अऩनामा जा सकता है । इसके साथ-साथ ऩथ
ृ क् ननवाथचन-प्रणारी न अऩनाकय
सॊमुक्त ननवाथचन-प्रणारी को ग्रहण ककमा जाना। चाटहए।
3. सािशबौसभक िमस्क भताचधकाय – रोकतन्त्र के भूर मसर्द्ान्तों भें से एक मसर्द्ान्त सभानता है । औय सबी
नागरयकों को सभान याजनीनतक शन्क्त वमस्क भतार्धकाय की व्मवस्था के द्वाया ही प्राप्त हो सकती है ।
इसमरए सबी वमस्क नागरयकों को ब्रफना ककसी प्रकाय के बेदबाव के भतार्धकाय प्राप्त होना चाटहए।
4. गतु त भतदान की व्मिस्था – आदशथ ननवाथचन प्रणारी भें भतदान गप्ु त ववर्ध से होना चाटहए, न्जससे भत की
गोऩनीमता फनी यहे औय भतदाता स्वतन्त्र होकय अऩनी इच्छानुसाय भतार्धकाय का प्रमोग कय सकें।
प्रश्न 8.
ननवाथचन आमोग के कामथ सॊऺेऩ भें मरखखए।
उत्तय :
सॊववधान की धाया (अन०
ु ) 324 भें ननवाथचन आमोग के कामों को स्ऩष्ट्टत् उल्रेख ककमा गमा है । इस प्रकाय
ननवाथचन आमोग के प्रभुख कामथ ननम्नमरखखत हैं –
1. ननवाथचन की नतर्थ घोवषत हो जाने के ऩश्चात ् ननवाथचन-ऺेत्रों का सीभाॊकन कयना।
2. भतदान हे तु सम्ऩण
ू थ याष्ट्र के भतदाताओॊ की सच
ू ी तैमाय कयना।
3. याष्ट्र भें ववद्मभान ववमबन्न याजनीनतक दरों को भान्मता प्रदान कयना। याजनीनतक दरों को याष्ट्रीम
तथा ऺेत्रीम स्तय प्रदान कयना बी ननवाथचन आमोग के अर्धकाय ऺेत्र भें है ।
4. याजनीनतक दरों को चुनाव रडने हे तु चुनाव-र्चह्न प्रदान कयना। मटद चुनाव र्चह्न से सम्फन्न्धत
कोई वववाद है तो उसका सभाधान कयना। चन
ु ाव र्चह्न के आवॊटन के अर्धकाय को ककसी बी
न्मामारम भें चुनौती नहीॊ दी जा सकती है ।
5. याष्ट्रऩनत, उऩयाष्ट्रऩनत, साभान्म ननवाथचन, सॊसद, ववधानभण्डरों के उऩ-चन
ु ाव कयना।
6. ननवाथचन आमोग ननवाथचन कयवाने के मरए रयटननथग अपसयों तथा सहामक रयटननांग अपसयों को
ननमुक्त कयता है ।
7. ननवाथचन आमोग याष्ट्रऩनत अथवा याज्मऩार को ककसी सॊसद सदस्म मा याज्म ववधानभण्डर के
सदस्म की अमोग्मता के ववषम भें ऩयाभशथ दे ता है ।
8. ननवाथचन आमोग सॊसद तथा याज्म ववधानसबाओॊ के रयक्त स्थानों की ऩूनतथ के मरए उऩ-चुनाव
कयवाता है ।
9. मटद कोई याजनीनतक दर अथवा उसके प्रत्माशी आमोग द्वाया ननन्श्चत ककए गए व्मवहाय के आदशथ
ननमभों का ऩारन नहीॊ कयते तो ननवाथचन आमोग उनकी भान्मता यद्द कय सकता है ।
10. ननवाथचन आमोग सभम-सभम ऩय ननवाथचन भें सध
ु ाय कयने के सम्फन्ध भें सझ
ु ाव दे ता है ।
11. ननवाथचन भें मटद ककसी कायणवश अननममभतताएॉ हो जाती हैं तो उनके ववरुर्द् मार्चकाओॊ को
आभन्न्त्रत कयना औय उनकी सन
ु वाई के मरए न्मामार्धकारयमों की ननमन्ु क्त कयना।
12. ननवाथचन भें प्रत्मामशमों द्वाया ककए गए व्मम की जाॉच कयना।
13. रोकसबा तथा ववधानसबा के ननवाथचनों भें ननवाथचन ऺेत्रों भें ऩमथवेऺकों की ननमुन्क्त कयना।
ऩमथवेऺकों के प्रनतवेदन के आधाय ऩय सम्ऩण
ू थ ननवाथचन ऺेत्र के ननवाथचन को यद्द कय दे ना अथवा
उसके कुछ भतदान केन्द्रों ऩय ऩुनभथतदान का आदे श दे ना।
14. सॊववधान द्वाया आमोग को कुछ अर्द्थ-न्मानमक कामथ बी सौंऩे गए हैं। सॊववधान के अनुच्छे द
103 के अन्तगथत याष्ट्रऩनत सॊसद के सदस्मों की अमोग्मताओॊ के सम्फन्ध भें तथा 192 अनुच्छे द के
अनुसाय, याज्मऩार ववधानभण्डर के सदस्मों के सम्फन्ध भें आमोग से ऩयाभशथ कय सकते हैं।
15. आमोग द्वाया याजनीनतक दरों के मरए आचाय सॊटहता तैमाय की जाती है ।
16. याजनीनतक दरों को आकाशवाणी ऩय चुनाव प्रचाय की सुववधाओॊ की व्मवस्था कयाना।
17. भतदाताओॊ को याजनीनतक प्रमशऺण दे ना।
दीघश उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
वमस्क भतार्धकाय से आऩ क्मा सभझते हैं ? इसके गुण तथा दोषों की वववेचना कीन्जए।
मा
भतार्धकाय का क्मा अथथ है ? भतार्धकाय के प्रकायों की व्माख्मा कीन्जए।
मा
सावथबौमभक भतार्धकाय के ऩऺ भें चाय तकथ दीन्जए।
मा
वमस्क भतार्धकाय से आऩ क्मा सभझते हैं। इसके ऩऺ औय ववऩऺ भें तकथ प्रस्तत
ु कीन्जए।
मा
वमस्क भतार्धकाय का अथथ फताइए तथा वतथभान सभम भें इसकी आवश्मकता के ऩऺ भें तकथ दीन्जए।
मा
वमस्क भतार्धकाय के सभथथन का भुख्म आधाय क्मा है ? उदाहयण सटहत स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
मा
रोकतान्न्त्रक शासन भें वमस्क भतार्धकाय का भहत्त्व सभझाइए।
उत्तय :
भताचधकाय का अथश एिॊ ऩरयबाषा
‗भतार्धकाय‘ शब्द भें दो शब्द सन्म्भमरत हैं-‗भत‘ औय ‗अर्धकाय‘। इसका आशम है —याम मा भत प्रकट
कयने का अर्धकाय। नागरयकशास्त्र के अन्तगथत भतार्धकाय का अऩना ववमशष्ट्ट अथथ है । इसके अनुसाय दे श
के नागरयकों को शासन सॊचारन हे तु अऩने उम्भीदवायों को चन
ु ने का जो अर्धकाय प्राप्त होता है , उसे ही
‗भतार्धकाय‘ कहते हैं। मह अर्धकाय नागरयक को भौमरक अर्धकाय भाना गमा है । केवर कुछ ववशेष
ऩरयन्स्थनतमों भें ही नागरयक को भतार्धकाय से वॊर्चत ककमा जा सकता है । भतार्धकाय की ऩरयबाषा दे ते
हुए गानथय ने मरखा है -―भतार्धकाय वह अर्धकाय है न्जसे याज्म दे श के टहत-साधक मोग्म व्मन्क्तमों को
प्रदान कयता है । ‖ भतार्धकाय की प्रान्प्त के मरए आमु , नागरयकता, ननवासस्थान आटद मोग्मताएॉ भहत्त्वऩूणथ
स्थान यखती हैं। कुछ दे शों भें मरॊग व मशऺा को बी भतार्धकाय की शतथ भाना गमा है ।

भताचधकाय के प्रकाय
भतार्धकाय दो प्रकाय का हो सकता है –
1. सीमभत भतार्धकाय तथा
2. वमस्क भतार्धकाय।
1. सीसभत भताचधकाय
सीमभत भतार्धकाय का अथथ है कक सम्ऩण
ू थ सभाज के कल्माण को ध्मान भें यखकय मह अर्धकाय केवर
ऐसे रोगों को ही टदमा जाना चाटहए, न्जनभें इसके प्रमोग की मोग्मता व ऺभता हो। मह भतार्धकाय मशऺा ,
सम्ऩन्त्त मा ऩरु
ु षों को प्रदान कयने तक सीमभत ककमा जा सकता है । ब्रण्टशरी , मभर, हे नयीभैन, मसजववक,
रैकी इसी ववचाय के सभथथक हैं। इन ववचायकों का भत है कक सम्ऩूणथ सभाज के टहत को ध्मान भें यखते
हुए भतार्धकाय केवर ऐसे रोगों को टदमा जाना चाटहए, जो भतदान के भहत्त्व को सभझते हों तथा
भतदान कयते सभम मोग्म तथा सऺभ उम्भीदवाय की ऩहचान कय सकें। मे ववचायक सम्ऩन्त्त , मशऺा
अथवा मरॊग को ही आधाय भानकय भतदान को सीमभत कयना चाहते हैं , इसमरए इसे ‗सीमभत भतार्धकाय‘
कहा जाता है । सीमभत भतार्धकाय के सभथथक ननम्नमरखखत आधायों ऩय भतदान को सीमभत कयना चाहते
हैं –

(अ) सम्ऩक्त्त का आधाय – सम्ऩन्त्त को भतार्धकाय का आधाय भानने वारे ववचायक कहते हैं कक भतार्धकाय
केवर उन नागरयकों को ही प्राप्त होना चाटहए, न्जनके ऩास कुछ सम्ऩन्त्त हो तथा जो कय दे ते हों। मटद
सम्ऩन्त्तववहीन मा कय न दे ने वारों को मह अर्धकाय टदमा गमा तो वे ऐसे व्मन्क्तमों को चुनेंगे जो
कानन
ू ों द्वाया धननकों की सम्ऩन्त्त का अर्धग्रहण कयने का प्रमास कयें गे तथा उन ऩय अर्धक-से-अर्धक
कय रगाएॉगे।
(फ) सर्ऺा का आधाय – मशऺा के सभथथक भानते हैं कक ननयऺय अथवा अमशक्षऺत व्मन्क्तमों को भतार्धकाय
नहीॊ टदमा जाना चाटहए् ननयऺय व्मन्क्तमों भें सभझदायी नहीॊ होती है तथा वे याजनीनत को नहीॊ सभझते
हैं। वे जानत, धभथ व सम्फन्धों से प्रबाववत हो जाते हैं। इसके ऩरयणाभस्वरूऩ वे गरत ननणथम बी रे सकते
हैं।
2. िमस्क मा सािशबौसभक भताचधकाय
कुछ ववद्वानों ने भतार्धकाय को प्रत्मेक नागरयक का प्राकृनतक अर्धकाय स्वीकाय ककमा है तथा मशऺा ,
मरॊग, सम्ऩन्त्त एवॊ अन्म ककसी बेदबाव के ब्रफना एक ननन्श्चत आमु तक के सबी व्मन्क्तमों को भतार्धकाय
प्राप्त होने का ववचाय प्रनतऩाटदत ककमा है । भत की इस व्मवस्था को ही वमस्क भतार्धकाय कहते हैं।
वमस्क भतार्धकाय क्मोंकक सबी वमस्क स्त्री-ऩुरुषों को प्राप्त यहता है , इसमरए इसे सावथबौभ भतार्धकाय बी
कहा जाता है ।

ववमबन्न याज्मों भें वमस्क होने की आमु अरग-अरग है । उदाहयणाथथ-बायत , इॊग्रैण्ड तथा अभेरयका भें 18
वषथ ऩय, न्स्वट्जयरैण्ड भें 20 वषथ ऩय, नावे भें 23 वषथ ऩय औय हॉरैण्ड भें 25 वषथ ऩय व्मन्क्त वमस्क भाना
जाता है । साधायणतमा ऩागर, टदवामरमे, अऩयाधी तथा ववदे शी भतार्धकाय से वॊर्चत यखे जाते हैं।

िमस्क भताचधकाय के गण
ु (ऩऺ भें तकश)
सॊसाय के अर्धकाश दे शों भें वमस्क भतार्धकाय प्रचमरत है । वमस्क भतार्धकाय के ननम्नमरखखत गुणों के
कायण इसको भान्मता प्रदान की गमी है –
1. सबी के दहतों की यऺा – वमस्क भतार्धकाय द्वाया सबी वगों के टहतों की यऺा होती है । मह रोक-सत्ता की
वास्तववक अमबव्मन्क्त है । गानथय के अनस
ु ाय, ―ऐसी सत्ता की सवथश्रेष्ट्ठ अमबव्मन्क्त भतार्धकाय भें ही हो
सकती है ।‖
2. विकास के सभान अिसय – मभर ने कहा है कक ―प्रजातन्त्र भनुष्ट्म की सभानता को स्वीकाय कयता है औय
याजनीनतक सभानता तबी हो सकती है जफ सबी नागरयकों को भतार्धकाय दे टदमा जामे। ‖
3. याजनीनतक सर्ऺा – वमस्क भताकिकाय सभस्त नागरयकों को ब्रफना ककसी बेदबाव के याजनीनतक जागनृ त
तथा सावथजननक मशऺा प्रदान कयता है ।
4. सबी प्रकाय के अचधकाय ि सम्भान की सयु ऺा – भतार्धकाय के ब्रफना न तो नागरयकों को अन्म अर्धकाय प्राप्त
होंगे औय न उनका सम्भान ही सयु क्षऺत यहे गा। भतार्धकाय मभरने से नागरयकों को अन्म नागरयक अर्धकाय
बी स्वत् ही प्राप्त हो जाते हैं।
5. र्ासन-कामों भें रुचच – भतार्धकाय प्राप्त होने से नागरयक शासनॊ-कामों भें रुर्च रेते हैं , न्जससे याष्ट्र
शन्क्तशारी फनता है औय नागरयकों भें स्वदे श-प्रेभ की बावना उत्ऩन्न होती है ।
6. रोकतन्त्र का आधाय – वमस्क भतार्धकाय को रोकतन्त्र की नीॊव तथा आधाय कहा जाता है , क्मोंकक
प्रजातान्न्त्रक शासन भें याज्म की वास्तववक प्रबुसत्ता भतदाताओॊ के हाथ भें ही होती है ।
7. अल्ऩसॊख्मकों का प्रनतननचधत्ि – सबी नागरयकों को भतार्धकाय प्राप्त होने से सभाज के फहुसॊख्मक तथा
अल्ऩसॊख्मक सबी वगों को शासन भें प्रनतननर्धत्व प्राप्त हो जाता है ; अत् सभाज के सबी वगथ सन्तुष्ट्ट
यहते हैं।
8. ननयॊ कुर्ता ऩय योक – वमस्क भतार्धकाय शासन की ननयॊ कुशता को योकने के मरए अवयोध का काभे कयता
है ।
िमस्क भताचधकाय के दोष (विऩऺ भें तकश)
कुछ ववद्वानों ने वमस्क भतार्धकाय की ननम्नमरखखत दोषों के आधाय ऩय आरोचना की है –

1. भताचधकाय का दरुु ऩमोग सम्बि – ववद्वानों का तकथ है कक भात्र वमस्कता के आधाय ऩय सबी रोगों को
भतार्धकाय दे ने से इस अर्धकाय के दरु
ु ऩमोग की सम्बावना फढ़ जाती है ।
2. अमोग्म व्मक्ततमों का चुनाि सम्बि – रॉवेर के शब्दों भें , ―अऻाननमों को भतार्धकाय दो, आज ही उनभें
अयाजकता पैर जाएगी औय कर ही उन ऩय ननयॊ कुश शासन होने रगेगा। ‖ वमस्क भतार्धकाय प्रणारी भें
मटद भतदाता अमशक्षऺत व अऻानी हों तो मही सम्बावना फरवती हो जाती है कक वे अमोग्म व्मन्क्तमों का
चन
ु ाव कयें गे, जो प्रजातन्त्र के मरए हाननकायक मसर्द् हो सकता है ।
3. धनी िगश के दहत असयु क्षऺत – वमस्क भतार्धकाय की दशा भें फहुसॊख्मक ननधथन तथा भजदयू जनता
प्रनतशोध की बावना से ऐसे प्रनतननर्धमों का चन ु ाव कयती है न्जनसे धननकों व ऩॉज
ू ीऩनतमों के टहतों को
हानन ऩहुॉचने की सम्बावना यहती है ।
4. िोिों की खयीद – वमस्क भतार्धकाय का एक फहुत फडा दोष मह है कक जनता की ननधथनता तथा अऻानता
का राब उठाकय अनेक प्रत्माशी उनके वोटों को धन मा अन्म सुववधाओॊ का रारच दे कय खयीद रेते हैं।
5. चुनाि भें भ्रष्ट्िाचाय – वमस्क भतार्धकाय की न्स्थनत भें भतदाताओॊ की सॊख्मा इतनी अर्धक होती है कक
चुनाव भें रोग अनेक प्रकाय के भ्रष्ट्ट साधन अऩनाने रगते हैं ; जैसे-कुछ कभजोय वगथ के रोगों को वोट
डारने से फरऩूवक
थ योकना, भतदाताओॊ के पजी नाभ दजथ कयाना, ककसी के नाभ का वोट ककसी अन्म के
द्वाया डार दे ना आटद।
6. रूदढ़िाददता – साभान्म जनता भें रूटढ़वादी व्मन्क्तमों की सॊख्मा अर्धक होती है । मे रोग सुधायों तथा
प्रगनतशीर ववचायों का ववयोध कयते हैं। अत: मटद वमस्क भतार्धकाय टदमा गमा तो शासन रूटढ़वादी तथा
प्रगनतशीर ववचायों के ववयोधी व्मन्क्तमों का केन्द्र फन जाएगा। इसीमरए हे नयीभैन ने कहा कक ―वमस्क
भतार्धकाय सम्ऩूणथ प्रगनत का अन्त कय दे गा।‖
हाराॉकक वमस्क भतार्धकाय के ववयोध भें कनतऩम तकथ टदमे गमे हैं , ऩयन्तु मे तकथ इसके सभथथन भें टदमे
गमे तको की तुरना भें गौण औय भहत्त्वहीन हैं। व्मावहारयक अनुबव मह है कक अनेक फाय अमशक्षऺत
व्मन्क्तमों ने बी अऩने भतार्धकाय का प्रमोग अत्मन्त फुवर्द्भान व्मन्क्त की तुरना भें अर्धक वववेक के
साथ ककमा है ; अत् मशऺा के आधाय ऩय भतार्धकाय को सीमभत ककमा जाना ठीक नहीॊ है । वमस्क
भतार्धकाय का सवथत्र अऩनामा जाना इस फात का प्रभाण है कक वह प्रजातन्त्र की बावनाओॊ के सवथथा
अनुकूर औय अननवामथ है । रॉस्की के इस कथन भें सत्म ननटहत है , ―वमस्क भतार्धकाय का कोई ववकल्ऩ
नहीॊ है ।‖

प्रश्न 2.
स्त्री-भतार्धकाय के ऩऺ एवॊ ववऩऺ भें तकथ दीन्जए।
मा
भटहरा भतार्धकाय के ऩऺ औय ववऩऺ भें दो-दो तकथ दीन्जए।
उत्तय :
कुछ ववद्वानों का ववचाय है कक भतार्धकाय स्त्री-ऩुरुष दोनों को मभरना चाटहए , जफ कक अनेक रोग स्त्री-
भतार्धकाय के ववयोधी हैं। ऐसे रोग स्त्री-भतार्धकाय के ववऩऺ भें ववमबन्न तकथ प्रस्तुत कयते हैं
स्त्री-भताचधकाय के विऩऺ भें तकश
साभान्मत् स्त्री-भतार्धकाय के ववऩऺ भें ननम्नमरखखत तकथ प्रस्तुत ककमे जाते हैं –

1. ऩारयिारयक जीिन ऩय कुप्रबाि – स्त्री-भतार्धकाय से न्स्त्रमों का कामथऺेत्र फढ़ जाता है , परस्वरूऩ वे ऩरयवारयक
कामों के प्रनत उदासीन हो जाती हैं। इससे ऩारयवारयक जीवन ऩय फुया प्रबाव ऩडता है ।
ु यािक्ृ त्त – ऐसा दे खा गमा है कक न्स्त्रमाॉ अऩने ऩनत के ऩयाभशाथनुसाय ही अऩना भत प्रमोग
2. भत की भात्र ऩन
कयती हैं। वे स्ववववेक से अऩने भत का प्रमोग नहीॊ कयतीॊ।
3. याजनीनत के प्रनत उदासीनता – प्राम् न्स्त्रमाॉ याजनीनत के प्रनत उदासीन यहती हैं। उनकी तयप से बरे ही
कोई ग दर शासन कये , इससे उन्हें अर्धक सयोकाय नहीॊ होता।
श ता – ऐसा भाना जाता है कक न्स्त्रमाॉ शायीरयक रूऩ से ऩरु
4. र्ायीरयक दफु र ु ष की अऩेऺा कभ शन्क्तशारी होती
हैं। उन्हें भतार्धकाय प्रदान कयने का कोई राब नहीॊ। वे कदभ-से-कदभ मभराकय ऩुरुष का साथ नहीॊ दे
सकतीॊ।
5. आत्भविश्िास की कभी – ऩयम्ऩया से न्स्त्रमाॉ ऩुरुषों ऩय ननबथय यहती आमी हैं। उनभें आत्भ ननबथयता तथा
आत्भववश्वास का अबाव होता है ।
ु प्रिक्ृ त्त – न्स्त्रमाॉ प्राम: बावुक होती हैं। बावुकता की मह प्रवन्ृ त्त याजनीनतक व्मवहाय के मरए
6. बािक
उऩमुक्त न्स्थनत नहीॊ है ।
7. भ्रष्ट्िाचाय को प्रोत्साहन – आज की दरगत याजनीनत भें भ्रष्ट्ट उऩामों का प्रमोग फढ़ जाने से न्स्त्रमों के मरए
मह ऺेत्र उऩमुक्त नहीॊ यह गमा है ।
स्त्री-भताचधकाय के ऩऺ भें तकश
उऩमुक्
थ त तकों के फावजूद स्त्री-भतार्धकाय के ववयोध भें आज फहुत कभ रोग हैं। रगबग सबी दे शों ने
आज स्त्री-भतार्धकाय प्रदान ककमा हुआ है । स्त्री-भतार्धकाय के ऩऺ भें ननम्नमरखखत तकथ टदमे जाते हैं –

1. भताचधकाय के सम्फन्धॊ भें सरॊग-बेद अनचु चत – मरॊग-बेद एक प्राकृनतक न्स्थनत है । इस आधाय को भतार्धकाय
का आधाय फनाना ननतान्त अनुर्चत है । न्स्त्रमाॉ बी ऩुरुषों के सभान स्वतन्त्र , फुवर्द्भान व नैनतक गुणों से
श्रेष्ट्ठ होती हैं। अत् भात्र स्त्री होने के कायण उन्हें ‗ भतार्धकाय से वॊर्चत कयना अनुर्चत ही नहीॊ , वयन ्
अन्मामऩूणथ बी है ।
2. ऩारयिारयक जीिन ऩय कोई फयु ा प्रबाि नहीॊ – स्त्री-भतार्धकाय से ऩारयवारयक जीवन ऩय कुप्रबाव ऩडता है , इसे
भत भें कोई और्चत्म नहीॊ। वास्तववकता मह है कक स्त्री भतार्धकाय से न्स्त्रमों की दृन्ष्ट्टकोण व्माऩक होता
है , उनभें ववद्मभान सॊकुर्चत ववचायधाया का अन्त होता है । उनका वैचारयक ऺेत्र ऩारयवारयक स्तय से उठकय
याष्ट्रीम स्तय तक फढ़ जाता है ।
3. याजनीनत ऩय स्िस्थ प्रबाि – मह कहना सवथथा अनुर्चत है कक न्स्त्रमाॉ याजनीनत के प्रनत उदासीन होती हैं।
सच तो मह है कक उनके याजनीनतक ऺेत्र भें उतये आने से याजनीनत भें स्वस्थ ऩयम्ऩयाओॊ का उदम होता
है । न्स्त्रमाॉ स्वबावत् शान्न्त-वप्रम, व्मवस्था-वप्रम, दमारु तथा सहानुबूनतऩूणथ दृन्ष्ट्टकोण यखने वारी होती हैं।
न्स्त्रमों के इन भानवीम गण
ु ों के कायण याजनीनत भें व्माप्त कठोयता , ननदथ मता, फेईभानी, चारफाजी आटद भें
ह्रास होगा तथा याजनीनत भें नमे आमाभ स्थावऩत होंगे।
श भानना अताककशक – न्स्त्रमाॉ ऩुरुषों की अऩेऺा ननफथर होती हैं , इस तकथ भें अर्धक तथ्म नहीॊ
4. क्स्त्रमों को दफु र
है । आज प्रत्मेक ऺेत्र भें न्स्त्रमाॉ न केवर ऩुरुष के साथ कन्धे-से-कन्धा मभराकय चर यही हैं , वयन ् वे ऩुरुषों
से आगे ननकरने के प्रमास भें हैं। अत् न्स्त्रमों को ननफथर भानकय उन्हें भतार्धकाय से वॊर्चत कय दे ने का
सभथथन कयने वारे मभथ्मा भ्रभ के मशकाय हैं।
ू श सऺभ – मह भत कक न्स्त्रमाॉ अऩने याजनीनतक अर्धकायों का सदऩ
5. र्ासन प्रफन्ध हेतु ऩण ु मोग नहीॊ कय
सकतीॊ औय उन्हें भतार्धकाय नहीॊ टदमा जाना चाटहए, सवथथा हास्मास्ऩद है । इनतहास साऺी है । कक न्स्त्रमों
ने सपर शामसका होने के प्रभाण प्रस्तुत ककमे हैं। कैथयीन, एमरजाफेथ ववक्टोरयमा, इन्न्दया गाॉधी, भायग्रेट
थैचय, बण्डायनामके, फेनजीय बट्ट
ु ो, एन्क्वनो, फेगभ खामरदा न्जमा जमरमरता आटद भटहराओॊ ने न केवर
शासन ककमा है , वयन ् मह मसर्द् कय टदमा है कक नायी होना ककसी बी प्रकाय से कोई दोष नहीॊ है । नायी
प्रत्मेक ऺेत्र भें ऩरु
ु ष की सभानता कय सकती है । अत् स्त्री-भतार्धकाय का ववयोधी भत यखना भ्राभक है ।
6. आज के मग ु ू र – स्त्री-भतार्धकाय वतथभान ऩरयन्स्थनतमों भें ननतान्त आवश्मक हो गमा है ।
ु के सिशथा अनक
आज न्स्त्रमाॉ जीवन के प्राम् प्रत्मेक ऺेत्र भें ऩदाऩथण कय चक
ु ी हैं। रोकतान्न्त्रक व्मवस्था भें तो स्त्री-
भतार्धकाय अऩरयहामथ ही है । न्स्त्रमों का कामथऺेत्र फढ़ गमा है । ऐसा बी नहीॊ है । कक स्त्री-भतार्धकाय प्रदान
कय दे ने से उनके प्राकृनतक कामों भें कोई रुकावट आती हो। मटद कोई भटहरा ककसी दे श की प्रधानभन्त्री है
तो इसका अथथ मह नहीॊ है कक उसका कोई ऩारयवारयक जीवन ही नहीॊ। घय भें वह ऩत्नी , भाता, फहन, ऩुत्री
आटद रूऩों भें अऩनी ऩायम्ऩरयक भहत्ता फनामे हुए है । अत: इस आधाय ऩय उनको भतार्धकाय से वॊर्चत
कयना गरत होगा।
ुश त ऩऺ – ववऩऺीम भतों का वववेचन कयने ऩय एक फात जो ववशेष रूऩ से स्ऩष्ट्ट होती है , वह मह है
उऩमत
कक स्त्री-भतार्धकाय के ववऩऺ भें टदमे गमे रगबग सबी तकथ अताककथक , भ्राभक व ऩऺऩातऩण
ू थ हैं। आज
स्त्री-भतार्धकाय राबप्रद ही नहीॊ , वयन ् ऩयभावश्मक बी है , तबी रोकतन्त्र सुयक्षऺत यह सकता है । इसी
कायण आज रगबग सबी दे शों ने स्त्री-भतार्धकाय प्रदान ककमा हुआ है ।
प्रश्न 3.
प्रनतननर्धत्व के ववमबन्न तयीकों का ऩयीऺण कीन्जए।
मा
आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व से आऩ क्मा सभझते हैं ? इसकी ववमबन्न प्रणामरमों की व्माख्मा कीन्जए।
मो
आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी के गुणों एवॊ दोषों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
अप्रत्मऺ रोकतन्त्र भें प्रनतननर्धत्व की ववमबन्न प्रणामरमों की फहुत भहत्त्वऩूणथ बूमभका है । सम्ऩूणथ
प्रणामरमों भें फहुभत प्रणारी को आशातीत सभथथन प्राप्त हुआ है । ऩयन्तु इसभें सफसे फडा दोष मह है कक
इसभें अल्ऩसॊख्मकों की सभुर्चत प्रनतननर्धत्व की न्स्थनत का अबाव ऩामा जाता है । इस दोष को दयू कयने
के उद्देश्म से ही अल्ऩसॊख्मकों को उर्चत प्रनतननर्धत्व दे ने के मरए अन्म प्रणामरमों का प्रमोग ककमा जाता
है ।
प्रनतननचधत्ि की प्रणासरमाॉ
आधुननक कार भें अल्ऩसॊख्मकों को उर्चत प्रनतननर्धत्व दे ने के मरए ननम्नमरखखत प्रणामरमों का प्रमोग
ककमा जाता है –

1. आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी।


2. सीमभत भत प्रणारी।
3. सॊर्चत भत प्रणारी।
4. एकर भत प्रणारी।
5. ऩथ
ृ क् ननवाथचन प्रणारी।
6. सयु क्षऺत स्थानमक्
ु त सॊमक्
ु त प्रणारी।
आनऩ
ु ानतक प्रनतननचधत्ि
अल्ऩसॊख्मकों को प्रनतननर्धत्व दे ने के मरए न्जन उऩामों का साधायणत् प्रमोग ककमा जाता है । उनभें
सवाथर्धक प्रमसर्द् उऩाम आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व (Proportional Representation) प्रणारी है । इस प्रणारी
का भर
ू उद्देश्म याज्म के सबी याजनीनतक दरों के टहतों का ध्मान यखना एवॊ उन्हें न्माम प्रदान कयना है ,
न्जससे प्रत्मेक दर को व्मवस्थावऩका भें आनुऩानतक दृन्ष्ट्ट से रगबग उतना प्रनतननर्धत्व अवश्म प्राप्त हो
सके, न्जतना कक न्मूनतभ उस वगथ के मरए मुन्क्तसॊगत हो। प्रनतननर्धत्व की इस मोजना को जन्भ दे ने
वारे 19वीॊ शताब्दी के एक अॊग्रेज ववद्वान थॉभस हे मय (Thomas Haire) थे। उन्होंने सन ् 1831 ई० भें इस
प्रणारी का सूत्रऩात ककमा इसीमरए इसे ‗हे मय प्रणारी‘ बी कहते हैं। वतथभान कार भें आनुऩानतक
प्रनतननर्धत्व प्रणारी का प्रमोग अनेक रूऩों भें ककमा जा यहा है । प्रो० सी० एप० स्राॉग के शब्दों भें —
―आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व का ऩथ
ृ क् रूऩ भें कोई बी अथथ नहीॊ है क्मोंकक इसके अनेक प्रकाय हैं। वास्तव भें
इतने अर्धक, न्जतने याज्मों ने उसे अऩनामा है औय मसर्द्ान्त रूऩ भें उससे बी अर्धका ‖ आनुऩानतक
प्रनतननर्धत्व के मे सबी प्रकाय इन दो रूऩों भें ववबक्त ककए जा सकते हैं –

1. एकर सॊक्रभणीम भत प्रणारी (Single Transferable Vote System)


2. सच
ू ी प्रणारी (List System)।
1. एकर सॊिभणीम भत प्रणारी – इस प्रणारी भें फहुसदस्मीम ननवाथचन-ऺेत्रों का प्रमोग ककमा जाता है । प्रत्मेक
ननवाथचन ऺेत्र से तीन मा इससे अर्धक प्रनतननर्ध चनु े जा सकते हैं एक ननवाथचन-ऺेत्र से चाहे ककतने ही
प्रनतननर्ध चुने जाने हों ककन्तु प्रत्मेक भतदाता को केवर एक ही । भत दे ने का अर्धकाय होता है । ऩयन्तु
वह भत-ऩत्र ऩय अऩनी ऩहरी, दस
ू यी, तीसयी औय चौथी औय इससे अर्धक ऩसन्द का उल्रेख उतनी सॊख्मा
भें कयता है , न्जतने उम्भीदवाय चुने जाने होते हैं। भतदान सभाप्त हो जाने ऩय मह दे खा जाता है कक
ननवाथचन-ऺेत्र भें कुर ककतने भत डारे गए औय मह सॊख्मा ऻात हो जाने ऩय ननन्श्चत ननवाथचक अॊक
(Electoral Quota) ननकारा जाता है । ननन्श्चत भत-सॊख्मा भतों की वह सॊख्मा है जो उम्भीदाय को ववजमी
घोवषत ककए जाने के मरए आवश्मक है । ननन्श्चत भत-सॊख्मा ऻात कयने का सूत्र इस प्रकाय है –
कोटा = कुर डारे गए भतों की सॊख्मा / ऩदों की सॊख्मा + 1 (+1)
ननन्श्चत भत सॊख्मा ननकार रेने के फाद सफ भतदाताओॊ की ऩहरी ऩसन्द (First Preference) के भतऩत्र
(Ballot-papers) र्गन मरए जाते हैं। न्जन उम्भीदवायों को ननन्श्चत सॊख्मा के फयाफय मा उससे अर्धक
ऩहरी ऩसन्द के भत प्राप्त होते हैं , वे ननवाथर्चत घोवषत कय टदए जाते हैं। ऩयन्तु मटद इस प्रकाय सफ
स्थानों की ऩनू तथ नहीॊ हो ऩाती है , तो सपर उम्भीदवायों के अनतरयक्त भत (Surplus Votes) अन्म
उम्भीदवायों को हस्तान्तरयत कय टदए जाते हैं औय उन ऩय अॊककत दस
ू यी ऩसन्द (Second Preference) के
अनस
ु ाय ववबान्जत ककए जाते हैं। मटद इस ऩय बी सफ स्थानों की ऩनू तथ नहीॊ होती है तो सपर उम्भीदवायों
की तीसयी, चौथी, ऩाॉचवीॊ ऩसन्द बी इसी प्रकाय हस्तान्तरयत की जाती है औय मटद उसके फाद बी कुछ
स्थान रयक्त यह जाते हैं तो न्जन उम्भीदवायों को सफसे कभ भत प्राप्त हुए हैं , वे फायी-फायी से ऩयान्जत
घोवषत कय टदए जाते हैं औय उनके प्राप्त-भत दस ू यी, तीसयी, चौथी इत्माटद ऩसन्द के अनस ु ाय हस्तान्तरयत
कय टदए जाते हैं। मह प्रकक्रमा उस सभम तक चरती यहती है , जफ तक कक रयक्त स्थानों की ऩूनतथ न हो
जाए।

इस प्रणारी का स्ऩष्ट्ट उद्देश्म मही है कक एक बी भत व्मथथ न जाए। मह प्रणारी अत्मन्त जटटर है ।


इसीमरए इसका प्रमोग फहुत कभ दे शों भें होता है , तथावऩ स्वीडन, कपनरैंड, नावे, डेनभाकथ आटद दे शों भें मही
प्रणारी प्रचमरत है ।

ू ी प्रणारी – सच
2. सच ू ी प्रणारी आनऩ
ु ानतक प्रनतननर्धत्व का दस
ू या रूऩ है । इस प्रणारी के अन्तगथत सबी
प्रत्माशी अऩने-अऩने याजनीनतक दरों के अनुसाय अरग-अरग सूर्चमों भें सूचीफर्द् ककए जाते हैं औय
प्रत्मेक दर अऩने उम्भीदवायों की सच
ू ी प्रस्तत
ु कयता है , न्जसभें टदए गए नाभों की सॊख्मा उस ननवाथचन-
ऺेत्र से चुने जाने वारे प्रनतननर्धमों की सॊख्मा से अर्धक नही हो सकती है । भतदाता अऩने भत अरग-
अरग उम्भीदवायों को नहीॊ , अवऩतु ककसी बी दर की ऩूयी-की-ऩूयी सूची के ऩऺ भें दे ते हैं। इसके फाद डारे
गए भतों की कुर सॊख्मा को ननवाथर्चत होने वारे प्रनतननर्धमों की सॊख्मा से बाग दे कय ननवाथचक अॊक
(Electoral Quota) ननकार मरमा जाता है । तदऩ
ु यान्त एक दर द्वाया प्राप्त भतों की सॊख्मा को ननवाथचक
अॊक से बाग टदमा जाता है औय इस प्रकाय मह ननश्चम ककमा जाता है कक उसे दर को ककतने स्थान
मभरने चाटहए। उदाहयणाथथ, ककसी याज्म से 50 प्रनतननर्ध चुने जाते हैं औय कुर वैध भतों की सॊख्मा
2.00,000 है , तो 2,00,000/50 = 4,000 ननवाथचन अॊक हुआ। ऐसी न्स्थनत भें ककसी याजनीनतक दर ‗अ फ
स‘ को 21,000 भत प्राप्त हुए हैं, तफ (21,000/4,000 = 5.25) उस दर के 5 प्रत्माशी ववजमी घोवषत होंगे।
सबी सच
ू ी प्रणामरमों का आधायबत
ू मसर्द्ान्त मही है , ऩयन्तु ववमबन्न दे शों भें थोडा-फहुत ऩरयवतथन अथवा
सॊशोधन कयके इसे नए-नए रूऩ टदए गए हैं औय इस प्रकाय आज सूची प्रणारी के अनेक प्रकाय ऩाए जाते
हैं। ऐसी न्स्थनत भें सच
ू ी प्रणारी का कोई सावथबौमभक मसर्द्ान्त नहीॊ है ।
आनऩ
ु ानतक प्रनतननचधत्ि प्रणारी के गण

आनऩ
ु ानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी व्मवस्थाऩक-भण्डर भें अल्ऩभतों को प्रनतननर्धत्व प्रदान कयने का एक
सयर उऩाम है । इस प्रणारी के प्रभुख गुण ननम्नमरखखत हैं –

1. मह प्रणारी अल्ऩसॊख्मक दर को उसकी शन्क्त के अनुऩात भें प्रनतननर्धत्व प्रदान कयती है । न्जसके
परस्वरूऩ मह व्मवस्थावऩका का मथाथथ प्रनतब्रफम्फ फन जाती है तथा प्रत्मेक अल्ऩसॊख्मक वगथ सन्तष्ट्ु ट हो
जाता है ।
2. आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व के अन्तगथत व्मवस्थावऩका भें साधायणतमा ककसी एक दर को स्ऩष्ट्ट फहुभत
प्राप्त नहीॊ हो ऩाता है । इस प्रकाय मह प्रणारी अल्ऩभत दरों को फहुभत दर की स्वेच्छाचारयता से फचाकय
शासन भें उर्चत बागीदायी का अवसय प्रदान कयती है ।
3. आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व के ऩरयणाभस्वरूऩ एक प्रकाय की याजनीनतक मशऺा बी प्राप्त होती है । क्मोंकक
भतदाताओॊ के मरए अऩना भत दे ने से ऩहरे ववमबन्न उम्भीदवायों तथा ववमबन्न दरों की नीनतमों के
सम्फन्ध भें ववचाय कयना आवश्मक हो जाता है ।
4. मह प्रणारी भतार्धकाय को साथथक एवॊ व्मावहारयक फनाती है क्मोंकक इसभें प्रत्मेक भतदाता को अनेक
उम्भीदवायों भें से चन
ु ाव की स्वतन्त्रता प्राप्त होती है । इसभें ककसी भतदाता का भत व्मथथ नहीॊ जाता है ,
उससे ककसी-न-ककसी उम्भीदवाय के ननवाथचन भें सहामता अवश्म मभरती है । शुल्ज ( Schulz) का भत है -
―एकर सॊक्रभणीम भत ऩर्द्नत ननवाथचकों को अऩनी ऩसन्द के उम्भीदवाय चन
ु ने भें सफसे अर्धक स्वतन्त्रता
प्रदान कयती है । ‖
5. आनुऩानतक प्रणारी भें उच्च व्मवस्थावऩका स्तय की सम्बावना फनी यहती है ।
आनऩ
ु ानतक प्रनतननचधत्ि प्रणारी के दोष
मटद ननवाथचन का एकभात्र उद्देश्म केवर न्माम अथवा चन
ु ाव रडने वारे दरों के फीच अनऩ
ु ात की स्थाऩना
है तो मह प्रणारी वास्तव भें ननवाथचन की आदशथ प्रणारी कही जा सकती है । ऩयन्तु व्मवस्थावऩका को
केवर ववमबन्न दरों तथा वगों का प्रनतननर्धत्व ही नहीॊ कयना चाटहए , अवऩतु अऩने कतथव्मों का बी सुचारु
रूऩ से ऩारन कयना चाटहए। इस दृन्ष्ट्टकोण से आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व के ववरुर्द् अनेक तकथ प्रस्तुत ककए
जा सकते हैं , न्जनभें से कनतऩम ववशेष भहत्त्वऩूणथ तकथ ननम्नमरखखत हैं –

1. मह प्रणारी ववशार याजनीनतक दरों की एकता को नष्ट्ट कय दे ती है तथा इससे अनेक छोटे -छोटे दरों
औय गुटों का जन्भ होता है । इसके ऩरयणाभस्वरूऩ सबी सभस्माओॊ ऩय याष्ट्रीम टहत की दृन्ष्ट्ट से नहीॊ , वयन ्
वगीम टहत की दृन्ष्ट्ट से ववचाय ककमा जाता है । मसजववॊक के शब्दों भें -―वगीम प्रनतननर्धत्व आवश्मक रूऩ
से दवू षत वगीम व्मवस्थाऩन को प्रोत्साटहत कयता है ।
2. आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व ‗अल्ऩभत ववचायधाया‘ को प्रोत्साहन दे ता है , न्जसके ऩरयणाभस्वरूऩ वगथ-ववशेष के
टहतों औय स्वाथों का उदम होता है । इसके अन्तगथत व्मवस्थावऩका भें ककसी एक दर का स्ऩष्ट्ट फहुभत
नहीॊ होता है औय मभर्श्रत भन्न्त्रऩरयषद् के ननभाथण भें छोटे -छोटे दरों की न्स्थनत फहुत भहत्त्वऩूणथ हो जाती
है । वे अऩनी न्स्थनत का राब उठाते हुए स्वाथथऩण
ू थ वगथटहत के ऩऺ भें अऩना सभथथन फेच दे ते हैं ,
ऩरयणाभत् सावथजननक जीवन की ऩववत्रता नष्ट्ट हो जाती है । पाइनय के अनुसाय- ―इस प्रणारी को अऩनाने
से प्रनतननर्ध द्वाया अऩने ऺेत्र की दे खबार प्राम् सभाप्त हो जाती है । ‖
3. मह प्रणारी व्मावहारयक रूऩ भें फहुत जटटर है । इसकी सपरता के मरए भतदाताओॊ औय उनभें बी
अर्धक ननवाथचन अर्धकारयमों को उच्च कोटट की याजनीनतक मशऺा प्राप्त कयनी आवश्मक होती है ।
भतदाताओॊ को इसके ननमभ सभझने भें कटठनाई का साभना कयना ऩडता है । साथ ही भतगणना अत्मन्त
जटटर होती है , न्जसभें बूर होने की अनेक सम्बावनाएॉ यहती
4. उऩचुनावों भें जहाॉ केवर एक प्रनतननर्ध का चुनाव कयना होता है , इस प्रणारी का प्रमोग ककमा जाना
सम्बव नहीॊ होता है ।
5. आनऩु ानतक प्रणारी भें , ववशेषतमा सच
ू ी प्रणारी भें , दरों का सॊगठन तथा नेताओॊ का प्रबाव फहुत फढ़
जाता है औय साधायण सदस्मों की स्वतन्त्रता नष्ट्ट हो जाती है क्मोंकक भतदान का आधाय याजनीनतक दर
होता है ।
6. अनेक दरों के अन्स्तत्व के ऩरयणाभस्वरूऩ कोई बी दर अकेरे ही सयकाय ननभाथण की न्स्थनत भें नहीॊ
होता है । अत: सॊमक्
ु त भन्न्त्रऩरयषदों का ननभाथण होता है औय प्राम् सयकायें अस्थामी होती हैं।
7. दरीम वचथस्व होने के कायण भतदाता प्राम् अऩने-अऩने याजनीनतक दरों को भत दे ते हैं , अत् इस
प्रणारी भें ननवाथचकों औय प्रनतननर्धमों भें कोई सम्ऩकथ नहीॊ होता है ।
8. इस प्रणारी भें सभम औय धन दोनों का अऩव्मम होता है ।
विश्रेषणात्भक सभीऺा – उऩमक्
ुथ त दोषों के कायण ही अनेक याजनीनतक ववद्वान ् आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व को
अनुऩमोगी औय जटटर ननवाथचन प्रणारी कहते हैं। वास्तव भें याष्ट्रीम ननवाथचकों भें आनुऩानतक प्रणारी को
अऩनाना एक प्रकाय से अव्मवस्था उत्ऩन्न कयना है क्मोंकक मह व्मवस्थावऩका की सत्ता को ननफथर फना
दे ती है । मह प्रणारी भन्न्त्रऩरयषदों के स्थानमत्व तथा एकरूऩता को नष्ट्ट कय सॊसदीम शासन को असम्बव
फना दे ती है ।
आनऩ
ु ानतक प्रनतननचधत्ि प्रणारी का औचचत्म ननधाशयण एिॊ उऩमोचगता
प्रथभ भहामुर्द् के उऩयान्त िाॊस , जभथनी, आमयरैण्ड, चेकोस्रोवाककमा, ऩोरैण्ड आटद अनेक मूयोऩीम दे शों ने
इस प्रणारी को अऩनामा था, ऩयन्तु अफ इसकी उऩमोर्गता कभ होती जा यही है औय अनेक दे शों ने तो
इस ऩरयत्माग तक कय टदमा है । ग्रेट ब्रिटे न , सॊमुक्त याज्म अभेरयका, बायत तथा अन्म अनेक दे शों ने अऩने
साधायण ननवाथचनों के मरए कबी इस प्रणारी को अऩनामा ही नहीॊ , मद्मवऩ आजकर ब्रिटे न तथा अभेरयका
भें आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व सॊस्थाएॉ इस प्रणारी को रोकवप्रम फनाने का प्रमास कय यही हैं।

सॊसदीम ननवाथचनों भें तो फहुत कभ दे श ही इस प्रणारी का प्रमोग कयते हैं , ऩयन्तु व्मवस्थाऩक भण्डरों,
स्थानीम ननकामों औय गैय-सयकायी सभद ु ामों की ववमबन्न समभनतमों का ननवाथचन साधायणतमा इस प्रणारी
के अनुसाय ही होता है । हभायी सॊववधान सबा का ननवाथचन बी आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी के अनुसाय
ही हुआ था। नए सॊववधान के अन्तगथत याज्मसबा के सदस्म याज्मों की ववधानसबाओॊ द्वाया इसी प्रणारी
के आधाय ऩय ननवाथर्चत होते हैं औय याज्मों के उच्च सदनों जैसे बायत भें ववधान ऩरयक्दों औय
व्मवस्थाऩक-भण्डर की समभनतमों के ननभाथण भें बी इसी ननवाथचन प्रणारी का प्रमोग ककमा जाता है । बायत
के याष्ट्रऩनत का ननवाथचन बी आधुननक प्रनतननर्धत्व प्रणारी की एकर-सॊक्रभणीम भत प्रणारी के आधाय
ऩय होता है ।
प्रश्न 4.
प्रत्मऺ ननवाथचन के गण
ु ों औय दोषों का भल्
ू माॊकन कीन्जए।
मा
प्रत्मऺ ननवाथचन के चाय भुण फताइए।
उत्तय :
प्रत्मऺ ननिाशचन
मटद ननवाथचक प्रत्मऺ रूऩ से अऩने प्रनतननर्ध ननवाथर्चत कयें , तो उसे प्रत्मऺ ननवाथचन कहा जाता है । मह
ब्रफल्कुर सयर ववर्ध है । इसके अन्तगथत प्रत्मेक भतदाता ननवाथचन स्थान ऩय ववमबन्न उम्भीदवायों भें से
ककसी एक उम्भीदवाय के ऩऺ भें भतदान कयता है औय न्जस उम्भीदवाय को सवाथर्धक भत प्राप्त होते हैं.
उसे ववजमी घोवषत कय टदमा जाता है । बायत, इॊग्रैण्ड, अभेरयका, कनाडा, न्स्वट्जयरैण्ड आटद दे शों भें
व्मवस्थावऩका के प्रथभ सदन के ननभाथण हे तु मही ऩर्द्नत अऩनामी गमी है ।

प्रत्मऺ ननिाशचन के गण

ु ू र – मह जनता को प्रत्मऺ रूऩ से अऩने प्रनतननर्ध ननवाथर्चत कयने का
1. प्रजातन्त्रात्भक धायणा के अनक
अवसय दे ती है ; अत् स्वाबाववक रूऩ से मह ऩर्द्नत प्रजातन्त्रीम व्मवस्था के अनुकूर
2. भतदाता औय प्रनतननचध के भध्म सम्ऩकश – इस ऩर्द्नत भें जनता अऩने प्रनतननर्ध को प्रत्मऺ रूऩ से ननवाथर्चत
कयती है ; अत: जनता औय उसके प्रनतननर्ध के फीच उर्चत सम्ऩकथ फना यहता है । औय दोनों एक-दस
ू ये की
बावनाओॊ से ऩरयर्चत यहते हैं। इसके अन्तगथत जनता अऩने प्रनतननर्धमों के कामथ ऩय ननगयानी औय
ननमन्त्रण बी यख सकती है ।
3. याजनीनतक सर्ऺा – जफ जनता अऩने प्रनतननर्ध को प्रत्मऺ रूऩ से चन
ु ती है तो ववमबन्न दर औय उनके
उम्भीदवाय अऩनी नीनत औय कामथक्रभ जनता के साभने यखते हैं , न्जससे जनता को फडी याजनीनतक मशऺा
मभरती है औय उनभें याजनीनतक जागरूकता की बावना का उदम होता है । इससे साभान्म जनता को अऩने
अर्धकाय औय कतथव्मों का अर्धक अच्छे प्रकाय से ऻान बी हो जाता है ।
4. याजनीनतक अचधकाय का प्रमोग – प्रत्मऺ ननवाथचन जनता को अऩने याजनीनतक अर्धकाय का प्रमोग कयने का
अवसय प्रदान कयता है ।
प्रत्मऺ ननिाशचन के दोष
ू श – आरोचकों का कथन है कक जनता भें अऩने भत का उर्चत प्रमोग कयने
1. साभान्म ननिाशचकों का भत त्रदु िऩण
की ऺभता नहीॊ होती। भतदाता अर्धक मोग्म औय मशक्षऺत न होने के कायण नेताओॊ के झूठे प्रचाय औय
जोशीरे बाषणों के प्रबाव भें फह जाते हैं औय ननकम्भे , स्वाथी औय चाराक उम्भीदवायों को चुन रेते हैं।
ू श – प्रत्मऺ ननवाथचन के अन्तगथत ककमा जाने वारा चुनाव अमबमान मशऺा
2. सािशजननक सर्ऺा का तकश त्रदु िऩण
अमबमान नहीॊ होता, अवऩतु मह तो ननन्दा, करॊक औय झूठ का अमबमान होता है । चुनाव भें उम्भीदवायों
औय उनकी नीनतमों को ठीक प्रकाय से सभझाने के फजाम उनके साभने व्मन्क्तमों औय सभस्माओॊ का
ववकृत र्चत्र प्रस्तुत ककमा जाता है , न्जसके ऩरयणाभस्वरूऩ भतदाता गुभयाह हो जाता है ।
3. फवु द्भन व्मक्तत ननिाशचन से दयू – प्रत्मऺ ननवाथचन भें चुनाव अमबमान नैनतकता के ननम्नतभ स्तय तक र्गय
जाने के कायण फवु र्द्भान एवॊ ननष्ट्कऩट व्मन्क्त ननवाथचन से दयू बागते हैं जफ ऐसे व्मन्क्त उम्भीदवाय के
रूऩ भें आगे नहीॊ आते , तो दे श को स्वबावत् हानन ऩहुॉचती है ।
4. अऩव्ममी औय अव्मिस्थाजनक – इस प्रकाय के चनु ाव ऩय फहुत अर्धक खचथ आता है औय फडे ऩैभाने ऩय
इसका प्रफन्ध कयना होता है । अत्मर्धक जोश-खयोश के कायण अनेक फाय दॊ गे-पसाद बी हो जाते हैं।
प्रश्न 5.
भतार्धकाय की भहत्ता ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
वतथभान सभम भें अप्रत्मऺ अथवा प्रनतननध्मात्भक रोकतन्त्र ही रोकतान्न्त्रक शासन का एकभात्र
व्मावहारयक रूऩ है । इस व्मवस्था भें साभान्म जनता प्रनतननर्ध चुनती है औय मे प्रनतननर्ध शासन का
सॊचारन कयते हैं। प्रनतननर्धमों को चन
ु ने के इस अर्धकाय को ही साभान्मत् भतार्धकाय अथवा ननवाथचन
का अर्धकाय कहा जाता है , जो कक रोकतन्त्र का आधाय है । इसकी भहत्ता अग्रमरखखत फातों से स्ऩष्ट्ट हो
जाती है –
ू श – याज्म के कानूनों औय कामों का प्रबाव सभाज के केवर कुछ ही। व्मन्क्तमों ऩय
1. ननतान्त औचचत्मऩण
नहीॊ, वयन ् सफै व्मन्क्तमों ऩय ऩडता है ; अत् प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩना भत दे ने औय शासन की नीनत का
ननश्चम कयने का अर्धकाय होना चाटहए। जॉन स्टुअटथ मभर ने इसी आधाय ऩय वमस्क भतार्धकाय को
ननतान्त और्चत्मऩूणथ फतामा है ।
2. रोकसत्ता की िास्तविक असबव्मक्तत – रोकसत्ता फीसवीॊ सदी का सफसे भहत्त्वऩूणथ ववचाय है औय आधुननक
प्रजातन्त्रवाटदमों का कथन है कक अन्न्तभ सत्ता जनता भें ही ननटहत है डॉ० गानथय के शब्दों भें , ―ऐसी
सत्ता की सवथश्रेष्ट्ठ अमबव्मन्क्त सावथजननक भतार्धकाय भें ही हो सकती है । ‖
3. अल्ऩसॊख्मकों के अचधकाय सयु क्षऺत – वमस्क भतार्धकाय अल्ऩसॊख्मकों को अऩने प्रनतननर्धमों द्वाया अऩने
टहतों की यऺा का ऩयू ा अवसय दे ता है । मे प्रनतननर्ध व्मवस्थावऩका भें ववधेमकों के सम्फन्ध भें
अल्ऩसॊख्मकों को दृन्ष्ट्टकोण प्रस्तुत कयते हैं औय इस प्रकाय अल्ऩसॊख्मक अऩने टहतों की यऺा भें
ववर्धकताथओॊ की सहामता रे सकते हैं।
4. याष्ट्रीम एकीकयण का साधन – इस प्रणारी के अन्तगथत याष्ट्र की शन्क्त एवॊ एकता भें ववृ र्द् होती है । अऩने
ही प्रनतननर्धमों द्वाया फनामे गमे कानन
ू ों का ऩारन रोगों को एक-दस
ू ये के ननकट राता है औय याष्ट्रीम
एकीकयण भें सहामक होता है । वमस्क भतार्धकाय को अऩनाने ऩय जनता भें क्रान्न्त की सम्बावना कभ हो
जाती है , क्मोकक जनता स्वमॊ द्वाया ननमभथत सयकाय को ऩण
ू थ सहमोग दे ती है ।
5. सािशजननक सर्ऺा का साधन – वमस्क भतार्धकाय सावथजननक मशऺा औय याजनीनतक जागनृ त का सफसे
अर्धक भहत्त्वऩूणथ साधन है । भतार्धकाय व्मन्क्त की याजनीनतक उदासीनता दयू कय दे ता है औय उसको
मह अनुबव कयाता है कक याज्म शासन भें उसका बी हाथ है । ऐसी न्स्थनत भें वह दे श के सावथजननक औय
याजनीनतक जीवन भें अर्धक रुर्च रेना प्रायम्ब कय दे ता है ।
6. आत्भसम्भान भें िवृ द् – सावथजननक भतार्धकाय नागरयकों भें आत्भसम्भान की बावना ऩैदा कयता है ।
भतार्धकाय का जनता ऩय भनोवैऻाननक प्रबाव ऩडता है औय जनता मह भहसूस कयती है कक याज्म की
अन्न्तभ शन्क्त उसी के हाथ भें है । इससे उनके आत्भसम्भान भें ववृ र्द् होती है । औय जैसा कक िाइस कहते
हैं, ―इससे उनके नैनतक चरयत्र का उत्थान होता है । ‖
7. सािशजननक ऺेत्र के प्रनत रुचच भें िवृ द् – वमस्क भतार्धकाय की व्मवस्था भें जफ नागरयकों को भतार्धकाय का
प्रमोग कयना होता है तो स्वाबाववक रूऩ भें उनके द्वाया सावथजननक सभस्माओॊ ऩय ववचाय ककमा जाता है
औय सावथजननक ऺेत्र के प्रनत उनकी रुर्च भें ववृ र्द् होती
8. दे र्बक्तत की बािना भें िवृ द् – वमस्क भतार्धकाय के ऩरयणाभस्वरूऩ नागरयक याज्म औय शासन के प्रनत
अऩनत्व की बावना अनब
ु व कयते हैं औय उनभें दे शबन्क्त की बावना फढ़ती है । ऐसी न्स्थनत भें वे दे श के
मरए फडे-से-फडा फमरदान कयने को तत्ऩय हो जाते हैं।
प्रश्न 6.
प्रादे मशक अथवा बौगोमरक प्रनतननर्धत्व प्रथा का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
प्रादे सर्क अथिा बौगोसरक प्रनतननचधत्ि प्रथा
आधुननक रोकतन्त्रात्भक शासन भें ननवाथचन हे तु दे श को ववमबन्न ऺेत्रों भें ववबान्जत कय , सयकाय के गठन
के मरए प्रनतननर्धमों का चुनाव ककमा जाता है । सभस्त दे श को बौगोमरक बागों (ऺेत्रों) भें ववबान्जत कय
टदमा जाता है । ननवाथचन ऺेत्र एकसदस्मीम अथवा फहुसदस्मीम ननवाथचन ऺेत्र हो सकता है । एक प्रनतननर्ध
उस ननवाथचन ऺेत्र भें यहने वारे सबी ननवाथचकों का प्रनतननर्धत्व कयता है , चाहे वह कोई बी व्मवसाम कयता
हो। इस प्रथा को प्रादे मशक अथवा बौगोमरक प्रनतननर्धत्व प्रथा‘ कहते हैं, ककन्तु इस प्रथा का घोय ववयोध
ककमा गमा। प्रादे मशक अथवा बौगोमरक प्रनतननर्धत्व प्रथा के आरोचकों का कथन है कक प्रनतननर्धत्व का
आधाय ऺेत्रीम न होकय कामथ-ववशेष से सम्फन्न्धत होना चाटहए। इसको व्मावसानमक प्रनतननर्धत्व नाभ बी
टदमा गमा है । डडग्फी ने व्मावसानमक प्रनतननर्धत्व का सभथथन कयते हुए कहा है , ―व्मवसाम, वाखणज्म,
उद्मोग-धन्धे महाॉ तक कक ववऻान, धभथ आटद याष्ट्रीम जीवन की फडी शन्क्तमों को प्रनतननर्धत्व प्रदान
ककमा जाना चाटहए।‖ इभैनअ
ु र ऐफीसीएज का भत है - ―सभाज के उद्मोगों एवॊ व्मवसामों का व्मवस्थावऩका
भें ववशेष रूऩ से प्रनतननर्धत्व होना चाटहए।‘ व्मावसानमक प्रनतननर्धत्व के ऩऺ भें कहा जाता है कक मह
जनतन्त्रात्भक आदशों के अनुकूर प्रनतननर्धत्व की एकभात्र वास्तववक प्रणारी है । इसके सभथथकों का
दृन्ष्ट्टकोण है कक ननवाथचन ऺेत्र भें यहने वारे व्मन्क्तमों की ववमबन्न आवश्मकताएॉ तथा इच्छाएॉ होती हैं।
व्मन्क्तमों का प्रनतननर्धत्व केवर व्मवसामों तथा आवश्मकताओॊ का प्रनतननर्धत्व ही कय सकता है ।
व्मावसानमक प्रनतननर्धत्व के कायण ननवाथर्चत प्रनतननर्ध का ध्मान अऩने सबी कामथकताथओॊ के टहतों ऩय
अर्धक यहता है । औद्मोगीकयण के साथ व्मावसानमक प्रनतननर्धत्व की भाॉग तीव्र हुई है साम्मवाटदमों तथा
फहुरवाटदमों ने बी इस प्रनतननर्धत्व का ऩण
ू थ सभथथन ककमा है । इसे ―कामथ-ववशेष सम्फन्धी प्रनतननर्धत्व
प्रणारी‖ बी कहते

प्रश्न 7.
सूची प्रणारी से आऩ क्मा सभझते हैं ?
उत्तय :
सच
ू ी प्रणारी
सूची प्रणारी आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व का दस
ू या रूऩ है । इस प्रणारी के अन्तगथत सबी प्रत्माशी अऩने-अऩने
याजनीनतक दरों के अनुसाय अरग-अरग सूर्चमों भें सूचीफर्द् ककए जाते हैं औय प्रत्मेक दर अऩने
उम्भीदवायों की सूची प्रस्तुत कयता है , न्जसभें टदए गए नाभों की सॊख्मा उस ननवाथचन-ऺेत्र से चुने जाने
वारे प्रनतननर्धमों की सॊख्मा से अर्धक नहीॊ हो सकती। भतदाता अऩने भत अरग-अरग उम्भीदवायों को
नहीॊ, अवऩतु ककसी बी दर की ऩूयी-की-ऩूयी सूची के ऩऺ भें दे ते हैं। इसके फाद डारे गए भतों की कुर
सॊख्मा को ननवाथर्चत होने वारे प्रनतननर्धमों की सॊख्मा से बाग दे कय ननवाथचक अॊक ( Electoral Quota)
ननकार मरमा जाता है । तदऩ
ु यान्त एक दर द्वाया प्राप्त भतों की सॊख्मा को ननवाथचक अॊक से बाग टदमा
जाता है औय इस प्रकाय मह ननश्चम ककमा जाता है कक उस दर को ककतने स्थान मभरने चाटहए ;
उदाहयणाथथ-ककसी याज्म से 50 प्रनतननर्ध चुने जाते हैं औय कुर वैध भतों की सॊख्मा 2,00,000 है तो
2,00,000/50 = 4,000 ननवाथचन अॊक हुआ। ऐसी न्स्थनत भें ककसी याजनीनतक दर ‗अ फ स‘ को 21,000
भत प्राप्त हुए हैं, तफ (21,000/4, 000=5.25) उस दर के 5 प्रत्माशी ववजमी घोवषत होंगे। सबी सच
ू ी
प्रणामरमों का आधायबूत मसर्द्ान्त मही है , ऩयन्तु ववमबन्न दे शों भें थोडा-फहुत ऩरयवतथन अथवा सॊशोधन
कयके इसे नए-नए रूऩ टदए गए हैं औय इस प्रकाय आज सच ू ी प्रणारी के अनेक प्रकाय ऩाए जाते हैं। ऐसी
न्स्थनत भें सूची प्रणारी का कोई सावथबौमभक मसर्द्ान्त नहीॊ है ।

प्रश्न 8.
फहुभत प्रणारी की आरोचनात्भक वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
फहुभत प्रणारी
फहुभत प्रणारी ननवाथचन की एक भहत्त्वऩूणथ प्रणारी है । इस प्रणारी द्वाया ववश्व के अनेक याष्ट्रों की सॊसद
के रोकवप्रम सदन का ननवाथचन ककमा जाता है । बायत भें रोकसबा तथा ववधानसबा के सदस्मों का
ननवाथचन इस ऩर्द्नत द्वाया ही ककमा जाता है ।

इस प्रणारी भें एक-सदस्मीम ननवाथचन ऺेत्र होते हैं। सम्ऩूणथ दे श को ववमबन्न ननवाथचन ऺेत्रों भें ववबान्जत
कय टदमा जाता है । इन ननवाथचन ऺेत्रों का ऩरयसीभन जनसॊख्मा के आधाय ऩय ककमा जाता है । एक
ननन्श्चत ऺेत्र से एक प्रनतननर्ध का ननवाथचन ककमा जाता है । ननवाथचन के मरए अनेक प्रत्माशी चुनाव भैदान
भें खडे हो सकते हैं ऩयन्तु भतदाता को केवर एक भत प्रदान कयने का अर्धकाय होता है । ननवाथचन भें
डारे गए भतों भें न्जस उम्भीदवाय को सफसे अर्धक भत प्राप्त हो जाते हैं उसको ननवाथर्चत घोवषत कय
टदमा जाता है ।

फहुभत प्रणारी की आरोचना


फहुभत प्रणारी की ननम्नमरखखत आधायों ऩय आरोचना की गई है –

(1) फहुभत प्रणारी मद्मवऩ सैर्द्ान्न्तक रूऩ भें स्वीकाय की जाती है ऩयन्तु व्मवहाय भें मह अल्ऩभत प्रणारी
के रूऩ भें कामथ कयती है ; उदाहयण के मरए मटद ककसी ननवाथचन ऺेत्र भें कुर डारे गए भतों की सॊख्मा 100
है तथा 5 उम्भीदवाय चुनाव भैदान भें हैं औय भतों का ववबाजन ऩाॉच उम्भीदवायों भें क्रभश् 30, 20, 15,
10 तथा 25 प्रनतशत है तो इस ननवाथचन भें वह उम्भीदवाय ववजमी घोवषत कय टदमा जाएगा न्जसे 30
प्रनतशत भत प्राप्त होते हैं। इस प्रकाय से 30 प्रनतशत भत प्राप्त कयने वारा व्मन्क्त कुर भतों का केवर
30% भत ही प्राप्त कय ऩाता है तथा मह 70% ऐसे व्मन्क्तमों ऩय शासन कयता है न्जन्होंने इस व्मन्क्त के
ववयोध भें अऩना भत टदमा था।
(2) इस प्रणारी भें केवर एक ही न्स्थनत उत्ऩन्न होती है , मा तो भत 100% सपर हो जाता है । अथवा वह
100% व्मथथ हो जाता है । इसका अन्म कोई ववकल्ऩ नहीॊ होता है ।
(3) इस प्रणारी भें अल्ऩसॊख्मक सभुदामों के व्मन्क्तमों को उर्चत प्रनतननर्धत्व प्राप्त नहीॊ हो ऩाता है ।
क्मोंकक ननवाथचन ऺेत्र भें न्जस सभद
ु ाम के व्मन्क्तमों की सॊख्मा अर्धक होगी वे अऩने सभद
ु ाम (जानत) के
व्मन्क्त को ववजमी फनाने भें सपर हो जाएॉगे।
(4) इस प्रणारी द्वाया ऺेत्रीम एवॊ जातीम बावनाओॊ को फहुत प्रोत्साहन प्रदान ककमा जाता है जो सॊकीणथ
याजनीनत को जन्भ दे ता है । फहुभत प्रणारी के दोषों को दयू कयने के उद्देश्म से ही आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व
प्रणारी अन्स्तत्व भें आई है ।
प्रश्न 9.
बायतीम ननवाथचन प्रणारी की प्रभख
ु ववशेषताएॉ मरखखए।
उत्तय :
बायतीम ननवाथचन प्रणारी की प्रभुख ववशेषतएॉ बायतीम ननवाथचन प्रणारी की भुख्म ववशेषताएॉ ननम्नमरखखत
हैं –
1. िमस्क भताचधकाय – वमस्क भतार्धकाय बायतीम ननवाथचन प्रणारी की प्रभख
ु ववशेषता है । मह रोकतन्त्र का
आधाय स्तम्ब है । सॊववधान के अनुच्छे द 326 के अनुसाय रोकसबा तथा याज्म ववधानभण्डरों के ननवाथचन
वमस्क भतार्धकाय के आधाय ऩय ककए जाएॉगे। वमस्क भतार्धकाय की व्मवस्था कयते हुए सॊववधान भें कहा
गमा है कक प्रत्मेक व्मन्क्त, जो बायत का नागरयक है । तथा जो कानून के अन्तगथत ककसी ननधाथरयत नतर्थ
ऩय 18 वषथ का है तथा सॊववधान अथवा कानन
ू के अन्तगथत ननवाथचन हे तु ककसी बी दृन्ष्ट्ट से अमोग्म नहीॊ
है , को ननवाथचन भें भतदाता के रूऩ भें बाग रेने के ऩूणथ अर्धकाय प्राप्त हैं।
ु त ननिाशचन ऩद्नत – दे श भें सॊमुक्त ननवाथचन प्रणारी को अऩनामा गमा है । प्रत्मेक ननवाथचन ऺेत्र हे तु
2. सॊमत
एक ही भतदाता सूची होती है , न्जसभें उस ऺेत्र के सबी भतदाताओॊ के नाभ होते हैं तथा वे सबी मभरकय
एक प्रनतननर्ध का ननवाथचन कयते हैं। धाया 325 के अनुसाय प्रत्मेक प्रादे मशक ननवाथचन हे तु सॊसद एवॊ याज्म
ववधानसबा के सदस्म चुनने हे तु साभान्म भतदाता सूची होगी तथा कोई बी बायतीम धभथ , जानत एवॊ मरॊग
के आधाय ऩय सूची भें नाभ मरखाने के अमोग्म नहीॊ ठहयामा जाएगा।
3. अनस ु चू चत जनजानतमों हे तु सयु क्षऺत स्थान – सॊमक्
ु चू चत जानतमों तथा अनस ु त ननवाथचन प्रणारी के होने ऩय बी
हभाये सॊववधान ननभाथताओॊ ने अनुसूर्चत जानतमों तथा अनुसूर्चत जनजानतमों हे तु ववधानमकाओॊ भें स्थान
आयक्षऺत कय टदए हैं।
4. प्रत्मऺ ननिाशचन – रोकसबा, याज्मों की ववधानसबाओॊ , नगयऩामरकाओॊ , ऩॊचामतों आटद के ननवाथचन प्रत्मऺ
रूऩ से होते हैं, जफकक याज्मसबा, याज्म ववधानऩरयषदों, याष्ट्रऩनत, उऩयाष्ट्रऩनत आटद के ननवाथचन अप्रत्मऺ
रूऩ से होते हैं।
5. स्ितन्त्र एिॊ ननष्ट्ऩऺ ननिाशचन – बायतीम ननवाथचन प्रणारी की एक अन्म भहत्त्वऩण
ू थ ववशेषता स्वतन्त्र तथा
ननष्ट्ऩऺ ननवाथचन है । स्वतन्त्र एवॊ ननष्ट्ऩऺ ननवाथचन ही सच्चे रोकतन्त्र की कसौटी है । सॊववधान-ननभाथताओॊ
ने ननवाथचन स्वतन्त्र तथा ननष्ट्ऩऺ कयवाने हे तु ननवाथचन आमोग की व्मवस्था की है ।
6. गतु त भतदान – ननवाथचन की एक अन्म ववशेषता मह है कक भतदान गुप्त होता है । गुप्त भतदान स्वतन्त्र
एवॊ ननष्ट्ऩऺ ननवाथचन हे तु आवश्मक है । भतदान कयने वारों के अनतरयक्त ककसी अन्म व्मन्क्त को मह नहीॊ
भारूभ होगा कक उसने ककसके ऩऺ भें भतदान ककमा है ।
7. एक सदस्मीम ननिाशचन ऺेत्र – ननवाथचन प्रणारी की अन्म ववशेषता मह है कक महाॉ ऩय एक सदस्मीम
ननवाथचन ऺेत्र की व्मवस्था को अऩनामा गमा है । न्जस प्रान्त से न्जतने ववधामक ननवाथर्चत होने होते हैं ,
उस प्रान्त को उतने ननवाथचन ऺेत्रों भें ववबान्जत ककमा जाता है । इस प्रकाय प्रत्मेक ननवाथचन ऺेत्र से एक ही
प्रनतननर्ध चन
ु ा जाता है ।
8. जनसॊख्मा के आधाय ऩय ननिाशचन – बायत भें सॊसद तथा याज्म ववधानसबाओॊ के ननवाथचन हे तु ननवाथचन ऺेत्रों
की व्मवस्था जनसॊख्मा के आधाय ऩय की जाती है । याज्म ववधानसबा के सदस्मों की सॊख्मा के अनस
ु ाय
याज्मों को उतने ही ननवाथचन ऺेत्रों भें ववबान्जत ककमा जाता है ।
9. ननिाशचन ऺेत्रों का ऩरयसीभन – रोकसबा तथा याज्म ववधानसबाओॊ हे तु ननवाथचन ऺेत्रों को ऩरयसीभन इस
प्रकाय ककमा जाता है कक ववधानसबा का कोई बी ननवाथचन ऺेत्र एक ही सॊसदीम ननवाथचन ऺेत्र भें न्स्थत
हो।
10. ऐक्च्छक भतदान – ननवाथचन भें भतदान कयना अथवा न कयना, भतदाता की स्वेच्छा ऩय ननबथय कयता है ।
11. ननिाशचन माचचका – ननवाथचन सम्फन्धी वववादों हे तु ननवाथचन मार्चका की बी व्मवस्था है । ऩहरे ननवाथचन
मार्चकाएॉ आमोग के ऩास आती थीॊ तथा वह ककसी न्मामाधीश को इन्हें सुनने हे तु ननमुक्त कयता था
ककन्तु अफ सबी मार्चकाएॉ उच्च न्मामारम अथवा उच्चतभ न्मामारम के ऩास जाती हैं।
12. ननिाशचन आमोग – ननवाथचन का प्रफन्ध ननवाथचन आमोग के ननमन्त्रण के अधीन होता है । बायतीम
सॊववधान भें ननवाथचन प्रकक्रमा के प्रफन्ध हे तु एक ननवाथचन आमोग गटठत ककमा गमा है । ननवाथचन आमोग
भें आजकर एक भुख्म ननवाथचन आमुक्त तथा दो ननवाथचन आमुक्त हैं।
ू फनाने का अचधकाय – सॊववधान के अनस
13. ननिाशचन के सम्फन्ध भें सॊसद को कानन ु ाय ननवाथचन सम्फन्धी कानन

फनाने का अर्धकाय सॊसद को प्राप्त है । सॊसद के ववधानभण्डरों के ननवाथचन हे तु भतदाताओॊ की सूर्चमाॉ
तैमाय कयने, ननवाथचन ऺेत्रों का ऩरयसीभन तथा अन्म सभस्त सभस्माओॊ से सम्फन्न्धत कानन
ू फना सकती
है ।
प्रश्न 10.
दे श भें ननवाथचन की प्रकक्रमा ककस प्रकाय सम्ऩन्न होती है ? सॊऺेऩ भें मरखखए।
उत्तय :
बायत भें ननिाशचन की प्रकिमा
बायत भें ननवाथचन प्राम् ननम्नमरखखत प्रकक्रमा के आधाय ऩय सम्ऩन्न ककए जाते हैं –

1. ननिाशचन ऺेत्रों की व्मिस्था – ननवाथचन की व्मवस्था भें सवथप्रथभ कामथ ननवाथचन ऺेत्र को ननन्श्चत कयना है ।
रोकसबा भें न्जतने सदस्म चुने जाते हैं , रगबग सभान जनसॊख्मा वारे उतने ही ऺेत्रों भें सभस्त बायत को
ववबान्जत कय टदमा जाता है । इस प्रकाय ववधानसबाओॊ के ननवाथचन भें याज्म को सभान जनसॊख्मा वारे
ननवाथचन ऺेत्रों भें ववबान्जत कय टदमा जाता है तथा प्रत्मेक ननवाथचन ऺेत्र से एक सदस्म चुन मरमा जाता
है ।
ू ी – सवथप्रथभ भतदाताओॊ की अस्थामी सूची तैमाय की जाती है । इन सूर्चमों को कुछ
2. भतदाताओॊ की सच
ववशेष स्थानों ऩय जनता के दे खने हे तु यख टदमा जाता है । मटद ककसी सच
ू ी भें ककसी का नाभ मरखने से
यह गमा हो अथवा ककसी का नाभ बूर से मरख गमा हो तो उसको एक ननन्श्चत नतर्थ तक सॊशोधन
कयवाने हे तु प्राथथना-ऩत्र दे ना होता है , कपय सॊशोर्धत सूर्चमाॉ तैमाय की जाती हैं।
3. ननिाशचन नतचथ की घोषणा – ननवाथचन आमोग ननवाथचन-नतर्थ की घोषणा कयता है । ननवाथचन आमोग नतर्थ
की घोषणा कयने से ऩहरे केन्द्रीम सयकाय तथा याज्मों की सयकायों से ववचाय-ववभशथ कयता है ।
4. ननिाशचन अचधकारयमों की ननमक्ु तत – ननवाथचन आमोग प्रत्मेक याज्म भें भुख्म ननवाथचन अर्धकायी तथा प्रत्मेक
ऺेत्र हे तु एक ननवाथचन अर्धकायी, ऩमथवेऺक व अन्म अनेक कभथचायी ननमुक्त कयता है ।
5. नाभाॊकन-ऩत्र दार्खर कयना – इसके ऩश्चात ् ननवाथचन भें बाग रेने वारे व्मन्क्त के नाभ का प्रस्ताव एक
ननन्श्चत नतर्थ के अन्दय छऩे पॉभथ ऩय न्जसका नाभाॊकन ऩत्र है , ककसी एक भतदाता द्वाया प्रस्तुत ककमा
जाता है । दस
ू या भतदाता उसका अनभ
ु ोदन कयता है । इच्छुक व्मन्क्त (उम्भीदवाय) बी उस ऩय स्वीकृनत दे ता
है । प्राथथना-ऩत्र के साथ जभानत की ननन्श्चत यामश जभा कयवानी ऩडती है ।
6. नाभ की िाऩसी – मटद उम्भीदवाय ककसी कायण से अऩना नाभ वाऩस रेना चाहे तो एक ननन्श्चत नतर्थ
तक उसको ऐसा कयने का अर्धकाय होता है । वह अऩना नाभ वाऩस रे सकता है । तथा नाभ वाऩस रेने
ऩय जभानत की यामश उसे वाऩस मभर जाती है ।
7. जाॉच तथा आऩक्त्तमाॉ – एक ननन्श्चत नतर्थ को आवेदन-ऩत्रों की जाॉच की जाती है । मटद ककसी प्राथथना-ऩत्र
भें कोई अशुवर्द् यह गई हो तो ऐसे आवेदन-ऩत्र को अस्वीकाय कय टदमा जाता है । मटद कोई दस
ू या व्मन्क्त
उसके आवेदन-ऩत्र के सम्फन्ध भें आऩन्त्त कयना चाहे तो ऐसा कयने का अर्धकाय टदमा जाता है । मटद
आऩन्त्त उर्चत मसर्द् हो जाए तो उम्भीदवाय का आवेदन-ऩत्र अस्वीकाय कय टदमा जाता है ।
8. ननिाशचन असबमान – साधायणतमा ननवाथचन की घोषणा के साथ ही याजनीनतक दर अऩने उम्भीदवायों के
ऩऺ भें प्रचाय आयम्ब कय दे ते हैं , ककन्तु वास्तव भें ननवाथचन भें तेजी नाभाॊकन ऩत्रों की जाॉच-ऩडतार के
ऩश्चात ् आती है । याजनीनतक दर का ननवाथचन घोषणा-ऩत्र जायी कयते हैं। याजनीनतक दर सबाएॉ कयके ,
ऩोस्टयों द्वाया, ये डडमो, दयू दशथन आटद द्वाया अऩनी नीनतमों का प्रचाय कयते हैं।
9. भतदान एिॊ ऩरयणाभ – भतदान अफ वोटटॊग भशीन मसस्टभ के द्वाया सम्ऩन्न ककमा जाता है । भतदाता
इन्च्छत उम्भीदवाय के नाभ के साभने वारा फटन दफाकय अऩने भत की अमबव्मन्क्त कय दे ता है । इन
भशीनों द्वाया भतों की गणना फहुत जल्दी हो जाती है जो उम्भीदवाय कुर भतों का 1/10 बाग प्राप्त कयने
भें असभथथ हो जाता है उसकी जभानत जब्त हो जाती है ।

प्रश्न 1.
बायतीम सॊसद भें ककतने सदन हैं ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चाय
(घ) एक
उत्तय :
(क) दो।
प्रश्न 2.
रोकसबा का सदस्म ननवाथर्चत होने के मरए न्मूनतभ आमु होनी चाटहए ?
(क) 21 वषथ
(ख) 25 वषथ
(ग) 28 वषथ
(घ) 30 वषथ
उत्तय :
(ख)25 िषश
प्रश्न 3.
ककसके ऩयाभशथ ऩय याष्ट्रऩनत रोकसबा को बॊग कय सकता है ।
(क) भख्
ु मभॊत्री
(ख) याज्मऩार
(ग) प्रधानभॊत्री
(घ) रोकसबा अध्मऺ
उत्तय :
(ग) प्रधानभॊत्री।
प्रश्न 4.
रोकसबा औय याज्मसबा के सॊमुक्त अर्धवेशन की अध्मऺता कौन कयता है ?
(क) याष्ट्रऩनत
(ख) प्रधानभॊत्री
(ग) उऩयाष्ट्रऩनत
(घ) रोकसबा का अध्मऺ
उत्तय :
(घ) रोकसबा का अध्मऺ।
प्रश्न 5.
ननम्नमरखखत भें से ककस ऩय याज्मसबा औय रोकसबा को सभान अर्धकाय प्राप्त हैं ?
(क) ववत्त ववधेमक ऩारयत कयना
(ख) याष्ट्रऩनत ऩय भहामबमोग रगाना
(ग) अध्मादे श जायी कयना
(घ) याष्ट्रऩनत के प्रनत अववश्वास प्रस्ताव ऩारयत कयना
उत्तय :
(ख) याष्ट्रऩनत ऩय भहासबमोग रगाना।
प्रश्न 6.
ववधानमका का कामथ नहीॊ है –
(क) कानन
ू फनाना
(ख) फजट ऩास कयना
(ग) कामथऩामरका ऩय ननमन्त्रण ये खना
(घ) फजट फनाना
उत्तय :
(घ) फजि फनाना।
प्रश्न 7.
ववधानमका की शन्क्त भें ह्रास का कौन-सा तत्त्व नहीॊ है ?
(क) प्रदत्त ववधामी शन्क्तमाॉ
(ख) नौकयशाही का प्रबुत्व
(ग) दरीम अनुशासन
(घ) जागरूक जनभत
उत्तय :
(घ) जागरूक जनभत।
प्रश्न 8.
ननम्नमरखखत याज्मों भें से ककसभें द्वव-सदनात्भक व्मवस्था है ?
(क) भध्म प्रदे श
(ख) आन्ध्र प्रदे श
(ग) छत्तीसगढ़
(घ) उत्तय प्रदे श
उत्तय :
(घ) उत्तय प्रदे र्।
प्रश्न 9.
बायत की याष्ट्रीम ववधानमका का नाभ है –
(क) याज्मसबा
(ख) रोकसबा
(ग) सॊसद
(घ) ववधानसबा
उत्तय :
(ग) सॊसद
प्रश्न 10.
याज्मसबा भें केवर एक सीट ककस याज्म को दी गई है ?
(क) भध्म प्रदे श
(ख) उत्तय प्रदे श
(ग) मसन्क्कभ
(घ) झायखण्ड
उत्तय :
(ग) ससक्तकभ।
प्रश्न 11.
याज्मसबा भें ककस याज्म की सवाथर्धक सीटें हैं ?
(क) उत्तय प्रदे श
(ख) आन्ध्र प्रदे श
(ग) भहायाष्ट्र
(घ) गोवा
उत्तय :
(क) उत्तय प्रदे र्।
प्रश्न 12.
याज्मसबा के सदस्मों को ककतने वषथ के मरए ननवाथर्चत ककमा जाता है ?
(क) 6 वषथ
(ख) 7 वषथ
(ग) 5 वषथ
(घ) 4 वषथ
उत्तय :
(क) 6 िषश
प्रश्न 13.
बायतीम सॊसद भें ककतनी स्थामी समभनतमाॉ हैं ?
(क) 25
(ख) 20
(ग) 21
(घ) 24
उत्तय :
(क) 25
प्रश्न 14.
जभथनी के फुन्दे सयै ट भें ककतने सॊघीम याज्मों को प्रनतननर्धत्व प्राप्त है ?
(क) 16
(ख) 17
(ग) 18
(घ) 20
उत्तय :
(क) 16
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
बायतीम सॊसद के सदनों के नाभ मरखखए।
उत्तय :
बायतीम सॊसद भें दो सदन हैं –
1. उच्च सदन – याज्मसबा तथा
2. ननम्न सदन – रोकसबा।
प्रश्न 2.
याज्मसबा का अध्मऺ अथवा सबाऩनत कौन होता है ?
उत्तय :
याज्मसबा का अध्मऺ अथवा सबाऩनत बायत का उऩयाष्ट्रऩनत होता है । उऩयाष्ट्रऩनत ही याज्मसबा की फैठकों
की अध्मऺता कयती है ।
प्रश्न 3.
याज्मसबा भें ककतने सदस्म ककसके द्वाया भनोनीत हो सकते हैं ?
उत्तय :
याज्मसबा भें 12 सदस्म, याष्ट्रऩनत द्वाया भनोनीत ककए जाते हैं।
प्रश्न 4.
याज्मसबा का कामथकार ककतने वषथ का होता है ?
उत्तय :
याज्मसबा एक स्थामी सॊगठन है । इसके सदस्मों की ऩदावर्ध 6 वषथ है औय इसके एक-नतहाई सदस्म प्रनत
दो वषथ ऩश्चात ् ऩदभुक्त होते यहते हैं।
प्रश्न 5.
याज्मसबा भें अर्धक-से-अर्धक ककतने सदस्म हो सकते हैं ?
उत्तय :
याज्मसबा भें अर्धक-से-अर्धक 250 सदस्म हो सकते हैं।
प्रश्न 6.
याज्मसबा भें वतथभान भें ककतने सदस्म हैं ?
उत्तय :
याज्मसबा भें वतथभान भें 245 सदस्म हैं।
प्रश्न 7.
रोकसबा का कामथकार ककतना है ?
उत्तय :
साभान्मतमा रोकसबा का कामथकारे 5 वषथ होता है । सॊकटकार भें इस अवर्ध को सॊसद एक वषथ के मरए
फढ़ा बी सॊकती है तथा प्रधानभॊत्री के ऩयाभशथ ऩय याष्ट्रऩनत इसे ननधाथरयत अवर्ध से ऩूवथ बॊग बी कय सकता
है ।
प्रश्न 8.
रोकसबा भें अर्धक-से-अर्धक ककतने सदस्म हो सकते हैं ?
उत्तय :
रोकसबा भें अर्धक-से-अर्धक (550 + 2 भनोनीत एॊग्रो इन्ण्डमन =) 552 सदस्म हो सकते हैं।
प्रश्न 9.
रोकसबा भें ककतने सदस्म नामभत (भनोनीत) ककए जा सकते हैं ?
उत्तय :
रोकसबा भें दो एॊग्रो-इन्ण्डमन सदस्म नामभत ककए जा सकते हैं।
प्रश्न 10.
बायतीम सॊववधान भें सॊशोधन का प्रस्ताव सॊसद के ककस सदन भें प्रस्तुत ककमा जा सकता है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें सॊशोधन का प्रस्ताव सॊसद के ककसी बी सदन भें प्रस्तुत ककमा जा सकता
प्रश्न 11.
सॊसद के दो कामथ मरॊखखए।
उत्तय :
सॊसद के दो कामथ ननम्नमरखखत हैं-
1. कानूनों का ननभाथण कयना तथा
2. सॊघ सयकाय का फजट ऩारयत कयना।
प्रश्न 12.
‗ववत्त ववधेमक‘ ककसे कहते हैं ?
उत्तय :
धन सम्फन्धी ववधेमक को ‗ववत्त ववधेमक‘ कहते हैं।
प्रश्न 13.
सॊसद के ककस सदन भें ववत्त ववधेमक (धन ववधेमक) प्रस्ताववत ककमा जा सकता है ?
उत्तय :
धन ववधेमक ऩहरे केवर रोकसबा भें प्रस्तत
ु ककमा जा सकता है ।
प्रश्न 14.
ववत्त ववधेमक औय साधायण ववधेमक प्रस्तत
ु कयने की प्रकक्रमा भें कोई एक अन्तय फताइए।
उत्तय :
ववत्त ववधेमक केवर भॊब्रत्रमों द्वाया प्रस्तुत ककए जाते हैं , जफकक साधायण ववधेमक सॊसद का कोई बी
सदस्म सदन भें प्रस्तुत कय सकता है ।
प्रश्न 15.
सॊसद के अर्धवेशन को कौन आहूत कयता है ?
उत्तय :
सॊसद के अर्धवेशन को याष्ट्रऩनत आहूत कयता है ।
प्रश्न 16.
सॊसद के दो सत्रों भें अर्धकतभ ककतने सभम का अन्तय हो सकता है ?
उत्तय :
सॊसद के दो सत्रों भें अर्धकतभ 6 भाह का अन्तय हो सकता है ।
प्रश्न 17.
रोकसबा द्वाया भन्न्त्रऩरयषद् ऩय ननमन्त्रण यखने की एक प्रबावकायी ववर्ध फताइए।
उत्तय :
रोकसबा भन्न्त्रऩरयषद् के ववरुर्द् अववश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत कय सकती है , मह बम उस ऩय ननमन्त्रण
का कामथ कयता है ।
प्रश्न 18.
बायतीम सॊसद के दोनों सदनों भें कौन अर्धक शन्क्तशारी है ?
उत्तय :
बायतीम सॊसद के दोनों सदनों भें रोकसबा अर्धक शन्क्तशारी है , क्मोंकक उसे ववधामी तथा कामथऩामरका
ऺेत्र भें याज्मसबा से अर्धक शन्क्तमाॉ प्राप्त हैं।
प्रश्न 19.
बायत के ककन याज्मों भें द्वव-सदनात्भक ववधानमका है ?
उत्तय :
ब्रफहाय, जम्भू-कश्भीय, कनाथटक, भहायाष्ट्र, उत्तय प्रदे श एवॊ आन्ध्र प्रदे श भें द्वव-सदनात्भक ववधानमका है ।
प्रश्न 20.
जभथनी की द्वव-सदनात्भक ववधानमका को क्मा कहा जाता है ?
उत्तय :
जभथनी भें द्वव-सदनात्भक ववधानमका है । दोनों सदनों को फुन्दे स्टै ग (पेडयर एसेम्फरी) औय फुन्दे सयै ट
(पेडयर कौन्न्सर) कहते हैं।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
ववधानसबा, भॊब्रत्रऩरयषद् ऩय ककस प्रकाय ननमन्त्रण यखती है ?
उत्तय :
सॊसदात्भक शासन-व्मवस्था भें कामथऩामरको (भॊब्रत्रऩरयषद्) अऩने सभस्त कामों एवॊ प्रशासननक उत्तयदानमत्वों
के मरए प्रत्मऺ रूऩ से ववधानसबा के प्रनत उत्तयदामी होने के साथ-साथ अप्रत्मऺ रूऩ से जनता के प्रनत
बी उत्तयदामी होती है । इस उत्तयदानमत्व के अनस
ु यण भें ववधानसबा ; भन्न्त्रऩरयषद् ऩय अऩना प्रबावकायी
ननमन्त्रण स्थावऩत कयती है । ववधानसबा; भन्न्त्रऩरयषद् ऩय ननम्नमरखखत तयीकों के आधाय ऩय ननमन्त्रण
यखती है –
1. भॊब्रत्रमों से उनके ववबाग सम्फन्धी प्रश्न तथा ऩूयक-प्रश्न ऩूछकय।
2. भॊब्रत्रभण्डर के ववरुर्द् ननन्दा प्रस्ताव ऩारयत कयके।
3. स्थगन प्रस्ताव के आधाय ऩय।
4. काभ योको प्रस्ताव द्वाया।
5. अववश्वास प्रस्ताव द्वाया।
प्रश्न 2.
साधायण ववधेमक तथा धन ववधेमक के ऩारयत होने की प्रकक्रमा के प्रभख
ु अन्तय मरखखए।
उत्तय :
न्जन ववधेमकों का सम्फन्ध धन से होता है , उन्हें धन ववधेमक कहा जाता है तथा न्जन ववधेमकों का
सम्फन्ध धन से नहीॊ होता है , उन्हें साधायण ववधेमक कहा जाता है । धन ववधेमक, साधायण ववधेमकों से
अनेक फातों भें मबन्न है ; जैसे –
1. धन ववधेमकों का रोकसबा के अध्मऺ द्वाया प्रभाखणत होना आवश्मक है , जफकक साधायण ववधेमकों
के मरए मह आवश्मक नहीॊ है ।
2. धन ववधेमक याष्ट्रऩनत की ऩूव-थ अनुभनत के ब्रफना सॊसद भें प्रस्तुत नहीॊ ककए जा सकते , जफकक
साधायण ववधेमकों के मरए मह आवश्मक नहीॊ है ।
3. धन ववधेमक ऩहरे रोकसबा भें ही प्रस्तुत ककए जाते हैं , जफकक साधायण ववधेमक ककसी बी सदन
भें प्रस्तुत ककए जा सकते हैं।
4. याज्मसबा धन ववधेमक को अस्वीकृत नहीॊ कयती है , वह उसे केवर 14 टदनों तक अऩने ऩास योक
सकती है , जफकक साधायण ववधेमक के फाये भें इस प्रकाय की कोई व्मवस्था नहीॊ होती है ।
प्रश्न 3.
रोकसबा के सदस्मों के ववशेषार्धकायों की सॊऺेऩ भें वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
रोकसबा के सदस्मों को ननम्नमरखखत ववशेषार्धकाय प्राप्त हैं –
1. बाषण की स्ितन्त्रता – रोकसबा के प्रत्मेक सदस्म को स्वतन्त्रताऩूवक
थ बाषण दे ने का अर्धकाय प्राप्त
है । उसके बाषण के ववरुर्द् न्मामारम भें ककसी बी प्रकाये का अमबमोग नहीॊ रगामा जा सकता।
2. बाषण औय विचायों को प्रकासर्त कयने का अचधकाय – रोकसबा भें टदए गए बाषण, तकथ-ववतकथ अथवा
रयऩोटथ को वह स्वमॊ प्रकामशत कय सकता है ।
3. चगयफ्तायी से भक्ु तत – अर्धवेशन के टदनों भें तथा अर्धवेशन के 40 टदन ऩहरे औय 40 टदन फाद तक
ककसी दीवानी भुकदभे के कायण ककसी सदस्म को र्गयफ्ताय नहीॊ ककमा जा सकता।
आऩयार्धक अमबमोजना के सम्फन्ध भें ऐसी र्गयफ्तारयमों से सम्फन्न्धत ननणथम रोकसबा अध्मऺ का होता
है ।

प्रश्न 4.
सॊसद के र्गयते हुए स्तय ऩय टटप्ऩणी कीन्जए।
उत्तय :
सॊसद के र्गयते हुए स्तय के ववमबन्न कायण ननम्नमरखखत हैं –
1. वऩछरे 10-15 वषों से सॊसद के स्तय भें तेजी से र्गयावट आई है । सॊसद भें आऩयार्धक प्रवन्ृ त्त के
रोग फडी सॊख्मा भें चन
ु ाव जीतकय आ यहे हैं।
2. भुख्म कामथ न्जसभें अर्धकतय साॊसद व्मस्त यहते हैं , वह है धन अन्जथत कयना। चुनाव जीतने के
ऩश्चात ् वे चन
ु ाव भें हुए खचथ की बयऩाई कयने भें व्मस्त हो जाते हैं।
3. अऩने भन्त्रारमों से सम्फन्न्धत प्रश्नों के उत्तय जफ भॊत्री सन्तोषजनक ढॊ ग से नहीॊ दे ऩाते हैं तो बी
उनका उत्तयदानमत्व ननधाथरयत नहीॊ ककमा जाता है , न ही वे ककसी रूऩ भें दन्ण्डत ककए जाते हैं।
4. जफ कबी कोई ज्वरन्त सभस्मा साभने आती है तो सॊसद को ववश्वास भें नहीॊ मरमा जाता है ।
5. कुछ भॊत्री तो उस सभम सॊसद भें उऩन्स्थत ही नहीॊ होते जफ उनके भन्त्रारमों से सम्फन्न्धत प्रश्नों
ऩय ववचाय होता है ।
प्रश्न 5.
याज्मसबा व रोकसबा ककन ऺेत्रों भें फयाफय की शन्क्तमाॉ यखती हैं ?
उत्तय :
याज्मसबा व रोकसबा के कामों की अगय हभ तुरना कयें तो स्ऩष्ट्ट होता है कक कुछ ऺेत्रों भें रोकसबा ,
याज्मसबा के भक
ु ाफरे अर्धक शन्क्तशारी है । कुछ ऺेत्रों भें याज्मसबा की अऩनी ववशेष शन्क्तमाॉ हैं ऩयन्तु
कुछ ऺेत्रों भें रोकसबा व याज्मसबा की फयाफय की शन्क्तमाॉ हैं। मे ऺेत्र ननम्नमरखखत हैं।
1. ववचाय-ववभशथ, ववमबन्न ववषमों ऩय चचाथ व जनभत-ननभाथण भें रोकसबा व याज्मसबा की फयाफय की
शन्क्तमाॉ हैं।
2. सॊववधान सॊशोधन के ऺेत्र भें बी दोनों सदनों की फयाफय की शन्क्तमाॉ हैं। जफ तक सॊववधान सॊशोधन
ब्रफर दोनों सदनों से अरग-अरग ऩास नहीॊ हो जाता तफ तक सॊववधान सॊशोधन रागू नहीॊ हो
सकता।
3. चन
ु ाव के ऺेत्र भें दोनों सदनों की फयाफय की शन्क्तमाॉ हैं। याष्ट्रऩनत व उऩयाष्ट्रऩनत के चन
ु ाव भें
दोनों सदन बाग रेते हैं।
4. न्मानमक ऺेत्र भें दोनों सदनों की शन्क्तमाॉ सभान हैं।
प्रश्न 6.
अववश्वास प्रस्ताव ऩय सॊक्षऺप्त टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय :
अविश्िास प्रस्ताि
भॊब्रत्रऩरयषद् सॊसद के ननम्न सदन (रोकसबा) के प्रनत उत्तयदामी है । भन्न्त्रऩरयषद् रोकसबा के ववश्वास ऩय
ही अऩने ऩद ऩय फनी यह सकती है । मटद रोकसबा मह अनुबव कयती है कक सयकाय अऩने प्रशासननक
दानमत्वों का सॊचारन सभुर्चत रूऩ से नहीॊ कय यही है तो रोकसबा के सदस्म सयकाय के ववरुर्द् अववश्वास
प्रस्ताव यख सकते हैं। मह प्रस्ताव प्राम् ववऩऺ के सदस्मों द्वाया यखा जाता है । अववश्वास का प्रस्ताव
रोकसबा के अध्मऺ (Speaker) की अनुभनत के ऩश्चात ् सदन के सभऺ प्रस्तुत ककमा जाता है । इस ऩय
सदन भें सत्ता ऩऺ तथा ववऩऺी सदस्मों द्वाया ववस्तत
ृ चचाथ की जाती है । इस ववस्तत
ृ चचाथ के उऩयान्त
उस ऩय भतदान ककमा जाता है । मटद सयकाय के ववरुर्द् अववश्वास प्रस्ताव सदन भें फहुभत से ऩारयत हो
जाता है तो प्रधानभॊत्री सटहत सम्ऩण
ू थ भन्न्त्रऩरयषद् को तयु न्त अऩने ऩद से त्मागऩत्र दे ना ऩडती है ।

प्रश्न 7.
रोकसबा तथा याज्मसबा के सदस्मों के ननवाथचन भें क्मा अन्तय है ?
उत्तय :
ससॊद के दो सदन हैं। याज्मसबा उच्च सदन है , जो याज्मों का प्रनतननर्धत्व कयता है तथा रोकसबा ननम्न
सदन है , जो साभान्म जनता का प्रनतननर्धत्व कयता है । रोकसबा तथा याज्मसबा के सदस्मों के ननवाथचन
भें अग्रमरखखत अन्तय हैं –
1. याज्मसबा के सदस्मों का ननवाथचन अप्रत्मऺ ववर्ध से होता है , जफकक रोकसबा के सदस्मों का
ननवाथचन प्रत्मऺ ववर्ध से होता है ।
2. याज्मसबा के सदस्मों का ननवाथचन याज्मों, सॊघशामसत प्रदे शों (ऺेत्रों) की ववधानसबाओॊ के ननवाथर्चत
सदस्म कयते हैं, जफकक रोकसबा के सदस्म साभान्म भतदाताओॊ द्वाया चुने जाते हैं।
3. रोकसबा का ननवाथचन, ननवाथचन की फहुभत प्रणारी के आधाय ऩय होता है , जफकक याज्मसबा के
सदस्मों का ननवाथचन आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी की एकर सॊक्रभणीम भत-ऩर्द्नत के आधाय ऩय
होता है ।
4. रोकसबा के सदस्म ननवाथर्चत होने की न्मूनतभ आमु 25 वषथ है , जफकक याज्मसबा के मरए न्मूनतभ
आमु 30 वषथ है ।
प्रश्न 8.
रोकसबा याज्मसबा से शन्क्तशारी क्मों है ?
उत्तय :
रोकसबा ननम्नमरखखत कायणों से याज्मसबा से अर्धक शन्क्तशारी है –
1. रोकसबा भें ववत्त ववधेमक ऩहरे प्रस्तुत ककए जा सकते हैं , जफकक याज्मसबा भें ऐसा नहीॊ होता है ।
2. साधायण ववधेमकों के सम्फन्ध भें दोनों सदनों की शन्क्त सभान है , ऩयन्तु दोनों सदनों भें भतबेद
होने ऩय उनके सॊमुक्त अर्धवेशन भें ननणथम मरमा जाता है । रोकसबा की सदस्म सॊख्मा याज्मसबा
की सदस्म सॊख्मा से अर्धक होने के कायण अन्न्तभ ननणथम रोकसबा के ऩऺ भें ही होता है ।
3. रोकसबा केंद्रीम भॊब्रत्रऩरयषद् के ववरुर्द् अववश्वास प्रस्ताव ऩारयत कय उसे अऩदस्थ कय सकती है ,
जफकक याज्मसबा को मह अर्धकाय प्राप्त नहीॊ है ।
प्रश्न 9.
याज्मसबा ककस प्रकाय एक स्थामी सदन है ?
उत्तय :
याज्मसबा बायतीम सॊसद का उच्च सदन है । इसके सदस्म याज्मों की ववधानसबाओॊ द्वाया चुने जाते हैं।
मह स्थामी सदन है न्जसका अन्स्तत्व ननयन्तय फना यहता है । इसका स्थामी सदन होना ननम्नमरखखत
तथ्मों द्वाया ऩष्ट्ु ट होता है –
1. याज्मसबा को याष्ट्रऩनत ववघटटत नहीॊ कय सकता। इसके सदस्म अऩना कामथकार ऩूया कयने के फाद
सेवाननवत्ृ त होते हैं।
2. याज्मसबा के सबी सदस्मों का चुनाव एक साथ नहीॊ होता औय न ही वे एक साथ अऩने ऩद का
त्माग कयते हैं।
3. इसके एक-नतहाई सदस्म हय दो वषथ ऩश्चात ् सेवाननवत्ृ त हो जाते हैं न्जसका अथथ है कक प्रत्मेक 2
वषथ ऩश्चात ् इसके 1/3 स्थानों ऩय ही ऩन
ु ् चन
ु ाव होता है ।
4. इस प्रकाय इसके कभ-से-कभ 2/3 सदस्म हय सभम ऩद ऩय यहते हैं औय 1/3 ऩद बी केवर कुछ
सभम के मरए रयक्त यह सकते हैं।
5. इसभें हय सभम 1/3 सदस्म चाय वषथ के अनुबव वारे औय 1/3 सदस्म 2 वषथ के अनुबव वारे : होते
हैं।
प्रश्न 10.
दर-फदर क्मा है ? इसे योकने के क्मा उऩाम ककए गए हैं ?
उत्तय :
बायतीम याजनीनत भें सवाथर्धक प्रचमरत याजनीनतक खेर का नाभ है -दर-फदर। इसे ऩऺ ऩरयवतथन , एक
ऩाटी छोडकय दस
ू यी ऩाटी भें शामभर हो जाना, सदन भें सयकायी दर छोडकय ववयोधी दर भें मभर जाना,
खेभा फदर रेना कुछ बी कह सकते हैं। दर-फदर योकने के मरए सन ् 1985 भें सॊववधान का 52वाॉ
सॊशोधन ककमा गमा। इसे दर-फदर ननयोधक कानून ‘ कहते हैं। इसे फाद भें 91वें सॊववधान सॊशोधन द्वाया
ऩन
ु ् सॊशोर्धत ककमा गमा।
प्रश्न 11.
सॊसदीम समभनतमों की क्मा उऩमोर्गता है ?
उत्तय :
वतथभाने भें प्राम् सभस्त दे शों भें ववधानभण्डर अऩने कामों को अर्धक कुशरता तथा शीघ्रता से कयने के
मरए अनेक समभनतमों का प्रमोग कयते हैं। इन समभनतमों की ननम्नमरखखत उऩमोर्गता है –
(1) वतथभान भें ववर्ध-ननभाथण का कामथ अत्मन्त जटटर एवॊ तकनीकी (Technical) हो गमा है ।
ववधानभण्डरों के सबी सदस्म इस कामथ भें ननऩुण नहीॊ होते हैं। अत् ववशेषऻों की समभनतमों द्वाया ववर्ध-
ननभाथण कामथ अर्धक सयरताऩव
ू क
थ ककमा जा सकता है ।
(2) वतथभान भें ववधानभण्डर के कामथ फहुत ववस्तत ृ एवॊ व्माऩक हो गए हैं। उसके ऩास इतना सभम नहीॊ है
कक प्रत्मेक ववधेमकों ऩय सूक्ष्भता से ववचाय कय सके। इस कामथ को वतथभान भें समभनतमाॉ ही सम्ऩाटदत
कयती हैं।
(3) समभनतमाॉ ववमबन्न ववधेमकों ऩय ववस्तत
ृ वाद-वववाद कय सकती हैं। वे सबी प्रकाय के रयकॉडो को भॉगवा
सकती हैं, गवाहों को फुरवा सकती हैं औय आवश्मक फातों की छानफीन बी कय सकती हैं। मे कामथ सदन
भें सम्बव नहीॊ हैं।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
रोकसबा की सॊयचना का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
रोकसबा; सॊसद का ननम्न सदन है । मह जनता का प्रनतननर्ध सदन है । इसके सदस्म जनता द्वाया प्रत्मऺ
रूऩ से ननवाथर्चत होकय आते हैं। वतथभान रोकसबा भें सदस्मों की सॊख्मा 543 है । इसके अनतरयक्त
याष्ट्रऩनत को एॊग्रो-इन्ण्डमन सभुदाम के दो व्मन्क्तमों को भनोनीत कयने का अर्धकाय है । रोकसबा का
सदस्म ननवाथर्चत होने के मरए मह आवश्मक है कक –
1. वह व्मन्क्त बायत का नागरयक हो।
2. वह 25 वषथ की आमु ऩूणथ कय चुका हो।
3. वह रोकसबा के ककसी ननवाथचन ऺेत्र भें भतदाता हो औय अन्म सबी अननवामथ शतों को ऩूया कयता
हो।
ऩागर, टदवामरमा, ववदे शी याज्म की नागरयकता प्राप्त कयने वारे , राबकायी सयकायी ऩद के स्वाभी तथा
ववर्ध द्वाया अमोग्म व्मन्क्त रोकसबा के सदस्म नहीॊ फन सकते हैं।

सॊववधान द्वाया रोकसबा के ननवाथचन भें प्रत्मेक वमस्क नागरयक को भतदान का अर्धकाय टदमा गमा है ।
बायत भें वमस्क होने की आमु 18 वषथ है । ननवाथचन के मरए सम्ऩण
ू थ दे श को 543 ननवाथचन ऺेत्रों भें ववबक्त
कय टदमा जाता है । प्रत्मेक ऺेत्र भें न्जस उम्भीदवाय को सफसे अर्धक भत प्राप्त होते हैं , वह रोकसबा का
सदस्म (साॊसद) फन जाता है ।

साभान्मतमा रोकसबा का कामथकार 5 वषथ है । प्रधानभॊत्री की मसपारयश ऩय याष्ट्रऩनत इस कार की सभान्प्त


के ऩूवथ बी रोकसबा को बॊग कय सकता है । सॊकटकारीन घोषणा की न्स्थनत भें रोकसबा का कामथकार
एक वषथ औय फढ़ामा जा सकता है ।

प्रश्न 2.
याज्मसबा की सॊयचना का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
याज्मसबा; सॊसद का उच्च सदन है । सॊववधान के अनुच्छे द 80 के अनुसाय, याज्मसबा भें प्रनतननर्धमों की
अर्धकतभ सॊख्मा 250 हो सकती है । इनभें से 12 सदस्म याष्ट्रऩनत द्वाया भनोनीत ककए जाते हैं। वे 12
सदस्म ऐसे व्मन्क्त होते हैं , न्जनका साटहत्म, ववऻान, करा अथवा साभान्जक ऺेत्र भें ववशेष मोगदान होता
है । शेष सदस्म याज्मों के प्रनतननर्ध होते हैं। वतथभान याज्मसबा भें कुर 245 सदस्म हैं , न्जनभें से 233
ननवाथर्चत औय 12 भनोनीत हैं।
याज्मसबा का सदस्म ननवाथर्चत होने के मरए मह अननवामथ है कक –

1. वह बायत का नागरयक हो।


2. वह कभ-से-कभ 30 वषथ की आमु ऩूयी कय चुका हो।
3. वह दे श के ककसी बी ऺेत्र से भतदाता हो सकता है ।
वह सॊसद द्वाया ननधाथरयत अन्म शतों को बी ऩयू ी कयता हो।

ननिाशचन – याज्मसबा के सदस्मों का चन


ु ाव अप्रत्मऺ ववर्ध द्वाया ककमा जाता है । इनका चन
ु ाव प्रत्मेक याज्म
की ववधानसबा के ननवाथर्चत सदस्मों द्वाया आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व के आधाय ऩय एकर सॊक्रभणीम भत
ऩर्द्नत द्वाया होता है । याज्मसबा एक स्थामी सदन है । इसके एक-नतहाई सदस्म प्रत्मेक दो वषथ फाद
अवकाश ग्रहण कयते यहते हैं औय उनके स्थान ऩय नए सदस्म चुन मरए जाते हैं। इस प्रकाय इसके सदस्मों
का ननवाथचन 6 वषथ के मरए ककमा जाता है । बायत का उऩयाष्ट्रऩनत याज्मसबा का ऩदे न (ex-officio)
सबाऩनत होता है । उसे 4,00,000 प्रनत भाह वेतन, बत्ता तथा रोकसबा के अध्मऺ के सभान अन्म
सुववधाएॉ बी प्राप्त होती हैं। याज्मसबा अऩने सदस्मों भें से ककसी एक को अऩना उऩसबाऩनत चुनती है
सबाऩनत की अनुऩन्स्थनत भें उऩसबाऩनत ही सबाऩनत का आसन ग्रहण कयता है । वतथभान भें याज्मसबा के
सबाऩनत श्री एभ० वेंकैमा नामडू हैं।
प्रश्न 3.
आधुननक याज्म भें ववधानमका के प्रभुख कामथ सभझाइए।
उत्तय :
वतथभान कल्माणकायी याज्मों भें सयकाय के कामथ , न्जम्भेदारयमाॉ व चन
ु ौनतमाॉ अत्मर्धक फढ़ गई हैं न्जसे ऩयू ा
कयने का वैधाननक आधाय ववधानमका प्रदान कयती है । इसके कामों को हभ ननम्नमरखखत रूऩों भें फाॉट
सकते हैं –
1. ववचाय-ववभशथ, चचाथ व वाद-वववाद का भॊच।
2. जनभत-ननभाथण का कामथ कयना।
3. कानन
ू -ननभाथण का कामथ कयना।
4. फजट ऩास कयना औय फजट ऩय ननमन्त्रण।
5. सयकाय ऩय ननमन्त्रण कयना।
6. ववमबन्न ऩदों के मरए चुनाव कामथ कयना।
7. सॊववधान सॊशोधन का कामथ कयना।
8. न्मानमक कामथ कयना।
9. आऩातकार भें कामथ कयना।
10. ववववध कामथ।
प्रश्न 4.
याज्मसबा की क्मा उऩमोर्गता है ?
उत्तय :
रोकसबा औय याज्मसबा के ऩायस्ऩरयक सम्फन्धों से मह नहीॊ सभझना चाटहए कक याज्मसबा एक ननयथथक
सॊस्था है । याजमसबा को कुछ भहत्त्वऩूणथ शन्क्तमाॉ बी प्राप्त हैं , न्जसके कायण ऩामरी ने कहा है ,
―याज्मसबा एक ननयथथक सदन अथवा ववर्ध-ननभाथण ऩय केवर योक रगाने वारा सदन नहीॊ है । वास्तव भें ,
याज्मसबा शासनतन्त्र को एक आवश्मकै अॊग है , केवर टदखावे भात्र को सदन नहीॊ है । गोऩारस्वाभी
आमॊगय ने याज्मसबा की उऩमोर्गता के सम्फन्ध भें कहा था, ―सॊववधान के ननभाथताओॊ का याज्मसबा के
गठन का उद्देश्म मह था कक मह सदन भहत्त्वऩूणथ भाभरों ऩय सायगमबथत वाद-वववाद कये औय उन ब्रफरों
को ऩारयत कयने भें दे यी कये , जो शीघ्रता से रोकसबा भें ऩारयत कय टदए जाते हैं। ‖ याष्ट्रऩनत की
सॊकटकारीन उद्घोषणा की स्वीकृनत ववशेष रूऩ से दोनों सदनों द्वाया प्राप्त होनी आवश्मक है । मटद
घोषणा उस सभम की गई हो जफ रोकसबा ववघटटत हो गई हो तो उस सभम घोषणा का याज्मसबा द्वाया
स्वीकृत होना आवश्मक है । वह याष्ट्रऩनत ऩय भहामबमोग रगा सकती है औय न्मामारम के रूऩ भें फैठकय
अमबमोग की जाॉच कय सकती है ।
प्रश्न 5.
क्मा अनशु ासनहीनता एवॊ अव्मवस्था के होते हुए बी बायतीम सॊसद को याष्ट्र की प्रनतननर्ध सबा कहा जा
सकता है ?
उत्तय :
सॊसद भें अनुशासनहीनता एवॊ अव्मवस्था की घटनाओॊ के फाद बी बायतीम सॊसद याष्ट्र का प्रनतननर्धत्व
कयने वारी सॊस्था है , इस फात से इनकाय नहीॊ ककमा जा सकता। मे घटनाएॉ सॊसद की अस्थामी घटनाएॉ हैं ,
स्थामी ववशेषताएॉ नहीॊ। बायत सॊसाय का सफसे फडा रोकतन्त्रात्भक दे श है औय ववगत 70 वषों से ननयन्तय
सपरता की ऊॉचाइमों की ओय अग्रसय है । अफ तक सॊसद के 14 आभ चन
ु ाव सम्ऩन्न हो चक
ु े हैं औय
स्वतन्त्र व ननष्ट्ऩऺ रूऩ से हुए हैं। इनके कायण सॊसद के सदस्म सभाज के सबी ऺेत्रों , वगों, धभों औय
सभुदामों से चुने जाते हैं औय सॊसद भें अऩना स्थान ग्रहण कयते हैं औय ववचायाधीन ववषमों ऩय ववचाय
प्रकट कयते हैं। सॊसद ही जनता का प्रनतननर्धत्व कयती है औय याष्ट्र की प्रनतननर्ध सबा कहराने का
अर्धकाय यखती है । कबी-कबी ऐसा रगता है कक सॊसद के सदस्म अऩने आचयण से याष्ट्र का सभम नष्ट्ट
कयते हैं, जनता के धन का अऩव्मम कयते हैं औय याष्ट्र तथा ववश्व के सभऺ गरत आदशथ प्रस्तुत कयते हैं ,
ऩयन्तु मह बी रोकतन्त्र की एक ववशेषता है औय इसके द्वाया ववऩऺ फहुभत की तानाशाही स्थावऩत नहीॊ
होने दे ता औय सॊसद कामथऩामरका ऩय अऩना ननमन्त्रण फनाए यखती है ।
अनुशासन औय अव्मवस्था की घटनाएॉ हय योज नहीॊ घटतीॊ औय कबी-कबी की घटनाओॊ के आधाय ऩय
सॊसद के ऩूणथ अन्स्तत्व को ही आरोचना का केन्द्र फनाना उर्चत नहीॊ है । सॊसद याष्ट्र का प्रनतननर्धत्व
कयती है , वह सयकाय के तीनों अॊगों भें अर्धक शन्क्तशारी न्स्थनत अऩनाए हुए है । मह याष्ट्रीम ववकास भें
गनत दे ने की बूमभका का बी ननवाथह कयती है ।

दीघश उत्तयीम प्रश्न


प्रश्न 1.
व्मवस्थावऩका के कामों का वणथन कीन्जए तथा इसका कामथऩामरका से सम्फन्ध फताइए।
मा
व्मवस्थावऩका के भख्
ु म कामों का उल्रेख कीन्जए।
मा
व्मवस्थावऩका के कामों की व्माख्मा कीन्जए। वतथभान मग
ु भें व्मवस्थावऩका के ह्रास के क्मा कायण हैं ?
मा
व्मवस्थावऩका के आधायबूत कामों का वणथन कीन्जए औय सॊसदात्भक प्रणारी भें इसकी ववमशष्ट्ट बूमभका
ऩय बी प्रकाश डामरए।
मा
व्मवस्थावऩका का अथथ तथा उसके कामथ फताइए। व्मवस्थावऩका की भहत्ता ऩय बी प्रकाश डामरए।
मा
व्मवस्थावऩका के सॊगठन ऩय प्रकाश डामरए तथा इसके कामों का वणथन कीन्जए।
मा
व्मवस्थावऩका के कामों का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए औय वतथभान सभम भें व्मवस्थावऩका की शन्क्तमों भें
क्रास के कायण फताइए।
उत्तय :
सयकाय के प्रभख
ु अॊग
सबी व्मन्क्तमों द्वाया सयकाय को एक से अर्धक अॊगों भें ववबान्जत कयने की आवश्मकता अनब
ु व की
गमी है । कुछ व्मन्क्तमों द्वाया सयकाय को व्मवस्थाऩन तथा शासन ववबाग इन दो अॊगों भें ववबान्जत
ककमा गमा है । कुछ व्मन्क्तमों द्वाया सयकाय को 5 मा 6 अॊगों भें ववबान्जत कयने का प्रमत्न ककमा गमा है ,
ऩयन्तु साभान्म धायणा मही है कक प्रभुख रूऩ से सयकाय के ननम्नमरखखत तीन अॊग होते हैं —व्मवस्थावऩका,
कामथऩामरका औय न्मामऩामरका। व्मवस्थावऩका कानन
ू फनाने औय याज्म की नीनत को ननन्श्चत कयने का
कामथ कयती है , कामथऩामरका इन कानूनों को कामथरूऩ भें ऩरयणत कय शासन का सॊचारन कयती है औय
न्मामऩामरका व्मवस्थावऩका द्वाया ननमभथत कानूनों के आधाय ऩय न्माम प्रदान कयने औय सॊववधान की
व्माख्मा व यऺा कयने का कामथ कयती है ।

व्मिस्थावऩका का अथश
व्मवस्थावऩका सयकाय का वह अॊग है , जो याज्म प्रफन्ध चराने के मरए कानूनों का ननभाथण कयता है , ऩुयाने
कानूनों का सॊशोधन कयता है तथा आवश्मकता ऩडने ऩय उन्हें यद्द बी कय सकता है । व्मवस्थावऩका को
सयकाय के अन्म अॊगों से श्रेष्ट्ठ भाना जाता है ; क्मोंकक रोकतन्त्रीम याज्मों भें व्मवस्थावऩका रोगों की एक
प्रनतननर्ध सबा होती है । रॉस्की के शब्दों भें , ―कामथऩामरका एवॊ न्मामऩामरका की शन्क्तमों की सीभा
व्मवस्थावऩका द्वाया फतामी गमी इच्छा होती है । ‖

व्मिस्थावऩका का सॊगठन
कानन
ू -ननभाथण औय सयकाय की नीनत-ननधाथयण का कामथ व्मवस्थावऩका द्वाया ककमा जाता है । व्मवस्थावऩका
का सॊगठन दो रूऩों भें ककमा जा सकता है । व्मवस्थावऩका मा तो एक सदन हो सकता है । अथवा दो
सदन। न्जस व्मवस्थावऩका भें एक सदन होता है , उसे एक-सदनात्भक व्मवस्थावऩका औय न्जसभें दो सदन
होते हैं, उसे द्वव-सदनात्भक व्मवस्थावऩका कहा जाता है द्वव-सदनात्भक व्मवस्थावऩका भें प्रथभ सदन को
ननम्न सदन (Lower House) औय द्ववतीम सदन को उच्च सदन (Upper House) कहा जाता है । प्रथभ
सदन की शन्क्त ऩय अॊकुश यखने तथा उसके द्वाया ककमे गमे कामों ऩय ऩुनववथचाय कयने के मरए ही
द्ववतीम सदन की आवश्मकता अनुबव की गमी।

आधुननक कार भें अर्धकाॊश दे शों भें द्वव-सदनात्भक व्मवस्थावऩका प्रणारी को ही अऩनामा गमा है । बायत ,
ब्रिटे न, रूस, िाॊस, ऑस्रे मरमा आटद दे शों भें व्मवस्थावऩका भें दो सदन ही ऩामे जाते हैं , जफकक ऩुतग
थ ार,
ग्रीस, चीन, तुकी आटद दे शों भें व्मवस्थावऩका भें केवर एक सदन है ।

व्मिस्थावऩका के कामश
वतथभान सभम भें रोकतन्त्रीम याज्मों भें व्मवस्थावऩका द्वाया ननम्नमरखखत प्रभुख कामथ सम्ऩाटदत ककमे
जाते हैं –

ू -ननभाशण सम्फन्धी कामश – ववधानमका का भहत्त्वऩूणथ कामथ ववर्ध-ननभाथण कयना है । व्मवस्थावऩका कानून
1. कानन
का प्रारूऩ तैमाय कयती है , उस ऩय वाद-वववाद कयाती है , प्रारूऩ भें सॊशोधन कयाती है तथा कानन
ू को
अन्न्तभ रूऩ दे ती है ।
2. विभर्ाशत्भक कामश एिॊ जनभत-ननभाशण – व्मवस्थावऩका के सदनों भें जन-कल्माण से सम्फन्न्धत ववमबन्न
नीनतमों औय मोजनाओॊ ऩय ववचाय-ववभशथ होता है । व्मवस्थावऩका याष्ट्रीम औय अन्तयाथष्ट्रीम सभस्माओॊ ऩय
ववचाय-ववभशथ औय वाॊनछत सच
ू नाएॉ प्रस्तत
ु कय जनभत का ननभाथण कयती है ।
3. वित्त सम्फन्धी कामश – व्मवस्थावऩका का एक भहत्त्वऩूणथ कामथ याष्ट्र की ववत्त-व्मवस्था ऩय ननमन्त्रण
यखना बी है । प्रजातान्न्त्रक दे शों भें व्मवस्थावऩका प्रत्मेक ववत्तीम वषथ के आयम्ब भें उस वषथ के अनुभाननत
फजट को स्वीकृत कयती है । इसकी स्वीकृनत के ब्रफना नमे कय रगाने तथा आम-व्मम से सम्फन्न्धत कामथ
नहीॊ ककमे जा सकते हैं।
4. न्माम सम्फन्धी कामश – व्मवस्थावऩका को न्माम-ऺेत्र भें बी कुछ कामथ कयने ऩडते हैं। बायत की सॊसद को
उच्च कामथऩामरका के ऩदार्धकारयमों ऩय भहामबमोग रगाने औय उनके ननणथम का अर्धकाय प्राप्त है । इसी
प्रकाय उसे सदन की भानहानन की न्स्थनत भें सदन को ननणथम दे ने एवॊ दोषी व्मन्क्त को दण्ड दे ने का
अर्धकाय प्राप्त है ।
5. कामशऩासरका ऩय ननमन्त्रण – प्रत्मऺ रूऩ से व्मवस्थावऩका प्रशासन भें बाग नहीॊ रेती, रेककन प्रशासन ऩय
उसका ननमन्त्रण ननन्श्चत रूऩ से होता है । सॊसदात्भक शासन-प्रणारी भें ववधानमका प्रश्न तथा ऩूयक प्रश्न
ऩूछकय, अववश्वास, ननन्दा, स्थगन तथा कटौती के प्रस्ताव यखकय, भॊब्रत्रमों द्वाया प्रस्तुत ककमे गमे ववधेमकों
तथा अन्म प्रस्तावों को अस्वीकाय कयने आटद के भाध्मभ से कामथऩामरका ऩय ननमन्त्रण यखती है ।
अध्मऺात्भक शासन भें व्मवस्थावऩका कामथऩामरका ऩय। अप्रत्मऺ रूऩ से ननमन्त्रण यखती है ।
6. ननिाशचन सम्फन्धी कामश – अनेक दे शों भें व्मवस्थावऩका को कुछ ननवाथचन सम्फन्धी कामथ बी कयने ऩडते हैं।
बायत भें सॊसद के दोनों सदन उऩयाष्ट्रऩनत का ननवाथचन कयते हैं न्स्वट्जयरैण्ड भें व्मवस्थावऩका भॊब्रत्रऩरयषद्
के सदस्मों, न्मामाधीशों तथा प्रधान सेनाऩनत का ननवाथचन कयती है ।
7. ननमक्ु तत सम्फन्धी कामश – व्मवस्थावऩका सभम-सभम ऩय ककन्हीॊ ववशेष कामों की जाॉच कयने के मरए
आमोगों औय समभनतमों की ननमुन्क्त का कामथ बी कयती है । इसके अरावा व्मवस्थावऩका द्वाया इॊग्रैण्ड ,
अभेरयका, बायत आटद दे शों भें कामथयत सयकायी ननगभों के कामों औय कक्रमाकराऩों ऩय बी ऩण
ू थ ननमन्त्रण
यखा जाता है ।
इस प्रकाय, व्मवस्थावऩका शासन का एक भहत्त्वऩण
ू थ अॊग है । वह ववर्ध-ननभाथण के अनतरयक्त प्रशासन ,
न्माम, ववत्त, सॊववधान, ननवाथचन आटद ऺेत्रों भें अनेक कामथ कयती है ।

व्मिस्थावऩका की भहत्ता
सयकाय के तीनों ही अॊगों द्वाया भहत्त्वऩण
ू थ कामथ ककमे जाते हैं , रेककन इन तीनों भें व्मवस्थाऩन ववबाग
सवाथर्धक भहत्त्वऩूणथ है । व्मवस्थाऩन ववबाग ही उन कानूनों का ननभाथण कयता है न्जनके आधाय ऩय
कामथऩामरका शासने कयती है औय न्मामऩामरका न्माम प्रदान कयने का कामथ कयती है । इस प्रकाय
व्मवस्थावऩका, कामथऩामरका औय न्मामऩामरका के कामथ के मरए आवश्मक आधाय प्रदान कयती है ।
व्मवस्थाऩन ववबाग केवर कानन
ू ों का ही ननभाथण नहीॊ कयता , वयन ् प्रशासन की नीनत बी ननन्श्चत कयता है
औय सॊसदात्भक शासन-व्मवस्था भें तो कामथऩामरका ऩय प्रत्मऺ रूऩ से ननमन्त्रण बी यखता है । सॊववधान भें
सॊशोधन का कामथ बी व्मवस्थावऩका के द्वाया ही ककमा जाता है ।

अत् मह कहा जा सकता है कक व्मवस्थाऩन ववबाग सयकाय के दस


ू ये अॊगों की अऩेऺा अर्धक भहत्त्वऩूणथ
न्स्थनत यखता है ।

र्क्तत भें तरास के कायण


ववधानमका के भहत्त्व भें कभी औय इसकी शन्क्तमों के ऩतन के मरए कई कायण उत्तयदामी यहे हैं। सॊऺेऩ
भें ववधानमका के ऩतन के ननम्नमरखखत कायण हैं –

1. कामशऩासरका की र्क्ततमों भें असीभ िवृ द् – ऩूवथ की तुरना भें ववमबन्न कायणों से कामथऩामरका का अर्धक
भहत्त्वऩूणथ होना स्वाबाववक है । अनेक ववद्वान मह भानते हैं कक इसकी शन्क्तमों भें ववृ र्द् का ववऩयीत
प्रबावे ववधानमका ऩय ऩडता है । इसीमरए ववगत शताब्दी भें अनेक याष्ट्रों भें ववधानमका की सॊस्था औय
कभजोय हुई है ।
2. प्रनतननधामन के०सी० तरीमय – के भतानस
ु ाय प्रनतननधामन द्वाया कामथऩामरका ने ववधानमका की कीभत ऩय
अऩनी न्स्थनत को सुदृढ़ ककमा है । इस मसर्द्ान्त के परस्वरूऩ कामथऩामरका को ववर्ध-ननभाथण का अर्धकाय
प्राप्त हो गमा। व्मवहाय भें ववमबन्न कायणों से ववधानमका ने स्वत् कामथऩामरकों को मह शन्क्त प्रदान की।
अत् ववर्ध-ननभाथण का जो भुख्म कामथ ववधानमका के कामथ-ऺेत्र के अन्तगथत था। वह बी प्रनतननधामन के
कायण उसके ऺेत्रार्धकाय से ननकरता चरा गमा।
3. सॊचाय साधनों की बसू भका – ये डडमो औय टे रीववजन ववऻान के ऐसे चभत्काय हैं , न्जन्होंने कामथऩामरका के
प्रधान का जनता के साथ प्रत्मऺ सम्फन्ध जोडा। सॊचाय साधनों के ऐसे ववकास से कामथऩामरका के प्रधान
द्वाया ववधानमका को नजयअन्दाज कय सीधा जनसम्ऩकथ स्थावऩत ककमा जाने रगा न्जसका प्रनतकूर प्रबाव
ववधानमका की शन्क्तमों ऩय ऩडता गमा।
4. दफाि गिु ों औय दहतसभहू ों का विकास – फीसवीॊ शताब्दी भें ववधानमका के सदस्मों का एक भुख्म कामथ जन-
मशकामतों को सयकाय तक ऩहुॉचाना यहा, रेककन दफाव गुटों औय टहतसभूहों के ववकास के कायण उसकी इस
बमू भका भें बी कभी आई। वऩछरी शताब्दी भें नागरयक सॊगटठत टहतसभह
ू ों का सदस्म होता गमा।
ऩरयणाभस्वरूऩ ववधानमका की अनदे खी कय कामथऩामरका से वह सीधा सम्ऩकथ जोड रेता था औय अऩनी
भाॉगों को भनवाने के सन्दबथ भें सपरता प्राप्त कयता था। अत् ववधानमका ऩष्ट्ृ ठबमू भ भें चरी गई औय
ननणथम प्रकक्रमा भें कामथऩामरका ही भुख्म बूमभका अदा कयती यही।
5. ऩयाभर्शदात्री ससभनतमों औय विर्ेषऻ ससभनतमों का विकास – प्रत्मेक भन्त्रारम औय ववबाग भें सराहकाय
समभनतमाॉ गटठत होने रगी हैं तथा ववशेषऻों के सॊगठन फनाए जाने रगे हैं। ववधेमकों का प्रारूऩ तैमाय
कयने भें इनसे सराह री जाती है । सदन भें जफ ववचाय-ववभशथ होता है औय सदस्मों द्वाया सॊशोधन प्रस्तत

ककए जाते हैं, तफ मह कहकय उन्हें चुऩ कय टदमा जाता है कक इस ऩय ववशेषऻों की सराह री जा चुकी है ।
परस्वरूऩ ववधानमका के सभऺ ऐसे प्रस्तावों को स्वीकृत कयने के अरावा अन्म कोई ववकल्ऩ नहीॊ यह
जाता है ।
ु औय सॊकि की क्स्थनत – प्राम् सबी रोकतान्न्त्रक दे शों भें याज्माध्मऺ ही सेना का प्रधान होता है , सैननक
6. मद्
भाभरों भें ववधानमका कुछ बी नहीॊ कय सकती। अत् मुर्द् मा अन्म सॊकटकार के सभम ववधानमका नहीॊ
अवऩतु कामथऩामरका सवेसवाथ फन जाती है , ऐसी कटठन ऩरयन्स्थनतमों भें तुयन्त ननणथम रेने की आवश्मकता
होती है । उदाहयण के मरए सन ् 1971 के मर्द्
ु भें बायत की तत्कारीन प्रधानभॊत्री श्रीभती इन्न्दया गाॊधी ने
स्वतन्त्र रूऩ से मुर्द्-नीनत का सॊचारन ककमा था। अभेरयका भें बी याष्ट्रऩनत ननक्सन ने ववमतनाभ मुर्द् के
दौयान कई फाय काॊग्रेस की अवहे रना की थी। पॉकरैण्ड मर्द्
ु भें बी ब्रिटटश प्रधानभॊत्री श्रीभती भागथ ये ट
थैचय ने दे श का नेतत्ृ व स्वमॊ ककमा था। अत् मुर्द् मा सॊकट के सभम कामथऩामरका ऐसी न्स्थनत रा दे ती
है , न्जसभें ववधानमका के सभऺ उसे स्वीकाय कयने के अनतरयक्त औय कोई यास्ता नहीॊ यह जाता है । मह
प्रकक्रमा फीसवीॊ शताब्दी भें प्रायम्ब हुई।
7. सॊकि ि तनाि की अिस्था का मग ु -यॉफिश सी० फोन – ने 20वीॊ शताब्दी को ―र्चन्ता का मुग ‘ कही है । उक्त
शताब्दी भें ववमबन्न दे शों भें ककसी-न-ककसी कायण से प्राम: ही सॊकट के फादर भॊडयाते यहे , जो न केवर
सयकायों को फन्ल्क नागरयकों को बी तनाव की न्स्थनत भें रा दे ते थे। सॊचाय-साधनों के ववकास के कायण
ववश्व की घटनाओॊ का सभाचाय ननयन्तय ये डडमो तथा टे रीववजन द्वाया मभरना साभान्म फात थी। ऐसी
न्स्थनत भें कामथऩामरका ही उनकी आशा का केन्द्र फनी। मही कायण है कक र्चन्ता के उस मुग भें ववधानमका
रोगों को आश्वस्त कयने की बूमभका नहीॊ ननबा सकी। मह कामथ कामथऩामरका का हो गमा। आज
कामथऩामरका सवथशन्क्तभान फनने की टदशा भें फढ़ यही है ।
प्रश्न 2.
द्वव-सदनात्भक व्मवस्थावऩका के गुण एवॊ दोषों (ऩऺ एवॊ ववऩऺ) का वणथन कीन्जए।
मा
व्मवस्थावऩका के द्ववतीम सदन की उऩमोर्गता ऩय एक ननफन्ध मरखखए।
उत्तय :
द्वव-सदनात्भक व्मवस्थावऩका के गुण/उऩमोर्गता (ऩऺ भें तकथ) द्वव-सदनात्भकॊ मा द्वव-सदनीम
व्मवस्थावऩका के ऩऺ भें जो तकथ टदमे जाते हैं , वे ननम्नमरखखत हैं –
1. उतािरेऩन से उत्ऩन्न बर ु विशचाय – द्ववतीम सदन का प्रभुख कामथ प्रथभ सदन के उतावरेऩन से
ू ों ऩय ऩन
उत्ऩन्न बर
ू ों ऩय ववचाय कयना है । प्रथभ सदन भें नवमव
ु क तथा जोशीरे सदस्मों की प्रधानता यहती है । वे
आवेश भें आकय ऐसे कानूनों का ननभाथण कय डारते हैं जो जनटहत भें नहीॊ होते। द्ववतीम सदन भें , न्जसभें
अर्धकाॊश अनुबवी तथा गम्बीय व्मन्क्त होते हैं , प्रथभ सदन द्वाया ऩारयत कानूनों का ऩुनयावरोकन कयके
उत्ऩन्न बूरों को दयू कय दे ते हैं। ब्रॊटशरी ने ठीक ही मरखा है - ―दो आॉखों की अऩेऺा चाय आॉखें सदा
अच्छा दे खती हैं , ववशेषतमा जफ ककसी ववषम ऩय ववमबन्न दृन्ष्ट्टकोणों ऩय ववचाय कयना आवश्मक हो। ‖
रॉस्की के अनुसाय, ―ननमन्त्रण सॊशोधन तथा रुकावट डारने भें जो काभ द्ववतीम सदन कयता है , उससे
उसकी आवश्मकता स्वमॊ मसर्द् है । ‖
2. प्रथभ सदन की ननयॊ कुर्ता ऩय योक – एक-सदनात्भक व्मवस्था भें उसके ननयॊ कुश तथा स्वेच्छाचायी हो जाने
की ऩूयी सम्बावना यहती है , ककन्तु द्वव-सदनात्भक व्मवस्था भें इस प्रकाय की सम्बावना का अन्त हो
जाता है । फाइस का कहना है , ―दो सदनों की आवश्मकता इस ववश्वास ऩय आधारयत है कक एक सदन की
स्वाबाववक प्रवन्ृ त्त घण
ृ ाऩूणथ, अत्माचायी तथा भ्रष्ट्ट फन जाने की ओय होती है , न्जसे योकने के मरए
एकसभान सत्ताधायी द्ववतीम सदन का अन्स्तत्व आवश्मक है । इस प्रकाय द्ववतीम सदन की ववद्मभान
स्वतन्त्रता की गायण्टी व कुछ सीभा तक अत्माचाय से सुयऺा बी है ।
3. स्ितन्त्रता की यऺा का उत्तभ साधन – रॉडथ एक्टन का कहना है - ―स्वतन्त्रता की यऺा के मरए द्ववतीम सदन
अत्मन्त आवश्मक है । मह नीनतमों भें सन्तुरन स्थावऩत कयता है तथा अल्ऩसॊख्मकों की यऺा औय प्रथभ
सदन के दोषों को दयू कयता है । ‖
4. प्रथभ सदन के कामश-बाय भें कभी – द्ववतीम सदन वववादास्ऩद कामों को अऩने हाथ भें रेकय प्रथभ सदन का
कामथबाय हल्का कय दे ता है औय उसे अर्धक सुचारु रूऩ से कामथ कयने का अवसय प्रदान कयता है ।
आधुननक प्रगनतशीर दे शों भें एक-सदनात्भक व्मवस्थावऩका अऩने उत्तयदानमत्व को ऩूणथ रूऩ से ननबाने भें
असभथथ होती है ; अत् द्ववतीम सदन की आवश्मकता है ।
5. कामशऩासरका की स्ितन्त्रता भें िवृ द् – द्वव-सदनात्भक व्मवस्थावऩका भें दोनों सदन एक-दस
ू ये ऩय ननमन्त्रण
यखते हैं। परत् कामथऩामरका व्मवस्थावऩका की कठऩुतरी होने से फच जाती है । औय उसे कामथ कयने भें
कापी स्वतन्त्रता मभर जाती है । गैटटर ने ठीक ही कहा है - ―दोनों सदन एक-दस
ू ये ऩय रुकावट का कामथ
कयके कामथऩामरका को अर्धक स्वतन्त्रता दे ते हैं औय अन्त भें इससे दोनों ववबागों के सवोत्कृष्ट्ट टहतों की
अमबववृ र्द् होती है ।‖
6. अल्ऩसॊख्मकों औय विसर्ष्ट्ि दहतों को प्रनतननचधत्ि – व्मवस्थावऩका भें द्ववतीम सदन के होने से अल्ऩसॊख्मकों
औय ववमशष्ट्ट टहतों को बी सभुर्चत प्रनतननर्धत्व मभर जाता है ।
7. सॊघीम याज्मों के सरए विर्ेष उऩमोगी – सॊघीम व्मवस्था भें द्ववतीम सदन ववशेष रूऩ से उऩमोगी होता है ।
प्रथभ. सदन साधायण नागरयकों का प्रनतननर्धत्व कयता है , जफ कक द्ववतीम सदन सॊघ याज्मों की इकाइमों
का प्रनतननर्धत्व कयता है । अनेक सॊघीम याज्मों के द्ववतीम सदन भें सॊघ की इकाइमों को सभान ्
प्रनतननर्धत्व टदमा जाता है ।
ु ोग्म व्मक्ततमों की सेिाओॊ की प्राक्तत – प्राम् मोग्म औय अनुबवी व्मन्क्त दरफन्दी औय ननवाथचन से दयू
8. सम
यहते हैं औय वे प्रथभ सदन के ननवाथचन भें बाग नहीॊ रेते हैं। ऐसे व्मन्क्तमों को द्ववतीम सदन भें
भनोनीत कय टदमा जाता है । इस प्रकाय दे श को सुमोग्म व्मन्क्तमों की सेवाओॊ की प्रान्प्त हो जाती है ।
9. नीनत भें स्थानमत्ि – द्ववतीम सदन के सदस्म प्रथभ सदन के सदस्मों से अर्धक मोग्म होते हैं , साथ ही
उनकी सॊख्मा बी कभ होती है । मह एक स्थामी सदन होता है । इसके ननणथमों भें ववचायशीरता औय
गम्बीयता यहती है । इसका ऩरयणाभ मह होता है कक द्ववतीम सदन की नीनतमों भें अर्धक स्थानमत्व आ
जाती है ।
10. प्रथभ सदन का सहमोगी – द्ववतीम सदन प्रथभ सदन का सहमोगी होता है । इस सम्फन्ध भें हे नयीभैन ने
मरखा है -―ब्रफल्कुर न होने से ककसी बी सयकाय का द्ववतीम सदन अच्छा है , क्मोंकक एक व्मवन्स्थत
द्ववतीम सदन प्रथभ का शत्रु नहीॊ , फन्ल्क उसकी सुयऺा के मरए आवश्मक अॊग है । ‖ द्वव-सदनात्भक प्रणारी
भें दोनों सदन एक-दस
ू ये के सहमोगी होते हैं।
11. जनभत जानने का अच्छा साधन – जफ कोई ववधेमक प्रथभ सदन से ऩारयत होकय दस
ू ये सदन भें ववचायाथथ
बेजा जाता है , तफ जनता को इस फीच के सभम भें उस ऩय अऩना ववचाय व्मक्त कयने का अवसय प्राप्त
होता है , क्मोंकक वहाॉ ऩय ववधेमक ऩय ववचाय कयने भें कुछ सभम अवश्म रग जाता है । इस सम्फन्ध भें
रॉडथ िाइस ने मरखा है - ―द्ववतीम सदन का भख्
ु म कामथ केवर इतना ववरम्फ कयना होना चाटहए न्जससे
जनता को ननम्न सदन द्वाया प्रस्तुत ऐसे ववधेमकों ऩय अऩना भत व्मक्त कयने का अवसय मभर सके
न्जनके सम्फन्ध भें शासन के ऩास ऩहरे से जनता का कोई आदे श नहीॊ है । ‖
द्वि-सदनात्भक व्मिस्थावऩका के दोष (विऩऺ भें तकश)
द्वव-सदनात्भक व्मवस्थावऩका के ववऩऺ भें ननम्नमरखखते तकथ टदमे जाते हैं –

1. रूदढ़िाददता – द्ववतीम सदन रूटढ़वादी होता है , क्मोंकक उसके अर्धकाॊश सदस्म धनी एवॊ अनुदाय प्रवन्ृ त्त के
होते हैं। इसमरए वे प्रगनतशीर एवॊ सुधायात्भक ववधेमकों के ऩारयत होने भें फाधक मसर्द् होते हैं। इस
सम्फन्ध भें रॉस्की ने मरखा है - ―अत्मन्त उऩमोगी सुधायों भें द्ववतीम सदन को ववरम्फ रगाने की शन्क्त
दे ना सम्बवत् कारान्तय भें ववनाश को जन्भ दे ना है औय जन-क्रान्न्त का भागथ ननमभथत कयना है । ‖
2. अनािश्मक मा हाननकायक – प्रमसर्द् िाॊसीसी ववचायक ऐफेसेमीज का कहना है - ―कानून जनता की इच्छा है ।
जनता की एक ही सभम भें तथा एक ही ववषम ऩय दो ववमबन्न इच्छाएॉ नहीॊ हो सकतीॊ। अतएव जनता का
प्रनतननर्धत्व कयने वारी ऩरयषद् आवश्मक रूऩ से एक ही होनी चाटहए। जहाॉ कहीॊ दो सदन होंगे , भतबेद
तथा ववयोध अवश्मम्बावी होंगे तथा जनता की इच्छा अकभथण्मता का मशकाय फन जाएगी। ‖ वह ऩन
ु ् कहता
है कक मटद द्ववतीम सदन का प्रथभ सदन से भतबेद हो तो मह उसकी शैतानी है औय मटद वह उससे
सहभत है तो उसका अन्स्तत्व अनावश्मक है । चॊकू क वह मा तो सहभत होगा मा असहभत ; अतएव उसका
अन्स्तत्व ककसी टदशा भें बी राबदामक नहीॊ है ।
3. उत्तयदानमत्ि का अबाि – आरोचकों का कहना है कक द्वव-सदनात्भक व्मवस्थावऩका भें प्रथभ सदन अऩने
उत्तयदानमत्व के प्रनत उदासीन हो जाता है ।
4. सॊगठन की कदठनाई – द्ववतीम सदन के सॊगठन के सम्फन्ध भें कोई आदशथ प्रणारी नहीॊ है । मटद द्ववतीम
सदन साभान्म भतार्धकाय के आधाय ऩय ननवाथर्चत है तो वह ननम्न सदन की ऩुनयावन्ृ त्त भात्र यह जाता है
औय मटद उसका ननवाथचन उच्च सम्ऩन्त्तगत मोग्मता के आधाय ऩय हुआ है तो वह रूटढ़वादी तथा
प्रनतकक्रमावादी होगा। मटद द्ववतीम सदन वॊशानुगत है तो वह ननम्न सदन के टहतों एवॊ उनकी आकाॊऺाओॊ
का ववयोधी होगा। मटद वह अॊशत: ननवाथर्चत तथा अॊशत् भनोनीत है तो स्वमॊ अऩने ववऩयीत ववबान्जत
होने के कायण ककसी बी यचनात्भक कामथ के मरए उऩमक्
ु त नहीॊ होगा औय मटद वह कामथऩामरका अथवा
ननम्न सदन द्वाया ननमुक्त है तो ननमुक्त कयने वारी सत्ता के अनतरयक्त मह औय ककसी का प्रनतननर्धत्व
नहीॊ कये गा।
5. धन का अऩव्मम – द्वव-सदनात्भक प्रणारी भें धन के अऩव्मम भें अर्धक ववृ र्द् हो जाती है तथा इससे
अनावश्मक ववरम्फ बी होता है , क्मोंकक दस
ू ये सदन भें ववचायाथथ कोई ववधेमक बेजना केवर दे यी कयना ही
है । कपय इस अऩव्मम का बाय जनता को अनतरयक्त कयों के रूऩ भें वहन कयना ऩडता है । मह धन
द्ववतीम सदन की अऩेऺा जनटहत के कामों भें उर्चत रूऩ से रगामा जा सकता है ।
6. प्रजातन्त्रीम प्रणारी का वियोध-आमॊगय का कहना है – ―मद्मवऩ द्वव-सदनात्भक शासन| प्रणारी जनतन्त्र के
अन्दय एक प्राचीन ऩयम्ऩया है , ककन्तु मह प्रणारी जनतन्त्र ऩय ववश्वास कयने भें टहचककचाती है औय
अल्ऩसॊख्मकों को ही सन्तष्ट्ु ट कयने का प्रमास कयती है । कबी-कबी द्ववतीम सदन हाये हुए नेताओॊ का
सुयक्षऺत बण्डाय मसर्द् हो सकता है । ‖
7. बर ु ाय का भहत्िहीन दािा – मह कहना कक प्रथभ सदन आवेश भें आकय जनटहत ववयोधी कानन
ू -सध ू ों का
ननभाथण कय सकता है , उर्चत नहीॊ है ; क्मोंकक प्रथभ सदन प्रत्मेक ववधेमक ऩय तीन फाय ववचाय कयता है ।
इस प्रकाय उसभें ककसी प्रकाय की बर
ू यह जाने की फहुत कभ सम्बावना यह जाती है । द्ववतीम सदन भें
केवर ववधेमक ऩय प्रथभ सदन के तकथ ववतकथ ही दोहयामे जाते हैं। इसी प्रकाय के ववचाय व्मक्त कयते हुए
रॉस्की ने मरखा है , ―आधुननक मुग भें व्मवस्थाऩन एकाएक कानून की ऩुस्तक ऩय नहीॊ आ जाता , प्राम्
प्रत्मेक ववधेमक ववचाय एवॊ ववश्रेषण की एक रम्फी प्रकक्रमा के ऩरयणाभस्वरूऩ कानून फना है । अत्
जल्दफाजी के व्मवस्थाऩन को योकने की दृन्ष्ट्ट से दस
ू ये सदन का भहत्त्व याजनीनत की वतथभान दशा भें
अत्मन्त कभ हो गमा है । ‖
8. सॊघषश तथा भतबेद की सम्बािना – जहाॉ द्वव-सदनात्भक व्मवस्थावऩका होती है वहाॉ सॊघषथ तथा भतबेद की
सम्बावना फनी यहती है । इससे शासन-व्मवस्था भें मशर्थरता उत्ऩन्न हो जाती है । िेंकमरन के शब्दों भें ,
―द्वव-सदनात्भक व्मवस्थावऩका एक ऐसी गाडी के सभान है न्जसके दोनों मसयों ऩय एक-एक घोडा हो औय
वे दोनों घोडा-गाडी को अऩनी-अऩनी ओय खीॊच यहे हों। ‖
9. अल्ऩभतों को प्रनतननचधत्ि दे ने हेतु अन्म सन्तोषजनक प्रफन्ध सम्बि – द्ववतीम सदन के आरोचकों का भत है कक
अल्ऩसॊख्मकों को प्रनतननर्धत्व दे ने के मरए दस
ू ये सदन की व्मवस्था आवश्मक नहीॊ है । अल्ऩसॊख्मकों को
प्रनतननर्धत्व दे ने के मरए सॊववधान भें दस
ू ये उऩाम ककमे जा सकते हैं , न्जस तयह बायतीम सॊववधान भें
आॊग्र-बायतीम सभुदाम, अनुसूर्चत जानतमों तथा अनुसूर्चत जनजानतमों के मरए स्थान आयक्षऺत ककमे गमे
हैं।
10. सॊघीम व्मिस्था के सरए अनािश्मक – दरफन्दी के उदम हो जाने के फाद सॊघीम शासन व्मवस्था भें द्ववतीम
सदन का होना आवश्मक नहीॊ यह गमा है , क्मोकक द्ववतीम सदन के प्रनतननर्ध याज्मों के टहतों औय
आवश्मकताओॊ को दृन्ष्ट्ट भें न यखकय अऩने दरों के स्वाथों का ही ध्मान यखते हैं। इस प्रकाय वे याज्मों के
प्रनतननर्ध न फनकय वास्तववक रूऩ भें याजनीनतक दरों के प्रनतननर्ध फनकय यह जाते हैं। इस सम्फन्ध भें
यॉफटथ सन ने मरखा है , ―सॊघ याज्मों की ववशेष ऩरयन्स्थनतमों को छोडकय द्ववतीम सदन के ऩऺ भें कोई
भान्म सैर्द्ान्न्तक तकथ नहीॊ है औय उसके ववरुर्द् उठामे गमे सैर्द्ान्न्तक तको को अबी सभर्ु चत उत्तय नहीॊ
टदमा गमा है ।
उऩमुक्
थ त तको भें सत्म का अॊश है , कपय बी अर्धकाॊश दे शों भें द्वव-सदनात्भक व्मवस्थावऩका की स्थाऩना
की गमी है । शामद इसका कायण मह है कक उच्च सदन के ननभाथण से फहुत-सी सभस्माओॊ का सभाधान हो
जाता है । इसभें सन्दे ह नहीॊ कक द्ववतीम सदन ऩूणथ जागरूकता के साथ प्रथभ सदन द्वाया ऩारयत ककमे
गमे ववधेमकों ऩय ऩुनववथचाय कये तो रोकवप्रम सदन की जल्दफाजी औय भनभानी ऩय उऩमोगी एवॊ
आवश्मक प्रनतफन्ध रग सकता है , इसके अनतरयक्त ववमबन्न वगों को प्रनतननर्धत्व टदमे जाने ऩय कानून-
ननभाथण का कामथ अर्धक ऩूणत
थ ा के साथ ककमे जाने की आशा की जा सकती है । यै म्जे म्मोय के अनुसाय ,
द्ववतीम सदन का भहत्त्वऩूणथ उऩमोग मह है कक उसभें याष्ट्रीम नीनत के साभान्म प्रश्नों ऩय ठण्डे वातावयण
भें शान्न्त के साथ ववचाय होता है जैसा कक ननम्न सदन भें असम्बव है । ‖ कक्रन्तु मह आवश्मक है कक
द्ववतीम सदन की यचना भें कुछ सध
ु ाय हो। जे०एस० मभर के शब्दों भें , ―मटद एक सदन जनता की सबा
हो तो दस
ू या सदन याजनीनतऻों की सबा हो।‖

प्रश्न 3.
याज्मसबा के सॊगठन तथा शन्क्तमों की वववेचना कीन्जए।
मा
याज्मसबा के कामों एवॊ शन्क्तमों को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
मा
याज्मसबा के सॊगठन तथा कामों का वणथन कीन्जए।
मा
याज्मसबा के सॊगठन तथा कामों की सभीऺा कीन्जए। मसर्द् कीन्जए कक रोकसबा की तुरना भें याज्मसबा
एक कभजोय एवॊ शन्क्तहीन सदन है ?
उत्तय :
याज्मसबा – सॊसद के तीन घटक होते हैं-(1) याष्ट्रऩनत, (2) रोकसबा तथा (3) याज्मसबा। सॊववधान के
अनुच्छे द 79 के अनुसाय, ―सॊघ के मरए एक सॊसद होगी जो याष्ट्रऩनत औय दोनों सदनों को मभराकय फनेगी ,
न्जनके नाभ याज्मसबा औय रोकसबा होंगे। इससे स्ऩष्ट्ट है कक बायत भें व्मवस्थावऩका के दो सदन होते
हैं। उच्च सदन को याज्मसबा औय ननम्न सदन को रोकसबा के नाभ से ऩुकाया जाता है । रोकसबा
सभस्त बायत का प्रनतननर्धत्व कयती है औय याज्मसबा याज्मों तथा सॊघीम ऺेत्रों का प्रनतननर्धत्व कयती है ।
दोनों सदनों को सन्म्भमरत रूऩ से सॊसद कहा जाता है । याज्मसबा के सम्फन्ध भें ववस्तत
ृ वणथन इस प्रकाय
है –
याज्मसबा की सॊयचना – याज्मसबा एक स्थामी सदन है । इसका कबी ववघटन नहीॊ होता। याज्मसबा भें सॊघ के
इकाई याज्मों के प्रनतननर्ध होते हैं। सॊववधान के अनुच्छे द 80 भें स्ऩष्ट्ट मरखा है कक याज्मसबा भें अर्धक-
से-अर्धक 250 सदस्म होंगे न्जनभें अर्धक-से-अर्धक 238 सदस्म याज्मों की ओय से ननवाथर्चत होंगे औय 12
सदस्मों को याष्ट्रऩनत भनोनीत कये गा। याष्ट्रऩनत द्वाया भनोनीत 12 सदस्म साटहत्म, ववऻान, करा, सभाज-
सेवा मा सहकारयता के ऺेत्र भें ववशेष ऻान मा अनब
ु व तथा ख्मानत प्राप्त व्मन्क्त होंगे। इस सभम
याज्मसबा भें कुर सदस्म 245 हैं, न्जनभें से 233 याज्मों तथा केन्द्र-शामसत प्रदे शों का प्रनतननर्धत्व कयते हैं
औय 12 सदस्म याष्ट्रऩनत द्वाया भनोनीत ककमे गमे हैं।
चुनाि – याज्मसबा के सदस्मों का ननवाथचन अप्रत्मऺ यीनत से होता है । इस ननवाथचन की दृन्ष्ट्ट से बायतीम
सॊघ के याज्म दो श्रेखणमों भें ववबान्जत ककमे जा सकते हैं – (1) वे याज्म न्जनभें ववधानसबाएॉ हैं तथा (2) वे
याज्म न्जनभें ववधानसबाएॉ नहीॊ हैं , वयन ् वे केन्द्र द्वाया शामसत हैं। न्जन याज्मों भें ववधानसबाएॉ हैं , वहाॉ
ववधानसबाओॊ के सदस्म अऩने याज्म के प्रनतननर्धमों का चन
ु ाव कयते हैं। मह चन
ु ाव आनऩ
ु ानतक ऩर्द्नत से
एकर सॊक्रभणीम भत प्रणारी के द्वाया होता है । वे याज्म न्जनभें ववधानसबाएॉ नहीॊ हैं , उनभें प्रनतननर्धमों
को ननवाथर्चत कयने का ढॊ ग सॊसद कानून द्वाया ननधाथरयत कयती
सदस्मों की मोग्मताएॉ –
1. वह बायत का नागरयक हो।
2. वह 30 वषथ की आमु ऩूयी कय चुका हो।
3. वह वे सबी मोग्मताएॉ यखता हो जो सॊसद द्वाया ननन्श्चत की गमी हों।
4. वह उस याज्म का ननवासी हो जहाॉ से वह ननवाथर्चत होना चाहता है ।
कामशकार – याज्मसबा एक स्थामी सदन है , ऩयन्तु उसके सदस्मों भें से एक-नतहाई सदस्म प्रत्मेक दो वषथ
फाद अवकाश ग्रहण कयते यहते हैं। इस प्रकाय सदस्मों का कामथकार 6 वषथ है ।
गणऩनू तश मा कोयभ – याज्मसबा की गणऩूनतथ मा कोयभ, सभस्त सदस्म-सॊख्मा का 10वाॉ बाग होता है । ककसी
बी कामथवाही के मरए कुर सदस्मों की सॊख्मा का 1/10 बाग सदन भें उऩन्स्थत होना आवश्मक
याज्मसबा का सबाऩनत – बायत का ‗उऩयाष्ट्रऩनत याज्मसबा का ऩदे न सबाऩनत होता है । याज्मसबा अऩने
सदस्मों भें से ककसी एक को उऩसबाऩनत चन
ु ती है । सबाऩनत की अनऩ
ु न्स्थनत भें उऩसबाऩनत याज्मसबा की
फैठकों का सबाऩनतत्व कयता है औय सबाऩनत के कतथव्मों का ऩारन कयता है । सबाऩनत तथा उऩसबाऩनत
के वेतन, बत्ते सॊसद द्वाया ननन्श्चत ककमे जाते हैं। सबाऩनत की अनऩ
ु न्स्थनत भें उऩसबाऩनत ही सबाऩनत
का आसन ग्रहण कयता है । याज्मसबा का सबाऩनत सदन की फैठकों का सबाऩनतत्व कयता है , सबा भें
व्मवस्था फनामे यखता है , प्रश्नों ऩय अऩना ननणथम दे ता है तथा भतदान की। ननणथम घोवषत कयना आटद
कामथ सम्ऩन्न कयता है । वतथभान सभम भें याज्मसबा के सबाऩनत श्री एभ० वेंकैमा नामडू हैं औय
उऩसबाऩनत प्रो० ऩी० जे० कुरयमन हैं।
याज्मसबा के कामश एिॊ अचधकाय
याज्मसबा के अर्धकायों को ननम्नमरखखत सन्दबो भें स्ऩष्ट्ट ककमा जा सकता है –

(1) विधानमनी अचधकाय – याज्मसबा भें धन सम्फन्धी ववधेमक को छोडकय अन्म ककसी बी प्रकाय का ववधेमक
रोकसबा से ऩहरे बी प्रस्तुत ककमा जा सकता है । धन सम्फन्धी ववधेमक ऩहरे रोकसबा भें ही प्रस्तुत
ककमे जा सकते हैं। कोई बी प्रस्ताव सॊसद द्वाया तफ तक ऩारयत नहीॊ सभझा जा सकता औय उसे
याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत के मरए तफ तक नहीॊ बेजा जा सकता जफ तक कक वह दोनों सदनों द्वाया ऩथ
ृ क् -
ऩथ
ृ क् ऩारयत न हो जाए। मटद ककसी प्रस्ताव ऩय दोनों सदनों भें भतबेद ऩैदा हो जाए तो याष्ट्रऩनत दोनों
सदनों का सॊमुक्त अर्धवेशन फुराने का अर्धकाय यखता है औय उसे प्रस्ताव को उसके साभने यखा जाता
है । सॊमुक्त फैठक भें प्रस्ताव ऩय हुआ ननणथम दोनों सदनों का साभूटहक ननणथम सभझा जाता है औय मटद
वह ऩारयत हो जाए तो उसे याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत के मरए बेज टदमा जाता है ।
(2) वित्तीम अचधकाय – जैसा ऩहरे ही फतामा जा चुका है कक धन सम्फन्धी ववधेमक सवथप्रथभ रोकसबा भें
ही प्रस्तत
ु ककमे जा सकते हैं। याज्मसबा की ववत्तीम शन्क्तमाॉ रोकसबा की अऩेऺा फहुत कभ हैं। ववत्तीम
ववधेमक रोकसबा भें ऩारयत होने के फाद याज्मसबा भें आते हैं। याज्मसबा ववत्तीम ववधेमक को 14 टदन
तक ऩारयत होने से योक सकती है । याज्मसबा ववत्तीम ववधेमक को चाहे यद्द कय दे , मा उसभें ऩरयवतथन कय
दे , मा 14 टदन तक उस ऩय कोई कामथवाही न कये , इन दशाओॊ भें वह ववधेमक याज्मसबा से ऩारयत सभझा
जाएगा। मह रोकसबा की इच्छा ऩय ननबथय कयता है कक वह याज्मसबा की सॊस्तुनतमों को भाने मा न
भाने। न्जस रूऩ भें रोकसबा ने ववधेमक ऩारयत ककमा था वह ववधेमक याष्ट्रऩनत के हस्ताऺय के मरए बेज
टदमा जाता है ।
(3) र्ासकीम अचधकाय – याज्मसबा की कामथकायी शन्क्तमाॉ फहुत सीमभत हैं। मद्मवऩ याज्मसबा के सदस्म बी
भॊब्रत्रभण्डर भें शामभर ककमे जाते हैं कपय बी भॊब्रत्रभण्डर अऩने सबी कामों के मरए केवर रोकसबा के प्रनत
उत्तयदामी होता है , याज्मसबा के सदस्म प्रश्नों, काभ योको प्रस्तावों औय वाद-वववादों के द्वाया भॊब्रत्रभण्डर
ऩय अऩना ननमन्त्रण यखते हैं , ऩयन्तु इस सफके फावजूद बी कामथऩामरका ऩय याज्मसबा का वास्तववक
ननमन्त्रण नहीॊ है । याज्मसबा को भॊब्रत्रभण्डर के ववरुर्द् अववश्वास प्रस्ताव ऩारयत कयके उसे हटाने का कोई
अर्धकाय नहीॊ है ।
(4) सॊविधान सॊर्ोधन सम्फन्धी अचधकाय – याज्मसबा को सॊववधान भें सॊशोधन कयने का अर्धकाय रोकसबा की
तयह ही प्राप्त है । सॊववधान सॊशोधन सम्फन्धी ववधेमक सॊसद के ककसी बी सदन भें प्रस्तत
ु हो सकता है ,
अथाथत ् सॊवैधाननक सॊशोधन का प्रस्ताव याज्मसबा भें बी प्रस्ताववत ककमा जा सकता है । सॊशोधन प्रस्ताव
उस सभम तक ऩारयत नहीॊ सभझा जाता जफ तक कक वह दोनों सदनों द्वाया ऩथ ृ क् -ऩथ
ृ क् फहुभत से
ऩारयत न हो जाए। इस प्रकाय सॊशोधन प्रस्ताव ऩय सॊसद के दोनों सदनों भें भतबेद होने ऩय वह ऩारयत
नहीॊ हो ऩाएगा।
(5) विविध अचधकाय –
1. याज्मसबा के ननवाथर्चत सदस्म याष्ट्रऩनत के चन
ु ाव भें बाग रेते हैं , ककन्तु भनोनीत सदस्मों को मह
अर्धकाय प्राप्त नहीॊ होता।
2. याष्ट्रऩनत के ववरुर्द् भहामबमोग रगाने औय उसकी जाॉच कयने तथा उसके फाये भें ननणथम दे ने का
अर्धकाय याज्मसबा को है । महाॉ मह उल्रेखनीम है कक इस भाभरे भें याज्मसबा को उतने ही
अर्धकाय हैं न्जतने कक रोकसबा को।
3. उच्चतभ न्मामारम तथा उच्च न्मामारमों के न्मामाधीशों को उसी सभम ऩदच्मुत ककमा जा सकता
है , जफ रोकसबा की तयह याज्मसबा बी उनको हटामे जाने के मरए प्रस्ताव ऩारयत कये ।
4. याज्मसबा याज्म सूची के ककसी ववषम को याष्ट्रीम भहत्त्व को घोवषत कयके सॊसद को इस ऩय
कानून फनाने का अर्धकाय दे सकती है ।
5. याष्ट्रऩनत द्वाया सभम-सभम ऩय ननकारी गमी घोषणा को जायी कयने के मरए रोकसबा की तयह
याज्मसबा को बी अथाथत ् दोनों सदनों के अनुभोदन की आवश्मकता होती है ।
ननष्ट्कषश – याज्मसबा की शन्क्तमों औय कामों से मह स्ऩष्ट्ट है कक रोकसबा की अऩेऺा याज्मसबा शन्क्तहीन
सदन मसर्द् होता है , ऩयन्तु कपय बी इस सदन के ऩास इतनी शन्क्तमाॉ हैं कक मह एक आदशथ सदन कहीॊ
जा सकता है । इसकी अऩनी ऩथ
ृ क् गरयभा है । रोकसबा के बॊग होने की न्स्थनत भें तो मह सदन
भहत्त्वऩूणथ बूमभका ननबाता है तथा कामथऩामरका की शन्क्तमों ऩय अॊकुश रगाता है । इसे ककसी बी प्रकाय
अनावश्मक सदन नहीॊ कहा जा सकता। याज्मसबा की उऩमोर्गता के ववषम भें श्री गोऩार स्वाभी आमॊगय
ने कहा था, ―सॊववधान-ननभाथताओॊ का याज्मसबा की यचना का उद्देश्म मह था कक मह सदन भहत्त्वऩूणथ
ववषमों ऩय वाद-वववाद कये औय उन ववधेमकों को ऩारयत कयने भें दे यी कये जो रोकसबा भें शीघ्रता से
ऩारयत कय टदमे जाते हैं।‖
प्रश्न 4.
बायत भें रोकसबा के गठन एवॊ शन्क्तमों का वववेचन कीन्जए तथा याज्मसबा के साथ इसके सम्फन्धों की
वववेचना कीन्जए।
मा
रोकसबा की शन्क्तमों एवॊ कामों की वववेचना कीन्जए।
मा
रोकसबा की दो प्रभुख शन्क्तमों का उल्रेख कीन्जए।
मा
रोकसबा के भुख्म कामथ क्मा हैं ?
मा
रोकसबा का कामथकार ककतना है ? क्मा इसे सभम से ऩहरे ववबान्जत ककमा जा सकता है ? मटद आऩका
उत्तय हाॉ है तो इसे ननधाथरयत कयने का अर्धकाय ककसके ऩास है ?
मा
रोकसबा के सॊगठन का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
रोकसबा
गठन – सॊसद का ननम्न सदन रोकसबा है , न्जसे जन-प्रनतननर्ध सदन अथवा रोकवप्रम सदन बी कहा
जाता है । बायतीम सॊववधान भें उन्ल्रखखत प्रावधान के अनुसाय रोकसबा के सदस्मों की अर्धकतभ सॊख्मा
552 ननन्श्चत की गमी है । इस सम्फन्ध भें सॊववधान भें मह उऩफन्ध ककमा गमा है कक अर्धकतभ 530
सदस्म प्रादे मशक ननवाथचन ऺेत्रों से प्रत्मऺ भतदान द्वाया चुने जाएॉगे तथा 20 सदस्मों की सॊख्मा
केन्द्रशामसत प्रदे शों के मरए ननधाथरयत की गमी है । इसके अनतरयक्त सॊववधान के अन्तगथत याष्ट्रऩनत द्वाया
2 ऐॊग्रो-इन्ण्डमन सदस्मों को भनोनीत कयने का बी प्रावधान है । वतथभान सभम भें रोकसबा की सदस्म
सॊख्मा 545 है । रोकसबा सदस्मों का ननवाथचन जनसॊख्मा के आधाय ऩय होने के कायण अर्धक जनसॊख्मा
वारे प्रदे शों को रोकसबा भें अर्धक सीटें प्राप्त होती हैं। इस आधाय ऩय रोकसबा भें सवाथर्धक सीटें उत्तय
प्रदे श याज्म को प्राप्त हैं।

सदस्मों की मोग्मताएॉ – रोकसबा की सदस्मता के मरए उम्भीदवाय को ननम्नमरखखत मोग्मताएॉ ऩूयी कयनी
आवश्मक हैं –
1. वह बायत का नागरयक हो।
2. वह 25 वषथ की आमु ऩयू ी कय चक
ु ा हो।
3. सॊसद द्वाया ननधाथरयत अन्म सबी मोग्मताएॉ यखता हो।
4. वे व्मन्क्त न्जन्हें सॊसद द्वाया ननमभथत ककसी ववर्ध के अन्तगथत अमोग्म न ठहयामा गमा हो।
5. व् केन्द्र व याज्म सयकाय के अधीन ककसी राब का ऩद ग्रहण न ककमे हो तथा वह ऩागर मा
टदवामरमा न हो।
कामशकार – साभान्मत: रोकसबा का कामथकार 5 वषथ तक यहता है । सॊकटकार भें इस अवर्ध को फढ़ामा बी
जा सकता है , ऩयन्तु एक सभम भें एक वषथ से अर्धक औय सॊकटकारीन घोषणा सभाप्त होने ऩय छ:
भहीने से अर्धक नहीॊ फढ़ामा जा सकता। याष्ट्रऩनत 5 वषथ की अवर्ध ऩूयी होने से ऩहरे जफ चाहे रोकसबा
को बॊग कयके दोफाया चुनाव कयवा सकता है । ऐसा कदभ उसी सभम उठामा जाता है । जफ प्रधानभॊत्री
याष्ट्रऩनत को इस प्रकाय का ऩयाभशथ दे ।
ननिाशचन – रोकसबा के चुनाव प्रत्मऺ ननवाथचन-प्रणारी के आधाय ऩय होते हैं। बायत का प्रत्मेक 18 वषथ का
वमस्क नागरयक (स्त्री, ऩरु
ु ष) रोकसबा चन
ु ावों भें भतदान कयने का अर्धकाय यखता है । 5 राख से 7.5
राख की जनसॊख्मा ऩय प्रत्मेक ऺेत्र से एक प्रनतननर्ध चुना जाता है , न्जसे एभ० ऩी० मा सॊसद सदस्म
कहते हैं।
गणऩनू तश मा कोयभ – साधायणतमा वषथ भें दो फाय रोकसबा का अर्धवेशन होता है । इन अर्धवेशनों को
आभन्न्त्रत कयने औय बॊग कयने का अर्धकाय याष्ट्रऩनत को होता है । रोकसबा की कामथवाही हे तु कुर
सदस्मों की सॊख्मा का 1/10 बाग सदन भें उऩन्स्थत होना आवश्मक है ।
सदस्मों की र्ऩथ – सदस्मों को अऩना कामथबाय ग्रहण कयने से ऩूवथ याष्ट्रऩनत अथवा याष्ट्रऩनत द्वाया भनोनीत
ककसी व्मन्क्त के सभऺ शऩथ रेनी ऩडती है ।
विर्ेषाचधकाय – ववशेषार्धकायों के अन्तगथत सदस्मों को सदन भें ननमभों औय आदे शों का ऩारन कयते हुए
फोरने की ऩण
ू थ स्वतन्त्रता प्राप्त है । सदन भें सदस्म जो कुछ बी कहते हैं उसके ववरुर्द् ककसी न्मामारम भें
ककसी प्रकाय की कामथवाही नहीॊ की जा सकती। सदन का अर्धवेशन शुरू होने के 40 टदन ऩहरे, अर्धवेशन
के भध्म भें औय अर्धवेशन सभाप्त होने के 40 टदन फाद इनको ककसी बी दीवानी भक
ु दभे भें र्गयफ्ताय
नहीॊ ककमा जा सकता, ऩयन्तु पौजदायी भुकदभों अथवा ननवायक ननयोध मा ‗भीसा भें ऩकडा जा सकता है ।
इस न्स्थनत भें सदस्म को फन्दी फनामे जाने की सच
ू ना सदन के अध्मऺ के ऩास शीघ्र ऩहुॉचनी चाटहए।
रोकसबा की र्क्ततमाॉ एिॊ कामश
जनसॊख्मा के आधाय ऩय प्रत्मऺ भतदान-प्रणारी के भाध्मभ से गटठत होने के कायण रोकसबा जनता का
प्रनतननर्धत्व कयती है औय उसकी इच्छा को प्रनतब्रफम्फ होती है । मही कायण है कक रोकसबा को रोकवप्रम
सदन कहा जाता है , जो सॊसद के सफसे भहत्त्वऩण
ू थ अॊग के रूऩ भें कामथ कयता है । सॊववधान द्वाया
रोकसबा को ननम्नमरखखत शन्क्तमाॉ प्रदान की गमी हैं

(1) विधामी र्क्ततमाॉ


सॊववधान द्वाया ववधामी ऺेत्र भें रोकसबा को भहत्त्वऩण
ू थ न्स्थनत प्रदान की गमी है । इस ऺेत्र भें रोकसबा
को प्राप्त प्रभुख शन्क्तमाॉ ननम्नमरखखत हैं –

(अ) साधायण ववधेमकों के सम्फन्ध भें रोकसबा व याज्मसबा को सॊववधान द्वाया सभान अर्धकाय प्रदान
ककमे गमे हैं। साधायण ववधेमक ऩय सॊसद के दोनों सदनों की स्वीकृनत के ऩश्चात ् याष्ट्रऩनत के हस्ताऺय
होने आवश्मक होते हैं। ऩयन्तु इस सम्फन्ध भें रोकसबा की न्स्थनत याज्मसबा से सुदृढ़ होती है । मटद
ककसी ववधेमक ऩय सॊसद के दोनों सदनों भें भतबेद उत्ऩन्न हो जाता है तो ननणथम की अन्न्तभ शन्क्त
रोकसबा के ऩास होती है । याज्मसबा को इस सम्फन्ध भें केवर मह अर्धकाय प्राप्त होता है कक वह
अववत्तीम ववधेमक को 6 भाह तक योक सकती है ।
(फ) मद्मवऩ सॊवैधाननक प्रावधान के अनस
ु ाय सॊसद के ककसी बी सदन भें साधायण ववधेमक प्रस्ताववत ककमे
जा सकते हैं , ऩयन्तु व्मवहाय भें भहत्त्वऩूणथ ववधेमक साधायणतमा रोकसबा भें ही प्रस्ताववत ककमे जाते हैं।
(2) वित्तीम र्क्ततमाॉ
ववत्तीम ऺेत्र भें रोकसबा को शन्क्तशारी वे सुदृढ़ न्स्थनत प्रदान की गमी है । सॊववधान द्वाया ववत्तीम
सम्फन्ध भें रोकसबा को ननम्नमरखखत शन्क्तमाॉ प्रदान की गमी हैं –
(अ) सॊववधान के अनुच्छे द 109 के अनुसाय कोई बी ववत्त ववधेमक केवर रोकसबा भें ही प्रस्ताववत ककमा
जाएगा। रोकसबा के द्वाया ऩारयत ककमे जाने के ऩश्चात ् ववधेमक याज्मसबा को प्रेवषत ककमा जाता है , जहाॉ
याज्मसबा अऩने फहुभत से ववधेमक को ऩारयत कयती है ।
(फ) ककसी ववत्तीम ववधेमक को याज्मसबा केवर 14 टदन तक अऩने ऩास योक सकती है तथा इस सम्फन्ध
भें रोकसबा को ऩयाभशथ दे सकती है , ऩयन्तु मटद 14 टदन के अन्दय याज्मसबा ववधेमक को रोकसबा को
न रौटाए तो ववधेमक ब्रफना याज्मसबा की स्वीकृनत के बी ऩारयत सभझा जाता है । इसके अनतरयक्त वावषथक
फजट व अनुदान भाॉग बी रोकसबा के सभऺ ही प्रस्तुत की जाती है । इस प्रकाय ववत्तीम ऺेत्र भें रोकसबा
को सवोच्च शन्क्तमाॉ प्रदान की गमी हैं।
(3) कामशऩासरका सम्फन्धी अचधकाय
कामथऩामरका के ऺेत्र भें रोकसबा को ननम्नमरखखत भहत्त्वऩूणथ अर्धकाय प्रदान ककमे गमे हैं –

(अ) सॊसदात्भक शासन-व्मवस्था के अन्तगथत कामथऩामरका , व्मवस्थावऩका के रोकवप्रम सदन के प्रनत


उत्तयदामी होती है । वह भन्न्त्रऩरयषद् को अववश्वास प्रस्ताव ऩारयत कय ऩदच्मुत कय सकती है ।
(फ) रोकसबा के सदस्म भॊब्रत्रमों से प्रश्न व ऩूयक प्रश्न ऩूछ सकते हैं तथा उनकी आरोचना बी कय सकते
हैं।
(स) कामथऩामरका सम्फन्धी शन्क्तमों के अन्तगथत ही रोकसबा सॊघ रोक सेवा आमोग , ननमन्त्रक व भहारेखा
ऩयीऺक, ववत्त आमोग, बाषा आमोग आटद द्वाया प्रेवषत उनकी वावषथक रयऩोटथ ऩय ववचाय कयती
(द) इसके अनतरयक्त वह अनुर्चत सयकायी नीनतमों ऩय ववयोध प्रदमशथत कयते हुए काभ योको प्रस्ताव ऩास
कय सकती है ।
(4) सॊर्ोधन सम्फन्धी अचधकाय
सॊववधान सॊशोधन सम्फन्धी ऺेत्र भें सॊसद के दोनों सदनों को सभान अर्धकाय प्रदान ककमे गमे हैं। सॊववधान
भें ककमे जाने वारे सबी सॊशोधनों के मरए सॊसद के दोनों सदनों का फहुभत प्राप्त कयना आवश्मक होता है
तथा कुछ ववषमों भें याज्मों के ववधानभण्डरों की स्वीकृनत प्राप्त कयने का बी प्रावधान ककमा गमा है ।

(5) ननिाशचक भण्डर के रूऩ भें


सॊववधान के अनुच्छे द 54 के अन्तगथत रोकसबा के सदस्म याज्मसबा व याज्मों की ववधानसबाओॊ के
ननवाथर्चत सदस्मों के साथ सॊमक्
ु त होकय याष्ट्रऩनत का ननवाथचन कयते हैं। इसके अनतरयक्त रोकसबा सदस्म
याज्मसबा के सदस्मों के साथ मभरकय उऩयाष्ट्रऩनत का चुनाव कयते हैं। रोकसबा के द्वाया रोकसबा
अध्मऺ व उऩाध्मऺ का चन
ु ाव ककमा जाता है ।

(6) जन-सभस्माओॊ का ननिायण


रोकसबा के सदस्म जनता की सभस्माओॊ को सुनकय उन्हें सभाधान हे तु सयकाय तक ऩहुॉचाते हैं। जनता
के प्रनतननर्ध होने के कायण जन-सभस्माओॊ का शीघ्र ननयाकयण रोकसबा सदस्मों का प्रभख
ु कतथव्म होता
है । सयकाय द्वाया नीनतमों व कानूनों के ननभाथण के सभम रोकसबा सदस्म अऩने ऺेत्र के टहतों को ध्मान
भें यखकय कानूनों का ननभाथण कयाते हैं।

(7) भहासबमोग सम्फन्धी अचधकाय


रोकसबा याज्मसबा के साथ मभरकय ननम्नमरखखत प्रभुख ऩदार्धकारयमों को उनके ऩद से सभम से ऩूवथ
ऩदच्मत
ु कय सकती है –

(अ) वह याज्मसबा के साथ मभरकय याष्ट्रऩनत ऩय भहामबमोग रगा सकती है ।


(फ) वह याज्मसबा के साथ मभरकय उऩयाष्ट्रऩनत को ऩदच्मुत कय सकती है ।
(स) सवोच्च न्मामारम व उच्च न्मामारमों के न्मामाधीशों के ववरुर्द् भहामबमोग रगाकय उन्हें सॊसद के
फहुभत से ऩदच्मुत कय सकती है । याष्ट्रऩनत द्वाया ककसी अऩयाधी को ऺभादान दे ने से ऩूवथ सॊसद की
स्वीकृनत प्राप्त कयना आवश्मक होता है ।
उऩमुक्
थ त वववयण के आधाय ऩय मह कहा जा सकता है कक रोकसबा सॊसद का प्रभुख व भहत्त्वऩूणथ सदन
है । डॉ० एभ० ऩी० शभाथ के अनुसाय, ―मटद सॊसद याज्म का सवोच्च अॊग है तो रोकसबा सॊसद का सवोच्च
अॊग है । व्मवहायत् रोकसबा ही सॊस्द है । ‖

याज्मसबा के साथ रोकसबा के सम्फन्ध


बायतीम सॊसद के दो सदन हैं – रोकसबा व याज्मसबा तथा एक प्रकाय से दोनों ही एक-दस
ू ये के ऩूयक हैं।
इनके सम्फन्धों की सॊक्षऺप्त वववेचना ननम्नमरखखत है –

दोनों सदनों के सदस्म सभान रूऩ से याष्ट्रऩनत एवॊ उऩयाष्ट्रऩनत के ननवाथचन भें बाग रेते हैं तथा याष्ट्रऩनत
ऩय भहामबमोग रगाने को अर्धकाय बी दोनों सदनों को है । एक सदन भहामबमोग रगाता है तो दस
ू या
उसकी जाॉच कयता है । सवोच्च न्मामारमे औय उच्च न्मामारमों के न्मामाधीशों , ननमन्त्रक औय भहारेखा
ऩयीऺक तथा भुख्म चुनाव आमुक्त को ऩदच्मुत कयने के मरए दोनों सदनों की स्वीकृनत आवश्मक है ।
इसके अनतरयक्त याष्ट्रऩनत द्वाया की गमी सॊकटकारीन उद्घोषणा की स्वीकृनत सॊसद के दोनों सदनों से
होना आवश्मक है ।

सैर्द्ान्न्तक दृन्ष्ट्ट से साधायण मा अववत्तीम ववधेमकों के सम्फन्ध भें दोनों सदनों की शन्क्तमाॉ फयाफय हैं।
साधायणत् ववधेमक दोनों सदनों भें से ककसी बी सदन भें ऩेश ककमा जा सकता है ।

प्रश्न 5.
रोकसबा तथा याज्मसबा के ऩायस्ऩरयक सम्फन्धों का वणथन कीन्जए।
मा
―रोकसबा, याज्मसबा से अर्धक शन्क्तशारी है । ‖ इस कथन की वववेचना कीन्जए।
मा
सॊसद के दोनों सदनों, रोकसबा औय याज्मसबा भें कौन-सा अर्धक शन्क्तशारी है । औय क्मों ?
उत्तय :
रोकसबा एिॊ याज्मसबा के सम्फन्ध
बायतीम सॊसद के दो सदन होते हैं-उच्च सदन व ननम्न सदन। उच्च सदन को याज्मसबा औय ननम्न सदन
को रोकसबा कहते हैं। रोकसबा औय याज्मसबा को मभराकय सॊसद के नाभ से ऩुकाया जाता है । मद्मवऩ
याज्मसबा, रोकसबा से कभ शन्क्तशारी है , ऩयन्तु फहुत-से ऐसे कामथ हैं जो याज्मसबा औय रोकसबा को
सन्म्भमरत रूऩ से कयने होते हैं।
रोकसबा जनता का सॊदन है ; अतएव सभस्त कामों भें रोकसबा की प्रभुखता होना स्वाबाववक ही है ।
सॊववधान-ननभाथताओॊ की मह इच्छा बी थी कक याज्मसबा, रोकसबा की अऩेऺा कभजोय सदन यहे औय इस
कायण उन्होंने याज्मसबा को उन शन्क्तमों से ववबूवषत नहीॊ ककमा, न्जन्हें रोकसबा को प्रदान ककमा गमा।
रोकसबा औय याज्मसबा के सम्फन्धों को ननम्नमरखखत सन्दबो भें सभझा जा सकता है –

(1) साधायण विधेमक – सैर्द्ान्न्तक रूऩ से साधायण ववधेमकों के सम्फन्ध भें दोनों सदनों को सभान शन्क्तमाॉ
प्राप्त हैं। ऐसे ववधेमक ककसी बी सदन भें ऩहरे प्रस्तुत ककमे जा सकते हैं जफ कोई साधायण ववधेमक
रोकसबा द्वाया ऩारयत होकय याज्मसबा भें जाता है औय याज्मसबा उसे अस्वीकाय कय दे ती है , मा उसे 6
भहीने तक ऩारयत नहीॊ कयती है , मा उसभें कुछ ऐसे सॊशोधन कय दे ती है , न्जससे रोकसबा सहभत नहीॊ है ,
तो ऐसी ऩरयन्स्थनत भें याष्ट्रऩनत सॊसद के दोनों सदनों का सन्म्भमरत अर्धवेशन उस ववधेमक ऩय ववचाय
औय भतदान कयने हे तु फर
ु ाता है । स्वाबाववक है कक रोकसबा द्वाया ऩारयत ववधेमक इस सन्म्भमरत
अर्धवेशन भें अवश्म ही स्वीकृत हो जाता है , क्मोंकक रोकसबा के सदस्मों की सॊख्मा, याज्मसबा के सदस्मों
की अऩेऺा कापी अर्धक होती है । इस प्रकाय हभ दे खते हैं कक साधायण ववधेमक के सम्फन्ध भें याज्मसबा
कोई बी ननषेधार्धकाय नहीॊ यखती है औय उसे रोकसबा के सम्भुख झुकना ही ऩडता है । हाॉ , ककसी ववधेमक
के ऩारयत होने भें याज्मसबा कुछ दे य अवश्म रगा सकती है ।
(2) वित्त विधेमक – ववत्त ववधेमक के सम्फन्ध भें तो रोकसबा की शन्क्तमाॉ याज्मसबा की शन्क्तमों से
फहुत अर्धक हैं। ववत्तीम ववधेमक केवर रोकसबा भें ही प्रस्तुत ककमे जाते हैं। रोकसबा का अध्मऺ
(Speaker) इस फात का ननणथम कयता है कक कौन-सा ववधेमक ववत्तीम ववधेमक है । रोकसबा जफ ककसी
ववत्तीम ववधेमक को ऩारयत कयके याज्मसबा के ऩास उसकी स्वीकृनत के मरए बेजती है तो याज्मसबा को
अऩनी सॊस्तुनत सटहत उस ववधेमक को रोकसबा को 14 टदन के अन्दय रौटा दे ना होता है । मटद याज्मसबा
उक्त ववधेमक को 14 टदन के अन्दय अऩनी सॊस्तुनतमों सटहत रोकसबा को वाऩस नहीॊ कयती मा ऐसी
मसपारयश कयती है जो रोकसबा को भान्म नहीॊ है तो रोकसबा की इच्छा ही सवोऩरय होगी। अनद
ु ान
सम्फन्धी भाॉग मा मोजना केवर रोकसबा के सभऺ प्रस्तुत की जाती है औय सावथजननक व्मम की
स्वीकृनत का अर्धकाय केवर रोकसबा को ही होता है । इस सम्फन्ध भें याज्मसबा को कोई अर्धकाय नहीॊ
होता। इस प्रकाय ववत्तीम सन्दबो भें याज्मसबा ऩमाथप्त शन्क्तहीन सदन है ।
(3) कामशऩासरका का ननमन्त्रण – बायत भें सॊसदीम प्रणारी होने के कायण भन्न्त्रऩरयषद् अऩने सभस्त कामों एवॊ
नीनतमों के मरए सॊसद के प्रनत उत्तयदामी है , ऩयन्तु वास्तव भें मह उत्तयदानमत्व रोकसबा के प्रनत है न
कक याज्मसबा के प्रनत। सॊववधान के अनच्
ु छे द 75 (3) के अनस
ु ाय, भन्न्त्रऩरयषद् साभटू हक रूऩ से रोकसबा के
प्रनत उत्तयदामी है । याज्मसबा के सदस्म भॊब्रत्रमों से प्रश्न ऩूछ सकते हैं तथा उनसे शासन के प्रनत कोई
जानकायी बी प्राप्त कय सकते हैं , ऩयन्तु याज्मसबा भॊब्रत्रभण्डर को अववश्वास प्रस्ताव ऩारयत कयके नहीॊ हटा
सकती मह अर्धकाय केवर रोकसबा के ऩास है । मटद भॊब्रत्रभण्डर को रोकसबा भें फहुभत का ववश्वास
प्राप्त नहीॊ यहता तो उसे ऩद त्माग दे ना ऩडता है । रोकसबा अववश्वास प्रस्ताव ऩारयत कयके , फजट को यद्द
कयके तथा भहत्त्वऩूणथ सयकायी ववधेमक अस्वीकाय कयके भन्न्त्रऩरयषद् को ऩदच्मुत कय सकती है ।
भन्न्त्रऩरयषद् रोकसबा की इच्छाओॊ के ववरुर्द् नहीॊ चर सकती है ; अत् भन्न्त्रऩरयषद् ऩय शासन का
ननमन्त्रण रोकसबा का है न कक याज्मसबा का।
(4) सॊविधान सॊर्ोधन के सम्फन्ध भें – याज्मसबा औय रोकसबा को सॊववधान भें सॊशोधन कयने का बी अर्धकाय
है । इस सम्फन्ध भें दोनों सदन सभान अर्धकाय यखते हैं। सॊववधान सॊशोधन ववधेमक दोनों सदनों के
उऩन्स्थत सदस्मों के फहुभत औय सदस्मों के दो-नतहाई फहुभत से ऩारयत होना चाटहए। याज्मसबा का मह
अर्धकाय फहुत भहत्त्वऩणू थ है , क्मोंकक ब्रफना उसकी स्वीकृनत प्राप्त ककमे रोकसबा सॊववधान भें कोई सॊशोधन
नहीॊ कय सकती। मटद सॊववधान सॊशोधन ववधेमक ऩय दोनों सदनों भें भतबेद उत्ऩन्न हो जाए तो ककस
उऩाम को अऩनामा जाएगा, इस सम्फन्ध भें सॊववधान भें कुछ बी नहीॊ मरखा है ।
(5) अन्म भाभरे –
1. याष्ट्रऩनत को भहामबमोग द्वाया हटाने के मरए दोनों सदन सभान रूऩ से बाग रेते हैं। एक सदन
याष्ट्रऩनत के ववरुर्द् आयोऩ रगाता है तथा दस
ू या जाॉच कयके उसभें ननणथम दे ता है । इस प्रकाय
याष्ट्रऩनत को ऩदच्मुत कयने के मरए दोनों सदनों की सहभनत आवश्मक है ।
2. याष्ट्रऩनत तथा उऩ-याष्ट्रऩनत के चुनाव भें दोनों सदनों को सभान अर्धकाय प्राप्त हैं।
3. उऩ-याष्ट्रऩनत ऩय भहामबमोग का प्रस्ताव प्रस्तुत कयने का अर्धकाय याज्मसबा को है औय रोकसबा
उस ऩय जाॉचकय ननणथम दे सकती है ।
4. सवोच्च न्मामारम तथा उच्च न्मामारमों के न्मामाधीशों को ऩद से हटाने के मरए प्रस्ताव ऩारयत
कयने भें दोनों सदनों को सभान रूऩ से बाग रेने का अर्धकाय है ।
5. रोकसबा अऩने अध्मऺ (Speaker) का ननवाथचन स्वमॊ कयती है , ककन्तु याज्मसबा का सबाऩनत दोनों
सदनों द्वाया चन
ु ा गमा उऩ-याष्ट्रऩनत ही होता है ।
इस प्रकाय स्ऩष्ट्ट है कक रोकसबा की शन्क्तमाॉ याज्मसबा की अऩेऺा फहुत अर्धक हैं , ऩयन्तु कपय बी
याज्मसबा का अऩना ही भहत्त्व है । याज्मसबा को कुछ ऐसे बी अर्धकाय प्राप्त हैं जो रोकसबा को प्राप्त
नहीॊ हैं –

1. अखखर बायतीम सेवाओॊ का गठन तबी ककमा जा सकता है जफ इस आशम का प्रस्ताव याज्मसबा
ऩारयत कय दे
2. याज्म सूची के ककसी ववषम को याज्मसबा द्वाया याष्ट्रीम भहत्त्व का घोवषत ककमे जाने ऩय ही सॊसद
उस ऩय कानून फना सकती है । इस प्रकाय रोकसबा औय याज्मसबा का घननष्ट्ठ सम्फन्ध है ।
प्रश्न 6.
रोकसबा ककस प्रकाय केंद्रीम भॊब्रत्रऩरयषद् को ननमन्न्त्रत कयती है ।
उत्तय :
रोकसबा तथा केंद्रीम भॊत्रत्रऩरयषद् ऩय ननमन्त्रण
रोकसबा तथा केन्द्रीम भन्न्त्रऩरयषद् भें घननष्ट्ठ तथा अटूट सम्फन्ध होता है । केन्द्रीम भन्न्त्रऩरयषद् का
ननभाथण अर्धकाॊशत् रोकसदस्मों भें से ही ककमा जाता है । प्रधानभॊत्री रोकसबा भें फहुभत प्राप्त दर का
नेता होता है । प्रधानभॊत्री भन्न्त्रऩरयषद् के प्रनत औय सम्ऩूणथ भॊब्रत्रऩरयषद् साभूटहक रूऩ से रोकसबा के प्रनत
उत्तयदामी होती है ।

कानन
ू ी दृन्ष्ट्टकोण से रोकसबा का स्थान भन्न्त्रऩरयषद् से उच्चतय होता है । रोकसबा भॊब्रत्रऩरयषद् की
जननी है । भॊब्रत्रऩरयषद् सॊववधान की सीभा के अन्तगथत कामथ कये तथा वह अऩनी शन्क्तमों का दरु
ु ऩमोग न
कये , इसके मरए भॊब्रत्रऩरयषद् की सीभान्तगथत रोकसबा का अनवयत ननमन्त्रण यहता है । रोकसबा
ननम्नमरखखत साधनों द्वाया भॊब्रत्रऩरयषद् ऩय ननमन्त्रण स्थावऩत कयती है –
1. प्रश्न एिॊ ऩयू क-प्रश्न – ऩहरा साधन न्जसके द्वाया रोकसबा भन्न्त्रऩरयषद् ऩय अऩना ननमन्त्रण स्थावऩत
कयती है वह है प्रश्नों तथा ऩयू क-प्रश्नों का ऩछ
ू ना। रोकसबा के सदस्मों को मह अर्धकाय प्राप्त होता है
कक उसके सदस्म भॊब्रत्रमों से उनके कामों से सम्फन्न्धत प्रश्न ऩूछ सकें औय भॊब्रत्रमों का मह दानमत्व है कक
वे उनका उत्तय दें । मटद कोई भॊत्री प्रश्नों का उत्तय सन्तोषजनक ढॊ ग से नहीॊ दे ऩाता है तो उसका
सम्भान जनसाधायण से कभ हो जाता है औय इसका प्रबाव आगाभी ननवाथचनों ऩय बी ऩडता है ।
2. भक्न्त्रऩरयषद् की नीनत की आरोचना ि उसकी स्िीकृनत – रोकसबा सभम-सभम ऩय भन्न्त्रऩरयषद् की नीनत की
आरोचना बी कयती है । सॊसद मटद भन्न्त्रऩरयषद् की साधायण नीनत से अथवा उसके ककसी ववशेष कामथ से
अप्रसन्न है तो वह भन्न्त्रऩरयषद् के ककसी प्रस्ताव, ववधेमक एवॊ उसके द्वाया प्रस्तुत फजट अथवा उसकी
अन्म ककसी बी नीनत को अस्वीकृत कयके भॊब्रत्रभण्डर को त्मागऩत्र दे ने के मरए फाध्म कय सकती है ;
क्मोंकक इसकी इस प्रकाय की अस्वीकृनत का अथथ मह होता है कक भन्न्त्रऩरयषद् को रोकसबा का ववश्वास
प्राप्त नहीॊ है ।
3. किौती प्रस्ताि – रोकसबा के सदस्मों को मह बी अर्धकाय प्राप्त होता है कक वे ककसी ववशेष ववबाग के
कामों व नीनतमों के प्रनत अऩना असन्तोष व्मक्त कयने के मरए उस ववबाग के व्मम के सम्फन्ध भें
कटौती प्रस्ताव प्रस्तुत कय सकें। मटद रोकसबा ऐसे कटौती प्रस्ताव को ऩारयत कय दे तो भॊब्रत्रभण्डर द्वाया
त्मागऩत्र दे ना उसका नैनतक कतथव्म हो जाता है ।
4. कामश स्थगन प्रस्ताि – सॊसद के सदस्मों को मह अर्धकाय बी है कक वे ककसी ववशेष ववषम को रेकय काभ
योको प्रस्ताव प्रस्तुत कय सकते हैं। मटद इस प्रकाय का प्रस्ताव ऩारयत हो जाती है । तो इसका अथथ मह है
कक सदन को उसका ध्मान उस ओय आकवषथत कयना ऩडा। ऐसी दशा भें बी भॊब्रत्रभण्डर की अमोग्मता मसर्द्
हो जाती है तथा उसे नैनतक आधाय ऩय त्मागऩत्र दे ना ऩडता
5. ननन्दा प्रस्ताि – रोकसबा के सदस्म ककसी ववषम को रेकय अथवा सयकाय की ककसी नीनत को रेकय
सम्ऩूणथ भॊब्रत्रभण्डर अथवा ककसी भॊत्री के ववरुर्द् ननन्दा का प्रस्ताव प्रस्तुत कय सकते हैं। मटद ऐस प्रस्ताव
ऩारयत हो जाता है तो भन्न्त्रऩरयषद् को नैनतक आधाय ऩय त्मागऩत्र दे ना ऩडता है ।
6. अविश्िास का प्रस्ताि – रोकसबा के सदस्मों को मह बी अर्धकाय प्राप्त है कक मटद वे सयकाय की साधायण
नीनत से असन्तष्ट्ु ट हों अथवा सम्ऩण
ू थ भॊब्रत्रभण्डर के कक्रमाकराऩों से असन्तष्ट्ु ट हों तो सयकाय के ववरुर्द्
अववश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत कय सकते हैं।
7. याष्ट्रऩनत के बाषण ऩय धन्मिाद प्रस्ताि – सॊसद के प्रत्मेक अर्धवेशन के ऩहरे याष्ट्रऩनत सदन के सम्भख

बाषण दे ता है । इस बाषण भें याष्ट्र की सभस्माओॊ के प्रनत सदन का ध्मान आकवषथत ककमा जाता है उसके
ऩश्चात ् रोकसबा उस ऩय धन्मवाद प्रस्ताव ऩारयत कयती है ।
8. आकरन ससभनत तथा रोक रेखा ससभनत – रोकसबा की मे दोनों समभनतमाॉ बी भॊब्रत्रऩरयषद् को ननमन्न्त्रत
कयने भें भहत्त्वऩूणथ बूमभका ननबाती हैं। भॊब्रत्रऩरयषद् द्वाया यखी हुई अनुदान की भाॉगों को आकरन समभनत
(Estimate Committee) के सम्भुख यखा जाता है तथा मह समभनत सदन को अऩना प्रनतवेदन दे ती है ।
इससे गरत भाॉगों का ननस्तायण हो जाता है । इसके अनतरयक्त जफ धन व्मम कय मरमा जाता है तो रोक
रेखा समभनत (Public Accounts Committee) क्रभश् उस खचथ का ऩयीऺण कयती है । इससे सयकाय के
असॊगत व्ममों ऩय अॊकुश रगता है तथा सयकाय की जवाफदे ही फढ़ जाती है । अत: धन के दरु
ु ऩमोग की
सम्बावनाएॉ कभ हो जाती हैं। इस प्रकाय उक्त साधनों से रोकसबा भॊब्रत्रभण्डर का भागथ ननदे मशत कयती है ,
उस ऩय ननमन्त्रण स्थावऩत कयती है तथा उसके कामों की दे ख-ये ख कयती है । रोकसबा की मह शन्क्त
फहुत ही भहत्त्वऩण
ू थ एवॊ प्रबावकायी है ।
प्रश्न 7.
सॊसद की ववमबन्न समभनतमों का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
उत्तय :
सॊसद की ससभनतमाॉ
बायतीम सॊसद की ननम्नमरखखत समभनतमाॉ हैं –

1. कामश ऩयाभर्शदात्री ससभनत – मह समभनत सॊसद के सभस्त कामों के सॊचारन भें सहामता कयती है । इस
समभनत भें 15 सदस्म होते हैं तथा रोकसबा का अध्मऺ ही इस समभनत का अध्मऺ होता है । सदन का
कामथ आयम्ब होते ही इस समभनत का गठन ककमा जाता है । मह समभनत सदन के कामों को सॊचामरत
कयके उसके मरए ननमभों का ननभाथण कयती है ।
2. माचचका ससभनत – इस समभनत भें 15 सदस्म होते हैं न्जनका नाभ-ननदे शन अध्मऺ द्वाया सदन के आयम्ब
भें ही ककमा जाता है । इस समभनत का कामथ व्मन्क्तमों तथा रोकसबा द्वाया प्रेवषत मार्चकाओॊ ऩय सदन
को ऩयाभशथ दे ना है । मह समभनत प्रत्मेक मार्चका की जाॉच कयती है , जो उसे सौंऩी जाती है ।
3. प्रातकरन ससभनत – इस समभनत भें 30 सदस्म होते हैं , न्जनका चन
ु ाव प्रत्मेक वषथ रोकसबा के सदस्मों भें
से आनुऩानतक प्रनतननर्धत्व की एकर सॊक्रभणीम ऩर्द्नत द्वाया होता है । इस समभनत का कामथ होता है कक
वह प्रत्मेक ववबाग के आम-व्मम अथवा वावषथक ववत्तीम वववयण के प्राक्करनों का सभम-सभम ऩय
ववश्रेषण कये तथा सदन को मभतव्मनमता के सुझाव दे ।
4. रोक-रेखा ससभनत – इस समभनत का चुनाव प्रनत वषथ सॊसद के दोनों सदनों भें होता है । इसभें दोनों सदनों
के सदस्म मरए जाते हैं। इस समभनत की कुर सदस्म सॊख्मा 22 है , न्जनभें से 15 सदस्म रोकसबा के तथा
7 सदस्म याज्मसबा के होते हैं। इन सदस्मों का चुनाव बी सभानुऩानतक प्रनतननर्धत्व प्रणारी के आधाय ऩय
होता है । समभनत के अध्मऺ की ननमन्ु क्त रोकसबा का अध्मऺ कयता है । इस समभनत का कामथ है —रेखा-
ऩयीऺण। प्रनत वषथ मह समभनत ननमन्त्रक तथा भहारेखा ऩयीऺक के वववयणों की जाॉच कयती है तथा अऩना
प्रनतवेदन सॊसद के सम्भख
ु यखती है । समभनत की रयऩोटथ सयकाय के मरए चेतावनी का कामथ कयती है ।
5. प्रिय ससभनत – मह वह समभनत है जो साधायणतमा प्रत्मेक ववधेमक ऩय अऩने ववचाय तथा उससे
सम्फन्न्धत वववयण सदन के सम्भख
ु प्रस्तत
ु कयती है । प्रवय समभनत ककसी ववधेमक-ववशेष हे तु फनाई जाती
है औय रयऩोटथ दे ने के फाद उसका सभाऩन हो जाता है । प्रत्मेक ऐसी समभनत के ननभाथण का प्रस्ताव , उसके
सदस्मों की सॊख्मा औय उसकी सदस्मता का ननभाथण ववधेमक के प्रस्ताव के अनुसाय होता है । प्रवय
समभनतमों के अध्मऺ की ननमुन्क्त सदन का अध्मऺ कयता है ।
6. व्मक्ततगत सदस्मों के विधेमक तथा प्रस्तािों की ससभनत – इस समभनत भें 15 सदस्म होते हैं। इन सदस्मों को
रोकसबा की अध्मऺ एक वषथ के मरए भनोनीत (Nominate) कयता है । इस समभनत का भुख्म कामथ गैय-
सयकायी सदस्मों के द्वाया प्रस्तुत ववधेमकों की जाॉच कयना है । समभनत मह सुझाव बी प्रस्तुत कयती है कक
गैय-सयकायी सदस्मों के ववधेमकों के मरए ककतना सभम टदमा जाए।
7. विर्ेषाचधकाय ससभनत – इस समभनत की सदस्म सॊख्मा 15 होती है । सदन के प्रायम्ब भें अध्मऺ द्वाया
सदस्मों का भनोनमन ककमा जाता है । मटद सॊसद तथा उसके ववशेषार्धकायों का भाभरा उठ खडा हो तो
मह समभनत उसकी जाॉच कयती है तथा इसके द्वाया प्रस्तुत वववयण के अनुसाय ही सदन आगे की
कामथवाही कयता है ।
8. ननमभ ससभनत – इस समभनत भें बी 15 सदस्म होते हैं, न्जन्हें रोकसबा का अध्मऺ एक वषथ के मरए
ननमुक्त कयता है । मह समभनत सॊसद द्वाया ननमभथत ननमभों की जाॉच कयती है । इस समभनत को इन ननमभों
भें सॊशोधन के मरए सॊस्तुनत कयने का बी अर्धकाय है ।
9. सॊसदात्भक ससभनत – मह समभनत सॊसद से सम्फन्न्धत प्रश्नों ऩय ववचाय कयती है तथा सदन के सभऺ
अऩने वववयण को प्रस्तुत कयती है ।
10. सयकाय द्िाया प्रदत्त आश्िासन ससभनत – इस समभनत का भुख्म कामथ मह जाॉच कयना है कक भॊब्रत्रमों ने
सभम-सभम ऩय जो आश्वासन टदए हैं , वे कहाॉ तक ऩयू े ककए गए हैं। समभनत सदन को रयऩोटथ प्रस्तत
ु कयती
है औय फताती है कक भॊब्रत्रमों ने अऩने आश्वासनों, प्रनतऻाओॊ औय वचनों का ऩारन ककस सीभा तक ककमा
है । इस समभनत भें 15 सदस्म होते हैं , न्जनकी ननमन्ु क्त रोकसबा का अध्मऺ एक वषथ के मरए कयता है ।
11. अधीनस्थ विचध ससभनत – मह समभनत ऩमथवेऺण कयती है कक याज्मों तथा अन्म ववमबन्न प्रशासननक
ननकामों द्वाया ववर्ध-ननभाथण का कामथ सभर्ु चत रूऩ से चर यहा है मा नहीॊ सॊववधान तथा अन्म ववर्धमों
का सम्मक् ऩारन अधीनस्थ प्रार्धकायी कय यहे हैं मा नहीॊ। इन सबी फातों की जाॉच तथा सदन को इन
सबी फातों से सभम-सभम ऩय अवगत कयाना इस समभनत का प्रभख
ु कामथ है ।
12. अनस ु चू चत जनजानतमों के कल्माण सम्फन्धी ससभनत – इस समभनत भें 30 से अर्धक
ु चू चत जानतमों तथा अनस
सदस्म नहीॊ होते हैं। ककसी भॊत्री को इस समभनत का सदस्म भनोनीत नहीॊ ककमा जा सकता है । इसके
सदस्मों की ऩदावर्ध एक वषथ से अर्धक नहीॊ होती है । मह अनुसूर्चत जानतमों औय जनजानतमों के कल्माण
सम्फन्धी भाभरों ऩय ववचाय कयती है औय अऩनी रयऩोटथ दे ती है ।
इस समभनतमों के अनतरयक्त रोकसबा के अध्मऺ मा याज्मसबा के सबाऩनत द्वाया कृवष सम्फन्धी समभनत
(22 सदस्म), ऩमाथवयण औय वन सम्फन्धी समभनत (22 सदस्म), ववऻान औय प्रौद्मोर्गकी सम्फन्धी समभनत
(22 सदस्म), साभान्म प्रमोजन समभनत, आवास समभनत (12 सदस्म), ऩस्
ु तकारम समभनत (6 सदस्म), साॊसदों
के वेतन-बत्ते सम्फन्धी सॊमुक्त समभनत तथा अन्म सॊसदीम समभनतमों का गठन ककमा जा सकता है ।

प्रश्न 8.
बायतीम सॊसद की ववर्ध-ननभाथण प्रकक्रमा का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊसद की विचध-ननभाशण प्रकिमा
सयकाय के तीन अॊगों भें सॊसद ववर्ध-ननभाथण सम्फन्धी दानमत्वों को ऩूणथ कयती है । ववधामी ऺेत्र भें सॊसद
को सवोच्च शन्क्त प्रदान की गमी है । सॊसद द्वाया ननमभथत कानून एक ववशेष प्रकक्रमा से गुजयने के ऩश्चात ्
ववर्ध का रूऩ धायण कयते हैं। इस सम्फन्ध भें साधायण ववधेमकों व ववत्तीम ववधेमकों के सम्फन्ध भें
ऩथ
ृ क् -ऩथ
ृ क् प्रकक्रमाओॊ को अऩनामा गमा है । ववर्ध-ननभाथण सम्फन्धी सबी ववधेमक सॊसद के सम्भुख
प्रस्तुत ककमे जाते हैं। तत्ऩश्चात ् प्रत्मेक ववधेमक ननम्नमरखखत तीन वाचनों से होकय गुजयता है –

1. प्रथभ िाचन – प्रथभ वाचन का आशम गजट भें प्रकामशत ववधेमक को सॊसद भें प्रस्तुत कयने से होता
है ।
2. द्वितीम िाचन – द्ववतीम वाचन के अन्तगथत गजट के मसर्द्ान्तों व उऩफन्धों ऩय सॊसद द्वाया गहन
ववचाय-ववभशथ ककमा जाता है ।
ृ ीम िाचन – तत
3. तत ृ ीम वाचन, जो ववधेमक ऩय होने वारा अन्न्तभ व ननणाथमक वाचन होता है , भें
ववधेमक को स्वीकाय कयने हे तु ननणथम मरमा जाता है ।
विधेमकों के प्रकाय
ववधेमकों को दो बागों भें ववबान्जत ककमा जा सकता है –

1. सयकायी विधेमक – इस प्रकाय के ववधेमकों के अन्तगथत साधायण व ववत्तीम दो प्रकाय के ववधेमक आते
हैं तथा इन्हें ककसी भॊत्री द्वाया सॊसद भें प्रस्तुत ककमा जाता है ।
2. गैय-सयकायी विधेमक – ऐसे साधायण ववधेमक, न्जन्हें भॊब्रत्रमों के अनतरयक्त याज्म ववधान भण्डर के
अन्म सदस्मों द्वाया प्रस्तुत ककमा जा सकता है , गैय-सयकायी ववधेमक कहराते हैं।
साधायण विधेमक
साधायण ववधेमक भॊब्रत्रमों अथवा सॊसद के ककसी सदस्म के द्वाया सम्फन्न्धत सदन भें प्रस्तुत ककमे जा
सकते हैं। ककसी बी प्रस्ताववत साधायण ववधेमक को ववर्ध का रूऩ धायण कयने से ऩूवथ अग्रमरखखत
प्रकक्रमाओॊ से होकय गुजयना ऩडता है –

(1) प्रथभ िाचन – साधायण ववधेमक को सॊसद भें प्रस्तुत कयने के मरए एक भाह ऩूवथ सूचना दे नी ऩडती है ।
भॊत्री द्वाया ववधेमक के प्रस्तुतीकयण कयने की नतर्थ अध्मऺ द्वाया ननन्श्चत की जाती है । ननन्श्चत नतर्थ
ऩय अध्मऺ भॊत्री को फर
ु ाता है तथा भॊत्री ववधेमक के सम्फन्ध भें सभस्त जानकायी सदन के सभऺ प्रस्तत

कयता है । इस वाचन के अन्तगथत ववधेमक ऩय ककसी प्रकाय का कोई वाद-वववाद नहीॊ होता , अवऩतु केवर
मह ननणथम ककमा जाता है कक ववधेमक ऩय आगे की कामथवाही की जाए मा नहीॊ। सदन भें स्वीकृत हो जाने
ऩय ववधेमक ऩय आगे की कामथवाही की जाती है । ववधेमक को प्रस्तुत कयने व उसे ववचायाथथ आगे प्रेवषत
कयने की इस सम्ऩण
ू थ प्रकक्रमा को प्रथभ वाचन कहा जाता है ।
(2) द्वितीम िाचन – प्रथभ वाचन के अन्तगथत प्रस्ताव के ववचायाथथ स्वीकाय होने के ऩश्चात ् ववधेमक की
एक-एक प्रनत सदन के सदस्मों भें फाॉट दी जाती है । साधायणतमा प्रथभ वाचन भें प्रस्तत
ु ीकयण के दो टदन
ऩश्चात ् ववधेमक ऩय द्ववतीम वाचन प्रायम्ब होता है न्जसभें ववधेमक के भूर मसर्द्ान्तों ऩय ववचाय ककमा
जाता है । कुछ ववशेष ववधेमकों के अनतरयक्त शेष सबी ववधेमक ववचायाथथ प्रवय समभनत को सौंऩ टदमे जाते
हैं।
प्रिय ससभनत – गहन ववचाय-ववभशथ हे तु सदन द्वाया एक प्रवय समभनत की ननमुन्क्त की जाती है , जो सदन के
कुछ सदस्मों का एक सॊगठन होता है । प्रवय समभनत भें ववधेमक के प्रत्मेक ऩऺ ऩय ववचाय कयने के ऩश्चात ्
ववधेमक से सम्फन्न्धत रयऩोटथ सदन को प्रस्तुत की जाती है । समभनत द्वाया प्रस्तुत रयऩोटथ सबाऩनत के
द्वाया अनभ
ु ोटदत होती है ।
प्रनतिेदन स्तय – प्रवय समभनत द्वाया प्रेवषत प्रनतवेदन ऩय सदन द्वाया गहन ववचाय-ववभशथ ककमा जाता है ।
इस स्तय ऩय ववधेमक को मा तो उसी रूऩ भें स्वीकाय कय मरमा जाता है न्जस रूऩ भें उसे प्रवय समभनत
सदन को प्रेवषत कयती है मा कपय सदन द्वाया उसभें आवश्मक सॊशोधन ककमे जा सकते हैं। इस प्रकाय
द्ववतीम वाचन भें ववधेमक के प्रत्मेक ऩऺ ऩय ववचाय कयने तथा उसभें आवश्मकतानस
ु ाय ऩरयवतथन कयने के
ऩश्चात ् द्ववतीम वाचन की प्रकक्रमा सभाप्त हो जाती है ।
ृ ीम िाचन – प्रवय समभनत की रयऩोटथ ऩय ववचाय कयने के ऩश्चात ् ववधेमक के तत
(3) तत ृ ीम वाचन की नतर्थ
ननन्श्चत कय दी जाती है । मह वाचन ववधेमक को अन्न्तभ चयण होता है । इस वाचने भें प्रस्तावक द्वाया
ववधेमक को ऩारयत कयने का प्रस्ताव प्रस्तुत ककमा जाता है । इस वाचन भें ववधेमक के साभान्म मसर्द्ान्तों
ऩय फहस कय उसकी बाषा को अर्धक-से-अर्धक स्ऩष्ट्ट व सयर फनाने का प्रमत्न ककमा जाता है । वास्तव
भें, ववधेमक ऩय तत
ृ ीम वाचन की अवस्था भात्र औऩचारयकता ऩूणथ कयने की होती है । इस अवस्था भें
ववधेमक को यद्द कयने की सम्बावनाएॉ फहुत कभ होती हैं।
ू या सदन – प्रथभ सदन भें ऩारयत हो जाने के ऩश्चात ् ववधेमक द्ववतीम सदन को प्रेवषत कय टदमा जाता
दस
है । मटद द्ववतीम सदन बी ववधेमक को अऩने फहुभत से ऩास कय दे ता है तो ववधेमक याष्ट्रऩनत की
अनभ ु नत के मरए बेज टदमा जाता है , ऩयन्तु मटद द्ववतीम सदन द्वाया ववधेमक को अस्वीकाय कय टदमा
जाता है तो याष्ट्रऩनत सॊसद की सॊमुक्त फैठक फुराकय फहुभत से वववाद का सभाधान कयता है ।
याष्ट्रऩनत की स्िीकृनत – दोनों सदनों द्वाया फहुभत से ऩास हो जाने के ऩश्चात ् ववधेमक याष्ट्रऩनत के हस्ताऺय
हे तु प्रस्तुत ककमा जाता है । मटद याष्ट्रऩनत ववधेमक ऩय अऩनी स्वीकृनत प्रदान कय दे ता है तो ववधेमक
कानन
ू का रूऩ धायण कय रेता है , ऩयन्तु मटद याष्ट्रऩनत ववधेमक के सम्फन्ध भें सॊशोधन हे तु कोई सझ
ु ाव
दे कय ववधेमक को वाऩस बेज दे ता है तो ऐसी न्स्थनत भें सॊसद ववधेमक ऩय ऩुनववथचाय कयती है । मटद ऩुन्
सॊसद द्वाया ववधेमक ऩारयत कय टदमा जाता है । तो ववधेमक ऩय याष्ट्रऩनत को अऩनी स्वीकृनत दे नी ऩडती
है ।
इस प्रकाय कोई बी अववत्तीम ववधेमक अन्तत् कानून का रूऩ धायण कय रेता है ।

वित्त विधेमक
ववत्त ववधेमक वॊह हे न्जसका सम्फन्ध याजस्व अथवा व्मम से होता है । सॊववधान द्वाया ववत्त ववधेमक के
ऩारयत होने की प्रकक्रमा को साधायण ववधेमकों से ऩथ
ृ क् यखा गमा है । सॊवैधाननक प्रावधान के अनुसाय ववत्त
ववधेमकों को याष्ट्रऩनत की अनुभनत से केवर रोकसबा भें ही प्रस्ताववत ककमा जा सकता है तथा ककसी बी
ववधेमक के सम्फन्ध भें मह वववाद उत्ऩन्न होने ऩय कक वह ववत्त ववधेमक है अथवा नहीॊ , ननणथम रोकसबा
अध्मऺ द्वाया मरमा जाता है । रोकसबा भें प्रस्ताववत धन ववधेमक के रोकसबा द्वाया ऩास ककमे जाने के
ऩश्चात ् ववधेमक याज्मसबा के ववचायाथथ बेजा जाता है । इस सम्फन्ध भें याज्मसबा को प्राप्त शन्क्तमाॉ
अत्मन्त सीमभत हैं। याज्मसबा ककसी बी धन ववधेमक को अऩनी अस्वीकृनत व्मक्त कयने हे तु केवर 14
टदन तक योक सकती है । 14 टदन की सभमावर्ध के अन्दय मा तो वह इस ववधेमक के सम्फन्ध भें
सॊशोधन-सम्फन्धी कुछ सझ
ु ाव दे कय रोकसबा को प्रेवषत कय दे ती है अन्मथा 14 टदन के ऩश्चात ् ववत्त
ववधेमक याज्मसबा की स्वीकृनत के ब्रफना बी ऩारयत सभझा जाता है । धन ववधेमक ऩय टदमे जाने वारे
याज्मसबा के ऩयाभशों को स्वीकाय कयना मा न कयना रोकसबा की इच्छा ऩय ननबथय कयता है । दोनों
सदनों द्वाया फहुभत से ऩारयत होने के ऩश्चात ् ववधेमक याष्ट्रऩनत के हस्ताऺय के फाद कानून का रूऩ
धायण कय रेता है ।

ववत्त ववधेमकों के सम्फन्ध भें कुछ आवश्मक तथ्म ननम्नमरखखत हैं –

1. धन ववधेमक याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत के ऩश्चात ् ही रोकसबा भें प्रस्तुत ककमे जाते हैं।
2. धन ववधेमकों को सॊसद के दोनों सदनों की सॊमुक्त समभनत को नहीॊ सौंऩा जाता।
3. धन ववधेमकों के सम्फन्ध भें एक ववशेष तथ्म मह है कक साधायण ववधेमकों की बाॉनत इन ववधेमकों
को याष्ट्रऩनत द्वाया ऩन
ु ववथचाय के मरए सदन को नहीॊ रौटामा जा सकता।
प्रश्न 9.
बायतीम सॊसद की न्स्थनत औय बमू भका का ऩयीऺण कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊसद की क्स्थनत औय बसू भका
बायतीम सॊसद ब्रिटटश सॊसद के सभान सम्प्रबु नहीॊ है । नॉभथन डी० ऩाभय के अनुसाय , ―बायतीम सॊसद
ववस्तत
ृ शन्क्तमों का प्रमोग कयती है तथा भहत्त्वऩूणथ कामों का सम्ऩादन कयती है , तथावऩ इसके कामों ऩय
अनेक प्रनतफन्ध हैं। सॊघीम प्रणारी तथा सॊववधान द्वाया उच्चतभ न्मामारम को न्मानमक ऩुनयावरोकन की
शन्क्त प्रदान कयने से इसकी शन्क्तमाॉ सीमभत हो गई हैं। ‖

वास्तव भें , मरखखत सॊववधान, सॊववधान की सवोच्चता तथा न्मानमक ऩन


ु यावरोकन की प्रकक्रमा ने सॊसद ऩय
सीभाएॉ अवश्म रगाई हैं , ऩयन्तु सॊसद दे श की सवोच्च प्रनतननर्ध सॊस्था है , उसे सॊववधान भें सॊशोधन कयने
का अर्धकाय है । अत् स्ऩष्ट्ट है कक बायतीम सॊसद की न्स्थनत ‗सॊसदीम सम्प्रबत
ु ा‘ तथा ‗न्मानमक सवोच्चता
के फीच की है ।

बायत भें सॊसद की प्रबावी बूमभका के सम्फन्ध भें सभम-सभम ऩय सायगमबथत आरोचनाएॉ की जाती यही हैं।
इसका प्रभुख कायण मह है कक प्रधानभॊत्री औय भॊब्रत्रभण्डर का सॊसद ऩय सदा दफाव फना यहा है । प्रधानभॊत्री
औय भॊब्रत्रभण्डर जो बी ननणथम रेते हैं , सॊसद उनका अनुभोदन कय दे ती है । डॉ० रक्ष्भीरार मसॊघवी के
अनुसाय, ―मह सत्म है कक कानून फनाने की तथा कय व शुल्क रगाने की सवोऩरय सत्ता सॊसद भें ननटहत
है , ककन्तु वास्तववकता मह है कक अर्धननमभों का फीजायोऩण औय अभ्मुदम भॊत्रारमों भें होता है , सॊसद भें
केवर भॊत्रोच्चायण के साथ उऩनमन सॊस्काय होता है औय उन्हें औऩचारयक मऻोऩवीत दे टदमा जाता है ।
इस कथन से स्ऩष्ट्ट होता है कक भॊब्रत्रभण्डर के प्रबावशारी व्मन्क्तत्व तथा उसके दर के सॊसद भें फहुभत
होने से सॊसद के अर्धकाय प्रधानभॊत्री औय भॊब्रत्रभण्डर ने ग्रहण कय मरए हैं। शन्क्तशारी ववऩऺ के अबाव
भें सॊसद; प्रधानभॊत्री औय भॊब्रत्रभण्डर की इच्छानस
ु ाय ही कामथ कयती है । वऩछरे कुछ वषों भें रोकसबा के
स्तय भें जो अबूतऩूवथ र्गयावट दे खने को मभरी है , वह रोकतन्त्र के मरए र्चन्ता का ववषम है । साॊसदों के
आचयण को दे खकय हीये न भक
ु जी ने कहा है , बायतीम सॊसद स्वणथ मग
ु प्राप्त ककए ब्रफना ही ऩतन की ओय
अग्रसय हो यही है ।‖

बायतीम सॊसद के ऩयाबव के मरए ननम्नमरखखत कायण उत्तयदामी भाने जा सकते हैं –

1. सॊसद सदस्म ऩायस्ऩरयक वाद-वववाद तथा आयोऩ-प्रत्मायोऩों के कायण अऩना फहुभूल्म सभम नष्ट्ट
कय दे ते हैं, न्जससे वे कानून सम्फन्धी भाभरों ऩय गम्बीयता से ववचाय नहीॊ कय ऩाते।
2. वतथभान भें याज्म के कामथ इतने अर्धक ववस्तत
ृ हो गए हैं कक प्रत्मेक ववषम ऩय ववचाय कयने के
मरए न तो सॊसद के ऩास सभम है औय न ही सदस्मों को तकनीकी जानकायी है । अत: सॊसद को
नौकयशाही द्वाया की गई सूचनाओॊ ऩय ननबथय यहना ऩडता है न्जनकी प्राभाखणकता सदै व सॊटदग्ध
होती है ।
3. सॊसद भें साधायणतमा सयकायी ववधेमक ही ऩारयत हो ऩाते हैं। दरीम अनुशासन के कायण सदन के
सदस्मों को इनका सभथथन कयना ही ऩडता है । ऐसी न्स्थनत भें व्मवहाय भें ववर्ध-ननभाथण कामथ सॊसद
का न होकय भॊब्रत्रभण्डर का हो गमा है ।
4. सॊसद की ववत्तीम शन्क्तमाॉ भात्र औऩचारयक हैं , क्मोंकक न्जस दर को रोकसबा भें फहुभत होता है ,
वही सत्ताधायी होती है औय इसके मरए ववत्त ववधेमक ऩारयत कयवाना कटठन कामथ नहीॊ होता है ।
5. याष्ट्रऩनत को अध्मादे श जायी कयने का अर्धकाय प्राप्त है । इन अध्मादे शों को वही भान्मता प्राप्त
होती है , जो सॊसद द्वाया ऩारयत कानूनों को प्राप्त होती है ।
बायतीम सॊसद की अनेक कमभमों के फावजूद बी इसने दे श की याष्ट्रीम एकता औय अखण्डता को फनाए
यखने के मरए अनेक भहत्त्वऩण
ू थ कामथ ककए हैं। आज सॊसद की गरयभा को ऊॉचा उठाने के मरए इसभें
सुधाय की आवश्मकता है ।

प्रश्न 1.
सवोच्च न्मामारम के भुख्म न्मामाधीश की ननमुन्क्त कौन कयता है ?
(क) सॊसद
(ख) प्रधानभन्त्री
(ग) याष्ट्रऩनत
(घ) भन्न्त्रऩरयषद्
उत्तय :
(ग) याष्ट्रऩनत।
प्रश्न 2.
बायत का सवोच्च न्मामारम कहाॉ न्स्थत है ?
(क) इराहाफाद भें
(ख) नमी टदल्री भें
(ग) भुम्फई भें
(घ) चेन्नई भें
उत्तय :
(ख) नमी ददल्री भें।
प्रश्न 3.
सवोच्च न्मामारम का न्मामाधीश अऩने ऩद ऩय कामथयत यहता है –
मा
सवोच्च न्मामारम के न्मामाधीश की अवकाश प्राप्त कयने की आमु है –
(क) 58 वषथ की आमु तक
(ख) 60 वषथ की आमु तक
(ग) 65 वषथ की आमु तक
(घ) 62 वषथ की आमु तक
उत्तय :
(ग) 65 िषश की आमु तक
प्रश्न 4.
बायत भें सॊववधान का सॊयऺक कौन है ?
(क) याष्ट्रऩनत
(ख) प्रधानभन्त्री
(ग) सवोच्च न्मामारम
(घ) सॊसद
उत्तय :
(ग) सिोच्च न्मामारम
प्रश्न 5.
उच्चतभ न्मामारम भें भुख्म न्मामाधीश के अनतरयक्त कुर ककतने न्मामाधीश होते हैं ?
(क) 23
(ख) 24
(ग) 30
(घ) 26
उत्तय :
(ग) 30.
प्रश्न 6.
उच्चतभ न्मामारम के न्मामाधीशों की ननमुन्क्त ककसकी सराह ऩय की जाती है ?
(क) केन्द्रीम ववर्ध भन्त्री
(ख) प्रधानभन्त्री
(ग) भहान्मामवादी
(घ) बायत के भुख्म न्मामाधीश
उत्तय :
(घ) बायत के भख्
ु म न्मामाधीर्
प्रश्न 7.
सॊववधान के अनुसाय उच्चतभ न्मामारम की कामथवाटहमों की अर्धकृत बाषा है
(क) केवर अॊग्रेजी
(ख) अॊग्रेजी तथा टहन्दी
(ग) अॊग्रेजी तथा कोई बी ऺेत्रीम बाषा
(घ) अॊग्रेजी तथा आठवीॊ सूची भें ननटदथ ष्ट्ट बाषा
उत्तय :
(क) केिर अॊग्रेजी।
प्रश्न 8.
बायत भें न्मानमक ऩुनयवरोकन का मसर्द्ान्त मरमा गमा है
(क) िाॊस के सॊववधान से
(ख) जभथनी के सॊववधान से
(ग) सॊमक्
ु त याज्म अभेरयका के सॊववधान से
(घ) कनाडा के सॊववधान से
उत्तय :
(ग) सॊमत ु त याज्म अभेरयका के सॊविधान से
प्रश्न 9.
सॊववधान के ककस अनुच्छे द के अनुसाय सवोच्च न्मामारम बायतीम नागरयकों के भौमरक अर्धकायों की यऺा
कयता है ?
(क) अनुच्छे द 29
(ख) अनुच्छे द 31
(ग) अनुच्छे द 33
(घ) इनभें से कोई नहीॊ
उत्तय :
(घ) इनभें से कोई नहीॊ
प्रश्न 10.
उच्च न्मामारम से ऩयाभशथ भाॉगने का अर्धकाय ककसको है ?
(क) प्रधानभन्त्री को
(ख) रोकसबा अध्मऺ को
(ग) याष्ट्रऩनत को
(घ) ववर्धभन्त्री को
उत्तय :
(ग) याष्ट्रऩनत को
प्रश्न 11.
उच्च न्मामारम के वह कौन-से भख्
ु म न्मामाधीश थे , न्जन्हें कामथकायी याष्ट्रऩनत के रूऩ भें कामथ कयने का
अवसय प्राप्त हुआ?
(क) गजेन्द्र गडकय
(ख) एभ० टहदामतुल्राह
(ग) के० सब्ु फायाव
(घ) ऩी० एन० बगवती
उत्तय :
(ख) एभ० दहदामतल्ु राह
प्रश्न 12.
उच्च न्मामारमों के न्मामाधीशों की ननमुन्क्त ककसकी सराह ऩय की जाती है ?
(क) केन्द्रीम ववर्ध भन्त्री
(ख) प्रधानभन्त्री
(ग) भहान्मामवादी
(घ) बायत के भुख्म न्मामाधीश
उत्तय :
(घ) बायत के भख्
ु मॊ न्मामाधीर्
प्रश्न 13.
उच्च न्मामारम के न्मामाधीशों की सेवाननवन्ृ त्त आमु क्मा है ?
(क) 65 वषथ
(ख) 60 वषथ
(ग) 58 वषथ
(घ) 62 वषथ
उत्तय :
(घ) 62 िषश
प्रश्न 14.
सवोच्च न्मामारम के कामथ-ऺेत्र को फढ़ामा जा सकता है ?
(क) सॊसद द्वाया
(ख) याष्ट्रऩनत द्वाया।
(ग) भॊब्रत्रभॊडर द्वाया
(घ) प्रधानभॊत्री द्वाया
उत्तय :
(क) सॊसद द्िाया।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
न्मामऩामरका ककसके प्रनत जवाफदे ह है ?
उत्तय :
न्मामऩामरका दे श के सॊववधान, रोकतान्न्त्रक ऩयम्ऩया औय जनता के प्रनत जवाफदे ह है ।
प्रश्न 2.
भुख्म न्मामाधीश सटहत उच्चतभ न्मामारम के न्मामाधीशों की सॊख्मा ककतनी है ?
उत्तय :
बायत के उच्चतभ न्मामारम भें एक भुख्म न्मामाधीश तथा 30 अन्म न्मामाधीश हैं। इस प्रकाय : भुख्म
न्मामाधीश सटहत उच्चतभ न्मामारम भें न्मामाधीशों की कुर सॊख्मा 31 है ।
प्रश्न 3.
उच्चतभ न्मामारम के भुख्म न्मामाधीश की ननमुन्क्त कौन कयता है ?
उत्तय :
उच्चतभ न्मामारम के भुख्म न्मामाधीश की ननमुन्क्त याष्ट्रऩनत कयता है ।
प्रश्न 4.
उच्चतभ न्मामारम भें न्मामाधीशों की ननमुन्क्त कैसे की जाती है ?
उत्तय :
बायत के याष्ट्रऩनत द्वाया उच्चतभ न्मामारम भें भुख्म न्मामाधीश के ऩयाभशथ ऩय अन्म न्मामाधीशों की
ननमन्ु क्त की जाती है ।
प्रश्न 5.
उच्चतभ न्मामारम के न्मामाधीश का कामथकार ककतना होता है ?
उत्तय :
उच्चतभ न्मामारम के न्मामाधीश अऩने ऩद ऩय 65 वषथ की आमु तक कामथयत यह सकते हैं।
प्रश्न 6.
उच्चतस न्मामारम से ऩयाभशथ भाॉगने का अर्धकाय ककसको है ?
उत्तय :
उच्चतभ न्मामारम से ऩयाभशथ भाॉगने का अर्धकाय याष्ट्रऩनत को है ।
प्रश्न 7.
उच्चतभ न्मामारम के ककसी न्मामाधीश के ऩदच्मुनत का प्रस्ताव कयने के मरए सॊववधान भें क्मा आधाय
फताए गए हैं?
उत्तय :
केवर ‗प्रभाखणत कदाचाय तथा ‗असभथथता की न्स्थनत भें ही उसके ववरुर्द् ऩदच्मुनत का प्रस्ताव प्रस्तुत
ककमा जा सकता है ।
प्रश्न 8.
बायत का उच्चतभ न्मामारम कहाॉ ऩय न्स्थत है ?
उत्तय :
बायत का उच्चतभ न्मामारम नई टदल्री भें न्स्थत है ।
प्रश्न 9.
बायत का उच्चतभ न्मामारम न्मानमक ऩुनयावरोकन के अर्धकाय का प्रमोग ककस आधाय ऩय कयता है ?
उत्तय :
न्मामारम इस अर्धकाय का प्रमोग ‗कानून द्वाया स्थावऩत प्रकक्रमा द्वाया कयता है ।
प्रश्न 10.
उच्चतभ न्मामारम के दो अर्धकाय फताइए।
उत्तय :
1. भूर अर्धकायों की यऺा
2. सॊववधान का सॊयऺण
प्रश्न 11.
दे श भें न्मानमक सकक्रमता का भुख्म साधन क्मा है ?
उत्तय :
बायत भें न्मानमक सकक्रमता को भुख्म साधन जनटहत मार्चका मा साभान्जक व्मवहाय मार्चका ( Social
Action Litigation) है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सवोच्च न्मामारम के भुख्म कामथ क्मा हैं ?
उत्तय :
सवोच्च न्मामारम के भुख्म कामथ ननम्नमरखखत हैं –
1. केन्द्र सयकाय व याज्म सयकायों के भध्म होने वारे वववादों की सन
ु वाई कयना।
2. उच्च न्मामारम के ननणथम के ववरुर्द् अऩीरों की सुनवाई कयना।
3. याष्ट्रऩनत को न्मानमक प्रश्नों ऩय ऩयाभशथ दे ना।
4. नागरयकों के भूर अर्धकायों की सुयऺा कयना।
5. सॊववधान की व्माख्मा तथा सुयऺा कयना।
6. अमबरेख न्मामारम के रूऩ भें कामथ कयना।
7. सॊघात्भक व्मवस्था को फनाए यखना।
8. ऩरयवनतथत साभान्जक तथा आर्थथक ऩरयन्स्थनतमों भें सॊववधान की न्मामसॊगत तथा तकथसॊगत व्माख्मा
प्रस्तत
ु कयना। प्रश्न
प्रश्न 2.
न्मानमक सकक्रमता का भानव के साभान्जक जीवन ऩय क्मा प्रबाव ऩडा है ? सॊऺेऩ भें वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
न्मानमक सकक्रमता का भानव-जीवन ऩय ननम्नमरखखत प्रबाव ऩडा है –
1. उच्चतभ न्मामारम ने जनटहतकायी वववादों को भान्मता प्रदान की है । इसके अनुसाय कोई बी
व्मन्क्त ककसी ऐसे सभह
ू अथवा वगथ की ओय से भक
ु दभा रड सकता है न्जसको उसके कानन
ू ों
अथवा सॊवैधाननक अर्धकायों से वॊर्चत कय टदमा गमा है ।
2. उच्चतभ न्मामारम ने अनच्
ु छे द 21 की नवीन व्माख्मा की है तथा आभ आदभी के जीवन व सयु ऺा
को वास्तववक फनाने का प्रमास ककमा गमा है ।
3. उच्चतभ न्मामारम ने नागरयकों की गरयभा तथा प्रनतष्ट्ठा की सुयऺा की ओय अर्धक ध्मान केन्न्द्रत
ककमा है ।
4. उच्चतभ न्मामारम ने ऩूणत
थ ् स्ऩष्ट्ट कय टदमा है कक कामथऩामरको के ‗स्ववववेक‘ ऩय ननमॊत्रण ककमा
जाना चाटहए।
5. वतथभान भें उच्चतभ न्मामारम की मह भान्मता फन गई है कक मद्मवऩ न्मामाधीश का कामथ कानून
का ननभाथण कयना नहीॊ है , ऩयन्तु वह कानन
ू की रूऩये खा भें यॊ ग अवश्म बयता है ।
प्रश्न 3.
बायतीम न्मामऩामरका एकीकृत न्मामऩामरका ककस प्रकाय है ?
उत्तय :
बायतीम न्मामऩामरका एकीकृत न्मामऩामरका है । इसके मशखय ऩय उच्चतभ न्मामारम है , भध्म भें उच्च
न्मामारम है व न्जरा स्तय ऩय अधीनस्थ न्मामारम है । मे न्मामारम एकीकृत इस अथथ भें हैं कक उच्चतभ
न्मामारम का नीचे वारे न्मामारम ऩय प्रशासननक व न्मानमक ननमॊत्रण है । ननचरी अदारतों के ननणथमों के
ववरुर्द् उच्च न्मामारम भें रामा जा सकता है , उच्च न्मामारमों के ननणथम के ववरुर्द् उच्चतभ न्मामारम भें
रामा जा सकता है । उच्चतभ न्मामारम के ननणथम अधीनस्थ न्मामारमों ऩय फाध्मकायी होते हैं। उच्चतभ
न्मामारम न्मामाधीशों के स्थानान्तयण कयने के मरए बी स्वतन्त्र है । उच्चतभ न्मामारम नीचे वारे
न्मामारम से ककसी बी भक
ु दभे को अऩने ऩास रे सकता है , अगय उच्चतभ न्मामारम मह सभझता है कक
ककसी प्रकयण भें कानून का कोई गम्बीय ववषम शामभर है । उच्चतभ न्मामारम अधीनस्थ न्मामारमों को
कोई बी आवश्मक ननदे श दे सकता है ।
प्रश्न 4.
सवोच्च न्मामारम के ऩयाभशथदात्री ऺेत्रार्धकाय को सभझाइए।
उत्तय :
सॊववधान के अनच्
ु छे द 143 के अनस
ु ाय, याष्ट्रऩनत ककसी कानन
ू ी मा तथ्म के प्रश्न ऩय उच्चतभ न्मामारम से
ऩयाभशथ भॉग सकता है । उच्चतभ न्मामारम, याष्ट्रऩनत को ऩयाभशथ दे ने के मरए खुरी सुनवाई (Open
Hearings) का बी प्रफन्ध कयता है । अभेरयका के सॊववधान भें उच्चतभ न्मामारम द्वाया याष्ट्रऩनत को
ऩयाभशथ टदए जाने की व्मवस्था नहीॊ है । इस न्मामारम ऩय सॊवैधाननक दृन्ष्ट्ट से ऐसी कोई फाध्मता नहीॊ है
कक उसे ऩयाभशथ दे ना ही ऩडे। याष्ट्रऩनत के मरए बी मह आवश्मक नहीॊ है । कक वह उच्चतभ न्मामारम
द्वाया टदए गए ऩयाभशथ के अनस
ु ाय ही कामथ कये ।
प्रश्न 5.
जनटहत मार्चकाओॊ का बायतीम व्मवस्था ऩय क्मा प्रबाव ऩडता है ?
उत्तय :
जनटहत मार्चकाओॊ का बायतीम व्मवस्था ऩय ननम्नमरखखत प्रबाव दृन्ष्ट्टगत होता है –
1. ऐसे रोगों की स्वतन्त्रता व टहतों की यऺा कयने भें सहामता मभरती है जो स्वमॊ अऩने टहतों की
यऺा कयने भें सभथथ नहीॊ थे।
2. इससे साभान्जक एकता का ववकास होता है ।
3. इससे याष्ट्रीम एकता सदृ
ु ढ़ हुई है ।
4. न्मानमक सकक्रमता का ववकास हुआ है ।
5. कामथऩामरका ऩय बी कुछ ननमॊत्रण स्थावऩत हुआ है ।
6. गरत कानून-ननभाथण ऩय योक रगी है ।
7. नौकयशाही ऩय ननमॊत्रण स्थावऩत हुआ है ।
8. गयीफ जनता भें ववश्वास उत्ऩन्न हुआ है ।
प्रश्न 6.
सॊसद व न्मामऩामरका का भौमरक अर्धकायों के सॊशोधन को रेकय टकयाव , सॊऺेऩ भें। सभझाइए।
उत्तय :
सॊववधान भें सॊशोधन ववशेषकय भौमरक अर्धकायों भें सॊशोधन को रेकय न्मामऩामरका का सॊसद से ननयन्तय
टकयाव फना यहा है । प्रायम्ब भें शॊकयी प्रसाद प्रकयण भें न्मामारम ने ननणथम टदमा था कक सॊसद सॊववधान
के ककसी बी बाग भें , महाॉ तक कक भौमरक अर्धकायों भें बी सॊशोधन कय सकती है । सन ् 1967 भें
गोरकनाथ केस भें न्मामारम ने अऩने इस ननणथम को फदरते हुए नमा ननणथम टदमा कक सॊसद भौमरक
अर्धकाय भें सॊशोधन नहीॊ कय सकती। इससे न्मामऩामरका व सॊसद भें टकयाव की न्स्थनत उत्ऩन्न हो गई।
सॊसद भें गोरकनाथ केस के ननणथम को सभाप्त कयने के उद्देश्म से 38 व 39वाॉ सॊववधान सॊशोधन ककमा
न्जन्हें 1973 भें केशवानन्द बायती केस भें चन
ु ौती दी गई न्जसभें मह ननणथम हुआ कक सॊसद , सॊववधान के
ककसी बी बाग भें महाॉ तक कक भौमरक अर्धकायों भें बी सॊशोधन कय सकती है ऩयन्तु सॊववधान की
भौमरक यचना भें सॊशोधन नहीॊ कय सकती। इस प्रकाय न्मामऩामरका व सॊसद भें टकयाव होता यहा है ।
प्रश्न 7.
उच्चतभ न्मामारम का न्मामाधीश फनने के मरए व्मन्क्त भें ककन अहथताओॊ का होना आवश्मक है ?
उत्तय :
उच्चतभ न्मामारम का न्मामाधीश फनने के मरए व्मन्क्त भें ननम्नमरखखत अहथताओॊ का होना आवश्मक है

1. वह बायत का नागरयक हो।
2. वह ककसी उच्च न्मामारम अथवा दो मा दो से अर्धक न्मामारमों भें रगाताय कभ-से-कभ 5 वषथ
तक न्मामाधीश के रूऩ भें कामथ कय चुका हो।
मा वह ककसी उच्च न्मामारम मा न्मामारमों भें रगाताय 10 वषथ तक अर्धवक्ता यह चुका हो। मा याष्ट्रऩनत
की दृन्ष्ट्ट भें कानून का उच्चकोटट का ऻाता हो।
प्रश्न 8.
अमबरेख न्मामारम ऩय सॊक्षऺप्त टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय :
बायत का उच्चतभ न्मामारम अमबरेख (रयकॉडथ) न्मामारम के रूऩ भें बी कामथ कयता है । अमबरेख
न्मामारम का मह तात्ऩमथ है कक न्मामारम के सभस्त ननणथमों को अमबरेख के रूऩ भें सुयक्षऺत यखा जाता
है । इन ननणथमों को बववष्ट्म भें दे श के ककसी बी न्मामारम भें ऩव
ू थ उदाहयणों के रूऩ भें प्रस्तत
ु ककमा जा
सकता है । उच्चतभ न्मामारम को मह बी अर्धकाय प्राप्त होता है कक वह अऩनी भानहानन के मरए ककसी
बी व्मन्क्त को जभ
ु ाथना अथवा कायावास का दण्ड दे सकता है । सवोच्च न्मामारम के ननणथम , अन्म
अधीनस्थ न्मामारमों भें आवश्मकता ऩडने ऩय नजीय (केस रॉ) के रूऩ भें प्रमुक्त ककए जाते हैं।
प्रश्न 9.
बायत भें नागरयकों के भौमरक अर्धकायों की सुयऺा न्मामऩामरका ककस प्रकाय कयती है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान द्वाया बायत के नागरयकों को प्रदान ककए गए भौमरक अर्धकायों की सुयऺा का
उत्तयदानमत्व बायत के सवोच्च न्मामारम को प्रदान ककमा गमा है । मटद सयकाय नागरयकों के भौमरक
अर्धकायों का अनतक्रभण कयती है मा कोई नागरयक ककसी दस
ू ये नागरयक को उसके भौमरक अर्धकायों का
प्रमोग स्वतन्त्रताऩव
ू क
थ नहीॊ कयने दे ता, तो प्रबाववत व्मन्क्त अऩने भौमरक अर्धकायों की सयु ऺा के मरए
उच्चतभ न्मामारम की शयण रे सकता है । उच्चतभ न्मामारम के सॊववधान भें अनुच्छे द 32 भें वखणथत
‗सॊवैधाननक उऩचायों के अर्धकायों के अन्तगथत भौमरक अर्धकायों की सयु ऺा कयता है । इने सॊवैधाननक
उऩचायों भें फन्दी प्रत्मऺीकयण (Habeas Corpus), ऩयभादे श (Mandamus), प्रनतषेध (Prohibition),
अर्धकाय ऩच्
ृ छा (Quo Warranto) तथा उत्प्रेषण (Certiorari) नाभक ऩाॉच रेखों का प्रमोग नागरयकों के
भौमरक अर्धकायों की सुयऺा के मरए ककमा जाता है ।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
बायत की सॊघात्भक व्मवस्था भें न्मामऩामरका की बमू भका ऩय टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय :
सभस्त प्रकाय की शासन-प्रणामरमों भें न्मामऩामरका की बमू भका भहत्त्वऩण
ू थ होती है , ऩयन्तु । सॊघात्भक
व्मवस्था भें न्मामऩामरका के दानमत्व औय बी फढ़ जाते हैं। सॊघात्भक व्मवस्था भें शासन की सत्ता एक
मरखखत एवॊ कठोय सॊववधान द्वाया केन्द्र तथा याज्मों के भध्म ववबान्जत होती है । केन्द्र की सयकाय केवर
उन ववषमों ऩय ही कानून का ननभाथण कय सकती है , जो सॊघ-सूची भें वखणथत होते हैं तथा याज्म सयकायें
याज्म-सच
ू ी के ववषमों ऩय ही कानन
ू का ननभाथण कय सकती हैं। ककसी बी सयकाय को दस
ू यी सयकाय के ऺेत्र
का अनतक्रभण कयने का अर्धकाय प्राप्त नहीॊ होता है । मटद ऐसा होता है तो सॊघात्भक व्मवस्था ही सभाप्त
हो जाएगी। न्मामऩामरका को मह अर्धकाय प्राप्त है कक वह शासन के कामथऺेत्र एवॊ शन्क्तमों ऩय अऩना
प्रत्मऺ मा अप्रत्मऺ अॊकुश यखे न्जससे इन शन्क्तमों का दरु
ु ऩमोग मा अनतक्रभण न होने ऩाए। इसीमरए
न्मामऩामरका को मह शन्क्त प्राप्त होती है कक वह ऐसे ककसी बी कानून अथवा आदे श को अवैध घोवषत
कय दे जो सॊववधान की धायाओॊ का उल्रॊघन कयता हो। एक स्वतन्त्र एवॊ ननष्ट्ऩऺ न्मामऩामरको ही अऩने
दानमत्वों का सभुर्चत रूऩ से ऩारन कय सकती है । मटद न्मामऩामरका अऩने इस अर्धकाय का प्रमोग न
कये तो सॊघात्भक व्मवस्था एकात्भक शासन व्मवस्था भें ऩरयवनतथत हो जाएगी तथा सॊववधान का अन्स्तत्व
ही खतये भें ऩड जाएगा।
प्रश्न 2.
रोकतन्त्र भें न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
मा
न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता को सनु नन्श्चत कयने के दो उऩामों का उल्रेख कीन्जए।
मा
न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता औय ननष्ट्ऩऺता सुननन्श्चत कयने के दो उऩाम मरखखए।
उत्तय :
न्मामऩासरका की स्ितन्त्रता
न्मामऩामरका का कामथऺेत्र अत्मन्त ववस्तत
ृ है औय उसके द्वाया ववववध प्रकाय के कामथ ककमे जाते हैं ,
रेककन न्मामऩामरका इस प्रकाय के कामों को उसी सभम कुशरताऩूवक
थ सम्ऩन्न कय सकती है जफकक
न्मामऩामरका स्वतन्त्र हो। न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता से हभाया आशम मह है कक न्मामऩामरका को
कानूनों की व्माख्मा कयने औय न्माम प्रदान कयने के सम्फन्ध भें स्वतन्त्र रूऩ से अऩने वववेक का प्रमोग
कयना चाटहए औय उन्हें कतथव्मऩारन भें ककसी से अनुर्चत तौय ऩय प्रबाववत नहीॊ होना चाटहए। सीधे-सादे
शब्दों भें इसका आशम मह है कक न्मामऩामरका, व्मवस्थावऩका औय कामथऩामरका ककसी याजनीनतक दर ,
ककसी वगथ ववशेष औय अन्म सबी दफावों से भुक्त यहते हुए अऩने कतथव्मों का ऩारन कये ।

न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता सुननन्श्चत कयने के दो उऩाम ननम्नमरखखत हैं –

1. न्मामाधीर् की मोग्मता – न्मामाधीशों का ऩद केवर ऐसे ही व्मन्क्तमों को टदमा जाए न्जनकी व्मावसानमक
कुशरता औय ननष्ट्ऩऺता सवथभान्म हो। याज्म व्मवस्था के सॊचारन भें न्मामार्धकायी वगथ का फहुत अर्धक
भहत्त्व होता है औय अमोग्म न्मामाधीश इस भहत्त्व को नष्ट्ट कय दें गे।
ृ तकयण – न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता के मरए आवश्मक है कक
2. कामशऩासरका औय न्मामऩासरका का ऩथ
कामथऩामरका औय न्मामऩामरका को एक-दस
ू ये से ऩथ
ृ क् यखा जाना चाटहए। एक ही व्मन्क्त के सत्ता
अमबमोक्ता औय साथ-ही-साथ न्मामाधीश होने ऩय स्वतन्त्र न्माम की आशा नहीॊ की जा सकती है ।
प्रश्न 3.
न्मामऩामरका के दो कामों का उल्रेख कीन्जए तथा स्वतन्त्र न्मामऩामरका के ऩऺ भें दो तकथ प्रस्तत

कीन्जए।
मा
रोकतन्त्रात्भक शासन भें स्वतन्त्र न्मामऩामरका की आवश्मकता एवॊ भहत्ता ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
ककसी रोकतन्त्रात्भक शासन भें एक स्वतन्त्र एवॊ ननष्ट्ऩऺ न्मामऩामरका सवथथा अननवामथ है । इसे आधुननक
औय प्रगनतशीर सॊववधानों एवॊ शासन-व्मवस्था का प्रभख
ु रऺण भाना जाता है न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता
के भहत्त्व को ननम्नमरखखत रूऩों भें प्रकट ककमा जा सकता है –
1. रोकतन्त्र की यऺा हेतु – रोकतन्त्र के अननवामथ तत्त्व स्वतन्त्रता औय सभानता हैं। नागरयकों की स्वतन्त्रता
औय कानून की दृन्ष्ट्ट से व्मन्क्तमों की सभानता-इन दो उद्देश्मों की प्रान्प्त स्वतन्त्र न्मामऩामरका द्वाया ही
सम्बव है । इस दृन्ष्ट्ट से स्वतन्त्र न्मामऩामरका को ‗रोकतन्त्र का प्राण‘ कहा जाता है ।
2. सॊविधान की यऺा हेतु – आधुननक मुग के याज्मों भें सॊववधान की सवोच्चता का ववचाय प्रचमरत है ।
सॊववधान की यऺा का दानमत्व न्मामऩामरका का होता है । न्मामऩामरका द्वाया इस दानमत्व का बरी-बाॉनत
ननवाथह उस सभम ही सम्बव है , जफ न्मामऩामरका स्वतन्त्र औय ननष्ट्ऩऺ हो। स्वतन्त्र न्मामऩामरका
सॊववधान की धायाओॊ की स्ऩष्ट्ट व्माख्मा कयती है तथा व्मवस्थावऩका एवॊ कामथऩामरका के उन कामों को जो
सॊववधान के ववरुर्द् होते हैं , अवैध घोवषत कय दे ती है । इस प्रकाय स्वतन्त्र न्मामऩामरका सॊववधान की यऺा
कयती है ।
3. न्माम की यऺा हेतु – न्मामऩामरका का प्रथभ औय सवाथर्धक भहत्त्वऩूणथ कामथ न्माम कयना है । न्मामऩामरका
मह कामथ तबी ठीक प्रकाय से कय सकती है , जफकक वह ननष्ट्ऩऺ औय स्वतन्त्र हो तथा व्मवस्थावऩका औय
कामथऩामरका के प्रबाव से ऩण
ू थ रूऩ से भक्
ु त हो।
4. नागरयक अचधकायों की यऺा हेतु – न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता का भहत्त्व अन्म कायणों की अऩेऺा नागरयक
अर्धकायों की यऺा की दृन्ष्ट्ट से अर्धक है । इसके मरए न्मामऩामरका को स्वतन्त्र औय ननष्ट्ऩऺ होना
अत्मन्त आवश्मक है ।
न्मामऩासरका के दो कामश – न्मामऩामरका के दो कामथ ननम्नमरखखत हैं –

ू ों की व्माख्मा कयना – कानूनों की बाषा सदै व स्ऩष्ट्ट नहीॊ होती है औय अनेक फाय कानूनों की बाषा के
1. कानन
सम्फन्ध भें अनेक प्रकाय के वववाद उत्ऩन्न हो जाते हैं। इस प्रकाय की प्रत्मेक ऩरयन्स्थनत भें कानन
ू ों की
अर्धकायऩूणथ व्माख्मा कयने का कामथ न्मामऩामरका ही कयती है । न्मामारमों द्वाया की गमी इस प्रकाय की
व्माख्माओॊ की न्स्थनत कानून के सभान ही होती है ।
2. रेख जायी कयना – साभान्म नागरयकों मा सयकायी अर्धकारयमों के द्वाया जफ अनुर्चत मा अऩने अर्धकाय-
ऺेत्र के फाहय कोई कामथ ककमा जाता है तो न्मामारमे उन्हें ऐसा कयने से योकने के मरए ववववध प्रकाय के
रेख जायी कयता है । इस प्रकाय के रेखों भें फन्दी प्रत्मऺीकयण , ऩयभादे श औय प्रनतषेध आटद रेख प्रभुख हैं।
प्रश्न 4.
―सवोच्च न्मामारम सॊववधान का यऺक ही नहीॊ फन्ल्क उसे न्मानमक ऩुनयवरोकन की शन्क्त बी प्राप्त है । ‖
इस कथन की ऩुन्ष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय :
सवोच्च न्मामारम सॊववधान की ऩववत्रता की यऺा बी कयता है । मटद सॊसद सॊववधान का अनतक्रभण कयके
कोई कानून फनाती है तो उच्चतभ न्मामारम उस कानून को अवैध घोवषत कय सकता है । सॊऺेऩ भें ,
सवोच्च न्मामारम को अर्धकाय है कक वह सॊघ सयकाय अथवा याज्म सयकाय के उन कानूनों को अवैध
घोवषत कय सकता है , जो सॊववधान के ववऩयीत हों। इसी प्रकाय वह सॊघ सयकाय अथवा याज्म सयकाय के
सॊववधान का अनतक्रभण कयने वारे आदे शों को बी अवैध घोवषत कय सकता है । सवोच्च न्मामारम
सॊववधान की व्माख्मा कयने वारा (Interpreter) अन्न्तभ न्मामारम है । सॊऺेऩ भें , कहा जा सकता है कक
सवोच्च न्मामारम को न्मानमक ऩुनयवरोकन (Judicial Review) का अर्धकाय है , क्मोंकक इसे कानूनों की
वैधाननकता के ऩयीऺण की शन्क्त प्राप्त है । इस शन्क्त के आधाय ऩय न्मामऩामरका ने सम्ऩन्त्त के
अर्धकाय का अनतक्रभण कयने वारे अनेक कानूनों को गोरकनाथ केस , सज्जनमसॊह केस तथा केशवानन्द
बायती केस भें अवैध घोवषत ककमा है ।
प्रश्न 5.
स्वतन्त्र न्मामऩामरका के भहत्त्व ऩय प्रकाश डामरए।

रोकतन्त्र भें न्मामऩामरका को भहत्त्व इॊर्गत कीन्जए।
उत्तय :
स्ितन्त्र न्मामऩासरका का भहत्त्ि अथिा राब
न्मामऩामरका अऩने ववववध कामों को उसी सभम कुशरताऩूवक
थ सम्ऩन्न कय सकती है , जफ वह स्वतन्त्र
रूऩ से कामथ कये । स्वतन्त्र न्मामऩामरका का भहत्त्व ननम्नमरखखत तथ्मों के आधाय ऩय स्ऩष्ट्ट होता है –

1. नागरयकों की स्ितन्त्रता एिॊ अचधकायों की यऺा – स्वतन्त्र न्मामऩामरका ही ाागरयकों की स्वतन्त्रता औय


भौमरक अर्धकायों की यऺा कय सकती है । चान्सरय कैण्ट के अनस
ु ाय , ―जहाॉ कानन
ू ों की व्माख्मा कयने , उन्हें
रागू कयने तथा अर्धकायों को अभर भें राने के मरए कोई न्माम ववबाग न हो , वहाॉ स्वमॊ अऩनी
शन्क्तहीनता के कायण शासन का ववनाश हो जाएगा अथवा शासन के दस
ू ये ववबाग के आदे शों का ऩारन
कयने के मरए उस ऩय अऩना प्रबुत्व स्थावऩत कय नागरयक स्वतन्त्रता का सवथनाश कय दें गे। ‖
2. ननष्ट्ऩऺ न्माम की प्राक्तत – ननष्ट्ऩऺ न्माम की प्रान्प्त कयाना न्मामऩामरका का सवाथर्धक भहत्त्वऩण
ू थ कामथ है ।
न्मामऩामरका को अऩने इस भहत्त्वऩूणथ कामथ के सम्ऩादन के मरए स्वतन्त्र होना आवश्मक है । उसके कामों
भें व्मवस्थावऩका एवॊ कामथऩामरका को कोई हस्तऺेऩ नहीॊ होना चाटहए।
3. रोकतॊत्र की सयु ऺा – रोकतन्त्र की सपरता के मरए स्वतन्त्र न्मामऩामरका का होना अननवामथ है । रोकतन्त्र
के अननवामथ तत्त्व स्वतन्त्रता औय सभानती हैं। अत् नागरयकों को स्वतन्त्रता औय सभानता के अवसय
उसी सभम प्राप्त हो सकेंगे , जफ न्मामऩामरका ननष्ट्ऩऺता के साथ अऩने कामथ का सम्ऩादन कये गी।
4. सॊविधान की सयु ऺा – स्वतन्त्र न्मामऩामरका सॊववधान की यऺक होती है । न्मामऩामरका सॊववधान-ववयोधी
कानन
ू ों को अवैध घोवषत कयके यद्द कय दे ती है । अत् सॊववधान के स्थानमत्व एवॊ सयु ऺा के मरए स्वतन्त्र
न्मामऩामरका का होना आवश्मक है ।
5. व्मिस्थावऩका औय कामशऩासरका ऩय ननमॊत्रण – स्वतन्त्र न्मामऩामरको व्मवस्थावऩका औय कामथऩामरका ऩय
ननमॊत्रण यखकय शासन की कामथकुशरता भें ववृ र्द् कयती है ।
उऩमक्
ुथ त वववेचन के आधाय ऩय मह स्ऩष्ट्ट होता है कक स्वतन्त्र न्मामऩामरका का प्रत्मेक दे श की शासन-
प्रणारी भें फहुत अर्धक भहत्त्व है । रोकतन्त्रात्भक शासन के मरए तो स्वतन्त्र न्मामऩामरका का होना
अनत आवश्मक है । वस्तुत: स्वतन्त्र न्मामऩामरका के ब्रफना एक सभ्म याज्म की कल्ऩना नहीॊ की जा
सकती है ।

प्रश्न 6.
उच्चतभ न्मामारम की कामथववर्ध के सम्फन्ध भें सॊववधान भें क्मा व्मवस्था की गई है ?
उत्तय :
उच्चतभ न्मामारम की कामशविचध
उच्चतभ न्मामारम की कामथववर्ध के सम्फन्ध भें सॊववधान भें कुछ व्मवस्थाएॉ की गई हैं। इस सम्फन्ध भें
ननमभ फनाने का अर्धकाय सॊववधान द्वाया सॊसद को टदमा गमा है औय न्जन फातों ऩय सॊववधान औय सॊसद
ने कोई व्मवस्था न की हो, ऐसी फातों ऩय स्वमॊ न्मामारम की अनुभनत से कानून फन सकता है । उच्चतभ
न्मामारम की कामथववर्ध के सम्फन्ध भें ननम्नमरखखत व्मवस्थाएॉ की गई हैं –

(1) न्जन ववषमों का सम्फन्ध सॊववधान की व्माख्मा के साथ हो मा न्जनभें कोई सॊवैधाननक प्रश्न उऩन्स्थत
होता हो मो कानून के अथथ को सभझाने की आवश्मकता हो मा न्जन ववषमों ऩय ववचाय कयने का कामथ
याष्ट्रऩनत द्वाया उच्चतभ न्मामारम को सौंऩा गमा हो उनकी सुनवाई उच्चतभ न्मामारम के कभ-से-कभ 5
न्मामाधीशों द्वाया की जाएगी।
(2) उच्चतभ न्मामारम के सम्भुख ककसी ऐसे भुकदभे की अऩीर बी ऩेश की जा सकती है न्जसकी सुनवाई
के ऩश्चात ् मह अनुबव ककमा जाए कक उसभें सॊववधान की व्माख्मा कयना अननवामथ है । मा कानून के
अमबप्राम को तान्त्त्वक रूऩ से प्रकट कयना होगा। इसी प्रकाय के भुकदभे आयम्ब भें 5 से कभ न्मामाधीशों
के सम्भुख प्रस्तुत ककए जा सकते हैं। ऩयन्तु मटद मह स्ऩष्ट्ट हो जाए कक उसभें सॊववधान की व्माख्मा का
स्ऩष्ट्टीकयण होना आवश्मक है तो उसको बी कभ-से-कभ 5 न्मामाधीशों के सम्भुख उऩन्स्थत ककमा जाएगा
औय उसकी व्माख्मा के अनुसाय उसका ननणथम ककमा जाएगा।
(3) उच्चतभ न्मामारम के सबी ननणथम खर
ु े तौय ऩय सम्ऩन्न होते हैं।
(4) उच्चतभ न्मामारम के ननणथम फहुभत के आधाय ऩय होंगे। ऩयन्तु मटद ननणथम से कोई न्मामाधीश
सहभत नहीॊ है तो वह अऩना ऩथ ृ क् ननणथम दे सकती है ऩयन्तु फहुभत से हुआ ननणथम ही भान्म सभझा
जाएगा।
प्रश्न 7.
सवोच्च न्मामारम के द्वाया न्मानमक ऩुनयवरोकन का सॊचारन ककस प्रकाय ककमा जाता है ?
उत्तय :
न्मानमक ऩन
ु यिरोकन का सॊचारन
न्मानमक ऩुनयवरोकन का तात्ऩमथ न्मामारम द्वाया कानूनों तथा प्रशासकीम नीनतमों की सॊवैधाननकता की
जाॉच तथा ऐसे कानूनों एवॊ नीनतमों को असॊवैधाननक घोवषत कयना है जो सॊववधान के ककसी अनुच्छे द ऩय
अनतक्रभण कयती है ।

बायत भें बी सवोच्च न्मामारम को अभेरयका के सवोच्च न्मामारम के सभान ही न्मानमक ऩुनयवरोकन की
शन्क्त प्रदान की गई है । बायत भें बी सॊववधान को सवोच्च कानून घोवषत ककमा गमा है । अत्
न्मामऩामरका का मह अर्धकाय है कक वह सॊसद अथवा ववधानभण्डरों द्वाया ननमभथत ऐसे कानन
ू ों को अवैध
घोवषत कय दे जो सॊववधान की धायाओॊ का अनतक्रभण कयते हों। बायत का सवोच्च न्मामारम इस शन्क्त
का प्रमोग ‗कानन
ू द्वाया स्थावऩत प्रकक्रमा‘ (Procedure established by law) के आधाय ऩय कयता है जफकक
अभेरयका का सवोच्च न्मामारम ‗कानून की उर्चत प्रकक्रमा‘ (Due process of the law) के आधाय ऩय
न्मानमक ऩन
ु यवरोकन की शन्क्त का प्रमोग कयता है । बायत का सवोच्च न्मामारम मह ननन्श्चत कयने भें
बी कोई कानून सॊवैधाननक शन्क्त है अथवा नहीॊ , प्राकृनतक न्मामारम के मसर्द्ान्तों को मा उर्चत-अनुर्चत
की अऩनी धायणाओॊ को रागू नहीॊ कय सकता है ।

बायत के उच्चतभ न्मामारम ने वऩछरे अनेक वषों भें ऐसे भहत्त्वऩूणथ ननणथम टदए हैं न्जनभें न्मानमक
ऩुनयवरोकन के अर्धकाय का प्रमोग ककमा गमा है । जैसे —गोरकनाथ फनाभ भद्रास याज्म के भुकदभे भें
ननवायक ननयोध अर्धननमभ के 14वें खण्ड को असॊवैधाननक घोवषत ककमा गमा है । स्वणथ ननमॊत्रण
अर्धननमभ, ऩाककस्तानी शयणार्थथमों के बायत आगभन ऩय योक रगाने सम्फन्धी अर्धननमभ , फैंक
याष्ट्रीमकयण अर्धननमभ तथा अखफायी कागज सम्फन्धी नीनत आटद।

दीघश उत्तयीम प्रश्न


प्रश्न 1.
न्मामऩामरका के कामों का वणथन कीन्जए।
मा
―आधुननक कार भें न्मामऩामरका के कामों भें अऩेऺाकृत अर्धक ववृ र्द् हो गई है । इस कथन के आरोक भें
न्मामऩामरका के कामों का वणथन कीन्जए।
मा
आधुननक याजनीनतक व्मवस्था भें न्मामऩामरका के कामों की सभीऺा कीन्जए।
मा
न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता क्मों आवश्मक है ? इसकी स्वतन्त्रता फनाए यखने के मरए क्मा उऩाम ककए
जाने चाटहए?
मा
आधुननक याज्म भें न्मामऩामरका के कामों एवॊ उसकी फढ़ती हुई भहत्ता की व्माख्मा कीन्जए। न्मामऩामरका
की स्वतन्त्रता को फनाए यखने हे तु क्मा व्मवस्था की जानी चाटहए ?
मा
आधुननक रोकतान्न्त्रक याज्मों भें न्मामऩामरका के कामों तथा स्वतन्त्र न्मामऩामरका के भहत्त्व का वणथन
कीन्जए।
उत्तय :
न्मामऩासरका के कामश
आधनु नक रोकतन्त्रात्भक प्रणारी भें न्मामऩामरका को भख्
ु मत: ननम्नमरखखत कामथ कयने ऩडते हैं –

1. न्माम कयना – न्मामऩामरका का भख्


ु म कामथ न्माम कयना है । कामथऩामरका कानन
ू का उल्रॊघन कयने वारे
व्मन्क्त को ऩकडकय न्मामऩामरका के सभऺ प्रस्तुत कयती है । न्मामऩामरका उन सभस्त भुकदभों को
सन
ु ती है जो उसके साभने आते हैं तथा उन ऩय अऩना न्मामऩण
ू थ ननणथम दे ती
ू ों की व्माख्मा कयना – न्मामऩामरका ववधानभण्डर भें फनामे हुए कानूनों की व्माख्मा के साथ-साथ उन
2. कानन
कानूनों की व्माख्मा बी कयती है जो स्ऩष्ट्ट नहीॊ होते। न्मामऩामरका के द्वाया की गमी कानून की व्माख्मा
अन्न्तभ होती है औय कोई बी व्मन्क्त उस व्माख्मा को भानने से इॊकाय नहीॊ कय सकता।
ू ों का ननभाशण – साधायणतमा कानून-ननभाथण का कामथ ववधानभण्डर कयता है , ऩयन्तु कई दशाओॊ भें
3. कानन
न्मामऩामरका बी कानूनों का ननभाथण कयती है । कानून की व्माख्मा कयते सभम न्मामाधीश कानून के कई
नमे अथों को जन्भ दे ते हैं , न्जससे कानूनों का स्वरूऩ ही फदर जाता है औय एक नमे कानून का ननभाथण
हो जाता है । कई फाय न्मामऩामरका के साभने ऐसे भक
ु दभे बी आते हैं , जहाॉ उऩरब्ध कानन
ू ों के आधाय ऩय
ननणथम नहीॊ ककमा जा सकता। ऐसे सभम ऩय न्मामाधीश न्माम के ननमभों , ननष्ट्ऩऺता तथा ईभानदायी के
आधाय ऩय ननणथम कयते हैं। मही ननणथम बववष्ट्म भें कानन
ू फन जाते हैं।
4. सॊविधान का सॊयऺण – सॊववधान की सवोच्चता को फनामे यखने का उत्तयदानमत्व न्मामऩामरका ऩय होता है ।
मटद व्मवस्थावऩका कोई ऐसा कानन
ू फनामे , जो सॊववधान की धायाओॊ के ववरुर्द् हो तो न्मामऩामरका उस
कानून को असॊवैधाननक घोवषत कय सकती है । न्मामऩामरका की इसे शन्क्त को न्मानमक ऩुनयवरोकन
(Judicial Review) का नाभ टदमा गमा है सॊववधान की व्माख्मा कयने का अर्धकाय बी न्मामऩामरका को
प्राप्त होता है । इसी प्रकाय न्मामऩामरका सॊववधान के सॊयऺक के रूऩ भें कामथ कयती है ।
5. सॊघ का सॊयऺण – न्जन दे शों ने सॊघात्भक शासन-प्रणारी को अऩनामा है , वहाॉ न्मामऩामरका सॊघ के
सॊयऺक के रूऩ भें बी कामथ कयती है । सॊघात्भक शासन-प्रणारी भें कई फाय केन्द्र तथा याज्मों के भध्म
ववमबन्न प्रकाय के भतबेद उत्ऩन्न हो जाते हैं , इनका ननणथम न्मामऩामरका द्वाया ही ककमा जाता है ।
न्मामऩामरका का मह कामथ है कक वह इस फात का ध्मान यखे कक केन्द्र याज्मों के कामथ भें हस्तऺेऩ न कये
औय न ही याज्म केन्द्र के कामों भें।
6. नागरयक अचधकायों का सॊयऺण – रोकतन्त्र को जीववत यखने के मरए नागरयकों की स्वतन्त्रता औय अर्धकायों
की सुयऺा अत्मन्त आवश्मक है । मटद इनकी सुयऺा नहीॊ की जाती तो कामथऩामरका ननयॊ कुश औय तानाशाह
फन सकती है । नागरयकों की स्वतन्त्रता तथा अर्धकायों की सुयऺा न्मामऩामरका द्वाया की जाती है । अनेक
याज्मों भें नागरयकों के भौमरक अर्धकायों की व्मवस्था का सॊववधान भें उल्रेख कय टदमा गमा है न्जससे
उन्हें सॊववधान औय न्मामऩामरका का सॊयऺण प्राप्त हो सके। इस प्रकाय न्मामऩामरका का ववशेष
उत्तयदानमत्व होता है कक वह सदै व मह दृन्ष्ट्ट भें यखे कक सयकाय का कोई अॊग इन अर्धकायों का
अनतक्रभण न कय सके।
7. ऩयाभर्श दे ना – कई दे शों भें न्मामऩामरका कानन
ू सम्फन्धी ऩयाभशथ बी दे ती है । बायत भें याष्ट्रऩनत ककसी
बी ववषम ऩय उच्चतभ न्मामारम से ऩयाभशथ रे सकता है , ऩयन्तु इस सराह को भानना मा न भानना
याष्ट्रऩनत ऩय ननबथय है ।
8. प्रर्ासननक कामश – कई दे शों भें न्मामारमों को प्रशासननक कामथ बी कयने ऩडते हैं। बायत भें उच्चतभ
न्मामारम, उच्च न्मामारम तथा अधीनस्थ न्मामारमों ऩय प्रशासकीम ननमॊत्रण यहता है ।
9. आऻा-ऩत्र जायी कयना – न्मामऩामरका जनता को आदे श दे सकती है कक वे अभुक कामथ नहीॊ कय सकते
औय मह ककसी कामथ को कयवा बी सकती है । मटद वे कामथ न ककमे जाएॉ तो न्मामारम ब्रफना अमबमोग
चरामे दण्ड दे सकता है अथवा भानहानन का अमबमोग रगाकय जुभाथना आटद बी कय सकता है ।
10. कोिश ऑप रयकॉडश के कामश – न्मामऩामरका कोटथ ऑप रयकॉडथ को बी कामथ कयती है , न्जसका अथथ है कक
न्मामऩामरका को बी सबी भक
ु दभों के ननणथमों तथा सयकाय को टदमे गमे ऩयाभशो का रयकॉडथ बी यखना
ऩडता है । इन ननणथमों तथा ऩयाभशो की प्रनतमाॉ ककसी बी सभम, प्राप्त की जा सकती हैं।
न्मामऩासरका का भहत्त्ि
व्मन्क्त एक ववचायशीर प्राणी है औय इसके साथ-साथ प्रत्मेक व्मन्क्त के अऩने कुछ ववशेष स्वाथथ बी होते
हैं। व्मन्क्त के ववचायों औय उसके स्वाथों भें इस प्रकाय के बेद होने के कायण उनभें ऩयस्ऩय सॊघषथ ननतान्त
स्वाबाववक है । इसके अनतरयक्त शासन-कामथ कयते हुए शासक वगथ अऩनी शन्क्तमों का दरु ु ऩमोग कय सकता
है । ऐसी न्स्थनत भें सदै व ही एक ऐसी सत्ता की आवश्मकता यहती है जो व्मन्क्तमों के ऩायस्ऩरयक वववादों
को हर कय सके औय शासक वगथ को अऩनी सीभाओॊ भें यहने के मरए फाध्म कय सके। इन कामों को
कयने वारी सत्ता का नाभ ही न्मामऩामरका है ।

याज्म के आटदकार से रेकय आज तक ककसी-न-ककसी रूऩ भें न्माम ववबाग का अन्स्तत्व सदै व ही यहा है
औय साभान्म जनता के दृन्ष्ट्टकोण से न्मानमक कामथ का सम्ऩादन सवाथर्धक भहत्त्व यखता है । याज्म भें
व्मवस्थावऩका औय कामथऩामरका की व्मवस्था चाहे ककतनी ही ऩूणथ औय श्रेष्ट्ठ क्मों न हो , ऩयन्तु मटद न्माम
कयने भें ऩऺऩात ककमा जाता है , अनावश्मक व्मम औय ववरम्फ होता है मा न्माम ववबाग भें अन्म ककसी
प्रकाय का दोष है तो जनजीवन ननतान्त द:ु खऩूणथ हो जाएगा। न्माम ववबाग के सम्फन्ध भें फाइस ने अऩनी
श्रेष्ट्ठ शब्दावरी भें कहा है , ―न्माम ववबाग की कुशरता से फढ़कय सयकाय की उत्तभता की दस
ू यी कोई बी
कसौटी नहीॊ है , क्मोंकक ककसी औय चीज से नागरयक की सुयऺा औय टहतों ऩय इतना प्रबाव नहीॊ ऩडता है ,
न्जतना कक उसके इस ऻान से कक वह एक ननन्श्चत, शीघ्र व अऩऺऩाती न्माम शासन ऩय ननबथय यह सकता
है । वतथभान सभम भें तो न्मामऩामरका का भहत्त्व फहुत अर्धक फढ़ गमा है , क्मोंकक अमबमोगों के ननणथम
के साथ-साथ न्मामऩामरका सॊववधान की व्माख्मा औय यऺा का कामथ बी कयती है ।

न्मामऩासरका की स्ितन्त्रता फनामे यखने हे तु उऩाम


स्वतन्त्र न्मामऩामरका उत्तभ शासन की कसौटी है । इसमरए मह आवश्मक है कक न्मामऩामरका का सॊगठन
औय कामथववर्ध ऐसी हो न्जससे वह ब्रफना ककसी बम औय दफाव के स्वतन्त्रताऩव
ू क
थ कामथ कय सके। स्वतन्त्र
न्मामऩामरका फनामे यखने के मरए ननम्नमरखखत व्मवस्था होनी चाटहए –

1. न्मामाधीर्ों की ननमक्ु तत औय कामशकार – अर्धकाॊश दे शों भें न्मामाधीशों की ननमुन्क्त औय उनके कामथकार का
ननधाथयण कामथऩामरका के द्वाया ककमा जाता है । ननमुन्क्त का आधाय मोग्मता औय प्रनतबा को फनामा जाता
है ।
2. न्मामाधीर्ों का िेतन – न्मामाधीशों को वेतन के रूऩ भें अच्छी धनयामश मभरनी चाटहए। उर्चत वेतन होने
ऩय ही वे ननष्ट्ऩऺता औय ईभानदायी से काभ कय ऩाएॉगे।
3. न्मामाधीर्ों की ऩदोन्ननत – न्मामाधीशों की ऩदोन्ननत के बी ननन्श्चत ननमभ होने चाटहए। मोग्मता औय
वरयष्ट्ठता के आधाय ऩय ही न्मामाधीशों की ऩदोन्ननत होनी चाटहए। ऩदोन्ननत का अर्धकाय ननमक्
ु त कयने
वारी सॊस्था मा कामथऩामरका को न होकय उच्चतभ न्मामारम को होना चाटहए।
4. न्मामाधीर्ों को हिाना – न्मामाधीशों को उनके ऩद से हटाने के मरए बी एक ननन्श्चत प्रकक्रमा अऩनामी
जानी चाटहए। न्मामाधीशों को भ्रष्ट्ट मा अमोग्म होने ऩय ही उनके ऩद से हटामा जाना। चाटहए।
5. न्माम तथा र्ासन सम्फन्धी कामों का विबाजन – न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता के मरए मह बी अननवामथ है कक
शासन तथा न्माम ववबाग दोनों के कामथऺेत्र अरग-अरग हों। मटद कामथऩामरका औय न्मामऩामरका ऩथ
ृ क्
नहीॊ हैं तो न्मामाधीश अऩने प्रशासननक उत्तयदानमत्व को ऩूया कयने के मरए अऩनी न्मानमक शन्क्तमों का
दरु
ु ऩमोग कय सकते हैं।
6. न्मामाधीर्ों को सेिाननिक्ृ त्त के फाद सयकायी ऩद दे ने से अरग यखा जाना – सेवाननवत्ृ त होने के फाद ककसी बी
न्मामाधीश को अन्म ककसी सयकायी ऩद ऩय ननमुक्त नहीॊ ककमा जाना चाटहए।
7. न्मामाधीर्ों के ननणशमों, कामों औय चरयत्र की अनचु चत आरोचना ऩय प्रनतफन्ध – न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता के
मरए मह बी आवश्मक है कक न्मामाधीशों के कामथकार भें कोई बी उनके वैमन्क्तक चरयत्र अथवा कामों ऩय
टटप्ऩणी न कये औय उनके ननणथमों की आरोचना न कये ।
प्रश्न 2.
न्मामाधीशों की ननमुन्क्त के ववषम भें आऩ क्मा जानते हैं ?
मा
उच्चतभ न्मामारम के गठन ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
बायत का उच्चतभ न्मामारम याजधानी टदल्री भें न्स्थत है । उच्चतभ न्मामारम के न्मामाधीशों की सॊख्मा ,
उच्चतभ न्मामारम का ऺेत्रार्धकाय, न्मामाधीशों के वेतन तथा सेवा-शतों को ननन्श्चत कयने का अर्धकाय
सॊसद को प्रदान ककमा गमा है । अफ उच्चतभ न्मामारम भें एक भुख्म न्मामाधीश तथा 30 अन्म
न्मामाधीश हैं। उच्चतभ न्मामारम के न्मामाधीशों की ननमुन्क्त बायत का याष्ट्रऩनत कयता है । बायत के
भख्
ु म न्मामाधीश की ननमन्ु क्त के सम्फन्ध भें याष्ट्रऩनत उच्चतभ न्मामारम अथवा उच्च न्मामारमों के ऐसे
अन्म न्मामाधीशों से ऩयाभशथ रेता है , न्जनसे वह इस सम्फन्ध भें ऩयाभशथ रेना आवश्मक सभझता है ।
अन्म न्मामाधीशों की ननमुन्क्त के सम्फन्ध भें जुराई 1998 ई० को याष्ट्रऩनत द्वाया उच्चतभ न्मामारम भें
बेजे गए स्ऩष्ट्टीकयण प्रस्ताव ऩय ववचाय कयते हुए नौ-सदस्मीम खण्डऩीठ ने सवथसम्भनत से ननणथम दे ते हुए
स्ऩष्ट्ट ककमा है कक उच्चतभ न्मामारम भें ककसी न्मामाधीश की ननमन्ु क्त तथा उच्च न्मामारम के भुख्म
न्मामाधीश अथवा ककसी न्मामाधीश के स्थानान्तयण के ववषम भें अऩनी सॊस्तुनतमाॉ प्रेवषत कयने से ऩूवथ
उच्चतभ न्मामारम के चाय वरयष्ट्ठतभ न्मामाधीशों तथा उच्च न्मामारम भें ननमुन्क्त कयने से ऩूवथ दो ,
वरयष्ट्ठतभ न्मामाधीशों से ऩयाभशथ ककमा जाना आवश्मक है । मटद दो न्मामाधीश बी ववऩयीत याम दे ते हैं।
तो भुख्म न्मामाधीश द्वाया सयकाय को अऩनी मसपारयश नहीॊ बेजनी चाटहए।
तदथश ननमक्ु ततमाॉ (ad hoc Appointments) – सॊववधान के अनच्
ु छे द 127 के अनस
ु ाय, भख्
ु म न्मामाधीश
याष्ट्रऩनत की ऩूवथ स्वीकृनत से तदथथ ननमुन्क्तमाॉ बी कय सकता है । ऐसे न्मामाधीशों की ननमुन्क्तमाॉ ककसी
ववशेष उद्देश्म की ऩनू तथ हे तु की जाती हैं।
1. न्मामाधीर्ों की मोग्मताएॉ – उच्चतभ न्मामारम के न्मामाधीश के मरए ननम्नमरखखत मोग्मताएॉ होनी
आवश्मक हैं –
(क) वह बायतीम नागरयक हो।
(ख) वह ककसी उच्च न्मामारम भें कभ-से-कभ ऩाॉच वषथ तक न्मामाधीश यह चुका हो ,
अथवा 10 वषथ तक अर्धवक्ता यहा हो,
अथवा याष्ट्रऩनत की दृन्ष्ट्ट भें रब्धप्रनतष्ट्ठ ववर्धवेत्ता हो।
2. न्मामाधीर्ों का कामशकार तथा ऩदच्मनु त – उच्चतभ न्मामारम के न्मामाधीश 65 वषथ की आमु तक अऩने ऩद
ऩय कामथयत यह सकते हैं। 65 वषथ की आमु सभान्प्त ऩय उन्हें सेवाननवत्ृ त कय टदमा जाता है । मटद कोई
न्मामाधीश चाहे तो इससे ऩव
ू थ बी याष्ट्रऩनत को त्मागऩत्र दे कय अऩने ऩदबाय से भक्
ु त हो सकता है । इसके
अनतरयक्त उच्चतभ न्मामारम के न्मामाधीश को मसर्द् कदाचाय मा असभथथता के आधाय ऩय याष्ट्रऩनत के
आदे श द्वाया उसके ऩद से हटामा जा सकता है । उच्चतभ न्मामारम के ककसी न्मामाधीश को उसके ऩद से
हटाने के मरए सभावेदन प्रत्मेक सदन की कुर सदस्म सॊख्मा के फहुभत द्वाया तथा सदन भें उऩन्स्थत
औय भतदान कयने वारे सदस्मों के कभ-से-कभ दो-नतहाई फहुभत द्वाया सभर्थथत होना चाटहए। इसके फाद
वह सभावेदन याष्ट्रऩनत के सभऺ यखा जाएगा औय उसके आदे श दे ने ऩय अभुक न्मामाधीश को उसके ऩद
से हटा टदमा जाएगा। रेककन ऐसा सभावेदन सॊसद के एक ही सत्र भें प्रस्ताववत औय स्वीकृत होना चाटहए।
इसी प्रकक्रमा के आधाय ऩय उच्चतभ न्मामारम के न्मामभूनतथ याभास्वाभी को हटाने का प्रमास सॊसद द्वाया
ककमा गमा था, ऩयन्तु न्मामभूनतथ याभास्वाभी ने आयोऩ मसर्द् होने से ऩूवथ ही अऩना ऩद-त्माग कय टदमा।
3. न्मामाधीर्ों के िेतन – 1998 ई० के एक अर्धननमभ द्वाया उच्चतभ न्मामारम के भुख्म न्मामाधीश को ₹
1 राख प्रनतभाह औय अन्म न्मामाधीशों को ₹ 90,000 प्रनतभाह वेतन ननधाथरयत ककमा गमा है तथा इसके
साथ-साथ उन्हें नन:शुल्क आवास, सवेतन छुटट्टमाॉ तथा सेवाननवन्ृ त्त प्राप्त कयने ऩय ऩें शन आटद की
व्मवस्था की गई है ।
प्रश्न 3.
बायत के उच्चतभ न्मामारम की सॊयचना का उल्रेख कीन्जए। उसे सॊववधान का सॊयऺक क्मों कहा जाता
है ?
मा
―बायत के सवोच्च न्मामारम को सॊववधान का सॊयऺक व नागरयकों के भर
ू ार्धकायों का यऺक कहा जाता
है ।‖ व्माख्मा कीन्जए।
मा
बायत के सवोच्च न्मामारम के न्मामाधीशों की ननमुन्क्त कैसे होती है ?
मा
सवोच्च न्मामारम के सॊगठन का वणथन कीन्जए। उसको ‗सॊववधान का यऺक‘ एवॊ ‗नागरयकों के भूर
अर्धकायों का यऺक‘ क्मों कहा जाता है ?
मा
उच्चतभ न्मामारम का सॊगठन सभझाइए। उसके भहत्त्व को बी सभझाइए।
मा
बायत के उच्चतभ न्मामारम के गठन व उसके कामों को सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
मा
बायत के उच्चतभ न्मामारम के सॊगठन तथा ऺेत्रार्धकाय का वणथन कीन्जए।
मा
न्मामारम की स्वतन्त्रता का सॊयऺण ककस प्रकाय ककमा जाता है ?
उत्तय :
सिोच्च न्मामारम की आिश्मकता (भहत्त्ि)
बायतीम सॊववधान-ननभाथताओॊ के सभऺ मह एक भहत्त्वऩूणथ प्रश्न था कक बायत भें सॊववधान व रोकतन्त्र
की यऺा का दानमत्व ककसे सौंऩा जाए? गम्बीय ववचाय-ववभशथ के ऩश्चात ् सॊववधान ननभाथताओॊ ने बायत ।
सॊघ भें रोकतन्त्र, नागरयकों के अर्धकाय व सॊववधान की यऺा का दानमत्व एक स्वतन्त्र व ननष्ट्ऩऺ
न्मामऩामरका को सौंऩा। बायत भें न्माम-व्मवस्था के मशखय ऩय सवोच्च न्मामारम का गठन ककमा गमा है ।
श्री वी० एस० दे शऩाण्डे के शब्दों भें , ―बायत भें सॊववधान व रोकतन्त्र की यऺा का दानमत्व सवोच्च
न्मामारम को ही है । स्वतन्त्र बायत भें सवोच्च न्मामारम का कामथकयण फहुत गौयवभम यहा है । तथा आभ
जनता भें व्मन्क्त के सॊवैधाननक अर्धकायों तथा स्वाधीनता के प्रहयी के रूऩ भें उसके प्रनत अटूट श्रर्द्ा-
ववश्वास है ।‖

बायत की सॊघीम रोकतान्न्त्रक व्मवस्था के अन्तगथत न्मामारम की आवश्मकता अथवा भहत्त्व को


ननम्नमरखखत तको द्वाया प्रभाखणत ककमा जा सकता है –

1. सॊघात्भक र्ासन के सरए अननिामश – सॊघीम शासन-व्मवस्था के अन्तगथत केन्द्र व याज्मों के भध्म शन्क्तमों
का ऩथ
ृ क्कयण ऩामा जाता है । ऐसी न्स्थनत भें अऩने-अऩने अर्धकाय-ऺेत्र को रेकय केन्द्र व याज्मों भें वववाद
की सम्बावनाएॉ फढ़ जाती हैं। अत: केन्द्र व याज्मों के भध्म उत्ऩन्न ककसी बी वववाद के ननयाकयण हे तु
एक स्वतन्त्र व ननष्ट्ऩऺ शन्क्त का होना अननवामथ होता है । बायत भें इसी उद्देश्म को दृन्ष्ट्ट भें यखते हुए
एक स्वतन्त्र व ननष्ट्ऩऺ सवोच्च न्मामारम की स्थाऩना की गमी है । जी० एन० जोशी ने सॊघीम व्मवस्था
भें ननष्ट्ऩऺ व स्वतन्त्र न्मामऩामरका की आवश्मकता ऩय फर दे ते हुए कहा है , ―सॊघात्भक शासन भें कई
सयकायों का सभन्वम होने के कायण सॊघषथ अवश्मम्बावी है । अत् सॊघीम नीनत का मह आवश्मक गुण है
कक दे श भें एक ऐसी न्मानमक व्मवस्था हो, जो सॊघीम कामथऩामरका एवॊ व्मवस्थावऩका तथा इकाइमों की
सयकायों से स्वतन्त्र हो।‖
2. सॊविधान का यऺक – बायत भें एक मरखखत औय कठोय सॊववधान को अऩनामा गमा है औय इसके साथ ही
सॊववधान की सवोच्चता के मसर्द्ान्त को भान्मता प्रदान की गमी है । सॊववधान की सवोच्चता को फनामे
यखने का कामथ सवोच्च न्मामारम के द्वाया ही ककमा जाता है । सवोच्च न्मामारम के द्वाया सॊववधान के
यऺक औय सॊववधान के आर्धकारयक व्माख्माता के रूऩ भें कामथ ककमा जाता है । वह सॊसद द्वाया ननमभथत
ऐसी प्रत्मेक ववर्ध को अवैध घोवषत कय सकता है जो सॊववधान के ववरुर्द् हो। अऩनी इस शन्क्त के आधाय
ऩय वह सॊववधान की प्रबुता औय सवोच्चता की यऺा कयता है । सॊववधान के सम्फन्ध भें ककसी प्रकाय का
वववाद उत्ऩन्न होने ऩय सॊववधान की अर्धकायऩण
ू थ व्माख्मा उसी के द्वाया की जाती है । इस प्रकाय सवोच्च
न्मामारम सॊववधान की यऺा कयता है ।
3. ऩयाभर्शदात्री सॊस्था के रूऩ भें – बायत को सवोच्च न्मामारम एक ऩयाभशथदात्री सॊस्था के रूऩ भें बी ववमशष्ट्ट
दानमत्वों का ननवथहन कयता है । याष्ट्रऩनत ककसी बी भहत्त्वऩूणथ ववषम के सम्फन्ध भें सवोच्च न्मामारम से
ऩयाभशथ भाॉग सकता है । इस सम्फन्ध भें मह उल्रेखनीम है कक न्मामारम के ऩयाभशथ को स्वीकाय कयने मा
न कयने के मरए याष्ट्रऩनत ऩूणथ स्वतन्त्र होता है ।
4. भौसरक अचधकायों का यऺक – सॊववधान के अनच्
ु छे द 32 भें वखणथत है कक न्मामारम सॊववधान द्वाया प्रदत्त
नागरयकों के भौमरक अर्धकायों का अमबयऺक है । बायतीम नागरयकों के भौमरक अर्धकायों का ककसी बी
रूऩ भें हनन होने ऩय व्मन्क्त न्मामारम की शयण रे सकता है । इस सम्फन्ध भें ऩामरी ने कहा है ,
―भौमरक अर्धकायों का भहत्त्व एवॊ सत्ता सभम-सभम ऩय न्मामारमों द्वाया टदमे गमे ननणथमों से मसर्द्
होती है , न्जससे कामथऩामरका की ननयॊ कुशता तथा ववधानभण्डरों की स्वेच्छाचारयता से नागरयकों की यऺा
होती है ।
5. बायत का अक्न्तभ न्मामारम – बायत की न्मानमक व्मवस्था भें सवोच्च न्मामारम अन्न्तभ न्मामारम है ।
ऩरयणाभस्वरूऩ इसके ननणथम अन्न्तभ व सवथभान्म होते हैं। इन ननणथमों भें ऩरयवतथन केवर वह ही कय
सकता है ।
अन्तत: सवोच्च न्मामारम की आवश्मकता व भहत्त्व को डॉ० एभ० वी० ऩामरी के इस कथन से प्रभाखणत
ककमा जा सकता है , ―सवोच्च न्मामारम सॊघीम व्मवस्था का एक आवश्मक अॊग है । मह सॊववधान की
व्माख्मा कयने वारा, केन्द्र व याज्मों के भध्म उत्ऩन्न वववादों का ननयाकयण कयने वारा तथा नागरयकों के
अर्धकायों की यऺा कयने वारा अन्न्तभ अमबकयण है । ‖

सिोच्च न्मामारम का गठन


सॊववधान के द्वाया सवोच्च न्मामारम के न्मामाधीशों की सॊख्मा , सवोच्च न्मामारम का ऺेत्रार्धकाय,
न्मामाधीशों के वेतन मा सेवा-शते ननन्श्चत कयने का अर्धकाय सॊसद को टदमा गमा था। अनुच्छे द 124 के
अनस
ु ाय, ―बायत का एक उच्चतभ न्मामारम होगा, न्जसभें एक भख्
ु म न्मामाधीश तथा सात अन्म
न्मामाधीश होंगे। ‖ ऩयन्तु इस सम्फन्ध भें सॊववधान भें मह व्मवस्था की गमी है कक सॊसद ववर्ध के द्वाया
न्मामाधीशों की सॊख्मा भें ववृ र्द् कय सकती है । वतथभान सभम भें 1985 ई० भें ऩारयत ववर्ध के अन्तगथत
सॊसद द्वाया सवोच्च न्मामारम के न्मामाधीशों की सॊख्मा 31 कय दी गमी है । वतथभान सभम भें सवोच्च
न्मामारम भें 1 भुख्म न्मामाधीश व 30 अन्म न्मामाधीश होते हैं। उच्चतभ न्मामारम के भुख्म न्मामाधीश
की ननमुन्क्त याष्ट्रऩनत द्वाया उच्चतभ न्मामारम तथा उच्च न्मामारमों के न्मामाधीशों के ऩयाभशथ से की
जाती है तथा अन्म न्मामाधीशों की ननमन्ु क्त याष्ट्रऩनत द्वाया भख्
ु म न्मामाधीश के ऩयाभशथ से की जाती है ।

न्मामाधीशों की मोग्मताएॉ (भख्


ु म न्मामाधीश) – सॊववधान द्वाया उच्चतभ न्मामारम का न्मामाधीश फनने
के मरए ननम्नमरखखत मोग्मताएॉ ननधाथरयत की गमी हैं –

1. वह बायत को नागरयक हो।


2. वह कभ-से-कभ ऩाॉच वषथ तक ककसी उच्च न्मामारम के न्मामाधीश ऩद ऩय कामथ कय चुका हो
अथवा वह दस वषथ तक ककसी उच्च न्मामारम भें अर्धवक्ता यहा हो।
3. याष्ट्रऩनत की दृन्ष्ट्ट भें ववख्मात ववर्धवेत्ती हो।
4. उसकी आमु 65 वषथ से कभ हो।
कामशकार – उच्चतभ न्मामारम का प्रत्मेक न्मामाधीश 65 वषथ की आमु तक अऩने ऩद ऩय फना यह सकता
है । 65 वषथ की आमु ऩण
ू थ कयने के ऩश्चात ् उसे ऩदभक्
ु त कय टदमा जाता है , ऩयन्तु मटद न्मामाधीश सभम
से ऩूवथ ऩदत्माग कयना चाहता है , तो वह याष्ट्रऩनत को अऩना.त्माग-ऩत्र दे कय भुक्त,हो सकता है ।
भहासबमोग – सॊवैधाननक प्रावधान के अनस
ु ाय दव्ु मथवहाय व भ्रष्ट्टाचाय के आयोऩ भें मरप्त ऩामे जाने ऩय
सवोच्च न्मामारम के न्मामाधीश को सॊसद द्वाया 2/3 फहुभत से भहामबमोग रगाकय, याष्ट्रऩनत के भाध्मभ
से ऩदच्मत
ु ककमा जा सकता है ।
र्ऩथ – उच्चतभ न्मामारम के न्मामाधीश ऩद को ग्रहण कयने से ऩूवथ प्रत्मेक न्मामाधीश याष्ट्रऩनत के सभऺ
शऩथ रेता है ।
िेतन ि बत्ते – नवीन वेतनभानों के आधाय ऩय सवोच्च न्मामारम के भुख्म न्मामाधीश को य 2,80,000
भामसक वेतन व अन्म न्मामाधीशों को 2,50,000 भामसक वेतन की धनयामश दे ना ननन्श्चत ककमा गमा है ।
इसके अनतरयक्त न्मामाधीशों के मरए नन:शुल्क आवास व सेवा-ननवन्ृ त्त के ऩश्चात ् ऩें शन दे ने की व्मवस्था
बी की गमी है । इस सम्फन्ध भें मह स्भयणीम है कक न्मामाधीशों को वेतन व बत्ते बायत की सॊर्चत ननर्ध
भें से टदमे जाते हैं , जो सॊसद के अर्धकायऺेत्र से भक्
ु त होता है । इसके साथ ही न्मामाधीशों के वेतन भें
उनके कामथकार के सभम भें कोई अराबकायी ऩरयवतथन नहीॊ ककमा जा सकता। केवर ववत्तीम आऩात के
सभम सवोच्च न्मामारम के न्मामाधीशों के वेतन-बत्ते कभ ककमे जा सकते हैं।
उन्भक्ु ततमाॉ – सॊववधान द्वाया न्मामाधीशों को प्राप्त उन्भुन्क्तमाॉ ननम्नमरखखत हैं –
1. न्मामाधीशों के कामों व ननणथमों को आरोचना से भक्
ु त यखा गमा है ।
2. ककसी बी ननणथम के सम्फन्ध भें न्मामाधीश ऩय मह आयोऩ नहीॊ रगामा जा सकता कक उसने वह
ननणथम स्वाथथवश तथा ककसी के टहत ववशेष को ध्मान भें यखकय मरमा है ।
3. भहामबमोग के अनतरयक्त ककसी अन्म प्रकक्रमा के द्वाया न्मामाधीश के आचयण के ववषम भें कोई
चचाथ नहीॊ की जा सकती।
िकारत ऩय योक – जो व्मन्क्त बायत के सवोच्च न्मामारम भें न्मामाधीश के ऩद ऩय आसीन हो जाती है , वह
अवकाश ग्रहण कयने के ऩश्चात ् बायत के ककसी बी न्मामारम भें मा ककसी अन्म अर्धकायी के सभऺ
वकारत नहीॊ कय सकता। सॊववधान द्वाया मह व्मवस्था न्मामाधीशों को अऩने कामथकार भें ननष्ट्ऩऺ व
स्वतन्त्र होकय अऩने दानमत्वों का ननवथहन कयने के उद्देश्म को दृन्ष्ट्ट भें यखकय की गमी है ।
[सॊकेत – उच्चतभ न्मामारम के कामथ व ऺेत्रार्धकाय तथा न्मामारम की स्वतन्त्रता का सॊयऺण हे तु दीघथ
प्रश्न 4 का अध्ममन कयें ।]
प्रश्न 4.
उच्चतभ न्मामारम को अमबरेख न्मामारम क्मों कहते हैं ? उसके ऺेत्रार्धकाय का वणथन कीन्जए।
मा
नागरयकों के भौमरक अर्धकायों की यऺा के मरए उच्चतभ न्मामारम तथा उच्च न्मामारम ककस प्रकाय के
रेख (रयट) जायी कय सकते हैं ? ककन्हीॊ दो का उदाहयण दे ते हुए सभझाइए।
मा
सवोच्च न्मामारम के ऺेत्रार्धकाय का वणथन कीन्जए औय मह बी फताइए कक न्मामऩामरका की स्वतन्त्रता
हे तु सॊववधान भें क्मा प्रावधान ककए गए हैं ?
मा
बायत के सवोच्च न्मामारम की शन्क्तमों औय अर्धकायों का सॊक्षऺप्त वववयण दीन्जए।
मा
बायत के सवोच्च न्मामारम के ऺेत्रार्धकाय का वणथन कीन्जए।
मा
बायतीम सवोच्च न्मामारम के कामथ एवॊ शन्क्तमों का उल्रेख कीन्जए।
मा
न्मामऩामरका को स्वतन्त्र यखने के मरए सॊववधान भें क्मा व्मवस्थाएॉ की गमी हैं ? सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
मा
सवोच्च न्मामारम के प्रायन्म्बक तथा अऩीरीम ऺेत्रार्धकाय का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
मा
सवोच्च न्मामारम की स्वतन्त्रता का सॊयऺण ककस प्रकाय ककमा गमा है ?
उत्तय :
सिोच्च न्मामारम के कामश औय अचधकाय
सवोच्च न्मामारम बायत का सवोऩरय न्मामारम है । अतएव उसे अत्मर्धक ववस्तत
ृ अर्धकाय प्रदान ककमे
गमे हैं। इन अर्धकायों को ननम्नमरखखत सन्दबो भें सभझा जा सकता है –

(1) प्रायक्म्बक ऺेत्राचधकाय


ु ाशदास फसु ने कहा कक ―मद्मवऩ हभाया सॊववधान एक सन्न्ध मा सभझौते के रूऩ भें नहीॊ है , कपय बी सॊघ
श्री दग
तथा याज्मों के फीच व्मवस्थावऩका तथा कामथऩामरका सम्फन्धी अर्धकायों का ववबाजन ककमा गमा है । अत्
अनुच्छे द 131 सॊघ तथा याज्म मा याज्मों के फीच न्माम-मोग्म वववादों के ननणथम का प्रायन्म्बक तथा एकभेव
ऺेत्रार्धकाय सवोच्च न्मामारम को सौंऩता है । ‖
इस ऺेत्रार्धकाय को ऩन
ु ् दो वगों भें यखा जा सकता है –

(क) प्रायक्म्बक एकभेि ऺेत्राचधकाय – प्रायन्म्बक ऺेत्रार्धकाय के अन्तगथत वे अर्धकाय आते हैं जो उच्चतभ
न्मामारम के अनतरयक्त ककसी अन्म न्मामारम को प्राप्त नहीॊ हैं। सवोच्च न्मामारम कुछ उन वववादों ऩय
ववचाय कयता है न्जन ऩय अन्म न्मामारम ववचाय नहीॊ कय सकते हैं। मे वववाद ननम्नमरखखत प्रकाय के होते
हैं –
1. बायत सयकाय तथा एक मा एक से अर्धक याज्मों के फीच वववाद।
2. वे वववाद न्जनभें बायत सयकाय तथा एक मा एक से अर्धक याज्म एक ओय हों औय एक मा एक से
अर्धक याज्म दस
ू यी ओय हों।
3. दो मा दो से अर्धक याज्मों के फीच वववाद।
इस सम्फन्ध भें मह ध्मान दे ने मोग्म तथ्म है कक 26 जनवयी, 1950 के ऩूवथ जो सन्न्धमाॉ अथवा सॊववदाएॉ
बायत सॊघ औय दे शी याज्मों के फीच की गमी थीॊ औय मटद वे इस सभम बी रागू हों तो उन ऩय उत्ऩन्न
वववाद सवोच्च न्मामारम के ऺेत्रार्धकाय के फाहय है ।

(ख) प्रायक्म्बक सभिती ऺेत्राचधकाय – बायतीम सॊववधान भें मरखखत भूर अर्धकायों को रागू कयने का अर्धकाय
सवोच्च न्मामारम के साथ ही उच्च न्मामारमों को बी प्रदान कय टदमा गमा है । सॊववधान के अनुच्छे द 32
द्वाया सवोच्च न्मामारम को मह न्जम्भेदायी दी गमी है कक वह भौमरक अर्धकायों को रागू कयने के मरए
उर्चत कामथवाही कये ।
(2) अऩीरीम ऺेत्राचधकाय
बायत भें एकीकृत न्मानमक-प्रणारी अऩनाने के कायण याज्मों के उच्च न्मामारम सवोच्च न्मामारम के
अधीन हैं औय इस रूऩ भें उसका इन उच्च न्मामारमों ऩय अधीऺण औय ननमॊत्रण स्थावऩत ककमा गमा है ।
सवोच्च न्मामारम भें सबी उच्च न्मामारमों औय न्मामार्धकयणों द्वाया , केवर सैननक न्मामारम को
छोडकय, सॊवैधाननक, दीवानी औय पौजदायी भाभरों भें टदमे गमे ननणथमों के ववरुर्द् अऩीर की जा सकती है ।
सवोच्च न्मामारम के अऩीरीम ऺेत्रार्धकाय को ननम्नमरखखत वगों भें यखा जा सकता है –

ै ाननक अऩीरें – सॊवैधाननक भाभरों से सम्फन्न्धत उच्च न्मामारम के ववरुर्द् सवोच्च न्मामारम भें
(क) सॊिध
अऩीर तफ की जा सकती है जफ कक उच्च न्मामारमे मह प्रभाखणत कय दे कक इस वववाद भें ―सॊववधान की
व्माख्मा से सम्फन्न्धत ववर्ध का कोई सायवान प्रश्न सन्न्नटहत है । रेककन मटद उच्च न्मामारम ऐसा
प्रभाण-ऩत्र दे ने से इॊकाय कय दे ता है तो स्वमॊ सवोच्च न्मामारम सॊववधान के अनुच्छे द 136 के अन्तगथत
अऩीर की ववशेष आऻा दे सकती है , मटद उसे मह ववश्वास हो जाए कक उसभें कानून का कोई सायवान
प्रश्न सन्न्नटहत है । ननवाथचन आमोग फनाभ श्री वेंकटयावे (1953) के भुकदभे भें मह प्रश्न उठामा गमा था
कक क्मा ककसी सॊवैधाननक ववषम भें अनुच्छे द 132 के अधीन ककसी अकेरे न्मामाधीश के ननणथम की अऩीर
बी सवोच्च न्मामारम भें की जा सकती है अथवा नहीॊ। सवोच्च न्मामारम ने इसका उत्तय ‗हाॉ‘ भें टदमा
है ।
(ख) दीिानी की अऩीरें – सॊववधान द्वाया दीवानी भाभरों भें सवोच्च न्मामारम द्वाया अऩीर सन
ु े जाने की
व्मवस्था की गमी है । ककसी बी यामश का भुकदभा सवोच्च न्मामारम के ऩास आ सकता है , जफ उच्च
न्मामारम मह प्रभाण-ऩत्र दे दे कक भक
ु दभा सवोच्च न्मामारम के सन
ु ने मोग्म है मा उच्च न्मामारम मह
प्रभाण-ऩत्र दे दे कक भुकदभे भें कोई कानूनी प्रश्न वववादग्रस्त है । मटद उच्च न्मामारम ककसी दीवानी
भाभरे भें इस प्रकाय का प्रभाण-ऩत्र न दे तो सवोच्च न्मामारम स्वमॊ बी ककसी व्मन्क्त को अऩीर कयने
की ववशेष आऻा दे सकता है ।
(ग) पौजदायी की अऩीरें – पौजदायी के भाभरे भें बी सवोच्च न्मामारम, उच्च न्मामारम के ननणथम के ववरुर्द्
अऩीर सुन सकता है । मे अऩीरें इन दशाओॊ भें की जा सकती हैं –
1. जफ ककसी उच्च न्मामारम ने अधीन न्मामारम के दण्ड-भुन्क्त के ननणथम को यद्द कयके अमबमुक्त
को भत्ृ मु-दण्ड दे टदमा हो।
2. जफ कोई उच्च न्मामारम मह प्रभाण-ऩत्र दे दे कक वववाद उच्चतभ न्मामारम के सम्भुख प्रस्तुत
ककमे जाने मोग्म है ।
3. जफ ककसी उच्च न्मामारम के ककसी भाभरे को अधीनस्थ न्मामारम से भॉगाकय अमबमुक्त को
भत्ृ मु-दण्ड टदमा हो।
4. मटद सवोच्च न्मामारम ककसी भुकदभे भें मह अनुबव कयता है कक ककसी व्मन्क्त के साथ वास्तव
भें अन्माम हुआ है , तो वह सैननक न्मामारमों के अनतरयक्त ककसी बी न्मामार्धकयण के ववरुर्द्
अऩीर कयने की ववशेष आऻा प्रदान कय सकता है ।
(घ) विसर्ष्ट्ि अऩीर – अनुच्छे द 136 द्वाया सवोच्च न्मामारम को मह बी अर्धकाय प्रदान ककमा गमा है कक
वह अऩने वववेक से प्रबाववत ऩऺ को अऩीर का अर्धकाय प्रदान कये । ककसी सैननक न्मामार्धकयण के
ननणथम को छोडकय सवोच्च न्मामारम बायत के ककसी बी उच्च न्मामारमे मा न्मामार्धकयण के ननणथम
दण्ड मा आदे श के ववरुर्द् अऩीर की ववशेष आऻा प्रदान कय सकता है , चाहे बरे ही उच्च न्मामारम ने
अऩीर की आऻा से इॊकाय ही क्मों न ककमा हो।
अऩीरीम ऺेत्रार्धकाय के दृन्ष्ट्टकोण से बायत का सवोच्च न्मामारम ववश्व भें सफसे अर्धक शन्क्तशारी है ।
सवोच्च न्मामारम के अऩीरीम ऺेत्रार्धकाय को रक्ष्म कयते हुए ही 1950 ई० को सवोच्च न्मामारम के
उद्घाटन के अवसय ऩय बाषण दे ते हुए श्री एभ० सी० सीतरवाड ने कहा था कक ―मह कहना सत्म होगा
कक स्वरूऩ व ववस्ताय की दृन्ष्ट्ट से इस न्मामारम का ऺेत्रार्धकाय औय शन्क्तमाॉ याष्ट्रभण्डर के ककसी बी
दे श के सवोच्च न्मामारम तथा सॊमुक्त याज्म अभेरयका के सवोच्च न्मामारम के कामथऺेत्र तथा शन्क्तमों से
व्माऩक हैं।‖

(3) सॊविधान का यऺक ि भर


ू अचधकायों का प्रहयी
सॊववथान की व्माख्मा तथा यऺा कयना बी सवोच्च न्मामारम का एक भुख्म कामथ है । जफ कबी सॊववधान
की व्माख्मा के फाये भें कोई भतबेद उत्ऩन्न हो जाए तो सवोच्च न्मामारम इस ववषम भें स्ऩष्ट्टीकयण
दे कय उर्चत व्माख्मा कयता है । सवोच्च न्मामारम द्वाया की गमी व्माख्मा को अन्न्तभ तथा सवोच्च भाना
जाता है । केवर सॊववधान की व्माख्मा कयना ही नहीॊ , फन्ल्क इसकी यऺा कयना बी सवोच्च न्मामारम का
कामथ है । सवोच्च न्मामारम को व्मवस्थावऩका औय कामथऩामरका के कामों का ऩुनयवरोकन कयने का बी
अर्धकाय है । मटद सवोच्च न्मामारम को मह ववश्वास हो जाए कक सॊसद द्वाया फनामा गमा कोई कानून मा
कामथऩामरका का कोई आदे श सॊववधान का उल्रॊघन कयता है तो वह उस कानून व आदे श को असॊवैधाननक
घोवषत कयके यद्द कय सकता है । इस प्रकाय न्मामारम सॊववधान की सवोच्चता कामभ यखता है ।

सॊववधान की धाया 32 के अनस


ु ाय न्मामारम का मह बी उत्तयदानमत्व है कक वह भर
ू अर्धकायों की यऺा
कये । इन अर्धकायों की यऺा के मरए मह न्मामारम फन्दी प्रत्मऺीकयण , ऩयभादे श, प्रनतषेध, अर्धकाय ऩच्
ृ छा
औय उत्प्रेषण रेख जायी कयता है ।

(4) ऩयाभर्शदात्री ऺेत्राचधकाय


सवोच्च न्मामारम के ऩास ऩयाभशथदात्री ऺेत्रार्धकाय बी है । अनुच्छे द 143 के अनुसाय, मटद कबी याष्ट्रऩनत
को मह प्रतीत हो कक ववर्ध मा तथ्मों के फाये भें कोई ऐसा भहत्त्वऩण
ू थ प्रश्न उठामा गमा है मा उठने वारा
है , न्जस ऩय सवोच्च न्मामारम की याम रेना जरूयी है तो वह उस प्रश्न को ऩयाभशथ के मरए सवोच्च
न्मामारम के ऩास बेज सकता है , ककन्तु अनुच्छे द 143 ‗फाध्मकायी प्रकृनत का नहीॊ है । मह न तो याष्ट्रऩनत
को फाध्म कयता है कक वह सावथजननक भहत्त्व के ववषम ऩय न्मामारम की याम भाॉगे औय न ही सवोच्च
न्मामारम को फाध्म कयता है कक वह बेजे गमे प्रश्न ऩय अऩनी याम दे । वैसे बी मह याम न्मानमक
उद्घोषणा‘ मा ‗न्मानमक ननणथम नहीॊ है । इसीमरए इसे भानने के मरए याष्ट्रऩनत फाध्म नहीॊ है ।

अफ तक याष्ट्रऩनत ने सवोच्च न्मामारम से अनेक फाय ऩयाभशथ भाॉगा है । केयर मशऺा ववधेमक , 1947 भें,
‗याष्ट्रऩनत के चुनाव ऩय एवॊ 1978 ई० भें ‗ववशेष अदारत ववधेमक ऩय भाॉगी गमी सम्ऩनतमाॉ अर्धक
भहत्त्वऩूणथ यही हैं।

सवोच्च न्मामारम का ऩयाभशथ सम्फन्धी ऺेत्रार्धकाय भुकदभेफाजी को योकने मा उसे कभ कयने भें सहामक
होता है । सॊमुक्त याज्म अभेरयका औय ऑस्रे मरमा के सवोच्च न्मामारमों द्वाया सराहकाय की बूमभका अदा
कयना ऩसन्द नहीॊ ककमा गमा है । इस सम्फन्ध भें बायत की व्मवस्था कनाडा औय फभाथ के अनुरूऩ है ।

(5) अन्म ऺेत्राचधकाय


(क) अधीनस्थ न्मामारमों की जाॉच – सवोच्च न्मामारम को अऩने अधीनस्थ न्मामारमों के कामों की जाॉच
कयने का अर्धकाय प्राप्त है ।
(ख) न्मामारमों की कामशिाही सॊचारन हेतु ननमभ फनाना – सवोच्च न्मामारम को अऩने अधीनस्थ न्मामारमों की
कामथवाही सुचारु रूऩ से चराने हे तु ननमभ फनाने का अर्धकाय है , ऩयन्तु उन ननमभों ऩय याष्ट्रऩनत की
स्वीकृनत अननवामथ होती है ।
ु विशचाय का अचधकाय – सवोच्च न्मामारम मटद ऐसा अनुबव कये कक वह अऩने ननणथम भें कोई बूर कय
(ग) ऩन
फैठा है मा उसके ननणथम भें कोई कभी यह गमी है , तो उस वववाद ऩय ऩन
ु ववथचाय कयने की प्राथथना की जा
सकती है । सवोच्च न्मामारम ने अऩने ऩहरे ननणथम को फदरकय अनेक फाय नमे ननणथम टदमे हैं।
(6) असबरेख न्मामारम
अनुच्छे द 129 सवोच्च न्मामारम को अमबरेख न्मामारम का स्थान प्रदान कयता है । इसके दो अथथ हैं –

1. सवोच्च न्मामारम के ननणथम औय अदारती कामथवाही को अमबरेख के रूऩ भें यखा जाएगा जो
अधीनस्थ न्मामारमों भें दृष्ट्टान्त के रूऩ भें प्रस्तत
ु ककमे जाएॉगे औय उनकी प्राभाखणकता के फाये भें
ककसी प्रकाय का सन्दे ह नहीॊ ककमा जाएगा।
2. इस न्मामारम द्वाया न्मामारम की अवभानना‘ के मरए दण्ड टदमा जा सकता है । वैसे तो मह फात
प्रथभ न्स्थनत भें स्वत् ही भान्म हो जाती है , रेककन सॊववधान भें इस न्मामारम की अवभानना
कयने वारों के मरए दण्ड की व्मवस्था ववमशष्ट्ट रूऩ से की गमी है ।
सवोच्च न्मामारम के उऩमुक्
थ त वववेचन से स्ऩष्ट्ट हो जाता है कक सवोच्च न्मामारम का सवथप्रभुख कामथ
सॊववधान की यऺा कयना ही है । इस सम्फन्ध भें श्री डी० के० सेन ने मरखा है , ―न्मामारम बायत के सबी
न्मामारमों के न्मानमक ननयीऺण की शन्क्तमाॉ यखता है औय वही सॊववधान का वास्तववक व्माख्माता औय
सॊयऺक है । उसका मह कतथव्म होता है कक वह मह दे खे कक उसके प्रावधानों को उर्चत रूऩ भें भाना जा
यहा है औय जहाॉ कहीॊ आवश्मक होता है वहाॉ वह उसके प्रावधानों को स्ऩष्ट्ट कयता है । ‖
सॊऺेऩ भें , भौमरक अर्धकायों को छोडकय बायतीम सवोच्च न्मामारम की शन्क्तमाॉ ‗ववश्व के ककसी बी
सवोच्च न्मामारम से अर्धक हैं। इस ऩय बी बायत का सवोच्च न्मामारम अभेरयका के सवोच्च न्मामारम
से अर्धक शन्क्तशारी नहीॊ है , क्मोंकक इसकी शन्क्तमाॉ ‗कानून द्वाया स्थावऩत प्रकक्रमा के कायण भमाथटदत
हैं, इसीमरए मह सॊसद के तीसये सदन की बूमभका नहीॊ अऩना सकता है ।।

सिोच्च न्मामारम की स्ितन्त्रता


बायतीम सॊववधान भें सवोच्च न्मामारम की स्वतन्त्रता की यऺा के मरए अनेक प्रावधान ककमे गमे हैं , जो
ननम्नवत ् हैं –

1. न्मामऩामरका को कामथऩामरका तथा व्मवस्थावऩका से ऩथ


ृ क् कय टदमा गमा है ।
2. न्मामाधीशों के वेतन तथा बत्ते बायत सयकाय की सॊर्चत ननर्ध से टदमे जाते हैं। न्मामाधीशों के
मरए ऩमाथप्त वेतन की व्मवस्था की गमी है । न्मामाधीशों के वेतन व बत्तों भें ककसी बी प्रकाय की
कटौती नहीॊ की जा सकती है ।
3. न्मामाधीश अऩने ऩद ऩय 65 वषथ की आमु तक कामथ कय सकते हैं। मद्मवऩ भहामबमोग रगाकय
न्मामाधीशों को अऩने ऩद से हटाने का प्रावधान बायतीम सॊववधान भें ककमा गमा है , ऩयन्तु वह फहुत
जटटर है ; इसमरए न्मामाधीशों को उनके ऩद से हटाना बी सयर नहीॊ है ।
4. न्मामाधीशों की ननमन्ु क्त याष्ट्रऩनत द्वाया की जाती है । सॊसद का इसभें कोई हस्तऺेऩ नहीॊ है । इस
कायण न्मामाधीश ऩूणथ स्वतन्त्र यहते हैं।
5. सवोच्च न्मामारम के न्मामाधीशों के ननणथमों व कामों की आरोचना नहीॊ की जा सकती है । इस
कायण बी सवोच्च न्मामारम के न्मामाधीश स्वतन्त्रताऩूवक
थ कामथ कयते हैं।
6. सवोच्च न्मामारम को अऩने कभथचायी वगथ ऩय ऩण
ू थ ननमॊत्रण प्राप्त है ।
7. सवोच्च न्मामारम को अऩनी कामथप्रणारी के सॊचारन हे तु ननमभ फनाने का अर्धकाय है ।
प्रश्न 5.
जनटहत मार्चकाएॉ (जनटहत अमबमोग) के अथथ एवॊ भहत्त्व ऩय प्रकाश डामरए।
मा
जनटहत मार्चका से आऩ क्मा सभझते हैं ? बायतीम न्माम-व्मवस्था भें इनकी बूमभका का भूल्माॊकन
कीन्जए।
उत्तय :
जनदहत माचचकाएॉ (जनदहत असबमोग) का अथश
न्माम के प्रसॊग भें ऩयम्ऩयागत धायणा मह यही है कक न्मामारम से न्माम ऩाने को हक उसी व्मन्क्त को है
न्जसके भर
ू अर्धकायों ऩय ववऩयीत प्रबाव ऩडता है , न्जसे स्वमॊ मा न्जसके ऩारयवारयक जन को कोई ऩीडा
ऩहुॉची है , ककन्तु आज की ऩरयन्स्थनतमों भें न्मानमक सकक्रमतावाद के अन्तगथत सवोच्च न्मामारम ने आॊग्र
ववर्ध के उऩमक् ुथ त ननमभ को ऩरयवनतथत कयते हुए मह व्मवस्था की है कक कोई बी व्मन्क्त ककसी ऐसे सभह ू
मा वगथ की ओय से भुकदभा रड सकता है , न्जसको उसके कानून मा सॊवैधाननक अर्धकायों से वॊर्चत कय
टदमा गमा हो। सवोच्च न्मामारम ने मह स्ऩष्ट्ट कय टदमा कक गयीफ , अऩॊग अथवा साभान्जक एवॊ आर्थथक
दृन्ष्ट्ट से दमरत रोगों के भाभरे भें आभ जनता का कोई आदभी न्मामारम के सभऺ ‗वाद‘ (भुकदभा) रा
सकता है । न्मामारम अऩने साये तकनीकी औय कामथववर्ध सम्फन्धी ननमभों की ऩयवाह ककमे ब्रफना ‗वाद‘
मरखखत रूऩ भें दे ने भात्र से ही कामथवाही कये गा। न्मामाधीश कृष्ट्णा अय्मय के अनुसाय , ‗वाद कायण‘ औय
‗ऩीडडत व्मन्क्त की सॊकुर्चत धायणा का स्थान अफ ‗वगथ कामथवाही औय रोकटहत भें कामथवाही की व्माऩक
धायणा ने रे मरमा है । ऐसे भाभरे व्मन्क्तगत भाभरों से मबन्न होते हैं। वैमन्क्तक भाभरों भें ‗वादी‘ औय
‗प्रनतवादी होते हैं, जफ कक जनटहत सॊयऺण से सम्फन्न्धत भाभरे ककसी एक व्मन्क्त के फजाम ऐसे सभूह
के टहतों की यऺा ऩय फर दे ते हैं जो कक शोषण औय अत्माचाय का मशकाय होता है औय न्जसे सॊवैधाननक
औय भानवीम अर्धकायों से वॊर्चत कय टदमा जाता है ।

इस प्रकाय सवोच्च न्मामारम ने गयीफ औय असहाम रोगों की ओय से जनटहत भें कामथ कयने वारे प्रत्मेक
व्मन्क्त को भुकदभा रडने का अर्धकाय दे टदमा है । इस प्रकाय के भुकदभे के मरए जो . प्राथथना-ऩत्र प्रस्तुत
ककमा जाता है , वह जनटहत मार्चका‘ है तथा इस प्रकाय का भुकदभा जनटहत अमबमोग है ।

जनदहत माचचकाओॊ का भहत्त्ि


जनटहत मार्चकाओॊ का भहत्त्व ननम्नमरखखत रूऩ भें फतामा जा सकता है –

1. सभाज के ननधशन व्मक्ततमों औय कभजोय िगों को न्माम प्रातत होना – बायत भें कयोडों ऐसे व्मन्क्त हैं जो
याजव्मवस्था औय सभाज के धनी-भानी व्मन्क्तमों के अत्माचाय बुगत यहे हैं , न्जनका शोषण हो यहा है ,
रेककन उनके ऩास न्मामारम भें जाने के मरए आवश्मक जानकायी , सभझ औय साधन नहीॊ हैं। जनटहत
मार्चकाओॊ के भाध्मभ से अफ सभाज के मशक्षऺत औय साधन सम्ऩन्न व्मन्क्त इन कभजोय वगों की ओय
से न्मामारम भें जाकय इनके मरए न्माम प्राप्त कय सकते हैं। जनटहत मार्चकाओॊ की ववशेष फात मह है
कक ‗वाद‘ प्रस्तत
ु कयने के मरए कानन
ू ी औऩचारयकताओॊ को ऩयू ा कयना आवश्मक नहीॊ होता औय इन
भुकदभों भें न्मामारम ऩीडडत ऩऺ के मरए आवश्मकतानुसाय नन:शुल्क कानूनी सहामता की व्मवस्था बी
कयता है ।
ू ी न्माम के साथ-साथ आचथशक-साभाक्जक न्माम ऩय फर – जनटहत मार्चकाओॊ औय न्मानमक सकक्रमता के
2. कानन
अन्तगथत सॊववधान की बावना को दृन्ष्ट्ट भें यखते हुए इस ववचाय को अऩनामा गमा कक दे श के दीन औय
दमरत जनों के प्रनत न्मामारमों का ववशेष दानमत्व है । अत् इन न्मामारमों को कानूनी न्माम से आगे
फढ़कय आर्थथक-साभान्जक न्माम प्रदान कयने का प्रमत्न कयना चाटहए। उदाहयण के मरए , उत्तय प्रदे श के
हरयजनों के भाभरे भें सवोच्च न्मामारम ने स्वमॊ उनकी आर्थथक-साभान्जक दशाओॊ को जाॉचने के मरए एक
आमोग गटठत ककमा आमोग की जाॉच रयऩोटथ के आधाय ऩय न्मामारम इस ननष्ट्कषथ ऩय ऩहुॉचे कक हरयजनों
का धन्धा ठे के ऩय टदमे जाने से उन्हें न्मूनतभ भजदयू ी बी नहीॊ मभरेगी। सवोच्च न्मामारम ने इस भाभरे
भें इस फात का प्रनतऩादन ककमा कक मटद ननधाथरयत न्मूनतभ भजदयू ी से कभ भजदयू ी दी जाती है तो इसे
सॊववधान के अनच्
ु छे द 23 का उल्रॊघन औय फेगाय भानेंगे। इस प्रकाय फॊधआ
ु भन्ु क्त भोचाथ फनाभ बायत
सयकाय‘ वववाद भें सवोच्च न्मामारम ने ‗फॉधुआ भुन्क्त भोचाथ सॊस्था के ऩत्र को रयट भानकय आमोग ननमुक्
कय जाॉच कयवाई औय जाॉच भें जफ ऩामा कक ‗भजदयू अभानवीम दशा भें कामथयत हैं तफ न्मामारम ने इन
भजदयू ों की भुन्क्त के आदे श टदमे।
3. र्ासन की स्िेच्छाचारयता ऩय ननमॊत्रण – जनटहत मार्चकाओॊ का एक रूऩ औय प्रमोजन शासन की
स्वेच्छाचारयता ऩय ननमॊत्रण है । सॊववधान औय कानून के अन्तगथत उच्च कामथऩामरका अर्धकारयमों को कुछ
‗स्ववववेकीम शन्क्तमाॉ प्रदान की गमी हैं। इस ऩष्ट्ृ ठबूमभ भें जनटहत मार्चकाओॊ औय न्मानमक सकक्रमता के
अन्तगथत सवोच्च न्मामारम ने इस फात का प्रनतऩादन ककमा कक वववेकात्भक शन्क्तमों के अन्तगथत सयकाय
की कामथवाही वववेक सम्भत होनी चाटहए तथा इस कामथवाही को सम्ऩन्न कयने के मरए जो कामथववर्ध
अऩनामी जाए, वह कामथववर्ध बी वववेक सम्भत, उत्तभ औय न्मामऩण
ू थ होनी चाटहए।
4. र्ासन को आिश्मक ननदे र् दे ना – 1993-2003 के वषों भें तो सवोच्च न्मामारम औय उच्च न्मामारमों ने
जनटहत मार्चकाओॊ औय न्मानमक सकक्रमता के आधाय ऩय सभस्त याजनीनतक व्मवस्था भें ऩहरे से फहुत
अर्धक भहत्त्वऩूणथ बूमभका प्राप्त कय री। इन न्मामारमों ने जफ मह दे खा कक जाॉच एजेन्न्समाॉ उच्च
ऩदस्थ अर्धकारयमों के ववरुर्द् जाॉच कामथ भें टढराई फयत यही हैं तफ न्मामारमों ने ववमबन्न जाॉच एजेन्न्समों
को अऩना कामथ ठीक ढॊ ग से कयने के मरए ननदे श टदमे औय इस फात का प्रनतऩादन ककमा कक व्मन्क्त चाहे
ककतना बी फडा हो, कानून उससे ऊऩय है ‘ तथा सयकायी एजेन्सी को अऩना कामथ ननष्ट्ऩऺता के साथ कयना
चाटहए। वऩछरे 20 वषों भें जनटहत मार्चकाओॊ औय न्मानमक सकक्रमता के आधाय ऩय न्मामारमों ने फन्धआ

भजदयू ी औय फार श्रभ की न्स्थनतमाॉ सभाप्त कयने , कानून औय व्मवस्था फनामे यखते हुए ननदोष नागरयकों
के जीवन की यऺा कयने , प्राथमभक मशऺा सम्फन्धी सॊववधान के प्रावधान को अननवामथ रूऩ से रागू कयने ,
फस दघ
ु ट
थ नाओॊ को योकने की दृन्ष्ट्ट से व्मवस्था कयने , सपाई की व्मवस्था कय भहाभारयमों की योकथाभ
कयने, सयसों के तेर औय अन्म खाद्म ऩदाथों भें मभरावट को योकने के मरए आवश्मक व्मवस्था कयने औय
ऩमाथवयण की यऺा आटद के प्रसॊग भें सभम-सभम ऩय अनेक आदे श-ननदे श जायी ककमे हैं।

प्रश्न 1.
‗पेडये शन ऑप वेस्टइॊडीज का जन्भ ककस वषथ हुआ था ?
(क) सन ् 1958 भें
(ख) सन ् 1962 भें
(ग) सन ् 1963 भें
(घ) सन ् 1964 भें
उत्तय :
(क) सन ् 1958 भें
प्रश्न 2.
‗मनू नमन‘ शब्द ककस दे श के सॊववधान से मरमा गमा है ?
(क) ऑस्रे मरमा
(ख) कनाडा
(ग) ब्रिटे न
(घ) सॊमुक्त याज्म अभेरयका
उत्तय :
(ख) कनाडा
प्रश्न 3.
―बायत वस्तुत् एक सॊघात्भक याज्म नहीॊ है , वयन ् अर्द्थ सॊघात्भक याज्म है । ‖ मह ककसका। कथन है ?
(क) के० सी० ह्वीमय
(ख) जी० एन० जोशी
(ग) के० सन्थानभ,
(घ) डॉ० फी०आय० अम्फेडकय
उत्तय :
(ख) जी० एन० जोर्ी।
प्रश्न 4.
―बायत का ढाॉचा सॊघात्भक है , ककन्तु उसकी आत्भा एकात्भक है । ‖ मह ककसका कथन है ?
(क) दग
ु ाथदास फसु
(ख) जन्स्टस सप्रू
(ग) एभ०वी० ऩामरी
(घ) यणजीत मसॊह सयकारयमा
उत्तय :
(ग) एभ०िी० ऩामरी।
प्रश्न 5.
याज्म ऩुनगथठन आमोग का गठन कफ हुआ था?
(क) 1950 ई० भें
(ख) 1952 ई० भें
(ग) 1954 ई० भें
(घ) 1956 ई० भें
उत्तय :
(ग) 1954 ई० भें
प्रश्न 6.
सॊघ सूची भें कुर ककतने ववषम है ?
(क) 66
(ख) 97
(ग) 47
(घ) 100
उत्तय :
(ख) 97
प्रश्न 7.
याज्म सूची भें ककतने ववषम हैं ?
(क) 62
(ख) 64
(ग) 60
(घ) 72
उत्तय :
(क) 62
प्रश्न 8.
सभवती सच
ू ी ऩय कानन
ू ननमभथत कयने का अर्धकाय ककसको प्राप्त है ?
(क) केन्द्र को
(ख) याज्म को
(ग) केन्द्र तथा याज्म दोनों को
(घ) केन्द्र-शामसत प्रदे श को
उत्तय :
(ग) केन्द्र तथा याज्म दोनों को
प्रश्न 9.
ननम्नमरखखत भें से कौन-सा ववषम सॊघ सूची भें सन्म्भमरत नहीॊ है ?
(क) यऺा
(ख) ववदे श
(ग) वाखणज्म
(घ) मशऺा
उत्तय :
(घ) सर्ऺा
प्रश्न 10.
42वें सॊववधान सॊशोधन द्वाया ननम्नमरखखत भें से कौन-सा ववषम सभवती सच
ू ी भें सन्म्भमरत ककमा गमा
है ?
(क) कृवष
(ख) जेर
(ग) ऩुमरस
(घ) वन
उत्तय :
(घ) िन
प्रश्न 11.
आऩातकारीन न्स्थनत भें बायतीम सॊघ का ढाॉचा हो जाता है –
(क) ऩण
ू थ सॊघात्भक
(ख) अर्द्थ-सॊघात्भक
(ग) एकात्भक
(घ) कोई प्रबाव नहीॊ
उत्तय :
(ग) एकात्भक।
प्रश्न 12.
केन्द्र-याज्म सॊफॊधों से जुडे भसरों की जाॉच के मरए सयकारयमा आमोग कफ गटठत ककमा गमा था ?
(क) सन ् 1947 भें
(ख) सन ् 1983 भें
(ग) सन ् 1984 भें
(घ) सन ् 1985 भें
उत्तय :
(ख) सन ् 1983 भें
प्रश्न 13.
प्रशासननक सवु वधा की दृन्ष्ट्ट से उत्तय प्रदे श को ववबान्जत कय कौन-सा याज्म गटठत ककमा गमा ?
(क) उत्तयाखण्ड
(ख) छत्तीसगढ़
(ग) झायखण्ड
(घ) हरयमाणा
उत्तय :
(क) उत्तयाखण्ड।
प्रश्न 14.
कावेयीजर प्रवाह ककन दो याज्मों के भध्म है ?
(क) गुजयात-भहायाष्ट्र
(ख) उत्तयाखण्ड-टहभाचर प्रदे श
(ग) तमभरनाडु-कनाथटक
(घ) भध्म प्रदे श-भहायाष्ट्र
उत्तय :
(ग) तसभरनाडु-कनाशिक
प्रश्न 15.
सॊववधान के अनुच्छे द 370 के अन्तगथत ककस याज्म को ववमशष्ट्ट न्स्थनत प्रदान की गई
(क) ऩॊजाफ
(ख) मभजोयभ
(ग) मसन्क्कभ
(घ) जम्भू-कश्भीय
उत्तय :
(घ) जम्भ-ू कश्भीय
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
बायतीम सॊववधान सॊघात्भक है मा एकात्भक?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान सॊघात्भक बी है औय एकात्भक बी।
प्रश्न 2.
सॊववधान के दो सॊघात्भक तत्त्व फताइए।
उत्तय :
1. मरखखत सॊववधान तथा
2. स्वतन्त्र व ननष्ट्ऩऺ न्मामऩामरका
प्रश्न 3.
बायतीम सॊववधान के दो एकात्भक रऺण फताइए।
उत्तय :
1. शन्क्तशारी केन्द्र तथा
2. इकहयी नागरयकता।
प्रश्न 4.
बायतीम सॊघ भें ककतने याज्म हैं ?
उत्तय :
बायत भें याज्मों की कुर सॊख्मा 29 है ।
प्रश्न 5.
सॊघ सूची भें ककतने ववषम है ?
उत्तय :
सॊघ सूची भें 97 ववषम हैं।
प्रश्न 6.
सॊघ सूची भें सन्म्भमरत ककन्हीॊ दो ववषमों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
1. यऺा तथा
2. वैदेमशक भाभरे।
प्रश्न 7.
सभवती सच
ू ी के दो ववषमों का नाभोल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
1. पौजदायी ववर्ध एवॊ प्रकक्रमा औय
2. मशऺा
प्रश्न 8.
सभवती सूची के ववषमों ऩय ककसे कानून फनाने का अर्धकाय है ?
उत्तय :
सभवती सूची के ववषमों ऩय केन्द्र सयकाय तथा याज्म सयकाय दोनों को ही कानून फनाने का अर्धकाय है ।
प्रश्न 9.
उस ऩरयन्स्थनत का उल्रेख कीन्जए, जफ सॊसद याज्म सूची के ककसी ववषम ऩय कानून फना सकती है ।
उत्तय :
मटद याज्मसबा अऩने 2/3 फहुभत से याज्म सूची भें ननटहत ककसी ववषम को याष्ट्रीम भहत्त्व का घोवषत कय
दे ।
प्रश्न 10.
सॊघ सयकाय की आम के ऐसे दो साधन फताइए, जो याज्म सयकाय की आम के साधन नहीॊ हैं।
उत्तय :
1. केन्द्रीम उत्ऩाद शुल्क तथा
2. आमकय।
प्रश्न 11.
सॊघ सच
ू ी के ववषमों ऩय कानन
ू फनाने का अर्धकाय ककसको है ?
उत्तय :
सॊघ सच ू ी के ववषमों ऩय कानन
ू फनाने का एकभात्र अर्धकाय बायतीम सॊसद को है ।
प्रश्न 12.
केन्द्र तथा याज्मों भें शन्क्तमों का ववबाजन की तीन सर्ू चमों भें से मशऺा ककस सच
ू ी भें
उत्तय :
मशखा को सभवती सूची भें सन्म्भमरत ककमा गमा है ।
प्रश्न 13.
बायतीम सॊववधान भें ववधामी शन्क्तमों का ववबाजन न्जन सर्ू चमों भें ककमा गमा है , उनके नाभ फताइए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें ववधामी शन्क्तमों का ववबाजन ननम्नमरखखत तीन सूर्चमों भें ककमा गमा
1. सॊघ सूची
2. सभवती सच
ू ी तथा
3. याज्म सूची।
प्रश्न 14.
याज्म सूची भें ककतने ववषम हैं ?
उत्तय :
याज्म सूची भें 62 ववषम हैं।
प्रश्न 15.
सभवती सूची भें ककतने ववषम हैं ?
उत्तय :
सभवती सूची भें ववषमों की सॊख्मा 52 है ।
प्रश्न 16.
ववत्त आमोग की ननमन्ु क्त कौन कयता है ?
उत्तय :
ववत्त आमोग की ननमन्ु क्त याष्ट्रऩनत कयती है ।
प्रश्न 17.
याज्म ऩन
ु गथठन आमोग (1956) के अध्मऺ कौन थे ?
उत्तय :
याज्म ऩुनगथठन आमोग के अध्मऺ पजर अरी थे।
प्रश्न 18.
एक सॊघात्भक याज्म भें उच्चतभ (सवोच्च न्मामारम क्मों आवश्मक है ?
उत्तय :
सॊघ औय इकाइमों के फीच वववादों को हर कयने के मरए सॊघात्भक याज्म भें एक उच्चतभ (सवोच्च)
न्मामारम का होना आवश्मक है ।
प्रश्न 19.
बायत को एक सॊघात्भक याज्म क्मों कहा जाता है ?
उत्तय :
बायत 29 याज्मों तथा 7 सॊघशामसत प्रदे श से फना हुआ एक सॊघ है औय इसभें सॊघात्भक याज्म की सबी
ववशेषताएॉ हैं, इसमरए इसे सॊघात्भक याज्म कहा जा सकता है ।
प्रश्न 20.
बायतीम सॊववधान की सॊघात्भकता की ककन्हीॊ दो ववशेषताओॊ का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
1. सॊववधान की सवोच्चता तथा
2. केन्द्र व याज्मों भें शन्क्तमों का ववबाजन।
प्रश्न 21.
याज्म सच
ू ी ऩय कौन कानन
ू फनाता है ?
उत्तय :
याज्म सूची ऩय याज्म सयकाय कानून फनाती है , ऩयन्तु मटद कोई ववषम याष्ट्रीम भहत्त्व का घोवषत ककए
जाने ऩय, उस ऩय कानून फनाने का अर्धकाय केन्द्र सयकाय को प्राप्त हो जाता है ।
प्रश्न 22.
सॊववधान का अनुच्छे द 370 ककस याज्म से सॊफॊर्धत है ?
उत्तय :
सॊववधान का अनुच्छे द 370 जम्भू-कश्भीय याज्म से सॊफॊर्धत है ।
रघु उतयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सॊघात्भक शासन के अथथ को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय :
सॊघात्भक शासन व्मवस्था वह शासन व्मवस्था होती है न्जसभें दो प्रकाय की सयकायें होती हैं। वह सयकाय ,
जो सभस्त दे श का प्रशासन कयती है , ‗सॊघीम सयकाय‘ कहराती है तथा दस
ू यी वह सयकाय, जो याज्म का
प्रशासन कयती है , ‗याज्म-सयकाय‘ कहराती है । िीभैन के शब्दों भें , ―सॊघात्भक शासन वह है जो दस
ू ये याष्ट्रों
के साथ सॊफॊध भें एक याज्म के सभान हो, ऩयन्तु आन्तरयक दृन्ष्ट्ट से मह अनेक याज्मों का मोग हो।‘
डामसी के शब्दों भें , ―सॊघात्भक याज्म एक ऐसे याजनीनतक उऩाम के अनतरयक्त कुछ नहीॊ है न्जसका उद्देश्म
याष्ट्रीम एकता तथा याज्मों के अर्धकायों भें भेर स्थावऩत कयना है । ‖
प्रश्न 2.
बायत भें केन्द्र तथा याज्मों के सॊफॊधों ऩय केन्द्र की न्स्थनत ककस प्रकाय की प्रतीत होती है ?
उत्तय :
केन्द्र तथा याज्मों के भध्म सॊफॊधों के ववश्रेषण से मह स्ऩष्ट्ट हो जाता है कक बायत भें केन्द्रीम सयकाय को
अर्धक शन्क्तशारी फनाने का प्रमास ककमा गमा है । याज्मों की स्वामत्तता की अऩेऺा केन्द्र को शन्क्तशारी
फनाने ऩय अत्मर्धक फर टदमा गमा है । वास्तव भें , फजाम इसके कक केन्द्र के हस्तऺेऩ ऩय प्रनतफन्ध रगाए
जाते, सॊववधान ने याज्मों की शन्क्तमों ऩय प्रनतफॊध रगाए हैं। बायतीम सॊववधान भें अनेक ऐसे प्रावधानों की
व्माख्मा की गई है , न्जन्होंने याज्मों की न्स्थनत ऩय ववऩयीत प्रबाव डारा है तथा याज्मों को सॊघ सयकाय के
अधीन कय टदमा है । इस न्स्थनत को दे खते हुए आरोचकों को मह कहने का अवसय प्राप्त हुआ है कक
बायतीम सॊघ ऩूणथ रूऩ से एक सॊघीम याज्म नहीॊ है ।
प्रश्न 3.
सॊघ (केन्द्र) सूची का सॊक्षऺप्त उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
सॊघ (केन्द्र) सच
ू ी के अन्तगथत उन ववषमों को यखा गमा है , न्जन ऩय केवर केन्द्र सयकाय ही कानन
ू ों का
ननभाथण कय सकती है । मे ववषम फहुत भहत्त्वऩूणथ एवॊ याष्ट्रीम स्तय के हैं। सॊघ सूची भें 97 ववषम हैं। इस
सूची भें प्रभुख ववषम–यऺा, वैदेमशक भाभरे , मुर्द् व सन्न्ध तथा फैंककॊग हैं।
प्रश्न 4.
सभवती सच
ू ी ऩय टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय :
औऩचारयक रूऩ भें औय कानूनी दृन्ष्ट्ट से इन तीनों सूर्चमों के ववषमों की सॊख्मा वही फनी हुई है । जो भूर
सॊववधान भें है । रेककन 42वें सॊववधान सॊशोधन द्वाया याज्म-सच ू ी के चाय ववषम (मशऺा, वन, जॊगरी ऩशु
तथा ऩक्षऺमों की यऺा एवॊ नाऩ-तौर) सभवती सूची भें सन्म्भमरत कय टदमे गमे हैं औय सभवती सूची भें
इन चाय के अनतरयक्त एक नवीन ववषम ‗जनसॊख्मा ननमन्त्रण औय ऩरयवाय ननमोजन‘ बी सन्म्भमरत ककमा
गमा है । इस सूची भें साधायणतमा वे ववषम यखे गमे हैं न्जनका भहत्त्व ऺेत्रीम एवॊ सॊघीम दोनों ही दृन्ष्ट्टमों
से है । इस सूची के ववषम ऩय सॊघ तथा याज्म दोनों को ही कानून फनाने का अर्धकाय प्राप्त है । मटद इस
सूची के ककसी ववषम ऩय सॊघीम तथा याज्म सयकाय द्वाया फनामे गमे कानुन ऩयस्ऩय ववयोधी हों तो
साभान्मतमा सॊघ का कानुन भान्म होगा। इस सूची भें कुर 52 ववषम हैं, न्जनभें से कुछ प्रभुख हैं-पौजदायी
ववर्ध तथा प्रकक्रमा, ननवायक ननयोध, वववाह एवॊ वववाह-ववच्छे द, दत्तक एवॊ उत्तयार्धकाय, कायखाने, श्रमभक
सॊघ, औद्मोर्गक वववाद, आर्थथक औय साभान्जक मोजना, साभान्जक सुयऺा औय साभान्जक फीभा, ऩुनवाथस
औय ऩयु ातत्त्व, मशऺा, जनसॊख्मा ननमन्त्रण औय ऩरयवाय ननमोजन, वन इत्माटद।
प्रश्न 5.
बायत के सॊववधान भें शन्क्तशारी केन्द्र की स्थाऩना क्मों की गई है ?
उत्तय :
बायत के सॊववधान भें शन्क्तशारी केन्द्र की स्थाऩना इसमरए की गई है , क्मोकक –
1. मह बायत की एकता तथा अखण्डता की ऩरयचामक है ।
2. मह बायत भें एकता फनाए यखने का भहत्त्वऩण
ू थ एवॊ शन्क्तशारी साधन है ।
3. सभस्त बायत की प्रगनत औय उन्ननत के मरए शन्क्तशारी केन्द्र आवश्मक है ।
4. बायत का इनतहास इस फात को मसर्द् कयता है कक जफ-जफ बायत भें केन्द्रीम सत्ता कभजोय हुई है ,
बायत ऩय ववदे शी याज्मों का आक्रभण हुआ तथा बायत छोटे -छोटे याज्मों की आन्तरयक पूट के कायण
अनेक वषों तक दासता की जॊजीयों भें जकडा यहा। इसीमरए बायत के सॊववधान-ननभाथताओॊ ने सोच-ववचाय
कय शन्क्तशारी केन्द्र की स्थाऩना की।

प्रश्न 6.
बायत भें सॊघीम व्मवस्था का बववष्ट्म ककस फात ऩय ननबथय कयता है ? सॊऺेऩ भें वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
बायत भें सॊघीम व्मवस्था का बववष्ट्म केन्द्र-याज्म सॊफॊधों के सपर सॊचारन ऩय ननबथय कयता है । केन्द्र तथा
याज्मों का सॊफॊध कनतऩम तात्कामरक सभस्माओॊ के सभाधान ऩय ननबथय कये गा। मे सभस्माएॉ हैं-केन्द्र द्वाया
याज्मों को अऩने ऺेत्र भें अर्धक-से-अर्धक स्वतन्त्रता प्रदान कयना , केन्द्रीम ववत्तीम सॊसाधनों का याज्मों के
भध्म न्मामऩूणथ ववबाजन, खाद्म सभस्मा तथा रयजवथ फैंक भें याज्मों द्वाया ओवय ड्राफ्ट रेना। इन
सभस्माओॊ भें दोनों सयकायों के फीच सहमोग होना चाटहए न कक प्रनतस्ऩधाथ तथा ववयोध।
प्रश्न 7.
बायतीम सॊघवाद के ववमशष्ट्ट रऺणों की सॊऺेऩ भें वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊघवाद के ववमशष्ट्ट रऺण ननम्नमरखखत हैं –
1. सॊववधान के उऩफन्धों द्वाया औऩचारयक रूऩ भें स्थावऩत, बायतीम सॊघीम व्मवस्था का स्वरूऩ
प्रादे मशक है ।
2. बायतीम सॊघवाद ऺैनतज है न्जसका एक सशक्त केन्द्र के प्रनत झुकाव है ।
3. बायतीम सॊघ इस रूऩ भें रचीरा है कक वह ववशेषतमा सॊकटकार भें एकात्भकस्वरूऩ भें सहजता से
फदरा जा सकता है ।
4. बायतीम सॊघ व्मवस्था इस रूऩ भें सहकायी है कक वह साभान्म टहतों के भाभरे भें केन्द्र तथा याज्मों
से सहमोग की अऩेऺा कयती है ।
5. केन्द्र ऩय एक दर के आर्धऩत्म के कायण सॊघ का स्वरूऩ एकात्भक हो गमा है ।
प्रश्न 8.
याष्ट्रऩनत शासन से क्मा आशम है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें याज्मों भें याष्ट्रऩनत शासन की व्मवस्था अनुच्छे द 356 के अन्तगथत की गई है । मह
ननम्नमरखखत ऩरयन्स्थनतमों भें रागू ककमा जा सकता है –
1. ककसी याज्म भें कानून व्मवस्था बॊग हो जाने की न्स्थनत भें।
2. याज्म भें याजनैनतक अन्स्थयता की न्स्थनत भें।
3. ककसी बी दर को चुनाव के फाद सयकाय फनाने के मरए आवश्मक फहुभत प्राप्त न हुआ हो। औय
सयकाय का गठन सम्बव न होने की न्स्थनत भें।
4. सयकाय सॊववधान के अनुसाय न चराई जा यही हो अथाथत ् याज्म भें केन्द्र सयकाय के कानूनों व
आदे शों की अवहे रना हो यही हो।
उऩमक्
ुथ त न्स्थनतमों भें से एक न्स्थनत भें बी याज्मऩार अऩने वववेक के आधाय ऩय ननणथम रेकय याष्ट्रऩनत
शासन की मसपारयश कय सकता है ।

प्रश्न 9.
याज्मऩार की वववेकीम शन्क्तमाॉ सभझाइए।
उत्तय :
न्जन शन्क्तमों को याज्मऩार स्वमॊ भुख्मभॊत्री व भन्न्त्रभण्डर के ऩयाभशथ के ब्रफना प्रमोग कयता है , उन्हें
उसकी वववेकीम शन्क्तमाॉ कहते हैं। याज्मऩार के ऩास अनेक वववेकीम शन्क्तमाॉ हैं न्जनभें प्रभुख
ननम्नमरखखत हैं –
1. याज्मऩार ककसी ऐसे ब्रफर को, न्जसे ववधानसबा ने ऩास कय टदमा हो, याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत के मरए
बेज सकता है ।
2. जफ चुनाव के फाद, याज्म भें ककसी बी दर को सयकाय फनाने के मरए आवश्मक फहुभत प्राप्त न हो
तो याज्मऩार अऩने वववेक के आधाय ऩय ककसी दर के नेता को सयकाय फनाने के मरए आभन्न्त्रत
कयता है ।
3. कानन
ू व्मवस्था का भल्
ू माॊकन व याजनीनतक अन्स्थयता का भल्
ू माॊकन कयना।
4. याष्ट्रऩनत शासन की मसपारयश कयना।
प्रश्न 10.
बायतीम सॊववधान भें ननटहत एकात्भक तत्त्वों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान मद्मवऩ सॊघात्भक है ऩयन्तु उसभें अनेक एकात्भक तत्त्वों का बी सभावेश ककमा गमा
है । इसी कायण के० सी० क्रीमय ने इसे ‗अर्द्थ-सॊघात्भक याज्म की सॊऻा प्रदान की है । बायत की सॊघात्भक
व्मवस्था भें ननम्नमरखखत एकात्भक तत्त्व ऩाए जाते हैं –
1. बायत भें इकहयी नागरयकता है ।
2. बायत का इकहया सॊववधान है ।
3. न्मामऩामरका का स्वरूऩ एकीकृत है ।
4. आऩातकारीन न्स्थनत भें याज्म का सॊघात्भक रूऩ एकात्भक भें ऩरयणत हो जाता है ।
5. याज्म भें याज्मऩारों की ननमुन्क्त याष्ट्रऩनत द्वाया होती है ।
6. याज्म को केन्द्र से ऩथ
ृ क् होने का अर्धकाय नहीॊ है ।
7. सॊसद के उच्च सदन भें याज्मों को सभान प्रनतननर्धत्व प्रदान नहीॊ ककमा गमा है ।
8. केन्द्र; याज्मों की सीभाओॊ , नाभों भें ऩरयवतथन कयके नए याज्म का ननभाथण कय सकता है ।
9. केन्द्र द्वाया अनच्
ु छे द 356 के अन्तगथत याज्म भें याष्ट्रऩनत शासन रागू ककमा जा सकता है ।
प्रश्न 11.
बायतीम याजनीनत ऩय अनुच्छे द 370 के प्रबाव की वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
वतथभान भें अनुच्छे द 370 वववादास्ऩद फना हुआ है क्मोंकक इसके कायण कश्भीय को ववशेष न्स्थनत प्राप्त है
जो उसको शेष बायत से भनोवैऻाननक ढॊ ग से ऩथ ृ क् कयती है । कश्भीय को मह ववशेष न्स्थनत तत्कारीन
अॊतयाथष्ट्रीम न्स्थनत को दे खते हुए अस्थामी रूऩ से प्रदान की गई थी ऩयन्तु याजनीनतऻों न इसे याजनीनतक
राब के मरए स्थामी फना टदमा। अनच् ु छे द 370 के कायण ही कश्भीय को अऩना अरग सॊववधान फनाने का
अर्धकाय प्राप्त हुआ है । बायतीम सॊघ भें केवर जम्भू-कश्भीय ही ऐसा याज्म है न्जसका ऩथ
ृ क् सॊववधान है ।
वहाॉ ऩय कोई बी गैय कश्भीयी बायतीम, बूमभ नहीॊ खयीद सकता है तथा स्थामी रूऩ से ननवास नहीॊ फना
सकता है जफकक 1947 ई० भें कश्भीय से ऩाककस्तान गए रोगों को ऩन
ु ् कश्भीय वाऩस रौटने तथा वहाॉ
फसने का अर्धकाय है ।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
बायत का सॊघात्भक स्वरूऩ अन्म सॊघों से ककस प्रकाय मबन्न है ?
उत्तय :
ववश्व के अनेक याज्मों भें सॊघात्भक शासन व्मवस्था को अऩनामा गमा है । स्वतन्त्रता-प्रान्प्त के उऩयान्त
बायत भें बी सॊघात्भक शासन व्मवस्था की नीॊव डारी गई। हभने अऩनी सॊघात्भक व्मवस्था को अभेरयका
से न रेकय कनाडा से ग्रहण ककमा है । हभने सॊघ के मरए मूननमन शब्द का प्रमोग ककमा है । बायत के सॊघ
को ववद्वानों ने कभजोय सॊघ अथवा अर्द्थ-सॊघ के नाभ से सम्फोर्धत ककमा है । बायत के सॊघ भें सॊघात्भक
सयकाय के सबी रऺणों का सभावेश ककमा गमा है ऩयन्तु कपय बी बायत का सॊघात्भक स्वरूऩ अन्म सॊघों
से अनेक प्रकाय से मबन्न है । जैसे
(1) बायतीम सॊववधान भें कहीॊ ऩय बी सॊघात्भक शब्द का प्रमोग नहीॊ ककमा गमा है , इसभें केवर मह कहा
गमा है कक बायत याज्मों का सॊघ है ।
(2) दस
ू ये सॊघों भें केन्द्र की तर
ु ना भें याज्मों को अर्धक शन्क्तमाॉ प्रदान की गई हैं ऩयन्तु बायत भें याज्मों
की तुरना भें केन्द्र को अर्धक शन्क्तमाॉ प्रदान की गई हैं। सॊघ की सूची भें वखणथत ववषमों की सॊख्मा 97 है
जफकक याज्मों को भात्र 62 ववषम प्रदान ककए गए हैं। सभवती सच
ू ी भें 52 ववषमों को सन्म्भमरत ककमा
गमा है । सभवती सूची ऩय केन्द्र तथा याज्मों (दोनों) को कानून-ननभाथण कयने की शन्क्त प्रदान की गई है
ऩयन्तु मटद इन दोनों के ननमभथत कानूनों भें। टकयाव की न्स्थनत उत्ऩन्न हो जाती है तो केन्द्र के कानून
को भान्मता प्राप्त होती है ।
(3) आऩातकारीन न्स्थनत भें बायतीम सॊघीम व्मवस्था एकात्भक भें ऩरयवनतथत हो जाती है ।
(4) हभाये सॊघ का ननभाथण इस प्रकाय से नहीॊ हुआ है , जैसे अभेरयका के सॊघ का ननभाथण हुआ था। हभने
बायत के ववमबन्न याज्मों का सभम-सभम ऩय ववबाजन कयके नए-नए याज्मों का ननभाथण ककमा है जफकक
अन्म सॊघात्भक याज्मों भें स्वतन्त्र तथा सम्प्रबु याज्म सन्म्भमरत हुए थे।
(5) केन्द्रीम ववधानमका (सॊसद) ककसी बी याज्म की सीभा भें ऩरयवतथन कय सकती है , महाॉ तक कक वह
ककसी बी याज्म को सभाप्त कयके नए याज्म का ननभाथण कय सकती है जफकक अन्म सॊघात्भक याज्मों भें
इस न्स्थनत को नहीॊ अऩनामा गमा है ।
प्रश्न 2.
बायत भें सॊघीम व्मवस्था को क्मों अऩनामा गमा है ? व्माख्मा कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान ने सॊघात्भक शासन-प्रणारी की व्मवस्था की है । बायत भें वषों तक अॊग्रेजों का शासन
यहा। बायत की अऩनी ऩरयन्स्थनतमाॉ ऐसी थीॊ कक अॊग्रेजों ने बी 1935 के अर्धननमभ द्वाया बायत भें सॊघीम
प्रणारी की व्मवस्था की थी। स्वतन्त्रता के ऩश्चात ् सॊववधान ननभाथताओॊ ने इसी व्मवस्था को अऩनामा।
बायतीम सॊववधान ननभाथताओॊ द्वाया ननम्नमरखखत कायणों से सॊघात्भक व्मवस्था को अऩनामा गमा –
1. बायत बौगोमरक ऺेत्रपर की दृन्ष्ट्ट से एक उऩ-भहाद्वीऩ के सभान है न्जसभें प्रशासननक दृन्ष्ट्टकोण
से सॊघात्भक व्मवस्था ही उऩमुक्त हो सकती थी।
2. बायतीम सभाज भें ववमबन्न धभथ , बाषा, जानत, सॊस्कृनत आटद ऩाए जाते हैं न्जनभें साभॊजस्म स्थावऩत
कयने के मरए सॊघात्भक व्मवस्था ही उर्चत सभझी गई।
3. अॊग्रेजों ने बायत को स्वतन्त्र कयने के साथ-साथ दे शी रयमासतों को बी स्वतन्त्र कय टदमा था। इन
दे शी रयमासतों को बायत भें मभराने के मरए सॊघात्भक व्मवस्था ही उऩमुक्त थी। इसके द्वाया ।
स्थानीम स्वामत्तता तथा याष्ट्रीम एकता दोनों रक्ष्मों की प्रान्प्त हो जाती है ।
4. बायतीम याष्ट्रीम काॊग्रेस ने याष्ट्रीम आॊदोरन के दौयान सदै व सॊघात्भक व्मवस्था की भाॉग की थी।
5. बायतीमों को सॊघात्भक व्मवस्था का अनुबव बी था क्मोंकक 1935 भें बायत सयकाय अर्धननमभ के
अन्तगथत सॊघात्भक व्मवस्था ही अऩनाई गई थी।
सॊववधान सबा भें डॉ० फी०आय० अम्फेडकय ने स्ऩष्ट्ट रूऩ से कहा था कक मह एक सॊघीम सॊववधान है
क्मोंकक मह दोहये शासन तन्त्र की व्मवस्था कयता है न्जसभें केंद्र भें सघीम सयकाय तथा उसके चायों ओय
ऩरयर्ध भें याज्म सयकायें हैं जो सॊववधान द्वाया ननधाथरयत ऺेत्रों भें सवोच्च सत्ता का प्रमोग कयती हैं।

प्रश्न 3.
केंद्र तथा याज्म सॊफॊधों भें याज्मऩार की बूमभका की वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
याज्म का अध्मऺ याज्मऩार होता है । उसकी ननमुन्क्त याष्ट्रऩनत द्वाया की जाती है औय वह याष्ट्रऩनत के
प्रसादऩमथन्त अऩने ऩद ऩय यहता है । याज्मऩार की ननमुन्क्त ऩाॉच वषथ के मरए की जाती है ; ऩयन्तु
वास्तववकता मह है कक वह अऩनी ननमुन्क्त तथा ऩदच्मुनत के मरए केंद्रीम सयकाय ऩय आर्श्रत यहता है ।
उसकी मही आर्श्रमता केंद्र तथा याज्म सॊफॊधों भें तनाव का कायण फन जाती है ।
जफ केंद्र तथा याज्म भें ववमबन्न दरों की सयकाय हो तो याज्म सयकाय मह दावा कयती है कक याज्मऩार की
ननमन्ु क्त उसके ऩयाभशथ से की जाए। ऩयन्तु केंद्रीम सयकाय अऩनी ऩसॊद के व्मन्क्त को इस ऩद ऩय ननमक्
ु त
कयके याज्म सयकाय ऩय ननमन्त्रण यखने का प्रमत्न कयती है ।

याज्मऩार को कुछ ऐसे अर्धकाय बी प्राप्त हैं न्जनका प्रमोग वह अऩनी इच्छा से कयता है , भॊब्रत्रभण्डर की
सराह ऩय नहीॊ। मे अर्धकाय भहत्त्वऩूणथ बी हैं। याज्म भें सॊवैधाननक भशीनयी के असपर होने की रयऩोटथ
वह अऩने वववेक से कयता है न्जसके आधाय ऩय केंद्र याज्म भें याष्ट्रऩनत शासन रागू कयता है । केंद्र ने
अनेक फाय उन याज्मों से जहाॉ अन्म दर की सयकाय थी , याज्मऩार से भनभाने ढॊ ग से ऐसी रयऩोटथ री औय
याष्ट्रऩनत शासन रागू कयामा। याज्मऩार के ऐसे कामों ने केंद्र-याज्म सॊफॊधों भें तनाव को फढ़ामा है ।
टदसम्फय 1992 की अमोध्मा घटना के ऩश्चात ् केंद्र ने बाजऩा द्वाया शामसत चायों याज्मोंउत्तय प्रदे श , भध्म
प्रदे श, टहभाचर प्रदे श तथा याजस्थान भें याज्मऩार की रयऩोटों के आधाय ऩय याष्ट्रऩनत , शासन रागू कय
टदमा था।

याज्मऩार का एक अर्धकाय न्जसका प्रमोग वह अऩने वववेक से कयता है औय याज्मऩारों ने केंद्रीम सयकाय
के टहत भें इसका अत्मर्धक प्रमोग ककमा है , वह है याज्म ववधानभण्डर द्वाया ऩास ककए गए। ककसी ब्रफर
को याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत के मरए बेजना। इससे याज्म की ववधानमका शन्क्त प्रबाववत होती है औय ब्रफर
याष्ट्रऩनत के ऩास फहुत टदनों तक उसकी स्वीकृनत के मरए ऩडे यहते हैं। इस प्रकाय केंद्र-याज्म सॊफॊधों की
दृन्ष्ट्ट से याज्मऩार की बूमभका अत्मन्त वववादास्ऩद यही है औय इसने केंद्र औय याज्मों के फीच कटुता औय
तनाव की न्स्थनत को फढ़ामा है ।

प्रश्न 4.
केन्द्र तथा याज्म के भध्म तनाव के याजनीनतक एवॊ व्मावहारयक कायण मरखखए।
उत्तय :
केन्द्र तथा याज्मों के भध्म तनाव के याजनीनतक कायण केन्द्र तथा याज्म सम्फन्धों का याजनीनतक ऩऺ
फहुत भख
ु रयत यहा है । केन्द्र तथा याज्म सयकायें एक-दस
ू ये ऩय आयोऩ-प्रत्मायोऩ रागती हैं , न्जन्हें अग्रनस
ु ाय
यखा जा सकता है –
(1) केन्द्र तथा याज्म सयकायों द्िाया एक – दस
ू ये ऩय सॊकीणथ दरफन्दी की बावना के अनेक आयोऩ रगाए जाते
यहे हैं। केन्द्र भें काॊग्रेसी शासन के साथ जफ कबी ककसी याज्म भें गैय काॊग्रेसी सयकाय फनी तो उसका मही
आयोऩ यहा कक केन्द्र याज्म सयकाय को र्गयाने अथवा नीचा टदखाने को प्रमत्नशीर है । दस
ू यी ओय केन्द्र का
मह आयोऩ यहा है कक याज्म सयकाय केन्द्र के साथ असहमोग की याजनीनत कय यही है । इस तयह के
आयोऩों-प्रत्मायोऩों से ऩायस्ऩरयक सॊफॊधों भें तनाव ऩैदा होता है ।
(2) डॉ० सभश्र ने मरखा है , ―कुछ ववऩऺी दर ऺेत्रीम साम्प्रदानमक बावनाओॊ की भदद से जनता भें रोकवप्रम
होना चाहते हैं तथा ऺेत्रीम स्तय ऩय ननवाथचन भें सपरता प्राप्त कयने के उद्देश्म से केन्द्र तथा याज्म के
भध्म तनाव ऩैदा कयते हैं। कुछ वाभऩन्थी दर, न्जनकी रोकवप्रमता कुछ ऺेत्रों तक सीमभत है ननवाथचन
नीनत के रूऩ भें केन्द्र के ववरुर्द् याजनीनतक प्रचाय कयते हैं। ‖
केन्द्र तथा याज्मों के भध्म तनाि के व्मािहारयक कायण
केन्द्र तथा याज्म सॊफॊधों भें तनाव के मरए कनतऩम व्मावहारयक कायण बी उत्तयदामी यहे हैं , न्जनका उल्रेख
ननम्नानस
ु ाय ककमा जा सकता है –

1. केन्द्र तथा याज्मों भें मे तनाव ऩैदा हो जाता है कक याज्म द्वाया आर्थथक अनद
ु ान अथवा आर्थथक
सहामता भाॉगने ऩय केन्द्रीम सयकाय एक ओय तो उदाय यवैमा न अऩनाकय मह आयोऩ रगाती है ।
कक याज्म सयकायें अऩने स्वमॊ के याजस्व स्रोतों का सभुर्चत ववदोहन नहीॊ कयतीॊ। केन्द्र का मह बी
आयोऩ यहा है कक कुछ याज्म सयकायें उऩरब्ध यामश को ववकास मोजनाओॊ ऩय उर्चत सभम ऩय व्मम
नहीॊ कयतीॊ।
2. ओवय-ड्राफ्ट को रेकय केन्द्र एवॊ याज्मों के भध्म सॊघषथ तथा तनाव की न्स्थनत फनी यहती है ।
3. अॊतयाथज्मीम वववादों को हर कयने के सॊफॊध भें केन्द्र सयकाय की ननष्ट्ऩऺता को रेकय बी आयोऩ-
प्रत्मायोऩ रगाए जाते यहे हैं।
प्रश्न 5.
नए याज्मों की भाॉग केन्द्र-याज्म सम्फन्धों भें तनाव का कायण ककस प्रकाय है ?
उत्तय :
बायत की सॊघीम व्मवस्था भें नए याज्मों के गठन की भाॉग को रेकय बी तनाव यहा है । याष्ट्रीम आन्दोरन
ने अखखर बायतीम याष्ट्रीम एकता को नहीॊ फन्ल्क सभान बाषा , ऺेत्र औय सॊस्कृनत के आधाय ऩय एकता को
बी जन्भ टदमा। हभाया याष्ट्रीम आन्दोरन रोकतन्त्र के मरए बी एक आन्दोरन था। अत् याष्ट्रीम
आन्दोरन के दौयान मह बी तम ककमा गमा कक मथासम्बव सभान सॊस्कृनत औय बाषा के आधाय ऩय
याज्मों का गठन होगा।
इससे स्वतन्त्रता के फाद बाषाई आधाय ऩय याज्मों के गठन की भाॉग उठी। सन ् 1954 भें याज्म ऩुनगथठन
आमोग की स्थाऩना की गई न्जसने प्रभख
ु बाषाई सभद
ु ामों के मरए बाषा के आधाय ऩय याज्मों के गठन
की मसपारयश की सन ् 1956 भें कुछ याज्मों का ऩुनगथठन हुआ। इससे बाषाई आधाय ऩय याज्मों के गठन
की शरु
ु आत हुई औय मह प्रकक्रमा आज बी जायी है । सन ् 1960 भें गज
ु यात औय भहायाष्ट्र का गठन हुआ;
सन ् 1966 भें ऩॊजाफ औय हरयमाणा को अरग-अरग ककमा गमा। फाद भें ऩूवोत्तय के याज्मों का ऩुनगथठन
ककमा गमा औय अनेक नए याज्मों; जैसे—भेघारम, भखणऩुय औय अरुणाचर प्रदे श अन्स्तत्व भें आए।

1990 के दशक भें नए याज्म फनाने की भाॉग को ऩूया कयने तथा अर्धक प्रशासकीम सुववधा के मरए कुछ
फडे याज्मों का ववबाजन ककमा गमा। ब्रफहाय, उत्तय प्रदे श औय भध्म प्रदे श को ववबान्जत कय तीन नए याज्म
क्रभश: झायखण्ड, उत्तयाखण्ड औय छतीसगढ़ फनाए गए। कुछ ऺेत्र औय बाषाई सभूह अफ बी अरग याज्म
के मरए सॊघषथ कय यहे हैं न्जनभें आन्ध्र प्रदे श भें तेरॊगाना, उत्तय प्रदे श भें हरयत प्रदे श औय भहायाष्ट्र भें
ववदबथ प्रभुख हैं। सन ् 2014 भें आन्ध्र प्रदे श को ववबान्जत कय ‗तेरॊगाना याज्म का गठन कय टदमा गमा।

दीघश उत्तयीम प्रश्न


प्रश्न 1.
―बायत का सॊववधान अर्द्थ-सॊघीम शासन-व्मवस्था की स्थाऩना कयता है । ‖ इस कथन की वववेचना कीन्जए।
मा
―बायत का सॊववधान सॊघात्भक बी है औय एकात्भक बी। ‖ व्माख्मा कीन्जए।
मा
―बायतीम सॊववधान का रूऩ सॊघात्भक है , रेककन उसकी आत्भा एकात्भक।‖ इस कथन की सभीऺा कीन्जए।
मा
बायत के सॊघवाद के ऩऺ भें चाय तकथ दीन्जए।
मा
―बायत एक सॊघात्भक याज्म है । ‖ इस कथन का आरोचनात्भक ऩयीऺण कीन्जए।
मा
बायतीम सॊघात्भक व्मवस्था के एकात्भक रऺणों का वणथन कीन्जए।
मा
बायतीम सॊववधान भें सॊघ औय याज्मों के फीच शन्क्तमों भें फॉटवाये का आधाय औय भहत्त्व फताइए।
उत्तय :
बायत एक ववशार तथा ववमबन्नताओॊ वारा याज्म है । इस प्रकाय के याज्म का प्रफन्ध एक केन्द्रीम सयकाय
द्वाया सपरताऩूवक
थ चरामा जाना कटठन ही नहीॊ अवऩतु असम्बव बी है । इसी कायण बायत भें सॊघीम
शासन-व्मवस्था को अऩनामा गमा है । रेककन इसके फावजूद बायत भें सॊघात्भक स्वरूऩ सम्फन्धी वववाद
ऩामा जाता है , क्मोंकक बायतीम सॊववधान भें न तो कहीॊ ‗सॊघात्भक औय न ही कहीॊ ‗एकात्भक‘ शब्द का
प्रमोग ककमा गमा है ।
बायतीम सॊववधान के सॊघीम स्वरूऩ सम्फन्धी अऩने ववचायों को व्मक्त कयते हुए प्रो० डी० एन० फनजी ने
उर्चत ही कहा है कक ―बायतीम सॊववधान स्वरूऩ भें सॊघात्भक तथा बावना भें एकात्भक है । ‖ बायतीम
सॊववधान के सॊघीम स्वरूऩ को बरी प्रकाय से सभझने के मरए हभें इसके दोनों ऩऺों (सॊघात्भक तथा
एकात्भक) का अध्ममन कयना ऩडेगा जो कक ननम्नमरखखत हैं

बायतीम सॊविधान की सॊघीम विर्ेषताएॉ (रऺण)


हाराॊकक बायतीम सॊववधान भें ‗सॊघ‘ शब्द का उऩमोग नहीॊ ककमा गमा है , रेककन कपय बी व्मवहाय भें
सॊघात्भक शासन-प्रणारी को ही स्वीकाय ककमा गमा है । बायतीम सॊववधान भें कहा गमा है कक बायत याज्मों
का एक ‗सॊघ‘ होगा। इस तथ्म की अवहे रना नहीॊ की जा सकती कक बायतीम सॊववधान भें एकात्भक तत्त्व
ववद्मभान हैं, रेककन मह बी अटर सत्म है कक बायतीम सॊववधान भें सॊघात्भक प्रणारी के बी सभस्त
रऺण ववद्मभान हैं , न्जन्हें ननम्नमरखखत रूऩ भें व्मक्त ककमा जा सकता है –

(1) सॊविधान की सिोच्चता – सॊघात्भक शासन भें सॊववधान को सवोच्च स्थान टदमा जाता है । सॊववधान औय
सॊववधान द्वाया फनामे गमे कानून दे श के सवोच्च कानून होते हैं। बायतीम सॊववधान भें सॊवैधाननक
सवोच्चता का उल्रेख नहीॊ है , रेककन कपय बी सॊववधान की सवोच्चता को इस रूऩ भें स्वीकाय ककमा गमा
है कक बायतीम याष्ट्रऩनत, सॊसद इत्माटद सबी सॊववधान से शन्क्तमाॉ ग्रहण कयते हैं औय वे सॊववधान से ऊऩय
नहीॊ हैं। इसके अनतरयक्त, बायतीम याष्ट्रऩनत द्वाया शऩथ ग्रहण कयते सभम मह स्ऩष्ट्ट ककमा जाता है कक
वह सॊववधान की यऺा कयें गे इसके साथ ही बायत की सॊसद अथवा ववधानसबा द्वाया ऐसा कोई कानून
ऩारयत नहीॊ ककमा जा सकता जो सॊववधान के ववऩयीत हो। अत् कहा जा सकता है कक बायत भें सॊववधान
की सवोच्चता को स्वीकाय ककमा गमा है ।
(2) सरर्खत सॊविधान – सॊघात्भक शासन का एक रऺण सॊववधान का मरखखत होना बी है । महाॉ ऩय मह प्रश्न
उत्ऩन्न होना स्वाबाववक ही है कक सॊघात्भक याज्म का सॊववधान मरखखत होना क्मों आवश्मक है ? मरखखत
सॊववधान स्थामी होता है औय इसके सम्फन्ध भें फाद भें भतबेद उत्ऩन्न होने की सम्बावना फहुत ही कभ
होती है । चूॊकक सॊघात्भक शासन भें दोहया शासन अथाथत्के न्द्रीम शासन तथा प्रान्तों का शासन होता है ,
इसमरए इसभें वववादों की सम्बावना फनी यहती है । रेककन मटद मरखखत सॊववधान के अनस
ु ाय प्रत्मेक फात
को मरखखत रूऩ भें टदमा गमा हो तो कपय ऩयस्ऩय भतबेद उत्ऩन्न होने की सम्बावना कभ-से-कभ हो जाती
है ।
(3) कठोय सॊविधान – जफ सॊवैधाननक कानून को साधायण कानून से ऊॉचा दजाथ टदमा जाता है औय सॊवैधाननक
कानून को ऩरयवनतथत कयने हे तु साधायण कानून के ननभाथण की प्रकक्रमा से ऩथ
ृ क् तयीका अऩनामा जाता है
तो सॊववधान कठोय होता है । इस दृन्ष्ट्ट से बायतीम सॊववधान बी कठोय सॊववधान की श्रेणी भें आता है ।
इसभें साधायण ववषमों को छोडकय भहत्त्वऩूणथ सॊशोधन कयने के मरए सॊघ याज्म के साथ-साथ इकाई
याज्मों के सहमोग की बी आवश्मकता होती है । कठोय सॊववधान होने के कायण ही उसभें सॊशोधन प्रकक्रमा
जटटर है ।
(4) विषमों का विबाजन – शासन के सॊघात्भक स्वरूऩ का एक रऺण मह बी है कक इसभें ववषमों का
ववबाजन ककमा जाता है । बायतीम सॊववधान भें बी ववषमों का ववबाजन ककमा गमा है । इस दृन्ष्ट्ट से
बायतीम सॊववधान भें तीन सर्ू चमाॉ हैं —सॊघीम सच
ू ी न्जसभें 98 ववषम हैं औय न्जन ऩय सॊसद ही कानन
ू फना
सकती है । याज्म सूची न्जसभें 62 ववषम हैं औय न्जन ऩय साभान्मतमा याज्मों की ववधानसबाएॉ ही कानून
फनाती हैं। सभवती सच
ू ी न्जसके अन्तगथत 52 ववषम हैं औय न्जन ऩय सॊसद एवॊ ववधानसबा दोनों ही कानन

फना सकती हैं। अवमशष्ट्ट ववषम सॊघीम सयकाय को सौंऩे गमे हैं।
(5) दोहयी र्ासन-व्मिस्था – सॊघात्भक शासन-प्रणारी भें दोहयी शासन-व्मवस्था – (i) केन्द्र सयकाय तथा (ii)
प्रान्तों की सयकाय होती है । बायत भें केन्द्र सयकाय नमी टदल्री भें है जो कक सम्ऩूणथ दे श को शासन-प्रफन्ध
कयती है औय दस
ू यी सयकाय प्रत्मेक प्रान्त की याजधानी भें है जो प्रान्त के टहतों को ध्मान भें यखती है ।
(6) द्विसदनात्भक विधानभण्डर – सॊघीम सयकाय भें द्ववसदनीम ववधानभण्डर की व्मवस्था की जाती है ।
बायतीम सॊववधान के अनुच्छे द 79 के अनुसाय बायत भें बी द्ववसदनीम ववधानभण्डर का प्रफन्ध है , न्जसे
सॊघीम सॊसद कहा जाता है । बायतीम सॊघीम सॊसद के उच्च सदन का नाभ याज्मसबा है । सॊघीम सॊसद के
ननम्न (ननचरे) सदन का नाभ रोकसबा है इसके सदस्म एक-सदस्मीम ननवाथचन ऺेत्रों भें जनसाधायण
द्वाया प्रत्मऺ रूऩ से चन
ु े जाते हैं।
(7) न्मामऩासरका की सिोच्चता – सॊघात्भक शासन भें अन्म अॊगों से न्मामऩामरका को सवोच्च स्तय टदमा
जाता है ; क्मोंकक
1. सॊववधान की यऺा हे तु
2. सॊववधान की व्माख्मा कयने हे तु तथा
3. केन्द्र एवॊ याज्मों के वववादों का ननऩटाया कयने के मरए ऐसा कयना आवश्मक है ।
बायतीम सॊववधान भें बी केन्द्र भें सवोच्च न्मामारम तथा याज्मों भें उच्च न्मामारम का प्रफन्ध कयके इन्हें
स्वतन्त्र फनामे यखने हे तु सबी व्मवस्थाएॉ की गमी हैं। मे न्मामऩामरकाएॉ बायतीम सॊववधान के सॊयऺक के
रूऩ भें कामथ कयती हैं।

बायतीम सॊविधान की एकात्भक विर्ेषताएॉ (रऺण)


(1) इकहयी (एकर) नागरयकता – एकात्भक सयकाय भें इकहयी नागरयकता के मसर्द्ान्त को अऩनामा जाता है ,
व्मन्क्त प्रान्तों के नागरयक न होकय सम्ऩूणथ दे श के नागरयक होते हैं बायतीम सॊववधान के अन्तगथत इसी
मसर्द्ान्त को स्वीकाय ककमा गमा है अथाथत ् सबी बायतीमों को चाहे वे ककसी बी प्रान्त के ननवासी क्मों न
हों, उन्हें बायतीम नागरयक के रूऩ भें स्वीकाय ककमा गमा है । मह एकात्भक तत्त्व का भहत्त्वऩूणथ प्रतीक
है ।
(2) विषमों के विबाजन का अबाि – साभान्मत् सॊघात्भक शासन-व्मवस्था भें केन्द्र अथवा सॊघ को कुछ सीमभत
शन्क्तमाॉ प्रदान की जाती हैं तथा शेष शन्क्तमाॉ याज्मों को प्राप्त होती हैं। रेककन बायत भें इसके ववऩयीत
शन्क्तमों का फॉटवाया ककमा गमा है जो शन्क्तशारी केन्द्र का ननभाथण कयते हैं तथा याज्म अर्धक
स्वामत्तता का उऩबोग नहीॊ कय सकते।
(3) बायत भें सभूचे याष्ट्र के मरए एक ही सॊववधान यखा गमा है , जो ऩुन् एकात्भक तत्त्व है ।
(4) एकर न्माम-व्मिस्था – बायत भें एकीकृत न्माम-व्मवस्था रागू की गमी है । सॊमुक्त याज्म अभेरयका की
बाॉनत बायत भें दोहयी न्मानमक व्मवस्था नहीॊ है । बायतीम सवोच्च न्मामारम सभच
ू े दे श का एकभात्र
सवोच्च न्मामारम है न्जसके आदे शों के ववरुर्द् अऩीर नहीॊ की जा सकती।
(5) आऩातकारीन क्स्थनत – बायतीम सॊववधान द्वाया अनच्
ु छे द 352, 356 तथा 360 भें याष्ट्रऩनत को
आऩातकारीनॊ घोषणा कयने की शन्क्त प्रदान की गमी है । आऩातकारीन न्स्थनत भें याज्मों की स्वामत्तता
सभाप्त हो सकती है । ऩामरी के भतानस
ु ाय, आऩातकारीन न्स्थनत की घोषणा बायत भें सॊघात्भक शासन के
स्वरूऩ को सभाप्त कय दे ती है । अन्म शब्दों भें कहा जा सकता है कक आऩातकार की घोषणा होते ही
ब्रफना ककसी औऩचारयक सॊशोधन के बायतीम सॊववधान एकात्भक हो जाता है ।
(6) याष्ट्रऩनत द्िाया याज्मऩारों की ननमक्ु तत – बायतीम सॊघ भें इकाई याज्मों के याज्मऩारों की ननमुन्क्त केन्द्रीम
शासन के अॊग याष्ट्रऩनत द्वाया की जाती है तथा इन्हें उनके ऩद से हटाने का अर्धकाय बी याष्ट्रऩनत के ही
ऩास है । महाॉ मह उल्रेखनीम है कक याज्मों के याज्मऩार केन्द्र के प्रनतननर्ध के रूऩ भें कामथ कयते हैं।
(7) सॊविधान सॊर्ोधन के सम्फन्ध भें केन्द्र की सर्तत क्स्थनत – सॊववधान के कुछ उऩफन्धों का सॊशोधन तो केन्द्रीम
सॊसद साधायण कानून ऩारयत कयके , कुछ उऩफन्धों का सॊशोधने सदन के दोनों सदन अऩने-अऩने दो-नतहाई
फहुभत से तथा कुछ उऩफन्धों का सॊशोधन सॊसद आधे से अर्धक याज्मों की ववधान-सबाओॊ की स्वीकृनत से
कय सकती है । याज्मों की ववधानसबाएॉ अऩनी ओय से कोई सॊशोधन प्रस्ताववत नहीॊ कय सकतीॊ। इस प्रकाय
सॊववधान के सॊशोधन की व्मवस्था भें याज्मों की तुरना भें केन्द्र की न्स्थनत सफर है ।
(8) याज्मों की सीभाओॊ भें ऩरयितशन कयने का सॊसद का अचधकाय – बायतीम सॊववधान के अनस
ु ाय सॊसद कानन
ू द्वाया
वतथभान याज्मों के ऺेत्र को कभ अथवा अर्धक कय सकती है , उनके नाभ फदर सकती है औय दो अथवा
उससे अर्धक याज्मों को मभराकय एक नवीन याज्म का गठन कय सकती है ।
सभीऺा – बायतीम सॊववधान के उऩमक्
ुथ त एकात्भक रऺणों को दे खते हुए प्रो० के० सी० ह्वीमय का कथन है
कक ―बायतीम सॊववधान एक ऐसी शासन-प्रणारी की स्थाऩना कयता है , जो अर्धक-से-अर्धक अर्द्थसॊघीम
(Quasi-federal) है । मह एक ऐसे एकात्भक याज्म की स्थाऩना कयता है , न्जसभें गौण रूऩ से कुछ
सॊघात्भक तत्त्व हों।‖ इसी प्रकाय जी० एन० जोशी का ववचाय है कक बायतीम सॊघ एक सॊघ नहीॊ , वयन ्
अर्द्थसॊघ है , न्जसभें एकात्भक याज्म की कनतऩम भहत्त्वऩूणथ ववशेषताओॊ का सभावेश है । ‖ डॉ० डी० डी० फसु
के अनुसाय, ―बायतीम सॊववधान न तो ननतान्त सॊघात्भक है औय न ही एकात्भक , वयन ् मह दोनों का मभश्रण
है । इसी प्रकाय ऩामरी का भत है कक ―बायत के सॊववधान का ढाॉचा (रूऩ) सॊघात्भक व आत्भा एकात्भक है ।
कबी-कबी इन एकात्भक रऺणों को सॊघात्भक व्मवस्था के उल्रॊघनकायी तत्त्व की सॊऻा दे दी जाती है ।
प्रश्न 2.
सॊघात्भक शासन-प्रणारी के गुण मरखखए।
उत्तय :
सॊघात्भक र्ासन-प्रणारी के गण

सॊघात्भक शासन-प्रणारी के प्रभख
ु गण
ु ननम्नमरखखत हैं –

1. सॊघीम सयकाय ननयॊ कुर् नहीॊ हो ऩाती – केन्द्रीम एवॊ याज्म सयकायों के कामथ एवॊ अर्धकाय-ऺेत्र सॊववधान द्वाया
ननन्श्चत होते हैं, इसमरए केन्द्र तथा याज्मों भें से कोई बी ककसी अन्म की सीभा भें हस्तऺेऩ कयके ननयॊ कुश
नहीॊ हो ऩाता है ।
2. प्रर्ासन भें कुर्रता – इस व्मवस्था भें केन्द्रीम एवॊ याज्म सयकायों के फीच कामथ एवॊ शन्क्तमाॉ ववबान्जत
होती हैं। इसीमरए केन्द्रीम सयकाय अऩनी शन्क्तमों का सभर्ु चत प्रमोग कयते हुए दे श के भहत्त्वऩण
ू थ कामों
को सम्ऩाटदत कयती है औय स्थानीम अथवा इकाई सयकायें अऩनी शन्क्तमों का स्वतन्त्राऩूवक थ उऩमोग कयते
हुए स्थानीम सभस्माओॊ का सभाधान कयती हैं इस प्रकाय दे श का प्रशासन सुचारु रूऩ से सॊचामरत होता
है ।
3. विविधता भें एकता – प्रत्मेक सॊघ सयकाय भें अनेक याज्म सन्म्भमरत होते हैं , जो ववमबन्न अथों (जानत,
धभथ, बाषा, यीनत-रयवाज इत्माटद) भें एक-दस
ू ये से मबन्न होते हैं , ककन्तु वे अऩनी साभान्म सभस्माओॊ को
सुरझाने के मरए एक सूत्र भें फॉधकय यहते हैं। इस प्रकाय सॊघीम शासन के अन्तगथत ववववधता भें एकता
होती है ।
4. फडे दे र्ों के सरए उऩमोगी – ववस्तत
ृ ऺेत्र वारे दे शों के मरए मह शासन व्मवस्था उत्तभ है , क्मोंकक एक ही
स्थान (केन्द्र) से दयू के स्थानों का शासन ठीक प्रकाय से सॊचामरत कयना कटठन होता है ।
5. नागरयकों के अचधकायों की सयु ऺा – सॊघात्भक सॊववधानों भें नागरयकों के भूर अर्धकायों भें सयरता से
सॊशोधन नहीॊ हो सकता, क्मोंकक सॊववधान कठोय होता है । इसके सॊशोधन के मरए केन्द्र तथा याज्म दोनों ही
की आवश्मकता होती है ।
6. स्थानीम स्िर्ासन भें कुर्रता-रॉडश ब्राइस के अनुसाय, ―सॊघवाद स्थानी ववधानभण्डरों को कापी शन्क्तमाॉ प्रदान
कयके याष्ट्रीम ववधानभण्डरों को उन फहुत-से कामों से भुन्क्त टदराता है , जो उसके मरए अन्मथा फोझ फन
जाते हैं। अत: सॊघीम सयकाय को बी याष्ट्रीम टहत के ववषमों ऩय ऩूया-ऩूया ध्मान दे ने का अवसय मभर जाता
है , न्जससे प्रशासन भें दृढ़ता आ जाती
7. स्थानीम स्िर्ासन का राब – सॊघात्भक शासन भें इकाइमों को स्वशासन का ऩूणथ अर्धकाय प्राप्त होता है ,
इसमरए मे अऩनी जनता की आवश्मकतानुसाय आचयण कयके नागरयकों के टहतों भें ववृ र्द् कयती हैं। ववगत
कुछ वषों से, बायत के ऩरयप्रेक्ष्म भें ऩॊचामती याज्मों के अर्धकायों भें ववृ र्द् इसका ज्वरन्त उदाहयण है ।
8. याजनीनतक चेतना एिॊ विश्ि-सॊघ की ओय कदभ – सॊघीम शासन अऩने नागरयकों को श्रेष्ट्ठ याजनीनतक प्रमशऺण
प्रदान कयके उनभें याजनीनतक चेतना उत्ऩन्न कयता है । सॊघ याज्म ववश्व-सॊघ के ननभाथण की टदशा भें बी
भहत्त्वऩण
ू थ प्रमास है ।
प्रश्न 3.
केन्द्र व याज्मों के भध्म ववधामी सम्फन्धों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
सॊघात्भक शासन व्मवस्था की मह ववशेषता होती है कक इसभें केन्द्र औय इकाई याज्म सयकायों के भध्म
शन्क्तमों, अर्धकायों एवॊ कामों का सॊववधान द्वाया स्ऩष्ट्ट ववबाजन कय टदमा जाता है , न्जससे केंद्र एवॊ
याज्म-सयकायों के भध्म ककसी बी प्रकाय का वववाद उत्ऩन्न न हो , दोनों सयकायें अऩने-अऩने कामों एवॊ
उत्तयदानमत्वों का सभुर्चत रूऩ से ऩारन कय सकें औय सम्ऩूणथ दे श भें शान्न्त एवॊ सुयऺा का वातावयण
फना यहे ।
केंद्र ि याज्म के भध्म विधामी सॊफध

सॊववधान ने ववर्ध मा कानन
ू का ननभाथण कयने से सॊफॊर्धत ववषमों की तीन सर्ू चमाॉ फनाई हैं। इन सर्ू चमों
को फनाने का उद्देश्म केंद्र औय याज्मों की सयकायों के भध्म ववर्ध-ननभाथण सॊफॊधी ऺेत्रों को ववबक्त कयनी
है । मे सर्ू चमाॉ ननम्नमरखखत हैं –

ू ी (Union List) – इस सच
1. सॊघ सच ू ी के अॊतगथत उन ववषमों को यखा गमा है , न्जन ऩय केवर केंद्र सयकाय
की कानूनों का ननभाथण कय सकती है । मे ववषम फहुत भहत्त्वऩूणथ एवॊ याष्ट्रीम स्तय के हैं। इस सॊघ सूची भें
ु व सॊर्ध तथा फैंककॊग आटद हैं।
97 ववषम हैं। इस सूची के प्रभुख ववषम–यऺा, वैदेमशक भाभरे , मर्द्
ू ी (State List) – भूर सॊववधान भें इस सूची भें 66 ववषम थे। ऩयन्तु 42वें सॊवैधाननक सॊशोधन
2. याज्म सच
के उऩयान्त अफ इस सूची भें 62 ववषम यह गए हैं। इन सफ ववषमों से सॊफॊर्धत कानूनों का ननभाथण कयने
का अर्धकाय याज्म सयकायों को होता है । वैसे तो इन ववषमों ऩय केवर याज्म सयकायें ही कानून फना
सकती हैं; ककॊतु कुछ ववशेष न्स्थनतमों भें केंद्र सयकाय बी इन ववषमों ऩय कानून फना सकती है । इस सूची
के प्रभख
ु ववषम-ऩमु रस, न्माम, कृवष, स्थानीम स्वशासन आटद हैं।
ू ी (Concurrent List) – भूर सॊववधान भें इस सूची भें 47 ववषम थे, ऩयन्तु अफ इस सूची भें
3. सभिती सच
52 ववषम हो गए हैं। इन ववषमों ऩय याज्म एवॊ केंद्र-दोनों सयकायों को कानन
ू फनाने का सभान अर्धकाय है ,
ऩयन्तु भतबेद की न्स्थनत भें सॊघ सयकाय के कानून को प्राथमभकता दी जाती है । इस सूची के प्रभुख ववषम
पौजदायी ववर्ध-प्रकक्रमा, मशऺा, वववाह, न्मास (रस्ट), वन आटद हैं।
4. अिसर्ष्ट्ि र्क्ततमाॉ (Residuary Powers) – मटद कोई ववषम उऩमुक्
थ त तीनों सूर्चमों भें सन्म्भमरत न हो
तो वह अवमशष्ट्ट ववषम कहा जाता है औय उस ऩय कानून फनाने का अर्धकाय केवर सॊघ सयकाय को ही
है ।
अत् इन सूर्चमों के वववयण से स्ऩष्ट्ट हो जाता है कक केन्द्र सयकाय एवॊ याज्म सयकायों के ववर्ध-ननभाथण से
सॊफॊर्धत अर्धकाय-ऺेत्र ऩथ
ृ क् -ऩथ
ृ क् हैं। इस ववबाजन के आधाय ऩय मह बी स्ऩष्ट्ट होता है कक केन्द्र सयकाय
याज्म सयकाय की तुरना भें अर्धक शन्क्तसम्ऩन्न है । मद्मवऩ सभवती सूची के ववषमों ऩय कानून फनाने
का अर्धकाय दोनों सयकायों को प्राप्त होता है ; ककन्तु साभान्मतमा इन ववषमों ऩय सॊसद ही कानूनों का
ननभाथण कयती है तथा भतबेद होने की न्स्थनत भें सॊघ सयकाय का कानूनी भान्म होता है ।

[नोि – 42वें सॊवैधाननक सॊशोधन 1976 के द्वाया याज्म सूची के चाय ववषम (मशऺा, वन, वन्म जीव-जन्तुओॊ
औय ऩक्षऺमों का यऺण तथा नाऩ-तौर (सभवती सच
ू ी भें सन्म्भमरत कय टदए गए तथा सभवती सच
ू ी भें
एक नमा ववषम जनसॊख्मा ननमन्त्रण औय ऩरयवाय ननमोजन‘ जोडा गमा। अफ सभवती सूची भें 52 ववषम
औय याज्म सच
ू ी भें 62 ववषम यह गए हैं।]
याज्म सूची के ववषमों ऩय कानून-ननभाथण की सॊसद की शन्क्त – सॊववधान ने सॊसद को ववशेष ऩरयन्स्थनतमों
भें याज्म सच
ू ी के ववषमों ऩय बी कानन
ू फनाने का अर्धकाय टदमा है । मे ऩरयन्स्थनतमाॉ ननम्नमरखखत हैं –

1. सॊकिकार की घोषणा के सभम – आऩातकार भें याज्म सूची के अॊतगथत आने वारे ववषमों ऩय सॊसद को
ववर्ध-ननभाथण का ऩूणथ अर्धकाय प्राप्त है ।
2. याज्म सचू ी का कोई विषम याष्ट्िीम भहत्त्ि का होने ऩय – मटद याज्मसबा अऩने दो-नतहाई फहुभत से अऩने एक
प्रस्ताव के भाध्मभ से याज्म सच ू ी के ककसी ववषम के सॊफॊध भें मह घोषणा कय दे कक याष्ट्रीम टहत भें उस
ववषम ऩय केंद्रीम सयकाय को कानून-ननभाथण कयना चाटहए तो केंद्रीम सयकाय (सॊसद) उस ववषम ऩय कानून
फना सकती है । मह कानून एक वषथ तक रागू यह सकता है । याज्मसबा इसी आशम का दोफाया प्रस्ताव
ऩारयत कयके इसकी अॊवर्ध भें ववृ र्द् कय सकती है ।
3. याज्मों के विधानभण्डरों की प्राथशना ऩय – मटद दो मा दो से अर्धक याज्मों के ववधानभण्डर मह प्रस्ताव ऩारयत
कयें मा माना कयें कक याज्म सूची के अधीन ककसी ववषम ऩय सॊसद कानून फनाए तो सॊसद उस ववषम ऩय
बी कानून फनाती है ।
4. विदे र्ी याज्मों से सॊचध के ऩारन कयने के सरए – सॊववधान के अनस
ु ाय सॊसद को ही ककसी सॊर्ध, सभझौते मा
अन्म दे शों के साथ होने वारे सबी प्रकाय के सभझौतों का ऩारन कयवाने हे तु कानून फनाने का अर्धकाय
है , बरे ही वे ववषम याज्म सच
ू ी के अॊतगथत आते हों।
ै ाननक व्मिस्था बॊग होने ऩय – मटद ककसी याज्म भें सॊवैधाननक सॊकट उत्ऩन्न हो जाए मा इस
5. याज्म भें सॊिध
याज्म का सॊवैधाननक तन्त्र ववपर हो जाए तो अनच्
ु छे द 356 के अॊतगथत रगाए गए याष्ट्रऩनत शासन के
अॊतगथत याष्ट्रऩनत याज्म ववधानभण्डर के सभस्त अर्धकाय सॊसद को प्रदान कय सकता है ।
6. याज्मऩार द्िाया विधेमक को याष्ट्रऩनत के सरए आयक्षऺत कयना – याज्म के याज्मऩार को मह शन्क्त प्राप्त है कक
वह याज्म व्मवस्थावऩका द्वाया ऩारयत ककसी बी ववधेमक को याष्ट्रऩनत के अनुभोदन के मरए आयक्षऺत कय
सकता है । याष्ट्रऩनत को अर्धकाय है कक वह उस ववधेमक को स्वीकाय कये अथवा अस्वीकाय कये । केंद्र तथा
याज्मों के फीच शन्क्तमों का ववबाजन होने ऩय बी ववशेष न्स्थनतमों भें केंद्र को याज्मों के ववषमों ऩय
कानून-ननभाथण के व्माऩक अर्धकाय प्राप्त हैं।
प्रश्न 4.
केन्द्र औय याज्मों के प्रशासननक सम्फन्धों ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
केन्द्र औय याज्मों के प्रर्ासननक सम्फन्ध
श्री दग
ु ाथदास फसु के शब्दों भें , ―सॊघीम व्मवस्था की सपरता औय दृढ़ता सॊघ की ववववध सयकायों के फीच
अर्धकार्धक सहमोग तथा सभन्वम ऩय ननबथय कयती है । इसी कायण प्रशासननक सम्फन्धों की व्मवस्था
कयते हुए जहाॉ याज्मों को अऩने-अऩने ऺेत्रों भें साभान्मत् स्वतन्त्रता प्रदान की गमी है वहाॉ इस फात का
बी ध्मान यखा गमा है कक याज्मों के प्रशासननक तन्त्र ऩय सॊघ का ननमन्त्रण फना यहे औय सॊघ तथा याज्मों
के फीच सॊघषथ की सम्बावना कभ-से-कभ हो जाए। याज्म सयकायों ऩय सॊघीम शासन के ननमन्त्रण की
व्मवस्था ननम्नमरखखत उऩामों के आधाय ऩय की गमी है –

(1) याज्म सयकायों को ननदे र् – केन्द्र द्वाया याज्मों को ननदे श साभान्मतमा सॊघीम व्मवस्था के अनुकूर नहीॊ
सभझे जाते हैं, रेककन बायतीम सॊघ भें केन्द्र द्वाया याज्म सयकायों को ननदे श दे ने की व्मवस्था की गमी है ।
सॊववधान के अनुच्छे द 256 भें स्ऩष्ट्ट कहा गमा है कक ―प्रत्मेक याज्म की कामथऩामरका शन्क्त का प्रमोग इस
प्रकाय होगा कक सॊसद द्वाया ननमभथत कानूनों का ऩारन सुननन्श्चत यहे ।
(2) याज्म सयकायों को सॊघीम कामश सौंऩना – सॊघीम सयकाय याज्म सयकायों को कोई बी कामथ सौंऩ सकती है ।
मटद याज्मों की सयकाय मा उसके अर्धकायी उसे ऩयू ा न कयें , तो याष्ट्रऩनत को अर्धकाय है कक वह
सॊकटकारीन न्स्थनत की घोषणा कय याज्म शासन अऩने हाथ भें रे रे।
(3) अर्खर बायतीम सेिाएॉ – सॊववधान सॊघ तथा याज्म सयकायों के मरए अरग-अरग सेवाओॊ की व्मवस्था
कयता है , रेककन कुछ ऐसी सेवाओॊ की बी व्मवस्था कयता है जो सॊघ तथा याज्म सयकायें दोनों के मरए
साभान्म हैं। इन्हें अखखर बायतीम सेवाएॉ कहते हैं औय इन सेवाओॊ के अर्धकारयमों ऩय सॊघीम सयकाय का
ववशेष ननमन्त्रण यहता है ।
(4) सहामता अनदु ान – सॊघीम शासन द्वाया याज्मों को आवश्मकतानुसाय सहामता अनुदान बी टदमा जा
सकता है । अनुदान दे ते सभम सॊघ याज्मों ऩय कुछ शते रगाकय उनके व्मम को बी ननमन्न्त्रत कय सकता
है ।
(5) अन्तयाशज्मीम नददमों ऩय ननमन्त्रण – सॊसद को अर्धकाय है कक वह ववर्ध द्वाया ककसी अन्तयाथज्मीम नदी
अथवा इसके जर के प्रमोग, ववतयण मा ननमन्त्रण के सम्फन्ध भें व्मवस्था कये ।
(6) अन्तय-याज्म ऩरयषद् (Inter-State Council) की स्थाऩना (जून 1990 ई०) – बायतीम सॊववधान के अनुच्छे द
263 भें एक ‗अन्तय-याज्म ऩरयषद् की स्थाऩना का प्रावधान ककमा गमा है औय याजभन्नाय आमोग ,
प्रशासननक सुधाय आमोग तथा सफसे अन्त भें सयकारयमा आमोग, न्जसने नवम्फय, 1987 ई० भें अऩनी
रयऩोटथ प्रस्तत
ु की; इन सबी ने अऩनी मसपारयशों भें इस फात ऩय फर टदमा कक अन्तय- याज्म ऩरयषद् की
स्थाऩना की जानी चाटहए, रेककन व्मवहाय भें भई 1990 ई० तक अन्तय-याज्म ऩरयषद् की स्थाऩना नहीॊ की
गमी थी इस ऩरयषद् की स्थाऩना जन
ू 1990 ई० भें की गमी है । मह ऩरयषद् सॊघीम व्मवस्था औय केन्द्र-
याज्म सम्फन्धों के सुचारु सॊचारन हे तु एक ववचाय-भॊच का कामथ कये गी। ऩरयषद् के टदन प्रनतटदन के कामथ
हे तु एक स्थामी सर्चवारम की स्थाऩना की गमी है ।
(7) सॊचाय साधनों की यऺा – सभस्त बायतीम सॊघ के सॊचाय साधनों की यऺा का बाय बी सॊघीम सयकाय ऩय ही
है । सॊघ सयकाय याज्मों के अन्तगथत हवाई अ्डों, ये रों तथा अन्म याष्ट्रीम भहत्त्व के आवागभन औय सॊचाय
साधनों की यऺा के मरए याज्म सयकायों को आवश्मक आदे श दे सकती है न्जनका ऩारन याज्म सयकायों के
मरए आवश्मक है । इन आदे शों के ऩारन भें याज्म सयकायों को जो अनतरयक्त खचथ उठाना ऩडेगा , वह सॊघ
सयकाय याज्म सयकाय को दे गी।
(8) याष्ट्रऩनत द्िाया याज्मऩारों की ननमक्ु तत – इस सफके अनतरयक्त याज्म सयकायों ऩय सॊघीम शासन के ननमन्त्रण
का एक प्रभख
ु उऩाम मह है कक प्रधानभन्त्री के ऩयाभशथ से याष्ट्रऩनत याज्मों भें याज्मऩारों की ननमन्ु क्त
कयता है जो वहाॉ याष्ट्रऩनत के प्रनतननर्ध के रूऩ भें कामथ कयते हैं।
ु मभन्त्री तथा अन्म भक्न्त्रमों के विरुद् आयोऩों की जाॉच – मटद ककसी याज्म भें भख्
(9) भख् ु मभन्त्री मा भन्न्त्रमों के
ववरुर्द् भ्रष्ट्टाचाय मा अन्म ककसी प्रकाय के आयोऩ रगामे जाते हैं तो इस प्रकाय का आयोऩ-ऩत्र कामथवाही के
मरए याष्ट्रऩनत को बेज टदमा जाता है औय केन्द्रीम सयकाय को ही इस फात के सम्फन्ध भें ननणथम रेने का
अर्धकाय है कक इन आयोऩों की न्मानमक जाॉच कयवानी चाटहए अथवा नहीॊ। आयोऩ मसर्द् हो जाने ऩय
केन्द्रीम सयकाय सम्फन्न्धत भन्न्त्रमों को ऩद छोडने के मरए कह सकती है । ऩॊजाफ के भुख्मभन्त्री कैयो औय
ओडडशा के भुख्मभन्त्री वीये न मभत्रा को न्मानमक जाॉच भें दोषी ऩामे जाने ऩय ही त्माग-ऩत्र दे ना ऩडा था।
(10) याज्मों भें याष्ट्रऩनत र्ासन रागू कयना – इन सफके अरावा सॊववधान के अनुच्छे द 356 भें कहा गमा है कक
मटद ककसी याज्म भें सॊवैधाननक तन्त्र बॊग हो जाता है तो याज्मऩार की रयऩोटथ के आधाय ऩय मा अऩने
वववेक से याष्ट्रऩनत द्वाया उस याज्म भें याष्ट्रऩनत शासन रागू ककमा जा सकता है । याज्म भें सॊवैधाननक
तन्त्र बॊग हुआ है अथवा नहीॊ ; इस सम्फन्ध भें ननणथम रेने की शन्क्त याष्ट्रऩनत अथाथत ् केन्द्रीम शासन को
ही प्राप्त है औय याष्ट्रऩनत शासन की मह फडी छडी याज्मों को केन्द्र के सबी ननदे श भानने के मरए फाध्म
कयती है । इस प्रकाय प्रशासननक ऺेत्र भें याज्मों ऩय बायत सयकाय को प्रबावदामक ननमन्त्रण है , रेककन
इनके साथ मह नहीॊ बर ु ा दे ना चाटहए कक मे प्रावधान फहुत अर्धक सावधानीऩव
ू क
थ औय सॊकटकार भें ही
उऩमोग के मरए हैं। साभान्मतमा याज्म को कानून ननभाथण औय प्रशासन के सम्फन्ध भें अऩने ननन्श्चत ऺेत्र
भें ऩूणथ स्वामत्तता प्राप्त होगी।
प्रश्न 5.
केन्द्र औय याज्मों के भध्म ववत्तीम सम्फन्धों की ऩयीऺण कीन्जए।
उत्तय :
ववत्तीम ऺेत्र भें सॊववधान के द्वाया सॊघ व याज्म सयकायों के ऺेत्र अरग-अरग कय टदमे गमे हैं। तथा दोनों
ही सयकायें साभान्मतमा अऩने-अऩने ऺेत्र भें स्वतन्त्रताऩूवक
थ कामथ कयती हैं। इस सम्फन्ध भें सॊववधान
द्वाया की गमी व्मवस्था ननम्न प्रकाय है –
सॊघीम आम के साधन – सॊघीम सयकाय को आम के अरग साधन प्राप्त हैं। इन साधनों भें कृवष आम को
छोडकय अन्म आम ऩय कय, सीभा-शुल्क, ननमाथत-शुल्क, उत्ऩादन-शुल्क, ननगभ कय, कम्ऩननमों के भूर धन
ऩय कय, कृवष बूमभ को छोडकय अन्म सम्ऩन्त्त शुल्क आटद प्रभुख हैं।
याज्मों की आम के साधन – ववत्त के ऺेत्र भें याज्म सयकाय के आम के साधन बी अरग कय टदमे गमे हैं।
उनभें बू-याजस्व, कृवष आमकय, कृवष बूमभ का उत्तयार्धकाय शुल्क व सम्ऩन्त्त शुल्क, भादक वस्तुओॊ ऩय
उत्ऩादन कय, ब्रफक्री कय, मात्री कय, भनोयॊ जन कय, दस्तावेज कय आटद प्रभुख हैं। (42वें सॊवैधाननक सॊशोधन
द्वाया ये डडमो औय टे रीववजन से प्रसारयत ववऻाऩनों ऩय कय याज्म सच
ू ी से हटाकय सभवती सच
ू ी भें यख
टदमा गमा है ।)
ु भदें – सॊघीम शासन की व्मम की भदें सेना, ऩययाष्ट्र सम्फन्ध आटद हैं , जफ कक याज्म शासन
व्मम की प्रभख
के व्मम की भुख्म भदें ऩुमरस, कायावास, मशऺा, सावथजननक स्वास्थ्म आटद हैं।
याज्मों की वित्तीम सहामता – क्मोंकक याज्मों की ववत्तीम आवश्मकताओॊ को ऩय
ू ा कयने के मरए उऩमक्
ुथ त साधन
ऩमाथप्त नहीॊ सभझे गमे , इसमरए सॊघीम शासन द्वाया याज्मों को ववत्तीम सहामता की व्मवस्था की गमी है ,
जो इस प्रकाय है ।
ऩहरे प्रकाय के कय ऐसे हैं जो केन्द्र द्वाया रगामे औय वसूर ककमे जाते हैं , ऩय न्जनकी सम्ऩूणथ आम
याज्मों भें फाॉट दी जाती है । इस प्रकाय के कयों भें प्रभुख रूऩ से उत्तयार्धकाय कय , सम्ऩन्त्त कय, सभाचाय-
ऩत्र कय आटद आते हैं।

दस
ू ये प्रकाय के वे कय हैं , जो केन्द्र ननधाथरयत कयता, ककन्तु याज्म एकब्रत्रत कयते औय अऩने उऩमोग भें राते
हैं। स्टाम्ऩ शुल्क कयॊ एक ऐसा ही कय है । केन्द्र शामसत ऺेत्रों भें इन कयों की वसूरी केन्द्रीम सयकाय
कयती है ।

तीसये प्रकाय के कय वे हैं जो केन्द्र द्वाया रगामे व वसर


ू ककमे जाते हैं , ऩय न्जनकी शर्द्
ु आम सॊघ व
याज्मों के फीच फाॉट दी जाती है । कृवष आम के अनतरयक्त अन्म आम ऩय कय प्रभुख रूऩ से इसी प्रकाय का
कय है ।
ु ान – सॊववधान के अनुच्छे द 275 के अनुसाय न्जन याज्मों को सॊसद ववर्ध द्वाया अनुदान दे ना
याज्मों को अनद
ननन्श्चत कये उन याज्मों को अनद
ु ान टदमा जाएगा। मे अनद
ु ान वऩछडे हुए वगों को ऊॉचा उठाने औय अन्म
ववकास मोजनाओॊ को ऩूया कयने के मरए टदमे जाएॉगे।
सािशजननक ऋण प्राक्तत की व्मिस्था – सॊघीम सयकाय अऩनी सॊर्चत ननर्ध की जभानत ऩय सॊसद की आऻानुसाय
ऋण रे सकती है । याज्मों की सयकायें बी ववधानभण्डर द्वाया ननधाथरयत सीभा तक ऋण रे सकती हैं।
सॊघीम सयकाय ववदे शों से बी ऋण रे सकती है , ककन्तु याज्म सयकायें ऐसा नहीॊ कय सकतीॊ।
वित्त आमोग – सॊववधान के अनुच्छे द 280 भें व्मवस्था भें की गमी है कक प्रनत 5 वषथ फाद याष्ट्रऩनत एक
ववत्त आमोग की स्थाऩना कये गा। इस आमोग के द्वाया सॊघ औय याज्म सयकायों के फीच कयों के ववतयण ,
बायत की सॊर्चत ननर्ध भें से धन के व्मम तथा ववत्तीम व्मवस्था से सम्फन्न्धत अन्म ववषमों ऩय
मसपारयश कयने का कामथ ककमा जाएगा।
प्रश्न 6.
केंद्र तथा याज्म के भध्म तनाव के साॊववधाननक कायण मरखखए।
उत्तय :
केन्द्र तथा याज्मों के भध्म तनाि के साॊविधाननक कायण
सभम-सभम ऩय केन्द्र तथा याज्म सयकायों के भध्म उऩन्स्थत होने वारे सॊघषथ एवॊ तनावों के कायणों को
ननम्नमरखखत वगों भें यखा गमा है –

(1) बायतीम सॊववधान भें शन्क्तमों का ववतयण केन्द्र के ऩऺ भें अर्धक है । सॊघ सूची तथा सभवती सूची भें
केन्द्रीम कामथऩामरका तथा व्मवस्थावऩका को इतने अर्धकाय प्रदान ककए गए हैं कक याज्मों की स्वामत्तता
ऩय आॉच आ सकती है । 1970 भें तमभरनाडु सयकाय द्वाया ननमुक्त याजभन्नाय समभनत ने मसपारयश की थी
कक –
1. सॊघ सूची तथा सभवती सूची भें से कुछ शन्क्तमाॉ ननकारकय याज्म सूची भें डार दे नी चाटहए।
2. ववत्त आमोग को एक अस्थामी अर्धकयण फना दे ना चाटहए , एवॊ
3. केन्द्रीम याजस्व स्रोतों को हटाकय याज्मों को हस्तान्तरयत कय दे ना चाटहए न्जससे केन्द्र ऩय याज्मों
की ववत्तीम ननबथयता कभ हो।
(2) याज्म सदै व मह अनुबव कयते हैं कक उनकी ववधामी तथा प्रशासननक शन्क्तमाॉ सीमभत हैं तथा उन्हें
अऩने ननणथमों के कामाथन्वमन भें केन्द्र के ननणथम का इन्तजाय कयना ऩडता है । जफ केन्द्र तथा याज्म भें
एक ही दर की सयकाय यहती है तफ तो सभस्मा प्रफर नहीॊ हो ऩाती है , ककन्तु ववऩयीत न्स्थनत भें तनाव
प्राम् फढ़ जाता है । उदाहयणाथथ- 1967 के ऩश्चात ् याज्मों भें गैय-काॊग्रेसी सयकायें फनीॊ तो शन्क्तमों के ऩुन्
ववतयण की आवाज ववशेष रूऩ से उठाई गई।
(3) याज्मऩार केन्द्र द्वाया ननमुक्त ऐसे शन्क्तशारी अमबकयण हैं जो याज्मों भें केन्द्र का वचथस्व यखने भें
सहमोग दे ते हैं। सॊववधान उन्हें अर्धकाय दे ता है कक सभवती सूची भें सॊफॊर्धत ववधेमकों को वे याष्ट्रऩनत की
अनुभनत के मरए सुयक्षऺत यखें तथा केन्द्रीम सयकाय को मह अवसय प्रदान कयें कक वह याष्ट्रऩनत द्वाया
याज्मों द्वाया ऩारयत ववधेमक अथवा ववधेमकों को अस्वीकृत कया दे । केयर के याज्मऩार ने ई०एभ०एस०
नम्फूदयीऩाद के नेतत्ृ व वारी साम्मवादी सयकाय का प्रगनतशीर बूमभ सुधाय ववधेमक याष्ट्रऩनत की अनुभनत
के मरए सयु क्षऺत यख मरमा था। इसके ऩश्चात ् केन्द्रीम सयकाय ने इस ववधेमक को याष्ट्रऩनत द्वाया
अस्वीकृत कया टदमा। गैय-काॊग्रेसी याज्म सयकायें याज्मऩारों की बूमभका से सशॊककत यहती हैं। आॊध्र प्रदे श के
तत्कारीन भुख्मभॊत्री एन०टी० याभायाव ने तो उन्हें केन्द्रीम जासूस ‘ तक की सॊऻा दे दी थी। अनेक अवसयों
ऩय गैय-काॊग्रेसी सयकायों द्वाया याज्मऩार ऩद को ही सभाप्त कयने की भाॉग की गई है । याज्मऩार ऩद ने
केन्द्र-याज्म सॊफॊधों भें तनाव तथा सॊघषथ की न्स्थनत उत्ऩन्न की है ।
(4) आऩातकारीन उऩफन्धों ने सॊववधान को एकात्भक स्वरूऩ प्रदान कय टदमा है तथा आऩातकार के सभम
याज्म सम्ऩूणतथ : केन्द्र ननदे मशत इकाइमाॉ फन जाते हैं। मह न्स्थनत कुछ याज्म सयकायों हे तु फहुत अवप्रम यही
है । तनाव के साॊववधाननक कायणों का अध्ममन कयने ऩय मह रक्ष्म साभने आती है । याज्म चाहते हैं कक
उन्हें अर्धक स्वामत्तता प्रदान की जाए तथा उन ऩय केन्द्र का अॊकुश न यहे ।
प्रश्न 7.
अनुच्छे द 370 के सन्दबथ भें फताइए कक जम्भू-कश्भीय याज्म की न्स्थनत बायतीम सॊघ के अन्म याज्मों से
ककस प्रकाय मबन्न है ?
मा
बायतीम सॊववधान के अनुच्छे द 370 ऩय अऩने ववचाय मरखखए।
मा
बायतीम सॊववधान की धाया 370 के अन्तगथत जम्भ-ू कश्भीय याज्म को दी गमी ककन्हीॊ दो सवु वधाओॊ का
उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें जम्भू-कश्भीय याज्म की न्स्थनत बायतीम सॊघ के अन्म याज्मों से मबन्न है –
(1) बायतीम सॊघ के अन्म ककसी बी याज्म का अऩना सॊववधान नहीॊ है , रेककन जम्भू-कश्भीय याज्म का
अऩना सॊववधान है जो 26 नवम्फय, 1957 ई० भें रागू हुआ था तथा जम्भू-कश्भीय याज्म का प्रशासन इस
सॊववधान के उऩफन्धों के अनुसाय चरता है ।
(2) बायतीम सॊववधान द्वाया सॊघ औय याज्मों के फीच जो शन्क्त-ववबाजन ककमा गमा है , उसके अन्तगथत
अवशेष शन्क्तमाॉ सॊघीम सयकाय को सौंऩी गमी हैं औय अवशेष ववषमों के सम्फन्ध भें कानून- ननभाथण का
अर्धकाय सॊघीम सॊसद को प्राप्त है , रेककन जम्भ-ू कश्भीय याज्म इस सम्फन्ध भें अऩवाद है । अनुच्छे द 370
भें व्मवस्था की गमी है कक जम्भू-कश्भीय याज्म के सम्फन्ध भें अवशेष शन्क्तमाॉ जम्भू-कश्भीय याज्म के
ऩास ही यहें गी।
(3) इस याज्म के मरए ववर्ध फनाने की सॊघीम सॊसद की शन्क्त सॊघ सूची औय सभवती सूची के उन ववषमों
तक सीमभत होगी, न्जनको जम्भू-कश्भीय याज्म की सयकाय के साथ ऩयाभशथ कयके उन ववषमों के ‗तत्स्थानी
ववषम‘ (Correspond to matters) घोवषत कय दें , न्जनके सम्फन्ध भें ‗अर्धमभरन-ऩत्र‘ भें बायतीम सॊसद को
अर्धकाय टदमा गमा है ।
(4) सॊसद सॊघ सूची औय सभवती सूची के अन्म ववषमों ऩय ववर्ध याज्म सयकाय की सहभनत से ही फना
सकेगी।
(5) सॊववधान के आऩातकारीन प्रावधानों के सम्फन्ध भें बी जम्भू-कश्भीय याज्म के प्रसॊग भें ववशेष
व्मवस्था है । अनुच्छे द 352, न्जसके अन्तगथत याष्ट्रऩनत को याष्ट्रीम सॊकट की घोषणा कयने का अर्धकाय
प्राप्त है , जम्भू-कश्भीय याज्म भें एक सीभा तक ही औय जम्भू-कश्भीय याज्म की सहभनत से ही रागू हो
सकता है । अनुच्छे द 360, जो याष्ट्रऩनत को ववत्तीम सॊकट घोवषत कयने का अर्धकाय दे ता है , जम्भू-कश्भीय
याज्म ऩय रागू नहीॊ होता। अनुच्छे द 356 के उऩफन्ध अथाथत ् याज्म भें याष्ट्रऩनत शासन रागू कयने की
व्मवस्था जम्भू-कश्भीय याज्म ऩय बी रागू होगी।
(6) बायत के नागरयक स्वत: ही जम्भू-कश्भीय के नागरयक नहीॊ फन जाते , उन्हें जम्भू-कश्भीय याज्म भें
फसने का बी कोई सॊवैधाननक अर्धकाय प्राप्त नहीॊ है । बायत सॊघ के अन्म याज्मों के ननवामसमों को जम्भू-
कश्भीय याज्म भें बूमभ अथवा अन्म कोई चर सम्ऩन्त्त प्राप्त कयने का अर्धकाय बी नहीॊ है । अनुच्छे द
370 के कायण ही केन्द्र के अनेक राबकायी औय प्रगनतशीर कानून ; जैसे-सम्ऩन्त्त कय, शहयी बूमभ सीभा
कानून औय उऩहाय कय, इत्माटद महाॉ रागू नहीॊ हो सकते।
(7) याज्म की नीनत के ननदे शक तत्त्वों से सम्फन्न्धत सॊववधान के बाग 4 के उऩफन्ध जम्भू-कश्भीय याज्म
ऩय रागू नहीॊ होते हैं।
(8) सॊसद जम्भू-कश्भीय याज्म के ववधानभण्डर की सहभनत के ब्रफना उस याज्म के नाभ , ऺेत्र मा सीभाओॊ
भें कोई ऩरयवतथन नहीॊ कय सकती।
(9) अनुच्छे द 368 के अधीन सॊववधान भें ककमे गमे सॊशोधन जम्भू-कश्भीय याज्म भें तफ तक रागू नहीॊ
होंगे, जफ तक कक याष्ट्रऩनत आदे श द्वाया उसे जम्भू-कश्भीय याज्म भें रागू नहीॊ कय दें ।
जम्भू – कश्भीय याज्म के सम्फन्ध भें धाया 370 की आरोचना अथिा वििाद
जम्भू – कश्भीय याज्म को बायतीम सॊघ भें मह ववशेष न्स्थनत तत्कारीन ववशेष ऩरयन्स्थनतमों के कायण
प्रदान की गमी थी। जम्भू-कश्भीय याज्म को प्राप्त मह ववशेष न्स्थनत सॊववधान का अस्थामी मा
सॊक्रभणकारीन प्रावधान ही है औय इस कायण मह नहीॊ सोचा जाना चाटहए कक जम्भू-कश्भीय याज्म को
सदै व ही मह ववशेष न्स्थनत प्राप्त यहे गी। वतथभान सभम भें बायत की एकता औय अखण्डता के प्रफर
सभथथकों औय बायतीम याजनीनत के एक प्रभख
ु दर बाजऩा द्वाया मह कहा जाता है कक जम्भू-कश्भीय भें
आज आतॊकवाद औय अरगाववाद की जो न्स्थनत सभम-सभम ऩय खडी हो जाती है उसका भूर कायण
अनच्
ु छे द 370 मा बायतीम सॊघ के अन्तगथत जम्भू-कश्भीय याज्म को प्राप्त ववशेष न्स्थनत है तथा
अरगाववाद की इस न्स्थनत को सभाप्त कयने हे तु अनुच्छे द 370 को सभाप्त कय टदमा जाना चाटहए।
जम्भू-कश्भीय याज्म के बूतऩूवथ याज्मऩार जगभोहन ने अऩनी ऩुस्तक ‗कश्भीय : सभस्मा औय ववश्रेषण‘ भें
ऩूये ववस्ताय के साथ ववचाय व्मक्त ककमा है कक ―अनुच्छे द 370 ववववध ननटहत स्वाथों के हाथों शोषण का
साधन फन गमा है । इस अनुच्छे द के कायण एक दष्ट्ु चक्र स्थावऩत हो गमा है जो अरगाववादी शन्क्तमों को
जन्भ दे ता है औय मे शन्क्तमाॉ फदरे भें अनुच्छे द 370 को भजफूत फनाती हैं। ‖ जगभोहन के इस ववश्रेषण
भें ताककथकता औय सत्म का अॊश है । मह तथ्म है कक अनुच्छे द 370 के कायण अरगाववादी तत्त्वों ने
अऩनी शन्क्त भें ववृ र्द् की है तथा मह अनच्
ु छे द जम्भू-कश्भीय याज्म के आर्थथक ववकास भें बी एक प्रभख

फाधक तत्त्व यहा है । रेककन इसके साथ ही मह बी तथ्म है कक जम्भू-कश्भीय याज्म भें आज आतॊकवाद
औय अरगाववाद की जो न्स्थनत है , अनच्
ु छे द 370 उसका भर
ू कायण नहीॊ है । आज की ऩरयन्स्थनतमों भें
अटर ब्रफहायी वाजऩेमी का मह कथन अर्धक सत्म है । कक ―भेया भानना मह है कक केवर धाया 370 हटाने
से ही कश्भीय-सभस्मा हर नहीॊ हो सकती।‖ याजनीनतक दरों के आऩसी भतबेदों के कायण ही सयकाय ने
अनुच्छे द 370 को अफ स्थामी कय टदमा है । 27 जून, 2000 ई० को जम्भू-कश्भीय ववधानसबा ने तीन-चौथाई
फहुभत से स्वामत्तता प्रस्ताव ऩारयत ककमा न्जसे स्वीकाय कयना सम्बव नहीॊ है । इसके अनतरयक्त , अनुच्छे द
370 को सभाप्त कयने का मह ननन्श्चत रूऩ से उऩमुक्त सभम नहीॊ है । मटद आज अनुच्छे द 370 को
सभाप्त कयने का प्रमत्न ककमा जाए, तो वह जम्भ-ू कश्भीय याज्म की न्स्थनत को अर्धक चुनौतीऩूणथ फना
सकता है । ननष्ट्कषथत् । बववष्ट्म भें अनुच्छे द 370 को सभाप्त ककमा जा सकता है औय ककमा जाना चाटहए ,
रेककन आज इस कामथ के मरए उऩमुक्त सभम नहीॊ है ।
प्रश्न 1.
ऩॊचामत समभनत का ऺेत्र है –
(क) ग्राभ
(ख) न्जरा
(ग) ववकास खण्ड
(घ) नगय
उत्तय :
(क) ग्राभ
प्रश्न 2.
ऩॊचामती याज-व्मवस्था भें एकरूऩता सॊववधान के ककस सॊशोधन द्वाया राई गई ?
(क) 42वें सॊशोधन द्वाया
(ख) 73वें सॊशोधन द्वाया
(ग) 46वें सॊशोधन द्वाया
(घ) 44वें सॊशोधन द्वाया
उत्तय :
(ख) 73िें सॊर्ोधन द्िाया
प्रश्न 3.
प्रशासन की सफसे छोटी इकाई है –
(क) ग्राभ
(ख) न्जरा
(ग) प्रदे श
(घ) नगय
उत्तय :
(ख) क्जरा
प्रश्न 4.
ऩॊचामती याज का सफसे ननचरा स्तय है –
(क) ग्राभ ऩॊचामत
(ख) ग्राभ सबा
(ग) ऩॊचामत समभनत
(घ) न्माम ऩॊचामत
उत्तय :
(क) ग्राभ ऩॊचामत।
प्रश्न 5.
न्माम ऩॊचामत के कामथ-ऺेत्र भें सन्म्भमरत नहीॊ है
(क) छोटे दीवानी भाभरों का ननऩटाया
(ख) भुजरयभों ऩय जुभाथना
(ग) भज
ु रयभों को जेर बेजना
(घ) छोटे पौजदायी भाभरों का ननऩटाया
उत्तय :
(ग) भज ु रयभों को जेर बेजना।
प्रश्न 6.
न्जरा ऩरयषद् के सदस्मों भें सन्म्भमरत नहीॊ है –
(क) न्जरार्धकायी
(ख) ऩॊचामत समभनतमों के प्रधान
(ग) कुछ ववशेषऻ
(घ) न्मामाधीश
उत्तय :
(घ) न्मामाधीर्।
प्रश्न 7.
ग्राभ ऩॊचामत की फैठक होनी आवश्मक है –
(क) एक सप्ताह भें एक
(ख) एक भाह भें एक
(ग) एक वषथ भें दो
(घ) एक वषथ भें चाय
उत्तय :
(ख) एक भाह भें एक।
प्रश्न 8.
नगयऩामरका के अध्मऺ का चुनाव होता है –
(क) एक वषथ के मरए
(ख) ऩाॉच वषथ के मरए
(ग) चाय वषथ के मरए
(घ) तीन वषथ के मरए
उत्तय :
(ख) ऩाॉच िषश के सरए।
प्रश्न 9.
नगयऩामरका ऩरयषद् का ऐन्च्छक कामथ है
(क) नगयों भें योशनी का प्रफन्ध कयना
(ख) नगयों भें ऩेमजर की व्मवस्था कयना
(ग) नगयों की स्वच्छता का प्रफन्ध कयना
(घ) प्रायन्म्बक मशऺा से ऊऩय मशऺा की व्मवस्था कयना
उत्तय :
(घ) प्रायक्म्बक सर्ऺा से ऊऩय सर्ऺा की व्मिस्था कयना।
प्रश्न 10.
न्जरा ऩरयषद की आम का साधन है –
(क) बूमभ ऩय रगान
(ख) चॊग
ु ी कय
(ग) है मसमत एवॊ सम्ऩन्त्त कय
(घ) आमकय
उत्तय :
(ग) हैससमत एिॊ सम्ऩक्त्त कय।
प्रश्न 11.
न्जरा ऩॊचामत कामथ नहीॊ कयती
(क) जन-स्वास्थ्म के मरए योगों की योकथाभ कयना
(ख) सावथजननक ऩुरों तथा सडकों का ननभाथण कयना
(ग) प्रायन्म्बक स्तय से ऊऩय की मशऺा का प्रफन्ध कयना
(घ) मातामात का प्रफन्ध कयना
उत्तय :
(घ) मातामात का प्रफन्ध कयना
प्रश्न 12.
ननम्नमरखखत भें से कौन-सा कामथ नगयऩामरका ऩरयषद् नहीॊ कयती ?
(क) ऩीने के ऩानी की आऩूनतथ
(ख) योशनी की व्मवस्था
(ग) उच्च मशऺा का सॊगठन
(घ) जन्भ-भत्ृ मु का रेखा
उत्तय :
(ग) उच्च सर्ऺा का सॊगठन।
प्रश्न 13.
जनऩद का सवोच्च अर्धकायी है –
(क) भुख्मभन्त्री
(ख) न्जरार्धकायी
(ग) ऩुमरस अधीऺक
(घ) न्जरा प्रभख

उत्तय :
(ख) क्जराचधकायी।
प्रश्न 14.
न्जरे के मशऺा ववबाग का प्रभुख अर्धकायी है –
(क) न्जरा ववद्मारम ननयीऺक
(ख) फेमसक मशऺा अर्धकायी
(ग) याजकीम ववद्मारम ़ा प्रधानाचामथ
(घ) भाध्ममभक मशऺा ऩरयषद् का ऺेत्रीम अध्मऺ
उत्तय :
(क) क्जरा विद्मारम ननयीऺक।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
स्थानीम स्वशासन से आऩ क्मा सभझते हैं ?
उत्तय :
स्थानीम स्वशासन से आशम है -ककसी स्थान ववशेष के शासन का प्रफन्ध उसी स्थान के रोगों द्वाया ककमा
जाना तथा अऩनी सभस्माओॊ का सभाधान स्वमॊ खोजना।।
प्रश्न 2.
स्थानीम शासन तथा स्थानीम स्वशासन भें दो बेद फताइए।
उत्तय :
1. स्थानीम शासन उतना रोकतान्न्त्रक नहीॊ होता न्जतना स्थानीम स्वशासन होता है ।
2. स्थानीम शासन स्थानीम स्वशासन की अऩेऺा कभ कुशर होता है ।
प्रश्न 3.
क्मा ऩॊचामती याज-व्मवस्था अऩने उद्देश्म की ऩूनतथ भें सपर हो सकी है ?
उत्तय :
मद्मवऩ कहीॊ-कहीॊ ऩय ऩॊचामती याज व्मवस्था ने कुछ अच्छे कामथ ककमे हैं , ऩयन्तु वास्तववकता मह है कक
ऩॊचामती याज व्मवस्था अऩने उद्देश्मों की ऩूनतथ भें सपर कभ ही हुई है ।
प्रश्न 4.
ऩॊचामती याज की तीन स्तयीम व्मवस्था क्मा है ?
उत्तय :
ऩॊचामती याज की तीन स्तयीम व्मवस्था के अन्तगथत ग्राभीण ऺेत्रों के मरए तीन इकाइमों का प्रावधान ककमा
गमा है –
1. ग्राभ ऩॊचामत
2. ऩॊचामत समभनत तथा
3. न्जरा ऩरयषद्।
प्रश्न 5.
ऩॊचामती याज को सपर फनाने के मरए ककन शतों का होना आवश्मक है ?
उत्तय :
ऩॊचामती याज को सपर फनाने के मरए इन शतों का होना आवश्मक है –
1. रोगों का मशक्षऺत होना
2. स्थानीम भाभरों भें रोगों की रुर्च
3. कभ-से-कभ सयकायी हस्तऺेऩ तथा
4. ऩमाथप्त आर्थथक सॊसाधन।
प्रश्न 6.
न्जरा प्रशासन के दो भुख्म अर्धकारयमों के नाभ मरखखए।
उत्तय :
न्जरा प्रशासन के दो भुख्म अर्धकायी हैं –
1. न्जराधीश तथा
2. वरयष्ट्ठ ऩुमरस अधीऺक (एस०एस०ऩी०)।
प्रश्न 7.
न्जरा ऩॊचामत के चाय अननवामथ कामथ फताइए।
उत्तय :
न्जरा ऩॊचामत के चाय अननवामथ कामथ हैं :
1. ऩीने के ऩानी की व्मवस्था कयना
2. प्राथमभक स्तय से ऊऩय की मशऺा का प्रफन्ध कयना
3. जन-स्वास्थ्म के मरए भहाभारयमों की योकथाभ तथा
4. जन्भ-भत्ृ मु का टहसाफ यखना।
प्रश्न 8.
न्जरा ऩॊचामत की दो प्रभख
ु समभनतमों के नाभ मरखखए।
उत्तय :
न्जरा ऩॊचामत की दो प्रभख
ु समभनतमाॉ हैं :
1. ववत्त समभनत तथा
2. मशऺा एवॊ जनस्वास्थ्म समभनत।
प्रश्न 9.
ऺेत्र ऩॊचामत का सफसे फडा वैतननक अर्धकायी कौन होता है ?
उत्तय :
ऺेत्र ऩॊचामत का सवोच्च वैतननक अर्धकायी ऺेत्र ववकास अर्धकायी होता है ।
प्रश्न 10.
ग्राभ सबा के सदस्म कौन होते हैं ?
उत्तय :
ग्राभ की ननवाथचक सूची भें सन्म्भमरत प्रत्मेक ग्राभवासी ग्राभ सबा का सदस्म होता है ।
प्रश्न 11.
अऩने याज्म के ग्राभीण स्थानीम स्वामत्त शासन की दो सॊस्थाओॊ के नाभ मरखखए।
उत्तय :
ग्राभीण स्वामत्त शासन की दो सॊस्थाओॊ के नाभ हैं –
1. ग्राभ सबा तथा
2. ग्राभ ऩॊचामत।
प्रश्न 12.
ग्राभ ऩॊचामत के अर्धकारयमों के नाभ मरखखए।
उत्तय :
ग्राभ ऩॊचामत के अर्धकायी हैं –
1. प्रधान तथा
2. उऩ-प्रधान।
प्रश्न 13.
ग्राभ ऩॊचामत के चाय कामथ फताइए।
उत्तय :
ग्राभ ऩॊचामत के चाय कामथ हैं –
1. ग्राभ की सम्ऩन्त्त तथा इभायतों की यऺा कयना
2. सॊक्राभक योगों की योकथाभ कयना
3. कृवष औय फागवानी का ववकास कयना तथा
4. रघु मसॊचाई ऩरयमोजनाओॊ से जर-ववतयण का प्रफन्ध कयना।
प्रश्न 14.
ग्राभ ऩॊचामतों का कामथकार क्मा है ?
उत्तय :
ग्राभ ऩॊचामतों का कामथकार 5 वषथ होता है । ववशेष ऩरयन्स्थनतमों भें सयकाय इसे कभ बी कय सकती है ।
प्रश्न 15.
न्माम ऩॊचामत के ऩॊचों की ननमुन्क्त ककस प्रकाय होती है ?
उत्तय :
ग्राभ ऩॊचामत के सदस्मों भें से ववटहत प्रार्धकायी न्माम ऩॊचामत के उतने ही ऩॊच ननमुक्त कयता है न्जतने
कक ननमत ककमे जाएॉ। ऐसे ननमुक्त ककमे गमे व्मन्क्त ग्राभ ऩॊचामत के सदस्म नहीॊ यहें गे।
प्रश्न 16.
ऩॊचामती याज की तीन स्तय वारी व्मवस्था की सॊस्तुनत कयने वारी समभनत का नाभ मरखखए।
उत्तय :
फरवन्त याम भेहता समभनत।
प्रश्न 17.
ककन सॊववधान सॊशोधनों द्वाया ऩॊचामतों औय नगयऩामरकाओॊ से सम्फन्न्धत उऩफन्धों का सॊववधान भें
उल्रेख ककमा गमा ?
उत्तय :
1. उत्तय प्रदे श ऩॊचामत ववर्ध (सॊशोधन) अर्धननमभ, 1994 द्वाया न्जरा ऩॊचामत की व्मवस्था।
2. उत्तय प्रदे श नगय स्वामत्त शासन ववर्ध (सॊशोधन) अर्धननमभ, 1994 द्वाया नगयीम ऺेत्रों भें
स्थानीम स्वशासने की व्मवस्था।
प्रश्न 18.
नगय स्वामत्त सॊस्थाओॊ के नाभ फताइए।
उत्तय :
1. नगय-ननगभ तथा भहानगय ननगभ
2. नगयऩामरका ऩरयषद् तथा
3. नगय ऩॊचामत।
प्रश्न 19.
नगय-ननगभ ककन नगयों भें स्थावऩत की जाती है ? उत्तय प्रदे श भें नगय-ननगभ का गॊठन ककन-ककन स्थानों
ऩय ककमा गमा है ?
उत्तय :
ऩाॉच राख से दस राख तक जनसॊख्मा वारे नगयों भें नगय-ननगभ स्थावऩत की जाती है । उत्तय प्रदे श के
आगया, वायाणसी, इराहाफाद, फये री, भेयठ, अरीगढ़, भुयादाफाद, गान्जमाफाद, गोयखऩुय आटद भें नगय-ननगभ
कामथयत हैं। कानऩयु तथा रखनऊ भें भहानगय ननगभ स्थावऩत हैं।
प्रश्न 20.
नगय-ननगभ के दो कामथ फताइए।
उत्तय :
नगय ननगभ के दो कामथ हैं –
1. नगय भें सपाई व्मवस्था कयना तथा
2. सडकों व गमरमों भें प्रकाश की व्मवस्था कयना।
प्रश्न 21.
नगय-ननगभ की दो प्रभख
ु समभनतमों के नाभ मरखखए।
उत्तय :
नगय-ननगभ की दो प्रभुख समभनतमाॉ हैं –
1. कामथकारयणी समभनत तथा
2. ववकास समभनत।
प्रश्न 22.
नगय-ननगभ का अध्मऺ कौन होता है ?
उत्तय :
नगय-ननगभ का अध्मऺ नगय प्रभुख (भेमय) होता है ।
प्रश्न 23.
नगय-ननगभ भें ननवाथर्चत सदस्मों की सॊख्मा ककतनी होती है ?
उत्तय :
नगय-ननगभ के ननवाथर्चत सदस्मों (सबासदों) की सॊख्मा सयकायी गजट भें दी गमी ववऻन्प्त के आधाय ऩय
ननन्श्चत की जाती है । मह सॊख्मा कभ-से-कभ 60 औय अर्धक-से-अर्धक 110 होती है ।
प्रश्न 24.
उत्तय प्रदे श भें नगयऩामरका ऩरयषद का गठन ककन स्थानों के मरए ककमा जाएगा ?
उत्तय :
नगयऩामरका ऩरयषद् का गठन 1 राख से 5 राख तक की जनसॊख्मा वारे ‗रघत
ु य नगयीम ऺेत्रों भें ककमा
जाता है ।
प्रश्न 25.
न्जरे (जनऩद) का सवोच्च प्रशासननक अर्धकायी कौन है ?
उत्तय :
न्जरे का सवोच्च प्रशासननक अर्धकायी न्जरार्धकायी (उऩामुक्त) होता है ।
प्रश्न 26.
न्जरार्धकायी का सफसे भहत्त्वऩूणथ कामथ कौन-सा है ?
उत्तय :
न्जरे भें शान्न्त-व्मवस्था की स्थाऩना कयना न्जरार्धकायी का सफसे भहत्त्वऩूणथ कामथ है ।
प्रश्न 27.
न्जरार्धकायी की ननमुन्क्त कौन कयता है ?
उत्तय :
न्जरार्धकायी की ननमन्ु क्त याज्म सयकाय द्वाया की जाती है ।
प्रश्न 28.
न्जरे भें मशऺा ववबाग का सवोच्च अर्धकायी कौन होता है ?
उत्तय :
न्जरे भें मशऺा ववबाग का सवोच्च अर्धकायी न्जरा ववद्मारम ननयीऺक होता है ।
प्रश्न 29.
न्जरे के ववकास-कामों से सम्फन्न्धत न्जरा स्तयीम अर्धकायी का ऩद नाभ मरखखए।
उत्तय :
भख्
ु म ववकास अर्धकायी।
प्रश्न 30.
न्जरे भें ऩुमरस ववबाग का सवोच्च अर्धकायी कौन होता है ?
उत्तय :
न्जरे भें ऩुमरस ववबाग का सवोच्च अर्धकायी वरयष्ट्ठ ऩुमरस अधीऺक (S.S.P) होता है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
स्थानीम स्वशासन से आऩ क्मा सभझते हैं ? इस प्रदे श भें कौन-कौन-सी स्थानीम स्वशासन की सॊस्थाएॉ
कामथ कय यही हैं ?
उत्तय :
केन्द्र व याज्म सयकायों के अनतरयक्त, तीसये स्तय ऩय एक ऐसी सयकाय है , न्जसके सम्ऩकथ भें नगयों औय
ग्राभों के ननवासी आते हैं। इस स्तय की सयकाय को स्थानीम स्वशासन कहा जाता है , क्मोंकक मह व्मवस्था
स्थानीम ननवामसमों को अऩना शासन-प्रफन्ध कयने का अवसय प्रदान कयती है । इसके अन्तगथत भुख्मतमा
ग्राभवामसमों के मरए ऩॊचामत औय नगयवामसमों के मरए नगयऩामरका उल्रेखनीम हैं। इन सॊस्थाओॊ द्वाया
स्थानीम आवश्मकताओॊ की ऩूनतथ तथा स्थानीम सभस्माओॊ के सभाधान के प्रमास ककमे जाते हैं।
 नगयीम ऺेत्र – नगय-ननगभ मा नगय भहाऩामरका, नगयऩामरका ऩरयषद् औय नगय ऩॊचामत।
 ग्राभीण ऺेत्र – ग्राभ ऩॊचामत, न्माम ऩॊचामत, ऺेत्र ऩॊचामत तथा न्जरा ऩॊचामत।।
प्रश्न 2.
बायत भें स्थानीम सॊस्थाओॊ का क्मा भहत्त्व है ?
उत्तय :
बायत जैसे रोकतान्न्त्रक दे श भें स्थानीम स्वशासी सॊस्थाओॊ का दे श की याजनीनत औय प्रशासन भें ववशेष
भहत्त्व है । ककसी बी गाॉव मा कस्फे की सभस्माओॊ का सफसे अच्छा ऻान उस गाॉव मा कस्फे के ननवामसमों
को ही होता है । इसमरए वे अऩनी छोटी सयकाय का सॊचारन कयने भें सभथथ तथा सवोच्च होते हैं। इन
सॊस्थाओॊ का भहत्त्व ननम्नमरखखत तथ्मों से स्ऩष्ट्ट होता है –
1. इनके द्वाया गाॉव तथा नगय के ननवामसमों की प्रशासन भें बागीदायी सम्बव होती है ।
2. मे सॊस्थाएॉ प्रशासन तथा जनता के भध्म अर्धकार्धक सम्ऩकथ फनामे यखने भें सहामक होती हैं।
इसके परस्वरूऩ न्जरा प्रशासन को अऩना कामथ कयने भें आसानी होती है ।
3. स्थानीम ववकास तथा ननमोजन की प्रकक्रमाओॊ भें बी मे सॊस्थाएॉ सहामक मसर्द् होती हैं।
प्रश्न 3.
ग्राभ सबा तथा ग्राभ ऩॊचामत भें क्मा अन्तय है ?
उत्तय :
ग्राभ सबा तथा ग्राभ ऩॊचामत भें ननम्नमरखखत अन्तय हैं –
1. ग्राभ ऩॊचामत, ग्राभ सबा से सम्फन्न्धत होती है तथा ग्राभ सबा के कामों का सम्ऩादन ग्राभ ऩॊचामत
के द्वाया ककमा जाता है । इस प्रकाय ग्राभ ऩॊचामत, ग्राभ सबा की कामथकारयणी होती है । ग्राभ
ऩॊचामत के सदस्मों का ननवाथचन ग्राभ सबा के सदस्म ही कयते हैं।
2. ग्राभ सबा का प्रभुख कामथ ऺेत्रीम ववकास के मरए मोजनाएॉ फनाना औय ग्राभ ऩॊचामत का कामथ उन
मोजनाओॊ को व्मावहारयक रूऩ प्रदान कयना है ।
3. ग्राभ सबा की वषथ भें दो फाय तथा ग्राभ ऩॊचामत की भाह भें एक फाय फैठक होना आवश्मक है ।
4. कय रगाने का अर्धकाय ग्राभ सबा को टदमा गमा है न कक ग्राभ ऩॊचामत को।
5. ग्राभ सबा एक फडा ननकाम है , जफकक ग्राभ ऩॊचामत उसकी एक छोटी सॊस्था है ।
6. ग्राभ सबा का ननवाथचन नहीॊ होता है , जफकक ग्राभ ऩॊचामत, ग्राभ सबा द्वाया ननवाथर्चत सॊस्था होती
है ।
दीघश रघु उयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
ऩॊचामती याज के अथथ को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
मा
बायत भें ऩॊचामती याज-व्मवस्था का प्रादब
ु ाथव ककस प्रकाय हुआ ?
उत्तय :
ऩॊचामती याज‘ का अथथ है -ऐसा याज्म जो ऩॊचामत के भाध्मभ से कामथ कयता है । ऐसे शासन के अन्तगथत
ग्राभवासी अऩने भें से वमोवर्द्
ृ व्मन्क्तमों को चुनते हैं , जो उनके ववमबन्न झगडों का ननऩटाया कयते हैं। इस
प्रकाय के शासन भें ग्राभवामसमों को अऩनी व्मवस्था के प्रफन्ध भें प्राम् ऩण
ू थ स्वतन्त्रता होती है । इस प्रकाय
ऩॊचामती याज स्वशासन का ही एक रूऩ है ।
मद्मवऩ बायत के ग्राभों भें ऩॊचामतें फहुत ऩयु ाने सभम भें बी ववद्मभान थीॊ , ऩयन्तु वतथभान सभम भें
ऩॊचामती याज-व्मवस्था का जन्भ स्वतन्त्रता के ऩश्चात ् ही हुआ। ऩॊचामती याज की वतथभान व्मवस्था का
सझ
ु ाव फरवन्त याम भेहता समभनत ने टदमा था। दे श भें ऩॊचामती याज-व्मवस्था सवथप्रथभ याजस्थान भें
रागू की गमी, फाद भें भैसूय (वतथभान कनाथटक), तमभरनाडु, उडीसा, असभ, ऩॊजाफ, उत्तय प्रदे श आटद याज्मों
भें बी मह व्मवस्था रागू की गमी। फरवन्त याम भेहता की भूर मोजना के अनुसाय ऩॊचामतों का गठन
तीन स्तयों ऩय ककमा गमा –

1. ग्राभ स्तय ऩय ऩॊचामतें


2. ववकास खण्ड स्तय ऩय ऩॊचामत समभनतमाॉ तथा
3. न्जरा स्तय ऩय न्जरा ऩरयषद्।
सॊववधान के 73वें सॊशोधन अर्धननमभ, 1993 द्वाया ऩूये प्रदे श भें इस व्मवस्था के स्वरूऩ भें एकरूऩता रामी
गमी है ।

प्रश्न 2.
ऩॊचामती याज के गुण-दोषों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय :
ऩॊचामती याज की उऩरन्ब्धमाॉ (गुण) –

1. ऩॊचामती याज ऩर्द्नत के परस्वरूऩ ग्राभीण बायत भें जागनृ त आमी है ।


2. ऩॊचामतों द्वाया गाॉवों भें कल्माणकायी कामों के कायण गाॉवों की हारत सुधयी है ।
3. ऩॊचामतों द्वाया सॊचामरत प्राथमभक औय वमस्क ववद्मारमों के परस्वरूऩ गाॉवों भें साऺयता औय
मशऺा का प्रसाय हुआ है ।
4. ऩॊचामतों ने सपरताऩूवक
थ अऩने-अऩने ऺेत्र की सभस्माओॊ की ओय अर्धकारयमों का ध्मान खीॊचा है ।
ऩॊचामती याज के दोष – ऩॊचामती याज ऩर्द्नत के कायण गाॉवों के जीवन भें कई फुयाइमाॉ बी आमी हैं , जो
ननम्नमरखखत हैं –
1. ऩॊचामतों के मरए होने वारे चुनावों भें टहॊसा, भ्रष्ट्टाचाय औय जानतवाद का फोरफारा यहता है । महाॉ
तक कक ननवाथर्चत प्रनतननर्ध बी इससे ऩये नहीॊ होते।
2. मह बी कहा जाता है कक ऩॊचामती याज के सदस्म चुने जाने के ऩश्चात ् रोग अऩने कतथव्मों को
ठीक प्रकाय से नहीॊ कयते।
3. महाॉ रयश्वतखोयी चरती है औय धन का फोरफारा यहता है । धनी आदभी ऩॊचों को खयीद रेते
4. स्वमॊ ऩॊच रोग अनऩढ़ होते हैं , इसमरए वे ववमबन्न सभस्माओॊ को सुरझाने की मोग्मता ही नहीॊ
यखते।
5. ऩॊच रोग ऩाटी-राइनों ऩय चुने जाते हैं , इसमरए वे सबी रोगों को ननष्ट्ऩऺ होकय न्माम नहीॊ दे
सकते। सॊऺेऩ भें , बायत भें ऩॊचामती याज एक मभर्श्रत वयदान है ।
प्रश्न 3.
ग्राभ ऩॊचामत के सॊगठन, ऩदार्धकायी, कामथकार एवॊ इसके ऩाॉच कामों का वववयण दीन्जए।
उत्तय :
सॊगठन – ग्राभ ऩॊचामत भें ग्राभ प्रधान के अनतरयक्त 9 से 15 तक सदस्म होते हैं। इसभें 1,000 की
जनसॊख्मा ऩय 9 सदस्म; 1,000-2,000 की जनसॊख्मा तक 11 सदस्म; 2,000 3,000 की। जनसॊख्मा तक 13
सदस्म तथा 3,000 से ऊऩय की जनसॊख्मा ऩय सदस्मों की सॊख्मा 15 होती है । ग्राभ ऩॊचामत के सदस्म के
रूऩ भें ननवाथर्चत होने की न्मूनतभ आमु 21 वषथ है । ग्राभ ऩॊचामत भें ननमभानुसाय सबी वगों तथा
भटहराओॊ को आयऺण प्रदान ककमा गमा है ।
कामशकार – ग्राभ ऩॊचामत का ननवाथचन 5 वषथ के मरए होता है , ककन्तु ववशेष ऩरयन्स्थनतमों भें सयकाय इसे
सभम से ऩव
ू थ बी ववघटटत कय सकती है ।
ऩदाचधकायी – ग्राभ ऩॊचामत का प्रभुख अर्धकायी ग्राभ प्रधान‘ कहराता है । प्रधान की सहामता के मरए उऩ-
प्रधान‘ की व्मवस्था होती है । प्रधान का ननवाथचन ग्राभ सबा के सदस्म ऩाॉच वषथ की अवर्ध के मरए कयते
हैं। उऩ-प्रधान का ननवाथचन ऩॊचामत के सदस्म ऩाॉच वषथ के मरए कयते हैं।
ग्राभ ऩॊचामत
ऩाॉच कामश – ग्राभ ऩॊचामत के कामथ इस प्रकाय हैं –
1. कृवष औय फागवानी का ववकास तथा उन्ननत, फॊजय बमू भ औय चयागाह बमू भ का ववकास तथा उनके
अनर्धकृत अर्धग्रहण एवॊ प्रमोग की योकथाभ कयना।
2. बूमभ ववकास, बूमभ सुधाय औय बूमभ सॊयऺण भें सयकाय तथा अन्म एजेन्न्समों की सहामता कयना ,
बूमभ चकफन्दी भें सहामता कयना।
3. रघु मसॊचाई ऩरयमोजनाओॊ से जर ववतयण भें प्रफन्ध औय सहामता कयना; रघु मसॊचाई ऩरयमोजनाओॊ
के ननभाथण, भयम्भत औय यऺा तथा मसॊचाई के उद्देश्म से जराऩूनतथ का ववननमभन।
4. ऩशुऩारन, दग्ु ध उद्मोग, भुगी-ऩारन की उन्ननत तथा अन्म ऩशुओॊ की नस्रों का सुधाय कयना।
5. गाॉव भें भत्स्म ऩारन का ववकास।
प्रश्न 4.
नगयऩामरका ऩरयषद् के ऩाॉच प्रभुख कामथ फताइए।
उत्तय :
नगयऩामरका ऩरयषद् के ऩाॉच प्रभख
ु कामथ ननम्नमरखखत हैं –
(1) सपाई की व्मिस्था – सम्ऩूणथ नगय को स्वच्छ एवॊ सुन्दय यखने का दानमत्व नगयऩामरका का ही होता है ।
मह सडकों, नामरमों औय अन्म सावथजननक स्थानों की सपाई कयाती है तथा नगय को स्वच्छ यखने के मरए
सावथजननक स्थानों ऩय शौचारम एवॊ भूत्रारमों का ननभाथण कयाती है ।
(2) ऩानी की व्मिस्था – नगयवामसमों के मरए ऩीने मोग्म स्वच्छ जर का प्रफन्ध नगयऩामरका ऩरयषद् ही
कयती है ।
(3) सर्ऺा का प्रफन्ध – अऩने नगयवामसमों की शैक्षऺक न्स्थनत को सुधायने के मरए नगयऩामरका ऩरयषदें
प्राइभयी स्कूर खोरती हैं। मे रडककमों एवॊ अमशक्षऺत रोगों की मशऺा का ववशेष रूऩ से प्रफन्ध कयती हैं।
(4) ननभाशण सम्फन्धी कामश – नगयऩामरका ऩरयषदें नगय भें नामरमाॉ , सडकें, ऩुर आटद फनवाने की व्मवस्था
कयती हैं। सडकों के ककनाये छामादाय वऺ
ृ एवॊ ऩाकथ फनवाना बी इनके प्रभुख कामथ हैं। कुछ सभर्द्

नगयऩामरका ऩरयषदें माब्रत्रमों के मरए होटर, सयामों एवॊ धभथशाराओॊ की बी व्मवस्था कयती हैं। ननभाथण
सम्फन्धी मे कामथ नगयऩामरका की ‗ननभाथण समभनत‘ कयती है ।
(5) योर्नी की व्मिस्था – सडकों, गमरमों एवॊ सबी सावथजननक स्थानों ऩय प्रकाश का सभुर्चत प्रफन्ध बी
नगयऩामरका ऩरयषद् ही कयती है ।
दीघश उत्तयीम प्रश्न
प्रश्नॊ 1.
स्थानीम स्वशासन का क्मा अथथ है ? स्थानीम स्वशासन की आवश्मकता तथा भहत्त्व फताइए।
मा
बायत भें स्थानीम स्वशासन के अथथ , आवश्मकता औय उसके भहत्त्व का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
बायत भें केन्द्र व याज्म सयकायों के अनतरयक्त, तीसये स्तय ऩय एक ऐसी सयकाय है न्जसके सम्ऩकथ भें
नगयों औय ग्राभों के ननवासी आते हैं। इस स्तय की सयकाय को स्थानीम स्वशासन कहा जाता है , क्मोंकक
मह व्मवस्था स्थानीम ननवामसमों को अऩना शासन-प्रफन्ध कयने का अवसय प्रदान कयती है । इसके
अन्तगथत भुख्मतमा ग्राभवामसमों के मरए ग्राभ ऩॊचामत औय नगयवामसमों के मरए नगयऩामरका उल्रेखनीम
हैं। इन सॊस्थाओॊ द्वाया स्थानीम आवश्मकताओॊ की ऩूनतथ तथा स्थानीम सभस्माओॊ के सभाधान के प्रमास
ककमे जाते हैं। व्मावहारयक रूऩ भें वे सबी कामथ न्जनका सम्ऩादन वतथभान सभम भें ग्राभ ऩॊचामतों , न्जरा
ऩॊचामतों, नगयऩामरकाओॊ, नगय ननगभ आटद के द्वाया ककमा जाता है , वे स्थानीम स्वशासन के अन्तगथत
आते हैं।
स्थानीम स्िर्ासन की आिश्मकता एिॊ भहत्त्ि
स्थानीम स्वशासन की आवश्मकता एवॊ भहत्त्व को ननम्नमरखखत ब्रफन्दओ
ु ॊ के आधाय ऩय स्ऩष्ट्ट ककमा जा
सकता है –

(1) रोकताक्न्त्रक ऩयम्ऩयाओॊ को स्थावऩत कयने भें सहामक – बायत भें स्वस्थ रोकतान्न्त्रक ऩयम्ऩयाओॊ को स्थावऩत
कयने के मरए स्थानीम स्वशासन व्मवस्था ठोस आधाय प्रदान कयती है । उसके भाध्मभ से शासन-सत्ता
वास्तववक रूऩ से जनता के हाथ भें चरी जाती है । इसके अनतरयक्त स्थानीम स्वशासन-व्मवस्था , स्थानीम
ननवामसमों भें रोकतान्न्त्रक सॊगठनों के प्रनत रुर्च उत्ऩन्न कयती है ।
(2) बािी नेतत्ृ ि का ननभाशण – स्थानीम स्वशासन की सॊस्थाएॉ बायत के बावी नेतत्ृ व को तैमाय कयती हैं। मे
ववधामकों औय भन्न्त्रमों को प्राथमभक अनब
ु व एवॊ प्रमशऺण प्रदान कयती हैं , न्जससे वे बायत की ग्राभीण
सभस्माओॊ से अवगत होते हैं। इस प्रकाय ग्राभों भें उर्चत नेतत्ृ व का ननभाथण कयने एवॊ ववकास कामों भें
जनता की रुर्च फढ़ाने भें स्थानीम स्वशासन की भहत्त्वऩूणथ मोगदान यहता है ।
(3) जनता औय सयकाय के ऩायस्ऩरयक सम्फन्ध – बायत की जनता स्थानीम स्वशासन की सॊस्थाओॊ के भाध्मभ से
शासन के फहुत ननकट ऩहुॉच जाती है । इससे जनता औय सयकाय भें एक-दस ू ये की कटठनाइमों को सभझने
की बावनाएॉ उत्ऩन्न होती हैं। इसके अनतरयक्त दोनों भें सहमोग बी फढ़ता है , जो ग्राभीण उत्थान एवॊ
ववकास के मरए आवश्मक है ।
(4) स्थानीम सभाज औय याजनीनतक व्मिस्था के फीच की कडी – ग्राभ ऩॊचामतों के कामथकताथ औय ऩदार्धकायी
स्थानीम सभाज औय याजनीनतक व्मवस्था के फीच की कडी के रूऩ भें कामथ कयते हैं। इन स्थानीम
ऩदार्धकारयमों के सहमोग के अबाव भें न तो याष्ट्र के ननभाथण का कामथ सम्बव हो ऩाता है औय न ही
सयकायी कभथचायी अऩने दानमत्व का सभुर्चत रूऩ से ऩारन कय ऩाते हैं।
(5) प्रर्ासकीम र्क्ततमों का विकेन्द्रीकयण – स्थानीम स्वशासन की सॊस्थाएॉ केन्द्रीम व याज्म सयकायों को
स्थानीम सभस्माओॊ के बाय से भुक्त कयती हैं। स्थानीम स्वशासन की इकाइमों के भाध्मभ से ही शासकीम
शन्क्समों एवॊ कामों का ववकेन्द्रीकयण ककमा जा सकता है । रोकतान्न्त्रक ववकेन्द्रीकयण की इस प्रकक्रमा भें
शासन-सत्ता कुछ ननधाथरयत सॊस्थाओॊ भें ननटहत होने के स्थान ऩय , गाॉव की ऩॊचामत के कामथकताथओॊ के
हाथों भें ऩहुॉच जाती है । बायत भें इस व्मवस्था से प्रशासन की कामथकुशरता भें ऩमाथप्त ववृ र्द् हुई है ।
(6) नागरयकों को ननयन्तय जागरूक फनामे यखने भें सहामक – स्थानीम स्वशासन की सॊस्थाएॉ रोकतन्त्र की
प्रमोगशाराएॉ हैं। मे बायतीम नागरयकों को अऩने याजनीनतक अर्धकायों के प्रमोग की मशऺा तो दे ती ही हैं ,
साथ ही उनभें नागरयकता के गुणों का ववकास कयने भें बी सहामक होती हैं।
ु ऩ – रोकतन्त्र का आधायबूत तथा भौमरक मसर्द्ान्त मह है । कक सत्ता का
(7) रोकताक्न्त्रक ऩयम्ऩयाओॊ के अनरू
अर्धक-से-अर्धक ववकेन्द्रीकयण होना चाटहए। स्थानीम स्वशासन की इकाइमाॉ इस मसर्द्ान्त के अनरू
ु ऩ हैं।
(8) नौकयर्ाही की फयु ाइमों की सभाक्तत – स्थानीम स्वशासन की सॊस्थाओॊ भें नागरयकों की प्रत्मऺ बागीदायी से
प्रशासन भें नौकयशाही, रारपीताशाही तथा भ्रष्ट्टाचाय जैसी फयु ाइमाॉ उत्ऩन्न नहीॊ होती हैं।
(9) प्रर्ासननक अचधकारयमों की जागरूकता – स्थानीम रोगों की शासन भें बागीदायी के कायण प्रशासन उस ऺेत्र
की आवश्मकताओॊ के प्रनत अर्धक सजग तथा सॊवेदनशीर हो जाता है ।
उऩमुक्
थ त वववयण से स्ऩष्ट्ट है कक स्थानीम स्वशासन रोकतन्त्र का आधाय है । मह रोकतान्न्त्रक
ववकेन्द्रीकयण (Democratic Decentralisation) की प्रकक्रमा ऩय आधारयत है । मटद प्रशासन को जागरूक
तथा अर्धक कामथकुशर फनाना है तो उसका प्रफन्ध एवॊ सॊचारन स्थानीम आवश्मकताओॊ के अनुरूऩ
स्थानीम सॊस्थाओॊ के द्वाया ही सम्ऩन्न ककमा जाना चाटहए।

प्रश्न 2.
ऩॊचामती याज-व्मवस्था से आऩ क्मा सभझते हैं ? ग्राभ ऩॊचामत के कामों तथा शन्क्तमों का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
बायत गाॉवों का दे श है । ब्रिटटश याज भें गाॉवों की आर्थथक तथा याजनीनतक व्मवस्था शोचनीम हो गमी थी ;
अत् स्वतन्त्रता-प्रान्प्त के फाद दे श भें ऩॊचामती याज-व्मवस्था द्वाया गाॉवों भें याजनीनतक तथा आर्थथक
सत्ता के ववकेन्द्रीकयण का प्रमास ककमा गमा। फरवन्त याम भेहता -मभनत ने ऩॊचामती याज-व्मवस्था के
मरए ब्रत्र-स्तयीम मोजना का ऩयाभशथ टदमा। इस मोजना भें स. ननचरे स्तय ऩय ग्राभ सबा औय ग्राभ
ऩॊचामतें हैं। भध्म स्तय ऩय ऺेत्र समभनतमाॉ तथा उच्च स्तय ऩय न्जरा ऩरयषदों की व्मवस्था की गमी थी।
बायतीम गाॉवों भें फहुत ऩहरे से ही ग्राभ ऩॊचामतों की व्मवस्था यही है । उत्तय प्रदे श सयकाय ने सॊमुक्त
प्रान्तीम ऩॊचामत याज कानून फनाकय ऩॊचामतों के सॊगठन सम्फन्धी उल्रेखनीम कामथ को ककमा था। सन ्
1947 ई० के इस कानून के अनुसाय ग्राभ ऩॊचामत के स्थान ऩय ग्राभ सबा , ग्राभ ऩॊचामत औय न्माम
ऩॊचामत की व्मवस्था की गमी थी। अफ उत्तय प्रदे श ऩॊचामत ववर्ध (सॊशोधन) अर्धननमभ , 1994 के अनुसाय
बी ग्राभ सबा, ग्राभ ऩॊचामत तथा न्माम ऩॊचामत की ही व्मवस्था को यखा गमा है ।

ग्राभ ऩॊचामत के कामश तथा र्क्ततमाॉ


ग्राभ सबा के ननदे शन तथा भागथदशथन भें कामथ कयती हुई ग्राभ ऩॊचामत , ऩॊचामती याज व्मवस्था की सफसे
छोटी आधायबूत इकाई है । मह ग्राभ ऩॊचामत सयकाय की कामथऩामरका के रूऩ भें कामथ कयती है । ग्राभ
ऩॊचामत के कामों तथा शन्क्तमों की वववेचना ननम्नमरखखत शीषथकों के अन्तगथत की जा सकती है –

ग्राभ ऩॊचामत के कामश


ग्राभ ऩॊचामत के प्रभुख कामथ इस प्रकाय हैं –

1. गाॉव की सपाई-व्मवस्था कयना


2. योशनी का प्रफन्ध कयना
3. सॊक्राभक योगों की योकथाभ कयना
4. गाॉव एवॊ गाॉव की इभायतों की यऺा कयना
5. जन्भ-भयण का रेखा-जोखा यखना
6. फारक एवॊ फामरकाओॊ की मशऺा की सभुर्चत व्मवस्था कयना
7. खेरकूद की व्मवस्था कयना
8. कृवष की उन्ननत का प्रमत्न कयना
9. श्भशान बमू भ की व्मवस्था कयना
10. सावथजननक चयागाहों की व्मवस्था कयना
11. आग फुझाने का प्रफन्ध कयना
12. जनगणना औय ऩशुगणना कयना
13. प्राथमभक र्चककत्सा का प्रफन्ध कयना
14. खाद एकत्र कयने के मरए स्थान ननन्श्चत कयना
15. जर-भागों की सुयऺा का प्रफन्ध कयना
16. प्रसूनत-गह
ृ खोरना
17. सयकाय द्वाया सौंऩे गमे अन्म कामथ कयना
18. आदशथ नागरयकता की बावना को प्रोत्साहन दे ना
19. ग्राभीण जनता को शासन-व्मवस्था से ऩरयर्चत कयाना
20. अस्ऩतार खर
ु वाना
21. ऩुस्तकारम एवॊ वाचनारमों की व्मवस्था कयना
22. ऩाकथ फनवाना
23. गह
ृ उद्मोगों को उन्नत कयने का प्रमत्न कयना
24. ऩशुओॊ की नस्र सुधायना
25. स्वमॊसेवक दर का सॊगठन कयना
26. सहकायी समभनतमों का गठन कयना
27. सहकायी ऋण प्राप्त कयने भें ककसानों की सहामता कयना
28. अकार मा अन्म ववऩन्त्त के सभम गाॉव वारों की सहामता कयना तथा
29. सडकों के ककनाये छामादाय वऺ
ृ रगवाना आटद कामथ सन्म्भमरत होते हैं।
ग्राभ ऩॊचामत की र्क्ततमाॉ
ग्राभ ऩॊचामत के कुछ सदस्म न्माम ऩॊचामत के रूऩ भें कामथ कयते हुए अऩने गाॉव के छोटे -छोटे झगडों का
ननऩटाया बी कयते हैं। दीवानी के भाभरों भें मे ₹ 500 के भूल्म तक की सम्ऩन्त्त के भाभरों की सुनवाई
कय सकते हैं तथा पौजदायी के भुकदभों भें इसे ₹ 250 तक का जुभाथना कयने का अर्धकाय प्राप्त है ।

बायतीम सॊववधान भें ककमे गमे 73वें सॊशोधन के द्वाया ग्राभ ऩॊचामत को व्माऩक अर्धकाय एवॊ शन्क्तमाॉ
प्रदान की गमी हैं। साथ ही ग्राभ ऩॊचामत के कामथ-ऺेत्र को बी व्माऩक फनामा गमा है न्जसके अन्तगथत 29
ननमभों से मुक्त एक ववस्तत
ृ सूची को यखा गमा है ।

प्रश्न 3.
ऺेत्र ऩॊचामत ककस प्रकाय सॊगटठत की जाती है ? मह अऩने ऺेत्र के ववकास के मरए कौन-कौन-से कामथ
कयती है ?
मा
ऺेत्र ऩॊचामत (ऩॊचामत समभनत) के सॊगठन, कामों तथा शन्क्तमों ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
उत्तय प्रदे श यामत (सॊशोधन) अर्धननमभ, 1994′ के सेक्शन 7 (1) के द्वाया ऺेत्र समभनत का नाभ फदरकय
ऺेत्र ऩॊचामत कय टदमा गमा है । मह ग्राभ ऩॊचामत के ऊऩय के स्तय की इकाई होती है । याज्म सयकाय गजट
भें अर्धसूचना द्वाया प्रत्मेक खण्ड के मरए एक ऺेत्र ऩॊचामत स्थावऩत कये गी। ऩॊचामत का नाभ खण्ड के
नाभ ऩय होगा।
सॊगठन – ऺेत्र ऩॊचामत एक प्रभुख औय ननम्नमरखखत प्रकाय के सदस्मों से मभरकय फनती है –
1. खण्ड की सबी ग्राभ ऩॊचामतों के प्रधान।
2. ननिाशचचत सदस्म – मे ऩॊचामती ऺेत्र के 2000 जनसॊख्मा वारे प्रादे मशक ननवाथचन ऺेत्रों से प्रत्मऺ
ननवाथचन द्वाया ननवाथर्चत ककमे जाते हैं।
3. रोकसबा औय ववधानसबा के ऐसे सदस्म, जो उन ननवाथचन ऺेत्रों का प्रनतननर्धत्व कयते हैं , जो ऩूणत
थ :
अथवा अॊशत: उस खण्ड भें सन्म्भमरत हैं।
4. याज्मसबा तथा ववधान ऩरयषद् के ऐसे सदस्म, जो खण्ड के अन्तगथत ननवाथचको के रूऩ भें ऩॊजीकृत
हैं।
उऩमुक्
थ त सदस्मों भें केवर ननवाथर्चत सदस्मों को ही प्रभुख अथवा उऩ-प्रभुख के ननवाथचन तथा उनके ववरुर्द्
अववश्वास के भाभरों भें भत दे ने का अर्धकाय होता है ।
मोग्मता – ऺेत्र ऩॊचामत का सदस्म ननवाथर्चत होने के मरए प्रत्माशी भें ननम्नमरखखत मोग्मताएॉ होनी
आवश्मक हैं –
1. उसका नाभ ऺेत्र ऩॊचामत की प्रादे मशक ननवाथचन ऺेत्र की ननवाथचक नाभावरी भें हो।
2. वह ववधानभण्डर का सदस्म ननवाथर्चत होने की मोग्मता यखता हो।
3. उसकी आमु 21 वषथ हो।
4. वह ककसी राब के सयकायी ऩद ऩय न हो।
स्थानों को आयऺण – प्रत्मेक ऺेत्र ऩॊचामत भें अनुसूर्चत जानतमों, जनजानतमों औय वऩछडे वगों के मरए स्थान
आयक्षऺत यहें गे। ऺेत्र ऩॊचामत भें प्रत्मऺ ननवाथचन द्वाया बये जाने वारे कुर स्थानों की सॊख्मा भें आयक्षऺत
स्थानों का अनऩ
ु ात मथासम्बव वही होगा जो उस खण्ड भें अनस
ु र्ू चत जानतमों अथवा जनजानतमों की मा
वऩछडे वगों की जनसॊख्मा का अनुऩात उस खण्ड की कुर जनसॊख्मा भें है । वऩछडे वगों के मरए आयऺण
कुर ननवाथर्चत स्थानों की सॊख्मा के 27% से अर्धक नहीॊ होगा।
अनुसूर्चत जानतमों, जनजानतमों तथा अन्म वऩछडे वगों के मरए आयक्षऺत स्थानों की सॊख्मा के कभ-से-कभ
एक-नतहाई स्थान इन जानतमों औय वगों की भटहराओॊ के मरए आयक्षऺत होंगे। ऺेत्र ऩॊचामत भें ननवाथर्चत
स्थानों की कुर सॊख्मा के कभ-से-कभ एक-नतहाई स्थान भटहराओॊ के मरए आयक्षऺत होंगे।

ऩदाचधकायी – ऺेत्र ऩॊचामत भें ननवाथर्चत सदस्मों द्वाया अऩने भें से ही एक प्रभुख , एक ज्मेष्ट्ठ उऩ-प्रभुख तथा
एक कननष्ट्ठ उऩ-प्रभुख चुने जाते हैं। याज्म भें ऺेत्र ऩॊचामतों के प्रभुखों के ऩद अनुसूर्चत जानतमों ,
जनजानतमों, अन्म वऩछडे वगों तथा भटहराओॊ के मरए आयक्षऺत ककमे गमे हैं।
कामशकार – ऺेत्र ऩॊचामत का कामथकार 5 वषथ है , ऩयन्तु याज्म सयकाय 5 वषथ की अवर्ध से ऩहरे बी ऺेत्र
ऩॊचामत को ववघटटत कय सकती है । प्रभुख , उऩ-प्रभुख अथवा ऺेत्र ऩॊचामत का कोई बी सदस्म 5 वषथ की
अवर्ध से ऩूवथ बी त्मागऩत्र दे कय अऩना ऩद त्माग सकता है । प्रभुख तथा उऩ-प्रभुख के द्वाया अऩने
कतथव्मों का ऩारन न कयने की न्स्थनत भें उनके ववरुर्द् अववश्वास प्रस्ताव ऩारयत कयके उन्हें ऩदच्मत
ु ककमा
जा सकता है । ऺेत्र ऩॊचामत के ववघटन के छ: भाह की अवर्ध के बीतय चुनाव कयाना अननवामथ है ।
अचधकायी – ऺेत्र ऩॊचामत का सफसे प्रभख
ु अर्धकायी ‗खण्ड ववकास अर्धकायी (Block Development Officer)
होता है । इस ऩय सभस्त प्रशासन का उत्तयदानमत्व होता है । इसके अनतरयक्त कुछ अन्म अर्धकायी बी होते
हैं।
अचधकाय औय कामश – ऺेत्र ऩॊचामत के प्रभुख अर्धकाय औय कामथ ननम्नमरखखत हैं –
1. कृवष, बमू भ ववकास, बमू भ सध
ु ाय औय रघु मसॊचाई सम्फन्धी कामों को कयना।
2. सावथजननक ननभाथण सम्फन्धी कामथ कयना।
3. कुटीय औय ग्राभ उद्मोगों तथा रघु उद्मोगों का ववकास कयना।
4. ऩशुऩारन तथा ऩशु सेवाओॊ भें ववृ र्द् कयना।
5. स्वास्थ्म तथा सपाई सम्फन्धी कामों की दे खबार कयना।
6. शैऺखणक, साभान्जक औय साॊस्कृनतक ववकास से सम्फर्द् कामथ कयाना।
7. ऩेमजर, ईंधन औय चाये की व्मवस्था कयना।
8. ग्राभीण आवास की व्मवस्था कयना।
9. र्चककत्सा तथा ऩरयवाय कल्माण सम्फन्धी कामों की दे खबार कयना।
10. फाजाय तथा भेरों की व्मवस्था कयना।
11. प्राकृनतक आऩदाओॊ भें सहामता प्रदान कयना।
12. ग्राभ सबाओॊ का ननयीऺण कयना तथा खण्ड ववकास मोजनाएॉ रागू कयना।
प्रश्न 4.
न्माम ऩॊचामत का सॊगठन ककस प्रकाय होता है ? इसके प्रभख
ु अर्धकाय क्मा हैं ?
उत्तय :
प्रत्मेक ग्राभ सबा न्माम ऩॊचामत के मरए ऩॊचों का ननवाथचन कयती है । इन ननवाथर्चत सदस्मों भें से सयकायी
अर्धकायी मशऺा, प्रनतष्ट्ठा, अनुबव एवॊ मोग्मता के आधाय ऩय ऩॊच भनोनीत कयता है । प्रत्मेक न्माम ऩॊचामत
भें सदस्मों की सॊख्मा इस प्रकाय होती है कक वह ऩाॉच से ऩयू ी-ऩयू ी ववबक्त हो जाए। 1 से 6 गाॉव सबाओॊ
वारी न्माम ऩॊचामत के ऩॊचों की सॊख्मा 15, 7 से 9 तक 20 तथा 9 से अर्धक होने ऩय 25 होगी।
न्माम ऩॊचामत के सदस्म अऩने भध्म से एक सयऩॊच तथा एक सहामक सयऩॊच चन
ु ते हैं। इस ऩद ऩय उन्हीॊ
ऩढ़े -मरखे व्मन्क्तमों को ननवाथर्चत ककमा जाता है जो कामथवाही मरख सकें।

प्रभख
ु अचधकाय
न्माम ऩॊचामत को दीवानी, पौजदायी तथा भार के भक
ु दभे दे खने का अर्धकाय प्राप्त है । न्माम ऩॊचामतों को
₹ 500 की भामरमत के भुकदभे सुनने का अर्धकाय टदमा गमा है । पौजदायी के भुकदभों भें वह ₹ 250 तक
जभ
ु ाथना कय सकती है । मह ककसी को कायावास मा शायीरयक दण्ड नहीॊ दे सकती। मटद कोई गवाह
उऩन्स्थत नहीॊ होता है तो मह है 25 का जभानती वायण्ट जायी कय सकती है । मटद न्माम ऩॊचामत मह
सभझ रे कक ककसी व्मन्क्त से शान्न्त बॊग होने की आशॊका है तो वह उससे 15 टदन तक के मरए ₹ 100
का भुचरका रे सकती है ।

न्माम ऩॊचामत को न्मानमक अर्धकाय प्राप्त हैं। न्माम ऩॊचामत का अनादय कयने वारे व्मन्क्त को न्माम ५
ऩॊचामत भानहानन का अऩयाधी फनाकय उस ऩय ₹ 5 जुभाथना कय सकती है । न्माम ऩॊचामत के ननणथम के
ववरुर्द् अऩीर नहीॊ की जा सकती। चोयी, अश्रीरता, गारी-गरौज, स्त्री की रज्जा, अऩहयण आटद के भक
ु दभो
की सुनवाई न्माम ऩॊचामत कयती है । इन भुकदभों भें वकीरों को ऩेश होने का प्रावधान नहीॊ यखा गमा है ।
ककसी भक
ु दभे भें अन्माम होने ऩय न्माम ऩॊचामत के दीवानी के भक
ु दभे की ननगयानी भॊमु सप के महाॉ तथा
भार के भुकदभे की ननगयानी हाककभ ऩयगना के महाॉ हो सकती है । याज्म सयकाय न्माम ऩॊचामतों के कामों
ऩय ननमन्त्रण यखती है , न्जससे ननणथमों भें कोई ऩऺऩात न हो सके तथा न्माम ऩॊचामतें सही रूऩ से अऩने
कतथव्मों का ऩारन कय सकें।

प्रश्न 5.
न्जरा ऩॊचामत का गठन ककस प्रकाय होता है ? इसके प्रभख
ु कामथ तथा आम के साधन मरखखए।
उत्तय :
ब्रत्र-स्तयीम ऩॊचामती याज-व्मवस्था की सवोच्च इकाई न्जरा ऩॊचामत होती है । उत्तय प्रदे श सयकाय ने
ऩॊचामत ववर्ध (सॊशोधन) अर्धननमभ, 1994 ऩारयत कयके न्जरा ऩरयषद् का नाभ फदरकय न्जरा ऩॊचामत कय
टदमा है ।
गठन – न्जरा ऩॊचामत के गठन भें ननम्नमरखखत दो प्रकाय के सदस्म होते हैं –
(क) ननिाशचचत सदस्म – ननवाथर्चत सदस्मों की सदस्म-सॊख्मा याज्म सयकाय द्वाया ननन्श्चत की जाती है ।
साधायणतमा 50,000 से अर्धक की जनसॊख्मा ऩय एक सदस्म ननवाथर्चत ककमा जाता है । मह ननवाथचन
वमस्क भतदान द्वाया होता है ।
(ख) अन्म सदस्म – अन्म सदस्मों भें कुछ ऩदे न सदस्म होते हैं , जो कक ननम्नवत ् हैं –
1. जनऩद की सबी ऺेत्र ऩॊचामतों के प्रभुख।
2. रोकसबा तथा ववधानसबा के वे सदस्म जो उन ननवाथचन ऺेत्रों का प्रनतननर्धत्व कयते हैं , न्जनभें
न्जरा ऩॊचामत ऺेत्र का कोई बाग सभाववष्ट्ट है ।
3. याज्मसबा तथा ववधान ऩरयषद् के वे सदस्म जो उस न्जरा ऩॊचामत ऺेत्र भें भतदाताओॊ के रूऩ भें
ऩॊजीकृत हैं।
आयऺण – प्रत्मेक न्जरा ऩॊचामत भें अनुसूर्चत जानतमों, जनजानतमों औय वऩछडे वगों के मरए ननमभानुसाय
स्थान आयक्षऺत यहें गे। आयक्षऺत स्थानों की सॊख्मा का अनऩ
ु ात , न्जरा अनऩ
ु ात भें प्रत्मऺ ननवाथचन द्वाया
बये जाने वारे कुर स्थानों की सॊख्मा भें मथासम्बव वही होगा , जो अनुऩात इन जानतमों एवॊ वगों की
जनसॊख्मा का न्जरा ऩॊचामत ऺेत्र की सभस्त जनसॊख्मा भें है । सॊशोर्धत प्रावधानों के अन्तगथत वऩछडे वगों
के मरए आयऺण कुर ननवाथर्चत स्थानों की सॊख्मा के 27% से अर्धक नहीॊ होगा। अनुसूर्चत जानतमों,
जनजानतमों तथा अन्म वऩछडे वगों के मरए आयक्षऺत स्थानों की सॊख्मा के कभ-से-कभ एक-नतहाई स्थान ;
इन जानतमों औय वगों की भटहराओॊ के मरए आयक्षऺत यहें गे। प्रत्मेक न्जरा ऩॊचामत भें ननवाथर्चत स्थानों
की कुर सॊख्मा के कभ-से-कभ एक-नतहाई स्थान; भटहराओॊ के मरए आयक्षऺत यहें गे।
मोग्मता – न्जरा ऩॊचामत का सदस्म ननवाथर्चत होने के मरए ननम्नमरखखत मोग्मताएॉ अऩेक्षऺत हैं –
1. ऐसे सबी व्मन्क्त, न्जनका नाभ उस न्जरा ऩॊचामत के ककसी प्रादे मशक ननवाथचन ऺेत्र के मरए
ननवाथचक नाभावरी भें सन्म्भमरत है ।
2. जो याज्म ववधानभण्डर का सदस्म ननवाथर्चत होने की आमु-सीभा के अनतरयक्त अन्म सबी
मोग्मताएॉ यखता है ।
3. न्जसने 21 वषथ की आमु ऩूयी कय री है ।
अचधकायी – प्रत्मेक न्जरा ऩॊचामत भें दो अर्धकायी होते हैं-अध्मऺ तथा उऩाध्मऺ , न्जनका चन
ु ाव ननवाथर्चत
सदस्मों द्वाया गुप्त भतदान प्रणारी के आधाय ऩय होता है । अध्मऺ फनने के मरए मह आवश्मक है कक
वह न्जरे भें यहता हो, उसकी आमु 21 वषथ से कभ न हो तथा उसका नाभ भतदाता सच
ू ी भें हो। इन दोनों
का ननवाथचन ऩाॉच वषथ के मरए ककमा जाता है । याज्म सयकाय ऩाॉच वषथ की अवर्ध , से ऩूवथ बी इन्हें ऩदच्मुत
कय सकती है । मे ऩद बी अनुसूर्चत जानतमों, जनजानतमों तथा वऩछडे वगों के मरए आयक्षऺत होते हैं।
अध्मऺ ऩॊचामतों की फैठकों का सबाऩनतत्व कयता है , ऩॊचामत के कामों का ननयीऺण कयता है एवॊ
कभथचारयमों ऩय ननमन्त्रण यखता है । अध्मऺ की अनुऩन्स्थनत भें उसका ऩदबाय उऩाध्मऺ सॉबारता है ।
इन अर्धकारयमों के अनतरयक्त छोटे -फडे , स्थामी-अस्थामी अनेक वैतननक कभथचायी बी होते हैं , जो इन
अर्धकारयमों के प्रनत न्जम्भेदाय होते हैं तथा न्जरा ऩॊचामत का कामथ ननष्ट्ऩाटदत कयते हैं।

कामश – न्जरे के सभस्त ग्राभीण ऺेत्र की व्मवस्था तथा ववकास का उत्तयदानमत्व न्जरा ऩॊचामत ऩय है । इस
दानमत्व को ऩयू ा कयने के मरए न्जरा ऩरयषद् ननम्नमरखखत कामथ कयती है
1. सावथजननक सङ्कों, ऩुरों तथा ननयीऺण-गह
ृ ों का ननभाथण एवॊ भयम्भत कयवाना।
2. प्रफन्ध हे तु सडकों का ग्राभ सडकों, अन्तग्रभ ग्राभ सडकों तथा न्जरा सडकों भें वगीकयण कयना।
3. ताराफ, नारे आटद फनवाना।
4. ऩीने के ऩानी की व्मवस्था कयना।
5. योशनी का प्रफन्ध कयना।
6. जनस्वास्थ्म के मरए भहाभारयमों औय सॊक्राभक योगों की योकथाभ की व्मवस्था कयना।
7. अकार के दौयान सहामता हे तु याहत कामथ चराना।
8. ऺेत्र समभनत एवॊ ग्राभ ऩॊचामत के कामों भें तारभेर स्थावऩत कयना।
9. ग्राभ ऩॊचामतों तथा ऺेत्र समभनतमों के कामों का ननयीऺण कयना।
10. प्राइभयी स्तय से ऊऩय की मशऺा का प्रफन्ध कयना।
11. सडकों के ककनाये छामादाय वऺ
ृ रगवाना।
12. काॊजी हाउस तथा ऩशु र्चककत्सारम की व्मवस्था कयना।
13. जन्भ-भत्ृ मु का टहसाफ यखना।
14. ऩरयवाय ननमोजन कामथक्रभ रागू कयना।
15. अस्ऩतार खोरना तथा भनोयॊ जन के साधनों की व्मवस्था कयना।
16. ऩुस्तकारम-वाचनारम का ननभाथण एवॊ उनका अनुयऺण कयना।
17. कृवष की उन्ननत के मरए उर्चत प्रफन्ध कयना।
18. खाद्म ऩदाथों भें मभरावट को योकना आटद।
आम के साधन – न्जरा ऩॊचामत अऩने कामों को ऩूणथ कयने के मरए ननम्नमरखखत साधनों से आम प्राप्त
कयती है –
1. है मसमत एवॊ सम्ऩन्त्त कय
2. स्कूरों से प्राप्त पीस
3. अचर सम्ऩन्त्त से कय
4. राइसेन्स कय
5. नटदमों के ऩुरों तथा घाटों से प्राप्त उतयाई कय
6. काॊजी हाउसों से प्राप्त आम
7. भेरों, हाटों एवॊ प्रदशथननमों से प्राप्त आम तथा
8. याज्म सयकाय से प्राप्त अनद
ु ान।
प्रश्न 6.
अऩने प्रदे श भें नगयऩामरका ऩरयषद का गठन ककस प्रकाय होता है ? नगय के ववकास के मरए वे कौन-
कौन-से कामथ कयती हैं ?
उत्तय :
उत्तय प्रदे श नगयीम स्वामत्त शासन ववर्ध (सॊशोधन) अर्धननमभ, 1994 ई०‘ के अनुसाय 1 राख से 5 राख
तक की जनसॊख्मा वारे नगय को ‗रघत
ु य नगयीम ऺेत्र का नाभ टदमा गमा है तथा इनके प्रफन्ध के मरए
नगयऩामरका ऩरयषद् की व्मवस्था का ननणथम मरमा गमा है ।
गठन – नगयऩामरका ऩरयषद् भें एक अध्मऺ औय तीन प्रकाय के सदस्म होंगे। मे तीन प्रकाय के सदस्म
ननम्नमरखखत हैं –
(1) ननिाशचचत सदस्म – नगयऩामरका ऩरयषद् भें जनसॊख्मा के आधाय ऩय ननवाथर्चत सदस्मों की सॊख्मा 25 से
कभ औय 55 से अर्धक नहीॊ होगी। याज्म सयकाय सदस्मों की मह सॊख्मा ननन्श्चत कयके सयकायी गजट भें
अर्धसूचना द्वाया प्रकामशत कये गी।
(2) ऩदे न सदस्म – (i) इसभें रोकसबा औय याज्म ववधानसबा के ऐसे सभस्त सदस्म सन्म्भमरत होते हैं , जो
उन ननवाथचन ऺेत्रों का प्रनतननर्धत्व कयते हैं , न्जनभें ऩूणत
थ मा अथवा अॊशत् वे नगयऩामरका ऺेत्र सन्म्भमरत
होते हैं।
(ii) इसभें याज्मसबा औय ववधान ऩरयषद् के ऐसे सभस्त सदस्म सन्म्भमरत होते हैं , जो उस नगयऩामरका
ऺेत्र के अन्तगथत ननवाथचक के रूऩ भें ऩॊजीकृत हैं।
(3) भनोनीत सदस्म – प्रत्मेक नगयऩामरका ऩरयषद् भें याज्म सयकाय द्वाया ऐसे सदस्मों को भनोनीत ककमा
जाएगा, न्जन्हें नगयऩामरका प्रशासन का ववशेष ऻान अथवा अनुबव हो। ऐसे सदस्मों की सॊख्मा 3 से कभ
औय 5 से अर्धक नहीॊ होगी। इन भनोनीत सदस्मों को नगयऩामरका ऩरयषद् की फैठकों भें भत दे ने का
अर्धकाय नहीॊ होगा। नगय ननगभ के ननवाथर्चत सदस्मों के सभान (सबासद) नगयऩामरका ऩरयषद् के
सदस्मों को बी सबासद‘ ही कहा जाएगा।
ऩदाचधकायी – प्रत्मेक नगयऩामरका ऩरयषद् भें एक ‗अध्मऺ औय एक ‗उऩाध्मऺ होगा। अध्मऺ की
अनऩ
ु न्स्थनत भें मा ऩद रयक्त होने ऩय उऩाध्मऺ के द्वाया अध्मऺ के रूऩ भें कामथ ककमा जाता है । अध्मऺ
का ननवाथचन 5 वषथ के मरए सभस्त भतदाताओॊ द्वाया वमस्क भतार्धकाय तथा प्रत्मऺ ननवाथचन के आधाय
ऩय होता है । उऩाध्मऺ का ननवाथचन नगयऩामरका ऩरयषद् के सबासदों द्वाया एक वषथ की अवर्ध के मरए
ककमा जाता है ।
अचधकायी औय कभशचायी – उऩमक्
ुथ त के अनतरयक्त ऩरयषद् के कुछ वैतननक अर्धकायी व कभथचायी बी होते हैं ,
न्जनभें सफसे प्रभुख प्रशासननक अर्धकायी‘ (Executive Officer) होता है । न्जन ऩरयषदों भें ‗प्रशासननक
अर्धकायी न हों, वहाॉ ऩरयषद् ववशेष प्रस्ताव द्वाया एक मा एक से अर्धक सर्चव ननमुक्त कयती है ।
कामश – नगयऩामरका अऩनी समभनतमों के भाध्मभ से नगयों के ववकास के मरए ननम्नमरखखत कामथ कयती है

(I) अननिामश कामश – नगयऩामरका ऩरयषद् को ननम्नमरखखत कामथ कयने ऩडते हैं –
1. सडकों का ननभाथण तथा उनकी भयम्भत व सपाई कयवाना।
2. नगयों भें जर की व्मवस्था कयना।
3. नगयों भें प्रकाश की व्मवस्था कयना।
4. सडकों के ककनायों ऩय छामादाय वऺ
ृ रगवाना।
5. नगय की सपाई का प्रफन्ध कयना।
6. औषधारमों का प्रफन्ध कयना तथा सॊक्राभक योगों से फचने के मरए टीके रगवाना।
7. शवों को जराने एवॊ दपनाने की उर्चत व्मवस्था कयना।
8. जन्भ एवॊ भत्ृ मु का वववयण यखना।
9. नगयों भें मशऺा की व्मवस्था कयना।
10. आग फझ
ु ाने के मरए पामय ब्रिगेड की व्मवस्था कयना।
11. सडकों तथा भोहल्रों का नाभ यखना व भकानों ऩय नम्फय डरवाना।
12. फूचडखाने फनवाना तथा उनकी व्मवस्था कयना।
13. अकार के सभम रोगों की सहामता कयना।
(II) ऐक्च्छक कामश – नगयऩामरका ऩरयषद् ननम्नमरखखत कामों को बी ऩूया कयती है –
1. नगय को सन्
ु दय तथा स्वच्छ फनामे यखना।
2. ऩुस्तकारम, वाचनारम, अजामफघय व ववश्राभ-गह
ृ ों की स्थाऩना कयना।
3. प्रायन्म्बक मशऺा से ऊऩय की मशऺा की व्मवस्था कयना।
4. ऩागरखाना औय कोटढ़मों के यखने के स्थानों आटद की व्मवस्था कयना।
5. फाजाय तथा ऩैंठ की व्मवस्था कयना।
6. ऩागर तथा आवाया कुत्तों को ऩकडवाना।
7. अनाथों के यहने तथा फेकायों के मरए योजी का प्रफन्ध कयना।
8. नगय भें नगय-फस सेवा चरवाना।
9. नगय भें नमे-नमे उद्मोग-धन्धे ववकमसत कयने के मरए सुववधाएॉ प्रदान कयना।
प्रश्न 7.
नगय-ननगभ की यचना औय उसके कामों ऩय प्रकाश डामरए।
मा
उच्चय प्रद्वेश के नगय-ननगभ के सॊगठन व कामों ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
उत्तय प्रदे श नगयीम स्वामत्त शासन-ववर्ध (सॊशोधन), 1994 के अन्तगथत 5 राख से अर्धक जनसॊख्मा वारे
प्रत्मेक नगय को ‗वह
ृ त्तय नगयीम ऺेत्र घोवषत कय टदमा गमा है तथा ऐसे प्रत्मेक नगय भें स्वामत्त शासन
के अन्तगथत नगय-ननगभ की स्थाऩना का प्रावधान ककमा गमा है । उत्तय प्रदे श भें रखनऊ , कानऩुय, आगया,
वायाणसी, भेयठ, इराहाफाद, गोयखऩुय, भुयादाफाद, अरीगढ़, गान्जमाफाद, फये री तथा सहायनऩुय नगयों भें नगय-
ननगभ स्थावऩत कय टदमे गमे हैं। उत्तय प्रदे श के दो नगयों-कानऩुय औय रखनऊ-की जनसॊख्मा 10 राख से
अर्धक है , अत: इन्हें भहानगय तथा इनका प्रफन्ध कयने वारी सॊस्था को ‗भहानगय ननगभ की सॊऻा दी
गमी है । वतथभान भें कुछ औय नगय-आगया, वायाणसी, भेयठे —बी ‗भहानगय ननगभ‘ फनामे जाने के मरए
प्रस्ताववत हैं।
गठन – नगय-ननगभ के गठन हे तु नगय प्रभुख , उऩनगय प्रभुख व तीन प्रकाय के सदस्म क्रभश् ननवाथर्चत
सदस्म, भनोनीत सदस्म व ऩदे न सदस्मों का प्रावधान ककमा गमा है । मे तीन प्रकाय के सदस्म इस प्रकाय
हैं –
(1) ननिाशचचत सदस्म – नगय-ननगभ के ननवाथर्चत सदस्मों को सबासद कहा जाता है । सबासदों की सॊख्मा
कभ-से-कभ 60 व अर्धक-से-अर्धक 110 ननधाथरयत की गमी है । मह सॊख्मा याज्म सयकाय द्वाया सयकायी
गजट भें दी गमी ववऻन्प्त के आधाय ऩय ननन्श्चत की जाती है ।
मोग्मता – नगय-ननगभ के सबासद के ननवाथचन भें बाग रेने हे तु ननम्नमरखखत मोग्मताएॉ होनी चाटहए –
1. सबासद के ननवाथचन भें बाग रेने के मरए नगय-ननगभ ऺेत्र की भतदाता सूची (ननवाथचन सूची) भें
उसका नाभ अॊककत होना चाटहए।
2. आमु 21 वषथ से कभ नहीॊ होनी चाटहए।
3. वह व्मन्क्त याज्म ववधानभण्डर का सदस्म ननवाथर्चत होने की सबी मोग्मताएॉ व उऩफन्ध ऩण
ू थ कयता
हो।
विर्ेष – जो स्थान आयक्षऺत श्रेखणमों के मरए आयक्षऺत ककमे गमे हैं , उन ऩय आयक्षऺत वगथ का व्मन्क्त ही
ननवाथचन भें बाग रे सकेगा।
सबासदों का ननिाशचन – नगय-ननगभ के सबासदों का चुनाव नगय के वमस्क नागरयकों द्वाया होता है । चुनाव
के मरए नगय को अनेक ननवाथचन-ऺेत्रों भें ववबान्जत कय टदमा जाता है , न्जन्हें कऺ‘ (Ward) कहा जाता है ।
प्रत्मेक कऺ से सॊमुक्त ननवाथचन ऩर्द्नत के आधाय ऩय एक सबासद का चुनाव होता है । इस ऩद हे तु नगय
का कोई बी ऐसा नागरयक प्रत्माशी हो सकता है , न्जसकी आमु 21 वषथ हो औय जो ननवास सम्फन्धी सभस्त
शते ऩूयी कयता हो।
स्थानों का आयऺण – प्रत्मेक ननगभ भें अनुसूर्चत जानतमों औय जनजानतमों के मरए स्थान आयक्षऺत ककमे
जाएॉगे। इस प्रकाय से आयक्षऺत स्थानों की सॊख्मा का अनुऩात ; ननगभ भें प्रत्मऺ चुनाव से बये जाने वारे
कुर स्थानों की सॊख्मा भें मथासम्बव वही होगा, जो अनुऩात नगय-ननगभ ऺेत्र की कुर जनसॊख्मा भें इन
जानतमों का है । प्रत्मेक नगय-ननगभ भें प्रत्मऺ चन
ु ाव से बये जाने वारे स्थानों का 27 प्रनतशत स्थान
वऩछडे वगों के मरए आयक्षऺत ककमा जाएगा। इन आयक्षऺत स्थानों भें कभ-से-कभ एक-नतहाई स्थान इन
जानतमों औय वगों की भटहराओॊ के मरए आयक्षऺत यहें गे। इन भटहराओॊ के मरए आयक्षऺत स्थानों को
सन्म्भमरत कयते हुए, प्रत्मऺ ननवाथचन से बये जाने वारे कुर स्थानों की सॊख्मा के कभ-से-कभ एक नतहाई
स्थान भटहराओॊ के मरए आयक्षऺत यहें गे।
(2) भनोनीत सदस्म – नगय-ननगभ भें याज्म सयकाय द्वाया ऐसे सदस्मों को भनोनीत ककमा जाएगा न्जन्हें
नगय-ननगभ प्रशासन का ववशेष ऻान व अनब
ु व हो। इन सदस्मों की सॊख्मा याज्म सयकाय द्वाया ननन्श्चत
की जाएगी। भनोनीत सदस्मों को नगय ननगभ की फैठकों भें भत दे ने का अर्धकाय नहीॊ होगा। इनकी
सॊख्मा 5 व 10 के भध्म होगी।
(3) ऩदे न सदस्म –
1. रोकसबा औय याज्म ववधानसबा के वे सदस्म जो उन ननवाथचन ऺेत्रों का प्रनतननर्धत्व कयते हैं ,
न्जनभें नगय ऩूणत
थ ् अथवा अॊशत: सभाववष्ट्ट हैं।
2. याज्मसबा औय ववधान ऩरयषद् के वे सदस्म, जो उस नगय भें ननवाथचक के रूऩ भें ऩॊजीकृत हैं।
3. उत्तय प्रदे श सहकायी समभनत अर्धननमभ, 1965 ई० के अधीन स्थावऩत समभनतमों के वे अध्मऺ जो
नगय-ननगभ के सदस्म नहीॊ हैं।
कामशकार – नगय-ननगभ का कामथकार 5 वषथ है , ऩयन्तु याज्म सयकाय धाया 538 के अन्तगथत ननगभ को इसके
ऩूवथ बी ववघटटत कय सकती है ।
ससभनतमाॉ – नगय-ननगभ की दो प्रभख
ु समभनतमाॉ होंगी – (1) कामथकारयणी समभनत तथा (2) ववकास समभनत।
इसके अनतरयक्त नगय-ननगभ भें ननगभ ववद्मुत समभनत, नगय ऩरयवहन समभनत औय इसी प्रकाय की अन्म
समभनतमाॉ बी गटठत की जा सकती हैं ; ऩयन्तु इन समभनतमों की सॊख्मा 12 से अर्धक नहीॊ होनी चाटहए।
अर्धननमभ, 1994 के अन्तगथत नगय-ननगभ को नगय-ननगभ ऺेत्र भें वे ही कामथ कयने का ननदे श टदमा गमा
है जो कामथ नगयऩामरका ऩरयषद् को नगयऩामरका ऺेत्र भें कयने का ननदे श है ।
कामश
नगय – ननगभ का कामथ-ऺेत्र अत्मर्धक ववस्तत
ृ है । उत्तय प्रदे श के ननगभों को 41 अननवामथ औय 43 ऐन्च्छक
कामथ कयने होते हैं ; मथा –
अननिामश कामश – इन कामों के अन्तगथत नगय भें सपाई की व्मवस्था कयना , सडकों एवॊ गमरमों भें प्रकाश की
व्मवस्था कयना, अस्ऩतारों एवॊ औषधारमों का प्रफन्ध कयना, इभायतों की दे खबार कयना, ऩेमजर का
प्रफन्ध कयना, सॊक्राभक योगों की योकथाभ की व्मवस्था कयना, जन्भ-भत्ृ मु का रेखा यखना, प्राथमभक एवॊ
नसथयी मशऺा का प्रफन्ध कयना, नगय ननमोजन एवॊ नगय सुधाय कामों की व्मवस्था कयना आटद ववमबन्न
कामथ सन्म्भमरत ककमे गमे हैं।
ऐक्च्छक कामश – इन कामों के अन्तगथत ननगभ को ऩुस्तकारम, वाचनारम, अजामफघय आटद की व्मवस्था के
साथ-साथ सभम-सभम ऩय रगने वारे भेरों औय प्रदशथननमों की व्मवस्था बी कयनी होती है । इन ऐन्च्छक
कामों भें रक, फस आटद चराना एवॊ कुटीय उद्मोगों का ववकास कयना आटद बी सन्म्भमरत हैं। इस प्रकाय
नगय-ननगभ रगबग उन्हीॊ सभस्त कामों को फडे ऩैभाने ऩय सम्ऩाटदत कयता है , जो छोटे नगयों भें
नगयऩामरका कयती है ।
ऩदाचधकायी – प्रत्मेक नगय-ननगभ भें एक नगय प्रभुख तथा एक उऩ-नगय प्रभुख होगा। नगय प्रभुख का
कामथकार 5 वषथ का होता है । इस अवर्ध से ऩहरे अववश्वास प्रस्ताव के द्वाया नगय प्रभख
ु को ऩद से
हटामा जा सकता है ।
नगय-ननगभ भें दो प्रकाय के अर्धकायी होते हैं – ननवाथर्चत एवॊ स्थामी। ननवाथर्चत अर्धकायी अवैतननक तथा
स्थामी अर्धकायी वैतननक होते हैं।

(I) ननिाशचचत अचधकायी – ननवाथर्चत अर्धकायी भुख्म रूऩ से इस प्रकाय होते हैं –
ु – प्रत्मेक नगय-ननगभ भें एक नगय प्रभख
नगय प्रभख ु होता है । नगय प्रभख
ु के ऩद के मरए वही व्मन्क्त
प्रत्माशी हो सकता है , जो नगय का ननवासी हो औय उसकी आमु कभ-से-कभ 30 वषथ हो। नगय प्रभुख का
ऩद अवैतननक होता है ; उसका ननवाथचन नगय के सभस्त भतदाताओॊ द्वाया वमस्क भतार्धकाय तथा प्रत्मऺ
ननवाथचन के आधाय ऩय होता है ।
ु – प्रत्मेक नगय-ननगभ भें एक ‗उऩ-नगय प्रभुख बी होता है । नगय प्रभुख की अनुऩन्स्थनत
उऩ-नगय प्रभख
अथवा ऩद रयक्त होने ऩय उऩ-नगय प्रभुख ही नगय प्रभुख के कामों का सम्ऩादन कयता है । इसका चुनाव
एक वषथ के मरए सबासद कयते हैं।
(II) स्थामी अचधकायी – मे अर्धकायी इस प्रकाय हैं –
ु म नगय अचधकायी – प्रत्मेक नगय-ननगभ का एक भुख्म नगय अर्धकायी होता है । मह अखखर बायतीम
भख्
शासकीम सेवा (I.A.S.) का उच्च अर्धकायी होता है । याज्म सयकाय इसी अर्धकायी के भाध्मभ से नगय-
ननगभ ऩय ननमन्त्रण यखती है ।
अन्म अचधकायी – भख्
ु म नगय अर्धकायी के अनतरयक्त एक मा अर्धक ‗अऩय भख्
ु म नगय अर्धकायी बी याज्म
सयकाय द्वाया ननमुक्त ककमे जाते हैं। इनके अनतरयक्त कुछ प्रभुख अर्धकायी बी होते हैं ; जैसे—भुख्म
अमबमन्ता, नगय स्वास्थ्म अर्धकायी, भख्
ु म नगय रेखा-ऩयीऺक आटद।
प्रश्न 8.
नगय ऩॊचामत के सॊगठन औय उसके कामों का वणथन कीन्जए।
मा
नगय ऩॊचामत की यचना तथा कामों का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
उत्तय प्रदे श नगयीम स्वामत्त शासन ववर्ध (सॊशोधन),1994 के अनुसाय 30 हजाय से 1 राख की जनसॊख्मा
वारे ऺेत्र को ‗सॊक्रभणशीर ऺेत्र घोवषत ककमा गमा है , अथाथत ् न्जन स्थानों ऩय ‗टाउन एरयमा कभेटी‘ थी, उन
स्थानों को अफ ‗टाउन एरयमा‘ नाभ के स्थान ऩय नगय ऩॊचामत‘ नाभ टदमा गमा है । मे स्थान ऐसे हैं जो
ग्राभ के स्थान ऩय नगय फनने की ओय अग्रसय हैं।
सॊयचना – प्रत्मेक नगय ऩॊचामत भें एक अध्मऺ व तीन प्रकाय के सदस्म होंगे। सदस्म क्रभश: इस प्रकाय
होंगे –
1. ननवाथर्चत सदस्म
2. ऩदे न सदस्म तथा
3. भनोनीत सदस्म।
(1) ननिाशचचत सदस्म – नगय ऩॊचामतों भें ननवाथर्चत सदस्मों की सॊख्मा कभ-से-कभ 10 औय अर्धक-से-अर्धक
24 होगी। नगय ऩॊचामत के सदस्मों की सॊख्मा याज्म सयकाय द्वाया ननन्श्चत की जाएगी तथा मह सॊख्मा
सयकायी गजट भें अर्धसूचना द्वाया प्रकामशत की जाएगी। ननवाथर्चत सदस्मों को सबासद कहा जाएगा।
सबासद के ननवाथचन के मरए नगय को रगबग सभान जनसॊख्मा वारे ऺेत्रों (वाडथ) भें ववबक्त ककमा
जाएगा। वाडथ एक सदस्मीम होगा। प्रत्मेक सबासद को ननवाथचन वाडथ के वमस्क भतार्धकाय प्राप्त नागरयकों
के द्वाया प्रत्मऺ ननवाथचन ऩर्द्नत के आधाय ऩय ककमा जाएगा।
सबासद की मोग्मता –
1. सबासद का नाभ नगय की भतदाता सूची भें ऩॊजीकृत होना चाटहए।
2. उसकी आमु कभ-से-कभ 21 वषथ होनी चाटहए।
3. वह याज्म ववधानभण्डर का सदस्म ननवाथर्चत होने के सबी उऩफन्ध ऩयू े कयता हो।
4. जो स्थान आयक्षऺत हैं , उन स्थानों से आयक्षऺत वगथ का स्त्री/ऩुरुष ही चुनाव रड सकता है ।
आयऺण – जनसॊख्मा के अनऩ
ु ात भें अनस
ु र्ू चत जानत, अनस
ु र्ू चत जनजानत के मरए वाडथ का आयऺण होगा।
वऩछडे वगथ के मरए 27 प्रनतशत वाडथ आयक्षऺत होंगे , न्जनभें अनुसूर्चत जानत जनजानत तथा वऩछडे वगथ के
आयऺण की एक-नतहाई भटहराएॉ सन्म्भमरत होंगी।
(2) ऩदे न सदस्म – रोकसबा व ववधानसबा के वे सबी सदस्म ऩदे न सदस्म होंगे , जो उन ननवाथचन ऺेत्रों का
प्रनतननर्धत्व कयते हैं न्जनभें ऩूणत
थ मा मा अॊशतमा वह नगय ऩॊचामत ऺेत्र सन्म्भमरत हैं। इसके अनतरयक्त
याज्मसबा व ववधान-ऩरयषद् के ऐसे सबी सदस्म, जो उस नगय ऩॊचामत ऺेत्र की ननवाथचक नाभावरी भें
ऩॊजीकृत हैं, ऩदे न सदस्म होंगे।
(3) भनोनीत सदस्म – प्रत्मेक नगय ऩॊचामत भें याज्म सयकाय द्वाया ऐसे 2 मा 3 सदस्मों को भनोनीत ककमा
जाएगा, न्जन्हें नगयऩामरका प्रशासन का ववशेष ऻान व अनुबव होगा। मे भनोनीत सदस्म नगय ऩॊचामत की
फैठकों भें भत नहीॊ दे सकेंगे।
कामशकार – नगय ऩॊचामत का कामथकार 5 वषथ का होगा। याज्म सयकाय नगय ऩॊचामत का ववघटन बी कय
सकती है , ऩयन्तु नगय ऩॊचामत के ववघटन के टदनाॊक से 6 भाह की अवर्ध के अन्दय ऩन
ु ् चन
ु ाव कयाना
अननवामथ होगा।
कामश – नगय ऩॊचामत भख्
ु म रूऩ से ननम्नमरखखत कामथ कये गी –
(1) सिशसाधायण की सवु िधा से सम्फक्न्धत कामश कयना – इनभें सडकें फनवाना, वऺ
ृ रगवाना, सावथजननक स्थानों का
ननभाथण कयाना, अकार, फाढ़ मा अन्म ववऩन्त्त के सभम जनता की सहामता कयना आटद प्रभुख हैं।
(2) स्िास्थ्म-यऺा सम्फन्धी कामश कयना – इनभें सॊक्राभक योगों से फचाव के मरए टीके रगवाना, खाद्म-ऩदाथों का
ननयीऺण कयना, अस्ऩतार, ओषर्धमों तथा स्वच्छ जर की व्मवस्था कयना आटद प्रभुख हैं।
(3) सर्ऺा सम्फन्धी कामश कयना – इनभें प्रायन्म्बक-मशऺा के मरए ऩाठशाराओॊ की व्मवस्था कयना , वाचनारम
औय ऩुस्तकारम फनवाना तथा ऻानक्र्द्र्द्न के मरए प्रदशथनी रगाना आटद प्रभुख हैं।
(4) आचथशक कामश कयना – इनभें जर औय ववद्मुत की ऩूनतथ कयना, मातामात के मरए फसों की तथा भनोयॊ जन
के मरए मसनेभा-गह
ृ ों (छवव-गह
ृ ों) मा भेरों आटद की व्मवस्था कयना प्रभख
ु हैं।
(5) सपाई सम्फन्धी कामश कयना – इनभें सडकों, गमरमों तथा नामरमों की सपाई कयाना, सडकों ऩय ऩानी का
नछडकाव कयाना आटद प्रभुख हैं।
प्रश्न 9.
न्जरा प्रशासन भें न्जरार्धकायी का क्मा भहत्त्व है ? न्जरार्धकायी के कामों का वणथन कीन्जए।
मा
न्जरे के शासन भें न्जरार्धकायी का क्मा स्थान है ? उसके अर्धकाय एवॊ कतथव्मों ऩय प्रकाश डामरए।
उत्तय :
क्जराचधकायी का भहत्त्ि
प्रो० प्राण्डे का मह कथन कक ―न्जराधीश याज्म सयकाय की आॉख , कान, भुॉह औय बुजाओॊ के सभान है ‖,
न्जरार्धकायी के भहत्त्व को बरी-बाॉनत फताता है । इस ऩद ऩय अखखर बायतीम प्रशासननक सेवा के मरए
चमननत अनुबवी अर्धकायी की ही ननमुन्क्त की जाती है । न्जरे भें शान्न्त-व्मवस्था फनाकय उसका सभुर्चत
ववकास कयना न्जरार्धकायी का भख्
ु म कामथ होता है याज्म सयकाय की आम के साधन तो ऩयू े याज्म भें
ब्रफखये ऩडे होते हैं। न्जरार्धकायी का एक भुख्म कामथ मह बी है कक याज्म-कोष भें उसके न्जरे का
अर्धकतभ मोगदान हो। इसके अनतरयक्त मह याज्म सयकाय एवॊ न्जरे की जनता के फीच एक सेतु का
कामथ बी कयता है । वह जन-बावनाओॊ औय याज्म सयकाय की अऩेऺाओॊ को इधय से उधय ऩहुॉचाता है
न्जरार्धकायी के ऩास अनेक शन्क्तमाॉ होती हैं। वह शान्न्त-व्मवस्था फनामे यखने के मरए सेना की सहामता
तक रे सकता है । अत् कहा जा सकता है कक न्जरार्धकायी का ऩद अत्मन्त भहत्त्वऩूणथ है ।

क्जराचधकायी के अचधकाय एिॊ कामश (कतशव्म)


(1) प्रर्ासन सम्फन्धी अचधकाय – न्जरे भें शान्न्त एवॊ व्मवस्था फनामे यखने का ऩण
ू थ उत्तयदानमत्व न्जरार्धकायी
ऩय होता है । इसका मह कामथ सफसे भहत्त्वऩूणथ होता है , इसमरए ऩुमरस ववबाग उसके ननमन्त्रण भें यहकय
ही कामथ कयता है । न्जरे की सम्ऩूणथ सूचना न्जरार्धकायी ही याज्म सयकाय के ऩास बेजता है । न्जरे भें
ककसी बी प्रकाय का झगडा होने मा शान्न्त बॊग होने की आशॊका होने ऩय वह सबाओॊ व जुरूसों ऩय
प्रनतफन्ध रगा सकता है , सेना की सहामता बी रे सकता है तथा गोरी चराने की आऻा बी दे सकता है ।
इसके अनतरयक्त वह प्राकृनतक प्रकोऩों के आने ऩय मा भहाभारयमाॉ पैरने ऩय याज्म सयकाय से सहामता
प्राप्त कयके जनता की सहामता बी कयता है ।
(2) न्माम सम्फन्धी अचधकाय – न्जरार्धकायी को याजस्व सम्फन्धी तथा ककयामा ननमन्त्रण कानून के अन्तगथत
शहयी सम्ऩन्त्त के वववादों के ननऩटाये से सम्फर्द् न्मानमक कामथ बी कयना होता है । इसी कायण उसे
न्जराधीश बी कहा जाता है । अऩने अधीनस्थ अर्धकारयमों के ननणथमों के ववरुर्द् अऩीर सन
ु ने का अर्धकायी
बी न्जराधीश को प्राप्त है ।
ु ायी (याजस्ि) सम्फन्धी अचधकाय – न्जरार्धकायी सम्ऩण
(3) भारगज ू थ न्जरे की भारगज
ु ायी वसर
ू कयता है तथा
इससे सम्फन्न्धत फडे-फडे झगडों का सभाधान बी कयता है । इस कामथ भें इसकी सहामता के मरए इसके
अधीन डडप्टी करेक्टय, तहसीरदाय, नामफ तहसीरदाय, कानन
ू गो, रेखऩार आटद होते हैं। न्जरे का सयकायी
कोष इसी के अर्धकाय भें यहता है ।
(4) ननयीऺण सम्फन्धी अचधकाय – सम्ऩूणथ न्जरे की शान्न्त एवॊ व्मवस्था का बाय न्जरार्धकायी ऩय होता है ।
इसमरए इसे प्रत्मेक ववबाग के ननयीऺण कयने का अर्धकाय टदमा गमा है । न्जरार्धकायी न्जरे के रगबग
सबी ववबागों का सभम-सभम ऩय ननयीऺण कयता है औय उन ऩय अऩना ननमन्त्रण बी यखता है ।
(5) विकास सम्फन्धी अचधकाय – मद्मवऩ न्जरे भें ववकास सम्फन्धी कामों की दे ख-ये ख के मरए एक भुख्म
ववकास अर्धकायी की ननमुन्क्त की जाती है , तथावऩ न्जरे के ववकास का उत्तयदानमत्व न्जरार्धकायी ऩय ही
होता है । न्जरे के ववकास के मरए ववमबन्न ववकास मोजनाएॉ फनाना , उनका कक्रमान्वमन कयाना तथा उन
ऩय ननमन्त्रण यखना बी न्जरार्धकायी का ही कामथ है ।
(6) जनता ि सयकाय के भध्म सम्फन्ध – न्जरार्धकायी ही जनता औय सयकाय के भध्म एक कडी, के रूऩ भें
काभ कयता है तथा तहसीर टदवस आटद के सदृश आमोजनों भें वह जनता की सभस्माओॊ को सन
ु कय
उनका सभाधान बी कयता है ।
(7) अन्म कामश – न्जरे की सभस्त स्थानीम सॊस्थाओॊ ऩय ऩण
ू थ ननमन्त्रण यखने के साथ-साथ ववमबन्न
आग्नेमास्त्रों (याइपर, फन्दक
ू , वऩस्तौर आटद) के राइसेन्स दे ने का अर्धकाय बी न्जरार्धकायी को ही होता
है । वह न्जरे भें अनेक छोटे -छोटे कभथचारयमों की ननमन्ु क्त का कामथ बी कयता है । ननष्ट्कषथ रूऩ भें कहा जा
सकता है कक न्जरे का सवोच्च ऩदार्धकायी होने के कायण न्जरार्धकायी को प्रशासन एवॊ ववकास-सम्फन्धी
अनेक उत्तयदानमत्वों का ननवाथह कयना ऩडता है । वस्तत
ु : न्जरार्धकायी के अर्धकाय तथा शन्क्तमाॉ व्माऩक
हैं।

प्रश्न 1.
सॊववधान की ऩववत्रता की सयु ऺा कौन कयता है ?
(क) उच्चतभ न्मामारम
(ख) याष्ट्रऩनत
(ग) सॊसद
(घ) प्रधानभन्त्री
उत्तय :
(क) उच्चतभ न्मामारम।
प्रश्न 2.
न्मानमक ऩुनयवरोकन की शन्क्त ननम्नमरखखत भें से ककसके ऩास है ?
(क) याष्ट्रऩनत
(ख) उच्चतभ न्मामारम
(ग) सॊसद
(घ) इनभें से कोई नहीॊ
उत्तय :
(ख) उच्चतभ न्मामारम।
प्रश्न 3.
73वाॉ तथा 74वाॉ सॊववधान सॊशोधन ककससे सम्फन्न्धत था?
(क) स्थानीम सॊस्थाएॉ
(ख) याजनीनतक दर
(ग) दर-फदर
(घ) प्रत्माशी जभानत यामश
उत्तय :
(क) स्थानीम सॊस्थाएॉ।
प्रश्न 4.
73वाॉ तथा 74वाॉ सॊववधान सॊशोधन ककस वषथ ऩारयत हुआ?
(क) 1992
(ख) 1991
(ग) 1993
(घ) 1994
उत्तय :
(ख) 1991
प्रश्न 5.
केशवानन्द भाभरे भें उच्चतभ न्मामारम ने ककस वषथ ननणथम टदमा ?
(क) 1973
(ख) 1974
(ग) 1957
(घ) 1975
उत्तय :
(क) 1973
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सॊववधान सॊशोधन से क्मा आशम है ?
उत्तय :
सॊववधान भें ऩरयन्स्थनतमों व सभम की आवश्मकताओॊ के अनुसाय ऩरयवतथन कय नए प्रावधानों को शामभर
कयने व ढारने की प्रकक्रमा को सॊववधान सॊशोधन कहते हैं।
प्रश्न 2.
रचीरा सॊववधान क्मा है ?
उत्तय :
रचीरा सॊववधान वह होता है न्जसभें आसानी से सॊशोधन ककमा जा सके।
प्रश्न 3.
सॊववधान सॊशोधन प्रकक्रमा भें कौन-सी सॊस्थाएॉ सन्म्भमरत होती हैं ?
उत्तय :
सॊववधान सॊशोधन की प्रकक्रमा एक रम्फी प्रकक्रमा है न्जसभें ननम्नमरखखत सॊस्थाएॉ सन्म्भमरत होती हैं –
1. सॊसद
2. याज्मों के ववधानभण्डर
3. याष्ट्रऩनत।
प्रश्न 4.
अनुच्छे द 368 क्मा है ?
उत्तय :
अनच्
ु छे द 368 सॊववधान का वह प्रभख
ु अनच्
ु छे द है न्जसभें सॊववधान भें सॊशोधन कयने की प्रकक्रमा दी गई
है , न्जसका प्रमोग कयके सॊसद साधायण फहुभत व ववशेष फहुभत के आधाय ऩय सॊववधान भें सॊशोधन कय
सकती है ।
प्रश्न 5.
सॊववधान सॊशोधन भें याष्ट्रऩनत की क्मा बमू भका है ?
उत्तय :
सॊववधान सॊशोधन ब्रफर दोनों सदनों से अरग-अरग ऩास होने ऩय याष्ट्रऩनत के ऩास बेजा। जाता है ।
याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत मभरने ऩय सॊशोधन प्रबावी हो जाता है ।
प्रश्न 6.
52वाॉ सॊववधान सॊशोधन ककससे सम्फन्न्धत था?
उत्तय :
52वाॉ सॊववधान सॊशोधन दर-फदर से सम्फन्न्धत था।
प्रश्न 7.
मटद ककसी सॊशोधन प्रस्ताव को रोकसबा ऩास कय दे औय याज्मसबा उससे सहभत न हो तो उसका
सभाधान कैसे होता है ?
उत्तय :
सॊववधान सॊशोधन ब्रफरों ऩय सॊसद के दोनों सदनों का सभान अर्धकाय है । मटद सॊशोधन ब्रफर एक सदन से
ऩास होने के फाद दस
ू ये सदन की सहभनत प्राप्त नहीॊ कयता तो वह यद्द हो जाता है ।
प्रश्न 8.
क्मा याष्ट्रऩनत सॊशोधन ब्रफर को ऩन
ु ववथचाय के मरए वाऩस बेज सकता है ?
उत्तय :
सॊसद के दोनों सदनों से ऩास होने के फाद अथवा आधे याज्मों के अनस
ु भथथन की प्रान्प्त के फाद सॊशोधन
ब्रफर याष्ट्रऩनत के ऩास उसकी स्वीकृनत हे तु बेजा जाता है । साधायण ब्रफर को तो याष्ट्रऩनत एक फाय
ऩन
ु ववथचाय हे तु वाऩस बेज सकता है , ऩयन्तु सॊशोधन ब्रफर ऩय वह ऐसा नहीॊ कय सकता औय उसे स्वीकृनत
दे नी ही ऩडती है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
73वें व 74वें सॊववधान सॊशोधन का क्मा उद्देश्म था?
उत्तय :
स्वतन्त्रता के ऩश्चात ् फरवन्त भेहता समभनत की मसपारयशों के आधाय ऩय स्थानीम सॊस्थाओॊ का ग्राभीण
ऺेत्र भें गठन तो ककमा गमा ऩयन्तु अर्धकाॊश सभम तक मे सॊस्थाएॉ अनेक कायणों से कक्रमाहीन ही यहीॊ।
इनके ऩास न ऩमाथप्त साधन थे न अर्धकाय। चन
ु ाव प्रकक्रमा ननममभत न थी। कभजोय वगों को बी ऩमाथप्त
प्रनतननर्धत्व प्राप्त न था। सन ् 1991 भें नयमसम्हायाव की सयकाय ने इन सॊस्थाओॊ (ग्राभीण व शहयी स्तय
ऩय) को सॊगठनात्भक रूऩ से सदृ
ु ढ़ कयने व शन्क्तशारी फनाने के उद्देश्मों से 73वाॉ वे 74वाॉ सॊववधान
सॊशोधन ऩारयत ककमा। 73वाॉ सॊववधान सॊशोधन ग्राभीण ऺेत्र की स्थानीम सॊस्थाओॊ से सम्फन्न्धत है तथा
74वाॉ सॊववधान सॊशोधन शहयी ऺेत्र की स्थानीम सॊस्थाओॊ से सम्फन्न्धत है । इन सॊशाधनों के भाध्मभ से
स्थानीम सॊस्थाओॊ भें भटहराओॊ व अनुसूर्चत जानत के रोगों को अरग-अरग 33% आयऺण टदमा गमा है ।
प्रश्न 2.
ववश्व के आधनु नकतभ सॊववधानों भें सॊशोधन की प्रकक्रमा भें कौन-से मसर्द्ान्त प्रमक्
ु त ककए जाते हैं ?
उत्तय :
ववश्व के आधुननकतभ सॊववधानों भें सॊशोधन की ववमबन्न प्रकक्रमाओॊ भें दो मसर्द्ान्त अर्धक अहभ बूमभका
का ननवाथह कयते हैं –
(1) एक मसर्द्ान्त है ववशेष फहुभत का। उदाहयण के मरए; अभेरयका, दक्षऺण अिीका, रूस आटद के सॊववधानों
भें इस मसर्द्ान्त का सभावेश ककमा गमा है । अभेरयका भें दो-नतहाई फहुभत का मसर्द्ान्त रागू है , जफकक
दक्षऺण अिीका औय रूस जैसे दे शों भें तीन-चौथाई फहुभत की आवश्मकता होती है ।
(2) दसू या मसर्द्ान्त है सॊशोधन की प्रकक्रमा भें जनता की बागीदायी का। मह मसर्द्ान्त कई आधुननक
सॊववधानों भें अऩनामा गमा है । न्स्वट्जयरैण्ड भें तो जनता को सॊशोधन की प्रकक्रमा शरू
ु कयने तक का
अर्धकाय है । रूस औय इटरी अन्म ऐसे दे श हैं जहाॉ जनता को सॊववधान भें सॊशोधन कयने मा सॊशोधन के
अनुभोदन का अर्धकाय टदमा गमा है ।
प्रश्न 3.
सॊववधान की भर
ू सॊयचना का मसर्द्ान्त क्मा है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान के ववकास को न्जस फात से फहुत दयू तक प्रबाववत ककमा है वह है सॊववधान की भर ू
सॊयचना का मसर्द्ान्त। इस मसर्द्ान्त को न्माऩामरका ने केशवानन्द बायती के प्रमसर्द् भाभरे भें प्रनतऩाटदत
ककमा था। इस ननणथम ने सॊववधान के ववकास भें ननम्नमरखखत सहमोग टदमा –
1. इस ननणथम द्वाया सॊसद की सॊववधान भें सॊशोधन कयने की शन्क्तमों की सीभाएॉ ननधाथरयत की गईं।
2. मह सॊववधान के ककसी मा सबी बागों के सम्ऩूणथ सॊशोधन (ननधाथरयत सीभाओॊ के अन्दय) की
अनुभनत दे ता है ।
3. सॊववधान की भूर सॊयचना मा उसके फुननमादी तत्त्व का उल्रॊघन कयने वारे ककसी सॊशोधन के
ववषम भें न्मामऩामरका का ननणथम अन्न्तभ होगा-केशवानन्द बायती के भाभरे भें मह फात स्ऩष्ट्ट की
गई थी।
उच्चतभ न्मामारम ने केशवानन्द के भाभरे भें 1973 भें ननणथम टदमा था। फाद के तीन दशकों भें सॊववधान
की सबा व्मवस्थाएॉ इसे ध्मान भें यखकय की गईं।

प्रश्न 4.
बायत की सॊववधान सॊशोधन प्रकक्रमा भें क्मा कमभमाॉ हैं ?
उत्तय :
बायत की सॊववधान सॊशोधन प्रकक्रमा भें ननम्नमरखखत दोष हैं –
1. बायतीम सॊघ की इकाइमों अथवा याज्मों को सॊववधान भें सॊशोधन प्रस्ताव ऩेश कयने का अर्धकाय
नहीॊ है औय मह तथ्म उन्हें केन्द्रीम सयकाय से ननम्न स्तय की ओय रे जाता है । वे इस दृन्ष्ट्ट से
सभान बागीदायी नहीॊ हैं जो ऩूवथ सॊघीम व्मवस्था के मसर्द्ान्तों के ववरुर्द् है ।
2. सॊववधान सॊशोधन ब्रफर ऩय सॊसद तथा सॊसद व याज्मों से ऩारयत होने के फाद जनभत सॊग्रह कयवाए
जाने की व्मवस्था नहीॊ है औय मह तथ्म जन-प्रबुसत्ता के मसर्द्ान्त का ववयोध कयता है ।
3. सॊववधान सॊशोधन प्रस्ताव ऩय सॊसद के दोनों सदनों भें मटद भतबेद उत्ऩन्न हो जाए तो उसके
सभाधान के मरए ककसी प्रकाय का तयीका ननन्श्चत नहीॊ है , वह यद्द हो जाता है । सॊसद द्वाया ऩारयत
सॊववधान सॊशोधन प्रस्ताव ऩय याज्म ववधानभण्डरों के अनुसभथथन की सभम-सीभा ननन्श्चत नहीॊ है ।
इससे याज्म सॊववधान भें अनावश्मक दे यी कय सकते हैं।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
बायतीम सॊववधान सॊशोधन 52 के भुख्म प्रावधान क्मा थे ?
उत्तय :
52वाॉ सॊववधान सॊशोधन एक भहत्त्वऩूणथ व प्रबावकायी सॊववधान सॊशोधन था। इसे सबी याजनीनतक दरों
का सभथथन प्राप्त था। इसे सन ् 1985 भें ऩारयत ककमा गमा था। इसके ननम्नमरखखत प्रभुख प्रावधान थे –
1. अगय कोई सदस्म ककसी ऩाटी के टटकट ऩय जीतने के फाद उस ऩाटी को छोडता है तो उसकी सदन
की सदस्मता सभाप्त हो जाएगी।
2. अगय कोई ननदथ रीम सदस्म चुनाव जीतने के फाद ककसी दर भें सन्म्भमरत होता है तो उसकी
सदस्मता सभाप्त हो जाएगी।
3. अगय कोई सनोनीत सदस्म ककसी दर भें शामभर हो जाता है तो उसकी सदस्मता सभाप्त हो
जाएगी।
4. ववघटन व ववरम की न्स्थनत भें मह कानून रागू नहीॊ होगा। (5) सॊशोधन के कानून के सम्फन्ध भें
अन्न्तभ ननणथम अध्मऺ का होगा।
प्रश्न 2.
सॊववधान सॊशोधन प्रकक्रमा की साभान्म ववशेषताएॉ मरखखए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें दी गई सॊशोधन ववर्ध की भख्
ु म ववशेषताएॉ ननम्नमरखखत हैं –
1. सॊववधान भें सॊशोधन के कामथ के मरए ककसी अरग सॊस्था की व्मवस्था नहीॊ की गई। मह शन्क्त
केन्द्रीम सॊसद को सौंऩ दी गई है ।
2. याज्मों के ववधानभण्डरों को सॊशोधन ब्रफर आयम्ब कयने का अर्धकाय प्राप्त नहीॊ है ।
3. सॊववधान की धाया 368 भें मरखे गए ववशेष उऩफन्धों के अनतरयक्त सॊशोधन ब्रफर साधायण ब्रफर की
बाॉनत सॊसद द्वाया ही ऩास ककए जाते हैं। इसके मरए दोनों सदनों का आवश्मक फहुभत प्राप्त हो
जाने ऩय याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत री जाती है । इसके मरए जनभत सॊग्रह की कोई व्मवस्था नहीॊ की
गई, जफकक न्स्वट्जयरैण्ड, अभेरयका तथा ऑस्रे मरमा आटद दे शों के कुछ ववशेष याज्मों भें इस प्रकाय
की व्मवस्था की गई है ।
4. सॊसद भें सॊशोधन ब्रफर ऩेश कयने के मरए याष्ट्रऩनत की ऩव
ू -थ अनभ
ु नत अननवामथ नहीॊ है ।
5. सॊववधान भें कुछ ववशेष सॊशोधनों के मरए कभ-से-कभ आधे याज्मों की स्वीकृनत आवश्मक है , जफकक
अभेरयकी सॊववधान भें कभ-से-कभ तीन-चौथाई याज्मों की स्वीकृनत आवश्मक है ।
6. सॊववधान की सभस्त धायाओॊ को सॊशोर्धत ककमा जा सकता है , महाॉ तक कक सॊववधान का सॊशोधन
कयने की धाया 368 का बी सॊशोधन ककमा जा सकता है ।
प्रश्न 3.
याष्ट्रऩनत अथवा याज्मऩार तथा याज्मसबा द्वाया सॊववधान सॊशोधन ककस प्रकाय सम्बव
उतय :
1. याष्ट्रऩनत अथिा याज्मऩार द्िाया सॊविधान सॊर्ोधन – याष्ट्रऩनत तथा याज्मऩार कुछ धायाओॊ का प्रमोग कयके
सॊववधान भें आगाभी ऩरयवतथन कय सकते हैं , उदाहयणतमा याष्ट्रऩनत, धाया 331 के अन्तगथत दो एॊग्रो-
इन्ण्डमनों को रोकसबा भें भनोनीत कय सकता है , मटद वह अनुबव कये । कक ऐॊग्रो-इन्ण्डमन सभुदाम को
रोकसबा भें ऩमाथप्त प्रनतननर्धत्व प्राप्त नहीॊ हुआ है । याष्ट्रऩनत द्वाया इस शन्क्त के प्रमोग को धाया 81 भें
ननन्श्चत रोकसबा की सॊख्मा ऩय प्रबाव ऩड सकता है । याज्मऩार को बी याष्ट्रऩनत को इस तयह इस शन्क्त
प्रमोग कयके ववधानसबा की सदस्म-सॊख्मा भें ऩरयवतथन कयने का अर्धकाय प्राप्त है । याज्मऩार को एॊग्रो-
इन्ण्डमन को ननमुक्त कयने का अर्धकाय सॊववधान की धाया 333 के अन्तगथत प्राप्त है । असभ का याज्मऩार
छठी अनुसूची भें दी गई कफाइरी प्रदे शों की सूची भें स्वमॊ ऩरयवतथन कय सकता है । याज्म की बाषा
ननन्श्चत कयने का अर्धकाय ववधानभण्डर को प्राप्त है । ऩयन्तु मटद याष्ट्रऩनत को ववश्वास हो जाए कक
याज्म की जनसॊक्ष्मा का एक प्रभुख बाग ननन्श्चत बाषा का । प्रमोग कयता है तो वह उस बाषा को बी
सयकायी रूऩ से प्रमोग ककए जाने का आदे श जायी कय सकता है । याष्ट्रऩनत धाया 356 का प्रमोग कयके
याज्म भें याष्ट्रऩनत शासन रागू कय सकता है ।
2. याज्मसबा द्िाया सॊर्ोधन – सॊववधान की धाया 249 के अन्तगथत मटद याज्मसबा दो-नतहाई फहुभत से प्रस्ताव
ऩास कय दे कक याज्म सूची के अभुक ववषम ऩय सॊसद द्वाया कानून का फनामा जाना याष्ट्रीम टहत के मरए
आवश्मक अथवा राबदामक है तो सॊसद को याज्म सच
ू ी के उस ववषम ऩय सभस्त बायत मा उसके ककसी
बाग के मरए कानून फनाने का अर्धकाय मभर जाता है , ऩयन्तु सॊसद को मह अर्धकाय एक वषथ के मरए ही
प्राप्त होता है । सॊववधान के इस ऩरयवतथन को हभ सॊशोधन नहीॊ कह सकते , क्मोंकक मह ऩरयवतथन स्थामी न
होकय अस्थामी होता है ।
दीघश उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
बायतीम सॊववधान भें सॊशोधन की प्रकक्रमा का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
सॊववधान भें ववमबन्न अनच्
ु छे दों का सॊशोधन कयने के मरए ननम्नमरखखत तीन ववर्धमाॉ व्मवहाय भें राई
जाती हैं –
(1) अनच्
ु छे द 4 तथा 11 के अनस
ु ाय इस सॊववधान के कुछ बागों भें सॊशोधन सॊसद के दोनों सदनों के
साधायण फहुभत से ककमा जाता है , ऩयन्तु इस प्रकाय के अनुच्छे द फहुत थोडे हैं। नए याज्मों को फनाने ,
ऩयु ाने याज्मों के ऩन
ु गथठन, बायतीम नागरयकों की मोग्मता ऩरयवतथन , याज्मों भें द्ववतीम सदन का फनाना
अथवा उसे सभाप्त कयना, अनुसूर्चत जानतमों तथा अनुसूर्चत ऺेत्रों सम्फन्धी व्मवस्था भें ऩरयवतथन के मरए
इस ववर्ध का प्रमोग ककमा जाता है । मह उल्रेखनीम है कक इन भाभरों का सम्फन्ध मद्मवऩ सॊववधान की
व्मवस्थाओॊ से है तथावऩ वास्तव भें इन्हें सॊववधान के सॊशोधन नहीॊ भाना जाता।
(2) सॊववधान के अनुच्छे द 368 के अधीन इसके कुछ बागों भें ऩरयवतथन सॊसद के प्रत्मेक सदन के कुर
सदस्मों के साधायण फहुभत, ऩयन्तु उऩन्स्थत सदस्मों के दो-नतहाई फहुभत से ककमा जाता है ऩयन्तु आधे
याज्मों के ववधानभण्डरों का सभथथन आवश्मक है । याष्ट्रऩनत के चुनाव की ववर्ध , याज्मों तथा केन्द्र की
शन्क्तमों, सवोच्च तथा उच्च न्मामारमों सम्फन्धी व्मवस्था, सॊसद भें याज्मों के प्रनतननर्धत्व सम्फन्धी
ऩरयवतथन के मरए इस प्रकक्रमा को अऩनामा गमा है । उल्रेखनीम है कक सॊमुक्त याज्म अभेरयका भें इसके
मरए काॊग्रेस के उऩन्स्थत सदस्मों के दो-नतहाई फहुभत तथा तीन-चौथाई याज्मों के सभथथन की आवश्मकता
है । ऩयन्तु वह सभथथन याज्म सयकायों का है , ववधानभण्डरों का नहीॊ।
(3) सॊववधान के अन्म अनुच्छे दों का ऩरयवतथन सॊसद प्रत्मेक सदन के कुर सदस्मों के साधायण फहुभत
ऩयन्तु भतदान के सभम उऩन्स्थत सदस्मों के दो-नतहाई फहुभत से कय सकती है । उल्रेखनीम है कक
भौमरक अर्धकायों भें ऩरयवतथन मद्मवऩ इसी प्रकक्रमा के अन्तगथत है । गोरकनाथ फनाभ ऩॊजाफ सयकाय के
भुकदभे भें सवोच्च न्मामारम ने मह ननणथम टदमा है कक सॊसद को भूर अर्धकायों भें कटौती कयने का
अर्धकाय नहीॊ है औय इस फात का ननणथम कयने का अर्धकाय न्मामारम को है कक भूर अर्धकायों भें
कटौती की है , अथवा नहीॊ। इसी न्मामारम ने शॊकयप्रसाद फनाभ बायत सयकाय के भुकदभे भें मह ननणथम
टदमा है कक सॊववधान भें ऩरयवतथन एक ववधामी प्रकक्रमा है औय सॊसद द्वाया साधायण ववधामी प्रकक्रमा के
मरए अनुच्छे द 118 के अन्तगथत फनाए गए ननमभ सॊववधान भें सॊशोधन के ववधेमकों के मरए बी रागू ककए
जाएॉ। सॊववधान की धाया 368 भें ककए गए सॊशोधनों की ववर्ध के अनतरयक्त कुछ अन्म धायाओॊ के
अन्तगथत बी ऩरयवतथन ककमा जा सकता है औय शासन प्रणारी को प्रबाववत ककमा जा सकता है । मह फात
अरग है कक हभ इन ऩरयवतथनों को सॊशोधन का नाभ नहीॊ दे सकते , क्मोंकक मे धाया 368 भें नहीॊ आते हैं।
प्रश्न 2.
बायत की सॊववधान सॊशोधन प्रकक्रमा के दोष मरखखए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान भें सॊशोधन की ववर्ध भें फहुत दोष हैं , क्मोंकक सॊशोधन ववर्ध भें फहुत-सी फातें स्ऩष्ट्ट नहीॊ
हैं, न्जनभें भुख्म ननम्नमरखखत हैं –
1. सबी धायाओॊ भें सॊर्ोधन कयने के सरए याज्मों की स्िीकृनत नहीॊ री जाती – सॊववधान की सबी धायाओॊ भें सॊशोधन
कयने के मरए याज्मों की स्वीकृनत नहीॊ री जाती, फन्ल्क कुछ ही धायाओॊ ऩय याज्मों की स्वीकृनत री जाती
है । सॊववधान का अर्धकाॊश टहस्सा ऐसा है , न्जसभें सॊसद स्वमॊ ही सॊशोधन कय सकती है ।
ु भथशन के सरए सभम ननक्श्चत नहीॊ – सॊमुक्त याज्म अभेरयका की तयह सॊववधान भें ककए जाने
2. याज्मों के अनस
वारे सॊशोधन को याज्मों द्वाया सभथथन अथवा अस्वीकृत के मरए बायतीम सॊववधान भें कोई बी सभम
ननन्श्चत नहीॊ ककमा गमा है । बायत भें अबी तक इस दोष को अनुबव नहीॊ ककमा गमा , क्मोंकक प्राम् एक
ही दर का शासन केन्द्र तथा याज्मों भें यहा है औय आधे याज्मों का अनस
ु भथथन आसानी से प्राप्त हो जाता
है । ऩयन्तु आज न्जस प्रकाय की न्स्थनत है , उससे मह दोष स्ऩष्ट्ट हो जाता है ।
ू श क्स्थनत – सॊववधान भें मह बी स्ऩष्ट्ट नहीॊ ककमा गमा है
3. सॊर्ोधन विधेमक को याज्मों के ऩास बेजने की भ्रभऩण
कक क्मा सॊववधान भें सॊशोधनों के ववधेमकों को सबी याज्मों को बेजा जाना आवश्मक है अथवा उसे उनभें
से कुछ एक याज्मों को बेजा जाना ऩमाथप्त है । सॊववधान भें सॊशोधन के तीसये ववधेमक को कुछ याज्मों की
याम जानने से ऩूवथ ही ऩास कय टदमा गमा था। औय भैसूय की ववधानसबा ने इसके ववरुर्द् आऩन्त्त की थी।
4. सॊर्ोधन प्रस्ताि ऩय याष्ट्रऩनत की स्िीकृनत – सॊववधान के अनुच्छे द 368 के खण्ड 2 भें कहा गमा है कक जफ
ककसी ववधेमक को सॊसद के दोनों सदनों द्वाया ऩारयत कय टदमा जाए , तो उसे याष्ट्रऩनत की स्वीकृनत के
मरए बेजा जाएगा उसके ऩश्चात ् याष्ट्रऩनत ववधेमक को अऩनी सहभनत प्रदान कय हस्ताऺय कय दे गा औय
तफ सॊववधान सॊशोधन रागू भाना जाएगा।
ु कयने का अचधकाय नहीॊ – उल्रेखनीम है कक सॊववधान भें सॊशोधन का प्रस्ताव
5. याज्मों को सॊर्ोधन प्रस्ताि प्रस्तत
केवर सॊघीम ववधानभण्डरों अथाथत ् सॊसद भें ही प्रस्तत
ु ककमा जा सकता है । कोई बी याज्म ववधानभण्डर
ऐसा प्रस्ताव केवर उस अवस्था भें कय सकता है , जफ वह अनुच्छे द 169 के अन्तगथत ववधानऩरयषद् को
सभाप्त कयना अथवा उसकी स्थाऩना कयना चाहता हो।
6. अनेक अनच्ु छे दों का साधायण प्रकिमा के द्िाया सॊर्ोधन सम्बि – सॊववधान की धायाएॉ ऐसी हैं , न्जनके मरए
सॊवैधाननक सयु ऺा की आवश्मकता नहीॊ थी औय सॊसद के साधायण फहुभत से सॊशोधन ककए जाने से ककसी
प्रकाय की हानन की सम्बावना नहीॊ थी। उदाहयण के मरए ; धाया 224 द्वाया सेवाननवत्ृ त न्मामाधीश को
न्मामारम भें न्मामाधीश के ऩद ऩय कामथ कयने का अर्धकाय टदमा गमा है । इस धाया को फदरने के मरए
ककसी ववशेष तयीके को अऩनाने की कोई आवश्मकता नहीॊ थी।
7. जनभत सॊग्रह की व्मिस्था नहीॊ – बायत भें सॊववधान सॊशोधन की ववर्ध ऐसी है , न्जसभें जनता की अवहे रना
हो सकती है , क्मोंकक इसभें जनता की याम जानने की कोई व्मवस्था नहीॊ है । 44वें सॊशोधन ववधेमक के
अन्तगथत मह व्मवस्था की गई है कक सॊववधान की भूर ववशेषताओॊ को जनभत सॊग्रह द्वाया ही फदरा जा
सकता है । इस सॊशोधन को रोकसबा ने ऩारयत कय टदमा , ऩयन्तु याज्मसबा ने इस सॊशोधन ववधेमक की
जनभत सॊग्रह की धाया को ऩास नहीॊ ककमा। याज्मसबा को मह ववचाय है कक बायत जैसे दे श के मरए
जनभत सॊग्रह कयवाना फहुत कटठन है । औय अव्मावहारयक बी है ।
उऩमुक्
थ त वववेचना से स्ऩष्ट्ट है कक बायतीम सॊववधान की सॊशोधन प्रकक्रमा इतनी जटटर नहीॊ है न्जतनी कक
अभेरयका तथा न्स्वट्जयरैण्ड के सॊववधानों की है औय न ही ब्रिटे न के सॊववधान के सभान इतनी सयर है
कक इसे साधायण प्रकक्रमा से सॊशोर्धत ककमा जा सके। इस दृन्ष्ट्टकोण से बायत के सॊववधान सॊशोधन की
प्रकक्रमा सयर तथा जटटर दोनों प्रकाय की है । सॊशोधन की इस प्रकक्रमा के कायण ही बायत का सॊववधान
साभान्जक तथा आर्थथक ववकास का सूत्रधाय फना।

प्रश्न 1.
अनच्
ु छे द 370 ककस याज्म को ववमशष्ट्ट दजाथ दे ता है ?
(क) जम्भू-कश्भीय
(ख) ऩॊजाफ
(ग) मभजोयभ
(घ) भेघारम
उत्तय :
(क) जम्भ-ू कश्भीय।
प्रश्न 2.
बायतीम सॊववधान भें ककतने अनच्
ु छे द हैं।
(क) 395
(ख) 397
(ग) 387
(घ) 378
उत्तय :
(क) 395
प्रश्न 3.
बायतीम सॊववधान भें ककतनी अनुसूर्चमाॉ हैं ?
(क) 14
(ख) 16
(ग) 12
(घ) 20
उत्तय :
(ग) 12
प्रश्न 4.
बायत के सॊववधान द्वाया ककतनी बाषाओॊ को भान्मता प्रदान की गई है ।
(क) 24
(ख) 22
(ग) 23
(घ) 21
उत्तय :
(ख) 22
प्रश्न 5.
बायतीम सॊववधान का वैचारयक व दाशथननक आधाय है –
(क) उदायवाद
(ख) साम्मवाद
(ग) याष्ट्रवाद
(घ) उऩबोक्तावाद
उत्तय :
(क) उदायिाद
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सॊववधान का आधाय याजनीनतक दशथन होता है । सभझाइए।
उत्तय :
ककसी दे श का सॊववधान एक सजीव व सॊवेदनशीर ग्रन्थ होता है । मह व्मन्क्तमों के रक्ष्मों , प्राथमभकता,
भूल्मों को प्रकट कयता है । अत् सॊववधान के मरए एक नैनतक आधाय की आवश्मकता होती है जो एक
ननन्श्चत याजनीनतक दशथन व सोच द्वाया प्रदान ककमा जाता है ।
प्रश्न 2.
बायतीम सॊववधान के दशथन के भुख्म तत्त्व कौन-से हैं ?
उत्तय :
1. उदायवाद
2. सभानता ऩय आधारयत सभाज का ननभाथण
3. साभान्जक न्माम
4. धभथननयऩेऺता
5. सॊघात्भकता।
प्रश्न 3.
‗धभथननयऩेऺ का क्मा अथथ है ?
उत्तय :
‗धभथननयऩेऺ‘ का अथथ है –बायत भें सबी धभथ सभान हैं , याज्म का अऩना कोई धभथ नहीॊ है औय सबी
नागरयकों को धभथ की स्वतन्त्रता है ।
प्रश्न 4.
सॊववधान की प्रस्तावना के ववषम भें आऩ क्मा जानते हैं ?
उत्तय :
सॊववधान की प्रस्तावना सॊववधान का प्रायन्म्बक बाग है , इसभें सॊववधान भें टदए गए सयकाय के स्वरूऩ,
सभाज के भूल्मों, दशथन व रक्ष्मों को दशाथमा गमा है ।
प्रश्न 5.
व्मन्क्तगत गरयभा का क्मा अथथ है ?
उत्तय :
व्मन्क्तगत गरयभा का अथथ भानवीम ऺभताओॊ , भानवीम वववेक, भानवीम प्रवन्ृ त्त औय भानवीम बावनाओॊ वे
इच्छाओॊ का सम्भान कयना है ।
प्रश्न 6.
बायतीम सॊववधान की प्रस्तावना के अनुसाय बायत ककस प्रकाय का याज्म है ?
उत्तय :
बायतीम सॊववधान की प्रस्तावना के अनुसाय बायत एक सम्ऩूणथ प्रबुत्वसम्ऩन्न , सभाजवादी धभथननयऩेऺ
रोकतन्त्रात्भक गणयाज्म है ।
प्रश्न 7.
बायतीम सॊववधान की दो प्रभख
ु ववशेषताएॉ फताइए।
उत्तय :
बायतीम सॊववधान की दो प्रभख
ु ववशेषताएॉ हैं –
1. मरखखत सॊववधान तथा
2. ववशार सॊववधान।
प्रश्न 8.
बायत के सॊववधान का ननभाथण ककसके द्वाया ककमा गमा ?
उत्तय :
बायत के सॊववधान का ननभाथण एक ननवाथर्चत सॊववधान सबा द्वाया ककमा गमा।
प्रश्न 9.
उदायवाद से आऩ क्मा सभझते हैं ?
उत्तय :
उदायवाद बायतीम सॊववधान का प्रभुख वैचारयक व दाशथननक आधाय है न्जसका उद्देश्म बायतीम सभाज को
नकायात्भक रूटढ़मों व अन्धववश्वासों से भुक्त कयना है ।
प्रश्न 10.
सॊघीम सभाज से आऩ क्मा सभझते हैं ?
उत्तय :
सॊघीम सभाज वह होता है न्जसभें ववमबन्न जानत, धभथ, बाषा, सॊस्कृनत व बौगोमरकता के रोग यहते हैं।
रघु उतयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सॊक्षऺप्त टटप्ऩणी मरखखए-सभाजवादी ऩॊथननयऩेऺ याज्म।
उत्तय :
ऩॊथननयऩेऺता मा धभथननयऩेऺता का अथथ है कक याज्म का अऩना कोई धभथ नहीॊ है तथा याज्म के प्रत्मेक
व्मन्क्त को अऩनी इच्छा के अनुसाय ककसी बी धभथ का ऩारन कयने का अर्धकाय होगा। याज्म , धभथ के
आधाय ऩय नागरयकों के साथ कोई बेदबाव नहीॊ कये गा तथा धामभथक भाभरों भें वववेकऩण
ू थ ननणथम रेगा।
इसके अनतरयक्त, याजम द्वाया सबी व्मन्क्तमों के धामभथक अर्धकायों को सुननन्श्चत एवॊ सुयक्षऺत कयने का
प्रमास ककमा जाएगा। याज्म धामभथक भाभरों भें ककसी प्रकाय को हस्तऺेऩ नहीॊ कये गा , वयन ् धामभथक
सटहष्ट्णुता एवॊ धामभथक सभबाव की नीनत को प्रोत्साटहत कयने का प्रमास कये गा। धभथ के सम्फन्ध भें याज्म
सबी व्मन्क्तमों के साथ सभान व्मवहाय कये गा। इस प्रकाय की ऩॊथननयऩेऺता मा धभथननयऩेऺता का ऩारन
कयने वारे शासन को ऩॊथननयऩेऺ मा धभथननयऩेऺ याज्म कहते हैं।
प्रश्न 2.
सॊक्षऺप्त टटप्ऩणी मरखखए–‘प्रबुतासम्ऩन्न रोकतन्त्रात्भक गणयाज्म।
उत्तय :
‗प्रबुत्तासम्ऩन्न रोकतन्त्रात्भक गणयाज्म से आशम मह है कक दे श का शासन जनता का , जनता के मरए
तथा जनता द्वाया होगा। इस प्रकाय शासन की सत्ता जनता भें ननटहत होगी। ननवाथचन के आधाय ऩय
जनता अऩने द्वाया ननवाथर्चत प्रनतननर्धमों को दे श की सत्ता ऩाॉच वषों के मरए सौंऩ दे गी तथा
जनप्रनतननर्ध अऩने सभस्त कामों के मरए जनता के प्रनत उत्तयदामी होंगे। गणयाज्म से आशम मह है कक
वॊश-ऩयम्ऩया के आधाय ऩय कोई बी याज्माध्मऺ याज्म मा सम्राट नहीॊ होगा , वयन ् वह जनता द्वाया प्रत्मऺ
अथवा अप्रत्मऺ रूऩ से ननवाथर्चत होगा। याष्ट्रऩनत का ननवाथचन जनता द्वाया अप्रत्मऺ रूऩ से अथाथत ्
जनता द्वाया चन
ु े गए प्रनतननर्धमों साॊसदों व ववधामकों द्वाया ककमा जाता है । इसी आधाय ऩय हभने 26
जनवयी, 1950 को अऩना सॊववधान रागू कयके गणतन्त्र टदवस भनाना प्रायम्ब ककमा था।
प्रश्न 3.
बायत को एक सम्ऩूणथ प्रबुत्वसम्ऩन्न याज्म क्मों कहा गमा है ?
उत्तय :
बायत को एक सम्ऩूणथ प्रबुत्वसम्ऩन्न याज्म इसमरए कहा गमा है क्मोंकक बायत अफ आन्तरयक एवॊ फाह्म
ऺेत्र भें सवोच्च सत्ताधायी है । आन्तरयक ऺेत्र भें प्रबुत्वसम्ऩन्नता का आशम मह है कक बायत अफ
आन्तरयक ऺेत्र भें सबी व्मन्क्तमों एवॊ सभुदामों से उच्चतय है औय सॊसद द्वाया ननमभथत कानून बायत की
सीभा भें यहने वारे सबी व्मन्क्तमों ऩय अननवामथ रूऩ से रागू ककए जाते हैं तथा फाह्म ऺेत्र भें सम्प्रबत
ु ा
का तात्ऩमथ मह है कक बायत अफ अऩने अन्तयाथष्ट्रीम सम्फन्धों भें ऩूणथ स्वतन्त्र है , क्मोंकक ककसी फाह्म
सत्ता का उस ऩय ननमन्त्रण नहीॊ है । महाॉ ध्मान दे ने मोग्म फात मह है कक वषथ 1947 के ऩहरे बायत
सम्ऩूणथ प्रबुत्वसम्ऩन्न नहीॊ था क्मोंकक उस ऩय ब्रिटटश सत्ता का ननमन्त्रण था। वतथभान भें बायत की
स्वतन्त्र ववदे श नीनत है ।
प्रश्न 4.
बायतीम सभाज द्वाया सभाजवाद के आदशथ को प्राप्त कयने के मरए ककन्हीॊ तीन उऩामों का उल्रेख
कीन्जए।
उत्तय :
1. साभान्जक ववबेद को सभाप्त ककमा जाए। सभाज के उच्च जानत तथा ननम्न जानत वगथ अथवा
अछूत आटद भें कोई बेद-बाव नहीॊ होना चाटहए।
2. ऩॉज
ू ीऩनतमों तथा श्रमभकों के फीच उत्ऩन्न अन्तय को सभाप्त ककमा जाना चाटहए तथा श्रमभकों को
मभरों अथवा कायखानों की प्रफन्ध-व्मवस्था भें सहबार्गता प्राप्त होनी चाटहए।
3. ग्राभीण ऺेत्रों भें बूमभ के ववतयण को इस प्रकाय से सुननन्श्चत ककमा जाना चाटहए न्जससे कक
बमू भहीनों को बी कुछ बमू भ प्राप्त हो सके। फेगाय, फॊधआ
ु भजदयू ी तथा कृषकों के शोषण जैसी
फुयाइमों को सभाप्त कयना चाटहए।
प्रश्न 5.
सॊववधान द्वाया धभथननयऩेऺता (ऩॊथननयऩेऺता) ऩय अत्मर्धक फर क्मों टदमा गमा है ?
उत्तय :
1. बायत भें अनेक धभों को भानने वारे व्मन्क्त ननवास कयते हैं। अत: महाॉ ऩॊथननयऩेऺता की नीनत के
आधाय ऩय धामभथक स्वतन्त्रता के अर्धकाय को प्रदान ककमा जा सकता है ।
2. एक नागरयक तथा दस
ू ये नागरयक भें धभथ के आधाय ऩय ववबेद कयना न्मामसॊगत प्रतीत नहीॊ होता
3. याष्ट्र की एकता, अखण्डता तथा सदृ
ु ढ़ता के मरए ऩॊथननयऩेऺता को अऩनाना फहुत आवश्मक है ।
4. सबी नागरयकों से एक-जैसा न्माम कयने के उद्देश्म से बी ऩॊथननयऩेऺता की नीनत तकथसॊगत है ।
प्रश्न 6.
सॊक्षऺप्त टटप्ऩणी मरखखए-कल्माणकायी याज्म।
उत्तय :
रोक-कल्माणकायी याज्म की अवधायणा ‗ऩुमरस याज्म के ववरुर्द् प्रनतकक्रमास्वरूऩ उत्ऩन्न हुई। रोक-
कल्माणकायी याज्म भें याज्म का अर्धकाय-ऺेत्र फहुत व्माऩक हो जाता है ; क्मोंकक याज्म द्वाया व्मन्क्त के
चहुॊभुखी ववकास के मरए जीवन के सबी ऺेत्रों भें सुख तथा सुववधाएॉ उत्ऩन्न कयने का प्रमास ककमा जाता
है । बायत के सॊववधान भें नीनत-ननदे शक, मसर्द्ान्तों को अऩनाकय रोक-कल्माणकायी याज्म की स्थाऩना कयने
का प्रमास ककमा गमा है । बायतीम सॊववधान भें ऐसे अनेक अनुच्छे दों का प्रावधान ककमा गमा है जो सभाज
के वऩछडे वगों, भटहराओॊ, अनुसूर्चत जानतमों तथा जनजानतमों औय आर्थथक रूऩ से गयीफ वगों के कल्माण
ऩय अर्धक फर दे ते हैं।
दीघश रनु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
―बायत एक धभथननयऩेऺ याज्म है । ‖ इस कथन की वववेचना कीन्जए।
मा
बायत भें ऩॊथननयऩेऺता की नीनत अऩनाए जाने के दो कायण मरखखए।
उत्तय :
मह एक ऐनतहामसक तथ्म है कक बायत भें ववमबन्न धभों एवॊ सम्प्रदामों का जन्भ तथा ववकास हुआ। महाॉ
ववदे शी शासकों के याज्म बी स्थावऩत हुए औय उनके ववमबन्न धभों का आगभन बी हुआ। इन ववमबन्न
धभों एवॊ सम्प्रदामों की अन्त:कक्रमा से ववमबन्न धामभथक सभद
ु ामों का अभ्मदु म हुआ। इन धामभथक सभद ु ामों
भें ऩयस्ऩय प्रनतस्ऩधाथ एवॊ वैभनस्मता को सभाप्त कयके सटहष्ट्णुता एवॊ साभॊजस्म स्थावऩत कयने के मरए
बायतीम सॊववधान भें धामभथक स्वतन्त्रता को स्थान टदमा गमा। फमारीसवें सॊववधान सॊशोधन द्वाया
‗धभथननयऩेऺ‘ शब्द को सॊववधान की प्रस्तावना भें स्थान टदमा गमा। बायत एक धभथननयऩेऺ याष्ट्र होगा
इसका अमबप्राम मह है कक –
1. बायत ककसी बी धभथ को याष्ट्रीम धभथ घोवषत नहीॊ कये गा।
2. सॊववधान के अनुच्छे द 14 के अनुसाय सबी व्मन्क्त कानून की दृन्ष्ट्ट भें सभान होंगे। बायत सयकाय
सबी धभों का सभान रूऩ से सम्भान कये गी तथा उन्हें ऩल्रववत एवॊ ववकमसत होने भें फाधा उत्ऩन्न
नहीॊ कये गी।
3. सयकाय सबी व्मन्क्तमों के धामभथक अर्धकायों को सुननन्श्चत एवॊ सुयक्षऺत कयने का प्रमास कये गी।
4. बायतीम सयकाय धामभथक ववषमों के सम्फन्ध भें वववेकऩण
ू थ ननणथम रेगी।
सॊववधान के अनुच्छे द 25 के अनुसाय, प्रत्मेक व्मन्क्त को बायत भें अऩने धभथ के सम्फन्ध भें दो प्रकाय की
स्वतन्त्रताएॉ प्राप्त हैं-अन्त्कयण की स्वतन्त्रता तथा अऩने धभथ को भानने , आचयण कयने औय प्रचाय कयने
की स्वतन्त्रता।

अनुच्छे द 26 के अनुसाय, प्रत्मेक व्मन्क्त को धामभथक कामों के प्रफन्ध की स्वतन्त्रता प्रदान की गमी है
न्जसके अन्तगथत उसे धामभथक प्रमोजनों के मरए सॊस्थाओॊ की घोषणाएॉ , अऩने धभथ सम्फन्धी कामों के
प्रफन्ध, सम्ऩन्त्त के अजथन औय स्वामभत्व तथा सम्ऩन्त्त का ववर्ध के अनुसाय प्रशासन का अर्धकाय है ।

अनुच्छे द 28 के अनुसाय, याज्म ऩोवषत मशऺण सॊस्थाओॊ भें धामभथक मशऺा मा उऩासना का प्रनतषेध ककमा
गमा है ।

उऩमुक्
थ त तथ्मों से सहज ही ननष्ट्कषथ ननकारा जा सकता है कक बायत एक धभथननयऩेऺ याज्म है । वास्तववक
न्स्थनत बी इस तथ्म की ऩन्ु ष्ट्ट कयती है । बायत भें धभथ के आधाय ऩय ककसी के साथ कोई बेदबाव नहीॊ
ककमा जाता। दे श के सवोच्च ऩद को डॉ० जाककय हुसैन तथा श्री एऩीजे अब्दर ु कराभ सुशोमबत कय चुके
हैं। अखखर बायतीम सेवाएॉ हों मा अन्म सेवाएॉ सबी धभाथवरन्म्फमों को इनभें बती की सभान सवु वधाएॉ
प्राप्त हैं। सबी बायतीम ववमबन्न धभाथनुमामी होते हुए बी अऩने-अऩने त्मोहाय ननववथघ्न रूऩ से भनाते हैं।
बायत वास्तववक अथथ भें एक ‗धभथननयऩेऺ याज्म है ।

प्रश्न 2.
सॊववधान की प्रस्तावना अत्मन्त भहत्त्वऩूणथ क्मों है ?
उत्तय :
सॊविधान की प्रस्तािना का भहत्त्ि
प्रत्मेक याष्ट्र के सॊववधान भें प्रस्तावना की भहत्त्वऩण
ू थ बमू भका होती है मह सॊववधान का एक भहत्त्वऩण
ू थ
बाग है । ववद्वानों के ववचाय भें इस ब्रफन्द ु ऩय भतबेद ऩामा जाता है कक प्रस्तावना सॊववधान का कानूनी
बाग है अथवा नहीॊ। ववद्वानों का मह भत है कक सॊसद सॊववधान की प्रस्तावना भें बी सॊववधान के अन्म
अनुच्छे दों के सभान ही अनुच्छे द 356 द्वाया सॊशोधन कय सकती है , इस न्स्थनत भें प्रस्तावना सॊववधान का
एक काननू ी बाग है । बायत भें सॊववधान की प्रस्तावना को फहुत सोच-ववचाय के उऩयान्त ही फनामा गमा
था। बायत के सॊववधान की प्रस्तावना ववश्व के अन्म सबी सॊववधानों की प्रस्तावना से श्रेष्ट्ठ है । क्मोंकक
इसभें साभान्जक, आर्थथक तथा याजनीनतक भल्
ू मों को प्राप्त कयने का सॊकल्ऩ व्मक्त ककमा गमा है ।
सॊववधान की प्रस्तावना के भहत्त्व को इस प्रकाय व्मक्त ककमा जा सकता है –

1. मह याष्ट्र की सयकाय को नीनत-ननभाथण हे तु भागथ टदखाती है ।


2. प्रस्तावना बायत को सम्ऩूणथ प्रबुत्वसम्ऩन्न, सभाजवादी, ऩॊथननयऩेऺ, रोकतान्न्त्रक गणयाज्म फनाने की
घोषणा कयती है ।
3. मह नागरयकों को प्रत्मेक प्रकाय की स्वतन्त्रता; जैसे-ववचाय-अमबव्मन्क्त, ववश्वास तथा धभथ एवॊ
उऩासना की स्वतन्त्रता प्रदान कयने का रक्ष्म घोवषत कयती है ।
4. मह व्मन्क्त की गरयभा तथा प्रनतष्ट्ठा को फनाए यखने का आह्वान कयती है ।
5. मह बायत के सभस्त नागरयकों भें ऩायस्ऩरयक बाई-चाये एवॊ फन्धत्ु व फढ़ाने का आदशथ उऩन्स्थत
कयती है ।
6. मह याष्ट्र की एकता तथा अखण्डता को फनाए यखने की आशा अमबव्मक्त कयती है ।
7. मह प्रत्मेक व्मन्क्त को सभान अवसय प्रदान कयने तथा सम्भान को फनाए यखने भें ववश्वास प्रकट
कयती है ।
8. प्रस्तावना रोकतान्न्त्रक शासन व्मवस्था के आदशों को अऩनाने ऩय फर दे ती है ।
9. प्रस्तावना भें ‗ऩॊथननयऩेऺ तथा सभाजवादी‘ शब्दों को सन्म्भमरत कयने ऩय इसका भहत्त्व औय बी
फढ़ गमा है ।
10. प्रस्तावना भें इस तथ्म को ऩूणत
थ मा स्ऩष्ट्ट ककमा गमा है कक बायत का सॊववधान बायतीमों
द्वाया ननमभथत ककमा गमा है तथा उसे ऩारन कयने की वचनफर्द्ता सॊववधान ननभाथताओॊ ने व्मक्त
की है ।
दीघश उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
बायतीम सॊववधान की भुख्म ववशेषताओॊ का वणथन कीन्जए।
मा
बायतीम सॊववधान की उन ववशेषताओॊ का ऩयीऺण कीन्जए जो सॊसदीम शासन प्रणारी का सभथथन कयती
हैं?
मा
―बायत का वतथभान सॊववधान 1935 के अर्धननमभ का वह
ृ द् सॊस्कयण नहीॊ है । ‖ इस कथन की व्माख्मा
कीन्जए।
उत्तय :
ककसी बी दे श की याजनीनतक गनतववर्धमों का ऩरयचम उसके सॊववधान से ही मभरता है । उसका ननभाथण उस
दे श की बौगोमरक, साॊस्कृनतक, साभान्जक, आर्थथक एवॊ याजनीनतक ऩरयन्स्थनतमों को ध्मान भें यखकय ककमा
जाता है । बायतीम सॊववधान की प्रभुख ववशेषताएॉ ननम्नमरखखत हैं –
ृ सॊविधान – बायत का सॊववधान सॊसाय का सफसे फडा मरखखत सॊववधान है । इस सॊववधान
(1) सरर्खत एिॊ विस्तत
भें 395 अनुच्छे द तथा 8 अनुसूर्चमाॉ थीॊ औय मह 22 बागों भें ववबक्त था। 1993 ई० के 73वें तथा 74वें
सॊवैधाननक सॊशोधन अर्धननमभों के फाद अफ इसभें 444 अनुच्छे द औय 12 अनुसूर्चमाॉ हैं। सॊववधान की
ववशारता का भर
ू कायण मह है कक सॊववधान ननभाथताओॊ ने शासन के सभस्त प्रभख
ु अॊगों का वणथन कयने
के फाद शासन की अनेक सूक्ष्भतभ फातों का उल्रेख बी ककमा है ।
ू श प्रबत्ु िसम्ऩन्न याज्म – सॊववधान का उद्देश्म सभस्त बायत भें प्रबत्
(2) सम्ऩण ु वसम्ऩन्न रोकतन्त्र की स्थाऩना
कयना है । प्रबुत्वसम्ऩन्न का अथथ मह है कक बायत अऩने आन्तरयक औय ववदे शी भाभरों भें ऩूणथ स्वतन्त्र
है ।
(3) सॊघात्भक ि एकात्भक व्मिस्था का सभश्रण – बायतीम सॊववधान द्वाया सॊघात्भक ढाॉचे को स्वीकाय ककमा गमा
है । अनेक सॊववधान सॊशोधनों के उऩयान्त वतथभान भें बायतीम सॊववधान भें 444 धायाएॉ (अनच्
ु छे द) हैं।
सॊववधान द्वाया याज्म व केन्द्र के भध्म शन्क्तमों का ऩथ
ृ क्कयण ककमा गमा है । सॊववधान द्वाया सॊघात्भक
शासन की अन्म ववशेषताओॊ को स्वीकाय कयते हुए सॊववधान की सवोच्चता व सवोच्च न्मामऩामरका की
व्मवस्था बी की गमी है । इसके अनतरयक्त इकहयी नागरयकता , सम्ऩूणथ दे श के मरए एक ही सॊववधान,
अखखर बायतीम सेवाएॉ व याष्ट्रऩनत के सॊकटकारीन अर्धकाय आटद व्मवस्थाएॉ एकात्भक शासन का सभथथन
कयती हैं। इस प्रकाय बायतीम सॊववधान भें सॊघात्भक व एकात्भक दोनों शासन-व्मवस्थाओॊ के गुणों को
सभाववष्ट्ट ककमा गमा है ।
(4) र्क्ततर्ारी केन्द्र की स्थाऩना – बायतीम सॊववधान की एक ववशेषता मह है कक इसके द्वाया केन्द्र को याज्म
की अऩेऺा अर्धक शन्क्तशारी फनामा गमा है । केन्द्र को शन्क्तशारी फनाने के मरए भुख्मत: तीन उऩाम
काभ भें रामे गमे हैं। प्रथभ, आऩातकारीन न्स्थनत भें सॊघ सयकाय को याज्म के ऺेत्र भें हस्तऺेऩ कयने का
ऩूणथ अर्धकाय प्रदान ककमा गमा है । दस
ू ये , केन्द्र औय याज्मों की शन्क्तमों का ववबाजन होने ऩय बी ववशेष
ऩरयन्स्थनत भें केन्द्र को याज्म सच
ू ी के अन्तगथत आने वारे ववषमों ऩय बी कानन
ू फनाने का अर्धकाय प्रदान
ककमा गमा है । तीसये , सभवती सूची के अन्तगथत आने वारे ववषमों ऩय सॊघ सयकाय द्वाया फनामे गमे
ननमभों को प्राथमभकता दी गमी है । इन तीनों उऩामों के अनतरयक्त न्मामऩामरका के सॊगठन , याज्मों के
याज्मऩारों की ननमुन्क्त औय अखखर बायतीम सेवाओॊ के सॊगठन आटद के सम्फन्ध भें बी केन्द्र को ववस्तत

अर्धकाय प्रदान कयके अत्मन्त शन्क्तशारी फनामा गमा है ।
(5) सॊसदीम र्ासन ऩद्नत – बायतीम सॊववधान दे श भें सॊसदीम प्रणारी की स्थाऩना कयता है । सॊसदीम प्रणारी
भें याज्म का प्रधान नाभभात्र का होता है औय वास्तववक कामथऩामरका की शन्क्त भन्न्त्रभण्डर भें ननटहत
होती है । भन्न्त्रभण्डर साभूटहक रूऩ से व्मवस्थावऩका के ननम्न सदन (रोकसबा) के प्रनत उत्तयदामी होता
है । बायत का याष्ट्रऩनत नाभभात्र का प्रधान है तथा शासन की वास्तववक शन्क्त भन्न्त्रभण्डर भें है , जो
प्रधानभन्त्री के नेतत्ृ व भें कामथ कयता है ।
(6) भौसरक अचधकायों की व्मिस्था – बायतीम सॊववधान द्वाया नागरयकों की स्वतन्त्रता व अर्धकायों की यऺा के
मरए छ् भौमरक अर्धकायों की व्मवस्था की गमी है , न्जनका उऩबोग कय बायत को प्रत्मेक नागरयक अऩने
व्मन्क्तत्व का ऩूणथ ववकास कय सकता है ।
(7) नीनत-ननदे र्क तत्त्ि – बायतीम सॊववधान के चतथ
ु थ अध्माम भें शासन-सॊचारन हे तु सयकाय के मरए न्जन
भूरबूत मसर्द्ान्तों का वणथन ककमा गमा है उन्हीॊ मसर्द्ान्तों को नीनत-ननदे शक तत्त्व कहा जाता है ।
आमयरैण्ड के सॊववधान से प्रेरयत होकय मरमे गमे इन मसर्द्ान्तों को उद्देश्म बायत को एक रोक
कल्माणकायी स्वरूऩ प्रदान कयना है ।
ू कत्तशव्म – बायतीम सॊववधान भें 42वें सॊवैधाननक सॊशोधन, 1976 ई० के द्वाया नागरयकों
(8) नागरयकों के भर
के मरए 11 भूर कतथव्मों को सन्म्भमरत ककमा गमा है ।
(9) रोकतन्त्रात्भक गणयाज्म – बायत एक रोकतन्त्रात्भक गणयाज्म है , अथाथत ् बायत भें प्रबुसत्ता जनता भें
ननटहत है तथा जनता को अऩने प्रनतननर्ध चुनकय सयकाय-ननभाथण का अर्धकाय प्रदान ककमा गमा है ।
गणयाज्म से आशम मह है कक बायत का सवोच्च प्रधान वॊशानुगत न होकय जनता द्वाया एक ननन्श्चत
अवर्ध के मरए चुना गमा प्रधान होगा।
(10) कठोय ि रचीरा सॊविधान – बायतीम सॊववधान कठोय व रचीरे दोनों प्रकाय के सॊववधानों का मभश्रण है ।
सॊववधान भें जहाॉ कुछ ववषमों भें सॊशोधन साधायण प्रकक्रमा द्वाया ककमे जाते हैं , वहीॊ कुछ ववषमों भें
सॊशोधन की जटटर प्रकक्रमा को स्वीकाय ककमा गमा है । उदाहयणाथथ –याष्ट्रऩनत के ननवाथचन की ववर्ध, केन्द्र व
याज्मों के भध्म शन्क्त-ववबाजन, याज्मों के सॊसद भें प्रनतननर्ध आटद ववषमों ऩय सॊशोधन कयने के मरए
सॊसद के सभस्त सदस्मों के फहुभत औय उऩन्स्थत सदस्मों के दो-नतहाई फहुभत के अनतरयक्त कभ-से-कभ
आधे याज्मों के ववधानभण्डरों के अनस
ु भथथन को अननवामथ घोवषत ककमा गमा है ।
(11) धभशननयऩेऺ याज्म – सॊववधान भें 42वें सॊववधान सॊशोधन द्वाया बायत को एक धभथननयऩेऺ याज्म घोवषत
ककमा गमा है , अथाथत ् बायत याज्म का अऩना कोई धभथ नहीॊ होगा, अवऩतु उसके द्वाया दे श भें ननवास कयने
वारे सबी धभों व जानत के रोगों के साथ सभानता का व्मवहाय ककमा जाएगा।
(12) इकहयी नागरयकता – सॊववधान ननभाथताओॊ द्वाया बायत की एकता व अखण्डता को अऺुण्ण फनामे यखने
के मरए बायत के सभस्त नागरयकों के मरए इकहयी नागरयकता का प्रावधान ककमा गमा है ।
(13) अस्ऩश्ृ मता का अन्त – बायतीम सॊववधान की एक अन्म ववशेषता अस्ऩश्ृ मता का अन्त कयना है । सॊववधान
के बाग 3 तथा 17वें अनच्
ु छे द भें कहा गमा है कक अस्ऩश्ृ मता का अन्त ककमा जाता है औय इसका ककसी
बी रूऩ भें आचयण दण्डनीम अऩयाध भाना जाएगा।
(14) िमस्क भताचधकाय – बायतीम सॊववधान द्वाया प्रत्मेक नागरयक को चाहे वह स्त्री हो मा ऩरु
ु ष , 18 वषथ की
अवस्था ऩूयी कय चुका हो, धभथ, मरॊग अथवा जानत के बेदबाव के ब्रफना भतदान का अर्धकाय प्रदान ककमा
गमा है ।
(15) स्ितन्त्र औय इकहयी न्मामऩासरका की स्थाऩना – बायतीम सॊववधान ने दे श के मरए स्वतन्त्र औय इकहयी
न्मामऩामरका की व्मवस्था की है । सॊववधान भें इस फात का ऩयू ा-ऩयू ा प्रफन्ध ककमा गमा है कक
न्मामऩामरका ननष्ट्ऩऺ रूऩ से ब्रफना ककसी हस्तऺेऩ के अऩने कतथव्म का ऩारन कय सके।
(16) विश्ि-र्ाक्न्त ि भैत्री का ऩोषक – बायतीम सॊववधान ने सदै व ववश्व-शान्न्त एवॊ ववश्व फन्धुत्व का सभथथन
ककमा है । सॊववधान की 51वीॊ धाया भें स्ऩष्ट्ट रूऩ से कहा गमा है बायत सॊसाय के याष्ट्रों के साथ सह-
अन्स्तत्व यखते हुए ववश्व-शान्न्त औय सुयऺा भें अऩना ऩूया सहमोग दे गा। साथ-ही-साथ वह सबी वववादों
को शान्न्तऩूणथ ढॊ ग से ननऩटाने का प्रमास बी कये गा।‖
(17) एक याष्ट्रबाषा की व्मिस्था – सम्ऩूणथ याष्ट्र के मरए बायतीम सॊववधान भें एक ही याष्ट्रबाषा की ‗ व्मवस्था
की गमी है औय वह है टहन्दी बाषा। सॊववधान की धाया 343 भें कहा गमा है कक सॊघ की अर्धकृत बाषा
दे वनागयी मरवऩ भें मरखी हुई टहन्दी होगी।
(18) विचध का र्ासन – बायतीम सॊववधान भें ब्रिटे न के सॊववधान की बाॉनत सभस्त नागरयकों को कानन
ू के
सभऺ सभानता का अर्धकाय प्रदान ककमा गमा है , अथाथत ् कानून के द्वाया ककसी बी नागरयक के साथ
धभथ, जानत, मरॊग व अन्म ककसी कायण कोई बेदबाव नहीॊ ककमा जाएगा।
(19) द्वि-सदनात्भक व्मिस्थावऩका – बायतीम सॊववधान के अन्तगथत द्वव–सदनात्भक व्मवस्थावऩका की स्थाऩना
की गमी है । इस व्मवस्था भें सॊसद के दो सदन याज्मसबा व रोकसबा हैं , न्जनभें याज्मसबा उच्च सदन व
रोकसबा ननम्न ऩयन्तु रोकवप्रम सदन है ।
ननष्ट्कषश – डॉ० अम्फेडकय के शब्दों भें , ―भैं भहसूस कयता हूॉ कक बायतीम सॊववधान व्मावहारयक है । औय इसभें
शान्न्त व मुर्द्कार दोनों भें दे श को फनामे यखने की साभथ्मथ है । वास्तव भें भैं मह कहना। चाहूॉगा कक मटद
नवीन सॊववधान के अन्तगथत न्स्थनत खयाफ होती है तो इसका कायण मह नहीॊ होगा कक सॊववधान खयाफ है
फन्ल्क हभें मह कहना होगा कक बायतीम ही खयाफ हैं। ‖
प्रश्न 2.
―बायत एक सम्प्रबुतासम्ऩन्न, सभाजवादी, धभथननयऩेऺ, रोकतान्न्त्रक गणयाज्म है । ‖ इस कथन की व्माख्मा
कीन्जए।
मा
बायतीम सॊववधान की प्रस्तावना के भुख्म ब्रफन्दओ
ु ॊ की प्रकृनत की व्माख्मा कीन्जए।
उत्तय :
―बायत एक सम्प्रबुतासम्ऩन्न, सभाजवादी, धभथननयऩेऺ, रोकतान्न्त्रक गणयाज्म है । इसे ननम्नमरखखत रूऩ भें
स्ऩष्ट्ट ककमा जा सकता है –
ु ासम्ऩन्न रोकताक्न्त्रक गणयाज्म – बायतीम सॊववधान का उद्देश्म सभस्त बायत भें सम्प्रबुतासम्ऩन्न
(1) सम्प्रबत
रोकतन्त्र की स्थाऩना कयना है । सम्प्रबत
ु ासम्ऩन्न का अथथ मह है कक बायत अऩने आन्तरयक औय ववदे शी
भाभरों भें ऩूणथ स्वतन्त्र है । आन्तरयक ऺेत्र भें याज्म सवोऩरय है । उसकी आऻाओॊ का ऩारन दे श के सबी
व्मन्क्तमों एवॊ सॊस्थाओॊ को कयना ऩडता है । ववदे शी भाभरों की स्वतन्त्रता का अथथ है कक बायत ऩय ककसी
ववदे शी शन्क्त का ननमन्त्रण नहीॊ है । वह अऩनी इच्छा से दस
ू ये दे शों के साथ सम्फन्ध स्थावऩत कयता है ।
बायत एक ―सावथबौभ, रोकतान्न्त्रक, धभथननयऩेऺ, सभाजवादी गणयाज्म है । मह फात सॊववधान की प्रस्तावना
से बरी-बाॉनत स्ऩष्ट्ट है । सावथबौमभकता का अथथ है कक शासन-सत्ती का अन्न्तभ स्रोत बायतीम जनता है ।
सॊववधान की प्रस्तावना भें मरखे शब्द ―हभ बायत के रोग बायतीम जनता की सावथबौमभकता की स्ऩष्ट्ट
अमबव्मन्क्त है । रोकतन्त्र का अथथ है कक शासन की अन्न्तभ सत्ता जनता के हाथ भें है , ऩयन्तु मह कामथ
जनता प्रत्मऺ रूऩ से न कयके अऩने प्रनतननर्धमों के द्वाया ही कय ऩाती है । इसीमरए बायत भें प्रत्मऺ
रोकतन्त्र की नहीॊ , फन्ल्क प्रनतननध्मात्भक रोकतन्त्र (Representative Democracy) की स्थाऩना की गमी
है , न्जसके मरए सावथबौमभक वमस्क भतार्धकाय तथा ननवाथचन-प्रणारी को अऩनामा गमा है ।
(2) सभाजिादी याज्म – 42वें सॊववधान सॊशोधन द्वाया ‗सभाजवादी‘ शब्द सॊववधान की प्रस्तावना भें जोडकय
सभाजवाद को दे श के साभान्म जीवन भें स्वीकाय ककमा गमा है । इससे प्रस्तावना भें दी गमी आर्थथक
न्माम की बावना को बी फर मभरा है । सभाजवाद एक सावथजननक ऺेत्र की भाॉग कयता है तथा राबों को
व्माऩक रूऩ से सभाज भें ववतरयत कयने की फात कयता है । बायत एक गणयाज्म है । इसका अमबप्राम मह
है कक हभाये महाॉ याज्माध्मऺ वॊशानुगत याजा नहीॊ , फन्ल्क जनता द्वाया ननवाथर्चत प्रनतननर्ध होता है । इसका
अथथ मह हुआ कक सबी सावथजननक ऩद ब्रफना ककसी बेदबाव के सबी नागरयकों के मरए खुरे हैं तथा ककसी
बी वगथ को कोई ववशेषार्धकाय प्राप्त नहीॊ है ।
(3) धभशननयऩेऺ याज्म – सॊववधान द्वाया बायत भें एक धभथननयऩेऺ याज्म (Secular State) की स्थाऩना की
गमी है । 42वें सॊशोधन द्वाया प्रस्तावना भें धभथननयऩेऺ शब्द को जोडकय बायतीम सॊसद ने धभथननयऩेऺता
ऩय भह
ु य रगा दी है । सॊववधान की प्रस्तावना भें वखणथत मे घोषणाएॉ कक सॊववधाने नागरयकों के मरए
ववश्वास, धभथ औय उऩासना की स्वतन्त्रता‖ व ―प्रनतष्ट्ठा औय अवसय की सभानता‘ की व्मवस्था कयता है ,
बायत को धभथननयऩेऺ याज्म फनाती हैं। धभथ के आधाय ऩय याज्म नागरयकों भें बेदबाव नहीॊ कयता है , फन्ल्क
वह सबी धभों को फयाफय सम्भान दे ता है । धभथननयऩेऺता को औय अर्धक स्ऩष्ट्ट कयते हुए अनुच्छे द 25
सबी नागरयकों को धभथ के अनक
ु यण की स्वतन्त्रता तथा धभथ को अफाध रूऩ से भानने , आचयण तथा प्रचाय
कयने का अर्धकाय दे ता है । इसी प्रकाय अनुच्छे द 29 सबी नागरयकों को अऩनी बाषा, मरवऩ तथा सॊस्कृनत
को सुयक्षऺत यखने का अर्धकाय दे ता है ।
उऩमुक्
थ त वववयण से स्ऩष्ट्ट होता है कक बायत एक सम्प्रबुतासम्ऩन्न, सभाजवादी, धभथननयऩेऺ, रोकतान्न्त्रक
गणयाज्म है ।
प्रश्न 3.
याष्ट्रीम एकता भें सहामक तत्त्वों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
याष्ट्रीम एकता भें सहामक तत्त्ि
दे श की याजनीनतक न्स्थयता, साभान्जक ववकास व आर्थथक सभवृ र्द् के मरए याष्ट्रीम एकता एक अननवामथ
तत्त्व है । अत् याष्ट्रीम एकता को प्रोत्साहन दे ने के मरए औऩचारयक एवॊ अनौऩचारयक रूऩ से ननम्नमरखखत
ब्रफन्दओ
ु ॊ ऩय ध्मान दे ना आवश्मक है –

1. इकहयी नागरयकता – बायतीम सॊववधान ने सभस्त बायतवामसमों को इकयही नागरयकता प्रदान कयके ऺेत्रवाद
जैसी सॊकीणथ बावनाओॊ को दयू कयने का प्रमास ककमा है ।
2. सॊविधान द्िाया बाषाओॊ को भान्मता – बाषावाद की सभस्मा का सभाधान कयने के उद्देश्म से सॊववधान की
आठवीॊ अनस
ु च
ू ी भें ववमबन्न बाषाओॊ को भान्मता प्रदान की गई है । आयम्ब भें इस सच
ू ी भें सन्म्भमरत
बाषाओॊ की सॊख्मा चौदह थी। सॊववधान सॊशोधन 21 व सॊववधान सॊशोधन 71 तथा सॊववधान सॊशोधन 92 के
ऩश्चात ् मसन्धी, नेऩारी, कोंकणी, भखणऩयु ी, डोगयी, फोडो, भैर्थरी औय सॊथारी बाषा के जड
ु जाने से अफ इस
सूची भें सन्म्भमरत बाषाओॊ की सॊख्मा 22 हो गई है । इस प्रकाय अफ आठवीॊ अनुसूची भें कुर 22 बाषाएॉ
हो गई हैं।
3. याष्ट्रबाषा – सॊववधान ने टहन्दी को याष्ट्रबाषा का गौयव प्रदान ककमा औय सॊववधान भें मह व्मवस्था की थी
कक वषथ 1965 ई० तक अॊग्रेजी को सहबाषा की न्स्थनत प्राप्त यहे गी। ऩयन्तु बाषा की याजनीनत के कायण
सयकाय ने अननन्श्चत कार तक अॊग्रेजी को सहबाषा के रूऩ भें फने यहने की न्स्थनत प्रदान कय दी। वस्तुत्
एक याष्ट्रवाद से सम्ऩूणथ याष्ट्र भें एक भानमसकता ववकमसत होती है । बाषामी वववादों से फचने के मरए
ककसी बी याज्म के ऊऩय टहन्दी को थोऩा नहीॊ गमा है ।
4. याष्ट्रचचह्न – बायत का याष्ट्रर्चह्न सायनाथ न्स्थत अशोक के मसॊह स्तम्ब की अनुकृनत है । मह बी याष्ट्रीम
एकता को प्रकट कयता है ।
5. याष्ट्रीम त्मोहाय – 15 अगस्त, 26 जनवयी औय 2 अक्टूफय (क्रभश् स्वतन्त्रता टदवस, गणतन्त्र टदवस औय
गाॊधी जमन्ती) को याष्ट्रीम त्मोहाय भाना गमा है औय सम्ऩण
ू थ दे श भें इन्हें फडी धभ
ू -धाभ के साथ भनामा
जाता है ।
6. साभाक्जक सभानता – दे श भें साभान्जक सभानता स्थावऩत कयने के मरए अस्ऩश्ृ मता सभान्प्त की टदशा भें
ववशेष प्रमास ककए गए हैं। इसके अनतरयक्त अनुसूर्चत जानतमों, अनुसूर्चत जनजानतमों तथा अन्म वऩछडे
वगों को सॊववधान द्वाया ववशेष सुववधाएॉ बी प्रदान की गई हैं।
7. धभशननयऩेऺ स्िरूऩ – साम्प्रदानमक सद्भाव को फनाए यखने के मरए बायत गणयाज्म का धभथननयऩेऺ स्वरूऩ
स्वीकाय ककमा गमा है जहाॉ प्रत्मेक व्मन्क्त को धामभथक स्वतन्त्रता का अर्धकाय प्रदान ककमा गमा है ।
धभथननयऩेऺ शब्द को सॊववधान की प्रस्तावना भें जोडा गमा है ।
8. सभाजिाद की स्थाऩना – बायतीम सॊववधान ने सभाजवाद की स्थाऩना ऩय फर टदमा है न्जससे सभाज भें
व्माप्त आर्थथक ववषभता को सभाप्त ककमा जा सके जोकक सभाज भें क्रान्न्त तथा सॊघषथ का कायण है ।

प्रश्न 1.
सयकायें कैसे फनती हैं औय कैसे कामथ कयती हैं , मह स्ऩष्ट्ट होता है
(क) याजनीनत से
(ख) दशथन से
(ग) इनतहास से
(घ) बूगोर से
उत्तय-
(क) याजनीनत से।
प्रश्न 2.
आधुननककार भें सवथप्रथभ मह ककसने मसर्द् ककमा कक स्वतन्त्रता भानव भात्र का भौमरक अर्धकाय है ।
(क) रूसो
(ख) अयस्तू
(ग) गाॊधी
(घ) जवाहयरार नेहरू
उत्तय-
(क) रूसो।
प्रश्न 3.
‗टहन्द स्वयाज ककसकी यचना है ?
(क) जवाहयरार नेहरू
(ख) भहात्भा गाॊधी
(ग) स्वयाज ऩॉर
(घ) अयस्तू।
उत्तय-
(ख) भहात्भा गाॊधी।
प्रश्न 4.
अॊग्रेजी भें इण्टयनेट का उऩमोग कयने वारों को कहा जाता है ।
(क) नेटटजन
(ख) मसटीजन
(ग) इॊटयनेटी
(घ) नेटीवैर
उत्तय-
(क) नेटटजन।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
भनुष्ट्म ककन भाभरों भें अन्म प्राखणमों से अद्ववतीम होता है ?
उत्तय-
भनष्ट्ु म दो भाभरों भें अद्ववतीम है -प्रथभ उसके ऩास वववेक होता है , दस
ू ये उसके ऩास बाषा का प्रमोग औय
एक-दस
ू ये से सॊवाद कयने की ऺभता होती है ।
प्रश्न 2.
याजनीनतक मसर्द्ान्त क्मा फताते हैं ?
उत्तय–
याजनीनतक मसर्द्ान्त उन ववचायों औय नीनतमों को व्मवन्स्थत रूऩ से प्रनतब्रफन्म्फत कयते हैं। न्जनसे हभाये
साभान्जक जीवन, सयकाय औय सॊववधान ने आकाय ग्रहण ककमा है ।
प्रश्न 3.
प्रेटो ककसका मशष्ट्म था?
उत्तय–
ऩाश्चात्म ववचायक प्रेटो सक
ु यात का मशष्ट्म था।
प्रश्न 4.
‗टद रयऩन्ब्रक ककसकी यचना है ?
उत्तय-
‗टद रयऩन्ब्रक‘ प्रेटो की यचना है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
याजनीनतक मसर्द्ान्त हभाये जीवन भें क्मा बूमभका ननबाता है ?
उत्तय-
याजनीनतक मसर्द्ान्त उन ववचायों औय नीनतमों को व्मवन्स्थत रूऩ से प्रनतनतन्म्फत कयता है , न्जनसे हभाये
साभान्जक जीवन, सयकाय औय सॊववधान ने आकाय ग्रहण ककमा है । मह स्वतन्त्रता , सभानता, न्माम,
रोकतन्त्र औय धभथननयऩेऺता जैसी अवधायणाओॊ का अथथ स्ऩष्ट्ट कयता है । मह कानून को याज , अर्धकायों
का फॉटवाया औय न्मानमक ऩुनयावरोकन जैसी नीनतमों की साथथकता की जाॉच कयता है । मह इस काभ को
ववमबन्न ववचायकों द्वाया इन अवधायणाओॊ के फचाव भें ववकमसत मन्ु क्तमों की जाॉच-ऩडतार के भाध्मभ से
कयता है । हाराॉकक रूसो, भाक्र्द्स मा गाॊधी जी याजनेता नहीॊ फन ऩाए रेककन उनके ववचायों ने हय जगह
ऩीढ़ी-दय-ऩीढ़ी याजनेताओॊ को प्रबाववत ककमा। साथ ही ऐसे फहुत से सभकारीन ववचायक हैं , जो अऩने सभम
भें रोकतन्त्र मा स्वतन्तत्रा के फचाव के मरए उनसे प्रेयणा रेते हैं। ववमबन्न तको की जाॉच-ऩडतार के
अरावा याजनीनतक मसर्द्ान्तकाय भानव के नवीन याजनीनतक अनब
ु वों की छानफीन कयते हैं औय बावी
रुझानों तथा सम्बावनाओॊ को र्चन्ह्नत बी कयते हैं।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
याजनीनतक मसर्द्ान्त का ववषम-ऺेत्र औय उद्देश्म मरखखए।
उत्तय-
भनुष्ट्म दो भाभरों भें अद्ववतीम है -उसके ऩास वववेक होता है औय उसभें गनतववर्धमों द्वाया उसे व्मक्त
कयने की मोग्मता होती है । भनुष्ट्म के ऩास बाषा का प्रमोग औय एक-दस
ू ये से सॊवाद कयने की ऺभता बी
होती है । अन्म प्राखणमों से अरग भनुष्ट्म अऩनी अन्तयतभ बावनाओॊ औय आकाॊऺाओॊ को व्मक्त कय
सकता है ; वह न्जन्हें अच्छा औय वाॊछनीम भानता है , अऩने उन ववचायों को वह दस
ू यों के साथ फाॉट सकता
है औय उन ऩय चचाथ कय सकता है । याजनीनतक मसर्द्ान्त की जडे भानव अन्स्भता के इन जुडवाॉ ऩहरुओॊ भें
होती है । मह कुछ ववमशष्ट्ट फुननमादी प्रश्नों का ववश्रेषण कयता है ; जैसेसभाज को ककस प्रकाय सॊगटठत होना
चाटहए? हभें सयकाय की आवश्मकता क्मों है ? सयकाय का सवथश्रेष्ट्ठ रूऩ कौन-सा है ? क्मा कानन
ू व्मन्क्त की
आजादी को सीमभत कयता है ? याजसत्ता की अऩने नागरयकों के प्रनत क्मा दे नदायी होती है ? नागरयक के रूऩ
भें एक-दस
ू ये के प्रनत हभायी क्मा दे नदायी होती है ?
याजनीनतक मसर्द्ान्त इस तयह के प्रश्नों की जाॉच कयता है औय याजनीनतक जीवन को अनुप्राखणत कयने
वारे स्वतन्त्रता, सभानता औय न्माम जैसे भूल्मों के ववषम भें सुव्मवन्स्थत रूऩ भें ववचाय कयता है । मह
इनके औय अन्म सम्फर्द् अवधायणाओॊ के अथथ औय भहत्त्व की वववेचना बी कयता है । मह अतीत औय
वतथभान के कुछ प्रभुख याजनीनतक र्चन्तकों को केन्द्र भें यखकय इन अवधायणाओॊ की वतथभान ऩरयबाषाओॊ
को स्ऩष्ट्ट कयता है । मह ववद्मारम, दक
ु ान, फस, रे न मा सयकायी कामाथरम जैसे दै ननक जीवन से जड
ु ी
सॊस्थाओॊ भें स्वतन्त्रता मा सभानता के ववस्ताय की वास्तववकता की जाॉच बी कयता है । औय आगे जाकय ,
मह दे खता है कक वतथभान ऩरयबाषाएॉ ककतनी उऩमक्
ु त हैं औय कैसे वतथभान सॊस्थाओॊ (सयकाय , नौकयशाही)
औय नीनतमों के अनुऩारन को अर्धक रोकतान्न्त्रक फनाने के मरए उनका ऩरयभाजथन ककमा जा सकता है ।
याजनीनतक मसर्द्ान्त का उद्देश्म नागरयकों को याजनीनतक प्रश्नों के फाये भें तकथसॊगत ढॊ ग से सोचने औय
साभनमक याजनीनतक घटनाओॊ को सही तयीके से आॉकने का प्रमशऺण दे ना है ।

दीघश उत्तयीम प्रश्न


प्रश्न 1.
याजनीनत क्मा है ? आधुननक सन्दबो भें तकथऩूणथ ढॊ ग से सभझाइए।
उत्तय-
बायतीम सभाज भें रोग याजनीनत के फाये भें अरग-अरग दृन्ष्ट्टकोण यखते हैं। याजनेता औय चुनाव रडने
वारे रोग अथवा याजनीनतक ऩदार्धकायी कह सकते हैं कक याजनीनत एक प्रकाय की जनसेवा है । याजनीनत
से जड
ु े अन्म रोग याजनीनत को दावॉ-ऩें च भानते हैं तथा आवश्मकताओॊ औय भहत्त्वाकाॊऺाओॊ को ऩयू ा कयने
के कुचक्र भें पॊसे यहते हैं। कई अन्म के मरए याजनीनत वही है , जो याजनेता कयते हैं। अगय वे याजनेताओॊ
को दर-फदर कयते , झठ
ू े वामदे औय फढ़-चढ़े दावे कयते , सभाज के ववमबन्न वगों से जोड-तोड कयते , ननजी
मा साभूटहक स्वाथों भें ननष्ट्ठुयता से यत औय घखृ णत रूऩ भें टहॊसा ऩय उतारू होता दे खते हैं तो वे याजनीनत
का सम्फन्ध ‗घोटारों से जोडने रगते हैं। इस तयह की सोच इतनी प्रचमरत है कक जीवन के ववमबन्न ऺेत्रों
भें जफ हभ हय सम्बव तयीके से अऩने स्वाथथ को साधने भें रगे रोगों दे खते हैं , तो हभ कहते हैं कक वे
याजनीनत कय यहे हैं।
मटद हभ एक कक्रकेटय को टीभ भें फने यहने के मरए जोड-तोड कयते मा ककसी सहऩाठी को अऩने वऩता की
है मसमत का उऩमोग कयते अथवी कामाथरम भें ककसी सहकभी को ब्रफना सोचे-सभझे फॉस की हाॉ भें हाॉ
मभराते दे खते हैं, तो हभ कहते हैं कक वह ‗गन्दी याजनीनत कय यहा है । स्वाथथऩयता के ऐसे कामों से भोहबॊग
होने ऩय हभ याजनीनत से ववयक्त हो जाते हैं। हभ कहने रगते हैं- ―भुझे याजनीनत भें रुर्च नहीॊ है मा भैं
याजनीनत से दयू यहता हूॉ। ‖ केवर साधायण रोग ही याजनीनत से ननयाश नहीॊ हैं। फन्ल्क इससे राब प्राप्त
कयने वारे औय ववमबन्न दरों को चन्दा दे ने वारे व्मवसामी औय उद्मभी बी अऩनी भुसीफतों के मरए आमे
टदन याजनीनत को ही कोसते यहते हैं।
प्रनतटदन हभाया साभना याजनीनत की इसी प्रकाय की ऩयस्ऩय ववयोधी छववमों से होता यहता है । क्मा
याजनीनत अवाॊछनीम गनतववर्ध है , न्जससे हभें अरग यहना चाटहए, औय ऩीछा छुडाना चाटहए? मा मह इतनी
उऩमोगी गनतववर्ध है कक ववकमसत ववश्व फनाने के मरए हभें इसभें ननन्श्चत ही शामभर होना चाटहए ?

मह दब
ु ाथग्मऩूणथ है कक याजनीनत का सम्फन्ध ककसी बी तयीके से ननजी स्वाथथ साधने के धन्धे से जुड गमा
है । हभें मह सभझना चाटहए कक याजनीनत ककसी बी सभाज का भहत्त्वऩूणथ औय अववबाज्म अॊग है ।
याजनीनतक सॊगठन औय साभूटहक ननणथम के ककसी ढाॉचे के फगैय कोई बी सभाज जीववत नहीॊ यहू सकता।
जो सभाज अऩने अन्स्तत्व को फचाए यखना चाहता है , उसके मरए अऩने सदस्मों की ववववध जरूयतों औय
टहतों का ध्मान यखना आवश्मक होता है । ऩरयवाय, जनजानत औय आर्थथक सॊस्थाओॊ जैसी अनेक साभान्जक
सॊस्थाएॉ रोगों की जरूयतों औय आकाॊऺाओॊ को ऩूया कयने भें सहामता कयने के ववकमसत हुई हैं। ऐसी
सॊस्थाएॉ हभें साथ यहने के उऩाम खोजने औय एक-दस ू ये के प्रनत अऩने कतथव्मों को स्वीकाय कयने भें
सहामता कयती हैं। इन सॊस्थाओॊ के साथ सयकायें बी भहत्त्वऩूणथ बूमभका का ननवाथह कयती हैं। सयकायें कैसे
फनती हैं औय कैसे कामथ कयती हैं , मह याजनीनत भें दशाथने वारी भहत्त्वऩण
ू थ फातें हैं।

रेककन याजनीनत सयकाय के कामथ-कराऩों तक ही सीमभत नहीॊ होती है । वास्तव भें , सयकायें जो बी कामथ
कयती हैं वह प्रासॊर्गक होता है क्मोंकक वह कामथ रोगों के जीवन को मबन्न-मबन्न तयीकों से प्रबाववत कयता
है । हभ दे खते हैं कक सयकायें हभायी आर्थथक नीनत, ववदे श नीनत औय मशऺा नीनत को ननधाथरयत कयती हैं। मे
नीनतमाॉ रोगों के जीवन को उन्नत कयने भें सहामता कय सकती हैं , रेककन एक अकुशर औय भ्रष्ट्ट सयकाय
रोगों के जीवन औय सुयऺा को सॊकट भें बी डार सकती है । अगय सत्तारूढ़ सयकाय जातीम औय
साम्प्रदानमक सॊघषथ को फढ़ावा दे ती है तो फाजाय औय स्कूर फन्द हो जाते हैं। इससे हभाया जीवन अस्त-
व्मस्त हो जाता है , हभ अत्मन्त आवश्मक वस्तुएॉ बी नहीॊ खयीद सकते , फीभाय रोग अस्ऩतार नहीॊ ऩहुॉच
सकते, स्कूर की सभम-सायणी बी प्रबाववत हो जाती है , ऩाठ्मक्रभ ऩूया नहीॊ हो ऩाता। दस
ू यी ओय, सयकाय
अगय साऺयता औय योजगाय फढ़ाने की नीनतमाॉ फनाती हैं , तो हभें अच्छे स्कूर भें जाने औय फेहतय योजगाय
ऩाने के अवसय प्राप्त हो सकते हैं।

चॊकू क सयकाय की कामथवाटहमों का जनसाभान्म ऩय गहया असय ऩडता है , जनता सयकाय के काभों भें रुर्च
रेती है । जफ जनता सयकाय की नीनतमों से असहभत होती है तो उसका ववयोध कयती है औय वतथभान
कानन
ू को फदरने के मरए अऩनी सयकायों को याजी कयने के मरए प्रदशथन आमोन्जत कयती है । ननष्ट्कषथ मह
है कक याजनीनत का जन्भ इस तथ्म से होता है कक हभाये औय हभाये सभाज के मरए क्मा उर्चत एवॊ
वाॊछनीम है औय क्मा नहीॊ। इस फाये भें हभायी दृन्ष्ट्ट अरग-अरग होती है । इसभें सभाज भें चरने वारी
फहुववध वाताथएॉ शामभर हैं, न्जनके भाध्मभ से साभूटहक ननणथम ककए जाते हैं। एक स्तय से इन वाताथओॊ भें
सयकायों के कामथ औय इन कामों का जनता से जुडा होना शामभर होता है ।

फहुविकल्ऩीम प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के नकायात्भक ऩहरू का ववचायक था
(क) ग्रीन
(ख) गाॊधी जी
(ग) रॉस्की
(घ) रूसो
उत्तय-
(घ) रूसो।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के सकायात्भक (वास्तववक) ऩहरू का ववचायक था
(क) हॉब्स
(ख) सीरे
(ग) कोर
(घ) भैकेंजी
उत्तय-
(घ) भैकेंजी।
प्रश्न 3.
―स्वतन्त्रता तथा सभानता ऩयस्ऩय ववयोधी हैं। ‖ इस ववचायधाया का सभथथक था
(क) रॉस्की
(ख) सी० ई० एभ० जोड
(ग) क्रोचे
(घ) ऩोराडथ
उत्तय-
(ग) क्रोचे।
प्रश्न 4.
―स्वतन्त्रता एवॊ सभानता एक-दस
ू ये के ऩूयक हैं। ‖ इस ववचायधाया का सभथथक है -
(क) डी० टॉकववरे
(ख) रॉडथ एक्टन
(ग) क्रोचे
(घ) रॉस्की
उत्तय-
(घ) रॉस्की।
प्रश्न 5.
―आर्थथक सभानता के ब्रफना याजनीनतक स्वतन्त्रता एक भ्रभ है । ‖ मह कथन ककसका है ?
(क) रॉस्की को
(ख) प्रो० जोड का
(ग) रूसो को
(घ) क्रोचे का
उत्तय-
(ख) प्रो० जोड का।
प्रश्न 6.
नागरयक स्वतन्त्रता ननम्नमरखखत भें से ककसे कहते हैं ?
(क) योजगाय ऩाने की स्वतन्त्रता
(ख) कानन
ू के सभऺ सभानता
(ग) चुनाव रडने की स्वतन्त्रता
(घ) याजकीम सेवा प्राप्त कयने की स्वतन्त्रता
उत्तय-
(ख) कानन ू के सभऺ सभानता।
प्रश्न 7.
‗मरफटी‘ (स्वतन्त्रता) की व्मत्ु ऩन्त्त मरफय‘ शब्द से हुई है , जो शब्द है
(क) सॊस्कृत बाषा का
(ख) रैटटन बाषा का
(ग) िाॊसीसी बाषा का
(घ) टहिू बाषा का
उत्तय-
(ख) रैटटन बाषा का।
प्रश्न 8.
―स्वतन्त्रता अनत-शासन की ववयोधी है । ‖ मह कथन ककसका है ?
(क) कोर
(ख) सीरे
(ग) रॉस्की
(घ) ग्रीन
उत्तय-
(ख) सीरे।
प्रश्न 9.
मटद ककसी व्मन्क्त को आवागभन की स्वतन्त्रता नहीॊ प्राप्त है , तो उसे ननम्नाॊककत भें से ककस
स्वतन्त्रता से वॊर्चत ककमा जा सकता है ?
(क) नागरयक स्वतन्त्रता
(ख) प्राकृनतक स्वतन्त्रता
(ग) आर्थथक स्वतन्त्रता
(घ) धामभथक स्वतन्त्रता
उत्तय-
(ख) प्राकृनतक स्वतन्त्रता।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता का वास्तववक अथथ क्मा है ?
उत्तय–
अनुर्चत फन्धनों के स्थान ऩय उर्चत फन्धनों की व्मवस्था ही स्वतन्त्रता का वास्तववक अथथ है ।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता की एक ऩरयबाषा मरखखए।
उत्तय-
फाकथय के अनुसाय, ―स्वतन्त्रता प्रनतफन्धों का अबाव नहीॊ , वयन ् वह ऐसे ननमन्त्रणों का अबाव है , जो भनुष्ट्म
के ववकास भें फाधक हों।‖
प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के दो प्रकाय मरखखए।
उत्तय-
(i)याजनीनतक स्वतन्त्रता- याज्म के कामों भें सकक्रम रूऩ से बाग रेने की शन्क्त ही याजनीनतक स्वतन्त्रता
है ।
(ii)आर्थथक स्वतन्त्रता- प्रत्मेक व्मन्क्त को योजगाय व अऩने श्रभ का ऩारयश्रमभक प्राप्त कयने की स्वतन्त्रता।
प्रश्न 4.
―स्वतन्त्रता औय कानून एक-दस
ू ये के ऩूयक हैं। ‖ स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय–
स्वतन्त्रता औय कानून एक-दस
ू ये के ऩूयक हैं , क्मोंकक कानूनों के ऩारन भें ही भनुष्ट्म की स्वतन्त्रता सुयक्षऺत
यहती है ।
प्रश्न 5.
―जहाॉ कानून नहीॊ है , वहाॉ स्वतन्त्रता नहीॊ हो सकती।‖ मह भत ककस ववद्वान ् का है ।
उत्तय—
मह भत उदायवादी ववचायक रॉक का है ।
प्रश्न 6.
कानून ककस प्रकाय स्वतन्त्रता का यऺक है ?
उत्तय-
कानून स्वतन्त्रता को जन्भ दे ते हैं औय उन्हें भमाथटदत कयते हैं।
प्रश्न 7.
‗ऑन मरफटी‘ (स्वतन्त्रता) नाभक ग्रन्थ ककसने मरखा?
उत्तय-
‗ऑन मरफटी‘ (स्वतन्त्रता) नाभक ग्रन्थ जे०एस० मभर ने मरखा।
प्रश्न 8.
नकायात्भक स्वतन्त्रता का सभथथक ववचायक कौन है ?
उत्तय–
जे०एस० मभरा।
प्रश्न 9.
प्राकृनतक स्वतन्त्रता का सभथथक कौन था? ।
उत्तय-
रूसो।
प्रश्न 10.
―स्वतन्त्रता अनत शासन की ववयोधी है । ‖ मह भत ककसने व्मक्त ककमा है ।
उत्तय–
सीरे ने।
प्रश्न 11.
नेल्सन भण्डेरा की आत्भकथा का शीषथक क्मा है ?
उत्तय–
नेल्सन भण्डेरा की आत्भकथा का शीषथक ‗राॉग वाक टू िीडभ‘ (स्वतन्त्रता के मरए रम्फी मात्रा) है ।
प्रश्न 12.
आॉग सान सू कौन है ?
उत्तय–
आॉग सान सू म्माॊभाय की याष्ट्रवादी नेता हैं। उन्हें म्माॊभाय सयकाय ने नजयफन्द कय यखा है ।
प्रश्न 13.
आॉग सान सू की ऩुस्तक का शीषथक क्मा है ?
उत्तय-
आॉग सान सू की ऩुस्तक का शीषथ ‗िीडभ िॉभ पीमय (बम की भुन्क्त) है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के भाक्सथवादी दृन्ष्ट्टकोण का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
उत्तय—
भाक्सथवादी दृन्ष्ट्टकोण के अनुसाय स्वतन्त्रता ऐसी न्स्थनत नहीॊ है न्जसभें व्मन्क्त को अकेरा छोड टदमा
जाए। इसके ववऩयीत, स्वतन्त्रता की न्स्थनतमाॉ साभान्जक-आर्थथक सन्दबो से सम्फर्द् होती हैं। भाक्सथवादी
ववचायकों के अनुसाय तकथसॊगत उत्ऩादन प्रणारी के अन्तगथत ही व्मन्क्त सच्चे अथों भें स्वतन्त्र हो सकते
हैं, क्मोंकक ऐसी न्स्थनत भें उत्ऩादन के प्रभुख साधनों ऩय सम्ऩूणथ सभाज का स्वामभत्व होगा , कोई ककसी का
शोषण नहीॊ कये गा औय उत्ऩादन की शन्क्तमाॉ इतनी ववकमसत हो जाएॉगी कक प्रत्मेक व्मन्क्त अऩनी इच्छा
औय आवश्मकता की ऩूनतथ आसानी से कय सकेगा। भाक्र्द्सवाद के अनुसाय व्मन्क्त के मरए स्वतन्त्रता का
सच्चा अथथ तो उस सभम सम्बव हो सकता है जफ वह अबावों से भक्
ु त हो। उसे आत्भववश्वास के मरए
न्जन चीजों की जरूयत हो वे सफ बयऩूय भात्रा भें उऩरब्ध हों। भाक्सथ नकायात्भक स्वतन्त्रता का ववयोधी व
सकायात्भकॊ स्वतन्त्रता का सभथथक है ।
प्रश्न 2.
नागरयक स्वतन्त्रता ऩय टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय-
नागरयक स्ितन्त्रता
सभाज को सदस्म होने के कायण व्मन्क्त को जो स्वतन्त्रता प्राप्त होती है , उसको नागरयक स्वतन्त्रता की
उऩभा दी जाती है । नागरयक स्वतन्त्रता की यऺा याज्म कयता है । इसभें नागरयकों की ननजी स्वतन्त्रता ,
धामभथक स्वतन्त्रता, सम्ऩन्त्त का अर्धकाय, ववचाय-अमबव्मन्क्त कयने की स्वतन्त्रता, इकडे होने तथा सॊघ
इत्माटद फनाने की स्वतन्त्रता सन्म्भमरत हैं। गैटटर ने नागरयक स्वतन्त्रता का अथथ स्ऩष्ट्ट कयते हुए कहा है
कक ―नागरयक स्वतन्त्रता का तात्ऩमथ उन अर्धकायों एवॊ ववशेषार्धकायों से है न्जन्हें याज्म अऩनी प्रजा हे तु
उत्ऩन्न कयता है तथा उन्हें सयु े ऺा प्रदान कयता है । ‖
नागरयक स्वतन्त्रता ववमबन्न याज्मों भें अरग-अरग होती है । जहाॉ रोकतन्त्रीम याज्मों भें मह स्वतन्त्रता
अर्धक होती है , वहीॊ तानाशाही याज्मों भें कभ। बायत के सॊववधान भें नागरयक स्वतन्त्रता का वणथन ककमा
गमा है ।
प्रश्न 3.
आर्थथक स्वतन्त्रता ऩय टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय-
आचथशक स्ितन्त्रता
आर्थथक स्वतन्त्रता से आशम आर्थथक सुयऺा सम्फन्धी उस न्स्थनत से है न्जसभें प्रत्मेक व्मन्क्त अऩनी
अननवामथ आवश्मकताओॊ की ऩूनतथ कयते हुए अऩना जीवन-माऩन कय सके। रॉस्की के शब्दों भें , आर्थथक
स्वतन्त्रता का मह अमबप्राम है कक प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩनी जीववका अन्जथत कयने की सभुर्चत सुयऺा
तथा सवु वधा प्राप्त हो।‖
न्जस याज्म भें बूख, गयीफी, दीनता, नग्नता तथा आर्थथक अन्माम होगा वहाॉ व्मन्क्त कबी बी स्वतन्त्र नहीॊ
होगा। व्मन्क्त को ऩेट की बख
ू , अऩने फच्चों की बख
ू तथा बववष्ट्म भें टदखाई दे ने वारी आवश्मकताएॉ
प्रत्मेक ऩर द:ु खी कयती यहें गी। व्मन्क्त कबी बी स्वमॊ को स्वतन्त्र अनुबव नहीॊ कये गा तथा न ही वह
नागरयक एवॊ याजनीनतक स्वतन्त्रता का बरी-बाॉनत उऩबोग कय सकेगा। अत: याजनीनतक एवॊ नागरयक
स्वतन्त्रता को हामसर कयने के मरए आर्थथक स्वतन्त्रता का होना ऩयभावश्मक है । रेननन ने उर्चत ही कहा
है कक ―आर्थथक स्वतन्त्रता के अबाव भें याजनीनतक अथवा नागरयक स्वतन्त्रता अथथहीन है । ‖
प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता औय सत्ता के ऩायस्ऩरयक सम्फन्धों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
कनतऩम ववद्वानों का ववचाय है कक याजनीनतक स्वतन्त्रता एवॊ सत्ता ऩयस्ऩय ववयोधी हैं। प्रबस
ु त्ता असीभ है
ऩयन्तु स्वतन्त्रता ऩय कोई अॊकुश नहीॊ होना चाटहए। सत्ता एवॊ स्वतन्त्रता साथ-साथ नहीॊ यह सकती हैं।
वास्तव भें न तो प्रबस
ु त्ता असीमभत होती है औय न ही स्वतन्त्रता अप्रनतफन्न्धत होती है । याज्म की
प्रबुसत्ता के ऊऩय अनेक प्रनतफन्ध होते हैं। स्वतन्त्रता की प्रकृनत भें ही प्रनतफन्ध ननटहत है , अन्मथा
स्वतन्त्रता उच्छॊ खरता भें ऩरयवनतथत हो जाएगी। स्वतन्त्रता के ऊऩय अॊकुश इसमरए जरूयी है कक अन्म
नागरयकों को सभान अवसय प्राप्त हों औय सफर वगथ सभाज के ववरुर्द् आचयण न कय सके। गैटटर ने इस
सम्फन्ध भें कहा है , ―ब्रफना प्रनतफन्धों के प्रबुसत्ता ननयॊ कुश फन जाती है औय ब्रफना सत्ता के स्वतन्त्रता
अयाजकता को जन्भ दे ती है । ‖
प्रश्न 5.
सॊऺेऩ भें स्वतन्त्रता के भहत्त्व को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय-
मटद मह सत्म है कक ब्रफना सत्ता के साभान्जक शन्क्त औय व्मवस्था नहीॊ यह सकतीॊ , तो मह बी उतना ही
आवश्मक है कक सत्ता द्वाया स्थावऩत इस व्मवस्था के अन्तगथत नागरयकों को अऩने व्मन्क्तत्व के ऩूणथ
ववकास के मरए स्वतन्त्रता उऩरब्ध हो। भानव के व्मन्क्तत्व के ववकास भें स्वतन्त्रता एक अनभोर ननर्ध
है । वैमन्क्तक व याष्ट्रीम स्वतन्त्रता की प्रान्प्त के मरए हजायों रोगों के अनेक प्रकाय की मातनाएॉ हॉसते हुए
झेरी हैं। फटे ण्ड यसेर के अनुसाय, ―स्वतन्त्रता की इच्छा व्मन्क्त की एक स्वाबाववक प्रकृनत है औय इसी के
आधाय ऩय साभान्जक जीवन का ननभाथण सम्बव है । ‖ प्रमसर्द् ववर्धवेत्ता ऩारकीवारा के शब्दों भें , ―भनुष्ट्म
सदा ही स्वतन्त्रता की फमरवेदी ऩय सवाथर्धक फहुभल्
ू म फमरदान दे ते यहे हैं। वे बाषण व अमबव्मन्क्त की
स्वतन्त्रता तथा आत्भा व धभथ की स्वतन्त्रता के मरए अऩने प्राण तक दे ते यहे हैं। ‖ सॊऺेऩ भें , स्वतन्त्रता
मटद भानव-जानत का अन्न्तभ रक्ष्म नहीॊ , तफ उसकी प्रेयणा का अन्न्तभ स्रोत तो सदा ही यही है ।
प्रश्न 6.
उदायवाद क्मा है ?
उत्तय-
एक याजनीनतक ववचायधाया के रूऩ भें उदायवाद को सहनशीरता के भल्
ू म के साथ जोडकय दे खा जाता है ।
उदायवादी चाहे ककसी व्मन्क्त से असहभत हों, तफ बी वे उसके ववचाय औय ववश्वास यखने औय व्मक्त
कयने के अर्धकाय का ऩऺ रेते हैं। रेककन उदायवाद इतना बय नहीॊ है औय न ही उदायवाद एकभात्र
आधुननक ववचायधाया है जो सटहष्ट्णुता का सभथथन कयती है । आधुननक उदायवाद की ववशेषता मह है कक
इसभें केन्द्र ब्रफन्द ु व्मन्क्त है । उदायवाद के मरए ऩरयवाय, सभाज मा सभद
ु ाम जैसी इकाइमों का स्वमॊ भें
कोई भहत्त्व नहीॊ है । उनके मरए इन इकाइमों का भहत्त्व तबी है , जफ व्मन्क्त इन्हें भहत्त्व दे । उदाहयण
के मरए, उदायवादी कहें गे कक ककसी से वववाह कयने का ननणथम व्मन्क्त को रेना चाटहए , ऩरयवाय, जानत मा
सभुदाम को नहीॊ। उदायवादी व्मन्क्तगत स्वतन्त्रता को सभानता जैसे अन्म भूल्मों से अर्धक वयीमता दे ते
हैं। वे साधायणतमा याजनीनतक सत्ता को बी सॊदेह की दृन्ष्ट्ट से दे खते हैं।
प्रश्न 7.
स्वयाज से आऩ क्मा सभझते हैं ?
उत्तय-
बायतीम याजनीनतक ववचायों भें स्वतन्त्रता की सभानाथी अवधायणा ‗स्वयाज‘ है । स्वयाज का अथथ ‗स्व‘ का
शासन बी हो सकता है औय ‗स्व‘ के ऊऩय शासन बी। बायत के स्वतन्त्रता सॊघषथ के सन्दबथ भें ‗स्वयाज‘
याजनीनतक औय सॊवैधाननक स्तय ऩय स्वतन्त्रता की भाॉग है औय साभान्जक स्तय ऩय मह एक भूल्म है ।
इसीमरए स्वयाज स्वतन्त्रता आन्दोरन भें एक भहत्त्वऩूणथ नाया फन गमा न्जसने नतरक के प्रमसर्द् कथन
―स्वयाज भेया जन्भमसर्द् अर्धकाय है औय भैं इसे रेकय यहूॉगा‖ को प्रेरयत ककमा।
प्रश्न 8.
प्रनतफन्धों के स्रोत क्मा हैं ?
उत्तय–
व्मन्क्त की स्वतन्त्रता ऩय प्रनतफन्ध प्रबत्ु व औय फाहयी ननमन्त्रण से रग सकते हैं। मे प्रनतफन्ध . फरऩव
ू क

मा सयकाय द्वाया ऐसे कानून की सहामता से रगाए जा सकते हैं , जो शासकों की ताकत का । प्रनतननर्धत्व
कयें । ऐसे प्रनतफन्ध उऩननवेशवादी शासकों ने मा दक्षऺण अिीका भें यॊ गबेद की व्मवस्था रे रगाए। सयकाय
की कोई-न-कोई जरूयत हो सकती है , रेककन सयकाय रोकतान्न्त्रक हो तो याज्म के नागरयकों का अऩने
शासकों ऩय कुछ ननमन्त्रण हो सकता है । इसमरए रोकतान्न्त्रक सयकाय रोगों की स्वतन्त्रता की यऺा के
मरए एक आवश्मक भाध्मभ भानी गई है ।
प्रश्न 9.
जे०एस० मभर ने ‗स्वसम्फर्द्‘ औय ‗ऩयसम्फर्द्‘ कामों भें क्मा अन्तय फतामा है ?
उत्तय–
ऩाश्चात्म ववचायक जे०एस० मभर ने ‗स्वसम्फर्द्‘ औय ‗ऩयसम्फर्द् कामों भें अन्तय फतामा है । स्वसम्फर्द् वे
कामथ हैं, न्जनके प्रबाव केवर इन कामों को कयने वारे व्मन्क्त ऩय ऩडते हैं जफकक ऩयसम्फर्द् वे कामथ हैं जो
कताथ के अरावा शेष रोगों ऩय बी प्रबाव डारते हैं। मभर का तकथ है कक स्वसम्फर्द् कामथ औय ननणथमों के
भाभरे भें याज्म मा ककसी फाहयी सत्ता को कोई हस्तऺेऩ कयने की जरूयत नहीॊ है । सयर शब्दों भें कहें तो ,
स्वसम्फर्द् कामथ वे हैं न्जनके फाये भें कहा जा सके कक मे भेया काभ है , भैं इसे वैसे करूॊगा, जैसा भेया भन
होगा।‘ ऩयसम्फर्द् कामथ वे हैं न्जनके फाये भें कहा जा सके कक अगय तम्
ु हायी गनतववर्धमों से भझ
ु े कुछ
नुकसान होता है तो ककसी-न-ककसी फाहयी सत्ता को चाटहए कक भुझे इन नुकसानों से फचाए। ‖
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
―स्वतन्त्रता औय कानन
ू की घननष्ट्ठता के कायण इन्हें एक-दस
ू ये का ऩयू क कहा जाता है । ‖ इस कथन ऩय
टटप्ऩणी मरखखए।
मा कानन
ू तथा स्वतन्त्रता के भध्म सम्फन्धों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
स्ितन्त्रता के सकायात्भक स्िरूऩ का तात्ऩमश है - व्मन्क्त को व्मन्क्तत्व के ववकास हे तु आवश्मक सवु वधाएॉ प्रदान
कयना। कानून व्मन्क्तमों के व्मन्क्तत्व के ववकास की सुववधाएॉ प्रदान कयते हुए उन्हें वास्तववक स्वतन्त्रता
प्रदान कयते हैं। वतथभान सभम भें रगबग सबी याज्मों द्वाया जनकल्माणकायी याज्म के ववचाय को अऩना
मरमा गमा है औय याज्म कानूनों के भाध्मभ से एक ऐसे वातावयण के ननभाथण भें सॊरग्न है न्जसके
अन्तगथत व्मन्क्त अऩने व्मन्क्तत्व का ऩण
ू थ ववकास कय सके। याज्म के द्वाया की गमी अननवामथ मशऺा की
व्मवस्था, अर्धकतभ श्रभ औय न्मूनतभ वेतन के सम्फन्ध भें कानूनी व्मवस्था , जनस्वास्थ्म का प्रफन्ध
आटद कामों द्वाया नागरयकों को व्मन्क्तत्व के ववकास की सुववधाएॉ प्राप्त हो यही हैं औय इस प्रकाय याज्म
नागरयकों को वास्तववक स्वतन्त्रता प्रदान कय यहा है । मटद याज्म सडक ऩय चरने के सम्फन्ध भें ककसी
प्रकाय के ननमभों का ननभाथण कयता है , भद्मऩान ऩय योक रगाता है मा टीके की व्मवस्था कयता है तो
याज्म के इन कामों से व्मन्क्तमों की स्वतन्त्रता सीमभत नहीॊ होती , वयन ् उसभें ववृ र्द् ही होती है । इस प्रकाय
मह कहा जा सकता है कक साधायण रूऩ से याज्म के कानून व्मन्क्तमों की स्वतन्त्रता की यऺा औय उसभें
ववृ र्द् कयते हैं।
स्वतन्त्रता औय कानून के इस घननष्ट्ठ सम्फन्ध के कायण ही यै म्जे म्मोय ने मरखा है कक ―कानून औय
स्वतन्त्रता इस प्रकाय अन्मोन्मार्श्रत औय एक-दस
ू ये के ऩयू क हैं। ‖
प्रश्न 2.
―स्वतन्त्रता व्मन्क्तत्व के ऩण
ू थ ववकास के मरए आवश्मक है । ‖ वववेचना कीन्जए।
उत्तय–
स्वतन्त्रता अभूल्म वस्तु है औय उसका भानवीम जीवन भें फहुत अर्धक भहत्त्व है । स्वतन्त्रता का भूल्म
व्मन्क्तगत तथा याष्ट्रीम दोनों स्तयों ऩय सभान है । स्वतन्त्रता का भहत्त्व न होता तो ववमबन्न दे शों भें
राखों व्मन्क्तमों द्वाया स्वतन्त्रता की यऺा के मरए अऩने प्राणों का फमरदान न टदमा जाता। भनष्ट्ु म के
व्मन्क्तत्व के ववकास के मरए अर्धकायों का अन्स्तत्व ननतान्त आवश्मक है औय इन ववववध अर्धकायों भें
स्वतन्त्रता का स्थान ननन्श्चत रूऩ से सफसे अर्धक भहत्त्वऩण
ू थ है । भनष्ट्ु म का सम्ऩण
ू थ बौनतक , भानमसक
एवॊ नैनतक ववकास स्वतन्त्रता के वातावयण भें ही सम्बव है । स्वतन्त्रता की व्माख्मा कयते हुए रास्की ने
बी कहा है कक ―स्वतन्त्रता उस वातावयण को फनाए यखना है न्जसभें व्मन्क्त को जीवन का सवोत्तभ
ववकास कयने की सुववधा प्राप्त हो।‘ इस प्रकाय स्वतन्त्रता का । तात्ऩमथ ऐसे वातावयण औय ऩरयन्स्थनतमों
की ववद्मभानता से है न्जसभें व्मन्क्त अऩने व्मन्क्तत्व का ऩण
ू थ ववकास कय सके। स्वतन्त्रता ननम्नमरखखत
आदशथ दशाएॉ प्रस्तुत कयती हैं
ू तभ प्रनतफन्ध– स्वतन्त्रता का प्रथभ तत्त्व मह है कक व्मन्क्त के जीवन ऩय शासन औय सभाज के
1. न्मन
दस
ू ये सदस्मों की ओय से न्मन
ू तभ प्रनतफन्ध होने चाटहए, न्जससे व्मन्क्त अऩने ववचाय औय कामथ-
व्मवहाय भें अर्धकार्धक स्वतन्त्रता का उऩबोग कय सके तथा अऩना ववकास सुननन्श्चत कय सके।
2. व्मक्ततत्ि विकास हेतु सवु िधाएॉ– स्वतन्त्रता का दस
ू या तत्त्व मह है कक सभाज औय याज्म द्वाया व्मन्क्त
को उसके व्मन्क्तत्व के ववकास हे तु अर्धकार्धक सुववधाएॉ प्रदान की जानी चाटहए। इस प्रकाय
स्वतन्त्रता जीवन की ऐसी अवस्था का नाभ है न्जसभें व्मन्क्त के जीवन ऩय न्मूनतभ प्रनतफन्ध हों
औय व्मन्क्त को अऩने व्मन्क्तत्व के ववकास हे तु अर्धकतभ सुववधाएॉ उऩरब्ध होती हैं।
प्रश्न 3.
―स्वतन्त्रता तथा कानून ऩयस्ऩय ववयोधी हैं। ‖ इस ववचाय को भान्मता प्रदान कयने वारों का वणथन कीन्जए।
उत्तय-
कुछ ववद्वानों का ववचाय है कक स्वतन्त्रता तथा कानून ऩयस्ऩय ववयोधी हैं , क्मोंकक कानून स्वतन्त्रता ऩय
अनेक प्रकाय के फन्धन रगाता है । इस ववचाय को भान्मता दे ने वारों भें व्मन्क्तवाद , अयाजकतावादी, श्रभ
सॊघवादी तथा कुछ अन्म ववद्वान ् हैं। इस भत के अरग-अरग ववचाय ननम्नमरखखत हैं
1. व्मक्ततिाददमों के विचाय- व्मन्क्तवादी ववचायधाया याज्म के कामों को सीमभत कयने के ऩऺ भें है ।
व्मन्क्तवाटदमों के अनुसाय, ―वही शासन-प्रणारी श्रेष्ट्ठ है जो सफसे कभ शासन कयती है । ‘ न्जतने कभ
कानून होंगे , उतनी ही अर्धक स्वतन्त्रता होगी।
2. अयाजकतािाददमों के विचाय- अयाजकतावाटदमों की भान्मता है कक याज्म अऩनी शन्क्त के प्रमोग से
व्मन्क्त की स्वतन्त्रता को नष्ट्ट कयता है । इसीमरए अयाजकतावादी याज्म को सभाप्त कय दे ने के
सभथथक हैं। अयाजकतावादी ववचायक ववमरमभ गॉडववन के भतानस
ु ाय , ―कानन
ू सवाथर्धक घातक प्रकृनत
की सॊस्था है ।‖‗याज्म का कानून, दभन तथा उत्ऩीडन का एक नवीन मन्त्र है । ‖
3. श्रभ सॊघिाददमों के विचाय- भजदयू सॊघवाटदमों की भान्मता है कक याज्म के कानन
ू व्मन्क्त की स्वतन्त्रता
को सीमभत कयते हैं। इन कानूनों का प्रमोग सदै व ही ऩॉज
ू ीऩनतमों के टहतों को फढ़ावा दे ने हे तु ककमा
गमा, है । इससे भजदयू ों की स्वतन्त्रता नष्ट्ट होती है । चॊकू क याज्म के कानन
ू भजदयू ों के टहतों का
ववयोध कय ऩॉज
ू ीऩनतमों का सभथथन कयते हैं , इसमरए भजदयू सॊघवादी बी याज्म को सभाप्त कयने के
ऩऺधय हैं।
4. फहुरिाददमों के विचाय–फहुरवाटदमों की भान्मता है कक याज्म के ऩास न्जतनी अर्धक सत्ता होगी ,
व्मन्क्त को उतनी ही कभ स्वतन्त्रता होगी। इसमरए याज्म-सत्ता को अरग-अरग सभूहों भें
ववबान्जत कय टदमा जाना चाटहए।
उऩमुक्
थ त ववमबन्न ववचायों के अध्ममनोऩयान्त हभ मह ननष्ट्कषथ ननकारते हैं कक कानून एवॊ स्वतन्त्रता
भें कोई सम्फन्ध नहीॊ है , अथाथत ् मे ऩयस्ऩय ववयोधी हैं।
प्रश्न 4.
‗राॉग वाक टू िीडभ‘ ऩय टटप्ऩणी कीन्जए।
उत्तय-
20वीॊ शताब्दी के एक भहानतभ व्मन्क्त नेल्सन भण्डेरा की आत्भकथा को शीषथक ‗राॉग वाक टू िीडभ‘
(स्वतन्त्रता के मरए रम्फी मात्रा) है । इस ऩुस्तक भें उन्होंने दक्षऺण अिीका के यॊ गबेदी शासन के ववरुर्द्
अऩने व्मन्क्तत्व सॊघषथ, गोये रोगों के शासन की अरगाववादी नीनतमों के ववरुर्द् रोगों के प्रनतयोध औय
दक्षऺण अिीका के कारे रोगों द्वाया झेरे गए अऩभान , कटठनाइमों औय ऩुमरस अत्माचाय के ववषम भें फातें
की हैं। इन अरगाववादी नीनतमों भें एक शहय भें घेयाफन्दी ककए जाने औय दे श भें भुक्त आवागभन ऩय
योक रगाने से रेकय वववाह कयने भें भक्
ु त चमन तक ऩय प्रनतफन्ध रगाना । शामभर है । साभटू हक रूऩ से
इन सबी प्रनतफन्धों को नस्र के आधाय ऩय बेदबाव कयने वारी यॊ गबेदी सयकाय ने जफयदस्ती रागू ककमा
था। भण्डेरा औय उनके सार्थमों के मरए इन्हीॊ अन्मामऩूणथ प्रनतफन्धों औय स्वतन्तत्रा के यास्ते की फाधाओॊ
को दयू कयने का सॊघषथ ‗राॉग वाक टू िीडभ‘ (स्वतन्त्रता के मरए रम्फी मात्रा) था। ववशेष फात मह कक
भण्डेरा का सॊघषथ केवर कारे मा अन्म रोगों के मरए ही नहीॊ वयन ् श्वेत रोगों के मरए बी था।
प्रश्न 5.
अमबव्मन्क्त की स्वतन्त्रता ऩय याजनीनतक ववचायक मभर के ववचाय मरखखए।
उत्तय-
19वीॊ सदी के ब्रिटे न के एक याजनीनतक ववचायक जॉन स्टुअटथ मभर ने अमबव्मन्क्त तथा ववचाय औय
वववाद की स्वतन्त्रता का फहुत ही बावऩूणथ ऩऺ प्रस्तुत ककमा है । अऩनी ऩुस्तक ‗ऑन मरफटी‘ भें उसने
केवर चाय कायण प्रस्तुत ककए हैं कक अमबव्मन्क्त की स्वतन्त्रता उन्हें बी होनी चाटहए न्जनके ववचाय आज
की न्स्थनतमों भें गरत मा भ्राभक रग यहे हों।
प्रथभ कायण तो मह कक कोई बी ववचाय ऩूणथ रूऩ से गरत नहीॊ होता। जो हभें गरत रगता है उसभें
सच्चाई को तत्त्व होता है । अगय हभ गरत ववचाय को प्रनतफन्न्धत कय दें गे तो इसभें नछऩे सच्चाई के अॊश
को बी खो दें गे।
द्ववतीम कायण ऩहरे कायण से सम्फन्न्धत है । सत्म स्वमॊ भें उत्ऩन्न नहीॊ होता। सत्म ववयोधी ववचायों के
टकयाव से उत्ऩन्न होता है । जो ववचाय आज गरत प्रतीत होता है , वह सही तयह के ववचायों के उदम भें
फहुभल्
ू म हो सकती है ।
तत
ृ ीम, ववचायों का मह सॊघषथ केवर अतीत भें ही भूल्मवान नहीॊ था, फन्ल्क हय सभम इसका सतत भहत्त्व
है । सत्म के ववषम भें मह खतया हभेशा होता है कक वह एक ववचायहीन औय रूढ़ उन्क्त भें ऩरयवनतथत हो
जाए। जफ हभ इसे ववयोधी ववचाय के सभऺ यखते हैं तबी इस ववचाय का ववश्वसनीम होना। मसर्द् होता है ।
अन्न्तभ फात मह है कक हभ इस फात को रेकय बी ननन्श्चत नहीॊ हो सकते कक न्जसे हभ सत्म सभझते
हैं। वही सत्म है । कई फाय न्जन ववचायों को ककसी सभम ऩूये सभाज ने गरत सभझा औय दफामा था , फाद
भें सत्म ऩाए गए। कुछ सभाज ऐसे ववचायों का दभन कयते हैं जो आज उनके मरए स्वीकामथ नहीॊ हैं ,
रेककन मे ववचाय आने वारे सभम भें फहुत भूल्मवान ऻान भें फदर सकते हैं। दभनकायी सभाज ऐसे
सम्बावनाशीर ऻान के राबों से वॊर्चत यह जाते हैं।
दीघश उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता से आऩ क्मा सभझते हैं ? स्वतन्त्रता ककतने प्रकाय की होती है ? वववेचना कीन्जए।
मा स्वतन्त्रता की ऩरयबाषा दे ते हुए इसके ववमबन्न प्रकायों की व्माख्मा कीन्जए।
मा स्वतन्त्रता क्मों आवश्मक है ? सकायात्भक स्वतन्त्रता तथा नकायात्भक स्वतन्त्रता की ‗ अवधायणा को
स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
मा स्वतन्त्रता से आऩ क्मा सभझते हैं। नागरयकों को प्राप्त ववमबन्न स्वतन्त्रताओॊ का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय-
स्वतन्त्रता जीवन का सफसे भहत्त्वऩूणथ अर्धकाय है । फसथ के अनुसाय- ―स्वतन्त्रता न केवर सभ्म जीवन का
आधाय है , वयन ् सभ्मता का ववकास बी व्मन्क्तगत स्वतन्त्रता ऩय ही ननबथय कयता है । ‘ स्वतन्त्रता भानव की
सवथवप्रम वस्तु है । व्मन्क्त स्वबाव से स्वतन्त्रता चाहता है क्मोंकक व्मन्क्त के व्मन्क्तत्व के ववकास के मरए
स्वतन्त्रता सफसे आवश्मक तत्त्व है । भानव के सभस्त अर्धकायों भें स्वतन्त्रता का अर्धकाय सफसे
भहत्त्वऩूणथ है क्मोंकक इसके अबाव भें अन्म अर्धकायों का उऩमोग नहीॊ हो सकता है ।
स्ितन्त्रता का अथश
स्वतन्त्रता का अथथ दो रूऩों भें स्ऩष्ट्ट ककमा जाता है

1. स्ितन्त्रता का ननषेधात्भक अथश-


‗स्वतन्त्रता‘ शब्द अॊग्रेजी बाषा के मरफटी‘ (Liberty) शब्द का टहन्दी अनव
ु ाद है । ‗मरफटी‘ शब्द की उत्ऩन्त्त
रैटटन बाषा के ‗मरफय‘ (Liber) शब्द से हुई। ‗मरफय‘ का अथथ ‗फन्धनों का न होना‘ होता है । अत् स्वतन्त्रता
का शान्ब्दक अथथ ‗फन्धनों से भन्ु क्त‘ है अथाथत ् प्रत्मेक व्मन्क्त को ब्रफना ककसी फन्धन के अऩनी इच्छानस
ु ाय
सबी कामों को कयने की सुववधा प्राप्त होना ही ‗स्वतन्त्रता है ।
वस्तत
ु : स्वतन्त्रता का मह अथथ अनर्ु चत है क्मोंकक मटद हभ कहें कक कोई बी व्मन्क्त ककसी की हत्मा
कयने के मरए स्वतन्त्र है , तो मह स्वतन्त्रता न होकय अयाजकता है । इस दृन्ष्ट्ट से भैकेंजी ने ठीक ही मरखा
है , ―ऩूणथ स्वतन्त्रता जॊगरी गधे की आवायागदी की स्वतन्त्रता है । ‖ इस सम्फन्ध भें फाकथय (Barker) का भत
है -―कुरूऩता के अबाव को सौन्दमथ नहीॊ कहते , इसी प्रकाय फन्धनों के अॊबाव को स्वतन्त्रता नहीॊ कहते ,
अवऩतु अवसयों की प्रान्प्त को स्वतन्त्रता कहते हैं। ‖
2. स्ितन्त्रता का सकायात्भक अथश-
स्वतन्त्रता को वास्तववक अथथ भनुष्ट्म के भौमरक अर्धकायों की सुयऺा तथा ऐसे फन्धनों का अबाव है , जो
भनुष्ट्म के व्मन्क्तत्व के ववकास भें फाधक हों। स्वतन्त्रता के सकायात्भक ऩऺ को स्ऩष्ट्ट कयते हुए ग्रीन ने
मरखा है , ‗मोग्म कामथ कयने अथवा उसके उऩमोग कयने की सकायात्भक शन्क्त को स्वतन्त्रता कहते हैं।
इसी प्रकाय सकायात्भक ऩऺ के सम्फन्ध भें रॉस्की का कथन है , ―स्वतन्त्रता से अमबप्राम ऐसे वातावयण को
फनाए यखना है , न्जसभें कक व्मन्क्त को अऩना ऩूणथ ववकास कयने का अवसय मभरे। स्वतन्त्रता का उदम
अर्धकायों से होता है । स्वतन्त्रता ऩय वववेकऩण
ू थ प्रनतफन्ध आयोवऩत कयने का ऩऺधय है ।
स्ितन्त्रता की ऩरयबाषाएॉ
स्वतन्त्रता की कुछ भहत्त्वऩूणथ ऩरयबाषाओॊ का वववेचन ननम्नमरखखत है

ु ाय- ―स्वतन्त्रता का वास्तववक अथथ याज्म की ओय से ऐसे वातावयण का ननभाथण कयना


1. रॉस्की के अनस
है , न्जसभें कक व्मन्क्त आदशथ नागरयक जीवन व्मतीत कयने मोग्म फन सके तथा अऩने व्मन्क्तत्व
का ऩण
ू थ ववकास कय सके।
ु ाय- ―स्वतन्त्रता सफ प्रकाय के फन्धनों का अबाव नहीॊ , अवऩतु तकथयटहत प्रनतफन्धों के
2. भैकेंजी के अनस
स्थान ऩय तकथसॊगत प्रनतफन्धों की स्थाऩना है । ‘
ु ाय – स्वतन्त्रता प्रनतफन्धों का अबाव नहीॊ , ऩयन्तु वह ऐसे ननमन्त्रणों का अबाव है , जो
3. फाकशय के अनस
भनष्ट्ु म के ववकास भें फाधक हो।‖
ु ाय- ―प्रत्मेक व्मन्क्त जो चाहता है , वह कयने के मरए स्वतन्त्र है , फशते। |, कक वह
4. हयफिश स्ऩेंसय के अनस
ककसी अन्म व्मन्क्त की सभान स्वतन्त्रता का अनतक्रभण न कये । ‖
ु ाय- ―उन कानूनों का ऩारन कयना न्जन्हें हभ अऩने मरए ननधाथरयत कयते हैं , स्वतन्त्रता
5. रूसो के अनस
है ।‖
ु ाय- ―स्वतन्त्रता उन सफ कामों को कयने का अर्धकाय है न्जनकी स्वीकृनत कानून
6. भॉण्िे स्तमू के अनस
दे ता है ।‖
ु ाय- ―स्वतन्त्रता उन कामों को कयने अथवा उन वस्तुओॊ के उऩबोग कयने की
7. ग्रीन के अनस
शन्क्त है जो कयने मा उऩबोग के मोग्म हैं। ‖
उऩमुक्
थ त ऩरयबाषाओॊ का ववश्रेषण कयने से मह तो स्ऩष्ट्ट हो जाता है कक स्वतन्त्रता स्वेच्छाचारयता
का नाभ नहीॊ है आऩ वहीॊ तक स्वतन्त्र हैं जहाॉ तक दस
ू ये की स्वतन्त्रता फार्धत नहीॊ होती। ऐसी
न्स्थनत भें साभान्म भानदण्डों का ध्मान यखना ऩडता है ।
स्ितन्त्रता के प्रकाय (रूऩ)
स्वतन्त्रता के ववमबन्न रूऩ तथा उनका सॊक्षऺप्त वववयण इस प्रकाय है
1. प्राकृनतक स्ितन्त्रता- इस प्रकाय की स्वतन्त्रता के तीन अथथ रगाए जाते हैं। ऩहरा अथथ मह है ।
कक स्वतन्त्रता प्राकृनतक होती है । वह प्रकृनत की दे न है तथा भनुष्ट्म जन्भ से ही स्वतन्त्र होता है । इसी
ववचाय को व्मक्त कयते हुए रूसो ने मरखा है , ―भनुष्ट्म स्वतन्त्र उत्ऩन्न होता है ; ककन्तु वह सवथत्र फन्धनों भें
जकडा हुआ है । ‖ (Man is born free but everywhere he is in chains.) इस प्रकाय प्राकृनतक स्वतन्त्रता का
अथथ भनुष्ट्मों की अऩनी इच्छानुसाय कामथ कयने की स्वतन्त्रता है । दस
ू ये अथथ के अनुसाय , भनुष्ट्म को वही
स्वतन्त्रता प्राप्त हो, जो उसे प्राकृनतक अवस्था भें प्राप्त थी। तीसये अथथ के अनस
ु ाय , प्रत्मेक भनष्ट्ु म
स्वबावत् मह अनुबव कयता है कक स्वतन्त्रता का ववचाय इस रूऩ भें भान्म है कक सबी सभान हैं औय
उन्हें व्मन्क्तत्व के ववकास हे तु सभान
सुववधाएॉ प्राप्त होनी चाटहए।
2. नागरयक स्ितन्त्रता- नागरयक स्वतन्त्रता का अमबप्राम व्मन्क्त की उन स्वतन्त्रताओॊ से है । न्जनको एक
व्मन्क्त सभाज मा याज्म का सदस्म होने के नाते प्राप्त कयता है । गैटटर के शब्दों भें , ―नागरयक स्वतन्त्रता
उन अर्धकायों एवॊ ववशेषार्धकायों को कहते हैं , न्जनकी सन्ृ ष्ट्ट याज्म अऩने नागरयकों के मरए कयता है ।
सम्ऩन्त्त अन्जथत कयने औय उसे सुयक्षऺत यखने की स्वतन्त्रता, ववचाय औय अमबव्मन्क्त की स्वतन्त्रता तथा
कानून के सभऺ सभानता आटद
स्वतन्त्रताएॉ नागरयक स्वतन्त्रता के अन्तगथत ही सन्म्भमरत की जाती है ।
3. याजनीनतक स्ितन्त्रता- इस स्वतन्त्रता के अनुसाय प्रत्मेक नागरयक ब्रफना ककसी वणथगत , मरॊगगत, वॊशगत,
जानतगत, धभथगत बेदबाव के प्रत्मऺ अथवा अप्रत्मऺ रूऩ से शासन-कामों भें बाग रे सकता है । इस
स्वतन्त्रता की व्माख्मा कयते हुए रॉस्की ने मरखा है , ―याज्म के कामों भें सकक्रम बाग रने की शन्क्त ही
याजनीनतक स्वतन्त्रता है । ‖ याजनीनतक स्वतन्त्रता के अन्तगथत भतार्धकाय, ननवाथर्चत होने का अर्धकाय तथा
सयकायी ऩद प्राप्त कयने का अर्धकाय, याजनीनतक दरों तथा दफाव-सभूहों के ननभाथण आटद सन्म्भमरत ककए
जाते हैं। शान्न्तऩण
ू थ साधनों के आधाय ऩय सयकाय का ववयोध कयने का अर्धकाय बी याजनीनतक स्वतन्त्रता
भें सन्म्भमरत ककमा जाता है ।
4. आचथशक स्ितन्त्रता- आर्थथक स्वतन्त्रता का अथथ प्रत्मेक व्मन्क्त को योजगाय अथवा अऩने श्रभ के अनुसाय
ऩारयश्रमभक प्राप्त कयने की स्वतन्त्रता है । आर्थथक स्वतन्त्रता की ऩरयबाषा दे ते हुए रॉस्की ने मरखा है ,
―आर्थथक स्वतन्त्रता से भेया अमबप्राम मह है कक प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩनी प्रनतटदन की जीववका उऩान्जथत
कयने की स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाटहए। वस्तुत: मह स्वतन्त्रता योजगाय प्राप्त कयने की स्वतन्त्रता है ।
इसका अथथ मह है कक प्रत्मेक व्मन्क्त को योजगाय मा अऩने श्रभ के अनुसाय ऩारयश्रमभक प्राप्त कयने की
स्वतन्त्रता प्राप्त हो तथा ककसी प्रकाय बी उसके श्रभ को दस
ू ये के द्वाया शोषण न ककमा जा सके।
5. धासभशक स्ितन्त्रता- प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩने धभथ का ऩारन कयने की सुववधा ही धामभथक स्वतन्त्रता
कहराती है । इस प्रकाय की स्वतन्त्रता के मरए मह आवश्मक है कक याज्म ककसी धभथ-ववशेष के साथ
ऩऺऩात न कयके सबी धभों का सभान रूऩ से सम्भान कये । साथ ही ककसी व्मन्क्त को फरऩूवक
थ धभथ
ऩरयवतथन हे तु प्रेरयत न ककमा जाए औय न ही उसकी धामभथक बावनाओॊ को ठे स ऩहुॉचाई जाए।
6. नैनतक स्ितन्त्रता- व्मन्क्त को अऩनी अन्तयात्भा के अनुसाय व्मवहाय कयने की ऩूयी सुववधा प्राप्त होना ही
नैनतक स्वतन्त्रता है । काण्ट, हीगर, ग्रीन आटद ववद्वानों ने नैनतक स्वतन्त्रता का प्रफर सभथथन ककमा है ।
7. व्मक्ततगत स्ितन्त्रता- व्मन्क्तगत स्वतन्त्रता का अथथ है कक व्मन्क्त के उन कामों ऩय कोई प्रनतफन्ध नहीॊ
होना चाटहए, न्जनका सम्फन्ध केवर उसके व्मन्क्तत्व से ही हो। इस प्रकाय के कामों भें बोजन , वस्त्र, धभथ
तथा ऩारयवारयक जीवन को सन्म्भमरत ककमा जा सकता है ।
8. साभाक्जक स्ितन्त्रता- सबी व्मन्क्तमों को सभाज भें अऩना ववकास कयने की सुववधा प्राप्त होना ही
साभान्जक स्वतन्त्रता है । सभाज भें प्रत्मेक व्मन्क्त साभान्जक कक्रमा-कराऩों आटद भें ब्रफना ककसी बेदबाव
के सन्म्भमरत होने के मरए स्वतन्त्र है ।
9. याष्ट्रीम स्ितन्त्रता- याष्ट्रीम स्वतन्त्रता; याजनीनतक स्वतन्त्रता तथा आत्भ-ननणथम के अर्धकाय से सम्फन्न्धत
है । इस प्रकाय की स्वतन्त्रता के अन्तगथत याष्ट्र को बी स्वतन्त्र होने का अर्धकाय प्राप्त होना चाटहए।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता को सुननन्श्चत कयने के मरए आवश्मक ववर्धमों का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
मा ―स्वतन्त्रता का भल्
ू म ननयन्तय सतकथता है । ‖ इस कथन की व्माख्मा कीन्जए।
उत्तय-
स्वतन्त्रता को सनु नन्श्चत कयने की ववर्धमाॉ नागरयकों की स्वतन्त्रता की सयु ऺा के मरए ननम्नमरखखत
ववर्धमों को अऩनामा गमा है
1. विर्ेषाचधकाय- ववहीन सभाज की स्थाऩना–स्वतन्त्रता की सयु ऺा उसी सभम सम्बव है । जफकक सभाज भें
कोई वगथ अथवा सभूह ववशेषार्धकायों से मुक्त नहीॊ होता है तथा सबी व्मन्क्त एक-दस
ू ये के ववचायों का
आदय तथा सम्भान कयते हैं। व्मन्क्तमों भें ऊॉच-नीच की बावना स्वतन्त्रता का हनन कयती है । मटद सभाज
भें कोई ववशेषार्धकायमुक्त वगथ होता है तो वह अन्म वगों के ववकास भें फाधक फन जाता है तथा दस
ू ये
वगथ अऩनी साभान्जक व याजनीनतक स्वतन्त्रता का उऩबोग नहीॊ कय सकते हैं।
2. अचधकायों की सभानता- अर्धकाय व्मन्क्त की स्वतन्त्रता के द्मोतक हैं। न्जस सभाज भें व्मन्क्तमों को
साभान्जक व याजनीनतक अर्धकाय प्रदान नहीॊ ककए जाते हैं , उस सभाज के नागरयक स्वतन्त्रता का
वास्तववक उऩबोग नहीॊ कय ऩाते हैं। मटद अर्धकायों भें सभानता नहीॊ होगी
तो स्वतन्त्रता का उऩबोग नागरयक नहीॊ कय सकेंगे।
3. याज्म द्िाया कामों ऩय ननमन्त्रण– मटद नागरयकों की स्वतन्त्रता की सयु ऺा कयनी है तो याज्म द्वाया नागरयकों
के कामों ऩय ननमन्त्रण ककमा जाना चाटहए। याज्म का कतथव्म है कक वह व्मन्क्त को ऐसे कामों को कयने से
योक दे जो दस
ू यों के टहतों का उल्रॊघन कयते हैं।
ू ों का ननभाशण-कबी- कबी सयकाय वगथ-ववशेष के टहतों का ध्मान यखकय कानून का
4. रोक- दहतकायी कानन
ननभाथण कयती है । उस ऩरयन्स्थनत भें सयकाय द्वाया ननमभथत कानन
ू आरोचना का ववषम फन जाते हैं औय
सभाज भें असन्तोष व्माप्त हो जाता है , न्जसके ऩरयणाभस्वरूऩ व्मन्क्त अऩनी स्वतन्त्रता का उऩबोग कयने
से वॊर्चत हो जाते हैं। इस ववषभ ऩरयन्स्थनत ऩय ननमन्त्रण कयने के मरए मह आवश्मक है कक सयकाय जो
बी कानून फनाए वह रोकटहत का ध्मान यखकय ही फनाए। रोकटहत के आधाय ऩय ननमभथत कानून सभाज
भें सभानता व स्वतन्त्रता की सयु ऺा • कयते हैं।
5. भौसरक अचधकायों को भान्मता– ववमबन्न प्रकाय के अर्धकायों के उऩबोग की सुववधा का होना ही स्वतन्त्रता
भानी जाती है , अतएव ववद्वानों का भत है कक भौमरक अर्धकायों को सॊवैधाननक भान्मता होनी चाटहए।
भौमरक अर्धकायों का अनतक्रभण कयने वारों को न्मामारम द्वाया दन्ण्डत ककए जाने की व्मवस्था होनी
चाटहए। मटद भौमरक अर्धकायों को सॊवैधाननक भान्मता प्रदान की जाती है तो स्वतन्त्रता की सुयऺा स्वमॊ
ही हो जाएगी।
6. रोकतन्त्रात्भक र्ासन- प्रणारी की स्थाऩना-रोकतन्त्रात्भक शासन- प्रणारी भें नागरयकों को बाषण , भ्रभण
तथा ववचाय व्मक्त कयने की ऩण
ू थ स्वतन्त्रता मभरती है , अतएव रोकतन्त्रात्भक शासन-प्रणारी की स्थाऩना
कयके हभ नागरयकों की स्वतन्त्रता की यऺा कय सकते हैं।
7. ननष्ट्ऩऺ एिॊ स्ितन्त्र न्मामारमे- न्माम नागरयकों की स्वतन्त्रता की सयु ऺा की प्रथभ दशा है । मटद नागरयकों
को ननष्ट्ऩऺ व स्वतन्त्र न्माम मभरने भें फाधा आएगी तो वे ननयाश हो जाएॉगे , उनके व्मन्क्तत्व का ववकास
अवरुर्द् हो जाएगा अतएव व्मन्क्त की स्वतन्त्रता की यऺा कयने के मरए
मह आवश्मक है कक स्वतन्त्र न्मामऩामरका की स्थाऩना की जाए।
8. स्थानीम स्िर्ासन की स्थाऩना- नागरयकों के याजनीनतक ऻान की ववृ र्द् उसी सभम सम्बव है । जफकक
नागरयक स्वतन्त्र रूऩ से शासन के कामों भें बाग रें औय शासन-सम्फन्धी नीनतमों से ऩरयर्चत हों। इस
प्रकाय की व्मवस्था कयने का एकभात्र उऩाम शन्क्तमों का ववकेन्द्रीकयण औय
स्थानीम स्वशासन की स्थाऩना कयना है ।
9. नागरयक चेतना- नागरयक अऩनी स्वतन्त्रता सभाप्त कय सकते हैं , मटद वे उसके प्रनत जागरूक न यहें ।
मशर्थरता व उदासीनता आने ऩय नागरयक अऩनी स्वतन्त्रता सभाप्त कय दे ते हैं इसमरए स्वतन्त्रता की
सुयऺा के मरए मह अननवामथ है कक नागरयक शासन की ननयॊ कुशता के प्रनत जागरूक यहें ।
10. याजनीनतक दरों को सदृु ढ़ सॊगठन– याजनीनतक दर शासन की नीनत के आरोचक होते हैं।
मटद सयकाय नागरयकों की स्वतन्त्रता ऩय कुठायाघात कयती है तो याजनीनतक दर सयकाय के ववरुर्द् जन-
क्रान्न्त कयाकय शासन सत्ता को ऩरयवनतथत कयते हैं। इस सम्फन्ध भें रॉस्की का कथन है , ―याजनीनतक दर
दे श भें सीजयशाही से हभायी यऺा कयने के सवोत्तभ साधन हैं। ‖
11. प्रचाय के साधनों की प्रचयु ता- स्वतन्त्रता के प्रनत नागरयकों को जागरूक फनाए यखने के मरए दे श भें प्रचाय
तथा प्रसाय के साधनों की प्रचुयता होना आवश्मक है । इनके भाध्मभ से नागरयकों को याजनीनतक ऺेत्र भें
जाग्रत यखा जा सकता है । स्वतन्त्र एवॊ ननष्ट्ऩऺ प्रेस के भाध्मभ से नागरयकों भें स्वतन्त्रता के प्रनत चेतना
अथवा जागरूकता उत्ऩन्न की जा सकती है ।
ै ाननक उऩचायों की व्मिस्था– मटद याज्म मा कोई व्मन्क्त नागरयक के अर्धकायों का अनतक्रभण कये तो
12. सॊिध
न्मामारम को हस्तऺेऩ कयके नागरयकों के अर्धकायों की सुयऺा कयनी चाटहए। इसी को सॊवैधाननक उऩचाय
बी कहा जाता है ।
13. आचथशक असभानता का अन्त– स्वतन्त्रता की यऺा के मरए आर्थथक असभानता का अन्त
कयके आर्थथक सभानता की व्मवस्था कयनी चाटहए।
14. र्क्तत-ऩथ ु न– स्वतन्त्रता की यऺा के मरए कुछ सीभा तक शन्क्त-ऩथ
ृ तकयण तथा अियोध औय सन्तर ृ क्कयण
तथा कुछ सीभा तक अवयोध एवॊ सन्तुरन के मसर्द्ान्त को अऩनाना आवश्मक है ।
स्वतन्त्रता को न्स्थय एवॊ सुदृढ़ फनाने के मरए उऩमुक्
थ त साधनों का होना अननवामथ है । रोकतन्त्रात्भक
शासन-प्रणारी भें मे व्मवस्थाएॉ सम्बव हो सकती हैं क्मोंकक इस प्रणारी भें वास्तववक सत्ता का केन्द्र
जनता ही होती है । कोई बी सयकाय जनता की इच्छाओॊ , बावनाओॊ तथा आकाॊऺाओॊ की अवहे रना कयके
अर्धक सभम तक सत्ता भें कामभ नहीॊ यह सकती है । अत् रोकतन्त्रात्भक शासन-प्रणारी भें नागरयकों की
स्वतन्त्रता ऩूणथ रूऩ से सुयक्षऺत यहती है ।

फहुविकल्ऩीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सभानता का सही अथथ क्मा है ?
(क) प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩने सही ववकास के मरए सभान सुववधाएॉ प्राप्त हों औय दे श के
कानून के सभऺ सबी सभान हों।
(ख) सबी को सभान भजदयू ी व सम्ऩन्त्त प्राप्त हो
(ग) सबी को ननवास की सुववधा
(घ) सबी को सभान मशऺा व योजगाय
उत्तय-
(क) प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩने सही ववकास के मरए सभान सवु वधाएॉ प्राप्त हों औय दे श के कानन
ू के सभऺ
सबी सभान हों।
प्रश्न 2.
नागरयक मा कानूनी सभानता ननम्नमरखखत भें ककसकी ववशेषता है ?
(क) सबी प्रजातान्न्त्रक सयकायों की
(ख) सबी प्रकाय की सयकायों की
(ग) केवर तानाशाही सयकायों की
(घ) न्जन दे शों भें मरखखत सॊववधान है ।
उत्तय-
(क) सबी प्रजातान्न्त्रक सयकायों की।
प्रश्न 3.
कानून के सभऺ सभानता ननम्नमरखखत श्रेखणमों भें ककसके अन्तगथत हैं ?
(क) याजनीनतक सभानता के अन्तगथत
(ख) साभान्जक सभानता के अन्तगथत ।
(ग) नागरयक सभानता के अन्तगथत
(घ) आर्थथक सभानता के अन्तगथत
उत्तय-
(ग) नागरयक सभानता के अन्तगथत।
प्रश्न 4.
नकायात्भक दृन्ष्ट्ट से सभानता का क्मा अथथ है ?
(क) ववशेष अर्धकायों का अबाव
(ख) कभजोय वगथ के मरए ववशेष अर्धकायों का प्रावधान
(ग) शासक वगथ के मरए ववशेष सुववधाओॊ की व्मवस्था
(घ) इनभें से कोई नहीॊ
उत्तय-
(क) ववशेष अर्धकायों का अबाव।
प्रश्न 5.
सभानता को सकायात्भक अथथ क्मा है ?
(क) सभाज के सबी सदस्मों की प्राथमभक आवश्मकताओॊ की ऩूनतथ
(ख) सबी के मरए ऩमाथप्त अवसयों की व्मवस्था
(ग) सभानता जो कानून की शन्क्त द्वाया सभर्थथत होती है ।
(घ) प्रकृनत प्रदत्त सभानता
उत्तय-
ख) सबी के मरए ऩमाथप्त अवसयों की व्मवस्था।
प्रश्न 6.
साभान्जक सभानता का क्मा अथथ है ?
(क) प्रत्मेक व्मन्क्त अऩनी ऺभता के अनुसाय कामथ कये
(ख) वतथभान साभान्जक व्मवस्था को फदरने का कोई प्रमत्न न हो
(ग) जानत व धभथ के अन्तय के कायण ककसी बी व्मन्क्त को हीनता के बाव से ऩीडडत न होना ऩडे
(घ) कभजोय वगथ की आर्थथक उन्ननत के मरए ववशेष प्रमत्न हों।
उत्तय-
(ग) जानत व धभथ के अन्तय के कायण ककसी बी व्मन्क्त को हीनता के बाव से ऩीडडत न होना ऩडे।
प्रश्न 7.
―आर्थथक सभानता के अबाव भें याजनीनतक स्वतन्त्रता केवर एक भ्रभ है । ‖ मह भत ककसका है ?
(क) प्रेटो
(ख) भाक्सथ
(ग) कोर
(घ) रॉस्की
उत्तय-
(ग) कोर।
प्रश्न 8.
―स्वतन्त्रता तथा सभानता एक-दस
ू ये की ववयोधी हैं। ‖ मह कथन ककसका है ?
(क) रॉडथ एक्टन
ख) रॉस्की
(ग) कारथ भाक्सथ
(घ) प्रेटो
उत्तय-
(क) रॉडथ एक्टन।
प्रश्न 9.
‗एक व्मन्क्त एक वोट का मसर्द्ान्त ककससे सम्फन्न्धत है ? |
(क) आर्थथक सभानता ।
(ख) याजनीनतक सभानता
(ग) साभान्जक सभानता
(घ) नागरयक सभानता
उत्तय-
(ख) याजनीनतक सभानता।
प्रश्न 10.
―सभानता की उत्कट अमबराषा के कायण स्वतन्त्रता की आशा ही व्मथथ हो गई है । मह कथन ककस
ववद्वान का है ?
(क) रॉडथ एक्टन
(ख) रासवैर
(ग) डेववड ईस्टन
(घ) पाइनय
उत्तय-
(क) रॉडथ एक्टन।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
साभान्जक सभानता का अथथ मरखखए।
उत्तय–
प्रत्मेक व्मन्क्त को सभाज भें यहकय अऩने सवाांगीण ववकास का अवसय प्राप्त होना ही साभान्जक सभानता
के अथथ का ऩरयचामक है ।
प्रश्न 2.
सभानता के दो प्रकाय मरखखए।
उत्तय–
सभानता के दो प्रकाय हैं
(i) याजनीनतक सभानता, तथा
(ii) आर्थथक सभानता।
प्रश्न 3.
―स्वतन्त्रता औय सभानता एक-दस
ू ये की ऩूयक हैं। ‖ एक तकथ दीन्जए।
उत्तय-
रोकतन्त्र की सपरता के मरए स्वतन्त्रता औय सभानता दोनों ही आवश्मक हैं , इसमरए मे दोनों एक-दस
ू ये
की ऩूयक हैं।
प्रश्न 4.
सभानता के अर्धकाय को बायत के सॊववधान भें ककस अनुच्छे द से ककस अनुच्छे द तक वखणथत ककमा गमा
है ?
उत्तय-
सभानता के अर्धकाय को बायतीम सॊववधान भें अनच्
ु छे द 14 से 18 तक वखणथत ककमा गमा है ।
प्रश्न 5.
―आर्थथक स्वतन्त्रता के ब्रफना याजनीनतक स्वतन्त्रता एक भ्रभ है । ‖ मह कथन ककसका है ?
उत्तय-
मह कथन प्रो० सी०ई०एभ० जोड का है ।
प्रश्न 6.
सभानता के ककसी एक प्रकाय का वणथन कीन्जए।
उत्तय-
सभानता का एक प्रकाय है —प्राकृनतक सभानता।
प्रश्न 7.
नागरयक सभानता का क्मा अथथ है ?
उत्तय-
नागरयक सभानता का अथथ है कक याज्म प्रत्मेक नागरयक को वॊश , जानत, धभथ, मरॊग इत्माटद के आधाय ऩय
ब्रफना बेदबाव ककए सभान रूऩ से नागरयक अर्धकाय प्रदान कये ।
प्रश्न 8.
याजनीनतक सभानता से क्मा तात्ऩमथ है ?
उत्तय–
याजनीनतक सभानता से तात्ऩमथ है –सभान याजनीनतक अर्धकाय।
प्रश्न 9.
प्राकृनतक सभानता से क्मा तात्ऩमथ है ?
उत्तय–
प्राकृनतक सभानता का अमबप्राम है कक प्रकृनत ने सबी भनुष्ट्मों को सभान फनामा है ।
प्रश्न 10.
सकायात्भक सभानता से क्मा अमबप्राम है ?
उत्तय-
सकायात्भक सभानता से अमबप्राम है कक प्रत्मेक व्मन्क्त को ब्रफना ककसी बेदबाव के ववकास के सभान
अवसय प्रदान ककए जाएॉ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सभानता के भाक्सथवादी दृन्ष्ट्टकोण को सॊऺेऩ भें सभझाइए।
उत्तय-
सभानता के सन्दबथ भें भाक्सथवादी दृन्ष्ट्टकोण इस फात का प्रनतऩादन कयता है कक जफ तक सभाज भें
ववयोधी वगों का अन्स्तत्व यहे गा तफ तक ककसी बी रूऩ भें सभानता की स्थाऩना नहीॊ की जा सकती है ।
आर्थथक सभानता को तफ तक रागू नहीॊ ककमा जा सकता जफ तक कक ऩॉज
ू ीवादी व्मवस्था ऩय आधारयत
व्मन्क्तगत ऩॉज
ू ी को सभाप्त कयके उत्ऩादन, ववतयण ववननभम के साधनों को सभाज के सबी वगों भें
ववबक्त न कय टदमा जाए। अत: भाक्सथवादी आर्थथक असभानता को बी सभाज भें एक वगथ के द्वाया दस
ू ये
वगथ के शोषण एवॊ उत्ऩीडन के मरए उत्तयदामी भानता है । भाक्र्द्स को मह बी भत है कक ऩॉज
ू ीवादी याज्मों
भें याजनीनतक एवॊ साभान्जक सभानता का जो आडम्फय यचा जा यहा है उसने ऩूणत
थ मा भ्रभऩूणथ न्स्थनत
उत्ऩन्न कय दी है । क्मोंकक आर्थथक सभानता के अबाव भें ककसी प्रकाय की बी सभानता स्थावऩत नहीॊ की
जा सकती है ।
प्रश्न 2.
नकायात्भक सभानता का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
उत्तय–
साभान्म रूऩ भें नकायात्भक स्वतन्त्रता का अथथ है , ‗ववशेषार्धकायों का अन्त‘। सभाज के ककसी वगथ-ववशेष
को जन्भ, धभथ, जानत मा यॊ ग के आधाय ऩय ककसी प्रकाय के ववशेष अर्धकाय प्रदान न ककए जाएॉ , तो मह
नकायात्भक सभानता का द्मोतक है । याज्म को चाटहए कक वह ब्रफना बेदबाव के नागरयकों को व्मन्क्त के
ववकास के सभान अवसय प्रदान कये । रोगों भें प्राकृनतक कायणों से अथाथत ् जन्भजात असभानता हो सकती
है , ऩयन्तु अप्राकृनतक कायणों से अथाथत ् ऩैतक
ृ ऩरयन्स्थनतमों अथवा याज्म द्वाया ककए गए बेदबाव के
ऩरयणाभस्वरूऩ ककसी प्रकाय की असभानता नहीॊ होनी चाटहए। छुआछूत का अन्त व सफको शैऺखणक
सॊस्थाओॊ भें प्रवेश का अर्धकाय नकायात्भक सभानता के उदाहयण हैं।
प्रश्न 3.
सकायात्भक सभानता का सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
उत्तय–
साभान्मतमा इसका अथथ है कक प्रत्मेक व्मन्क्त को उसके व्मन्क्तत्व के ववकास हे तु ऩमाथप्त अवसय मभरें
तथा याज्म के द्वाया उनभें कोई फाधा उत्ऩन्न न की जाए। मटद सबी को सभान अवसय न मभरें तो
भनष्ट्ु म का सवाांगीण ववकास नहीॊ हो सकता है । प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩनी मोग्मता व प्रनतबा ववकमसत
कयने का सभान अवसय प्राप्त होना चाटहए। रॉस्की के अनुसाय , ―सभानता का तात्ऩमथ एक-सा व्मवहाय
कयना नहीॊ, इसका तो आग्रह इस फात के मरए है कक भनष्ट्ु मों को सख
ु का सभान अर्धकाय प्राप्त होना
चाटहए। उनके अर्धकायों भें ककसी प्रकाय का आधायबूत अन्तय स्वीकाय नहीॊ ककमा जा सकता है । सभानता
भूरत् सभाजीकयण की एक प्रकक्रमा है —प्रथभत् इसका अमबप्राम ववशेषार्धकायों की सभान्प्त है -‖ औय
दस
ू ये , व्मन्क्तमों को ववकास के ऩमाथप्त एवॊ सभान अवसय उऩरब्ध कयाने से है । ‖
इस प्रकाय याजनीनत ववऻान के सभानता का तात्ऩमथ ऐसी ऩरयन्स्थनतमों के अन्स्तत्व से होता है न्जससे
व्मन्क्तमों को अऩने व्मन्क्तत्व के ववकास के सभान अवसय मभरें , न्जससे असभानता का अन्त हो जाए
न्जसका भूर साभान्जक असभानता है ।
प्रश्न 4.
कानून के सभऺ सभानता के मसर्द्ान्त को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय-
कानून के सभऺ सभानता का अथथ होता है कक कानून के सभऺ सबी व्मन्क्त सभान है तथा इसके
अन्तगथत सबी व्मन्क्तमों के मरए याज्म सभान कानून फनाता है तथा उन्हें सभान रूऩ से रागू कयता है ।
कानून के सम्फन्ध भें याज्म धनी-ननधथन , ऊॉच-नीच, गोये -कारे, साऺय-ननयऺय आटद का कोई बेद नहीॊ कयता
है । जन्भ, वॊश, मरॊग तथा जन्भ-स्थान के आधाय ऩय कानून ककसी बी व्मन्क्त को प्राथमभकता प्रदान नहीॊ
कयता है । ऩन्श्चभ फॊगार फनाभ अनवय अरी के भुकदभे भें बायतीम उच्चतभ न्मामारम ने कहा था कक
सभान ऩरयन्स्थनतमों भें सबी रोगों के साथ कानन
ू का व्मवहाय एक-सा होना चाटहए। कानन
ू ी सभानता के
सम्फन्ध भें इसी प्रकाय की फात डामसी ने बी कही थी। डामसी के शब्दों भें , ―हभाये दे श भें प्रत्मेक
अर्धकायी चाहे वह प्रधानभॊत्री हो मा ऩमु रस का मसऩाही अथवा का वसर
ू कयने वारा , अवैधाननक कामों के
मरए उतना ही दोषी भाना जाएगा, न्जतना कक कोई अन्म नागरयका‖
प्रश्न 5.
आर्थथक सभानता के ककन्हीॊ ऩाॉच तत्त्वों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय–
आर्थथक सभानता के ऩाॉच तत्त्व ननम्नमरखखत हैं
1. प्रत्मेक व्मन्क्त की न्मूनतभ बौनतक आवश्मकताओॊ की ऩूनतथ होनी चाटहए ; जैसे-वस्त्र, बोजन तथा
आवास आटद की सवु वधाएॉ।
2. प्रत्मेक व्मन्क्त को योजगाय, ऩमाथप्त भजदयू ी तथा ववश्राभ के मरए ऩमाथप्त अवकाश प्राप्त होना
चाटहए।
3. सभान कामथ के मरए सभान वेतन मभरना चाटहए।
4. फेकायी, वर्द्
ृ ावस्था, फीभायी व अन्म ऐसी न्स्थनतमों भें रोगों को याज्म की ओय से आर्थथक सहामता
मभरनी चाटहए।
5. ववमबन्न रोगों भें आर्थथक ववषभता की दयू ी कभ-से-कभ होनी चाटहए।
प्रश्न 6.
नीचे दी गई तामरका भें ववमबन्न सभद
ु ामों की शैक्षऺक न्स्थनत से जड
ु े कुछ आॉकडे टदए गए हैं। इन
सभुदामों की शैक्षऺक न्स्थनत भें जो अन्तय हैं , क्मा वे भहत्त्वऩूणथ हैं ? क्मा इन अन्तयों का होना केवर एक
सॊमोग है मा मे अन्तय जानत-व्मवस्था केअसय की ओय सॊकेत कयते हैं ? आऩ महाॉ जानत-व्मवस्था के
अरावा औय ककन कायणों का प्रबाव दे खते हैं।
शहयी बायत भें उच्च मशऺा भें जानतगत सभुदामों भें असभानता

स्रोत- नेशनर सेम्ऩर सवे आगेनाइजेशन, 55 वाॉ याउण्ड सवे,1999-2000.


उत्तय–
शैक्षऺक न्स्थनत भें अन्तय भहत्त्वऩूणथ हैं , क्मोंकक सबी को मशऺा का सभान अर्धकाय प्राप्त है । कपय बी मह
अन्तय फना हुआ है जो हभायी मशऺा व्मवस्था की कमभमों ऩय हभाया ध्मान आकृष्ट्ट कयता है । इन अन्तयों
का होना सॊमोग नहीॊ है । मह असपर मशऺा प्रणारी का ऩरयणाभ है । इसका अन्म कायण
आर्थथक असभानता, जागरूकता की कभी बी है ।
प्रश्न 7.
इन र्चत्रों ऩय एक नजय डारें।
मे र्चत्र क्मा सॊकेत कयते हैं ?
उत्तय-
मे र्चत्र भनष्ट्ु मों के फीच नस्र औय यॊ ग के आधाय ऩय बेदबाव की ओय सॊकेत कयते हैं। मह हभभें से
अर्धकाॊश को अस्वीकामथ हैं। वास्तव भें इस प्रकाय का बेदबाव सभानता के हभाये आत्भ-फोध का उल्रॊघन
कयता है । सभानता का हभाया आत्भ-फोध कहता है कक साझी भानवता के कायण सबी भनुष्ट्म फयाफय ,
सम्भान औय ऩयवाह के हकदाय हैं।
प्रश्न 9.
अवसयों की सभानता से क्मा आशम है ?
उत्तय-
अिसयों की सभानता-
सभानता की अवधायणा भें मह ननन्श्चत है कक सबी भनष्ट्ु म अऩनी दऺता औय प्रनतबा को ववकमसत कयने
के मरए तथा अऩने रक्ष्मों औय आकाॊऺाओॊ को ऩूया कयने के मरए सभान अर्धकाय औय अवसयों के हकदाय
हैं। इसका आशम मह है कक सभाज भें रोग अऩनी ऩसन्द औय प्राथमभकताओॊ के भाभरों भें अरग हो
सकते हैं। उनकी प्रनतबा औय मोग्मताओॊ भें बी अन्तय हो सकता है औय हो सकता है इस कायण कुछ
रोग अऩने चन ु े हुए ऺेत्रों भें शेष रोगों से अर्धक सपर हो जाएॉ। रेककन केवर इसमरए कक कोई कक्रकेट
भें ऩहरे ऩामदान ऩय ऩहुॉच गमा है मा कोई फहुत सपर वकीर फन गमा है , सभाज को असभान नहीॊ भाना
जा सकता। दस
ू ये शब्दों, भें साभान्जक दजाथ , सम्ऩन्त्त मा ववशेषार्धकायों भें सभानता का अबाव होना
भहत्त्वऩूणथ नहीॊ है रेककन मशऺा, स्वास्थ्म औय सुयक्षऺत आवास जैसी फुननमादी चीजों की उऩरब्धता भें
असभानताओॊ से कोई सभाज असभान औय अन्मामऩूणथ फनता है ।
प्रश्न 10.
नीचे दी गई न्स्थनतमों ऩय ववचाय कयें । कमा इनभें से ककसी बी न्स्थनत भें ववशेष औय ववबेदकायी फयताव
कयना न्मामोर्चत होगा? ।
काभकाजी भटहराओॊ को भातत्ृ व अवकाश मभरना चाटहए।

 एक ववद्मारम भें दो छात्र दृन्ष्ट्टहीन हैं। ववद्मारम को उनके मरए कुछ ववशेष उऩकयण खयीदने के
मरए धनयामश खचथ कयनी चाटहए।
 गीता फास्केटफॉर फहुत अच्छा खेरती है । ववद्मारम को उसके मरए फॉस्केटफॉर कोटथ | फनाना
चाटहए न्जससे वह अऩनी मोग्मता को औय बी ववकास कय सके।
 जीत के भाता-वऩता चाहते हैं कक वह ऩगडी ऩहने। इयपान चाहता है कक वह जुम्भे (शुक्रवाय) को
नभाज ऩढे , ऐसी फातों को ध्मान भें यखते हुए स्कूर को जीत से मह आग्रह नहीॊ कयना चाटहए कक
वह कक्रकेट खेरते सभम हे रभेट ऩहने औय इयपान के अध्माऩक को शुक्रवाय को उससे दोऩहय फाद
की कऺाओॊ के मरए रुकने को नहीॊ कहना चाटहए।
उत्तय-
काभकाजी भटहराओॊ को भातत्ृ व अवकाश मभरना चाटहए ; इस न्स्थनत भें ववबेदकायी फयताव कयना
न्मामोर्चत होगा शेष प्रकयणों भें ववबेदकायी फयताव आवश्मक नहीॊ
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सभानता से क्मा आशम है ? सभानता के अन्तगथत कौन-सी फातें आती हैं।
उत्तय–
सभानती का वास्तववक अथथ है कक सबी व्मन्क्तमों को अऩने ववकास के मरए सभान सुअवसय प्राप्त हों।
जन्भ, सम्ऩन्त्त, जानत, धभथ, यॊ ग आटद के आधाय ऩय जो साभान्जक जीवन के कृब्रत्रभ आधाय हैं। व्मन्क्त भें
ववबेद न ककमा जाए अथाथत ् याज्म सबी नागरयकों को ककसी प्रकाय के बेदबाव के ब्रफना उसकी फुवर्द् औय
व्मन्क्तत्व के ऩूणथ ववकास के मरए सभुर्चत अवसय प्रदान कये । आकाॊऺा औय मोग्मता के यहते ककसी
व्मन्क्त के ववकास भें फाधा नहीॊ आनी चाटहए। सभानता के अन्तगथत तीन भौमरक फातें आती हैं
प्रथभ, ककसी नागरयक, सभुदाम, वगथ मा जानत के ववरुर्द् ककसी प्रकाय की वैर्धक अनहथता ( disqualification)
नहीॊ यखनी चाटहए। द्ववतीम, सबी को उन्ननत औय ववकास के अवसय टदए जाएॉ।
तत
ृ ीम, सबी को मशऺा, आवास, बोजन औय प्राथमभक सुववधाओॊ की प्रान्प्त का ऩूया-ऩूया हक हो। ‖ सभानता
की व्माख्मा कयते हुए रॉस्की ने कहा है - ―सभानता का ऩहरा अथथ है कक सभाज भें कोई ववशेष टहत वारा
न हो, दसू या प्रत्मेक व्मन्क्त को उन्ननत के सभान अवसय प्राप्त हों।
प्रश्न 2.
―आर्थथक सभानता के अबाव भें याजनीनतक स्वतन्त्रता ननयथथक है । ‖ स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
मा आर्थथक सभानता के ब्रफना याजनीनतक स्वतन्त्रता एक भ्रभ है । ‖ इस कथन की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
प्रो० रॉस्की ने मरखा है , ―याजनीनतक सभानता आर्थथक सभानता के ब्रफना ननयथथक है ; क्मोंकक याजनीनतक
शन्क्त आवश्मक रूऩ से आर्थथक शन्क्त के हाथों भें खखरवाड ही मसर्द् होगी। मटद व्मन्क्त को सभस्त
याजनीनतक अर्धकाय; जैसे-भतदान का, चन
ु ाव भें प्रत्माशी होने का, सावथजननक ऩद धायण कयने का आटद दे
टदए जाएॉ ऩयन्तु उसे ऩेट बय खाना न मभरे तो उसके मरए सम्ऩूणथ प्रदत्त याजनीनतक अर्धकाय व्मथथ हैं।
एक गयीफ व्मन्क्त का धभथ, ईभान व याजनीनत आटद सफ-कुछ योटी तक ही सीमभत हैं। बायत भें नागरयकों
को भत अर्धकाय है ऩय योजी छोडकय भतदान केन्द्र ऩय जाने का ऩरयणाभ क्मा होगा। रोगों को चुनाव भें
खडे होने का अर्धकाय है , ककन्तु चुनाव ककतने भहॉगे होते हैं। क्मा एक साभान्म व्मन्क्त चुनाव रड सकता
है । साभान्म व्मन्क्त के ऩास जीवन-माऩन कयने के सीमभत साधन होते हैं , कपय वह याजनीनतक अर्धकायों
का कैसे उऩबोग कये गा? सभाजवादी ववचायक इस फात ऩय फर दे ते हैं कक आर्थथक स्वतन्त्रता के ब्रफना
याजनीनतक स्वन्तत्रता व्मथथ है । याजनीनतक स्वतन्त्रता की उऩरन्ब्ध के मरए आर्थथक सयु ऺा की व्मवस्था
की जानी चाटहए। आर्थथक ववषभता को सभाप्त कयना। चाटहए न्जससे भनुष्ट्म का शोषण न हो।
प्रश्न 3.
सभाजवाद क्मा है ? रोटहमा की सप्तक्रान्न्तमाॉ क्मा थीॊ ?
उत्तय–
सभाजवाद असभानताओॊ के जवाफ भें उत्ऩन्न हुए कुछ याजनीनतक ववचायों का सभूह है । मे ववशेषकय वे
असभानताएॉ थीॊ, जो औद्मोर्गक ऩॉज ू ीवादी अथथव्मवस्था से उत्ऩन्न हुईं औय उसभें फाद तक फनी यहीॊ।
सभाजवाद का भख् ु म उद्देश्म वतथभान असभानताओॊ को न्मन ू तभ कयना औय सॊसाधनों का न्मामऩण ू थ
ववबाजन है । हाराॉकक सभाजवाद के ऩऺधय ऩूयी तयह से फाजाय के ववरुर्द् तो नहीॊ होते , रेककन वे मशऺा
औय स्वास्थ्म सेवा जैसे आधायबूत ऺेत्रों भें सयकायी ननमभन, ननमोजन औय ननमन्त्रण का सभथथन अवश्म
कयते हैं।
बायत भें प्रभुख सभाजवादी र्चन्तक याभभनोहय रोटहमा ने ऩाॉच प्रकाय की असभानताओॊ की ऩहचान की ,
न्जनके ववरुर्द् एक साथ रडना होगा-स्त्री-ऩुरुष असभानता, त्वचा के यॊ ग ऩय आधारयत असभानता, जानतगत
असभानता, कुछ दे शों का अन्म ऩय औऩननवेमशक शासन औय नन:सन्दे ह आर्थथक असभानता है । मह आज
स्वप्रभाखणतॊ धायण रग सकती है , रेककन रोटहमा के सभम भें , सभाजवाटदमों के फीच आभतौय ऩय मही तकथ
चरता था कक असभानता का एकभात्र रूऩ वगीम असभानता है न्जसके ववरुर्द् सॊघषथ अऩरयहामथ है । दस
ू यी
असभानताएॉ गौण हैं मा आर्थथक असभानता के सभाप्त होते ही वे स्वत् सभाप्त हो जाएगी। रोटहमा का
कहना था कक इन असभानताओॊ भें से प्रत्मेक की अरग-अरग जडे हैं औय इन सफके ववरुर्द् अरग-अरग
रेककन एक साथ सॊघषथ छे डने होंगे। उन्होंने एकाॊगी क्रान्न्त की फात नहीॊ कही। उनके मरए उऩमक्
ुथ त ऩाॉच
असभानताओॊ के ववरुर्द् सॊघषथ का अथथ था—ऩाॉच क्रान्न्तमाॉ। उन्होंने इस सूची भें दो औय क्रान्न्तमों को
शामभर ककमा–व्मन्क्तत्व जीवन ऩय अन्मामऩण
ू थ अनतक्रभण के ववरुर्द् नागरयक स्वतन्त्रता के मरए क्रान्न्त
तथा अॊटहसा के मरए सत्माग्रह के ऩऺ भें शस्त्र त्माग के मरए क्रान्न्त। मे ही सप्तक्रान्न्तमाॉ थीॊ। मही
रोटहमा के अनुसाय सभाजवाद का आदशथ है ।
दीघश उतयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
सभानता के ककतने प्रकाय होते हैं ?
मा सभानता के ववववध रूऩों का वववेचन कीन्जए। \
उत्तय-
सभानता के बेद अथवा प्रकाय
सभानता के ववमबन्न बेदों का सॊक्षऺप्त वववयण ननम्नमरखखत है
1. प्राकृनतक सभानता– प्रेटो के अनस
ु ाय, ―प्राकृनतक सभानता से अमबप्राम मह है कक सफ भनष्ट्ु म जन्भ से
सभान होते हैं। स्वाबाववक रूऩ से सबी व्मन्क्त सभान हैं , हभ सफका ननभाथण एक ही ववश्वकभाथ ने एक ही
मभट्टी से ककमा है । हभ चाहे अऩने को ककतना ही धोखा दें , ईश्वय को ननधथन, ककसान औय शन्क्तशारी
याजकुभाय सबी सभान रूऩ से वप्रम हैं। ‖
आधुननक मुग भें प्राकृनतक सभानता को कोयी कल्ऩना भाना जाता है । कोर के अनुसाय , ―भनुष्ट्म शायीरयक
फर, ऩयाक्रभ, भानमसक मोग्मता, सज
ृ नात्भक शन्क्त, सभाज-सेवा की बावना औय सम्बवत् सफसे अर्धक
कल्ऩना-शन्क्त भें एक-दस
ू ये से भूरत् मबन्न हैं। ‖ सॊऺेऩ भें , वतथभान मुग भें प्राकृनतक सभानता का आशम
मह है कक प्राकृनतक रूऩ से नैनतक आधाय ऩय ही सबी व्मन्क्त सभान हैं तथा सभाज भें व्माप्त ववमबन्न
प्रकाय की असभानताएॉ कृब्रत्रभ हैं।
2. साभाक्जक सभानता- साभान्जक सभानता का अथथ मह है कक प्रत्मेक व्मन्क्त को सभाज भें
सभान अर्धकाय प्राप्त हों औय सफको सभान सुववधाएॉ मभरें। न्जस सभाज भें जन्भ , जानत, धभथ, मरॊग
इत्माटद के आधाय ऩय बेदबाव नहीॊ ककमा जाता, वहाॉ साभान्जक सभानता होती है । सॊमक्
ु त याष्ट्र सॊघ के
द्वाया जो भानव-अर्धकायों की घोषणा की गमी है , उसभें साभान्जक सभानता ऩय
ववशेष फर टदमा गमा है ।
ू ी सभानता– नागरयक सभानता का अथथ नागरयकता के सभान अर्धकायों से होता है ।
3. नागरयक मा कानन
नागरयक सभानता के मरए मह आवश्मक है कक सफ नागरयकों के भूरार्धकाय सुयक्षऺत हों तथा सबी
नागरयकों को सभान रूऩ से कानून का सॊयऺण प्राप्त हो। नागरयक सभानता की ऩहरी अननवामथता मह है
कक सभस्त नागरयक कानून के सभऺ सभान हों। मटद कानून धन , ऩद, जानत अथवा अन्म ककसी आधाय
ऩय बेद कयता है तो उससे नागरयक सभानता सभाप्त हो जाती है औय नागरयकों भें असभानता का उदम
होता है ।
4. याजनीनतक सभानता- जफ याज्म के सबी नागरयकों को शासन भें बाग रेने का सभान अर्धकाय प्राप्त हो
तो वहाॉ के रोगों को याजनीनतक सभानता प्राप्त यहती है । याजनीनतक सभानता के अनुसाय प्रत्मेक व्मन्क्त
को भत दे ने, ननवाथचन भें खडे होने तथा सयकायी नौकयी प्राप्त कयने का सभान अर्धकाय होता है । उनके
साथ जानत, धभथ मा अन्म ककसी आधाय ऩय कोई बेदबाव नहीॊ ककमा जाता। याजनीनतक सभानता रोकतन्त्र
की आधायमशरा होती है ।
5. धासभशक सभानता- धामभथक सभानता का अथथ मह है कक धामभथक भाभरों भें याज्म तटस्थ हो औय सफ
नागरयकों को अऩनी इच्छा से धभथ भानने की स्वतन्त्रता हो। याज्म धभथ के आधाय ऩय | ककसी प्रकाय का
बेदबाव न कये । प्राचीन औय भध्मकार भें इस प्रकाय की धामभथक सभानता का
अबाव था, ऩयन्तु आज धभथ औय याजनीनत एक-दस
ू ये से अरग हो गमे हैं औय साभान्मत: याज्म नागरयकों
के धामभथक जीवन भें हस्तऺेऩ नहीॊ कयता।
6. आचथशक सभानता- आर्थथक सभानता का अमबप्राम मह है कक सभाज भें धन के ववतयण की उर्चत व्मवस्था
हो तथा भनुष्ट्मों की आम भें फहुत अर्धक असभानता नहीॊ होनी चाटहए। रॉस्की के अनुसाय , ―आर्थथक
सभानता का अमबप्राम मह है कक याज्म भें सबी को सभान सुववधाएॉ तथा अवसय प्राप्त हों। ‖ इस सन्दबथ भें
रॉडथ िाइस का भत है कक ―सभाज से सम्ऩन्त्त के सबी बेदबाव सभाप्त कय टदमे जाएॉ तथा प्रत्मेक स्त्री-
ऩुरुष को बौनतक साधनों एवॊ सुववधाओॊ का सभान बाग टदमा जाए। ‖
सॊऺेऩ भें , आर्थथक सभानता से सम्फन्न्धत प्रभख
ु फातें इस प्रकाय हैं —
(i) सभाज भें सबी को सभान रूऩ से व्मवसाम चुनने की स्वतन्त्रता हो।
(ii) प्रत्मेक भनष्ट्ु म को इतना वेतन मा ऩारयश्रमभक अवश्म प्राप्त हो कक वह अऩनी न्मन
ू तभ आर्थथक
आवश्मकताओॊ की ऩूनतथ कय सके।
(iii) याज्म भें उत्ऩादन औय उऩबोग के साधनों का ववतयण औय ववबाजन इस प्रकाय से हो कक
आर्थथक शन्क्त कुछ ही व्मन्क्तमों मा वगों के हाथों भें केन्न्द्रत न हो सके। सी० ई० एभ० जोड के अनुसाय ,
―स्वतन्त्रता का ववचाय, जो याजनीनतक ववचायधाया भें फहुत भहत्त्वऩूणथ है , जफ आर्थथक ऺेत्र भें रागू ककमा
गमा तो उससे ववनाशकायी ऩरयणाभ ननकरे , न्जसके परस्वरूऩ सभाजवादी औय साम्मवादी ववचायधायाओॊ का
उदम हुआ, जो आर्थथक सभानता ऩय ववशेष फर दे ती हैं औय न्जनकी मह ननन्श्चत धायणा है कक आर्थथक
सभानता के अबाव भें वास्तववक याजनीनतक स्वतन्त्रता कदावऩ प्राप्त नहीॊ हो सकती। ‖ वास्तववकता मह है
कक आर्थथक सभानता सबी प्रकाय की स्वतन्त्रताओॊ का आधाय है औय आर्थथक सभानता के ब्रफना
याजनीब्रत्रक स्वतन्त्रता केवर एक भ्रभ है । प्रो० जोड के अनस
ु ाय , ―आर्थथक सभानता के
ब्रफना याजनीनतक स्वतन्त्रता एक भ्रभ है । ‘ |
(iv) सुदृढ़ याजनीनतक एवॊ नागरयक सभानता की कल्ऩना अऩेक्षऺत आर्थथक सभानता की ऩष्ट्ृ ठबूमभ
| ऩय ही की जा सकती है ।
7. र्ैक्षऺक एिॊ साॊस्कृनतक सभानता- शैक्षऺक सभानता का अमबप्राम मह है कक प्रत्मेक व्मन्क्त को मशऺा प्राप्त
कयने तथा अन्म मोग्मताएॉ ववकमसत कयने का सभान अवसय मभरना चाटहए औय मशऺा के ऺेत्र भें जानत ,
धभथ, वणथ औय मरॊग के आधाय ऩय कोई बेदबाव नहीॊ ककमा जाना चाटहए। सभानता का तात्ऩमथ मह है कक
साॊस्कृनतक दृन्ष्ट्ट से फहुसॊख्मक औय अल्ऩसॊख्मक सबी वगों को अऩनी बाषा , मरवऩ औय सॊस्कृनत फनामे
यखने का अर्धकाय होना चाटहए। इसका भहत्त्व इसी फात से मसर्द् हो जाता है कक इसे बायतीम सॊववधान
भें भूर अर्धकायों के अन्तगथत यखा जाता है । ‗
8. नैनतक सभानता- इस सभानता के अनस
ु ाय प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩने चरयत्र का ववकास कयने के मरए अन्म
व्मन्क्तमों के सभान अर्धकाय प्राप्त होने चाटहए।
9. याष्ट्रीम सभानता- प्रत्मेक याष्ट्र सभान है , चाहे कोई याष्ट्र छोटा हो मा फडा। इसमरए प्रत्मेक याष्ट्ट
को ववकास कयने के सभान अर्धकाय प्राप्त होने चाटहए।
प्रश्न 2.
सभानता से आऩ क्मा सभझते हैं ? क्मा सभानता औय स्वतन्त्रता एक-दस
ू ये के ऩूयक हैं ?
मा स्वतन्त्रता एवॊ सभानता का सम्फन्ध स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
मा ―स्वतन्त्रता की सभस्मा का केवर एक ही हर है औय वह हर सभानता भें ननटहत है । ‖ इस
कथन की वववेचना कीन्जए।
मा सभानता को ऩरयबावषत कीन्जए तथा स्वतन्त्रता के साथ इसके सम्फन्ध की व्माख्मा कीन्जए।
उत्तय-
सभानता का अथश
साधायण रूऩ से सभानता का अथथ मह रगामा जाता है कक सबी व्मन्क्तमों को ईश्वय ने फनामा है ; अत्
सबी सभान हैं औय इसी कायण सबी को सभान सुववधाएॉ व आम का सभान अर्धकाय होना चाटहए। इस
प्रकाय का भत व्मक्त कयने वारे व्मन्क्त प्राकृनतक सभानती भें ववश्वास व्मक्त कयते हैं , ककन्तु मह ववचाय
भ्रभऩूणथ है , क्मोंकक प्रकृनत ने ही भनुष्ट्मों को फुवर्द्, फर तथा प्रनतबा के आधाय ऩय सभान नहीॊ फनामा है ।
अप्ऩादोयाम के शब्दों भें , ―मह स्वीकाय कयना कक सबी भनष्ट्ु म सभान हैं , उतना ही भ्रभऩण
ू थ है न्जतना कक
मह कहना कक बूभण्डर सभतर है । ‖
भनष्ट्ु मों भें असभानता के दो कायण हैं —प्रथभ, प्राकृनतक औय द्ववतीम, साभान्जक मा सभाज द्वाया उत्ऩन्न।
अनेक फाय मह दे खने भें आता है कक प्राकृनतक रूऩ से सभान होते हुए बी व्मन्क्त असभान हो जाते हैं ,
क्मोंकक आर्थथक सभानता के अबाव भें सबी को अऩने व्मन्क्तत्व का ववकास कयने के सभान अवसय
उऩरब्ध नहीॊ हो ऩाते। इस प्रकाय सभाज द्वाया उत्ऩन्न ऩरयन्स्थनतमाॉ भनुष्ट्म के फीच असभानता उत्ऩन्न
कय दे ती हैं।

नागरयकशास्त्र की अवधायणा के रूऩ भें सभानता से हभाया तात्ऩमथ सभाज द्वाया उत्ऩन्न इस असभानता
का अन्त कयने से होता है । दस
ू ये शब्दों भें , सभानता का तात्ऩमथ अवसय की सभानता से है । सबी व्मन्क्तमों
को अऩने ववकास के मरए सभान सुववधाएॉ व सभान अवसय प्राप्त हों, ताकक ककसी बी व्मन्क्त को मह
कहने का अवसय न मभरे कक मटद उसे मथेष्ट्ट सवु वधाएॉ प्राप्त होतीॊ तो वह अऩने जीवन का ववकास कय
सकता था। इस प्रकाय सभाज भें जानत, धभथ व बाषा के आधाय ऩय व्मन्क्तमों भें ककसी प्रकाय का बेद न
ककमा जाना अथवा इन आधायों ऩय उत्ऩन्न ववषभता का अन्त कयना ही ‗सभानता है । सभानता की
ऩरयबाषा व्मक्त कयते हुए रास्की ने मरखा है कक ―सभानता भर
ू रूऩ से सभतर कयने की प्रकक्रमा है ।
इसीमरए सभानता का प्रथभ अथथ ववशेषार्धकायों का अबाव औय द्ववतीम अथथ अवसयों की सभानता से है । ‖

सभानता के दो ऩऺ : नकायात्भक औय सकायात्भक– सभानता की ऩरयबाषा का ववश्रेषण कयने से मह


स्ऩष्ट्ट हो जाता है कक सभानता के दो ऩऺ हैं
(1) नकायात्भक तथा
(2) सकायात्भक। नकायात्भक ऩऺ से तात्ऩमथ है कक साभान्जक ऺेत्र भें ककसी के साथ ककसी प्रकाय का
बेदबाव न हो तथा सकायात्भक ऩऺ का अथथ है कक प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩने अर्धकार्धक ववकास के मरए
सभान अवसय प्राप्त हों। उदाहयणाथथ-मशऺा की आवश्मकता सफके मरए होती है ; अत् याज्म का मह कतथव्म
है कक वह अऩने सफ नागरयकों को मशऺा प्राप्त कयने का सभान अवसय प्रदान कये ।

सभानता के विविध रूऩ


सभानता के ववववध रूऩों भें नागरयक सभानता, साभान्जक सभानता, याजनीनतक सभानता, आर्थथक सभानता,
प्राकृनतक सभानता, धामभथक सभानता एवॊ साॊस्कृनतक औय मशऺा सम्फन्धी सभानता प्रभुख हैं।

स्ितन्त्रता औय सभानता का सम्फन्ध


स्वतन्त्रता औय सभानता के ऩायस्ऩरयक सम्फन्ध के ववषम ऩय याजनीनतशान्स्त्रमों भें ऩमाथप्त भतबेद हैं।
औय इस सम्फन्ध भें प्रभुख रूऩ से दो ववचायधायाओॊ का प्रनतऩादन ककमा गमा है , जो इस प्रकाय हैं
1. स्ितन्त्रता औय सभानता ऩयस्ऩय वियोधी हैं— कुछ व्मन्क्तमों द्वाया स्वतन्त्रता औय सभानता के जन-प्रचमरत
अथों के आधाय ऩय इन्हें ऩयस्ऩय ववयोधी फतामा गमा है । उनके अनस
ु ाय स्वतन्त्रता अऩनी इच्छानस
ु ाय कामथ
कयने की शन्क्त का नाभ है , जफ कक सभानता का तात्ऩमथ प्रत्मेक प्रकाय से सबी व्मन्क्तमों को सभान
सभझने से है । इस आधाय ऩय साभान्म व्मन्क्त ही नहीॊ , वयन ् डी० टॉकववरे औय एक्टन जैसे ववद्वानों
द्वाया बी इन्हें ऩयस्ऩय ववयोधी भाना गमा है । रॉडथ एक्टन ‗एक स्थान ऩय मरखते हैं कक ―सभानता की
उत्कृष्ट्ट अमबराषा के कायण स्वतन्त्रता की आशा ही
व्मथथ हो गमी है । ‖
2. स्ितन्त्रता औय सभानता ऩयस्ऩय ऩयू क हैं— उऩमक्
ुथ त प्रकाय की ववचायधाया के ननतान्त ववऩयीत दस
ू यी ओय
ववद्वानों का फडा सभूह है , जो स्वतन्त्रता औय सभानता को ऩयस्ऩय ववयोधी नहीॊ , वयन ्। ऩूयक भानते हैं।
रूसो, टॉनी, रॉस्की औय भैकाइवय इस भत के प्रभुख सभथथक हैं औय अऩने भत की ऩुन्ष्ट्ट भें इन ववद्वानों
ने ननम्नमरखखत तकथ टदमे हैंस्वतन्त्रता औय सभानता को ऩयस्ऩय ववयोधी फताने वारे ववद्वानों द्वाया
स्वतन्त्रता औय सभानता की गरत धायणा को अऩनामा गमा है ।
स्वतन्त्रता का तात्ऩमथ प्रनतफन्धों के अबाव‘ मा स्वच्छन्दता से नहीॊ है , वयन ् इसका तात्ऩमथ केवर मह है कक
अनुर्चत प्रनतफन्धों के स्थान ऩय उर्चत प्रनतफन्धों की व्मवस्था की जानी चाटहए औय उन्हें अर्धकतभ
सवु वधाएॉ प्रदान की जानी चाटहए, न्जससे उनके द्वाया अऩने व्मन्क्तत्व का ववकास ककमा जा सके। इसी
प्रकाय ऩूणथ सभानता एक काल्ऩननक वस्तु है औय सभानता का तात्ऩमथ ऩूणथ सभानता जैसी ककसी
काल्ऩननक वस्तु से नहीॊ , वयन ् व्मन्क्तत्व के ववकास हे तु आवश्मक औय ऩमाथप्त सवु वधाओॊ से है , न्जससे
सबी व्मन्क्त अऩने व्मन्क्तत्व का ववकास कय सकें औय इस प्रकाय उसे असभानता का अन्त हो सके ,
न्जसका भूर कायण साभान्जक ऩरयन्स्थनतमों का बेद है । इस प्रकाय स्वतन्त्रता औय सभानता दोनों ही
व्मन्क्तत्व के ववकास हे तु ननतान्त आवश्मक हैं।

प्रश्न 3.
नायीवाद‘ ऩय रघु ननफन्ध मरखखए।
उत्तय-
नायीवाद स्त्री-ऩुरुष के सभान अर्धकायों का ऩऺ रेने वारा याजनीनतक मसर्द्ान्त है । वे स्त्री व ऩुरुष
नायीवादी कहराते हैं , जो भानते हैं कक स्त्री-ऩरु
ु ष के फीच की अनेक असभानताएॉ न तो नैसर्गथक हैं औय न
ही आवश्मक। नायीवाटदमों का भानना है कक इन असभानताओॊ को फदरा जा सकता है औय स्त्री-ऩुरुष एक
सम्ऩण
ू थ जीवन व्मतीत कय सकते हैं।
नायीवाद के अनुसाय, स्त्री-ऩुरुष असभानता ‗वऩतस
ृ त्ता‘ से आशम एक ऐसी साभान्जक, आर्थथक औय
साॊस्कृनतक व्मवस्था से है न्जसभें ऩरु
ु ष को स्त्री से अर्धक भहत्त्व औय शन्क्त दी जाती है । वऩतस
ृ त्ता इस
भान्मता ऩय आधारयत है कक ऩुरुष औय स्त्री प्रकृनत से मबन्न हैं औय मही मबन्नता सभाज भें उनकी
असभान न्स्थनत को न्मामोर्चत ठहयाती है । नायीवादी इस दृन्ष्ट्टकोण को सन्दे ह की दृन्ष्ट्ट से दे खते हैं।
इसके मरए वे स्त्री-ऩुरुष के जैववक ववबेद औय स्त्री-ऩुरुष के फीच साभान्जक बूमभकाओॊ के ववबेद के फीच
अन्तय कयने का आग्रह कयते हैं। जैववक मा मरॊग बेद प्राकृनतक औय जन्भजात होता है , जफकक रैंर्गकता
सभाजजननत है । इसे दस
ू ये शब्दों भें इस प्रकाय बी सभझा जा सकता है कक भनुष्ट्म का नय मा भादा के
रूऩ भें जन्भ होता है , रेककन स्त्री मा ऩुरुष को न्जन साभान्जक बूमभकाओॊ भें हभ दे खते हैं उन्हें सभाज
गढ़ता है । उदाहयण के मरए, मह जीव-ववऻान का एक तथ्म है कक केवर स्त्री ही गबथधायण कयके फारक
को जन्भ दे सकती है , रेककन जीव-ववऻान के तथ्म भें ननटहत नहीॊ है कक जन्भ दे ने के फाद केवर स्त्री ही
फारक का रारन-ऩारन कये । नायीवाटदमों ने मह स्ऩष्ट्ट ककमा है कक स्त्री-ऩरु
ु ष असभानता का अर्धकाॊश
बाग प्रकृनत ने नहीॊ सभाज ने ऩैदा ककमा है ।

‗वऩतस
ृ त्ता‘ ने श्रभ का कुछ ऐसा ववबाजन ककमा है न्जसभें स्त्री ‗ननजी‘ औय ‗घये रू‘ ककस्भ के कामों के मरए
न्जम्भेदाय है जफकक ऩरु
ु ष की न्जम्भेदायी सावथजननक‘ औय ‗फाहयी दनु नमा भें है । नायीवादी इस ववबेद ऩय बी
सवार खडे कयते हैं। उनका कहना है कक अर्धकतय भटहराएॉ घय से फाहय अनेक ऺेत्रों भें कामथयत हैं।
रेककन घये रू काभकाज की ऩूयी न्जम्भेदायी केवर न्स्त्रमों के कन्धों ऩय है । नायीवादी इसे न्स्त्रमों के कन्धे
ऩय दोहया फोझ‘ फताते हैं। हाराॉकक इस दोहये फोझ के फावजूद न्स्त्रमों को सावथजननक ऺेत्र के ननणथमों भें ना
के फयाफय भहत्त्व टदमा जाता है ।
नायीवाटदमों का भानना है कक ननजी/सावथजननक के फीच मह ववबेद औय सभाज मा व्मन्क्त द्वाया गढ़ी हुई
रैर्गक असभानता के सबी रूऩों को मभटामा जा सकता है औय मभटामा बी जाना चाटहए।

फहुविकल्ऩीम प्रश्न
प्रश्न 1.
―अर्धकाय वह भाॉग है , न्जसे सभाज स्वीकाय कयता है औय याज्म रागू कयता है । मह कथन ककसका है ?
(क) हॉरैण्ड
(ख) फोसाॊके
(ग) वाइल्ड
(घ) ऑन्स्टन
उत्तय-
(ख) फोसाॊके।
प्रश्न 2.
―अर्धकाय कुछ ववशेष कामों को कयने की स्वतन्त्रता की उर्चत भाॉग है । ‖ मह कथन ककसका है ?
(क) वाइल्ड
(ख) फेनीप्रसाद
(ग) श्रीननवास शास्त्री
(घ) ग्रीन
उत्तय-
(क) वाइल्ड।
प्रश्न 3.
अर्धकायों की उत्ऩन्त्त के प्राकृनतक मसर्द्ान्त के सभथथकों भें कौन नहीॊ है ?
(क) हॉब्स
(ख) फकथ
(ग) रूसो
(घ) रॉक
उत्तय-
(ख) फकथ।
प्रश्न 4.
अर्धकायों के साभान्जक कल्माण सम्फन्धी मसर्द्ान्त के सभथथक कौन हैं ?
(क) फेन्थभ
(ख) रूसो
(ग) रयची
(घ) रॉस्की
उत्तय-
(क) फेन्थभ।
प्रश्न 5.
अर्धकायों के वैधाननक मसर्द्ान्त के सभथथक हैं
(क) र्गरक्राइस्ट
(ख) अयस्तू
(ग) हॉरैण्ड
(घ) जैपयसन
उत्तय-
(ग) हॉरैण्ड। .
प्रश्न 6.
―अऩने कतथव्म का ऩारन कयो, अर्धकाय स्वत् तुम्हें प्राप्त हो जाएॉगे। ‖ मह ककसका कथन |
(क) भहात्भा गाॊधी
(ख) फेनीप्रसाद
(ग) श्रीननवास शास्त्री
(घ) ग्रीन
उत्तय-
(क) भहात्भा गाॊधी।
प्रश्न 7.
रॉस्की के अर्धकाय सम्फन्धी ववचाय उनकी ककस कृनत भें मभरते हैं ?
(क) टद ग्राभय ऑप टद ऩॉमरटटक्स
(ख) ऩॉमरटटक्स
(ग) रयऩन्ब्रक
(घ) रॉज
उत्तय-
(क) टद ग्राभय ऑप टद ऩॉमरटटक्स। |
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
अर्धकाय ककसे कहते हैं ?
उत्तय–
अर्धकाय वह भाॉग है , न्जसे सभाज स्वीकाय कयता है औय याज्म कक्रमान्न्वत कयता है ।
प्रश्न 2.
अर्धकायों की एक ऩरयबाषा मरखखए।
उत्तय-
डॉ० फेनीप्रसाद के अनुसाय, ―अर्धकाय वे साभान्जक दशाएॉ हैं , जो भनुष्ट्म के व्मन्क्तत्व के ववकास के मरए
आवश्मक हैं।‖
प्रश्न 3.
अर्धकायों के दो बेद फताइए।
उत्तय-
(i)साभान्जक अर्धकाय,
(ii) याजनीनतक अर्धकाय।
प्रश्न 4.
दो भूर अर्धकायों के नाभ मरखखए।
उत्तय-
(i) सभानता का अर्धकाय,
(ii) स्वतन्त्रता का अर्धकाय।
प्रश्न 5.
अर्धकाय के ककन्हीॊ दो तत्त्वों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय–
अर्धकाय के दो तत्त्व ननम्नवत ् है ।
(i) सावथबौमभकता औय
(ii) याज्म का सयॊ ऺण।
प्रश्न 6.
अर्धकायों का कौन-सा मसर्द्ान्त सवाथर्धक सन्तोषप्रद है ?
उत्तय-
अर्धकायों का आदशथवादी मसर्द्ान्त सवाथर्धक सन्तोषप्रद है ।
प्रश्न 7.
दो भानवार्धकायों को मरखखए।
उत्तय-
(i) स्वतन्त्रता का अर्धकाय
(ii) सभानता का अर्धकाय।
प्रश्न 8.
नागरयक का एक याजनीनतक अर्धकाय फताइए।
उत्तय–
नागरयक का एक याजनीनतक अर्धकाय है -भतदान का अर्धकाय।
प्रश्न 9.
कानन
ू ी अर्धकाय ककतने प्रकाय के होते हैं ?
उत्तय-
कानन
ू ी अर्धकाय दो प्रकाय के होते है ।
(i) साभान्जक अर्धकाय तथा
(ii) याजनीनतक अर्धकाय।
प्रश्न 10.
कानन
ू ी अर्धकाय के मसर्द्ान्त के दो सभथथकों के नाभ मरखखए।
उत्तय-
(i) फेन्थभ,
(ii) ऑन्स्टन।
प्रश्न 11.
रॉक द्वाया फताए गए ककन्हीॊ दो प्राकृनतक अर्धकायों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय-
(i) स्वतन्त्रता का अर्धकाय,
(ii) सम्ऩन्त्त का अर्धकाय।
प्रश्न 12.
ववदे मशमों को याज्म भें प्राप्त होने वारे कोई दो अर्धकाय मरखखए।
उत्तय-
(i) जीवन यऺा का अर्धकाय,
(ii) ऩारयवारयक जीवन व्मतीत कयने का अर्धकाय।
प्रश्न 13.
नागरयक के दो प्राकृनतक अर्धकाय फताइए।
उत्तय-
(i) जीवन का अर्धकाय,
(ii) सम्ऩन्त्त का अर्धकाय।
प्रश्न 14.
अर्धकायों के सभाज कल्माण सम्फन्धी मसर्द्ान्तों का सभथथन ककस ववचायक ने ककमा है ?
उत्तय–
अर्धकायों के सभाज कल्माण सम्फन्धी मसर्द्ान्तों का सभथथन रॉस्की ने ककमा है ।
प्रश्न 15.
अर्धकायों के आदशथवादी मसर्द्ान्त के सभथथक ककन्हीॊ दो ववचायकों के नाभ फताइए।
उत्तय-
थॉभस टहर ग्रीन एवॊ फोसाॊके।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
ककन्हीॊ चाय भहत्त्वऩण
ू थ साभान्जक अर्धकायों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय–
व्मन्क्त के चाय भहत्त्वऩण
ू थ साभान्जक अर्धकाय ननम्नमरखखत हैं
1. जीिन-सयु ऺा का अचधकाय- प्रत्मेक भनुष्ट्म को जीवन का अर्धकाय है । मह अर्धकाय | भौमरक तथा
आधायबत
ू है , क्मोंकक इसके अबाव भें अन्म अर्धकायों का अन्स्तत्व भहत्त्वहीन है ।
2. सभानता का अचधकाय- सभानता का तात्ऩमथ है कक जीवन के प्रत्मेक ऺेत्र भें व्मन्क्त के रूऩ भें व्मन्क्त
का सभान रूऩ से सम्भान ककमा जाए तथा उसे उन्ननत के सभान अवसय प्रदान ककए जाएॉ।
3. स्ितन्त्रता का अचधकाय- स्वतन्त्रता का अर्धकाय व्मन्क्त के व्मन्क्तत्व के ववकास भें अऩरयहामथ है ।
स्वतन्त्रता के अर्धकाय के आधाय ऩय व्मन्क्त अऩनी इच्छा से ब्रफना ककसी फाह्म फन्धन के अऩने
जीवन के ववकास का ढॊ ग ननधाथरयत कय सकता है ।
4. सम्ऩक्त्त का अचधकाय- सभाज भें व्मन्क्त वैध तयीकों से सम्ऩन्त्त का अजथन कयता है । अत: उसे मह
अर्धकाय होना चाटहए कक वह स्वतन्त्र रूऩ से अन्जथत ककए हुए धने का उऩमोग स्वेच्छा से अऩने
व्मन्क्तत्व ववकास के मरए कय सके।
प्रश्न 2.
अर्धकायों के भहत्त्व की सॊक्षऺप्त वववेचना कीन्जए।
उत्तय–
अर्धकायों का भहत्त्व ननम्नमरखखत दृन्ष्ट्टमों से है
1. व्मन्क्तत्व के ववकास के मरए अर्धकाय फहुत ही आवश्मक हैं।
2. अर्धकाय सभाज औय याष्ट्र की उन्ननत भें भहत्त्वऩूणथ बूमभका ननबाते हैं।
3. अर्धकाय प्रजातन्त्र का आधाय हैं। प्रो० फाकथय के अनुसाय , ―व्मन्क्त के अर्धकायों के स्ऩष्ट्ट दशथन से
ही स्वतन्त्रता का ववचाय एक वास्तववक अथथ प्राप्त कयता है । उसके अबाव भें स्वतन्त्रता एक
खोखरी मा ननयथथक एवॊ व्मन्क्तवाद एक काल्ऩननक वस्तु यह जाता है । ‖
4. अर्धकाय सुदृढ़ एवॊ कल्माणकायी याज्म की स्थाऩना भें सहामक हैं।
5. सच्चे अथों भें ककसी नागरयक से अर्धकायों के अबाव भें आदशथवाटदता की अऩेऺा नहीॊ की जा
सकती।
प्रश्न 3.
अर्धकायों के अन्स्तत्व के मरए सभाज की स्वीकृनत आवश्मक है । इस कथन की सभीऺा कीन्जए।
उत्तय-
मह फात सवथभान्म है कक व्मन्क्त अऩने अर्धकायों का प्रमोग साभान्जक ऩष्ट्ृ ठबूमभ भें कयता है । अर्धकायों
की अवधायणा के भर
ू भें मह फात स्ऩष्ट्टमता ऩरयरक्षऺत होती है कक व्मन्क्त अर्धकायों का प्रमोग अऩने
टहत भें कयने के साथ-साथ साभान्जक टहतों भें बी कये । जफ तक कोई अर्धकाय सभाज द्वाया स्वीकृत नहीॊ
है , तफ तक वह अन्स्तत्वहीन ही यहता है ; उदाहयणाथथ-नागरयक को अऩनी इच्छानुसाय जीवन-माऩन कयने का
अर्धकाय टदमा गमा है , रेककन साथ-ही-साथ उसका मह कतथव्म बी फन जाता है कक उसकी मह स्वेच्छा
साभान्जक एवॊ नैनतक भानदण्डों को ऩूया कयती है कक नहीॊ। मटद आऩके अर्धकाय साभान्जक व नैनतक
भमाथदा का उल्रॊघन कयते हैं , तो इन्हें साभान्जक स्वीकृनत नहीॊ दी जा सकती। इस ऩय अर्धकायों के
अन्स्तत्व के मरए सभाज की स्वीकृनत आवश्मक है । सभाज कबी बी व्मन्क्त के जुआ खेरने , भद्मऩान
कयने, वेश्मावन्ृ त्त कयने तथा दस
ू ये का अटहत कयने के अर्धकाय को भान्मता प्रदान नहीॊ कयता है । सभाज
केवर उन्हीॊ अर्धकायों को स्वीकृनत प्रदान कयता है जो सभाज भें सहमोग , बाई-चाये तथा साभॊजस्म की
बावना को सदृ
ु ढ़ कयते हैं।
प्रश्न 4.
भानव गरयभा ऩय काण्ट के क्मा ववचाय थे ?
उत्तय–
अन्म प्राखणमों से अरग भनुष्ट्म की एक गरयभा होती है । इस कायण वे अऩने आऩ भें फहुभूल्म हैं। 18वीॊ
सदी के जभथन दाशथननक इभैनए ु र काण्ि के मरए इस साधायण ववचाय का गहन अथथ था। • उनके मरए इसका
आशमे था कक प्रत्मेक भनष्ट्ु म की गरयभा है औय भनष्ट्ु म होने के नाते उसके साथ इसी के अनक
ु ू र व्मवहाय
ककमा जाना चाटहए। भनुष्ट्म अमशक्षऺत हो सकता है , गयीफ मा शन्क्तहीन हो सकता है । वह फेईभान अथवा
अनैनतक बी हो सकता है कपय बी वह एक भनष्ट्ु म है औय न्मन
ू तभ ही सही , प्रनतष्ट्ठा ऩाने का अर्धकायी है ।
काण्ट के मरए रोगों के साथ गरयभाभम फयताव कयने का अथथ था उनके साथ नैनतकता से ऩेश आना। मह
ववचाय उन रोगों के मरए एक सम्फर था जो रोग साभान्जक ऊॉच-नीच के ववरुर्द् भानवार्धकायों के मरए
सॊघषथ कय यहे थे।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
ककन्हीॊ चाय याजनीनतक अर्धकायों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय-
नागरयकों के चाय प्रभुख याजनीनतक अर्धकाय ननम्नमरखखत हैं
1. भतदान का अचधकाय- रोकतान्न्त्रक शासन-व्मवस्था भें नागरयकों को प्रदत्त भतदान का अर्धकाय अन्म
अर्धकायों भें सफसे भहत्त्वऩण
ू थ है । इस अर्धकाय द्वाया नागरयक अऩने प्रनतननर्धमों को ननवाथर्चत
कयके ववधानमकाओॊ भें बेजते हैं।
2. ननिाशचचत होने का अचधकाय– प्रत्मेक नागरयक को ननवाथर्चत होने का अर्धकाय प्राप्त होता है । जफ तक
नागरयकों को मह अर्धकाय प्राप्त नहीॊ हो जाता है तफ तक वे शासन-सॊचारन भें बाग नहीॊ रे
सकते हैं। इस अर्धकाय की प्रान्प्त की मरॊग , जानत, सम्प्रदाम, धभथ आटद का कोई बेदबाव नहीॊ होना
चाटहए।
3. सािशजननक ऩद ग्रहण कयने का अचधकाय- प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩनी मोग्मता, ऺभता तथा अनब
ु व के
आधाय ऩय सयकायी ऩद प्राप्त कयने का सभान अवसय एवॊ अर्धकाय होना चाटहए। इसभें ककसी
प्रकाय का कोई बेदबाव नहीॊ कयना चाटहए।
4. प्राथशना-ऩत्र दे ने का अचधकाय- इस अर्धकाय के आधाय ऩय नागरयक असुववधा, कष्ट्ट अथवा असाभान्म
ऩरयन्स्थनतमों भें प्राथथना-ऩत्र द्वाया याज्म का ध्मान अऩनी सभस्माओॊ की ओय आकृष्ट्ट कय सकते हैं।
प्रश्न 2.
भौमरक अर्धकाय क्मा हैं ? भौमरक अर्धकायों का भहत्त्व मरखखए।
उत्तय–
वे अर्धकाय, जो भानव-जीवन के मरए भौमरक तथा आवश्मक हैं तथा न्जन्हें सॊववधान द्वाया नागरयकों को
प्रदान ककमा जाता हैं तथा सॊववधान भें प्रदत्त प्रावधानों के अन्तगथत इनकी सुयऺा की बी व्मवस्था होती है ,
‗भौमरक अर्धकाय‘ कहराते हैं।
भौसरक अचधकायों का भहत्त्ि
1. भौमरक अर्धकाय प्रजातन्त्र के आधाय स्तम्ब हैं। मे व्मन्क्त के साभान्जक , आर्थथक तथा नागरयक
जीवन के प्रबावात्भक उऩमोग के एकभात्र साधन हैं। भौमरक अर्धकायों द्वाया उन आधायबूत
स्वतन्त्रताओॊ तथा न्स्थनतमों की व्मवस्था की जाती है न्जसके अबाव भें व्मन्क्त उर्चत रूऩ से
अऩना जीवनमाऩन नहीॊ कय सकता है ।
2. भौमरक अर्धकाय ककसी व्मन्क्त ववशेष , वगथ अथवा दर की तानाशाही को योकने का प्रभख
ु साधन
हैं। भौमरक अर्धकाय सयकाय एवॊ फहुभत के अत्माचायों से व्मन्क्त की , ववशेष रूऩ से अल्ऩसॊख्मकों
की यऺा कयते हैं।
3. भौमरक अर्धकाय व्मन्क्त की स्वतन्त्रता तथा साभान्जक ननमन्त्रण के भध्म उर्चत साभॊजस्म
स्थावऩत कयने का प्रमास कयते हैं।
4. भौमरक अर्धकाय नागरयकों को न्माम तथा उर्चत व्मवहाय की सुयऺा प्रदान कयते हैं। मे याज्म के
फढ़ते हुए हस्तऺेऩ तथा व्मन्क्त की स्वतन्त्रता के भध्म उर्चत सन्तुरन स्थावऩत कयते हैं।
प्रश्न 3.
याजनीनतक अर्धकायों से क्मा तात्ऩमथ है ? प्रभुख याजनीनतक अर्धकाय कौन-से हैं ?
उत्तय-
याजनीनतक अचधकाय
डॉ० फेनीप्रसाद के अनुसाय, ―याजनीनतक अर्धकायों का तात्ऩमथ उन व्मवस्थाओॊ से है , न्जनभें नागरयकों को
शासन कामथ भें बाग रेने का अवसय प्राप्त होता है अथवा नागरयक शासन प्रफन्ध को प्रबाववत कय सकते
हैं।‖ याजनीनतक अर्धकाय के अन्तगथत ननम्नमरखखत अर्धकायों की गणना की जा सकती है |
1. भत दे ने का अचधकाय- अऩने प्रनतननर्धमों के ननवाथचन के अर्धकाय को ही भतार्धकाय कहते हैं। मह
अर्धकाय रोकतन्त्रीम शासन प्रणारी के अन्तगथत प्राप्त होने वारा भहत्त्वऩूणथ अर्धकाय है । औय इस
अर्धकाय का प्रमोग कयके नागरयक अप्रत्मऺ रूऩ से शासन प्रफन्ध भें बाग रेते हैं। आधुननक
रोकतान्न्त्रक याज्मों भें ववक्षऺप्त, टदवामरमे औय अऩयार्धमों को छोडकय अन्म वमस्क नागरयकों को
मह अर्धकाय प्राप्त है । साभान्मतमा 18 वषथ की आमु ऩूयी कय चुके बायतीम नागरयकों को
भतार्धकाय प्राप्त है ।
2. ननिाशचचत होने का अचधकाय- भतार्धकाय की ऩूणत
थ ा के मरए प्रत्मेक नागरयक को ननवाथर्चत होने का
अर्धकाय बी प्राप्त होता है । ननधाथरयत अहथताओॊ को ऩयू ा कयने ऩय कोई बी नागरयक ककसी बी
याजनीनतक सॊस्था के ननवाथर्चत होने के मरए चुनाव रड सकता है ।
3. सयकायी ऩद प्रातत कयने का अचधकाय- व्मन्क्त का तीसया याजनीनतक अर्धकाय सयकायी ऩद प्राप्त कयने
का अर्धकाय है । याज्म की ओय से नागरयकों को मोग्मतानस
ु ाय उच्च सयकायी ऩद प्राप्त कयने की
सुववधा होनी चाटहए। इस अर्धकाय के अन्तगथत ककसी बी नागरयक को धभथ , वणथ तथा जानत के
आधाय ऩय सयकायी ऩदों से वॊर्चत नहीॊ ककमा जाएगा। डॉ० फेनीप्रसाद के अनुसाय, ―इस अर्धकाय का मह
अथथ नहीॊ है कक प्रत्मेक व्मन्क्त को सयकायी ऩद प्राप्त हो। जाएगा , वयन ् इसका मह अथथ है कक उन
सबी व्मन्क्तमों को सयकायी ऩद की प्रान्प्त होगी, जो उस ऩद को ऩाने की मोग्मता यखते हैं। ‖
4. आिेदन-ऩत्र दे ने का अचधकाय- प्रत्मेक नागरयक को मह अर्धकाय बी प्राप्त होना चाटहए कक | वह
आवेदन-ऩत्र दे कय सयकाय का ध्मान अऩनी सभस्माओॊ की ओय आकवषथत कय सके।
5. विदे र्ों भें सयु ऺा का अचधकाय- याज्म को चाटहए कक वह अऩने उन नागरयकों, जो ववदे शों भें जाते हैं , की
सुयऺा की सभुर्चत व्मवस्था कये ।
प्रश्न 4.
अर्धकायों के तत्त्व अथवा रऺणों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
अचधकाय के तत्त्ि अथिा रऺण
अर्धकाय के अननवामथ तत्त्वों, रऺणों अथवा ववशेषताओॊ का वणथन ननम्नमरखखत हैं
1. अचधकाय सभाज द्िाया स्िीकृत होते हैं- अर्धकाय के मरए सभाज की स्वीकृनत आवश्मक है । जफ ककसी
भाॉग को सभाज स्वीकाय कय रेता है , तफ वह अर्धकाय फन जाती है । प्रो० आशीवाथदी रार के
अनुसाय, ―प्रत्मेक अर्धकाय के मरए सभाज की स्वीकृनत अननवामथ होती है । ऐसी स्वीकृनत के अबाव
भें अर्धकाय केवर कोये दावे यह जाते हैं। ‖
2. सािशबौसभक– अर्धकाय सावथबौमभक होते हैं अथाथत ् अर्धकाय सभाज के सबी व्मन्क्तमों को सभान रूऩ
से प्रदान ककए जाते हैं। अर्धकायों की सावथबौमभकता ही कतथव्मों को जन्भ दे ती है ।
3. याज्म का सॊयऺण- अर्धकायों को याज्म का सॊयऺण मभरना बी अननवामथ है । याज्म के सॊयऺण भें ही
व्मन्क्त अऩने अर्धकायों का सभर्ु चत उऩबोग कय सकता है । फाकथय के शब्दों भें , ―भानव चेतना
स्वतन्त्रता चाहती है , स्वतन्त्रता भें अर्धकाय ननटहत हैं तथा अर्धकाय याज्म की भाॉग कयते हैं। ‖
4. अचधकायों भें साभाक्जक दहत की बािना ननदहत होती है— अर्धकायों भें व्मन्क्तगत स्वाथथ के साथ-साथ
सावथजननक टहत की बावना बी ववद्मभान होती है ।
5. कल्माणकायी स्िरूऩ- अर्धकायों का सम्फन्ध भख्
ु मत् व्मन्क्त के व्मन्क्तत्व के ववकास से होता है । इस
कायण अर्धकाय के रूऩ भें केवर वे ही स्वतन्त्रताएॉ औय सुववधाएॉ प्रदान की जाती हैं , जो व्मन्क्त के
व्मन्क्तत्व के ववकास हे तु आवश्मक होती हैं। इस प्रकाय अर्धकायों का स्वरूऩ कल्माणकायी होता है ।
6. सभाज की स्िीकृनत- अर्धकाय उन कामों की स्वतन्त्रता का फोध कयाता है जो व्मन्क्त तथा सभाज
दोनों के मरए उऩमोगी होते हैं। सभाज की स्वीकृनत का मह अमबप्राम है कक व्मन्क्त अऩने अर्धकायों
का प्रमोग सभाज के अटहत भें नहीॊ कय सकता।
प्रश्न 5.
याज्म के ववरुर्द् ववद्रोह कयने के अर्धकाय को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय-
याज्म के विरुद् विद्रोह का अचधकाय
याज्म के प्रनत ननष्ट्ठा एवॊ बन्क्त यखना औय याज्म की आऻाओॊ का ऩारन कयना व्मन्क्त का कानन
ू ी
दानमत्व होता है । अत् व्मन्क्त को याज्म के ववरुर्द् ववद्रोह का कानूनी अर्धकाय तो प्राप्त हो ही नहीॊ
सकता, ऩयन्तु व्मन्क्त को याज्म के ववरुर्द् ववद्रोह का नैनतक अर्धकाय अवश्म प्राप्त होता है । शासन के
अन्स्तत्व का उद्देश्म साभान्म जनता का टहत सम्ऩाटदत कयना होता है । जफ शासन जनता के टहत भें कामथ
न कये , तफ व्मन्क्त को याज्म के ववरुर्द् ववद्रोह का केवर नैनतक अर्धकाय ही प्राप्त नहीॊ है , वयन ् । मह
उसका नैनतक कत्तथव्म बी है । इस सम्फन्ध भें सुकयात का भत था कक मटद व्मन्क्त को याज्म के ववरुर्द्
ववद्रोह कयने का अर्धकाय है तो याज्म द्वाया प्रदान ककए गए दण्ड को बी स्वीकाय कयना उसका कतथव्म
है । व्मन्क्तवादी तथा अयाजकतावादी ववचायकों ने व्मन्क्त द्वाया याज्म का ववयोध कयने के अर्धकाय का
सभथथन ककमा है । गाॊधी जी के अनुसाय, ―व्मक्तत का सिोच्च कतशव्म अऩनी अन्तयात्भा के प्रनत होता है।‖ अत:
अन्तयात्भा की आवाज ऩय याज्म का ववयोध बी ककमा जा सकता है । याज्म के ववरुर्द् ववद्रोह कयने के
सम्फन्ध भें मह ध्मान यखना आवश्मक है कक इस अर्धकाय का प्रमोग याज्म एवॊ सभाज के टहत से
सम्फन्न्धत सबी फातों ऩय ववचाय कयके तथा ववशेष ऩरयन्स्थनतमों भें ही ककमा जाना चाटहए। रोकतान्न्त्रक
याज्मों भें नागरयकों को शासन की आरोचना कयने एवॊ अऩना दर फनाने का बी अर्धकाय होता है ।
रोकतान्न्त्रक दे शों भें याज्म के प्रनत ववयोध का अर्धकाय जनता की इस बावना से ऩरयरक्षऺत होता है कक
वह याज्म के प्रनत अऩना दानमत्व ननष्ट्ठाऩूवक
थ न ननबा यहे प्रनतननर्धमों को आगे सत्ती का अवसय प्रदान
नहीॊ कयती।
दीघश उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
अर्धकाय की ऩरयबाषा दे ते हुए उसका वगीकयण कीन्जए।
मा
अर्धकाय से क्मा तात्ऩमथ है ? अर्धकाय के प्रकाय मरखखए।
उत्तय-
अर्धकाय भुख्मतमा हकदायी अथवा ऐसा दावा है न्जसका और्चत्म मसर्द् हो। अर्धकाय की प्रभुख ऩरयबाषाएॉ
ननम्नमरखखत हैं
ऑक्स्िन के अनुसाय, ―अर्धकाय व्मन्क्त की वह ऺभता है , न्जसके द्वाया वह अन्म व्मन्क्त अथवा व्मन्क्तमों
से कुछ ववशेष प्रकाय के कामथ कया रेता है । ‖
ग्रीन के अनुसाय, ―अर्धकाय भानव-जीवन की वे शन्क्तमाॉ हैं , जो नैनतक प्राणी होने के नाते व्मन्क्त को अऩना
कामथ ऩयू ा कयने के मरए आवश्मक हैं। ‖
फोसाॊके के अनुसाय, ―अर्धकाय वह भाॉग है , न्जसे सभाज स्वीकाय कयता है औय याज्म कक्रमान्न्वत कयता है । ‖
हॉरैण्ड के अनुसाय, ―अर्धकाय ककसी व्मन्क्त की वह ऺभता है , न्जससे वह अऩने फर ऩय नहीॊ , अवऩतु सभाज
के फर से दस
ू यों के कामों को प्रबाववत कय सकता है । ‖
प्रो० रॉस्की के अनुसाय, ―अर्धकाय साभान्जक जीवन की वे ऩरयन्स्थनतमाॉ हैं , न्जनके अबाव भें साभान्मत् कोई
व्मन्क्त अऩने उच्चतभ स्वरूऩ को प्राप्त नहीॊ कय सकता।‖
गानशय के अनुसाय, ―नैनतक प्राणी होने के नाते भनुष्ट्म के व्मवसाम की ऩूनतथ के मरए आवश्मक शन्क्तमों को
अर्धकाय कहा जाता है । ‖
श्रीननिास र्ास्त्री के अनुसाय, ―अर्धकाय सभुदाम के कानून द्वाया स्वीकृत वह व्मवस्था, ननमभ मा यीनत है , जो
नागरयक के सवोच्च नैनतक कल्माण भें सहामक हो। ‖
डॉ० फेनीप्रसाद के अनुसाय, ―अर्धकाय वे साभान्जक दशाएॉ हैं , जो भनुष्ट्म के व्मन्क्तत्व के ववकास के मरए
आवश्मक हैं।‖
उऩमुक्
थ त ऩरयबाषाओॊ के आधाय ऩय हभ इस ननष्ट्कषथ ऩय ऩहुॉचते हैं कक-

1. अर्धकाय साभान्जक दशाएॉ हैं।


2. अर्धकाय व्मन्क्त के ववकास के मरए आवश्मक तत्त्व हैं।
3. अर्धकायों द्वाया ही व्मन्क्तगत औय साभान्जक प्रगनत सम्बव है ।
4. अर्धकायों को सभाज स्वीकाय कयता है औय याज्म रागू कयता है ।
अचधकायों का िगीकयण (रूऩ अथिा प्रकाय)
साधायण रूऩ से अर्धकायों को ननम्नमरखखत रूऩों अथवा प्रकायों के अन्तगथत वगीकृत ककमा गमा है

1. प्राकृनतक अचधकाय- प्राकृनतक अर्धकाय वे अर्धकाय हैं , जो प्राकृनतक अवस्था भें भनुष्ट्मों को प्राप्त थे।
ऩयन्तु ग्रीन ने प्राकृनतक अर्धकायों को आदशथ अर्धकायों के रूऩ भें भाना है । उसके | अनुसाय, मे वे
अर्धकाय हैं, जो व्मन्क्त के नैनतक ववकास के मरए आवश्मक हैं औय न्जनकी प्रान्प्त सभाज भें ही
सम्बव है ।
2. नैनतक अचधकाय- मे वे अर्धकाय हैं , न्जनका सम्फन्ध भानव के नैनतक आचयण से होता है । इनका
स्वरूऩ अर्धकायों की अऩेऺा कतथव्म-ऩारन भें अर्धक ननटहत होता है ।
ू ी अचधकाय- कानूनी अर्धकाय वे हैं , न्जनकी व्मवस्था याज्म द्वाया की जाती है औय न्जनका
3. कानन
उल्रॊघन कानन
ू द्वाया दण्डनीम होता है । रीकॉक के अनस
ु ाय , ―कानन
ू ी अर्धकाय के ववशेषार्धकाय हैं ,
जो एक नागरयक को अन्म नागरयकों के ववरुर्द् प्राप्त होते हैं तथा जो याज्म की सवोच्च शन्क्त
द्वाया प्रदान ककए जाते हैं औय (उसी के द्वाया) यक्षऺत होते हैं। ‖
कानूनी अर्धकाय दो प्रकाय के रेते हैं
(i) साभान्जक मा नागरयक अर्धकाय (social or Civil Rights) तथा
(ii) याजनीनतक अर्धकाय (Political Rights)।

प्रश्न 2.
साभान्जक मा नागरयक अर्धकायों को सॊऺेऩ भें मरखखए।
उत्तय-
साभाक्जक मा नागरयक अचधकाय
साभान्जक मा नागरयक अर्धकाय याज्म के प्रत्मेक व्मन्क्त को ब्रफना ककसी बेदबाव के प्राप्त होते हैं। भुख्म
साभान्जक अर्धकाय ननम्नमरखखत हैं
1. जीिन-यऺा का अर्धकाय- प्रत्मेक व्मन्क्त अऩने जीवन की सुयऺा चाहता है । मटद व्मन्क्त को जीने
का अर्धकाय प्राप्त न हो मा उसके जीवन की सयु ऺा न हो , तो उस दशा भें उसका साभान्जक जीवन
कष्ट्टदामी हो जाएगा। वह प्रत्मेक ऺण अऩने जीवन की सुयऺा के मरए र्चन्न्तत यहे गा औय सभाज
के ककसी बी कामथ भें अऩना मोगदान नहीॊ कय सकेगा। बायत के ऩरयप्रेक्ष्म भें इस अर्धकाय को
भौमरक अर्धकायों (अनु० 21) के अन्तगथत ववशेष भहत्त्व की न्स्थनत प्रदान की गई है ।
2. सम्ऩक्त्त का अचधकाय- सम्ऩन्त्त व्मन्क्त की आवश्मकताओॊ की ऩूनतथ का एक प्रभुख साधन है , . |
इसमरए प्रत्मेक व्मन्क्त को अऩनी इच्छानुसाय उसका उऩबोग कयने का अर्धकाय प्राप्त होना।
चाटहए। इस अर्धकाय के अन्तगथत व्मन्क्त को सम्ऩन्त्त अन्जथत कयने , खयीदने, फेचने औय उसका
उऩबोग कयने का अर्धकाय है । मन
ू ानी ववचायक अयस्तू का भत था कक सम्ऩन्त्त व्मन्क्त के मरए
उतनी ही आवश्मक है , न्जतनी कक ऩरयवाय मा कुटुम्फ की आवश्मकता। इसके ववऩयीत कुछ ववद्वानों
का भत है कक सम्ऩन्त्त ही सफ कष्ट्टों की जननी है । उनके अनुसाय सम्ऩन्त्त ऩॉज
ू ीवादी व्मवस्था को
जन्भ दे ती है औय सभाज भें वगथ-सॊघषथ उत्ऩन्न कयती है । अत: सभाज भें सम्ऩन्त्त का न्मामऩूणथ
ववतयण होना आवश्मक है । सम्बवत् इसी दृन्ष्ट्टकोण को दे खते हुए बायत के सॊववधान भें सम्ऩन्त्त
के अर्धकाय को भौमरक अर्धकायों की श्रेणी से ऩथृ क् कय टदमा गमा है ।
3. सर्ऺा का अचधकाय- मशऺा भानवे व्मन्क्तत्व के ववकास की आधायमशरा है । सभाज औय याष्ट्र का
ववकास मशक्षऺत व्मन्क्तमों ऩय ही आधारयत है । अत् प्रत्मेक व्मन्क्त को मशऺा प्राप्त कयने का
अर्धकाय होना चाटहए।
4. धासभशक स्ितन्त्रता का अचधकाय- भनष्ट्ु म की आध्मान्त्भक प्रगनत के मरए धभथ जीवन का एक अननवामथ
तत्त्व है । प्रत्मेक व्मन्क्त ककसी-न-ककसी धभथ का अनुमामी होता है । अत् याज्म को धभथननयऩेऺ
यहकय प्रत्मेक व्मन्क्त को धामभथक स्वतन्त्रता का अर्धकाय प्रदान कयना चाटहए। जैसा कक रूसो को
कथन है , ―जफ तक उनके मसर्द्ान्त नागरयकता के कतथव्मों के प्रनतकूर न हों , व्मन्क्त को उन सबी
धभों के प्रनत सटहष्ट्णु होना चाटहए, जो दस
ू यों के प्रनत सटहष्ट्णु है । ‖
5. रेखन एिॊ विचायासबव्मक्तत को अचधकाय- याज्म को चाटहए कक वह प्रत्मेक व्मन्क्त को रेखन, बाषण औय
ववचायामबव्मन्क्त का अर्धकाय प्रदान कये । इस अर्धकाय द्वाया व्मन्क्त का भानमसक ववकास सम्बव
होता है , रेककन भनुष्ट्म को मह अर्धकाय कानून की सीभा के अन्तगथत ही प्रदान ककमा जाना
चाटहए।
6. सबा कयने ि सॊगठन फनाने का अचधकाय- भनुष्ट्म एक साभान्जक प्राणी है । वह एकाकी जीवन व्मतीत
नहीॊ कय सकता है ; अत् उसे सबा कयने मा सभुदाम फनाने का अर्धकाय प्राप्त होना चाटहए। रेककन
इस अर्धकाय का उऩबोग याज्म के कानन
ू ों की सीभा के अन्तगथत ही होना चाटहए।
7. आिागभन का अचधकाय- इस अर्धकाय के अन्तगथत प्रत्मेक व्मन्क्त को याज्म की सीभा के अन्तगथत
स्वतन्त्रताऩव
ू क
थ ऐक स्थान से दस
ू ये स्थान को जाने की सवु वधा प्राप्त होनी चाटहए। र्गरक्राइस्ट के
अनुसाय, स्वतन्त्रताऩूवक
थ घूभने के अर्धकाय के अबाव भें जीवन का कोई बी अथथ नहीॊ है ।
8. ऩारयिारयक जीिन व्मतीत कयने का अचधकाय- ऩरयवाय साभान्जक जीवन की आधायमशरा है ; अत् प्रत्मेक
व्मन्क्त को अऩनी इच्छानुसाय ऩारयवारयक जीवन व्मतीत कयने को अर्धकाय बी प्राप्त होना चाटहए।
ऩयन्तु इस अर्धकाय का मह अथथ कदावऩ नहीॊ है । कक ऩरयवाय सभाज की नैनतक सीभाओॊ का
उल्रॊघन कये औय ऩरयवाय के सदस्मों को दयु ाचाय की मशऺा दे । ऐसी न्स्थनत भें ककसी व्मन्क्त के
ऩारयवारयक जीवन भें बी याज्म द्वाया हस्तऺेऩ ककमा जा सकता है ।
9. भनोयॊ जन का अचधकाय- प्रत्मेक व्मन्क्त को शायीरयक औय भानमसक श्रभ कयने के उऩयान्त भनोयॊ जन
की आवश्मकता होती है । अत: व्मन्क्त को अवकाश के सभम भनोयॊ जन का अर्धकाय बी प्राप्त होना
चाटहए।
10. साॊस्कृनतक अचधकाय- इस अर्धकाय के अन्तगथत प्रत्मेक व्मन्क्त को मह अर्धकाय प्राप्त है कक
वह अऩनी बाषा एवॊ साटहत्म को अध्ममन व ववकास कय सके। अल्ऩसॊख्मकों के मरए मह अर्धकाय
फहुत ही भहत्त्वऩूणथ है ।
11. व्मिसाम की स्ितन्त्रता का अचधकाय- व्मवसाम की स्वतन्त्रता का अमबप्राम है कक प्रत्मेक व्मन्क्त
को इस फात की स्वतन्त्रता हो कक वह अऩनी इच्छा तथा मोग्मतानस
ु ाय व्मवसाम का चमन कय
सके।
प्रश्न 3.
अर्धकायों से सम्फन्न्धत प्राकृनतक मसर्द्ान्त औय वैधाननक मसर्द्ान्त के ववषम भें आऩ क्मा जानते हैं ?
उत्तय-
अचधकायों को प्राकृनतक ससद्ान्त
हॉब्स, रॉक तथा रूसो आटद ववद्वानों ने अर्धकायों के प्राकृनतक मसर्द्ान्त का सभथथन ककमा है । मह
मसर्द्ान्त अनत प्राचीन है । इसके अनुसाय अर्धकाय प्रकृनत-प्रदत्त हैं औय वे व्मन्क्त को जन्भ के साथ ही
प्राप्त हो जाते हैं। व्मन्क्त प्राकृनतक अर्धकायों का प्रमोग याज्म के उदम के ऩव
ू थ से ही कयता आ यहा है ।
याज्म इन अर्धकायों को न तो छीन सकता है औय न ही वह इनका जन्भदाता है । टॉभस ऩेन के
अनस
ु ाय, ―प्राकृनतक अचधकाय िे अचधकाय हैं, जो भनष्ट्ु म के अक्स्तत्ि को स्थानमत्ि प्रदान कयने के सरए आिश्मक हैं।‖ इस
दृन्ष्ट्टकोण से अर्धकाय असीमभत, ननयऩेऺ तथा स्वमॊमसर्द् हैं। याज्म इन अर्धकायों भें कोई हस्तऺेऩ नहीॊ कय
सकता।
आरोचना- इस मसर्द्ान्त भें कनतऩम दोष ननम्नमरखखत हैं-
1. मह मसर्द्ान्त अनैनतहामसक है , क्मोंकक न्जस प्राकृनतक व्मवस्था के अन्तगथत इन अर्धकायों के प्राप्त
होने का उल्रेख ककमा गमा है , वह काल्ऩननक है ।
2. ग्रीन का भत है कक सभाज से प्रथक् कोई बी अर्धकाय सम्बव नहीॊ है ।
3. मह मसर्द्ान्त याज्म को कृब्रत्रभ सॊस्था भानता है , जो अनुर्चत है ।
4. प्राकृनतक अर्धकायों भें ऩयस्ऩय ववयोधाबास ऩामा जाता है ।
5. मह मसर्द्ान्त कतथव्मों के प्रनत भौन है , जफकक कत्तथव्म के अबाव भें अर्धकायों का अन्स्तत्व सम्बव
नहीॊ है ।
अचधकायों का कानन
ू ी मा िैधाननक ससद्ान्त
इस मसर्द्ान्त के प्रवतथक फेन्थभ, हॉरैण्ड ऑक्स्िन आटद ववचायक हैं। इस मसर्द्ान्त के अनुसाय अर्धकाय याज्म
की इच्छा का ऩरयणाभ है औय याज्म ही अर्धकायों का जन्भदाता है । मह मसर्द्ान्त प्राकृनतक मसर्द्ान्त के
ववऩयीत है । व्मन्क्त याज्म के सयॊ ऺण भें यहकय ही अर्धकायों का प्रमोग कय सकता है । याज्म ही कानून
द्वाया ऐसी ऩरयन्स्थनतमों को उत्ऩन्न कयता है , जहाॉ कक व्मन्क्त अऩने अर्धकायों का स्वतन्त्रताऩव
ू क
थ प्रमोग
कय सके। याज्म ही अर्धकायों को भान्मता प्रदान कयता है । मह मसर्द्ान्त इस भान्मता ऩय आधारयत है कक
अर्धकायों का अन्स्तत्व केवर याज्म के अन्तगथत ही सम्बव है ।
आरोचना—इस मसर्द्ान्त भें कनतऩम दोष ननम्नमरखखत हैं-
1. इस मसर्द्ान्त से याज्म की ननयॊ कुशता का सभथथन होता है ।
2. याज्म नैनतक फन्धनों से भुक्त हो जाता है ।
3. अर्धकायों भें स्थानमत्व नहीॊ यहता है ।
प्रश्न 4.
अर्धकायों के ऐनतहामसक औय सभाज कल्माण सम्फन्धी मसर्द्ान्तों को सॊऺेऩ भें मरखखए।
उत्तय-
अचधकायों का ऐनतहाससक ससद्ान्त
इस मसर्द्ान्त के अनुसाय अर्धकायों की उत्ऩन्त्त प्राचीन यीनत-रयवाजों के ऩरयणाभस्वरूऩ होती है । न्जन यीनत-
रयवाजों को सभाज स्वीकृनत दे दे ता है , वे अर्धकाय का रूऩ धायण कय रेते हैं। इस मसर्द्ान्त के सभथथकों के
अनुसाय, अर्धकाय ऩयम्ऩयागत हैं तथा सतत ् ववकास के ऩरयणाभ हैं। इसके अनतरयक्त इनका आधाय
ऐनतहामसक है । इॊग्रैण्ड के सॊवैधाननक इनतहास भें ऩयम्ऩयागत अर्धकायों का फहुत अर्धक भहत्त्व यहा है ।
आरोचना- इस मसर्द्ान्त के आरोचकों का भत है कक अर्धकायों का आधाय केवर यीनत-रयवाज तथा ऩयम्ऩयाएॉ
नहीॊ हो सकतीॊ, क्मोंकक कुछ ऩयम्ऩयाएॉ तथा यीनत-रयवाज सभाज के कल्माण भें फाधक होते हैं। अत: इस
दृन्ष्ट्ट से मह मसर्द्ान्त तकथसॊगत नहीॊ है ।
अचधकायों का सभाज-कल्माण सम्फन्धी ससद्ान्त
जे०एस० सभर, जेयभी फेन्थभ, ऩाउण्ड तथा रॉस्की आटद ने इस मसर्द्ान्त का सभथथन ककमा है । इस मसर्द्ान्त का
प्रभुख रक्ष्म उऩमोर्गता मा सभाज-कल्माण है । प्रो० रॉस्की के अनुसाय, ―अर्धकायों का और्चत्म उनकी
उऩमोर्गता के आधाय ऩय आॉकना चाटहए। इस मसर्द्ान्त के अनुसाय अर्धकाय वे साधन हैं , न्जनसे सभाज
का कल्माण होता है । रॉस्की का भत है , ―रोक-कल्माण के ववरुर्द् भेये अर्धकाय नहीॊ हो सकते ; क्मोंकक ऐसा
कयना भुझे उस कल्माण के ववरुर्द् अर्धकाय प्रदान कयता है । न्जसभें भेया कल्माण घननष्ट्ठ तथा
अववन्च्छन्न रूऩ से जुडा हुआ है । ‖
इस मसर्द्ान्त की ननम्नमरखखत भान्मताएॉ हैं
1. अर्धकाय सभाज की दे न हैं , प्रकृनत की नहीॊ।
2. अर्धकायों का अन्स्तत्व सभाज-कल्माण ऩय आधारयत है ।
3. व्मन्क्त केवर उन्हीॊ अर्धकायों का प्रमोग का सकता है , जो सभाज के टहत भें हों।
4. कानन
ू , यीनत-रयवाज तथा अर्धकाय सबी का उद्देश्म सभाज-कल्माण है ।
आरोचना- मह मसर्द्ान्त तकथसॊगत औय उऩमोगी तो है , ककन्तु इसका सफसे फडा दोष मह है कक मह
मसर्द्ान्त सभाज-कल्माण की ओट भें याज्म को व्मन्क्तमों की स्वतन्त्रता का अऩहयण कयने का
अवसय प्रदान कयती है , रेककन सभीऺात्भक दृन्ष्ट्ट से मह दोष भहत्त्वहीन है ।
प्रश्न 5.
अर्धकायों का आदशथवादी मसर्द्ान्त क्मा है ? सॊऺेऩ भें मरखखए।
उत्तय-
अचधकायों का आदर्शिादी ससद्ान्त
इसे मसर्द्ान्त की भान्मता है कक अर्धकाय वे फाह्म साधन तथा दशाएॉ हैं , जो व्मन्क्त के सवाांगीण ववकास
के मरए आवश्मक होती हैं। इस मसर्द्ान्त का सभथथन थॉभस दहर ग्रीन, फैडरे, फोसाॊके आटद ववचायक ने ककमा है ।
इस मसर्द्ान्त की अग्रमरखखत भान्मताएॉ हैं
1. अर्धकाय व्मन्क्त की भाॉग है ।
2. मह भाॉग सभाज द्वाया स्वीकृत होती है ।
3. अर्धकायों का स्वरूऩ नैनतक होता है ।
4. अर्धकायों का उद्देश्म सभाज का वास्तववक टहत है ।
5. अर्धकाय व्मन्क्त के सवाांगीण ववकास के मरए आवश्मक साधन हैं।
आरोचना- इस मसर्द्ान्त के कनतऩम दोष ननम्नमरखखत हैं
1. मह मसर्द्ान्त व्मावहारयक नहीॊ है ; क्मोंकक व्मन्क्तत्व का ववकासे व्मन्क्तगत ऩहरू है तथा याज्म एवॊ
सभाज जैसी सॊस्थाओॊ के मरए मह जानना फहुत कटठन है कक ककसके ववकास के मरए क्मा
आवश्मक है ।
2. मह व्मन्क्त के टहतों ऩय अर्धक फर दे ता है तथा सभाज का स्थान गौण यखता है । अत् व्मन्क्त
अऩने स्वाथथ के मरए सभाज के टहतों के ववरुर्द् कामथ कय सकता है ।
3. भानव-जीवन के ववकास की आवश्मक ऩरयन्स्थनतमाॉ कौन-सी हैं , इनका ननणथम कौन कये गा तथा मे
ककस-ककस प्रकाय उऩरब्ध होंगी-इन फातों का स्ऩष्ट्टीकयण नहीॊ होता है । अत् इस मसर्द्ान्त की
आधायमशरा ही अवैऻाननक है ।
ननष्ट्कषथ- अध्ममनोऩयान्त हभ कह सकते हैं कक अर्धकायों का आदशथवादी मसर्द्ान्त ही सवोऩमक्
ु त है ,
क्मोंकक मह इस अवधायणा ऩय आधारयत है कक अर्धकायों की उत्ऩन्त्त व्मन्क्त के व्मन्क्तत्व | के
सवाांगीण ववकास के मरए है । याज्म तथा सभाज तो केवर व्मन्क्त के अर्धकायों की सयु ऺा तथा
व्मवस्था कयने के साधन भात्र हैं। व्मन्क्त सभाज के कल्माण भें ही अऩने अर्धकायों का प्रमोग कय
सकता है ।
प्रश्न 6.
भानवार्धकाय क्मा है ? भानवार्धकाय प्रान्प्त की टदशा भें क्मा कामथ हो यहे हैं ?
उत्तय-
ववगत कुछ वषों से प्राकृनतक अर्धकाय शब्द से अर्धक भानवार्धकाय शब्द का प्रमोग हो यहा है ।
भानवार्धकायों के ऩीछे भूर भान्मता मह है कक सबी रोग भनुष्ट्म होने भात्र से कुछ चीजों को ऩाने के
अर्धकायी हैं। एक भानव के रूऩ भें प्रत्मेक व्मन्क्त ववमशष्ट्ट औय सभान भहत्त्व का है । इसका अथथ मह है
कक आन्तरयक दृन्ष्ट्ट से सबी सभान हैं। सबी एक आन्तरयक भूल्म से सम्ऩन्न होते हैं औय उन्हें स्वतन्त्र
यहने तथा अऩनी ऩयू ी सम्बावना को साकाय कयने का अवसय मभरना चाटहए। इस ववचाय का प्रमोग नस्र ,
जानत, धभथ औय मरॊग ऩय आधारयत वतथभान असभानताओॊ को चुनौती दे ने के मरए ककमा जाता यहा है ।
अर्धकायों की इसी सभझदायी ऩय भानव अर्धकाय सम्फन्धी सॊमक्
ु त याष्ट्र घोषणा-ऩत्र फना है । मह उन दावों
को भान्मता दे ने का प्रमास कयता है , न्जन्हें ववश्व सभुदाम साभूटहक रूऩ से गरयभा औय आत्भ-सम्भान
ऩरयऩूणथ जीवन जीने के मरए आवश्मक भानता है ।
सम्ऩूणथ ववश्व के उत्ऩीडडत जन सावथबौभ भानवार्धकाय की अवधायणा का प्रमोग उन कानूनों को चुनौती
दे ने के मरए कय यहे हैं , जो उन्हें ऩथ
ृ क् कयने वारे औय सभान अवसयों तथा अर्धकायों से वॊर्चत कयते हैं।
वे भानवता की अवधायणा की ऩुनव्माथख्मा के मरए सॊघषथ कय यहे हैं , न्जससे वे स्वमॊ को इसभें सन्म्भमरत
कय सकें।

कुछ सॊघषथ सपर बी हुए हैं , जैसे दास प्रथा का उन्भूरन हुआ। रेककन कुछ अन्म सॊघषों भें अबी तक
सीमभत सपरता ही प्राप्त हो सकी है । रेककन आज बी अनेक ऐसे सभद ु ाम हैं , जो भानवता को इस प्रकाय
ऩरयबावषत कयने के सॊघषथ भें रगे हैं जो उन्हें बी सन्म्भमरत कये ।
ववववध सभाजों भें जैसे-जैसे नए खतये औय चन
ु ौनतमाॉ उबयती आई हैं , वैसे-वैसे ही उन भानवार्धकायों की
सूची ननयन्तय फढ़ती गई है न्जनका रोगों ने दावा ककमा है । उदाहयणाथथ , हभ आज प्राकृनतक ऩमाथवयण की
सयु ऺा की आवश्मकता के प्रनत फहुत सचेत हैं औय इसने स्वच्छ हवा , शर्द्
ु जर, सदृ
ु ढ़ ववकास जैसे
अर्धकायों की भाॉगें ऩैदा की हैं। मर्द् अथवा प्राकृनतक सॊकट के सभम अनेक रोग ववशेषकय भटहराएॉ , फच्चे
मा फीभाय न्जन ऩरयवतथनों का साभना कयते हैं उनके ववषम भें नई जागरूकता ने आजीववका के अर्धकाय ,
फच्चों के अर्धकाय औय ऐसे अन्म अर्धकायों की भाॉग बी ऩैदा की है । ऐसे दावे भानव गरयभा के
अनतक्रभण के प्रनत नैनतक आक्रोश का बाव प्रकट कयते हैं औय वे सभस्त भानव सभुदाम के मरए
अर्धकायों के प्रमोग औय ववस्ताय के मरए एकजुट होने का आह्वान कयते हैं।

प्रश्न 1.
प्राचीन बायत भें न्माम का सम्फन्ध था?
(क) धभथ से
(ख) ध्मान से
(ग) याज्म से
(घ) याजा से
उत्तय :
(क) धभश से
प्रश्न 2.
‗टद रयऩन्ब्रक‘ ककसकी यचना है ?
(क) अयस्तू की
(ख) प्रेटो की
(ग) भैककमावरी की
(घ) फोदाॊ की
उत्तय :
(ख) तरेिो की।
प्रश्न 3.
सुकयात कौन था?
(क) एक दाशथननक
(ख) एक याजनीनतऻ
(ग) एक याजा
(घ) एक ववद्माथी
उत्तय :
(क) एक दार्शननक।
प्रश्न 4.
―हय भनष्ट्ु म की गरयभा होती है । ‖ मह ककसका कथन है ?
(क) प्रेटो का
(ख) अयस्तू का
(ग) इभैनुएर काण्ट का।
(घ) यॉल्स का
उत्तय :
(ग) इभैनए ु र काण्ि का।
प्रश्न 5.
न्माम की दे वी आॉखों ऩय ऩट्टी इसमरए अॉधे यहती है क्मोंकक –
(क) उसे ननष्ट्ऩऺ यहना है ।
(ख) वह दे ख नहीॊ सकती
(ग) मह एक ऩयम्ऩया है ।
(घ) वह स्त्री है ।
उत्तय :
(क) उसे ननष्ट्ऩऺ यहना है।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
साभान्जक न्माम का रक्ष्म क्मा है ?
उत्तय :
साभान्जक न्माम का रक्ष्म साभान्जक-आर्थथक न्माम की प्रान्प्त है ताकक सभाज ननयन्तय अऩने ननधाथरयत
रक्ष्मों की ओय फढ़ सके।
प्रश्न 2.
न्माम के तीन मसर्द्ान्त कौन-से हैं ?
उत्तय :
1. सभान रोगों के प्रनत सभान फयताव।
2. सभानऩ
ु ानतक न्माम।
3. ववशेष जरूयतों का ववशेष ध्मान।
प्रश्न 3.
जॉन यॉल्स ने कौन-सा मसर्द्ान्त प्रस्तुत ककमा था?
उत्तय :
सुप्रमसर्द् याजनीनतक दाशथननक जॉन यॉल्स ने न्मामोर्चत ववतयण का मसर्द्ान्त प्रस्तुत ककमा है ।
प्रश्न 4.
फुननमादी आवश्मकताएॉ कौन-सी हैं ?
उत्तय :
स्वस्थ यहने के मरए आवश्मक ऩोषक तत्त्वों की फुननमादी भात्रा , आवास, शुर्द् ऩेमजर की आऩूनतथ, मशऺा
औय न्मूनतभ भजदयू ी फुननमादी आवश्मकताएॉ हैं।
प्रश्न 5.
भुक्त फाजाय की एक ववशेषता मरखखए।
उत्तय :
भुक्त फाजाय साधायणतमा ऩूवथ से ही सुववधासम्ऩन्न रोगों के मरए काभ कयते हैं।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
न्मामऩण
ू थ ववबाजन के मरए क्मा आवश्मक है ?
उत्तय :
साभान्जक न्माम प्राप्त कयने के मरए सयकायों को मह सनु नन्श्चत कयना होता है कक कानन
ू औय नीनतमाॉ
सबी व्मन्क्तमों ऩय ननष्ट्ऩऺ रूऩ से रागू हों। रेककन इतना ही कापी नहीॊ है इसभें कुछ औय अर्धक कयने
की आवश्मकता है । साभान्जक न्माम का सम्फन्ध वस्तओ
ु ॊ औय सेवाओॊ के न्मामोर्चत ववतयण से बी है ,
चाहे मह याष्ट्रों के फीच ववतयण का भाभरा हो मा ककसी सभाज के अन्दय ववमबन्न सभूहों औय व्मन्क्तमों
के फीच का। मटद सभाज भें गम्बीय साभान्जक मा आर्थथक असभानताएॉ हैं तो मह आवश्मक होगा कक
सभाज के कुछ प्रभख
ु सॊसाधनों की ऩन
ु ववथतयण हो, न्जससे नागरयकों को जीने के मरए सभतर धयातर
मभर सके। इसमरए ककसी दे श के अन्दय साभान्जक न्माम के मरए मह आवश्मक है कक न केवर रोगों के
साथ सभाज के कानूनों औय नीनतमों के सन्दबथ भें सभान फयताव ककमा जाए। फन्ल्क जीवन की न्स्थनतमों
औय अवसयों के भाभरे भें बी वे फहुत कुछ फुननमादी सभानता का उऩबोग कयें ।
प्रश्न 2.
नीचे दी गई न्स्थनतमों की जाॉच कयें औय फताएॉ कक क्मा वे न्मामसॊगत हैं। अऩने तकथ के साथ मह बी
फताएॉ कक प्रत्मेक न्स्थनत भें न्माम का कौन-सा मसर्द्ान्त काभ कय यहा है –
1. एक दृन्ष्ट्टहीन छात्र सुयेश को गखणत का प्रश्नऩत्र हर कयने के मरए साढ़े तीन घण्टे मभरते हैं ,
जफकक अन्म सबी छात्रों को केवर तीन घण्टे ।
2. गीता फैसाखी की सहामता से चरती है । अध्मावऩका ने गखणत का प्रश्नऩत्र हर कयने के मरए उसे
बी साढ़े तीन घण्टे का सभम दे ने का ननश्चम ककमा।
3. एक अध्माऩक कऺा के कभजोय छात्रों के भनोफर को उठाने के मरए कुछ अनतरयक्त अॊक दे ता है ।
4. एक प्रोपेसय अरग-अरग छात्राओॊ को उनकी ऺभताओॊ के भूल्माॊकन के आधाय ऩय अरग-अरग
प्रश्नऩत्र फाॉटता है ।
5. सॊसद भें एक प्रस्ताव ववचायाधीन है कक सॊसद की कुर सीटों भें से एक-नतहाई सीटें भटहराओॊ के
मरए आयक्षऺत कय दी जाएॉ।
उत्तय :
1. न्मामसॊगत है । ववशेष जरूयतों का ख्मार यखने का मसर्द्ान्त।
2. न्मामसॊगत नहीॊ। महाॉ उऩमुक्
थ त मसर्द्ान्त रागू नहीॊ होता।
3. न्मामसॊगत नहीॊ। महाॉ सभानऩ
ु ानतक मसर्द्ान्त रागू नहीॊ होता।
4. न्मामसॊगत नहीॊ। महाॉ न्मामऩूणथ फॉटवाया नहीॊ है ।
5. न्मामसॊगत है । महाॉ ‗ववशेष जरूयतों का ववशेष ख्मार‘ मसर्द्ान्त रागू होता है ।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
साभान्जक न्माम टदराने की टदशा भें सयकाय ने ववकराॊगों के मरए क्मा कामथ ककमा है ।
उत्तय :
ववकराॊगता के कायण ववकराॊगों को साभान्जक घण
ृ ा का साभना कयना ऩडता है तथा उन्हें जीवन भें आगे
फढ़ने के अवसयों से भात्र उनकी ववकराॊगता के कायण वॊर्चत कय टदमा जाता है । इससे न केवर ववकराॊग
व्मन्क्त को वयन ् उसके ऩूये ऩरयवाय को अनेक अवाॊनछत कटठनाइमों का साभना कयना ऩडता है ।
बायतीम सॊववधान ववकराॊगों को उनके काभ, मशऺा तथा सावथजननक सहामता के अर्धकाय टदरावने हे तु
याज्मों को ननदे श दे ता है न्जससे कक वे प्रबावी व्मवस्था रागू कयें । बायत के ववकराॊगों के टहतों से
सम्फन्न्धत भख्
ु मतमा ननम्नमरखखत तीन कानन
ू ऩारयत ककए गए हैं –

1. बायतीम ऩन
ु वाथस ऩरयषद् अर्धननमभ, 1992;
2. ववकराॊग-व्मन्क्त को सभान अवसय, अर्धकायों की यऺा औय ऩूणथ सहबार्गता अर्धननमभ, 1995; तथा
3. आत्भववभोह, भन्स्तष्ट्क ऩऺाघात, अल्ऩफुवर्द्ता तथा फहुववकराॊगता प्रबाववत व्मन्क्तमों के कल्माणाथथ
याष्ट्रीम न्माम अर्धननमभ, 1999.
बायतीम ऩुनवाथस ऩरयषद् अर्धननमभ, 1992 के द्वाया ऩुनवाथस ऩरयषद् को वैधाननक दजाथ प्रदान ककमा गमा
है । मह ववकराॊगता के ऺेत्र भें काभ कयने वारे ववमबन्न श्रेखणमों के कभथचारयमों के मरए चर यहे कामथक्रभों
तथा सॊस्थाओॊ को ननमन्न्त्रत कयता है ।

प्रश्न 2.
ववकराॊग व्मन्क्त अर्धननमभ, 1995 के क्मा प्रावधान हैं ?
उत्तय :
‗ववकराॊग व्मन्क्त अर्धननमभ, 1995′ सवाथर्धक व्माऩक है जो ववकराॊगों के मरए सभग्र दृन्ष्ट्टकोण यखता है ।
इसके अनसुाय –
1. ववकराॊगों को सयकायी नौकरयमों भें 3 प्रनतशत आयऺण टदमा जाएगा तथा उन सावथजननक एवॊ ननजी
सॊस्थानों को प्रोत्साहन टदमा जाएगा जो ऩाॉच मा ऩाॉच से अर्धक ववकराॊगों को अऩने महाॉ नौकयी
ऩय यखेंगे;
2. सयकाय का उत्तयदानमत्व है कक प्रत्मेक ववकराॊग को 18 वषथ की आमु तक नन:शुल्क मशऺा प्रदान
कये ;
3. ववकराॊगों को घय फनाने के मरए व्माऩाय मा पैक्टयी स्थावऩत कयने के मरए अथवा ववशेष भनोयॊ जन
केन्द्र, ववद्मारम मा अनुसन्धान सॊस्थान खोरने के मरए बूमभ का आवॊटन रयमामती दयों ऩय औय
प्राथमभकता के आधाय ऩय टदमा जाएगा;
4. इनके मरए योजगाय कामाथरम, ववशेष फीभा ऩॉमरमसमाॉ तथा फेकायी बत्ते की व्मवस्था की जाएगी ;
तथा
5. ववकराॊगों के कल्माण के मरए एक भुख्म आमुक्त की ननमुन्क्त की जाएगी जो याज्मों के आमुक्तों
द्वाया इन रोगों के कामों के मरए साभॊजस्म स्थावऩत कये , इनके टहतों की सयु ऺा हे तु । कामथ कये
औय उनकी मशकामतों की सुनवाई कये ।
प्रश्न 3.
बायत भें साभान्जक न्माम के सन्दबथ भें क्मा कदभ उठाए गए हैं ?
उत्तय :
बायत भें साभान्जक न्माम के सन्दबथ भें याज्म के नीनत-ननदे शक मसर्द्ान्तों भें ननम्नमरखखत प्रावधान ककए
गए हैं
ु छे द 38 – याज्म एक ऐसी साभान्जक व्मवस्था की प्रान्प्त औय सॊयऺण द्वाया , न्जसभें साभान्जक, आर्थथक
अनच्
औय याजनीनतक न्माम याष्ट्रीम जीवन की सबी सॊस्थाओॊ का भागथदशथन कयता है , जनसाभान्म की बराई को
फढ़ावा दे ने का प्रमास कये गा।
ु छे द 39 – ववशेषतौय ऩय याज्म अऩनी नीनत को इन चीजों की उऩरन्ब्ध के मरए ननदे मशत कये गा
अनच्
(क) कक नागरयक, ऩुरुष औय न्स्त्रमाॉ, जीवन माऩन के उर्चत साधनों ऩय सभान अर्धकाय यखते हों।
(ख) कक आर्थथक ढाॉचे का कक्रमान्वमन ऐसा न हो कक साधायण भनुष्ट्मों का अटहत हो औय सम्ऩन्त्त तथा
उत्ऩादन के साधन केन्न्द्रत हो जाएॉ।
(ग) कक काभगायों के स्वास्थ्म, शन्क्त औय फच्चों की सुकुभाय उम्र का दरु
ु ऩमोग न हो।
ु छे द 43 – श्रमभकों के मरए जीवनोऩमोगी वेतन प्राप्त कयाने का याज्म प्रमत्न कये ।
अनच्

ु छे द 46 – याज्म सभाज के कभजोय वगों के शैऺखणक औय आर्थथक टहतों की ववशेष रूऩ से ववृ र्द् कये
अनच्
औय उनका साभान्जक अन्माम तथा सबी प्रकाय के शोषण से सॊयऺण कये ।
ु छे द 47 – याज्म अऩने नागरयकों के ऩौन्ष्ट्टक स्तय औय जीवन स्तय को ऊऩय उठाने औय साभान्जक
अनच्
स्वास्थ्म को उन्नत कयने को अऩने प्राथमभक कतथव्मों भें सभझे।।
दीघश उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
साभान्जक न्माम से आऩ क्मा सभझते हैं ? साभान्जक न्माम के रऺणों का वणथन कीन्जए।
उत्तय :
एक अवधायणा के रूऩ भें साभान्जक न्माम अऩेऺाकृत नमा है । सय सी०के० एरन अऩनी ऩस्
ु तक
‗आस्ऩैक्ट्स ऑप जन्स्टस‘ भें मरखते हैं –
आज हभ ‗साभान्जक न्माम के फाये भें फहुत कुछ सन ु ते हैं। भैं नहीॊ सभझता कक वे जो इस कथन को फडी
वाचारता से प्रमोग कयते हैं , इसके क्मा अथथ रेते हैं , कुछ इसकी व्माख्मा ‗अवसय की सभानता के रूऩ भें
कयते हैं। जो एक भ्रमभक कथन है , क्मोंकक अवसय सबी रोगों के फीच सभान नहीॊ हो सकता क्मोंकक इसे
ग्रहण कयने की ऺभताएॉ असभान हैं , भुझे बम है , कुछ इसका अथथ मह रेते हैं कक मह उर्चत है भैं कहूॉगा –
ववशार रृदम कक प्राकृनतक भानवी असभानता की सूक्ष्भता को कभ ककए जाने के मरए हय प्रमास ककमा
जाए औय आत्भोन्ननत के व्मावहारयक अवसयों भें कोई फाधा नहीॊ डारनी चाटहए , वयन ् उन्हें भदद ऩहुॉचानी
चाटहए।

सय एरन का मह कथन इस फात को प्रकट कयता है कक साभान्जक न्माम की धायणा अस्ऩष्ट्ट सी है । कपय
बी इसभें कुछ तथ्म हैं। साभान्जक न्माम की अवधायणा भें एक उर्चत औय सुन्दय साभान्जक व्मवस्था जो
सफके मरए उर्चत औय सुन्दय है , सन्म्भमरत है ।

साभान्जक न्माम का तात्ऩमथ उन रोगों को ऊऩय उठाना है जो ककन्हीॊ कायणों से कभजोय औय कभ


अर्धकायसम्ऩन्न हैं औय जो जीवन की दौड भें ऩीछे छूट गए हैं। अत् साभान्जक न्माम सभाज के अर्धक
कभजोय औय वऩछडे वगों को ववशेष सुयऺा प्रदान कयता है ।

बायत के ऩूवथ भुख्म न्मामाधीश के० सुब्फायाव के अनुसाय-‗साभान्जक न्माम‘ शब्द के सीमभत औय व्माऩक
दोनों अथथ हैं। अऩने सीमभत अथथ भें इसका अमबप्राम है भनष्ट्ु म के व्मन्क्तगत सम्फन्धों भें व्माप्त अन्माम
को सुधाय। अऩने ववस्तत
ृ अथथ भें मह भनुष्ट्मों के याजनीनतक, साभान्जक औय आर्थथक जीवन के असन्तुरन
को दयू कयता है । साभान्जक न्माम को दस
ू ये मा फाद वारे अथथ भें सभझा जाना चाटहए , क्मोंकक तीनों ही
कक्रमाएॉ आऩस भें सम्फर्द् हैं। साभान्जक न्माम अच्छे सभाज के ननभाथण भें सहामक होता है ।

प्रश्न 2.
साभान्जक न्माम स्वतन्त्रता औय साभान्जक ननमन्त्रण भें सन्तर
ु न फनाए यखने का प्रमास कयता है । ‘
वववेचना कीन्जए।
उत्तय :
साभान्जक न्माम आधुननक कल्माणकायी याज्म का ननदे शक मसर्द्ान्त फन गमा है । साभान्जक सुयऺा के
कदभ, जैसे कक फेयोजगायी के भाभरे भें सहामता, प्रसवकारीन राब औय फीभायी, वर्द्
ृ ावस्था तथा अऩॊगता के
ववरुर्द् फीभा, सभाज के उन सदस्मों को साभान्जक न्माम टदराने को उठाए गए हैं। न्जनके ऩास अऩने
बयण-ऩोषण के साधन नहीॊ हैं औय जो अऩने ऩरयवायों की दे ख-ये ख नहीॊ कय ऩाते। साभान्जक न्माम को
भात्र साभान्जक सुयऺा के फयाफय सभझना गरत होगा। मह साभान्जक सुयऺा से अर्धक फडे अथथ का सूचक
है औय मह कभजोय तथा वऩछडे हुओॊ ऩय ववशेष ध्मान टदए जाने ऩय जोय दे ता है । साभान्जक न्माम तथा
सभाजवाद के अथों भें प्राम् भ्रान्न्त ऩैदा हो जाती है क्मोंकक दोनों ही असभानताओॊ को हटाने का प्रमास
कयते हैं। इन दोनों शब्दों को एक-दस
ू ये के मरए प्रमोग कयना गरत है । सभाजवाद अन्न्तभ ववश्रेषण भें
उत्ऩादन के साधनों ऩय व्मन्क्तगत अर्धकाय को सभाप्त कयने का उद्देश्म यखता है । सभाजवादी व्मवस्था
के अन्तगथत उत्ऩादन के सबी साधन; जैसे-बमू भ, ऩॉज
ू ी, कायखाने आटद सावथजननक अर्धकाय भें रे मरए जाते
हैं। एक ऐसी याजनीनतक व्मवस्था भें जो साभान्जक न्माम के मरए वचनफर्द् है इस सीभा तक जाना
आवश्मक नहीॊ है । साभान्जक न्माम की भाॉगों को उस दे श भें बी ऩयू ा ककमा जा सकता है न्जसने ऩॉज
ू ीवाद
को अऩनी आर्थथक व्मवस्था का आधाय फनाए यखा है । आवश्मक मह है कक कानून , कय औय अन्म
मन्ु क्तमों से मह सनु नन्श्चत कय टदमा जाए कक अच्छे जीवन के मरए आवश्मक न्मन
ू तभ हारात प्रत्मेक
सदस्म को अर्धकार्धक रूऩ भें उऩरब्ध कयाए जाएॉ। अननवामथत् इसका तात्ऩमथ सभर्द्
ृ रोगों के हाथ से
सभाज के गयीफ वगथ के हाथ भें साधनों का हस्तान्तयण होना है , ऩयन्तु इससे ऩॉज
ू ीवाद का अन्त नहीॊ
होता। साभान्जक न्माम सदै व आर्थथक औय साभान्जक असन्तुरनों को दयू कयने का प्रमास कयता है जैसा
कक बायतीम उच्च न्मामारम ने एक भहत्त्वऩूणथ पैसरे भें कहा था- ―मह स्वतन्त्रता औय साभान्जक
ननमन्त्रण भें सन्तुरन फनाए यखने का प्रमास कयता है । ‖
प्रश्न 3.
‗भुक्त फाजाय फनाभ याज्म का हस्तऺेऩ ‘ ववषम ऩय रघु ननफन्ध मरखखए।
उत्तय :
भत
ु त फाजाय फनाभ याज्म का हस्तऺेऩ
भक्
ु त फाजाय के सभथथकों का भानना है कक जहाॉ तक सम्बव हो , रोगों को सम्ऩन्त्त अन्जथत कयने के मरए
तथा भूल्म, भजदयू ी औय राब के भाभरे भें दस
ू यों के साथ अनुफन्ध औय सभझौतों भें शामभर होने के मरए
स्वतन्त्रत यहना चाटहए। उन्हें राब की अर्धकतभ भात्रा प्राप्त कयने के मरए एक-दस
ू ये के साथ
प्रनतद्वन्द्ववता कयने की छूट होनी चाटहए। मह भुक्त फाजाय का सयर र्चत्रण है । भुक्त फाजाय के सभथथक
भानते हैं कक अगय फाजायों को याज्म के हस्तऺेऩ से भक्
ु त कय टदमा जाए , तो फाजायी कायोफाय का मोग
कुर मभराकय सभाज भें राब औय कतथव्मों का न्मामऩूणथ ववतयण सुननन्श्चत कय दे गा। इससे मोग्म औय
प्रनतबासम्ऩन्न रोगों को अर्धक प्रनतपर प्राप्त होगा जफकक अऺभ रोगों को कभ प्राप्त होगा। उनकी
भान्मता है कक फाजायी ववतयण का जो बी ऩरयणाभ हो, वह न्मामसॊगत होगा।

हाराॉकक, भुक्त फाजाय के सबी सभथथक आज ऩूणत


थ मा अप्रनतफन्न्धत फाजाय का सभथथन नहीॊ कयें गे। कई
रोग अफ कुछ प्रनतफन्ध स्वीकाय कयने के मरए तैमाय होंगे। उदाहयण के रूऩ भें , सबी रोगों के मरए
न्मूनतभ फुननमादी जीवन-भानक सुननन्श्चत कयने के मरए याज्म हस्तऺेऩ कये , ताकक वे सभान शतों ऩय
प्रनतस्ऩधाथ कयने भें सभथथ हो सकें। रेककन वे तकथ कय सकते हैं कक महाॉ बी स्वास्थ्म सेवा , मशऺा तथा ‖
ऐसी अन्म सेवाओॊ के ववकास के मरए फाजाय को अनभ
ु नत दे ना ही रोगों के मरए इन फनु नमादी सेवाओॊ की
आऩूनतथ का सफसे उत्तभ उऩाम हो सकता है । दस
ू यों शब्दों भें , ऐसी सेवाएॉ उऩरब्ध कयाने के मरए ननजी
एजेंमसमों को प्रोत्साटहत ककमा जाना चाटहए, जफकक याज्म की नीनतमाॉ इन सेवाओॊ को खयीदने के मरए
रोगों को सशक्त फनाने का प्रमास कयें । याज्म के मरए मह बी आवश्मक हो सकता है कक वह उन वर्द्
ृ ों
औय योर्गमों को ववशेष सहामता प्रदान कये , जो प्रनतस्ऩधाथ नहीॊ कय सकते। रेककन इसके आगे याज्म की
बूमभका ननमभ-कानून का ढाॉचा फनाए यखने तक ही सीमभत यहनी चाटहए , न्जससे व्मन्क्तमों के फीच
जफयदस्ती औय अन्म फाधाओॊ से भुक्त प्रनतद्वन्द्ववता सुननन्श्चत हो। उनका भानना है कक भुक्त फाजाय
उर्चत औय न्मामऩूणथ सभाज का आधाय होता है । कहा जाता है कक फाजाय ककसी व्मन्क्त की जानत मा धभथ
की ऩयवाह नहीॊ कयता। वह मह बी नहीॊ दे खता कक आऩ ऩुरुष हैं मा स्त्री। वह इन सफसे ननयऩेऺ यहता है
औय उसका सम्फन्ध आऩकी प्रनतबा औय कौशर से है । अगय आऩके ऩास मोग्मता है । तो शेष सफ फातें
फेभानी हैं।

फाजायी ववतयण के ऩऺ भें एक तकथ मह यखा जाता है कक मह हभें अर्धक ववकल्ऩ प्रदान कयता है । इसभें
शक नहीॊ कक फाजाय प्रणारी उऩबोक्ता के तौय ऩय हभें अर्धक ववकल्ऩ दे ती है । हभ जैसा चाहें वैसा चावर
ऩसन्द कय सकते हैं औय रुर्च के अनस
ु ाय ववद्मारम जा सकते हैं , फशते उनकी कीभत चक
ु ाने के मरए
हभाये ऩास साधन हों। रेककन, फुननमादी वस्तुओॊ औय सेवाओॊ के भाभरे भें भहत्त्वऩूणथ फात मह है कक
अच्छी गण
ु वत्ता की वस्तए
ु ॉ औय सेवाएॉ रोगों के खयीदने रामक कीभत ऩय उऩरब्ध हों। मटद ननजी
एजेंमसमाॉ इसे अऩने मरए राबदामक नहीॊ ऩाती हैं , तो वे उसे ववमशष्ट्ट फाजाय भें प्रवेश नहीॊ कयें गी अथवा
सस्ती औय घटटमा सेवाएॉ उऩरब्ध कयाएॉगी। मही वजह है कक सुदयू ग्राभीण इराकों भें फहुत कभ ननजी
ववद्मारम हैं औय कुछ खुरे बी हैं ; तो वे ननम्नस्तयीम हैं। स्वास्थ्म सेवा औय आवास के भाभरे भें बी सच
मही है । इन ऩरयन्स्थनतमों भें सयकाय को हस्तऺेऩ कयना ऩडता है ।

भुक्त फाजाय औय ननजी उद्मभ के ऩऺ भें अक्सय सुनने भें आने वारा दस
ू या तकथ मह है कक वे जो सेवाएॉ
उऩरब्ध कयाते हैं, उनकी गुणवत्ता सयकायी सॊस्थानों द्वाया प्रदत्त सेवाओॊ से प्राम् अच्छी होती हैं। रेककन
इन सेवाओॊ की कीभत उन्हें गयीफ रोगों की ऩहुॉच से फाहय कय सकती है । ननजी व्मवसाम वहीॊ जाना
चाहता है , जहाॉ उसे सवाथर्धक राब मभरे औय इसीमरए भक्ु त फाजाय ताकतवय, धनी औय प्रबावशारी रोगों
के टहत भें काभ कयने के मरए प्रवत्ृ त होता है । इसका ऩरयणाभ अऩेऺाकृत कभजोय औय सुववधाहीन रोगों
के मरए अवसयों का ववस्ताय कयने की अऩेऺा अवसयों से वॊर्चत कयना हो सकता है ।

तकथ तो वाद-वववाद दोनों ऩऺों के मरए प्रस्तत


ु ककए जा सकते हैं , रेककन भक्
ु त फाजाय साधायणतमा ऩव
ू थ से
ही सुववधासम्ऩन्न रोगों के हक भें काभ कयने का रुझान टदखाते हैं। इसी कायण अनेक रोग तकथ कयते हैं
कक साभान्जक न्माम सनु नन्श्चत कयने के मरए याज्म को मह सनु नन्श्चत कयने की ऩहर कयनी चाटहए कक
सभाज के सदस्मों को फुननमादी सुववधाएॉ उऩरब्ध हों।

प्रश्न 1.
‗कतथव्म के उर्चत क्रभ-ननधाथयण का नाभ ही नागरयकता है । ‘ मह कथन ककसका है ।
(क) ए० के० सीमू को
(ख) सक
ु यात का
(ग) प्रेटो का
(घ) डॉ० ववमरमभ फॉमड का
उत्तय-
(घ) डॉ० ववमरमभ फॉमड का।
प्रश्न 2.
ननम्नमरखखत भें से नागरयक का साभान्जक अर्धकाय चुननए
(क) भतार्धकाय
(ख) मशऺा का अर्धकाय
(ग) चन
ु ाव रडने का अर्धकाय
(घ) न्माम प्राप्त कयने का अर्धकाय
उत्तय-
(ख) मशऺा का अर्धकाय।
प्रश्न 3.
ननम्नाॊककत भें कौन ववदे शी है ?
(क) याजनीनतक अर्धकाय प्राप्त
(ख) सैननक
(ग) याजदत

(घ) याज्म का सदस्म
उत्तय-
(ग) याजदत
ू ।
प्रश्न 4.
ककन दे शों भें सम्ऩन्त्त खयीदने ऩय वहाॉ की नागरयकता प्राप्त हो जाती है ?
(क) बायत
(ख) फाॊग्रादे श
(ग) दक्षऺणी अभेरयका के कुछ दे श
(घ) ऩाककस्तान
उत्तय-
(ग) दक्षऺणी अभेरयका के कुछ दे श।
प्रश्न 5.
आदशथ नागरयकता का तत्त्व नहीॊ है
(क) कतथव्मऩयामणता
(ख) जागरूकता
(ग) मशऺा
(घ) साम्प्रदानमकता
उत्तय-
(घ) साम्प्रदानमकता।
प्रश्न 6.
―मशऺा, जो आत्भा का बोजन है , स्वस्थ नागरयकता की प्रथभ शतथ है । ‖ मह कथन ककसका है ?
(क) अिाहभ मरॊकन का
(ख) सुकयात का
(ग) फार गॊगाधय नतरक को
(घ) भहात्भा गाॊधी का
उत्तय-
(घ) भहात्भा गाॊधी का।
प्रश्न 7.
आदशथ नागरयक के भागथ भें फाधा है
(क) अमशऺा व अऻानता
(ख) अच्छा स्वास्थ्म
(ग) सॊमक्
ु त ऩरयवाय
(घ) ननधथन मभत्र
उत्तय-
(क) अमशऺा व अऻानता।
प्रश्न 8.
आदशथ नागरयक का गुण नहीॊ है
(क) सच्चरयत्रता
(ख) आत्भ-सॊमभ
(ग) उग्र-याष्ट्रीमता
(घ) अर्धकाय-कतथव्म का ऻान
उत्तय-
(ग) उग्र-याष्ट्रीमता।
प्रश्न 9.
आदशथ नागरयकता के भागथ भें फाधा नहीॊ है
(क) साम्प्रदानमकता
(ख) अमशऺा
(ग) ननधथनता
(घ) याष्ट्र के प्रनत सम्भान की बावना
उत्तय-
(घ) याष्ट्र के प्रनत सम्भान की बावना।
प्रश्न 10.
ननम्नमरखखत भें से कौन-सा तत्त्व आदशथ नागरयकता के भागथ भें फाधक नहीॊ है ।
(क) ननधथनता
(ख) अनुशासन
(ग) अमशऺा
(घ) स्वाथथऩयता
उत्तय-
(ख) अनुशासन।
प्रश्न 11.
ककसी याज्म भें ननवास कयने वारे ववदे शी के सम्फन्ध भें ननम्नमरखखत भें से कौन-सा कथन सही नहीॊ है ?
(क) वह याज्म भें बूमभ का क्रम नहीॊ कय सकता
(ख) उसकी जान-भार की सयु ऺा के मरए याज्म उत्तयदामी नहीॊ है ।
(ग) याज्म उसे अल्ऩकार के मरए ननवास कयने की अनुभनत दे सकता है ।
(घ) वह अऩने याज्म के प्रनत ननष्ट्ठा यखता है ।
उत्तय-
(ख) उसकी जान-भार की सयु ऺा के मरए याज्म उत्तयदामी नहीॊ है ।
प्रश्न 12.
ककसी दे श भें ववदे शी को ननम्नमरखखत भें से कौन-से अर्धकाय प्राप्त नहीॊ हैं ?
(क) याजनीनतक अर्धकाय
(ख) साभान्जक अर्धकाय
(ग) धामभथक अर्धकाय
(घ) व्माऩारयक अर्धकाय
उत्तय-
(क) याजनीनतक अर्धकाय।
प्रश्न 13.
आदशथ नागरयकता के भागथ भें प्रभख
ु फाधा क्मा है ?
(क) औद्मोगीकयण
(ख) शहयीकयण
(ग) साऺयता
(घ) ननधथनता
उत्तय-
(घ) ननधथनता।
प्रश्न 14.
सॊसद भें बायतीम नागरयकता अर्धननमभ कफ ऩारयत हुआ ?
(क) 1950 ई० भें
(ख) 1952 ई० भें
(ग) 1955 ई० भें
(घ) 1960 ई० भें
उत्तय-
(ग) 1955 ई० भें।
प्रश्न 15.
―टद कपरॉस्पी ऑप मसटटजनमशऩ‖ नाभक ऩस्
ु तक के रेखक हैं
(क) एप० जी० गोल्ड
(ख) अल्िेड जे० शॉ
(ग) डॉ० ई० एभ० ह्वाइट
(घ) वाडथ
उत्तय-
(ग) डॉ० ई० एभ० ह्वाइट।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
नागरयकता प्राप्त कयने के दो तयीके फताइए।
मा नागरयकता प्राप्त होने की कोई दो न्स्थनतमाॉ फताइए।
उत्तय-
1. जन्भ द्वाया तथा
2. दे शीमकयण द्वाया।
प्रश्न 2.
बायत भें नागरयकता के रोऩ होने के कोई दो कायण मरखखए।
मा नागरयकता खोने के दो आधाय फताइए।
उत्तय-
1. ववदे श भें सयकायी नौकयी कयने ऩय तथा
2. सेना से बागने ऩय।
प्रश्न 3.
आदशथ नागरयक के ववषम भें रॉडथ िाइस की ऩरयबाषा मरखखए।
उत्तय–
―एक रोकतन्त्रीम (आदशथ) नागरयक भें फवु र्द्, आत्भ-सॊमभ तथा उत्तयदानमत्व होना चाटहए।‘
प्रश्न 4.
कोई दो न्स्थनतमाॉ फताइए न्जनभें केन्द्रीम सयकाय नागरयक की नागरयकता सभाप्त कय | सकती है ।
मा एक बायतीम स्त्री की नागरयकता का रोऩ हो गमा है । इसके दो सम्बाववत कायणों का |‘ उल्रेख
कीन्जए।
उत्तय-
1. दे शद्रोह कयने ऩय तथा
2. रम्फे सभम तक दे श से अनुऩन्स्थत यहने ऩय।
प्रश्न 5.
आदशथ नागरयकता के चाय तत्त्व फताइए।
उत्तय–
आदशथ नागरयकता के चाय तत्त्व हैं —
1. कतथव्मऩयामणता,
2. प्रगनतशीरता,
3. व्माऩक दृन्ष्ट्टकोण तथा
4. जागरूकता।
प्रश्न 6.
बायतीम सॊववधान भें सभस्त नागरयकों के मरए कैसी नागरयकता की व्मवस्था की गमी है ?
उत्तय-
बायतीम सॊववधान भें सभस्त नागरयकों के मरए इकहयी नागरयकता की व्मवस्था की गमी है ।
प्रश्न 7.
नागरयक के दो प्रभख
ु कतथव्मों का वणथन कीन्जए।
उत्तय–
नागरयक के दो प्रभुख कतथव्म हैं —
1. याज्म के प्रनत बन्क्त एवॊ
2. याज्म के कानन
ू ों का ऩारन कयना।
प्रश्न 8.
ववदे शी ककसे कहते हैं ?
उत्तय–
ववदे शी वह व्मन्क्त है जो अऩना दे श छोडकय ककसी कायणवश अन्म दे श भें यहने रगा हो। उसे उस दे श के
साभान्जक अर्धकाय प्राप्त होते हैं , याजनीनतक अर्धकाय प्राप्त नहीॊ होते।
प्रश्न 9.
ववदे मशमों का वगीकयण कीन्जए।
उत्तय–
ववदे मशमों को तीन प्रभुख वगों भें ववबान्जत ककमा जा सकता है -
1. स्थामी ववदे शी,
2. अस्थामी ववदे शी तथा
3. याजदत
ू ।
प्रश्न 10.
आदशथ नागरयकता के भागथ भें सहामक दो प्रभुख तत्त्व फताइए।
उत्तय-
आदशथ नागरयकता के भागथ भें सहामक दो प्रभुख तत्त्व हैं-
1. स्वतन्त्र प्रेस तथा
2. स्वस्थ याजनीनतक दर।
प्रश्न 11.
―मशऺा श्रेष्ट्ठ नागरयक जीवन के वत्ृ त-खण्ड की आधायमशरा है । ‖ मह कथन ककस ववद्वान ् का है ?
उत्तय-
मह कथन डॉ० फेनी प्रसाद नाभक ववद्वान ् का है ।
प्रश्न 12.
नागरयकों के कौन-से दो भुख्म प्रकाय होते हैं ?
उत्तय-
नागरयकों के दो भुख्म प्रकाय हैं-
1. जन्भजात नागरयक तथा
2. दे शीमकयण से नागरयकता प्राप्त नागरयक।
प्रश्न 13.
बायत भें नागरयकता अर्धननमभ कफ फनामा गमा?
उत्तय-
बायत भें नागरयकता अर्धननमभ 1955 ई० भें फनामा गमा।
प्रश्न 14.
बायत का प्रथभ नागरयक कौन है ?
उत्तय-
बायत का याष्ट्रऩनत बायत का प्रथभ नागरयक भाना जाता है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
नागरयक की ववमबन्न ऩरयबाषाओॊ का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय-
‗नागरयक‘ की ऩरयबाषाएॉ
प्राचीन मूनानी ववचायक अयस्तु ने नागरयक की ऩरयबाषा इन शब्दों भें की थी , ―एक नागरयक वह है , न्जसने
याज्म के शासन भें कुछ बाग मरमा हो औय जो याज्म द्वाया प्रदान ककए गए सम्भान का उऩबोग कय
सके।‖
बरे ही तत्कारीन ऩरयन्स्थनतमों भें अयस्तु की उऩमक्
ुथ त ऩरयबाषा सटीक यही हो , रेककन अयस्तू की मह
ऩरयबाषा आधुननक कार भें अऩूणथ भानी जाती है , क्मोंकक आज नगय-याज्मों का स्थान ववशार याज्मों ने रे
मरमा है । परत् ‗नागरयक‘ शब्द का अथथ बी फहुत अर्धक व्माऩक हो गमा है । आधुननक ववद्वानों ने
‗नागरयक‘ शब्द की ऩरयबाषा ननम्नमरखखत प्रकाय से दी है ।
रॉस्की के अनुसाय, ―नागरयक केवर सभाज का एक सदस्म ही नहीॊ है , वयन ् वह कुछ कतथव्मों का मान्न्त्रक
रूऩ से ऩारनकताथ तथा आदे शों का फौवर्द्क रूऩ से ग्रहणकताथ बी है । ‖
गैदिर के अनुसाय, ―नागरयक सभाज के वे सदस्म हैं , जो कुछ कतथव्मों द्वाया सभाज से फॉधे यहते हैं , जो
उसके प्रबत्ु व को भानते हैं औय उससे सभान रूऩ से राब उठाते हैं। ‖
सीरे के अनुसाय, ―नागरयक उस व्मन्क्त को कहते हैं , जो याज्म के प्रनत बन्क्त यखता हो, उसे साभान्जक तथा
याजनीनतक अर्धकाय प्राप्त हों औय जन-सेवा की बावना से प्रेरयत हो। ‖
प्रश्न 2.
ककसी दे श के नागरयक को ककतनी श्रेखणमों भें ववबान्जत कय सकते हैं ? सॊऺेऩ भें वणथन कीन्जए।
उत्तय-
ककसी दे श के नागरयक को ननम्नमरखखत चाय श्रेखणमों भें ववबान्जत कय सकते हैं
1. अल्ऩ-िमस्क नागरयक- मे एक ननन्श्चत आमु से कभ आमु के व्मन्क्त होते हैं। ऐसे नागरयकों को सभस्त
प्रकाय के अर्धकाय प्राप्त होते हैं , रेककन ननधाथरयत आमु के ऩूवथ वे अऩने याजनीनतक अर्धकायों का उऩमोग
नहीॊ कय सकते। बायत भें 18 वषथ की आमु से कभ के व्मन्क्त इस श्रेणी
भें आते हैं।
2. भताचधकाय यदहत िमस्क नागरयक- मे वे नागरयक होते हैं जो ननधाथरयत आमु ऩूणथ कयने के फाद | बी शायीरयक
एवॊ भानमसक अमोग्मताओॊ के कायण भत दे ने के अर्धकाय से वॊर्चत कय टदमे जाते हैं। उदाहयणाथथ-कोढ़ी ,
ऩागर, टदवामरमा व दे शद्रोही इत्माटद। इन्हें मसपथ साभान्जक अर्धकाय प्राप्त होते हैं।
3. भताचधकाय प्रातत िमस्क नागरयक- इस श्रेणी भें वे नागरयक आते हैं जो चायों शतों को ऩयू ा कयते हों, अथाथत ् वे
याज्म के सदस्म हों, उन्हें साभान्जक एवॊ याजनीनतक अर्धकाय प्राप्त हों, उन्हें भतार्धकाय प्राप्त हो तथा
उनभें याज्म के प्रनत बन्क्त-प्रदशथन की बावना हो।
4. दे र्ीमकृत नागरयक- इस श्रेणी भें वे नागरयक आते हैं जो ऩूवथ भें ककसी अन्म दे श अथवा याज्म के नागरयक
थे, रेककन ककसी दे श भें फहुत टदनों तक यहने एवॊ कुछ शतों को ऩयू ा कयने ऩय याज्म की ओय से उन्हें
याजनीनतक एवॊ साभान्जक अर्धकाय दे टदमे गमे हों।
प्रश्न 3.
‗ववदे शी ऩय टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय-
ववदे शी वह व्मन्क्त है जो अस्थामी रूऩ से उस याज्म भें ननवास कयता है न्जसका वह सदस्म नहीॊ है । कोई
बी व्मन्क्त ककसी दे श भें ववदे शी उस सभम कहा जा सकता है जफ वह अल्ऩावर्ध हे तु ककसी कामथवश
अऩना दे श छोडकय दस
ू ये दे श भें यहने के मरए आमा हो। कोई व्मन्क्त व्माऩाय कयने , मशऺा प्राप्त कयने
अथवा घभ
ू ने के मरए दस
ू ये दे श भें आता है औय न्जतने सभम तक अऩना दे श छोडकय फाहय यहता है ,
उतने सभम तक उस याज्म भें ववदे शी कहा जाता है । उसे उस दे श के याजनीनतक अर्धकाय प्राप्त नहीॊ होते
तथा न ही वह उस याज्म के प्रनत बन्क्तबाव यखता है । वह उस याज्म के प्रनत बन्क्तबाव यखता है न्जसका
वह सदस्म है । इस प्रकाय ववदे शी वह व्मन्क्त है जो मसपथ साभान्जक अर्धकायों का उऩमोग कयता है । एक
ववदे शी को जीवन एवॊ सम्ऩन्त्त की यऺा एवॊ कुछ साभान्म साभान्जक अर्धकाय प्राप्त होते हैं , रेककन अन्म
साभान्जक एवॊ याजनीनतक अर्धकाय प्राप्त नहीॊ होते। इन अर्धकायों की प्रान्प्त के फदरे ववदे मशमों को
सम्फन्न्धत दे श के कानून का ऩूणत
थ मा ऩारन कयना होता है ।
प्रश्न 4.
नागरयकता प्राप्त कयने के सन्दबथ भें जन्भ-स्थान के मसर्द्ान्त का वववयण दीन्जए।
उत्तय-
इस मसर्द्ान्त के अनुसाय फारक की नागरयकता उसके जन्भस्थान के आधाय ऩय ननन्श्चत की जाती है ।
उदाहयणाथथ, मटद बायत के ककसी नागरयक का फच्चा अजेण्टाइना की बूमभ ऩय जन्भ रेता है । तो वह फच्चा
वहाॉ का नागरयक भाना जाएगा। रेककन इसके ववऩयीत , मटद अजेण्टाइन के नागरयक का फच्चा बायत- बूमभ
ऩय अथवा अन्म ककसी याज्म भें जन्भ रेता है तो वह स्वदे श की नागरयकता से वॊर्चत यह जाएगा।
मद्मवऩ मह मसर्द्ान्त अजेण्टाइना भें प्रचमरत है , रेककन वहाॉ की अऩेऺा मह इॊग्रैण्ड भें अर्धक व्माऩक है ।
वहाॉ तो कोई फच्चा मटद इॊग्रैण्ड के जहाज भें बी ऩैदा होता है तो वह इॊग्रैण्ड का नागरयक भाना जाता है ।
इस मसर्द्ान्त का सफसे फडा दोष मह है कक कोई दम्ऩनत ववश्व-भ्रभण के मरए ननकरे तो हो सकता है । कक
उसकी एक सन्तान जाऩान भें हो, दस
ू यी बायत भें तथा तीसयी सॊमक्
ु त याज्म अभेरयका भें। ऐसी दशा भें
जन्भ-स्थान ननमभ के अनुसाय तीनों फच्चे अरग-अरग दे शों के नागरयक होंगे तथा उन्हें अऩने भाता-वऩता
के दे श की नागरयकता प्राप्त नहीॊ होगी।
प्रश्न 5.
नागरयकता से आऩ क्मा सभझते हैं ?
उत्तय-
नागरयकता वह बावना है जो नागरयक भें ननवास कयती है । मह बावना नागरयक भें दे शबन्क्त को जाग्रत
कयती है औय नागरयक को उसके कतथव्म-ऩारन तथा उत्तयदानमत्व ननबाने के मरए सजग कयती
है । रॉस्की के कथनानस
ु ाय, ―अऩनी प्रमशक्षऺत ववृ र्द् को रोकटहत के मरए प्रमोग कयना ही नागरयकता ,
है ।‘ गैदिर के ववचायानुसाय, ―नागरयकता ककसी व्मन्क्त की उस न्स्थनत को कहते हैं , न्जसके अनुसाय वह अऩने
याज्म भें साभान्जक एवॊ याजनीनतक अर्धकायों का उऩबोग कय सकता है तथा कतथव्मों का ऩारन कयने के
मरए तत्ऩय यहता है ।‖
विसरमभ फॉमड के अनुसाय, ―बन्क्त बावना का उर्चत क्रभ-ननधाथयण ही नागरयकता है । ‖ डॉ० आर्ीिाशदी रार के
अनुसाय, नागरयकता केवर याजनीनतक कामथ ही नहीॊ , वयन ् एक साभान्जक एवॊ नैनतक कतथव्म बी है । ‖
उऩमुक्
थ त ऩरयबाषाओॊ के आधाय ऩय मह कहा जा सकता है कक नागरयक होने की दशा का नाभ ही
नागरयकता है । दस
ू ये शब्दों भें , ―जीवन की वह न्स्थनत, न्जसभें व्मन्क्त ककसी याज्म का सदस्म होने के नाते
सभस्त प्रकाय के साभान्जक एवॊ याजनीनतक अर्धकायों का उऩबोग कयता है , ‗नागरयकता (Citizenship)
कहराती है ।‖
प्रश्न 6.
स्थामी ववदे शी तथा अस्थामी ववदे शी भें अन्तय फताइए।
उत्तय-
स्थामी विदे र्ी-ऐसे ववदे शी जो अऩना ऩूवथ दे श छोडकय ककसी ऐसे दे श भें आ गमे हों जहाॉ वे स्थामी रूऩ से
यहना चाहते हों तथा नागरयकता-प्रान्प्त की शतों को ऩूया कय यहे हों, स्थामी ववदे शी कहराते हैं। नागरयकता-
प्रान्प्त की प्रकक्रमा द्वाया मे ववदे शी उस दे श के नागरयक फन जाते हैं। अस्थामी विदे र्ी–अस्थामी ववदे शी ववशेष
कायण से अऩना दे श छोडकय अल्ऩावर्ध हे तु दस
ू ये दे श भें आकय यहते हैं तथा अऩना कामथ ऩूणथ कयके
स्वदे श रौट जाते हैं। साभान्मतमा इनका उद्देश्म मशऺा, भ्रभण अथवा व्माऩाय होता है ।
प्रश्न 7.
नागरयक तथा भतदाता भें बेद फताइए।
उत्तय-
एक याज्म के अन्तगथत नागरयक तथा भतदाता भें बेद (अन्तय) होता है । एक याज्म के सभस्त नागरयक
भतदाता नहीॊ होते हैं। भतदाता कौन हो सकता है ; मह याज्म के कानूनों द्वाया स्ऩष्ट्ट ककमा जाता है । ककसी
बी दे श के अन्तगथत अवमस्क नागरयक को भतदान का अर्धकाय प्राप्त नहीॊ होता है । इसके अरावा ,
कनतऩम याज्मों भें धभथ, सम्ऩन्त्त, मरॊग एवॊ मशऺा के आधाय ऩय बी कुछ नागरयकों को भतार्धकाय से
वॊर्चत ककमा जाता है । ककन्तु आधुननक सभम की प्रवन्ृ त्त इस प्रकाय के प्रनतफन्धों के प्रनतकूर है । सॊमुक्त
याज्म अभेरयका, बायत, इॊग्रैण्ड, ऩाककस्तान, िाॊस इत्माटद सॊसाय के अर्धकाॊश याज्मों भें सभस्त वमस्क
नागरयकों को भतदान का अर्धकाय प्राप्त है ।
प्रश्न 8.
नागरयकता की चाय ववशेषताएॉ फताइए।
उत्तय-
नागरयकता की चाय ववशेषताएॉ ननम्नमरखखत हैं
1. याज्म की सदस्मता- नागरयकता की सवथप्रथभ ववशेषता याज्म की सदस्मता है ।
2. सिशव्माऩकता- नागरयकता प्रत्मेक उस व्मन्क्त को प्राप्त होती है जो कक याज्म का ननवासी हो , बरे ही
वह शहय भें ननवास कयता हो अथवा ककसी ग्राभ भें।
3. याज्म के प्रनत ननष्ट्ठा- नागरयकता भें दे शबन्क्त का गुण होना ऩयभ आवश्मक है ।
4. अचधकायों का प्रमोग- नागरयकता व्मन्क्त को याज्म की तयप से अर्धकाय प्रदान कयती है ।
प्रश्न 9.
दे शीमकयण द्वाया नागरयकता प्राप्त कयने की चाय शते फताइए।
मा बायतीम नागरयकता को प्राप्त कयने की दो शते फताइए।
उत्तय-
दे शीमकयण द्वाया नागरयकता प्राप्त कयने की चाय शते ननम्नमरखखत हैं
1. ववदे शी ऐसे याज्म का नागरयक न हो जहाॉ बायतीमों ऩय वहाॉ की नागरयकता ग्रहण कयने ऩय
प्रनतफन्ध रगामा गमा हो।
2. वह प्राथथना-ऩत्र दे ने की नतर्थ से ऩव
ू थ न्मन
ू तभ एक वषथ से रगाताय बायत भें ननवास कय यहा हो।
3. वह एक वषथ से ऩूवथ, न्मूनतभ 5 वषों तक बायत भें यह चुका हो अथवा बायत सयकाय की नौकयी भें
। यह चुका हो अथवा दोनों मभराकय 7 वषथ का सभम हो, रेककन ककसी बी ऩरयन्स्थनत भें 4 वषथ से
कभ सभम न हो।
4. उसका आचयण अच्छा हो।
प्रश्न 10.
आदशथ नागरयकता के भागथ भें अमशऺा कैसे फाधक है ?
उत्तय-
मशऺा तथा ऻान के अबाव भें आदशथ नागरयकता की कल्ऩना कयना व्मथथ है । अमशक्षऺत एवॊ अऻानी
व्मन्क्त उर्चत व अनुर्चत भें अन्तय नहीॊ कय ऩाते। वे अऩने उत्तयदानमत्व के फोध से अऩरयर्चत यहते हैं।
ऐसे व्मन्क्त याजनीनतक तथा सावथजननक कतथव्मों का ननष्ट्ऩादन अऩनी सभझ-फूझ के आधाय ऩय न कयके
अन्म व्मन्क्तमों के फहकावे भें आकय कयते हैं। मशऺा तथा ऻान के ब्रफना व्मन्क्त न तो अऩने व्मन्क्तत्व
का ववकास कय सकता है औय न ही याष्ट्र के ववकास भें मोगदान दे सकता है । भैकभ ने तो महाॉ तक कहा
है कक मशऺा के ब्रफना नागरयक अऩूणथ है । ‖
प्रश्न 11.
आदशथ नागरयकता के भागथ भें साम्प्रदानमकता कैसे फाधक है ?
उत्तय-
साम्प्रदानमकता को आदशथ नागरयक की प्रफरतभ शत्रु भाना गमा है । साम्प्रदानमकता की बावना से ही
साभान्जक जीवन भें कटुता ऩैदा हो जाती है तथा शान्न्त नष्ट्ट हो जाती है । कबी-कबी इसके वशीबूत होकय
व्मन्क्त अऩने धामभथक एवॊ याजनीनतक सभुदामों को इतना अर्धक भहत्त्व दे ते हैं कक वे सभाज एवॊ याज्म
के टहतों की अऩेऺा हे तु तत्ऩय हो जाते हैं। ऐसी न्स्थनत भें आदशथ नागरयकता की प्रान्प्त असम्बव हो जाती
है ।
प्रश्न 12.
नागरयकता का रोऩ होने की ककन्हीॊ ऩाॉच न्स्थनतमों का वववेचन कीन्जए।
उत्तय-
नागरयकता का रोऩ
साभान्मतमा ननम्नमरखखत न्स्थनतमों भें नागरयकता का रोऩ हो जाता है अथवा ककसी व्मन्क्त की
नागरयकता सभाप्त हो जाती है -
1. विदे र्ी नागरयकता ग्रहण कयने ऩय- मटद कोई व्मन्क्त ववदे श की नागरयकता ग्रहण कय रेता है , तो उसकी
अऩने दे श की नागरयकता स्वत: ही सभाप्त हो जाती है ।
2. वििाह द्िाया- मटद कोई भटहरा ववदे शी ऩुरुष से वववाह कय रेती है , तो वह अऩने दे श की नागरयकता
खो दे ती है ।
ु क्स्थनत के कायण- मटद कोई व्मन्क्त अऩने दे श से रम्फी अवर्ध तक अनुऩन्स्थत यहता | है , तो
3. अनऩ
उसकी नागरयकता सभाप्त हो जाती है ।
4. सेना से बागने ऩय- सेना से बागे सैननक, दे शद्रोही तथा घोय अऩयाधी बी नागरयकता से वॊर्चत कय टदए
जाते हैं।
5. विदे र्ों भें नौकयी कयने से- मटद कोई व्मन्क्त ववदे श भें नौकयी कय रेता है अथवा ववदे शी नागरयकता
ग्रहण कय रेता है , तो वह अऩने दे श की नागरयकता खो दे ता है ।
प्रश्न 13.
सत्रहवीॊ से फीसवीॊ सदी के फीच मूयोऩ के गोये रोगों ने दक्षऺण अिीका के रोगों ऩय अऩना शासन कामभ
यखा। 1994 तक दक्षऺण अिीका भें अऩनाई गई नीनतमों के फाये भें नीचे टदए गए ब्मोये को ऩटढए।
श्वेत रोगों को भत दे ने , चुनाव रडने औय सयकाय को चुनने का अर्धकाय था। वे सम्ऩन्त्त खयीदने औय
दे श भें कहीॊ बी आने-जाने के मरए स्वतन्त्र थे। कारे रोगों को ऐसे अर्धकाय नहीॊ थे। कारे औय गोये
रोगों के मरए ऩथ
ृ क भोहल्रे औय कारोननमाॉ फसाई गई थीॊ। कारे रोगों को अऩने ऩडोस की गोये रोगों की
फस्ती भें काभ कयने के मरए ‗ऩास रेने ऩडते थे। उन्हें गोयों के इराके भें अऩने ऩरयवाय यखने की अनुभनत
नहीॊ थी। अरग-अरग यॊ ग के रोगों के मरए ववद्मारम बी अरग-अरग थे।
(i) क्मा अश्वेत रोगों की दक्षऺण अिीका भें ऩण
ू थ औय सभान सदस्मता मभरी हुई थी ? कायण सटहत
फताइए।
(ii) ऊऩय टदमा गमा ब्मोया हभें दक्षऺण अिीका भें मबन्न सभह
ू ों के अन्तसथम्फन्धों के फाये भें क्मा फताता
है ?
उत्तय-
(i) नहीॊ, अश्वेत रोगों को दक्षऺण अिीका भें ऩूणथ सभान सदस्मता प्राप्त नहीॊ थी। वहाॉ यॊ गबेद नीनत इसका
प्रभख
ु कायण था।
(ii) दक्षऺण अिीका भें मबन्न सभूह (गोय-कारे) के अन्तसथम्फन्ध ठीक नहीॊ थे। दोनों भें आऩस भें गहये
भतबेद थे।
प्रश्न 14.
नागरयक के रऺणों की सॊऺेऩ भें वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
नागरयक के ननम्नमरखखत रऺण मा ववशेषताएॉ होती हैं
1. वह याज्म का सदस्म हो।
2. वह याज्म की सीभा के अन्दय यहता हो, चाहे वह नगय-ननवासी हो अथवा ग्राभवासी।
3. उसे सबी साभान्जक तथा याजनीनतक अर्धकाय प्राप्त हों।
4. वह याज्म की सम्प्रबत
ु ा को स्वीकाय कयता हो औय याज्म भें ऩण
ू थ ननष्ट्ठा एवॊ बन्क्त यखता हो।
5. उसे भतार्धकाय प्राप्त हो।
6. उसभें कतथव्मऩयामणता की बावना ननटहत हो।
7. वह याष्ट्र तथा सभाज के प्रनत ऩूणथ ननष्ट्ठा तथा बन्क्त की बावना से ओतप्रोत हो।
प्रश्न 15.
ववश्व नागरयकता की सॊऺेऩ भें वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
ववश्व नागरयकता की अवधायणा आधुननक ववचायकों की दे न है । न्जस प्रकाय ववश्व-याज्म व ववश्व-फन्धुत्व
की कल्ऩना की गई है , उसी प्रकाय ववश्व-नागरयकता का ववचाय बी ववकमसत हुआ है । ववश्व-फन्धत्ु व की
कल्ऩना को साकाय फनाकय ववश्व नागरयकता के ववचाय को व्मावहारयक रूऩ प्रदान ककमा जा सकता है ,
ऩयन्तु मह काल्ऩननक अवधायणा मथाथथ के धयातर ऩय असम्बव ही प्रतीत होती है । ववश्व नागरयकता का
आशम ऐसी नागरयकता से है , जो सबी याष्ट्रों द्वाया भान्म हो। सॊमुक्त याष्ट्र सॊघ जैसी अन्तयाथष्ट्रीम सॊस्थाएॉ
ववश्व नागरयकता की अवधायणा को व्मावहारयक रूऩ दे सकती हैं। याजनीनतक सम्फन्ध , शान्न्त की इच्छा,
आवागभन के साधनों का ववकास, साॊस्कृनतक एकता, ववश्व-फन्धुत्व की बावना व भानवार्धकाय, अन्तयाथष्ट्रीम
कानून औय अन्तयाथष्ट्रीम सॊगठनों के भाध्मभ से ववश्व नागरयकता के आदशथ को प्राप्त कयने भें सपरता
प्राप्त की जा सकती है । नेहरू जी ववश्व नागरयकता के प्रफर सभथथक थे।
प्रश्न 16.
आदशथ नागरयकता के भहत्व को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय-
ककसी बी दे श की प्रगनत का आधाय वहाॉ के नागरयक होते हैं। न्जस दे श के नागरयक आदशथ नागरयकता के
गुणों से ऩरयऩूणथ होते हैं , वह दे श शीघ्र ही उन्ननत के मशखय ऩय ऩहुॉच जाता है । अयस्तू का कथन है , ―श्रेष्ट्ठ
नागरयक ही श्रेष्ट्ठ याज्म का ननभाथण कय सकते हैं ; अत् याज्म के नागरयक आदशथ होने चाटहए।‖ वास्तव भें
आदशथ नागरयकता ही याज्म के ववकास का आधाय फन सकती है । डॉ० आर्ीिाशदी के अनुसाय, ―नागरयकता का
सम्फन्ध केवर याजनीनतक जीवन से ही नहीॊ है , वयन ् । साभान्जक औय नैनतक जीवन से बी है । ‖
एक आदशथ नागरयक के गुणों को व्मक्त कयते हुए रॉडथ ब्राइस ने मरखा है , ―एक रोकतन्त्रीम नागरयक भें
फवु र्द्, आत्भ-सॊमभ तथा उत्तयदानमत्व की बावना होनी चाटहए।
इसी प्रकाय डॉ० ह्िाइि ने मरखा है , ―आदशथ नागरयक भें तीन गुण ; व्मावहारयक फुवर्द्, ऻान औय बन्क्त;
आवश्मक हैं।‖
प्रश्न 17.
आदशथ नागरयकता की ककन्हीॊ चाय फाधाओॊ का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय-
आदशथ नागरयकता के भागथ की चाय भख्
ु म फाधाएॉ ननम्नमरखखत हैं
1. आदशथ नागरयकता के भागथ भें सफसे फडी फाधा अमशऺा तथा ननयऺयता है ।
2. सॊकीणथ धामभथक बावनाएॉ तथा साम्प्रदानमकता की भनोदशा आदशथ नागरयकता के भागथ को अवरुर्द्
कय दे ती हैं।
3. सॊकीणथ भनोवन्ृ त्तमों ऩय आधारयत दरीम याजनीनत बी आदशथ नागरयकता को कॊु टठत कय दे ती है ।
4. ऩॉज
ू ीवाद के अननमन्न्त्रत ववकास ने बी सभाज को ननधथन तथा अभीय दो वगों भें ववबान्जत कय
टदमा है । अत् ननधथनता बी आदशथ नागरयकता के मरए अमबशाऩ है ।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
नागरयकता का सभानता औय अर्धकाय से क्मा सम्फन्ध है ?
उत्तय-
नागरयकता केवर एक कानूनी अवधायणा नहीॊ है । इसका सभानता औय अर्धकायों के व्माऩक उद्देश्मों से बी
घननष्ट्ठ सम्फन्ध है । इस सम्फन्ध का सवथसम्भत सत्र
ू ीकयण अॊग्रेज सभाजशास्त्री िी० एच० भार्शर (1893-
1981) ने ककमा है । अऩनी ऩुस्तक ‗नागरयकता औय साभान्जक वगथ भें भाशथर ने नागरयकता को ककसी
सभद
ु ाम के ऩण
ू थ सदस्मों को प्रदत्त प्रनतष्ट्ठा के रूऩ भें ऩरयबावषत ककमा है । इस प्रनतष्ट्ठा को ग्रहण कयने
वारे सबी रोग प्रनतष्ट्ठा भें अन्तबत
ूथ अर्धकायों औय कतथव्मों के भाभरे भें सभान होते हैं।
नागरयकता की भाशथर द्वाया प्रदत्त कॉु जी धायणा भें भूर सॊकल्ऩना ‗सभानता‘ की है । इसभें दो फातें
अन्तननथटहत हैं। ऩहरी मह कक प्रदत्त अर्धकाय औय कतथव्मों की गुणवत्ता फढ़े । दस
ू यी मह कक उन रोगों
की सॊख्मा फढ़े न्जन्हें वे टदए गए हैं।
भाशथर नागरयकता भें तीन प्रकाय के अर्धकायों को शामभर भानते हैं –नागरयक, याजनीनतक औय साभान्जक
अर्धकाय।
नागरयक अर्धकाय व्मन्क्त के जीवन, स्वतन्त्रता औय सम्ऩन्त्त की यऺा कयते हैं। याजनीनतक अर्धकाय
व्मन्क्त को शासन प्रकक्रमा भें सहबागी फनने की शन्क्त प्रदान कयते हैं। साभान्जक अर्धकाय व्मन्क्त के
मरए मशऺा औय योजगाय को सर
ु ब फनाते हैं। कुर मभराकय मे अर्धकाय नागरयक के मरए सम्भान के साथ
जीवन-फसय कयना सम्बव फनाते हैं।

भाशथर ने साभान्जक वगथ को ‗असभानता की व्मवस्था के रूऩ भें र्चन्ह्नत ककमा। नागरयकता वगथ ऩदानुक्रभ
के ववबाजक ऩरयणाभों का प्रनतकाय कय सभानता सनु नन्श्चत कयती है । इस प्रकाय मह फेहतय सफ
ु र्द् औय
सभयस सभाज यचना को सुसाध्म फनाता है ।

प्रश्न 2.
बायतीम नागरयकता ककन आधायों ऩय रप्ु त हो सकती है ? कोई दो प्रकाय फताइए।
उत्तय-
बायतीम नागरयक अर्धननमभ, 1955 नागरयकता के रोऩ के ववषम भें बी व्मवस्था कयता है , चाहे वह
बायतीम नागरयकता अर्धननमभ, 1955 के अन्तगथत प्राप्त की गई हो मा सॊववधान के उऩफन्धों के अनुसाय
प्राप्त की गई हो। इस अर्धननमभ के अनस
ु ाय नागरयकता का रोऩ ननम्न प्रकाय से हो सकता है
1. नागरयकता का ऩरयत्माग- कोई बी वमस्क बायतीम नागरयक जो ककसी दस
ू ये दे श का बी ‗ नागरयक है ,
बायतीम नागरयकता को त्माग सकता है । इसके मरए उसे एक घोषणा कयनी होगी औय उस घोषणा का
ऩॊजीकयण हो जाने ऩय उसकी बायतीम नागरयकता रुप्त हो जाएगी , ककन्तु मटद ऐसी घोषणा ककसी ऐसे
मुर्द्कार भें की जाती है , न्जसभें बायत एक ऩऺकाय हो, तो ऩॊजीकयण को तफ तक योका जा सकता है , जफ
तक बायत सयकाय उर्चत सभझे। मह उल्रेखनीम है कक जफ कोई ऩुरुष बायतीम नागरयकता का त्माग
कयता है , तो उसके साथ-साथ उसके अवमस्क फच्चे बी बायतीम नागरयकता खो दे ते हैं।
2. अन्म दे र्ों की नागरयकता स्िीकाय कयने ऩय- मटद कोई बायतीम नागरयक अऩनी इच्छा से ककसी दस
ू ये दे श की
नागरयकता स्वीकाय कय रेता है , तो उसकी बायतीम नागरयकता रुप्त हो जाती है । मह ननमभ उन नागरयकों
के सम्फन्ध भें रागू नहीॊ होता है , जो ककसी ऐसे मर्द्
ु कार भें ,
न्जसभें बायत एक ऩऺकाय हो, स्वेच्छा से दस
ू ये दे श की नागरयकता स्वीकाय कय रेते हैं।
प्रश्न 3.
नागरयक औय ववदे शी भें अन्तय मरखखए।
उत्तय-
नागरयक औय ववदे शी भें अन्तय
प्रश्न 4.
नागरयक औय याष्ट्र के सम्फन्ध की व्माख्मा कीन्जए।
उत्तय-
याष्ट्र याज्म की अवधायणा आधुननक कार भें ववकमसत हुई। याष्ट्र याज्म की सम्प्रबुता औय नागरयकों के
रोकतान्न्त्रक अर्धकायों का दावा सवथप्रथभ 1789 भें िाॊस के क्रान्न्तकारयमों ने ककमा था। याष्ट्र याज्मों का
दावा है कक उनकी सीभाएॉ केवर याज्मऺेत्र को नहीॊ फन्ल्क एक अनोखी सॊस्कृनत औय साझा इनतहास को बी
ऩरयबावषत कयती हैं। याष्ट्रीम ऩहचान को एक झण्डा, याष्ट्रगान, याष्ट्रबाषा मा कुछ ववमशष्ट्ट उत्सवों के
आमोजन जैसे प्रतीकों से व्मक्त ककमा जा सकता है ।
अर्धकतय आधुननक याज्म स्वमॊ ववमबन्न धभों, बाषा औय साॊस्कृनतक ऩयम्ऩयाओॊ के रोगों को सन्म्भमरत
कयते हैं।
रेककन एक रोकतान्न्त्रक याज्म की याष्ट्रीम ऩहचान भें नागरयकों को ऐसी याजनीनतक ऩहचान दे ने की
कल्ऩना होती है , न्जसभें याज्म के सबी सदस्म बागीदाय हो सकें। रोकतान्न्त्रक दे श साधायणतमा अऩनी
ऩहचान इस प्रकाय ऩरयबावषत कयने प्रमास कयते हैं कक वह मथासम्बव सभावेशी हो अथाथत ् जो सबी
नागरयकों को याष्ट्र के अॊग के रूऩ भें स्वमॊ को ऩहचानने की अनुभनत दे ता हो। रेककन व्मवहाय भें
अर्धकतय दे श अऩनी ऩहचान को इस प्रकाय ऩरयबावषत कयने की ओय अग्रसय हैं , जो कुछ नागरयकों के
मरए याष्ट्र के साथ अऩनी ऩहचान व सम्फन्ध फनाए यखना अन्मों की तुरना भें आसान फनाता है । मह
याजसत्ता के मरए बी अन्मों की तुरना भें कुछ रोगों को नागरयकता दे ना सयर कय दे ता है । मह
अप्रवामसमों का दे श होने ऩय गौयवान्न्वत होने वारे सॊमुक्त याज्म अभेरयका के फाये भें बी वैसे ही सच है
जैसे कक ककसी अन्म दे श के फाये भें।

प्रश्न 5.
नागरयक अर्धकाय आन्दोरन के मरए भाटटथ न रूथय ककॊग जूननमय की बूमभका की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
1950 का दशक सॊमुक्त याज्म अभेरयका के अनेक दक्षऺणी याज्मों भें कारी औय गोयी जनसॊख्मा के फीच
व्माप्त ववषभताओॊ के ववरुर्द् नागरयक अर्धकाय आन्दोरन के उत्थान का साऺी यहा है । इस प्रकाय की
ववषभताएॉ इन याज्मों द्वाया ऩथ
ृ क्कयण कानून के नाभ से ववख्मात ऐसे कानूनों द्वाया ऩोवषत होती थीॊ ,
न्जनसे कारे रोगों को अनेक नागरयक औय याजनीनतक अर्धकायों से वॊर्चत ककमा जाता था। उन कानन
ू ों ने
ववमबन्न नागरयक सुववधाओॊ ; जैसे-ये र, फस, यॊ गशारा, आवास, होटर, ये स्टोये ण्ट आटद भें गोये औय कारे रोगों
के मरए अरग-अरग स्थान ननधाथरयत कय यखे थे। इन कानन
ू ों के कायण कारे औय गोये फच्चों के स्कूर
बी अरग-अरग थे।
इन कानूनों के ववरुर्द् हुए आन्दोरन भें भाटटथ न रूथय ककॊग जूननमय अग्रणी कारे नेता थे। उन्होंने इनके
ववरुर्द् अनेक अकाट्म तकथ प्रस्तुत ककए। ऩहरा, आत्भ गौयव व आत्भ-सम्भान के भाभरे भें ववश्व की
ू या, ककॊग ने कहा कक ऩथ
प्रत्मेक जानत मा वणथ का भनुष्ट्म फयाफय है । दस ृ क्कयण याजनीनत के चेहये ऩय
‗साभान्जक कोढ़‘ की तयह है क्मोंकक मह उन रोगों को गहये भनोवैऻाननक घाव दे ता है , जो ऐसे काननों के
मशकाय हैं।

ककॊग के तकथ टदमा कक ऩथ


ृ क्कयण की प्रथा गोये सभुदाम के जीवन की गुणवत्ता बी कभ कयती है । ककॊग
इसे उदाहयणों द्वाया स्ऩष्ट्ट कयते हैं। गोये सभद
ु ाम ने अदारत के ननदे शानस
ु ाय कुछ साभद
ु ानमक उद्मानों भें
कारे रोगों को प्रवेश की आऻा दे ने के फजाम उन्हें फन्द कयने का पैसरा ककमा। इसी प्रकाय कुछ फेसफॉर
टीभें टूट गईं क्मोंकक अर्धकायी कारे खखराडडमों को स्वीकाय नहीॊ कयना चाहते थे। तीसये , ऩथ
ृ क्कयण कानन

रोगों के फीच कृब्रत्रभ सीभाएॉ खीॊचते हैं औय उन्हें दे श के व्माऩक टहत के मरए एक-दस
ू ये का सहमोग कयने
से योकते हैं। इन कायणों से ककॊग ने फहस छे डी कक उन कानन
ू ों को सभाप्त कय टदमा जाना चाटहए।
उन्होंने ऩथ
ृ क्कयण कानूनों के ववरुर्द् शान्न्तऩूणथ औय अटहॊसक प्रनतयोध का आह्वान ककमा।

दीघश उत्तयीम प्रश्न


प्रश्न 1.
नागरयकता की ऩरयबाषा दे ते हुए, नागरयक के प्रकाय मरखखए।
मा नागरयकता से आऩ क्मा सभझते हैं ? नागरयक ककतने प्रकाय के होते हैं ?
उत्तय-
नागरयकता की ऩरयबाषा
नागरयकता उस न्स्थनत का नाभ है , न्जसके अन्तगथत याज्म द्वाया व्मन्क्त को नागरयक औय याजनीनतक
अर्धकाय प्रदान ककए जाते हैं औय व्मन्क्त याज्म के प्रनत ववशेष ननष्ट्ठा यखता है । नागरयकता को
ननम्नमरखखत शब्दों भें ऩरयबावषत ककमा जा सकता है
रॉस्की के अनस
ु ाय, ―अऩनी प्रमशक्षऺत फवु र्द् को रोकटहत के मरए प्रमोग कयना ही नागरयकता है । ‖
गैदिर के अनुसाय, ―नागरयकता व्मन्क्त की वह न्स्थनत है , न्जसके कायण वह कुछ साभान्जक औय याजनीनतक
अर्धकायों का उऩबोग कयता है ।
विसरमभ फॉमड के अनस
ु ाय, ―बन्क्त-बावना का उर्चत क्रभ-ननधाथयण ही नागरयकता है । ‘ नागरयकता की उऩमक्
ुथ त
ऩरयबाषाओॊ के आधाय ऩय स्ऩष्ट्ट होता है कक नागरयकता जीवन की वह न्स्थनत है , न्जसभें व्मन्क्त ककसी
याज्म का सदस्म होने के नाते सबी प्रकाय के साभान्जक औय याजनीनतक अर्धकायों का उऩबोग कयता है
तथा याज्म के प्रनत उसके अऩने कुछ कतथव्म बी सुननन्श्चत होते हैं। इस प्रकाय नागरयक होने की दशा का
नाभ ही नागरयकता है ।
नागरयक के प्रकाय
प्रत्मेक याज्म भें दो प्रकाय के व्मन्क्त ननवास कयते हैं
1. नागरयक (Citizen) औय
2. ववदे शी (Alien)
1. नागरयक
ककसी याज्म भें चाय प्रकाय के नागरयक होते हैं-
 अल्ऩिमस्क नागरयक- मे एक ननन्श्चत आमु से कभ के व्मन्क्त होते हैं औय इन्हें भतार्धकाय प्राप्त नहीॊ
होता है । बायत भें 18 वषथ की आमु से कभ के व्मन्क्त इस श्रेणी भें आते हैं।
 िमस्क नागरयक- मे एक ननन्श्चत आमु प्राप्त व्मन्क्त होते हैं। बायत भें मह आमु 18 वषथ ननधाथरयत की
गई है तथा इन्हें भतार्धकाय प्राप्त होता है ।
 नागरयकता-प्राप्त ववदे शी- मे ववदे शी होते हैं , ऩयन्तु उन्हें कुछ शते ऩय
ू ी कयने के ऩश्चात ् नागरयकता
प्राप्त हो जाती है ।
 भताचधकाय-यटहत वमस्क नागरयक- इस वगथ के अन्तगथत ऐसे व्मन्क्त सन्म्भमरत ककए जाते हैं , न्जनकी
आमु नागरयकता प्राप्त कयने की ननन्श्चत आमु अर्धक होती है , ऩयन्तु ककन्हीॊ ववशेष कायणों से इन्हें
भतदान का अर्धकाय प्राप्त नहीॊ होता है ।
2. विदे र्ी
ववदे शी वे होते हैं, जो ककसी अन्म दे श के भर
ू ननवासी होते हैं औय कुछ ववशेष कायणों से कुछ सभम के
मरए दस
ू ये याज्म भें ननवास कयते हैं। ववदे शी ननम्नमरखखत तीन प्रकाय के होते हैं
 स्थामी विदे र्ी- ऐसे ववदे शी, जो अऩना दे श छोडकय अन्म दे शों भें जाकय फस जाते हैं औय उसी दे श की
नागरयकता प्राप्त कय रेते हैं , ‗स्थामी ववदे शी‘ कहराते हैं।
 अस्थामी विदे र्ी अथिा विदे र्ी ऩमशिक- ऐसे ववदे शी, जो ककसी ववशेष कामथ के मरए कुछ सभम के मरए
दस
ू ये दे श भें जाते हैं औय अऩना कामथ ऩूया कयके स्वदे श रौट आते हैं , ‗अस्थामी ववदे शी‘ अथवा
‗ववदे शी ऩमथटक‘ कहराते हैं।
 ू एिॊ याजननमक- मे ववदे शी होते हैं , तथावऩ इन्हें अन्म ववदे मशमों की अऩेऺा अर्धक | सुववधाएॉ
याजदत
प्राप्त होती हैं। ककसी अन्म दे श भें मे अऩने दे श का कूटनीनतक एवॊ याजननमक प्रनतननर्धत्व कयते
हैं।
सम्फन्धों के आधाय ऩय ववदे शी ननम्नमरखखत दो प्रकाय के होते हैं-
 विदे र्ी र्त्र-ु शत्रु दे शों भें चोयी-नछऩे घस
ु ऩैठ कयने वारे ववदे शी, ववदे शी शत्रु‘ कहराते हैं। प्राम् शत्रु दे शों
से आने वारे ववदे मशमों की गनतववर्धमों ऩय कडी नजय यखी जाती है औय उन ऩय अनेक प्रनतफन्ध
बी रगा टदए जाते हैं।
 विदे र्ी सभत्र- मभत्र याष्ट्रों से आने वारे ववदे शी, ववदे शी मभत्र‘ कहराते हैं। मे ववदे शी अनतर्थ के रूऩ भें
आते हैं।
प्रश्न 2.
नागरयकता को ऩरयबावषत कीन्जए। नागरयकता कैसे प्राप्त होती है तथा इसका ककस प्रकाय ववरोऩन होता
है ?
मा नागरयकता की ऩरयबाषा दीन्जए औय बायत भें नागरयकता प्राप्त कयने की ववर्धमाॉ फताइए।
मा नागरयकता सभाप्त होने की ककन्हीॊ चाय ऩरयन्स्थनतमों का उल्रेख कीन्जए।
उत्तय-
नागरयकता का तात्ऩमथ ककसी याज्म भें व्मन्क्त का नागरयक होने की न्स्थनत से है । मह उस वैधाननक मा
कानन
ू ी सम्फन्ध का नाभ है जो व्मन्क्त को उस याज्म के साथ , न्जसका वह सदस्म है , सम्फर्द् कयता है ।
1. रॉस्की के शब्दों भें , ―अऩनी प्रमशक्षऺत फुवर्द् का रोकटहत भें प्रमोग ही नागरयकता है । ‖
2. गैदिर के अनुसाय, ―नागरयकता व्मन्क्त की उस अवस्था को कहते हैं न्जसके कायण वह अऩने याज्म भें
याष्ट्रीम औय याजनीनतक अर्धकायों का उऩमोग कय सकता है औय अऩने कतथव्मों का ऩारन कयने के मरए
तैमाय यहता है ।
इस प्रकाय ककसी याज्म औय उसके नागरयकों के उन आऩसी सम्फन्धों को ही ‗नागरयकता‘ कहा जाता है
न्जससे नागरयकों को याज्म की ओय से साभान्जक औय याजनीनतक अर्धकाय मभरते हैं। तथा वे याज्म के
प्रनत कुछ कतथव्मों का ऩारन कयते हैं।
नागरयकता प्रातत कयने की विचधमाॉ
नागरयकता प्राप्त कयने की ववर्धमों को ननम्नमरखखत दो बागों भें ववबक्त ककमा जा सकता है
1. जन्भजात नागरयकता की प्रान्प्त तथा
2. याज्मकृत नागरयकता की प्रान्प्त।
1. जन्भजात नागरयकता की प्राक्तत
जन्भजात नागरयकता ननम्नमरखखत तयीकों से प्राप्त होती है -
 यतत अथिा िॊर् सम्फन्धी ससद्ान्त- जन्भजात नागरयकता प्राप्त कयने की प्रथभ ववर्ध यक्त सम्फन्ध है ।
इस मसर्द्ान्त के अनस
ु ाय फच्चे को जन्भ ककसी बी स्थान ऩय क्मों न हो , उसे अऩने वऩता की
नागरयकता प्राप्त होती है । िाॊस , इटरी एवॊ न्स्वट्जयरैण्ड भें इस मसर्द्ान्त को अऩनामा गमा है । मह
मसर्द्ान्त न्मामसॊगत औय वववेकमक्
ु त है ।
 जन्भ-स्थान ससद्ान्त- इस मसर्द्ान्त के अनुसाय फच्चे की नागरयकता का ननणथम उसके जन्भ-स्थान के
आधाय ऩय ककमा जाता है । इस मसर्द्ान्त के अनस
ु ाय फच्चे को उसी दे श की नागरयकता प्राप्त होती
है , न्जस दे श की बूमभ ऩय उसका जन्भ होता है । अजेण्टाइना, इॊग्रैण्ड तथा अभेरयका भें नागरयकता
का मह मसर्द्ान्त रागू है । मह मसर्द्ान्त नागरयकता का ननणथम कयने भें तो फहुत सयर है , ककन्तु
तकथसॊगत नहीॊ है ।
 दोहया ननमभ- कई दे शों भें दोनों मसर्द्ान्तों को अऩनामा गमा है । इॊग्रैण्ड , िाॊस एवॊ अभेरयका भें यक्त-
सम्फन्धी मसर्द्ान्त तथा जन्भ-स्थान मसर्द्ान्त दोनों प्रचमरत हैं। दोहये ननमभ के मसर्द्ान्त के अनुसाय
जो फच्चा अॊग्रेज दम्ऩती से उत्ऩन्न हुआ हो, चाहे फच्चे का जन्भ बायत भें हो, अॊग्रेज कहराता है ।
उसे अऩने वऩता की नागरयकता प्राप्त होती है । इसके अनतरयक्त मटद ककसी ववदे शी की इॊग्रैण्ड भें
सन्तान ऩैदा होती है , तो उसे इॊग्रैण्ड की बी नागरयकता प्राप्त होगी।
इस मसर्द्ान्त भें मह दोष है कक एक फच्चा एक सभम भें दो दे शों का नागरयक फन सकता है , ककन्तु
वमस्क होने ऩय वह मह ननणथम कय सकता है कक वह ककस दे श की नागरयकता को अऩनामे औय
ककसका ऩरयत्माग कये ।
2. याज्मकृत नागरयकता की प्राक्तत
याज्मकृत नागरयकता ननमभानुसाय ववदे मशमों को प्रदान की जाती है । ऐसे व्मन्क्त न्जन्हें नागरयकता
जन्भजात मसर्द्ान्त से प्राप्त नहीॊ होती, वयन ् उस याज्म की ओय से प्राप्त होती है , न्जसके कक वे भर

नागरयक नहीॊ हैं। मटद कोई व्मन्क्त अऩने दे श को छोडकय ककसी दस
ू ये दे श भें फस जाती है औय कुछ
सभम ऩश्चात ् उस दे श की नागरयकताको प्राप्त कय रेता है तो उस व्मन्क्त को याज्मकृत नागरयकॊ कहीॊ
जाता है । नागरयकता दे ना अथवा न दे ना याज्म ऩय ननबथय कयती है ।
इस मसर्द्ान्त के अनुसाय नागरयकता की प्रान्प्त ननम्नमरखखत रूऩों भें की जाती है
 ननक्श्चत सभम के सरए- मटद कोई व्मन्क्त ककसी दस
ू ये दे श भें जाकय एक ननन्श्चत अवर्ध तक ननवास
कये तो वह प्राथथना-ऩत्र दे कय वहाॉ की नागरयकता प्राप्त कय सकता है । इॊग्रैण्डे औय अभेरयका भें
ननवास की अवर्ध 5 वषथ है , जफ कक िाॊस भें 10 वषथ। बायत भें ननवास की अवर्ध 4 वषथ है ।
 वििाह- मटद कोई स्त्री ककसी दस
ू ये दे श के नागरयक से वववाह कय रेती है तो उसे अऩने ऩनत के दे श
की नागरयकता प्राप्त हो जाती है । बायत का नागरयक ऩरु
ु ष मटद इॊग्रैण्ड की नागरयक भटहरा के
साथ वववाह कय रेता है तो उस भटहरा को बायत की नागरयकता प्राप्त हो जाती है । जाऩान भें
इसके ववऩयीत ननमभ है । मटद कोई ववदे शी व्मन्क्त जाऩान की नागरयक भटहरा से वववाह कय रेता
है तो उस व्मन्क्त को जाऩान की नागरयकता प्राप्त हो जाती है ।
 सम्ऩक्त्त खयीदना- सम्ऩन्त्त खयीदने से बी नागरयकता प्राप्त हो जाती है । िाजीर , ऩीरू औय
भैन्क्सको भें मह ननमभ प्रचमरत है । मटद कोई ववदे शी ऩीरू भें सम्ऩन्त्त खयीद रेता है तो उसे वहाॉ
की नागरयकता प्राप्त हो जाती है ।
 गोद रेना- जफ एक दे श का नागरयक व्मन्क्त ककसी दस
ू ये दे श के नागरयक फच्चे को गोद रे | रेता है
तो गोद मरमे जाने वारे फच्चे को अऩने वऩता के दे श की नागरयकता प्राप्त हो जाती है ।
 सयकायी नौकयी- कई दे शों भें मह ननमभ है कक मटद कोई ववदे शी वहाॉ सयकायी नौकयी कय रे तो उसे
वहाॉ की नागरयकता मभर जाती है । उदाहयणस्वरूऩ, मटद कोई बायतीम इॊग्रैण्ड भें सयकायी नौकयी
कय रेता है तो उसे इॊग्रैण्ड की नागरयकता प्राप्त हो जाती है ।
 विद्ित्ता द्िाया- कई दे शों भें ववदे शी ववद्वानों को नागरयक फनने के मरए ववशेष सुववधाएॉ दी | जाती
हैं। ववदे शी ववद्वानों के ननवास की अवर्ध दस
ू ये ववदे मशमों के ननवास की अवर्ध से कभ | होती है ।
िाॊस भें वैऻाननकों व ववशेषऻों के मरए वहाॉ की नागरयकता प्राप्त कयने के मरए एक वषथ का ननवास
हीॊ ऩमाथप्त है ।
 दोफाया नागरयकता की प्राक्तत- मटद कोई नागरयक अऩने दे श की नागरयकता छोडकय दस
ू ये दे श की
नागरयकता प्राप्त कय रेता है तो उसे दस
ू ये दे श का नागरयक भाना जाता है , ऩयन्तु मटद वह चाहे तो
कुछ शते ऩूयी कयके ऩुन: अऩने दे श की नागरयकता बी प्राप्त कय सकता है ।
बायतीम नागरयकता प्रातत कयने की विचधमाॉ
ननम्नमरखखत ववर्धमों भें से ककसी एक आधाय ऩय बायतीम नागरयकता प्राप्त की जा सकती है
1. जन्भ मा िॊर् के आधाय ऩय- 1992 ई० भें सॊसद ने सवथसम्भनत से एक ववधेमक ऩारयत कय ‗बायतीम
नागरयकता अर्धननमभ, 1955′ को सॊशोर्धत ककमा है । 1992 ई० के ऩूवथ बायत के फाहय जन्भे ककसी व्मन्क्त
को यक्त-सम्फन्ध मा वॊश के आधाय ऩय बायत की नागरयकता तबी प्राप्त होती थी , जफ कक उसका वऩता
बायत का नागरयक हो। अफ व्मवस्था मह की गमी है कक बायत से फाहय जन्भे ऐसे ककसी बी व्मन्क्त को
बायत की नागरयकता प्राप्त होगी; न्जसका वऩता मा भाता, उसके जन्भ के सभम बायत के नागरयक हों। इस
प्रकाय अफ नागरयकता के प्रसॊग भें फच्चे की भाता को वऩता के ‗सभकऺ न्स्थनत प्रदान कय दी गमी है ।
2. ऩॊजीकयण द्िाया- ननम्नमरखखत श्रेणी के व्मन्क्त ऩॊजीकयण के आधाय ऩय नागरयकता प्राप्त कय सकते हैं-
 जो व्मन्क्त ऩॊजीकयण के भाध्मभ से बायतीम नागरयकता प्राप्त कयना चाहते हैं , उन्हें अफ बायत भें
कभ-से-कभ 5 वषथ ननवास कयना होगा। ऩहरे मह अवर्ध 6 भाह थी।
 ऐसे बायतीम जो ववदे शों भें जाकय फस गमे हैं , बायतीम दत
ू ावासों भें आवेदन-ऩत्र दे कय बायतीम
नागरयकता प्राप्त कय सकेंगे।
 ववदे शी न्स्त्रमाॉ, न्जन्होंने बायतीम नागरयक से वववाह कय मरमा हो, आवेदन-ऩत्र दे कय बायतीम
नागरयकता प्राप्त कय सकेंगी।
 याष्ट्रभण्डरीम दे शों के नागरयक, मटद वे बायत भें ही यहते हों मा बायत सयकाय की नौकयी , कय यहे
हों, आवेदन-ऩत्र दे कय बायतीम नागरयकता प्राप्त कय सकते हैं।
3. दे र्ीमकयण द्िाया- दे शीमकयण द्वाया नागरयकता तबी प्रदान की जाती है , जफ कक सम्फन्न्धत व्मन्क्त कभ-
से-कभ 10 वषथ तक बायत भें यह चक
ु ा हो। ऩहरे मह अवर्ध 5 वषथ थी। ‗नागरयकता सॊशोधन अर्धननमभ,
1986′ जम्भू-कश्भीय तथा असभ सटहत बायत के सबी याज्मों ऩय रागू होता है ।
4. बसू भ विस्ताय द्िाया- मटद ककसी नवीन ऺेत्र को बायत भें शामभर ककमा जाए तो वहाॉ की जनता को
बायतीम नागरयकता प्राप्त हो जाएगी। जैसे 1961 ई० भें गोआ तथा 1975 ई० भें मसन्क्कभ को बायत भें
सन्म्भमरत ककमे जाने ऩय वहाॉ की जनता को बायतीम नागरयकता प्राप्त हो गमी।
नागरयकता का रोऩ
न्जस तयह नागरयकता को प्राप्त ककमा जा सकता है , उसी तयह कुछ न्स्थनतमों भें नागरयकता को खोमा बी
जा सकता है । ननम्नमरखखत न्स्थनतमों भें प्राम् नागरयकता का रोऩ हो जाता है
ु क्स्थनत- कई दे शों भें मह ननमभ है कक मटद वहाॉ का नागरयक रम्फे सभम तक दे श
1. रम्फे सभम तक अनऩ
से फाहय यहे तो उसकी नागरयकता सभाप्त कय दी जाती है । उदाहयणस्वरूऩ , मटद कोई िाॊसीसी
नागरयक रगाताय 10 वषथ की अवर्ध से अर्धक िाॊस से फाहय यहे तो उसकी नागरयकता सभाप्त कय
दी जाती है ।
2. वििाह- भटहराएॉ ववदे शी नागरयकों से वववाह कयके अऩने दे श की नागरयकता खो दे ती हैं।
3. विदे र् भें सयकायी नौकयी- मटद एक दे श का नागरयक अऩने दे श की सयकाय की आऻा प्राप्त | ककमे
ब्रफना ककसी दस
ू ये दे श भें सयकायी नौकयी कय रेता है तो उसे अऩने दे श की नागरयकता छोडनी
ऩडती है ।
4. स्िेच्छा से नागरयकता का त्माग- कई दे शों की सयकायें अऩने नागरयकों को उनकी इच्छा के अनुसाय
ककसी दे श का नागरयक फनने की आऻा प्रदान कय दे ती हैं। इस प्रकाय के व्मन्क्त अऩनी जन्भजात
नागरयकता त्मागकय अन्म दे श की नागरयकता प्राप्त कय रेते हैं।
5. सेना से बाग जाने ऩय- मटद कोई नागरयक सेना से बागकय दस
ू ये दे श भें चरा जाता है तो | उसकी
नागरयकता सभाप्त हो जाती है ।
6. दोहयी नागरयकता प्रातत हो जाने ऩय- जफ ककसी व्मन्क्त को दो याज्मों की नागरयकता प्राप्त हो जाती है
तफ उसे एक याज्म की नागरयकता छोडनी ऩडती है ।
7. दे र्-द्रोह- जफ कोई व्मन्क्त याज्म के ववरुर्द् ववद्रोह अथवा क्रान्न्त कयता है तो उसकी नागरयकता छीन
री जाती है , ऩयन्तु दे श-द्रोह के आधाय ऩय उन्हीॊ नागरयकों की नागरयकता को छीना जा सकता है
जो याज्मकृत नागरयक हों।
8. गोद रेना- मटद कोई फच्चा ककसी ववदे शी द्वाया गोद रे मरमा जाए तो फच्चे की अऩने दे श की
नागरयकता सभाप्त हो जाती है औय वह अऩने नमे भाता-वऩता के दे श की नागरयकता प्राप्त कय
रेता है ।
9. विदे र्ी सयकाय से सम्भान प्रातत कयना- मटद कोई नागरयक अऩने दे श की आऻा के ब्रफना ककसी ववदे शी
सयकाय द्वाया टदमे गमे सम्भान को स्वीकाय कय रेता है तो उसे उसकी भूर नागरयकता से वॊर्चत
कय टदमा जाता है ।
10. ऩागर, ददिासरमा अथिा साधु- सॊन्मासी होने ऩय- मटद कोई व्मन्क्त ऩागर, टदवामरमा अथवा साधु-
सॊन्मासी हो जाता है तो उसका नागरयकता का अर्धकाय सभाप्त हो जाता है ।
प्रश्न 3.
‗ववश्व नागरयकता की अवधायणा क्मा है ? इसके सभथथन भें क्मा तकथ प्रस्तुत ककए जाते है ?
उत्तय-
हभ आज एक ऐसे ववश्व भें यहते हैं जो आऩस भें जुडा हुआ है । सॊचाय के इण्टयनेट , टे रीववजन, सेरपोन
औय सैटेराइट पोन जैसे नए साधनों ने उन तयीकों भें बायी फदराव कय टदमा है , . न्जनसे हभ अऩने ववश्व
को सभझते हैं। ऩहरे ववश्व के एक टहस्से की गनतववर्धमों की खफय अन्म टहस्सों तक ऩहुॉचने भें भहीनों
रग जाते थे। रेककन सॊचाय के नमे तयीकों ने ववश्व के ववमबन्न बागों भें घट यही घटनाओॊ को हभाये
तत्कार सम्ऩकथ की सीभाओॊ भें रा टदमा है । हभ अऩने टे रीववजन के ऩदे ऩय ववनाश औय मर्द्
ु ों को होते
दे ख सकते हैं, इससे ववश्व के ववमबन्न दे शों के रोगों भें साझे सयोकाय औय सहानुबूनत ववकमसत होने भें
सहामता मभरी है ।
ववश्व नागरयकता के सभथथक तकथ प्रस्तुत कयते हैं कक चाहे ववश्व-कुटुम्फ औय वैन्श्वक सभाज अबी
ववद्मभान नहीॊ है , रेककन याष्ट्रीम सीभाओॊ के आय-ऩाय रोग आज एक-दस
ू ये से जड
ु ाव अनब
ु व कयते हैं।
उदाहयणाथथ-एमशमा की सुनाभी मा अन्म फडी दै वी आऩदाओॊ के ऩीडडतों की सहामता के मरए ववश्व के सबी
टहस्सों से उभडा बावोद्गाय ववश्व-सभाज की ओय उबाय का सॊकेत है । हभें इस बावना को भजफूत कयना
चाटहए औय एक ववश्व नागरयकता की अवधायणा की टदशा भें सकक्रम होना चाटहए। याष्ट्रीम नागरयकता की
अवधायणा मह भानती है कक हभायी याज्मसत्ता हभें वह सुयऺा औय अर्धकाय दे सकती है न्जनकी हभें
आज ववश्व भें गरयभा के साथ जीने के मरए आवश्मकता है । रेककन याजसत्ताओॊ के सभऺ आज अनेक
ऐसी सभस्माएॉ हैं, न्जनका भुकाफरा वे अऩने फर ऩय नहीॊ कय सकतीॊ।

ववश्व नागरयकता की अवधायणा के आकषथणों भें से एक मह है कक इससे याष्ट्रीम सीभाओॊ के दोनों ओय की


उन सभस्माओॊ का सभाधान कयना आसान हो सकता है न्जसभें कई दे शों की सयकायों औय रोगों की
सॊमुक्त कामथवाही आवश्मक होती है । उदाहयण के मरए, इससे प्रवासी औय याज्महीन रोगों की सभस्मा का
सवथभान्म सभाधान ऩाना आसान हो सकता है मा कभ-से-कभ उनके फनु नमादी अर्धकाय औय सयु ऺा
सुननन्श्चत की जा सकती है चाहे वे न्जस ककसी दे श भें यहते हों।
हभ अध्ममन कय चुके हैं कक एक दे श के बीतय की सभान नागरयकता को साभान्जक-आर्थथक असभानता
मा अन्म सभस्माओॊ से खतया हो सकता है । इन सभस्माओॊ का सभाधान अन्तत् सम्फन्न्धत सभाज की
सयकाय औय जनता ही कय सकती है । इसमरए रोगों के मरए आज एक याज्म की ऩूणथ औय सभान
सदस्मता भहत्त्वऩूणथ है । रेककन ववश्व नागरयकता की अवधायणा हभें माद टदराती है कक याष्ट्रीम
नागरयकता को सभझदायी से जोडने की आवश्मकता है कक हभ आज अन्तसथभफर्द् ववश्व भें यहते हैं। औय
हभाये मरए मह बी आवश्मक है कक हभ ववश्व के ववमबन्न टहस्सों के रोगों के साथ अऩने सम्फन्ध सुदृढ़
कयें औय याष्ट्रीम सीभाओॊ के ऩाय के रोगों औय सयकायों के साथ काभ कयने के मरए तैमाय हों।

प्रश्न 4.
आदशथ नागरयक के गुणों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
आदर्श नागरयक के गण

भहान ् दाशथननक अयस्तू का भत है कक ―श्रेष्ट्ठ नागरयक ही श्रेष्ट्ठ याज्म का ननभाथण कय सकते हैं , इसमरए
याज्म के नागरयक आदशथ होने चाटहए।‖ आज का मग
ु प्रजातन्त्र का मग
ु है , न्जसभें शासन का दानमत्व वहाॉ
के नागरयकों ऩय होता है । अत: आदशथ नागरयकता ही याज्म के ववकास का आधाय है । एक आदशथ नागरयक
भें अग्रमरखखत गण
ु ों का होना आवश्मक है -
1. उत्तभ स्िास्थ्म- आदशथ नागरयक भें उत्तभ स्वास्थ्म का होना अननवामथ है । अस्वस्थ व्मन्क्त सभाज
ऩय बाय स्वरूऩ होता है । वह न तो अऩने व्मन्क्तगत कतथव्मों औय न ही सभाज के प्रनत अऩने
कतथव्मों का ऩारन कय सकता है ।
2. सच्चरयत्रता- भनुष्ट्म के व्मन्क्तगत औय साभान्जक जीवन भें सच्चरयत्रता का फहुत अर्धक भहत्त्व है ।
चरयत्रवान ् व्मन्क्त ही आदशथ नागरयक फन सकता है , क्मोंकक चरयत्र द्वाया ही व्मन्क्त अऩने व्मन्क्तत्व
का सवोत्तभ ववकास कय सकता है ।
3. सर्ऺा- मशऺा आदशथ नागरयक जीवन की नीॊव है । गाॊधी जी ने कहा था कक ―मशऺा, जो आत्भा का
बोजन है , स्वस्थ नागरयकता की प्रथभ शतथ है । मशऺा ही अऻान के अन्धकाय का ववनाश कय ऻान
का प्रकाश कयती है । अमशक्षऺत नागरयक कबी बी आदशथ नागरयक नहीॊ फन सकता।
4. वििेक औय आत्भ-सॊमभ- रॉडश ब्राइस के अनुसाय, ―वववेक आदशथ नागरयक का ऩहरा गुण है । ‘ वववेक के
आधाय ऩय नागरयक अच्छे -फयु े का ऻान प्राप्त कयता है तथा अऩने कतथव्मों औय अर्धकायों को बरी
प्रकाये सभझ सकता है । आदशथ नागरयक का दस
ू या गुण आत्भ-सॊमभ है , अथाथत ् नागरयक भें अऩने
टहतों का ऩरयत्माग कय दे ने की न्स्थनत भें आत्भ-सॊमभ की बावना होनी चाटहए।
5. ऩरयश्रभर्ीरता- ऩरयश्रभशीरता वैमन्क्तक ववकास औय साभान्जक प्रगनत की आधायमशरा है । इससे
व्मन्क्त भें स्वावरम्फन की बावना उत्ऩन्न होती है । ऩरयश्रभी व्मन्क्त ही आदशथ नागरयक फनकय
अऩना, सभाज का औय दे श का कल्माण कय सकता है ।
6. कतशव्मऩयामणता- श्रेष्ट्ठ साभान्जक जीवन के मरए कतथव्मऩयामणता की बावना फहुत भहत्त्वऩूणथ है ।
कतथव्मऩयामणता आदशथ नागरयक जीवन की कॊु जी है ।
7. ऩयोऩकारयता- आदशथ नागरयक भें ऩयोऩकाय की बावना होनी आवश्मक है । सभाज के असहाम , दीन-
द्ु खखमों तथा अऩाटहजों ऩय उऩकाय कयना प्रत्मेक व्मन्क्त का भौमरक कतथव्म है ।
ु नू त औय दमा- सहानुबूनत औय दमा की बावना बी आदशथ नागरयक के अननवामथ गुण | हैं। मे ही
8. सहानब
व्मन्क्त को दस
ू यों की सहामता कयने के मरए प्रेरयत कयते हैं।
9. सभतव्मनमता- आवश्मक व्मम कयना आदशथ नागरयक का एक भहान ् गुण होता है । जो व्मन्क्त
कपजूरखजी कयता है , उसे अऩने जीवन भें अनेक प्रकाय की कटठनाइमों का साभना कयना ऩडता है ।
अनावश्मक खचथ कयने वारा व्मन्क्त स्वमॊ तो कष्ट्ट उठाता ही है , साथ ही ऩरयवाय, सभाज व याष्ट्र
को बी हानन ऩहुॉचाता है ; अत् आदशथ नागरयक भें मभतव्मनमता का गुण होना आवश्मक है ।
10. आऻाऩारन तथा अनर् ु ासन- एक आदशथ नागरयक भें आऻाऩारन औय अनुशासन की बावना |
होनी अननवामथ है , तबी वह याज्म द्वाया फनामे गमे कानूनों का ननष्ट्ठाऩूवक
थ ऩारन कय सकेगा। औय
दस
ू यों को बी ऐसा कयने की प्रेयणा दे सकेगा।
11. जागरूकता- आदशथ नागरयक के मरए मह आवश्मक है कक वह अऩने अर्धकायों के कतथव्मों के
प्रनत जागरूक यहे । आदशथ नागरयक को अऩने ऩरयवाय, ग्राभ, प्रान्त तथा याष्ट्र के टहतों के प्रनत
जागरूक यहना चाटहए औय उनके प्रनत अऩने कतथव्मों का ऩारन कयना चाटहए।
12. प्रगनतर्ीरता- आधनु नक मग
ु रोकतन्त्र का मग
ु है ; अत: मह आवश्मक है कक आदशथ नागरयक
रूटढ़मों एवॊ कुयीनतमों की उऩेऺा कय प्रगनतशीर ववचायों के अनुकूर आचयण कये ।
13. नन:स्िाथशता- आदशथ नागरयक को स्वाथथऩयता से दयू यहना चाटहए तथा उसका अन्त:कयण जन-
कल्माण के उच्च आदशों से प्रेरयत होना चाटहए।
14. भताचधकाय का उचचत प्रमोग- आधुननक प्रजातान्न्त्रक मुग भें सबी वमस्क स्त्री-ऩुरुषों को
भतार्धकाय प्राप्त है । इस अर्धकाय का उर्चत प्रमोग ननष्ट्ऩऺता के साथ कयना प्रत्मेक आदशथ
नागरयक का प्रथभ कतथव्म है । इस अर्धकाय के अनुर्चत प्रमोग से शासन भें भ्रष्ट्टाचाय पैर सकता
है औय शासन-सत्ता अमोग्म व्मन्क्तमों के हाथ भें ऩहुॉच सकती है ।
15. दे र्बक्तत- आदशथ नागरयक का सवोच्च गुण दे शबन्क्त है । प्रत्मेक आदशथ नागरयक भें दे शबन्क्त
की बावना कूट-कूटकय बयी होनी चाटहए। सॊकट के सभम दे शबन्क्त की बावना से प्रेरयत होकय
नागरयक अऩना सवथस्व फमरदान कयने के मरए तत्ऩय हो जाता है ।
ननष्ट्कषथ रूऩ भें हभ कह सकते हैं कक आदशथ नागरयक भें उऩमक्
ुथ त गण
ु ों का होना आवश्मक है , क्मोंकक
आदशथ नागरयक ही सभाज औय दे श को उन्ननत के चयभ मशखय ऩय ऩहुॊचा सकते हैं।

प्रश्न 5.
बायतीम नागरयकता ऩय सॊक्षऺप्त ननफन्ध मरखखए।
मा बायतीम नागरयकता अर्धननमभ के प्रभुख प्रावधानों का वणथन कीन्जए।
उत्तय-
बायतीम नागरयकता
स्वाधीनता प्रान्प्त से ऩूवथ बायत के नागरयक ब्रिटटश साम्राज्म के नागरयक कहराते थे। रेककन उन्हें वे सफ
अर्धकाय प्राप्त नहीॊ थे , जो उस सभम एक अॊग्रेज को प्राप्त थे। ब्रिटटश सयकाय की अधीनता भें बायतीमों
को अनेक कटठनाइमों तथा असुववधाओॊ का साभना कयना ऩडता था। अॊग्रेज अर्धकायी बायतीमों के साथ
फडा अभानुवषक व्मवहाय कयते थे। बायतीमों की बाषण एवॊ प्रेस की स्वतन्त्रता ऩय बी अनेक प्रनतफन्ध रगे
हुए थे। रेककन 15 अगस्त, 1947 ई० के फाद बायतीमों को नागरयकता सम्फन्धी वे सबी अर्धकाय मभर गए
न्जनके भाध्मभ से वे दे श के शासन प्रफन्ध भें ननणाथमक बूमभका ननबाने रगे।
इकहयी नागरयकता
ववश्व के सबी सॊघीम सॊववधानों भें नागरयकों को दोहयी नागरयकता प्राप्त होती है -एक सॊघ सयकाय की
नागरयकता औय दस
ू यी उस इकाई मा याज्म (प्रान्त) की नागरयकता , न्जसभें वह ननवास कयता है । रेककन
स्वतन्त्र बायत का सॊववधान सॊघात्भक होते हुए बी बायतीमों को इकहयी नागरयकता प्रदान कयता है । इसका
आशम मह है कक प्रत्मेक बायतीम केवर बायत सॊघ का नागरयक , उस याज्म का नहीॊ न्जसभें वह ननवास
कयता है । बायतीम सॊववधान ने दे श की अखण्डता को कामभ यखने के मरए इकहयी नागरयकता की
व्मवस्था को अऩनामा है ।
बायत का नागरयक होने का हकदाय
बायतीम सॊववधान-ननभाथताओॊ ने मह ननन्श्चत नहीॊ ककमा था कक बववष्ट्म भें बायतीम नागरयकता ककस प्रकाय
प्राप्त की जा सकती है तथा उसका रोऩ ककस प्रकाय सम्बव है । बायतीम सॊववधान भें केवर मह वखणथत है
कक 27 जनवयी, 1950 ई० को बायत के नागरयक कौन हैं। नागरयकता की प्रान्प्त तथा उसके ननणथम औय
रुप्त होने के सम्फन्ध भें सॊववधान ने बायतीम सॊसद को ऩूणथ अर्धकाय प्रदान कय टदए हैं। इस प्रकाय
सॊववधान ने नागरयकता सम्फन्धी ननमभों के ननभाथण का एकार्धकाय बायतीम सॊसद को सौंऩ टदमा है ।
बायतीम सॊववधान के रागू होने के सभम नागरयकता सम्फन्धी मसर्द्ान्त ननम्नवत ् ननधाथरयत ककए गए थे
1. जन्भ- बायत याज्म ऺेत्र भें जन्भ रेने वारे प्रत्मेक व्मन्क्त को बायत सॊघ की नागरयकता प्राप्त होगी।
2. िॊर्- वे सबी व्मन्क्त बायत सॊघ के नागरयक भाने जाएॉगे , न्जनके भाता-वऩता भें से ककसी एक ने
बायत याज्म ऺेत्र भें जन्भ मरमा है ।
3. ननिास- वे सबी व्मन्क्त बायत सॊघ के नागरयक होंगे , जो सॊववधान रागू होने के ऩाॉच वषथ ऩूवथ से
बायत याज्म ऺेत्र के साभान्म ननवासी थे।
4. र्यणाथी- ऩाककस्तान से बायत आने वारे व्मन्क्तमों भें से वे व्मन्क्त बायत सॊघ के नागरयक भाने
जाएॉगे-(अ) जो 19 जर
ु ाई, 1948 ई० से ऩव
ू थ बायत चरे आए थे औय न्जनके भाता मा वऩता का जन्भ
अववबान्जत बायत भें हुआ था। (फ) जो 19 जुराई, 1948 ई० के फाद बायत
आए हों औय तत्कारीन बायत सयकाय द्वाया ऩॊजीकृत कय मरए गए हों।
5. बायतीम विदे र्ी- बायत के सॊववधान भें ऐसे बायतीमों को बी नागरयकों की श्रेणी भें ऩॊजीकृत कयने का
उल्रेख है जो बायत याज्म ऺेत्र के फाहय ककसी अन्म दे श भें ननवास कयते हों। उनके मरए
ननम्नमरखखत दो शते हैं-(अ) वे मा उनके भाता-वऩता अथवा वऩताभह-वऩताभही भें से कोई एक
अववबान्जत बायत भें जन्भें हों। (फ) उन्होंने अभुक दे श भें यहने वारे बायतीम याजदत
ू के ऩास
बायत सॊघ का नागरयक फनने के मरए आवेदन-ऩत्र दे टदमा हो औय उन्हें बायतीम नागरयक ऩॊजीकृत
कय टदमा गमा हो।
बायतीम नागरयकता अचधननमभ, 1955
बायतीम सॊसद ने सन ् 1955 भें बायतीम नागरयकता अर्धननमभ ऩारयत ककमा। इस अर्धननमभ भें बायतीम
नागरयकता की प्रान्प्त औय उसके ववरोऩन के प्रकाय को फतामा गमा है । इस अर्धननमभ के प्रावधान
ननम्नमरखखत हैं–
बायतीम नागरयकता की प्राक्तत
1. जन्भ- उने सबी व्मन्क्तमों को बायत सॊघ की नागरयकता प्राप्त होगी, न्जनका जन्भ 26 जनवयी,
1950 ई० के फाद बायत याज्म ऺेत्र के ककसी बी बाग भें हुआ हो।
2. ऩाककस्तान से आगभन मा प्रव्रजन- उन सबी व्मन्क्तमों को, जो 26 जुराई, 1949 ई० के फाद बायते आए
हों, बायत सॊघ की नागरयकता प्राप्त हो जाएगी, फशते वे बायतीम नागरयकों के यन्जस्टय भें अऩना
नाभ दजथ कया रें औय कभ-से-कभ एक वषथ से बायत भें अवश्म ननवास | कयते हों।
3. ऩॊजीकयण- ववदे शों भें ननवास कयने वारे बायतीम बायत सयकाय के दत
ू ावास भें अऩना नाभ |ऩॊजीकृत
कयाकय बायतीम सॊघ की नागरयकता प्राप्त कय सकते हैं।
4. वििाह- उन सबी ववदे शी न्स्त्रमों को, न्जन्होंने बायतीमों से वववाह ककमा है , बायत सॊघ की नागरयकता
प्राप्त हो जाएगी।
5. आिेदन-ऩत्र- कोई बी ववदे शी व्मन्क्त आवेदन-ऩत्र दे कय बायत सॊघ का नागरयक फन सकता है , रेककन
शतथ मह है कक वह अच्छे आचयण का हो, सॊववधान भें वखणथत ककसी एक बाषा का ऻाता हो, बायत
भें स्थामी रूऩ से ननवास कयने की इच्छा यखता हो औय कभ-से-कभ एक वषथ | से बायत भें रगाताय
यह यहा हो।
6. ननिास अथिा नौकयी- याष्ट्रभण्डर के सदस्म दे शों के वे नागरयक जो बायत भें यहते हों मा बायत भें
नौकयी कयते हों, तो वे प्राथथना-ऩत्र दे कय बायतीम नागरयकता प्राप्त कय सकेंगे।
7. बसू भ विस्ताय- मटद ककसी नए प्रदे श को बायत भें मभरा मरमा जाता है , तो वहाॉ के ननवामसमों को
बायतीम नागरयकता प्राप्त हो जाएगी।
बायतीम नागरयकता सॊर्ोधन अचधननमभ, 1986 तथा 1992
बायतीम नागरयकता अर्धननमभ, 1955 के प्रावधानों की सयरता का राब उठाकय जम्भू-कश्भीय, ऩॊजाफ औय
असभ जैसे याज्मों भें राखों ववदे मशमों ने अनर्धकृत रूऩ से बायत भें प्रवेश कय बायतीम नागरयकता प्राप्त
कय री। अत् केन्द्र सयकाय ने बायतीम नागरयकता सॊशोधन अर्धननमभ , 1986 ऩारयत कयके नागरयकता
सम्फन्धी प्रावधानों को कठोय फना टदमा।
सन 1986 के सॊशोधन अर्धननमभ के अनुसाय कोई बी ववदे शी जफ तक कभ-से-कभ 10 वषथ तक बायत
‗याज्म-ऺेत्र का ननवासी नहीॊ यहा होगा, बायतीम नागरयकता प्राप्त नहीॊ कय सकेगा। बायतीम नागरयकता
सम्फन्धी प्रावधानों को जम्भू-कश्भीय तथा असभ याज्मों ऩय बी रागू ककमा गमा। इस सॊशोधन अर्धननमभ
भें मह शतथ बी जोड दी गई है कक बायत भें जन्भ रेने वारे व्मन्क्त को बायतीम नागरयकता तबी प्राप्त
होगी, जफकक उसके भाता-वऩता भें से कोई एक बायतीम नागरयक होगा।

सन ् 1992 भें बायतीम सॊसद ने नागरयकता से सम्फन्न्धत दस


ू या सॊशोधन अर्धननमभ ऩारयत होगा। इस
सॊशोधन अर्धननमभ के अनस
ु ाय मह व्मवस्था की गई है कक ववदे श भें ननवास कय यहे ककसी बायतीम
दम्ऩती के मटद कोई सन्तान उत्ऩन्न होती है , तो वह बायतीम नागरयक भानी जाएगी, फशते कक दम्ऩती भें
से ककस एक (ऩनत मा ऩत्नी) ने ऩहरे से ही बायतीम नागरयकता प्राप्त कय यखी हो। इससे ऩव
ू थ केवर ऩनत
का ही बायतीम नागरयक होना अननवामथ था।

प्रश्न 6.
आदशथ नागरयकता के भागथ भें आने वारी फाधाओॊ का वणथन कीन्जए तथा उन्हें दयू कयने के सझ
ु ाव दीन्जए।
मा
आदशथ नागरयकता प्राप्त कयने के भागथ भें कौन-कौन-सी फाधाएॉ हैं ? वववेचना कीन्जए।
मा
आदशथ नागरयकता के भागथ की फाधाओॊ के ननवायण के उऩामों की व्माख्मा कीन्जए।
उत्तय-
आदर्श नागरयकता के भागश भें आने िारी फाधाएॉ
कोई बी नागरयक जन्भ से ही एक आदशथ नागरयक के गुणों को रेकय ऩैदा नहीॊ होता , अवऩतु वह फडा
होकय अऩने जीवन भें इन गुणों को ववकमसत कयता है । ऩरयवाय , सभुदाम, सभाज औय याज्म उसके मरए
उन सवु वधाओॊ को जट
ु ाते हैं न्जनसे वह एक आदशथ नागरयक फन सकता है । ककन्तु कबी-कबी आदशथ
नागरयक फनने के भागथ भें अनेक फाधाएॉ उऩन्स्थत हो जाती हैं , न्जसके परस्वरूऩ वह आदशथ नागरयक के
गण
ु ों से वॊर्चत यह जाता है । मे फाधाएॉ अग्रमरखखत हैं
1. असर्ऺा औय अऻानता- अमशऺा ही अऻानता की जड है । अऻानी व्मन्क्त भें उर्चत औय अनुर्चत का अन्तय
कय ऩाने का वववेक नहीॊ होता। अमशक्षऺत व्मन्क्त न तो अऩने व्मन्क्तत्व का ववकास कय सकता है औय न
ही याष्ट्र की सेवा। अत् अमशऺा व अऻानता व्मन्क्त के आदशथ
नागरयक फनने के भागथ भें फाधा उत्ऩन्न कयते हैं।
2. व्मक्ततगत स्िाथश- मह आदशथ नागरयक के भागथ की सफसे फडी फाधा है । स्वाथी व्मन्क्त अऩने | स्वाथथ को
सवोऩरय भानता है औय अऩने स्वाथथ की ऩूनतथ के मरए सभाज तथा याष्ट्र के टहतों का बी फमरदान कय दे ता
है । वह केवर अऩने ववषम भें सोचता, कामथ कयता औय जीववत यहता है तथा ककसी बी तयह अऩने स्वाथों
की ऩूनतथ कय रेना ही सफ कुछ भान रेता है ; उदाहयणाथथ-व्माऩायी के रूऩ भें काराफाजायी, सयकायी अर्धकायी
के रूऩ भें रयश्वतखोयी
आटद। ननजी स्वाथों की प्रफरता ही कुछ भुद्राओॊ के मरए याष्ट्रीम टहतों का सौदा कय रेती है ।
3. ननधशनता अथिा आचथशक विषभता- आदशथ नागरयकता के भागथ भें आर्थथक फाधाएॉ प्रफर होती हैं। आर्थथक
फाधाओॊ भें दरयद्रता, फेयोजगायी तथा आर्थथक ववषभता भुख्म हैं। बूखे व्मन्क्त की नैनतकता औय ईभान
केवर योटी फन जाती है । गम्बीय आर्थथक ववषभताएॉ उनभें वगथ-सॊघषथ की बावना उत्ऩन्न कयती हैं , न्जससे
व्मन्क्त अऩने वगथ के टहत के मरए सभाज के टहत को अनदे खा कय दे ता है ।
4. अकभशण्मता- अकभथण्मता अथवा आरस्म व्मन्क्त को कामथ कयने के प्रनत उदासीन फना दे ता है । ऐसा
व्मन्क्त ककसी प्रकाय के कामथ कयने भें रुर्च नहीॊ रेता औय अऩने कतथव्म-ऩारन से दयू यहना चाहता है । इस
प्रकाये अकभथण्मता आदशथ नागरयकता की उऩरन्ब्ध भें भहान ् दग
ु ण
ुथ है ।
5. साम्प्रदानमकता एिॊ जातीमता- अनेक फाय व्मन्क्त अऩने सम्प्रदाम अथवा जानतगत स्वाथों के वशीबूत होकय
सभाज औय याज्म के टहतों की बी अवहे रना कयने रगता है । इसी बावना के कायण दे श के अनेक बागों
भें बीषण यक्तऩात तथा आत्भदाह जैसी घटनाएॉ घटटत हुई हैं। इस प्रकाय की सॊकुर्चत बावनाएॉ भनुष्ट्म को
आदशथ नागरयक नहीॊ फनने दे तीॊ।
6. अनचु चत दरफन्दी- आधनु नक प्रजातन्त्र का आधाय दरीम व्मवस्था है । स्वस्थ दरीम ऩयम्ऩया प्रजातन्त्रीम
शासन की सपरता भें सहामक होती है तथा जनसाधायण भें याजनीनतक चेतना उत्ऩन्न कयती है ; ककन्तु
अनर्ु चत दरफन्दी साये वातावयण को ववषाक्त कय दे ती है । महाॉ तक कक ववमबन्न याजनीनतक दर अऩने
राब के मरए जातीम औय साम्प्रदानमक बावनाओॊ को बडकाकय दॊ गे बी कयाते हैं। ऐसे दवू षत वातावयण भें
आदशथ नागरयकता की कल्ऩना बी असम्बव है ।
7. साभाक्जक कुप्रथाएॉ औय रूदढ़िाददता- कुछ साभान्जक कुप्रथाएॉ बी आदशथ नागरयकता के भागथ | भें फाधा फन
जाती हैं। बायतीम सभाज भें छुआछूत, जानत-ऩाॉनत का बेद , फार-वववाह, दहे ज-प्रथा, सती- प्रथा, ववधवा-वववाह
आटद ऐसी ही साभान्जक कुप्रथाएॉ हैं।
8. उग्र-याष्ट्रीमता औय साम्राज्मिाद- उग्र-याष्ट्रीमता के कायण नागरयक अऩने याष्ट्र को ऊॉचा सभझते हैं तथा दस
ू ये
याष्ट्रों से घण
ृ ा कयते हैं। वे अऩने याष्ट्र के ऺुद्र स्वाथथ के मरए ऩडोसी याष्ट्रों भें साम्प्रदानमक वैभनस्म औय
आतॊकवाद को फढ़ावा दे ते हैं। इसके अनतरयक्त साम्राज्मवादी प्रवन्ृ त्त बी आदशथ नागरयक जीवन की प्रफर
शत्रु है । साम्राज्मवादी दे श छोटे याज्मों को ऩयाधीन कय रेते । हैं , न्जसके कायण मुर्द् होते हैं ; उदाहयणाथथ-
इयाक की साम्राज्मवादी कामथवाही के कायण इयाक व फहुयाष्ट्रीम सेनाओॊ भें हुआ बीषण मुर्द्।
आदर्श नागरयकता की फाधाओॊ को दयू कयने के उऩाम
आदशथ नागरयकता के भागथ भें आने वारी प्रभुख फाधाओॊ को ननम्नमरखखत उऩामों द्वाया सभाप्त ककमा जा
सकता है

1. उचचत सर्ऺा को प्रसाय- मशऺा के प्रसाय से व्मन्क्त की फौवर्द्क औय साॊस्कृनतक उन्ननत होती है , अऻानता
सभाप्त होती है औय उसभें वववेक जाग्रत होता है । मशक्षऺत व्मन्क्त अऩने अर्धकायों औय कतथव्मों के प्रनत
जागरूक यहता है । इसमरए मशऺा के अर्धकार्धक ववकास से अऻानता को ।
दयू कयके व्मन्क्त को आदशथ नागरयक फनने भें सहामता की जा सकती है ।
2. ननधशनता का विनार्- ऐसी व्मवस्था की जानी चाटहए न्जससे सबी व्मन्क्त अऩने बोजन , वस्त्र, ननवास, मशऺा
औय स्वास्थ्म जैसी अननवामथ आवश्मकताओॊ की ऩनू तथ कय सकें। ऐसा होने ऩय ही | वे अऩने सावथजननक
कतथव्मों का सम्ऩादन कय सकते हैं। अत् आर्थथक ववषभताओॊ का अन्त । | कयके अर्धकार्धके रूऩ भें
आर्थथक सभानता स्थावऩत की जानी चाटहए।
3. नैनतकता का उत्थान- नागरयकों को उत्तभ चरयत्र ही याष्ट्र की अभूल्म ननर्ध है । न्जस दे श के नागरयकों भें
नैनतक भल्
ू मों का सभावेश होगा, उस दे श का सवाांगीण ववकास होगा। व्मन्क्त को ननजी स्वाथों का त्माग
कयके जनटहत को सवोऩरय भानना चाटहए।
4. सभाज- सुधाय औय रूटढ़वाटदता का अन्त-सभाज भें प्रचमरत कुप्रथाओॊ को सयकाय द्वाया . सभाज-सुधायकों
की सहामता से सभाप्त ककमा जाना चाटहए। ऐसा कयने ऩय ही आदशथ नागरयकता का ववकास सम्बव है ।
5. स्ितन्त्र औय र्क्ततर्ारी प्रेस- आदशथ नागरयकता के ववकास के मरए स्वतन्त्र औय शन्क्तशारी प्रेस का होना
फहुत आवश्मक है । ववमबन्न घटनाओॊ औय गनतववर्धमों की सही जानकायी नागरयकों को स्वतन्त्र रूऩ से
ववचाय कयने के मरए प्रेरयत कयती है , ककन्तु ऐसा तबी सम्बव है जफ प्रेस सयकायी ननमन्त्रण से भक्
ु त हो।
6. स्िस्थ याजनीनतक दरों की स्थाऩना- दे श भें याजनीनतक दरों को सॊगठन ववशुर्द् याजनीनतक व आर्थथक आधाय
ऩय ककमा जाना चाटहए। ऐसा होने ऩय याजनीनतक दर सभाज व याष्ट्र के टहतों को दृन्ष्ट्ट भें यखकय काभ
कयें गे। ऐसे याजनीनतक दर ही नागरयकों को प्रत्मेक ववषम ऩय सावथजननक टहत की दृन्ष्ट्ट से सोचने की
टदशा भें अग्रसय कयें गे।
7. विश्ि-फन्धत्ु ि की बािना उग्र- याष्ट्रीमता तथा साम्राज्मवाद के दोषों से फचने के मरए ववश्व फन्धत्ु व की
बावना को अऩनाना अत्मन्त आवश्मक है । ‗जीओ औय जीने दो‘ तथा ‗वसुधैव कुटुम्फकभ ्‘ आदशथ नागरयकता
के भहान ् सन्दे श हैं , जो ऩयस्ऩय सहमोग औय सह-अन्स्तत्व की धायणा ऩय अवरन्म्फत हैं। इस बावना को
अऩनाकय एक आदशथ नागरयक अऩने दे श के ववकास के मरए इस प्रकाय कामथ कयता है कक वह अन्म दे शों
की प्रगनत भें फाधक न हो।

फहुविकल्ऩीम प्रश्न
प्रश्न 1.
ननम्नमरखखत भें से ककसने याष्ट्रवाद की सभारोचना प्रस्तुत की थी?
(क) यवीन्द्रनाथ टै गोय
(ख) भहात्भा गाॊधी
(ग) जवाहयरार नेहरू :
(घ) फॊककभचन्द्र चटजी
उत्तय-
(क) यवीन्द्रनाथ टै गोय।
प्रश्न 2.
याष्ट्रीमता के ववकास भें फाधक तत्त्व नहीॊ है
(क) अमशऺा
(ख) धभथ-ननयऩेऺता
(ग) जानतवाद
(घ) साम्प्रदानमकता
उत्तय-
(ख) धभथ-ननयऩेऺता।
प्रश्न 3.
―याष्ट्रीमता साभूटहक बावना का एक रूऩ है , जो ववमशष्ट्ट गहनता, सभीऩता तथा भहत्ता से एक ननन्श्चत
दे श से सम्फन्न्धत होती है । ‖ मह कथन ककसका है ?
(क) रॉस्की
(ख) गानथय
(ग) न्जभनथ
(घ) िाइस
उत्तय-
(ग) न्जभनथ।
प्रश्न 4.
―अन्तयाथष्ट्रीमता एक ऐसी बावना है न्जसके अनस
ु ाय व्मन्क्त केवर अऩने याज्म का ही सदस्म नहीॊ है ,
फन्ल्क ववश्व का एक नागरयक है । ‖ मह भत ककसका है ?
(क) गोल्ड न्स्भथ
(ख) जोसेप इभैनुअर
(ग) फाकथय
(घ) शूभाॊ
उत्तय-
(ग) फाकथय।
प्रश्न 5.
अन्तयाथष्ट्रीमता के भागथ का फाधक तत्त्व है
(क) ववश्व-फन्धुत्व की बावना
(ख) उग्र याष्ट्रवाद
(ग) अन्तयाथष्ट्रीम कानून
(घ) वैऻाननक प्रगनत
उत्तय-
(ख) उग्र याष्ट्रवाद।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
याष्ट्रीमता के भागथ भें उत्ऩन्न होने वारी दो फाधाएॉ मरखखए।
उत्तय-
(i) साम्प्रदानमकता की बावना तथा
(ii) जातीमता एवॊ प्रान्तीमता की बावना।
प्रश्न 2.
याष्ट्रीमता के दो तत्त्व फताइए।
उत्तय-
(i) बौगोमरक एकता तथा
(ii) साॊस्कृनतक एकता।
प्रश्न 3.
याष्ट्रीमता के ववकास भें दो फाधक तत्त्व मरखखए।
उत्तय-
(i) बाषावाद तथा
(ii) ऺेत्रवाद।
प्रश्न 4.
याष्ट्रवाद अथवा याष्ट्रीमता के दो दोष मरखखए।
उत्तय-
(i) सैन्मवाद को जन्भ तथा
(ii) मुर्द् को प्रोत्साहन।
प्रश्न 5.
याष्ट्रीमता के दो राब फताइए।
उत्तय-
(i) दे शप्रेभ की प्रेयणा तथा
(ii) फन्धुत्व की बावना का ववकास।
प्रश्न 6.
याष्ट्रवाद का अध्ममन क्मों आवश्मक है ?
उत्तय-
याष्ट्रवाद वैन्श्वक भाभरों भें भहत्त्वऩूणथ बूमभका ननबाता है , इसमरए याष्ट्रवाद का अध्ममन आवश्मक है ।
प्रश्न 7.
‗फास्क‘ कहाॉ है ?
उत्तय-
‗फास्क‘ स्ऩेन भें न्स्थत है । मह स्ऩेन को एक ऩहाडी ऺेत्र है ।
प्रश्न 8.
आत्भ-ननणथम का दावा क्मा है ?
उत्तय-
आत्भ-ननणथम के दावे भें याष्ट्र अन्तयाथष्ट्रीम सभद
ु ाम से भाॉग कयता है कक उसके ऩथ
ृ क् इकाई मा याज्म के
दजे को भान्मता औय स्वीकामथता दी जाए।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
यान्ष्ट्रक जानत औय सभुदाम से क्मा आशम है ?
उत्तय-
राडश ब्राइस के अनुसाय, यान्ष्ट्रक जानत की बावना वह अनुबूनत मा अनुबूनतमाॉ हैं जो व्मन्क्तमों के एक सभूह
को उन फन्धनों के प्रनत सजग फनाती हैं जो ऩूयी तयह से न तो याजनीनतक होते हैं , न धामभथक औय जो
उन व्मन्क्तमों को ऐसे सभाज के रूऩ भें सॊगटठत कयने दे ते हैं जो मा तो याष्ट्र होता है । मा याष्ट्र होने की
ऺभता यखता है ।
‗याष्ट्रीम सभुदाम‘ शब्द का उऩमोग एक ऐसे सभाज को व्मक्त कयने के मरए ककमा जाता है न्जसभें याष्ट्रीम
बावना का अबी ननभाथण ही हो यहा हो औय न्जसभें एक याष्ट्र की तयह यहने की इच्छा की कभी
प्रश्न 2.
हभाये मरए याष्ट्रवाद क्मों आवश्मक है ?
उत्तय–
जहाॉ तक बायत का सम्फन्ध है , याष्ट्रवाद हभाये मरए आवश्मक है । हभाया अन्स्तत्व ही याष्ट्रीमता ऩय ननबथय
कयता है , मह हभाये जीवन-भयण का प्रश्न है । मद्मवऩ अऩने साये दब
ु ाथग्मों के मरए ववदे मशमों को न्जम्भेदाय
ठहयाना भूखतथ ा है , कपय बी इसभें कोई सन्दे ह नहीॊ कक अॊग्रेजों की रम्फी गुराभी ने हभभें फहुत-सी फुयाइमाॉ
उत्ऩन्न कय दी हैं न्जनका वास्तववक उऩचाय आत्भ-ननणथम है । बमे , कामथयता औय कऩट जैसी फयु ाइमों को
याजनीनतक याष्ट्रीमता ही दयू कय सकती है ।
प्रश्न 3.
याष्ट्रीमता के भागथ की फाधाओॊ को दयू कयने के उऩामों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
याष्ट्रीमता के भागथ भें आने वारी फाधाओॊ को ननम्नमरखखत उऩामों से दयू ककमा जा सकता है
1. सॊकुर्चत बावनाओॊ का त्माग औय दे श-प्रेभ मा दे शबन्क्त की प्रफर बावना का ववकास ककमा जाना
चाटहए।
2. दे श के ववमबन्न बागों भें बावनात्भक, साटहन्त्मक तथा साॊस्कृनतक सम्ऩकथ फढ़ाने के मरए प्रमास ककए
जाने चाटहए।
3. मशऺा का व्माऩक स्तय ऩय प्रचाय तथा प्रसाय ककमा जाना चाटहए तथा मशऺा व्मवस्था का सभर्ु चत
प्रफन्ध होना चाटहए।
4. दे शबय भें ऩरयवहन तथा सॊचाय के साधनों का ऩमाथप्त ववकास ककमा जाना चाटहए।
5. दे श के सबी ऺेत्रों का सन्तुमरत आर्थथक ववकास ककमा जाना चाटहए।
6. सॊकीणथ टहतों तथा स्वाथथऩण
ू थ भनोवन्ृ त्तमों ऩय आधारयत याजनीनत को ननमन्न्त्रत ककमा जाना चाटहए।
7. दे श भें सुदृढ़ तथा न्मामऩूणथ शासन व्मवस्था स्थावऩत की जानी चाटहए।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
ककसी याष्ट्र के स्वतन्त्र औय सम्प्रबु फन सकने से ऩव
ू थ उसभें क्मा मोग्मताएॉ होनी चाटहए ?
उत्तय-
ककसी याष्ट्र के स्वतन्त्र औय सम्प्रबु फन सकने से ऩव
ू थ उसभें ननम्नमरखखत फातों का होना आवश्मक है -
1. उसभें अऩनी सम्ऩन्त्त की व्मवस्था कयने औय अऩने प्राकृनतक साधनों तथा अऩनी ऩॉज
ू ी का ववकास
कय सकने की ऺभता होनी चाटहए।
2. उसे अच्छे कानून फनाने चाटहए औय न्माम की उर्चत व्मवस्था कयनी चाटहए। याज्म
ऺेत्रातीतन्मामारमों की आवश्मकता नहीॊ होनी चाटहए।
3. उसे एक उऩमुक्त ढॊ ग की सयकाय स्थावऩत कयनी चाटहए।
4. उसे व्माऩाय कयने दे ने , कजथ अदा कयने औय मात्रा की अनुभनत दे ने का अथवा कत्तथव्म स्वीकाय
कयना चाटहए।
5. उसे अन्तयाथष्ट्रीम भाभरों भें अऩनी न्जम्भेदायी ऩूयी कयनी चाटहए। उसे याजदत
ू ों को अऩने महाॉ
आभन्न्त्रत कयना चाटहए, वववादों भें भध्मस्थताएॉ स्वीकाय कयनी चाटहए औय सन्न्धमाॉ कयनी चाटहए
आटद। उसके ऩास ऐसे नागरयक होने चाटहए जो गौयव के साथ अन्तयाथष्ट्रीम सम्भेरनों भें उसका
प्रनतननर्धत्व कय सकें।
6. जफ तक मुर्द्ों का होना जायी है तफ तक उसे ववदे शी आक्रभणों से अऩनी यऺा कयने भें सभथथ होना
चाटहए।
प्रश्न 2.
याष्ट्रीमता तथा अन्तयाथष्ट्रीमता के सम्फन्ध को स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय-
वतथभान भें याष्ट्रीमता औय अन्तयाथष्ट्रीमता के भध्म सम्फन्ध को रेकय दो ववयोधी ववचाय प्रचमरत हैं। ऩहरे
भत के ववद्वानों का कहना है कक याष्ट्रीमता औय अन्तयाथष्ट्रीमता ऩयस्ऩय ववयोधी हैं। उनका तकथ है कक
याष्ट्रीमता व्मन्क्त को अऩने दे श के प्रनत श्रर्द्ा बाव यखने के मरए प्रेरयत कयती है , जफकक अन्तयाथष्ट्रीमता
का आधायबूत मसर्द्ान्त ववश्वफन्धुत्व की स्थाऩना कयना है । रेककन मह भत भ्राभक औय असॊगत प्रतीत
होता है । वास्तव भें याष्ट्रीमता औय अन्तयाथष्ट्रीमता ऩयस्ऩय ववयोधी नहीॊ हैं। याष्ट्रीमता तबी अन्तयाथष्ट्रीमता
के भागथ भें फाधक फनती है , जफकक उसका अन्धानुकयण ककमा जाए तथा उसके उग्र रूऩ को ग्रहण ककमा
जाए। उदाय याष्ट्रीमता अन्तयाथष्ट्रीमता की ऩोषक औय ववश्व-शान्न्त की सभथथक है । बायत का ऩॊचशीर
मसर्द्ान्त इस सन्दबथ भें उदाहयणस्वरूऩ मरमा जा सकता है ।
इस प्रकाय याष्ट्रीमता औय अन्तयाथष्ट्रीमता एक-दस
ू ये की ऩयस्ऩय ऩयू क हैं। मही भत अर्धक तकथसॊगत प्रतीत
होता है , क्मोंकक याष्ट्रीमता ही अन्तयाथष्ट्रीमता का प्रथभ चयण है । गाॊधी जी के अनुसाय, ―भेये ववचाय से
याष्ट्रवादी हुए ब्रफना अन्तयाथष्ट्रवादी होना असम्बव है । अन्तयाथष्ट्रीमता तबी सम्बव हो सकती है , जफकक
याष्ट्रीमता एक मथाथथ फन जाए।‖
प्रश्न 3.
यवीन्द्रनाथ ठाकुय ने याष्ट्रवाद की आरोचना ककस प्रकाय की है ?
उत्तय-
अनेक ववचायक याष्ट्रवाद के फहुत फडे प्रशॊसक औय बक्त हैं। वे इसभें अच्छाइमाॉ-हीअच्छाइमाॉ ऩाते हैं। ऩय
दस
ू ये रोगों का कहना है कक याष्ट्रवाद से अनेक फयु े ऩरयणाभ ननकरे हैं। इन रोगों का ववश्वास है कक
याष्ट्रीमता अऩने वतथभान रूऩ भें अन्तयाथष्ट्रीम शान्न्त औय सद्भावना की सफसे फडी शत्रु है । याष्ट्रवाद ऩय
अऩने ननफन्ध भें यवीन्द्रनाथ ठाकुय ने नन:सॊकोच याष्ट्रवाद को फुया कहा है । वह उसे ‗सभूची जानत का
साभूटहक औय सॊगटठत स्वाथथ‘, ‗आत्भऩूजा‘, ‗स्वाथी उद्देश्मों के मरए याजनीनत औय व्मवसाम का सॊगठन‘,
‗शोषण के मरए सॊगटठत शन्क्त‘ आटद कहते हैं।
याष्ट्रिाद ऩय यिीन्द्रनाथ ठाकुय की सभारोचना
―याष्ट्रवाद हभाया अन्न्तभ आध्मान्त्भक भॊन्जर नहीॊ हो सकता भेयी शयणस्थरी तो भानवता है । भैं हीयों की
कीभत ऩय शीशा नहीॊ खयीदॊ ग
ू ा औय जफ तक भैं जीववत हूॉ दे शबन्क्त को भानवता ऩय कदावऩ ववजमी नहीॊ
होने दॊ ग
ू ा‖ मह यवीन्द्रनाथ ठाकुय ने कहा था वे औऩननवेमशक शासन के ववयोधी थे औय बायत की
स्वाधीनता के अर्धकाय का दावा कयते थे वे भहसूस कयते थे कक उऩननवेशों के ब्रितानी प्रशासन भें
‗भानवीम सम्फन्धों की गरयभा फयकयाय यखने की गुॊजाइश नहीॊ है । मह एक ऐसा ववचाय है । न्जसे ब्रितानी
सभ्मता भें बी स्थान मभरा है । टै गोय ऩन्श्चभी साम्राज्मवाद का ववयोध कयने औय ऩन्श्चभी सभ्मता को
खारयज कयने के फीच पकथ कयते थे। बायतीमों को अऩनी सॊस्कृनत औय ववयासत भें गहयी सभ्मता होनी ही
चाटहए रेककन फाहयी दनु नमा से भुक्त बाव से सीखने औय राबान्न्वत होने का प्रनतयोध नहीॊ कयनी चाटहए।
टै गोय न्जसे ‗दे शबन्क्त‘ कहते थे, उसकी सभारोचना उनके रेखन का स्थामी ववषम था। वे दे श के
स्वाधीनता आन्दोरन भें भौजूद सॊकीणथ याष्ट्रवाद के कटु आरोचक थे। उन्हें बम था कक तथाकर्थत | |
बायतीम ऩयम्ऩया के ऩऺ भें ऩन्श्चभ की खारयजी का ववचाय महीॊ तक सीमभत यहने वारा नहीॊ है । मह अऩने
दे श भें भौजद
ू ईसाई, महूदी, ऩायसी औय इस्राभ सभेत तभाभ ववदे शी प्रबावों के खखराप आसानी से
आक्राभक बी हो सकता है ।

प्रश्न 4.
याष्ट्रीमता अथवा याष्ट्रवाद के प्रभुख गुणों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
याष्ट्रीमता मा याष्ट्रिाद के गण
ु याष्ट्रीमता मा याष्ट्रिाद के प्रभख
ु गण
ु ननम्नसरर्खत हैं-
1. दे र्प्रेभ की प्रेयणा- याष्ट्रीमता की बावना रोगों भें दे शप्रेभ का बाव उत्ऩन्न कयती है औय उन्हें दे श के टहत
के मरए अऩना सवथस्व फमरदान कयने के मरए प्रेरयत कयती है । मह प्रेयणा याष्ट्रीम ऩवो के आमोजन ,
याष्ट्रगान तथा याष्ट्रीम गीतों, नाटकों आटद से औय अर्धक व्माऩक होती है ।
2. याजनीनतक एकता की स्थाऩना भें मोगदान- याष्ट्रीमता की बावना याजनीनतक एकता की स्थाऩना भें भहत्त्वऩूणथ
मोगदान दे ती है । याष्ट्रीमता से प्रेरयत होकय ही ववमबन्न जानतमों व धभों के | रोग एकता के सत्र
ू भें
सॊगटठत हो जाते हैं औय एक शन्क्तशारी याष्ट्र का ननभाथण कयते हैं।
3. याज्मों को स्थानमत्ि- याष्ट्रीमता याज्मों को स्थानमत्व बी प्रदान कयती है । याष्ट्रीम चेतना के आधाय ऩय
ननमभथत याज्म अर्धक स्थामी मसर्द् हुए हैं।
4. उदायिाद को प्रोत्साहन- याष्ट्रीमता आत्भ-ननणथम के मसर्द्ान्त को भान्मता दे ती है । इसमरए याष्ट्रीमता
भानवीम स्वतन्त्रता को स्वीकाय कय उदायवादी दृन्ष्ट्टकोण को फढ़ावा दे ती है ।
5. साॊस्कृनतक विकास- याष्ट्रीमता दे श के साॊस्कृनतक ववकास को प्रोत्साटहत कयती है । प्राचीन मूनान के
भहाकवव होभय, िाॊस के दान्ते तथा िोल्तेमय, इॊग्रैण्ड के िे नीसन, र्ैर,े िाभस ऩेन, जभथनी के हीगर औय बायत
के भैचथरीर्यण गतु त आटद ने याष्ट्रीमता से प्रेरयत होकय ही साटहन्त्मक यचनाएॉ की हैं।
6. आत्भ-सम्भान की बािना- याष्ट्रीमता व्मन्क्त भें आत्भ-सम्भान की बावना उत्ऩन्न कयती है । औय उसे
आत्भ-गौयव को सॉजोने की प्रेयणा दे ती है ।
7. विश्िफन्धुत्ि की ऩोषक- याष्ट्रीमती व्मन्क्त के दृन्ष्ट्टकोण को व्माऩक फनाकय अन्तयाथष्ट्रीम भैत्री औय सहमोग
को प्रोत्साटहत कयती है । इस प्रकाय याष्ट्रीमता ववश्वफन्धत्ु व की ऩोषक बी है ; उदाहयणाथथ-बायत का ऩॊचशीर
मसर्द्ान्त ‗वसुधैव कुटुम्फकभ ्‘का ऩोषक है ।
8. आचथशक विकास भें मोगदान- याष्ट्रीमता याष्ट्र के आर्थथक ववकास को बी प्रोत्साटहत कयती है । | याष्ट्रीमता की
बावना से प्रेरयत होकय ही व्मन्क्त अऩने याष्ट्र को आर्थथक दृन्ष्ट्ट से सम्ऩन्न फनाने के मरए एकजुट होकय
कामथ कयते हैं।
प्रश्न 5.
फास्क याष्ट्रवादी आन्दोरन के ववषम भें आऩ क्मा जानते हैं ?
उत्तय-
फास्क स्ऩेन का एक ऩहाडी औय सभर्द्
ृ ऺेत्र है । इस ऺेत्र को स्ऩेनी सयकाय ने स्ऩेन याज्मसॊघ के अन्तगथत
स्वामत्त ऺेत्र का दजाथ दे यखा है , रेककन फास्क याष्ट्रवादी आन्दोरन के नेतागण इस स्वामत्तता से सन्तुष्ट्ट
नहीॊ हैं। वे चाहते हैं कक फास्क स्ऩेन से अरग होकय एक स्वतन्त्र दे श फन जाए। इस आन्दोरन के
सभथथकों ने अऩनी भाॉग ऩय जोय डारने के मरए सॊवैधाननक औय हार तक टहॊसक तयीकों का इस्तेभार
ककमा है ।

फास्क याष्ट्रवाटदमों का कहना है कक उनकी सॊस्कृनत स्ऩेनी से फहुत मबन्न है । उनकी अऩनी बाषा है , जो
स्ऩेनी बाषा से ब्रफल्कुर नहीॊ मभरती है । हाराॉकक आज फास्क के भात्र एक-नतहाई रोग उस बाषा को सभझ
ऩाते हैं। फास्क ऺेत्र की ऩहाडी बू-सॊयचना उसे शेष स्ऩेन से बौगोमरक तौय ऩय अरग कयती है । योभन कार
से अफ तक फास्क ऺेत्र ने स्ऩेनी शासकों के सभऺ अऩनी स्वामत्तता का कबी सभऩथण नहीॊ ककमा। उसकी
न्मानमक, प्रशासननक एवॊ ववत्तीम प्रणामरमाॉ उसकी अऩनी ववमशष्ट्ट व्मवस्था के जरयए सॊचामरत होती थीॊ।
आधुननक फास्क याष्ट्रवादी आन्दोरन की शुरूआत तफ हुई जफ उन्नीसवीॊ शताब्दी के अन्त भें स्ऩेनी
शासकों ने उसकी ववमशष्ट्ट याजनीनतक-प्रशाॊसननक व्मवस्था को सभाप्त कयने की कोमशश की। फीसवीॊ सदी
भें स्ऩेनी तानाशाह िैं को ने इस स्वामत्तता भें औय कटौती कय दी। उसने फास्क बाषा को सावथजननक
स्थानों, महाॉ तक कक घय भें बी फोरने ऩय ऩाफन्दी रगा दी थी। मे दभनकायी कदभ अफ वाऩस मरए जा
चुके हैं। रेककन फास्क आन्दोरनकारयमाॊ को स्ऩेनी शासक के प्रनत सन्दे ह औय ऺेत्र भें फाहयी रोगों के
प्रवेश का बम फयकयाय है । उने ववयोर्धमों का कहना है कक फास्क अरगाववादी एक ऐसे भद्द
ु े का याजनीनतक
पामदा उठाने की कोमशश कय यहे हैं न्जसका सभाधान हो चुका है ।

प्रश्न 6.
‗एक सॊस्कृनत-एक याज्म के ववचाय को त्मागने के ऩश्चात याज्मों के मरए क्मा आवश्मक हो जाता है ?
उत्तय-
एक सॊस्कृनत-एक याज्म के ववचाय को त्मागते ही मह आवश्मक हो जाता है कक ऐसे तयीकों के फाये भें
ववचाय ककमा जाए न्जसभें ववमबन्न सॊस्कृनतमाॉ औय सभुदाम एक ही दे श भें पर-पूर सकें। इस रक्ष्म को
प्राप्त कयने के मरए अनेक रोकतान्न्त्रक दे शों ने साॊस्कृनतक रूऩ से अल्ऩसॊख्मक सभुदामों की ऩहचान को
स्वीकाय कयने औय सॊयक्षऺत कयने के उऩामों को प्रायम्ब ककमा है । बायतीम सॊववधान भें धामभथक , बाषाई औय
साॊस्कृनतक अल्ऩसॊख्मकों की सॊयऺा के मरए ववस्तत ृ प्रावधान ककए हैं।
विसबन्न दे र्ों भें सभह
ू ों को जो बी अचधकाय प्रदान ककए गए हैं, उनभें सक्म्भसरत हैं-
अल्ऩसॊख्मक सभूहों एवॊ उनके सदस्मों की बाषा, सॊस्कृनत एवॊ धभथ के मरए सॊवैधाननक सॊयऺा के अर्धकाय।
कुछ प्रकयणों भें इन सभूहों को ववधामी सॊस्थाओॊ औय अन्म याजकीम सॊस्थाओॊ भें प्रनतननर्धत्व का
अर्धकाय बी होता है । इन अर्धकायों को इस आधाय ऩय न्मामोर्चत ठहयामा जा सकता है कक मे अर्धकाय
इन सभूहों के सदस्मों के मरए कानून द्वाया सभान व्मवहाय एवॊ सुयऺा के साथ ही सभूह की साॊस्कृनतक
ऩहचान के मरए बी सयु ऺा का प्रावधान कयते हैं। इसके अरावा, इन सभह
ू ों को याष्ट्रीम सभद
ु ाम के एक
अॊग के रूऩ भें बी भान्मता दे नी होती है । इसका आशम मह है कक याष्ट्रीम ऩहचान को सभावेशी यीनत से
ऩरयबावषत कयना होगा जो याष्ट्र-याज्म के सदस्मों की भहत्ता औय अद्ववतीम मोगदान को भान्मता प्रदान
कय सके।
मह आशा की जाती है कक सभूहों को भान्मता औय सॊयऺा प्रदान कयने से उनकी आकाॊऺाएॉ सन्तुष्ट्ट होंगी ,
कपय बी हो सकता है , कक कुछ सभूह ऩथ
ृ क् याज्म की भाॉग ऩय अडडग यहें । मह ववयोधाबासी बी प्रतीत हो
सकता है कक जहाॉ दनु नमा भें बूभण्डरीकयण की प्रकक्रमा जायी है वहाॉ याष्ट्रीम आकाॊऺाएॉ अबी बी फहुत साये
सभूह औय भनुष्ट्मों को उद्देमरत कय यही हैं। ऐसी भाॉगों से रोकतान्न्त्रक तयीके से ननऩटने के मरए मह
आवश्मक है कक सम्फन्न्धत दे श अत्मन्त उदायता व दऺता का ऩरयचम दें ।

दीघश उत्तयीम प्रश्न


प्रश्न 1.
याष्ट्रीमता ककसे कहते हैं ? याष्ट्रीमता का ननभाथण ककन तत्त्वों से होता है ?
मा
याष्ट्रीमता की ऩरयबाषा दीन्जए तथा इसके ववमबन्न ऩोषक तत्वों की वववेचना कीन्जए।
मा
याष्ट्रीमता के ववकास भें उत्तयदामी तत्त्वों का ववश्रेषण कीन्जए।
उत्तय-
याष्ट्रीमता का अथथ एवॊ ऩरयबाषाएॉ
‗याष्ट्रीमता‘ शब्द अॊग्रेजी बाषा के ‗नैर्नसरिी‘ (Nationality) शब्द का टहन्दी अनव
ु ाद है , न्जसका उत्ऩन्त्त रैटटन
बाषा के ‗नेसर्मो‘ (Natio) शब्द से हुई है । इस शब्द से जन्भ औय जानत का फोध होता है । याष्ट्रीमता एक
साॊस्कृनतक तथा आध्मान्त्भक बावना है , जो रोगों को एकता के सूत्र भें फाॉधती है । इसी बावना के कायण
रोग अऩने याष्ट्र से प्रेभ कयते हैं। इस प्रकाय याष्ट्रीमता एक बावात्भक शब्द है । इसी बावना के कायण
रोग अऩने दे श ऩय सॊकट आने की न्स्थनत भें अऩने तन, भन औय धन का फमरदान कयने से बी ऩीछे नहीॊ
हटते हैं। जे० एच० योज के अनुसाय, ―याष्ट्रीमता रृदमों की वह एकता है , जो एक फाय फनने के फाद कबी
खन्ण्डत नहीॊ होती है । ‖
याष्ट्रीमता की ऩूणथ एवॊ सम्मक ऩरयबाषा कयना एक कटठन कामथ है ; ककन्तु कुछ ववद्वानों ने इसे स्ऩष्ट्ट रूऩ
से ऩरयबावषत कयने का प्रमास ककमा है । इन ववद्वानों की ऩरयबाषाएॉ ननम्नमरखखत हैं-

क्जभनश के अनुसाय, ―याष्ट्रीमता साभूटहक बावना का एक रूऩ है , जो ववमशष्ट्ट गहनता, सभीऩता तथा भहत्ता से
एक ननन्श्चत दे श से सम्फन्न्धत होती है । ‖
ब्रॊश्री के अनुसाय, ―याष्ट्रीमता भनुष्ट्मों का वह सभूह है , जो सभान उत्ऩन्त्त, सभान जानत, सभान बाषा, सभान
ऩयम्ऩयाओॊ, सभान इनतहास तथा सभान टहतों के कायण एकता के सत्र
ू भें फॉधकय याज्म का ननभाथण कयता
है ।‖
चगरिाइस्ि के अनुसाय, ―याष्ट्रीमता एक आध्मान्त्भक बावना मा मसर्द्ान्त है , न्जसकी उत्ऩन्त्त उन रोगों भें से
होती है , जो साधायणत: एक जानत के होते हैं , जो एक बूखण्ड ऩय यहते हैं तथा न्जनकी एक बाषा, एक धभथ,
एक इनतहास, एक जैसी ऩयम्ऩयाएॉ एवॊ एक जैसे टहत होते हैं तथा न्जनके याजनीनतक सभुदाम औय
याजनीनतक एकता के एक-से आदशथ होते हैं। ‖
डॉ० फेनीप्रसाद के अनुसाय, ―याष्ट्रीमता की ननन्श्चत ऩरयबाषा कयना कटठन है । ऩयन्तु मह स्ऩष्ट्ट है कक
ऐनतहामसक गनतववर्धमों भें मह ऩथ
ृ क् अन्स्तत्व ही उस चेतना का प्रतीक है , जो साभान्म आदतों,
ऩयम्ऩयागत यीनत-रयवाजों, स्भनृ तमों, आकाॊऺाओॊ, अवणथनीम साॊस्कृनतक सम्प्रदामों तथा टहतों ऩय आधारयत है । ‖
उऩमक्
ुथ त ऩरयबाषाओॊ के आधाय ऩय हभ कह सकते हैं , ―याष्ट्रीमता एक ऐसी बावना है , न्जसके कायण एक
दे श के रोग एकता के सूत्र भें फॉधे यहते हैं औय जो अऩने दे श एवॊ दे शवामसमों के प्रनत सॊबावऩूवक
थ यहने
की प्रेयणा दे ती है । ‖
याष्ट्रीमता के प्रभख
ु ननभाशणक तत्त्ि
याष्ट्रीमता के ननभाथण अथवा याष्ट्रीमता की बावना के ववकास भें अनेक तत्त्व सहामक होते हैं। उनका
सॊक्षऺप्त वववयण इस प्रकाय है -
1. बौगोसरक एकता- बौगोमरक एकता याष्ट्रीम एकता की प्रेयणा-स्रोत है । जफ रोग सभान बौगोमरक
ऩरयन्स्थनतमों भें यहते हैं तो उनकी आवश्मकताएॉ एवॊ सभस्माएॉ बी सभान होती हैं। अत: वे रोग मभर-
जर
ु कय सभान ढॊ ग से अऩनी सभस्माएॉ सर
ु झाने हे तु एकजट
ु होते हैं। इसके ऩरयणाभस्वरूऩ उनभें एकता
की बावना उत्ऩन्न होती है , मह बावना ही कारान्तय भें याष्ट्रीमता का प्रतीक फनती है । ऩयन्तु इस सन्दबथ
भें मह उल्रेखनीम है कक बौगोमरक एकता याष्ट्रीमता को एक सहामक तत्त्व है ; अत् इसे अननवामथ तत्त्व
नहीॊ भाना जाना चाटहए।
2. बाषा की एकता- याष्ट्रीमता के ववकास भें बाषा की एकता बी भहत्त्व यखती है । सभान बाषा-बाषी दे शों भें
सभान ववचाय एवॊ सभान साटहत्म का सज
ृ न होता है । उनके सभान यीनत-रयवाज एवॊ सभान यहन-सहन के
कायण उनभें सभान याष्ट्रीमता की बावना का उदम होता है । बाषा की एकता बी याष्ट्रीमता का एक
अननवामथ तत्त्व नहीॊ है ; उदाहयणाथथ-कनाथटक प्रान्त के नागरयक कन्नड बाषा फोरते हैं ; तमभरनाडु के ननवासी
तमभर फोरते हैं औय बायत के अर्धकाॊश उत्तय-भध्म ऺेत्र भें टहन्दी फोरी जाती है । अत: इस आधाय ऩय
हभ मह नहीॊ कह सकते कक बायत भें याष्ट्रीमता का अबाव है ।
3. सॊस्कृनत की एकता- साॊस्कृनतक एकता याष्ट्रीमता के भल्
ू मवान तत्त्वों भें से एक है । सॊस्कृनत के अन्तगथत
एक ननन्श्चत बू-बाग के व्मन्क्तमों का साटहत्म, यीनत-रयवाज, प्राचीन ऩयम्ऩयाएॉ इत्माटद सन्म्भमरत होती हैं।
सभान सॊस्कृनत के आधाय ऩय सभान ववचाय, सभान आदशथ तथा सभान प्रवन्ृ त्तमाॉ उत्ऩन्न होती हैं , न्जससे
याष्ट्रीमता के ननभाथण भें सहामता मभरती है ।
4. सभान ऐनतहाससक ऩयम्ऩयाएॉ- ऐनतहामसक घटनाओॊ एवॊ स्भनृ तमों का बी याष्ट्रीमता के ववकास भें कापी
भहत्त्व होता है । ववजम औय ऩयाजम की स्भनृ तमाॉ , साभान्जक ववकास के आदशथ , साॊस्कृनतक उत्थान-ऩतन
का सॊकमरत इनतहास याष्ट्रीमता के ववकास भें ऩमाथप्त सहामक होता है । सम्राि अर्ोक, अकफय औय सर्िाजी आटद
का गौयव गाथा ऩढ़ने से सभस्त बायतीमों भें याष्ट्रीमता की बावना का सॊचाय होता है ।
5. धासभशक एकता- धामभथक एकता बी याष्ट्रीमता के ननभाथण तथा ववकास भें ववृ र्द् कयती है । इनतहास इस फात
का साऺी है कक धामभथक मबन्नता के कायण अनेक दे शों भें ककतना अर्धक यक्तऩात हुआ है । धामभथक
मबन्नता के आगे याष्ट्रीमता की बावना दफ
ु र
थ ऩड जाती है , न्जसके ऩरयणाभस्वरूऩ दो मबन्न धभाथवरम्फी
याष्ट्रों के भध्म मुर्द् होते हैं। इसीमरए प्रमसर्द् ववद्वान यै म्जे म्मोय ने मरखा है , ―कुछ भाभरों भें धामभथक
एकता याजनीनतक एकता के ननभाथण भें शन्क्तशारी मोग दे ती है , जफकक कुछ दस
ू ये भाभरों भें धामभथक
मबन्नता उसके भागथ भें अनेक फाधाएॉ उऩन्स्थत कयती है । ‖
6. याजनीनतक एकता- सभान याजनीनतक व्मवस्था के अन्तगथत यहने वारे रोग बी एकता का अनुबव कयते
हैं। इसके अनतरयक्त वे सभान याजनीनतक व्मवस्था के ऩरयणाभस्वरूऩ भानमसक एकता का बी अनब
ु व
कयते हैं, जो आगे चरकय याष्ट्रीमता के ननभाथण भें सहामक होती है । इसके साथ ही कठोय ववदे शी शासन
बी याष्ट्रीमता के ननभाथण भें सहामक मसर्द् होता है ।
7. जातीम एकता- जातीम एकता बी याष्ट्रीमता के ववकास भें सहामक होती है । एक जानत के रोग सभान
सॊस्कायों एवॊ यीनत-रयवाजों आटद के कायण एक सॊगठन भें फॊधे यहते हैं , न्जनके ऩरयणाभस्वरूऩ उनभें एकता
की बावना का उदम होता है ।
8. साभान्म आचथशक दहत- आधुननककार भें याष्ट्रीमता के ननभाथण भें आर्थथक तत्त्व सफसे अर्धक भहत्त्वऩूणथ
तत्त्व भाना जाता है । बायत के ऩरयप्रेक्ष्म भें योजगाय प्राप्त कयने भें सबी का साभान्म आर्थथक टहत है ।
अत: इस टदशा भें ककए जाने वारे प्रमास याष्ट्रीम एकता के प्रमास के अन्तगथत आते हैं।
9. अन्म तत्ि- सभान मसर्द्ान्तों भें आस्था, साभान्म आऩदाएॉ, मुर्द् रोकभत एवॊ साभूटहक एकता की चेतना बी
याष्ट्रीमता के ववकास भें सहामक मसर्द् होती है । साभान्म आऩदाओॊ ; जैसे-गुजयात भें आए बूकम्ऩ औय
तमभरनाडु तथा अण्डभान द्वीऩ सभह
ू भें आए सन
ु ाभी सभद्र
ु ी रहयों के तप
ू ान के सभम सबी ऺेत्रों से की
गई सहामता इस फात का प्रतीक है कक हभाये अन्दय याष्ट्रीमता की बावना ववद्मभान है ।
उऩमुक्
थ त वववेचन से स्ऩष्ट्ट है कक याष्ट्रीमता बावात्भक एकता का प्रतीक होती है । याष्ट्रीमता की बावना के
कायण ही व्मन्क्त याष्ट्र के प्रनत ऩण
ू थ सभऩथण तथा फमरदान की बावना प्रकट कयता है । याष्ट्रीमता का
ननभाथण ववमबन्न तत्त्वों के मभश्रण से होता है । इनभें साॊस्कृनतक तथा ऐनतहामसक ऩयम्ऩयाओॊ की सवाथर्धक
भहत्त्वऩूणथ बूमभका होती है । याष्ट्रीमता की बावना के कायण ही बायत अॊग्रेजी दासता से स्वतन्त्र हुआ।
तथा महूटदमों ने महूदी याष्ट्रीमता की बावना से आप्राववत होकय अऩने स्वतन्त्र याष्ट्र की स्थाऩना की।
प्रश्न 2.
याष्ट्रीम बावना के ववकास भें फाधक तत्त्वों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
याष्ट्रीम बािना के विकास भें फाधक तत्त्ि
याष्ट्रीम बावना के ववकास भें ननम्नमरखखत तत्त्व फाधक हैं-
1. अऻानता औय असर्ऺा- याष्ट्रीमता के ननभाथण भें प्रभुख फाधक तत्त्व अऻानता औय अमशऺा हैं। मशऺा के
अबाव भें व्मन्क्त का दृन्ष्ट्टकोण सॊकुर्चत हो जाता है औय वह याष्ट्रटहत के स्थान ऩय व्मन्क्तगत टहत को
सवोऩरय सभझने रगता है । इस कायण ऐसे सॊकुर्चत दृन्ष्ट्टकोण वारे व्मन्क्त याष्ट्रीमता के ववकास भें
फाधक मसर्द् होते हैं।
2. आिागभन के अच्छे साधनों का अबाि- आवागभन के अच्छे साधनों के अबाव भें दे श के ववमबन्न बागों भें
यहने वारे रोगों के फीच सम्ऩकथ स्थावऩत नहीॊ हो ऩाता है । इस सम्ऩकथ के अबाव भें उस ऩायस्ऩरयक एकता
का जन्भ नहीॊ हो ऩाता है , जो याष्ट्रीमता का भूर आधाय है । ऩयन्तु व्मावहारयक दृन्ष्ट्ट से अफ ववकमसत एवॊ
ववकासशीर दे शों भें आवागभन के अच्छे साधनों , का अबाव नहीॊ यह गमा है ।
3. साम्प्रदानमकता की बािना- ककसी वगथ-ववशेष द्वाया अऩने स्वाथों को भहत्त्व दे ना औय दस
ू ये वगथ मा वगों के
टहतों की उऩेऺा कयना मा उन्हें नीचा टदखाने की प्रवन्ृ त्त साम्प्रदानमकता कहराती है । साम्प्रदानमकता से
द्वेष, शत्रत
ु ा, पूट, भतबेद आटद की बावनाएॉ ऩनऩती हैं , जो याष्ट्रीमता की प्रफर ववयोधी हैं।
4. जानतिाद तथा बाषािाद- सम्प्रदामवाद के सभान ही जानतवाद औय बाषावाद बी याष्ट्रीमता के ववकास भें
फाधक हैं। जानतवाद ववमबन्न जानतमों के भध्म कटुता औय घण
ृ ा का बाव उत्ऩन्न कयता है । तथा बाषावाद
रोगों भें एकता की बावना को खन्ण्डत कयता है । इस कायण ववमबन्न जानत व बाषामी रोगों भें याष्ट्रीमता
की बावना ववकमसत नहीॊ हो ऩाती है ।
5. ऺेत्रीमता की बािना- ऺेत्रीमता की बावना याष्ट्रीमता के ववकास के मरए घातक है । इस | बावना के कायण
एक ऺेत्र भें यहने वारे रोग अन्म मा दस
ू ये ऺेत्रों भें यहने वारे रोगों से घण
ृ ा कयने रगते हैं। इसी कायण
ऩॊजाफी, फॊगारी, भयाठी, मसन्धी जैसी धायणाएॉ ववकमसत होती हैं , जो याष्ट्रीमता के ववकास को अवरुर्द् कय
दे ती हैं। बायत भें नए-नए याज्मों का उदम उग्र ऺेत्रवाद की बावना के ही ऩरयणाभ हैं।
6. ऩयाधीनता- ऩयाधीनता सबी फुयाइमों की जड है । ऩयाधीन व्मन्क्त अऩने दे श मा याष्ट्र के मरए न कुछ सोच
सकता है औय न कुछ कय सकता है । इसमरए ऩयाधीनता याष्ट्रीमता के भागथ की सफसे फडी अवयोधक है ।
7. दे र्बक्तत की बािना का अबाि- न्जस दे श के नागरयकों भें दे श-प्रेभ का अबाव होता है , उस दे श भें याष्ट्रीमता
का ववकास होना असम्बव है । ऐसा दे श अल्ऩ सभम भें ही दस
ू ये दे श के अधीन होकय अऩनी स्वतन्त्रता खो
फैठता है ।
प्रश्न 3.
याष्ट्रीमता मा याष्ट्रवाद के ववमबन्न दोषों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
याष्ट्रीमता मा याष्ट्रिाद के दोष
याष्ट्रीमता मा याष्ट्रवाद की ऩयाकाष्ट्ठा कबी-कबी ववश्व-शान्न्त के मरए खतया फन जाती है । इसीमरए
याष्ट्रीमता भें कुछ दोष बी हैं , न्जनका वववयण ननम्नमरखखत है -
1. विश्ि-र्ाक्न्त के सरए घातक- सॊकीणथ औय उग्र याष्ट्रीमता ववश्व शान्न्त के मरए घातक होती है । उग्र याष्ट्रवाद
से प्रेरयत होकय ही फीसवीॊ शताब्दी भें जभथनी ने सम्ऩूणथ भानव जानत को दो-दो ववश्व मुर्द्ों की ववबीवषकाएॉ
झेरने को वववश कय टदमा था।
ु को प्रोत्साहन- याष्ट्रीमता का उग्र रूऩ सैन्मवाद औय मुर्द् को प्रोत्साहन दे ता है । इनतहास
2. सैन्मिाद औय मद्
साऺी है कक उग्र याष्ट्रीमता से प्रेरयत होकय ही िाॊस तथा जभथनी अनेक फाय मुर्द्यत हुए औय दोनों दे शों को
जन-धन की अऩाय ऺनत उठानी ऩडी।
3. साम्राज्मिाद का उदम- उग्र याष्ट्रीमता की बावना दे शवामसमों को अॊहकायी तथा स्वाथी फना दे ती है औय वे
अऩने याष्ट्र को ही ववश्व शन्क्त के रूऩ भें दे खना चाहते हैं। इस भनोवन्ृ त्त का ऩरयणाभ साम्राज्मवादी
ववस्ताय के रूऩ भें प्रकट होता है । उन्नीसवीॊ शताब्दी भें साम्राज्मवाद के ववकास का एक प्रभुख कायण
याष्ट्रवाद बी था।
4. छोिे -छोिे याज्मों का सॊगठन- उग्र याष्ट्रीमता की बावना से प्रेरयत होकय कबी-कबी छोटे -छोटे याज्म फन जाते
हैं औय उनभें आऩसी द्वेष के कायण दे श की एकता को खतया उत्ऩन्न हो जाता है । भध्मकार भें मयू ोऩ भें
अनेक छोटे -छोटे याज्मों की स्थाऩना उग्र याष्ट्रीमता का ही ऩरयणाभ थी।
5. व्मक्तत का नैनतक ऩतन- सॊकीणथ याष्ट्रीमता व्मन्क्त को स्वाथी औय अॊहकायी फना दे ती है । वह इतना ऩनतत
हो जाता है कक भानव जानत को सभूर नष्ट्ट कयने की टदशा भें प्रवत्ृ त हो जाता है । द्ववतीम ववश्वमुर्द् के
दौयान जभथनी ने सॊकीणथ याष्ट्रीमता से प्रेरयत होकय महूटदमों ऩय बमानक अत्माचाय ककए थे।
6. अन्तयाशष्ट्रीमता के विकास भें फाधक- याष्ट्रीमता की भान्मता है - ‗एक याष्ट्र एक याज्म‘, रेककन याष्ट्रीमता का मह
मसर्द्ान्त अन्तयाथष्ट्रीम के प्रनतकूर है । याष्ट्रीमता की बावना के कायण ही ववमबन्न याष्ट्रों का दृन्ष्ट्टकोण
अन्म याष्ट्रों के प्रनत सॊकीणथ तथा उऩेक्षऺत-सा हो जाता है , न्जसके ऩरयणाभस्वरूऩ अन्तयाथष्ट्रीम सहमोग औय
सद्भावना का ववकास अवरुर्द् हो जाता है । औय अन्तयाथष्ट्रीम ऺेत्र भें अनेक सभस्माएॉ उत्ऩन्न होने रगती
हैं।
प्रश्न 4.
याष्ट्रीम आत्भ-ननणथम का अर्धकाय क्मा है ?
उत्तय-
आत्भ-ननणथम के अर्धकाय के दावे के रूऩ भें याष्ट्र अन्तयाथष्ट्रीम सभुदाम से भाॉग कयता है कक उसके ऩथ
ृ क्
याजनीनतक इकाई मा याज्म के दजे को भान्मता औय स्वीकामथता प्रदान की जाए। अक्सय ऐसी भाॉग उन
रोगों की तयप से आती हैं जो दीघथकार से ककसी ननन्श्चत बू-बौग ऩय साथ-साथ यहते आए हों औय
न्जनभें साझी ऩहचान को फोध हो। कुछ प्रकयणों भें आत्भ-ननणथम के दावे एक स्वतन्त्र याज्म फनाने की
इच्छा से बी जुडे होते हैं। इन दावों का सम्फन्ध ककसी सभूह की सॊस्कृनत की सॊयऺा से होता है ।
दस
ू यी तयह के फहुत-से दावे उन्नीसवीॊ सदी के मूयोऩ भें साभने आए, उस सभम ‗एक सॊस्कृनत-एक याज्म
की भान्मता ने जोय ऩकडा। ऩरयणाभस्वरूऩ ऩहरे ववश्वमर्द् ु के ऩश्चात ् याज्मों की ऩन
ु व्मथवस्था भें ‗एक
सॊस्कृनत-एक याज्म के ववचाय को प्रमोग भें रामा गमा। वसाथम की सन्न्ध से फहुत-से छोटे नवे स्वतन्त्र
याज्मों का गठन हुआ रेककन उस सभम उठाई जा यही आत्भ-ननणथम की सबी भाॉगों को सन्तष्ट्ु ट कयना
वास्तव भें असम्बव था। इसके अनतरयक्त ‗एक सॊस्कृनत-एक याज्म की भाॉगों को सन्तुष्ट्ट कयने से याज्मों
की सीभाओॊ भें ऩरयवतथन हुए। इससे सीभाओॊ के एक ओय से दस
ू यी ओय फहुत फडी जनसॊख्मा का ववस्थाऩन
हुआ। इसके ऩरयणाभस्वरूऩ राखों रोग अऩने घयों से उजड गए औय उस जगह से उन्हें फाहय धकेर टदमा
गमा जहाॉ ऩीटढ़मों से उनका घय था। फहुत साये रोग साम्प्रदानमक टहॊसा के बी मशकाय हो गए।

अरग-अरग साॊस्कृनतक सभुदामों को अरग-अरग याष्ट्र याज्म प्राप्त हुए , इसे ध्मान भें यखकय सीभाओॊ भें
ऩरयवतथन ककमा गमा। इस प्रमास के कायण भानव जानत को बायी भूल्म चुकाना ऩडा। इस प्रमास के फाद
बी मह सुननन्श्चत कयना सम्बव नहीॊ हो सका कक नवगटठत याज्मों भें केवर एक ही नस्र के रोग यहें ।
वास्तव भें अर्धकतय याज्मों की सीभाओॊ के अन्दय एक से अर्धक नस्र औय सॊस्कृनत के रोग यहते थे। मे
छोटे -छोटे सभुदाम याज्म के अन्दय अल्ऩसॊख्मक थे औय अक्सय हाननकायक न्स्थनतमों भें यहते थे। इस
ववकास का सकायात्भक ऩऺ मह था कक उन फहुत साये याष्ट्रवादी सभूहों को याजनीनतक भान्मता प्रदान की
गई जो स्वमॊ को एक अरग याष्ट्र के रूऩ भें दे खते थे औय अऩने बववष्ट्म को ननन्श्चत कयने तथा अऩना
शासन स्वमॊ चराना चाहते थे। रेककन याज्मों के बीतय अल्ऩसॊख्मक सभुदामों की सभस्मा मथावत ् फनी
यही।

जफ एमशमा एवॊ अिीका औऩननवेमशक प्रबत्ु व के ववरुर्द् सॊघषथ कय यहे थे , तफ याष्ट्रीम भन्ु क्त आन्दोरनों ने
याष्ट्रीम आत्भ-ननणथम के अर्धकाय की बी घोषणा की। याष्ट्रीम आन्दोरनों का भानना था कक याजनीनतक
स्वाधीनता याष्ट्रीम सभह
ू ों को सम्भान एवॊ भान्मता प्रदान कये गी औय साथ ही वहाॉ के रोगों के साभटू हक
टहतों की यऺा बी कये गी। अर्धकाॊश याष्ट्रीम भुन्क्त आन्दोरन याष्ट्र के मरए न्माम , अर्धकाय औय सभवृ र्द्
प्राप्त कयने के रक्ष्म से प्रेरयत थे। हाराॉकक महाॉ बी प्रत्मेक साॊस्कृनतक सभूह न्जनभें से कुछ ऩथ
ृ क् याष्ट्र
होने का दावा कयते थे , के मरए याजनीनतक स्वाधीनता तथा याज्मसत्ता सुननन्श्चत कयना रगबग असम्बव
साब्रफत हुआ। इस ऺेत्र के अनेक दे श जनसॊख्मा के दे शान्तयण , सीभाओॊ ऩय मुर्द् औय टहॊसा की चऩेट भें
आते यहे । इस प्रकाय, महाॉ याष्ट्रीम याज्म ववयोधाबासी न्स्थनत भें टदखाई दे ते हैं न्जन्होंने सॊघषों की फदौरत
स्वाधीनता प्राप्त की, रेककन अफ वे अऩने बू-ऺेत्रों भें याष्ट्रीम आत्भ-ननणथम के अर्धकाय की भाॉग कयने
वारे अल्ऩसॊख्मक सभह
ू ों का ववयोध कय यहे हैं।

वास्तव भें आज दनु नमा की सबी याज्म सत्ताएॉ इस दवु वधा भें पॉसी हैं कक आत्भ-ननणथम के आन्दोरनों से
, कैसे ननऩटा जाए औय इसने याष्ट्रीम आत्भ-ननणथम के अर्धकाय ऩय सवार उत्ऩन्न कय टदए हैं। फहुत-से ।
रोग मह अनब ु व कयने रगे हैं कक सभाधान नए याज्मों के गठन भें नहीॊ वयन ् वतथभान याज्मों को अर्धक
रोकतान्न्त्रक औय सभताभूरक फनाने भें हैं। सभाधान मह सुननन्श्चत कयने भें है कक अरग-अरग
साॊस्कृनतक औय नस्रीम ऩहचानों के रोग दे श भें सभान नागरयक औय मभत्रों के सभान सह अन्स्तत्वऩव
ू क

यह सकें। मह न केवर आत्भ-ननणथम के नए दावों के उबाय से उत्ऩन्न होने वारी सभस्माओॊ के सभाधान
के मरए वयन ् सुदृढ़ औय एकताफर्द् याज्म फनाने के मरए आवश्मक होगा। जो याष्ट्र-याज्म अऩने शासन भें
अल्ऩसॊख्मक सभूहों के अर्धकायों औय साॊस्कृनतक ऩहचान का सम्भान नहीॊ कयते उनके मरए अऩने सदस्मों
की ननष्ट्ठा प्राप्त कयना कटठन होता है ।

ऩयीऺोऩमोगी प्रश्नोत्तय
फहुविकल्ऩीम प्रश्न
प्रश्न 1.
ननम्नमरखखत भें से कौन-सी धभथननयऩेऺ याष्ट्र है ?
(क) ऩाककस्तान
ख) बूटान
(ग) बायत
(घ) चीन
उत्तय-
(ग) बायत।
प्रश्न 2.
जन सभद
ु ाम के मरए अपीभ ककसे भाना गमा है ?
(क) धभथ को
(ख) याष्ट्र को
(ग) साम्प्रदानमकता को
(घ) प्रशासन को
उत्तय-
(क) धभथ को।
प्रश्न 3.
भुस्तपा कभार अतातुकथ ने धभथननयऩेऺता का भॉडर ककस याज्म भें प्रस्तुत ककमा ?
(क) तुकी भें
(ख) िाॊस भें
(ग) चीन भें
(घ) बायत भें
उत्तय-
(क) तुकी भें।
प्रश्न 4.
बायत भें धामभथक स्वतन्त्रता का अर्धकाय सॊववधान के ककस अनुच्छे द भें टदमा गमा है ?
(क) अनुच्छे द 25-28
(ख) अनुच्छे द 26-27
(ग) अनुच्छे द 31-32
(घ) अनुच्छे द 30-35
उत्तय-
(क) अनुच्छे द 25-28.
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न

प्रश्न 1.
‗धभथननयऩेऺ शब्द का क्मा अथथ है ?
उत्तय-
‗धभथननयऩेऺ‘ शब्द अॊग्रेजी बाषा के सेक्मर
ु य‘ (Secular) शब्द का टहन्दी रूऩान्तय है । Secular शब्द की
व्मुत्ऩन्त्त रैटटन बाषा के ‗सयतमुरभ‘ (Sarculum) शब्द से हुई है , न्जसका अथथ है -‗सॊसाय‘ अथवा ‗मुग‘।
प्रश्न 2.
धभथननयऩेऺ की ऩरयबाषा मरखखए।
उत्तय-
जॉजथ ऑस्रय के अनुसाय, ―धभथननयऩेऺ का अथथ इस ववश्व मा वतथभान जीवन से सम्फन्न्धत है , जो धामभथक
द्वैतवादी ववचायों से फॉधा हुआ न हो।‖
प्रश्न 3.
धभथननयऩेऺ याज्म की ऩरयबाषा मरखखए।
उत्तय-
एच० फी० काभथ के अनुसाय, ―एक धभथननयऩेऺ याज्म न तो ईश्वय यटहत याज्म है , न ही मह अधभी याज्म
है औय न ही धभथ-ववयोधी। धभथननयऩेऺ याज्म होने का अथथ मह है कक इसभें ईश्वय ऩय आधारयत धभथ के
अन्स्तत्व को नहीॊ भाना जाता।‖
प्रश्न 4.
धभथननयऩेऺता ककस प्रकाय की अवधायणा है ?
उत्तय-
धभथननयऩेऺता भूर रूऩ से एक रोकतान्न्त्रक अवधायणा है ।
प्रश्न 5.
धभथननयऩेऺ याज्म के कोई दो गुण मरखखए।
उत्तय-
(i) धभथननयऩेऺ याष्ट्र भें याष्ट्रीम बावनाओॊ को प्रोत्साहन प्राप्त होता है ।
(ii) धभथननयऩेऺ याष्ट्र भें साम्प्रदानमकता की बावना को कभ ककमा जा सकता है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
कभार अतातक
ु थ की धभथननयऩेऺता के ववषम भें आऩ क्मा जानते हैं ?
उत्तय-
रीसवीॊ सदी के प्रथभार्द्थ भें तुकी भें धभथननयऩेऺता अभर भें आई। मह धभथननयऩेऺता सॊगटठत धभथ से
सैर्द्ान्न्तक दयू ी फनाने के स्थान ऩय धभथ भें सकक्रम हस्तऺेऩ के भाध्मभ से उसके दभन की ऩऺधय थी।
भुस्तपा कभार अतातुकथ ने इस प्रकाय की धभथननयऩेऺता प्रस्तुत की औय उसे प्रमोग भें बी राए।
अतातुकथ प्रथभ ववश्वमुर्द् के ऩश्चात ् सत्ता भें आए। वे तुकी के सावथजननक जीवन भें खखरापत को सभाप्त
कय दे ने के मरए कटटफर्द् थे। वे भानते थे कक ऩयम्ऩयागत सोच-ववचाय औय अमबव्मन्क्तमों से नाता तोडे
फगैय तुकी को उसकी द:ु खद न्स्थनत से नहीॊ उबाया जा सकता। उन्होंने तुकी को आधुननक औय धभथननयऩेऺ
फनाने के मरए आक्राभक ढॊ ग से कदभ फढ़ाए। उन्होंने स्वमॊ अऩना नाभ भुस्तपा कभार ऩाशा से फदरकय
अतातक
ु थ कय मरमा। (अतातक
ु थ का अथथ होता है तक
ु ो का वऩता)। है ट कानन
ू के भाध्मभ से भस
ु रभानों
द्वाया ऩहनी जाने वारी ऩयम्ऩयागत पैज टोऩी को प्रनतफन्न्धत कय टदमा। न्स्त्रमों-ऩुरुषों के मरए ऩन्श्चभी
ऩोशाकों को फढ़ावा टदमा गमा। तुकी ऩॊचाॊग की जगह ऩन्श्चभी (र्ग्रगोरयमन) ऩॊचाॊग रामा गमा। 1928 ई०
भें नई तक
ु ी वणथभारा को सॊशोर्धत रैटटन रूऩ से अऩनामा गमा।
प्रश्न 2.
वास्तववक धभथननयऩेऺ होने के मरए याज्म के मरए क्मा आवश्मक है ?
उत्तय-
सचभुच धभथननयऩेऺ होने के मरए याज्म को न केवर धभथतान्न्त्रक होने से भना कयना होगा फन्ल्क उसे
ककसी बी धभथ के साथ ककसी बी तयह के औऩचारयक कानूनी गठजोड से दयू ी बी यखनी होगी। धभथ औय
याज्मसत्ता के फीच सम्फन्ध-ववच्छे द धभथननयऩेऺ याज्मसत्ता के मरए आवश्मक है , भगय केवर मही ऩमाथप्त
नहीॊ है । धभथननयऩेऺ याज्म को ऐसे मसर्द्ान्तों औय रक्ष्मों के मरए अवश्म प्रनतफर्द् होना चाटहए जो अॊशत:
ही सही, गैय-धामभथक स्रोतों से ननकरते हों। ऐसे रक्ष्मों भें शान्न्त, धामभथक स्वतन्त्रता, धामभथक उत्ऩीडन,
बेदबाव औय वजथना से आजादी औय साथ ही अन्तय-धामभथक व अन्त:धामभथक सभानता सन्म्भमरत यहनी
चाटहए।
प्रश्न 3.
सॊक्षऺप्त टटप्ऩणी मरखखए।
सभाजवादी ऩन्थननयऩेऺ याज्म।
उत्तय-
ऩन्थननयऩेऺता मा धभथननयऩेऺता का अथथ है कक याज्म का अऩना कोई धभथ नहीॊ है तथा याज्म के प्रत्मेक
व्मन्क्त को अऩनी इच्छा के अनुसाय ककसी बी धभथ का ऩारन कयने को अर्धकाय होगा। याज्म , धभथ के
आधाय ऩय नागरयकों के साथ कोई बेदबाव नहीॊ कये गा तथा धामभथक भाभरों भें वववेकऩूणथ ननणथम रेगा।
इसके अनतरयक्त, याज्म के द्वाया सबी व्मन्क्तमों के धामभथक अर्धकायों को सुननन्श्चत एवॊ सुयक्षऺत कयने का
प्रमास ककमा जाएगा। याज्म धामभथक भाभरों भें ककसी प्रकाय का हस्तऺेऩ नहीॊ कये गा , वयन ् धामभथक
सटहष्ट्णत
ु ा एवॊ धामभथक सभबाव की नीनत को प्रोत्साटहत कयने का प्रमास कये गा। धभथ के सम्फन्ध भें याज्म
सबी व्मन्क्तमों के साथ सभान व्मवहाय कये गा। इस प्रकाय की ऩन्थ-ननयऩेऺता मा धभथननयऩेऺता का ऩारन
कयने वारे शासन को ऩन्थननयऩेऺ मा धभथननयऩेऺ याज्म कहते हैं।
प्रश्न 4.
बायत भें धभथननयऩेऺता को अऩनाना क्मों आवश्मक था?
उत्तय-
हभ सबी जानते हैं कक बायत एक ववशार रोकतान्न्त्रक दे श है । ऐसे दे श भें याज्म को धभथ-ननयऩेऺ फनाना
सवथथा आवश्मक है , क्मोंकक धभथननयऩेऺता भूर रूऩ से एक रोकतान्न्त्रक अवधायणा है । मटद हभ इनतहास
ऩय दृन्ष्ट्ट डारें तो मह स्ऩष्ट्ट हो जाता है कक धभथननयऩेऺता एवॊ रोकतन्त्र सहगाभी हैं। जफ कबी धभथ की
आड भें याजाओॊ ने जनता ऩय अत्माचाय ककए तफ जनता ने उनके शासन के ववरुर्द् ववद्रोह कयना प्रायम्ब
ककमा। बायत भें ब्रिटटश शासन के ववरुर्द् 1857 ई० की क्रान्न्त को प्रभुख कायण मह था कक ब्रिटटश शासकों
ने टहन्द ू तथा भुसरभान दोनों ही धभों के भानने वारों की धामभथक बावनाओॊ को ठे स ऩहुॉचाने का प्रमास
ककमा था। कारान्तय भें धभथननयऩेऺता एवॊ रोकतन्त्र दोनों को भान्मता मभरी। इसके अनतरयक्त , एक
रोकतान्न्त्रक दे श भें धभथननयऩेऺ याज्म की स्थाऩना इसमरए बी उर्चत होती है कक स्वतन्त्रता , सभानता,
भ्रातत्व एवॊ सटहष्ट्णुता के न्जन आदशों की स्थाऩना रोकतन्त्र द्वाया होती है , वे धभथननयऩेऺता के बी आदशथ
होते हैं।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
धभथननयऩेऺ से क्मा अमबप्राम है ? धभथननयऩेऺ याज्म की ऩरयबाषा मरखखए।
उत्तय-
‗धभथननयऩेऺ‘ शब्द अॊग्रेजी बाषा के सेक्मुरय‘ (Secular) शब्द का टहन्दी रूऩान्तय है । Secular शब्द की
व्मुत्ऩन्त्त रैटटन बाषा के ‗सयतमुरभ‘ (Sarculum) शब्द से हुई है , न्जसका अथथ है –‗सॊसाय‘ अथवा मुग‘। इस
प्रकाय शब्द-व्मत्ु ऩन्त्त के आधाय ऩय ‗धभथननयऩेऺ‘ शब्द से अमबप्राम साॊसारयक, रौककक अथवा ऐनतहामसक से
है । दस
ू ये शब्दों भें , ―धभथननयऩेऺ धामभथक अथवा ऩायरौककक का प्रनतरोभ है । ‖ धभथननयऩेऺ याज्म की प्रभुख
ऩरयबाषाएॉ ननम्नमरखखत हैं
जॉजश ऑस्रय के शब्दों भें , ―धभथननयऩेऺ का अथथ इस ववश्व मा वतथभान जीवन से सम्फन्न्धत है , जो धामभथक
मा द्वैतवादी ववचायों से फॉधा हुआ न हो।‖
एच०फी० काभथ के अनुसाय, ―एक धभथननयऩेऺ याज्म न तो ईश्वय-यटहत है , न ही मह अधभी याज्म है । औय
न ही धभथववयोधी। धभथननयऩेऺ याज्म होने का अथथ मह है कक इसभें ईश्वय ऩय आधारयत धभथ के अन्स्तत्व
को नहीॊ भाना जाता।‖
डोनाल्ड क्स्भथ के शब्दों भें , ―धभथननयऩेऺ याज्म वह है , न्जसके अन्तगथत धभथ-ववषमक व्मन्क्तगत एवॊ
साभूटहक स्वतन्त्रता सुयक्षऺत यहती है ; जो व्मन्क्त के साथ व्मवहाय कयते सभम धभथ को फीच भें नहीॊ राता ;
जो सॊवैधाननक रूऩ से ककसी धभथ से सम्फन्न्धत नहीॊ है औय न ककसी धभथ की उन्ननत का प्रमास कयता है
तथा न ही ककसी धभथ के भाभरे भें हस्तऺेऩ कयता है । ‖
उऩमुक्
थ त ऩरयबाषाओॊ से स्ऩष्ट्ट है कक धभथननयऩेऺ याज्म से अमबप्राम एक ऐसे याज्म से है न्जसका अऩना
कोई धभथ नहीॊ होता औय जो धभथ के आधाय ऩय व्मन्क्तमों भें कोई बेदबाव नहीॊ कयता है । इसका अथथ एक
धभथ-ववयोधी, अधभी मा ईश्वययटहत याज्म से नहीॊ है , वयन ् एक ऐसे याज्म से है जो धामभथक भाभरों भें
ऩण
ू त
थ मा तटस्थ यहता है क्मोंकक मह धभथ को व्मन्क्त की व्मन्क्तगत वस्तु भानता है ।
प्रश्न 2.
बायत भें धभथननयऩेऺ याज्म का स्वरूऩ क्मा है ?
उत्तय-
बायत भें धभशननयऩेऺ याज्म का रूऩ
बायत सॊववधान से मह फात स्ऩष्ट्ट हो जाती है कक सॊववधान ननभाथताओॊ ने बायत भें धभथननयऩेऺ याज्म को
स्थावऩत कयने का ऩूणथ प्रमास ककमा है । बायतीम सॊववधान भें धभथननयऩेऺ याज्म के दो आधाय हैं
प्रथभ, बायतीम सॊववधान की प्रस्तावना भें न केवर इस फात का उल्रेख ककमा गमा है कक महाॉ सबी
नागरयकों को ववचाय-अमबव्मन्क्त, ववश्वास व धभथ की उऩासना की स्वतन्त्रता प्रदान कयने का प्रमास ककमा
जाएगा।‖ वयन ् इसभें 42वें सॊशोधन द्वाया ‗धभथननयऩेऺ‘ शब्द को जोडकय न्स्थनत औय बी स्ऩष्ट्ट कय दी गई
है ।
द्वितीम, सॊववधान भें धभथननयऩेऺ याज्म की स्थाऩना का दस
ू या आधाय बायतीम नागरयकों को भूर अर्धकाय
के रूऩ भें , धामभथक स्वतन्त्रता प्रदान ककमा जाना है । सॊववधान के 25वें से 28वें अनच्
ु छे द नागरयकों की
धामभथक स्वतन्त्रता के भौमरक अर्धकाय का उल्रेख कयते हैं।
बायत भें धभथननयऩेऺता के आदशथ को न केवर मसर्द्ान्त भें वयन ् व्मवहाय भें बी अऩनामा गमा है । बायत
भें धामभथक आधाय ऩय ककसी प्रकाय का बेदबाव नहीॊ ककमा जाता , वयन ् महाॉ सबी धभों को सभान रूऩ से
भान्मता दी गई है । उदाहयण के मरए-1956 ई० भें टदल्री भें आमोन्जत ‗फौर्द् धभथ सम्भेरन‘ तथा 1964 ई०
भें भुम्फई भें आमोन्जत ईसाई धभथ सम्भेरन को सपर फनाने के मरए सयकाय ने ववत्तीम सहामता औय
प्रशासननक सहमोग बी टदमा। इसके अनतरयक्त, बायत भें धभथ-ननयऩेऺता के मसर्द्ान्त का रागू ककमा जाना
इस फात से बी मसर्द् होता है कक महाॉ धभों के प्रनतबाशारी व्मन्क्त शासन भें उच्च ऩदों ऩय आसीन यहे हैं।

ननष्ट्कषथ रूऩ भें कहा जा सकता है कक धभथननयऩेऺ याज्म की स्थाऩना को न केवर बायत के मरए उर्चत
सभझा जाता है , वयन ् बायत भें धभथननयऩेऺ याज्म के आदशथ को रागू बी ककमा गमा है ।

प्रश्न 3.
धभथननयऩेऺता वोट फैंक की याजनीनत को फढ़ावा दे ती है । क्मा आऩ इस कथन से सहभत हैं ? तकथ ऩण
ू थ
उत्तयदीन्जए।
उत्तय-
धभथननयऩेऺता वोट फैंक की याजनीनत को फढ़ावा दे ती है । अनुबवजन्म रूऩ भें मह ऩूणत
थ ् असत्म बी नहीॊ
है । प्रथभत् रोकतन्त्र भें याजनेताओॊ के मरए वोट ऩाना आवश्मक है । मह उनके काभ का अॊग है औय
रोकतान्न्त्रक याजनीनतक फहुत कुछ ऐसी ही है । रोगों के ककसी सभूह के ऩीछे रगने मा उनका वोट प्राप्त
कयने की खानतय कोई नीनत फनाने का वादा कयने के मरए याजनेताओॊ को दोष दे ना उर्चत नहीॊ होगा।
वास्तववक रूऩ से प्रश्न तो मह है कक वे ठीक-ठीक ककस उद्देश्म से वोट ऩाना चाहते हैं ? इसभें मसपथ उन्हीॊ
का टहत है मा ववचायाधीन सभूह का बी टहत है । मटद ककसी याजनेता को वोट दे ने वारा सभूह उसके द्वाया
फनवाई गई नीनत से राबान्न्वत नहीॊ हुआ, तो फेशक वह याजनेता दोषी होगा।
मटद अल्ऩसॊख्मकों को वोट चाहने वारे धभथननयऩेऺ याजनेता उनकी इच्छा ऩूयी कयने भें सभथथ होते हैं , तो
मह उस धभथननयऩेऺ ऩरयमोजना की सपरता होगी, जो आखखयकाय अल्ऩसॊख्मकों के टहतों की बी यऺा कयती
है ।

रेककन, अगय कोई व्मन्क्त ववचायाधीन सभूह का कल्माण अन्म सभूहों के कल्माण औय अर्धकायों की
कीभत ऩय कयना चाहे , तफ क्मा होगा? मटद मे धभथननयऩेऺ याजनेता फहुसॊख्मकों के टहतों को नक
ु सान ,
ऩहुॉचाएॉ, तफ क्मा होगा? तफ एक नमा अन्माम साभने आएगा। रेककन ऐसा बी हो सकता है कक ऩूया
याजनीनत तन्त्र अल्ऩसॊख्मकों के ऩऺ भें झुका हुआ हो ऩयन्तु बायत भें ऐसा कुछ हुआ है , इसका कोई
प्रभाण नहीॊ है । सॊऺेऩ भें , वोट फैंक की याजनीनत स्वमॊ भें इतनी गरत नहीॊ है । गरत तो वोट फैंक की वैसी
याजनीनत है , जो अन्माम को जन्भ दे ती है । केवर मह तथ्म कक धभथननयऩेऺ दर वोट फैंक का प्रमोग कयते
हैं, कष्ट्टकायक नहीॊ है । बायत भें हय सभुदाम के सन्दबथ भें सबी दर ऐसा कयते हैं।

दीघश उत्तयीम प्रश्न


प्रश्न 1.
बायतीम धभथननयऩेऺता की आरोचनात्भक वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
बायतीम धभथननयऩेऺता की आरोचना के मरए ननम्नमरखखत तकथ प्रस्तुत ककए जाते हैं-
1. धभश-वियोधी- धभथननयऩेऺता, धभथ-ववयोधी है । हभ सम्बवतमा मह टदखा ऩाने भें सपर हुए हैं। | कक
धभथननयऩेऺता सॊस्थाफर्द् धामभथक वचथस्व का ववयोध कयती है । मह धभथ-ववयोधी होने का ऩमाथम नहीॊ है ।
2. ऩक्श्चभ से आमानतत- धभथननयऩेऺता के ववषम भें कहा जा सकता है कक मह ऩन्श्चभ से आमानतत है
अथाथत ् मह ईसाइमतॊ से सम्फर्द् है । मह आरोचना फडी ववर्चत्र है । ऩन्श्चभी याष्ट्र तफ ,धभथ-ननयऩेऺ फने, जफ
एक भहत्त्वऩण
ू थ स्तय ऩय उन्होंने ईसाइमत से सम्फन्ध सभाप्त कय मरमा। ऩन्श्चभी धभथननयऩेऺता भें वैसी
कोई ईसाइमत नहीॊ है । धभथ धभथ औय याज्म का ऩायस्ऩरयक ननषेध , न्जसे ऩन्श्चभी धभथननयऩेऺ सभाजों का
आदशथ भाना जाता है , सबी धभथननयऩेऺ याज्म सत्ता की प्रभख
ु ववशेषता बी नहीॊ है । सम्फन्धववच्छे द के
ववचाय की व्माख्मा अरग-अरग प्रकाय से की जा सकती है । कोई धभथननयऩेऺ याज्म सत्ता सभुदामों के
फीच शान्न्त को फढ़ावा दे ने के मरए धभथ से सैर्द्ान्न्तक दयू ी फनाए यख सकती है औय ववमशष्ट्ट सभद
ु ामों की
यऺा के मरए वह उसभें हस्तऺेऩ बी कय सकती है । बायत भें ठीक मही फात हुई , महाॉ ऐसी धभथननयऩेऺता
ववकमसत हुई है , जो न तो ऩयू ी तयह ईसाइमत से सम्फर्द् है न बायतीम जभीन ऩय सीधे-सीधे ऩन्श्चभी
आयोऩण ही है । तथ्म तो मह है कक धभथननयऩेऺता का ववगत इनतहास ऩन्श्चभी औय गैय-ऩन्श्चभी , दोनों
भागों का अनुसयण कयता टदखाई दे ता है । ऩन्श्चभी भें याज्म औय चचथ का सम्फन्ध ववच्छे द का प्रश्न
केन्द्रीम था औय बायत जैसे दे शों भें शान्न्तऩूणथ सह अन्स्तत्व जैसे प्रश्न भहत्त्वऩूणथ यहे हैं।
3. अल्ऩसॊख्मकिाद- धभथननयऩेऺता ऩय अल्ऩसॊख्मकवाद का आयोऩ बी रगामा जाता है । मह सच है कक
बायतीम धभथननयऩेऺता अल्सॊख्मक अर्धकायों की ऩैयवी कयती है । भगय मह ऩैयवी न्मामोर्चत रूऩ से कयती
है , आरोचकों को अल्ऩसॊख्मक अर्धकायों को ववशेष सुववधाओॊ के रूऩ भें नहीॊ दे खना चाटहए।
4. अचधक हस्तऺेऩ- कुछ आरोचक कहते हैं कक धभथननयऩेऺता उत्ऩीडनकायी है औय सभद
ु ामों।
की धामभथक स्वतन्त्रता भें अर्धक हस्तऺेऩ कयती है । मह बायतीम धभथननयऩेऺता के फाये भें गरत सभझ है ।
मह सच है कक ऩायस्ऩरयक ननषेध के रूऩ भें धभथ औय याज्म भें सम्फन्ध-ववच्छे द के ववचाय को न भानकय
बायतीम धभथननयऩेऺता धभथ भें हस्तऺेऩ को अस्वीकाय कय दे ती है । रेककन इससे मह ननष्ट्कषथ नहीॊ
ननकरता कक मह अर्धक हस्तऺेऩकायी है । बायतीम धभथननयऩेऺता धभथ से सैर्द्ान्न्तक दयू ी फनाकय यखती है ,
साथ-साथ कुछ हस्तऺेऩ की गुॊजाइश बी यखती है ककन्तु इस हस्तऺेऩ का आशम उत्ऩीडनकायी हस्तऺेऩ
नहीॊ होता।
प्रश्न 2.
―बायत एक धभथननयऩेऺ याज्म के रूऩ भें है । ‖ इस कथन की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
बायत एक धभशननयऩेऺ याज्म के रूऩ भें
प्राचीनकार से ही धभथ का फहुत भहत्त्व यहा है तथा बायतीम साभान्जक औय याजनीनतक जीवन धभथ से
ओत-प्रोत यहा है । वतथभान बायत का रोकतान्न्त्रक गणयाज्म नैनतकता , आध्मान्त्भकता औय भानव धभथ ऩय
आधारयत है । बायत भें धभथननयऩेऺ याज्म को सदृ
ु ढ़ कयने के मरए सॊववधान भें ननम्नमरखखत व्मवस्थाएॉ की
गई हैं
1. याज्म का अऩना कोई धभश नहीॊ- सॊववधान के अनुसाय बायत का अऩना कोई धभथ नहीॊ है । याज्म की
दृन्ष्ट्ट भें सबी धभथ सभान हैं।
2. धासभशक आधाय ऩय बेदबाि सभातत- बायतीम सॊववधान द्वाया नागरयकों को मह ववश्वास | टदरामा गमा
है कक धभथ के आधाय ऩय उनके साथ कोई बेदबाव नहीॊ ककमा जाएगा।
3. कानून की दृक्ष्ट्ि से सबी व्मक्तत सभान- सॊववधान के अनुच्छे द 14 अनुसाय बायतीम याज्म-ऺेत्र भें सबी
व्मन्क्त कानून की दृन्ष्ट्ट से सभान होंगे औय धभथ , जानत अथवा मरॊग के | आधाय ऩय कोई बेदबाव नहीॊ
ककमा जाएगा।
4. धासभशक स्ितन्त्रता का अचधकाय- बायतीम सॊववधान द्वाया प्रत्मेक नागरयक को अनुच्छे द 25-28 द्वाया
धामभथक स्वतन्त्रता का अर्धकाय प्रदान ककमा गमा है । इसभें नागरयकों को अऩने अन्त:कयण के अनस
ु ाय
ककसी बी धभथ का ऩारन कयने , छोडने, प्रचाय कयने आटद का ऩूणथ अर्धकाय है । ककसी बी नागरयक को
ककसी धभथ-ववशेष का ऩारन कयने मा न कयने के मरए फाध्म नहीॊ ककमा जा सकता है ।
5. धासभशक सॊस्थाओॊ की स्थाऩना औय धभश-प्रचाय की स्ितन्त्रता- सॊववधान के अनुसाय सबी , धभों को
स्वतन्त्रता प्रदान की गई है । इसके अनस
ु ाय प्रत्मेक नागरयक को धामभथक तथा ऩयोऩकायी उद्देश्म के मरए
सॊस्थाएॉ स्थावऩत कयने , उनका सॊचारन कयने , धामभथक भाभरों का प्रफन्ध कयने , चर व अचर सम्ऩन्त्त
यखने औय प्राप्त कयने तथा ऐसी सम्ऩन्त्त का कानन
ू के अनस
ु ाय प्रफन्ध कयने का अर्धकाय है ।
6. धासभशक सर्ऺा का ननषेध- अनुच्छे द 28 के अनुसाय सयकायी मशऺण सॊस्थाओॊ भें ककसी प्रकाय की धामभथक
मशऺा नहीॊ दी जा सकती तथा सयकाय से आर्थथक सहामता मी भान्मता प्राप्त मशऺण सॊस्थाओॊ भें बी
ककसी को धामभथक गनतववर्धमों तथा कामथक्रभों भें बाग रेने के मरए फाध्म नहीॊ ककमा जा सकता है ।
7. धासभशक कामों के सरए ककमा जाने िारा व्मम कय-भुतत- बायतीम सॊववधान अऩने नागरयकों को न केवर
धामभथक स्वतन्त्रता औय धामभथक सॊस्थाओॊ की स्थाऩना की स्वतन्त्रता प्रदान कयता है , वयन ् सॊववधान के
अन्तगथत धामभथक कामों के मरए ककए जाने वारे व्मम को बी कय-भुक्त घोवषत ककमा गमा है ।
8. साम्प्रदानमक ननिाशचन प्रणारी का अन्त- सॊववधान द्वाया साम्प्रदानमक ननवाथचन प्रणारी का अन्त कय
टदमा गमा है । अफ प्रत्मेक धभथ के अनुमामी को वमस्क भतार्धकाय के आधाय ऩय भत दे ने का अर्धकाय
टदमा गमा है ।
बायत का सॊववधान दे श की एकता तथा अखण्डता को फनाए यखने तथा सावथजननक टहत की। दृन्ष्ट्ट से
धामभथक स्वतन्त्रता के अर्धकाय ऩय कुछ प्रनतफन्ध बी आयोवऩत कयता है । बायत भें सच्चे धभथननयऩेऺ याज्म
की स्थाऩना की गई है ।

फहुविकल्ऩीम प्रश्न
प्रश्न 1.
िेडड्रक नीत्शे ककस दे श का दाशथननक था?
(क) जभथनी
(ख) िाॊस
(ग) जाऩान
(घ) बायत
उत्तय-
(क) जभथनी।
प्रश्न 2.
ववश्व की सवोच्च भहाशन्क्त कहराता है -
(क) रूस
(ख) सॊमक्
ु त याज्म अभेरयका
(ग) िाॊस
(घ) चीन
उत्तय-
(ख) सॊमक् ु त याज्म अभेरयका।
प्रश्न 3.
भ्रण
ू हत्मारूऩी टहॊसा ककनसे सॊफॊर्धत है ?
(क) भटहराओॊ से
(ख) ऩरु
ु षों से
(ग) ववचायों से
(घ) उऩमक्
ुथ त कोई नहीॊ
उत्तय-
(क) भटहराओॊ से।
प्रश्न 4.
दक्षऺण अिीका भें यॊ गबेद को रेकय टहॊसा कफ तक होती यही ?
(क) 1997
(ख) 1996
(ग) 1992
(घ) 1998
उत्तय-
(ग) 1992.
प्रश्न 5.
बायत भें अॊटहसा का ऩज
ु ायी ककसे कहा जाता है ?
(क) भहात्भा गाॊधी को
(ख) जवाहयरार नेहरू को
(ग) रारा राजऩतयाम को
(घ) यवीॊद्रनाथ टै गोय को
उत्तय-
(ग) भहात्भा गाॊधी को।
प्रश्न 6.
यवाॊडा कहाॉ है ?
(क) एमशमा भें
(ख) अिीका भें
(ग) ऑस्रे मरमा भें
(घ) बायत भें
उत्तय-
(ख) अिीका भें।
प्रश्न 7.
कपमरस्तीनी सॊघषथ ककसके ववरुर्द् है ?
(क) इजयाइर के
(ख) ईयान के
(ग) इयाक के
(घ) सॊमक्
ु त अयफ अभीयात के
उत्तय-
(क) इजयाइर के।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
शाॊनत के ववषम भें नकायात्भक ववचाय यखने वारे दो ववचायकों के नाभ मरखखए।
उत्तय-
1. पेडड्रक नीत्शे ,
2. ववल्िेडो ऩैयेटो।
प्रश्न 2.
द्ववतीम ववश्वमुर्द् भें अभेरयका द्वाया जाऩान के ककन नगयों ऩय ऩयभाणु फभ र्गयाए गए थे ?
उत्तय-
1. टहयोमशभा,
2. नागासाकी।
प्रश्न 3.
क्मफू ाई मभसाइर सॊकट का सभाधान कैसे हुआ?
उत्तय–
क्मफ ू ाई मभसाइर सॊकट का सभाधान सोववमत सॊघ द्वाया अऩनी मभसाइरें क्मफ
ू ा से हटा रेने के फाद हुआ।
प्रश्न 4.
टहॊसा मा अशाॊनत के कायण कौन-से हो सकते हैं ?
उत्तय-
जानतबेद, वगथबेद, वऩतस
ृ त्ता, उऩननवेशवाद, नस्रवाद, साम्प्रदानमकता आटद अशाॊनत के कायण हो सकते हैं।
प्रश्न 5.
टटकाऊ शाॊनत ककस प्रकाय प्राप्त की जा सकती है ?
उत्तय-
न्मामऩूणथ औय टटकाऊ शाॊनत अप्रकट मशकामतों औय सॊघषों के कायणों को साप-साप व्मक्त कयने औय
फातचीत द्वाया हर कयने के भाध्मभ से ही प्राप्त की जा सकती है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
नीत्शे औय ऩैयेटो के शाॊनत सॊफॊधी ववचाय मरखखए।
उत्तय-
अतीत के अनेक भहत्त्वऩूणथ ववचायकों ने शाॊनत के फाये भें नकायात्भक ढॊ ग से मरखा है । जभथन
दाशथननक पेडिक नीत्र्े मुर्द् को भटहभाभन्ण्डत कयने वारे ववचायक थे। नीत्शे ने शाॊनत का भहत्त्व नहीॊ टदमा ,
क्मोंकक उसको भानना था कक केवर सॊघषथ ही सभ्मता की उन्ननत का भागथ प्रशस्त कय सकता है । इसी
प्रकाय अन्म अनेक ववचायकों ने शाॊनत को व्मथथ फतामा है औय सॊघषथ की प्रशॊसा. व्मन्क्तगत फहादयु ी औय
साभान्जक जीवॊतता के वाहक के रूऩ भें की है । इटरी के सभाज मसर्द्ाॊतकाय विल्रेडो ऩैयेिो (1843-1923) का
दावा था कक अर्धकाॊश सभाजों भें शासक वगथ का ननभाथण सऺभ औय अऩने रक्ष्मों को ऩाने के मरए शन्क्त
का प्रमोग कयने के मरए तैमाय रोगों से होता है । उसने ऐसे रोगों का वणथन शेय के रूऩ भें ककमा है ।
प्रश्न 2.
‗मशकामतें ककस प्रकाय अशाॊनत को जन्भ दे ती हैं ?
उत्तय-
टहॊसा का मशकाय व्मन्क्त न्जन भनोवैऻाननक औय बौनतक हाननमों से गज
ु यता है वे उसके बीतय मशकामतें
उत्ऩन्न कयती हैं। मे मशकामतें ऩीटढ़मों तक फनी यहती हैं। ऐसे सभूह कबी-कबी ककसी घटना अथवा
टटप्ऩणी से उत्तेन्जत होकय सॊघषथ (टहॊसा) शुरू कय दे ते हैं। दक्षऺण एमशमा भें ववमबन्न सभुदामों द्वाया एक-
दस
ू ये के ववरुर्द् भन भें यखी ऩुयानी मशकामतों के उदाहयण हभाये साभने हैं , जैसे सन ् 1947 भें बायत के
ववबाजन के दौयान बडकी टहॊसा से ऩैदा हुई मशकामते।
न्मामऩूणथ औय टटकाऊ शाॊनत अप्रकट मशकामतें औय सॊघषथ के कायणों को साप-साप व्मक्त कयने औय
फातचीत द्वाया हर कयने के भाध्मभ से ही प्राप्त की जा सकती हैं। इसमरए बायत औय ऩाककस्तान के
फीच सभस्माओॊ का हर कयने के वतथभान प्रमासों भें प्रत्मेक वगथ के रोगों के फीच अर्धक सम्ऩकथ को
प्रोत्साटहत कयना बी शामभर है ।

प्रश्न 3.
भाटटथ न रूथय ककॊग के नागरयक अर्धकाय के ऺेत्र भें मोगदान की सॊक्षऺप्त वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
1. भाटटथ न रूथय ककॊग ने अभेरयका भें यॊ गबेद तथा जानत-ववबेद की नीनत के ववरुर्द् अटहॊसात्भक
आॊदोरन प्रायम्ब ककमा। उसके प्रमत्नों के ऩरयणाभस्वरूऩ फसों तथा बोजनारमों भें कारे रोगों के
साथ ककए जाने वारे बेदबाव को सभाप्त ककमा गमा।
2. उन्होंने कारे रोगों के मरए मसववर अर्धकाय प्राप्त कयने की टदशा भें सयाहनीम कामथ ककमा। उनके
प्रमासों से मसववर अर्धकायों को कानन
ू ी अर्धकाय भान मरमा गमा तथा कारे रोगों को भतार्धकाय
प्राप्त हो गमा। इसके मरए रूथय ककॊग को अऩने जीवन का फमरदान दे ना ऩडा।
दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
‗शान्न्तवाद के ववषम भें आऩ क्मा जानते हैं ? सॊऺेऩ भें मरखखए।
उत्तय-
‗शान्न्तवाद‘ वववादों को सुरझाने के हर्थमाय के रूऩ भें मुर्द् अथवा टहॊसा के फजाम शान्न्त का उऩदे श दे ता
है । इसभें ववचायों की अनेक छववमाॉ सन्म्भमरत हैं। इसके ऺेत्र भें कूटनीनत को अन्तयाथष्ट्रीम वववादों का
सभाधान कयने भें प्राथमभकता दे ने से रेकय ककसी बी हारत भें टहॊसा औय शन्क्त के प्रमोग के ऩूणथ ननषेध
तक आते हैं। शान्न्तवाद मसर्द्ान्तों ऩय बी आधारयत हो सकती है औय व्मावहारयकता ऩय बी।
सैर्द्ान्न्तक शान्न्तवाद का जन्भ इस ववश्वास से होता है कक मुर्द् सुववचारयत घातक हर्थमाय , टहॊसा मा ककसी
प्रकाय की जोय-जफयदस्ती नैनतक रूऩ से गरत है । व्मावहारयक शान्न्तवाद ऐसे ककसी चयभ मसर्द्ान्त का
अनुसयण नहीॊ कयता है । व्मावहारयक शान्न्तवाद भानता है कक वववादों के सभाधान भें मुर्द् से फेहतय तयीके
बी हैं मा कपय मह सभझता है कक मर्द्
ु ऩय रागत अर्धक आती है , राब कभ होते हैं। मर्द्
ु से फचने के
ऩऺधय रोगों के मरए ‗श्वेत कऩोत‘ जैसे अनौऩचारयक शब्दों का प्रमोग होता है । शब्द सुरह-सभझौते के
ऩऺधयों की सौम्म प्रकृनत की ओय इशाया कयते हैं। कुछ रोग सुरह-सभझौते के ऩऺधयों को शान्न्तवादी के
वगथ भें नहीॊ यखते, क्मोंकक वे कनतऩम ऩरयन्स्थनतमों भें मुर्द् को और्चत्मऩूणथ भान सकते हैं।

‗फाज‘ मा मुर्द्-वऩऩासु रोग कऩोत प्रकृनत के ववऩयीत होते हैं। मुर्द् का ववयोध कयने वारे कुछ शान्न्तवादी
सबी प्रकाय की जोय-जफयदस्ती जैसे शायीरयक फर प्रमोग मा सम्ऩन्त्त की फयफादी के ववयोधी नहीॊ होते।
उदाहयणस्वरूऩ, असैन्मवादी साधायणतमा टहॊसा के फजाम आधुननक याष्ट्र-याज्मों की सैननक सॊस्थाओॊ के
ववशेष रूऩ से ववयोधी होते हैं। अन्म शान्न्तवादी अॊटहसा के मसर्द्ान्तों का अनुसयण कयते हैं , क्मोंकक वे
केवर अटहॊसक कामथवाही के स्वीकामथ होने का ववश्वास कयते हैं।

प्रश्न 2.
शान्न्त स्थावऩत कयने भें सभकारीन चुनौनतमाॉ कौन-सी हैं ? सॊऺेऩ भें मरखखए।
उत्तय-
वतथभान ववश्व भें शन्क्तशारी याष्ट्रों ने अऩनी सम्प्रबुता का प्रबावऩूणथ प्रदशथन ककमा है औय ऺेत्रीम सत्ता
सॊयचना तथा अन्तयाथष्ट्रीम व्मवस्था को बी अऩनी प्राथमभकताओॊ औय धायणाओॊ के आधाय ऩय फदरना
चाहा है । इसके मरए उन्होंने सीधी सैन्म कामथवाही को बी सहाया मरमा है औय ववदे शी ऺेत्रों ऩय कब्जा कय
मरमा है । इस प्रकाय के आचयण का प्रत्मऺ उदाहयण अपगाननस्तान औय इयाक भें अभेरयका ताजा हस्तऺेऩ
है । इस प्रकक्रमा से उऩजे मुर्द् भें फहुत रोगों की जानें गईं।
आतॊकवाद के उदम का एक कायण आक्राभक याष्ट्रों का स्वाथथऩण ू थ आचयण बी यहा है । प्राम् आधनु नक
हर्थमायों औय उन्नत तकनीक का दऺ औय ननभथभ प्रमोग कयके आतॊकवादी इन टदनों शान्न्त के मरए फडा
खतया फनते जा यहे हैं। 11 मसतम्फय, 2001 को आतॊकवाटदमों द्वाया अभेरयका के न्मम
ू ाकथ न्स्थत ववश्व
व्माऩाय केन्द्र को ध्वस्त ककमा जाना इस अभॊगरकायी वास्तववकता की उल्रेखनीम अमबव्मन्क्त है । इन
ताकतों द्वाया अनत ववध्वॊसक जैववक, यासामननक अथवा ऩयभान्ण्वक हर्थमायों के प्रमोग की आशॊका दहरा
दे ने वारी है ।

वैन्श्वक सभुदाम धौंस जभाने वारी ताकतों की रोरुऩता औय आतॊकवाटदमों की गुरयल्रा मुन्क्तमों को योकने
भें असपर है । वह नस्र सॊहाय का भूक दशथन फना यहता है । मह न्स्थनत यवाॊडा भें टदखाई दे ती है । इस
अिीकी दे श भें सन ् 1994 भें रगबग 5 राख तुत्सी रोगों को हुतू रोगों ने भाय डारा। हत्माकाण्ड के
आयम्ब होने के ऩूवथ गुप्त सूचना प्राप्त होने औय इसके बडकने ऩय अन्तयाथष्ट्रीम भीडडमा भें घटना का
वववयण आने के फावजूद कोई अन्तयाथष्ट्रीम हस्तऺेऩ नहीॊ हुआ। सॊमुक्त याष्ट्र ने यवाॊडा के खून-खयाफे को
योकने के मरए शान्न्त अमबमान चराने से भना कय टदमा।

इसका आशम मह नहीॊ कक शान्न्त एक चुका हुआ मसर्द्ान्त है । दस ू ये ववश्वमुर्द् के ऩश्चात ् जाऩान औय
कोस्मरयका जैसे दे शों ने सैन्मफर नहीॊ यखने का ननणथम मरमा। ववश्व के अनेक बागों भें ऩयभान्ण्वक
हर्थमाय से भुक्त ऺेत्र फने हैं , जहाॉ आन्ण्वक हर्थमायों को ववकमसत औय तैनात कयने ऩय एक अन्तयाथष्ट्रीम
भान्मता प्राप्त सभझौते के अन्तगथत ऩाफन्दी रगी है । आज इस तयह के छह ऺेत्र हैं न्जसभें ऐसा हुआ है
मा इसकी प्रकक्रमा चर यही है । इसका ववस्ताय दक्षऺण ध्रव
ु ीम ऺेत्र , रैटटन अभेरयका औय कैये ब्रफमन ऺेत्र ,
दक्षऺण-ऩूवी एमशमा, अिीका, दक्षऺण प्रशान्त ऺेत्र औय भॊगोमरमा तक है । तत्कारीन सोववमत सॊघ के सन ्
1991 भें ववघटन से अनत शन्क्तशारी दे शों के फीच सैननक प्रनतद्वन्द्ववता (ववशेषकय ऩयभान्ण्वक
प्रनतद्वन्द्ववता) ऩय ऩूणवथ वयाभ रग गमा औय अन्तयाथष्ट्रीम शान्न्त के मरए प्रभुख खतया सभाप्त हो गमा।

दीघश उत्तयीम प्रश्न


प्रश्न 1.
सॊयचनात्भक टहॊसा के ववववध रूऩ कौन-से हैं ? सॊऺेऩ भें मरखखए।
उत्तय-
सॊयचनात्भक टहॊसा के ववववध रूऩ ननम्नमरखखत हैं-
1. अस्ऩश्ृ मता- ऩयम्ऩयागत जानत व्मवस्था कुछ ववमशष्ट्ट सभह
ू के रोगों को अस्ऩश्ृ म भानकय व्मवहाय कयती
थी। स्वतन्त्र बायत के सॊववधान द्वाया गैय-कानूनी घोवषत ककए जाने तक अस्ऩश्ृ मता के प्रचरन ने उन्हें
साभान्जक फटहष्ट्काय औय अत्मर्धक वॊचना का मशकाय फना यखा था। बमावह यीनत-रयवाजों के इन घावों को
दे श अबी तक सह यहा है । हाराॉकक वगथ आधारयत सभाज व्मवस्था अर्धक रचीरी टदखती है , रेककन इसने
बी कापी असभानती औय उत्ऩीडन को जन्भ टदमा है । ववकासशीर दे शों की अर्धकाॊश कामथशीर जनसॊख्मा
असॊगटठत ऺेत्र से सम्फर्द् है , न्जसभें ऩारयश्रमभक औय काभ की दशा फहुत खयाफ है ।
2. स्त्री दहॊसा- सभाज भें वऩतस
ृ त्ता के आधाय ऩय न्जन साभान्जक सॊगठनों का ननभाथण होता है , उनकी
ऩरयणनत भटहराओॊ को व्मवन्स्थत रूऩ से अधीन फनाने औय उनके साथ बेदबाव कयने भें होती है । इसकी
अमबव्मन्क्त कन्मा भ्रूण हत्मा, रडककमों को ऩमाथप्त ऩोषण औय मशऺा न दे ना, फार-वववाह, ऩत्नी को ऩीटना,
दहे ज से जुडे अऩयाध, कामथस्थर ऩय मौन उत्ऩीडन, फरात्काय, हत्मा के रूऩ भें होती है । बायत भें ननम्न
मरॊगानुऩात (प्रनत 1000 ऩुरुषों ऩय 933 न्स्त्रमाॉ) वऩतस
ृ त्ता ववध्वॊस का भभथस्ऩशी सूचक है ।
ु ाभी का जीिन- उऩननवेशवादी ववदे शी शासन के परस्वरूऩ रोगों ऩय प्रत्मऺ औय दीघथकार के मरए
3. गर
गुराभी थोऩ दी गई थी। अफ ऐसा होना रगबग असम्बव है । ऩय इजयामरी प्रबुत्व के ववरुर्द् जायी
कपमरस्तीनी सॊघषथ टदखाता है कक इसका अन्स्तत्व ऩयू ी तयह सभाप्त नहीॊ हुआ है । इसके अनतरयक्त ,
मूयोऩीम उऩननवेशवादी दे शों के ऩूवव
थ ती उऩननवेशों को अबी बी फहुआमाभी शोषण के उन प्रबावों से ऩूयी
तयह उबयना शेष है , न्जसे उन्होंने औऩननवेमशक कार भें झेरा।
4. यॊ गबेद औय साम्प्रदानमकता- यॊ गबेद औय साम्प्रदानमकता भें एक सम्ऩूणथ नस्रगत सभूह अथवा सभुदाम ऩय
राॊछन रगाना औय उनका दभन कयना सन्म्भमरत यहता है । हाराॉकक भानवता को ववमबन्न नस्रों के
आधाय ऩय ववबान्जत कय सकने की अवधायणा वैऻाननक रूऩ से अप्रभाखणक है रेककन अनेक फाय इसका
उऩमोग भानव ववयोधी कुकृत्मों को उर्चत ठहयाने भें ककमा ही जाता है । सन ् 1865 तक अभेरयका भें अश्वेत
रोगों को गुराभ फनाने की प्रथा; टहटरय के सभम जभथनी भें महूटदमों का कत्रेआभ तथा दक्षऺण अिीका
की गोयी सयकाय की सन ् 1992 तक अऩनी फहुसॊख्मक अश्वेत आफादी के साथ ननम्न दजे के नागरयकों
जैसा व्मवहाय कयने वारी यॊ गबेद की नीनत इसके सवोत्तभ उदाहयण हैं। ऩन्श्चभी दे शों भें नस्री बेदबाव
गोऩनीम रूऩ से अबी बी जायी है । अफ इसका प्रमोग प्राम: एमशमा , अिीका औय रैटटन अभेरयका के
ववमबन्न दे शों के आप्रवामसमों के ववरुर्द् होता है । साम्प्रदानमकता को नस्रवाद को दक्षऺण एमशमाई प्रनतरूऩ
स्वीकाया जा सकता है । जहाॉ मशकाय अल्ऩसॊख्मक धामभथक सभूह हुआ कयते हैं।
टहॊसा का मशकाय व्मन्क्त न्जन भनोवैऻाननक औय बौनतक हाननमों से गुजयता है मे हाननमाॉ उसके बीतय
मशकामतें उत्ऩन्न कयती हैं। मे मशकामतें ऩीटढ़मों तक फनी यहती हैं। ऐसे सभह
ू कबी-कबी ककसी घटना मा
टटप्ऩणी से बी उत्तेन्जत होकय सॊघषों के ताजा दौय की शुरूआत कय सकते हैं। दक्षऺण एमशमा भें ववमबन्न
सभुदामों द्वाया एक-दस
ू ये के ववरुर्द् रम्फे सभम से भन भें यखी ऩुयानी मशकामतों के उदाहयण हभाये साभने
हैं; जैसे-सन ् 1947 भें बायत के ववबाजन के दौयान बडकी टहॊसा से उऩजी मशकामतें आज बी रोगों भें टीस
ऩैदा कयती हैं।

न्मामऩूणथ औय टटकाऊ शान्न्त अप्रकट मशकामतें औय सॊघषथ के कायणों को साप-साप प्रकट कयने औय
फातचीत द्वाया हर कयने के भाध्मभ से ही प्राप्त की जा सकती हैं। इसीमरए बायत औय ऩाककस्तान के
फीच की सभस्माओॊ का हर कयने के वतथभान प्रमासों भें प्रत्मेक वगथ के रोगों
के फीच अर्धक सम्ऩकथ को प्रोत्साटहत कयना बी सन्म्भमरत है ।

प्रश्न 2.
शान्न्त स्थावऩत कयने के ववमबन्न तयीकों की वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
शान्न्त स्थावऩत कयने औय फनाए यखने के मरए ववमबन्न यणनीनतमाॉ अऩनाई गई हैं। इन यणनीनतमों को
आकाय दे ने के मरए तीन तयीकों ने सहामता दी है जो ननम्नमरखखत हैं-
1. प्रथभ तयीका याष्ट्रों को केन्द्रीम स्थान प्रदान कयता है , उनकी सम्प्रबुता का सम्भान कयता है । उनके
फीच प्रनतद्वन्द्ववता को जीवन्त सत्म भानता है । उसकी प्रभख
ु प्रनतद्वन्द्ववता के उऩमक्
ु त प्रफन्धन तथा
सॊघषथ की आशॊका का शभन सत्ता-सन्तुरन की ऩायस्ऩरयक व्मवस्था के भाध्मभ से कयने की होती है । कहा
जाता है कक वैसा एक सन्तर
ु न 19वीॊ सदी भें प्रचमरत था, जफ प्रभख
ु मयू ोऩीम दे शों ने सम्बाववत आक्रभण
को योकने औय फडे ऩैभाने ऩय मुर्द् से फचने के मरए अऩने सत्ता सॊघषों भें गठफन्धन फनाते हुए तारभेर
ककमा।

2. दस
ू या तयीका बी याष्ट्रों की गहयाई तक जभी आऩसी प्रनतद्वन्द्ववता की प्रकृनत को स्वीकाय कयता है ,
रेककन इसका जोय सकायात्भक उऩन्स्थनत औय ऩयस्ऩय ननबथयता की सम्बावनाओॊ ऩय है । मह ववमबन्न दे शों
के फीच ववकासभान साभान्जक आर्थथक सहमोग को ये खाॊककत कयता है । अऩेऺा यहती है कक वैसे सहमोग
याष्ट्र की सम्प्रबुता को नयभ कयें गे औय अन्तयाथष्ट्रीम सभझदायी को प्रोत्साटहत कयें गे। ऩरयणाभस्वरूऩ
वैन्श्वक सॊघषथ कभ होंगे , न्जससे शान्न्त की अच्छी सम्बावनाएॉ। फनेंगी। इस ऩर्द्नत के ऩऺकायों द्वाया
अक्सय टदमा जाने वारा एक उदाहयण द्ववतीम ववश्वमुर्द् के ऩश्चात ् के मूयोऩ का है , जो आर्थथक एकीकयण
से याजनीनतक एकीकयण की ओय फढ़ता गमा है ।

3. तीसयी ऩर्द्नत याष्ट्र आधारयत व्मवस्था को भानव इनतहास की सभाप्तप्राम अवस्था स्वीकायती है । मह
अर्धयाष्ट्रीम व्मवस्था को भनोर्चत्र फनाती है औय वैन्श्वक सभद
ु ाम के अभ्मद
ु म को शान्न्त की ववश्वसनीम
गायण्टी भानती है । वैसे सभुदाम के फीज याष्ट्रों की सीभाओॊ के आय-ऩाय फढ़ती आऩसी अन्त:कक्रमाओॊ औय
सॊश्रमों भें टदखते हैं न्जसभें फहुयाष्ट्रीम ननगभ औय जनान्दोरन जैसे ववववध गैय-सयकायी कताथ सन्म्भमरत
हैं। इस तयीके के प्रस्तावक औय सभथथक तकथ दे ते हैं कक वैश्वीकयण की चर यही प्रकक्रमा याष्ट्रों को ऩहरे से
ही घट गई प्रधानता औय सम्प्रबुता को औय अर्धक ऺीण कय यही है , न्जसके परस्वरूऩ ववश्व-शान्न्त
स्थावऩत होने की ऩरयन्स्थनतमाॉ फन यही हैं।

मह कहा जा सकता है कक सॊमक्


ु त याष्ट्र तीनों की ऩर्द्नतमों के प्रभख
ु तत्त्वों को साकाय कय सकता है ।
सुयऺा ऩरयषद्, जो स्थामी सदस्मता औय ऩाॉच प्रभुख याष्ट्रों को ननषेधार्धकाय (अन्म सदस्मों द्वाया सभर्थथत
प्रस्ताव को बी र्गया दे ने का अर्धकाय) दे ता है , प्रचमरत अन्तयाथष्ट्रीम श्रेणीफर्द्ता को ही व्मक्त कयता है ।
आर्थथक-साभान्जक ऩरयषद् अनेक ऺेत्रों भें याष्ट्रों के फीच सहमोग को प्रोत्साटहत कयता है । भानवार्धकाय
आमोग अन्तयाथष्ट्रीम भानदण्डों को आकाय दे ना
औय रागू कयना चाहता है ।

प्रश्न 3.
अन्तयाथष्ट्रीम शान्न्त तथा सुयऺा फनाए यखने के मरए शान्न्तऩूणथ सभाधान की प्रकक्रमाओॊ की सॊऺेऩ भें
वववेचना कीन्जए।
मा
―सॊमुक्त याष्ट्र सॊघ का भूर उद्देश्म चाटथ य के अनुसाय अन्तयाथष्ट्रीम शान्न्त तथा सुयऺा को फनाए यखना है । ‖
वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
सॊमुक्त याष्ट्र सॊघ की स्थाऩना इस दृन्ष्ट्ट से की गई थी कक वह ववश्व भें शान्न्त तथा सुयऺा को फनाए
यखेगा। चाटथ य के अन्तगथत मह दानमत्व सयु ऺा ऩरयषद् को सौंऩा गमा औय ववशेष ऩरयन्स्थनत भें भहासबा बी
इस कामथ भें अऩना मोगदान दे सकती है । सॊमुक्त याष्ट्र सॊघ के सदस्म चाटथ य के अनच्ु छे द 2 के अनुसाय इस
फात के मरए वचनफर्द् हैं कक वे वतथभान चाटथ य के अनस
ु ाय सयु ऺा ऩरयषद् के सबी ननणथमों को स्वीकाय
कयें गे तथा उनका ऩारन कयें गे। चाटथ य के अध्माम 6 तथा 7 भें उन प्रकक्रमाओॊ का उल्रेख ककमा गमा है ,
न्जसके द्वाया अन्तयाथष्ट्रीम वववादों के सभाधान के प्रमास ककए जाएॉगे। चाटथ य की वतथभान व्मवस्था के
अनुसाय अन्तयाथष्ट्रीम वववादों के सभाधान तथा अन्तयाथष्ट्रीम शान्न्त औय सुयऺा स्थावऩत कयने के मरए कुछ
ववमशष्ट्ट प्रकक्रमाएॉ प्रमोग भें राई जाती हैं।
र्ाक्न्तऩण
ू श सभाधान की प्रकिमाएॉ
सॊमक्
ु त याष्ट्र सॊघ के चाटथ य भें अनच्
ु छे द 33 से 38 तक अन्तयाथष्ट्रीम वववादों के शान्न्तऩण
ू थ सभाधान की
प्रकक्रमाओॊ का उल्रेख ककमा गमा है । वववादों के शान्न्तऩूणथ सभाधान के मरए अनुच्छे द 33 भें जो उऩाम
फताए गए हैं, वे सबी मह स्ऩष्ट्ट कयते हैं कक अन्तयाथष्ट्रीम जगत भें सबी वववादों की प्रकृनत सभान नहीॊ ।
हो सकती औय न ही ककसी एक उऩाम द्वाया सबी वववादों का सभाधान सम्बव है । वऩछरे वषों भें सॊमुक्त
याष्ट्र सॊघ के सभऺ प्रस्तुत वववादों के तीन रूऩ यहे हैं-
ू क वििाद- इन वववादों भें एक ऩऺ दस
1. तथ्मभर ू ये ऩऺ ऩय अनुर्चत कामथवाही कयने का दोष रगाते हैं।
उदाहयणाथथ-1960 भें रूस द्वाया अभेरयका के R.B.-47 ववभान को भाय र्गयाना तथ्मभूरक वववाद था।
ू सम्फन्धी वििाद- इन वववादों भें वैधाननक अर्धकायों तथा कतथव्मों के प्रश्न ननटहत होते हैं। आमयरैण्ड
2. कानन
तथा ब्रिटे न का वववाद कानून सॊफॊधी वववाद था।
ॊ ी वििाद- इस प्रकाय के वववाद वे होते हैं न्जनभें वववादी ऩऺों की नीनतमों से सॊघषथ की न्स्थनत
3. नीनत सॊफध
उत्ऩन्न हो जाती है । फमरथन की न्स्थनत सॊफॊधी सभस्मा नीनत सॊफॊधी वववाद था न्जसभें तत्कारीन सोववमत
सॊघ तथा मभत्र याष्ट्रों की नीनतमों भें टकयाहट थी।
अॊतयाथष्ट्रीम सॊफॊधों तथा सॊमुक्त याष्ट्र के वववादों के शाॊनतऩूणथ सभाधान की टदशा भें ननम्नमरखखत उऩाम
ककए जाते हैं-

1. िाताश- वाताथ का साधन कूटनीनतक भाना जाता है । वववादी ऩऺों के फीच वाताथ मा तो शीषथ स्तय | ऩय सीधे
याज्माध्मऺों के फीच होती है मा उनके द्वाया ननमुक्त अमबकताथओॊ द्वाया। मह वाताथ सुववधानुसाय सम्ऩन्न
होती है ।
2. जाॉच- अनच्ु छे द 34 तथा 36 के अॊतगथत मह व्मवस्था है कक सुयऺा ऩरयषद् ककसी ऐसे वववाद मा न्स्थनत की
जाॉच-ऩडतार कय सकती है जो अॊतयाथष्ट्रीम सॊघषथ का रूऩ धायण कय सकता हो मा न्जससे दस
ू या गॊबीय
वववाद उठ खडा होने की आशॊका हो।
3. सौभनस्म मा सॊयाधन- वववादों के सभाधान का एक प्रबावशारी साधन सौभनस्म है । इसभें ववमबन्न उऩामों
का प्रमोग ककमा जाता है । इन उऩामों को तीसया ऩऺ दो मा दो से अर्धक याज्मों के वववादों को शाॊनतऩण
ू थ
ढॊ ग से ननणीत कयने के मरए अऩनाते हैं। इस दृन्ष्ट्ट से सॊयाधन की प्रकक्रमा भें तथ्मों की जाॉच , भध्मस्थता
तथा वाद-वववाद के मरए प्रस्ताव का प्रेऺण ककमा जाता है ।
4. िाद-वििाद- सुयऺा ऩरयषद् मा भहासबा ककसी बी प्रकाय की मसपारयश कयने से ऩहरे वववादी ऩऺों को
मरखखत मा भौखखक रूऩ से अऩने दावे प्रस्तुत कयने के मरए बी आभॊब्रत्रत कयती है । वहाॉ वे अऩनी
मशकामतों को ननष्ट्ऩऺ रूऩ भें यखते हैं औय द्ववऩऺीम कूटनीनत के भाध्मभ से ऐसी न्स्थनत भें ऩहुॉच सकते
हैं जहाॉ वववाद के सभाधान के मरए कोई सभझौता हो सके।
5. सत्सेिा तथा भध्मस्थता- जफ कबी कोई वववाद वाताथ मा अन्म ककसी तयीके से सुरझाए नहीॊ जा सकते , तफ
तीसया मभत्र याज्म अऩनी सत्सेवा मा भध्मस्थता द्वाया भतबेदों को भैत्रीऩूणथ ढॊ ग से दयू कयने भें सहामता
कय सकता है । मह दशा उस सभम उत्ऩन्न होती है जफ वववाद भें उरझे ऩऺ स्वाथाथन्ध बाव का ऩरयचम
दे ते हैं। तीसया याज्म अऩने प्रबाव द्वाया सत्सेवा के इस कामथ का सम्ऩादन कयता है तथा दोनों ऩऺों के
फीच शाॊनतऩण
ू थ सभझौता कया दे ता है ।
6. न्मानमक सभाधान- वववादों को न्मानमक सभाधान अॊतयाथष्ट्रीम न्मामारम के भाध्मभ से होता है । अॊतयाथष्ट्रीम
न्मामारम के ननणथमों की भान्मता के फाये भें सॊमक्
ु त याष्ट्र सॊघ के चाटथ य भें अनच्ु छे द 94 भें मह स्ऩष्ट्ट
व्मवस्था दी गई है कक ―सॊघ का प्रत्मेक सदस्म प्रनतऻा कयता है कक वह ककसी भाभरे भें वववादी होने ऩय
अॊतयाथष्ट्रीम न्मामारम के ननणथम को भानेगा। ‖ सॊमक्
ु त याष्ट्र सॊघ के सबी सदस्म अऩने आऩ ही अॊतयाथष्ट्रीम
न्मामारम की सॊववर्ध के सदस्म फन जाते हैं। इसके मरए प्रत्मेक भाभरे भें भहासबा सुयऺा ऩरयषद् की
सॊस्तुनत ऩय आवश्मक शतों का , ननधायण कयती है । मद्मवऩ न्मामारम का आवश्मक तथा सावथबौभ
ऺेत्रार्धकायी नहीॊ है तथावऩ इसके ननणथम उन ऩऺों ऩय फाध्मकायी होते हैं जो इसके न्मामार्धकयण को
स्वेच्छा से स्वीकाय कयते हैं।
7. ऩॊच ननणशम- साधायण रूऩ से वाताथ , सौभनस्म, भध्मस्थता, जाॉच आटद उऩाम ननणथमेत्तय कहराते हैं , क्मोंकक
वववादी ऩऺ इस फात के मरए फाध्म नहीॊ होते कक इन उऩामों द्वाया टदए गए। सुझावों मा ननणथमों को
स्वीकाय कयें । इन्हें प्रबावशारी फनाने के मरए कुछ अन्म उऩाम बी ककए जाते हैं न्जनके ननणथमों को दोनों
ऩऺों द्वाया भानना आवश्मक होता है । मे ननणथमात्भक उऩाम ऩॊच ननणथम तथा न्मानमक ननणथम कहराते हैं।
8. भध्मस्थ मा प्रनतननचध- कुछ वववाद ऐसे होते हैं न्जनके सभाधान भें सुयऺा ऩरयषद् भहासबा मा आमोग की
अऩेऺा एक अकेरा व्मन्क्त, भध्मस्थ मा प्रनतननर्ध के रूऩ भें अर्धक उऩमोगी मसर्द् होता है । सयु ऺा ऩरयषद् ,
भहासबा के सबाऩनतमों तथा भहासर्चव ने इस दृन्ष्ट्ट से अनेक अवसयों ऩय प्रबावशारी बूमभका ननबाई है ।
ककसी तटस्थ स्थान ऩय अथवा ववऩऺी दरों की याजधाननमों भें मा वववाद-स्थर ऩय सॊमुक्त याष्ट्रीम
भध्मस्थ मा प्रनतननर्ध ने वववाद के सभाधान मा भतबेदों को सभाप्त कयने की टदशा भें अऩनी भहती
उऩमोर्गता मसर्द् की है ।
9. अियोधक कूिनीनत- अवयोधक कूटनीनत का उऩाम शाॊनतऩूणथ सभाधान का रूऩक है न्जसका उद्देश्म वववाद भें
तनाव को कभ कयना तथा न्स्थनत को ब्रफगडने से फचाने का होता है । वतथभान भें भहासबा भें ननगुट
थ याष्ट्र
शाॊनत स्थावऩत कयने भें जो नई बमू भका ननबा यहे हैं तथा शीतमर्द्
ु के ऺेत्र को सीमभत कयते जा यहे हैं , वे
अवयोधक कूटनीनत की ही ववशेषताएॉ हैं। इस प्रकाय अऩने सीमभत साधनों तथा ऩरयन्स्थनतमों के अॊतगथत
तथा याष्ट्रों के प्रबस
ु त्ता मसर्द्ान्त को ध्मान भें यखते हुए सॊमक्
ु त याष्ट्र सॊघ ने वववादों के शाॊनतऩण
ू थ
सभाधान के मरए अनेक उल्रेखनीम प्रमास ककए हैं न्जनभें से फहुतों भें उसको सपरता प्राप्त हुई तथा
भहाशन्क्तमों के अवयोध:के कायण अनेक फाय उसे ववपर बी होना ऩडा है ।
प्रश्न 4.
अॊतयाथष्ट्रीम शाॊनत तथा सयु ऺा फनाए यखने के मरए सॊमक्
ु त याष्ट्र सॊघ द्वाया की जाने वारी फाध्मकायी
कामथवाही की सॊक्षऺप्त वववेचना कीन्जए।
उत्तय-
फाध्मकायी कामशिाही
सॊमुक्त याष्ट्र सॊघ के चाटथ य के अध्माम 7 भें मह व्मवस्था की गई है कक मटद ववश्व-शाॊनत तथा सुयऺा के
मरए सॊकट उत्ऩन्न हो मा शाॊनत बॊग से अथवा ववश्व के ककसी बी ऺेत्र भें सशस्त्र आक्रभण होने की
न्स्थनत उत्ऩन्न हो मा हो गई हो तो सॊमक्
ु त याष्ट्र सॊघ शाॊनत स्थाऩनाथथ फर प्रमोग कय सकता है । वह
प्रनतयोधात्भक उऩामों का आश्रम बी रे सकता है । मह फर प्रमोग सॊघ दो प्रकाय से कयता है -
1. न्जसभें सशस्त्र सेना के प्रमोग की आवश्मकता नहीॊ होती एवॊ
2. न्जसभें सशस्त्र सैन्म फर का प्रमोग आवश्मक हो जाता है ।
ु छे द 39 के अनस
अनच् ु ाय सयु ऺा ऩरयषद् ही मह ननणथम कयती है कक ककन कामों द्वाया शाॊनत बॊग की दशा भें
आक्रभण की सॊकक्रमा की जा सकती है । इस अनुच्छे द के अनुसाय ऩरयषद् मसपारयश तथा ननणथम दोनों
प्रकाय के कामथ कयती है । अनच्
ु छे द 40 भें मह व्मवस्था है कक ककसी न्स्थनत को ब्रफगडने से फचाने के मरए
सुयऺा ऩरयषद् अऩनी मसपारयशें कयने अथवा ककसी कामथवाही का ननश्चम कयने से ऩूवथ वववादी ऩऺों से ऐसे
अस्थामी कदभ उठाने की भाॉग कये गी, न्जन्हें वह आवश्मक सभझती हो। इन अस्थामी कामों से वववादी ऩऺ
के अर्धकायों, दावों मा उनकी है मसमत को ककसी प्रकाय की हानन नहीॊ होगी। मटद कोई ऩऺ इस प्रकाय के
अस्थामी कदभ नहीॊ उठाता है तो सुयऺा ऩरयषद् इसकी ओय बी ध्मान यखेगी।
फर प्रमोग के दोनों उऩाम सुयऺा ऩरयषद् के ननणथम के अनुसाय सॊमुक्त याष्ट्र सॊघ के सबी सदस्मों को
भानने ऩडते हैं। इसका सॊचारन बी सुयऺा ऩरयषद् ही कयती है । चाटथ य भें कहीॊ ‗आक्रभण‘, ‗शाॊनत बॊग‘,
‗शाॊनत का सॊकट‘, ‗घये रू भाभरा‘ आटद वाक्मों को स्ऩष्ट्ट नहीॊ ककमा गमा है । मटद एक याष्ट्र की दृन्ष्ट्ट । भें
कोई आक्रभण होता है तो दस
ू ये याष्ट्र की दृन्ष्ट्ट भें वही ‗घये रू भाभरा हो सकता है । इस प्रकाय के सबी
भाभरों के ननणथम के मरए ऩरयषद् के 5 स्थामी सदस्मों के भतों सटहत कुर 9 सदस्मों के स्वीकायात्भक
भत आवश्मक होते हैं। ऩयन्तु याजनीनतक गुटफन्दी के कायण इस प्रकाय का ननणथम रेना कटठन कामथ हो
जाता है । मही कायण है कक सयु ऺा ऩरयषद् ऐसे भाभरों भें तत्ऺण कोई ननणथम नहीॊ रे ऩाती है ।

एक फाय मह ननन्श्चत हो जाने ऩय कक ककसी दे श के मरए मर्द्


ु जैसी ऩरयन्स्थनतमाॉ मा ककसी दे श ऩय हुआ
आक्रभण ववश्व शाॊनत के मरए सॊकट है तो इस न्स्थनत भें सुयऺा ऩरयषद् तुयॊत कामथवाही कय सकती है । इस
प्रकाय की कामथवाही भें सैननक तथा असैननक दोनों प्रकाय की अनुशान्स्तमाॉ ननटहत हैं। औय सॊघ के सबी
सदस्म ऩरयषद् के ननणथम ऩय अभर कयने के मरए, सॊघ के ववधानानुसाय फाध्म हैं। जफ वववाद भें ,सशस्त्र
सॊघषथ उत्ऩन्न हो जाता है तो सॊमुक्त याष्ट्र सॊघ जैसे अॊतयाथष्ट्रीम सॊगठन के साभने गॊबीय चुनौती उत्ऩन्न
हो जाती है । मसर्द्ाॊतत् चाटथ य के अनुच्छे द 7 के अनुसाय वववादी ऩऺों ऩय अनुशान्स्तमाॉ स्थावऩत कयने की
व्मवस्था है , तथावऩ सॊमुक्त याष्ट्र सॊघ साभान्मतमा दभनकायी मा प्रनतयोध के उऩामों से दयू यहने का प्रमत्न
कयता है तथा कूटनीनतक, याजनीनतक मा वैधाननक उऩामों से सभस्मा को सर
ु झाने का प्रमास कयता है ।
सशस्त्र सॊघषथ को ववयाभ दे ने के मरए वैसे तो चाटथ य भें स्ऩष्ट्टत् मुर्द् ववयाभ आदे श के ववषम भें कुछ नहीॊ
कहा गमा है , तथावऩ अनच्ु छे द 40 के फाये भें ववस्ताय से मरखा गमा है ।
अनेक भाभरों भें वववादी ऩऺ मुर्द् ववयाभ के मरए तैमाय हो जाते हैं। ऩयन्तु इस फात की बी प्रफर
सम्बावना यहती है कक वववादी याष्ट्रों द्वाया सयु ऺा के आदे शों मा मसपारयशों को ठुकया टदमा जाए।
इण्डोनेमशमा औय डचों, महूटदमों औय अयफों, साइप्रस के मूनाननमों तथा तुको औय दो अवसयों ऩय बायतीमों
तथा ऩाककस्ताननमों के फीच मुर्द् योकने भें सुयऺा ऩरयषद् की मुर्द् ववयाभ की आऻाएॉ प्रबावी भानी गईं।

ु छे द 41 के अॊतगथत मह व्मवस्था है कक सुयऺा ऩरयषद् अऩने ननणथमों ऩय अभर कयने के मरए कोई बी
अनच्
कामथवाही कय सकती है , न्जसभें सशस्त्र सेना का प्रमोग न हो। मह सॊघ-सदस्मों भें इस प्रकाय की कामथवाही
कयने की भाॉग कय सकती है । इन कामथवाटहमों के अनुसाय आर्थथक सॊफॊध ऩूणरू
थ ऩेण मा आॊमशक रूऩ से
सभाप्त ककए जा सकते हैं। सभुद्र , वामु, डाक-ताय, ये डडमो औय मातामात के अन्म साधनों ऩय प्रनतफॊध रगामा
जा सकता है औय कूटनीनतक सॊफॊधों को सभाप्त ककमा जा सकता है ।
ु छे द 42 भें चचाथ की गई है कक शाॊनत तथा सय
अनच् ु ऺा के मरए की जाने वारी कामथवाटहमाॉ मटद अऩमाथप्त
मसर्द् हो गई हों तो जर, थर औय वामु सेनाओॊ द्वाया आवश्मक कामथवाही की जा सकती है । इस कामथवाही
भें ववयोध प्रदशथन भाकेफन्दी तथा सॊघ के सदस्म याष्ट्रों की जर , थर तथा वामु सेनाओॊ द्वाया की जाने
वारी कोई बी कामथवाही सन्म्भमरत है ।
ु छे द 43 के अनस
अनच् ु ाय ऩरयषद् इस फात को ननन्श्चत कयती है कक उऩमक्
ु त कामथवाही सॊघ के कुछ सदस्मों
द्वाया की जाए मा सबी सदस्मों द्वाया। जो कामथ ककमा जाए वह स्वतन्त्र रूऩ से हो मा प्रत्मऺ हो मा कपय
उसे कक्रमान्न्वत कयने के मरए अॊतयाथष्ट्रीम सॊस्थाओॊ की सहामता री जाए। सदस्म याष्ट्रों को मह कतथव्म है
कक वे सुयऺा ऩरयषद् के भाॉगने ऩय तथा ववशेष सभझौते के अनुसाय अऩनी सशस्त्र सेनाएॉ , सहामता तथा
अन्म सुववधा उऩरब्ध कयाएॉगे। सॊघ की व्मवस्था के अनुसाय न्जस प्रकाय के सभझौतों द्वाया मह ननन्श्चम
ककमा जाना था कक सॊघ का प्रत्मेक सदस्म ककतनी सहामता दे गा , सेनाओॊ की उऩरब्धता क्मा होगी, मे
अववरम्फ कामथवाही कयने के मरए कैसे तैमाय होंगी तथा प्रत्मेक सदस्म ककस प्रकाय अन्म सुववधाएॉ प्रदान
कये गा-ऩयन्तु ऐसे सभझौते अबी तक हुए नहीॊ हैं। उस दशा भें अनुच्छे द भें मह कहा गमा है - ―जफ सुयऺा
ऩरयषद् फर प्रमोग कयने का ननश्चम कय रे तो ककसी ऐसे सदस्म से , न्जसे इसभें प्रनतननर्धत्व प्राप्त नहीॊ
है , सशस्त्र सेनाएॉ जुटाने के मरए कहने से ऩूवथ वह उस दे श को, मटद सॊफॊर्धत दे श चाहे तो उसकी सशस्त्र
सेनाओॊ के प्रमोग से सॊफॊर्धत ननणथमों भें बाग रेने को आभॊब्रत्रत कये गी। ‖

फहुविकल्ऩीम प्रश्न
प्रश्न 1.
फेहतय जीवन की काभना से सॊफॊर्धत है
(क) ववकास
(ख) ऩमाथवयण
(ग) तानाशाही
(घ) मोजना
उत्तय-
(क) ववकास।
प्रश्न 2.
भानव ववकास प्रनतवेदन प्रकामशत कयता है
(क) मोजना आमोग
(ख) सॊमुक्त याष्ट्र ववकास कामथक्रभ (UNDP)
(ग) बायतीम सॊसद
(घ) भानवार्धकाय आमोग
उत्तय-
(ख) सॊमुक्त याष्ट्र ववकास कामथक्रभ (UNDP)।
प्रश्न 3.
‗र्चऩको आन्दोरन ककससे सम्फर्द् है ?
(क) ऩमाथवयण
(ख) ववर्ध
(ग) मोजना
(घ) नभथदा फाॉध
उत्तय-
(क) ऩमाथवयण।
प्रश्न 4.
ओगोनी प्रान्त ककस दे श भें है ?
(क) नाइजीरयमा
(ख) दक्षऺणी अिीका
(ग) इजयामर
(घ) कपमरस्तीन
उत्तय-
(क) नाइजीरयमा।
अनतरघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
एमशमाई व अिीकी दे शों के रोगों की क्मा सभस्माएॉ हैं ?
उत्तय-
एमशमाई व अिीकी दे शों भें गयीफी, कुऩोषण, फेयोजगायी, ननयऺयता औय फुननमादी सुववधाओॊ के अबाव की
सभस्माएॉ हैं।
प्रश्न 2.
ऩमाथवयणवाटदमों के क्मा ववचाय हैं ?
उत्तय-
ऩमाथवयणवाटदमों का ववचाय है कक भानव को ऩारयन्स्थनतकी के सुय-भें-सुय मभराकय जीना चाटहए औय
ऩमाथवयण भें अऩने तात्कामरक टहतों के मरए छे डछाड कयना फॊद कयना चाटहए।
प्रश्न 3.
‗र्चऩको आन्दोरन क्मा है ?
उत्तय-
मह एक ऩमाथवयणीम आन्दोरन है औय बायत भें टहभारम के वनऺेत्र को फचाने के मरए प्रायम्ब ककमा गमा
था।
प्रश्न 4.
‗भानव ववकास प्रनतवेदन क्मा है ?
उत्तय-
‗भानव ववकास प्रनतवेदन सॊमक्
ु त याष्ट्र ववकास कामथक्रभ (UNDP) प्रकामशत कयता है । मह उसका वावषथक
प्रकाशन है । इस प्रनतवेदन भें साऺयता औय शैक्षऺक स्तय, आमु सम्बाववत औय भात-ृ भत्ृ मु दय जैसे ववमबन्न
साभान्जक सॊकेतकों के आधाय ऩय दे शों का दजाथ ननधाथरयत ककमा जाता है ।
प्रश्न 5.
रोकतन्त्र औय ववकास दोनों का सभान उद्देश्म क्मा है ?
उत्तय-
रोकतन्त्र औय ववकास दोनों का सभान उद्देश्म जनसाधायण के मरए योजगाय प्राप्त कयाना है ।
रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
‗ववकास‘ शब्द का क्मा अथथ है ? ।
उत्तय-
‗ववकास‘ शब्द अऩने व्माऩकतभ अथथ भें उन्ननत, प्रगनत, कल्माण औय फेहतय जीवन की अमबराषा के
ववचायों का वाहक है । कोई सभाज ववकास के फाये भें अऩनी सभझे द्वाया मह स्ऩष्ट्ट कयता है कक सभाज
के मरए सभग्र रूऩ से उसकी दृन्ष्ट्ट क्मा है औय उसे प्राप्त कयने का सवोत्तभ तयीका क्मा है ? ववकास शब्द
का प्रमोग प्राम् आर्थथक ववकास की दय भें ववृ र्द् औय सभाज का आधुननकीकयण जैसे सॊकीणथ अथों भें बी
होता यहता है । दब
ु ाथग्मवश ववकास को साधायणतमा ऩूवथ ननधाथरयत रक्ष्मों का फाॉध , उद्मोग, अस्ऩतार जैसी
ऩरयमोजनाओॊ को ऩूया कयने से जोडकय दे खा जाता है । ववकास का काभ । सभाज के व्माऩक दृन्ष्ट्टकोण के
अनुसाय नहीॊ होता है । इस प्रकक्रमा भें सभाज के कुछ टहस्से राबान्न्वत होते हैं जफकक शेष रोगों को अऩने
घय, जभीन, जीवन-शैरी को ब्रफना ककसी बयऩाई के खोना ऩड सकता है ।
प्रश्न 2.
ववकास की साभान्जक अवधायणा क्मा है ?
उत्तय-
ववकास की साभान्जक अवधायणा का प्रमोग कयने का श्रेम एर०िी० हॉफहाउस (L.T. Hobhouse) को टदमा
जाता है न्जन्होंने अऩनी ऩुस्तक सोशर डेवरऩभेण्ट (Social Development) भें ववकास की साभान्जक
अवधायणा, ववकास की दशाओॊ तथा ववमबन्न प्रकाय के ववकासों (जैसे कक सॊस्थाओॊ का ववकास अथवा
फौवर्द्क ववकास) इत्माटद अनेक ववषमों ऩय सभुर्चत प्रकाश डारा है । हॉफहाउस (Hobhouse) के अनुसाय,
―ववकास का अमबप्राम नए प्रकामों के उदम होने के ऩरयणाभस्वरूऩ साभान्म कामथऺभता भें ववृ र्द् अथवा
ऩुयाने प्रकामों की एक-दस
ू ये के साथ सभामोजना के कायण साभान्म उऩरन्ब्ध भें ववृ र्द् से है ।
हॉफहाउस ने ववकास की अवधायणा को सभुदामों के ववकास के सॊदबथ भें ववकमसत ककमा है । मटद कोई
सभुदाम अऩने स्तय, कुशरता, स्वतन्त्रता तथा ऩायस्ऩरयकता भें आगे फढ़ता है तो हभ मह कह सकते हैं।
कक वह अभुक सभुदाम ववकास की ओय अग्रसय है । ककसी एक तत्त्व का ही नहीॊ अवऩतु सबी तत्त्वों का
सभन्वम ववकास के मरए अनवामथ है ।

प्रश्न 3.
नभथदा फचाओ आॊदोरन के फाये भें आऩ क्मा जानते हैं ?
उत्तय-
नभथदा फचाओ आॊदोरन‘ नभथदा नदी ऩय सयदाय सयोवय ऩरयमोजना के अॊतगथत फनने वारे फाॉधों के ननभाथण
के ववरुर्द् एक मभशन है । फडे फाॉधों के सभथथकों का तकथ है कक इनसे ब्रफजरी उत्ऩन्न होगी , कापी फडे ऺेत्र
भें जभीन की मसॊचाई भें सहामता मभरेगी। सौयाष्ट्र औय कच्छ के ये र्गस्तानी ऺेत्र को ऩेमजर बी उऩरब्ध
होगा। फडे फाॉधों के ववयोधी (नभथदा फचाओ आॊदोरन) इन दावों का खण्डन कयते हैं। इसके अनतरयक्त अऩनी
जभीन के डूफने औय उसके कायण अऩनी आजीववका के नछनने से दस राख से अर्धक रोगों के ववस्थाऩन
की सभसमा उत्ऩन्न हो गई है । इनभें से अर्धकाॊश रोग जनजानत मा दमरत सभुदामों के हैं औय दे श के
अनत वॊर्चत सभूहों भें आते हैं।
प्रश्न 4.
‗साभान्जक ववकास एक फहु-आमाभी अवधायणा है ? व्माख्मा कीन्जए।
उत्तय-
‗साभान्जक ववकास‘ को िी०फी० फॉिोभोय ने इस प्रकाय ऩरयबावषत ककमा है , ‗साभान्जक ववकास से हभाया तात्ऩमथ
उस न्स्थनत से है न्जसभें सभाज के व्मन्क्तमों भें ऻान की ववृ र्द् हो औय व्मन्क्त प्रौद्मार्गक आववष्ट्कायों
द्वाया प्राकृनतक ऩमाथवयण ऩय अऩना ननमन्त्रण स्थावऩत कय रें साथ ही वे आर्थथक दृन्ष्ट्ट से आत्भ-ननबथय
हो जाएॉ।‖ साभान्जक ववकास की प्रकक्रमा के अॊतगथत औद्मोगीकयण की प्रकक्रमा के ऩरयणाभस्वरूऩ आर्थथक व
याजनीनतक सॊगठनों की कामथऺभता भें ववृ र्द् हुई है तथा इसके आधाय ऩय सभाजों
को विकससत तथा अविकससत मा विकासर्ीर जैसी श्रेखणमों भें ववबान्जत ककमा जाता है ।
साभान्जक ववकास का अमबप्राम जैवकीम ववकास न होकय भानवीम ऻान भें ववृ र्द् तथा प्राकृनतक ऩमाथवयण
ऩय भानवीम ननमॊत्रण भें अर्धकार्धक ववृ र्द् है । भानवीम ऻान भें ववृ र्द् की दृन्ष्ट्ट से अगय सभाज भें व्मन्क्त
अऩने ऩूवज
थ ों की अऩेऺा ऻान भें अमबववृ र्द् कय चुके हैं तो उसे हभ ववकमसत सभाज कह सकते हैं।
प्राकृनतक ऩमाथवयण ऩय भानवीम ननमन्त्रण की ववृ र्द् बी ववकास का एक सच
ू क है तथा न्जन सभाजों ने इस
ननमन्त्रण भें सपरता प्राप्त कय री है वे ववकमसत सभाज हैं। वास्तव भें , साभान्जक ववकास को केवर
आर्थथक ववकास तक ही सीमभत कयना उर्चत नहीॊ है । ववकासशीर दे शों के मरए ‗साभान्जक ववकास‘ एक
फहु-आमाभी अवधायणा है ।

प्रश्न 5.
ववकास का ‗जनाॊकककीम सॊक्रान्न्त मसर्द्ान्त क्मा है ?
उत्तय-
ककसी बी दे श के आर्थथक ववकास का उस दे श की भानव-शन्क्त ऩय प्रबाव ऩडता है । इस प्रबाव को
‗जनाॊकककीम सॊक्रान्न्त मसर्द्ान्त‘ द्वाया स्ऩष्ट्ट ककमा जाता है न्जसके अनस
ु ाय-
1. ककसी बी अववकमसत याष्ट्र भें अमशऺा, फार वववाह एवॊ अन्म धामभथक ववश्वासों के कायण जन्भ-दय
अर्धक होती है तथा स्वास्थ्म सवु वधाओॊ के अबाव भें भत्ृ मु-दय बी अर्धक होती है । इसमरए भानव-शन्क्त
भें ववशेष ववृ र्द् नहीॊ होती।

2. ककसी बी ववकासशीर याष्ट्र भें स्वास्थ्म सुववधाओॊ के फढ़ने से भत्ृ मु-दय कभ होती है ककन्तु
जन्भ-दय भें कोई ववशेष कभी नहीॊ होती। इससे जनसॊख्मा भें ववृ र्द् होती है तथा प्राकृनतक सॊसाधनों का
ववदोहन अर्धक होने रगता है । ऐसा होने से प्रनत व्मन्क्त आम भें ववृ र्द् होती है । ककन्तु एक सीभा से
अर्धक जनसॊख्मा फढ़ जाने ऩय ववऩयीत प्रबाव ऩडने रगता है न्जसे दयू कयने के मरए भानव-शन्क्त का
ननमोजन आवश्मक हो जाता है ।

3. ककसी बी ववकमसत याष्ट्र भें मशऺा की ववृ र्द् एवॊ यहन-सहन का स्तय ऊॉचा होने के कायण रूटढ़वाटदता एवॊ
ऩायम्ऩरयक दृन्ष्ट्टकोण सभाप्त हो जाता है न्जससे जन्भ-दय भें कभी आ जाती है । तथा स्वस्थ सेवाओॊ एवॊ
उत्ऩादन भें ववृ र्द् के कायण भत्ृ मु-दय भें बी कभी आती है । इसमरए भानव-शन्क्त भें ववृ र्द् होती है तथा
सभाज भें आर्थथक सॊतुरन की न्स्थनत फन जाती है ।

प्रश्न 6.
भानवीम सॊसाधनों का ववकास ककन ववर्धमों द्वाया ककमा जा सकता है ?
उत्तय-
िी० डब्ल्मर् ु ज (T.W. Schultz) का भत है कक भानवीम साधनों का ववकास ननम्नमरखखत ऩाॉच ववर्धमों से
ू ल्
ककमा जा सकता है -
1. कामथयत प्रमशऺण की व्मवस्था कयके ,
2. वमस्क श्रमभकों के मरए अध्ममन कामथक्रभों का सॊगठन कयना , न्जसभें कृवष सॊफॊधी ववस्ताय ।
कामथक्रभ सन्म्भमरत हों,
3. ऐसी स्वास्थ्म सेवाएॉ , सन्म्भमरत कयना न्जनसे रोगों का जीवन-स्तय, शन्क्त एवॊ तेज भें ववृ र्द् हो,
4. प्रायन्म्बक, भाध्ममभक एवॊ उच्चतय स्तय ऩय सॊगटठत मशऺा की व्मवस्था कयना तथा
5. व्मन्क्तमों व ऩरयवायों को स्थान ऩरयवनतथत कयके उन्हें नौकयी के अवसयों से सभामोन्जत कयना। |
इस सच
ू ी भें तकनीकी सहामता, ववशेषऻों, तथा सराहकायों का आमात कयना बी जोडा जा सकता है ।

दीघश रघु उत्तयीम प्रश्न
प्रश्न 1.
आर्थथक ववकास की प्रकृनत स्ऩष्ट्ट कीन्जए।
उत्तय-
आर्थथक ववकास के ननम्नमरखखत प्रभुख रऺण इसकी प्रकृनत को स्ऩष्ट्ट कयते हैं-
1. आचथशक विकास एक प्रकिमा- आर्थथक ववकास ककसी ववशेष आर्थथक न्स्थनत का ऩरयचामक नहीॊ है । मह तो
प्रकक्रमा है जो अववकमसत मा अर्द्थववकमसत सभाजों के उन प्रमासों को प्रकट कयती है जो एक ववशेष सभम
सन्दबथ भें उने रक्ष्मों की प्रान्प्त से सॊफॊर्धत हैं न्जनके द्वाया वह
सभाज ववकमसत अथवा औद्मोगीकृत सभाजों के रूऩ भें रूऩान्तरयत होने के मरए कयता है ।
2. एक, चेतन प्रकिमा- आर्थथक ववकास एक चेतन प्रकक्रमा है न्जसभें ववकास के स्ऩष्ट्ट रक्ष्म ननधाथरयत ककए
जाते हैं औय उनकी प्रान्प्त के मरए कामथक्रभ ननमोन्जत ककमा जाता है ।
3. निोददत याष्ट्रों की तीसयी दनु नमा से सॊफचॊ धत- मह प्रकक्रमा ववशेषत् एमशमा औय अिीका के उन याष्ट्रों भें घटटत
हो यही है जो औद्मोगीकयण की याह भें वऩछडे हुए हैं। वे अऩनी ऩयम्ऩयागत कृवष व्मवस्था भें औद्मोर्गक
अथथव्मवस्था की ओय अग्रसय हो यहे हैं। उनके अऩने ववमबन्न भॉडर औय प्रमास हैं।
4. सॊिभणकासरक क्स्थनत- उऩमक्
ुथ त ववशेषता इस फात को बी प्रकट कयती है कक आर्थथक ववकास की प्रकक्रमा
सॊक्रभण अथवा रूऩान्तय के दौय से सॊफॊर्धत है । ववकास के एक ननन्श्चत ब्रफॊद ु ऩय ऩहुॉचकय इस प्रकक्रमा का
अथथ औय सॊदबथ फदर जाता है क्मोंकक तफ तो सॊफॊर्धत याष्ट्र ववकमसत याष्ट्रों की श्रेणी भें आ चुके होते हैं।
प्रश्न 2.
ववकास के कुप्रबावों से फचने के मरए हभें अऩनी जीवन-शैरी भें ककस प्रकाय के फदराव राने होंगे ?
उत्तय-
ववकास का वैकन्ल्ऩक प्रारूऩ ववकास की भहॉगी, ऩमाथवयण की नुकसान ऩहुॉचाने वारी औय प्रौद्मोर्गकी से
सॊचामरत सोच से दयू होने का प्रमास कयता है । ववकास को दे श भें भोफाइर पोनों की सॊख्मा अत्माधुननक
हर्थमायों अथवा कायों की फढ़ती सॊख्मा से नहीॊ फन्ल्क रोगों के जीवन की उस गुणवत्ता से नाऩा जाना
चाटहए, जो उनकी प्रसन्नता, सुख-शाॊनत औय फुननमादी आवश्मकताओॊ के ऩूया होने भें झरकती है ।
एक स्तय ऩय प्राकृनतक सॊसाधनों को सॊयक्षऺत यखने औय ऊजाथ के ऩुन् प्राप्त हो सकने वारे स्रोतों का
मथासॊबव उऩमोग कयने के प्रमास ककए जाने चाटहए। वषाथ जर सॊचमन , सौय एवॊ जैव गैस सॊमन्त्र, रघु-
ऩनब्रफजरी ऩरयमोजना, जैव कचये से खाद फनाने के मरए कम्ऩोस्ट ग्ढे फनाना आटद इस टदशा भें सॊबव
प्रमासों के कुछ उदाहयण हैं। फडे सध
ु ाय को प्रबावी फनाने के मरए फडी ऩरयमोजनाएॉ ही एकभात्र तयीका नहीॊ
हैं। फडे फाॉधों के ववयोर्धमों ने छोटे फाॉधों की वकारत की है , न्जनभें फहुत कभ ननवेश की आवश्मकता होती
है औय ववस्थाऩन बी कभ होता है । ऐसे छोटे फाॉध नागरयकों के मरए अर्धक राबप्रद हो सकते हैं।

इसी के साथ-साथ हभें अऩने जीवन स्तय को फदरकय उन साधनों की आवश्मकताओॊ को बी कभ कयने
की आवश्मकता है , न्जनका नवीकयण नहीॊ हो सकता। मह एक उरझा हुआ भाभरा है । इसे चमन की
आजादी भें कटौती बी भाना जा सकता है , रेककन जीवन जीने के वैकन्ल्ऩक तयीकों की सॊबावनाओॊ ऩय
ववचाय-ववभशथ कयने का आशम अच्छे जीवन की वैकन्ल्ऩक दृन्ष्ट्ट को खोरकय स्वतॊत्रता औय सज
ृ नशीरता
की सॊबावना फढ़ाना बी है । ऐसी ककसी नीनत के मरए दे श-बय के रोगों औय सयकाय के फीच फडे ऩैभाने ऩय
सहमोग की आवश्मकता होगी। इसका अथथ होगा कक ऐसे भाभरों भें ननणथम रेने के मरए रोकतान्न्त्रक
ऩर्द्नत अऩनाई जाए। अगय हभ ववकास को ककसी की स्वतॊत्रता भें ववृ र्द् की प्रकक्रमा के रूऩ भें दे खते हैं औय
रोगों को ननन्ष्ट्क्रम उऩबोक्ता नहीॊ भानकय ववकास-रक्ष्मों को ननधाथरयत कयने भें सकक्रम बागीदायी भानते हैं ,
तो वैसे भसरों ऩय सहभनत तक ऩहुॉचना सॊबव है ।

प्रश्न 3.
भानवीम ववकास ऩय टटप्ऩणी मरखखए।
उत्तय-
ववकास का सवाथर्धक भहत्त्वऩूणथ ऩहरू ‗भानव‘ है । इसमरए ककसी बी दे श का आर्थथक ववकास वस्तुत: वहाॉ
की भानव-शन्क्त की अवस्था एवॊ उसके ववकास ऩय अत्मर्धक ननबथय कयता है । अॊतयाथष्ट्रीम ववकास सॊगठनों
के प्ररेखों एवॊ कामथक्रभों भें ववकास को जनसाधायण की भूरबूत आवश्मकताओॊ की ऩूनतथ के रूऩ भें दे खा
जा सकता है । सॊमक्
ु त याष्ट्र सॊघ की इस घोषणा के ऩश्चात ् कक ववकास का अनतॊभ रक्ष्म सबी को अच्छे
जीवन हे तु अर्धक अवसय प्रदान कयता है ‘ मशऺा, स्वास्थ्म, ऩोषण, आवास, साभान्जक कल्माण एवॊ ऩमाथवयण
सॊयऺण जैसी सवु वधाओॊ भें सध
ु ाय ऩय फर टदमा गमा है । इसी प्रकाय मन
ू ीसेप की ववकास सॊफॊधी नीनत ; जैसे
सुयक्षऺत जर, सॊतुमरत आहाय, स्वच्छ आवास, भौमरक मशऺा, भटहरा ववकास आटद अनेक दै ननक
आवश्मकताओॊ के प्रावधान ऩय केन्न्द्रत है । अॊतयाथष्ट्रीम श्रभ सॊगठन ने बी आधुननक ऺेत्र के ववकास की
आवश्मकताओॊ को अनदे खा ककए ब्रफना रोगों की भूरबूत आवश्मकताओॊ के अनुरूऩ उत्ऩादन मोजनाओॊ के
ववकास ऩय फर टदमा है ।
मद्मवऩ प्राकृनतक सॊसाधन, ऩॉज
ू ी ननभाथण, तकनीकी व नवाचाय, साभान्जक, धामभथक व याजनीनतक सॊस्थाएॉ ,
ववदे शी सहामता एवॊ अॊतयाथष्ट्रीम व्माऩाय की आर्थथक ववकास भें अऩनी-अऩनी भहत्त्वऩूणथ बूमभका है , तथावऩ
इन सफ से ‗भानव सॊसाधन के ववकास का प्रश्न जड ु ा हुआ है । भानव ववकास एवॊ आर्थथक ववकास साथ-
साथ चरने वारी कक्रमाएॉ हैं तथा एक के ब्रफना दस
ू यी की न तो कल्ऩना की जा सकती है औय न ही एक
दस
ू यी के ब्रफना आगे फढ़ सकती है । आर्थथक ववकास भें मॊत्र , उऩकयण, कच्चा भार, ववत्त इत्माटद अऩनी
ववशेष बूमभका का ननवाथह कयते हैं ककॊतु भानवीम कायक एवॊ भानवीम सहामता के ब्रफना आर्थथक ववकास का
कोई बी साधन न तो गनत प्राप्त कय सकता है औय न ही आर्थथक ववकास भें अऩना सभर्ु चत मोगदान ही
प्रदान कय सकता है । इसमरए मह भाना जाता है कक आर्थथक ववकास के सभस्त बौनतक सॊसाधन भानव के
मरए हैं औय भानव ही उनका उऩमोग आर्थथक ववकास के ननमभत्त कयता है ।

मटद भनुष्ट्म ऩूणथ ऺभता से कामथ कयता है तो बौनतक सॊसाधन बी अऩना ऩूया मोगदान आर्थथक ववकास भें
दे ते हैं, ककॊतु मटद भानव सॊसाधन की कभी होती है तो अन्म सॊसाधनों की सम्ऩूणत
थ ा के फावजूद मथेष्ट्ट
आर्थथक ववकास नहीॊ होता। आर्थथक ववकास भें एक ओय भानव के जीवन-स्तय को ऊॉचा उठाने का प्रमास
ककमा जाता है तथा दस
ू यी ओय आर्थथक ववकास स्वमॊ भानवीम साधनों द्वाया सम्ऩन्न ककमा जाता है ।
भानवीम ऩॉज
ू ी भें ववृ र्द् से ही ववश्व के ववकमसत याष्ट्रों ने ववकास की गनत को फढ़ामा है तथा आज आर्थथक
ववृ र्द् की प्रकक्रमा भें भानवीम सॊसाधन को भहत्त्वऩण
ू थ भानते हुए भानव ऩॊज
ू ी भें ननवेश की ववचायधाया
ववकमसत हुई है ।

प्रश्न 4.
केन सायो वीवा के ववषम भें आऩ क्मा जानते हैं ?
उत्तय-
सन ् 1950 भें नाइजीरयमा के ओगोनी प्रान्त भें तेर ऩामा गमा। जल्द ही आर्थथक ववृ र्द् औय फडे व्माऩाय के
दावेदायों ने ओगोनी के चायों ओय याजनीनतक ष्मन्त्र , ऩमाथवयणीम सभस्माओॊ औय भ्रष्ट्टाचाय का घना ताना-
फाना फन
ु टदमा। इसने उसी ऺेत्र के ववकास को योक टदमा जहाॉ तेर मभरा था। केन सायो वीवा जभ से एक
ओगोनीवासी थे औय 1980 के दशक भें एक रेखक, ऩत्रकाय एवॊ टे रीववजन ननभाथता के रूऩ भें जाने जाते
थे। अऩने काभ के दौयान उन्होंने दे खा कक तेर औय गैस उद्मोग ने गयीफ ओगोनी ककसानों के ऩैयों के
नीचे दफे खजाने को रूट मरमा औय फदरे भें उनकी जभीन को प्रदवू षत औय ककसानों को फेघय कय टदमा।
सायो वीवा ने अऩने चायों ओय होने वारे इस शोषण ऩय प्रनतकक्रमा दजथ की। सायो वीवा ने सन ् 1990 भें
एक खुरे, जभीनी औय सभुदाम ऩय टटके हुए याजनीनतक आॊदोरन द्वाया अटहॊसक सॊघषथ का नेतत्ृ व ककमा।
आॊदोरन का नाभ ‗भूवभेण्ट पॉय सयवामवर ऑप ओगोनी ऩीऩर‘ था। आॊदोरन इतना असयदाय हुआ कक
तेर कॊऩननमों को 1993 तक ओगोनी से वाऩस जाना ऩडा। रेककन सायो वीवा को इसकी कीभत चक
ु ानी
ऩडी। नाइजीरयमा के सैननक शासकों ने उसे एक हत्मा के भाभरे भें पॊसा टदमा औय सैननक न्मामार्धकयण
ने उसे पाॉसी की सजा सनु ा दी। सायो वीवा का कहना था कक सैननक ऐसी शैर ‘ नाभक उस फहुयाष्ट्रीम तेर
कॊऩनी के दफाव भें कय यहे हैं न्जसे ओगोनी से बागना ऩडा था। दनु नमाबय के भानवार्धकाय सॊगठनों ने
इस भक
ु दभे को ववयोध ककमा औय सायो वीवा को छोड दे ने का आह्वान ककमा। ववश्वव्माऩी ववयोध की
अवहे रना कयते हुए नाइजीरयमा के शासकों ने सन ् 1995 भें सायो वीवा को पाॉसी दे दी।

दीघश उत्तयीम प्रश्न


प्रश्न 1.
ववकास का अथथ एवॊ ऩरयबाषा मरखखए।
उत्तय-
याजनीनतक ववऻान भें ववकास शब्द का प्रमोग अनेक अथों भें ककमा गमा है । उदाहयण के मरए ,
औद्मोर्गकीकयण की प्रकक्रमा तथा आर्थथक एवॊ याजनीनतक सॊगठनों की कामथकुशरता भें ववृ र्द् के मरए शब्द
का प्रमोग ककमा गमा है । अनेक ववद्वानों ने ववकास शब्द का प्रमोग दो प्रकाय के दे शों-ववकमसत
(Developed) तथा ववकासशीर (Developing) भें बेद कयने के मरए ककमा है । वास्तव भें , ववकास (जोकक
जैववक एवॊ सावमववक अवधायणा है ) की अवधायणा का साभान्जक ववऻानों के अध्ममनों भें प्रमोग ककए
जाने का एक प्रभख
ु कायण ही नए याष्ट्रों का उदम तथा उनके द्वाया ववमबन्न साभान्जक सभस्माओॊ के
सभाधान के प्रमास हैं। नवीन याष्ट्रों के सम्भुख एक प्रभुख सभस्मा दे श को आर्थथक एवॊ याजनीनतक दृन्ष्ट्ट
से सदृ
ु ढ़ फनाने तथा याष्ट्र-ननभाथण कयके सभस्माओॊ के सभाधान की यही है ।
ववकास शब्द से अमबप्राम उन्नत टदशा भें ववबेदीकयण है जो कक अनेक दशाओॊ भें ववृ र्द् इत्माटद भें दे खा
जा सकता है । इन दशाओॊ भें तीन दशाएॉ प्रभुख हैं-

1. श्रभ-ववबाजन भें ववृ र्द्,


2. सॊस्थाओॊ औय समभनतमों की सॊख्मा भें ववृ र्द् तथा
3. सॊचाय साधनों भें ववृ र्द्। इस शब्द का प्रमोग केवर ऩरयभाणात्भक ववृ र्द् के मरए ही नहीॊ ककमा जाता
अवऩतु सॊगठन की कामथकुशरता भें ववृ र्द् के मरए बी ककमा जाता है ।
एस०एप० नैडर (S.F. Nadel) के अनुसाय ववकास शब्द से तात्ऩमथ केवर उस ऩरयवतथन से नहीॊ है । न्जससे
कोई अप्रकट अथवा नछऩी चीज साभने आती है , अवऩतु इनका सॊफॊध सॊबाववत ऩरयवतथनों से बी है । उनका
कहना है कक ववकास की प्रकक्रमा का अनतॊभ रूऩ ही ककसी सभाज को प्रगनत की अवस्था तक ऩहुॉचाता है ।
अर्धकाॊश ववद्वान ् (जैसे ऩायसन्स इत्माटद) ववकास शब्द का प्रमोग उन ऩरयवतथनों के मरए कयते हैं जो
औद्मोगीकयण के कायण साभान्जक, आर्थथक एवॊ याजनीनतक सॊस्थाओॊ ऩय ऩरयरक्षऺत होते हैं।
एस० चोडक (S. Chodak) के अनुसाय, ववकास शब्द का प्रमोग अनेक अथों भें कक्रमा जाता है , न्जनभें से चाय
का उल्रेख उन्होंने अऩनी ऩुस्तक सोसाइिर डडिेरऩभेण्ि (Societal Development) भें ककमा है । मे अथथ हैं-
1. उववकास (Evolution) के दृन्ष्ट्टकोण के अनुसाय ववकास सॊगठन की उच्च अवस्था की ओय होने
वारी आकन्स्भक प्रकक्रमा है जोकक धीभी गनत से होती है ।
2. उत्ऩन्त्त (Genetic) सॊफॊधी दृन्ष्ट्टकोण के अनुसाय ववकास आॊतरयक तत्त्वों भें ववृ र्द् है ।
3. सॊयचनात्भक-प्रकामाथत्भक (Structural-functional) दृन्ष्ट्टकोण के अनुसाय ववकास सॊयचना औय
प्रकामों भें ऩरयवतथन की एक ननयॊ तय प्रकक्रमा है न्जसके ऩरयणाभस्वरूऩ ववशेषीकयण , ववबेदीकयण, अॊगों
की ऩायस्ऩरयक आर्श्रतता तथा सभग्र की स्वतन्त्रता भें ववृ र्द् होती हैं।
4. ननणाथमकवाद (Determinism) दृन्ष्ट्टकोण के अनस
ु ाय ववकास स्वत् होने वारी ऩरयवतथन की एक
जटटर प्रकक्रमा है न्जसके द्वाया सॊयचनाओॊ व अन्तकक्रमाओॊ भें जटटरता आ जाती है ।
प्रश्न 2.
सॊऩोवषत मा सतत ववकास से क्मा आशम है ? इसके रक्ष्म क्मा है ?
उत्तय-
आज सम्ऩूणथ ववश्व भें सॊऩोवषत ववकास ऩय ववशेष फर टदमा जा यहा है । मह ववकास की वह प्रकक्रमा है
न्जसे कोई बी दे श अऩने सॊसाधनों द्वाया इसे दीघथकारीन अवर्ध तक फनाए यख सकता है । इस प्रकाय के
ववकास द्वाया वतथभान की आवश्मकताएॉ तो ऩूयी होती ही हैं , साथ ही बववष्ट्म की ऩीटढ़मों की आवश्मकताओॊ
के प्रनत जवाफदे ही बी ननन्श्चत की जाती है । इसका अथथ ऐसा ववकास है जो ने केवर भानव सभाज की
तत्कामरक आवश्मकताओॊ की ऩूनतथ ऩय फर दे ता है अवऩतु स्थामी तौय ऩय बववष्ट्म के मरए बी ननवाथध
ववकास का आधाय प्रस्तत
ु कयता है । सॊऩोवषत ववकास की धायणा सवथप्रथभ सन ् 1987 ई० भें िटरैण्ड
प्रनतवदे न भें सन्म्भमरत की गई न्जसभें इस तथ्म ऩय जोय टदमा गमा कक आर्थथक ववकास की ऐसी ऩर्द्नत
फनाई जानी चाटहए न्जससे बावी ऩीटढ़मों के ववकास ऩय ककसी प्रकाय की , आॉच न आए। इस प्रकाय का
सॊयऺण सकायात्भक प्रकृनत का होता है न्जसके अॊतगथत ऩारयन्स्थनतकीम तॊत्र के तत्त्वों का सॊचम , यखयखाव,
ऩुनस्र्थाऩन, दीघाथवर्धक उऩमोग एवॊ अमबववृ र्द् सबी सभाटहत होती है ।
सॊऩोवषत ववकास की धायणा ववकास को केवर आर्थथक एवॊ औद्मोगीकयण के ऩहरू से ही नहीॊ दे खती
अवऩतु इसभें उसके साभान्जक-साॊस्कृनतक ऩहरुओॊ ऩय बी सभुर्चत ववचाय ककमा जाता है । आर्थथक ववकास
के साथ-साथ भानव के जीवन-स्तय भें गुणात्भक सुधाय फनाए यखना सॊऩोवषत ववकास का प्रभुख रक्ष्म है ।
ववकास के ववश्रेषण का मह ऩरयप्रेक्ष्म सभग्र ववकास ऩय फर दे ता है । सॊऩोवषत ववकास एक फहुभुखी धायणा
है न्जसभें सभानता, साभान्जक सहबार्गता, ऩमाथवयण सॊयऺण की ऺभता ववकेन्द्रीकयण, आत्भ-ननबथयता, भानव
की भूरबूत आवश्मकताओॊ की ऩूनतथ इत्माटद को सन्म्भमरत ककमा जाता है । सॊऩोवषत ववकास हे तु आवश्मक
है कक प्रत्मेक व्मन्क्त को बोजन, वस्त्र औय आवास के साथ-साथ ब्रफजरी, ऩानी ऩरयवहन एवॊ सॊचाय जैसी
फुननमादी सुववधाएॉ उऩरब्ध हों। इसके साथ ही भनुष्ट्म का स्वास्थ्म अच्छा हो तथा उसे काभ कयने हे तु
प्रदष
ू णयटहत ऩमाथवयण, ऩोवषत आहाय तथा र्चककत्सा सवु वधाएॉ ऩमाथप्त भात्रा भें उऩरब्ध हो सकें।

सॊऩोवषत ववकास जनसाधायण को आर्थथक गनतववर्धमों भें योजगाय के अवसय प्रदान कयने ऩय फर दे ता है
ताकक उनका जीवन-स्तय ऊॉचा हो सके। सॊऩोवषत ववकास का रक्ष्म आर्थथक ववकास , साभान्जक सभानता एवॊ
न्माम तथा ऩमाथवयण सॊयऺण भें ववृ र्द् कयना है । अन्म शब्दों भें मह कहा जा सकता है कक सॊऩोवषत ववकास
का रक्ष्म आर्थथक, ऩमाथवयणीम एवॊ साभान्जक आवश्मकताओॊ भें सॊतर
ु न फनाए यखना है ताकक वतथभान एवॊ
बावी ऩीटढ़मों की आवश्मकताओॊ की ऩूनतथ हो सके। इसके ननम्नमरखखत चाय रऺण हैं-

1. साभान्जक प्रगनत एवॊ सभानता,


2. ऩमाथवयणीम सॊयऺण,
3. प्राकृनतक सॊसाधनों का सॊयऺण,
4. स्थामी आर्थथक ववृ र्द्।
सॊऩोवषत ववकास एक ऐसा दीघथकारीन एवॊ सभकारीन ऩरयप्रेक्ष्म है जो स्वस्थ सभुदाम के ववकास के रक्ष्म
को प्राप्त कयने हे तु आर्थथक , ऩमाथवयणीम एवॊ साभान्जक भुद्दों की ओय सॊमुक्त रूऩ से ध्मान दे ता है तथा
सम्ऩण
ू थ प्राकृनतक सॊसाधनों के अत्मर्धक उऩबोग से फचने का प्रमास कयता है । इस प्रकाय का ववकास हभें
अऩने प्राकृनतक स्रोतों को फचाने एवॊ उनभें ववृ र्द् कयने की प्रेयणा दे ता है । सॊऩोवषत ववकास की धायणा को
अनेक उदाहयणों द्वाया स्ऩष्ट्ट ककमा जा सकता है । सबी जानते हैं कक बमू भ के नीचे ऩानी का स्तय घटता
जा यहा है एवॊ ऩानी की भात्रा कभ होती जा यही है । आने वारे दशकों भें ऩानी की भात्रा इतनी कभ हो
जाएगी कक इसके मरए बी सॊघषथ होने रगेगा। मटद कोई दे श सॊऩोवषत ववकास द्वाया इस सभस्मा का हर
कयना चाहता है तो उसे न केवर ऩानी का उऩमोग कभ कयना होगा अवऩतु इसभें ववृ र्द् के उऩाम बी
खोजने होंगे। इसी बाॉनत, औद्मोर्गक ववकास के सभम ऩमाथवयणीम सॊयऺण एवॊ सॊतुरन का ध्मान यखना
होगा। ननधथनता एवॊ स्वास्थ्म का ननम्न स्तय ऩयस्ऩय जुडे हुए हैं। इसके सभाधान हे तु ऐसी मोजना फनाने
की आवश्मकता है कक योगों की योकथाभ हे तु प्रबावी उऩाए ककए जाएॉ साथ ही ननधथनता उन्भूरन के
कामथक्रभ रागू ककए जाएॉ।

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