कूले का आत्म दर्पण का सिद्धांत
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आत्म दर्पण का सिद्धान्त (Looking glass self) एच सी कूले द्वारा १९०२ में प्रतिपादित किया गया था। इस सिद्धांत के अंतर्गत कूले कहते है की समाज एक दर्पण के समान होता है। व्यक्ति अपने आपको वैसे ही बनता है जैसे समाज में वो जाता है।
जिस प्रकार एक पुरुष अथवा महिला आईने में देखकर सजती सवरती है और अपने को बार बार निहारती है और देखते है की वह ठीक उसी प्रकार से तैयार हो पायी है अथवा नही कहने का तात्पर्य है की वह जिस समाज में जा रही है उस के अनुरूप अपने को तैयार कर पाया है की नहीं।
इसमें समाज एक दर्पण होता जिससे व्यक्ति देखकर सीखता है।
इसी को कूले ने आत्म दर्पण का सिद्धांत कहा है।