रसायन
रसायन, आयुर्वेद के आठ भागों में से का एक विभाग है। आधुनिक रसायन शास्त्र में उन सभी द्रव्यों को रसायन कहते हैं जो किसी अभिक्रिया में भाग लेते हैं।
आयुर्वेद की रसायन चिकित्सा आधुनिक रसायन शास्त्र (Chemistry) से पूर्णतः भिन्न है। जहाँ आधुनिक रसायन शास्त्र से अर्थ एक ऐसे विज्ञान से है जिसमें पदार्थ, तत्वों, परमाणु व केमिकल्स आदि का अध्ययन किया जाता है, आयुर्वेद की रसायन चिकित्सा से अभिप्राय ऐसी चिकित्सा से है जो शरीर में ओज (immunity) की वृद्धि करती है तथा इसके प्रयोग से व्यक्ति रोगमुक्त, बुढापा मुक्त होकर स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन प्राप्त करता है। आचार्य चरक ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ चरकसंहिता में रसायन के गुणों को का वर्णन निम्नलिखित ढंग से किया है-
- दीर्घमायुः स्मृतिंमेधामारोग्यं तरुणं वयः। प्रभावर्णस्वरौदार्यं देहेंद्रियबलं परं वाक्सिद्धि प्रणतिं कान्तिं लभते ना रसायानात् । लाभोपायो हि शस्तानाम रसादीनां रसायनम् ।
- ( अर्थ : रसायन लम्बी आयु प्रदान करने वाला, स्मरण शक्ति तथा धारण शक्ति (मेधा) को बढाने वाला, शरीर की कांति व वर्ण को निखारने वाला, वाणी को उदार बनाने वाला, शरीर व इन्द्रियों में सम्पूर्ण बल का संचार करने वाला होता है. इसके अतिरिक्त रसायन सेवन करने से वाक् सिद्धि (कहा गया सत्य होने वाला), नम्रता व शरीर में सुन्दरता, ये सभी गुण प्राप्त होते हैं।
अतः ऐसा औषध, आहार और विहार (दिनचर्या) जो वृद्धावस्था एवं रोगों को नष्ट करे, रसायन कहलाता है।
वर्गीकरण
[संपादित करें]प्राचीन शास्त्रों में रसायनों का अनेक प्रकार से वर्गीकरण किया गया है।[1]
- (१) द्रव्यभूत तथा अद्रव्यभूत
- (२) कुटि प्रवेशिक, वातवित, द्रोणी-प्रवेशिक
- (३) लक्ष्य के अनुसार - काम्यरसायन (प्राणकाम्य, मेधाकाम्य, श्रीकाम्य), नैमित्तिक रसायन, आजश्रिक रसायन
- (४) आहार रसायन, औषध रसायन, आचार रसायन
- (५) प्रभाव के अनुसार -- संशोधन रसायन तथा संशमन रसायन
- (६) सप्त धातुओं के अनुसार -- रस रसायन, रक्त रसायन, मेद रसायन, मांस रसायन, अस्थि रसायन, मज्जा रसायन, शुक्र रसायन
- (७) सात्म्य के आधार पर -- ऋतु सात्म्य , देश सात्म्य
रसायन सेवन की विधियाँ
[संपादित करें]आयुर्वेद में रसायन सेवन की दो प्रकार की विधियों का वर्णन मिलता है-
- (१) कुटीप्रावेशिक (Indoor method) – रसायन सेवन के लिए यह प्रमुख विधि है। इसमें व्यक्ति को कुछ दिनों के लिए कुटी (चिकित्साल्य या हैल्थ रिज़ॉर्ट) में रहकर रसायन द्रव्यों का सेवन वैद्य की देख रेख में करवाया जाता है।
- (२) वातातपिक (Outdoor method) – वाततापिक अर्थात वायु और आतप का सेवन करते हुए रसायन द्रव्यों का सेवन। इस विधि में व्यक्ति को चिकित्सालय या हैल्थ रिज़ॉर्ट में रहने की आवश्यकता नहीं होती, वैद्य के निर्देशों के अनुसार अपने घर अथवा पसंदीदा स्थान में रसायन द्रव्यों का सेवन किया जा सकता है।
इन दोनों विधियों में कुटीप्रावेशिक विधि प्रमुख और अधिक लाभदायी है।
- सेवन के योग्य-अयोग्य रसायन
आयुर्वेद के अनुसार निम्न सात प्रकार के व्यक्तियों को रसायन का सेवन नहीं करना चाहिए; अजितेंद्रिय, आलसी, दरिद्र, प्रमादी, व्यसनी, पापकर्मों मे लिप्त और औषधियों का अपमान करने वाले। केवल वही मनुष्य रसायन सेवन के योग्य है, जो उपरोक्त से अतिरिक्त हों। आचार्य सुश्रुत के अनुसार-
- पूर्वे वयसि मध्ये वा मनुष्यस्य रसायनम ।
- प्रयुज्जीत भिषक प्राज्ञ: स्निग्धशुद्धतनोंः सदा॥
अर्थात युवा अथवा मध्यावस्था में, स्निग्ध और शुद्ध शरीर वाले मनुष्य को रसायन का सेवन बुद्धिमान वैद्य सदा करवाए।
आचार रसायन
[संपादित करें]दीर्घायु और दीर्घ आरोग्य की उपलब्धि के लिए महर्षि चरक ने महत्वपूर्ण 'आचार रसायन' की प्रक्रिया का निर्देश दिया है। यह रसायन वास्तव में कोई पेय औषधि या शर्बत नहीं है। यह एक प्रकार की नियमित आचार (आचरण) प्रक्रिया है, जो रसायन से भी अधिक कार्य करती है; यानी मात्र सदाचार पालन एवं सद्वृत पालन से भी रसायन गुण युक्त औषधि - आहार के बिना भी शरीर और मन पर रसायन सेवन के सभी फल प्राप्त होते हैं। औषधि रहित यह आचार रसायन आयुर्वेद की अनुपम देन है।
आचार रसायन में जिन भावों का समावेश होता है, उनमें प्रमुख हैं -
- सत्यवादी
- क्रोध रहित
- मद्यपान व मैथुन न करने वाला (व्यसन रहित व ब्रह्मचर्य का पालन)
- अहिंसक
- आयास रहित (बहुत श्रम से रहित)
- प्रशान्त (शांत चित्तवृत्ति वाला)
- प्रियभाषी
- जप एवं पवित्रता में तत्पर
- धीर (धैर्यवान)
- नित्य दान करने वाला
- तपस्वी, गो, ब्राह्मण, आचार्य, गुरू एवं वृद्धजनों की सेवा में रत
- नित्य क्रूरता से रहित तथा प्राणियों पर दया दृष्टि रखने वाला
- निद्रा व जागरण को समान अवस्था में सेवन करने वाला
- नित्य दूध-घी का सेवन करने वाला
- अहंकार रहित
- सदाचार युक्त
- उदार, अंर्तमुखी (आत्म प्रविष्ठ इंद्रियों वाला)
- वृद्ध पुरूषों, आस्तिकों और संयमी पुरूषों का उपासक तथा उनके साथ रहने वाला
- धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करने वाला तथा उनके अनुसार आचरण करने वाला पुरूष नित्य रसायनसेवी है।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- प्राचीन भारत में रसायन की परंपरा - १
- प्राचीन भारत में रसायन की परंपरा - २
- प्राचीन भारत में रसायन की परंपरा - ३
- रसायन शास्त्र : धातु, आसव, तत्व - सब भारतीय सत्य
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "geriatric ppt". मूल से 10 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 सितंबर 2018.