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Gave birth to a son in a forest full of snakes, named him 'Tsunami'; Namita hasn't forgotten her pain
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Tsunami: सांपों से भरे जंगल में दिया बेटे को जन्म, नाम रखा 'सुनामी'; 20 साल पुराना दर्द अब भी नहीं भूलीं नमिता
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पोर्ट ब्लेयर
Published by: बशु जैन
Updated Thu, 26 Dec 2024 10:40 AM IST
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सार
20 साल पहले तमिलनाडु में समुद्री लहरों ने जो कहर मचाया था, वह लोग आज भी नहीं भूले हैं। 26 दिसंबर 2004 को 6605 लोगों की जान लेनी वाली सुनामी ने जो दर्द दिया वह अब भी ताजा है। एक गर्भवती महिला ने सांपों से भरे जंगल में बेटे को जन्म दिया। इसके बाद उसने बेटे का नाम सुनामी रखा। आज भी जब महिला नमिता रॉय उस रात को याद करती हैं तो सिहर उठती हैं।
तमिलनाडु में 20 साल पहले आई आपदा सुनामी की तबाही का मंजर आज भी कई लोगों के जेहन में ताजा है। इस सुनामी के कहर से प्रभावित हुई एक गर्भवती महिला ने सांपों से भरे जंगल में बेटे को जन्म दिया। इसके बाद उसने बेटे का नाम सुनामी रखा। आज भी जब महिला नमिता रॉय उस रात को याद करती हैं तो सिहर उठती हैं।
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पश्चिम बंगाल के हुगली में रहने वाली नमिता रॉय बताती हैं कि 2004 में वे अंडमान और निकोबार के हटबे द्वीप में अपने परिवार के साथ रहती थीं। 26 दिसंबर 2004 को आई आपदा को याद करके वे बताती हैं कि तब मैं गर्भवती थी और उस दिन रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थी। अचानक मैंने देखा समुद्री लहरें हट बे द्वीप की ओर बढ़ रही है और तेज झटके आ रहे हैं। लोग चीख रहे हैं और एक पहाड़ी ओर से भाग रहे थे। इसके बाद मुझे अचानक दौरा पड़ा और मैं बेहोश हो गई।
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नमिता रॉय ने बताया कि घंटों बाद जब मुझे होश आया तो मैं एक पहाड़ी जंगल के अंदर थी। यहां मेरे द्वीप के हजारों लोग थे। मेरे पति और बड़ा बेटा मुझे यहां बेहोशी का हालत में लाए थे। मुझे बताया गया कि लहरों के कहर में हमारा द्वीप नष्ट हो गया। हमारा सब कुछ खत्म हो गया। अचानक रात 11.49 बजे मुझे प्रसव पीड़ा हुई, लेकिन आसपास कोई डॉक्टर नहीं था।
उन्होंने बताया कि प्रसव पीड़ा होने के चलते मैं तड़पने लगी और एक चट्टान पर लेट गई। मदद के लिए पुकराने लगी। मेरे पति ने पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई मेडिकल मदद नहीं मिली। फिर उन्होंने जंगल के अंदर शरण लेने वाली कुछ महिलाओं से गुहार लगाई। उन महिलाओं की मदद से मैंने बेहद चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में बेटे सुनामी को जन्म दिया। जंगल में सांपों का आतंक था।
रॉय ने बताया कि जंगल में खाने के लिए कुछ भी नहीं था। उधर अत्यधिक रक्तस्राव से मेरी हालत बिगड़ने लगी। किसी तरह मैंने अपने नवजात शिशु को जीवित रखने के लिए उसे दूध पिलाया। अन्य लोग नारियल के पानी पर जीवित रहे। हमने हट बे में लाल टिकरी पहाड़ियों पर चार रातें बिताईं और बाद में रक्षा कर्मियों ने हमें बचाया। इसके बाद मुझे आगे के इलाज के लिए पोर्ट ब्लेयर (जहाज पर) में जीबी पंत अस्पताल ले जाया गया।
रॉय बताती हैं कि उनके पति लक्ष्मीनारायण की कोविड-19 महामारी के दौरान मृत्यु हो गई थी। अब वे अपने दो बेटों सौरभ और सुनामी के साथ पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में रहती हैं। बड़ा बेटा सौरभ एक निजी शिपिंग कंपनी में काम करता है, जबकि सुनामी अंडमान और निकोबार प्रशासन के लिए समुद्र विज्ञानी बनना चाहता है।
सुनामी रॉय ने बताया कि मां मेरे लिए सब कुछ है। वह सबसे मजबूत है जिसे मैंने कभी देखा है। मेरे पिता के निधन के बाद उन्होंने हमें पालने के लिए कड़ी मेहनत की और उन्होंने सुनामी किचिन का संचालन किया। मैं एक समुद्र विज्ञानी बनना चाहता हूं।
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