घंटा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]घंटा संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ अल्पा॰ घंटी]
१. धातु का एक बाजा जो केवल ध्वनि उत्पन्न करने के लिये होता है, राग बजाने के लिये नहीं । विशेष—यह दो प्रकार का होता है । एक तो औंधे बरतन के आकार का जिसमें एक लंगर लटकता रहता है और जो लंगर के हिलने से बजता है । दूसरा जिसे घड़ियाल कहते हैं थाली की तरह गोल होता है मुँगरी से ठोंककर बजाया जाता है । क्रि॰ प्र॰—बजाना । मुहा॰—घंटे मोरछल से उठाना= अत्यंत वृद्ध के शव को बाजे गाजे के साथ श्मशान पर ले जाना ।
२. वह घड़ियाल जो समय की सूचना देने के लिये बजाया जाता है ।
३. घंटा बजने का शब्द । घंटे की ध्वनि । जैसे— घंटा सुनते ही सब लोग चल पड़े । क्रि॰ प्र॰—होना ।
४. दिन रात का चौबीसवाँ भाग । साठ मिनट या ढाई घड़ी का समय ।
५. लिंगेंद्रिय—(बाजारू) ।
६. ठेंगा । मुहा॰—घंटा दिखाना = किसी माँगने या चाहनेवाले को कोई वस्तु न देना । किसी माँगी या चाही हुई वस्तु का अभाव बताना । जैसे,—रुपया माँगने जाओगे तो वह घंटा दिखा देगा । घंटा हिलाना = व्यर्थ का काम करना । झख मारना । सिर पटकना । हाथ मलना । जैसे,—तुम समय पर तो यहाँ पहुँचे नहीं; अब घंटा हिलाओ ।