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राजा की मंडी स्टेशन और मंदिर प्रकरण
- फोटो : अमर उजाला
आगरा में रेलवे ने राजा की मंडी स्टेशन पर बने चामुंडा देवी मंदिर को हटाने के लिए नोटिस दिया तो यह चर्चा शुरू हो गई कि मंदिर पहले बना या रेलवे स्टेशन। मंदिर प्रबंधन और रेलवे के अपने अपने दावे हैं। रेलवे इसे अतिक्रमण मान रहा है। अमर उजाला के पास ऐसे दस्तावेज हैं, जिनसे यह पता लगता है कि मंदिर राजा की मंडी रेलवे स्टेशन से पहले का है। 1953 में मंदिर प्रबंधन का सेंट्रल रेलवे, प्रशासन और आगरा इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के साथ त्रिपक्षीय समझौता हुआ था, जिसमें मंदिर से जमीन ली गई और रेलवे ने बदले में लोहामंडी की ओर 39.25×3 फीट जमीन दी। यह पहला मामला है, जिसमें रेलवे द्वारा राजा की मंडी स्टेशन के लिए बनाए गए नक्शे में ही समझौता वार्ता को शामिल किया गया और समझौते के गवाह सात व्यक्तियों और तीन अधिकारियों के हस्ताक्षर कराए गए। समझौते की शर्तों को हिंदी और अंग्रेजी में नक्शे पर ही एक किनारे अंकित किया गया है।
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समझौते की सत्यापित कॉपी, जिसमें मंदिर से जमीन लेने और देने का ब्यौरा दर्ज है।
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रिकॉर्ड में माहेश्वरी मंदिर के नाम से दर्ज है मंदिर
रेलवे ने 1906 में किदवई पार्क के पास राजा की मंडी स्टेशन बनाया था। टूंडला-आगरा रेलवे लाइन के कारण संचालन संबंधी समस्याओं को देखते हुए इसे 1956 में बिल्लोचपुरा की ओर शिफ्ट किया गया। शिफ्टिंग से पहले जमीन के अधिग्रहण संबंधी कार्रवाई शुरू हो चुकी थी। नए स्टेशन के लिए 19 दिसंबर 1952 को पहला सर्वे हुआ, जिसमें लोहामंडी क्षेत्र की ओर मंदिर को दर्शाया गया।
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रेलवे स्टेशन पर चामुंडा देवी मंदिर
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इस सर्वे रिपोर्ट में देवी मंदिर को माहेश्वरी मंदिर का नाम दिया गया। तब मंदिर को शिफ्ट करने की कवायदें हुईं, लेकिन तत्कालीन दौर में भी लोग इसके लिए तैयार नहीं हुए तो प्रशासन, रेलवे और मंदिर प्रबंधन के साथ आगरा इंप्रूवमेंट ट्रस्ट ने समझौता किया। 23 फरवरी 1953 को यह समझौता किया गया, जिसमें सेंट्रल रेलवे के इंजीनियर आरएन शर्मा, डीएम के प्रतिनिधि के रूप में तहसील से एसबी जौहरी और इंप्रूवमेंट ट्रस्ट आगरा के इंजीनियर ने हस्ताक्षर किए।
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राजा की मंडी रेलवे स्टेशन पर बना है मंदिर
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रेलवे ने माना था - मंदिर को छुआ नहीं जाएगा
23 फरवरी 1953 को सेंट्रल रेलवे, माहेश्वरी मंदिर, कलेक्टर आगरा और आगरा इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के समझौते में रेलवे ने स्पष्ट कहा कि जमीन की अदला-बदली के बाद मंदिर को छुआ नहीं जाएगा। देवी मंदिर के चबूतरे से प्लेटफार्म की ओर 39.25×3 फीट जमीन खुशी से रेलवे को दी जा रही है। रेलवे बदले में उतनी जमीन पश्चिम की ओर देगा। 4×6फीट का रास्ता मंदिर के लिए चाहिए। मंदिर के चारों ओर लोहे की फेंसिंग रेलवे कराकर देगा। माहेश्वरी मंदिर प्रबंधन ने लिखकर दिया कि मंदिर को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। जिस शक्ल में मंदिर है, वैसा ही रहेगा। देवी मंदिर की शिफ्टिंग के लिए वह तैयार नहीं हैं।
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सर्वे के बाद का नक्शा, जिसमें लाल रंग से स्टेशन के लिए जमीन अधिग्रहण को दिखाया गया।
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मंदिर प्रबंधन की ओर से तब घासीराम पुत्र जौहरी भगत, कुंदन राम पुत्र पुम्मेदा, बाबू सिंह पुत्र नारायण सिंह, ओमप्रकाश पुत्र चुन्नी, धनवान पुत्र रामचंद्र, कन्हैयालाल और बाबूलाल पुत्र शिवलाल ने हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के बाद एडीएम ने डीएम को पत्र लिखकर 31 अगस्त 1954 को कहा कि रेलवे ने समझौता मान लिया है और माहेश्वरी मंदिर को छुआ नहीं जाएगा। मंदिर को हटाने की जरूरत नहीं है। रेलवे ने जमीन अधिग्रहण के लिए कहा है।