अंग लिपि
अंग लिपि एगो प्राचीन लिपि छेकै। प्राचीन काल मँ अंगिका भासा लिखै लेली अंग लिपि केरौ उपयोग होय छेलै। बौद्ध ग्रंथ ललित विस्तर मँ एकरौ जिक्र करलौ गेलौ छै।
पारिवारिक सम्बन्ध
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]अंग लिपि भारत करो आरो सब्भे लिपि के तरह ही ब्राह्मी लिपि सँ निकललौ छै।
व्युत्पत्ति आरू इतिहास
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]अंग एगो एन्हौ क्षेत्र क संदर्भित करै छै जे अबय भारत केरो बिहार, झारखंड आरू बिहार राज्य मँ छै, जेकरौ लिपि अंग लिपि छेलै। अंग लिपि के उल्लेख एगो प्राचीन संस्कृत भाषा के बौद्ध पुस्तक "ललितविस्तर" मँ छै, जेकरा मँ बुद्ध क ज्ञात ६४ लिपि के सूची मँ अंग लिपि के नाम प्रारंभ मँ उल्लिखित छै। आर्थर कोक बर्नेल न सोचलै छेलै कि "ललितविस्तर" मँ वर्णित चौंसठ लिपि मँ सँ कुछु क कल्पित मानलौ छेलै, लेकिन हुनी द्रविड़, अंग और बंग सहित कुछु क वास्तविक मानलौ छै।
अभिलक्षण आरू तुलना
[संपादन | स्रोत सम्पादित करौ]अंग लिपि आरू बंगला लिपि कुछु क्षेत्रीय विशेषता सिनी के संग ब्राह्मी भाषा सँ विकसित होलौ लिपि छेकै। इ है विश्वास क समर्थन करै छै कि वर्णमाला मँ स्थानीय विशेषता के विकास प्राचीन समय सँ जारी छेलै।
इ भारतीय वर्णमाला के स्थानीय रूप के प्रारंभिक विकास क दर्शाय छै।