Fourteenth Issue - February 2013
Fourteenth Issue - February 2013
Fourteenth Issue - February 2013
मगं लमर्ू ति ,सत्यभावो से ज्ञेय भगवान गणपर्त एवं सौभाग्यशाली लक्ष्मी को,जो परम उदार
गणु ों से यक्त
ु हैं नमन करता हूँ | मान यश और शभ्रु प्रर्तष्ठा की कामना करता हुआ ह्रदय के
अत्यतं कोमलतम स्नेहपणू ि भावो से सदगरुु देव र्नर्िल के श्री चरणों मे नमन करता ह.ूँ
I bow to bhagvaan Ganesh who are magalmurti (the auspicious idol) and able to
known through true and pure feelings of heart and also goddess lakshmi, who is very kind
and be of all the auspicious quality. i also praying for respect and all type of auspicious
things for my life and bow to the divine lotus feet of sadgurudev Nikhil with full heart.
Dedicated
To
Publisher
www.npru.org
General rules
Editorial
Sadguru Prasang
Vidyaakalika sadhana
Totkaa vigyan
In The End
All the articles published in this magazine Are the sole property of Nikhil Para
science Research unit, All the articles appeared here are copy righted for NPRU. No part of any
articles can be used for any purpose without the prior written permission obtained from NPRU.
:
This free e magazine available only to the follower register in
the blog Nikhil-alchemy2.blogspot.com. and also nikhil-alchemy groups
memeber . the article appear here, are /will be based on the divine
wisdom of SadGurudev Dr Shri Narayan Dutt Shrimali ji , and his sanyasi
shishyas . we as a your fellow guru brothers, here just providing words to their
thought. For the address of these mahayogi’s are not known to us, as they
all are wondering saints.
The sadhana and mantra’s appeared /mentioned in any article can be practiced ,on
your own responsibility, to get success in sadhana you can have Diksha from
anywhere where your faith,devotion and trust calls . for sadhana articles needed
for that , you can purchase from any place ,as per you faith and trust suited to you ,
Please do not ask us for any type of sadhana related materials, and also for Diksha
related Queries at any cost /condition , we does not sell any sadhana material (yantra ,
rosary etc).
Since sadhana is a very complex matter, for success and failure of any
sadhana mentioned in any article here , many things required , to get success .
that’s why ,we do not take any responsibility in this connection. we also request,
not to do any sadhana ,which is adverse and not permitted as per legal, morel,
society belief.
This e magazine will be published monthly. You are receiving this magazine
means that you are accepting the terms and conditions . at any time , you
can withdraw your registration . this e magazine just a forum to share
knowledge between us ( Sadgurudev ji’s shishyas - All guru brother and sisters ),
......
प्रिय आत्मजनों,
प्रनप्रिल िणाम,
अन्याय शास्त्रेषु विनोद मात्रं
िेदांत िावहसय तिक िी ग्रंवियों मे उलझा हुआ हैं.जब िी आगम िावहसय िरल
पररभाषाओ िे द्वारा रह्सस्यािक िा उदघाटन िरता हैं.तांवत्रि िाधि अंतरतम मे
प्रविष्ट हो िर प्रिृवत और आसमा िे गुढ़तम रहस्यों िे अनुिन्धान मे व्यस्त रहता
हैं,आगम शास्त्र गुप्त मागक िो प्रिावशत िरता हैं एिं पग पग पर ित् पंि वनवदकष्ट
िर िाधि िो विश्वमय एिं विस्िोसरीण ब्रम्ह िे िाक्क्षासिार िराता हैं .अन्य
शास्त्र िेबल विनोद मात्र हैं तिा इि िंिार िा िुछ भी प्रसयष िराने मे िमिक नही
हैं. यह िेबल तंत्र ,वचविसिा और ज्योवतष शास्त्र हैं ही जो प्रसयेि पद पर अपनी
प्रसयषता िा पररचय देते हैं .
3
ाह अपनर आप मर पूणण सक्षम हैं.ाह र बल शप्रि शब्द सर सबधप्रध ही नही बप्रक उस त्ा
ध अपनर आप मर पूणण ा सर आत्मसा त आज सामनर वी आ तही हैं .औत यह ध हम सवी
र प्रलए गौता ी बा हैं .
SADGURUDEV - PRASANG
उन र्दनों हम काशी मे ही र्नवास करते थे. र्नत्य दशाश्वमेध घाट जाते,गगं ा स्नान करते और बाकी का सारा
समय गरुु देव के साथ साधना र्सर्ियों मे ही व्यतीत करते.
एक र्दन मेरे गुरू भाई र्प्रयंकू बाबा ने पूंछा “क्या र्सर्ियों का चमत्कार उर्चत हैं “?
स्वामी जी ने उत्तर र्दया “ जो साधनाए सीि रहे हैं या जो र्सर्ियों मे प्रर्वष्ठ हो रहे हैं,उन्हें भूलकर भी चमत्कार मे
नही पड़ना चार्हए.इससे उनकी शर्क्त क्षीण हो जाती हैं और साधना की तरफ उनका ध्यान नही रह जाता हैं, साथ
ही साथ साधना क्षेत्र की एक मयािदा हैं और इस मयािदा का पालन प्रत्येक साधक,योगी या सन्यासी को करना ही
चार्हये”
“ जो साधना क्षेत्र मे हैं और अभी तक गुरुवत नही बन् सकें हैं,उन्हें लोगों के उकसाने पर भी चमत्कार या र्सर्ियों
का प्रदशिन नही करना चार्हए .बहुत ही शान्त,सरल एवं सामान्य अवस्था मे ही उन्हें रहना चार्हए की पडौसी को
भी उनकी र्सर्ियों के बारे मे ज्ञान न हो सकें “
“पर जो र्सि हैं र्जन्होंने र्सर्ियों पर र्नयत्रं ण प्राप्त कर र्लया हैं वे चाहे तो समय समय पर इसका प्रदशिन कर
सकते हैं,पर इस र्सर्ियों के प्रदशिन मे उनका व्यर्क्तगत स्वाथि नही होना चार्हए.अपना बड़प्पन,उच्चता या
र्सि होने की प्रर्िया के लालच मे ऐसा प्रदशिन करना उर्चत नही हैं, हकीकत भी यह हैं की जो सही अथो मे
र्सि हैं वह न तो क्षद्रु हो सकता हैं न स्वाथी.उन्हें अहक ं ार भी व्याप्त नही हो सकता हैं.वे तो पर दुःु ि कातर
होते हैं और दसू रों के दुःु ि को दरू करने के र्लए ही आवश्यकता पड़ने पर ऐसी र्सर्ियों का प्रदशिन कर लेते
हैं.”
“यर्द सन्यासी र्कसी कारण वश गृहस्थ जीवन मे जाता हैं और इस सन्यासी ने जीवन मे सोदध्् यों पर अर्धकार
प्राप्त र्कया हैं तब भी गृहस्थ जीवन मे जाने पर उसे र्सर्ियों का प्रदशिन भूल कर भी नही करना चार्हए . चाहे
लोग उसे र्कतना ही अर्धक उकसाए ,कुछ भी कहें, कभी कभी अपमान,लांछन या र्तरस्कार भी सहन करना पड़
सकता हैं. सभी र्स्थर्तयों मे उसे संयत बने रहना चार्हए,और भूल कर भी चमत्कार प्रदशिन नही करना चार्हए.”
मैंने पूंछा “ क्या गृहस्थ मे साधना र्सर्ि प्रदशिन अनुर्चत हैं ?”
उन्होंने उत्तर र्दया “ अनुर्चत तो नही हैं, पर ये गृहस्थ लोग या गृहस्थ र्शष्य क्षीण बुर्ि होते हैं.उनकी भावना
साधना की उच्चता या महत्ता नही होती,सीिने या प्रकृ र्त पर र्वजय प्राप्त करने की भावना नही होती,अर्पतु मल ू
मे स्वाथि र्सर्ि या चमत्कार दशिन ही होता हैं.यर्द कोई गृहस्थ र्शष्य चमत्कार र्दिने की बात करें तो समझ लेना
चार्हए की यह क्षीण बर्ु ि हैं और र्शष्य बनने के योग्य नही हैं.”
मैंने पूंछा ” र्शष्य कै से बनना चार्हए ?”
उन्होंने कहा “ र्शष्य बनने की प्रर्िया नही हैं ,यह तो स्वत: गुरू के प्रर्त अनुरर्क्त हैं. र्पछले जीवन मे भी र्जस
गुरू से वह दीक्षा र्लये हुये हैं इस जीवन मे भी उसी गरू
ु से वह अनुरक्त रहता हैं. हो सकता हैं की भ्रम वश र्कसी
दसू रे सन्यासी या पािडं ी के पास चला जाए,हो सकता हैं कुछ समय के र्लए भ्रर्मत हो जाए, परन्तु ऐसा होने
पर भी उसके मन को शार्ं त नही र्मल पाती हैं. ऐसे गरुु देव से भी दीक्षा लेने पर भी उसके र्चत्त मे चचं लता बराबर
बनी रहती हैं. मन मे उर्िनगता और तनाव र्वद्यमान रहता हैं “
‘ पर जब वह उसी गुरू के पास पहुचूँ जाता हैं जो जन्म जन्म से उसका गुरू होता हैं तो उसे देिकर सहसा ऐसा
अनुभव होता हैं की इनका मेरा कई कई वर्षों का सम्बन्ध हैं, यद्दर्प उन्हें पहली बार देि रहा हूँ परन्तु ऐसा लगता
हैं की इससे पूवि मे भी इन्हें देिा हैं. उनके पास बैठने से शांर्त र्मलती हैं,मन मे संतोर्ष होता हैं, और ह्रदय मे तृर्प्त
का अनुभव होता हैं.
और जब ऐसा अनभु व हो, जहाूँ बैठने से शार्ं त र्मलती हो, र्जनसे बात करने पर अपनत्व का बोध होता हो,जहाूँ
र्चत्त की चचं लता समाप्त होती हो, उसी गरू
ु से दीक्षा या पनु ुः दीक्षा ले कर उनके बताए पथ पर आगे बढ़ना
चार्हए .”
मैंने पूंछा “र्फर र्शष्य क्या करें ?”
उन्होंने उत्तर र्दया “ र्शष्य को कुछ भी करना नही होता हैं. जो कुछ करना होता हैं, वह गुरू करता हैं . र्शष्य का
तो के बल एक ही धमि, एक ही कतिव्य, और एक ही र्चंतन होता हैं र्क वह गुरू आज्ञा का पालन करे उसमे र्कसी
भी प्रकार की हील हुज्जत न करें. र्कई भी प्रकार का तकि –र्वतकि , सन्देह-असदेंह उत्पन्न होने पर समझ जाना
चार्हए की वह र्शष्य बनने के कार्बल नही हैं.र्शष्य का तात्पयि यह हैं की वह गुरू के र्नकट जाए और उनके
ह्रदय के सर्न्नकट पहुचे और इतना आर्धक र्नकट पहुचे र्क वह अपने अर्स्तत्व का र्वसजिन कर दे,उसे अपना
होश ही न रहे. पूणि रूपेण समर्पति र्चंतन ही र्शष्य कहलाता हैं .”
यर्द गरू
ु र्शष्य को छत पर िड़ा कर दें और नीचे दहकता हुआ अर्ग्न कुंड हो और गरू ु र्शष्य को नीचे छलागं
लगाने को कहे तो उस र्शष्य को एक क्षण का भी र्वचार नही करना चार्हए ,र्बना सोचे र्बना र्वचार करीब उस
दहकते हुये अर्ग्न कुंड मे कूद जाना ही र्शष्यता हैं “
“पर ऐसी आज्ञा गुरू देगा ही क्यों “
स्वामी जी ने उत्तर र्दया यह गुरू का कायि हैं उस क्या आज्ञा देनी हैं और क्या आज्ञा नही देनी हैं. गुरू का कोई
भी आदेश अकारण नही होता हैं.उसके पीछे कोई न कोई उसका र्चंतन अवश्य होता हैं .और वह र्चतं न र्शष्य के
र्हत मे होता मे होता हैं .गुरू का एक मात्र उदेश्य पणू ि रूप से र्शष्य को सभी दृर्ियों से योग्य और संपन्न बनाना
हैं और इसके र्लए वह बराबर प्रयत्न करता हैं .
“ र्जस प्रकार सुनार बार बार सोने को अर्ग्न मे डालता हैं, लाल सुिि करता हैं, और बाहर ला कर हथौड़े से पीटता
हैं, ऐसा होने पर ही वह स्वणि देव मुकूट बनता हैं,देवताओ ं के र्सर पर चढ़कर बैठता हैं.र्शष्य को भी स्वणि वत
होना चार्हए,गुरू उसे तपाये या हथौड़े से चोट करें उसे र्बलकुल भी न नुकुर नही करना चार्हये,अर्पतु अपने
लक्ष्य पर बराबर गर्तशील बना रहे,ऐसा होने पर ही वह र्शष्य आगे चलकर प्रर्सि योगी बन् जाता हैं.
उन्होंने बात को स्पि करते हुये बताया ,”पणू ि र्सर्ियाूँ और र्सर्िता पाने के र्लए यह जरूरी नही हैं र्क सन्ं यास
ही ले, श्री कृ ष्ण पणू ति ुः गृहस्थ थे मगर र्फर भी योगीराज कहलाये.गृहस्थ मे रहकर भी जो असम्प्रक्त रहता हैं जो
सही अथो मे ही अपने गरू ु को अपना इि,सिा,र्मत्र,माता,र्पता,भाई,बर्हन,इश्वर और सब कुछ मान लेता हैं,वह
सही अथो मे योगी होता हैं,कपडे बदलने या भभतू लगाने से ही सब कुछ नही हो जाता हैं.
बात का समापन करते हुये गुरुदेव ने कहा “ऐसा ही र्शष्य गुरू के र्चत्त पर अर्ं कत होता हैं,और गुरू का सारा ज्ञान
और र्सर्ियाूँ स्वत ही उसे प्राप्त हो जाती हैं र्जससे वह सही अथो मे र्सि बनकर पूरे र्वश्व का कल्याण करने मे
समथि बन् जाता हैं . मंत्र तंत्र यन्त्र र्वज्ञानं से साभार
=============================================================
Siddhi Darshan
Those days, we resided in Kaashi (Varanasi).Daily we used to go to Dashaashvmegh
bank, take bath in Ganga and rest of time was spent with Gurudev in sadhna
accomplishments.
One day my Guru Brother Priyanku Baba asked “Is it right to show miracle of siddhis
(spiritual accomplishments) “?
Swami Ji answered “Those who are learning sadhnas or those who are entering into
siddhis, even by mistake they should not show it off. By doing so, their power becomes
feeble and they could not concentrate on sadhnas. Along with it sadhna field has got its
own decorum and this decorum should be followed by every sadhak, yogi or ascetic”
“Those who are in sadhna field and have not yet become Guru; they should not show
miracles or exhibit siddhis even when they are instigated by people. They should remain
in very peaceful, sober and simple manner so that even his neighbour is not aware of his
siddhis”
“ But those who are siddhs, who have established control over siddhis , they from time to
time can exhibit them but that exhibition should not be done for selfish ends. Showing the
siddhis just to show your supremacy, greatness is not right. Reality is also that those who
are siddh in real sense, they can neither be contemptible nor selfish. Even ego cannot
come into their head. They show their siddhis only at the time of need in order to remove
miseries of others.”
“If any ascetic lives a life of householder for any reason and this ascetic has attained
control over accomplishments, then also upon living householder’s life, he should not
exhibit siddhis even by mistake. He may be instigated by so many people, people may say
anything, he may have to sometime bear insult, blames etc. He should remain calm and
patient in all circumstances and should not show miracles even by mistake”
I asked “Is it wrong to show off sadhna accomplishments in household life”
He answered that “It is not wrong but these householders or household disciples are
feeble-minded. They do not want to understand the importance and supremacy of sadhna,
they do not have feeling to learn or secure win over nature rather they want to meet their
selfish ends and are interested in seeing miracles .
If any householder disciple says about seeing miracles then it has to be understood that he
is feeble-minded and is not capable of being a disciple.”
I asked “How one should become disciple?”
He said “There is no procedure of becoming disciple; it is automatic passion towards
Guru. In past life, The Guru from which one has taken Diksha (initiation); in this life too
he will be passionate towards that Guru. It may happen that due to delusion, he can go to
some other ascetic or fraud and is misled for some time but in such case he does not attain
peace. After attaining initiation from such Gurudev, his mind is still anxious and stressed”
‘But when he goes to the Guru, who has been his Guru in his previous births then seeing
him he feels that his relation with me is of many years. Maybe I am seeing him for first
time but it seems that I have seen him earlier. Sitting near him gives me peace, a sense of
satisfaction.
And when someone feels such a thing, sitting where gives you peace, talking to whogives
feeling that he belongs to me, where volatility of mind evaporates,and then he should take
initiation from that Guru and move forward on path told by him”
I asked “Then what disciple should do?”
He answered “Disciple does not have to do anything. Whatever has to be done has to be
done by Guru. There is only one duty, one task and one thinking of disciple that he should
follow Guru Orders, he should not make any type of argument. In case there is arguments,
state of doubt then it should be understood that he is not capable of becoming disciple.
Disciple is the one who goes closer to Guru, near to his heart and so much near that he
completely surrenders himself. Attitude of complete dedication is called disciple”
If guru takes disciple to terrace and there is fire vessel downside and Guru orders disciple
to jump in it then disciple should not think even for one second, without thinking, jumping
in that fire vessel is duty of disciple”
“But why will Guru give such orders”
Swami Ji answered that it is the work of Guru to decide which orders are to given and
which are not to be given. Any order of guru is not without any reason. There is some
thinking or the other behind it. And that thinking is in better interest of disciple. Only aim
of Guru is to make disciple capable and complete in all respects and for this, he
continuously put in efforts.
“As goldsmith put gold into fire again and again, make it red-hot and take it out and hit it
with hammer, when it happens that gold becomes crown of Devs. Disciple should also be
like gold, how much he is hammered by Guru, he should never hesitate rather he should
continuously move towards his aim. When it happens, that disciple in future becomes
famous Yogi.He made his point clear and said “It is not necessary that in order to attain
accomplishments one should become ascetic. Shri Krishna was completely householder
but still he went on to be called king of yogis. The one who even leading a householder
life remains free of illusion , who truly considers his Guru to be his Isht , friend , mother
,father .brother , sister , god and everything , he truly is a Yogi , just change of clothes and
applying ashes is not everything. Gurudev ended his talks and said “Such disciple writes
his name on heart of Guru and all knowledge and accomplishments of Guru is attained by
him by which he becomes siddh in real sense and becomes capable to do welfare of entire
world.
गण का एक अथि मानव इर्न्द्रयाूँ भी होता हैं, और जो इन इर्न्द्रयों के भी स्वामी हैं उनको कै से कोई साधक कम
करके आंक सकता हैं ,क्योंर्क र्बना इर्न्द्रयों के मानव देह का कोई अथि नही हैं और इर्न्द्रयाूँ हैं पर उनपर कोई भी
र्नयंत्रण नही तब भी कम से कम बात तो यही हैं.अतुः र्जन्हें भी साधना मागि पर आगे चलना हैं, उन्हें इस बात
का भान होना चार्हए की भगवान गणेश का एक अपना ही स्वरुप हैं.
भले ही उनके भोलेपन और प्रसन्न्तायुक्त स्वरुप से हम सभी का कहीं जायदा पररचय रहा हो पर इस बात से भी
इनकार नही की वे ही सवि प्रथम पूज्यदेव हैं और सविमान्य देव भी .इसर्लए हर साधना से पूवि उनका स्मरण,
पूजन, मंत्र जप एक अर्नवायित: र्स्थत हैं अन्यथा र्कसी भी प्रकार का र्वघ्न सामने आ सकता हैं .
यह भी साधना का एक भाग हैं की भगवान गणेश का आशीवािद लेना आवश्यक हैं क्योंर्क र्सफि सवि पूज्य और
प्रथम पूज्य होने मात्र से नही बर्ल्क वे समस्त देव वगि का मानो एक सामूर्हक स्वरुप भी हैं और उनके पूजन
मात्र से सभी देव शर्क्तयों का पूजन हो जाता हैं. जैसे सदगुरुदेव पूजन से समस्त शुभ शर्क्तयों का पूजन तो हर
साधक को अपने दैर्नक पूजन मे इस साधना को “गणेश साधना” का एक आधार तो होना ही चर्हये ,अगर
र्कसी भी कायि मे अनावश्यक र्वघ्न आ रहे हो तो र्नश्चय ही भगवान गणेश की उपासना, उसमे बहुत लाभकारी
या र्हतकारी होगी ही .हमने अनेको प्रयोग ब्लॉग और तंत्र कौमुदी के माध्यम से आप सभी के सामने रिने का
प्रयास र्कये हैं उन प्रयोग की महत्वता को समझना ही चार्हए तभी रहस्य सूत्रों का कोई अथि हैं.
ॐ श्रीं एकदतं ाय गणेशाय स्वजयाय श्रीं ॐ नमः ||
प्रस्तुत मंत्र र्वधान को अपने दैर्नक जीवन मे अपनाए और कम से कम एक माला मंत्र जप तो प्रर्तर्दन करें और
अनुभव करें की भगवान गणेश का वरद हस्त सदैव से आपके ऊपर हैं और वह हर पररर्स्थर्तयों मे आपके र्वघ्न
को दरू करेंगे ही जब तक हमारा संकल्प शभु ता की ओर होगा .
=========================================================
GANESH SADHNA
One meaning of “Gan” (as in Ganpati) is also human senses. Then how can we consider
sadhna of master of these senses lesser because without senses, human body has got no
meaning and besides this, if senses are present but they are not under our control then also
same thing applies. Therefore, those who want to move forward on sadhna path, they
should be well aware that Lord Ganesh has got its own form.
May be till now we have been more familiar with his innocent and pleasant form but there
is no doubt in the fact that among gods he is the first one to be worshipped and also he is
recognised by all. Therefore, before any sadhna, remembering him, his poojan, mantra Jap
is one essential condition otherwise any type of hurdle can come in front of us.
This is one of the important points in sadhna to take blessings of Lord Ganesh because not
only he is worshipped by all and that too at first place but he is combined form of entire
Dev category and poojan of him is poojan of entire Dev Shaktis. It is same as the case that
when we worship Sadgurudev, worship of entire auspicious power is done. Therefore,
sadhak should make “Ganesh Sadhna” as one of the basis of daily worship. If unnecessary
hurdles are coming in any work then definitely worship of Lord Ganpati will be much
more beneficial. We have given so many prayogs through blog and Tantra Kaumadi. We
should understand the importance of these prayogs. Only then, these secrets will be
meaningful.
Om shreem ekdantaay ganeshaay vijyaay shreem om namah
Follow the mantra procedure presented here in your daily life and at least chant one round
of it daily and feel that blessings of Lord Ganesh is always with us and in every
circumstances he will get rid of your hurdles provided your resolution is auspicious.
सारा र्वश्व र्शव और शर्क्त के संयोग का ही एक स्वरुप हैं,और प्रकृ र्त का मतलब शर्क्त ही तो हैं एक
आधार,र्जस पर सारा र्वश्व र्टका हैं,शर्क्त के र्बना र्शव भी असहाय हैं ये बात तो सभी ने पढ़ी होगी पर यह
भी सत्य हैं की शर्क्त को भी र्शव का आधार चर्हये ही अन्यथा कै से सभं व हो सकता हैं सृर्ि के तीनो
र्नयम सृजन,पालन और संहार और र्नत नूतनता, यह तो एक बात का प्रतीक हैं की र्शव और शर्क्त दोनों
का संयग्ु मन ही सारे तंत्र और सारी प्रगर्त और जो भी दृश्य या अदृश्य मे घर्टत हो रहा हैं, उन सभी का
प्रतीक हैं,इस बात को तो सभी मानते हैं बस वहां शब्दों का रूप बदल जाता हैं पर अथि वही रहता हैं.
जीवन मे भी यही कहीं न कहीं पक्ष हैं ही, बहुत ही सक्ष ू मता से देिने पर यही अनुभव मे आता हैं जो घटना
सारे र्वश्व मे अबाध रूप से घर्टत हो रही हैं वही ूँ कहीं न कहीं हर मानव के अतं र मन मे भी तो .
सारा तंत्र, र्शव और शर्क्त के आपसी वातािलाप पर ही तो आधाररत हैं और र्कसी भी तंत्र के मल ू ग्रन्थ मे
उसके प्रारंभ मे लगभग यही अवस्था रहती हैं ही,इसर्लए र्कसी भी तंत्र मे शर्क्त को उपेर्क्षत र्कया ही
नही जा सकता हैं.क्योंर्क तंत्र का अथि हैं स्वयम के जीवन का शर्क्तयुक्त र्वस्तार, जो जीवन अभी तक मानो
र्बना रीढ़ की हड्डी का रहा हो उसे अब एक र्स्थरता देना .इसर्लए शर्क्त की उपासना आर्द काल से
मानव के जीवन का एक आवश्यक अगं रही हैं.और जो भी व्यर्क्त स्वयं अपने जीवन का अनुसंधान या
िोज करना या उसे अपना सही स्वरुप जानना हो उसे तो इस रास्ते पर जाना ही होगा यही एक मात्र
उपाय हैं. र्जसको समझना ही होगा, उसी एक मात्र आद्य शर्क्त के मुख्तय: १० र्बभाग र्कये गए र्जन्हें हम
१० महार्वद्या के रूप मे भी जानते हैं.और यह वगीकरण अनेक रूप मे हुआ, कहीं गुण प्रधानता रही तो
कहीं सौम्यता तो कहीं कोई अन्य आधार पर सभी के मूल मे एक वही आद्याशर्क्त पराम्बा ही हैं .
अगर मानव को अपने जीवन को एक अथि देना हैं और उसे श्रेष्ठता की उचाई छूना हैं तो उसे शर्क्त या
प्रकृ र्त तत्व को आत्म सात करने के र्लए आगे बढ़ना ही होगा, यह अनेक मागि से हो सकता हैं पर
साधना मागि मे तंत्र साधना इसका एक सरल और सहज उपाय हैं र्जसे आज इस आपाधापी वाले यगु मे
एक वरदान ही कहा जा सकता हैं .पर तंत्र अगर जल्दी असर देने वाला हैं तो उसमे सावधानी की भी
आवश्यकता हैं यह बात समझने की भी की अगर से र्िया का पररणाम अगर चाहना हैं तो उसे उन सारी
र्ियाओ ं के गप्तु और रहस्य मय सूत्रों को भी समझना होगा और साथ ही साथ इस मागि पर जो सबसे
बड़ा आश्रय हैं वह हैं सदगुरुदेव ..तो उनके श्री चरणों मे समर्पित होना भी ..यह जीवन का एक उच्च लक्ष्य
कहा जा सकता हैं .
शर्क्त तत्व की साधना दो प्रकार से संभव हैं एक तो दर्क्षण मागी और दसू रा वाम मागी. यह समझने की
बात हैं की वाम मागि कहने मात्र से उसे घृणा की दृिी से नही देिा जाना चार्हये क्योंर्क इस शब्द के
गहन अथि हैं.और इस परू े ब्रम्हाडं मे कोई भी वस्तु र्नरथिक नही हैं बस काल और पररर्स्थर्त के अनसु ार
हर व्यर्क्त के र्लए साधना िम अलग अलग हो सकता हैं.यह भी एक समझने वाला तथ्य हैं की साधना
वही भी शर्क्त तत्व की न के बल व्यर्क्त मे एक प्रसन्नता और आहलाद की सृर्ि करती हैं वही ूँ दसू री ओर
जीवन और आध्यात्म के एक से एक नवीन तथ्य उसके सामने साकार भी करती हैं.
इन अथो मे आज शर्क्त साधना और शर्क्त साधक का र्नतातं आवश्यकता हैं क्योंर्क जब व्यर्क्त बल
युक्त होगा तभी समाज भी ऐसा ही होगा और व्यथि की न्युनताये भी नही होगी .क्योंर्क र्जतना ज्यादा
व्यर्क्त असुरर्क्षत होगा र्जतना ज्यादा शर्क्त हीन होगा वह उतनी ही ज्यादा समस्याए भी.और शास्त्रों मे
तो स्पस्ट कहा गया हैं र्क शर्क्त यक्त
ु ता ही पण्ु य हैं और शर्क्त हीनता ही पाप.इस बात का अथि हैं .
हमारे प्राचीन आचायि और संस्कृ र्त इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं की सभी शर्क्त उपासक रहे हैं और वह
समाज अपने आप मे उन्नर्त दायक और सवि दृिी से समपन्न भी रहा हैं .बस कुछ काल र्वशेर्ष मे यह
धारा मंद सी हो गई और इसका बहुत ही भयानक असर हमारे जीवन पर पड़ा पूरा देश मानो पगं ु सा हो
गया, और अब दसू रे के आसरे होने लगा ,अपना स्वरूप भल ू सा गया और पाश्चात संकृर्त के अच्छे
गुण तो नही बर्ल्क दगु ुिण जरुर अपनाने लगा कुछ र्शक्षा व्यवस्था का भी दोर्ष रहा .इन सब का पररणाम
साधना क्षेत्र की ओर उपेक्षा ..और यह कोई भी समझ नही पा रहा था की यह कै से हो गया .इस र्वपरीत
काल मे सदगुरुदेव जी के अनथक अर्तमानवीय श्रम का ही यह पररणाम हुआ की आज साधना पक्ष के
प्रर्त एक नया रुझान, एक नयी सोच और एक पूरी नयी पीढ़ी का इस ओर आना र्सफि उन्ही की ही मेहनत
का ही पररणाम हैं र्जसे भले ही कुछ अर्त बुर्िवादी महत्त्व दे या न दें,यह जरुर हैं की सदगुरुदेव के पर्वत्र
नाम पर अपना उल्लू सीधा करने वालों की तो आज भीड़ हैं सामने .
साधारणतुः प्रकृ र्त का मतलब आपका आचरण व्यवहार होता हैं क्योंर्क कहा भी जाता हैं न, की मुझे
उसकी प्रकृ र्त ठीक नही लगती या वह बुरी प्रकृ र्त का जीव हैं.इस तरह एक अथि यह भी होता हैं र्जसे
र्शवर्लंग के आधार को भी प्रकृ र्त कहा जाता हैं और एक अथि मे तो जो भी दृश्य जगत हैं उसकी आधार
भी .और जब बात तंत्र की आये तो सभी का र्मश्रण स्वरुप हैं प्रकृ र्त तंत्र
एक साधक मे यह गणु होना चर्हये की वह पहले तो र्नष्ठा पवू क ि साधनारत रहे और मन मे प्रकृ र्त से
र्वजय पाने की भावना और र्जस पथ पर आगे जा कर वह प्रिर्त का सहचर बन जाता हैं .पर पहले तो
इस पर र्वजय पाने की भावना होना ही चार्हये,र्बर्भन्न साधना मागि से व्यर्क्त इसी मागि पर आगे बढ़ना
ही चाहता हैं .और प्रस्ततु अक
ं इसी बात का ही तो पररचायक हैं इसी भावना को ध्यान मे रिकर यह
अक ं बहुत ही उपयोगी साधनाए आप सभी के र्लए हुये हैं ..
It can happen through different paths but in sadhna path, Tantra sadhna is simple and
easy way which can be called boon in today’s busy era. But it Tantra is capable of
producing quick results, precaution is also needed while practising it. If one wants to
attain results from procedure then he/she has to understand hidden and secretive facts
related to that procedure. To add to that, the biggest reliance on this Path is of
Sadgurudev….so surrendering ourselves in his lotus feet…..can be called supreme
aim of this life.
Sadhna of Shakti element is possible in two ways, firstly by Dakshin Maarg (Right
Hand Path) and secondly by Vaam Maarg (Left Hand Path). Here one thing needs to
be understood that Vaam Maarg should not be seen in hateful manner because this
word has got deep meaning. And in this Universe, nothing is meaningless, just that
sadhna procedure of each person can be different depending upon time and
circumstances. One more fact worth understanding is that Sadhna and that too of
Shakti element not only makes person joyful and happy, it also materializes novel
facts of life and spirituality in front of him.
In this sense, there is extreme need of Shakti Sadhna and Shakti sadhak today
because when person will be strong, then society will also be like this and there will
be no useless deformities. Because more the person is insecure, more the person is
devoid of strength, more will be the problems confronting him. And it has been said
clearly in Shastra that being strong is virtuous and being powerless is evil.
Our ancient Acharya and culture are clear evidence of this fact that all were
worshipper of Shakti and that society was progress and complete in all respects. Just
at particular point in history, these things gradually started vanishing which had
disastrous repercussions on our life.
लेर्कन सभी महार्वद्याओ की अपनी अपनी अलग ही महत्ता है र्जसको आर्द काल से ही र्नर्ववि ार्दत स्वीकार
र्कया जाता है. लेर्कन महाकाली का स्वरुप तो सभी साधको के ह्रदय में हमेशा उपास्य रहता ही है. तथा इनके
भी कई मुख्य रूप और कई र्वशेर्ष रूप साधना जगत में र्वख्यात रहे है. चाहे वह दर्क्षण मागि हो या कापार्लक
साधना हो, श्मशान या औघड साधना या र्फर र्त्रक या कॉल मत भी हो, देवी की साधना उपासना सभी मागि में
सभी साधको के िारा कई कई स्वरुप में कई कई पिर्तयों से आर्द काल से होई आई है. महाकाली भले ही सहं ार
िम की शर्क्त मानी जाती हो लेर्कन र्नश्चय ही वह तीनों िम में बराबर गर्तशील रहती है. आर्द र्शव के
महाकाल स्वरुप की यह शर्क्त हमेशा कल्याणकारी तथा रक्षात्मक स्वभाव के कारण जनमानस में पज्ू य रही है.
उच्च से उच्चतम र्सिो और साधको ने एक मत में यह स्वीकार र्कया है की भगवती महाकाली की साधना और
उपासना करने पर साधक कई कई प्रकार से र्सर्ियों की प्रार्प्त कर अपने जीवन के भौर्तक तथा आध्यार्त्मक
दोनों ही पक्षों में पणू ि सफलता की प्रार्प्त कर सकता है. महाकाली एक ऐसी महार्वद्या है र्जनके बारे में यह कहा
जाता है की वह कलयगु में शीघ्र फल प्रदान करने वाली है. र्नश्चय ही देवी के सबधं में यह तथ्य एक र्नर्ववि ार्दत
सत्य है र्जसका अनुभव कई कई साधको ने इस यगु में र्कया है. पुरातन तंत्र ग्रथं ो में कहा है की भगवती की
साधना करना र्कसी भी साधक के र्लए सौभग्य उदय की ही संज्ञा है.
भगवती से सबंर्धत कई स्वरुप साधको के मध्य प्रचर्लत है ही लेर्कन भगवती का र्वद्याकाली या र्वद्याकार्लका
स्वरुप अत्यर्धक गुढ़ तथा र्वलक्षण माना जाता है. क्योंकी यह स्वरुप र्वद्याओ से अथाित गुढ़ ज्ञान से सबंर्धत
स्वरुप है, र्जसको र्सि करने पर साधक को कई गुढ़ ज्ञान की प्रार्प्त होती है. परन्त,ु देवी के इस स्वरुप से सबंर्धत
साधना िम अत्यर्धक तीव्र तथा र्वलक्षण है, र्जसे सहज ही संपन्न करना असभं व है. तथा आज के यगु में
गृहस्थ साधको के र्लए यह िम कई द्रर्ि से असहज है. लेर्कन इस रहस्यमय स्वरुप से सबंर्धत कुछ सौम्य लघु
प्रयोग भी है. र्जसको कोई भी साधक बड़ी सहजता से सपं न्न कर सकता है. इसी िम में देवी र्वद्याकार्लका से
सबर्ं धत यह प्रयोग प्रस्ततु है. इस प्रयोग को सपं न्न करने के बाद साधक को ज्ञान सबर्ं धत कई लाभों की प्रार्प्त
होती है. साधक को कोई भी र्वर्षय को समझने में सहजता का अनभु व होने लगता है, साधक की स्मरणशर्क्त का
र्वकास होता है, र्वशेर्ष रूप से साधक को गढ़ु ज्ञान तथा साक ं े र्तक ज्ञान का अथि समझने में भी र्वशेर्ष सभु ीता
का अहसास होता है. र्वद्याथी वगि के र्लए भी यह साधना प्रयोग वरदान स्वरुप है, क्यों की र्वद्या से सबर्ं धत होने
के कारण साधको को अभ्यास में भी प्रगर्त इस साधना के माध्यम से प्राप्त हो सकती है.
यह प्रयोग साधक कृ ष्ण पक्ष की अिमी को संपन्न करे. समय रार्त्र में १० बजे के बाद का रहे. साधक रार्त्र में
स्नान आर्द से र्नवृत हो कर लाल वस्त्रों को धारण करे. इसके बाद साधक लाल आसन पर उत्तर की तरफ मुि
कर बैठ जाये.
इसके बाद साधक अपने सामने भगवती महाकाली का कोई चेतन र्वग्रह या यंत्र या र्चत्र को स्थार्पत करे. साधक
गुरु पूजन, गणपर्त पूजन तथा महाकाली पूजन को संपन्न करे. साधक को गुरुमन्त्र का जप करे. इसके बाद साधक
न्यास की प्रर्िया करे .
किन्यास
VIDYAKAALIKA SADHNA
Ten Shaktis, known by the name of Das Mahavidya among sadhaks is best Vidya and ruler of
universe. All its forms are special in them and are capable of providing every type of happiness and
pleasure to sadhak. But every Mahavidya has got its own significance which has been indisputably
agreed upon from ancient ages. But the form of Mahakaali has always been worshipped in hearts of
every sadhak. Its many prime forms and some special forms have been famous among sadhna world.
May be it is Dakshin Maarg (right hand path of Tantra) or Kapaalik sadhna, shamshaan or Augarh
sadhna or Trik or Kaula path , sadhna/upasana of Devi has been done in all paths by every sadhak in
many of its forms in many padhatis from ancient ages. May be Mahakaali has been considered to be
the Shakti of destruction procedure but she is operational in all three basic procedure of universe
(Construction, Maintenance and destruction).
This Shakti of Mahakaal from of Aadi Shiv has always been worshipped among common public due
to her nature to do welfare and provide security. Highest-level Siddhs and sadhaks have accepted
unanimously that sadhak can attain various types of accomplishments by doing sadhna/upasana of
Bhagwati Mahakaali and attain complete success in both materialistic and spiritual aspects of life.
Mahakaali is one such Mahavidya about which it is said that she provides quick results in Kalyuga.
Certainly, it is indisputable truth related to Devi which has been witnessed by many sadhaks in this
era. Ancient Tantra scriptures say that doing sadhna of Bhagwati is equivalent to rise in good-luck of
any sadhak.
There are many forms related to Bhagwati known among sadhaks but Vidyakaali or Vidyakaalika
form of Bhagwati is considered to be very abstruse and special since this form is form related to
Vidya i.e. abstruse knowledge, accomplishing which sadhak attains many types of abstruse
knowledge. But sadhna procedure related to this form of goddess is very intense and exceptional,
which cannot be easily carried out. And in today’s era, this procedure is uncomfortable in many
respects for householders. But there are Saumya (peaceful) Laghu (Small) prayog related to this
secretive form which can be very easily done by sadhak. In this context, prayog related to Devi
Vidyakaalika is presented here. After doing this prayog, sadhak attains many knowledge-related
benefits. Sadhak feels easiness to comprehend any subject, there is development in memory-power of
sadhak, and especially sadhak feels comfortable in understanding meaning of abstruse knowledge
and indicative knowledge. This prayogs is boon for student category because sadhak can attain
progress in their practice since it is related to Vidya.
Sadhak should do this prayog on eighth day of Krishn paksha of any month. It should be done after
10:00 P.M in the night. Sadhaks should take bath and wear red dress. After it, sadhak should sit on
red aasan facing North direction.
Thereafter sadhak should establish any energized idol/yantra/picture if Bhagwati Mahakaali in front
of him. Sadhak should do Guru Poojan, Ganpati Poojan and Mahakaali poojan. Sadhak should chant
Guru Mantra and then do the Nyaas procedure.
KAR NYAAS
ANG NYAAS
After doing Nyaas, sadhak should do the dhayan (meditation) and chant 11 rounds of below mantra.
This can be done by Shakti rosary, Moonga rosary or Rudraksh rosary.
Mantra - OM AAM AAM KROM KROM KREEM KREEM KAALI KAALIKE HOOM HOOM
PHAT SWAAHAA (ॐ आं आं क्रों क्रों क्रीं क्रीं कास्ल कास्लके हं हं फट ्वाहा)
After completion of Mantra Jap, sadhak should dedicate mantra Jap to Dev by showing Yoni Mudra
and pray to her with reverence. Sadhak should do this procedure for 3 days. Rosary should not be
immersed. Sadhak can use this rosary in future.
वसतं , एक ऐसा शब्द र्जसको सनु ते ही मनष्ु य एक मधरु पररकल्पना को अपने सामने साकार करने लगता है.
समय का एक ऐसा भाग, जो की व्यर्क्त को चारों तरफ से सौंदयि और माधयु ि बरसाने के र्लए आतरु हो जाता है.
पष्ु प जमु ने लगते है, पैड जेसे मौन अगं डाई से उठ कर कुछ कहने के र्लए बेताब हो जाते है, नर्दयों की कल
कल कुछ और शातं , र्स्थर सा गीत गनु गनु ाती है, प्रकृ र्त का यह एक ऐसा भाग है र्जसमे र्सफि मधरु ता ही
मधरु ता र्बिरी हुई है. इसी र्लए एक र्वशेर्ष काल िडं या ऋतू को भी वसतं का नाम र्दया गया है, क्यों की उस
समय प्रकृ र्त अपने पणू ि सौंदयि को मनष्ु य के लाभाथि प्रदान करने के र्लए उित रहती है. हाूँ, यह बात अलग है
की मनष्ु य क्या और र्कतना प्राप्त करता है या र्कतना कर सकता है, हो सकता है इस वसतं का या दसू रे शब्दों में
प्रकृ र्त की मुग्धता का वरण कर वह हर एक क्षण का आनंद उठाये या ये भी हो सकता है वह उपेर्क्षत कर दे
और अपने जीवन में वसतं को स्थान ही न दे पाए, लेर्कन प्रकृ र्त का इसमें कोई दोर्ष नहीं है.
मनुष्य के ऊपर यह आधार रिता है की वह प्रकृ र्त तंत्र से क्या तथा र्कतना प्राप्त कर पता है. यह चचाि करने
का उद्देश्य वसतं का स्पि अथि र्नदेर्शत करना था. वसंत कोई ऋतू मात्र नहीं यह प्रकृ र्त का एक वरदान है
र्जसके माध्यम से व्यर्क्त अपने जीवन की न्यनू ता का दरू कर सही अथो में माधयु ि की प्रार्प्त कर सके तथा अपने
जीवन का सौंदयि औरभी र्निार सके . और जब बात सौंदयि माधयु ि की हो तो भगवती र्त्रपरु सदुं री के र्वर्वध
स्वरुप की चचाि कै से न हो? तीनों लोक में सविश्रेष्ठ सौंदयि को धारण करने वाली, भगवती र्त्रपरु ा के र्वर्वध
स्वरुप से सभी साधक प्रायुः पररर्चत ही है. लेर्कन भगवती का एक ऐसा स्वरुप भी है जो की जनमानस में
सपु ररर्चत नहीं है लेर्कन र्सफि साधको के मध्य यह रूप प्रचर्लत रहा है. भगवती का यही रूप वसतं सदुं री के
नाम से जाना जाता है. यह स्वरुप और इसकी साधना पिर्त का र्वधान अत्यर्धक गढ़ु तथा रहस्यमय रहा है.
गरुु मि ु ी प्रणाली से भगवती से इस रूप से सबर्ं धत कुछ प्रयोग प्रचलन में रहे है. प्रस्ततु प्रयोग उसी कड़ी में से
एक प्रयोग है जो की र्सिो के मध्य प्रचलन में रहा है. ब्रह्माडं ीय यन्त्र अथाित र्वशि ु पारद से र्नर्मति पणू ि प्राण
प्रर्तर्ष्ठत श्रीयत्रं पर यह प्रयोग को सपं न्न र्कया जाता है क्यों की भगवती र्त्रपरु सदुं री से सबर्ं धत कोई भी प्रयोग
में यह यंत्र का अपना ही महत्त्व है जो की तंत्र साधको को ज्ञात है ही. र्फर भी, कोई कारणवश यंत्र अगर
उपलब्ध न हो पाए तो व्यर्क्त कोई भी योग्य एवं प्राणप्रर्तर्ष्ठत श्रीयंत्र पर यह प्रयोग को संपन्न करे. यह प्रयोग के
कई प्रकार के लाभ साधक को र्मलते है.
साधक के आर्थिक अभाव का र्नराकरण होता है, जीवन में रुके हुये धन की प्रार्प्त होती है. साधक को
आजीर्वका के नए नए स्त्रोत्र की प्रार्प्त होने लगती है. इसके अलावा, साधक के अगर कोई पाररवाररक संकट है
तो साधक को उस संकटो से मुर्क्त र्मलती है, घर का क्लेश नाश होता है, तथा शार्न्त का वातावरण स्थार्पत
होता है. साधक को शत्रओु से रक्षण प्राप्त होता है, इसके अलावा साधक की प्रर्तष्ठा तथा ख्यार्त का र्वकास
होता है इस प्रकार साधक धन, यश, ऐश्वयि आर्द सि ु की प्रार्प्त कर अपने जीवन को पणू िता की और अग्रसर कर
सकता है.
इस प्रयोग को साधक कोई भी र्दन शुरू कर सकता है.
साधक रार्त्रकाल में १० बजे के बाद स्नान आर्द से र्नवृत हो कर लाल वस्त्रों को धारण करे तथा लाल आसन
पर उत्तर की तरफ मि ु कर बैठ जाये.
साधक अपने सामने बाजोट पर या र्कसी पात्र में लाल वस्त्र पर र्वशुि पारदश्रीयंत्र या अनुपलर्ब्ध में कोई भी
पूणि चैतन्य श्रीयंत्र का स्थापन करे . गुरुपूजन, गणपर्तपूजन के बाद श्रीयंत्र का पूजन भी करे. इसके बाद व्यर्क्त
गुरुमन्त्र का जप कर गुरुदेव से साधना सफलता के र्लए आशीवािद ले. इसके बाद साधक न्यास र्िया को करे .
किन्यास –
ॐ क्लीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमुः
ॐ ह्रीं तजिनीभ्यां नमुः
ॐ ऐ ं मध्यमाभ्यां नमुः
ॐ नीलसभु गे अनार्मकाभ्यां नमुः
ॐ र्हर्ल र्हर्ल कर्निकाभ्यां नमुः
ॐ र्वच्चे स्वाहा करतल करपृष्ठाभ्यां नमुः
हृदयास्दन्यास –
ॐ क्लीं हृदयाय नमुः
ॐ ह्रीं र्शरसे स्वाहा
ॐ ऐ ं र्शिायै वर्षट्
ॐ नीलसभु गे कवचाय हं
ॐ र्हर्ल र्हर्ल नैत्रत्रयाय वौर्षट्
ॐ र्वच्चे स्वाहा अस्त्राय फट्
इसके बाद साधक यंत्र को भगवती का ही पूणि रूप मानते हुये र्नम्न मन्त्र की २१ माला जप करे. यह
जप साधक शर्क्तमाला या मगूं ामाला से कर सकता है.
मन्र - क्लीं ह्रीं ऐ ं नीलसुभगे स्हस्ल स्हस्ल स्वच्चे ्वाहा
( KLEENG HREENG AENG NEELASUBHAGE HILI HILI VICCHE
SWAAHAA)
मन्त्रजप पणू ि होने पर साधक योनी मद्रु ा से यह जप देवी को समर्पित कर दे. इस प्रकार साधक यह
िम ३ र्दन तक करे. माला का र्वसजिन साधक को नहीं करना है. तीन र्दन में यह प्रयोग पूणि होता है
तथा साधक अगर चाहे तो भर्वष्य में भी इस मन्त्र को साधना में उपयोग में लायी गई माला से कर
सकता है.
========================================================
VASANT SUNDARI SADHNA
Vasant (spring season) is one such word listening to which person starts manifesting his sweet
imagination in front of him. It is that time of year when there is beauty and sweetness spread all
around , flowers starts flourishing , there is greenery all around , flowing river make such a pleasing
noise . It is that portion of nature where only melody is spread all around. Therefore, this particular
timeframe or season has been called Vasant because at that time nature is restless to provide
complete beauty for welfare of humans. Though it is different thing altogether that what and how
much person attain or how much he can. It is possible that he can enjoy each and every moment of
this spring by feeling the beauty of nature or there is also a chance that he ignores it and could not
give place to spring in his life. But Nature is not at fault if he does it like so. It all depends upon
person that what and how much he attains from Prakriti (Nature) Tantra. Here purpose of discussion
was to give clear and precise meaning of spring. Spring is not merely a season rather it is boon of
nature through which person can get rid of shortcomings of life and make his life melodious in true
sense and amplify the beauty of his life.
And when we are taking about sweetness and beauty than how is it possible that there is no
discussion of various forms of Bhagwati Tripur Sundari? All sadhaks are aware of diverse forms of
Bhagwati Tripura, most beautiful in all three loks. But there is one form of Bhagwati which is not
very well known among common public but it has been known to sadhaks. This form of Bhagwati
is known by the name of Vasant Sundari .This form and its sadhna padhati procedure has remained
very abstruse and secretive. Some prayogs related to this form of Bhagwati are in vogue through
Guru Tradition. Prayog presented here is one prayog in that series which has been known among
siddhs. This prayog is carried out on universal Yantra i.e. completely energized Shri Yantra made
form purest Parad since every Tantra sadhak knows that this yantra is very important whenever we
talk about any prayog related to Bhagwati Tripur Sundari. But still, due to any reason if this Yantra
is not available then person should do this prayog on any competent and energized Shri Yantra.
This prayog provides many type of benefits to sadhak.Sadhaks gets rid of financial problems; there
is attainment of money which was struck up due to some reason or other. New avenues of
livelihood open for sadhak. Besides it, sadhak gets rid of family problems, if any, household
quarrels are destroyed and peaceful environment is created. Sadhak is secured from his enemies.
There is increase in fame and respect of sadhak. In this manner, sadhak attains money, fame,
prosperity etc. and moves forward on the path towards completeness.
Sadhak can start this prayog on any day.
Sadhak should take bath after 10:00 P.M, wear red dress and sit on red aasan facing North
direction.Sadhak should establish pure Parad Shri Yantra or in its absence any completely energized
Shri Yantra on Baajot or on red cloth in any container in front of him. Sadhak should then do Guru
Poojan, Ganpati Poojan and thereafter poojan of Shri Yantra. Thereafter, sadhak should chant Guru
Mantra and pray to Sadgurudev for success in sadhna. Sadhak should then perform Nyaas
procedure.
KAR NYAAS-
HRIDYAADI NYAAS–
After it, sadhak should chant 21 rounds of below mantra considering Yantra as complete form of
Bhagwati. Sadhak can use Shakti rosary or Moonga rosary for chanting.
Mantra- KLEENG HREENG AENG NEELASUBHAGE HILI HILI VICCHE SWAAHAA (क्लीं ह्रीं
ऐ ं नीलसुभगे स्हस्ल स्हस्ल स्वच्चे ्वाहा)
After completion of Mantra Jap, sadhak should dedicate this Jap to goddess by showing Yoni
Mudra. Sadhak should do this procedure for 3 days. Sadhak should not immerse this rosary. This
prayog is completed in 3 days and if sadhak wants, he can chant this mantra in future using the
same rosary.
साधना जगत में तार्ं त्रक साधनाओ का अपना एक र्वशेर्ष ही स्थान है. हमारी सस्ं कृ र्त में भले ही र्वर्वध प्रकार
के साधना मागि का र्वकास हुआ लेर्कन तार्ं त्रक साधना का स्थान सवोच्च रहा साथ ही साथ जनमानस के
मध्य यह मागि र्वर्वध रहस्यों से पररपणू ि कौतहु ल का र्वर्षय भी रहा. समय समय पर कुछ र्वशेर्ष महाऋर्र्षयो ने
इस मागि का उिार र्कया तथा इस मागि का जो मूल तथ्य या मल ू र्चतं न है उस मूल तथ्य को जनमानस के मध्य
रिा है तथा स्वाथिपरस्तो के हाथो जो भी क्षय इस मागि का हुआ है उसकी पूर्ति करने की कोर्शश की गई.
लेर्कन इस िम में कई कई महार्सिो ने अपने आप को समाज में अलग कर र्लया इसके पीछे का र्चतं न साफ़
है स्वाथि परस्ता में ढोंग और पािण्ड इतनी हद तक फ़ै ल जाता है की सही चीजों को भी गलत नज़ररए से देिा
जाने लगता है, तंत्र के साथ भी ऐसा ही हुआ और यही हुआ तार्न्त्रको के साथ भी.
ऐसी पररर्स्थर्त में उन्होंने अपने आप को समाज से अलग कर दरू स्थ र्नजिन स्थानों में अपनी साधनाओ को
करना ही उर्चत समझा . लेर्कन मुख्य रूप से इसमें कई प्रकार से समाज का ही नुक्सान हुआ, लोक कल्याण
की जगह ढोंग ने ले ली, आध्यात्म का र्वकृ त स्वरुप ही प्रदर्शित र्कया जाने लगा. और धीरे धीरे नाना प्रकार
की रहस्यों से पररपणू ि तथा दल ु िभ साधनाएं पहले गप्तु और र्फर लप्तु ही होने लगी. इस प्रकार समाज की उपेक्षा से
कई कई प्रकार की साधनाएं लप्तु हो गई र्जनमे र्वर्वध शर्क्त साधना तथा प्रकृ र्त तत्रं से सबर्ं धत साधनाएं मख्ु य
रूप से है.
अपनी आतंररक शर्क्तयों को बाह्य शर्क्तयों के साथ सयं ोग कर के जागृत करने तथा प्रकृ र्त के रहस्यों को समझ
कर उसके साहचयि को पणू ि रूप से प्राप्त करने की प्रर्िया को ही तो तंत्र साधना कहते है. र्फर भला कै से संभव
हो की इन साधनाओ में ऐसी साधनाएं न हो जो की अद्भुत और आश्चयिजनक रूप से कोई भी व्यर्क्त के
व्यर्क्तत्व का पणू ि र्वकास कर सके . मनुष्य जीवन में व्यर्क्त सभी प्रकार के भोग की प्रार्प्त के र्लए अपने पुरे
जीवन भर नाना प्रकार से पररश्रम करता है तथा अपने लक्ष्य की और आगे बढ़ने के र्लए हमेशा उित रहता है
लेर्कन यहाूँ पर एक क्षण को रुक कर र्कसी भी व्यर्क्त को यह सोचना र्नतांत आवश्यक है की क्या वह जो भी
भोग को प्राप्त करेगा उसका सुि उसे र्मल सकता है लेर्कन आनंद की प्रार्प्त क्या सभं व है? क्यों की सुि तो
व्यर्क्त के शरीर की क्षर्णक अनुभूर्त है, जैसे ही प्रर्िया या भोग ित्म होता है तब सुि भी ित्म. लेर्कन आनदं
तो सुि से कई कई गुना ऊपर है, क्यों की यह स्थायी है. तथा इसका अनभु व आर्त्मक होता है, शारीररक नहीं.
उदहारण के र्लए अगर अत्यार्धक गमी के समय में पि ं ा चल रहा है तो वह सुि दे सकता है लेर्कन नींद ही ना
आये तो? और जेसे ही पंिा बंद हुआ वह सुि का जो शरीर को अनुभव हो रहा था वह भी ित्म हो जाता है.
आनंद का जीवन में होना र्कतना और क्या महत्त्व रिता है यह सायद शब्दों की अर्भव्यर्क्त से बहुत ऊपर है.
और जो आनंद का र्संचन अपने जीवन में कर लेता है वह र्फर र्कसी भी पररर्स्थर्त में र्वर्षम से र्वर्षम समस्या
में भी आतंररक रूप से शांत तथा र्नश्छल बना रहता है.
शैव मत में र्शव की पञ्च शर्क्तयों का अत्यतं ही महत्त्व है. क्यों की श्रृर्ि के सभी रहस्य इन पञ्च शर्क्तयों के
माध्यम से जाने जा सकते है तथा प्रकृ र्त का पणू ि आनदं इन पाचं शर्क्तयों के माध्यम से र्लया जा सकता है. यह
पञ्च शर्क्त र्िया, ज्ञान, इच्छा, र्चत्त तथा आनदं है. भगवान आर्द र्शव के र्वर्वध स्वरुप है र्जनको सक्ष्ू म से
सक्ष्ू म रूप से अवलोर्कत करने पर भी वे हमेशा रहस्यों से पररपणू ि ही रहे है.
उनके साथ आर्द प्रकृ र्त भी इस लीला में शार्मल होती है. तथा र्वर्वध स्वरुप के माध्यम से वे जनकल्याण के
र्लए सदैव ही कायि करती रहती है. इसी र्लए उनके कई स्वरुप को र्शवा भी कहा गया है.
सूक्ष्म रूप से देिा जाए तो र्शवा मूलतुः र्शव की ही र्वर्वध शर्क्तयां है जो की स्थूल रूप में स्त्री देवी या प्रकृ र्त
के रूप में द्रर्िगोचर होती है. एसी ही एक अद्भुत शर्क्त है आनंदर्शवा. भगवान र्शव की पञ्च शर्क्तयों में यह
आनंद तत्व प्रधान शर्क्त है. इनकी साधना गोपनीय तथा र्वलक्षण कही जाती है. क्यों की मूल रूप से यह
आनंद की ही साधना है, और र्जसने आनंद को ही प्राप्त कर र्लया उसके र्लए र्फर सुि भोग ऐशवयि आर्द
दल ु िभ नहीं है, वरन यह सब तो अनायास ही साधक को प्राप्त होते रहते है. इनकी साधना के बाद साधक का
ह्रदय पक्ष भी र्वर्क्सत होता है पररणाम स्वरुप आने वाली घटनाओ तथा र्नकट भर्वष्य के बारे में भी उसको
र्वर्वध संकेत प्राप्त होने लगते है. व्यर्क्त पूणि रूप से अपने अदं र आनंद के गणु ों को धारण करने लगता है तथा
अपने ही अदं र डूबने लगता है, र्चत को र्नमिलता का बोध होता है. न र्सफि आध्यार्त्मक रूप से लेर्कन भौर्तक
रूप से भी यह एक उच्चतम र्स्थर्त है. क्यों की व्यर्क्त का सामार्जक मान सन्मान ऐश्ववयि तथा सभी सुि भोग
की प्रार्प्त भी एसी र्स्थर्त में तो सहज हो जाती ही है, क्यों की जो र्शव की पञ्च मुख्य शर्क्तयों की उपासना करे
उसके र्लए र्फर क्या दल ु िभ रह जाता है.
साधक इस साधना को र्कसी भी सोमवार से शुरू करे
समय रार्त्र में १० बजे के बाद का हो
यह साधना अगर साधक र्वशुि पारद से र्नर्मित पणू ि प्राण प्रर्तर्ष्ठत पारदर्शवर्लंग पर करे तो साधक को कई
प्रकार के र्वर्वध पररणामों की प्रार्प्त हो सकती है, लेर्कन अगर साधक के र्लए यह संभव न हो तो साधक र्बना
पारदर्शवर्लंग के यह प्रयोग सपं न्न करे.
साधक स्नान आर्द से र्नवृत हो कर सफ़े द वस्त्र को धारण करे. तथा सफ़े द आसन पर उत्तर की तरफ मुि कर
बैठ जाए.
इसके बाद साधक अपने सामने पारदर्शवर्लंग को स्थार्पत करे. र्जनके र्लए यह सभं व न हो वो कोई भी
र्शवर्लंग को स्थापीत करे. साधक गुरुपूजन तथा गणपर्तपूजन को संपन्न करे और र्शवर्लंग का भी पूजन करे .
गुरु मन्त्र का जप करे.
पूजन के बाद साधक साधना िम को शुरू करे . सवि प्रथम साधक न्यास र्िया करे.
किन्यास
ॐ श्रीं ह्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमुः
ॐ भगवर्ततजिनीभ्यां नमुः
ॐ सवािनन्दमर्यमध्यमाभ्यां नमुः
ॐ र्शवाअनार्मकाभ्यां नमुः
ॐ तस्यै वैकर्निकाभ्यांनमुः
ॐनमो नमुःकरतल करपृष्ठाभ्यां नमुः
हृदयास्दन्यास
ॐ श्रीं ह्रीं हृदयाय नमुः
ॐ भगवर्त र्शरसे स्वाहा
ॐ सवािनन्दमर्य र्शिायै वर्षट्
ॐ र्शवा कवचाय हं
ॐ तस्यै वै नेत्रत्रयाय वौर्षट्
ॐ नमो नमुः अस्त्राय फट्
इस प्रकार न्यास करने के बाद साधक मूल मंत्र का जप करे. यह जप साधक र्कसी भी रुद्राक्ष माला से करे .
साधक को २१ माला मन्त्र का जप करना है.
मन्र –ॐ श्रीं ह्रीं भगवस्त सवाानन्दमस्यस्शवात्यै वै नमो नमः
=================================================================
In Sadhna world, the tantric sadhnas keeps special important place. In our culture, be it different
types of sadhna paths are developed but the tantric sadhna has kept the prime importance. Along
with that, this path contains a different type of curiosity and secrecy amongst the common people.
Time to time some ancient saints had emancipated this path. Moreover, put forth the main zest of
this path amongst the common people. In addition, whatever harm caused to these facts were tried
to be consolidated. However, in this process many Mahasiddhas tried to become isolate. The
intension was very clear behind this because now it has become that in this time manipulation and
diplomacy has reached up to certain level where the right facts are also been portrayed in such a
wrong manner and they became ruthless. The same happened with Tantra and with the Tantriks as
well.In such circumstances; they made themselves so isolated in such remote areas where they can
perform their sadhnas without any interruption. However, if we see, the main loss occurred to
society only. Instead of public welfare dissemblance, side took place. A distorted form of spiritual
side was reflecting more. Then gradually the secrecy regarding these sadhnas came first and
consecutive by the time it was disappeared from normal eyes. By societal ignorance many such
secret forms of sadhnas vanished which consists Shakti sadhna forms and the sadhnas related to
nature tantra also.
Conjoining our internal and external powers and activating them as to get complete support from
the nature known as Tantra sadhna. Then why someone would believe it does not contain such
sadhna, which can change any body’s personality from root.
In human life a man does every type of hardship to get all kind of comforts in his life. Moreover,
this is how he always head towards achievement of his goal. However, at this point one has to stop
for a while, should give a thought whatever comforts he earns would give him that kind of pleasure
but what about the happiness he is seeking for? Because happiness is a physical state, the physical
comfort is endured that feeling gets end up by experiencing it. However, the real happiness lays
very much high above all this. Moreover, it experiences soulful not on physical level.
For example, in hot summer if fan is switch on,its providing a pleasure but what if you don’t feel
sleepy? In addition, suddenly what if fan switched off and the pleasure, which was getting to our
body, may get end up.So it is quite hard to calculate the importance of happiness in everyone’s life.
If anyone irrigates the happiness in his/her life, then in any situation he stays calm and quiet.
In Shaiv belief the five powers of shiva keeps prime importance. It is because all universal truth can
be figure out via this medium. In addition, one can experience pleasure the complete happiness
from the nature’s secrets. These five powers – Kriya (activity), Gyan (knowledge), Ichha (wish),
Chitt (conscious) and Anand (happiness). Lord Aadi Shiva’s manifestation in many forms but every
form keeps secret information in it. Moreover, along with him the Aadi Prakrati is equally involved
in all such acts. Therefore, in various forms she also acts for public welfare. Moreover, this is how
many forms of his are also known as Shivaa.If we see minutely, Shivaa originally is the power of
Shiv only which in physical form represented in female or prakrati form. Here we are going to see
one of his wonderful form ie.eAanadshiva. Well, amongst lord shiva’s all five power she comes
under one of the main important powers as described above. Her sadhna is said to be very secretful
and eccentric. Basically, One who has achieved Anand (happiness) in his life then pleasure,
comforts or luxuries hardly makes difference in his life. Rather its achieved by sadhak very
casually.
After accomplishing her sadhna, the sadhak’s heart side gets developed in such way as he ends up
getting signals regarding immediate future. A person retains all types of happiness under him and
starts sinking in his innerself, he realizes his innocence of his consciousness. Not only spiritually
but also on materialistically he achieves a higher state in life.
Because only in this state only every type of heal, wealth comforts are easily achievable in this
state. Ultimately one who does the Panchmukhya Shakti worship of Shiva cannot remain ignored in
any front of life.
Sadhak can start this sadhna from any Monday.
Time after 10.00 pm (night)
If sadhaks attempts this sadhna on pure ParaadShivling then he may achieve many experiences.
Nevertheless, if in case if it is not possible then he can carry on without paradshivling also.
After having bath, he should wear white clothes, be seated on white asana facing towards north
direction.
Then he should establish paradshivlinginfront of him. One who cannot can use normal shivling.
Sadhak should do Guru and Ganpati worshipping and then shivling worship also. Then he should
do guru mantra Jaap.
After worshipping sadhak should starts Sadhna Kram. First Nyaas has to be done-
KARNYAAS
HRIDAYNYAAS
This is how after doing all nyaasas sadhak should do 21 rosaries of the mantra. Any rudraaksh
rosary can be use.
Mantra - OM SHREENG HREENG BHAGAWATI SARVAANANDAMAYI SHIVAA
TASYAIVAI NAMO NAMAH (ॐ श्रीं ह्रीं भगवस्त सवाा नन्दमस्यस्शवात्यै वै नमो नमः)
After completing mantra chanting sadhak should bow in front of aanandshivaa. Sadhak should
follow this sequence for three consecutive days. Rosary need not be dispersed; if one wants, one
can use the same rosary in next sadhnas.
भला भगवती तारा के सबधं में उच्चाररत हुआ कोई भी शब्द सामान्य रह ही कै से सकता है. अपने
सदैव कल्याणमय रूप के कारण देवी हमेशा अपने साधको के मध्य अत्यतं श्रिेय तथा ह्रदय र्प्रय
रही है. तथा उच्च से उच्चतम तंत्राचायो ने भगवती तारा की साधना कर जीवन में श्रेष्ठतम ज्ञान की
प्रार्प्त की, चाहे वह भगवान वर्सष्ठ, र्वश्वार्मत्र हो या स्वयं भगवान बिु . वस्तुतुः आर्द काल में
ब्रह्मज्ञान से सबर्ं धत साधना िम में भगवती तारा की साधना का अर्तर्वशेर्ष स्थान हुआ करता है.
लेर्कन काल िम में वे सब साधनाएं गुप्त होती गई, र्फर भी र्तब्बत के कई तांर्त्रक मठो में आज भी
इन साधनाओ को गप्तु रूप से बौि लामा अपने र्शष्यों को सपं न्न कराते है तथा आध्यात्म की
उच्चतम र्स्थर्त बोर्धसत्व की प्रार्प्त के र्लए भगवती तारा से सबर्ं धत िम को प्रदान करते है.
बोर्धसत्व ही आगम में ब्रह्मज्ञान है. अथाित ब्रह्माण्ड के रहस्यों के बारे में जानना, समझना तथा
आत्मसात करना. भगवती तारा के इसी स्वरुप को जो की ब्रह्माण्ड का ज्ञान प्रदान करता है उसे ब्रह्म
तारा कहा गया है. उपरोक्त पंर्क्तया भी भगवती के ब्रह्मतारा स्वरुप का सांकेर्तक वणिन करता है.
भगवती तारा ह्रदय में र्स्थत आत्म स्वरुप है का अथि कुछ इस प्रकार है की भगवती ह्रदय अथाित
अनाहतचि में आत्म स्वरुप अथाित ज्योर्त स्वरुप में सभी व्यर्क्तयो में र्वराजमान है तथा देवी की
उपासना करने वाले व्यर्क्त को परतत्व या ब्रह्माण्ड के गुढ़ ज्ञान को प्रदान करती है. वस्तुतुः साधक
अपने जीवन में र्वर्वध प्रकार के रहस्य से पररर्चत होने के र्लए ही साधना िम को अपनाता है .
रहस्य का अथि यूूँ भी समझा जा सकता है की र्कसी भी र्वर्षय से सबर्ं धत अज्ञानता को दरू करना.
भगवती ब्रह्मतारा भी प्रकृ र्त का एक ऐसा स्वरुप है जो की साधक के ह्रदयचि या अनाहत का
जागरण कर आत्म तत्व को चेतना देता है. फल स्वरुप साधक में र्वर्वध प्रकार के सकारात्मक भावो
का र्वकास होता है.
आत्मर्वश्वास की कमी र्जस भी साधक को हो उनको आत्मर्वश्वास की प्रार्प्त होती है
साधक के िोध तथा अहक
ं ार जैसे हीन भावो का क्षय होता है.
साधक का र्चत शातं तथा र्स्थर होने लगता है.
The meaning of the above lines is Goddess Tara is situated in the heart in the form of the soul. And
can give anyone knowledge of the universe in a moment. Though, it may look very normal but the
exact meaning is very descriptive and why it shouldn’t. May it possible to have normal meaning of
the lines said in praise to the goddess tara? No. because of her felicitous form, Goddess has
remained always reverend and beloved. And higher scholars of the tantra like Vasistha,
Vishwamitra and Lord Buddha too acquired knowledge by performing sadhana of Goddess Tara.
Actually, in ancient time, sadhana of the Goddess Tara used to have very important place for the
universal knowledge or BrahmaJnana. But time while, all such process became secret, though, in
many tantric monastery of Tibet, Bauddh Lamas let their disciples perform such sadhanas today
even and provides step procedures related to goddess Tara to attain highest level of the spiritualism
‘BodhiSatva’. BodhiSatva is same BrahmaJnana of the Agam. This means to know about the
universal secrets, to understand it and to realize it. The form of goddess Tara, providing knowledge
of the universe is called Brahm Tara. The above mentioned lines were also allusively describing the
same form. Goddess is situated in the heart in the form of soul that means, Goddess is situated in
the heart of the every person, here, and heart means Anahat Chakra; in the form of the soul means
in the form of the light and provides secret knowledge to those, who worship her. Actually, sadhaka
approaches to the particular sadhana process just to have knowledge about the secrets. Secret here
means, to remove the unawareness towards the subject. Goddess BrahmTara is form of the Prakriti
i.e. nature which gives sadhaka consciousness to the soul by activating anahat chakra. This results
in increments of the various positive feelings in the sadhaka.
Those who lack the confidence, such sadhaka receive self confidence.
Thinking process of the sadhaka increases and one by self starts becoming aware of the many secret
This way, with medium of the easy process, sadhaka could receive many essential powers. And
above all, sadhaka receives blessings of the goddess which can remove obstacles of both material
and spiritual life. This way, for any sadhaka, this process is essential, which have to be attended.
Sadhak should start it after 10 in the night. After having bath, sadhak should wear red cloths and
should sit facing north direction.
This sadhana is basically completed in front of Paarad Sastraanvita Idol. Sadhak should establish
this idol in front and if this idol is not available one may establish activated yantra or picture of the
goddess. Sadhak should do guru poojan, ganapati poojan and poojan of the idol. Guru mantra
chanting should also be done. After that, sadhaka should bow to the goddess and do process of the
Nyasa.
KAR NYAAS
ANG NYAAS
After this process, sadhak should start chanting of the main mantra. this mantra chanting could be
done with coral rosary, Shakti rosary or Tara rosary. Sadhak should chant 21 rounds of the
following mantra.
MANTRA - OM HREEM STREEM BRAHM ROOPINYAI PHAT (ॐ ह्रीं स्त्रीं ब्रह्म रूस्पण्यै
फट्)
When mantra chanting is completed, sadhaka should offer mantra chanting to the goddess
performing Yoni Mudra. This way, sadhaka should do process for three days. By doing it three
days, this process is completed. Sadhak should not immerse the rosary. This rosary could be used in
future for mantra chanting.
Astrological yogas..?
जब भी कोई नया नया ज्योर्तर्ष सीिने वाला या इस शास्त्र मे रूर्च लेने वाला व्यर्क्त इन योगों को पढता
हैं तो स्वाभार्वक हैं र्क वह अनेको योगों को िासकर शभु योगों को तो अपने कुंडली मे लगाकर देिना
चाहता हैं ही और इसके पररणाम पढकर एक प्रकार की िश ु ी से भर जाता हैं र्क कुछ ऐसा हैं इसमे,वही ूँ जब
यह बात स्वयम की कुंडली मे व्याप्त कुछ अशभु योगों पर आयें तो र्नराशा का आ जाना एक स्वाभार्वक सी
प्रर्िया हैं या एक डर की कहीं सच मे ऐसा न हो जाए,अनेको व्यर्क्तत्वो का यह शौक सा रहा हैं र्क रोज उठते
ही वह अपने रार्शफल को पढते हैं और उसके र्हसाब से अपने र्दन भर को आंकने का प्रयत्न करते हैं.अब
यह र्कतना सही हैं या र्कतना गलत, अभी इस बात पर र्वचार नही करते हैं बर्ल्क यह देिते हैं र्क क्यों कुछ
पर सारे पररणाम सही से लगते हैं और क्यों कुछ पर एक भी पररणाम सही र्नकल नही पाते है.
जहाूँ एक ओर जन्म लग्न की शुिता हैं पर र्कतने हैं जो यह कर पाते हैं या उन्हें कोई योग्य ज्योर्तर्षी र्मले जो
यह सही गुणा भाग करने मे सक्षम हो वही ूँ दसू री ओर यह भी सत्य हैं र्क हर शास्त्र की एक सीमा हैं,और उस
सीमा के आगे उस व्यर्क्त को कोई न कोइ अन्य आसरा लेना ही चार्हए, तभी उसके फल कथन मे सत्यता का
अश ं जायदा होगा.पर जब बात हैं र्क क्या सारे ज्योर्तर्ष योग के पररणाम जो उस व्यर्क्त र्क कुंडली मे आ रहे
हैं, उस व्यर्क्त को र्मलेंगे ही,यह र्नर्श्चत नही हैं सामान्यतुः ज्योर्तर्ष कुछशभु शभु योग बता देता हैं और कुछ हैं
जो कुछ और धन रार्श अर्जति की आशा मे कुछ भयभीत करने वाले भयक ं र योग आपकी कुंडली मे हैं, यह
कह कर अपनी जेब गमि कर लेंगे.सत्यता को दोनों तरफ से छुपाया जाता हैं,कुछ गलती हमारी भी हैं र्क हम
र्कसी भी ज्योर्तर्ष के श्रम को इतना सस्ता समझते हैं र्क उसे उसके श्रम का पाररश्रर्मक भी देने मे आनाकानी
करते हैं, नतीजा आप समझ सकते हैं .
यहाूँ एक बात अच्छी तरह से समझ लेना चार्हए र्क र्सफि र्कसी योग शुभ या अशुभ के होने मात्र से उसके
पररणाम आपको र्मल ही जाए यह संभव नही हैं.िासकर कुछ साधनात्मक योगों के बारे मे तो यह र्नर्श्चतता
हैं र्क शायद उनके पररणाम कभी भी न र्मले क्योंर्क सबसे पहले तो यह देिना हैं र्क क्या उस व्यर्क्त मे इस
ओर जाने की कोई लालसा या कोई गुण हैं या नही. र्फर बात आती हैं की क्या उसमे जीवन काल मे ऐसी
संभावनाए हैं र्क इस प्रकार एक योग घर्टत हो ही जाए ,यहाूँ पर मैं उस व्यर्क्त र्क आयु और र्स्थर्त का भी
आकलन करके कुछ कहा जाए उसकी बात रि रहा हूँ ..
ज्योर्तर्ष का एक वगि हैं जो कोई भी घटना के होने पर र्कसी न र्कसी तरह से उस घटना को कोई न
कोई ज्योर्तर्ष योग से जोड़ कर अपनी वाहवाही कर ही लेता हैं, अपने ज्ञान की..... तो एक वगि हैं जो लगतार
अनुसन्धान मे लगा रहा हैं उसका ध्यान इस बात पर रहता हैं र्क क्यों और कब.न र्क कोई र्कसी तरह का हो
हल्ला ..हमेशा र्कसी भी योग के फर्लत होने का समय देिना चार्हये और की क्या वह समय उस व्यर्क्त के
जीवन काल मे आ रहा हैं? यहाूँ मतलब सबंधीय दशा या महादशा उसके जीवन काल मे हैं या नही अगर नही
हैं तो अन्य ग्रहों की दशाओ मे अतं र दशा देिें जहाूँ पर उसके पररणाम र्मलने की आशा हो ,साथ ही साथ यह
भी ध्यान रिे र्क क्या ऐसा हो पायेगा .कारण यह हैं र्क आप र्कसी के र्ववाह की आयु ३५की अवस्था मे
ज्योर्तर्षीय गुणा भाग करके र्नकाल दो पर उसकी कुल आयु मात्र २७ /२८ वर्षि ही हो तो कै से फर्लत हो
पायेगा? यह योग यह भी तो सोचने र्क बात हैं .
वही ूँ एक बात यह भी हैं र्क भूलकर भी र्कसी के चररत्र का आकलन आसानी से न करें क्योंर्क इतने र्नयम
और उपर्नयम हैं र्क उच्चस्तरीय ज्योर्तर्ष भी गलती कर सकता हैं और इस गलती का व्यथि ही पररणाम
अच्छा नही होगा .उदाहरण के र्लए कुछ शुभ गृह र्कसी व्यर्क्त के अिम भाव मे हैं और ज्योर्तर्ष योग मे से
एक योग इस तरह का भी हैं जो असरु योग कहलाता हैं र्जसके अनसु ार व्यर्क्त तानाशाह जैसा होगा आचरण
भी वैसा ही ही होगा . या इसे ऐसे देिें की र्कसी के कुंडली मे व्यर्भचार वाले योग हैं तो सामान्यतुः उसके
बारे मे कोई अच्छी राय समाज मे नही होगी,यह तो सामन्य सी बात हैं पर इतना आसन नही हैं ज्योर्तर्ष .यहाूँ
यह ध्यान से देिना होगा र्क क्या उस व्यर्क्त का दशवा भाव शभु ता र्लए हुये हैं या अशभु ता .अगर श्रेष्ठ
दशम् भाव हैं तो उस व्यर्क्त की कुंडली मे भले ही ऐसे भयकं र योग हो वह कायि रूप मे पररर्णत नही करेगा
.क्योंर्क दशम भाव तो कायि का भाव हैं ,और र्कसी के चररत्र आक ं ने मे भी यही भाव को भू ध्यान मे रिें .
कई कई बार कोई व्यर्क्त अत्यार्धक चररत्रहीन व्यर्क्त होता हैं पर र्कसी को उसका पता तक ही नही क्योंर्क
अपयश वाली बात या योग या अवस्था उसकी कुंडली मे होती ही नही हैं.उनके र्नकटस्थ व्यर्क्त तक तो यह
पता नही होता हैं र्क ये व्यर्क्त ऐसा हैं .
ठीक इसी तरह भले ही र्कसी र्क कुंडली मे र्कतनी भी उच्चता र्दि रही हो पर लग्न भाव की श्रेष्ठता बहुत
इसको आधार देती हैं वही ूँ मानर्सक रूप से इस र्स्थर्त को प्राप्त करने मे क्या वह सक्षम हैं?.यह भी तो सोचने
र्वचारने वाली बातें अन्यथा भले ही वह उच्च अवस्था उसे र्मल जाये पर रहेगी र्कतने देर .
हर ज्योर्तर्ष योग के फर्लत होने की कसौटी उसके फर्लत होने मे हैं .यहाूँ के बल समय ही र्नधािरण कर
सकता हैं र्क आप कहाूँऔर र्कस स्तर पर िड़े हैं ,र्सफि र्कसी घटना का र्वश्लेर्षण करने मात्र से आप भले ही
ज्योर्तर्ष हो जाए पर साथिकता आने वाले समय को पढ़ने मे हैं और दरू भर्वष्य नही बर्ल्क पास पास की
घटनाओ ं को आकने मे हैं यहाूँ प्रश्न सही होने या गलत होने का नही हैं बर्ल्क इसमें एक सच्चे
अनसु धं ानकताि होने मे हैं औरजो भी गलर्तयां फल कथन मे हो रही हैं उन्हें गलती स्वीकार करना या सही
होने पर एक नया सत्रू पाने या समझने की अपनी ही एक िश ु ी भी तो हैं .अतुः देिा जाए तो सबसे पहले
जब कोई गभं ीर प्रश्न सामने आ रहा हो तो उस व्यर्क्त की आयु देिी जाए और यह भी देिा जाए की
सबर्ं धत योग जो शभु कारक हैं या अशभु कारक हैं .
क्या वे जीवन भर असर देने वाले वगि के हैं या र्कसी र्वशेर्ष समय तक ही उनका अथि हैं अगर र्वशेर्ष समय
तक ही उनका अथि हैं तो क्या वह समय,इस व्यर्क्त के जीवन काल मे सही समय पर आ रहा हैं या
नही.उदाहरण एक र्लए एक छोटे से बच्चे की आयु के १ साल से लेकर ४ साल तक र्क आयु मे उसके
परम धनी या परम गरीब होने की भर्वष्य वाणी करने का क्या अथि.
र्कसी की र्ववाह आयु मात्र ३ साल की आयु मे र्नकाल देने का क्या अथि (कभी यह सभं व रहा होगा पर
पररणाम तो हमें आज देना हैं और आज की सामार्जक अवस्था मे क्या यह सभं व हैं? )
र्कसी बालक के संतान योग या उसके सरकारी जॉब होनी र्क उस आयु मे होने का क्या अथि हैं.
र्कसी भी भर्वष्य फल के देने के साथ,व्यर्क्त की आयु ,उसकी मानर्सक शारीररक और आर्थिक र्स्थर्त को
भी समझ कर पररणाम देना कहीं ज्यादा श्रेयस्कर होगा.
अब यह हर बार उम्मीद की जाना की हम र्जस भी ज्योर्तर्ष के पास जाये पहले वह हमारी सारी बातें सही
बताये एक एक तभी, हम उससे सलाह लेंगे, यह तो र्नरथिक बात हैं,क्योंर्क तब हमे उसके श्रम एक र्हसाब
से उसे उर्चत पाररश्रर्मक भी दे सकने मे समथि होना चर्हये और यह भी संभव नही र्क एक ज्योर्तर्ष हर बार
अपने सही होने का या उसके ज्योर्तर्ष र्वद्या मे प्रवीण होने का प्रमाण पत्र हर र्कसी को देता रहे.
अनेक उच्च स्तरीय ज्योर्तर्ष तो र्कसी नव आगतं ुक से यह सनु ते ही,की मेरा इस र्वद्या मे र्वश्वास तो नही हैं
पर उनके - उनके कहने पर आपके पास आया ह.ूँ वे यह सुनते ही सामने वाले व्यर्क्त से साफ़ साफ़ कह देते
हैं र्क मैं आपको इस र्वद्या पर र्वश्वास कराने के र्लए नही बैठा ह,ूँ अगर र्वश्वास हैं तो स्वागत हैं अन्यथा
अपना समय नि न करें .
इस तरह से र्कसी भी योग के पररणाम देते समय या आकलन करते समय बहुत कुछ बातों का ध्यान रिना
होता हैं,जब कुछ बातें बहुत गभं ीर हो तब जीवन आयु और वहां कहाूँ और र्कस जगह का रहने वाला हैं
और उसके यहाूँ प्रचर्लत रीर्त ररवाज मे क्या यह सभं व हैं ऐसी अनेको बातों पर ध्यान दे कर ही अपना फल
कथन करना चार्हये.जो कायि कुछ कर्ठन सा जरुर हैं.
इसर्लए र्सफि ज्योर्तर्ष गुणा भाग के साथ यर्द साधनात्मक बल और इि बल भी होगा तो यह इस र्वद्या के
र्लए मददगार हो होंगे और उससे भी जयादा आप र्जस व्यर्क्त को मागि र्दिा रहे हैं उसके र्लए बहुत
अनुकूलता भी .
======================================================
Will Astrology Yog materialize in Reality? - One view
Whenever any new student of astrology or person having interest in this shastra read these yogs it is
but natural that he wants to see various yogs and especially the auspicious yogs in his horoscope
and after reading the results his heart is filled with joy. But when we talk about inauspicious yogs
present in our horoscope then it is quite natural to get disappointed or get apprehension that it may
happen in reality. Many persons have got the hobby of reading their zodiac results and try to
analyze their whole day proceedings accordingly. Now just leave aside the topic whether this
practice is right or wrong rather we will focus on why all results prove to be right for some persons
and on others none of the results prove to be right.
On the one hand correct birth ascendant is important but how many are there who can determine it
correctly or they have any capable astrologer who is capable of doing correct calculation. On the
other hand, it is also true that every shastra has got one limit, beyond which person has to rely on
some other alternative then only degree of preciseness of said result will be higher. But when we
are talking about that will a person definitely get all the results of astrological yogs which are
present in his horoscope, it is not a certainty. Generally Astrologer will tell some auspicious yogs
and there are some who in order to earn money will tell you some dreadful yogs in horoscope.
Truth is concealed from both sides. Some fault also lies with us that we consider hard-work of any
astrologer to be so cheap that we hesitate to give fee for hard work put by him. Results are but
obvious.
Here one fact has to be understood very well that just by any Yog being auspicious or inauspicious,
you will get its results, it is not possible.
This fact is especially valid in case of some sadhna-centric yogs that probably one will not get the
Yog’s results because first of all we have to see whether that person has got inclination or desire to
move forward in sadhna field or not. Another thing that needs to be seen is that whether there are
possibilities in his life that a particular yog will materialize. Here, I am specifically referring to age
and circumstances of person…There is one class of astrologer who upon happening of any incident
, relate incident to some astrological yog or other and boosts of his knowledge….On the other hand
, there is one class which is continuously doing research and seeking answers like why and when.
This class does not make much of noise….Always, the time for materialization of any yog should
be seen and thereafter it should be seen whether that time will be coming in lifetime of that person?
Here what I mean is whether related Dasha or Mahadasha is present in person’s lifetime or not. If it
is not, then see Antardasha in Dasha of other planets where there is hope of getting results. Besides
it, see whether such thing can happen. Reason is that if you arrive at age of anyone’s marriage to be
35 after doing astrological calculation but if his/her total age is only 27/28, then how this yog could
be materialized? It is point worth pondering over.
Here one more thing is that do not estimate anyone’s character casually because there are so many
rules and sub-rules that any high-level astrologer can commit errors.
And results of such errors will not be good. For example, if any auspicious planet is present in
eighth house of person and there is one such yog in astrological yog which is called Asur Yog
according to which person and his behavior will be like dictator. See another case that there exists a
yog of infidelity in anyone’s horoscope then generally no right opinion will exist in society
regarding him. It is normal thing but it is not that much easy. Here, it has to be seen that whether
tenth house of person is benefic or malefic. If tenth house is benefic then may be person’s
horoscope has such dreadful yogs, he will not translate into action. Tenth house is house of action
and while concluding about anyone’s character, this house has to be kept in mind.
So many times, person is extremely characterless but nobody is aware of it because no yog or state
exhibiting disgrace/shame exists in his horoscope. Even his nearby person does not know that
person is like this.
In the same manner, may be anyone’s horoscope is looking so much great but good ascendant
house provides base to it. Moreover, it has to be seen that whether he is mentally capable to attain
that state? All these things have to be considered otherwise any high-level state he may attain but
how long it will remain.
True test of any astrological yog lies in its materialization. Here , only time decides where are you
standing and what is your level , you can call yourself astrologer just by analyzing any incident but
fruitfulness lies in reading coming time and it is not in reading distant future but rather in predicting
the incidents happening in near future. Here it is not about being right or wrong rather what is
important is to adopt an attitude of researcher, to accept the errors committed in telling about future
or when prediction is right, attaining and understanding new formula. Therefore it should be seen
that when you are analyzing any serious question then age of person should be seen and it should
also be seen that related yogs whether they are auspicious or inauspicious belong to class of giving
lifelong effect or are they valid only uptil some particular time.
If it is valid only uptil a particular time then whether that time will arrive in lifetime of the person
at right moment or not. For example, what is point in predicting that a child will be extremely rich
or poor in age between 1 and 4.
What is point in calculating age of anyone marriage age to be only 3 years (It could have been
possible anytime in past but we have to give predictions now and whether it is possible in today’s
social scenario?)
How can a child have yog of having children and government job in that age.Before predicting
anyone’s future, it will be better to understand age of person, his mental, physical and financial
state and give results.
Now going every time to astrologer with the hope that first he should tell all things correctly one by
one , then only we will take advise is useless thing because then we should be ready to pay him
appropriate fee according to his hard-work. And it is also not possible that every time astrologer
should give certificate of being right and competent in astrology
Many high-level astrologers, when they hear from any amateur that I do not have any trust in this
Vidya but I have come only upon recommendation of some people. Listening to it, astrologer
clearly says that I am not sitting here to restore your trust in this Vidya. If you have trust then you
are welcome otherwise do not waste your time.
In the same manner, some points need to be considered before predicting results of any yog. When
topic is serious then age and residing location of person and whether it is possible in customs and
tradition prevalent in that society need to be considered and then predictions should be made. This
seems little bit difficult. Therefore if along with astrological calculation, power of sadhna and Isht
is present then they will be helpful for this Vidya and moreover, it will be favorable to person
whom you are guiding.
ज्योर्तर्ष का मानव जीवन पर असर और प्रभाव आज सभी को ज्ञात हैं,और न मानने वालो की तुलना में
मानने वालों की संख्या कहीं जायदा हैं वस्ततु अगर र्कसी भी र्वज्ञानं में सत्य का सामना करने की शर्क्त नहीं
हो तो वह कै से आज हजारों वर्षों से मानव समाज के बीच अपना स्थान बनाये रि सकता हैं, यूूँ तो आज कई
जगं ली जन जार्तयां ऐसी हैं जो आधर्ु नक र्वज्ञानं को न जानती हैं, न मानती हैं तो उससे आधर्ु नक र्वज्ञानं की
सत्यता और असत्यता पर भला प्रश्न र्चन्ह कै से लग सकता हैं.
और यह हमारा सौभाग्य हैं की आज कम से कम इस ज्योर्तर्ष शास्त्र के अनेको स्तम्भ कम या ज्यादा ही सही
पर अपने स्वरुप में सामने हैं और इस ज्योर्तर्ष शास्त्र के अनेको भागो और प्रभागों के मध्य एक नाम रत्न
ज्योर्तर्ष का भी हैं.
प्राचीन काल से अनेको र्दव्य मर्णयों के बारे में उल्लेि र्मलता ही आया हैं, जैसे पारद मर्ण और
स्मम्यन्तक मर्ण और भी कई कई मर्णयाूँ भी, इसका मतलब र्सफि यह मर्णयाूँ धारण करने की ही नहीं बर्ल्क
इनका कुछ र्वशेर्ष महत्त्व भी रहा होगा तभी तो उस प्राचीन काल में भी और आज के काल में भी लोग इनके
पीछे पागल हुए रहते हैं.इन्हें र्सफि पत्थर का टुकडा नहीं माना जा सकता हैं.
सदगरुु देव जी ने मत्रं तत्रं यन्त्र र्वज्ञानं पर्त्रका के एक अक
ं में ऐसी अनेको मर्णयों के बारे में हमारा ध्यान
आकर्र्षित कराया था र्जनसे साधना में सफलता कहीं आसानी से पायी जा सकती हैं.और यह उस काल के
लोगों का सौभाग्य रहा हैं वे सब र्दव्यतम र्नर्धयां जो जीवन के अनेको क्षेत्र में सहयोगी रही हैं सल ु भ रही पर
आज यह अवस्था र्फर से शोचनीय हो गयी हैं .
ज्योर्तर्ष के पररणामो पर भले ही लोग प्रश्न वाचक र्चन्ह लगाए पर लोगों के मध्य आज भी रत्न के प्रर्त
आकर्षिण तो हैं ही,एक तरह से इन्हें या इनके बारे में न जानने लें व्यर्क्त, इन्हें सौन्दयि बढाने वाले एक
उपादान मान सकते हैं पर वास्तव में यह तो सही हैं पर इसके आलवा भी इनका महत्त्व भी कई कई गणु ा
अर्धक हैं.
और यूूँ तो इन मर्णयों का इर्तहास राजा बर्ल की कहानी से ही सामने आता हैं जहाूँ भगवान् र्वष्णु ने वामन
अवतार के माध्यम से राजा बर्ल के शरीर के र्वर्भन्न र्हस्से से इन मर्णयों का जन्म हुआ हैं यह घटना सभी
जानते हैं, क्योंर्क वचन के उपरान्त जब भगवान् ने उसके शरीर का स्पशि अपने चरण से र्कया तो वह परू ा
रत्नमय हो गया और देवराज इद्रं ने उसे अपने वज्र से टुकड़े टुकड़े कर र्दया .इस तरह से इन रत्नों का ससं ार
के सामने आना हुआ,वास्तव में रत्न र्सफि सौन्दयि बढाने वाले उपादानो से बहुत कुछ अलग हैं .इनका सही
प्रयोग र्कसी उर्चत और योग्य आधार वालें व्यर्क्त के र्नदेशों पर र्कया जाए तो व्यर्क्त बहुत जल्द ही
अपने लक्ष्य को पा सकता हैं.इस बात का अथि समझना चार्हये,वस्ततु ुः बुर्िमान वही हैं जो इन रत्न र्वज्ञानं के
गुणों की सहायता से अपने जीवन की प्रर्तकूलताओ को अनुकूलताओ में बदल सकें .
ज्योर्तर्ष में जो भी कर्मया या न्यन्ु ताये एक मानव जीवन की बताई जाती हैं जब र्कसी जातक के जन्माक
ं को
देिा जाता हैं.और इस रत्न र्वज्ञान के माध्यम से उन कर्मयों और न्यनू ताओ को एक सही वैज्ञार्नक दृिी के
माध्यम से उपयोर्गत कर मानव जीवन के कि प्रद रास्ते को सगु म करने का काम,
यही र्वज्ञानं करता हैं.इस र्वज्ञानं में र्वदेशों में भी बहुत कायि हो रहा हैं वस्तुतुः रत्नों का एक अद्भुत कायि हैं
की र्कस तरह यह मानव जीवन के र्लए यह उपयोगी र्सि होते हैं र्कस तरह से हमारे आचायों ने मनीर्र्षयों ने
और उच्चतम आध्यात्म र्वदो ने यह िोज र्कया की र्कस तरह ये रत्न मानव जीवन के र्लए उपयोगी होंगे
र्कस तरह से हर रत्न र्कस तरह से र्कसी एक ग्रह का प्रतीक हैं.इस तरह से इस र्वज्ञानं को कोई सामान्य नहीं
समझा जाना चर्हये यह भी १०८ र्दव्य र्वज्ञानों में से एक हैं र्जनका एक सही स्वरुप सामने आना हैं और
र्सफि मख्ु य रत्न ही नहीं उपरत्नो का भी एक अद्भुत ससं ार हैं न के बल ग्रहों के मख्ु य रत्न की बदले में पर्हने
जाने के र्लए ही नहीं बर्ल्क अनेको ऐसे र्दव्य उपरत्न हैं र्जनका अभी पररचय सामने आना बाकी हैं , जो
की सस्ते सरल और सहज ही उपलब्ध हैं पर उनका वास्तर्वक स्वरुप छुप सा गया हैं.र्जनकी र्दव्यता से
अभी भी जन सामान्य ही क्या बर्ल्क साधक समाज भी पणू ति या अपररर्चत हैं.
इन अनेको र्दव्यतम रत्न र्वज्ञानं से सबंर्धत बातें और तथ्य तो समय समय पर आपके सामने आयेंगे ही जैसे
जैसे हमारे वररष्ठ सन्यासी भाई बर्हनों की आज्ञा और र्नदेश हमें र्मलता जायेगा .
================================================================================
Today, all of us are aware of the effect and influence of astrology on human life. Those who accept
it are more in number than those who do not accept it. In fact, if any science is not able to face the
truth then how can it sustain in human society from thousands of years?
There are few tribal and nomadic castes that neither know nor accept modern science, so can we
raise question mark on authenticity of modern science?
And we are very lucky that at least today various pillars of astrology are more or less present in
their authentic form. One among many types and sub-types of astrology is gemstone astrology.
From ancient time there has been mention of various divine gems like mercurial gem or symyantk
gem etc. It does not mean that they were merely for wearing rather they would have got special
importance. That’s why people are crazy behind them both in past and today’s era. They cannot be
merely considered as piece of stone.
Sadgurudev attracted our attention towards such gems in one edition of Mantra Tantra Yantra
Vigyan through which success in sadhna can be obtained very easily. And it was fortunate for
people of that time that all those divine treasures which were beneficial in many spheres of life
were easily available. But today again the condition has become deplorable.People may raise
question on results predicted by astrology but people have keen attraction towards gemstones. Some
people who do not know much about them may consider them as articles of beauty enhancement
but in reality, they carry much more importance.
History of gems originated from story of King Bali in which through Vaaman incarnation of Lord
Vishnu, these gems got birth from various portion of king Bali’s body. All of you are aware of this
incident. After promise, when lord touched his body with feet then his body become full of gems
and then king of Devs Indra destroyed it into pieces. In this manner, gems came into the world. In
reality, gems are much more than beauty-enhancement articles. If they are appropriately used under
the direction of right and competent person, person can fulfil his aim very quickly. This fact has to
be taken seriously. In fact intelligent people are those who through the qualities of gemstone
science transform the adverse circumstances to favourable ones.All the deficiencies and
shortcomings predicted by astrology after seeing the birth number of person can be
removed/minimized through gemstone science by using them in scientific manner and make
troublesome journey of human life very easy. Research is going on this science in foreign countries.
In fact, it is an amazing work of gems that how can they prove useful for human life.
It is worth pondering over how our sages and saints discovered that these gems will prove
beneficial for human life. Every gem represents one particular planet. Therefore, this science should
not be considered ordinary. It is one among 108 divine sciences whose real form is yet to be
revealed. Not only prime gems but there is amazing world of sub-gems. These sub-gems are not
merely to be used as alternative for prime gem of planet rather there are various divine sub-gems
whose introduction is yet to come, which are cheap, easily available but their authentic form has
become hidden. Not only common masses but also the sadhak fraternity is completely unaware of
them.We will try to bring forward the various facts related to this divine gemstone science as and
when we get permission and direction from our senior ascetic brothers and sisters.
सारा जगत र्जस एक र्नयम पर आधाररत हैं, उसे कमि र्नयम कहा जा सकता हैं.हर व्यर्क्त के
अच्छे बुरे भाग्य या जीवन में अवर्नर्त या उन्नर्त या जो भी उतार चढाव उसके सामने आते हैं उसके अगर
र्सफि सयं ोग के र्नयम से समझाया जाए तो मानो एक अराजकता सी चारों और मच जाएगी अत: यह र्नयम
सही नहीं है और अब तो आधर्ु नक वैज्ञार्नक भी इस बात को स्वीकार करने लगे हैं की इस ब्रम्हांड का र्नमािण
कोई एक सयं ोग नहीं बर्ल्क एक सुर्वचाररत व्यवस्था हैं और इसको सुचारू रूप से सतत गर्तशील करने के
र्लए र्जन र्नयम या उप र्नयम या पराभौर्तक र्नयम हैं,उनमे कमि र्नयम सबसे ऊपर हैं और कहा जाए की एक
यही र्नयम ही जीवन की सारी र्वसगं र्तयों को समझा सकता हैं.अतुः इस र्नयम की महत्वता तो स्वीकार सभी
करना पड़ता हैं.
भगवान श्री कृ ष्ण गीता में कहते हैं की जो कमि हमने सृजन र्कये थे, उनका र्नराकरण भी हम कर सकते हैं.पर
कै से यह संभव हो तो इसके र्लए बहुत सारे उपाय हैं, र्जनमे मन्त्र,तन्त्र,यज्ञ और अन्य भी शार्मल हैं और हर
र्कसी प्रर्िया की एक अपनी ही उपयोर्गता हैं और इन प्रकारों का उच्चस्तरीय रूप अभी तो जन सामान्य के
सामने आना बाकी हैं और जन सामान्यतुः की सामान्यतुः रत्नों धारण करने की अर्धक रूर्च रहती हैं .पर
आर्िर क्या आधार हैं इन सब बातों का. क्यों कुछ पत्थर को धारण करने पर एक व्यर्क्त को अनक ु ू लता
र्मलती हैं तो वही ूँ दसू री और दसु रे व्यर्क्त को उसी पत्थर र्जन्हें हम रत्न धारण करने पर प्रर्तकूलता
र्मलती हैं.क्या सचमचु गृह नक्षत्र का मानव जीवन पर प्रभाव पड़ता हैं .?इसे कै से समझा जाए?
वस्तुतुः ग्रह नक्षत्र में मनुष्य से हजारों मील की दरु ी पर हैं तो उनका हम पर असर पड़ना थोडा सा अजीब सा
मालूम होता हैं पर वास्तव में यह ग्रह र्सफि धनात्मक और ऋणात्मक करने छोड़ते रहते हैं, और हमारे कमि
फल इन धनात्मक और ऋणात्मक र्करणों के असर से समय समय पर अपना असर र्दिाते रहते हैं, र्जस तरह
से र्कसी िेत में रबी की और िरीफ दोनों फसले बो दी जाए तो भले ही उस िेत में पानी प्रवार्हत र्कया
जाए पर जब रबी का मौसम होगा, तब रबी वाली फसल होगी और िरीफ वाले समय पर िरीफ .
ठीक इसी तरह हमें भी समय समय पर इन ऋणात्मक र्करणों का असर सहन करना पड़ता हैं और धनात्मक
र्कत्र्नो का लाभ यर्द हमारे कमि फल कुछ अच्छे हुए तो पर यह मानव शरीर एक मंर्दर माना गया हैं और
धनात्मक र्करणों से ज्यादा ऋणात्मक र्करणों का असर हमको प्रभार्वत करता हैं.और इन ऋणात्मक र्करणों
के असर से इस शरीर मंर्दर की रक्षा करना भी एक अर्नवायि कतिव्य माना गया हैं.क्योंर्क यह मानव देह
अमूल्य हैं और रत्न एक तर्ड़त चालक की तरह माना जाता हैं.और यह हमारे शरीर पर पड़ने वाले ऋणात्मक
प्रभावों से हमारी रक्षा करता हैं .
और हमारे जीवन को और भी व्यवर्स्थत और आनदं दायक बना सकने में समथि हैं, यह कमि फल के असर को
र्नमिल
ू तो नहीं करता पर उसके प्रभाव को इतना कम कर सकता हैं की उसे लगभग न ही माना जा सकता
हैं,ठीक इसी तरह से हमारे जीवन में आने वाले र्कसी भी शभु प्रवाह या शभु समय को कई कई गणु ा बढ़ा
सकता हैं.पर यह समझना भी जरुरी हैं की यह र्कसी नवीनता को जन्म नहीं दे सकता हैं.इसके साथ यह भी
समझना जरूरी हैं र्क इन रत्नों को धारण करवाने की सलाह देने वाले को र्कस स्तर का ज्ञान होना जरूरी हैं
र्सफि र्कताब से ही नहीं उसके पास उसके अनभु व की भी अमल्ू य पजूं ी होना ही चार्हए,र्सफि र्कताबो के
माध्यम से ही हर अवस्था में सही र्नणिय नहीं दीया जा सकता हैं.
जीवन की अनेको दभु ािग्य पूणि र्स्थर्त में यह रत्न र्वज्ञान व्यर्क्त के र्लए एक प्रकाश स्तम्भ का कायि करता हैं
और उसको एक नया आधार दे पाता हैं और इसी तरह जो उसके र्लए लगभग असभं व सा हैं उसे एक आधार
देकर उसे जीवन की उच्चता और प्रर्सर्ि के र्शिर पर आसीन भी करा सकता हैं. बस जरुरत हैं तो इस र्वज्ञानं
को समझ कर उसे सही अथो में उपयोग र्कया जाए.और इन रत्नों की सहायता तो उसे साधना में र्सर्ि भी
प्रदान करने में सहयोग कर सकती हैं,ज्योर्तर्षीय दृिी से जो भी प्रर्तकूल र्स्थर्त हैं जो एक साधक को उसके
लक्ष्य तक पहुचने में वाधा दे रही हैं.
===============================================================================
Whole world is based on one rule i.e. Law of deed. Every body’s fate whether it is good-bad or
development-degradation in life or any types of up-downs comes and if we just see the
coincidences and tries to understand the rules then a big chaos will spread everywhere. Therefore,
this law is not appropriate. Moreover, nowadays-even scientists are agreeing to this fact that
construction of this universe is not just a coincidence rather it is a well-planned designing or
arrangement. In addition, for its smooth functioning, those laws are considered and are it sub laws
or metaphysical laws, amongst all the law of deed position number one. Only this law can make
you understand all absurdity of life. Therefore, we all have to accept the importance of this law.
Lord Shri Krishna says in Bhagvat Geeta – those deeds, which we created, can be remove by us
only. However, for making it possible, there are many ways to solve it, which includes Mantra,
Tantra, Yantra and many other ways. In addition, every way consist its own importance and utility.
Moreover, the advanced version of all these ways is remained to be open in front of all. Generally,
people like to carry gems stones on their body. However, what is the base behind it? Why it is like
that by wearing any stone or gem, a person gets favorability in life? On other side, the other person
gets affected from it badly. Is it true that planets affects human being? Now the question is how to
understand this?
In effect, the planets lay millions of distance away from us, so it seems strange that they affect us.
Actually speaking these planets leaves only positive and negative rays. However, they influence our
deeds sometimes positively sometimes negatively. For example in any field if we inseminate rabbi
and kharif seeds and nurtures it properly. Nevertheless, point is that the crop will grow only in their
respective season.
Similarly, we also have to face the malefic of these negative rays and benefices if our deeds are
good. However, this human body is as temple, which is, affected more by negativity rather that
positivity. Moreover, keeping our temple form body safe from these malefic is an essential duty.
This is because human body is priceless. In such situation, gems are treated to be quick healer. And
they keeps us safe from the malefic of planets.
Moreover, they are capable enough to make our lives better and prosperous. Well, they do not
nullify the deeds effects but they reduce the intensity. Exactly they also can multiple the auspicate
of our life. Therefore, it is equally important to understand that it cannot create any newness in our
life. Again this is also equally important from whom you are consulting, whether that person
possesses right amount of knowledge or not? Or he is just a book worm. Because by just reading or
referring books cannot be equivalent the amount of experience in this field.
In many misfortunes the gem science work like light pillar in human life. It provides a new base.
Similarly, which is impossible in life for a person turns into bundles of new possibilities. And leads
him to the new sky of achievements. What needed to done is to understand this gem science and to
use it in real sense. Even apart from above, this gem science aids us in our sadhnatmak and spiritual
life. They really help us to achieve our aims. As per astrological point of view, it also helps and
negates the malefic effects in life.
रत्न र्वज्ञानं यूँू तो अपने आप में अनेको रहस्य छुपाये हुए हैं और इस महार्वशेर्षाक ं के आगामी अक ं ो
में,जब इसके उच्चतम ज्ञान से सबर्ं धत अक ं ो के प्रकाशन की जब अनमु र्त र्मलेगी, तब हम इसके अनेको गप्तु
रहस्य को भी आपके सामने लायेंगे,पर उन अक ं ो की प्रारंर्भक पृष्ठ भर्ू म भी तो अभी जरुरी हैं.इसर्लए यह
जानना भी जरुरी हैं की हर रत्न को र्कस ग्रह से सबर्ं धत र्कया गया हैं और यह सामान्य सी जानकारी भी कई
कई बार बहुत ही महत्वपणू ि र्सि हो सकती हैं.
न के बल यह बर्ल्क इन रत्नों को धारण करने के र्लए र्कस धातु का उपयोग र्कया जाना यह भी एक महत्वपणू ि
र्वर्षय हैं क्योंर्क उर्चत रत्न के साथ उर्चत धातु का सयं ोग भी एक अर्नवायि प्रर्िया हैं.
अगर उसका एक र्नर्श्चत लाभ लेना हो तो, क्योंर्क र्वज्ञान का मतलब ही यही हैं की उसके हर भाग को जैसा
र्नर्दिि र्कया गया हो उसी रूप में पालन करना तभी एक प्रर्िया पूरी होती हैं और उसका समर्ु चत लाभ भी
र्लया जा सकता हैं.
ग्रह और सम्बंर्धत रत्न
सूयि –मार्णक्य
चन्द्रमा –मोती
मंगल –मूंगा
बुध – पन्ना
शि
ु –हीरा
बृहस्पर्त –पुिराज
शर्न –नीलम
राह –गोमेद
के तु –लहसुर्नया
ग्रह और सबंर्धत धातु
चंद्रमा,बृहस्पर्त –चाूँदी
राह और के तु ---पंचधातु
शर्न –लोहा,रांगा
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
Gems and Planet rapport
Gem science is conceals many secrets in it. Moreover, in preliminary Special editions, when we
will get permission to publish advanced information regarding this, we would definitely try best to
put forth the new secrets. However, it is necessary to provide the basic information so that in future
you will be able to understand it properly. Therefore, it is very essential to know which gem is of
which planet. Such simple information sometimes keeps high importance.
Not only this but also which metal should be used to wear this gem is equally necessary
information. As it is very important to know exact proportion and combination of gems and metal
for using purpose. This is also an essential process only if certain benefit is desirable. Because
science itself does means that following every procedure as instructed for achieving desired
success.
Planets and related Gems
Sun – Cornelian
Moon – Pearl
Mars – Coral
Mercury – Emerald
Venus – Diamond
Jupiter – Topaz
Saturn – Sapphire
Rahu – Onyx
Ketu - Beryl
Planets and related metals
जब र्कसी भी र्वज्ञानं का पणू ि लाभ र्लया जाना हो तो उसके सभी अगं ो का पररपणू ि रूप से अध्ययन भी
र्कया जाना भी उतना ही आवश्यक हैं.जब रत्नों का धातु से और ग्रहों से सबधं हैं तो र्कस वजन के वह
धारण र्कये जाना चर्हये वह भी तो एक आवश्यक बात हैं क्योंर्क हमारे आचायों का ज्ञान पूरी तरह से
वैज्ञार्नक मत युक्त रहे हैं भले ही उस कड़ी के लुप्त हो जाने के कारण हम यह समझ नहीं पा रहे हो पर यह
भी तो एक सच्चाई हैं .और इस पररपेक्ष्य में कुछ सामान्य सी सावधानी जो आपको रिना ही चार्हये.
अच्छी तरह से अपनी कुंडली का अध्ययन करवा कर ही आपको रत्न धारण करना चार्हए क्योंर्क
सामने दृिी से देिें जाने पर कई कई बार जातक बेहद परेशानी में फस जाता हैं,अनेको कुंडर्लयों में
ग्रहों का संयोजन भी कई बार बहुत जर्टलता युक्त होता हैं .
सामन्यतुः ज्योर्तर्ष जातक की कुंडली देिकर उनके लग्न स्थान के मार्लक के रत्न को पर्हनने के र्लए
कह देते हैं यह ठीक हैं, पर यहाूँ भी कई कई बार लग्न स्थान का स्वामी ग्रह स्वयम बेहद कमजोर
अवस्था में कुंडली में हो और बेहद र्वपरीत अवस्था में हो तब कुशल ज्योर्तर्षी के अनुभव की जरूरत
होती हैं.
हर जातक की कुडली में र्कस रार्श में वह ग्रह हैं उसके अनसु ार एक र्नर्श्चत वजन का ही रत्न उसके
र्लए उपयोगी होता हैं,अतुः सभी के र्लए एक र्नर्श्चत वजन का रत्न कह देना उर्चत नहीं हैं ,पर जब
इस बात का परू ी तरह से ज्ञान न हो तो सदगरुु देव जी नेयह र्नदेश र्दया हैं की कम से कम चार रत्ती का
वजन तो रत्न का होना ही चार्हये.(इसमें हीरा रत्न शार्मल नहीं हैं )
धारण करने से पूणि जब यह र्नर्श्चत हो जाए की यह रत्न जातक के र्लए सवि दृिी उपयोगी हैं तब ही
उर्चत प्राण प्रर्तष्ठा करवा कर ही धारण करना चार्हए और यह कायि र्कसी भी योग्य पंर्डत से करवा
लेना चार्हए जो इसका र्वधान पूणि के साथ जानता हो.अन्यथा उर्चत प्राण प्रर्तष्ठा के अभाव में रत्न
अपना पूणि प्रभाव नहीं दे पाते हैं.
रत्न र्लए जाते समय यह ध्यान रिना चार्हए की उसमे र्कसी प्रकार की टूट फुट, लाइन या कोई भाग
में दरार आर्द न हो क्योंर्क एक सुगढ़ और सडु ौल रत्न ही अपेर्क्षत उर्चत पररणाम दे सकने में समथि
होता हैं .यह सही हैंर्क एक र्नदोर्ष रत्न की कीमत काफी ज्यादा होती हैं पर जीवन की बहुमल्ु यता
देिने पर यह र्नणिय आपको करना ही होगा.
हर रत्न का एक जीवन काल भी होता हैं अतुः यह भी समझ लेना चार्हए की उस काल के बाद उसकी
प्राण ऊजाि लगभग समाप्त सी हो जाती हैं .अतुः एक बार उसकी पुनुः प्राण प्रर्तष्ठा की जाना चार्हए.
हर रत्न को धारण करने का एक वार और एक समय होता है उसका पालन भी र्कया चार्हए.
र्कसी दोर्ष युक्त रत्न की जगह उपरत्नो का भी उपयोग आसानी से र्कया जा सकता हैं .
और जो भी इस र्वर्षय में ज्यादा जानकारी चाहते हो उन्हें सदगरुु देव िारा र्लर्ित “रत्न ज्योर्तर्ष “
का अच्छी तरह से अध्ययन कर लेना चार्हए .इस बहुमल्ू य र्कताब में इस र्वज्ञानं से सबर्ं धत सभी
बातें पूणति ा के साथ दी हुयी हैं .
--------------------------------------- ----------------------------------------------------------------------------------------------
Gems and their precautions
Whenever it is procuring benefit of any science then it is equally necessary to know and study each
parts of that concerned subject. Gems have direct connection with metals and planets, so it is
equally important to know which amount of Gems’s weight one should consider. Reason behind
this is since our old scholar’s knowledge was completely based on scientific logics and facts though
it is different matter those facts have been disappeared in times space and we are unable to
understand it. So in this regard below given are the general precautions that you should consider…
This is necessary that one should wear a Gems only after considering the thorough study of
his/her horoscope. Because in outer way it seems that Jataka (person) is suffering from many
obstacles in his life, and even in many horoscope the combination of planets are also tough.
After going through the whole horoscope, Astrologer generally see the lord of first house
and directly conclude to wear the Gems of related planet. Sometimes it went right but many
times, it happens that the lord of first house itself is in weak condition in horoscope. In such
odd situation, an efficient astrologer experience utterly needed.
In every Jataka’s horoscope, it is essential to figure out where the planet lies, in which
zodiac sign, and accordingly weight of Gems prescribed. Therefore, this would not be right
at all to recommend same weight of Gems to everybody. In such circumstances when one
does not have complete knowledge, Sadgurudev ji always use too instructs for minimum
jequirity Gems is be recommended. (here diamond Gems is excluded)
Before wearing such Gems when it is confirm that, the Jataka would be benefit in all sense,
then only proper establishment and sacred procedures are be done. Well, these procedures
are to be done by any perfectionist who should be well versed in complete processes of
enchantments and establishment. Otherwise, instead of getting whole benefits, the Gems will
give its half effects.
While purchasing Gems, it should be properly check whether it is defected or not, any lines
or any type of crack etc. should not be presented as a well-shaped and well-symmetrical
Gems only can provide best results. It is fact that an impeccable Gems costs very high.
However, after looking life preciously decision is yours at last.
Every Gems consists a particular life. Therefore, it is clear to understand that after
completing that shell life the Prana energy is almost lost. So, it is better to repeat the
establishment procedure.
Every gem is worn on particular date and time. In addition, it is recommended following
that.
The opposite nature planet gems are not to be wear in consecutive fingers.
This should also be adhering while making the ring made up of nine planets named as
Navratna Ring.
Instead of wearing any faulty gem, the sub gems can also be wearing.
Moreover, whosoever would wish to get more information in this regard should definitely go
through the book written by sadgurudev “Ratna Jyotish”. As in the above regard, complete
information has been given in this book.
हस्त रेिा और अक ं ज्योर्तर्ष तो सभी के मन पसदं र्वर्षय रहते हैं.हर घर पररवार मे या हमारे पररर्चत मे एक
न एक तो ऐसा होगा ही र्जसे इन र्वर्षय मे तथाकर्थत महारत होगी ही.और इस र्वज्ञानं को बहुत ही सरल सा
मान र्लया जाता हैं िासकर र्कसी भी व्यर्क्त को जब कोई रत्न बताया जाता हैं की यह रत्न उसके र्लए
उपयोगी होगा.यहाूँ यह समझने की आवश्यकता हैं की र्जतना यह कायि सरल र्दिता हैं उतना वास्तव मे हैं
नही.हालार्क इस ज्योर्तर्ष र्वभाग के आचायों ने इस बात पर जोर र्दया हैं की लग्न से सबर्ं धत रत्न र्कसी को
भी पहनाया जा सकता हैं और इसमें र्कसी भी प्रकार की कोई वाधा नही हैं.पर यह तो एक उपरी उपरी बात हो
गयी कई बार बहुत सोच र्वचार करना पड़ सकता हैं इस र्नयम का पालन करने पर, मानलो लग्न भाव बहुत
कमजोर या लग्नेश नीच रार्श का हो और वह कहीं जायदा समस्या प्रदान कर रहा हो तब?
िैर अगले र्दन हम दोनों शहर के सबसे बड़ी शॉप मे गए और अब हम नीलम पर बात कर रहे थे क्योंर्क
नीलम तो कुंभ लग्न वालों के र्लए सामन्यतुः श्रेष्ठ रत्न हैं,तो उस दक
ू ान वाले ने र्जतने भी नीलम के रत्न
र्दिाए, मुझे हर र्कसी मे िोट ही र्दिाई दे.
हर रत्न को नकारता जा रहा था क्योंर्क स्पस्ट हैं र्क र्कसी रत्न मे हलकी लाइन या टूट फुट या आकार का
सुगढ न होना और र्कसी मे कोई र्बंदु बना हुआ तो र्कसी मे कोई अजीब सा ..इस तरह से कुछ देर मे उसकी
दकू ान मे कोई रत्न नही था जो शास्त्रीय मान्यता पर परू ा िरा उतरे और उसने कहा की आप र्जस तरह से पूरा
र्नदोर्ष रत्न चाहते हैं. वह तो कोई भी नही लेगा क्योंर्क उसकी कीमत तो कई कई गुणा होगी .
यह एक अद्भुत बात रही की हम जब र्जस र्वज्ञानं को मानते हैं तब ऐसा ..?इसर्लए आचायों मे उपरत्नो का
प्रचलन स्वीकार र्कया क्योंर्क एक तो उनका मल्ू य कम और उनमे चाही गयी शि ु ता पायी जा सकती हैं या
जड़ी बटू ी का भी कुछ ऐसा ही हैं .
हालार्क की र्बना रत्नों की तांर्त्रक प्रर्िया के पूरा पजू न हुये र्बना अभी उन्हें धारण करना कुछ उर्चत नही
हैं पर आज कहाूँ र्कस के पास समय हैं तब पूरी प्रर्िया पर जोर देना मानो अपना समय नि करना ही हैं.और
यह भी आश्चयि की बात हैं इस सबके र्बना भी रत्न का अपना ही अद्भुत असर हैं ,र्बना इन सब प्रर्िया के ही
भी अनेको ने जब भी रत्न को धारण र्कया जो उनके र्लए उर्चत रहे तो उन्हें अद्भुत पररणाम र्मले ही हैं वह
भी जीवन के सभी क्षेत्र मे.तब यह बहुत सोच मे डाल देती हैं की की अगर एक पूरी तरह से र्नदोर्ष रत्न और
पूरी तांर्त्रक प्रर्ियाओ ं से युक्त हो तो तब वह क्या अथि रिता होगा और जातक को कहाूँ तक पहचानने
सामथ्यि रिता होगा,जरुरत तो हैं आज इन र्वर्षय को समझने की और आवश्यक र्ियाओ ं को सही रूप से
संपार्दत करने वाले र्विानों की .सदगुरुदेव जी ईस र्वर्षय पर भी इतने र्नयम र्दए हैं की कोई योग्य या
सीिने वाला उस को अपना कर तो देिें और कुछ ऐसे सौभाग्य शाली रहे हैं र्जन्हें सदगरुु देव िारा यह रत्न
र्मले और वे आज अपने क्षेत्र के उच्चस्थ व्यर्क्तत्व हैं . इस तरह से आज अब समय हैं रत्न र्वज्ञानं और रत्नों
की सामथ्यिता को समझने की .
==================================================================
I told him please tell, I will not. He told that even those driving Toyota car does not wear 4 Ratti
diamond. I asked why? He told that it will at least cost 4/5 lakhs.
I said just this much…
We both smiled. Then I said that now I understood why there was no weight given in book
corresponding to diamond. Well, next day we went to biggest shop of the city and asked about
Sapphire because Sapphire is best gem for those having Aquarius ascendant. That shopkeeper
showed so many Sapphire stone. I did not found any of them convincing. I was saying no to each
stone because there was small line in some gem, some were slightly broken, some were irregular-
sized and some were looking little bit strange… There was no gem in his shop which satisfies the
standards of Shastra. He said that if you want completely pure gem, then nobody will take it
because it will cost you many times more.
It was very astonishing that science which we consider so much then such….? Therefore Acharyas
have accepted sub-gems because on the one hand they are economical and on the other hand one
get desired purity level sub-gems. Same thing applies in case of herbs.
However, it is not appropriate to wear stone without doing Tantric procedure or doing its complete
poojan. But who has got the time to do so. Therefore stressing on complete procedure is just
wastage of time.
And it is quite amazing that without all this, gems have such an astonishing effect , many person
who wore these gems without all these procedures , they got amazing results , that too in all fields
of life. This fact compels us to think that if gem is completely pure and tantric procedure is done on
it, then how much capable it would be and how much person can progress wearing it. What is
needed is to understand this subject and scholars who can carry out necessary procedures correctly.
Sadgurudev Ji has given so many rules regarding this subject which can be followed by capable one
as well as students. What can be said about auspiciousness of those few who got gems from
Sadgurudev and they have attained high-position in their respective fields. So today is the time to
understand Gemstone Science and capability of gemstones.
पर यह र्नर्श्चत हैं की सदगुरुदेव की आध्यार्त्मक उच्चता को िासकर र्जसमे उनका आयुवदे का पक्ष रहा हैं
जन सामान्य क्या उच्चस्तरीय भी समझ नहीं पाए और उन्हें मख्ु यता तंत्र, मंत्र और ज्योर्तर्ष का ही प्रकांड
आचायि मानते रहे पर ऐसा नहीं हैं सदगुरुदेव जी ने ने एक बार तो बहुत ही पूणति ा से यह बताया की वास्तव
में इन सबसे कहीं कहीं ज्यादा उच्चता और ज्ञान की र्वशालता उनके अन्दर र्जस क्षेत्र की हैं वह आयवु दे हैं
पर यह हमारी पीढ़ी का दभु ािग्य हैं की हम उनके इस ज्ञान को आत्मसात नहीं कर पाए हम बहुत कम ही
उनके ज्ञान के इस पक्ष का पररचय पा पायें, पर एक बार पनु ुः आशा की र्करण उर्दत होने लगी हैं जब उनके
आत्मवत सन्यासी र्शष्य र्शष्याओ ं ने एक बार अपना दृढ मानस इस और बना र्लया हैं .
सदगुरुदेव ने इस “आयुवदे सुधा” नाम की एक पर्त्रका र्नकालने का मानस भी बनाया पर उस काल के
र्शष्य वगि की उदासीनता को देि कर उन्होंने वह र्वचार जो इतने आगे तक साकार होने की र्दशा में बढ़
चला था उसे उन्होंने स्थर्गत कर र्दया. सदगुरुदेव जी की र्कताब “मल
ू ाधार से सहस्त्रधार “उनके असीम
साग़रवत ज्ञान का एक पररचय देने के र्लए एक कण मात्र ही हैं.और आज भी अनेको लोग उसमे र्दए प्रयोग
और ज्ञान की प्रिर उदात्तता को देि कर आश्चयि हो जाते हैं.
यह उनके अद्भुत ज्ञान का एक छोटा सा पररचय हैं की रोग मुर्क्त में रत्न का प्रयोग र्कया जा सकता हैं.र्कसी
भी प्रकार का रोग हो यह प्रयोग आप र्कसी भी गुरु वार से प्रारंभ कर सकते हैं .
रतन उपयोर्गत :हल्ट हर्कक
सहयोगी साधना सामग्री : नीम की लकड़ी के पांच टुकड़े,पांच लाल रंग के पुष्प (प्रर्त र्दन )
मंत्र : ॐ क्लीं ह्रीं क्लीं िोग नाशाय फट .
अपनी र्जस भी शारीररक रोग को आप दरू करना चाहते हैं,उसके दरू होने और आरोग्यता,र्नरोर्गता पाने के
र्लए आप संकल्प ले कर इस प्रयोग को करें, यह सरल प्रयोग है अतुः इसमें श्रिा,र्वश्वास की बहुत महत्त्वपूणि
भूर्मका हैं.
हर र्दन इस हल्ट हर्कक पर र्जसे आप अपने सामने रिकर मत्रं जप करेंगे, उस पर 5 लाल रंग के पष्ु प
अर्पित करें ,इसी तरह नीम की लकड़ी के पाचं टुकड़े भी इस हल्ट हर्कक पर अर्पित कर दें. इसके बाद इस
मन्त्र की परु े मनोयोग से 5 माला मंत्र जप करें. इस तरह से ४० र्दन करना है.
और अगले र्दन र्फर से पाचं नए लाल रंग के पुष्प और नीम के टुकड़े उस पर अर्पति करना हैं.और पुराने सारे
पुष्पों और नीम की लकड़ी को एक पात्र में इकठ्ठा करके र्कसी भी र्नजिन स्थान पर फे क दें .
और प्रयोग समार्प्त के बाद सदगुरुदेव से सफलता की प्राथिना करें ,
=======================================================
हर्कक पर रोग मुर्क्त हेतु 5 गुरुवारीय एक और सरल प्रयोग :
हर र्दन अपने गरुु मत्रं जप का िम अथाित कम से कम १६ माला जप करने के बाद हर्कक पत्थर के ११ दाने
ले ले और साथ में ११ सफ़े द रंग के पष्ु प लेकर इन दोनों पर एक साथ ११ बार गरुु मत्रं जप करके इन
सबको पर्श्चम र्दशा की और फे क दें .
पर यह ध्यान रिने योग्य बात हैं की यह हर्कक के दानो पर प्रर्िया आपको 5 गुरुवार को लगातार करना
हैं,और इस िम में कोई व्यवधान न हो .पर शेर्ष अन्य र्दनों में १६ माला गुरु मंत्र जप करना ही हैं .
और अतं में सबसे महत्वपणू ि तथ्य यह हैं की सक
ं ल्प में पणू ति ा के साथ रोगी व्यर्क्त का नाम और उसका रोग
का नाम उल्लेि करना ही चार्हए ही.
====================================================
INTENSE, EFFECTIVE AND EASY GEMSTONE PROCEDURE GIVEN BY
SADGURUDEV: FOR YOU ALL
FOR GETTING RID OF DISEASES: A GEMSTONE PROCEDURE
“Pehla Sukh Nirogi Kaaya” (first and foremost pleasure is of having disease-free body)
can be called first and foremost among most important facts of life. And why not, in
order to attain any materialistic or spiritual achievement,
it is very important for sadhak’s health to be in better condition otherwise how any
concrete achievement can be attained completely. And there can be many means of
achieving it. Sadgurudev Ji provided many ways of doing it through magazine, shivirs,
cassettes or giving it directly to disciples. But it is also true that not only common public
but even higher-level people could not understand spiritual heights of Sadgurudev
especially his Ayurveda aspect and primarily considered him as eminent scholar of
Tantra, Mantra and astrology. But reality is not like this. On one instance, Sadgurudev
elaborated in detail that in reality, knowledge which he possessed the most among
various branches of knowledge is Ayurveda. But it was bad-luck of our generation that
they could not imbibe his knowledge. Only few of us were able to get introduced to this
aspect of his knowledge but once again, a ray of hope has risen again when his soul-
children ascetic disciples have made a firm mind in this direction.
Sadgurudev made up his mind to launch magazine named “Ayurveda Sudha” but after
seeing the disinterest of disciples of that time, he postponed his thoughts. Book of
Sadgurudev “Muladhaar Se Sahastrar” is only a glimpse of his infinite depth of
knowledge. And even today many persons are amazed by sublimity of procedures and
knowledge given in it.
It is just a small introduction to his amazing knowledge that gemstone can be used to get
rid of diseases. It may be any type of disease. This procedure can be started on any
Thursday.
Gemstone to be used: Halt Hakik (Agate)
Assisting Sadhna Article: Five pieces of Neem (Azadirachta indica) wood, five red
colour flowers (everyday)
Mantra: OM KLEEM HREEM KLEEM ROG NAASHAAY PHAT
Do this procedure after taking resolution to get rid of physical disease you are suffering
with and attaining disease-free life. It is an easy procedure. Therefore, trust and
dedication plays an important role.
On each day offer five red colour flowers on the Halt Hakik in front of which you are
chanting mantra. In the similar manner, offer five pieces of Neem wood on Halt Hakik.
After it, chant 5 rounds of this mantra with complete dedication. This procedure has to
be done for 40 days.
And on next day again take new five red-coloured flowers and pieces of Neem for
offering. And collect old flowers and Neem wood in one container and throw them in
any uninhabited place.
And after completion of procedure, pray to Sadgurudev for success.
=======================================================
ONE EASY PROCEDURE ON AGATE FOR GETTING RID OF DISEASE (5
THURSDAYS)
After daily chanting 16 rounds of Guru Mantra, take 11 agate stones and 11 white
coloured flowers. Then chant Guru Mantra 11 times on both of them and throw them in
west direction.
But it has to be kept in mind that this procedure has to be repeated on agate stones for 5
Thursday and there should not be any disturbance in this procedure. But on other
remaining days, 16 rounds of Guru Mantra have to be chanted.
And in last, most important fact is that while taking Sankalp (resolution), name of
diseased person along with disease has to be mentioned.
2. वनस्पर्तयरत्नमर्ण – तंत्र का यह एक अत्यंत गुह्य पक्ष है र्जसके अतं गित र्वर्वध रत्नमर्ण कोई कोई
वनस्पर्तयों से प्राप्त की जाती है या र्फर वनस्पर्तयों की सहायता से र्नमािण र्कया जाता है, ऐसे रत्नों को
वनस्पर्तय रत्नमर्ण कहा गया है.
3. प्रार्णजरत्नमर्ण – र्जव अथाित प्रार्णयो से अगं , शरीर आर्द से प्राप्त रत्न को प्रार्णज रत्नमर्ण कहा जाता
है. सपि मुक्ता, गज मुक्ता इत्यार्द प्रार्णज रत्न है.
4. िर्नजरत्नमर्ण – िर्नजरत्न मर्ण अथाित जो िर्नज स्वरुप में प्राप्त है या पृथ्वी तत्व की घनीभतु ता से
र्जन रत्न उपरत्नो का र्नमािण हुआ है वह रत्नमर्ण, इन रत्नों के बारे में जनमानस के मध्य काफी बाते
प्रचर्लत है. इसका सब से उत्तम उदाहरण ‘हीरा’ है.
आपके सामने पञ्च महाभुत में से कुछ महाभतू से युक्त कुछ अत्यंत ही दल ु िभ प्रयोग आपके सामने हैं
,क्योंर्क मानव जीवन तो पञ्च महाभूत युक्त हैं और जब इनसे सबंर्धत प्रयोग र्मले जो अत्यतं ही तीव्र
प्रभाव और सफलता प्रदायक हो ,साथ ही साथ इन प्रयोगों को जो सदगुरुदेव जी की कृ पा से प्राप्त हुए हैं,
को पूणिता के साथ करना वास्तव में जीवन का एक सौन्दयि ही कहा जा सकता हैं.
==================================================================================
Universe is full of infinite secrets and under these innumerable secrets, from centuries our ancient
sages and saints have told about powers of various types of gemstones and sub-gemstones. Through
the gemstones person/sadhak can make his life multi-dimensional, make his life vibrant and achieve
those heights of life which cannot be attained normally without these rare gemstones. Diversity of
gemstones or Ratnmani is felt in four ways and based on it Ratnmani are divided into 4 categories.
Saamudrik Ratnmani (Oceanic Gemstones) – Sea/ocean has always been called as Ratnakar
(storehouse of gemstones) and one out of the rare 108 divine sciences is Ratnakar Science.
Rare gemstones and sub-gemstones obtained from sea are called Saamudrikratnmani. Best
example of it is Pearl.
Vanaspati Ratnmani (Herbal Gemstones) – It is one of the most hidden aspects of Tantra
under which diverse gemstones are obtained from some herbs or they are created with the help
of herbs. Such gems are called Herbal gemstones.
Praanij Ratnmani (Gemstones obtained from Creatures) –Gemstones obtained from body or
body parts of creatures are called Praanij Ratnmani. Sarp Mukta and Gaj Mukta are Praanij
gems.
Khanij Ratnmani (Mineral Gemstones) – are available in mineral form or the gems/sub-gems
which are formed due to density of earth element. Common public know a lot about these
gems. Prominent example of this category is ‘Diamond’.
Some of the rare prayogs related to some of elements out of 5 great elements are in front of you.
Human life is composed of five great elements. If one gets such prayogs which are highly effective
and success-providing and to add to that if they are obtained by grace of Sadgurudev, doing
completely these procedures can be called beauty of life.
क्योंर्क अर्ग्न तत्व की गर्त हमेशा उध्वि मुिी होती हैं और सारी वाधाओ को नि करके यह अपना रास्ता
बना ही लेता हैं.ठीक यही गुण साधक की वाधाओ को नि करके यह सपं न्न करता हैं.
साधक यह प्रयोग र्कसी भी कृ ष्ण पक्ष की अिमी या अमावस्या को करे . समय रात्री में १० बजे के बाद का रहे.
साधक स्नान आर्द से र्नवृत हो कर काले वस्त्र को धारण करे तथा काले आसन पर बैठ जाए. साधक को दर्क्षण
र्दशा की तरफ मि ु कर बैठना चार्हए. साधक गरुु पजू न एवं भैरव पजू न का िम करे तथा गरुु मन्त्र का जप करे.
इसके बाद साधक अपने हाथ में जल ले कर सक ं ल्प करे की मैं अमक
ु (शत्रु का नाम) शत्रु (अगर एक से ज्यादा
शत्रु है तो समस्त शत्रओ
ु के र्लए) के उच्चाटन के र्लए यह प्रयोग सम्प्पन कर रहा ह,ूँ भगवती चाडं ाली मझु े
सफलता प्रदान करे .
इसके बाद साधक अपने सामने र्कसी पात्र में अभीवति तंत्र मर्ण अथाित लोहे की एक गोली रि दे तथा उसको
काजल लगाए.
इसके बाद साधक र्नम्न मन्त्र की २१ माला जप करे. साधक को यह जाप रुद्राक्ष माला से करना है. मन्त्र में अमक
ु
की जगह शत्रु का नाम ले. एक से ज्यादा शत्रओ
ु के र्लए ‘समस्त शत्र’ु
ॐ चाण्डाली शरमु स्दास्न अमक
ु ं उच्चाटय उच्चाटय फट्
(OM CHAANDAALI SHATRUMARDINI AMUKAM UCCHATAY UCCHATAY
PHAT )
मन्त्र जप पूणि होने पर साधक लोहे की गोली को तथा माला को शमशान में फें क दे. यह कायि दसू रे र्दन भी र्कया
जा सकता है. इस प्रकार एक ही रार्त्र में यह प्रयोग पूणि हो जाता है.भले ही यह एक र्दवसीय प्रयोग हैं पर प्रयोग
समार्प्त के बाद जब तक कायि आपकी आशानुरूप समपन्न न हो जाए तब तक कम से कम एक माला जप तो
प्रर्त र्दन करना ही चार्हए .क्योंर्क साधना की उजाि को भी तो साधक में समार्हत होने में समय लगता हैं .
Abhivart Tantra is amazing prayog of Mani Tantra. In fact there are many types of this Mani. This
mani comes under Yuddh Vigyan Tantra. It is natural quality of iron that if mantrik procedure is done
on it, it can transform energy into fire element. And that’s why any gutika or ball made of iron is
called Abhivart Tantra Mani. This Mani can do amazing work for destroying enemies. This Mani has
primacy of fire element due to which its effect is very intense. Whenever something is proving to be
obstacle in our progress then we can make use of it and get desired results. Fire element always
moves upwards and it can overcome all obstacles to make his own path. In the similar manner, this
quality can destroy the obstacles of sadhak.
Sadhak should do this procedure on eighth day of Krishn Paksha of any month or on Amavasya. It
should be done after 10:00 P.M in night.
Sadhak should take bath, wear black dress and sit on black aasan facing south direction. Sadhak
should do Guru Poojan and Bhairav poojan and chant Guru Mantra. After it sadhak should take water
in his palm and take Sankalp that I am doing this procedure for the Ucchatan of Amuk (name of
enemy) enemy ( if it is done for more than one enemy then foe whole enemy) , may Bhagwati
Chaandaali provides me success.
After it, sadhak should keep Abhivart Tantra Mani i.e. one iron ball in any container in front of him
and apply lampblack on it.
After it sadhak should chant 21 rounds of below mantra. Sadhak should use Rudraksh rosary for this
purpose. In mantra, use name of enemy in place of Amuk. For more than one enemies use “Samast
Shatru”
OM CHAANDAALI SHATRUMARDINI AMUKAM UCCHATAY UCCHATAY PHAT
After completion of chanting, sadhak should throw the iron ball and rosary in cremation ground. This
can be done on the next day too.
In this manner, this procedure is accomplished within one night. It may be a one day procedure but if
one still not gets desired results after completion of procedure then daily one round of this mantra
should be chanted. It takes time for energy of sadhna to be imbibed by sadhak.
क्योंर्क र्बना पणू ि आयु के भी सारे जीवन का कोई अथि नहीं हैं.वास्तव में देिा जाए तो र्नरोगी काया के
बाद इसका ही सबसे ज्यादा अथि हैं मानव जीवन में क्योंर्क अगर अल्पायु रहे तो भी कोई अथि नहीं और
उच्चस्तर की उपलर्ब्धयां हस्तगत करने के बाद जब पूणि आयु भी हो वह भी रोग मुक्त तब ही यह जीवन का
सौन्दयि कहलाता हैं .अतुः एक ऐसा प्रयोग र्जसके माध्यम से साधक की आयु मे वृर्ि और उसकी ऊजाि में
वृर्ि हो सकें यह भी कोई कम सौभाग्य की बात नहीं हैं.क्योंर्क जहाूँ आयु वृर्ि की बात हैं वही ूँ पर यह भी
एक र्नर्श्चत सा हैं की रोग रर्हत आयु हो .क्योंर्क तभी तो आयष्ु य वृर्ि का कोई अथि हैं . और यह प्रयोग
ऐसा कर पाने में समथि हैं
यह प्रयोग साधक र्कसी भी शुभ र्दन से शुरू कर सकता है.
साधक यह प्रयोग र्दन या रार्त्र के र्कसी भी समय कर सकता है.
इस प्रयोग के र्लए साधक को एक अत्यंत ही लघु शि
ं लेना चार्हए र्जसको गले में पहना जा सके या तावीज़ में
भर कर पहना जा सके .
साधक स्नान आर्द से र्नवृत हो जाए तथा पीले रंग के वस्त्र को धारण करे तथा पीले आसन पर उत्तर की तरफ
मि
ु कर बैठ जाए.
साधक अपने सामने बाजोट पर पीला वस्त्र र्बछाए तथा कोई पात्र उस पर रि दे. उस पात्र में के सर से ‘ह्रीं’ बीज
र्लिे. उसी के ऊपर साधक को वह शंि स्थार्पत करना है. साधक गुरु पूजन, गणेश पूजन को सम्प्पन करे तथा
इसके बाद साधक गुरु मन्त्र का जाप करे . साधक शंि मर्णरत्न का भी पूजन संपन्न करे. इसके बाद साधक न्यास
करे.
किन्यास
ॐ ह्रीं श्रीं अङ्गष्ठु ाभ्यां नमुः
ॐ ह्रीं श्रीं तजिनीभ्यां नमुः
ॐ ह्रीं श्रीं सवािनन्दमर्य मध्यमाभ्यां नमुः
ॐ ह्रीं श्रीं अनार्मकाभ्यां नमुः
हृदयास्दन्यास
ॐ ह्रीं श्रीं हृदयाय नमुः
ॐ ह्रीं श्रीं र्शरसे स्वाहा
ॐ ह्रीं श्रीं र्शिायै वर्षट्
ॐ ह्रीं श्रीं कवचाय हं
ॐ ह्रीं श्रीं नेत्रत्रयाय वौर्षट्
ॐ ह्रीं श्रीं अस्त्राय फट्
न्यास होने पर साधक र्नम्न मन्त्र का २१ माला जाप करे . यह जाप साधक स्फर्टक/ कमलगट्टे की माला से या
शि ं माला से जाप करे.
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं ॐ
(OM HREENG HREENG HREENG SHREENG SHREENG OM)
२१ माला पूणि होने पर साधक शंि को नमस्कार करे तथा उसको तावीज़ में या लोके ट के रूप में अपने गले में
धारण कर ले. साधक यह शंि १ महीने तक धारण करके रिना चार्हए, इसके बाद भी साधक चाहे तो शंि को
धारण कर के रि सकता है लेर्कन कम से कम १ महीने तक धारण कर के रिना चार्हए. माला का र्वसजिन नहीं
करना है यह आगे भी साधनाओ के र्लए उपयोग की जा सकती है.
HRIDYAADI NYAS
दभिमर्ण को तत्रं तथा रसायन में अभ्रक कहा गया है. अभ्रक का एक छोटा सा टुकड़ा भी अपने आप में एक मर्ण
है. तत्रं तथा पारद के क्षेत्र में अभ्रक का अत्यर्धक महत्त्व है, यह मर्ण वायु तत्व प्रधान मर्ण है.पञ्च महाभतू ो में
वायु तत्व में जो गणु हैं की वह र्दिाई नहीं देता इस कारण यह सरु क्षा प्रदान करने में प्रबल सहयोगी कारक
र्सि होता हैं.आज सरु क्षा की र्कसे नहीं आवश्यकता हैं ,काल का प्रवाह कहें या आज के जीवन की र्वर्षमता
की कोई भी कहीं पर भी सरु र्क्षत नहीं हैं,और जीवन की असरु क्षा के साथ साथ, जीवन से जडु ी अन्य चीजों
जैसे जोब की सुरक्षा आर्द भी तो एक आवश्यक अगं हैं इस कारण आज इस प्रयोग की प्रबल आवश्यकता
हैं.और जो साधक होता हैं वह र्कसी एक प्रयोग को करके बैठा नहीं रहता हैं बर्ल्क वह तो लगातार साधना करते
रहता हैं कारण साधना करना तो उसके र्लए एक अर्नवायि सी प्रर्िया हो जाती हैं जैसे जीवन के र्लए श्वास
जरुरी हैं ठीक वैसे ही साधना भी तो एक अत्यावश्यक अगं हैं.
इस प्रयोग के माध्यम से व्यर्क्त अपने घर पररवार के र्लए पूणि सुरक्षा की प्रार्प्त कर सकता है, बाधाओ ं से मुर्क्त पा
सकता है तथा अगर घर पररवार में कुछ मनमुटाव है तो उसे भी ित्म कर घर में पणू ि शांर्त का वातावरण स्थार्पत
र्कया जा सकता है.
यह प्रयोग साधक र्कसी भी शुभ र्दन से शुरू कर सकता है. समय र्दन या रार्त्र का कोई भी रहे.
साधक स्नान कर लाल वस्त्रों को धारण करे तथा लाल आसन पर बैठ जाए. र्दशा उत्तर रहे.
इसके बाद साधक अपने सामने एक छोटा सा टुकड़ा सफ़े द रंग की अभ्रक का रि दे. साधक इस टुकड़े को
कुमकुम से पोत दे. साधक गुरु पूजन, गणेश तथा भैरव पूजन करे. गुरु मंत्र का जाप करे.
साधक को इसके बाद न्यास करना चार्हए.
किन्यास
क्षां अङ्गष्ठु ाभ्यां नमुः
क्षीं तजिनीभ्यां नमुः
क्षूं सवािनन्दमर्य मध्यमाभ्यां नमुः
क्षें अनार्मकाभ्यां नमुः
क्षौं कर्निकाभ्यां नमुः
क्षुः करतल करपृष्ठाभ्यां नमुः
हृदयास्दन्यास
क्षां हृदयाय नमुः
क्षीं र्शरसे स्वाहा
क्षूं र्शिायै वर्षट्
क्षैं कवचाय हं
Darbhmnani has been called Mica in tantra and chemistry. A small piece of mica is a gem in itself. In
field of tantra and Mercurial science, mica is very much significant. This gem has primacy of air
element. Out of five great elements, air element has quality that it is not visible. As a result, it proves
to be beneficial in providing security. Who does not need security, may be it is demand of time or
complexities of today’s life , nobody is secure nowhere and along with insecurity of life, things
connected to life like Job security is important element. That’s why this prayog is needed the most.
Sadhak does not become idle after doing a procedure; rather he continuously keeps on doing sadhna.
Sadhna becomes an essential procedure for him. As breath is important for life, sadhna is also most
important part of life.
Through this procedure, sadhak can attain complete security for his family, get rid of obstacles and if
there is some dispute in family, it can be resolved and peaceful environment can be established at
home.
Sadhak can do this procedure from any auspicious day. It can be done anytime in day or night.
Sadhak should take bath, wear red dress and sit on red aasan facing North direction.
After it, sadhak should keep one small piece of white-coloured Mica in front of him. Sadhak should
apply vermillion all over it. After it, sadhak should perform Guru Poojan, Ganesh and Bhairav
poojan. Sadhak should then chant Guru Mantra.
Thereafter, sadhak should do Nyas procedure.
KAR NYAS
After completion of chanting, sadhak should establish piece of mica i.e. Darbhmnani in worship
place. In this manner, this procedure is completed. Rosary used in this procedure can be used in
Shakti sadhna.
ह्म्म्म्म .... धातुवाद या लोह र्सर्ि रस तंत्र की एक अद्भुत र्िया है र्जसके िारा र्नकृ ि धातुओ ं जैसे की लोहा,
रांगा,सीसा, जस्ता,ताम्बा, पीतल, आर्द को रजत या स्वणि में पूणिरूपेण पररवर्तित र्कया जाता है.
यहाूँ तक की पारद को भी स्वणि में तबदील र्कया जा सकता है .र्जस प्रकार र्सि रस का र्नमािण कर समस्त
ब्रह्मांडीय रोगों का नाश र्कया जा सकता है. र्नरोगी देह और लंबी आयु प्राप्त की जा सकती है. वैसे ही उस र्सि रस
के िारा स्वणि का र्नमािण भी र्कया जाना सभं व है . यहाूँ मैं ये बता दूं की यर्द र्सफि स्वणि र्नमािण के र्लए
र्सि रस का र्नमािण र्कया जाये तो वो कभी भी र्नर्मित नहीं हो सकता . क्यर्ूं क पारद इस प्रकृ र्त का सवािर्धक
चैतन्य तत्व है , साधक के मनो भावों को पढ़ कर , पात्रता को परिने के बाद ही सफलता प्रदान करता है . जब
साधक का ध्येय मात्र स्वणि र्सर्ि होता है तब ये तो र्नश्चय ही सत्य है की साधक का मनोरथ अथि प्रार्प्त है ना की
परम तत्व की प्रार्प्त . अब ऐसे में आप रस र्सर्ि के अर्धकारी भला कै से हुए.
क्यूंर्क शरीर को रोगमुक्त करना भी मात्र इसर्लए जरुरी नहीं है की आप सुिों का उपभोग करे बर्ल्क उस अर्वनाशी
आत्मा को आप एक तेजस्वी देह प्रदान कर सके र्जससे की वो उस परम रूप को प्राप्त कर सके . सुिों का उपभोग
करना गलत नहीं है , गलत है उपभोग के र्लए जीवन जीना . शरीर- योग या भक्षण रस संस्कार में १८
वां है , और इसके पहले का सस्ं कार वेधन है ....... है ना???
जी ...जी र्बलकुल. मैंने कहा .
वो मात्र इसर्लए क्यूंर्क ये मानव शरीर और जीवन अनमोल है . के वल मानव ही ये र्नधािररत कर पाता है की वो
र्कन कमो को अपने जीवन में अपनायेगा वो जो उसे देवत्व की और ले जायेंगे या र्फर वो जो उसे असुरत्व की और
ले जायेंग.े जगत पलक को भी अपनी लीलाएं र्दिाने के र्लए ,
ज्ञान और र्शक्षा के प्रसार के र्लए मानव शरीर का आलंबन लेना पड़ता है , ऐसा नहीं है की वो लीलाओ ं को र्वदेह
होकर नहीं कर सकता , परन्तु तब हमें एकात्मता तो अनभु व नहीं होगी ना.
यहाूँ एक बात मैं आप को बताता हूँ की शरीर योग या भक्षण और वेधन संस्कार वास्तव में ये संस्कार हैं ही नहीं ये तो
िामन संस्कार के बाद की दो र्ियाएूँ हैं र्जनके िारा ये परिा जाता है की वो रस सही तरीके से र्नर्मित हुआ है या
नहीं. शरीर पर प्रयोग करने से पहले या उसे भक्षण करने से पहले उस रस को,
धातु पर प्रयोग कर के देिते हैं की वो उसमे उत्िांर्त करता है या नहीं . यर्द वो रस धातुगत समस्त न्यूनताओ ं को दरू
कर उसे र्दव्य स्वणि में पररवर्तित कर देता है तभी ये माना जाता है की वो शरीर में भी उत्िांर्त कर दोर्षों को नि कर
र्दव्यता प्रदान करेगा. स्वणि को र्दव्य धातु मानने का कारण ही ये है की इसे आप र्कतना भी तपाओ , र्कतनी भी देर
तक अर्ग्न में रि कर गलाओ .इसके भर में कोई अतं र नहीं.
आता बर्ल्क र्जतना आप इस तपाते हैं उतना ही ये सन्ु दर वणीय होते जाता है . अन्य धातुओ ं को आप जब अर्ग्न
पर गलाते हैं तो ठंडा करने पर ये मल ू भार से हर बार कम होते जाते हैं. अथाित उनमे दोर्ष हैं. अर्ग्न जैसे धातुओ ं की
पररक्षण की कसौटी होती है वैसे ही पररर्स्तर्थयाूँ मानव जीवन की कसौटी होती है . और जब तक आपमें दोर्ष होते हैं
तब तक आप र्वशुि हो ही नहीं सकते.मूल रूप को प्राप्त ही नहीं कर सकते.धातु के अन्तुः और बाह्य दोर्षों का नाश
होने पर ही वे स्वणि में पररवर्तित हो पाते हैं.
पर धातवु ाद की ये र्ियाएूँ इतनी सहज नहीं है .इसके र्लए न जाने र्कतनी तैयाररयां की जाती हैं.
मैंने पूछा ... कौन कौन सी तैयाररयां करनी पड़ती हैं??????
स्वणि र्सर्ि या देह र्सर्ि की मर्ं जल तक पहुचाने के र्लए िदु पारद को पञ्च यात्रा करनी पड़ती है. उन्होंने कहा.
कै सी यात्रा? मेरा प्रश्न था.
पारे से पारद , पारद से रस , रस से रस राज , रस राज से रसेंद्र तक की यात्रा .
इससे क्या होता है और ये कै से र्कया जाता है.????
प्रकृ र्त में जो पारद पाया जाता है वो कंचुकी युक्त होता है. अथाित र्वर्षमय होता है जब उसकी कन्चुर्कयों और र्वर्ष
को समाप्त करना हो तो उसे शुि र्कया जाता है . कुमारी रस, रक्त र्चत्रक मल ू रस, रजनी चूण,ि स्वणि गेरू और
लहसुन रस के िारा ३ र्दन तक िरल करने से पारा शुि हो जाता है और कंचुकी रर्हत भी . ये पारा अब पारद
कहलाता है . जो की नील वणीय होता है . इसी पारद पर ही संस्कार की र्िया सपं न्न की जाती है . अब इस पारद
को रस बनाने के र्लए अि संस्कार र्कये जाते हैं.ये अि संस्कार गुणाधान का कायि करते हैं और पारद को वीयिवान
भी.गुरु िारा र्नदेर्शत और शास्त्र सम्मत तरीके से ही ये संस्कार होना चार्हए.
समय अर्धक लग जाये चलेगा ,पर जल्दबाजी में र्कया गया कायि सफलता नहीं देगा. इसर्लए पूरे धैयि के साथ
संस्कार करना चार्हए.
यर्द आपने पारद का चयन पणू ि सावधानी के साथ र्कया हुआ है, और संस्कार भी सही तरीके से र्कये हुए हैं तो
आपने आधा कायि सही तरीके से कर र्लया. एक महत्त्वपूणि बात याद रिना जरुरी है की पारद के साथ साथ सभी
रसो, उपरसो , धातुओ ं और उप्धातुओ ं का शुर्िकरण होना अत्यंत आवश्यक है. यर्द आप ऐसा नहीं करते हैं तो
जब आप इन में से र्कसी भी पदाथि का संयोग पारद के साथ करते हो तो पारद र्फर से दोर्ष युक्त हो जायेगा और
उसका वेध प्रभाव लगभग ित्म ही हो जायेगा..
यहाूँ तक की स्वणि ग्रास के र्लए जो स्वणि बाजार से लाया जाता है वो भी दोर्ष यक्त
ु होता है अतुः उस र्वधान की
जानकारी भी होने चार्हए.
यर्द पारद को स्वणि ग्रास र्दए बगैर आप रसिोट या भस्म बनाते हैं तो भला बीज जारण करे बगैर वो स्वणि ही नहीं
बना पायेगा. हाूँ यर्द स्वणि युक्त र्दव्यौर्श्धयों से संस्कार संपन्न हुए हैं तो कुछ और बात है.
कुछ महत्वपणू ि बातें मैं यहाूँ पर प्रकट कर रहा ह.ूँ ... जो की रस साधकों के र्लए ध्यान रिने योग्य है र्जसका ध्यान
रस कायि करते समय यर्द साधक रिता है तो उसकी सफलता का प्रर्तशत बढ़ जाता है ,बार्क पणू ि सफलता तो
सदगुरुदेव के आशीवािद से ही संभव है.
रस कायि र्जतना वैज्ञार्नक कमि है उतना ही साधना कायि भी. रसेश्वर , रसान्कुशदेवी का र्नत्याचिन अर्नवायि है . रस
र्सिों का ध्यान कर उन्हें नमन करते हुए यर्द पारदेश्वर का अर्भर्षेक र्कया जाये तो कई गप्तु सूत्र स्वयं ही स्पि होते
जाते हैं.
कनकावती साधना, वट-यर्क्षणी साधना ,कनक-प्रभा साधना,कनक-धारा साधना,स्वनािकर्षिण भैरव साधना,
महाकाल भैरव साधना, स्वणिर्सर्ि साधना आर्द में से कोई एक साधना को तो अवश्य ही करना चार्ह ए र्जससे की
आपको पूणि अनुकूलता र्मले. यर्द तारा महार्वद्या के गुप्त रहस्य सदगुरुदेव से प्राप्त हो सके तो र्नश्चय ही सफलता
आपकी अनुगामी होगी. हाूँ रसेश्वरी दीक्षा के बगैर तो इस मागि पर बढ़ा ही नहीं जा सकता.
प्रत्येक तत्व के गुणों की जानकारी साधक को होनी ही चार्हए .प्रत्येक तत्व का अपना महत्त्व होता अहै रस कायि की
र्सर्ि के पथ पर , जैसे नमक को सामान्य समझना ही गलत है . नमक को यर्द सही तरीके से रस कायि के र्लए रस
शाला में तैयार र्कया जाये तो ये पारद का िमण गुण तो बढाता ही है साथ ही साथ अन्य
धातुओ ं के अन्तुः गत दोर्षों को भी साफ़ कर धातुओ ं को उज्जवल करता है . क्या पता है आपको की पारद के ऊपर
इतना पररश्रम क्यूूँ र्कया जाता है,तार्क उसका पक्ष-क्षेदन र्कया जा सके तार्क वो र्कसी भी र्पघली हुयी धातु या गमि
धातु में र्मल सके . पारद को रूह कहा जाता है और जब र्कसी भी धातु के शरीर में रूह का समावेश हो जाता है तो
वो रुक्म मतलब स्वणि में पररवर्तित हो जाता है . यहाूँ धातु से अर्भप्राय उन धातुओ ं से है र्जसका गलनांक पारद से
कही ऊपर हो , जैसे की ताम्र, रजत, लोहा आर्द.
और ये तभी सभं व हो पाता है,जब पारद अर्ग्नसह्य हो गया हो. इसके र्लए गभिद्रुर्त और अभ्रक का र्मलाप पारद से
र्कया जाता है . ये सब अर्त गोपनीय और कर्ठन र्ियाएूँ हैं र्जनके र्लए सतत गरुु मागिदशिन की आवश्यकता होती
है . पर इसका एक छोटा सा रास्ता भी र्जसका मात्र मैं सक
ं े त ही कर सकता
हूँ ..... और वो ये है की मात्र नमक को िास तरीके से यर्द तैयार र्कया जाये तो ये नमक ही पारद को अर्ग्नसह्य कर
देता है .तथा अन्य सभी उड़नशील तत्वों को भी ये अर्ग्नस्थायी कर देता है.
इसी प्रकार कुछ र्वशेर्ष वनस्पर्तयों तथा र्ियाओ ं का संयोग करने से ये पारद आपके मनोरथ को पूणि कर देता है.
(अगले लेि में बार्क सूत्रों का र्ववरण आप सभी के समक्ष शीघ्र ही करूूँगा.)
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
Swarna tantra part 14
I was listening that eminent person’s talk very attentively…well significance of Alchemy(Dhatuwaad)
was quite secondary for me. But ist is a wonderful part of alchemy and attractive too.So I thought it was
revered Sadgurudev’s wish and its knowledge worthy too.Therefore I started imbibing it.
In such a delighted way he started telling and asked - do you know the importance of alchemy for an
alchemist?
If that ras converts and keeps away all the deficiencies and transformed into gold then only it is
certified and used for body transformation and to deliver divinity. Why gold has been considered the
divine metal than others because there would be no difference in wieght if you put gold into fire for long
time,for melting..though it will become more pure,glitter and beautiful.In the same way if you put any
other metal in fire it will be give reduced wieght afterwards.hence they are faulty.
Fire is the examined touchstone of all metals likewise conditions are the touchtone of human life.And
till the time you are full of faults you cannot become pure.cannot earn the exact form. Metal is
converted into gold only when it inner and outer part became faultless.
Hmmmm but these activiteies are not that easy to learn.dont know how much preparation has to be done
for this… So I asked which type of preparation has to be done??
He said….To reaching at the stage of Swarna Siddhi and Deh Siddhi Parad ownself has to attempt five
journeys..
I asked…Which journey you are talking about?
Para to Parad,Parad to ras, ras ro rasraj and rasraj to rasendra’s journey..
What happens from it? And how it has to be done?
The alchemy which is found from the natural source is full of layers…means it is full of posionous
layers.For vanishing these layers it has to go from the process of purification.By for three continous
days with the Kumari ras, rakt chitrak mool ras,rajni churna,swarna gairik and lehsun ras becames
pure.It is known as Parad which is slightly in blueish color.And on this parad only all sanskar has been
done.And for making it into Ras the asthasanskar has to be attempted.it works like gundhan and makes
it courageous and vigorious.All this must be attempted under the Guru’s guidence and with religiously.
If it completes in extra time,its ok but not to be attemted in hurry.Therefore one has to keep patience
while proceeding all this.
See,if you have selected Parad with full of awareness and attempted all sanskar as mentioned so you
have won the half battle.One more thing should be keep in mind while doing i.e. along with the Parad it
is quite important to purify all other upras, metals, submetals also.Because if you use it without
purifying state with the Parad then again Parad becomes faulty and all the hardwork would nullify...
Infact the gold which is come up in market is also in the fault state.So this also we should know how to
tackle.
Without swarna gras if you use Parad for raskhot and bhasma and even without the beejjagran then how
it will convert into gold? But it would be altogether different if divine medicinal gold is used.
Therefore I would really like to tell u all while going through such process one must keep all these point
in mind and attempt so the success percentage would definitely increase.Rest all depends on the
blessings of Shreesadgurudev.
However the ras karya is scientific as much as it is Sadhna karya too.Daily worshipping of Raseshwar
and Rasankushdevi is very necessary.While keepinh in mind about the ras sidhhs and meditating way
and worshipping the pardeshwar with sprinkling water various secrets forms comes infront of us by
their own.
For achieving ultimate comforts in life atleast one must attempt any one of this i.e.Kankawati
Sadhna,Wat-Yakshini Sadhna,Kanak-Prabha Sadhna,Kanak Dhara Sadhna,Swarnakarshan Bhairav
Sadhna,Mahakaal Bhairav Sadhna, Swarnasiddhi Sadhna.If you get the secrets of Tara Mahavidya from
Sadgurudev then success will follow you..Yess without raseshwari diksha you cannot step forward…
Knowledge of each fact must be known by sadhak.As each have their own importance on the path of
Ras siddhi.Like understanding salt as a common element is totally wrong.If normel salt has been
prepared in right way in ras shala then it enhance the strenghth of parad along with that it really vanish
all the faults of other metals and glittered them.Do you know why this many hardworks are attempted
on the Parad because to attempt the Paksha Shkedhan i.e. to be melt and get gel up with any other
dissolve stated melt metal.
It has been called as soul and when it is involve with any metal then it becomes soulfull body i.e.
converted gold.Here metal is used in such context which melting level is too high as compared to Parad
for e.g. copper, silver,iron etc..
And this is possible only when it is flamed properly..For this Garbhdruti of loh,vajra and Abhrak has to
be mix with the Parad.these are very secrets and difficult process of ras for which the guidance of
Sadgurudev is required and essential. Well apart from this way there is another small way which I can
only indicate you i.e. if you prepared the salt especially in such way so it only can do parad agnisahya
and rest udansheel facts also with the another metals too..
In the same way from different Herbs,elements and activities you can achieve and completes your all
wishes…
(In next article I will disclose rest of the keys in front you as early as possible)
धन आज मानव जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता ही बन गया हैं और जीवन के सभी स्तभं मानो उसी पर
र्टके हैं.इस हेतु आज हर साधक को धन का महत्त्व समझना ही चार्हये और र्नश्चय ही कोर्शश करके
ऐश्वयिवान होना ही चार्हये.
स्वयम सदगुरुदेव ने कई कई बार इस तथ्य का उदहारण र्दया हैं की मेरे हर र्शष्य को ऐश्वयिवान होना ही
चार्हये और इसर्लए ही तो उन्होंने इतनी अर्धक लक्ष्मी साधनाए दी हैं. सामान्यत: साधक इन लक्ष्मी साधना
को बहुत ही हलके स्तर पर लेते हैं उनके मन मे बृहद साधनाओ के प्रर्त एक अलग सी रूर्च रहती हैं पर
सदगुरुदेव जी ने इस तथ्य को समझाया हैं की िासकर लक्ष्मी साधनाओ मे बृहद साधनाओ की अपेक्षा लघु
साधना जयादा लाभ प्रद देिी गयी हैं .और उनका पररणाम भी जल्दी प्राप्त होता हैं.अतुः साधको को इन
सामान्य से सरल सी लगने वाली लक्ष्मी साधनाओ को भी अपने दैर्नक जीवन मे एक स्थान देना ही चर्हये
और सफलता का अनभु व भी करना चार्हए.
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मयै श्रीं श्रीं ॐ नम: .
इस अर्ितीय मंत्र को बस एक माला मंत्र जप प्रर्तर्दन यर्द दैर्नक पूजन मे स्थान देना ही चार्हये.और जीवन मे
धन आगमन का भी प्रयास भी करें साधना और जीवन मे कमि का सि ु द सयं ोग भी रहना चार्हए .
--------------------------------------------------------------------------------------------------------
Saral Lakshmi Prayog
From ancient times till today and especially in today’s era money is one and only
indicator of condition of person. Even Acharya Chanakya has written that I and my
knowledge are still the same but it is the absence of money which has brought about
such a condition where no one gives me consideration and respect. When such high-level
Yogi, sadhak and scholar has written it then definitely there can’t be two opinions on the
fact that money has become most important necessity of human life and it seem that all
pillars of life rests on it.Therefore, every sadhak should understand the importance of
money and definitely try to become prosperous.
Sadgurudev himself on so many instances has stressed on this particular fact that my
each and every disciple should be prosperous and that is precisely the reason why he
gave lot of Lakshmi sadhnas. Generally, sadhak considers this Lakshmi sadhna in very
casual manner, they have got lot of interest in big sadhnas but Sadgurudev has told that
especially in case of Lakshmi sadhnas, as compared to big sadhnas , small sadhnas have
seen to be much beneficial and fruits of them are also obtained very quickly. Therefore,
sadhak should give place to this seemingly simple and easy Lakshmi sadhnas in their
daily life and experience success too.
Om shreem shreem mahalakshmayai shreem shreem om namah.
One should chant just one round of this amazing and unparalleled Mantra during daily
poojan and make an effort to earn money too. In both sadhna and life, pleasant synthesis
of Karma should be done.
TOTKA - VIGYAN
1. हर महीने एक र्शवरार्त्र आती हैं तो र्जनके भी घर मे अपने जीवन साथी से कुछ क्लेश्कारक र्स्थर्त बनती
रहती हो, वह र्शव रार्त्र से हर र्दन प्रातकाल उठकर र्जस मटके से घर के लोग जल पीते हो उससे एक
लोटा जल र्नकाल कर घर के चारो ओर र्छडक दें ,पर यह लोटे से र्कसी अन्य को जल नही पीना चार्हये .
2. शयन कक्ष मे डबल बेड का र्वस्तर एक ही होना चार्हये अगर डबल बेड मे दो र्वस्तर र्बछे हैं तो यह
र्स्थर्त पर्त पत्नी के र्लए अनुकूल नही होती है.
3. शयन कक्ष मे हमेशा मनोहारी और स्नेह बढ़ाने वाले र्चत्र लगाये भूल कर भी र्कसी युि या िोध मुद्रा
वाले र्चत्र नही लगाना चार्हए .
Those who are facing some conflict with their life partner, from Shiv Raatri of any month every
day they should get up in the morning and take one mug of water from earthen port and
sprinkle it all around the house. But nobody should drink water from that mug. Shiv Raatri
comes every month.
There should be only one bedding on double bed in bed room. If there are two beddings on
double-bed, then this situation is not favorable for wife.
Always erect pleasing and lovely pictures in bedroom. Even by mistake, any picture of war or
depicting anger should not be erected.
Every householder should read Kanakdhara Stotra 11 or at least 1 time. It is auspicious for
house and adds to its pleasure and wealth.
Make any white cloth flag and erect it on Peepal tree. It helps in getting rid of business hurdles.
Those aspiring for grace of Bhagwati Lakshmi should not scratch their head by hands.
All those who wish to attain grace of Bhagwati Lakshmi; they should try that no dust should
pile up in their home.
Hanuman worship carries a lot of significance in getting rid of any type of fault and not only
this, sindoor applied on him has got lot of miraculous prayogs. One out of them is that applying
sindoor (which is applied on his shoulders) on his forehead saves person from any evil eye in
future and if person is already suffering from evil eyes, it is removed.
No mirror should be placed in bedroom. And if it is present, either get rid of it or cover it with
one cloth when it is not being used.
In the similar manner, water is also not kept in bedroom. This fact should also be kept in mind.
It also disturbs relations.
आयुवदे
1. अगर हर र्दन प्रातकाल एक नीबू को एक र्गलास जल मे र्मलकर र्पया जाए तो इससे वात सम्बर्ं धट
रोगों की तकलीफ दरू करने मे बहुत आराम र्मलता हैं.
2. अगर फल िाने के साथ साथ र्दनमे थोडा बहुत व्यायाम तथा कुछ शरीर की साफ सफाई भी कर ली
जाए तो यह उन फलों के गुणों को आपके अदं र और तीव्रता से असर देने मे सहायता करेगा.
3. साधारणतुः कहा जाता हैं र्क सबु ह वासी महुं मतलब र्बना मजं न र्कये फल िाए जाएूँ तो लाभ की
आशा कहीं और ज्यादा हो सकती हैं.
4. फल िाने के बाद लगभग घन्टे आधे घंटे पानी नही पीना चार्हये.
5. बेल के शबित का या बेल को िाने से पेट की कब्ज आर्द समस्याये दरू करने मे बहुत सहायता र्मलती
हैं.
6. अमरुद भी कब्ज रोग दरू करने मे बहुत आर्धक सहायता करता हैं,इस बात का ध्यान रिना चर्हये र्क
र्जन्हें कब्ज आर्द रोग हैं उन्हें फल आर्द का सेवन जायदा करना चर्हये और जहाूँ तक संभव हो बाज़ार
की दवाईयों जो इस र्वर्षय से सबंर्धत हो से दरू ही रहें क्योंर्क इनके दरू गामी पररणाम बहुत लाभदायक
नही हैं.
7. अमरुद जैसे फल का लाभ पाचन शर्क्त बढ़ाने मे और ह्रदय ,मर्स्तष्क आर्द को बल प्रदान करने मे
बहुत होता हैं .साधारणतुः र्जस मौसम मे जो फल आयें उनको उसी मौसम मे िाने से कोई हार्न नही
होती ,जब तक र्क र्कसी र्वशेर्ष फल के र्लए आपका स्वास्थ्य या आपका र्चर्कत्सक उसकी अनमु र्त
र्कसी कारण से दे न रहा हो तो .(इस अवस्था मे अपने र्चर्कत्सक की सलाह का पालन करें )
8. टमाटर रोज िाने से शरीर के र्लए आवश्यक र्वटार्मन की पूर्ति सहज ही हो जाती हैं.
9. सबु ह शाम यर्द तल
ु सी के पत्ते का रस शहद मे र्मलाकर चाटने से स्वप्न दोर्ष जैसे रोग को दरू करने मे
बहुत सहायता र्मलती हैं.
10. इस बात का हमेशा ध्यान रिें र्क शहद को कभी भी गरम करके न ले, यह बहुत हार्नकारक हैं ,और
जब भी शहद को पानी या दधू के साथ लेना हो तो पानी या दधू भी हल्का सा कुनकुना हो ,गरम पानी या
गरम दधू के साथ भी भूलकर शहद न लें.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------
Ayurveda
Having Juice of one lemon with a glass of water every morning provides relief from
Vaat (one of the humours of body (in the form of wind)) related disease.
If along with eating fruits, little bit of exercise and cleansing of body is done then it
will help in increasing effect of qualities of fruits inside you.
Generally it has been said that if fruits are eaten without brushing teeth then it
provides better results.
After eating fruits, one should not drink water for approximately half hour.
Guava also helps a lot in getting rid of constipation disease. It should be kept in
mind that those who are suffering from constipation should eat fruits more and as
far as possible they should avoid drugs present in market related to it because their
long-term effects are not that much beneficial.
Fruit like guava helps in increasing digestive power and provides strength to heart
and brain etc. Generally there is no harm in eating fruits in the season in which it
comes uptil the time your health or doctor does not allow you to eat a particular
fruit( In such a case , follow advise of your doctor)
Eating tomato daily easily fulfill need of vitamin necessary for body.
Having mixture juice of basil leaf in honey in morning and evening helps a lot to
get riddance from disease like nightfall.
Keep one thing in mind that do not take honey after warming it, it is very
dangerous. And when honey has to be taken with water or milk, then water and
milk should be warm, do not take honey with hot water or hot milk.
In the End
With the ever
आप सभी गुरु
increasing /growing your support and
भाई बहिन और हित्रो के दिन प्रहि दिन के
love/sneh gives us more and more
बढ़िे हुआ स्नेि ििें लगािार और अहिक
िेिनि को प्रेररि करिा िैं अब ये strength to work hard to come up to
अंक सिाहि की ओर िैं, आपको ये अंक कै सा your expectation ,we here,have a faith
लगा , िि सभी को हबश्वास िैं की यि अंक that this issue come up your
आपके अपेक्षाओ पर खरा उिरा िोगा . expectation, like that we work for you
इसी िरि िि सिैव आपके आशाओं पर खरे all is the prayer to beloved sadgurudev
उिरें ,सिगुरुिेव भगवान से यिी प्रार्थना िैं . ji.
Plz do visit
We
Specially on your
and
JAI SADGURUDEV