Physical Health, Diseases and Mode of Treatment Opted by Indian Army Ex-Servicemen: A Sociological Study
Physical Health, Diseases and Mode of Treatment Opted by Indian Army Ex-Servicemen: A Sociological Study
Physical Health, Diseases and Mode of Treatment Opted by Indian Army Ex-Servicemen: A Sociological Study
11(12), 551-562
RESEARCH ARTICLE
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1. प्रस्तावना
भारत के सशस्त्र बल विश्ि के सबसे बडे सशस्ि बलोिं में से एक हैं , जो विवभन्न सिंिगों में दस लाख से अवधक कवमवयोिं को सेिा
)रोजगार( दे ते हैं। भारतीय सशस्ि बलोिं को युिा बनाए रखने के वलए, भारतीय र्थल सेना, िायु सेना और नौ सेना प्रत्येक िषव
लगभग 55,000 सैवनकोिं को अवनिायव रूप से सेिावनिृत्त करती है। ऐसे सैवनक वजन्हें सशस्त्र बलोिं से सेिावनिृत्त कर वदया जाता
है, िे सेिावनिृत्त या भूतपूिव सैवनक कहलाते हैं (राि,1995)।
भारतीय र्थल सेना भारतीय सशस्ि बल की भूवम आधाररत शाखा है और भारतीय सशस्त्र बल का सबसे बडा घटक है।
भारतीय र्थल सेना का प्रार्थवमक वमशन राष्ट्र की सुरक्षा और दे श की एकता सुवनवित करना है। यह अपनी सीमाओिं के भीतर
शािं वत और सुरक्षा बनाए रखने के वलए बाहरी आक्रमण और आिं तररक खतरोिं से राष्ट्र की रक्षा करती है। इसके अलािा, भारतीय
र्थल सेना प्राकृवतक आपदाओिं और अन्य समस्याओिं के दौरान मानिीय बचाि अवभयान भी चलाती है (िमाव , 2008:05)। ितवमान
अध्ययन में, सेिावनिृत्त सैवनकोिं का अर्थव एक ऐसे व्यख्यक्त को सिंदवभवत करता है , वजसने वनयवमत रूप से भारतीय र्थल सेना में एक
लडाकू या गैर-लडाकू के रूप में वकसी भी श्रेणी/ रैं क/पद पर सेिा प्रदान की है और इस तरह की सेिा से उसे सेिावनिृवत्त/
राहत/छु ट्टी दे दी गई है , चाहे िह उसके अपने अनुरोध पर हो या वचवकत्सा आधार पर या उसकी सेिा शतों के िषव पूरा होने पर।
1.1. समस्या का स्पष्टीकरण
केन्द्रीय सैवनक बोर्व )तुलनात्मक विश्लेषण, 2020) के अनु सार भारत दे श में 22.56 लाख सेिावनिृत्त सैवनक हैं, जो एक अवद्वतीय
समूह हैं, और यह अच्छी तरह से प्रवशवक्षत, अनुशावसत और कतवव्य के प्रवत समवपवत होते हैं। पूरी सेिा अिवध के दौरान, भारतीय
र्थल सेना के सैवनक एक सिंरवक्षत सिंगठनात्मक प्रणाली में रहते हैं । सावर्थयोिं के सार्थ उनके अिंतर-व्यख्यक्तगत सिंबिंध और आचरण
अच्छी तरह से पररभावषत वनयमोिं और मानदिं र्ोिं द्वारा वनयिंवित होते हैं। भारतीय सेना में सेिा के दौरान इसके सैवनकोिं को
अवधकािं शतः नागररक जीिन शैली की िास्तविकताओिं से काट वदया जाता है। इसवलए नागररक समाज में एकाएक प्रिेश से
सेिावनिृत्त सैवनकोिं को पुन: स्र्थावपत होने के वलए अपने वदन-प्रवतवदन के कायों में कई समस्याओिं का सामना करना पडता है।
वजनमें से एक समस्या स्वास्थ्य की है।
विश्ि स्िास््य सिंगठन )1948( ने स्वास्थ्य को "पूणव शारीररक, मानवसक और सामावजक कल्याण की ख्यस्र्थवत के रूप में
पररभावषत वकया है , न वक केिल बीमारी और दु बवलता की अनुपख्यस्र्थवत के रूप में " (अमज़त और रज़ूम,2014:21)। विश्ि
स्िास््य सिंगठन ने स्िास््य को तीन आयामोिं (शारीररक, मानवसक और सामावजक( के रूप में पररभावषत वकया है। लेवकन इस
लेख के अिंतगवत भारतीय र्थल सेना से सेिावनिृत्त हुए सैवनकोिं की शारीररक स्िास््य की समस्याओिं और इन समस्याओिं के
समाधान हेतु उनके द्वारा अपनाई गई वचवकत्सा पद्धवतयोिं का विश्लेषण वकया गया है।
शोधकताव ने वप्रिंट और इलेक्ट्रॉवनक मीवर्या सवहत वपछले प्रासिंवगक लेखोिं की वििेचना की है। जो कुछ इस प्रकार हैं-
मोररन ररच (2011) ने इस बात का पता लगाने के वलए एक अध्ययन वकया है वक क्ोिं कुछ पूिव सैवनकोिं को नागररक जीिन के
सार्थ तालमेल वबठाने में कवठनाई होती है , जबवक अन्य वबना वकसी कवठनाई के नागररक समाज में पररितवन कर लेते है ? इस
प्रश्न का उत्तर दे ने के वलए, प्यू ररसचव सेंटर के 1853 सेिावनिृत्त सैवनकोिं के सिेक्षण के आधार पर प्यू शोधकताव ओिं ने सेिावनिृत्त
सैवनकोिं के दृवष्ट्कोण, अनु भि और जनसािं ख्यिकीय विशेषताओिं का विश्लेषण वकया और चार प्रकार के कारक )श्रेणी / रैं क,
वशक्षा का स्तर, सेना में भती होने के कारण, और धमव( बताए, जो सेिावनिृवत्त के बाद नागररक समाज में समायोवजत होने के वलए
मदद करते है। अध्ययन के अनु सार, जो सेिावनिृत्त सैवनक कमीशन अवधकारी र्थे और वजन्होिंने स्नातक की उपावध प्राप्त की र्थी,
उनके वलए, हाई स्कूल उत्तणी अन्य सेिावनिृत्त सैवनकोिं की तुलना में आसानी से नागररक समाज में समायोवजत होने की
सिंभािना अवधक र्थी।
महाराजन और सुब्रमवण )2014( ने भारतीय िायु सेना के अवधकाररक रैं क से नीचे की श्रेणी के सेिावनिृत्त हुए सैवनकोिं
की पुनिाव स समस्याओिं जैसे; वित्तीय कवठनाई, नागररक समाज के सार्थ समायोजन, पररिार या दोस्तोिं का समर्थवन आवद पर ध्यान
केंवित वकया है। अध्ययन में तवमलनार्ु राज्य के दो वजले , कोयिंबटू र और नीलवगरी को शावमल वकया गया। इन्होिंने अपने
अध्ययन में प्रार्थवमक त्योिं को मािात्मक और गुणात्मक दोनोिं प्रवतवक्रयाओिं से युक्त एक मान्य प्रश्नािली के माध्यम से एकवित
वकया है। अपने इस अध्ययन में इन्होिंने पाया वक सेिावनिृत्त सैवनकोिं के वलए पुनिाव स का स्र्थान और रोजगार के अिसरोिं का
चुनाि एक दू सरे पर प्रभाि र्ालता है। कई सेिावनिृत्त सैवनक पुनिाव स की प्रवक्रया में अवनवितताओिं के कारण स्र्थान और
रोजगार के सिंबिंध में सही वनणवय लेने में असमर्थव हैं। चूिंवक इस वनणवय के सार्थ सेिावनिृत्त सैवनकोिं के बच्ोिं की वशक्षा से जुडी
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समस्याएिं भी हैं। इसवलए, एक सेिावनिृत्त सैवनक को अपने पुनिाव स के वलए उपलब्ध सीवमत विकल्ोिं में से एक को चुनना अत्यिंत
कवठन वनणवय है।
निीन, अशोक, आवद (2015) ने एक सिेक्षण के माध्यम से यह जानने का प्रयास वकया है वक भारतीय सेना के भूतपूिव
सैवनकोिं ने जब पॉलीख्यिवनक द्वारा दी जाने िाली सेिा का प्रयोग वकया, तो िे उसकी सेिाओिं से वकतने सिंतुष्ट र्थे। यह अध्ययन
भारत के ई.सी.एच.एस. पॉलीख्यिवनक पर आधाररत है , वजसमें एक सिंरवचत अनु सूची का उपयोग करके त्योिं को एकवित वकया
गया है। अध्ययन के वलए कुल 400 भूतपूिव सैवनकोिं का साक्षात्कार वलया गया। इन्होिंने अपने अध्ययन में पाया वक पॉलीख्यिवनक
द्वारा प्रदान की जाने िाली सेिाएिं अच्छी र्थीिं। उत्तरदाताओिं में से वकसी ने भी पॉलीख्यिवनक द्वारा दी जा रही सेिाओिं को खराब
नहीिं माना।
जेफरी पी., माइकल, आवद )2016) ने अपने अध्ययन में यह जानने का प्रयास वकया वक वकसी व्यख्यक्त का सेना में भती
होते समय, सेना में पद पर रहते हुए एििं सेिावनिृवत्त के बाद वकस प्रकार का स्िास््य व्यिहार रहता है और सार्थ में इनकी तुलना
नागररक समाज के व्यख्यक्तयोिं के सार्थ भी की है। इनका यह अध्ययन वद्वतीयक त्योिं पर आधाररत है। वजसमें इन्होिंने पाया वक
सामान्य अमेररकी आबादी की तुलना में सैन्य सेिा में प्रिेश करने पर व्यख्यक्तयोिं का स्िास््य व्यिहार अच्छा र्था। लेवकन लिंबी सेिा
अिवध के बाद सैवनकोिं का स्िास््य व्यिहार सामान्य अमेररकी आबादी के समकक्ष र्था और सेिावनिृवत्त के बाद सैवनकोिं का
स्िास््य व्यिहार विशेष रूप से शारीररक गवतविवध, पोषण, तिंबाकू और शराब आवद क्षेिोिं में खराब र्था।
ओस्टर कैंवर्स (2017) ने अपने अध्ययन में सेिावनिृत्त सैवनकोिं के जीिन पर उनके व्यिसाय के कारण पडने िाले
प्रभािोिं की चचाव की है। कैंवर्स ने बताया वक अवधकािं श सेिारत सदस्योिं के वलए, सेना का उनके जीिन पर सकारात्मक प्रभाि
पडता है। हालािं वक, सेिा का प्रकार, तीव्रता, अिवध, और सैन्य से नागररक जीिन में पुनिाव स, आवद के कारण सेिावनिृत्त सैवनकोिं
के जीिन पर नकारात्मक प्रभाि भी पड सकता है। इस तरह के नकारात्मक पररणाम, बढ़ती सेिावनिृत्त आबादी के सार्थ,
सेिावनिृत्त सैवनकोिं की शारीररक, मानवसक और सामावजक भलाई के अवधक अन्वेषण की आिश्यकता को इिं वगत करते हैं । और
सार्थ में यह अध्ययन सेिावनिृत्त सैवनकोिं के मानवसक, शारीररक और सामावजक स्वास्थ्य के अिंतर-सिंबिंध को भी दशावता है।
विवलयमसन विक्ट्ोररया, हन्ना हारिुर्, आवद )2019) ने सेिावनिृत्त सैवनकोिं पर एक अध्ययन वकया। इस अध्ययन का
उद्दे श्य सेिावनिृत्त सैवनकोिं के शारीररक स्िास््य पर उनके व्यिसाय के प्रभाि का पता लगाना र्था। इस अध्ययन में अधव -सिंरवचत
गुणात्मक साक्षात्कार की सहायता से प्रार्थवमक त्य यूनाइटे र् वकिंगर्म से एकवित वकए गए है। इनके अनु सार सेिावनिृत्त
सैवनकोिं को अकसर जीिन के अिंत में शारीररक स्वास्थ्य समस्याओिं का अनु भि होता है ; हालािं वक, यह स्पष्ट् नहीिं है वक ये
समस्याएिं सैन्य सेिा के कारण हैं या आयु बढ़ने की प्रवक्रया की एक विशेषता के कारण हैं। अध्ययन के वनष्कषव के अनु सार
अवधकािं श सेिावनिृत्त सैवनकोिं ने सेिावनिृवत्त के बाद के जीिन में अच्छे शारीररक स्वास्थ्य की सू चना दी है, वजसका श्रेय उन्होिंने
सैन्य सेिा के दौरान विकवसत की गई तिंदुरुस्ती को वदया। हालािं वक, कई सेिावनिृत्त सैवनकोिं ने सेिा छोडने पर नई प्रवतबद्धताओिं
और सीवमत खे ल सुविधाओिं के कारण शारीररक गवतविवध के अपने िािं वछत स्तर को बनाए रखने में चुनौवतयोिं का िणवन भी वकया
है।
इस प्रकार, सेिावनिृत्त सैवनकोिं पर कई अध्ययन हुए हैं जैसे- उनका पुनिाव स, जीिन शैली सिंबिंवधत बीमाररयााँ , और
उनके जीिन पर बदलते सामावजक-आवर्थवक मानदिं र्ोिं और सैन्य सेिा का प्रभाि, आवद। लेवकन सेिावनिृत्त सैवनकोिं पर कुछ
अध्ययनोिं के बािजूद, सिंभितः ऐसा कोई समाजशास्त्रीय अध्ययन नहीिं है , जो भारतीय र्थल सेना से सेिावनिृत्त हुए सैवनकोिं की
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स्वास्थ्य समस्याओिं पर केंवित हो। इसवलए, इस प्रकार के अध्ययन को आयोवजत करने की आिश्यकता है , जो भारतीय र्थल
सेना से सेिावनिृत्त हुए सैवनकोिं की सामावजक-आवर्थवक पृष्ठभूवम एििं प्रदान की गई सेिा की रूपरे खा के सार्थ-सार्थ स्वास्थ्य सिंबिंधी
मुद्दोिं की पडताल करता हो।
1.2. अध्ययन का उद्दे श्य
उपयुवक्त चचाव और पृष्ठभूवम के आलोक में यह शोध लेख वनम्नवलख्यखत उद्दे श्योिं पर आधाररत है-
1. सेिावनिृत्त सैवनकोिं की सामावजक-आवर्थवक पृष्ठभूवम का पता लगाना।
2. सेिावनिृत्त सैवनकोिं की भारतीय र्थल सेना में प्रदान की गई सेिा की रूपरे खा को जानना।
3. सेिावनिृत्त सैवनकोिं के समक्ष आ रही शारीररक स्िास््य समस्याओिं की पहचान करना।
4. सेिावनिृत्त सैवनकोिं द्वारा उपयोग की जाने िाली वचवकत्सा प्रणावलयोिं एििं उनके माध्यम की जााँ च करना।
इस अध्ययन का प्रर्थम उद्दे श्य आयु , धमव, जावत, वशक्षा का स्तर, पररिार की प्रकृवत और कृवष योग्य भूवम के सिंदभव में
सेिावनिृत्त सैवनकोिं की सामावजक-आवर्थवक पृष्ठभूवम पर ध्यान केंवित करता है। दू सरे उद्दे श्य के अिंतगवत भारतीय र्थल सेना में
भती तर्था सेिावनिृत्त होने की आयु, सेिावनिृवत्त के समय श्रेणी / रैं क, सेिावनिृवत्त का िषव,आवद के सिंदभव में भारतीय र्थल सेना के
सेिावनिृत्त सैवनकोिं की प्रदत्त की गई सेिा की रूपरे खा को जानना है। तीसरे उद्दे श्य में भारतीय र्थल सेना से सेिावनिृत्त हुए
सैवनकोिं के समक्ष आ रही शारीररक स्वास्थ्य की समस्याओिं )सिंचारी रोग और गैर-सिंचारी रोग( की पहचान करना है। तर्था चौर्थे
उद्दे श्य के अिंतगवत शारीररक स्िास््य की समस्याओिं के समाधान करने के वलए सेिावनिृत्त सैवनक कौन-सी वचवकत्सा प्रणाली
)भारतीय, पविम, आवद( का प्रयोग, वकस माध्यम से करते है , इसकी जााँ च करना है।
2. श ध पद्धनत
शोध पद्धवत समस्या को व्यिख्यस्र्थत और िैज्ञावनक रूप से हल करने की एक विवध है (आहूजा, 2019:127)। अवधक विशेष रूप
से, यह इस बारे में है वक कैसे एक शोधकताव व्यिख्यस्र्थत रूप से िैध और विश्वसनीय पररणाम सुवनवित करने के वलए एक खाका
तैयार करता है, जो शोध के उद्दे श्योिं को सिंबोवधत करता है। यह शोध भारतीय र्थल सेना के सेिावनिृत्त सैवनकोिं के वलए काफी
प्रासिंवगक है। इसके अलािा, यह अध्ययन जूवनयर कमीशन अवधकाररयोिं )जे .सी.ओ.( तक की श्रेणी के उन सैवनकोिं पर केंवित है ,
वजन्हें भारतीय र्थल सेना से सेिावनिृत्त वकया गया है।
प्रस्तुत अध्ययन में सेिावनिृत्त सैवनकोिं का चुनाि करने के वलए गैर -सम्भावित प्रवतदशव )नॉन-प्रोबेवबवलटी प्रवतदशव( के
अिंतगवत व्यापक प्रवतचयन )स्नोबॉल सैंपवलिंग( को चुना गया है। व्यापक प्रवतचयन )स्नोबॉल सैंपवलिंग( के अिंतगवत अनु सिंधानकताव
कम उत्तरदाताओिं, जो उसके पररवचत होते है और उपलब्ध होते है, को लेकर अनु सिंधान शुरू करता है। बाद में यही लोग कुछ
नए उत्तरदाताओिं के नाम दे ते है। यह प्रवक्रया तब तक चलती रहती है , जब तक पयाव प्त सिंख्या में साक्षात्कार न हो जाए या जब
तक उत्तरदाता वमलने बिंद न हो जाए (आहूजा, 2019:185)। ितवमान अध्ययन में 100 सेिावनिृत्त सैवनकोिं से एक साक्षात्कार
अनु सूची और अिलोकन तकनीक का उपयोग करके प्रार्थवमक त्योिं को एकवित वकया गया है। त्योिं का सिंकलन करने के
वलए मुजफ्फरनगर )उत्तर प्रदे श( वजले की तहसील खतौली का चुनाि वकया गया है। आिं कडोिं का विश्लेषण सािं ख्यिकीय
तकनीक जैसे; सिंकेतीकरण, समूहीकरण, िगीकरण, सारणीकरण आवद के माध्यम से वकया गया है।
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उपरोक्त तावलका के आाँ कडोिं का अिलोकन एििं विश्ले षण करने पर ज्ञात होता है वक कुल 100 सेिावनिृत्त सैवनकोिं में से 10.0
प्रवतशत सेिावनिृत्त सैवनक 30 से 45 आयु िगव के, सिाव वधक 36 प्रवतशत 46 से 60 आयु िगव के, 35.0 प्रवतशत 61 से 75 आयु
िगव के और 19.0 प्रवतशत सेिावनिृत्त सैवनक 76 िषव या इससे अवधक आयु के है। सार्थ ही तावलका से पता चलता है वक
सिाव वधक 89.0 प्रवतशत सेिावनिृत्त सैवनक वहन्दू धमव को मानने िाले है तर्था 11.0 प्रवतशत मुख्यिम धमव से है। इसी क्रम में यवद
तावलका में जावत के आाँ कडोिं को दे खें, तो पता चलता है वक 49.0 प्रवतशत सिाव वधक सेिावनिृत्त सैवनक जाट, 30.0 प्रवतशत
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गुजवर, 05.0 प्रवतशत िाल्मीवक और 11.0 प्रवतशत मुख्यिम जाट है। यवद वशक्षा के स्तर को दे खें , तो 14.0 प्रवतशत सेिावनिृत्त
सैवनकोिं की वशक्षा का स्तर प्रार्थवमक, सिाव वधक 77.0 प्रवतशत का माध्यवमक और 09.0 प्रवतशत सेिावनिृत्त सैवनकोिं की वशक्षा का
स्तर तृतीयक है। पररिार के प्रकार और कृवष योग्य भूवम के आकडोिं पर प्रकाश र्ाले , तो पाएिं गे वक सिाव वधक 71.0 प्रवतशत
सेिावनिृत्त सैवनक सिंयुक्त पररिार से और 29.0 प्रवतशत एकल पररिार से है। सिाव वधक 99.0 प्रवतशत सेिावनिृत्त सैवनकोिं के पास
कृवष योग्य भूवम है और 01.0 प्रवतशत सेिावनिृत्त सैवनकोिं के पास कृवष योग्य भूवम नहीिं है।
इस प्रकार उक्त आाँ कडोिं के आधार पर यह वनष्कषव वनकलता है वक सिाव वधक सेिावनिृत्त सैवनक 46 से 60 िषव की
आयु िगव के, वहन्दू धमव को मानने िाले तर्था जाट जावत से है। वजनकी वशक्षा का स्तर माध्यवमक है, सिंयुक्त पररिार में रहते है
और उनके पास कृवष योग्य भूवम है।
3.2. से वाननवृत्त सै ननक ों द्वारा प्रदान से वा की रूपरे खा
भारतीय सेना के सेिावनिृत्त सैवनकोिं द्वारा प्रदान की गई सेिा की रूपरे खा का आकलन करना बहुत ही महत्वपूणव है। क्ोिंवक
जब कोई व्यख्यक्त सेना में शावमल होता है , तो िह युिा अिस्र्था में होता है। बचपन से युिा अिस्र्था तक वकसी बच्े का पालन
पोषण एक समाज में होने पर िह उस समाज को जानने और समझने लगता है , लेवकन युिा अिस्र्था में सेना में शावमल होने के
बाद, उसका समाज से बहुत कम सिंपकव रहता है। लेवकन जब कोई व्यख्यक्त सेना से सैवनक के रूप में सेिावनिृत्त होता है , तो
नागररक समाज में पुनः स्र्थावपत होने के वलए, उसे उस नागररक समाज का बहुत कम ज्ञान होता है। इस प्रकार िह समाज और
खु द के सार्थ कैसे तालमेल वबठाता है और खु द को कैसे स्वस्र्थ रखता है ? यह जानने के वलए, हमें भारतीय र्थल सेना से
सेिावनिृत्त हुए सैवनकोिं द्वारा प्रदान की गई सेिा की रूपरे खा को जानने की आिश्यकता है। जो वनम्न प्रकार से है-
तानलका -2 सेवाननवृत्त सैननक ों द्वारा प्रदान सेवा की रूपरे खा का नवश्लेषण
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उक्त तावलका के विश्ले षणोपरान्त यह स्पष्ट होता है वक कुल 100 सेिावनिृत्त सैवनकोिं में से सिाव वधक 71.0 प्रवतशत सेिावनिृत्त
सैवनक 20 िषव या इससे कम आयु में भारतीय र्थल सेना में भती हुए है तर्था 29.0 प्रवतशत 21 से 25 िषव की आयु िगव में भती हुए
है। भारतीय र्थल सेना से सेिावनिृत्त होने की आयु को आधार मानते हुए, यवद हम अिलोकन करें , तो पता चलता है वक, 20.0
प्रवतशत सेिावनिृत्त सैवनक 35 िषव या इससे कम िषव की आयु में, सिाव वधक 47.0 प्रवतशत 36 से 40 आयु िगव में, 15.0 प्रवतशत
41 से 50 िषव की आयु में तर्था 18.0 प्रवतशत सेिावनिृत्त सैवनक 51 या इससे अवधक िषव की आयु में भारतीय र्थल सेना से
सेिावनिृत्त हुए है। सार्थ में उपरोक्त तावलका से यह भी स्पष्ट होता है वक सिाव वधक 82.0 प्रवतशत सेिावनिृत्त सैवनक सेिावनिृवत्त
के समय गैर-कमीशन अवधकारी पद पर और 18.0 प्रवतशत जूवनयर कमीशन अवधकारी पद पर वनयुक्त र्थे। सिाव वधक 53.0
प्रवतशत सेिावनिृत्त सैवनकोिं की सेिावनिृवत्त का समय सन् 2000 से पहले का और 47.0 प्रवतशत की सेिावनिृवत्त सन् 2001 से
2020 के मध्य हुई है। इसी प्रकार सिाव वधक 59.0 प्रवतशत सेिावनिृत्त सैवनकोिं की सेिावनिृवत्त का कारण सेिा की शतों का पूरा
होना तर्था 41.0 प्रवतशत की सेिावनिृवत्त का कारण असामवयक है।
इस प्रकार उपरोक्त त्योिं के आधार पर यह वनष्कषव प्राप्त होता है वक अवधकािं श सेिावनिृत्त सैवनकोिं की भारतीय र्थल
सेना में भती की आयु 20 िषव या इससे कम और सेिावनिृवत्त की आयु 36 से 40 िषव के बीच है तर्था अवधकतर सेिावनिृत्त सैवनक
सेिा की शतों के पूरा होने पर गैर-कमीशन अवधकारी के पद से , सन् 2000 से पहले सेिावनिृत्त हुए है।
3.3. से वाननवृत्त सै ननक ों की शारीररक स्वास््य समस्याएों
रोग, वचवकत्सा-शास्त्र की मूलभूत धारणा है। शरीर के वकसी अिंग और उपािं ग की सिंरचना के बदल जाने या शरीर के पूणवरूपेण
कायव करने की क्षमता में कमी आने को रोग कहते है। रोग एक विशेष असामान्य ख्यस्र्थवत है, जो वकसी जीि या उसके वहस्से की
सिंरचना या कायव को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है , और यह वकसी तत्काल बाहरी चोट के कारण नहीिं है। रोगोिं को
अकसर वचवकत्सकीय ख्यस्र्थवतयोिं के रूप में जाना जाता है , जो विवशष्ट् सिंकेतोिं और लक्षणोिं से जुडी होती हैं। रोग बाहरी कारकोिं
जैसे- जीिाणु, विषाणु, प्रोटोजोआ, किक इत्यावद या आिंतररक विकारोिं के कारण हो सकते हैं (नागला,2018:150)। भारतीय र्थल
सेना से सेिावनिृत्त हुए सैवनकोिं की शारीररक स्िास््य की समस्या को दो भागोिं में विभावजत करके दे खा गया है- सिंचार और गैर-
सिंचारी। सेिावनिृत्त सैवनकोिं में शारीररक रोगोिं की तीव्रता का विश्लेषण वनम्नवलख्यखत िेन आरे ख में प्रदवशवत वकया गया है।
उपरोक्त िेन आरे ख के विश्लेषणोपरान्त पररलवक्षत होता है वक कुल 100 सेिावनिृत्त सैवनकोिं में से 68 सेिावनिृत्त सैवनक
शारीररक स्िास््य की समस्या से ग्रस्त है, वजनमें से 47 सेिावनिृत्त सैवनक केिल गैर-सिंचारी रोग से और 06 सेिावनिृत्त सैवनक
केिल सिंचारी रोग से पीवडत है। सार्थ में 15 सेिावनिृत्त सैवनक ऐसे भी है , जो सिंचारी एििं गैर-सिंचारी दोनोिं रोगोिं से पीवडत है।
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वजस कारण कुल गैर-सिंचारी रोग )अ+स( से ग्रवसत सेिावनिृत्त सैवनकोिं की सिंख्या 62 और कुल सिंचारी रोग )ब+स( से ग्रवसत
सेिावनिृत्त सैवनकोिं की सिंख्या 21 है।
उक्त त्योिं के आधार पर यह वनष्कषव वनकलता है वक अवधकािंश सेिावनिृत्त सैवनक गैर -सिंचारी रोगोिं से पीवडत है।
गैर-सिंचारी रोग ऐसी बीमाररयािं हैं , जो मुि रूप से लोगोिं की वदन-प्रवतवदन की आदतोिं पर आधाररत होती हैं। आदतें जो लोगोिं
की गवतविवधयोिं से विचवलत होती हैं और उन्हें एक गवतहीन वदनचयाव की ओर धकेलती हैं। गलत आदतें कई स्िास््य समस्याओिं
का कारण बन सकती हैं (तावबश, 2017(। भारतीय र्थल सेना सेिावनिृत्त सैवनकोिं में गैर-सिंचारी रोग का विश्ले षण वनम्नवलख्यखत
तावलका में प्रस्तुत वकया गया है-
तानलका -3. सेवाननवृत्त सैननक ों में गैर-सोंचारी र ग ों का नवश्लेषण
तावलका सिंख्या 3 के त्योिं का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है वक कुल 100 सेिावनिृत्त सैवनकोिं में से सिाव वधक 62.0 प्रवतशत
सेिावनिृत्त सैवनक गैर-सिंचारी रोगोिं से पीवडत है। गैर-सिंचारी रोगोिं में से सिाव वधक 34 सेिावनिृत्त सैवनक हृदय रोग से पीवडत है
तर्था इसके बाद दू सरे स्र्थान पर 23 सेिावनिृत्त सैवनक रक्त चाप की समस्या से पीवडत है। इसके बाद इसी क्रम में मधु मेह, दािं त,
गला इत्यावद ऐसे ही अन्य गैर-सिंचारी रोग सेिावनिृत्त सैवनकोिं में पाए गए है , जो उपरोक्त तावलका 3 में दशावये गए है।
उपरोक्त तावलका के आिं कडोिं से यह वनष्कषव प्राप्त होता है वक भारतीय र्थल सेना से सेिावनिृत्त हुए सैवनक गैर-सिंचारी
रोगोिं में सिाव वधक एक वतहाई हृदय रोग से और एक चौर्थाई रक्त-चाप रोग से पीवडत है।
सिंचारी रोग िे रोग हैं , जो एक व्यख्यक्त से दू सरे व्यख्यक्त में फैल सकते हैं और बडी सिंिा में लोगोिं को बीमार कर सकते हैं। ऐसे
रोग बैक्ट्ीररया, िायरस, किक, परजीिी, या विषाक्त पदार्थों जैसे कीटाणुओिं के कारण होते हैं। सेिावनिृत्त सैवनकोिं में सिंचारी रोग
के सिंदभव में सिंकवलत त्योिं का विश्लेषण वनम्नवलख्यखत तावलका में प्रस्तुत है-
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समस्या है।
3.4. से वाननवृत्त सै ननक ों के द्वारा प्रय ग की जाने वाली उपचार पद्धनत एवों माध्यम
िास्ति में भारतीय लोगोिं ने ज्ञान, साधन, कायव करने के तरीके और कौशल की एक विशाल विविधता हावसल की है। भारत में
वचवकत्सा उपचार एििं दे खभाल में भी वचवकत्सा प्रणावलयोिं की बहुलता है , वजसका भारतीय लोग लिंबे समय से उपयोग कर रहे हैं।
इसी क्रम में ही इस अध्ययन में भारतीय र्थल सेना से सेिावनिृत्त हुए सैवनकोिं के द्वारा प्रयोग की जाने िाली उपचार पद्धवतयोिं और
उनके माध्यमोिं का विश्लेषण नीचे दी गई तावलकाओिं में प्रस्तुत है-
तानलका -5 सेवाननवृत्त सैननक ों के द्वारा प्रय ग की जाने वाली उपचार पद्धनत का नवश्लेषण
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स्र्थान पर 06 सेिावनिृत्त सैवनक होम्योपैर्थी वचवकत्सा का लाभ लेते है। सार्थ में िैकख्यल्क वचवकत्सा पद्धवत के अिंतगवत अवधकतर
25 सेिावनिृत्त सैवनक लोक वचवकत्सा को अवधक महत्व दे ते है तर्था 03 सेिावनिृत्त सैवनक प्राकृवतक वचवकत्सा का लाभ लेते है।
उक्त त्योिं के आधार पर यह वनष्कषव प्राप्त होता है वक यवद सभी वचवकत्सा पद्धवतयोिं में तुलनात्मक रूप से दे खा जाए,
तो सिाव वधक सेिावनिृत्त सैवनक प्रर्थम स्र्थान पर एलोपैर्थी अर्थाव त् पविमी वचवकत्सा पद्धवत, वद्वतीय स्र्थान पर योग एििं तृतीय स्र्थान
पर लोक वचवकत्सा को महत्व दे ते है।
तानलका -6 सेवाननवृत्त सैननक ों के द्वारा प्रय ग की जाने वाली उपचार पद्धनत के माध्यम का नवश्लेषण
यवद हम तावलका सिंख्या 6 को दे खें, तो हमें पता चलेगा वक 68 सेिावनिृत्त सैवनकोिं में से सिाव वधक 37 सेिावनिृत्त सैवनक स्िास््य
वचवकत्सक के परामशव के अनु सार ही उपचार एििं दिाइयोिं का सेिन करते है , 06 सेिावनिृत्त सैवनक स्वयिं / बडोिं की सलाह पर
उपचार एििं दिाइयोिं का सेिन करते है तर्था 25 सेिावनिृत्त सैवनक दोनोिं )स्वयिं / बडोिं की सलाह पर और स्िास््य वचवकत्सकोिं( के
अनु सार उपचार या दिाइयोिं का सेिन करते है।
उपरोक्त तावलका में प्रस्तुत आिं कडोिं के आधार पर यह वनष्कषव प्राप्त होता है वक यवद हम तुलनात्मक रूप से दे खे, तो
सिाव वधक सेिावनिृत्त सैवनक स्िास््य वचवकत्सकोिं के अनु सार ही उपचार या दिाइयोिं का सेिन करते है।
सभी चीजोिं को ग्रहण कर इनका पालन करना होता है। सेिा के दौरान व्यख्यक्त इन सभी चीजोिं का पालन करते -करते नागररक
समाज से कटने लगता है और सैवनक समाज से पूणवतः जुडता जाता है। लेवकन जब कोई व्यख्यक्त भारतीय सेना की सेिा से
सेिावनिृत्त होकर अपने आप को नागररक समाज में वफर से स्र्थावपत करने की कोवशश करता है , तो उसे नागररक समाज की
नीवतयोिं, वनयमोिं, रीवत-ररिाजोिं, परिं पराओिं आवद विवभन्न चीजोिं के न पता होने या बहुत कम पता होने के कारण कई समस्याओिं
का सामना करना पडता है। वजनमें से एक शारीररक स्वास्थ्य की समस्या है।
इस अध्ययन में सेिावनिृत्त सैवनकोिं की शारीररक स्िास््य की समस्याओिं का अध्ययन वकया गया है। जहािं तक
अनु भिजन्य वनष्कषों का सिंबिंध है , अवधकािं श उत्तरदाता ितवमान में 46 से 60 िषव की आयु, वहिंदू धमव को मानने िाले और जाट
जावत से है। अवधकािं श सेिावनिृत्त सैवनकोिं की वशक्षा का स्तर माध्यवमक है तर्था उनके पास कृवष योग्य भूवम है। यवद हम
सेिावनिृत्त सैवनकोिं द्वारा भारतीय र्थल सेना में प्रदान की गई सेिा की रूपरे खा को दे खें, तो हमें पता चलेगा वक अवधकािं श
सेिावनिृत्त सैवनकोिं की भारतीय र्थल सेना में भती की आयु 20 िषव या इससे कम तर्था सेिावनिृवत्त की आयु 36 से 40 िषव के बीच
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है। सार्थ में अवधकािं शतः सेिावनिृत्त सैवनक सेिा की शतों के पूरा होने पर गैर-कमीशन अवधकारी के पद से , सन् 2000 से पहले
सेिावनिृत्त हुए है ।
सेिावनिृत्त सैवनकोिं की यवद शारीररक स्िास््य की समस्याओिं को दे खा जाए, तो अवधकािं शतः सेिावनिृत्त सैवनक गैर-
सिंचारी रोग से पीवडत है, जबवक सिंचारी रोग सेिावनिृत्त सैवनकोिं में बहुत कम मािा में है। यवद हम सेिावनिृत्त सैवनकोिं में गैर-
सिंचारी रोगोिं की बात करें , तो सिाव वधक सेिावनिृत्त सैवनक हृदय और रक्त-चाप सिंबिंधी समस्याओिं से पीवडत है तर्था सिंचारी रोग
में सिाव वधक बार-बार खािं सी या जुकाम होने की समस्या सिाव वधक है। सेिावनिृत्त सैवनक इन शारीररक स्िास््य की समस्याओिं के
वनराकरण के वलए अवधकािंशतः एलोपैर्थी )अिंग्रेजी( दिाइयोिं का प्रयोग करते है और इन दिाइयोिं का प्रयोग ये वचवकत्सकोिं की
परामशव के अनु सार करते है।
सेिावनिृत्त सैवनकोिं की स्वास्थ्य समस्याओिं पर वपछले अध्ययन, जैसे; विवलयमसन विक्ट्ोररया आवद (2019) ने अपने
अध्ययन में इस बात पर प्रकाश र्ाला है वक सेिावनिृवत्त के बाद अवधकािं श सेिावनिृत्त सैवनकोिं का शारीररक स्वास्थ्य अच्छा है ,
वजसका श्रेय उन्होिंने सैन्य सेिा के दौरान विकवसत की गई तिंदुरुस्ती को वदया। जेफरी पी हैबैक, माइकल हैबैक, आवद )2016) ने
अपने अध्ययन में पाया वक सामान्य अमेररकी आबादी की तुलना में सैन्य सेिा में प्रिेश करने पर व्यख्यक्तयोिं का स्िास््य व्यिहार
अच्छा र्था, लेवकन लिंबी सेिा अिवध के बाद सैवनकोिं का स्िास््य व्यिहार सामान्य अमेररकी आबादी के समकक्ष र्था और
सेिावनिृवत्त के बाद सैवनकोिं का स्िास््य व्यिहार विशेष रूप से शारीररक गवतविवध, पोषण, तिंबाकू और शराब आवद क्षेिोिं में
खराब र्था।
लेवकन ितवमान अध्ययन में, जो वदलचस्प तथ्य सामने आए है, उनके अनु सार अवधकािंशतः दो वतहाई सेिावनिृत्त सैवनक
शारीररक स्िास््य की समस्याओिं से ग्रस्त है , वजसमें से सिाव वधक समस्या गैर-सिंचारी रोगोिं में हृदय रोग, रक्तचाप आवद की है।
इस पररणाम को आधार मानते हुए कहा जा सकता है वक ितवमान अध्ययन का वनष्कषव विवलयमसन विक्ट्ोररया आवद के द्वारा
(2019) में वकए गए अध्ययन के पररणामोिं से वभन्न तर्था जेफरी पी हैबैक, माइकल हैबैक, आवद द्वारा )2016) में वकए गए
अध्ययन के पररणामोिं से र्थोडा वमलता-जुलता है।
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